मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--3
गतान्क से आगे........................
पंकज इतना खुला पन अच्छि बात नहीं है. विशलजी घर के हैं
तो क्या हुआ हैं तो पराए मर्द ही ना और हम से बड़े भी हैं. इस
तरह तो हुमारे बीच पर्दे का रिश्ता हुआ. परदा तो दूर तुम तो मुझे
उनके सामने नंगी होने को कह रहे हो. कोई सुने गा तो क्या कहेगा."
मैने वापस झिड़का.
"अरे मेरी जान ये दकियानूसी ख़याल कब से पालने लग गयी तुम. कुच्छ
नही होगा. मैं अपने पास एक तुम्हारी अंतरंग फोटो रखना चाहता हूँ
जिससे हमेशा तुम्हारे इस संगमरमरी बदन की खुश्बू आती रहे."
मैने लाख कोशिशे की मगर उन्हे समझा नही पायी. आख़िर मैं राज़ी
हुई मगर इस शर्त पर कि मैं बदन पर पॅंटी के अलावा ब्रा भी पहने
रहूंगी उनके सामने. पंकज इस को राज़ी हो गये. मैने झट से होल्डर
पर टाँगे अपने टवल से अपने बदन को पोंच्छा और ब्रा लेकर पहन ली.
पंकज ने बाथरूम का दरवाजा खोल कर विशाल जी को फोन किया और
उन्हे अपनी प्लॅनिंग बताई. विशलजी मेरे बदन को निवस्त्रा देखने की
लालसा मे लगभग दौड़ते हुए कमरे मे पहुँचे.
पंकज ने उन्हे बाथरूम के भीतर आने को कहा. वो बाथरूम मे आए तो
पंकज मुझे पीछे से अपनी बाँहों मे सम्हाले शवर के नीचे खड़े
हो गये. विशाल की नज़र मेरे लगभग नग्न बदन पर घूम रही थी.
उनके हाथ मे पोलेरॉइड कमेरे था.
"म्म्म्मम...... .बहुत गर्मी है यहाँ अंदर. अरे साले साहब सिर्फ़ फोटो
ही क्यों कहो तो केमरे से . ब्लू फिल्म ही खींच लो" विशाल ने हंसते
हुए कहा.
"नही जीजा. मूवी मे ख़तरा रहता है. छ्होटा सा स्नॅप कहीं भी
छिपाकर रख लो" पंकज ने हंसते हुए अपनी आँख दबाई.
"आप दोनो बहुत गंदे हो." मैने कसमसाते हुए कहा तो पंकज ने
अपनेहोंठ मेरे होंठों पर रख कर मेरे होंठ सील दिए.
"शवर तो ऑन करो तभी तो सही फोटो आएगा." विशाल जी ने कॅमरा का
शटर हटाते हुए कहा.
मेरे कुच्छ बोलने से पहले ही पंकज ने शवर ऑन कर दिया. गर्म पानी
की फुहार हम दोनो को भिगोति चली गयी. मैने अपनी चूचियो को
देखा. ब्रा पानी मे भीग कर बिकुल पारदर्शी हो गया था और बदन से
चिपक गया था. मैं शर्म से दोहरी हो गयी. मेरी नज़रें सामने
विशालजी पर गयी. तो मैने पाया कि उनकी नज़रें मेरे नाभि के नीचे
टाँगोंके जोड़ पर चिपकी हुई हैं. मैं समझ गयी कि उस जगह का भी वही
हाल हो रहा होगा. मैने अपने एक हाथ से अपनी छातियो को धक और
दूसरी हथेली अपनी टाँगों के जोड़ पर अपने पॅंटी के उपर रख दिया.
"अरे अरे क्या कर रही हो.........पूरा स्नॅप बिगड़ जाएगा. कितना प्यारा
पोज़ दिया था पंकज ने सारा बिगाड़ कर रख दिया" मैं चुप चाप
खड़ी
रही. अपने हाथों को वहाँ से हटाने की कोई कोशिश नही की. वो तेज
कदमों से आए और जिस हाथ से मैं अपनी बड़ी बड़ी छातियो को उनकी
नज़रों से च्चिपाने की कोशिश कर रही थी उसे हटा कर उपर कर
दिया.उसे पंकज की गर्दन के पीछे रख कर कहा, "तुम अपनी बाहें
पीछेपंकज की गर्दन पर लपेट दो." फिर दूसरे हाथ को मेरी जांघों के
जोड़से हटा कर पंकज के गर्दन के पीछे पहले हाथ पर रख कर उस
मुद्रा मे खड़ा कर दिया. पंकज हुमारा पोज़ देखने मे बिज़ी था और
विशाल ने उसकी नज़र बचा कर मेरी योनि को पॅंटी के उपर से मसल
दिया. मैं कसमसा उठी तो उसने तुरंत हाथ वहाँ से हटा दिया.
