भूत बंगला पार्ट--5
गतान्क से आगे.....................
मुझे यकीन नही हो रहा था के वो मेरे सामने ही कपड़े बदल रही है. उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ किया हुआ हुआ कमर मेरी तरफ थी. सावली कमर पर वाइट ब्रा के स्ट्रॅप्स देख कर जैसे मेरे मुँह में पानी भर आया. वो उसी हालत में खड़ी अपना बॅग खोलकर कपड़े निकालने लगी. एक कपड़ा उसने खींच कर बाहर निकाला और देखा तो वो स्कर्ट थी. उसने एक पल के लिए दोबारा बॅग में हाथ डालने की सोची पर फिर एक कदम पिछे को हुई और अपनी पेंट खोलने लगी.
मैं आँखें फाडे उसको देख रहा था. मेरा मन एक तरफ तो मुझे घूम कर दूसरी और देखने को कह रहा था और दूसरी तरफ मेरा दिल ये भी चाह रहा था के मैं उसको देखता रहू. ये मेरी ज़िंदगी में पहली बार था के कोई ऐसी लड़की जिससे मेरा इस तरह का कोई रिश्ता नही था बेझिझक मेरे सामने कपड़े बदल रही थी. अगले ही पल उसने अपनी पेंट खोली और और नीचे को झुक कर उतार दी.
अब वो मेरे सामने सिर्फ़ एक वाइट कलर की ब्रा और ब्लू कलर की पॅंटी पहने मेरी तरफ पीठ किए खड़ी थी. उसकी पॅंटी ने उसकी गांद को पूरी तरह ढक रखा था पर फिर भी उस पतले कपड़े में हिलते हुए उसकी गांद के कुवर्व्स सॉफ दिखाई दे रहे थे. मेरी नज़र कभी उसकी कमर पर जाती तो कभी उसकी गांद पर. किसी गूंगे की तरह खड़ा मैं बस उसको चुप चाप देख रहा था. मैं सोच रहा था के वो यूँ ही मेरी तरफ पीठ किए स्कर्ट पहनेगी पर मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा हुआ. वो स्कर्ट हाथ में पकड़े मेरी तरफ घूम गयी.
आज पहली बार उसको आधी नंगी हालत में देख कर मुझे एहसास हुआ के उसको बनाने वाले ने भले शकल सूरत कोई ख़ास उसको नही दी थी पर वो कमी उसका जिस्म बनाने में पूरी कर दी थी. उसका जिस्म हर तरफ से कसा हुआ और कहीं ज़रा भी ढीलापन नही थी. मैने एक अपने सामने सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी में खड़ी प्रिया को उपेर से नीचे तक देखा. वो फ़ौरन समझ गयी के मैं क्या देख रहा हूँ और हस पड़ी.
"ओह प्लीज़" वो बोली "अब तुम फिर मेरे ब्रेस्ट्स को घूर्ना मत शुरू कर देना"
मेरी शकल ऐसी हो गयी जैसे किसी चोर की चोरी पकड़ी गयी हो.
"नही ऐसा कुच्छ नही है" मैने झेन्प्ते हुए कहा
उसने फुल लेंग्थ स्कर्ट को एक बार झटका और फिर पहेन्ने के लिए सामने की और झुकी. उसकी दोनो छातिया जो अब तक मैं ब्रा के उपेर से देख रहा था उसके झुकने की वजह से आधी मेरे सामने आ गयी. भले ये एक पल के लिए ही था पर मैने अंदाज़ा लगा लिया के उसकी चूचिया बहुत बड़ी हैं और कहीं अगर उसके जिस्म पर ढीला पन है तो वो वहाँ है. वो शायद इतनी बड़ी होने की वजह से अपने वज़न से थोड़ा ढालकी हुई थी. स्कर्ट टाँगो के उपेर खींचती हुई वो उठ खड़ी हुई और नीचे से अपने बदन को ढक लिया. उसके बाद उसने बॅग से टॉप निकाला और उसको पहेन्ने के लिए हाथ उपेर उठाए.
"आह" उसके मुँह से एक आह निकली
"क्या हुआ?" मैने पुचछा
"ब्रा शाद टाइट आ गयी है. सुबह भी कपड़े बदलते हुए पिछे कमर पर स्ट्रॅप चुभ सा रहा था" उसने टॉप अपने गले से नीचे उतारते हुए कहा
"जाके बदल आना" मैं पहली बार अपने सामने एक लड़की को अपनी सेक्रेटरी के रूप में देख रहा था. आज से पहले तो मैने जैसे कभी उसपर इतना ध्यान दिया ही नही था.
"हां या शायद मुझे आदत नही है इसलिए थोड़ी मुश्किल हो रही है" कहते हुए उसने सामने से अपनी चूचियो को पकड़ा और हल्का सा इधर उधर करते हुए ब्रा के अंदर सेट करने लगी.
मेरा मन किया के मैं उसके हाथ सेआगे बढ़कर खुद उन दोनो छातियो को अपने हाथ में ले लूं. मेरा लंड पूरी तरह तन चुका था और उसको च्छुपाने के लिए मैं टेबल के पिछे से खड़ा भी नही हो रहा था के कहीं वो देख ना ले. कपड़े ठीक करके वो मेरे सामने आ खड़ी हुई और घूम घूमकर मुझे दिखाने लगी.
"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा
"पहली बार पूरी लड़की लग रही हो. बस थोडा सा चेंज और बाकी है" मैने जवाब दिया.
"क्या?" उसने पुचछा ही था के सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. मैने फोन उठाया. दूसरी तरफ मिश्रा था.
"वो सोनी की बीवी ने कन्फर्म कर दिया के लाश उसके पति की ही है" फोन के दूसरी तरफ से मिश्रा बोला
"अब?" मैने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा
"कल सुबह वो पेपर्स पर साइन करके लाश ले लेगी. मैने उसको अभी कुच्छ दिन और यहीं शहेर में रहने को कहा है. वो मान गयी. पति का क्रियकरम भी यहीं करवा रही है. लाश मुंबई नही ले जा रही" मिश्रा बोला
"और कोई इन्फर्मेशन मिली उससे?" मैने सवाल किया
"नही अभी तो नही. मुझे फिलहाल उससे सवाल करना ठीक नही लगा. काफ़ी परेशान सी लग रही थी. एक दो दिन बाद फिर मिलूँगा उससे" मिश्रा ने कहा
"ह्म्म्म्म "मैं हामी भरी
"अच्छा एक बात सुन. मेरा पोलीस में एक दोस्त है जिसने अभी अभी शादी की है. वो पार्टी दे रहा है. शाम को तू आजा" मिश्रा ने कहा
वैसे तो मैं जाने को तैय्यार नही था क्यूंकी मैं उस पोलिसेवाले को जानता नही था पर मिश्रा के ज़ोर डालने पर मान गया. शाम को 7 बजे मिलने का कहकर मैने फोन नीचे रख दिया.
"क्या प्लान है?" प्रिया ने मुझे पुचछा तो मैने उसको शादी की पार्टी के बारे में बताया.
"ओके. एंजाय करना" उसने मुझसे कहा और वापिस अपनी टेबल पर जाके बैठ गयी.
अचानक मेरे दिमाग़ में एक ख्याल आया
"तुम साथ क्यूँ नही चलती. रात को मैं तुम्हें घर छ्चोड़ दूँगा" मेरा कहना ही था के वो इतनी जल्दी मान गयी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी.
पार्टी मेरी उम्मीद से भी कहीं ज़्यादा बोर निकली. वो उस पोलिसेवाले के छ्होटे से फ्लॅट पर ही थी और कुच्छ फॅमिलीस आई हुई थी और मैं मिश्रा को छ्चोड़कर किसी को नही जानता था जो उस वक़्त पूरी तरह नशे में था इसलिए उसका होना या ना होना बराबर था. मैने कई बार वहाँ से निकलने की कोशिश की पर निकल ना सका. प्रिया भी मेरी तरह बोर हो रही थी और बार बार चलने को कह रही थी. आख़िर में तकरीबन 11 बजे हम दोनो वहाँ से निकल सके.
"क्या बोर पार्टी थी" मैने फ्लॅट से निकलकर नीचे बेसमेंट की ओर बढ़ते हुए कहा जहाँ मेरी कार खड़ी हुई थी
"सही में" प्रिया ने मेरे साथ कदम मिलाते हुए कहा. उसने उस वक़्त भी वही स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था.
थोड़ी ही देर बाद हम दोनो बेसमेंट में पहुँचे और मेरी कार की तरफ बढ़े. मैने अपनी कार के पास पहुँचकर देखा तो प्रिया थोड़ा पिछे रुक गयी और एक अंधेरे कोने की तरफ ध्यान से देख रही थी. हम दोनो की नज़रें मिली और मैने के कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के प्रिया ने मुझे हाथ से चुप रहने का इशारा किया और धीरे से अपनी और आने को कहा. मुझे समझ नही आया के वो क्या कह रही है पर मैं शांति से उसकी तरफ बढ़ा.
"क्या हुआ?" उसके पास पहुँच कर मैने कहा
"इधर आओ" उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे तकरीबन खींचते दबे पावं से उस कोने की तरफ ले गयी जहाँ वो गौर से देख रही थी.
