राधा का राज compleet

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The Romantic
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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 08 Nov 2014 20:19

मैने उसे चित लिटाकर उसका खड़े लंड के दोनो ओर अपने घुटनो को मोड़ कर बैठी. मैने उनके लंड को अपने चूत के मुहाने पार रख कर उनके लंड पर बैठने के लिए ज़ोर लगाई मगर अनारी होने के कारण एवं मेरी चूत का साइज़ छ्होटा होने के कारण लंड अंदर नाहीं जा पाया. मैने फिर अपनी कमर उठाकर उसके लंड को अपने हाथों से सेट किया और शरीर को ज़ोर से नीचे किया मगर फिर उसका लंड फिसल गया. मैने झुंझला कर उसकी ओर देखा.

"कुछ करो नाआ. कैसे आदमी हो तब से मैं कोशिश कर रही हूँ और तुम चुप चाप पड़े हुए हो. क्या हो गया है तुम्हे." तब जाकर उसने अपनी झिझक को ख़त्म कर के मुझे बिस्तर पर पाटक दिया. मेरी टाँगों को चौड़ा कर के मेरी चूत को चूम लिया.

" ये हुआ ना असली मर्द. वाह मेरे शेर! मसल दो मुझे. मेरी सारी गर्मी निकाल दो" उसने अपनी जीभ निकाल कर मेरी योनि मे घुसने लगा मैने अपने दोनो हाथों से अपनी योनि के फांकों को चौड़ा करके उसकी जीभ का स्वागत किया. वो मेरी योनि मे जीभ फिराने लगा. एक तेज सिहरन सी पूरे बदन मे दौड़ने लगी. मुझे लगने लगा कि अब वो उठे और मेरे योनि मे चल रही खुजली को शांत कर दे. मैं अपने हाथों से उसके सिर को अपनी योनि पर दबाने लगी. इस कोशिश मे मेरी कमर भी बिस्तर छोड़ कर उसकी जीभ को पाने के लिए उपर उठने लगी.

काफ़ी देर तक मेरी गीली चूत पर जीभ फिराने के बाद वो उठा. मैं तो उसके जीभ से ही एक बार झाड़ गयी.

"राआाज बस और नही. प्लीज़ अब और मत सताओ. अब बस मुझे अपने लंड से फाड़ डालो. आआअहह राआाज आअज मुझे पता चला कि इसमे कितना मज़ा छिपा होता है. म्‍म्म्ममममम" उसने मेरी टाँगों को उठा कर अपने कंधे पर रखा और अपने लंड को मेरी टपकती चूत पर रख कर एक ज़ोर दार धक्का मारा.

" आआआआआः उउउउउउउउईईईई माआआआ" उसका लंड रास्ता बनाता हुआ आगे बढ़कर मेरे कौमार्य की झिल्ली पर जा रुका. उसने मेरी ओर देख कर एक मुस्कुराहट दी.

"ये तुम्हारे लिए है मेरी जान तुम्हारे लिए ही तो बचा कर रखा था. लो इस पर्दे को हटा कर मुझे अपना लो."

अब उसने एक और ज़ोर दार धक्का मारा तो पूरा लंड मेरे अंदर फाड़ता हुआ समा गया. "ऊऊऊओफ़ माअर ही डालोगे क्या? ऊउउउउईईईईइ मा मर गई" मैं बुरी तरह तड़पने लगी. वो लंड को पूरा अंदर डाल कर कुछ देर रुका. अपने लंड को उसी अवस्था मे रोक कर वो मेरे उपर लेट गया. वो मेरे होंठों को चूमने लगा. मैने भी आगे बढ़ कर उसके होंठ अपने दांतो के बीच दबा कर उसे चूमने लगी. इस तरह मेरे ध्यान योनि से उठ रही दर्द की लहरों की तरफ से हट गया. मैं उत्तेजित तो पूरी तरह ही हो रही थी. मैने अपने लंबे नाख़ून उसकी पीठ पर गढ़ा दिए. जिससे हल्का हल्का खून रिसने लगा था.धीरे धीरे मेरा दर्द गायब हो गया. उसने अपने लंड को पूरा बाहर निकाल कर मुझे सिर से पकड़ कर कुछ उठाया और अपने लंड को दिखाया. लंड पर खून के कुछ कतरे लगे हुए थे. मैं खुशी से झूम उठी. मैने अपने हाथों से उसके लंड को पकड़ कर खुद ही अपनी टाँगे चौड़ी कर के अपनी योनि मे डाल लिया. उसने वापस अपने लंड को जड़ तक मेरी योनि मे डाल दिया.

