raj sharma stories
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -9
गतान्क से आगे....
वो आख़िरी संभोग घंटे भर तक चला. मेरे बदन का एक इंच भी हिस्सा कहीं ऐसा नही होगा जिस पर तंगराजन के होंठ ना फिरे हों. उसने मुझे इतना प्यार किया की मेरा बदन उत्तेजना मे आकड़े हुए दुखने लगा था. जब तक संभोग पूरा नही हो गया तब तक मेरे सारे रोएँ खड़े रहे. मैने भी उसे खूब मज़ा दिया. उसकी छाती पर पीठ और कंधे पर अपने दन्तो से काट काट कर अपने निशान छ्चोड़ दिए. उसने भी मेरे दोनो स्तनो पर अपने दाँत गढ़ा दिए.
उनके आदमी मुझे शहर तक छ्चोड़ गये. मैने वहाँ कुच्छ दिन रुकने का प्लान किया. किसी को बताए बिना मैने वहाँ एक नूर्षिंग होम मे बुकिंग करवा ली. वहाँ मैं गयी तो थी अपनी चूत का इलाज करवाने मगर जब पता चला कि मेरी कोख मे उसका स्पर्म रह गया है तो मैने चुप चाप अपने जानकारों और अपने सहर से दूर वहाँ किसी को बताए बिना अपना वॉश भी करवा लिया था. मेरी योनि के अंदर जख्म हो गया था जिसका भी इलाज किया गया. एक हफ़्ता मुझे वहाँ रहना पड़ा जब मैं बिल्कुल ठीक हो गयी तो मैने हयदेराबाद जाकर वहाँ से फ्लाइट पकड़ ली.
मैं जब वापस लौटी तो पूरे ऑफीस मे कोई ऐसा नही बचा जो मुझे बधाई नही दिया होगा. अख़बार के मालिक ने तो मुझे तुरंत प्रमोशन का लेटर हाथ मे देकर बधाई दी.
लेकिन उस वक़्त तक किसी को भी नही पता चला कि इन सबके लिए मुझे कितनी बड़ी कुर्बानी देनी पड़ी थी. मेरे स्वागत मे अख़बार के मालिक ने एक ग्रांड पार्टी दी.
लेकिन पार्टी के दिन सुबह अचानक राकेश जी का मुझे बुलावा आया. अख़बार के मालिक दो भाई हैं मुकेश और राकेश जोशी. दोनो 50 – 55 साल के बीच उम्र के थे दोनो ही बिल्कुल गंजे. राकेश का पेट काफ़ी बाहर निकला हुआ था और मुकेश छर्हरे बदन के मालिक थे. दोनो को मैं आज तक काफ़ी रेस्पेक्ट देती आइ थी. दोनो मुझे बेटी कहते थे. मगर आज वो संबोधन बदल गया.
मैं जैसे ही उनकी कॅबिन मे पहुँची तो राकेश जी ने मुझे अपने सामने बैठने का इशारा किया.
“तुम बहुत बहादुर लड़की हो.” उन्हों ने कुच्छ पेपर्स देखते हुए कहा.
“थॅंक्स.” मैने जवाब दिया.
“ तुम्हारी रिपोर्ट मैने पूरी पढ़ी थी. बहुत अच्छा लिखा है तुमने. मगर क्या तुम्हारी उससे मुलाकात की एक एक घटना उसमे लिखी गयी है?”
मैं उनकी बातें सुन कर चौंक उठी,”मतलब? आप क्या कहना चाहते हैं?”
“नही मुझे लगता है कि तुमने अपनी रिपोर्ट मे कुच्छ बातें च्चिपाई हैं.”
“ मैने? क्या बातें?” मैं हिचकिचा गयी.
“ जैसा कि मैने उसके बारे मे सुन रखा है वो आदमी इतना सीधा साधा है नही जैसा तुमने उस रिपोर्ट मे लिखा है.”
मैं चुपचाप उनको देखती रही. ऐसा लग रहा था मानो उनकी नज़रें मेरे कपड़ों के को चीरती हुई मेरे जिस्म मे गढ़ती जा रही हों.
“ वो बहुत ही कामुक और बलात्कारी आदमी भी है. औरतें उसके नाम से कांपति हैं. कई औरतें तो उसके द्वारा बलात्कार किए जाने के बाद दुनिया छ्चोड़ चुकी हैं. वो तुम्हे इस तरह बिना कुच्छ किए बिना कुच्छ कहे सही सलामत छ्चोड़ दे मैं ये मान ही नही सकता.”
मैं क्या कहती. मैने अपनी नज़रें झुका ली. उन्हों ने मेरे मन के चोर को पकड़ लिया था. मैं अपने निचले होंठ को दन्तो से काट रही थी.
“ मैं जानता हूँ कि तुम्हारी अभी अभी ही शादी हुई है और तुम कभी नही चाहोगी की तुम्हारे पति को तुम्हारे उन जंगल मे तंगराजन के साथ बिताए उन पलों के बारे मे कुच्छ पता लगे. इससे तुम्हरिवावाहिक जिंदगी मे दरार पड़ सकती है और जिसका अंत क्या हो सकता है तुम अच्छि तरह जानती हो.” उन्हों ने पल भर मेरे चेहरे की ओर देखा.
“ एक बात गाँठ बाँध के रख लो. किसी पत्रकार के लिए जुनूनी होना ज़रूरी है. मगर जुनून इस हद तक नही होना चाहिए कि उसकी आग पर्सनल जिंदगी को जला कर राख कर दे. माब् उस तरह का आदमी या अख़बार वाला नही हूँ कि चंद मुनाफ़े के लिए अपने किसी होनहार आदमी की जिंदगी मे जहर घोल दे.”
“तुम बेफ़िक्र होकर मुझे सारी घटना का ज़िक्र कर सकती हो और निश्चिंत रहना ये दो कानो के बीच ही दफ़न रहेगा. वैसे मैं जानता हूँ की तुम एक रोमॅंटिक किस्म की औरत हो. मैने कई पार्टीस मे तुम्हे गौर किया है. तुम्हारा पहनावा, तुम्हारी स्वच्च्छन्द हरकतों को मैने हमेशा सराहा है. तुम्हारे पति भी खुले विचारों के हैं. वो भी तुम्हे इन सब के लिए उकसाते हैं. बूढ़ी आँखें मन के अंदर तक झाँक सकती हैं. हाहाहा..” मैं भी उनके साथ मुस्कुरा उठी.
“अच्छा बताओ तंगराजन के साथ तुम्हारे जिस्मानी ताल्लुक़ात हो चुके हैं या नही? मुझसे मत च्चिपाओ. मुझे सब पता है. मैं तो बस तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ.” मैं उनके प्रश्न का कोई जवाब नही दे सकी. मैने सिर झुका लिया.
“मैं समझ गया हूँ. तुम प्रज्नेन्ट भी हो गयी थी. हां या ना? घबराओ नही तुम्हारे बारे मे नर्सिंग होम वालों ने मुझ से ही पूछ्ताच की थी. तुम तो जानती ही हो कि ये एक इल्लीगल और रेप का केस था. मैने ही उनका मुँह बंद कर दिया था.” वो उठा और अपनी कुर्सी से उठ कर मेरी कुर्सी के पास आया.
“ तुम मुझ पाए विश्वास रख सकती हो. मेरे सारे कर्मचारी मेरे लिए एक परिवार की तरह है और अपने परिवार पर किसी तरह की विपत्ति आए तो मुखिया का फ़र्ज़ होता है कि उसका मुकाबला करे. मैने कुच्छ भी ऐसा नही किया जो मुझे नही करना चाहिए था.” कहकर उसने मेरे कंधों पर अपनी हथेली रख कर खड़ा हो गया.
