संघर्ष--10
झिल्ल्ली के फटते ही सावित्री के उपर मानो आसमान ही गिर पड़ा हो. इतना तेज दर्द हुआ कि वह एकदम बेहोश होने के कगार पर आ गयी. वह बिलबिला कर चिल्ला उठी "" अरी...ए माई रे मैं मर जाब ....आरे प आ न दी त जीए हम मर जाब .....अरे ई बाप हो बाप .... दा र आड़ आहह री मैं...." साथ साथ उसके शरीर मे काफ़ी तेज छटपटाहट भी होने लगी लेकिन पंडित जी भी बुरी ताक़त से सावित्री को चटाई मे दबोचे रखा. सावित्री कमर को इधेर उधेर हिलाने की कोशिस करने लगी लेकिन पंडित जी के शरीर के नीचे दबे होने और एक हाथ से कमर पकड़े होने के वजह से कुछ कर नही पा रही थी . फिर भी थोड़ा बहुत कमर ज्यो ही इधेर उधेर हिलता तो पंडित जी अपने लंड का दबाव बुर मे बना देते और हल्का सा लंड बुर मे सरक जाता. सावित्री की बुर की देवारें काफ़ी फैल कर पंडित जी के चौड़े सुपादे को निगलने की कोशिस कर रही थी. पंडित जी ने जिस हाथ से लंड को पकड़ा था उसे लंड से हटा लिए क्योंकि लंड अब लगभग आधा घुस चुका था और पंडित जी के शरीर का वजन सीधे लंड पर ही था जो बुर मे घुसता जा रहा था. लंड वाला हाथ सीधे चुचिओ पर गया और बड़ी बड़ी गोल और कसी चुचिओ को आटा की तरह गुथने लगे. दूसरा हाथ जो कमर मे था उसे पंडित जे ने वहीं रखा क्यों की सावित्री अभी भी छटपटा रही थी लेकिन उसके छटपटाने के वजह से जब कमर का हिस्सा हिलता तब बुरी तरह से बुर मे दबा हुआ लंड अंदर की ओर सरक जाता था. सावित्री के आँखों मे आँसू ही आँसू थे. वह पूरी तरह से रो रही थी. वह कई बार पंडित जी से गिड़गिदा कर लंड निकालने के लिए भी कही. लेकिन उसे ऐसा लग रहा था कि दर्द की वजह से अभी मर जाएगी. लेकिन पंडित जी अब उसके चुचिओ को दबा रहे थे फिर थोड़ी देर चुचिओ को मुँह मे लेकर चूसने लगे और लंड बुर मे वैसे ही झिल्ली तोड़कर आधा के करीब घुसा था और आधा लंड बुर के बाहर था. पंडित जी यह समझ गये थे कि झिल्ली फट गयी है और इसी वजह से कुछ लंड का हिस्सा अंदर की ओर घुस चुका है. अब वह जानते थे कि सावित्री आराम से चुद जाएगी. अब रास्ता सॉफ हो चुका है. दोनो चुचिओ को चूसने के बाद जब दर्द कुछ कम हुआ तब सावित्री रोना बंद कर के सिसकने लगी. फिर पंडित जी ने अपने कमर को हल्का सा उपर की ओर लहराया तो लंड भी हल्का सा बाहर को ओर खींचा ही था कि फिर ज़ोर से चंप दिए और लंड इस बार कुछ और अंदर सरक गया. इस बार सावित्री थोड़ी सी कसमसाई लेकिन ऐसा लगा कि कोई बहुत ज़्यादा दर्द नही हुआ. फिर पंडित जी ने वैसे ही अपने कमर को दुबारा उपर की ओर लहराते और ज्योन्हि लंड हल्का सा बाहर की ओर हुआ फिर कस के चंप दिए और इस बार लंड बहुत ज़्यादा ही अंदर घुस गया. फिर भी एक चौथाई हिसा बाहर ही रह गया. फिर पंडित जी ने चुचिओ को चूसना सुरू कर दिया जिससे सावित्री फिर गरम होने लगी. वैसे तो पहले भी गरम हो चुकी थी लेकिन दर्द के वजह से घबरा और डर गयी, लेकिन अब दर्द बहुत ही कम हो चुका था. चुचिओ के चुसाइ ने फिर ज्योन्हि सावित्री के शरीर मे गर्मी भरी की पंडित जी पूरा लंड घुसाने के फिराक मे लग गये. सावित्री के जांघों को और चौड़ा करके और उसके चौड़ा चूतड़ को हल्का सा उपर की ओर उठा कर बोले "चल पहले जैसे बुर को चुदवा तभी दर्द कम होगा और तुम्हे भी मर्द का मज़ा आएगा" सावित्री जो अब सिसक रही थी और आँख के आँसू सूखने के करीब थे, ने कुछ जबाब नही दिया लेकिन गरम हो जाने के कारण और पंडित जी से डर होने के वजह से अपने दोनो हाथों से अपने चौड़े चौड़े दोनो चूतदों को फैलाया. पंडित जी ने देखा की सावित्री ने अपने बुर को फैलाने के लिए अपने हाथ बड़ा कर चूतदों को चौड़ा कर लिया तो अब समय गवाना सही नही था. फिर उन्होने सावित्री के कमर को अपने दोनो हाथों से पकड़ कर एक के बाद एक धक्के मारने लगे. हर धक्के मे लंड थोड़ा थोड़ा अंदर घुसने लगा, हर धक्के मे सावित्री कराह उठती लेकिन सावित्री ने अपने हाथ को वैसे चूतड़ पे लगा कर बुर को फैलाए रखा. और पंडित जी का पूरा लंड सावित्री की बुर मे समा गया. ज्योन्हि लंड जड़ तक समाया कि सावित्री के चूतदों पर पंडित जी के दोनो लटक रहे अनदुओं से चाप छाप की आवाज़ के साथ चोट लगाने लगे. अब बुर एकदम से खुल चुका था. बुर की झिल्ली फटने के वजह से निकले खून से लंड बुरी तरह भीग चुका था. सावित्री का दर्द अब ख़त्म ही हो गया और अब उसे बहुत मज़ा आने लगा. इसी वजह से वह अपने दोनो हाथों से अपने चूतदों को खींच रखा था जिससे बुर के बाहरी होंठ कुछ फैले हुए थे. जब भी लंड बुर मे घुसता तो बुर एकदम कस उठती. सावित्री अब अपनी पूरी ताक़त से अपने दोनो जाँघो को फैला रखी थी ताकि पंडित जी उसे काफ़ी अंदर तक आराम से चोद सकें. पंडित जी यह समझ चुके थे कि अब सावित्री को बहुत मज़ा आ रहा है तो फिर ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगे और हर धक्के मे लंड बुर की अंतिम गहराई तक घुस जाता और पंडित जी के दोनो अन्दुये सावित्री के चूतादो पर जा कर लड़ जाते. वैसे पंडित जी का लंड लंबा और मोटा भी था लेकिन सावित्री हश्तिनि नशल की लड़की थी और ऐसे नशल की औरतें और लड़कियो की बुर की गहराई काफ़ी होती है. इसी वजह से पंडित जी पूरी ताक़त से उसे चोद रहे थे और सावित्री आराम से चटाई मे लेटी अपने दोनो जांघों को चौड़ा कर के चुदवा रही थी. कमरे मे फॅक..फ़च्छ...फ़च्छ की आवाज़ आना सुरू हो गयी. सावित्री के जीवन मे इतना आनंद कभी नही मिला ना ही वो कभी कल्पना की थी कि चुदाई मे इतना मज़ा मिलता है. वह अपनी आँखे बंद कर के आराम से चुदवा रही थी और रह रह कर सिसक रही थी. क्योंकि कि अब उसे बहुत ही ज़यादा मज़ा आ रहा था. जब भी पंडित जी अपना लंड खेंच कर बाहर निकलता की सावित्री अपने बुर को उचका कर फर्श पर बिछे चटाई पर से अपने चौड़े और काले रंग के चूतड़ को कुछ उपर उठा देती और दूसरे पल पंडित जी हुमच कर अपना लंड बुर मे छोड़ते हुए कस कर चंप देते और सावित्री के चूतड़ का उठा हुया हिस्सा फिर से चटाई मे बुरी तरह से दब कर सॅट जाता और फिर अगले पल ज्योन्हि पंडित जी अपना लंड बुर से बाहर खींचते की सावित्री फिर अपने चूतादो को चटाई से उपर उठा देती और पंडित जी हुमच कर चोदते हुए चटाई मे वापस दबा देते. ******************************
********** अब पंडित जी का समूचा लंड सावित्री के बर मे समा जाता था और पंडित जी की घनी झांते सावित्री की झांतों मे जा कर सॅट जाता था. पंडित जी ने सावित्री को हुमच हुमच कर काफ़ी देर तक चोद्ते रहे. अचानक सावित्री को बहुत ज़्यादे आनंद आने लगा और उसे लगा की उसके बुर के अंदर कुछ निकलने वाला है. और यह आनंद उसे बर्दाश्त नही हो पा रहा था और उसने अपने चौड़े और काले रंग के चूतदों को काफ़ी उँचा उठा देती जिससे पवरोती की तरह झांतों से भरी चुद रही बुर काफ़ी उपर उठ जाता और वह बुर को ऐसे उचका कर पंडित जी से चुदाने लगती. तब पंडित जी समझ गये की सावित्री झड़ने वाली है और उसके उठाए हुए बुर को काफ़ी हुमच हुमच कर तेज़ी से चोदने लगे और अगले ही पल सावित्री के कमर मे कुछ झटके दार ऐंठन हुई और सावित्री के बुर के अंदर तेज़ी से झड़ने वाला पानी निकलने लगा और वह सीत्कार उठी. सावित्री झड़ने के बाद अपने उठे हुए चूतदों को वापस चटाई पर सटा ली और हाँफने लगी. लेकिन पंडित जी अभी झाडे नही थे. वे भी कुछ लंबी सांस ले रहे थे और अब धीरे धीरे चोद रहे थे. फिर सावित्री के निचले होंठ को मुँह मे लेकर कस कर चूसने लगे और चुचिओ को भी दबाने लगे. कुछ देर तक ऐसा करके चोदने ने फिर से सावित्री गरम होने लगी लेकिन इस बार पहले से बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो गयी थी और फिर अपने चौड़े चूतड़ को चटाई से उठा कर बुर को उचकाने लगी. अब पंडित जी सावित्री के दोनो होंठो को कस के मुँह मे लेकर चूस रहे थे और चोद रहे थे. सावित्री को पंडित जी का लंड बुर मे घुसना इतना अछा लग रहा था कि जब पंडित जी लंड बुर से बाहर की ओर खींचते तब लंड को वापस बुर मे लेने के लिए अपने बुर को काफ़ी उपर उठा देती और फिर पंडित जी हुमच कर चोद्ते हुए समूचे लंड को "घच.." आवाज़ के साथ जड़ तक बुर मे चंप देते और सावित्री का उठा हुआ चूतड़ पंडित जी के धक्के के दबाव से वापस चटाई मे दब कर सॅट जाता. ऐसा लगभग हर धक्के के साथ होता और सावित्री का चूतड़ मानो चटाई पर उपर नीचे हर चुदाई के साथ हो रहा था. सावित्री को जब जयदा आनंद आने लगा तब अपने चूतड़ को और उपर उठाने लगी और अपने बुर को लंड पर फेंकने लगी. बुर के रेशे अब काफ़ी ढीले हो चुके थे. बुर काफ़ी गीली हो चुकी थी. बुर के चुदाई का रस और खून दोनो मिलकर बुर से बाहर आ रहा था और सावित्री के गंद के छेद से होता हुआ चटाई पर छू रहा था. सावित्री को इतना आनंद आ रहा था की वह सातवें आसमान पर उड़ रही थी. उसे ऐसा लग रहा था की दुनिया का सबसे ज़यादा आनंद इसी चुदाई मे ही है. हर धक्के मे वह बहुत ज़्यादा मज़ा ले रही थी. इस कारण जब भी धक्का लगता वह सीत्कार कर रह जाती और तुरंत अपने चूतदों को उचका कर अगले धक्के की भीख माँगने लगती. सावित्री ग़रीब तो ज़रूर थी लेकिन भिखरीन नहीं. फिर भी आज वह एक भिखरीन की तरह चटाई मे छटपटा कर पंडित जी के धक्के की भीख माँग रही थी. इसी कारण से वह लंड के बाहर आते ही अपने काले चौड़े चूतादो को उठा देती की जल्दी से धक्का बुर मे मिले और काफ़ी गहराई तक लंड घुस जाए. चुदाई के आनंद ने मानो सावित्री के शरीर का लाज़ और शर्म को उसके रोवे रोवे से धो डाला था. इसी वजह से एक चुदैल की तरह अपने चूत को उपर की ओर फेंक फेंक कर लंड लील रही थी. सावित्री अब हर धक्के के लिए गिड़गिदा रही थी. उसे बस पंडित जी के धक्के की ज़रूरत थी. वह भी ज़ोर के धक्के जिससे उसकी बर की गहराई मे लंड जा सके. सावित्री के हाव भाव को देखते हुए पंडित जी ने किसी दयालु इंसान की तरह धक्के जोरे से लगाने के साथ धक्कों की रेफटार तेज करने लगे. सावित्री अब आँखें खोल कर चुदवा रही थी और उसकी आँखों मे भी धक्कों की भीख सॉफ दिख रहा था. मानो वह अब और धक्कों के लिए गिड़गिदाते हुए रो देगी.सावित्री का शरीर काफ़ी मांसल और कसा हुआ होने के कारण वह पंडित जी के कसरती बलिशट शरीर के धक्कों को बड़े आराम से ले पा रही थी. उसके चूतदों पर काफ़ी माँस था और चौड़े होने के वजह से जब भी पंडित जी धक्के मारते हुए लंड जड़ तक धँसते थे की उनका लंड बुर मे घुस जाता और पंडित जी के गोरे शरीर का वजन सावित्री के चौड़े और काले चूतदों पर पड़ता. वैसे बुर अब फैल कर एक नया रूप ले चुका था जिसे औरत का ही बुर कह सकते हैं. जो बर थोड़ी देर पहले कुवारि थी अब वह कुवारि नही रह गयी थी और चुदाई के आनंद ने उसके शरीर के लाज़ और शर्म को भी लगभग ख़त्म कर दिया था. सावित्री ने अपने जीवन मे किसी से कुछ माँगा नही था लेकिन आज वह पंडित जी से धक्कों की भीख माँग रही थी वो भी लग रहा था की माँगते माँगते रो देगी.जब पंडित जी ने देखा की चटाई मे चुद रही सावित्री की हरकत अब बहुत अश्लील और बेशर्म होती जा रही है तब वह समझ गये की सावित्री दूसरी बार झड़ने की तरफ बढ़ रही है. तब पंडित जी तेज़ी से चोदने के लिए अपने शरीर की सारी ताक़त को इकट्ठा कर लिए और सावित्री को चटाई मे कस कर दबोच लिए. फिर भी सावित्री अपने चूतदों को उछालना बंद नही किया तब पंडित जी ने काफ़ी कस कर उसे चोदने लगे और एक सांड की तरह हुंकार लेने लगे. पंडित जी अपने पूरे लंड को बुर से बाहर खींचते और दूसरे पल पूरा का पूरा लंड जड़ तक पेल देते. चुदाई की रफ़्तार इतनी तेज कर दिया की सावित्री को चूतड़ उठाने का मौका ही नही मिलता. एक के बाद एक धक्के ऐसे लगते मानो सावित्री को चोद कर पूरे शरीर को दो हिस्सों मे फाड़ देंगे. पूरे कमरे मे घाकच्छ घच की आवाज़ गूँज उठी. तेज चुदाई से सावित्री को इतना आनंद आया की वह काफ़ी अश्लील आवाज़ भी निकालने से अपने को रोक नही पाई और लगभग चिल्ला उठी "अया जी पंडित जी ....मुझे और....चोदियी जीई........बहुत अक्च्छा लग रहा है.....और और करिए.....अरे माई रे बाप बहुत माज़ा रे माई और चोदिए आऊ हह .." पंडित जी के कान मे ये गंदी आवाज़ जाते ही एक नया जोश भर गया और वह समझ गये की अगले कुछ पलों मे सावित्री झाड़ जाएगी. तभी उन्हे लगा कि सावित्री का पूरा बदन काँपने सा लगा और अपने पूरे शरीर को कुछ ऐंठने लगी है. वह अब झड़ने वाली है और दूसरे पल मे धक्के पे धक्के मारते हुए पंडित जी का भी शरीर मे बिजली दौड़ने लगी और वह किसी सांड या भैंसे की तरह हुंकारना सुरू कर दिया. और उनका भी शरीर काफ़ी झटके के साथ ऐंठने लगा और हर ऐंठन मे वह सावित्री को दबोचना तेज कर दिए उनके आंडवो से वीरया की धार अब चल पड़ी थी. और पंडित जी अपने लंड को ऐसे बुर की गहराई मे चंपने लगे मानो वीरया की गाढ़ी और मोटी धार सावित्री के बcचेदानि के मुँह मे ही गिरा कर दम लेंगे. आख़िर काफ़ी उत्तेजना का साथ सावित्री झड़ना सुरू कर दी और चटाई मे पूरी तरह से ऐंठने लगी और दूसरे पल ही पंडित जी का सुपाड़ा जो सावित्री की झाड़ रही बुर के तह मे घुसा था, काफ़ी तेज गति से, एक के बाद एक काफ़ी गाढ़े और मोटे वीरया की धार छ्छूटने लगा और किसी पीचकारी की तरह छूट छूट कर बछेदनि के मुँह पर पड़ने लगा. लंड भी हर वीरया की बौछार के साथ झटके ले रहा था जो सावित्री की बुर् की मांसपेशिया काफ़ी तेज महसूस कर रही थी. एक के बाद एक वीरया की बौछार बुर के तह मे किसी बंदूक की गोली की तरह पड़ने लगी. सावित्री को ऐसा लग रहा था मानो यह वीरया की बौच्हार बंद ही ना हो. पंडित जी कई दीनो बाद बुर चोद रहे थे इस कारण वीरया काफ़ी मात्रा मे निकल रहा था. वीरया की गर्मी से सावित्री पूरी तरह से हिल गयी और पंडित जी के कमर को कस कर अपने टाँगो से दबोच ली और अपने हाथों को पंडित जी के पीठ को लपेट ली. उसे ऐसा लगा रहा था मानो कोई काफ़ी गर्म चीज़ बुर के तह मे उडेल रहे हों. जो एक के बाद एक लंड की उल्टी से बुर की तह मे इकट्ठा होता जा रहा है और बुर अब भर गयी हो. सावित्री को इतना आनंद आया की वह पूरी दुनिया भूल गयी और उसके सीतकारीओं से कमरा गूँज उठा. अब दोनो पूरी तरह से झाड़ चुके थे. लंड भी कुछ हल्के झटके लेता हुआ बचा खुचा वीरया की आख़िरी बूँद को भी बुर की तह मे उडेल दिया. ************************************** दोनो झाड़ चुके थे, पंडित जी सावित्री के उपर वैसे ही कुछ देर पड़े रहने के बाद उठने लगे और अपने फँसे हुए लंड को बुर मे से खींच कर निकालने लगे. लंड अभी भी खड़ा था और पहले से कुछ ढीला हुआ था. लंड खींचते समय पंडित जी को ऐसे लगा मानो सावित्री की बुर ने उसे मुट्ठी मे पकड़ रखा हो. पंडित जी ने अपने कमर को ज्योन्हि पीछे की ओर किया लंड "पुउक्क" के आवाज़ के साथ बुर से बाहर आ गया. लंड के बाहर आते ही पंडित जी ने देखा की बुर का मुँह जिसपर खून और चुदाई का रस दोनो लगा था, सिकुड़ने लगा और बुर की दोनो फांके आपस मे सतने की कोशिस कर रही थी. लेकिन अब बुर की फांके पहले की तरह सिकुड कर एकदम से सॅट नही पा रही थी और बुर के मुँह पर थोड़ा सा फैलाव आ गया था. इसका यह भी कारण था कि पंडित जी का लंड मोटा था और काफ़ी देर तक सावित्री की कुवारि बुर को चोदा था. सावित्री वैसे ही लेटी थी और पंडित जी अपना लंड तो बुर से खींच के निकाल चुके थे लेकिन सावित्री के झंघो के बीच अभी भी बैठे थे इस वजह से सावित्री अपनी जांघों को आपस मे सता नही पा रही थी और पहली बार की चुदाई से थॅकी होने के कारण सावित्री भी वैसे ही लेटी थी और तुरंत उठ कर बैठने की हिम्मत नही हो पा रही थी. और जंघें फैली होने के नाते पंडित जी की नज़र बुर पर ही थी जिसका रूप अब बदल चुका था. घनी झांतों से घिरी हुई बुर एकदम ही काली थी और पवरोटी की तरह दिख रही थी. कुछ चुदाई की रस और खून झांतों मे भी लग गया था.