फिर वो अपनी जगह जाकर लेनसे सही करने लगा. मैं पंकज के आगे
खड़ीथी और मेरी बाहें पीछे खड़े पंकज के गर्दन के इर्दगिर्द थी.
पंकज के हाथ मेरे स्तानो के ठीक नीचे लिपटे हुए थे. उसने
हाथोंको थोड़ा उठाया तो मेरे स्तन उनकी बाहों के उपर टिक गये. नीचे की
तरफ से उनके हाथों का दबाव होने की वजह से मेरे उभार और उघड़
कर सामने आ गये थे.
मेरे बदन पर कपड़ों का होना और ना होना बराबर था. विशाल ने एक
स्नॅप इस मुद्रा मे खींची. तभी बाहर से आवजा आई...
"क्या हो रहा है तुम तीनो के बीच?"
मैं दीदी की आवाज़ सुनकर खुश हो गयी. मैं पंकज की बाहों से फिसल
कर निकल गयी.
"दीदी.....नीतू दीदी देखो ना. ये दोनो मुझे परेशान कर रहे हैं.
मैं शवर से बाहर आकर दरवाजे की तरफ बढ़ना चाहती थी लेकिन
पंकज ने मेरी बाँह पकड़ कर अपनी ओर खींचा और मैं वापस उनके
सीने से लग गयी. तब तक दीदी अंदर आ चुकी थी. अंदर का महॉल
देख कर उनके होंठों पर शरारती हँसी आ गयी.
"क्यों परेशान कर रहे है आप?" उन्हों ने विशाल जी को झूठमूठ
झिड़कते हुए कहा, "मेरे भाई की दुल्हन को क्यों परेशान कर रहे
हो?"
"इसमे परेशानी की क्या बात है. पंकज इसके साथ एक इंटिमेट फोटो
खींचना चाहता था सो मैने दोनो की एक फोटो खींच दी." उन्हों ने
पोलेरॉइड की फोटो दिखाते हुए कहा.
"बड़ी सेक्सी लग रही हो." दीदी ने अपनी आँख मेरी तरफ देख कर
दबाई.
"एक फोटो मेरा भी खींच दो ना इनके साथ." विशाल जी ने कहा.
"हन्हन दीदी हम तीनो की एक फोटो खींच दो. आप भी अपने कपड़े उतार
कर यहीं शवर के नीचे आ जाओ." पंकज ने कहा.
"दीदी आप भी इनकी बातों मे आ गयी." मैने विरोध करते हुए कहा.
लेकिन वहाँ मेरा विरोध सुनने वाला था ही कौन.
विशलजी फटा फॅट अपने सारे कपड़े उतार कर टवल स्टॅंड पर रख
दिए. अब उनके बदन पर सिर्फ़ एक छ्होटी सी फ्रेंचिए थी. पॅंटी के
बाहर
से उनका पूरा उभार सॉफ सॉफ दिख रहा था. मेरी आँखें बस वहीं
पर
चिपक गयी. वो मेरे पास आ कर मेरे दोसरे तरफ खड़े होकर मेरे
बदन से चिपक गये. अब मैं दोनो के बीच मे खड़ी थी. मेरी एक बाँह
पंकज के गले मे और दूसरी बाँह विशलजी के गले पर लिपटी हुई थी.
दोनो मेरे कंधे पर हाथ रखे हुए थे. विशलजी ने अपने हाथ को
मेरे कंधे पर रख कर सामने को झूला दी जिससे मेरा एक स्तन उनके
हाथों मे ठोकर मारने लगा. जैसे ही दीदी ने शटर दबाया विशलजी
ने मेरे स्तन को अपनी मुट्ठी मे भर लिया और मसल दिया. मैं जब तक
सम्हल्ती तब तक तो हुमारा ये पोज़ कमेरे मे क़ैद हो चुका था.