फिर धीरे से मेरे बगल मे झुक कर मेरे कानो मे आहिस्ता से बोला, ”अगर तुम अपने काम के साथ थोड़ी मौज मस्ती भी कर लेती हो तो किसी का क्या जाएगा. एक बात और……सेक्सी जिस्म की मालकिन होना तो उन्नति की निशानी है. बस इसको कॅश करना आना चाहिए. सेक्स के मामले मे बहुत सेलेक्टिव रहना और किसी अल्तु फालतू आदमी को अपने बदन को छ्छूने भी नही देना.” मैं सिर झुकाए चुपचाप उनकी बातें सुन रही थी. मैने अपनी ओर से कुच्छ भी नही कहा.
“तुम्हारे बारे मे काफ़ी सुन रखा है. बहुत बोल्ड लड़की हो. और कपड़े भी बहुत सेक्सी पहनती हो. चलो आज तुम्हे पार्टी मे परख लेंगे लोग कितना पहचानते हैं तुम्हे.” कह कर उसने अपने हाथ को मेरे कंधे से फिसल जाने दिया. नीच गिरते वक़्त वो हल्के से मेरे उरजों को छ्छू कर बहुत कुच्छ कह गया. मैने अपने बॉस को इस मूड मे पहली बार देखा था. अफवाहें तो दोनो बुद्धों के बारे मे काफ़ी सुन रखी थी. मगर आज से पहले मई उन अफवाहों पर ज़्यादा ध्यान नही देती थी.
“ तुम जा सकती हो. आज शाम पार्टी मे कुच्छ माइंड ब्लोयिंग पहन कर आना. आख़िर पार्टी की रौनक तुम ही तो रहोगी.” कह कर वो मेरे पास से हट कर वापस अपनी कुर्सी पर जा बैठे. मैं उठी और उनको दोबारा विश करके कॅबिन से बाहर निकल गयी.
शाम को जबरदस्त पार्टी अरेंज हुई जिसमे मैं और जीवन दोनो शामिल हुए. मैं एक छ्होटी सी फ्रोक पहन कर गयी थी जिसमे से मेरा जिस्म काफ़ी एक्सपोज़ होता था. आख़िर अपने बॉसस को परखना भी था कि वो किस हद तक आगे जा सकते हैं.
खूब नाच गाना हुया पार्टी मे मैं भी खूब नाची. जीवन तो बार काउंटर से ही चिपक गया था.
डॅन्स का प्रोग्राम चल रहा था. दोनो भाई एक टेबल पर बैठे हुए थे. आज से पहले मैं भी उन्हे किसी बुजुर्ग के नाते उनका आदर करती थी और उन्हों ने भी कभी मेरे प्रति कोई इंटेरेस्ट शो नही किया था. मगर उस पार्टी मे उनकी असलियत मेरे सामने खुल कर आ गयी.
मैं एक सोफे पर अपने कुच्छ सहकर्मियों के साथ बैठी बातें करते हुए ग्लास से ऑरेंज जूस सीप कर रही थी. अचानक एक वेटर मुझे आकर धीरे से कहा, “साहिब वहाँ टेबल पर आपका इंतेज़ार कर रहे हैं. मैने उधर देखा तो राकेश ने मुझे हाथ से अपनी ओर बुलाया. मैं उनके पास पहुँची. दोनो एक लंबे सोफे पर बैठे हुए थे. मुझे देख कर दोनो ने अपने बीच मे जगह बना कर मुझे बैठने का इशारा किया. मैं दोनो बुद्धों के बीच बैठ गयी.
“ आज की इस पार्टी की चीफ गेस्ट तुम हो. इसलिए आज हमारा ड्रिंक्स तुम तैयार करोगी.” उसने एक बॉटल मुझे थमाते हुए कहा.
मैने आज तक कभी किसी के लिए ये काम नही किया था. मैं झिझक रही थी तो मुकेश ने मेरे कंधे पर अपनी बाँह रख कर मुझे धाँढस बँधाया. मैने दोनो ग्लास मे ड्रिंक्स तैयार कर उन दोनो को दी.
“चियर्स टू दा सेक्सीयेस्ट लेडी ऑफ और ऑफीस.” दोनो ने चियर्स कहा और अपने अपने ग्लास मेरे होंठों से छुआये. फिर एक एक घूँट लिया. उन्हों ने अपने अपने ग्लास खाली करते हुए अपनी अपनी बाहें मेरे कंधों पर रख दी थी और मेरे जिस्म से सॅट गये थे. उन्हों ने एक वेटर को इशारा कर मेरे लिए एक ग्लास कोल्ड ड्रिंक मँगवाया. मैं दोनो के बीच सॅंडविच बनी कोल्ड ड्रिंक्स सीप कर रही थी.
मैने उनकी हरकतों के लिए कोई विरोध नही किया. जिसे उन्हों ने मेरी मौन स्वीकृति मानी और हद को पार करते चले गये. उनकी उंगलियाँ मेरे गले पर मेरे गाल्लों पर थिरकने लगी.
दोनो दो दो पेग लेने के बाद अपनी अपनी जगह से उठ खड़े हुए. उन्हों ने मुझे खींच कर खड़ा कर दिया. फिर मुझे लेकर डॅन्स फ्लोर पर पहुँचे. शायद उन्हों ने कोई इशारा कर दिया था क्योंकि उनके डॅन्स फ्लोर पर चढ़ते ही लाइट्स काफ़ी कम हो गयी थी. चारों ओर अंधेरा अंधेरा हो गया था.
राकेश ने मुझे अपनी बाँहों मे लेकर थिरकना शुरू किया. राकेश मोटा होने के बावजूद उसके हाथ पैरों का थिरकना कोई देखता तो दाँतों तले उंगली दबा लेता. मुकेश
पास खड़ा हमे देख रहा था. बाकी लोग भी धीरे धीरे अपनी अपनी जगह से उठ खड़े होकर हमारे चारों ओर आ गये.
क्रमशः....
रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -10
गतान्क से आगे....
कुच्छ देर बाद मुकेश मेरे पीठ से सॅट गया. म्यूज़िक पर हम तीनो थिरक रहे थे. वो दोनो मुझे सॅंडविच की तरह आगे और पीछे से फँसा रखे थे. दोनो डॅन्स क्या कर रहे थे मेरे बदन से अपने बदन रगड़ रहे थे. एक मुझे सामने से रगड़ रहा था तो दूसरा मेरे पीछे से सटा हुया था. एक के खड़े होते लिंग का अहसास मेरी योनि पर लगातार पड़ रही ठिकार से हो रहा था तो दूसरे का लिंग मेरे नितंबों के बीच अपना रास्ता बनाता जा रहा था. दोनो अब मेरे बदन के नाज़ुक हिस्सों को मसल्ने लगे थे.
बाकी लोग हम तीनो की हरकतें देख देख कर तालियाँ बजा रहे थे. मैं भी उस नशीले वातावरण मे झूमने लगी थी.
एक का हाथ मेरे नितंबों पर फिर रहे थे तो दूसरे के हाथ मेरे स्तनो को मसल रहे थे. हम इसी तरह काफ़ी देर तक डॅन्स करते रहे. मगर उन्हों ने इससे ज़्यादा कुच्छ नही किया. डॅन्स ख़तम होने के बाद जब हम वापस टेबल पर पहुँचे तो राकेश ने मुकेश से कहा,
“भाई इसको नये असाइनमेंट पर अगले महीने निकलना है.” मुकेश उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दिया.
“असाइनमेंट? कौन सा असाइनमेंट?” मैं बिल्कुल अंजान थी उनके इरादों से.
“तुम्हे एक नये असाइनमेंट पर अगले महीने रवाना होना है. अपना पासपोर्ट वीसा तैयार करवा लेना. तुम्हे फ्रॅन्स जाना है.”
“मुझे? मुझे वहाँ करना क्या है?” मैने फिर उनसे पूछा.