सावित्री की आँखें थकान से लगभग बंद हो गयी थी और उसकी साँसे तेज चल रही थी. पंडित जी थोड़ी देर तक सावित्री की बुर की सुंदरता को देख रहे थे और काफ़ी खुशी महसूस कर रहे थे की इस उमरा मे भी उन्हे कुवारि गदराई चूत मिल गयी. फिर अगले पल उन्होने सावित्री की बुर के दोनो होंठो को अपने हाथ से ज्योहीं फैलाने की कोशिस किया कि सावित्री की धाप रहीं आँखें खुल गयी और मीठी दर्द से लेटे लेटे ही हल्की सी चौंक गयी और अपने हाथ से पंडित जी के हाथ को पकड़ ली. लेकिन तबतक तुरंत की चुदी हुई बुर के दोनो होंठ हल्की सी फैल गयी लेकिन अंदर का गुलाबी भाग सिकुड कर एक हल्की सी छेद बना कर रह गया था. पंडित जी समझ गये की सावित्री को कुछ दर्द हो रहा होगा. और कुछ पल बुर के अंदर के गुलाबी भाग को देखने के बाद बुर के होंठो से अपने हाथ हटा लिए और फिर पहले की तरह दोनो होंठ सताने को कोशिस करने लगे लेकिन कुछ हिस्सा खुला रह कर मानो यह बता रहा था की अब बुर कुवारि नही बल्कि अब औरत की बुर हो चुकी है. पंडित जी उठे और शौचालय मे जा कर पेशाब किए और अपने लंड और झांतों मे लगे चुदाई रस और खून को पानी से धोने लगे. पंडित जी ज्योन्हि उठे सावित्री ने अपने दोनो जांघों को आपस मे सताने की कॉसिश करने लगी तो उसे जांघों और बुर मे दर्द का आभास हुआ. फिर उठ कर चटाई पर बैठी. सावित्री ने देखा की पंडित जी शौचालय मे गये हैं तो मौका देखकर अपनी बुर की हालत देखने के लिए अपने दोनो जाँघो को कुछ फैला ली और देखने लगी. चुदी हुई बुर को देख कर सन्न रह गयी. झांटेन और बुर दोनो ही चुदाई रस और खून से भींगी हुई थी. लेकिन अपनी बुर पर सावित्री नज़र पड़ते ही सकपका गयी. ऐसा लग रहा था की वह उसकी बुर नही बल्कि किसी दूसरे की बुर है. बुर का शक्ल पहचान मे ही नही आ रही थी. जो बुर चुदाई से पहले थी वैसी एकदम ही नही थी. चुदाई के पहले बुर के दोनो फांको के सतने पर केवल एक लकीर ही दिखाई देती थी वह लकीर अब गायब हो गयी थी और लकीर के स्थान पर कुछ नही था क्योंकि बुर का मुँह अब कुछ खुला सा लग रहा था. बुर के दोनो होंठ आपस मे पूरी तरह से बंद नही हो पा रहे थे. सावित्री बैठे बैठे अपने बुर की बदली हुई शक्ल को देख कर बुर की पहले वाली शकल को याद कर रही थी. उसे ऐसा लग रहा था की अब उसकी बुर कभी भी पहले की तरह नही हो पाएगी और वह सोच रही थी की वह चुद चुकी है, लूट चुकी है, एक औरत हो चुकी है, पंडित जी को अपना कुवरापन दे चुकी है, और अब यह सब कुछ वापस नही आने वाला है क्योंकि जीवन मे यह केवल एक ही बार होता है.बदली हुई बुर की शक्ल पर नज़ारे गड़ाए यही सब सोच रही थी. की चटाई पर भी कुछ चुदाई रस और खून दिखाई दिया तो वह अपने चूतड़ को हल्का सा पीछे की ओर खिस्काई तो देखा की चूतड़ के नीचे भी हल्का सा खून लगा था जो चटाई मे अब सूख रहा था. उसके मन मे यही बात उठी की यह सामानया खून नही बल्कि यह उसकी इज़्ज़त, असमात, मान, मर्यादा और उसके मा सीता के काफ़ी संघर्ष से बचाया गया खून था जो किसी दुल्हन का सबसे बड़ा धर्म होता है और जिस पर केवल उसके पति का ही हक होता है और इसे आज पंडित जी ने लूट लिया और अब वह कभी भी कुवारि की तरह अपने ससुराल नही जाएगी बल्कि एक चुदी हुई औरत की तरह ही जा सकेगी. अगले पल सावित्री के मन मे एक बहुत बड़ा विस्फोट हुआ और एक नयी विचार की तरंगे उठने लगी कि आज सब कुछ लूटने के बाद भी एक ऐसा चीज़ मिला जो आज तक वह नही पा सकी थी और वह था चुदाई का आनंद. जो आनंद आज पंडित जी ने उसे चोद कर दिया वैसा आनंद उसे अट्ठारह साल की उमर तक कही से भी नसीब नही हुआ था. उसके मन मे एक नये विचार की स्थापना होने लगी. सावित्री का मन चिल्ला चिल्ला कर यह स्वीकारने लगा कि यह आनंद एक ऐसा आनंद है जो किसी चीज़ के खाने से या पहनने से या देखने से, या सुनने से या खेलने से कहीं से भी नही मिल सकता है और यह आनंद केवल और केवल चुदाई से ही मिल सकता है जो कि कोई मर्द ही कर सकता है जैसा कि पंडित जी ने किया और इस आनंद के आगे सब कुछ और सारी दुनिया बेकार है. चटाई मे बैठी यही सोच रही थी कि तभी पंडित जी शौचालय से अपने लंड और झांतों को धो कर वापस आ गये और चौकी पर लेट गये.
Sangharsh--10
jhillli ke fatate hi savitri ke upar mano asmaan hi gir pada ho. itna tej dard hua ki vah ekdam behosh hone ke kagaar par aa gayi. vah bilbilaa kar chilla uthi "" aree...e maai re mai mar jaab ....aare p a n di t jeee hum mar jaab .....are ee baap ho baap .... daa r aad aahh ri mai...." sath sath uske shareer me kafi tej chatpatahat bhi hone lagi lekin pandit ji bhi buri takat se savitri ko chataai me daboche rakha. savitri kamar ko idher udher hilane ki koshis karne lagi lekin pandit ji ke shareer ke niche dabe hone aur ek hath se kamar pakade hone ke vajah se kuch kar nahi paa rahi thi . fir bhi thoda bahut kamar jyo hi idher udher hilta to pandit ji apne lund ka dabav bur me bana dete aur halka sa lund bur me sarak jaata. savitri ki bur ki dewaaren kafi fail kar pandit ji ke chaude supaade ko nigalne ki koshis kar rahi thin. pandit ji ne jis hath se lund ko pakda tha use lund se hata liye kyonki lund ab lagbhag aadha ghus chuka tha aur pandit ji ke shareer ka vajan sidhe lund par hi tha jo bur me ghusta ja raha tha. lund wala hath sidhe chuchion par gaya aur badi badi gol aur kasi chuchion ko aata ki tarah guthane lage. dusra hath jo kamar me tha use pandit je ne vahin rakha kyon ki savitri abhi bhi chatpata rahi thi lekin uske chatpatane ke vajah se jab kamar ka hissa hilta tab buri tarah se bur me daba hua lund ander ki or sarak jaata tha. savitri ke ankhon me ansu hi ansu the. vah puri tarah se ro rahi thi. vah kai baar pandit ji se gidgidaa kar lund nikalne ke liye bhi kahi. lekin use aisa lag rahaa tha ki dard ki vajah se abhi mar jaayegi. lekin pandt ji ab uske chuchion ko daba rahe the fir thodi der chuchion ko munh me lekar chusne lage aur lund bur me vaise hi jhilli todkar adha ke kareeb ghusaa tha aur adha lund bur ke bahar tha. pandit ji yah samajh gaye the ki jhilli fat gayi hai aur isi vajah se kuch lund ka hissa ander ki or ghus chuka hai. ab vah janate the ki savitri aram se chud jaayegi. ab rashta saaf ho chuka hai. dono chuchion ko chusane ke baad jab dard kuch kam hua tab savitri rona band kar ke siskne lagi. fir pandit ji ne apne kamar ko halka sa upar ki or lahraya to lund bhi lalka sa bahar ko or khincha hi tha ki fir jor se chanp diye aur lund is baar kuch aur ander sarak gaya. is baar savitri thodi si kasmasai lekin aisa laga ki koi bahut jyada dard nahi hua. fir pandit ji ne vaise hi apne kamar ko dubara upar ki or lahrate aur jyonhi lund halka sa bahar ki or hua fir kas ke chanp diye aur is bar lund bahut jyada hi ander ghus gaya. fir bhi ek chauthai hisaa bahar hi rah gaya. fir pandit ji ne chuchion ko chusana suru kar diya jisase savitri fir garam hone lagi. vaise to pahle bhi garam ho chuki thi lekin dard ke vajah se ghabara aur dar gayi, lekin ab dard bahut hi kam ho chuka tha. chuchion ke chusai ne fir jyonhi savirti ke shareer me garmi bhari ki pandit ji pura lund ghusaane ke firak me lag gaye. savitri ke janghon ko aur chauda karke aur uske chauda chutad ko halka sa upar ki or utha kar bale "chal pahle jaise bur ko chuda kar tabhi dard kam hoga aur tumhe bhi mard ka majaa ayega" savitri jo ab sisak rahi thi aur ankh ke ansu sukhne ke kareeb the, ne kuch jabab nahi diya lekin garam ho jaane ke karan aur pandit ji se dar hone ke vajah se apne dono hathon se apne chaude chaude dono chutadon ko failaya. pandit ji ne dekha ki savitri ne apne bur ko failane ke liye apne hath bada kar chutadon ko chauda kar liya to ab samay gawana sahi nahi tha. fir unhone savitri ke kamar ko apne dono hathon se pakad kar ek ke baad ek dhakke maarne lage. har dhakke me lund thoda thoda ander ghusne lagaa, har dhakke me savitri karah uthti lekin savitri ne apne hath ko vaise chutad pe laga kar bur ko failaye rakha. aur pandit ji ka pura lund savitri ki bur me samaa gayaa. jyonhi lund jad tak samaaya ki savitri ke chutadon par pandit ji ke dono latak rahe anduon se chap chap ki awaj ke sath chot lagne lage. ab bur ekam se bhul chuka tha. bur ki jhilli fatne ke vajah se nikle khoon se lund buri tarah bheeg chuka tha. savitri ka dard ab khatm hi ho gayaa aur ab use bahut mazaa aane laga. isi vajah se vah apne dono hathon se apne chutadon ko kheench rakha tha jisase bur ke bahari oth kuch faile huye the. jab bhi lund bur me ghusata to bur ekdam kas uthati. savitri ab apni puri takat se apne dono jangho ko faila rakhi thi taaki pandit ji use kafi ander tak aram se chod saken. pandit ji yah samajh chuke the ki ab savitri ko bahut maza aa raha hai to fir jor jor se dhakke lagaane lage aur har dhakke me lund bur ki antim gahrai tak ghus jaata aur pandit ji ke dono anduye savitri ke chutado par ja kar lad jaate. vaise pandit ji ka lund lamba aur mota bhi tha lekin savitri hashtini nashl ki ladki thi aur aise nashl ki aurten aur ladkion ki bur ki gahrai kafi hoti hai. isi vajah se pandit ji puri takat se use chod rahe the aur savitri aaram se chataai me leti apne dono janghon ko chauda kar ke chuda rahi thi. kamare me fach..fachh...fachh ki awaz aana suru ho gayi. savitri ke jeevan me itna anand kabhi nahi mila na hi woh kabhi kalpna ki thi ki chudai me itna maza milta hai. vah apni ankhe band kar ke araam se chuda rahi thi aur rah rah kar sisak rahi thi. kyonki ki ab use bahut hi jayada mazaa aa raha tha. jab bhi pandit ji apna lund khench kar bahar nikalta ki savitri apne bur ko uchka kar farsh par biche chatai par se apne chaude aur kaale rang ke chutad ko kuch upar utha deti aur dusare pal pandit ji humach kar apna lund bur me chodte huye kas kar chanp dete aur savitri ke chutad ka utha huya hissa fir se chatai me buri tarah se dab kar sat jata aur fir agle pat jyonhi pandit ji apna lund bur se bahar kheenchte ki savitri fir apne chutado ko chatai se upar utha deti aur pandit ji humach kar chodate huye chatai me vapas dabaa dete. **************************************** ab pandit ji ka samoocha lund savitri ke bur me samaa jata tha aur pandit ji ki ghani jhante savitri ki jhanton me ja kar sat jaata tha. pandit ji ne savitri ko humach humach kar kafi der tak chodte rahe. achanak savitri ko bahut jyade anand aane lagaa aur use laga ki uske bur ke andar kuch nikalne wala hai. aur yah anand use bardasht nahi ho paa raha tha aur usane apne chaude aur kaale rang ke chutadon ko kafi uncha utha deti jisase pawroti ki tarah jhanton se bhari chud rahi bur kafi upar uth jata aur vah bur ko aise uchka kar pandit ji se chudane lagti. tab pandit ji samajh gaye ki savitri jhadne vali hai aur uske uthaye huye bur ko kafi humach humach kar teji se chodne lage aur agle hi pal savitri ke kamar me kuch jahtke dar ainthan huyi aur savitri ke bur ke andar teji se jhadne wala pani nikalne laga aur vah sitkaar uthi. savitri jhadne ke baad apne udhaye huye chutadon ko vapas chatai par sata lee aur hanfane lagi. lekin pandit ji abhi jhade nahi the. ve bhi kuch lambi sans le rahe the aur ab dheere dheere chod rahe the. fir savitri ke nichale oth ko munh me lekar kas kar chusane lage aur chuchion ko bhi dabane lage. kuch der tak aisa karke chodne ne