इस फोटो को विशाल जी ने सम्हाल कर अपने पर्स मे रख लिया. विशाल
तोहम दोनो के संभोग के भी स्नॅप्स लेना चाहता था लेकिन मैं एकद्ूम से
आड़गयी. मैने इस बार उसकी बिल्कुल नही चलने दी.
इसी तरह मस्ती करते हुए कब चार दिन गुजर गये पता ही नही
चला.
हनिमून पर विशाल जी को और मेरे संग संभोग का मौका नही मिला
बेचारे अपना मन मसोस कर रह गये.हम हनिमून मना कर वापस
लौटने के कुच्छ ही दीनो बाद मैं पंकज के साथ मथुरा चली आई.
पंकज उस कंपनी के मथुरा विंग को सम्हलता था. मेरे ससुर जी
देल्हीके विंग को सम्हलते थे और मेरे जेठ उस कंपनी के बारेल्ली के
विंग के सीईओ थे.
घर वापस आने के बाद सब तरह तरह के सवाल पूछ्ते थे. मुझे
तरह तरह से तंग करने के बहाने ढूँढते. मैं उनसब की नोक झोंक
से शर्मा जाती थी.
मैने महसूस किया कि पंकज अपनी भाभी कल्पना से कुच्छ अधिक ही
घुले मिले थे. दोनो काफ़ी एक दूसरे से मज़ाक करते और एक दूसरे को
छ्छूने की या मसल्ने की कोशिश करते. मेरा शक यकीन मे तब बदल
गया जब मैने उन दोनो को अकेले मे एक कमरे मे एक दूसरे की आगोश मे
देखा.
मैने जब रात को पंकज से बात की तो पहले तो वो इनकार करता रहा
लेकिन बार बार ज़ोर देने पर उसने स्वीकार किया कि उसके और उसकी
भाभीमे जिस्मानी ताल्लुक़ात भी हैं. दोनो अक्सर मौका धहोंध कर सेक्स का
आनंद लेते हैं. उसकी इस स्वीकृति ने जैसे मेरे दिल पर रखा
पत्थर हटा दिया. अब मुझे ये ग्लानि नही रही कि मैं छिप छिप कर
अपने पति को धोका दे रही हूँ. अब मुझे विश्वास हो गया की पंकज
को किसी दिन मेरे जिस्मानी ताल्लुकातों के बारे मे पता भी लग गया तो
कुच्छ नही बोलेंगे. मैने थोडा बहुत दिखावे को रूठने का नाटक
किया. तो पंकज ने मुझे पूछकरते हुए वो सहमति भी दे दी. उन्हों
नेकहा की अगर वो भी किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात रखेगी तो वो कुच्छ नही
बोलेंगे.
अब मैने लोगों की नज़रों का ज़्यादा ख़याल रखना शुरू किया. मैं
देखनाचाहती थी की कौन कौन मुझे चाहत भरी नज़रों से देखते है.
मैनेपाया कि घर के तीनो मर्द मुझे कामुक निगाहों से देखते हैं. नंदोई
और ससुर जी के अलावा मेरे जेठ जब भी अक्सक मुझे निहारते रहते थे.
मैने उनकी इच्च्छाओं को हवा देना शुरू किया. मैं अपने कपड़ों और
अपनेपहनावे मे काफ़ी खुला पन रखती थी. आन्द्रूनि कपड़ों को मैने
पहननाछ्चोड़ दिया. मैं सारे मर्दों को भरपूर अपने जिस्म के दर्शन
करवाती.
Hindi sexi stori मैं हूँ हसीना गजब की compleet
Re: Hindi sexi stori मैं हूँ हसीना गजब की
जब मेरे कपड़ों के अंदर से झँकते मेरे नग्न बदन को देख कर उनके
कपड़ों अंदर से लिंग का उभार दिखने लगता. ये देख कर मैं भी गीली
होने लगती और मेरे निपल्स खड़े हो जाते. लेकिन मैं इन रिश्तों का
लिहाज करके अपनी तरफ से संभोग की अवस्था तक उन्हे आने नही देती.
एक चीज़ जो घर आने के बाद पता नही कहा और कैसे गायब हो गयी
पता ही नही चला. वो थी हम दोनो की शवर के नीचे खींची हुई
फोटो. मैं मथुरा रवाना होने से पहले पंकज से पूछि मगर वो
भी
पूरे घर मे कहीं भी नही ढूँढ पाया. मुझे पंकज पर बहुत
गुस्सा आ रहा था. पता नही उस अर्धनग्न तस्वीर को कहाँ रख दिए
थे. अगर ग़लती से भी किसी और के हाथ पड़ जाए तो?