उसने लंड को थोड़ा बाहर निकाल कर वापस अंदर डाल दिया. फिर तो उसने खूब ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाए. मैं भी पूरी ज़ोर से नीचे से उसका साथ दे रही थी. अंदर बाहर अंदर बाहर जबरदस्त धक्के लग रहे थे. 45 मिनट के बाद वो मेरे अंदर ढेर सारा वीर्य उधेल दिया. मैं तो तब ताक तीन बार निकाल चुकी थी. वो थॅक कर मेरे शरीर पर लेट गया. मैं तो उसकी मर्दानगी की कायल हो चुकी थी. हम एक दूसरे को चूम रहे थे और एक दूसरे के बदन पर हाथ फिरा रहे थे.

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 08 Nov 2014 20:20

कुछ देर बाद वो बगल मे लेट गया मैं उस हालत मे उसके सीने के ऊपर अपना सिर रख कर उसके सीने के बालों से खेलने लगी.वो मेरे बालों से खेल रहा था.

" थॅंक यू" मैने कहा "मैं आज बहुत खुश हूँ. मेरा एक एक अंग तुम्हारी मर्दानगी का कायल हो गया है. मुझे लड़की से औरत बनाने वाला एक जबरदस्त लंड है. जिसके धक्के खाकर तो मेरी हालत पतली हो गयी. मगर खुश मत होना आज सारी रात तुम्हारी बरबादी करूँगी." वो मुस्कुरा रहा था.

"क्यों मन नही भरा अब भी?" उसने मुस्कुराते हुए पूछा.

"इतनी जल्दी कभी मन भर सकता है क्या?" वो मेरे निपल्स से खेलते हुए हँसने लगा.

मैने उसकी आँखो मे झाँकते हुए पूछा, " अब बोलो मुझ से प्यार करते हो? देखो ये चादर हम दोनो के मिलन की गवाह है." मैने चादर पर लगे खून के धब्बों की ओर इशारा किया. उसने सिर हिलाया.

"मुझसे शादी करोगे? धात मैं भी कैसी पगली हूँ आज तक मैने तो तुमसे पूछा भी नहीं कि तुम शादीशुदा हो कि नहीं और देखो अपना सब कुछ तुम्हे दे दिया."

" अगर मैं कहूँ कि मैं शादीशुदा हूँ तो ?" उसने अपने होंठों पर एक कुटिल मुस्कान लाते हुए पूछा.

" तो क्या? मेरी किस्मत. अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो. चाहे जिस रूप मे मुझे स्वीकार करो" मेरी आँखें नम हो गयी.

" जब सब सोच ही लिया तो फिर तुम जब चाहे फेरों का बंदोबस्त कर लो. मैं अपने घर भी खबर कर देता हूँ." उसने कहा.

" येस्स्स!" मैने अपने दोनो हाथ हवा मे उँचे कर दिए फिर उस पर भूकी शेरनी की तरह टूट पड़ी. इस बार उसने भी मुझे अपने ऊपर खींच लिया. एक और मरथोन राउंड चला. इस बार मैं उस पर चढ़ कर उसके लंड पर चढ़ाई कर रही थी. अब शरम किस लिए ये तो अब मेरा होने वाला शोहार था. काफ़ी देर तक करने के बाद उसने मुझे चौपाया बना कर पीछे से अपना लंड डाल कर धक्के मारने लगा. मेरी नज़र सिरहाने की तरफ डॉक्टोरेस्सैंग टेबल पर लगे मिरर पर गया. बड़ी शानदार जोड़ी लग रही थी. वो पीछे से धक्के लगा रहा था और मेरे बड़े बड़े उरोज़ आगे पीछे उच्छल रहे थे. मैं पोज़िशन चेंज कर के मिरर के सामानांतर अगाई. उसका मोटा काला लंड मेरी चूत मे जाता हुआ काफ़ी एग्ज़ाइटिंग लग रहा था. मैं एक के बाद एक कई बार लगातार अपना पानी छोड़ने लगी. लेकिन उसका तब भी नही निकला था. उसके बाद भी वो काफ़ी देर तक करता रहा. फिर उसने ढेर सारा वीर्य मेरी योनि मे डाल दिया. उसका वीर्य मेरी योनि से उफन कर बिस्तर पर गिर रहा था. वो थक कर मेरे उपर गिर पड़ा. मैं उसके वजन को अपने हाथों और पैरों के बल सम्हल नही पाई और मैं भी उसके बदन के नीच ढेर हो गयी. हम दोनो पसीने से लथपथ हो रहे थे. कुछ देर तक एक दूसरे को चूमते हुए लेटे रहे.