fir se savitri garam hone lagi lekin is baar pahle se bahut jyada uttejit ho gayi thi aur fir apne chaude chutad ko chataai se utha kar bur ko uchkaane lagi. ab pandit ji savitri ke dono onthon ko kas ke munh me lekar choos rahe the aur chod rahe the. savitri ko pandit ji ka lund bur me ghusana itana achaa lag rahaa tha ki jab pandit ji lund bur se bahar ki or kheenchate tab lund ko vapas bur me lene ke liye apne bur ko kafi upar utha deti aur fur pandit ji humach kar chodte huye samuche lund ko "ghachhh.." awaj ke saath jad tak bur me chanp dete aur savitri ka utha hua chutad pandit ji ke dhakke ke dabav se vapas chataai me dab kar sat jata. aisa lagbhag har dhakke ke sath hota aur savitri ka chutad mano chatai par upar niche har chudai ke sath ho rahaa tha. savitri ko jab jayda anand aane laga tab apne chutad ko aur upar uthane lagi aur apne bur ko lund par fenkane lagi. bur ke reshe ab kafi dheele ho chuke the. bur kafi gili ho chuki thi. bur ke chudai ka ras aur khoon dono milkar bur se bahar aa raha the aur savitri ke gand ke ched se hota huaa chatai par chu rahaa tha. savitri ko itna anand aa rahaa tha ki vah sataven asmaan par ud rahi thi. use aisa lag rahaa tha ki dunia ka sabase jayada anand isi chudai me hi hai. har dhakke me vah bahut jyada mazaa le rahi thi. is karan jab bhi dhakka lagta vah sitkar kar rah jaati aur turant apne chutadon ko uchka kar agle dhakke ki bheekh mangne lagti. savitri garib to jaroor thi lekin bhikharin nahin. fir bhi aaj vah ek bhikharin ki tarah chataai me chatpata kar pandit ji ke dhakke ki bheekh maang rahi thi. isi karan se vah lund ke bahar aate hi apne kale chaude chutado ko utha deti ki jaldi se dhakka bur me mile aur kafi gahrai tak lund ghus jaye. chudai ke anand ne mano savitri ke shareer ka laaz aur sharm ko uske rowen rowen se dho dala tha. isi vajah se ek chudail ki tarah apne chut ko upar ki or fenk fenk kar lund leel rahi thi. savitri ab har dhakke ke liye gidgidaa rahi thi. use bas pandit ji ke dhakke ki jaroorat thi. vah bhi jor ke dhakke jisase uski bur ki gaharai me lund jaa sake. savitri ke hav bhav ko dekhte huye pandit ji ne kisi dayaalu insaan ki tarah dhakke jore se lagaane ke saath dhakkon ki reftaar tej karne lage. savitri ab ankhen khol kar chuda rahi thi aur uski ankhon me bhi dhakkon ki bheekh saaf dikh rahaa tha. mano vah ab aur dhakkon ke liye gidgidaate huye ro degi.savitri ka shareer kafi mansal aur kasa hua hone ke karan vah pandit ji ke kasarati balisht shareer ke dhakkon ko bade araam se le paa rahi thi. uske chutadon par kafi mans tha aur chaude hone ke vajah se jab bhi pandit ji dhakke marte huye lund jad tak dhansate the ki unka lund bur me ghus jata aur pandit ji ke gore shareer ka vajan savitri ke chaude aur kaale chutadon par padta. vaise bur ab fail kar ek naya rup le chukaa tha jise aurat ka hi bur kah sakte hain. jo bur thodi der pahle kuwari thi ab vah kuwari nahi rah gayi thi aur chudai ke anand ne uske shareer ke laaz aur sharm ko bhi lagbhag khatm kar diya tha. savitri ne apne jeevan me kisi se kuch manga nahi tha lekin aj vah pandit ji se dhakkon ki bheekh mang rahi thi wo bhi lag rahaa tha ki mangte mangte ro degi.jab pandit ji ne dekha ki chatai me chud rahi savitri ki harkat ab bahut ashleel aur besharm hoti jaa rahi hai tab vah samajh gaye ki savitri dusari bar jhadne ki taraf badh rahi hai. tab pandit ji teji se chodane ke liye apne shareer ki sari takat ko ikattha kar liye aur savitri ko chatai me kas kar daboch liye. fir bhi savitri apne chutadon ko uchalna band nahi kiya tab pandit ji ne kafi kas kar use chodne lage aur ek sandh ki tarah hunkar lene lage. pandit ji apne pure lund ko bur se bahar kheenchate aur dusre pal pura ka pura lund jad tak pel dete. chudai ki raftaar itni tej kar diya ki savitri ko chutad uthane ka mauka hi nahi milta. ek ke baad ek dhakke aise lagte mano savitri ko chod kar pure shareer ko do hisson me fad denge. pure kamre me ghaacchh ghachhh ki awaj goonj uthi. tej chudai se savitri ko itna anand aaya ki vah kafi ashleel awaz bhi nikalne se apne ko rok nahi payi aur lagbhag chilla uthi "aaah ji pandit ji ....mujhe aur....chodiyee jii........bahut acchha lag raha hai.....aur aur kariye.....are maai re baap bahut maazaa re maai aur chodiye aaoooo hhhh .." pandit ji ke kaan me ye gandi awaz jaate hi ek naya josh bhar gaya aur vah samjh gaye ki agle kuch palon me savitri jhad jayegi. tabhi unhe laga ki savitri ka pura badan kanpne sa laga aur apne pure shareer ko kuch ainthne lagi hai. vah ab jhadne vali hai aur dusre pal me dhakke pe dhakke marte huye pandit ji ka bhi shareer me bijli daudne lagi aur vah kisi sandh ya bhainse ki tarah hunkarna suru kar diya. aur unka bhi shareer kafi jhatke ke sath ainthne laga aur har ainthan me vah savitri ko dabochna tej kar diye unke anduon se veerya ki dhar ab chal padi thi. aur pandit ji apne lund ko aise bur ki gahrai me chanpne lage mano veerya ki gadhi aur moti dhaar savirti ke bacchedaani ke munh me hi gira kar dam lenge. akhir kafi uttejna ka saath savitri jhadna suru kar di aur chatai me puri tarah se ainthne lagi aur dusare pal hi pandit ji ka supaada jo savitri ki jhad rahi bur ke tah me ghusaa tha, kafi tej gati se, ek ke bad ek kafi gadhe aur mote veerya ki dhaar chhootne laga aur kisi peechkaari ki tarah choot choot kar bachhedani ke munh par padne laga. lund bhi har veerya ki bauchaar ke saath jhatke le raha tha jo savitri ki bur ki manspeshiya kafi tej mahsoos kar rahi thin. ek ke baad ek veerya ki bauchaar bur ke tah me kisi bandook ki goli ki tarah padne lagi. savitri ko aisa lag raha tha mano yah veerya ki bauchhaar band hi na ho. pandit ji kai dino baad bur chod rahe the is karan veerya kafi matra me nikal rahaa tha. veerya ki garmi se savitri puri tarah se hil gayi aur pandit ji ke kamar ko kas kar apne tango se daboch lee aur apne hathon ko pandit ji ke peeth ko lapet lee. use aisa laga rahaa tha mano koi kafi garm cheez bur ke tah me udel rahe hon. jo ek ke baad ek lund ki ulti se bur ki tah me ikattha hota jaa raha hai aur bur ab bhar gayi ho. savitri ko itna anand aaya ki vah puri dunia bhool gayi aur uske sitkarion se kamra gunj utha. ab dono puri tarah se jhad chuke the. lund bhi kuch halke jhatke leta hua bacha khucha veerya ki akhiri bund ko bhi bur ki tah me udel diya. ************************************** dono jhad chuke the, pandit ji savitri ke upar vaise hi kuch der pade rahne ke baad uthne lage aur apne fanse huye lund ko bur me se kheench kar nikalne lage. lund abhi bhi khadaa tha aur pahle se kuch dheela hua tha. lund kheenchte samay pandit ji ko aise laga mano savitri ki bur ne use mutthi me pakad rakha ho. pandit ji ne apne kamar ko jyonhi peeche ki or kiya lund "puukk" ke awaaz ke sath bur se bahar aa gayaa. lund ke bahar aate hi pandit ji ne dekha ki bur ka munh jispar khoon aur chudai ka ras dono lagaa tha, sikudne laga aur bur ki dono fanke apas me satne ki koshis kar rahi thin. lekin ab bur ki phanke pahle ki tarah sikud kar ekdam se sat nahi paa rahi thin aur bur ke munh par thoda sa failav aa gayaa tha. iska yah bhi karan tha ki pandit ji ka lund mota tha aur kafi der tak savitri ki kuwari bur ko choda tha. savitri vaise hi leti thi aur pandit ji apna lund to bur se kheench ke nikaal chuke the lekin savitri ke jhangho ke beech abhi bhi baithe the is vajah se savitri apni janghon ko apas me sataa nahi paa rahi thi aur pahli baar ki chudai se thaki hone ke karan savitri bhi vaise hi leti thi aur turant uth kar baithne ki himmat nahi ho paa rahi thi. aur janghen faili hone ke naate pandit ji ki nazar bur par hi thi jiska rup ab badal chukaa tha. ghani jhanton se ghiri hui bur ekdam hi kaali thi aur pawroti ki tarah dikh rahi thin. kuch chudai ki ras aur khoon jhanton me bhi lag gaya tha.savitri ki aankhen thakaan se lagbhag band ho gayi thin aur uski sanse tej chal rahi thin. pandit ji thodi der tak savitri ki bur ki sundarta ko dekh rahe the aur kafi khushi mahsoos kar rahe the ki is umra me bhi unhe kuwari gadrai chut mil gayi. fir agle pal unhone savitri ki bur ke dono othon ko apne hath se jyohin failane ki koshis kiya ki savitri ki dhap rahin aankhen khul gayi aur meethi dard se lete lete hi halki si chaunk gayi aur apne hath se pandit ji ke haath ko pakad lee. lekin tabtak turant ki chudi huyi bur ke dono oth halki si fail gayi lekin ander ka gulaabi bhag sikud kar ek halki si ched bana kar rah gaya tha. pandit ji samajh gaye ki savitri ko kuch dard ho raha hoga. aur kuch pal bur ke andar ke gulaabi bhag ko dekhne ke baad bur ke othon se apne hath hata liye aur fir pahle ki tarah dono oth satane ko koshis karne lage lekin kuch hissa khula rah kar mano yah bataa raha tha ki ab bur kuwari nahi balki ab aurat ki bur ho chuki hai. pandit ji uthe aur shauchalay me jaa kar pehsab kiye aur apne lund aur jhanton me lage chudai ras aur khoon ko pani se dhone lage. pandit ji jyonhi uthe savitri ne apne dono janghon ko aapas me satane ki kosish karne lagi to use janghon aur bur me dard ka abhas huaa. fir uth kar chatai par baithi. savitri ne dekha ki pandit ji shauchalay me gaye hain to mauka dekhkar apni bur ki halat dekhne ke liye apne dono jangho ko kuch faila lee aur dekhne lagi. chudi hui bur ko dekh kar sann rah gayi. jhanten aur bur dono hi chudai ras aur khoon se bhingi huyi thin. lekin apni bur par savitri ki nazar padte hi sakpakaa gayi. aisa lag raha tha ki vah uski bur nahi balki kisi dusare ki bur hai. bur ka shakl pahachan me hi nahi aa rahi thi. jo bur chudai se pahle thi vaisi ekdam hi nahi thi. chudai ke pahle bur ke dono fankno ke satne par keval ek lakeer hi dikhai deti thi vah lakeer ab gayab ho gayi thi aur lakeer ke sthan par kuch nahi tha kyonki bur ka munh ab kuch khulaa sa lag rahaa tha. bur ke dono oth apas me puri tarah se band nahi ho paa rahe the. savitri baithe baithe apne bur ki badli huyi shakl ko dekh kar bur ki pahle wali shakal ko yad kar rahi thi. use aisa lag rahaa tha ki ab uski bur kabhi bhi pahle ki tarah nahi ho payegi aur vah soch rahi thi ki vah chud chuki hai, loot chuki hai, ek aurat ho chuki hai, pandit ji ko apna kuwarapan de chuki hai, aur ab yah sab kuch vapas nahi aane wala hai kyonki jeevan me yah keval ek hi baar hota hai.badli hui bur ki shakl par nazare gadaaye yahi sab soch rahi thi. ki chatai par bhi kuch chudai ras aur khoon dikhai diya to vah apne chutad ko halka sa piche ki or khiskai to dekha ki chutad ke niche bhi halka sa khoon laga tha jo chatai me ab sookh raha tha. uske man me yahi bat uthi ki yah samanya khoon nahi balki yah uski izzat, asmat, maan, maryada aur uske maa sita ke kafi sangharsh se bachaya gaya khoon tha jo kisi dulhan ka sabse bada dharm hota hai aur jis par keval uske pati ka hi hak hota hai aur ise aaj pandit ji ne loot liya aur ab vah kabhi bhi kuwari ki tarah apne sasural nahi jayegi balki ek chudi hui aurat ki tarah hi jaa sakegi. agle pal savtiri ke man me ek bahut bada visphot huaa aur ek nayi vichaar ki tarange uthne lagi ki aaj sab kuch lootne ke baad bhi ek aisa cheez mila jo aaj tak vah nahi paa saki thi aur vah tha chudai ka anand. jo anand aaj pandit ji ne use chod kar diya vaisa anand use attharah saal ki umar tak kahi se bhi naseeb nahi hua tha. uske man me ek naye vichar ki sthapanaa hone lagi. savitri ka man chilla chilla kar yah swikaarne laga ki yah anand ek aisa anand hai jo kisi cheez ke khane se ya pahanane se ya dekhne se, ya sunane se ya khelne se kahin se bhi nahi mil sakta hai aur yah anand keval aur keval chudai se hi mil sakta hai jo ki koi mard hi kar sakta hai jaisa ki pandit ji ne kiya aur is anand ke aage sab kuch aur saari dunia bekaar hai. chatai me baithi yahi soch rahi thi ki tabhi pandit ji shauchalay se apne lund aur jhanton ko dho kar vapas aa gaye aur chauki par let gaye.