खैर हम वहाँ से मथुरा आ गये. वहाँ हुमारा एक शानदार मकान था.
मकान के सामने गार्डेन और उसमे लगे तरह तरह के पूल एक दिलकश
तस्वीर तल्लर करते थे. दो नौकर हर वक़्त घर के काम काज मे
लगे
रहते थे और एक गार्डनर भी था. तीनो गार्डेन के दूसरी तरफ बने
क्वॉर्टर्स मे रहते थे. शाम होते ही काम निबटा कर उन्हे जाने को कह
देती. क्योंकि पंकज के आने से पहले मैं उनके लिए बन संवर कर
तैयार रहती थी.
मेरे वहाँ पहुँचने के बाद पंकज के काफ़ी सबॉर्डिनेट्स मिलने के
लिएआए. उसके कुच्छ दोस्त भी थे. पंकज ने मुझे खास खास कॉंट्रॅक्टर्स
सेभी मिलवाया. वो मुझे हमेशा एक दम
बन ठन के रहने के लिए कहते थे. मुझे सेक्सी और एक्सपोसिंग कपड़ों
मे रहने के लिए कहते थे. वहाँ पार्टीस और गेट टुगेदर मे सब
औरतें एक दम सेक्सी कपड़ों मे आती थी. पंकज वहाँ दो क्लब्स का मेंबर
था. जो सिर्फ़ बड़े लोगों के लिए था. बड़े लोगों की पार्टीस देर रात
तक चलती
थी और पार्ट्नर्स बदल बदल कर डॅन्स करना, उल्टे सीधे मज़ाक
करना और एक दूसरे के बदन को छुना आम बात थी.
शुरू शुरू मे तो मुझे बहुत शर्म आती थी. लेकिन धीरे धीरे मैं
इस महॉल मे ढाल गयी. कुच्छ तो मैं पहले से ही चंचल थी और
पहले गैर मर्द मेरे नंदोई ने मेरे शर्म के पर्दे को तार तार कर
दिया
था. अब मुझे किसी भी गैर मर्द की बाँहों मे जाने मे ज़्यादा झिझक
महसूस नही होती थी. पंकज भी तो यही चाहता था. पंकज चाहता
था की मुझे सब एक सेडक्टिव
महिला के रूप मे जाने. वो कहते थे की "जो औरत जितनी फ्रॅंक और
ओपन
माइंडेड होती है उसका हज़्बेंड उतनी ही तरक्की करता है. इन सबका
हज़्बेंड के रेप्युटेशन पर एवं उनके बिज़्नेस पर भी फ़र्क पड़ता है."
हर महीने एक-आध इस तरह की गॅदरिंग हो ही जाती थी. मैं इनमे
शामिल होती लेकिन किसी गैर मर्द से जिस्मानी ताल्लुक़ात से झिझकति
थी.नाच गाने तक और ऊपरी चूमा चाती तक भी सही था. लेकिन जब
बातबिस्तर तक आ जाती तो मैं. चुप चाप अपने को उससे दूर कर लेती थी.
वहाँ आने के कुच्छ दीनो बाद जेठ और जेठानी वहाँ आए हुमारे पास.
पंकज भी समय निकाल कर घर मे ही घुसा रहता था. बहुत मज़ा आ
रहा था. खूब हँसी मज़ाक चलता. देर रात तक नाच गाने का प्रोग्रामम
चलता रहता था. कमल्जी और कल्पना भाभी काफ़ी खुश मिज़ाज के थे.
उनके चार साल हो गये थे शादी को मगर अभी तक कोई बच्चा नही
हुआ था. ये एक छ्होटी कमी ज़रूर थी उनकी जिंदगी मे मगर बाहर से
देखने मे क्या मज़ाल कि कभी कोई एक शिकन भी ढूँढ ले चेहरे पर.
एक दिन तबीयत थोरी ढीली थी. मैं दोपहर को खाना खाने के बाद
सोगयी. बाकी तीनो ड्रॉयिंग रूम मे गॅप शॅप कर रहे थे. शाम तक
यहीसब चलना था इसलिए मैं अपने कमरे मे आकर कपड़े बदल कर एक हल्का
सा फ्रंट ओपन गाउन डाल कर सो गयी. अंदर कुच्छ भी नही पहन
रखाथा. पता नही कब तक सोती रही. अचानक कमरे मे रोशनी होने से
नींद खुली. मैने अल्साते हुए आँखें खोल कर देखा बिस्तर पर मेरे
पास जेत्जी बैठे मेरे खुले बालों पर प्यार से हाथ फिरा रहे थे.