हम लोग धीरे धीरे चलते हुए उस कोने तक पहुँचे. प्रिया ने मुझे वहाँ रुकने का इशारा किया और किसी चोर की तरह चलती हुई आगे बढ़ी. सामने एक छ्होटा सा दरवाज़ा बना हुआ था जो बिल्डिंग की सीढ़ियों की और खुलता था. दरवाज़े की हालत देखकर ही लग रहा था के उन बिल्डिंग मे आने जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल कम ही होता था. दरवाज़े पर ज़ंग लगा हुआ था और उसी वजह से उसको पूरी तरह बंद नही किया जा सकता था. देखकर लग रहा था के किसी ने दरवाज़ा बंद तो किया पर फिर भी वो हल्का सा खुला रह गया. प्रिया उस दरवाज़े के पास पहुँची और धीरे से उस खुले हुए हिस्से से अंदर देखने लगी. फिर वो पलटी और मुस्कुराते हुए मुझे बहुत धीरे से अपने पास आने को कहा.
मैं दरवाज़े के पास पहुँचा तो प्रिया ने साइड हटकर मुझे अंदर झाँकने को कहा. अंदर देखते ही जैसे मेरे होश से उड़ गये. अंदर मुश्किल से 17-18 साल का एक लड़का और उतनी ही उमर की एक लड़की खड़ी थी. उन दोनो को देखने से ही लग रहा था के वो दोनो अभी भी स्कूल में ही हैं. लड़की दीवार के साथ लगी खड़ी थी और लड़का उसके सामने खड़ा उसको चूम रहा था. मैने एक पल के लिए उन्हें देखा और नज़र हटाकर वापिस प्रिया की और देखा जो अब भी मुस्कुरा रही थी. मैने उसको वहाँ से चलने का इशारा किया पर उसने इनकार में सर हिलाया और फिर से मुझे हटाके अंदर झाँकने लगी. थोड़ी देर देखकर वो फिर से हटी और मुझे देखने को कहा. मैने अंदर नज़र डाली तो फिर नज़र हटाना मुश्किल हो गया.
उस लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर कर दी थी और उसकी छ्होटी छ्होटी चूचियो को मसल रहा था. लड़की की आँखें बंद थी और ज़ाहिर था के उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था. मैं देख ही रहा था के पिछे से मुझे अपने कंधो पर प्रिया के हाथ महसूस हुए जो मुझे नीचे को दबा रहे थे. मैं समझ गया के वो मुझे बैठ जाने को कह रही है ताकि खुद भी मेरे सर के उपेर से अंदर देख सके. मैने नीचे को बैठ गया और अंदर देखने लगा. प्रिया पिछे से मेरे उपेर झुकी और खुद भी दरवाज़े से देखने लगी.
अब वो लड़का नीचे झुक कर उस लड़की की एक चूची को चूस रहा था और दूसरी को हाथ से मसल रहा था. लड़की का एक हाथ उसके सर पर था और वो खुद ज़ोर डालकर उस लड़के का मुँह अपनी चूची पर दबा रही थी और दूसरे हाथ से पेंट के उपेर से उसका लंड सहला रही थी. वो लड़का कभी उसकी एक चूची चूस्टा तो कभी दूसरी. हम दोनो चुप चाप खड़े सब देख रहे था और मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था के वो लड़का लड़की किस हद तक जाने वाले हैं. प्रिया मेरे उपेर को झुकी हुई और. उसकी चिन मेरे सर पर थी और दोनो हाथ मेरे कंधो पर.
थोड़ी देर यूँ ही चूचिया चूसने के बाद वो लड़का हटा और लड़की के होंठों को एक बार चूमकर उसे दीवार से हटाया. लड़की ने आँखें खोलकर उस लड़के की तरफ देखा जो तब तक खुद भी दीवार के साथ सॅट कर खड़ा हो चुका था. लड़की धीरे से मुस्कुराइ और उसके सामने आकर अपने घुटनो पर बैठ गयी और उसकी पेंट खोलने लगी. उसने लड़की की पेंट अनज़िप की और हुक खोलकर अंडरवेर के साथी ही पेंट नीचे घुटनो तक खींच दी. लड़का का खड़ा हुआ लंड जो की उतना बड़ा नही था ठीक उस लड़की की चेहरे के सामने आ गया. उसने एक बार नज़र उठाकर लड़के को देखा और मुस्कुरकर अपने मुँह खोलते हुआ पूरा लंड अपने मुँह में ले गयी.
लंड उस लड़की के मुँह में जाते ही मुझे अपने सर के उपेर एक सिसकी सी सुनाई दी तो मेरा ध्यान प्रिया पर गया. वो बड़ी गौर से उन दोनो को देख रही थी और शायद बेध्यानी में पूरी तरह मुझपर झुक चुकी थी. उसकी दोनो चूचिया मेरे कंधो पर दब रही थी और जिस तरह से वो हिल रही थी उससे मुझे अंदाज़ा हो गया के प्रिया काफ़ी तेज़ी के साथ साँस ले रही है. ज़ाहिर था के वो गरम हो चुकी थी और ये खेल देखने में उसको बड़ा मज़ा आ रहा था. मेरी नज़र उस लड़के लड़की पर और ध्यान अपने कंधो पर दब रही प्रिया की चूचियो पर था.
थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद उस लड़के ने लड़की को दोबारा खड़ा किया और फिर दीवार के साथ सटा दिया पर इस बार उस लड़की का चेहरा दीवार की तरफ और गांद लड़के की तरफ थी. वो लड़का उस लड़की के पिछे खड़े हुए अपने हाथ आगे को ले गया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. खुलते ही सलवार सरकते हुए लड़की के पैरों में जा गिरी और बल्ब की रोशनी में उस लड़की की दूध जैसी सफेद टांगे चमकने लगी. पीछे खड़े लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर उठाकर उसके गले के पास फसा दी ताकि वो उपेर ही रहे और लड़की के पिछे बैठकर उसकी पॅंटी को पकड़कर नीचे खींचता चला गया.
मुझे अपने उपेर एक और सिसकी सी सुनाई दी तो ध्यान फिर प्रिया पर गया. वो अभी भी वैसे ही झुकी चुप चाप तमाशा देख रही थी. जो बदला था वो था मेरे कंधी पर उसकी चूचियो का दबाव जो पहला बहुत हल्का था पर अब इतना बढ़ चुका था के मुझे लगा के प्रिया या तो अंजाने में या जान भूझकर अपनी चूचिया मेरे कंधो पर रगड़ रही है. उधेर वो लड़का लड़की की पॅंटी को नीचे खींच कर पिछे से उसकी टाँगो के बीचे मुँह घुसाकर उस लड़की की चूत चाटने लगा. वो लड़की अब धीरे धीरे आहें भर रही थी और खुद भी अपनी गांद हिलाकर लड़के के मुँह पर अपनी चूत रगड़ रही थी. मैं उन दोनो को देखकर हैरत में पड़ गया. इतनी सी उमर में सेक्स का इतना ग्यान. वो किसी पोर्नस्तर्स की तरह सब कुच्छ एक दम सही तरीके से एक दूसरे को मज़ा देते हुए कर रहे थे. लड़की जब लंड चूस रही थी तो ऐसी थी के कोई पोर्नस्तर भी उसको देखकर शर्मा जाए और लड़का भी बिल्कुल उसी तरह उसकी चूत चाट रहा था.
प्रिया ने मेरा कंधा हिलाया और मुझे हटने को कहा. शायद यूँ मेरे पीछे से झुक कर देखने की वजह से वो थक गयी थी इसलिए मुझे हटाकर पिछे आने को कह रही थी. मैं हटा और उसके पिछे आकर खड़ा हो गया पर मेरी तरह वो नीचे नही बैठी बल्कि खड़ी खड़ी ही झुक कर उन दोनो को देखने लगी. मैं भी उसके पिछे खड़ा होकर अंदर ध्यान देने लगा.
वो लड़का अब भी लड़की की चूत चाट रहा था. उसने पिछे से दोनो हाथों से लड़की की गांद पकड़ कर खोल रखी थी और धीरे धीरे अपनी ज़ुबान उसकी चूत पर चला रहा था. एक हाथ की अंगुली से वो लड़की की गांद के छेद को टटोल रहा था. थोड़ी देर यूँ ही चलता रहा और फिर उसके बाद लड़का खड़ा होकर लड़की के पिछे पोज़िशन लेने लगा. लड़की ने खुद अपना एक हाथ टाँगो के बीचे से निकालकर लड़के का लंड पकड़ा और अपनी चूत में सही जगह पर रखा. लड़के ने उसकी कमर को पकड़ा और ज़ोर लगाया. लड़की के मुँह से अचानक निकली आह सुनकर मैं समझ गया के लंड अंदर जा चुका है जिसके बाद लड़की ने हाथ लंड से हटाकर फिर से दीवार पकड़ ली और आधी झुक गयी. अपनी गांद उसके उपेर को उठाकर और पिछे निकाल दी ताकि लड़के का लंड आसानी से अंदर बाहर हो सके. लड़का भी पिछे से स्पीड बढ़ा चुका था और तेज़ी के साथ लंड को चूत के अंदर बाहर कर रहा था. उसकी एक अंगुली अब भी उस लड़की की गांद पर घूम रही थी जिसे देख कर मेरे मंन में ख्याल आया के ये शायद उसकी गांद भी मरेगा.