“कुच्छ नही….वहाँ हफ्ते भर छुट्टियाँ मनाना. घूमना फिरना और ऐश करना. सब कुच्छ हमारी तरफ से. कंपनी बेर करेगी सब खर्चा.” मुकेश ने कहा.
“म्म्म्ममम हॉलिडेज़ इन पॅरिस?” मैं तो उनकी बात सुन कर झूम गयी.
“ हां…….वहाँ सूट हम बुक करवा देंगे. और हम भी एक आध दिन बाद पहुँच जाएँगे. तीनो एक हफ्ते भीड़ भाड़ से दूर एंजाय करेंगे.”
उनके इस कथन से मुझे किसी साद्यंत्रा की बू आने लगी. मैने उनसे कुरेद कर पूच्छना चाहा. मगर दोनो ने ज़्यादा कुच्छ बताने से साफ मना कर दिया.
रात डेढ़ बजे के बाद ही हम वापस लौटे थे उस पार्टी से. उस पार्टी मे पहली बार मैने इस तरह का उन्मुक्त महॉल देखा. वैसे अक्सर हमारे प्रेस की पार्टीस मे हम औरतें इन्वाइट नही होती थी. ज़रूर उन पार्टीस मे इसी तरह का उधम मचाया जाता होगा. तभी उन पार्टीस मे औरतों को इन्वाइट नही किया जाता था. आज की पार्टी मे भी मैं अकेली औरत थी क्योंकि मेरे लिए ही पार्टी अरेंज की गयी थी. लेकिन उतने सारे मर्दों के बीच मैं अकेली. बड़ी मुश्किल से मेरी योनि कोरी बची रही.
महीने भर बाद मैं हफ्ते भर के लिए कंपनी की तरफ से पॅरिस के लिए रवाना हुई. असाइनमेंट का तो सिर्फ़ बहाना था. दोनो बुद्धों की उस पार्टी वाले दिन से ही मुझ पर लार टपक रही थी. अब मैं सेक्स के मामले मे काफ़ी अड्वान्स हो गयी थी. तंगराजन के साथ गुज़रे उन लम्हो ने मेरी जिंदगी को ही बदल दी थी. अब तो किसी पराए मर्द के साथ संपर्क की सोच कर ही बदन के रोएँ खड़े हो जाते थे.
मेरा होटेल पहले से ही बुक था. मैं एरपोर्ट से सीधी होटेल पहुँची. सारा प्रोग्राम पहले से ही तय था. उस दिन मैं वहाँ अकेली ही रही. पूरा पॅरिस सहर उस दिन मैने घूम कर देखा.
अगली सुबह को दोनो भाई भी वहाँ पहुँच गये. फिर हम तीनो के बीच सारे पर्दे हटते चले गये. वहाँ उनके साथ मैने खूब मज़े किए.
होटेल पहुँचते ही दोनो बुड्ढे मुझ पर टूट पड़े. मानो बरसों के भूखे को छप्पन व्यंजन की थाली परोसी गयी हो. हम तीनो कुच्छ ही पलों मे बिकुल नंगी अवस्था मे थे. सबसे पहले दोनो ने मुझे किसी सेक्स की मशीन की तरह चोदा. कोई प्री एग्ज़ाइट्मेंट, सेडक्षन चूमा चॅटी कुच्छ नही. पहले दोनो ने एक एक करके मुझे जी भर कर चोदा. बुद्धों मे स्टॅमिना तो ज़्यादा था नही हां उच्छल कूद खूब करते थे. एक बार जो मैं गैर मर्द की बाहों मे गिरी तो बस गिरती ही चली गयी.
तंगराजन ने मेरी जिंदगी कई तरह से बदल दी थी. उस जैसे बलशाली और रोमॅंटिक मर्द के साथ तीन दिन गुजारने के बाद अब मेरी झिझक पूरी तरह ख़त्म हो गयी थी. मुझे ग्रूप सेक्स, ओरल सेक्स इन सब मे खूब मज़ा आने लगा था. घंटों तक जब कोई मेरे बदन को नोचता तो मेरे जिस्म की भूख तृप्त होती थी.
वहाँ पॅरिस के खुले महॉल मे किसी को क्या परवाह थी की कौन किसके साथ जा रहा है. क्या कर रहा है, कहाँ कर रहा है, किसके साथ सो रहा है. अगर कोई बीच सड़क पर भी किसी औरत को नंगी करके चोदने लगता तो भी किसी गुजरने वाले की भों तक नही उठती. शहर मे खुले आम हम दूसरों की तरह किस करते और एक दूसरे के बदन को मसल्ने लगते.
हफ्ते भर खूब एंजाय किया हमने. सबसे मज़ा तो वहाँ से कुच्छ दूर एक न्यूड बीच पर आया. वहाँ पर कपड़े पहन कर जाना अल्लोव नही था. वो दोनो तो नंगे हो गये. मुझे बहुत शर्म आ रही थी. इस तरह पब्लिक के बीच पूरी तरह नंगी होकर विचरण करना मेरे लिए एक नये अनुभव से कम नही था. वहाँ के महॉल मे मैने बिल्कुल शर्म ओ हया छ्चोड़ दी थी.
मैने भी अपने सारे कपड़े झिझकते हुए उतार दिए और नंगी हालत मे उन दोनो के साथ बीच पर गयी.
हम तीनो उधर दो घंटे रहे. वहाँ सारे ही हम जैसे थे. क्या औरत क्या मर्द और क्या बच्चे किसी के भी बदन पर कपड़े का एक कतरा तक नही था. सब ऐसे घूम रहे थे जैसे हम किसी पार्क मे पूरे कपड़ों मे घूमते हैं.
कुच्छ लोग तो वहाँ पर सेक्स मे भी लिप्त थे. मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी. मगर कुच्छ देर वहाँ रहने के बाद मेरी झिझक काफ़ी कम हो गयी थी. ऐसा लग रहा था कि मैं इस धरती पर नही किसी और जहाँ मे पहुँच गयी हूँ. लोग इतने भी बेशर्म हो सकते हैं मैने पहली बार देखा. शायद सोच सोच का फ़र्क था. मेरी सोच तो कितनी भी खुली क्यों ना हो थी तो शुद्ध भारतीय.
हफ़्ता भर उनके साथ एंजाय करने के बाद हम अलग अलग वापस आए जिससे किसी को कुच्छ शक़ ना हो.
हमारे अख़बार मे सबसे पहले तंगराजन की तस्वीर छपी उसका इंटरव्यू छपा. उसके बारे मे एक एक सूचना छपी गयी. अख़बार की सेल रातों रात आसमान छूने लगी.
कुच्छ दिन बाद एक सूचना छपी जो सबके चेहरे पर रौनक ले आइ मगर मेरे दिल के एक कोने मे हल्की सी टीस दे गयी.
तंगराजन पोलीस मुठभेड़ मे मारा गया था. तंगराजन से दोबारा मिलने का सपना सिर्फ़ एक सपना बन कर मेरे दिल मे रह गया.
वो दूसरों के लिए चाहे जितना भी खराब आदमी रहा हो. मगर किसी औरत को प्यार करने के मामले मे किसी कामदेव से कम नही था. वो तीन दिन मेरी जिंदगी के सबसे हसीन दिन थे. मैं रश्मि जो अच्छे अच्छो को अपना गुलाम बना कर नाक रगडवा लेती हूँ उन तीन दिन मैंकिसी की गुलाम बनी रही. जैसा उसने चाहा वैसा मैने किया. जितना उसने चाह उतना मुझे भोगा. और हां उसका वो घोड़े जैसा लंड मैं जिंदगी भर मिस करती रहूंगी. उन तीन दीनो की याद कर आज भी मेरी चूत गीली हो जाती है.
मुझे फील्ड वर्क मे ही मज़ा आता था. इस घटना के बाद कोई ज़रूरत नही रह गयी थी मुझे फील्ड मे जाने की मगर मेरा शौक़ मुझे बार बार लोगों के बीच जाने के लिए बाध्या करता था.