मैं हड़बड़ा कर उठने लेगी तो उन्हों ने उठने नही दिया.
"लेटी रहो." उन्हों ने माथे पर अपनी हथेली रखती हुए कहा " अब
तबीयत कैसी है स्मृति"
" अब काफ़ी अच्च्छा लग रहा है." तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरा गाउन
सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी रेशमी झांतों से भरी
योनिजेत्जी को मुँह चिढ़ा रही है. कमर पर लगे बेल्ट की वजह से पूरी
नंगी होने से रह गयी थी. लेकिन उपर का हिस्सा भी अलग होकर एक
निपल को बाहर दिख़रही थी. मैं शर्म से एक दम पानी पानी हो
गयी.
मैने झट अपने गाउन को सही किया और उठने लगी. ज्त्जी ने झट अपनी
बाहों का सहारा दिया. मैं उनकी बाहों का सहारा ले कर उठी लेकिन सिर
ज़ोर का चकराया और मैने सिर की अपने दोनो हाथों से थाम लिया.
जेत्जी
ने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मैं अपने चेहरे को उनके घने बलों
से भरे मजबूत सीने मे घुसा कर आँखे बंद कर ली. मुझे आदमियों
का घने बलों से भरा सीना बहुत सेक्सी लगता है. पंकज के सीने
पर बॉल बहुत कम हैं लेकिन कमल्जी का सीना घने बलों से भरा
हुआहै. कुच्छ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने मे अपने चेहरे को च्चिपाए
उनके बदन से निकलने वाली खुश्बू अपने बदन मे समाती रही. कुकछ
देर बाद उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे सम्हल कर मुझे बिस्तर के
सिरहाने से टीका कर बिठाया. मेरा गाउन वापस अस्तव्यस्त हो रहा था.
जांघों तक टाँगे नंगी हो गयी थी.
मुझे एक चीज़ पर खटका हुआ कि मेरी जेठानी कल्पना और पंकज नही
दिख रहे थे. मैने सोचा कि दोनो शायद हमेशा की तरह किसी
चुहलबाजी मे लगे होंगे. कमल्जी ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास
से चाइ का ट्रे उठा कर मुझे एक कप चाइ दी.
" ये..ये अपने बनाई है?" मैं चौंक गयी.क्योंकि मैने कभी जेत्जी
को
किचन मे घुसते नही देखा था.
"हाँ. क्यों अच्छि नही बनी है?" कमल जी ने मुस्कुराते हुए मुझे
पूचछा.
"नही नही बहुत अच्छि बनी है." मैने जल्दी से एक घूँट भर कर
कहा" लेकिन भाभी और वो कहाँ हैं?"
"वो दोनो कोई फिल्म देखने गये हैं 6 से 9" कल्पना ज़िद कर रही थी
तो
पंकज उसे ले गया है.
" लेकिन आप? आप नही गये?" मैने असचर्या से पूचछा.
"तुम्हारी तबीयत खराब थी. अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देख
भाल कौन करता?" उन्हों ने वापस मुस्कुराते हुए कहा फिर बात बदले
के लिए मुझसे आगे कहा," मैं वैसे भी तुमसे कुच्छ बात कहने के
लिए एकांत खोज रहा था."
कपड़ों अंदर से लिंग का उभार दिखने लगता. ये देख कर मैं भी गीली
होने लगती और मेरे निपल्स खड़े हो जाते. लेकिन मैं इन रिश्तों का
लिहाज करके अपनी तरफ से संभोग की अवस्था तक उन्हे आने नही देती.
एक चीज़ जो घर आने के बाद पता नही कहा और कैसे गायब हो गयी
पता ही नही चला. वो थी हम दोनो की शवर के नीचे खींची हुई
फोटो. मैं मथुरा रवाना होने से पहले पंकज से पूछि मगर वो
भी
पूरे घर मे कहीं भी नही ढूँढ पाया. मुझे पंकज पर बहुत
गुस्सा आ रहा था. पता नही उस अर्धनग्न तस्वीर को कहाँ रख दिए
थे. अगर ग़लती से भी किसी और के हाथ पड़ जाए तो?