गांद का ख्याल आते हुए मेरा ध्यान अपने सामने झुकी प्रिया की गांद पर गया और तब मुझे एहसास हुआ के पिछे से देखने के कारण मैं प्रिया के कितना करीब आ चुका था. मेरा लंड ठीक उसकी गांद के बीचे दबा हुआ था. वो भी ठीक अंदर खड़ी लड़की की तरह सामने दरवाज़े को पकड़े आधी झुकी खड़ी थी और मैं उसके पिछे था. मेरा लंड पूरी तरह तना हुआ था और जिस तरह प्रिया की गांद पर दबा हुआ था उससे ऐसा ही ही नही सकता था के प्रिया को ये महसोस ना हुआ हो. मैं अजीब हालत में पड़ गया. समझ नही आया के लंड हटा लूँ या फिर ऐसे ही रगड़ता रहूं. प्रिया की भारी गांद उस वक़्त मेरे लंड को जो मज़ा दे रही थी उसके चलते मेरे लिए मुश्किल था के मैं वहाँ से हट पाता. मैं उसकी हालत में खड़ा रहा और फिर अंदर देखने लगा.
लड़का अब भी उसी तेज़ी से पिछे से लड़की की चूत पर धक्के मार रहा था.उसके दोनो हाथ लड़की के पूरे जिस्म पर घूम रहे थे और वो लड़की भी उसका भरपूर साथ दे रही थी. जब वो आगे को धक्का मारता तो वो भी अपनी गांद पिछे को करती. उस लड़की के ऐसा करने से मुझे ऐसा लगा या सही में ऐसा हो रहा था ये पता नही पर मुझे महसूस हुआ के प्रिया भी अपनी गांद मेरे लंड पर ऐसे ही धीरे धीरे दबा रही थी. मैं भी काफ़ी जोश में आ चुका था और मैं अपना एक हाथ सीधा उसी गांद पर रख दिया और लंड धीरे से थोडा और उसकी गांद पर दबाया. उसके मुँह से एक बहुत हल्की सी आह निकली जिससे मैं समझ गया के उसको पता है के क्या हो रहा है और वो खुद भी गरमा चुकी है. मैं हाथ यूँ ही थोड़ी देर उसकी गांद पर फिराया और धीरे से आगे ले जाते हुए उसकी एक चूची पकड़ ली.
मेरा ऐसा करना ही था के प्रिया फ़ौरन सीधी उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पलटी. उसकी आँखों में वासना मुझे सॉफ दिखाई दे रही थी जो वो बुरी तरह से कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी.
"चलें?" उसने कहा और बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए कार की तरफ बढ़ चली.
मैं मंन मसोस कर रह गया. एक आखरी नज़र मैने लड़का लड़की पर डाली. लड़की अब नीचे ज़मीन पर घोड़ी बनी हुई थी और लड़का अब भी पिछे से उसको पेल रहा था. मैने एक लंबी आह भारी और प्रिया के पिछे अपनी कार की ओर बढ़ चला.
उस रात नींद तो जैसे आँखों से कोसो दूर थी. मैं काफ़ी देर तक बिस्तर पे यहाँ से वहाँ डोलाता रहा. करवट बदल बदल कर थक गया पर नींद तो जैसे नाराज़ सी हो गयी थी. उस लड़के और लड़के के बीच सेक्स का खेल और उपेर से प्रिया की गांद पर डाबता मेरा लंड दिमाग़ से जैसे निकल ही नही रहे थे. एक पल के लिए मैने सोचा था के जिस तरह प्रिया की गांद पर मेरा लंड दबा था और उसने कुच्छ नही कहा था तो शायद बात इससे आगे बढ़ सके पर कुच्छ नही हुआ. वो खामोशी से कार में जाकर बैठ गयी और उसी खामोशी से पूरे रास्ते बैठी रही . घर जाकर भी वो कार से निकली और अंदर चली गयी, बिना कुच्छ कहे. मैं बुरी तरह से गरम हो चुका था और किस्मत खराब के जिस वक़्त घर पहुँचा तो रुक्मणी के साथ कोई मौका हाथ नही लगा. और दिमाग़ में अब भी सेक्स ही घूम रहा था. मैने हर कोशिश की सेक्स से ध्यान हटाने की पर कामयाब नही हुआ. परेशान होकर मैने विपिन सोनी मर्डर के बारे में सोचना शुरू कर दिया पर सोचने के लिए ज़्यादा कुच्छ था नही सिवाय इसके के वो एक अजीब सा आदमी था और बहुत ही अजीब तरीके से मारा था. अजीब बातें करता था और अजीब सा लाइफस्टाइल था. पर हाँ उसकी बीवी सुंदर थी. इस बार भी नाकामयाभी ही हाथ लगी. सेक्स से ध्यान हटाने की सोची और घूम फिरकर फिर वहीं पहुँच गया. अब विपिन सोनी की बीवी आँखो के सामने घूम रही थी.
ऐसे ही पड़े पड़े आधी रात का वक़्त हो गया. मैने घड़ी पर नज़र डाली तो रात का 1 बज रहा था. जब मुझे महसूस होने लगा के आज पूरी रात यूँ ही गुज़रने वाली है तो मैने कमरे में रखे टीवी का रिमोट उठाया. टीवी ऑन करने ही वाला था के एक अजीब सी आवाज़ पर मेरा ध्यान गया. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत ही हल्की सी आवाज़ में गा रहा है. मैने ध्यान से सुनना शुरू किया. आवाज़ किसी औरत की थी पर वो क्या गा रही थी ये समझ नही आ रहा था. मैने एक नज़र टीवी पर डाली पर वो बंद था. म्यूज़िक सिस्टम को देखा तो वो भी बंद. अपने कंप्यूटर की तरफ नज़र डाली तो वो भी ऑफ था फिर भी लग रहा था जैसे कहीं दूर किसी ने म्यूज़िक सिस्टम ओन किया हुआ हो या वॉल्यूम बहुत धीरे कर रखा हो पर फरक सिर्फ़ ये था के म्यूज़िक नही था. सिर्फ़ एक औरत के हल्के से गाने की आवाज़. मेरे दिमाग़ में रुक्मणी का नाम आया पर मैं जानता था के वो बहुत बेसुरा गाती थी जबकि ये आवाज़ जिस किसी की भी थी वो बहुत सुर में गा रही थी. घर में बाकी देवयानी ही थी. मैं समझ गया के आवाज़ देवयानी की ही है. अंधेरे में यूँ ही पड़े पड़े मैं उसकी आवाज़ पर ध्यान देने लगा. जितनी अच्छी तरह से वो गा रही थी उस हिसाब से तो उसको इंडियन आइडल में ट्राइ करना चाहिए था. जो बात मुझे अजीब लगी वो था गाना. वो कोई फिल्मी गाना नही था. लग रहा था जैसे कोई माँ अपने किसी बच्चे को लोरी सुना रही हो. लोरी के बोल मुझे बिल्कुल भी समझ नही आ रहे थे पर उस आवाज़ ने मुझपर एक अजीब सा असर किया. कई घंटो से खुली हुई मेरी आँखें भारी होने लगी और मुझे पता ही नही चले के वो आवाज़ सुनते सुनते मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
सुबह उठा तो मुझपर एक अजीब सा नशा था. दिल में बेहद सुकून था. लग रहा था जैसे एक बहुत लंबी सुकून भरी नींद से सोकर उठा हूँ. मैं आखरी बार इस तरह कब सोया था मुझे याद भी नही था. जब भी सोकर उठता तो दिल में एक अजीब सी बेचैनी होती. उस दिन क्या क्या करना था और कल क्या क्या बाकी रह गया था ये सारे ख्याल आँख खोलते ही दिमाग़ में शोर मचाना शुरू कर देते थे. पर उस दिन ऐसा कुच्छ ना हुआ. मेरा दिमाग़ और दिल दोनो बेहद हल्के थे. और दीनो की तरह मैं परेशान ना उठा बल्कि आँख खोलते ही चेहरे पर मुस्कान आ गयी. मैं किस बात पर इतना खुश था ये मैं खुद भी नही जानता था.
"तुम गाती भी हो?" ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने देवयानी से पुचछा
मेरी बात सुनकर उसने हैरत से मेरी तरफ देखा. फिर एक नज़र रुक्मणी पर डाली और दोनो हस्ने लगी.
"मज़ाक उड़ा रहे हो?" रुक्मणी ने मुझसे पुचछा.
"नही तो" मैने इनकार में सर हिलाया "मैं तो सीरियस्ली पुच्छ रहा था"
"ओह तो सीरियस्ली मज़ाक उड़ा रहे हो" देवयानी ने कहा
"तुम्हें कैसे पता के हम दोनो बहुत बेसुरी हैं?" रुक्मणी ने आगे कहा
"बेसुरी?" मैने आँखें सिकोडते हुए कहा
"हां और नही तो क्या" देवयानी बोली "हर वो इंसान जो हमको बचपन से जानता है इसी बात को लेकर हमारा मज़ाक उड़ाता है. अगर हम दोनो में से कोई भी गाने लगे तो घर के सारे शीशे टूट जाएँ"
मैं उन दोनो की बात सुनकर चौंक पड़ा. कल रात तो वो बहुत अच्छा गा रही थी. इतना अच्छा के 5 मिनट के अंदर अंदर मैं सो गया था
"तो कल रात तुम नही गा रही ही" मैने देवयानी और रुक्मणी दोनो से पुचछा
"नही तो" रुकमनि बोली और उन दोनो ने इनकार में सर हिलाया "हम दोनो भला रात को बैठके गाने क्यूँ गाएँगे?"
थोड़ी देर तक मैं उस रात के गाने को बारे में सोचता रहा पर फिर वो बात दिमाग़ से निकाल दी. रात का 1 बज रहा था और मैं सोने की कोशिश कर रहा था. बहुत मुमकिन था के किसी पड़ोसी ने गाना चला रखा था जिसकी हल्की सी आवाज़ मुझ तक पहुँच रही थी. मैं तैय्यार होकर घर से ऑफीस के लिए निकला. आधे रास्ते में ही था के मेरा फोन बजने लगा. कॉल मिश्रा की थी.