संघर्ष
Re: संघर्ष
संघर्ष--11
सावित्री काफ़ी ताक़त लगा कर चटाई पर से उठी लेकिन एकदम नंगी होने के वजह से सामने लेटे हुए पंडित जी को देख कर उसे लाज़ लग रही थी और अगले पल वह फर्श पर पड़े अपने कपड़ों को लेने के लिए बढ़ी लेकिन बुर झांट और चूतड़ पर चुदाई रस और खून से भीगे होने के वजह से रुक गयी और मज़बूरी मे नंगे ही शौचालय की ओर चल पड़ी. उसने जैसे ही अपने पाँव आगे बढ़ाना चाहे कि लगा बुर मे उठे दर्द से गिर पड़ेगी. काफ़ी हिम्मत के साथ एक एक कदम बढ़ाते हुए शौचालय तक गयी. चौकी पर लेटे लेटे पंडित जी भी नंगी सावित्री को शौचालय के तरफ जाते देख रहे थे. उसके चूतड़ काफ़ी गोल गोल और बड़े बड़े थे. उसकी कमर के पास का कटाव भी काफ़ी आकर्षक लग रहा था. धीरे धीरे वह शौचालय मे जा रही थी. वह जान रही थी कि पंडित जी उसे पीछे से देख रहे हैं और उसे लाज़ भी लग रही थी लेकिन उसे अपना बुर और झांते, चूतड़ पर का चुदाई रस और खून को धोना बहुत ज़रूरी भी था क्योंकि यदि उसके चड्डी और कपड़े मे लग जाती तो उसकी मा सीता उसे पकड़ लेती. इसी डर से वह अपनी बुर झांट और चूतड़ को धोने के लिए शौचालय मे अंदर जा कर दरवाजा मे सीत्कनी लगा कर फिर से अपनी चुदी हुई बुर को देखी. और खड़े खड़े एक बार हाथ भी बुर पर फिराया तो मीठा मीठा दर्द का आभास हुआ. फिर बुर धोने के नियत से बैठी लेकिन उसे कुछ पेशाब का आभास हो रहा था तो बैठे बैठे ही पेशाब करने की कोशिस की तो थोड़ी देर बाद पेशाब की धार बुर से निकलने लगी. तभी उसे याद आया कि पंडित जी के लंड से गर्म वीरया बुर के अंदर ही गिरा था. वह यही सोच रही थी कि उनका सारा वीरया उसकी बुर मे ही है. और बाहर नही निकला. फिर उसने पेशाब बंद होते ही सिर को झुकाते हुए बुर के दरार मे देखी की शायद वीरया भी बाहर आ जाए. लेकिन बुर की दरार से बस एक लसलाषसा चीज़ चू रहा था. वह समझ गयी कि यह वीरया ही है. लेकिन बस थोड़ी सी निकल कर रह गयी. फिर सावित्री ने अपने बुर मे अंदर से ज़ोर लगाई कि बुर मे गिरा पंडित जी का वीरया बाहर आ जाए. लेकिन ज़ोर लगाने पर बुर मे एक दर्द की लहर दौड़ उठी और बस सफेद रंग का लसलसा चीज़ फिर काफ़ी थोड़ा सा चू कर रह गया. सावित्री यह समझ गयी कि उसके बुर मे जब पंडित जी वीरया गिरा रहे थे तो उनका लंड बुर के काफ़ी अंदर था और ढेर सारा वीरया काफ़ी देर तक गिराते रहे. गिरे हुए वीरया की अनुपात मे चू रहा सफेद लसलसा चीज़ या वीरया कुछ भी नही है. यानी पंडित जी के लंड से गिरा हुआ लगभग पूरा वीरया बुर के अंदर ही रह गया था. सावित्री अब कुछ घबरा ही गयी थी. उसे अपने गाओं की सहेलिओं से यह मालूम था कि जब मर्द औरत को चोद्ता है तो चुदाई के अंत मे अपनी लंड से वीरया बुर मे गिरा या उडेल देता है तो औरत को गर्भ ठहर जाता है. वह यही सोच रही थी कि पंडित जी ने अपना वीरया अंदर गिरा चुके हैं और यदि यह वीरया अंदर ही रह जाएगा तो उसका भी गर्भ ठहर जाएगा. अब शौचालय मे बैठे बैठे उसे कुछ समझ नही आ रहा था. उसने फिर एक बार अपनी बुर को दोनो हाथों से थोड़ा सा फैलाई तो दर्द हुआ और फिर ज़्यादा फैला नही पाई. और जितना फैला था उतने मे ही अपने पेट के हिस्से से जैसे पेशाब करने के लिए ज़ोर लगाते हैं वैसे ही ज़ोर लगाई कि वीरया बुर के बाहर आ जाए लेकिन फिर बस थोड़ा सा सफेद लसलसा चीज़ चू कर रह गया. ******************************
******** अचानक जिगयसा वश सावित्री ने बुर से चू रही लसलासी चीज़ को उंगली पर ले कर नाक के पास ला कर सूंघने लगी. उसका महक नाक मे जाते ही सावित्री को लगा कि फिर से मूत देगी. गजब की महक थी वीरया की. सावित्री के जीवन का पहला मौका था जब किसी मर्द के वीरया को छु और सूंघ रही थी. पता नही क्यों पंडित जी के वीरया का महक उसे काफ़ी अच्छी लग रहा था. आख़िर पूरा वीरया बुर से ना निकलता देख सावित्री अपने बुर झांट और चूतड़ पर लगे चुदाई रस और खून को धोने लगी. सावित्री अपनी बुर को ही बार बार देख रही थी कि कैसे बुर का मुँह थोडा सा खुला रह जा रहा है. जबकि की चुदाई के पहले कभी भी पेशाब करने बैठती थी तो बुर की दोनो फाँकें एकदम से सॅट जाती थी. लेकिन पंडित जी के चोदने के बाद बुर की दरारें पहले की तरह सॅट नही पा रही हैं.फिर खड़ी हो कर धीरे से सीत्कनी खोल कर कमरे आई. उसने देखा कि पंडित जी अपनी लंगोट पहन रहे थे.उनका लंड अब छोटा होकर लंगोट मे समा चुका था. उसके बाद पंडित जी धोती और कुर्ता भी पहनने लगे. सावित्री भी काफ़ी लाज़ और शर्म से अपनी चुचिओ और बुर को हाथ से ढक कर फर्श पर पड़े कपड़ो की तरफ गयी. उन कपड़ो को लेकर सीधे दुकान वाले हिस्से मे चली गयी क्योंकि अब पंडित जी के सामने एक पल भी नंगी नही रहना चाहती थी. दुकान वाले हिस्से मे आकर पहले चड्डी पहनने लगी जो कि काफ़ी कसा हो रहा था. किसी तरह अपनी बुर और झांतों और चूतड़ को चड्डी मे घुसा पाई. पुरानी ब्रा को भी पहनने मे भी काफ़ी मेहनत करनी पड़ी. चुचिओ को पंडित जी ने काफ़ी मीज़ दिया था इसलिए ब्रा को दोनो चुचिओ पर चढ़ाने पर कुछ दुख भी रहा था. किसी तरह सलवार और समीज़ पहन कर दुपट्टा लगा ली. पूरी तरह से तैयार हुई तभी याद आया कि चटाई मे चुदाई का रस और बुर से निकला खून लगा है और उसे भी सॉफ करना है. दुकान के अगले हिस्से से पर्दे को हटा कर अंदर वाले कमरे मे झाँकी तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठ कर चटाई पर लगे चुदाई रस और खून को देख रहे थे. सावित्री को काफ़ी लाज़ लग रही थी लेकिन बहुत ज़रूरी समझते हुए फिर अंदर आई और चटाई को लेकर बाथरूम मे चली गयी और उसमे लगे चुदाई रस और खून को धो कर सॉफ कर दी. पंडित जी चौकी पर बैठे ही बैठे यह सब देख रहे थे. चटाई को साफ करने के बाद जब सावित्री बाथरूम से बाहर आई तो देखी कि पंडित जी अब दुकान का सामने वाला दरवाजा खोल रहे थे क्योंकि अब 3 बाज़ रहे थे और आज एक घंटे देर से दुकान खुल रही थी. **************************************** दुकान खुलने के बाद सावित्री अपने स्टूल पर बैठी तो उसे लगा की बुर और जांघों में दर्द बना हुआ है। पंडित जी भी अपने कुर्सी पर बैठ गए। सावित्री अपनी नज़रें झुकाए हुए यही सोच रही थी कि वीर्य आखिर कैसे बुर से निकलेगा और गर्भ ठहरने की विपत उसके ऊपर से हट जाय। थोड़ी देर में कुछ औरतें दुकान पर आई और कुछ सामान खरीदने के बाद चली गयी। अब शाम हो चुकी थी और अँधेरा के पहले ही सावित्री अपने घर चली जाती थी। क्योंकि रास्ते में जो सुनसान खंडहर पड़ता था। थोड़ी देर बाद सावित्री पंडित जी की तरफ देख कर मानो घर जाने की इजाजत मांग रही हो। भोला पंडित ने उसे जाने के लिए कहा और सावित्री घर के लिए चल दी। उसे चलने में काफी परेशानी हो रही थी। थोड़ी देर पहले ही चुदी हुयी बुर कुछ सूज भी गयी थी और जब चलते समय बुर की फांकें कुछ आपस में रगड़ खातीं तो सावित्री को काफी दर्द होता। उसका मन करता की अपनी दोनों टांगों को कुछ फैला कर चले तो जांघों और बुर की सूजी हुई फाँकों के आपस में रगड़ को कुछ कम किया जा सकता था। लेकिन बीच बाज़ार में ऐसे कैसे चला जा सकता था। वह कुछ धीमी चल से अपने गाँव की और चल रही थी। कसबे में से बाहर आते ही सावित्री की बुर की फाँकों के बीच का दर्द रगड़ के वजह से कुछ तेज हो गया। लेकिन उसे इस बात से संतोष हुआ कि अब वह कसबे के बाहर आ गयी थी और चलते समय अपने दोनों टांगों के बीच कुछ जगह बना कर चले तो कोई देखने वाला नहीं था। और चारो तरफ नज़र दौड़ाई और पास में किसी के न होने की दशा में वह अपने पैरों को कुछ फैला कर चलने लगी। ऐसे चलने में कुछ दर्द कम हुआ लेकिन आगे फिर वही खँडहर आ गया। सावित्री को खँडहर के पास से गुजरना काफी भयावह होता था। किसी तरह से खँडहर पार हुआ तो सावित्री को बड़ी राहत हुई और कुछ देर में वह अपने घर पहुँच घर पहुँचते ही सावित्री को पेशाब का आभास हुआ तो उसे कुछ आशा हुआ की इस बार पेशाब के साथ पंडित जी का वीर्य बुर से बाहर आ जाये तो काम बन जाये और गर्भ ठहरने का डर भी समाप्त हो जाये। इसी उम्मीद से सावित्री तुरंत अपने घर के पिछवाड़े दीवाल के पीछे जहाँ वह अक्सर मुता करती थी, गयी और चारो और नज़र दौड़ाई और किसी को आस पास न पाकर सलवार और चड्डी सरकाकर मुतने बैठ गयी। सावित्री अपनी नज़रें बुर पर टिका दी और बुर से मूत की धार का इंतजार करने लगी। थोड़ी देर बाद मूत की एक मोती धार बुर से निकल कर जमीन पर गिरने लगी। लेकिन पंडित जी द्वारा गिराए गए वीर्य का कुछ अता पता नहीं चल रहा था। मनो सारा वीर्य बुर सोख गयी हो। सावित्री बार बार यही याद कर रही थी की कितना ज्यादे वीर्य गिराया था बुर के अंदर। अब तो केवल मूत ही निकल रही थी और वीर्य के स्थान पर कुछ लसलसा चीज़ भी पहले की तरह नहीं चू रही थी। मूत के बंद होते ही सावित्री के मन में निराशा और घबराहट जाग उठी। अब सावित्री के मन में केवल एक ही भय था की यदि उसे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा। इस मुसीबत की घडी में कौन मदद कर सकता है। तभी उसे याद आया की चोदने के पहले पंडित जी ने उससे कहा था की लक्ष्मी का छोटा वाला लड़का उन्ही के चोदने से पैदा हुआ है। इस बात के मन में आत ही उसे और दर लगने लगा। उसके मन में यही याद आता की उसे भी गाँव के लक्ष्मी चाची के छोटे लड़के की तरह ही लड़का पैदा होगा। वह यही बार बार सोच रही थी की अब क्या करे। आखिर रोज की तरह माँ और छोटे भाई के साथ खाना खा कर रात को सोने चली गयी। उसे आज नीद भी बहुत तेज लग रही थी। उसका शरीर काफी हल्का और अच्छा लग रहा था। वह जीवन में पहली बार भोला पंडित जी के लन्ड पर झड़ी थी। बिस्तर पर जाते ही वह दिन भर की थकी होने के वजह से तुरंत नीद लग गयी। सुबह उसके माँ सीता ने जब उसे आवाज दे कर उठाया तो उसकी नीद खुली तो भोर हो चूका था। वह माँ के साथ शौच के लिए खेत के तरफ चल पड़ी । खेत में वह माँ से काफी दूर टट्टी करने के लिए बैठी क्योंकि उसे शक था की माँ की नज़र कहीं सूजे हुए बुर पर पड़ेगी तो पकड़ जाएगी। सावित्री टट्टी करते समय अपने बुर पर नज़र डाली तो देखा की सुजन लगभग ख़त्म हो गया है लेकिन बुर की फांके पहले की तरह आपस में सट कर एक लकीर नहीं बना पा रही थीं। हल्का सा बुर का मुंह खुला रह जा रहा था जैसा की उसके माँ सीता का बुर थी। शौच करने के बाद जब घर आई और बर्तन धोने के लिए बैठी तो उसे लगा की अब पिछले दिन की तरह कोई दर्द नहीं हो रहा था। लेकिन ज्योंही पंडित जी के वीर्य की याद आती सावित्री कांप सी जाती। उसका जीवन मानो अब ख़त्म हो गया है। घर पर नहाने के लिए सावित्री की माँ ने अपने घर के एक दीवाल के पास तीन और से घेर दिया था की कोई नहाते समय देख न सके और एक ओर से कपडे का पर्दा लगा होता था। सावित्री उसी में नहाने के लिए गयी और रोज की तरह पर्दा को लगा कर अपने कपडे उतारने लगी।
Sangharsh--11
savitri kafi takat laga kar chatai par se uthi lekin ekdam nangi hone ke vajah se samne lete huye pandit ji ko dekh kar use laaz lag rahi thi aur agle pal vah farsh par pade apne kapdon ko lene ke liye badhi lekin bur jhant aur chutad par chudai ras aur khoon se bheege hone ke vajah se ruk gayi aur mazboori me nange hi shauchalay ki or chal padi. usne jaise hi apne pawn aage badhana chahi ki laga bur me uthe dard se gir padegi. kafi himmat ke sath ek ek kadam badhate huye shauchalay tak gayi. chauki par lete lete pandit ji bhi nangi savitri ko shauchalay ke taraf jaate dekh rahe the. uske chutad kafi gol gol aur bade bade the. uski kamar ke pas ka kataav bhi kafi akarshak lag raha tha. dheere dheere vah shauchalay me jaa rahi thi. vah jaan rahi thi ki pandit ji use peeche se dekh rahe hain aur use laaz bhi lag rahi thi lekin use apna bur aur jhante, chutad par ka chudai ras aur khoon ko dhona bahut jaroori bhi tha kyonki yadi uske chaddi aur kapade me lag jati to uski maa sita use pakad leti. isi dar se vah apne bur jhant aur chutad ko dhone ke liye shauchalay me andar jaa kar darvaja me sitkani lagaa kar fir se apni chudi hui bur ko dekhi. aur khade khade ek baar hath bhi bur par firaya to meetha meetha dard ka abhas hua. fir bur dhone ke niyat se baithi lekin use kuch peshab ka abhas ho rahaa tha to baithe baithe hi peshab karne ki koshis ki to thodi der baad peshab ki dhar bur se niklne lagi. tabhi use yad aaya ki pandit ji ke lund se garm veerya bur ke andar hi gira tha. vah yahi soch rahi thi ki unka sara veerya uski bur me hi hai. aur bahar nahi nikla. fir usne peshab band hote hi sir ko jhukaate huye bur ke daraar me dekhi ki shayad veerya bhi bahar aa jaye. lekin bur ki daraar se bas ek laslassa cheez choo rahaa tha. vah samajh gayi ki yah veerya hi hai. lekin bas thodi si nikal kar rah gayi. fir savitri ne apne bur me andar se jor