मुझे इस शौक़ की वजह से कई बार लोगों की हवस का भी शिकार बनना पड़ा. एक बार तो मैने कुच्छ बदमाशों के बारे मे अपने अख़बार मे एक रिपोर्ट छापी और उनको शाह देने के लिए पोलीस की खूब खिंचाई की. उन लोगों ने मुझे अपना दुश्मन बना लिया. उन्हों ने मुझे सबक सिखाने के लिए एक दिन जब मैं रात एक बजे के करीब प्रेस से वापस लौट रही थी मुझे चौराहे पर रोक कर मेरी कनपटी पर रेवोल्वेर रख दी.
मैं उन लोगों मे फँस गयी थी और दो दिन तक उन लोगों ने मुझे एक सीलन भरे कमरे मे नंगी कर के बिस्तर पर पटक दिया था. मेरे हाथ पैर बिस्तर के चारों पयों से बाँध दिए गये और फिर मेरा जम कर सामूहिक बलात्कार किया. मैं चीख भी नही पाती थी क्योंकि मेरे मुँह मे कपड़ा ठूंस दिया जाता था. रोज की दिनचर्या भी मुझे बेशरम हो कर सबके सामने ही करना पड़ता था. मैं समझ नही पा रही थी कि उनसे च्छुतकारा कैसे मिलेगा. मैं तो पता नही और कितने दिनो तक उनके चंगुल मे रहती अगर ना वहाँ के किसी पड़ोसी ने पोलीस मे शिकायत कर दी होती. अचानक एक दिन पोलीस की रेड हुई. बदमाश तो भनक लगते ही भाग खड़े हुए मैं बची रही नंगी उस बिस्तर पर टाँगे चौड़ी की हुई और हाथ पैर बँधे हुए.
अब हम वापस उस घटना पर लौट ते हैं जहाँ से कहानी शुरू हुई थी. एडिटर के कहने पर मैं वापस फील्ड वर्क के लिए तैयार हो गयी. मैं आश्रम मे जाने के लिए तैयार होने लगी. इसके लिए मैने एक काफ़ी लो कट टाइट टी-शर्ट पहनी और एक टाइट जीन्स. गर्मी का मौसम था इसलिए नीचे मैने ब्रा नही पहनी थी. मेरे निपल्स बड़े होने की वजह से बिना एरेक्षन के भी बाहर से सॉफ दिख रहे थे.
"कैसी लग रही हूँ?" मैने पूछा
"ह्म्म्म ऑल्वेज़ सेक्सी." जीवन ने आगे बढ़कर मुझे किस किया.
"अवी का ख्याल रखना हो सकता है लौटने मे देर हो जाए. मैं कार ले जा रही हूँ. मम्मी को बता दिया है. अगर ज़्यादा लेट हो गयी तो रात को रुकना भी पड़ सकता है."
मैं अपनी कार पर जगतपुरा के लिए निकल पड़ी. गर्मी का मौसम था. कुच्छ ही देर मे गर्म हवाएँ चलने लगी. मैं दस बजे तक जगतपुरा पहुँच गयी. स्वामी जी का आश्रम बहुत ही विशाल था. मेरा मुँह तो अंदर की साज सजावट देख कर खुला का खुला रह गया. काफ़ी बड़े एरिया मे आश्रम बना था. चारों ओर हारे भरे फल फूल के पेध पौधे देखते ही बनते थे. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः....
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -10
गतान्क से आगे....
कुच्छ देर बाद मुकेश मेरे पीठ से सॅट गया. म्यूज़िक पर हम तीनो थिरक रहे थे. वो दोनो मुझे सॅंडविच की तरह आगे और पीछे से फँसा रखे थे. दोनो डॅन्स क्या कर रहे थे मेरे बदन से अपने बदन रगड़ रहे थे. एक मुझे सामने से रगड़ रहा था तो दूसरा मेरे पीछे से सटा हुया था. एक के खड़े होते लिंग का अहसास मेरी योनि पर लगातार पड़ रही ठिकार से हो रहा था तो दूसरे का लिंग मेरे नितंबों के बीच अपना रास्ता बनाता जा रहा था. दोनो अब मेरे बदन के नाज़ुक हिस्सों को मसल्ने लगे थे.
बाकी लोग हम तीनो की हरकतें देख देख कर तालियाँ बजा रहे थे. मैं भी उस नशीले वातावरण मे झूमने लगी थी.
एक का हाथ मेरे नितंबों पर फिर रहे थे तो दूसरे के हाथ मेरे स्तनो को मसल रहे थे. हम इसी तरह काफ़ी देर तक डॅन्स करते रहे. मगर उन्हों ने इससे ज़्यादा कुच्छ नही किया. डॅन्स ख़तम होने के बाद जब हम वापस टेबल पर पहुँचे तो राकेश ने मुकेश से कहा,
“भाई इसको नये असाइनमेंट पर अगले महीने निकलना है.” मुकेश उसकी बात सुन कर मुस्कुरा दिया.
“असाइनमेंट? कौन सा असाइनमेंट?” मैं बिल्कुल अंजान थी उनके इरादों से.
“तुम्हे एक नये असाइनमेंट पर अगले महीने रवाना होना है. अपना पासपोर्ट वीसा तैयार करवा लेना. तुम्हे फ्रॅन्स जाना है.”
“मुझे? मुझे वहाँ करना क्या है?” मैने फिर उनसे पूछा.
“कुच्छ नही….वहाँ हफ्ते भर छुट्टियाँ मनाना. घूमना फिरना और ऐश करना. सब कुच्छ हमारी तरफ से. कंपनी बेर करेगी सब खर्चा.” मुकेश ने कहा.
“म्म्म्ममम हॉलिडेज़ इन पॅरिस?” मैं तो उनकी बात सुन कर झूम गयी.
“ हां…….वहाँ सूट हम बुक करवा देंगे. और हम भी एक आध दिन बाद पहुँच जाएँगे. तीनो एक हफ्ते भीड़ भाड़ से दूर एंजाय करेंगे.”
उनके इस कथन से मुझे किसी साद्यंत्रा की बू आने लगी. मैने उनसे कुरेद कर पूच्छना चाहा. मगर दोनो ने ज़्यादा कुच्छ बताने से साफ मना कर दिया.
रात डेढ़ बजे के बाद ही हम वापस लौटे थे उस पार्टी से. उस पार्टी मे पहली बार मैने इस तरह का उन्मुक्त महॉल देखा. वैसे अक्सर हमारे प्रेस की पार्टीस मे हम औरतें इन्वाइट नही होती थी. ज़रूर उन पार्टीस मे इसी तरह का उधम मचाया जाता होगा. तभी उन पार्टीस मे औरतों को इन्वाइट नही किया जाता था. आज की पार्टी मे भी मैं अकेली औरत थी क्योंकि मेरे लिए ही पार्टी अरेंज की गयी थी. लेकिन उतने सारे मर्दों के बीच मैं अकेली. बड़ी मुश्किल से मेरी योनि कोरी बची रही.
महीने भर बाद मैं हफ्ते भर के लिए कंपनी की तरफ से पॅरिस के लिए रवाना हुई. असाइनमेंट का तो सिर्फ़ बहाना था. दोनो बुद्धों की उस पार्टी वाले दिन से ही मुझ पर लार टपक रही थी. अब मैं सेक्स के मामले मे काफ़ी अड्वान्स हो गयी थी. तंगराजन के साथ गुज़रे उन लम्हो ने मेरी जिंदगी को ही बदल दी थी. अब तो किसी पराए मर्द के साथ संपर्क की सोच कर ही बदन के रोएँ खड़े हो जाते थे.
मेरा होटेल पहले से ही बुक था. मैं एरपोर्ट से सीधी होटेल पहुँची. सारा प्रोग्राम पहले से ही तय था. उस दिन मैं वहाँ अकेली ही रही. पूरा पॅरिस सहर उस दिन मैने घूम कर देखा.