"कोर्ट में हियरिंग तो नही है तेरी आज?" मिश्रा ने पुचछा
"2 बजे के करीब एक केस की हियरिंग है. क्यूँ?" मैने पुचछा
"गुड. तो एक काम कर फिलहाल पोलीस स्टेशन आ जा" उसने मुझसे कहा. मैं खुद ही समझ गया के बात विपिन सोनी मर्डर केस को लेकर ही होगी
"क्या हुआ?" मैने पुचछा
"अरे यार यहाँ कुच्छ क़ानूनी बातें होने वाली हैं और तू जानता ही हैं के ये सब मेरे पल्ले नही पड़ता. तो मैने सोचा के मेरे पास जब एक घर का वकील है तो उसी को क्यूँ ना बुला लूँ"
वो बिल्कुल सही कह रहा था. लॉ से रिलेटेड बातें मिश्रा की समझ से बाहर थी जबकि वो एक पोलिसेवला था. उसके लिए तो उसका काम सिर्फ़ इतना था के जो भी ग़लत दिखे पकड़के उसकी हड्डियाँ तोड़ दो ताकि अगली बार कुच्छ ग़लत करने से पहले हज़ार बार सोचे.
"ठीक हैं मैं आ जाऊँगा. कितने बजे आना है?" मैने पुचछा
"अभी" मिश्रा ने जवाब दिया
पोलीस स्टेशन पहुँचा तो भूमिका सोनी और उसका बाप ऑलरेडी वहाँ बैठे हुए थे और मिश्रा उनसे कुच्छ बात कर रहा था. जाने क्यूँ दिल ही दिल में सोनी मर्डर केस में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट था जबकि इससे मेरा कुच्छ लेना देना नही था. पर फिर भी मैं क्लोस्ली इस केस को फॉलो करना चाहता था इसलिए मुझे अपने उस वक़्त पोलीस स्टेशन में होने पर बेहद खुशी हुई.
"तो आपको कोई अंदाज़ा नही के आपसे अलग होने और यहाँ आने के बीच आपके पति कहाँ थे" मिश्रा भूमिका से पूछ रहा था. जवाब में भूमिका और उसके बाप दोनो ने इनकार में सर हिलाया
मेरे आने पर थोड़ी देर के लिए बात रुक गयी. मैं उन दोनो से मिला और एक चेर लेकर वहीं पर बैठ गया. हैरत थी के मेरे वहाँ होने पर ना तो भूमिका ने कोई ऐतराज़ जताया और ना ही उसके बाप ने.
"मेरी और मिस्टर सोनी की कभी बनी नही" भूमिका ने अपनी बात जारी की "काफ़ी झगड़े होते थे हम दोनो के बीच और ऐसे ही एक झगड़े के बाद वो घर छ्चोड़कर चले गये थे. उसके बाद मुझे उनके बारे में कुच्छ पता नही चला तब तक जब तक की मुझे आपकी अड्वर्टाइज़्मेंट के बारे में पता नही चला"
"आपने ढूँढने की कोशिश की?" मिश्रा ने पुचछा
"हाँ पोलीस में रिपोर्ट भी लिखवाई थी. न्यूसपेपर में आड़ भी दिया था" इस बार भूमिका का बाप बोला
"झगड़े किसी ख़ास बात पर" मिश्रा ने सवाल किया
"ऐसे ही मियाँ बीवी के झगड़े पर बहुत ज़्यादा होते थे. छ्होटी छ्होटी बात पर. मैने जितना उनके करीब जाने की कोशिश करती वो उतना ही दूर चले जाते. बात इतनी बिगड़ चुकी थी के अगर वो घर से ना जाते तो शायद मैं चली जाती " भूमिका ने जवाब दिया
"ह्म्म्म्म " मिश्रा सोचते हुए बोला "तो वो कोई 8 महीने पहले आपको छ्चोड़के चले गये थे और अपना कोई अड्रेस नही दिया था"
भूमिका ने फिर इनकार में सर हिलाया
"बॉडी हमें कब तक मिल सकती है?" भूमिका के बाप ने पुचछा
"शायद आज ही. पोस्ट मॉर्टेम हो चुका है. मौत उनके दिल में किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमले की वजह से हुई थी. हमारी तलाश अब भी जारी है और शायद इस वजह से कुच्छ दिन आपको और यहीं रुकना पड़े." मिश्रा ने पेन नीचे रखता हुए कहा
"पर मुझे प्रॉपर्टी के सिलसिले में वापिस मुंबई जाना पड़ सकता है" भूमिका बोली "मिस्टर सोनी की विल पढ़ी जानी है"
उसकी बात सुनकर मिश्रा ऐसे मुस्कुराया के मुझे लगा के भूमिका अभी उसको थप्पड़ मार देगी
"हाँ दौलत तो काफ़ी मिली होगी आपको. जिस तरह से आपने बताया है उससे तो लगता है के मिस्टर सोनी काफ़ी अमीर आदमी थे. अब तो आप एक अमीर औरत हो गयी" उसने कहा
मुझे यकीन नही हुआ के वो ये कह रहा है. ये उसके मतलब की बात नही थी और मुझे समझ नही आया के वो ऐसा क्यूँ कह रहा था पर उससे ज़्यादा हैरत तब हुई जब भूमिका भी जवाब में मुक्सुरा उठी.
"ये तो विल पर डिपेंड करता है" वो बोली "यहाँ से देअथ सर्टिफिकेट मिलने पर जब विल खुलेगी तब पता चलेगा के कितना मुझे मिला और कितना मिस्टर सोनी की बेटी को"
ये एक नयी बात थी. मैं और मिश्रा दोनो ही चौंक पड़े
"मिस्टर सोनी की बेटी?" मैं पूरी बात के दौरान पहली बार बोला "आपसे?"
"नही" वो मेरी तरफ देखकर बोली "मुझसे होती तो मैं हमारी बेटी कहती, सिर्फ़ मिस्टर सोनी की बेटी नही"
"तो आप उनकी दूसरी बीवी थी" मैने कहा
"जी हां" भूमिका ने एक लंबी साँस छ्चोड़ते हुए कहा "पहली बीवी से उनकी एक 24 साल की बेटी है, रश्मि"
"और उनकी वो बेटी कहाँ है?" मैने भूमिका से पुचछा
"अब ये तो भगवान ही जाने" उसने जवाब दिया "कोई साल भर पहले ऑस्ट्रेलिया गयी थी और अब वहाँ है के नही मैं नही जानती"
"क्या उसको इस बात की खबर है के उसके पिता अब नही रहे?" मिश्रा बोला
"पता नही" भूमिका ने कंधे हिलाते हुए कहा "मेरे पास ना तो उसका कोई अड्रेस है और ना ही फोन नंबर. जो पहले था अब वो फोन काम नही कर रहा और मुझसे उसने कभी बात नही की"
"और अपने पिता से?" मैने पुचछा
"पता नही" भूमिका ने जवाब दिया "शायद फोन करती हो"
कमरे में थोड़ी देर के लिए खामोशी च्छा गयी
"आपको क्या लगता है किसने मारा होगा आपके पति को?" मैने थोड़ी देर बाद सवाल किया
"नही जानती" भूमिका ने छ्होटा सा जवाब दिया
"उनके कोई दुश्मन?"
"नही जानती" फिर वही छ्होटा सा सवाल
"मुझे तो उन्होने कहा था के उनके दुश्मन थे जो उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते थे" मैने कहा
"मुझसे इस बारे में कभी कोई बात नही की उन्होने" भूमिका ने जवाब दिया
"देखा जाए तो पैसे के मामले में बड़ा टेढ़ा था वो" इस बार भूमिका के बाप ने जवाब दिया "इसके चक्कर में कई लोग उसको पसंद नही करते थे, जिनके साथ बिज़्नेस था वो. पर ऐसी कोई बात नही थी के कोई उसका खून ही कर दे. उसने तो कभी किसी को कोई नुकसान नही पहुँचाया"
"फिर भी उनका खून तो हुआ ही ना" मैने कहा तो कमरे में फिर पल के लिए सन्नाटा फेल गया
"सही कह रहे हैं आप" इस बार सनना भूमिका के बाप ने ही तोड़ा "और ये किसने किया ये सबसे ज़्यादा अगर कोई जानना चाहता है तो वो मैं और मेरी बेटी ही हैं"
"किसने किया ये तो फिलहाल कोई नही जानता पर कैसे किया ये मैं आपको ज़रूर बता सकता हूँ. उनपर किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमला किया गया था जो सीधा उनके दिल में उतर गयी. उनकी मौत भी फ़ौरन ही हो गयी." मैने कहा
"अगर बिल्कुल सही बात कहूँ तो हमला एक खंजर से किया गया था. पोस्ट मॉर्टेम की रिपोर्ट के हिसाब से वो ऐसा खंजर था जो पुराने ज़माने में राजा महाराजा रखा करते थे. वो तलवार जैसे होता है ना, आगे से मुड़ा हुआ" इस बार मिश्रा ने बात की
"खंजर?" भूमिका ने कहा और वो बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी.
क्रमशः..........................................
Bhoot bangla-भूत बंगला
Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट-6
गतान्क से आगे...............
भूमिका के लिए आंब्युलेन्स बुलाई गयी और उसके बाद मैं पोलीस स्टेशन से सीधा अपने कोर्ट पहुँचा. 1 बज चुका था और 2 बजे की मेरी एक केस की हियरिंग थी.