lagayi ki bur me gira pandit ji ka veerya bahar aa jaaye. lekin jor lagane par bur me ek dard ki lahar daud uthi aur bas safed rang ka laslasaa cheez fir kafi thoda sa choo kar rah gayaa. savitri yah samajh gayi ki uske bur me jab pandit ji veerya gira rahe the to unke lund bur ke kafi andar tha aur dher sara veerya kafi der tak giraate rahe. gire huye veerya ki anupaat me choo rahaa safed laslasaa cheez ya veerya kuch bhi nahi hai. yani pandit ji ke lund se gira hua lagbhag pura veerya bur ke andar hi rah gayaa tha. savitri ab kuch ghabra hi gayi thi. use apne gaon ki sahelion se yah maloom tha ki jab mard aurat ko chodta hai to chudai ke ant me apni lund se veerya bur me gira ya udel deta hai to aurat ko garbh thahar jata hai. vah yahi soch rahi thi ki pandit ji ne apna veerya andar gira chuke hain aur yadi yah veerya andar hi rah jaayega to uska bhi garbh thahar jayega. ab shauchalay me baithe baithe use kuch samajh nahi aa raha tha. usne fir ek bar apne bur ko dono hathon se thoda sa failayi to dard huaa aur fir jyada faila nahi payi. aur jitna faila tha utne me hi apne pet ke hisse se jaise peshab karne ke liye jor lagaate hain vaise hi jor lagayi ki veerya bur ke baahar aa jaaye lekin fir bas thoda sa safed laslasaa cheez choo kar rah gayaa. ************************************** achanak jigyasa vash savitri ne bur se choo rahi laslase cheez ko ungli par le kar naak ke pas laa kar sunghne lagi. uska mahan naak me jaate hi savitri ko laga ko fir se mut degi. gajab ki mahak thi veerya ki. savitri ke jeevan ka pahalaa mauka tha jab kisi mard ke veerya ko chhu aur soongh rahi thi. pata nahi kyon pandit ji ke veerya ka mahak use kafi accha lag rahaa tha. akhir pura veerya bur se na niklta dekh savitri apne bur jhant aur chutad par lage chudai ras aur khoon ko dhone lagi. savitri apne bur ko hi bar bar dekh rahi thi ki kaise bur ka munh thoda sa khula rah jaa rahaa hai. jabki ki chudai ke pahle kabhi bhi peshab karne baithti thi to bur ki dono fanken ekdam se sat jati thi. lekin pandit ji ke chodne ke bad bur di daraaren pahle ki tarah sat nahi paa rahi hain.fir khadi ho kar dheere se sitkani khol kar kamare aayi. usne dekha ki pandit ji apni langot pahan rahe the.unka lund ab chota hokar langot me sama chuka tha. uske bad pandit ji dhoti aur kurta bhi pahnane lage. savitri bhi kafi laaz aur sharm se apne chuchion aur bur ko hath se dhak kar farsh par pade kapkon ke taraf gayi. un kapado ko lekar sidhe dukaan wale hisse me chali gayi kyonki ab pandit ji ke saamne ek pal bhi nangi nahi rahna chahti thi. dukaan wale hisse me aakar pahle chaddi pahanane lagi jo ki kafi kasa ho rahaa tha. kisi tarah apni bur aur jhanton aur chutad ko chaddi me ghusa payi. purani bra ko bhi pahanane me bhi kafi mehnat karni padi. chuchion ko pandit ji ne kafi meez diya tha isliye bra ko dono chuchion par chadhaane par kuch dukh bhi rahaa tha. kisi tarah salwar aur sameez pahan kar dupatta lagaa lee. puri tarah se taiyaar huyi tabhi yaad aaya ki chatai me chudai ka ras aur bur se nikla khoon laga hai aur use bhi saaf karna hai. dukaan ke agle hisse se parde ko hata kar ander wale kamare me jhanki to dekhi ki pandit ji chauki par baith kar chatai par lage chudai ras aur khoon ko dekh rahe the. savitri ko kafi laaz lag rahi thi lekin bahut jaroori samajhte huye fir ander aayi aur chatai ko lekar bathroom me chali gayi aur usme lage chudai ras aur khoon ko dho kar saaf kar dee. pandit ji chauki par baithe hi baithe yah sab dekh rahe the. chatai ko saf karne ke baad jab savitri bathroom se bahar aai to dekhi ki pandit ji ab dukaan ka saamne wala darwaja khol rahe the kyonki ki ab 3 baz rahe the aur aaj ek ghante der se dukaan khul rahi thi. ****************************************
सावित्री काफ़ी ताक़त लगा कर चटाई पर से उठी लेकिन एकदम नंगी होने के वजह से सामने लेटे हुए पंडित जी को देख कर उसे लाज़ लग रही थी और अगले पल वह फर्श पर पड़े अपने कपड़ों को लेने के लिए बढ़ी लेकिन बुर झांट और चूतड़ पर चुदाई रस और खून से भीगे होने के वजह से रुक गयी और मज़बूरी मे नंगे ही शौचालय की ओर चल पड़ी. उसने जैसे ही अपने पाँव आगे बढ़ाना चाहे कि लगा बुर मे उठे दर्द से गिर पड़ेगी. काफ़ी हिम्मत के साथ एक एक कदम बढ़ाते हुए शौचालय तक गयी. चौकी पर लेटे लेटे पंडित जी भी नंगी सावित्री को शौचालय के तरफ जाते देख रहे थे. उसके चूतड़ काफ़ी गोल गोल और बड़े बड़े थे. उसकी कमर के पास का कटाव भी काफ़ी आकर्षक लग रहा था. धीरे धीरे वह शौचालय मे जा रही थी. वह जान रही थी कि पंडित जी उसे पीछे से देख रहे हैं और उसे लाज़ भी लग रही थी लेकिन उसे अपना बुर और झांते, चूतड़ पर का चुदाई रस और खून को धोना बहुत ज़रूरी भी था क्योंकि यदि उसके चड्डी और कपड़े मे लग जाती तो उसकी मा सीता उसे पकड़ लेती. इसी डर से वह अपनी बुर झांट और चूतड़ को धोने के लिए शौचालय मे अंदर जा कर दरवाजा मे सीत्कनी लगा कर फिर से अपनी चुदी हुई बुर को देखी. और खड़े खड़े एक बार हाथ भी बुर पर फिराया तो मीठा मीठा दर्द का आभास हुआ. फिर बुर धोने के नियत से बैठी लेकिन उसे कुछ पेशाब का आभास हो रहा था तो बैठे बैठे ही पेशाब करने की कोशिस की तो थोड़ी देर बाद पेशाब की धार बुर से निकलने लगी. तभी उसे याद आया कि पंडित जी के लंड से गर्म वीरया बुर के अंदर ही गिरा था. वह यही सोच रही थी कि उनका सारा वीरया उसकी बुर मे ही है. और बाहर नही निकला. फिर उसने पेशाब बंद होते ही सिर को झुकाते हुए बुर के दरार मे देखी की शायद वीरया भी बाहर आ जाए. लेकिन बुर की दरार से बस एक लसलाषसा चीज़ चू रहा था. वह समझ गयी कि यह वीरया ही है. लेकिन बस थोड़ी सी निकल कर रह गयी. फिर सावित्री ने अपने बुर मे अंदर से ज़ोर लगाई कि बुर मे गिरा पंडित जी का वीरया बाहर आ जाए. लेकिन ज़ोर लगाने पर बुर मे एक दर्द की लहर दौड़ उठी और बस सफेद रंग का लसलसा चीज़ फिर काफ़ी थोड़ा सा चू कर रह गया. सावित्री यह समझ गयी कि उसके बुर मे जब पंडित जी वीरया गिरा रहे थे तो उनका लंड बुर के काफ़ी अंदर था और ढेर सारा वीरया काफ़ी देर तक गिराते रहे. गिरे हुए वीरया की अनुपात मे चू रहा सफेद लसलसा चीज़ या वीरया कुछ भी नही है. यानी पंडित जी के लंड से गिरा हुआ लगभग पूरा वीरया बुर के अंदर ही रह गया था. सावित्री अब कुछ घबरा ही गयी थी. उसे अपने गाओं की सहेलिओं से यह मालूम था कि जब मर्द औरत को चोद्ता है तो चुदाई के अंत मे अपनी लंड से वीरया बुर मे गिरा या उडेल देता है तो औरत को गर्भ ठहर जाता है. वह यही सोच रही थी कि पंडित जी ने अपना वीरया अंदर गिरा चुके हैं और यदि यह वीरया अंदर ही रह जाएगा तो उसका भी गर्भ ठहर जाएगा. अब शौचालय मे बैठे बैठे उसे कुछ समझ नही आ रहा था. उसने फिर एक बार अपनी बुर को दोनो हाथों से थोड़ा सा फैलाई तो दर्द हुआ और फिर ज़्यादा फैला नही पाई. और जितना फैला था उतने मे ही अपने पेट के हिस्से से जैसे पेशाब करने के लिए ज़ोर लगाते हैं वैसे ही ज़ोर लगाई कि वीरया बुर के बाहर आ जाए लेकिन फिर बस थोड़ा सा सफेद लसलसा चीज़ चू कर रह गया. ******************************
******** अचानक जिगयसा वश सावित्री ने बुर से चू रही लसलासी चीज़ को उंगली पर ले कर नाक के पास ला कर सूंघने लगी. उसका महक नाक मे जाते ही सावित्री को लगा कि फिर से मूत देगी. गजब की महक थी वीरया की. सावित्री के जीवन का पहला मौका था जब किसी मर्द के वीरया को छु और सूंघ रही थी. पता नही क्यों पंडित जी के वीरया का महक उसे काफ़ी अच्छी लग रहा था. आख़िर पूरा वीरया बुर से ना निकलता देख सावित्री अपने बुर झांट और चूतड़ पर लगे चुदाई रस और खून को धोने लगी. सावित्री अपनी बुर को ही बार बार देख रही थी कि कैसे बुर का मुँह थोडा सा खुला रह जा रहा है. जबकि की चुदाई के पहले कभी भी पेशाब करने बैठती थी तो बुर की दोनो फाँकें एकदम से सॅट जाती थी. लेकिन पंडित जी के चोदने के बाद बुर की दरारें पहले की तरह सॅट नही पा रही हैं.फिर खड़ी हो कर धीरे से सीत्कनी खोल कर कमरे आई. उसने देखा कि पंडित जी अपनी लंगोट पहन रहे थे.उनका लंड अब छोटा होकर लंगोट मे समा चुका था. उसके बाद पंडित जी धोती और कुर्ता भी पहनने लगे. सावित्री भी काफ़ी लाज़ और शर्म से अपनी चुचिओ और बुर को हाथ से ढक कर फर्श पर पड़े कपड़ो की तरफ गयी. उन कपड़ो को लेकर सीधे दुकान वाले हिस्से मे चली गयी क्योंकि अब पंडित जी के सामने एक पल भी नंगी नही रहना चाहती थी. दुकान वाले हिस्से मे आकर पहले चड्डी पहनने लगी जो कि काफ़ी कसा हो रहा था. किसी तरह अपनी बुर और झांतों और चूतड़ को चड्डी मे घुसा पाई. पुरानी ब्रा को भी पहनने मे भी काफ़ी मेहनत करनी पड़ी. चुचिओ को पंडित जी ने काफ़ी मीज़ दिया था इसलिए ब्रा को दोनो चुचिओ पर चढ़ाने पर कुछ दुख भी रहा था. किसी तरह सलवार और समीज़ पहन कर दुपट्टा लगा ली. पूरी तरह से तैयार हुई तभी याद आया कि चटाई मे चुदाई का रस और बुर से निकला खून लगा है और उसे भी सॉफ करना है. दुकान के अगले हिस्से से पर्दे को हटा कर अंदर वाले कमरे मे झाँकी तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठ कर चटाई पर लगे चुदाई रस और खून को देख रहे थे. सावित्री को काफ़ी लाज़ लग रही थी लेकिन बहुत ज़रूरी समझते हुए फिर अंदर आई और चटाई को लेकर बाथरूम मे चली गयी और उसमे लगे चुदाई रस और खून को धो कर सॉफ कर दी. पंडित जी चौकी पर बैठे ही बैठे यह सब देख रहे थे. चटाई को साफ करने के बाद जब सावित्री बाथरूम से बाहर आई तो देखी कि पंडित जी अब दुकान का सामने वाला दरवाजा खोल रहे थे क्योंकि अब 3 बाज़ रहे थे और आज एक घंटे देर से दुकान खुल रही थी. **************************************** दुकान खुलने के बाद सावित्री अपने स्टूल पर बैठी तो उसे लगा की बुर और जांघों में दर्द बना हुआ है। पंडित जी भी अपने कुर्सी पर बैठ गए। सावित्री अपनी नज़रें झुकाए हुए यही सोच रही थी कि वीर्य आखिर कैसे बुर से निकलेगा और गर्भ ठहरने की विपत उसके ऊपर से हट जाय। थोड़ी देर में कुछ औरतें दुकान पर आई और कुछ सामान खरीदने के बाद चली गयी। अब शाम हो चुकी थी और अँधेरा के पहले ही सावित्री अपने घर चली जाती थी। क्योंकि रास्ते में जो सुनसान खंडहर पड़ता था। थोड़ी देर बाद सावित्री पंडित जी की तरफ देख कर मानो घर जाने की इजाजत मांग रही हो। भोला पंडित ने उसे जाने के लिए कहा और सावित्री घर के लिए चल दी। उसे चलने में काफी परेशानी हो रही थी। थोड़ी देर पहले ही चुदी हुयी बुर कुछ सूज भी गयी थी और जब चलते समय बुर की फांकें कुछ आपस में रगड़ खातीं तो सावित्री को काफी दर्द होता। उसका मन करता की अपनी दोनों टांगों को कुछ फैला कर चले तो जांघों और बुर की सूजी हुई फाँकों के आपस में रगड़ को कुछ कम किया जा सकता था। लेकिन बीच बाज़ार में ऐसे कैसे चला जा सकता था। वह कुछ धीमी चल से अपने गाँव की और चल रही थी। कसबे में से बाहर आते ही सावित्री की बुर की फाँकों के बीच का दर्द रगड़ के वजह से कुछ तेज हो गया। लेकिन उसे इस बात से संतोष हुआ कि अब वह कसबे के बाहर आ गयी थी और चलते समय अपने दोनों टांगों के बीच कुछ जगह बना कर चले तो कोई देखने वाला नहीं था। और चारो तरफ नज़र दौड़ाई और पास में किसी के न होने की दशा में वह अपने पैरों को कुछ फैला कर चलने लगी। ऐसे चलने में कुछ दर्द कम हुआ लेकिन आगे फिर वही खँडहर आ गया। सावित्री को खँडहर के पास से गुजरना काफी भयावह होता था। किसी तरह से खँडहर पार हुआ तो सावित्री को बड़ी राहत हुई और कुछ देर में वह अपने घर पहुँच घर पहुँचते ही सावित्री को पेशाब का आभास हुआ तो उसे कुछ आशा हुआ की इस बार पेशाब के साथ पंडित जी का वीर्य बुर से बाहर आ जाये तो काम बन जाये और गर्भ ठहरने का डर भी समाप्त हो जाये। इसी उम्मीद से सावित्री तुरंत अपने घर के पिछवाड़े दीवाल के पीछे जहाँ वह अक्सर मुता करती थी, गयी और चारो और नज़र दौड़ाई और किसी को आस पास न पाकर सलवार और चड्डी सरकाकर मुतने बैठ गयी। सावित्री अपनी नज़रें बुर पर टिका दी और बुर से मूत की धार का इंतजार करने लगी। थोड़ी देर बाद मूत की एक मोती धार बुर से निकल कर जमीन पर गिरने लगी। लेकिन पंडित जी द्वारा गिराए गए वीर्य का कुछ अता पता नहीं चल रहा था। मनो सारा वीर्य बुर सोख गयी हो। सावित्री बार बार यही याद कर रही थी की कितना ज्यादे वीर्य गिराया था बुर के