अगली सुबह को दोनो भाई भी वहाँ पहुँच गये. फिर हम तीनो के बीच सारे पर्दे हटते चले गये. वहाँ उनके साथ मैने खूब मज़े किए.
होटेल पहुँचते ही दोनो बुड्ढे मुझ पर टूट पड़े. मानो बरसों के भूखे को छप्पन व्यंजन की थाली परोसी गयी हो. हम तीनो कुच्छ ही पलों मे बिकुल नंगी अवस्था मे थे. सबसे पहले दोनो ने मुझे किसी सेक्स की मशीन की तरह चोदा. कोई प्री एग्ज़ाइट्मेंट, सेडक्षन चूमा चॅटी कुच्छ नही. पहले दोनो ने एक एक करके मुझे जी भर कर चोदा. बुद्धों मे स्टॅमिना तो ज़्यादा था नही हां उच्छल कूद खूब करते थे. एक बार जो मैं गैर मर्द की बाहों मे गिरी तो बस गिरती ही चली गयी.
तंगराजन ने मेरी जिंदगी कई तरह से बदल दी थी. उस जैसे बलशाली और रोमॅंटिक मर्द के साथ तीन दिन गुजारने के बाद अब मेरी झिझक पूरी तरह ख़त्म हो गयी थी. मुझे ग्रूप सेक्स, ओरल सेक्स इन सब मे खूब मज़ा आने लगा था. घंटों तक जब कोई मेरे बदन को नोचता तो मेरे जिस्म की भूख तृप्त होती थी.
वहाँ पॅरिस के खुले महॉल मे किसी को क्या परवाह थी की कौन किसके साथ जा रहा है. क्या कर रहा है, कहाँ कर रहा है, किसके साथ सो रहा है. अगर कोई बीच सड़क पर भी किसी औरत को नंगी करके चोदने लगता तो भी किसी गुजरने वाले की भों तक नही उठती. शहर मे खुले आम हम दूसरों की तरह किस करते और एक दूसरे के बदन को मसल्ने लगते.
हफ्ते भर खूब एंजाय किया हमने. सबसे मज़ा तो वहाँ से कुच्छ दूर एक न्यूड बीच पर आया. वहाँ पर कपड़े पहन कर जाना अल्लोव नही था. वो दोनो तो नंगे हो गये. मुझे बहुत शर्म आ रही थी. इस तरह पब्लिक के बीच पूरी तरह नंगी होकर विचरण करना मेरे लिए एक नये अनुभव से कम नही था. वहाँ के महॉल मे मैने बिल्कुल शर्म ओ हया छ्चोड़ दी थी.
मैने भी अपने सारे कपड़े झिझकते हुए उतार दिए और नंगी हालत मे उन दोनो के साथ बीच पर गयी.
हम तीनो उधर दो घंटे रहे. वहाँ सारे ही हम जैसे थे. क्या औरत क्या मर्द और क्या बच्चे किसी के भी बदन पर कपड़े का एक कतरा तक नही था. सब ऐसे घूम रहे थे जैसे हम किसी पार्क मे पूरे कपड़ों मे घूमते हैं.
कुच्छ लोग तो वहाँ पर सेक्स मे भी लिप्त थे. मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी. मगर कुच्छ देर वहाँ रहने के बाद मेरी झिझक काफ़ी कम हो गयी थी. ऐसा लग रहा था कि मैं इस धरती पर नही किसी और जहाँ मे पहुँच गयी हूँ. लोग इतने भी बेशर्म हो सकते हैं मैने पहली बार देखा. शायद सोच सोच का फ़र्क था. मेरी सोच तो कितनी भी खुली क्यों ना हो थी तो शुद्ध भारतीय.
हफ़्ता भर उनके साथ एंजाय करने के बाद हम अलग अलग वापस आए जिससे किसी को कुच्छ शक़ ना हो.
हमारे अख़बार मे सबसे पहले तंगराजन की तस्वीर छपी उसका इंटरव्यू छपा. उसके बारे मे एक एक सूचना छपी गयी. अख़बार की सेल रातों रात आसमान छूने लगी.
कुच्छ दिन बाद एक सूचना छपी जो सबके चेहरे पर रौनक ले आइ मगर मेरे दिल के एक कोने मे हल्की सी टीस दे गयी.
तंगराजन पोलीस मुठभेड़ मे मारा गया था. तंगराजन से दोबारा मिलने का सपना सिर्फ़ एक सपना बन कर मेरे दिल मे रह गया.
वो दूसरों के लिए चाहे जितना भी खराब आदमी रहा हो. मगर किसी औरत को प्यार करने के मामले मे किसी कामदेव से कम नही था. वो तीन दिन मेरी जिंदगी के सबसे हसीन दिन थे. मैं रश्मि जो अच्छे अच्छो को अपना गुलाम बना कर नाक रगडवा लेती हूँ उन तीन दिन मैंकिसी की गुलाम बनी रही. जैसा उसने चाहा वैसा मैने किया. जितना उसने चाह उतना मुझे भोगा. और हां उसका वो घोड़े जैसा लंड मैं जिंदगी भर मिस करती रहूंगी. उन तीन दीनो की याद कर आज भी मेरी चूत गीली हो जाती है.
मुझे फील्ड वर्क मे ही मज़ा आता था. इस घटना के बाद कोई ज़रूरत नही रह गयी थी मुझे फील्ड मे जाने की मगर मेरा शौक़ मुझे बार बार लोगों के बीच जाने के लिए बाध्या करता था.
मुझे इस शौक़ की वजह से कई बार लोगों की हवस का भी शिकार बनना पड़ा. एक बार तो मैने कुच्छ बदमाशों के बारे मे अपने अख़बार मे एक रिपोर्ट छापी और उनको शाह देने के लिए पोलीस की खूब खिंचाई की. उन लोगों ने मुझे अपना दुश्मन बना लिया. उन्हों ने मुझे सबक सिखाने के लिए एक दिन जब मैं रात एक बजे के करीब प्रेस से वापस लौट रही थी मुझे चौराहे पर रोक कर मेरी कनपटी पर रेवोल्वेर रख दी.
मैं उन लोगों मे फँस गयी थी और दो दिन तक उन लोगों ने मुझे एक सीलन भरे कमरे मे नंगी कर के बिस्तर पर पटक दिया था. मेरे हाथ पैर बिस्तर के चारों पयों से बाँध दिए गये और फिर मेरा जम कर सामूहिक बलात्कार किया. मैं चीख भी नही पाती थी क्योंकि मेरे मुँह मे कपड़ा ठूंस दिया जाता था. रोज की दिनचर्या भी मुझे बेशरम हो कर सबके सामने ही करना पड़ता था. मैं समझ नही पा रही थी कि उनसे च्छुतकारा कैसे मिलेगा. मैं तो पता नही और कितने दिनो तक उनके चंगुल मे रहती अगर ना वहाँ के किसी पड़ोसी ने पोलीस मे शिकायत कर दी होती. अचानक एक दिन पोलीस की रेड हुई. बदमाश तो भनक लगते ही भाग खड़े हुए मैं बची रही नंगी उस बिस्तर पर टाँगे चौड़ी की हुई और हाथ पैर बँधे हुए.
अब हम वापस उस घटना पर लौट ते हैं जहाँ से कहानी शुरू हुई थी. एडिटर के कहने पर मैं वापस फील्ड वर्क के लिए तैयार हो गयी. मैं आश्रम मे जाने के लिए तैयार होने लगी. इसके लिए मैने एक काफ़ी लो कट टाइट टी-शर्ट पहनी और एक टाइट जीन्स. गर्मी का मौसम था इसलिए नीचे मैने ब्रा नही पहनी थी. मेरे निपल्स बड़े होने की वजह से बिना एरेक्षन के भी बाहर से सॉफ दिख रहे थे.