खैर हम वहाँ से मथुरा आ गये. वहाँ हुमारा एक शानदार मकान था.
मकान के सामने गार्डेन और उसमे लगे तरह तरह के पूल एक दिलकश
तस्वीर तल्लर करते थे. दो नौकर हर वक़्त घर के काम काज मे
लगे
रहते थे और एक गार्डनर भी था. तीनो गार्डेन के दूसरी तरफ बने
क्वॉर्टर्स मे रहते थे. शाम होते ही काम निबटा कर उन्हे जाने को कह
देती. क्योंकि पंकज के आने से पहले मैं उनके लिए बन संवर कर
तैयार रहती थी.
मेरे वहाँ पहुँचने के बाद पंकज के काफ़ी सबॉर्डिनेट्स मिलने के
लिएआए. उसके कुच्छ दोस्त भी थे. पंकज ने मुझे खास खास कॉंट्रॅक्टर्स
सेभी मिलवाया. वो मुझे हमेशा एक दम
बन ठन के रहने के लिए कहते थे. मुझे सेक्सी और एक्सपोसिंग कपड़ों
मे रहने के लिए कहते थे. वहाँ पार्टीस और गेट टुगेदर मे सब
औरतें एक दम सेक्सी कपड़ों मे आती थी. पंकज वहाँ दो क्लब्स का मेंबर
था. जो सिर्फ़ बड़े लोगों के लिए था. बड़े लोगों की पार्टीस देर रात
तक चलती
थी और पार्ट्नर्स बदल बदल कर डॅन्स करना, उल्टे सीधे मज़ाक
करना और एक दूसरे के बदन को छुना आम बात थी.
शुरू शुरू मे तो मुझे बहुत शर्म आती थी. लेकिन धीरे धीरे मैं
इस महॉल मे ढाल गयी. कुच्छ तो मैं पहले से ही चंचल थी और
पहले गैर मर्द मेरे नंदोई ने मेरे शर्म के पर्दे को तार तार कर
दिया
था. अब मुझे किसी भी गैर मर्द की बाँहों मे जाने मे ज़्यादा झिझक
महसूस नही होती थी. पंकज भी तो यही चाहता था. पंकज चाहता
था की मुझे सब एक सेडक्टिव
महिला के रूप मे जाने. वो कहते थे की "जो औरत जितनी फ्रॅंक और
ओपन
माइंडेड होती है उसका हज़्बेंड उतनी ही तरक्की करता है. इन सबका
हज़्बेंड के रेप्युटेशन पर एवं उनके बिज़्नेस पर भी फ़र्क पड़ता है."
हर महीने एक-आध इस तरह की गॅदरिंग हो ही जाती थी. मैं इनमे
शामिल होती लेकिन किसी गैर मर्द से जिस्मानी ताल्लुक़ात से झिझकति
थी.नाच गाने तक और ऊपरी चूमा चाती तक भी सही था. लेकिन जब
बातबिस्तर तक आ जाती तो मैं. चुप चाप अपने को उससे दूर कर लेती थी.
वहाँ आने के कुच्छ दीनो बाद जेठ और जेठानी वहाँ आए हुमारे पास.
पंकज भी समय निकाल कर घर मे ही घुसा रहता था. बहुत मज़ा आ
रहा था. खूब हँसी मज़ाक चलता. देर रात तक नाच गाने का प्रोग्रामम
चलता रहता था. कमल्जी और कल्पना भाभी काफ़ी खुश मिज़ाज के थे.
उनके चार साल हो गये थे शादी को मगर अभी तक कोई बच्चा नही
हुआ था. ये एक छ्होटी कमी ज़रूर थी उनकी जिंदगी मे मगर बाहर से
देखने मे क्या मज़ाल कि कभी कोई एक शिकन भी ढूँढ ले चेहरे पर.
एक दिन तबीयत थोरी ढीली थी. मैं दोपहर को खाना खाने के बाद
सोगयी. बाकी तीनो ड्रॉयिंग रूम मे गॅप शॅप कर रहे थे. शाम तक
यहीसब चलना था इसलिए मैं अपने कमरे मे आकर कपड़े बदल कर एक हल्का
सा फ्रंट ओपन गाउन डाल कर सो गयी. अंदर कुच्छ भी नही पहन
रखाथा. पता नही कब तक सोती रही. अचानक कमरे मे रोशनी होने से
नींद खुली. मैने अल्साते हुए आँखें खोल कर देखा बिस्तर पर मेरे
पास जेत्जी बैठे मेरे खुले बालों पर प्यार से हाथ फिरा रहे थे.