अंदर। अब तो केवल मूत ही निकल रही थी और वीर्य के स्थान पर कुछ लसलसा चीज़ भी पहले की तरह नहीं चू रही थी। मूत के बंद होते ही सावित्री के मन में निराशा और घबराहट जाग उठी। अब सावित्री के मन में केवल एक ही भय था की यदि उसे गर्भ ठहर गया तो क्या होगा। इस मुसीबत की घडी में कौन मदद कर सकता है। तभी उसे याद आया की चोदने के पहले पंडित जी ने उससे कहा था की लक्ष्मी का छोटा वाला लड़का उन्ही के चोदने से पैदा हुआ है। इस बात के मन में आत ही उसे और दर लगने लगा। उसके मन में यही याद आता की उसे भी गाँव के लक्ष्मी चाची के छोटे लड़के की तरह ही लड़का पैदा होगा। वह यही बार बार सोच रही थी की अब क्या करे। आखिर रोज की तरह माँ और छोटे भाई के साथ खाना खा कर रात को सोने चली गयी। उसे आज नीद भी बहुत तेज लग रही थी। उसका शरीर काफी हल्का और अच्छा लग रहा था। वह जीवन में पहली बार भोला पंडित जी के लन्ड पर झड़ी थी। बिस्तर पर जाते ही वह दिन भर की थकी होने के वजह से तुरंत नीद लग गयी। सुबह उसके माँ सीता ने जब उसे आवाज दे कर उठाया तो उसकी नीद खुली तो भोर हो चूका था। वह माँ के साथ शौच के लिए खेत के तरफ चल पड़ी । खेत में वह माँ से काफी दूर टट्टी करने के लिए बैठी क्योंकि उसे शक था की माँ की नज़र कहीं सूजे हुए बुर पर पड़ेगी तो पकड़ जाएगी। सावित्री टट्टी करते समय अपने बुर पर नज़र डाली तो देखा की सुजन लगभग ख़त्म हो गया है लेकिन बुर की फांके पहले की तरह आपस में सट कर एक लकीर नहीं बना पा रही थीं। हल्का सा बुर का मुंह खुला रह जा रहा था जैसा की उसके माँ सीता का बुर थी। शौच करने के बाद जब घर आई और बर्तन धोने के लिए बैठी तो उसे लगा की अब पिछले दिन की तरह कोई दर्द नहीं हो रहा था। लेकिन ज्योंही पंडित जी के वीर्य की याद आती सावित्री कांप सी जाती। उसका जीवन मानो अब ख़त्म हो गया है। घर पर नहाने के लिए सावित्री की माँ ने अपने घर के एक दीवाल के पास तीन और से घेर दिया था की कोई नहाते समय देख न सके और एक ओर से कपडे का पर्दा लगा होता था। सावित्री उसी में नहाने के लिए गयी और रोज की तरह पर्दा को लगा कर अपने कपडे उतारने लगी।
Sangharsh--11
savitri kafi takat laga kar chatai par se uthi lekin ekdam nangi hone ke vajah se samne lete huye pandit ji ko dekh kar use laaz lag rahi thi aur agle pal vah farsh par pade apne kapdon ko lene ke liye badhi lekin bur jhant aur chutad par chudai ras aur khoon se bheege hone ke vajah se ruk gayi aur mazboori me nange hi shauchalay ki or chal padi. usne jaise hi apne pawn aage badhana chahi ki laga bur me uthe dard se gir padegi. kafi himmat ke sath ek ek kadam badhate huye shauchalay tak gayi. chauki par lete lete pandit ji bhi nangi savitri ko shauchalay ke taraf jaate dekh rahe the. uske chutad kafi gol gol aur bade bade the. uski kamar ke pas ka kataav bhi kafi akarshak lag raha tha. dheere dheere vah shauchalay me jaa rahi thi. vah jaan rahi thi ki pandit ji use peeche se dekh rahe hain aur use laaz bhi lag rahi thi lekin use apna bur aur jhante, chutad par ka chudai ras aur khoon ko dhona bahut jaroori bhi tha kyonki yadi uske chaddi aur kapade me lag jati to uski maa sita use pakad leti. isi dar se vah apne bur jhant aur chutad ko dhone ke liye shauchalay me andar jaa kar darvaja me sitkani lagaa kar fir se apni chudi hui bur ko dekhi. aur khade khade ek baar hath bhi bur par firaya to meetha meetha dard ka abhas hua. fir bur dhone ke niyat se baithi lekin use kuch peshab ka abhas ho rahaa tha to baithe baithe hi peshab karne ki koshis ki to thodi der baad peshab ki dhar bur se niklne lagi. tabhi use yad aaya ki pandit ji ke lund se garm veerya bur ke andar hi gira tha. vah yahi soch rahi thi ki unka sara veerya uski bur me hi hai. aur bahar nahi nikla. fir usne peshab band hote hi sir ko jhukaate huye bur ke daraar me dekhi ki shayad veerya bhi bahar aa jaye. lekin bur ki daraar se bas ek laslassa cheez choo rahaa tha. vah samajh gayi ki yah veerya hi hai. lekin bas thodi si nikal kar rah gayi. fir savitri ne apne bur me andar se jor lagayi ki bur me gira pandit ji ka veerya bahar aa jaaye. lekin jor lagane par bur me ek dard ki lahar daud uthi aur bas safed rang ka laslasaa cheez fir kafi thoda sa choo kar rah gayaa. savitri yah samajh gayi ki uske bur me jab pandit ji veerya gira rahe the to unke lund bur ke kafi andar tha aur dher sara veerya kafi der tak giraate rahe. gire huye veerya ki anupaat me choo rahaa safed laslasaa cheez ya veerya kuch bhi nahi hai. yani pandit ji ke lund se gira hua lagbhag pura veerya bur ke andar hi rah gayaa tha. savitri ab kuch ghabra hi gayi thi. use apne gaon ki sahelion se yah maloom tha ki jab mard aurat ko chodta hai to chudai ke ant me apni lund se veerya bur me gira ya udel deta hai to aurat ko garbh thahar jata hai. vah yahi soch rahi thi ki pandit ji ne apna veerya andar gira chuke hain aur yadi yah veerya andar hi rah jaayega to uska bhi garbh thahar jayega. ab shauchalay me baithe baithe use kuch samajh nahi aa raha tha. usne fir ek bar apne bur ko dono hathon se thoda sa failayi to dard huaa aur fir jyada faila nahi payi. aur jitna faila tha utne me hi apne pet ke hisse se jaise peshab karne ke liye jor lagaate hain vaise hi jor lagayi ki veerya bur ke baahar aa jaaye lekin fir bas thoda sa safed laslasaa cheez choo kar rah gayaa. ************************************** achanak jigyasa vash savitri ne bur se choo rahi laslase cheez ko ungli par le kar naak ke pas laa kar sunghne lagi. uska mahan naak me jaate hi savitri ko laga ko fir se mut degi. gajab ki mahak thi veerya ki. savitri ke jeevan ka pahalaa mauka tha jab kisi mard ke veerya ko chhu aur soongh rahi thi. pata nahi kyon pandit ji ke veerya ka mahak use kafi accha lag rahaa tha. akhir pura veerya bur se na niklta dekh savitri apne bur jhant aur chutad par lage chudai ras aur khoon ko dhone lagi. savitri apne bur ko hi bar bar dekh rahi thi ki kaise bur ka munh thoda sa khula rah jaa rahaa hai. jabki ki chudai ke pahle kabhi bhi peshab karne baithti thi to bur ki dono fanken ekdam se sat jati thi. lekin pandit ji ke chodne ke bad bur di daraaren pahle ki tarah sat nahi paa rahi hain.fir khadi ho kar dheere se sitkani khol kar kamare aayi. usne dekha ki pandit ji apni langot pahan rahe the.unka lund ab chota hokar langot me sama chuka tha. uske bad pandit ji dhoti aur kurta bhi pahnane lage. savitri bhi kafi laaz aur sharm se apne chuchion aur bur ko hath se dhak kar farsh par pade kapkon ke taraf gayi. un kapado ko lekar sidhe dukaan wale hisse me chali gayi kyonki ab pandit ji ke saamne ek pal bhi nangi nahi rahna chahti thi. dukaan wale hisse me aakar pahle chaddi pahanane lagi jo ki kafi kasa ho rahaa tha. kisi tarah apni bur aur jhanton aur chutad ko chaddi me ghusa payi. purani bra ko bhi pahanane me bhi kafi mehnat karni padi. chuchion ko pandit ji ne kafi meez diya tha isliye bra ko dono chuchion par chadhaane par kuch dukh bhi rahaa tha. kisi tarah salwar aur sameez pahan kar dupatta lagaa lee. puri tarah se taiyaar huyi tabhi yaad aaya ki chatai me chudai ka ras aur bur se nikla khoon laga hai aur use bhi saaf karna hai. dukaan ke agle hisse se parde ko hata kar ander wale kamare me jhanki to dekhi ki pandit ji chauki par baith kar chatai par lage chudai ras aur khoon ko dekh rahe the. savitri ko kafi laaz lag rahi thi lekin bahut jaroori samajhte huye fir ander aayi aur chatai ko lekar bathroom me chali gayi aur usme lage chudai ras aur khoon ko dho kar saaf kar dee. pandit ji chauki par baithe hi baithe yah sab dekh rahe the. chatai ko saf karne ke baad jab savitri bathroom se bahar aai to dekhi ki pandit ji ab dukaan ka saamne wala darwaja khol rahe the kyonki ki ab 3 baz rahe the aur aaj ek ghante der se dukaan khul rahi thi. ****************************************
Re: संघर्ष
संघर्ष--12 सावित्री रोज केवल समीज ही निकाल कर नहा लेती थी। लेकिन आज वह सलवार और ब्रेसरी को भी निकल करकेवल अपने पुरानी चड्डी में हो गयी। आज पहली बार जवान होने के बाद केवल चड्डी में नहाने जा रही थी। पतानहीं क्यों भोला पंडित से चुद जाने के बाद अब ज्यादे शर्म लाज नहीं आ रही थी। वैसे सावित्री कोई देखने वाला नहींथा। लेकिन पता नहीं क्यों उसका मन कुछ रंगीन सा हो गया था। सवित्री की दोनों बड़ी बड़ी चूचियां काफी सुडौललग रही थीं। सावित्री अपने चुचिओं को देख कर मस्त हो गयी। उसे याद आया की इन्हीं दोनों चुचिओं को पंडित जीने कल खूब मीज़ा और चूसा। सावित्री को आज चूचियां कुछ बड़ी लग रही थीं। सावित्री जब पानी अपने शरीर पर डाल कर नहाने लगी तब उसका मन बड़ा ही रंगीन होने लगा। वह अपने चुचियोंको खूब मल मल कर नहाने लगी। बड़ा मज़ा आ रहा था। आज केवल चड्डी ही शरीर पर होने से एक सनसनाहट होरही थी। फिर चड्डी को सरकाकर बुर और झांटों में साबुन लगाकर नहाने लगी। बुर पर हाथ फेरने पर इतना मज़ाआता की सावित्री का जी चाहता की खूब हाथ से सहलाये। खैर जल्दी से नहा कर सावित्री दुकान पर जाने के लिए तैयार हो गयी। और आज उसका मन कुछ ज्यादा ही फड़करहा था की दुकान पर जल्दी से पहुंचे। शायद पिछले दिन लन्ड का स्वाद मिल जाने के वजह से । उसके मन मेंपंडित जी के प्रति एक आकर्षण पैदा होने लगा था। यह उसके शरीर की जरूरत थी। जो की पंडित जी पूरा करसकते थे। सावित्री के मन में जो आकर्षण भोला पंडित के तरफ हो रही थी उसे वह पूरी तरह समझ नहीं पा रहीथी। लेकिनउसे लगता था की पंडित जी ने उसे बहुत आनंद दिया। सावित्री उस आनंद को फिर से पाना चाहती थी। लेकिन जोसबसे चिंता की बात थी वह यह की पंडित जी का वीर्य जो बुर में गिरा उससे कहीं गर्भ ठहर न जाये। आखिर इसी उधेड़बुन में लगी सावित्री फिर दुकान पर पहुंची और रोज की तरह पंडित जी का प्रणाम की तो पंडितजी उसके और देखकर मुस्कुराते हुए उसे अन्दर आने के लिए कहा। सावित्री चुपचाप दुकान के अंदर आ गयी। यहपहली बार था की पंडित जी ने सावित्री को मुस्कुराकर दुकान के अन्दर आने के लिए कहे थे। सावित्री के मन मेंअपने शरीर की कीमत समझ में आने लगी। वह सोच रही थी की आज क्या होगा। पंडित जी कुर्सी पर बैठे ही बैठेसावित्री की और देख रहे थे। सावित्री अपने स्टूल पर बैठी नज़रें झुकाई हुई थी। उसे लाज लग रहा था। वह यही सोचरही थी की पंडित जी ने उसे कैसे नंगी कर के चोदा था। कैसे उसे चोदकर एक औरत बना दिया। और अब कुछ दुरीपर बैठ कर उसे देख रहे थे। उसके मन में यह बात भी आती थी की क्यों न वह पंडित जी से ही यह कहे की उसका पेट में जो वीर्य गिरा दिया है तो उसका क्या होगा। सावित्री को अपने सहेलिओं से इतना पता था की कुछ ऐसी दवाएं आती है जिसके खाने से गर्भ नहीं ठहरता है। लेकिन सावित्री के सामने सबसे बड़ी परेशानी यह थी की वह उस दवा को कहाँ से ले कर खाए। यही सब सोचते रही की दोपहर हो गयी और पंडित जी पिछले दिन की तरह दुकान को बंद कर के खाना खाने और आराम करने की तैयारी में लग गए। दूकान का बाहरी दरवाजा बंद होने के बाद सावित्री का दिल जोर जोर से धड़कने लगा। वह पंडित जी के हर गतिविधि को ध्यान से देखने लगी। पंडित जी दूकान के अंदर वाले हिस्से में आ गए। तब सावित्री ने चटाई को लेकर दूकान वाले हिस्से में आ गयी और चटाई बिछा कर बैठ गयी। उसके मन में एक घबराहट साफ दिख रहा था। अंदर वाले कमरे में पंडित जी की हर हरकत को सावित्री ध्यान से समझने की कोशिस करती। वह दूकान वाले हिस्से में होने के वजह से पंडित जी को देख तो नहीं पा रही थी लेकिन अपने कान से अंदर की हर हरकत को समझने की कोशिस करती थी। उसे लगा की पंडित जी दोपहर का खाना खा रहे हैं। थोड़ी देर बाद उनके खर्राटे की आवाज सावित्री को सुनाई देने लगी तब वह समझ गयी की पंडित जी खाना खाने के बाद कल की तरह अब आराम करने लगे। तब दुकान वाले हिस्से में चटाई पर बैठी सावित्री भी लेट गयी और दुकान में रखे सामानों को लेटे लेटे देखने लगी। उसके मन में पिछले दिन की चुदाई की बात याद आने लगी। दोपहर के सन्नाटे में दुकान के भीतर चटाई लेती सावित्री का भी मन अब जवानी के झोंके में कुछ बहकने सा लगा ******************************