कोर्ट से केस निपटने के बाद मैं अपने ऑफीस गया
"आइए आइए" मुझे देखकर प्रिया उठते हुए बोली "तो याद आ गया आपको के आप ऑफीस भी आते हैं?"
उसको देखकर मैं चौंक पड़ा. वो मुस्कुरा रही थी. कल रात वो जिस तरह खामोशी से गयी थी उससे तो मुझे लगा था के वो अब कभी मुझसे बात नही करना चाहेगी और शायद रिज़ाइन ही कर दे. पर वो मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, ऐसे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. मैने राहत की साँस ली.
"हाँ यार" मैने कहा "वो सुबह सुबह मिश्रा ने बुला लिया था"
"क्या बात है आजकल पोलीस स्टेशन के काफ़ी चक्कर लग रहे हैं?" उसने मुझसे पुचछा
"बताऊँगा बाद मैं" मैने चेर पर बैठते हुए बोला "फिलहाल पानी पिला"
उसके बाद सब कुच्छ नॉर्मल रहा. प्रिया के बर्ताव में कोई बदलाव नही था जिसको लेकर मैं खुश था. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी जिसको मैं खोना नही चाहता था. मेरी हर बात का पूरा ध्यान रखती थी और हमेशा वक़्त पर ऑफीस पहुँच जाती थी. पर जो बात मुझे परेशान कर रही थी वो थी उसका यूँ कुच्छ ना कहना. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या वो कल की बात पर सच में नाराज़ नही है या ड्रामा कर रही है. क्या वो सही में मुस्कुरा रही है या दिल में कुच्छ और दबाए बैठी है. जब बर्दाश्त ना हुआ तो मैने आख़िर सोच ही लिया के मैं ही कोई बात करूँ.
"सुन प्रिया" मैने कहा
उसने गर्दन उठाकर मेरी तरफ देखा
"यार मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. पता नही कैसे......" मैने अपनी बात कह ही रहा था के वो बीच में बोल पड़ी
"इट्स ओके सर" उठकर वो मेरी टेबल पर मेरे सामने आकर बैठ गयी
"नो इट्स नोट. जिस तरह से तू गयी थी मुझे तो लगा था के अब नही आएगी. मैं माफी चाहता हूँ यार" मैने कहा
"अरे इसमें माफी की क्या बात है" वो हस्ते हुए बोली "और फिर आपने कोई ज़बरदस्ती तो नही की थी मेरे साथ. मैं खुद भी तो खामोश खड़ी थी"
ये बात उसने कह तो दी पर फिर खुद ही शर्मा गयी. शरम से उसने नज़र दूसरी तरफ फेर ली और हल्के से मुस्कुराने लगी. मैने इस बारे में आगे कोई बात ना करना ही ठीक समझा. कुच्छ देर तक हम यूँ ही खामोश बैठे रहे
"एक बात बताइए" कुच्छ देर बाद वो खुद ही बोली. मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो शरारत से मुस्कुरा रही थी.
"आपकी नज़र हो या आपका हाथ, दोनो सीधा यहीं क्यूँ पहुँच जाते हैं" कहते हुए उसने एक नज़र से अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
इस बार शरमाने की बारी मेरी थी. कल रात मैने एक हाथ उसकी चूचियो पर रख दिया था और वो उस बारे में ही बात कर रही थी. मुझे शरमाते देखकर वो खिलखिला कर हसी और मुझे छेड़ने लगी.
"बताओ ना सर" कहते हुए वो आगे को झुकी. थोड़ी देर पहले की शरम अब उसकी आँखों और चेहरे से जा चुकी थी.
"क्या बताऊं?" मैने किसी चोर की तरह पुचछा
"यही के क्या है यहाँ ऐसा जो आपकी नज़र यहीं आकर अटक जाती है. और मौका मिलते ही आपका हाथ भी यहीं पहुँच गया"
मैं जवाब में कुच्छ नही कहा पर वो तो जैसे अपनी बात पर आड़ गयी थी. सवाल फिर दोहराया.
"अरे यार" मैने झल्लाते हुए कहा "एक लड़के की नज़र से देख. जवाब मिल जाएगा"
"कैसे देखूं. लड़का तो मैं हूँ नही. वो तो आप हो इसलिए आप ही बता दो" उसने वही शरारत भरी आवाज़ में कहा
"ठीक है सुन" मैने गुस्से में अपने सामने रखी वो फाइल बंद कर दी जिसे देखने का मैं नाटक कर रहा था "लड़को को आम तौर पर बड़ी छातिया पसंद आती है. ऐसी जैसी तेरी हैं. और तूने खुद ही कहा के मैं लड़का हूँ. इसलिए मेरी नज़र बार बार यहाँ अटक जाती है"
"और मौका मिलते ही हाथ भी यहीं अटका दिया?" वो बोली और ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी. उल्टा हो रहा था. लड़की वो थी और शर्मा मैं रहा था.
"अच्छा और क्या है मुझ में ऐसा जो आपको पसंद आता है?" वो हसी रोक कर बोली
"तू जाएगी यहाँ से या नही?" मैने गुस्से में उसको घूरा तो वो सॉरी बोलती वहाँ से उठकर अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गयी. आँखो में अब भी वही शरारत थी.
उस रात मैं घर पहुँचा तो घर पर सिर्फ़ देवयानी ही थी.
"आइए आहमेद साहब" वो मुझे देखते हुए बोली "कैसा रहा आपका दिन?"
"कुच्छ ख़ास नही" मैने जवाब दिया "बस वही यूषुयल कोर्ट केसस. रुक्मणी कहाँ है?"
"बाहर गयी है" वो मेरे पास ज़रा अदा से चलते हुए आई "मुझे भी कह रही थी चलने के लिए पर फिर मैने सोचा के अगर मैं भी चली गयी तो आपका घर पर ध्यान कौन रखेगा?"
"मैं कोई छ्होटा बच्चा नही हूँ" मैं ज़रा मुस्कुराते हुए बोला "अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ"
"हां रख तो सकते हैं पर आपके पास हाथों से करने को और भी बेहतर काम हैं" वो बोली और हास पड़ी
उसकी कही बात का मतलब मैं एक पल के लिए समझा नही और जब समझा तो जवाब में उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे के मुझे समझ ही ना आया हो
"मैं कुच्छ समझा नही" मैने भोली सी सूरत बनाते हुए कहा
"अब इतने भी भोले नही हैं आप इशान आहमेद" उसने ऐसे कहा जैसे मेरी चोरी पकड़ रही हो
मुझे समझ नही आया के आगे क्या कहूँ. मैं खामोशी से खड़ा हुआ और बॅग उठाकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझे जाता देखकर पिछे से कहा
"एक कप कॉफी फिलहाल के लिए" मैने पलटकर कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला
सर्दियों का मौसम चल रहा था और मेरा पूरा जिस्म दुख रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. मैने बॅग रखा और अपने कपड़े उतारकर बाथरूम में दाखिल हुआ. मैं अभी नहा ही रहा था के मेरे कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई.
"इशान कॉफी" आवाज़ देवयानी की थी
"वहीं टेबल पर रख दीजिए" मैने जवाब दिया
कुच्छ ही पल गुज़रे थे के मैने बाथरूम के दरवाज़े पर आहट महसूस की. बाथरूम मेरे कमरे के अंदर ही था इसलिए मैने दरवाज़ा लॉक नही क्या. मेरे पूरे चेहरे पर साबुन लगा हुआ था इसलिए आहट कैसी थी देख नही पाया पर फिर अगले ही पल मुझे एहसास हो गया के दरवाज़ा खोलकर कोई अंदर दाखिल हुआ है.
"कौन?" मैने कहा पर जवाब नही आया. मैने शओवेर ऑन किया और चेहरे से साबुन सॉफ करके दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर देवयानी खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैं उसको यूँ खड़ा देखकर चौंक गया और फिर अगले ही पल मुझे ध्यान आया के मैं बिल्कुल नंगा था. मैने फ़ौरन साइड में लटका टवल खींचा और अपनी कमर पर लपेट लिया.
मैं कुच्छ कहने ही जा रहा था के देवयानी मेरी तरफ आगे बढ़ी. मैं चुप खड़ा उसकी तरफ देख रहा था और वो मेरी तरफ देखते हुए मेरे करीब आ खड़ी हुई. शवर अब भी ओन था इसलिए जब वो मेरे पास आई तो पानी मेरे साथ उसके उपेर भी गिरने लगा. हम दोनो के बीच कोई कुच्छ नही कह रहा था और ना ही अब कोई मुस्कुरा रहा था. बस एक दूसरे की नज़र में नज़र डाले एकदम करीब खड़े हुए थे. अब तक देवयानी भी पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी वाइट कलर की नाइटी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. अंदर पहनी ब्लॅक कलर की ब्रा और पॅंटी उसके बाकी जिस्म के साथ सॉफ नज़र आ रही थी.
देवयानी ने अपना एक हाथ उठाकर मेरी छाती पर रखा. जाने क्यूँ पर मैं ऐसे च्चितका जैसे करेंट लगा हो. मैं फ़ौरन 2 कदम पिछे हो गया मानो वो मेरा रेप करने वाली हो. मेरे ऐसा करने पर वो ज़ोर से हस पड़ी.
"क्या हुआ इशान?" वो मुझे देखते हुए बोली "उस दिन किचन में तो मुझे इस तरह पकड़ा था जैसे मेरा रेप ही कर दोगे और आज यूँ दूर हो रहे हो?"