मैं हड़बड़ा कर उठने लेगी तो उन्हों ने उठने नही दिया.
"लेटी रहो." उन्हों ने माथे पर अपनी हथेली रखती हुए कहा " अब
तबीयत कैसी है स्मृति"
" अब काफ़ी अच्च्छा लग रहा है." तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरा गाउन
सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी रेशमी झांतों से भरी
योनिजेत्जी को मुँह चिढ़ा रही है. कमर पर लगे बेल्ट की वजह से पूरी
नंगी होने से रह गयी थी. लेकिन उपर का हिस्सा भी अलग होकर एक
निपल को बाहर दिख़रही थी. मैं शर्म से एक दम पानी पानी हो
गयी.
मैने झट अपने गाउन को सही किया और उठने लगी. ज्त्जी ने झट अपनी
बाहों का सहारा दिया. मैं उनकी बाहों का सहारा ले कर उठी लेकिन सिर
ज़ोर का चकराया और मैने सिर की अपने दोनो हाथों से थाम लिया.
जेत्जी
ने मुझे अपनी बाहों मे भर लिया. मैं अपने चेहरे को उनके घने बलों
से भरे मजबूत सीने मे घुसा कर आँखे बंद कर ली. मुझे आदमियों
का घने बलों से भरा सीना बहुत सेक्सी लगता है. पंकज के सीने
पर बॉल बहुत कम हैं लेकिन कमल्जी का सीना घने बलों से भरा
हुआहै. कुच्छ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने मे अपने चेहरे को च्चिपाए
उनके बदन से निकलने वाली खुश्बू अपने बदन मे समाती रही. कुकछ
देर बाद उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे सम्हल कर मुझे बिस्तर के
सिरहाने से टीका कर बिठाया. मेरा गाउन वापस अस्तव्यस्त हो रहा था.
जांघों तक टाँगे नंगी हो गयी थी.
मुझे एक चीज़ पर खटका हुआ कि मेरी जेठानी कल्पना और पंकज नही
दिख रहे थे. मैने सोचा कि दोनो शायद हमेशा की तरह किसी
चुहलबाजी मे लगे होंगे. कमल्जी ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास
से चाइ का ट्रे उठा कर मुझे एक कप चाइ दी.
" ये..ये अपने बनाई है?" मैं चौंक गयी.क्योंकि मैने कभी जेत्जी
को
किचन मे घुसते नही देखा था.
"हाँ. क्यों अच्छि नही बनी है?" कमल जी ने मुस्कुराते हुए मुझे
पूचछा.
"नही नही बहुत अच्छि बनी है." मैने जल्दी से एक घूँट भर कर
कहा" लेकिन भाभी और वो कहाँ हैं?"
"वो दोनो कोई फिल्म देखने गये हैं 6 से 9" कल्पना ज़िद कर रही थी
तो
पंकज उसे ले गया है.
" लेकिन आप? आप नही गये?" मैने असचर्या से पूचछा.
"तुम्हारी तबीयत खराब थी. अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देख
भाल कौन करता?" उन्हों ने वापस मुस्कुराते हुए कहा फिर बात बदले
के लिए मुझसे आगे कहा," मैं वैसे भी तुमसे कुच्छ बात कहने के
लिए एकांत खोज रहा था."
Re: Hindi sexi stori मैं हूँ हसीना गजब की
"क्यों? ऐसी क्या बात है?"
"तुम बुरा तो नही मनोगी ना?"
" नही आप बोलिए तो सही." मैने कहा.
"मैने तुमसे पूच्छे बिना देल्ही मे तुम्हारे कमरे से एक चीज़ उठा ली
थी." उन्हों ने सकुचते हुए कहा.
"क्या ?"
"ये तुम दोनो की फोटो." कहकर उन्हों ने हुम्दोनो की हनिमून पर
विशालजी द्वारा खींची वो फोटो सामने की जिसमे मैं लगभग नग्न
हालत मे पंकज के सीने से अपनी पीठ लगाए खड़ी थी. इसी फोटो को
मैं अपने ससुराल मे चारों तरफ खोज रही थी. लेकिन मिली ही नही
मिलती भी तो कैसे. वो स्नॅप तो जेत्जी अपने सीने से लगाए घूम रहे
थे. मेरे होंठ सूखने लगे. मैं फ़टीफटी आँखों से एकटक उनकी
आँखों मे झँकति रही. मुझे उनकी गहरी आँखों मे अपने लिए प्यार का
अतः सागर उफनते हुए दिखा.