*********** उसके मन में एक अलग तरह की उमंग जन्म लेने लगा था। ऐसा उसे पहले कभी भी नहीं होते था। पिछले दिन जो कुछ भी पंडित जी ने किया उसे बार बार यद् आने लगा। लेटे लेटे उन बातों को सोचना बहुत ही अच्छा लगने लगा था। ऐसा लगता मानो उन्होंने ने कुछ भी गलत नहीं किया बल्कि जो कुछ किया उसके साथ बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। शायद यह सावित्री के जवान उम्र और गर्म खून होने के वजह से हो रहा था। कुछ ही देर पहले उसके दिमाग में जो पंडित जी के वीर्य को ले कर डर था कहीं ख़त्म सा हो गया था। वह यही नहीं सोच पा रही थी कि उसका मन ऐसा क्यों बदल सा रहा है। सावित्री का अनाड़ीपन अपने धारणा के अंदर हो रहे बदलाव को समझने में नाकाम हो रहा था। शायद सावित्री के शरीर कि भूख ही इसके लिए जिम्मेदार थी। लेकिन यह भूख पहले क्यों नहीं लगाती थी सिर्फ कल कि घटना के बाद ही इस भूख का लगना सुरु हुआ था? शायद हाँ । सावित्री के मन कि स्थिति काफी पहेली कि तरह होती जा रही थी। सावित्री को लग रहा था कि पंडित जी के लन्ड ने जहाँ बुर के शक्ल को बदल दिया वहीँ उनके गर्म वीर्य ने सावित्री के सोच को बदल कर जवान कर दिया। मानो वीर्य नहीं एक ऐसा तेजाब था जो सावित्री के अंदर के शर्म और लाज को काफी हद तक गला दिया हो। सावित्री के मन में जो कुछ उठ रहा था वह कल के पहले कभी नहीं उठता था। उसे याद है कि कैसे उसकी माँ सीता ने सावित्री की इज्जत को गाँव के आवारों से बचाने के लिए कितनी संघर्ष किया। सावित्री की पढाई आठवीं पूरी होने के बाद ही बंद करा कर घर में ही रखा ताकि गाँव के गंदे माहौल में सावित्री कहीं बिगड़ न जाये। लेकिन अब सावित्री को यह सब कुछ सही नहीं लग रहा था। जहाँ सावित्री की माँ को इज्जत से रहने की जरूरत थी वहीँ अब सावित्री को अपने शरीर के भूख को मिटाने की जरूरत महसूस हो रही थी। आखिर यह भूख पहले क्यों नहीं लगी? कुछ देर सोचने के बाद सावित्री के मन में एक बात समझ में आई की उसे तो पता ही नहीं था की मर्द जब औरत को चोदता है तो इतना मज़ा आता है। फिर दूसरा सवाल उठा की आखिर क्यों नहीं पता था कि इतना मजा आता है? इसका जबाव मन में आते ही सावित्री को कुछ गुस्सा लगने लगा। क्योंकि इसका जबाव कुछ अलग था। सावित्री समझ गयी की कभी वह चुद ही नहीं पाई थी किसी से। बस उसे कभी कभी किसी किसी से पता चलता था की गाँव की फलां लड़की या औरत किसी के साथ पकड़ी गयी या देखि गयी। और उसके बाद अपने माँ से ढेर सारा उपदेश सुनने को मिलता की औरत या लड़की को इज्जत से रहनी चाहिए और सावित्री शायद यही सब सुन कर कई सालों से जवान होने के बावजूद घर में ही रह गयी और किसी मर्द का स्वाद कभी पा न सकी और जान न सकी की मर्द का मजा क्या होता है। ये तो शायद पैसे की मज़बूरी थी जिसके वजह से भोला पंडित के दुकान में काम करने के लिए आना पड़ा और मौका देख कर भोला पंडित ने सावित्री को जवानी का महत्व बता और दिखा दिया था। उसके मन में जो गुस्सा उठा था वह माँ के ऊपर ही था। अब सावित्री का मन अपने शरीर की जरूरत की वजह से अपनी माँ की व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करना सुरु कर दिया था। उसे लगा की अपनी माँ सीता का उपदेश सुन कर घर में ही बंद रहना शायद काफी बेवकूफी का काम था। वह अपने कुछ सहेलिओं के बारे में जानती थी जो इधर उधर से मज़ा ले लेती थीं लेकिन सावित्री ने अपने माँ के उपदेशों के प्रभाव में आ कर कभी कोई ऐसी इच्छा मन में पनपने नहीं दिया था। सावित्री दुकान वाले हिस्से में लेती हुई यही सब सोच रही थी। पंडित जी अंदर वाले कमरे में चौकी पर खर्राटे ले रहे था। सावित्री ने अपने एक हाथ को अपने सलवार के ऊपर से ही बुर और झांटों को सहलाया और काफी आनंद मिला और यह भी अनुभव हुआ की अब दर्द ख़त्म हो गया था जो कल सील तोड़ने के वजह से हुआ था। कुछ सोच कर सावित्री चटाई में लेती हुई एक तरफ करवट हुई और सोचने लगी कि आज क्या होगा जब पंडित जी सो कर उठेंगे। यह बात मन में आते ही सावित्री एकदम सनसनाती हुई मस्त सी हो गयी। सावित्री के दिमाग में पंडित जी का लन्ड दिखने लगा। उसे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। उसने दुबारा अपने हाथ को बुर पर ले जाकर सलवार के ऊपर से ही थोडा सहलाया तो उसका बदन एक बार फिर झनझना उठा। दोपहेर का सन्नाटा ही था जो सावित्री के शरीर मे एक आग धधकने का काम कर रहा था. उसके शरीर मे जवानी की आग लगना सुरू हो गया था. वह पंडित जी के बारे मे सोचना सुरू कर दी. एक दिन पहले जिस काम से वह इतना डरती थी आज उसे उसी काम की ज़रूरत समझ मे आने लगी थी. चटाई पर लेटे लेटे ही उसका मन अब लहराने लगा था. वह यही सोच रही थी कि आज पंडित जी सोकर उठेंगे तो उसे बुलाकर चोदेन्गे. ऐसी सोच उसे मस्त कर दे रही थी. वह यही बार बार मन मे ला रही थी कि आज फिर से चुदाई होगी. शायद सावित्री कुछ ज़्यादा ही जल्दबाजी मे थी इसी वजह से उसको पंडित जी का खर्राटा ठीक नही लग रहा था. उसे इस बात की जल्दी थी कि पंडित जी उठे और उसे अंदर वाले कमरे मे बुला कर चोद डालें. उसका ध्यान पंडित जी के खर्राटे और अपनी शरीर की मस्ती पर ही था. आख़िर यह सब होते करीब एक घंटा बीता ही था का पंडित जी का खर्राटा बंद हो गया. और अगले पल सावित्री को लगा कि पंडित जी चौकी पर उठकर बैठ गये हैं. सावित्री का कलेजा धक धक करने लगा. सावित्री भी अपने चटाई पर उठकर बैठ गयी. उसे कुछ घबराहट सी हो रही थी. कुछ पल पहले ही वह सोच रही थी कि पंडित जी आज भी चोदेन्गे तो बहुत अच्छा होगा लेकिन जब पंडित जी की नीद खुली तब सावित्री को डर लगने लगा. शायद उसके अंदर इतनी हिम्मत नही थी कि वह उनका सामना आसानी से कर सके. थोड़ी देर बाद शौचालय से पंडित जी के पेशाब करने की आवाज़ आने लगी. सावित्री यह आवाज़ सुनकर लगभग हिल सी गई. चटाई मे बैठे बैठे अपने दुपट्टे को भी ठीक ठाक कर लिया. अब अगले पल मे होने वाली घटना का सामना करने के लिए हिम्मत जुटा रही थी. तभी पंडित जी पेशाब करके वापस आए और चौकी पर बैठ गये. तभी सावित्री के कान मे एक आवाज़ आई और वह कांप सी गई. पंडित जी ने उसे पुकारा था "आओ इधेर" सावित्री को लगा कि वह यह आवाज़ सुनकर बेहोश हो जाएगी. अगले पल सावित्री चटाई पर से उठी और अंदर के हिस्से मे आ गयी. सावित्री ने देखा कि पंडित जी चौकी पर बैठे हैं और उसी की ओर देख रहे हैं. अगले पल पंडित जी ने कहा "चटाई ला कर बिच्छा यहाँ और तैयार हो जा, अभी काफ़ी समय है दुकान खुलने मे" सावित्री समझ गयी कि पंडित जी क्या करना चाहते हैं. उसने चटाई ला कर पिछले दिन वाली जगह यानी चौकी के बगल मे बिछा दी. अब पंडित जी के कहे गये शब्द यानी तैयारी के बारे मे सोचने लगी. उसका मतलब पेशाब करने से था. उसे मालूम था कि पंडित जी ने उसे तैयार यानी पेशाब कर के चटाई पर आने के लिए कहे हैं. लेकिन उनके सामने ही शौचालय मे जाना काफ़ी शर्म वाला काम लग रहा था और यही सोच कर वह एक मूर्ति की तरह खड़ी थी. तभी पंडित जी ने बोला "पेशाब तो कर ले, नही तो तेरी जैसी लौंडिया पर मेरे जैसा कोई चढ़ेगा तो मूत देगी तुरंत" दूसरे पल सावित्री शौचालय के तरफ चल दी. शौचालय मे अंदर आ कर सीत्कनी बंद कर के ज्योन्हि अपनी सलवार के जरवाँ पर हाथ लगाई कि मन मस्ती मे झूम उठा. उसके कानो मे पंडित जी की चढ़ने वाली बात गूँज उठी. सावित्री का मन लहराने लगा. वह समझ गयी कि अगले पल मे उसे पंडित जी अपने लंड से चोदेन्गे. जरवाँ के खुलते ही सलवार को नीचे सरकई और फिर चड्डी को भी सरकाकर मूतने के लिए बैठ गयी. सावित्री का मन काफ़ी मस्त हो चुका था. उसकी साँसे तेज चल रही थी. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी. फिर मूतने के लिए जोरे लगाई तो मूत निकालने लगा. आज मूत की धार काफ़ी मोटी थी. मूतने के बाद खड़ी हुई और चड्डी उपर सरकाने से पहले एक हाथ से अपनी बुर को सहलाई और बुर के दोनो फांकों को अपने उंगलिओ से टटोल कर देखा तो पाया कि सूजन और दर्द तो एकदम नही था लेकिन बुर की फांके अब पहले की तरह आपस मे सॅट कर लकीर नही बना पा रही थी. चड्डी पहन कर जब सलवार की जरवाँ बाँधने लगी तो सावित्री को लगा कि उसके हाथ कांप से रहे थे. फिर सिटकनी खोलकर बाहर आई तो देखी कि पंडित जी अपना कुर्ता निकाल कर केवल धोती मे ही चटाई पर बैठे उसी की ओर देख रहे थे. ***********************************
dopaher ka sannata hi tha jo savitri ke shareer me ek aag dhadhkane ka kam kar raha tha. uske shareer me jawani ki aag lagna suru ho gaya tha. vah pandit ji ke baare me sochna suru kar di. ek din pahle jis kam se vah itna darti thi aaj use usi kam ki jaroorat samajh me aane lagi thi. chatai par lete lete hi uska man ab lahrane lagaa tha. vah yahi soch rahi thi ki aj pandit ji sokar uthenge to use bulakar chodenge. aisi soch use mast kar de rahi thi. vah yahi bar bar man me laa rahi thi ki aaj fir se chudai hogi. shayad savitri kuch jyada hi juldbaji me thi isi vajah se usko pandit ji ka kharrata use theek nahi lag rahaa tha. use is baat ki jaldi thi ki pandit ji uthe aur use ander wale kamre me bula kar chod dalen. uska dhyan pandit ji ke kharrate aur apni shreer ki masti par hi thi. akhir yah sab hote kareeb ek ghanta beeta hi tha ki pandit ji ka kharrata band ho gayaa. aur agle pal savitri ko laga ki pandit ji chauki par uthkar baith gaye hain. savitri ka kaleja dhak dhak karne lagaa. savitri bhi apne chatai par uthkar baith gayi. use kuch ghabrahat si ho rahi thi. kuch pal pahle hi vah soch rahi thi ki pandit ji aaj bhi chodenge to bahut achha hoga lekin jab pandit ji ki need khuli tab savitri ko dar lagne lagaa. shayad uske ander itni himmat nahi thi ki vah unka samna asaani se kar sake. thodi der bad shauchalay se pandit ji ke peshab karne ki awaz aane lagi. savitri yah awaz sunkar lagbhag hil see gai. chatai me baithe baithe apne dupatte ko bhi theek thaak kar liya. ab agle pal me hone wale ghatana ke samana karne ke liye himmat juta rahi thi. tabhi pandit ji peshab karke vapas aaye aur chauki par baith gaye. tabhi savitri ke kaan me ek awaaz ayi aur vah kanp si gai. pandit ji ne use pukara tha "aao idher" savitri ko laga ki vah yah awaz sunkar behosh ho jayegi. agle pal savitri chatai par se uthi aur ander ke hisse me aa gayi. savitri ne dekha ki pandit ji chauki par baithe hain aur usi ki or dekh rahe hain. agle pal pandit ji ne kaha "chatai la kar bichha yahan aur taiyar ho jaa, abhi kafi samay hai dukaan khulne me" savitri samajh gayi ki pandit ji kya karna chahte hain. usne chatai la kar pichle din wale jagah yani chauki ke bagal me bicha dee. ab pandit ji ke kahe gaye shabd yani taiyari ke baare me sochne lagi. uska matlab peshab karne se tha. use maloom tha ki pandit ji ne use taiyar yani peshab kar ke chatai par aane ke liye kahe hain. lekin unke samne hi shauchalay me jana kafi sharm wala kam lag raha tha aur yahi soch kar vah ek murti ki tarah khadi thi. tabhi pandit ji ne bola "peshab to kar le, nahi to teri jaisi laundia par mere jaisa koi chadega to moot degi turant" dusare pal savitri shauchalay ke taraf chal dee. shauchalay me ander aa kar sitkani band kar ke jyonhi apne salwaar ke jarvan par hath lagayi ki man masti me jhoom utha. uske kano me pandit ji ki chadne wali baat goonj uthi. savitri ka man lahrane lagaa. vah samajh gayi ki agle pal me use pandit ji apne lund se chodenge. jarvan ke khulte hi salwar ko niche sarkai aur fir chaddi ko bhi sarkakar mutne ke liye baith gayi. savitri ka man kafi mast ho chukaa tha. uski sanse tej chal rahi thi. vah ander hi ander bahut khush thi. fir mutne ke liye jore lagai to moot nikalne lagaa. aaj moot ki dhaar kafi moti thi. mutne ke bad khadi hui aur chaddi upar sarkane se pahle ek hath se apne bur ko sahlai aur bur ke dono fankon ko apne unglion se tatol kar dekha to paya ki sujan aur dard to ekdam nahi tha lekin bur ki fanke ab pahle ki tarah apas me sat kar lakeer nahi banaa paa rahi thi. chaddi pahan kar jab salwar ki jarvan bandhne lagi to savitri ko lagaa ki uske hath kanp se rahe the. fir sitkni kholkar bahar ayi to dekhi ki pandit ji apna kurta nikal kar keval dhoti me hi chatai par baithe usi ki or dekh rahe the.