"कैसी लग रही हूँ?" मैने पूछा
"ह्म्म्म ऑल्वेज़ सेक्सी." जीवन ने आगे बढ़कर मुझे किस किया.
"अवी का ख्याल रखना हो सकता है लौटने मे देर हो जाए. मैं कार ले जा रही हूँ. मम्मी को बता दिया है. अगर ज़्यादा लेट हो गयी तो रात को रुकना भी पड़ सकता है."
मैं अपनी कार पर जगतपुरा के लिए निकल पड़ी. गर्मी का मौसम था. कुच्छ ही देर मे गर्म हवाएँ चलने लगी. मैं दस बजे तक जगतपुरा पहुँच गयी. स्वामी जी का आश्रम बहुत ही विशाल था. मेरा मुँह तो अंदर की साज सजावट देख कर खुला का खुला रह गया. काफ़ी बड़े एरिया मे आश्रम बना था. चारों ओर हारे भरे फल फूल के पेध पौधे देखते ही बनते थे. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः....
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -11
गतान्क से आगे....
मैने वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और आने का मकसद बताया. मुझे अंदर जाने दिया गया. एक आदमी मुझे लेकर मेन बिल्डिंग मे दाखिल हुया. मैं वहाँ स्वामीजी से मिली.
स्वामीजी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे. उनके चेहरे मे एक अद्भुत चमक थी. घने काले दाढ़ी मे चेहरा और भरा भरा लग रहा था. कोई 6'2" या 3" हाइट होगी. वजन भी कम से कम 100-110 किलो होना चाहिए. लंबे घुंघराले बाल, चौड़ा घने बालों से भरा सीना किसी भी महिला को पागल करने के लिए काफ़ी था. उसने नंगे बदन पर एक लाल तहमद बाँध रखी थी और एक लाल दुपट्टा कंधे पर रख रखा था. गले मे ढेर सारी मालाएँ. सब मिला कर उनके व्यक्तित्व को बहुत आकर्षक बना रही थी.
उन्हों ने बिना कुच्छ बोले मुझे ऊपर से नीचे तक देखा. मेरे बूब्स को देखते हुए मुझे लगा कि उनकी आँखों मे छन भर के लिए एक चमक सी आइ और फिर ओझल हो गयी. मुझे हाथ से बैठने का इशारा किया. वो तब एक आराम दायक कुर्सी पर बैठे हुए किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे. मैने आगे बढ़ कर उनके चरण च्छुए और उनको अपने आने का मकसद बताया. उन्हों ने बिना कुच्छ कहे मुझे वापस बैठने को इशारा किया.
मैं उनके सामने ज़मीन पर बैठने लगी तो एक शिष्या छ्होटा सा एक मूढ़ढा ले आया. मैं उनके बिल्कुल करीब उस मुद्दे पर बैठ गयी. मैने अपना आइडेंटिटी कार्ड उनके सामने कर दिया. उन्हों ने अपने हाथ मे पकड़ी पत्रिका को एक तरफ रख कर मुझे वापस गहरी नज़रों से देखा. उनके चेहरे पर एक बहुत ही प्यारी सी मुस्कान सदा बनी हुई थी. मेरे बारे मे ओपचारिक पूछ ताछ के बाद उन्हों ने अपने एक शिष्या को बुलाया.
" इनको मेरे बगल वाला रूम दिखा दो. कुच्छ समान हो तो वो भी पहुँचा देना. ये हमारी खास अतिथि हैं इनका पूरा ध्यान रखा जाय. रजनी जी को इनके साथ रहने को कह देना. वो हमारे बारे मे इनकी सारी जिगयसाएँ शांत कर देगी. इनके अतिथ्य मे किसी तरह की कोई कमी नही रहनी चाहिए." धीरे धीरे और बड़े ही मृदु स्वर मे उन्हों ने कहा. उनकी आवाज़ बहुत धीमी और गंभीर थी.
"स्वामीजी आपके पठन का समय हो गया है." तभी एक आदमी ने उनसे कहा. स्वामी जी उठते हुए मेरे सिर पर हाथ फेरे तो लगा मानो एक चुंबकीय शक्ति उनके हाथों से मेरे बदन मे प्रवेश कर गयी. पूरा बदन मे झुरजुरी सी फैल गयी.
"तुम आराम करो और चाहो तो आश्रम घूम फिर कर देख भी सकती हो. रजनी तुम्हे सब जगह दिखा देगी. तुम हमारे आस्रम की शिष्या क्यों नही बन जाती. मुझे तुम्हारे जैसी समझदार लोगों की ज़रूरत है." उन्हों ने मेरी आँखों मे झाँकते हुए कहा.
“ मैं आपकी बात पर विचार करूँगी.”
“ सदा सुखी रहो.” कह कर वो धीमे कदमो से वहाँ से चले गये.
रजनी नाम की लड़की कुच्छ ही देर मे आई. उसने लाल रंग का एक किमोना जैसा वस्त्र पहन रखा था. जैसा पहाड़ी इलाक़े मे लड़कियाँ पहनती हैं. वैसे वहाँ जितने भी शिश्य या शिष्या आश्रम मे रहते थे सब लाल रंग का लबादा पहनते थे. रजनी बहुत ही खूब सूरत थी और उसका बदन भी सेक्सी था. वो मुझे लेकर आश्रम की गलियारों से होकर आगे बढ़ रही थी और मैं अपने समान का बॅग लेकर उसके पीछे हो ली.
उसने मुझे एक कमरा दिखाया. कमरा काफ़ी खूबसूरती से सज़ा हुआ था. मानो कोई फाइव स्टार होटेल का कमरा हो. तभी एक युवती कोई शरबत लेकर आई. उसका स्वाद थोड़ा अजीब था मगर उसे पीने के बाद तन बदन मे एक स्फूर्ति सी च्छा गयी. यात्रा की सारी थकावट पता नही कहाँ गायब हो गयी.
रजनी ने मुझे पूरा आश्रम घुमाया बहुत ही शानदार बना हुआ था. उसने फिर सबसे मेरी मुलाकात कराई. वहाँ 12 आदमी और 5 महिलाएँ रहती थी. महिलाएँ सारी की सारी खूबसूरत और सेक्सी थी. लगता था मानो खूबसूरती और सेक्सी होना वहाँ ज़रूरी होता था.
सारी महिलाएँ एक जैसा ही गाउन पहन रखी थी. जो कमर पर डोरी से बँधी रहती थी. उस गाउन के भीतर उन्हों ने शायद कुच्छ भी नही पहन रखा था. क्योंकि चलने फिरने से उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ बुरी तरह से हिलती डुलती थी. जब वो झुकती तो गले का हिस्सा खुल जाता और काफ़ी दूर तक नंगी छातियो के दर्शन हो जाते थे.
आदमी सब कमर पर एक लाल लूँगी बाँध रखे थे. उनके कमर के उपर का हिस्सा नंगा ही रहता था. सारे मर्द हत्ते कत्ते और अच्छि कद काठी के थे. सब को कुच्छ ना कुच्छ काम बाँट रखा था.
दोपहर को खाना खाने के बाद स्वामी जी कुच्छ देर विश्राम करने चले गये. शाम को उनका हॉल मे प्रवचन था. मैं उनके संग रहने का कोई भी मौका नही छ्चोड़ रही थी. स्वामी जी बहुत ही अच्च्छा बोलते थे. ऐसा लगता था कि कानो मे मिशरी घोल रहे हों. मैं तो मंत्रमुग्ध हो गयी. सारे भक्त जन उनकी बातों को बहुत ही ध्यान से सुन रहे थे. मैं उनसे संबंधित हर छ्होटी छ्होटी बात को अपनी डाइयरी मे लिखती जा रही थी. उनकी बातों को वॉकमॅन के द्वारा टेप करती जा रही थी.