"एयेए....आअप ने ये फोटो रख ली थी?"
"हाँ इस फोटो मे तुम बहुत प्यारी लग रही थी. किसी जलपरी की
तरह. मैं इसे हमेशा साथ रखता हूँ."
" क्यों....क्यों. ..? मैं आपकी बीवी नही. ना ही प्रेमिका हूँ. मैं आपके
छ्होटे भाई की बीबी हूँ. आपका मेरे बारे मे ऐसा सोचना भी उचित
नही है." मैने उनके शब्दों का विरोध किया.
" सुन्दर चीज़ को सुंदर कहना कोई पाप नही है." कमल ने कहा," अब
मैं अगर तुमसे नही बोलता तो तुमको पता चलता? मुझे तुम अच्छि
लगती हो इसमे मेरा क्या कुसूर है?"
" दो वो स्नॅप मुझे दे दो. किसी ने उसको आपके पास देख लिया तो बातें
बनेंगी." मैने कहा.
" नही वो अब मेरी अमानत है. मैं उसे किसी भी कीमत मे अपने से अलग
नही करूँगा."
मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी. जैसे ही उनका सहारा छ्चोड़
कर
बाथरूम तक जाने के लिए दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सिर बड़ी ज़ोर
से घूमा और मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी. इससे पहले की मैं ज़मीन
पर भरभरा कर गिर पड़ती कमल जी लपक कर आए. और मुझे अपनी
बाहों मे थाम लिया. मुझे अपने बदन का अब कोई ध्यान नही रहा. मेरा
बदन लगभग नग्न हो गया था. उन्हों ने मुझे अपनी बाहों मे फूल की
तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये. मैने गिरने से बचने के लिए
अपनी बाहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया. दोनो किसी नौजवान
प्रेमी युगल की तरह लग रहे थे. उन्हों ने मुझे बाथरूम के भीतर
ले जाकर उतारा.
"मैं बाहर ही खड़ा हूँ. तुम फ्रेश हो जाओ तो मुझे बुला लेना. सम्हल
कर उतना बैठना" कमल जी मुझे हिदयतें देते हुए बाथरूम के
बाहर
निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया. मैं पेशाब
करके
लड़खड़ते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे
बदन को बेपर्दा ना कर दें. मैं अब खुद को ही कोस रही थी की
किसलिए
मैने अपने अन्द्रूनि वस्त्र उतारे. मैं जैसे ही बाहर निकली तो बाहर
दरवाजे पर खड़े मिल गये. उन्हों ने मुझे दरवाजे पर देख कर
लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाहों मे भर कर वापस बिस्तर
पर ले आए.
मुझे सिरहाने पर टीका कर मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर
दिया. मेरा चेहरा तो शर्म से लाल हो रहा था.
"अपने इस हुष्ण को ज़रा सम्हल कर रखिए वरना कोई मर ही जाएगा
आहें
भर भर कर" उन्हों ने मुस्कुरा कर कहा. फिर साइड टेबल से एक क्रोसिन
निकाल कर मुझे दिया. फिर वापस टी पॉट से मेरे कप मे कुच्छ चाइ
भर
कर मुझे दिया. मैने चाइ के साथ दवाई ले ली.
"लेकिन एक बात अब भी मुझे खटक रही है. वो दोनो आप को साथ
क्यों
नही ले गये…. आप कुच्छ छिपा रहे हैं. बताइए ना…."
" कुच्छ नही स्मृति मैं तुम्हारे कारण रुक गया. कसम तुम्हारी."
लेकिन मेरे बहुत ज़िद करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे.
" वो भी असल मे कुच्छ एकांत चाहते थे."
"मतलब?" मैने पूचछा.
" नही तुम बुरा मान जाओगी. मैं तुम्हारा दिल दुखाना नही चाहता."
" मुझे कुच्छ नही होगा आप तो कहो. क्या कहना चाहते हैं कि पंकज
और कल्पना दीदी के बीच......" मैने जानबूझ कर अपने वाक़्य को
अधूरा ही रहने दिया.
क्रमशः...............................