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. पानी में भीगी हुई वो किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी जो किसी भी ऋषि का ध्यान भंग कर सकती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. उसके भीगा हुआ तकरीबन आधा नंगा जिस्म देखकर मेरे दिल और लंड में हरकत होने लगी. मैं अबी सोच ही रहा था के घर के बाहर हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी. गाड़ी रुक्मणी की थी. देवयानी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा, मुस्कुराइ और बाथरूम से बाहर चली गयी.
डिन्नर टेबल पर हम तीनो ने खामोशी से खाना खाया. खाना ख़तम होने के बाद रुक्मणी उठकर किचन की तरफ गयी.
"15 मिनट हैं तुम्हारे पास. सिर्फ़ 15 मिनट" उसके जाते हो देवानी मुझसे बोली. उसकी बात का मतलब मुझे समझ नही आया और मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा. तभी रुक्मणी किचन से वापिस आ गयी.
"मैं ज़रा वॉक के लिए जा रही हूँ" देवयानी ने कहा "15 मिनट में आ जाऊंगी"
मैं उसकी बात का मतलब समझ गया. वो रुक्मणी के साथ मुझे अकेले में 15 मिनट दे रही है.
उसके घर से बाहर निकलते ही मैने फ़ौरन रुक्मणी को पकड़ा और उसको होंठो पर अपने होंठ रख दिया. वो भी शायद मौके का इंतेज़ार ही कर रही थी और फ़ौरन मेरे चूमने का जवाब दिया. मेरे हाथ उसके चेहरे से होते हुए नीचे सरके और एक हाथ उसकी चूचियो और दूसरा उसकी गांद तक पहुँच गया. उसने एक ब्लू कलर की नाइटी पहेन रखी थी जिसके उपेर से मेरे हाथ उसके जिस्म को नापने लगे. रुक्मणी का अपना भी एक हाथ पाजामे के उपेर से मेरे लंड को टटोल रहा था.
"कपड़े उतारो" मैं उसको चूमता हुआ बोला
"नही" उसने कहा "पूरा कपड़े मत उतारो. देवयानी कभी भी वापिस आ सकती है"
मुझे भी देवयानी की 15 मिनट वाली बात याद आई तो मैने भी ज़िद नही की. उसको पकड़कर सोफे तक लाया और सोफे पर उसको बेतकर खुद उसके सामने खड़ा हो गया. रुक्मणी मेरा इशारा समझ गयी और फिर वो काम करने लगी जिसके लिए मैं उसका कायल था. मेरा पाजामा नीचे सरक चुका था और मेरा लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था. उसका एक हाथ कभी मेरे लंड को रगड़ता तो कभी मेरी बाल्स को सहलाता. कुच्छ देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसको नीचे फ्लोर पर खींचा और घूमकर उसकी गांद अपनी तरफ कर ली. उसने अपने हाथ सोफे पर रखे और घुटनो के बल नीचे फ्लोर पर झुक गयी.
पीछे से उसको यूँ देखकर मेरी नज़रों के सामने फ़ौरन प्रिया की गांद घूमने लगी और मेरे दिल में एक पल के लिए ख्याल आया के अगर प्रिया इस तरह से झुके तो कैसी लगेगी?
"जल्दी करो?" रुक्मणी ने कहा
मैने उसकी नाइटी उठाकर उसकी कमर पर डाल दी और पॅंटी खींच कर नीचे कर दी. उसकी चूत और गांद मेरे सामने खुल गयी. जब भी मैं उसको इस तरह देखता था तो हमेशा मेरा दिल उसकी गांद मारने का करता था और आज भी ऐसा ही हुआ. मैने अपने लंड निकाला और उसकी गांद पर रगड़ने लगा. वो समझ गयी और मेरी तरफ गर्दन घूमकर मुस्कुराइ.
"नही इशान"
"प्लीज़ बस एक बार" मैने ज़िद करते हुए कहा
"दर्द होता है" उसने अपनी आँखें छ्होटी करते हुए कहा
वक़्त ज़्यादा नही था और मैं इस मौके का पूरा फायडा उठना चाहता था इसलिए ज़िद छ्चोड़ दी और अपना लंड उसकी चूत पर रखकर एक झटके में अंदर घुसता चला गया.
भूमिका सोनी का उस दिन पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना पता नही एक नाटक था या हक़ीकत पर मुझे मिश्रा से पता चला के वो ठीक थी और विल सेट्ल करने के लिए मुंबई गयी हुई थी. बॉडी उसने क्लेम कर ली थी और विपिन सोनी का क्रियाकर्म वहीं शहेर के शमशान में कर दिया गया था. उसके अगले दिन तक कुच्छ ख़ास नही हुआ. मेरी रुटीन लाइफ चलती रही. प्रिया के किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी थी इसलिए वो 2 हफ्ते की छुट्टी लेकर गयी हुई थी. मैने अकेला ही ऑफीस में बैठता और घर आ जाता. घर पर भी उस दिन के बाद ना तो मुझे रुक्मणी के साथ कोई मौका मिला और ना ही देवयानी के साथ बात आगे बढ़ी.
ऐसे ही एक सॅटर्डे को मैं घर पर बैठा टीवी देख रहा था के फोन की घंटी बजी. रुक्मणी और देवयानी दोनो ही घर पर नही. मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ मिश्रा था.
"क्या हो रहा है?" मैने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही यार" उसने जवाब दिया "वही सोनी मर्डर केस में उलझा हुआ हूँ"
"कुच्छ बात आगे बढ़ी?"
"नही यार" मिश्रा ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया "वहीं अटका हुआ हूँ. एक इंच भी आगे नही बढ़ा"
"उसकी बीवी कहाँ है?" मैने सवाल किया
"मुंबई में ही है फिलहाल तो. एक दो दिन में आएगी वापिस" मिश्रा बोला
"तू एक बार उसके बारे में पता क्यूँ नही करता?" मैने अपना शक जताया
"क्या कहना चाह रहा है?" मिश्रा की आवाज़ से ज़ाहिर था के उसको मेरी बात पर हैरत हुई थी "तुझे लगता है उसने मारा है अपने पति को?"
"हाँ क्यूँ नही हो सकता. वो अभी जवान है और सोनी बुड्ढ़ा था और अमीर भी. उसके मरने से सबसे ज़्यादा फायडा तो भूमिका को ही हुआ है" मैने कहा
"नही यार. मुझे नही लगता" मिश्रा ने मेरा बात को टाल दिया पर मैने अपनी बात पर ज़ोर डाला.
"भले ही ऐसा ना हो पर देखने में क्या हर्ज है. और हो सकता है के यहीं से तुझे कोई और लीड मिल जाए. फिलहाल तो कहीं से भी बात आगे नही बढ़ रही ना"
उसको शायद मेरी बात में दम नज़र आया इसलिए वो मान गया के भूमिका सोनी के बारे में पता करेगा और अगर कुच्छ हाथ लगा तो मुझको भी बताएगा. थोड़ी देर और बात करके हमने फोन रख दिया.
दोपहर के 2 बज चुके थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. टीवी देखकर बोर हो चुका था. बाहर कॉलोनी में शमशान जैसा सन्नाटा फेला हुआ था. बाहर बहुत ठंडी हवा चल रही थी और सब अपने घर में घुसे हुए थे. मुझे भी जब कुच्छ समझ नही आया तो मैं वहीं सोफे पर लेट गया और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा.
ऐसे ही कोई आधा घंटा बीट गया पर मुझे नींद नही आई. जिस्म में एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे बुखार हो गया हो और दिमाग़ सुकून लेने को तैय्यार ही नही. कभी कोई बात तो कभी कोई और पर दिमाग़ में कुच्छ ना कुच्छ चल ही रहा था. मैं पार्शन होकर फिर सोफे पर उठकर बैठ गया और मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी.
वो इस बार भी जैसे कोई लोरी ही गा रही थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही हो. उस रात की तरह ही मुझे अब भी लोरी के बोल समझ नही आ रहे थे और ना ही कोई म्यूज़िक था. बस एक बहुत मीठी सी हल्की सी आवाज़ जैसे कोई बहुत धीरे धीरे गा रहा हो. अब तो मैं ये भी नही कह सकता था के देवयानी या रुक्मणी गा रही थी क्यूंकी दोनो ही घर में नही था. आवाज़ बहुत धीमी थी इसलिए अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था के किस और से आ रही है पर फिर भी मैने ध्यान से सुनने की कोशिश की.
आवाज़ खिड़की की तरफ से आ रही थी मतलब के बाहर कोई गा रहा था. मैं उठा और अपने घर से निकालकर बाहर रोड पर आया. मुझे उम्मीद थी के बाहर आने पर आवाज़ शायद थोडा सॉफ सुनाई देगी पर ऐसा हुआ नही. अब भी वॉल्यूम उतना ही था. वही धीमी शांत ठहरी सी आवाज़. सड़क सुनसान थी बल्कि उस वक़्त तो पूरी कॉलोनी ही कोई वीराना लग रही थी. चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ और ठंडी चलती हवा की आवाज़ और उसके बीच आती उस गाने की आवाज़. मैने फिर ध्यान लगाकर सुना तो मुझे आवाज़ अपने घर के सामने के घर से आती हुई महसूस हुई. मैं घर की तरफ बढ़ा पर जैसे जैसे करीब होता गया आवाज़ दूर होती गयी. जब मैं उस घर के सामने पहुँचा तो मुझे लगा के आवाज़ मेरे अपने घर से आ रही है. अपने घर की तरफ पलटा तो लगा के आवाज़ हमारे साइड के घर से आ रही है. जब उस घर की तरफ देखा तो आवाज़ कहीं और से आती महसूस हुई. और उस रात की तरह ही इस बार भी उस गाने का असर होना शुरू हो चुका था. सड़क पर खड़े खड़े ही मेरी आँखें इस तरह भारी होने लगी थी जैसे मैं कई साल से नही सोया. एक पल के लिए मुझे लगने लगा के मैं वहीं सड़क पर लेटकर ही सो जाऊँगा. मैने कदम वापिस अपने घर की तरफ बढ़ाए और अंदर आकर सोफे पर गिर पड़ा. गाने की आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी और मुझे पता ही नही चला के मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
गतान्क से आगे...............