*********** उसके मन में एक अलग तरह की उमंग जन्म लेने लगा था। ऐसा उसे पहले कभी भी नहीं होते था। पिछले दिन जो कुछ भी पंडित जी ने किया उसे बार बार यद् आने लगा। लेटे लेटे उन बातों को सोचना बहुत ही अच्छा लगने लगा था। ऐसा लगता मानो उन्होंने ने कुछ भी गलत नहीं किया बल्कि जो कुछ किया उसके साथ बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था। शायद यह सावित्री के जवान उम्र और गर्म खून होने के वजह से हो रहा था। कुछ ही देर पहले उसके दिमाग में जो पंडित जी के वीर्य को ले कर डर था कहीं ख़त्म सा हो गया था। वह यही नहीं सोच पा रही थी कि उसका मन ऐसा क्यों बदल सा रहा है। सावित्री का अनाड़ीपन अपने धारणा के अंदर हो रहे बदलाव को समझने में नाकाम हो रहा था। शायद सावित्री के शरीर कि भूख ही इसके लिए जिम्मेदार थी। लेकिन यह भूख पहले क्यों नहीं लगाती थी सिर्फ कल कि घटना के बाद ही इस भूख का लगना सुरु हुआ था? शायद हाँ । सावित्री के मन कि स्थिति काफी पहेली कि तरह होती जा रही थी। सावित्री को लग रहा था कि पंडित जी के लन्ड ने जहाँ बुर के शक्ल को बदल दिया वहीँ उनके गर्म वीर्य ने सावित्री के सोच को बदल कर जवान कर दिया। मानो वीर्य नहीं एक ऐसा तेजाब था जो सावित्री के अंदर के शर्म और लाज को काफी हद तक गला दिया हो। सावित्री के मन में जो कुछ उठ रहा था वह कल के पहले कभी नहीं उठता था। उसे याद है कि कैसे उसकी माँ सीता ने सावित्री की इज्जत को गाँव के आवारों से बचाने के लिए कितनी संघर्ष किया। सावित्री की पढाई आठवीं पूरी होने के बाद ही बंद करा कर घर में ही रखा ताकि गाँव के गंदे माहौल में सावित्री कहीं बिगड़ न जाये। लेकिन अब सावित्री को यह सब कुछ सही नहीं लग रहा था। जहाँ सावित्री की माँ को इज्जत से रहने की जरूरत थी वहीँ अब सावित्री को अपने शरीर के भूख को मिटाने की जरूरत महसूस हो रही थी। आखिर यह भूख पहले क्यों नहीं लगी? कुछ देर सोचने के बाद सावित्री के मन में एक बात समझ में आई की उसे तो पता ही नहीं था की मर्द जब औरत को चोदता है तो इतना मज़ा आता है। फिर दूसरा सवाल उठा की आखिर क्यों नहीं पता था कि इतना मजा आता है? इसका जबाव मन में आते ही सावित्री को कुछ गुस्सा लगने लगा। क्योंकि इसका जबाव कुछ अलग था। सावित्री समझ गयी की कभी वह चुद ही नहीं पाई थी किसी से। बस उसे कभी कभी किसी किसी से पता चलता था की गाँव की फलां लड़की या औरत किसी के साथ पकड़ी गयी या देखि गयी। और उसके बाद अपने माँ से ढेर सारा उपदेश सुनने को मिलता की औरत या लड़की को इज्जत से रहनी चाहिए और सावित्री शायद यही सब सुन कर कई सालों से जवान होने के बावजूद घर में ही रह गयी और किसी मर्द का स्वाद कभी पा न सकी और जान न सकी की मर्द का मजा क्या होता है। ये तो शायद पैसे की मज़बूरी थी जिसके वजह से भोला पंडित के दुकान में काम करने के लिए आना पड़ा और मौका देख कर भोला पंडित ने सावित्री को जवानी का महत्व बता और दिखा दिया था। उसके मन में जो गुस्सा उठा था वह माँ के ऊपर ही था। अब सावित्री का मन अपने शरीर की जरूरत की वजह से अपनी माँ की व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह करना सुरु कर दिया था। उसे लगा की अपनी माँ सीता का उपदेश सुन कर घर में ही बंद रहना शायद काफी बेवकूफी का काम था। वह अपने कुछ सहेलिओं के बारे में जानती थी जो इधर उधर से मज़ा ले लेती थीं लेकिन सावित्री ने अपने माँ के उपदेशों के प्रभाव में आ कर कभी कोई ऐसी इच्छा मन में पनपने नहीं दिया था। सावित्री दुकान वाले हिस्से में लेती हुई यही सब सोच रही थी। पंडित जी अंदर वाले कमरे में चौकी पर खर्राटे ले रहे था। सावित्री ने अपने एक हाथ को अपने सलवार के ऊपर से ही बुर और झांटों को सहलाया और काफी आनंद मिला और यह भी अनुभव हुआ की अब दर्द ख़त्म हो गया था जो कल सील तोड़ने के वजह से हुआ था। कुछ सोच कर सावित्री चटाई में लेती हुई एक तरफ करवट हुई और सोचने लगी कि आज क्या होगा जब पंडित जी सो कर उठेंगे। यह बात मन में आते ही सावित्री एकदम सनसनाती हुई मस्त सी हो गयी। सावित्री के दिमाग में पंडित जी का लन्ड दिखने लगा। उसे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था। उसने दुबारा अपने हाथ को बुर पर ले जाकर सलवार के ऊपर से ही थोडा सहलाया तो उसका बदन एक बार फिर झनझना उठा। दोपहेर का सन्नाटा ही था जो सावित्री के शरीर मे एक आग धधकने का काम कर रहा था. उसके शरीर मे जवानी की आग लगना सुरू हो गया था. वह पंडित जी के बारे मे सोचना सुरू कर दी. एक दिन पहले जिस काम से वह इतना डरती थी आज उसे उसी काम की ज़रूरत समझ मे आने लगी थी. चटाई पर लेटे लेटे ही उसका मन अब लहराने लगा था. वह यही सोच रही थी कि आज पंडित जी सोकर उठेंगे तो उसे बुलाकर चोदेन्गे. ऐसी सोच उसे मस्त कर दे रही थी. वह यही बार बार मन मे ला रही थी कि आज फिर से चुदाई होगी. शायद सावित्री कुछ ज़्यादा ही जल्दबाजी मे थी इसी वजह से उसको पंडित जी का खर्राटा ठीक नही लग रहा था. उसे इस बात की जल्दी थी कि पंडित जी उठे और उसे अंदर वाले कमरे मे बुला कर चोद डालें. उसका ध्यान पंडित जी के खर्राटे और अपनी शरीर की मस्ती पर ही था. आख़िर यह सब होते करीब एक घंटा बीता ही था का पंडित जी का खर्राटा बंद हो गया. और अगले पल सावित्री को लगा कि पंडित जी चौकी पर उठकर बैठ गये हैं. सावित्री का कलेजा धक धक करने लगा. सावित्री भी अपने चटाई पर उठकर बैठ गयी. उसे कुछ घबराहट सी हो रही थी. कुछ पल पहले ही वह सोच रही थी कि पंडित जी आज भी चोदेन्गे तो बहुत अच्छा होगा लेकिन जब पंडित जी की नीद खुली तब सावित्री को डर लगने लगा. शायद उसके अंदर इतनी हिम्मत नही थी कि वह उनका सामना आसानी से कर सके. थोड़ी देर बाद शौचालय से पंडित जी के पेशाब करने की आवाज़ आने लगी. सावित्री यह आवाज़ सुनकर लगभग हिल सी गई. चटाई मे बैठे बैठे अपने दुपट्टे को भी ठीक ठाक कर लिया. अब अगले पल मे होने वाली घटना का सामना करने के लिए हिम्मत जुटा रही थी. तभी पंडित जी पेशाब करके वापस आए और चौकी पर बैठ गये. तभी सावित्री के कान मे एक आवाज़ आई और वह कांप सी गई. पंडित जी ने उसे पुकारा था "आओ इधेर" सावित्री को लगा कि वह यह आवाज़ सुनकर बेहोश हो जाएगी. अगले पल सावित्री चटाई पर से उठी और अंदर के हिस्से मे आ गयी. सावित्री ने देखा कि पंडित जी चौकी पर बैठे हैं और उसी की ओर देख रहे हैं. अगले पल पंडित जी ने कहा "चटाई ला कर बिच्छा यहाँ और तैयार हो जा, अभी काफ़ी समय है दुकान खुलने मे" सावित्री समझ गयी कि पंडित जी क्या करना चाहते हैं. उसने चटाई ला कर पिछले दिन वाली जगह यानी चौकी के बगल मे बिछा दी. अब पंडित जी के कहे गये शब्द यानी तैयारी के बारे मे सोचने लगी. उसका मतलब पेशाब करने से था. उसे मालूम था कि पंडित जी ने उसे तैयार यानी पेशाब कर के चटाई पर आने के लिए कहे हैं. लेकिन उनके सामने ही शौचालय मे जाना काफ़ी शर्म वाला काम लग रहा था और यही सोच कर वह एक मूर्ति की तरह खड़ी थी. तभी पंडित जी ने बोला "पेशाब तो कर ले, नही तो तेरी जैसी लौंडिया पर मेरे जैसा कोई चढ़ेगा तो मूत देगी तुरंत" दूसरे पल सावित्री शौचालय के तरफ चल दी. शौचालय मे अंदर आ कर सीत्कनी बंद कर के ज्योन्हि अपनी सलवार के जरवाँ पर हाथ लगाई कि मन मस्ती मे झूम उठा. उसके कानो मे पंडित जी की चढ़ने वाली बात गूँज उठी. सावित्री का मन लहराने लगा. वह समझ गयी कि अगले पल मे उसे पंडित जी अपने लंड से चोदेन्गे. जरवाँ के खुलते ही सलवार को नीचे सरकई और फिर चड्डी को भी सरकाकर मूतने के लिए बैठ गयी. सावित्री का मन काफ़ी मस्त हो चुका था. उसकी साँसे तेज चल रही थी. वह अंदर ही अंदर बहुत खुश थी. फिर मूतने के लिए जोरे लगाई तो मूत निकालने लगा. आज मूत की धार काफ़ी मोटी थी. मूतने के बाद खड़ी हुई और चड्डी उपर सरकाने से पहले एक हाथ से अपनी बुर को सहलाई और बुर के दोनो फांकों को अपने उंगलिओ से टटोल कर देखा तो पाया कि सूजन और दर्द तो एकदम नही था लेकिन बुर की फांके अब पहले की तरह आपस मे सॅट कर लकीर नही बना पा रही थी. चड्डी पहन कर जब सलवार की जरवाँ बाँधने लगी तो सावित्री को लगा कि उसके हाथ कांप से रहे थे. फिर सिटकनी खोलकर बाहर आई तो देखी कि पंडित जी अपना कुर्ता निकाल कर केवल धोती मे ही चटाई पर बैठे उसी की ओर देख रहे थे. ***********************************
dopaher ka sannata hi tha jo savitri ke shareer me ek aag dhadhkane ka kam kar raha tha. uske shareer me jawani ki aag lagna suru ho gaya tha. vah pandit ji ke baare me sochna suru kar di. ek din pahle jis kam se vah itna darti thi aaj use usi kam ki jaroorat samajh me aane lagi thi. chatai par lete lete hi uska man ab lahrane lagaa tha. vah yahi soch rahi thi ki aj pandit ji sokar uthenge to use bulakar chodenge. aisi soch use mast kar de rahi thi. vah yahi bar bar man me laa rahi thi ki aaj fir se chudai hogi. shayad savitri kuch jyada hi juldbaji me thi isi vajah se usko pandit ji ka kharrata use theek nahi lag rahaa tha. use is baat ki jaldi thi ki pandit ji uthe aur use ander wale kamre me bula kar chod dalen. uska dhyan pandit ji ke kharrate aur apni shreer ki masti par hi thi. akhir yah sab hote kareeb ek ghanta beeta hi tha ki pandit ji ka kharrata band ho gayaa. aur agle pal savitri ko laga ki pandit ji chauki par uthkar baith gaye hain. savitri ka kaleja dhak dhak karne lagaa. savitri bhi apne chatai par uthkar baith gayi. use kuch ghabrahat si ho rahi thi. kuch pal pahle hi vah soch rahi thi ki pandit ji aaj bhi chodenge to bahut achha hoga lekin jab pandit ji ki need khuli tab savitri ko dar lagne lagaa. shayad uske ander itni himmat nahi thi ki vah unka samna asaani se kar sake. thodi der bad shauchalay se pandit ji ke peshab karne ki awaz aane lagi. savitri yah awaz sunkar lagbhag hil see gai. chatai me baithe baithe apne dupatte ko bhi theek thaak kar liya. ab agle pal me hone wale ghatana ke samana karne ke liye himmat juta rahi thi. tabhi pandit ji peshab karke vapas aaye aur chauki par baith gaye. tabhi savitri ke kaan me ek awaaz ayi aur vah kanp si gai. pandit ji ne use pukara tha "aao idher" savitri ko laga ki vah yah awaz sunkar behosh ho jayegi. agle pal savitri chatai par se uthi aur ander ke hisse me aa gayi. savitri ne dekha ki pandit ji chauki par baithe hain aur usi ki or dekh rahe hain. agle pal pandit ji ne kaha "chatai la kar bichha yahan aur taiyar ho jaa, abhi kafi samay hai dukaan khulne me" savitri samajh gayi ki pandit ji kya karna chahte hain. usne chatai la kar pichle din wale jagah yani chauki ke bagal me bicha dee. ab pandit ji ke kahe gaye shabd yani taiyari ke baare me sochne lagi. uska matlab peshab karne se tha. use maloom tha ki pandit ji ne use taiyar yani peshab kar ke chatai par aane ke liye kahe hain. lekin unke samne hi shauchalay me jana kafi sharm wala kam lag raha tha aur yahi soch kar vah ek murti ki tarah khadi thi. tabhi pandit ji ne bola "peshab to kar le, nahi to teri jaisi laundia par mere jaisa koi chadega to moot degi turant" dusare pal savitri shauchalay ke taraf chal dee. shauchalay me ander aa kar sitkani band kar ke jyonhi apne salwaar ke jarvan par hath lagayi ki man masti me jhoom utha. uske kano me pandit ji ki chadne wali baat goonj uthi. savitri ka man lahrane lagaa. vah samajh gayi ki agle pal me use pandit ji apne lund se chodenge. jarvan ke khulte hi salwar ko niche sarkai aur fir chaddi ko bhi sarkakar mutne ke liye baith gayi. savitri ka man kafi mast ho chukaa tha. uski sanse tej chal rahi thi. vah ander hi ander bahut khush thi. fir mutne ke liye jore lagai to moot nikalne lagaa. aaj moot ki dhaar kafi moti thi. mutne ke bad khadi hui aur chaddi upar sarkane se pahle ek hath se apne bur ko sahlai aur bur ke dono fankon ko apne unglion se tatol kar dekha to paya ki sujan aur dard to ekdam nahi tha lekin bur ki fanke ab pahle ki tarah apas me sat kar lakeer nahi banaa paa rahi thi. chaddi pahan kar jab salwar ki jarvan bandhne lagi to savitri ko lagaa ki uske hath kanp se rahe the. fir sitkni kholkar bahar ayi to dekhi ki pandit ji apna kurta nikal kar keval dhoti me hi chatai par baithe usi ki or dekh rahe the.