शाम की आरती के बाद आठ बजे मुझे उन्हों ने इंटरव्यू के लिए बुलाया. मैं उनसे तरह तरह के सवाल पूच्छने लगी. वो बिना झिझक उनके जवाब दे रहे थे. उनके जवाब
मैं रेकॉर्ड करती जा रही थी. मैं उनके जवाब रेकॉर्ड करने के लिए उनकी तरफ झुक कर बैठी हुई थी. जिसके कारण मेरे टी-शर्ट के गले से बिना ब्रा के बूब्स और निपल्स उन्हे सॉफ दिख रहे. स्वामीजी की नज़रे उनको सहला रही थी. अचानक मेरी नज़रे उनके ऊपर पड़ी. उनकी
आँखों का पीछा किया तो पता चला कि वो कहाँ घूम रही हैं. मैं शर्मा गयी. लेकिन मैने अपने दूध की बॉटल्स को छिपाने की कोई कोशिश नही की.
मैने अपने बातों की दिशा थोड़ा बदल कर उसे सेक्स की तरफ मोड़ा. मैं मौके का पूरा फ़ायदा उठना चाहती थी. मैं उनके कामोत्तेजक स्वाभाव को अपने अन्द्रूनि बदन का दर्शन करा कर उनसे वो बातें उगलवा लेना चाहती थी. समझ गयी कि आश्रम मे चारों ओर रंगीन महॉल बना हुआ है. उनके कमरे मे दीवारो पर भी उत्तेजक तस्वीर लगे हुए थे.
"स्वामी जी आपके बारे मे तरह तरह के अफवाह भी सुनने को मिलते हैं" मैने पूछा लेकिन उनके चेहरे पर खिली मुस्कुराहट मे कोई चेंज नज़र नही आया.
“किस तरह के अफवाह देवी?” उन्हों ने पूछा.
“यही की आश्रम मे कुच्छ उन्मुक्त वातावरण फैला हुआ है. यहाँ पर सेक्षुयल खेल भी चलते हैं. यहाँ के लोगों का आपस मे शारीरिक संबंध भी बना हुआ है. इत्यादि इत्यादि…”
" जब भी कोई लोगों की भलाई के लिए अपना सब कुच्छ लगा देता है तो कुच्छ आदमी उस से जलने लगते हैं. आच्छे मनुश्य का काम होता है कि बगुले की तरह सिर्फ़ मोती चुन ले और कंकड़ को वहीं पड़े रहने दे." उन्हो ने बड़े ही मधुर आवाज़ मे मेरे प्रश्न का जवाब दिया.
“लेकिन क्या आपको लगता नही कि कुच्छ लोग आपके बारे मे आश्रम के बारे मे अफवाहें फैला कर बदनाम करने की कोशिश मे लगे हुए हैं.”
“देवी कोई जानवर आपको काट ले तो क्या पलट कर आप भी उसे कटोगी? नही ना. इसलिए किसी की बातों को ध्यान नही देना चाहिए. मनुष्य इन संसारिक बातों से उपर उठे तो संसार बहुत ही अच्छा दिखने लगेगा.” उन्हों ने उसी तरह बिना किसी आवेश के उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा. मैं तो मंत्रमुग्ध सी एक तक उनके चेहरे को निहारती रही.
“ देवी मेरे आश्रम के द्वार हर मनुश्य के लिए खुले हैं कोई भी यहा आकर जाँच पड़ताल कर सकता है. देवी तुम भी हमारे आश्रम मे रहो देखोगी कि यहाँ के महॉल मे इतना नशा है कि तुम आश्रम से दूर होना भूल जाओगी.”
इसी तरह काफ़ी देर तक बातें होती रही. उन्हों ने बातों बातों मे मुझे कई बार उनके आश्रम को जाय्न करने का ऑफर दिया. मियने हर बात मुस्कुरा कर उनके ऑफर को नज़र अंदाज कर दिया.
रात के साढ़े नौ बजे मैने उनसे घर जाने कि इजाज़त माँगी. वो मुझे छ्चोड़ना नही चाहते थे.
“देवी आज रात आप यही आश्रम मे रुकें आज हमारी मेहमान बन कर रहें. रात विश्राम करके कल अपने हिसाब से चली जाना. मैं आपके रुकने का इंटेज़ाम करवा देता हूँ. आपको यहाँ किसी तरह की परेशानी नही होगी.” उन्हों ने मुझे रोकते हुए मेरा हाथ थाम लिया.
क्रमशः............
गतान्क से आगे....
मैने वहाँ पहुँच कर अपना परिचय दिया और आने का मकसद बताया. मुझे अंदर जाने दिया गया. एक आदमी मुझे लेकर मेन बिल्डिंग मे दाखिल हुया. मैं वहाँ स्वामीजी से मिली.
स्वामीजी बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व के आदमी थे. उनके चेहरे मे एक अद्भुत चमक थी. घने काले दाढ़ी मे चेहरा और भरा भरा लग रहा था. कोई 6'2" या 3" हाइट होगी. वजन भी कम से कम 100-110 किलो होना चाहिए. लंबे घुंघराले बाल, चौड़ा घने बालों से भरा सीना किसी भी महिला को पागल करने के लिए काफ़ी था. उसने नंगे बदन पर एक लाल तहमद बाँध रखी थी और एक लाल दुपट्टा कंधे पर रख रखा था. गले मे ढेर सारी मालाएँ. सब मिला कर उनके व्यक्तित्व को बहुत आकर्षक बना रही थी.
उन्हों ने बिना कुच्छ बोले मुझे ऊपर से नीचे तक देखा. मेरे बूब्स को देखते हुए मुझे लगा कि उनकी आँखों मे छन भर के लिए एक चमक सी आइ और फिर ओझल हो गयी. मुझे हाथ से बैठने का इशारा किया. वो तब एक आराम दायक कुर्सी पर बैठे हुए किसी पत्रिका के पन्ने पलट रहे थे. मैने आगे बढ़ कर उनके चरण च्छुए और उनको अपने आने का मकसद बताया. उन्हों ने बिना कुच्छ कहे मुझे वापस बैठने को इशारा किया.
मैं उनके सामने ज़मीन पर बैठने लगी तो एक शिष्या छ्होटा सा एक मूढ़ढा ले आया. मैं उनके बिल्कुल करीब उस मुद्दे पर बैठ गयी. मैने अपना आइडेंटिटी कार्ड उनके सामने कर दिया. उन्हों ने अपने हाथ मे पकड़ी पत्रिका को एक तरफ रख कर मुझे वापस गहरी नज़रों से देखा. उनके चेहरे पर एक बहुत ही प्यारी सी मुस्कान सदा बनी हुई थी. मेरे बारे मे ओपचारिक पूछ ताछ के बाद उन्हों ने अपने एक शिष्या को बुलाया.
" इनको मेरे बगल वाला रूम दिखा दो. कुच्छ समान हो तो वो भी पहुँचा देना. ये हमारी खास अतिथि हैं इनका पूरा ध्यान रखा जाय. रजनी जी को इनके साथ रहने को कह देना. वो हमारे बारे मे इनकी सारी जिगयसाएँ शांत कर देगी. इनके अतिथ्य मे किसी तरह की कोई कमी नही रहनी चाहिए." धीरे धीरे और बड़े ही मृदु स्वर मे उन्हों ने कहा. उनकी आवाज़ बहुत धीमी और गंभीर थी.
"स्वामीजी आपके पठन का समय हो गया है." तभी एक आदमी ने उनसे कहा. स्वामी जी उठते हुए मेरे सिर पर हाथ फेरे तो लगा मानो एक चुंबकीय शक्ति उनके हाथों से मेरे बदन मे प्रवेश कर गयी. पूरा बदन मे झुरजुरी सी फैल गयी.