भूमिका के लिए आंब्युलेन्स बुलाई गयी और उसके बाद मैं पोलीस स्टेशन से सीधा अपने कोर्ट पहुँचा. 1 बज चुका था और 2 बजे की मेरी एक केस की हियरिंग थी.
कोर्ट से केस निपटने के बाद मैं अपने ऑफीस गया
"आइए आइए" मुझे देखकर प्रिया उठते हुए बोली "तो याद आ गया आपको के आप ऑफीस भी आते हैं?"
उसको देखकर मैं चौंक पड़ा. वो मुस्कुरा रही थी. कल रात वो जिस तरह खामोशी से गयी थी उससे तो मुझे लगा था के वो अब कभी मुझसे बात नही करना चाहेगी और शायद रिज़ाइन ही कर दे. पर वो मेरे सामने खड़ी मुस्कुरा रही थी, ऐसे जैसे कुच्छ हुआ ही ना हो. मैने राहत की साँस ली.
"हाँ यार" मैने कहा "वो सुबह सुबह मिश्रा ने बुला लिया था"
"क्या बात है आजकल पोलीस स्टेशन के काफ़ी चक्कर लग रहे हैं?" उसने मुझसे पुचछा
"बताऊँगा बाद मैं" मैने चेर पर बैठते हुए बोला "फिलहाल पानी पिला"
उसके बाद सब कुच्छ नॉर्मल रहा. प्रिया के बर्ताव में कोई बदलाव नही था जिसको लेकर मैं खुश था. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी जिसको मैं खोना नही चाहता था. मेरी हर बात का पूरा ध्यान रखती थी और हमेशा वक़्त पर ऑफीस पहुँच जाती थी. पर जो बात मुझे परेशान कर रही थी वो थी उसका यूँ कुच्छ ना कहना. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या वो कल की बात पर सच में नाराज़ नही है या ड्रामा कर रही है. क्या वो सही में मुस्कुरा रही है या दिल में कुच्छ और दबाए बैठी है. जब बर्दाश्त ना हुआ तो मैने आख़िर सोच ही लिया के मैं ही कोई बात करूँ.
"सुन प्रिया" मैने कहा
उसने गर्दन उठाकर मेरी तरफ देखा
"यार मैं कल रात के लिए बहुत शर्मिंदा हूँ. पता नही कैसे......" मैने अपनी बात कह ही रहा था के वो बीच में बोल पड़ी
"इट्स ओके सर" उठकर वो मेरी टेबल पर मेरे सामने आकर बैठ गयी
"नो इट्स नोट. जिस तरह से तू गयी थी मुझे तो लगा था के अब नही आएगी. मैं माफी चाहता हूँ यार" मैने कहा
"अरे इसमें माफी की क्या बात है" वो हस्ते हुए बोली "और फिर आपने कोई ज़बरदस्ती तो नही की थी मेरे साथ. मैं खुद भी तो खामोश खड़ी थी"
ये बात उसने कह तो दी पर फिर खुद ही शर्मा गयी. शरम से उसने नज़र दूसरी तरफ फेर ली और हल्के से मुस्कुराने लगी. मैने इस बारे में आगे कोई बात ना करना ही ठीक समझा. कुच्छ देर तक हम यूँ ही खामोश बैठे रहे
"एक बात बताइए" कुच्छ देर बाद वो खुद ही बोली. मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो शरारत से मुस्कुरा रही थी.
"आपकी नज़र हो या आपका हाथ, दोनो सीधा यहीं क्यूँ पहुँच जाते हैं" कहते हुए उसने एक नज़र से अपनी चूचियो की तरफ इशारा किया
इस बार शरमाने की बारी मेरी थी. कल रात मैने एक हाथ उसकी चूचियो पर रख दिया था और वो उस बारे में ही बात कर रही थी. मुझे शरमाते देखकर वो खिलखिला कर हसी और मुझे छेड़ने लगी.
"बताओ ना सर" कहते हुए वो आगे को झुकी. थोड़ी देर पहले की शरम अब उसकी आँखों और चेहरे से जा चुकी थी.
"क्या बताऊं?" मैने किसी चोर की तरह पुचछा
"यही के क्या है यहाँ ऐसा जो आपकी नज़र यहीं आकर अटक जाती है. और मौका मिलते ही आपका हाथ भी यहीं पहुँच गया"
मैं जवाब में कुच्छ नही कहा पर वो तो जैसे अपनी बात पर आड़ गयी थी. सवाल फिर दोहराया.
"अरे यार" मैने झल्लाते हुए कहा "एक लड़के की नज़र से देख. जवाब मिल जाएगा"
"कैसे देखूं. लड़का तो मैं हूँ नही. वो तो आप हो इसलिए आप ही बता दो" उसने वही शरारत भरी आवाज़ में कहा
"ठीक है सुन" मैने गुस्से में अपने सामने रखी वो फाइल बंद कर दी जिसे देखने का मैं नाटक कर रहा था "लड़को को आम तौर पर बड़ी छातिया पसंद आती है. ऐसी जैसी तेरी हैं. और तूने खुद ही कहा के मैं लड़का हूँ. इसलिए मेरी नज़र बार बार यहाँ अटक जाती है"
"और मौका मिलते ही हाथ भी यहीं अटका दिया?" वो बोली और ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी. उल्टा हो रहा था. लड़की वो थी और शर्मा मैं रहा था.
"अच्छा और क्या है मुझ में ऐसा जो आपको पसंद आता है?" वो हसी रोक कर बोली
"तू जाएगी यहाँ से या नही?" मैने गुस्से में उसको घूरा तो वो सॉरी बोलती वहाँ से उठकर अपनी डेस्क पर जाकर बैठ गयी. आँखो में अब भी वही शरारत थी.
उस रात मैं घर पहुँचा तो घर पर सिर्फ़ देवयानी ही थी.
"आइए आहमेद साहब" वो मुझे देखते हुए बोली "कैसा रहा आपका दिन?"
"कुच्छ ख़ास नही" मैने जवाब दिया "बस वही यूषुयल कोर्ट केसस. रुक्मणी कहाँ है?"
"बाहर गयी है" वो मेरे पास ज़रा अदा से चलते हुए आई "मुझे भी कह रही थी चलने के लिए पर फिर मैने सोचा के अगर मैं भी चली गयी तो आपका घर पर ध्यान कौन रखेगा?"
"मैं कोई छ्होटा बच्चा नही हूँ" मैं ज़रा मुस्कुराते हुए बोला "अपना ध्यान खुद रख सकता हूँ"
"हां रख तो सकते हैं पर आपके पास हाथों से करने को और भी बेहतर काम हैं" वो बोली और हास पड़ी
उसकी कही बात का मतलब मैं एक पल के लिए समझा नही और जब समझा तो जवाब में उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे के मुझे समझ ही ना आया हो
"मैं कुच्छ समझा नही" मैने भोली सी सूरत बनाते हुए कहा
"अब इतने भी भोले नही हैं आप इशान आहमेद" उसने ऐसे कहा जैसे मेरी चोरी पकड़ रही हो
मुझे समझ नही आया के आगे क्या कहूँ. मैं खामोशी से खड़ा हुआ और बॅग उठाकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गया.
"कुच्छ खाओगे?" उसने मुझे जाता देखकर पिछे से कहा
"एक कप कॉफी फिलहाल के लिए" मैने पलटकर कहा और अपने कमरे की तरफ बढ़ चला
सर्दियों का मौसम चल रहा था और मेरा पूरा जिस्म दुख रहा था जैसे मुझे बुखार हो गया हो. मैने बॅग रखा और अपने कपड़े उतारकर बाथरूम में दाखिल हुआ. मैं अभी नहा ही रहा था के मेरे कमरे का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई.
"इशान कॉफी" आवाज़ देवयानी की थी
"वहीं टेबल पर रख दीजिए" मैने जवाब दिया
कुच्छ ही पल गुज़रे थे के मैने बाथरूम के दरवाज़े पर आहट महसूस की. बाथरूम मेरे कमरे के अंदर ही था इसलिए मैने दरवाज़ा लॉक नही क्या. मेरे पूरे चेहरे पर साबुन लगा हुआ था इसलिए आहट कैसी थी देख नही पाया पर फिर अगले ही पल मुझे एहसास हो गया के दरवाज़ा खोलकर कोई अंदर दाखिल हुआ है.
"कौन?" मैने कहा पर जवाब नही आया. मैने शओवेर ऑन किया और चेहरे से साबुन सॉफ करके दरवाज़े की तरफ देखा. दरवाज़े पर देवयानी खड़ी मुस्कुरा रही थी. मैं उसको यूँ खड़ा देखकर चौंक गया और फिर अगले ही पल मुझे ध्यान आया के मैं बिल्कुल नंगा था. मैने फ़ौरन साइड में लटका टवल खींचा और अपनी कमर पर लपेट लिया.