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Re: राधा का राज

Unread post by The Romantic » 08 Nov 2014 20:21

" तुम खुश तो हो ना?" मैने उससे पूछा.

" तुमसा साथी पा कर कौन नही खुश होगा." राज शर्मा ने कहा, "हर बच्चा परी के सपने देखता है मगर मुझ को तो सक्छात परी मिल गयी" .

फिर हम दोनो उठ कर साथ साथ नहाए. तैयार होकर मैं खाना बनाकर उसे अपने हाथों से खिलाई. और उसने मुझे खिलाया. फिर वापस हम बेडरूम मे आ गये. रात भर राउंड पर राउंड चलते रहे. सुबह तक मेरा तो उसने बुरा हाल कर दिया था ऐसा लग रहा था मानो मुझे मथ्नि मे डाल कर मठ दिया हो. चूत का हाल तो बहुत ही बुरा था. पहले ही मिलन मे इतनी घिसाई तो उसके हिम्मत तोड़ने के लिए काफ़ी थी. लाल होकर फूल गयी थी. फोड़े की तरह दुख रहा था. सुबह तक तो मुझमे उठकर खड़े होने की ताक़त भी नहीं बची थी. सुबह 6.0 ओ'क्लॉक को वो उठा और तैयार होकर मेरे मकान से निकल गया जिससे किसी को पता नही चले. जाने से पहले मुझे होंठों पर एक चुंबन देकर उठाया.

"मत जाओ अब मुझे छोड़कर" मैने उस से विनती की.

"अजीब पागल लड़की है" उसने कहा, "पहले शादी हो जाने दो फिर बाँध लेना मुझे."

" सहारा देकर उठा तो सकते हो."

उसने मुझे सहारा देकर उठाया. उसके जाने के बाद मैं सोफे पर ढेर हो गयी. सुबह मुझ से मिलने मेरी एक मात्र सहेली रचना आई.

"क्या हुआ मेरी बन्नो?" मैने अपना हाल सुनाया तो वो भी खुश हुई. लेकिन जब राज शर्मा के काम काज के बारे मे सुना तो कुछ मायूस हो गयी. लेकिन मैने उससे कहा कि मैं उससे प्यार करती हूँ और हम दोनो मिलकर ग्रहस्थी की गाड़ी खींच लेंगे. तब जाकर वो कुछ अस्वस्थ हुई.

मुझे काफ़ी टाइम लगा अपने परिवार वालो को मनाने मे लेकिन आख़िर मे जीत मेरी ही हुई. मेरे घरवालों ने समझाने की कोशिश की मगर मेरा निश्चय देख कर शांत हो गये.

महीने भर बाद हम दोनो ने एक सादे स्मरोह मे मंदिर मे जाकर शादी करली. मैने ट्रान्स्फर के लिए अप्लाइ किया जो की जल्दी ही आगेया. नये जगह जाय्न करने के बाद मैने शादी का अननौंसेमेट किया. तबतक मैं ऑलरेडी 3 मंत्स प्रेग्नेंट थी. रचना ने भी मेरे साथ ही सेम जगह ट्रान्स्फर के लिए अप्लाइ किया जो कि मंजूर होगया. राज शर्मा ने एक छोटी मोटी सी नर्सरी खोल ली.

मेरे साथ मेरी प्यारी सहेली रचना का भी ट्रान्स्फर उसी जगह हो गया था जो कि हमारे लिए बहुत ही खुशी की बात थी. राज ने नयी जगह पर एक नर्सरी खोल ली. जो कि उसकी महनत से अच्छा चल बैठा. मेरी पहली प्रेग्नेन्सी जो कि शादी से पहले ही हो गयी थी मिसकॅरियेज हो गया. हम दोनो बच्चों के मामले मे कोई भी जल्दी बाजी नहीं करना चाहते थे. इसलिए हम ने शादी के बाद काफ़ी सुरक्षा के साथ ही संभोग किया. रचना और राज शर्मा मे काफ़ी चुहल बाजी चलती रहती थी. जिसमे मुझे मज़ा आता था.

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