"तुम आराम करो और चाहो तो आश्रम घूम फिर कर देख भी सकती हो. रजनी तुम्हे सब जगह दिखा देगी. तुम हमारे आस्रम की शिष्या क्यों नही बन जाती. मुझे तुम्हारे जैसी समझदार लोगों की ज़रूरत है." उन्हों ने मेरी आँखों मे झाँकते हुए कहा.
“ मैं आपकी बात पर विचार करूँगी.”
“ सदा सुखी रहो.” कह कर वो धीमे कदमो से वहाँ से चले गये.
रजनी नाम की लड़की कुच्छ ही देर मे आई. उसने लाल रंग का एक किमोना जैसा वस्त्र पहन रखा था. जैसा पहाड़ी इलाक़े मे लड़कियाँ पहनती हैं. वैसे वहाँ जितने भी शिश्य या शिष्या आश्रम मे रहते थे सब लाल रंग का लबादा पहनते थे. रजनी बहुत ही खूब सूरत थी और उसका बदन भी सेक्सी था. वो मुझे लेकर आश्रम की गलियारों से होकर आगे बढ़ रही थी और मैं अपने समान का बॅग लेकर उसके पीछे हो ली.
उसने मुझे एक कमरा दिखाया. कमरा काफ़ी खूबसूरती से सज़ा हुआ था. मानो कोई फाइव स्टार होटेल का कमरा हो. तभी एक युवती कोई शरबत लेकर आई. उसका स्वाद थोड़ा अजीब था मगर उसे पीने के बाद तन बदन मे एक स्फूर्ति सी च्छा गयी. यात्रा की सारी थकावट पता नही कहाँ गायब हो गयी.
रजनी ने मुझे पूरा आश्रम घुमाया बहुत ही शानदार बना हुआ था. उसने फिर सबसे मेरी मुलाकात कराई. वहाँ 12 आदमी और 5 महिलाएँ रहती थी. महिलाएँ सारी की सारी खूबसूरत और सेक्सी थी. लगता था मानो खूबसूरती और सेक्सी होना वहाँ ज़रूरी होता था.
सारी महिलाएँ एक जैसा ही गाउन पहन रखी थी. जो कमर पर डोरी से बँधी रहती थी. उस गाउन के भीतर उन्हों ने शायद कुच्छ भी नही पहन रखा था. क्योंकि चलने फिरने से उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ बुरी तरह से हिलती डुलती थी. जब वो झुकती तो गले का हिस्सा खुल जाता और काफ़ी दूर तक नंगी छातियो के दर्शन हो जाते थे.
आदमी सब कमर पर एक लाल लूँगी बाँध रखे थे. उनके कमर के उपर का हिस्सा नंगा ही रहता था. सारे मर्द हत्ते कत्ते और अच्छि कद काठी के थे. सब को कुच्छ ना कुच्छ काम बाँट रखा था.
दोपहर को खाना खाने के बाद स्वामी जी कुच्छ देर विश्राम करने चले गये. शाम को उनका हॉल मे प्रवचन था. मैं उनके संग रहने का कोई भी मौका नही छ्चोड़ रही थी. स्वामी जी बहुत ही अच्च्छा बोलते थे. ऐसा लगता था कि कानो मे मिशरी घोल रहे हों. मैं तो मंत्रमुग्ध हो गयी. सारे भक्त जन उनकी बातों को बहुत ही ध्यान से सुन रहे थे. मैं उनसे संबंधित हर छ्होटी छ्होटी बात को अपनी डाइयरी मे लिखती जा रही थी. उनकी बातों को वॉकमॅन के द्वारा टेप करती जा रही थी.
शाम की आरती के बाद आठ बजे मुझे उन्हों ने इंटरव्यू के लिए बुलाया. मैं उनसे तरह तरह के सवाल पूच्छने लगी. वो बिना झिझक उनके जवाब दे रहे थे. उनके जवाब
मैं रेकॉर्ड करती जा रही थी. मैं उनके जवाब रेकॉर्ड करने के लिए उनकी तरफ झुक कर बैठी हुई थी. जिसके कारण मेरे टी-शर्ट के गले से बिना ब्रा के बूब्स और निपल्स उन्हे सॉफ दिख रहे. स्वामीजी की नज़रे उनको सहला रही थी. अचानक मेरी नज़रे उनके ऊपर पड़ी. उनकी
आँखों का पीछा किया तो पता चला कि वो कहाँ घूम रही हैं. मैं शर्मा गयी. लेकिन मैने अपने दूध की बॉटल्स को छिपाने की कोई कोशिश नही की.
मैने अपने बातों की दिशा थोड़ा बदल कर उसे सेक्स की तरफ मोड़ा. मैं मौके का पूरा फ़ायदा उठना चाहती थी. मैं उनके कामोत्तेजक स्वाभाव को अपने अन्द्रूनि बदन का दर्शन करा कर उनसे वो बातें उगलवा लेना चाहती थी. समझ गयी कि आश्रम मे चारों ओर रंगीन महॉल बना हुआ है. उनके कमरे मे दीवारो पर भी उत्तेजक तस्वीर लगे हुए थे.
"स्वामी जी आपके बारे मे तरह तरह के अफवाह भी सुनने को मिलते हैं" मैने पूछा लेकिन उनके चेहरे पर खिली मुस्कुराहट मे कोई चेंज नज़र नही आया.
“किस तरह के अफवाह देवी?” उन्हों ने पूछा.
“यही की आश्रम मे कुच्छ उन्मुक्त वातावरण फैला हुआ है. यहाँ पर सेक्षुयल खेल भी चलते हैं. यहाँ के लोगों का आपस मे शारीरिक संबंध भी बना हुआ है. इत्यादि इत्यादि…”
" जब भी कोई लोगों की भलाई के लिए अपना सब कुच्छ लगा देता है तो कुच्छ आदमी उस से जलने लगते हैं. आच्छे मनुश्य का काम होता है कि बगुले की तरह सिर्फ़ मोती चुन ले और कंकड़ को वहीं पड़े रहने दे." उन्हो ने बड़े ही मधुर आवाज़ मे मेरे प्रश्न का जवाब दिया.
“लेकिन क्या आपको लगता नही कि कुच्छ लोग आपके बारे मे आश्रम के बारे मे अफवाहें फैला कर बदनाम करने की कोशिश मे लगे हुए हैं.”
“देवी कोई जानवर आपको काट ले तो क्या पलट कर आप भी उसे कटोगी? नही ना. इसलिए किसी की बातों को ध्यान नही देना चाहिए. मनुष्य इन संसारिक बातों से उपर उठे तो संसार बहुत ही अच्छा दिखने लगेगा.” उन्हों ने उसी तरह बिना किसी आवेश के उसी तरह मुस्कुराते हुए कहा. मैं तो मंत्रमुग्ध सी एक तक उनके चेहरे को निहारती रही.
“ देवी मेरे आश्रम के द्वार हर मनुश्य के लिए खुले हैं कोई भी यहा आकर जाँच पड़ताल कर सकता है. देवी तुम भी हमारे आश्रम मे रहो देखोगी कि यहाँ के महॉल मे इतना नशा है कि तुम आश्रम से दूर होना भूल जाओगी.”
इसी तरह काफ़ी देर तक बातें होती रही. उन्हों ने बातों बातों मे मुझे कई बार उनके आश्रम को जाय्न करने का ऑफर दिया. मियने हर बात मुस्कुरा कर उनके ऑफर को नज़र अंदाज कर दिया.
रात के साढ़े नौ बजे मैने उनसे घर जाने कि इजाज़त माँगी. वो मुझे छ्चोड़ना नही चाहते थे.
“देवी आज रात आप यही आश्रम मे रुकें आज हमारी मेहमान बन कर रहें. रात विश्राम करके कल अपने हिसाब से चली जाना. मैं आपके रुकने का इंटेज़ाम करवा देता हूँ. आपको यहाँ किसी तरह की परेशानी नही होगी.” उन्हों ने मुझे रोकते हुए मेरा हाथ थाम लिया.
क्रमशः............