मैं कुच्छ कहने ही जा रहा था के देवयानी मेरी तरफ आगे बढ़ी. मैं चुप खड़ा उसकी तरफ देख रहा था और वो मेरी तरफ देखते हुए मेरे करीब आ खड़ी हुई. शवर अब भी ओन था इसलिए जब वो मेरे पास आई तो पानी मेरे साथ उसके उपेर भी गिरने लगा. हम दोनो के बीच कोई कुच्छ नही कह रहा था और ना ही अब कोई मुस्कुरा रहा था. बस एक दूसरे की नज़र में नज़र डाले एकदम करीब खड़े हुए थे. अब तक देवयानी भी पूरी तरह भीग चुकी थी और उसकी वाइट कलर की नाइटी उसके जिस्म से चिपक गयी थी. अंदर पहनी ब्लॅक कलर की ब्रा और पॅंटी उसके बाकी जिस्म के साथ सॉफ नज़र आ रही थी.
देवयानी ने अपना एक हाथ उठाकर मेरी छाती पर रखा. जाने क्यूँ पर मैं ऐसे च्चितका जैसे करेंट लगा हो. मैं फ़ौरन 2 कदम पिछे हो गया मानो वो मेरा रेप करने वाली हो. मेरे ऐसा करने पर वो ज़ोर से हस पड़ी.
"क्या हुआ इशान?" वो मुझे देखते हुए बोली "उस दिन किचन में तो मुझे इस तरह पकड़ा था जैसे मेरा रेप ही कर दोगे और आज यूँ दूर हो रहे हो?"
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और एक नज़र उसपर उपेर से नीचे तक डाली. पानी में भीगी हुई वो किसी अप्सरा से कम नही लग रही थी जो किसी भी ऋषि का ध्यान भंग कर सकती है और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ. उसके भीगा हुआ तकरीबन आधा नंगा जिस्म देखकर मेरे दिल और लंड में हरकत होने लगी. मैं अबी सोच ही रहा था के घर के बाहर हॉर्न की आवाज़ सुनाई दी. गाड़ी रुक्मणी की थी. देवयानी ने एक बार फिर मेरी तरफ देखा, मुस्कुराइ और बाथरूम से बाहर चली गयी.
डिन्नर टेबल पर हम तीनो ने खामोशी से खाना खाया. खाना ख़तम होने के बाद रुक्मणी उठकर किचन की तरफ गयी.
"15 मिनट हैं तुम्हारे पास. सिर्फ़ 15 मिनट" उसके जाते हो देवानी मुझसे बोली. उसकी बात का मतलब मुझे समझ नही आया और मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा. तभी रुक्मणी किचन से वापिस आ गयी.
"मैं ज़रा वॉक के लिए जा रही हूँ" देवयानी ने कहा "15 मिनट में आ जाऊंगी"
मैं उसकी बात का मतलब समझ गया. वो रुक्मणी के साथ मुझे अकेले में 15 मिनट दे रही है.
उसके घर से बाहर निकलते ही मैने फ़ौरन रुक्मणी को पकड़ा और उसको होंठो पर अपने होंठ रख दिया. वो भी शायद मौके का इंतेज़ार ही कर रही थी और फ़ौरन मेरे चूमने का जवाब दिया. मेरे हाथ उसके चेहरे से होते हुए नीचे सरके और एक हाथ उसकी चूचियो और दूसरा उसकी गांद तक पहुँच गया. उसने एक ब्लू कलर की नाइटी पहेन रखी थी जिसके उपेर से मेरे हाथ उसके जिस्म को नापने लगे. रुक्मणी का अपना भी एक हाथ पाजामे के उपेर से मेरे लंड को टटोल रहा था.
"कपड़े उतारो" मैं उसको चूमता हुआ बोला
"नही" उसने कहा "पूरा कपड़े मत उतारो. देवयानी कभी भी वापिस आ सकती है"
मुझे भी देवयानी की 15 मिनट वाली बात याद आई तो मैने भी ज़िद नही की. उसको पकड़कर सोफे तक लाया और सोफे पर उसको बेतकर खुद उसके सामने खड़ा हो गया. रुक्मणी मेरा इशारा समझ गयी और फिर वो काम करने लगी जिसके लिए मैं उसका कायल था. मेरा पाजामा नीचे सरक चुका था और मेरा लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था. उसका एक हाथ कभी मेरे लंड को रगड़ता तो कभी मेरी बाल्स को सहलाता. कुच्छ देर लंड चुसवाने के बाद मैने उसको नीचे फ्लोर पर खींचा और घूमकर उसकी गांद अपनी तरफ कर ली. उसने अपने हाथ सोफे पर रखे और घुटनो के बल नीचे फ्लोर पर झुक गयी.
पीछे से उसको यूँ देखकर मेरी नज़रों के सामने फ़ौरन प्रिया की गांद घूमने लगी और मेरे दिल में एक पल के लिए ख्याल आया के अगर प्रिया इस तरह से झुके तो कैसी लगेगी?
"जल्दी करो?" रुक्मणी ने कहा
मैने उसकी नाइटी उठाकर उसकी कमर पर डाल दी और पॅंटी खींच कर नीचे कर दी. उसकी चूत और गांद मेरे सामने खुल गयी. जब भी मैं उसको इस तरह देखता था तो हमेशा मेरा दिल उसकी गांद मारने का करता था और आज भी ऐसा ही हुआ. मैने अपने लंड निकाला और उसकी गांद पर रगड़ने लगा. वो समझ गयी और मेरी तरफ गर्दन घूमकर मुस्कुराइ.
"नही इशान"
"प्लीज़ बस एक बार" मैने ज़िद करते हुए कहा
"दर्द होता है" उसने अपनी आँखें छ्होटी करते हुए कहा
वक़्त ज़्यादा नही था और मैं इस मौके का पूरा फायडा उठना चाहता था इसलिए ज़िद छ्चोड़ दी और अपना लंड उसकी चूत पर रखकर एक झटके में अंदर घुसता चला गया.
भूमिका सोनी का उस दिन पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना पता नही एक नाटक था या हक़ीकत पर मुझे मिश्रा से पता चला के वो ठीक थी और विल सेट्ल करने के लिए मुंबई गयी हुई थी. बॉडी उसने क्लेम कर ली थी और विपिन सोनी का क्रियाकर्म वहीं शहेर के शमशान में कर दिया गया था. उसके अगले दिन तक कुच्छ ख़ास नही हुआ. मेरी रुटीन लाइफ चलती रही. प्रिया के किसी रिश्तेदार के यहाँ शादी थी इसलिए वो 2 हफ्ते की छुट्टी लेकर गयी हुई थी. मैने अकेला ही ऑफीस में बैठता और घर आ जाता. घर पर भी उस दिन के बाद ना तो मुझे रुक्मणी के साथ कोई मौका मिला और ना ही देवयानी के साथ बात आगे बढ़ी.
ऐसे ही एक सॅटर्डे को मैं घर पर बैठा टीवी देख रहा था के फोन की घंटी बजी. रुक्मणी और देवयानी दोनो ही घर पर नही. मैने फोन उठाया तो दूसरी तरफ मिश्रा था.
"क्या हो रहा है?" मैने पुचछा
"कुच्छ ख़ास नही यार" उसने जवाब दिया "वही सोनी मर्डर केस में उलझा हुआ हूँ"
"कुच्छ बात आगे बढ़ी?"
"नही यार" मिश्रा ने लंबी साँस लेते हुए जवाब दिया "वहीं अटका हुआ हूँ. एक इंच भी आगे नही बढ़ा"
"उसकी बीवी कहाँ है?" मैने सवाल किया
"मुंबई में ही है फिलहाल तो. एक दो दिन में आएगी वापिस" मिश्रा बोला
"तू एक बार उसके बारे में पता क्यूँ नही करता?" मैने अपना शक जताया
"क्या कहना चाह रहा है?" मिश्रा की आवाज़ से ज़ाहिर था के उसको मेरी बात पर हैरत हुई थी "तुझे लगता है उसने मारा है अपने पति को?"
"हाँ क्यूँ नही हो सकता. वो अभी जवान है और सोनी बुड्ढ़ा था और अमीर भी. उसके मरने से सबसे ज़्यादा फायडा तो भूमिका को ही हुआ है" मैने कहा
"नही यार. मुझे नही लगता" मिश्रा ने मेरा बात को टाल दिया पर मैने अपनी बात पर ज़ोर डाला.
"भले ही ऐसा ना हो पर देखने में क्या हर्ज है. और हो सकता है के यहीं से तुझे कोई और लीड मिल जाए. फिलहाल तो कहीं से भी बात आगे नही बढ़ रही ना"
उसको शायद मेरी बात में दम नज़र आया इसलिए वो मान गया के भूमिका सोनी के बारे में पता करेगा और अगर कुच्छ हाथ लगा तो मुझको भी बताएगा. थोड़ी देर और बात करके हमने फोन रख दिया.
दोपहर के 2 बज चुके थे. मुझे समझ नही आ रहा था के क्या करूँ. टीवी देखकर बोर हो चुका था. बाहर कॉलोनी में शमशान जैसा सन्नाटा फेला हुआ था. बाहर बहुत ठंडी हवा चल रही थी और सब अपने घर में घुसे हुए थे. मुझे भी जब कुच्छ समझ नही आया तो मैं वहीं सोफे पर लेट गया और आँखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा.
ऐसे ही कोई आधा घंटा बीट गया पर मुझे नींद नही आई. जिस्म में एक अजीब सी बेचैनी थी जैसे बुखार हो गया हो और दिमाग़ सुकून लेने को तैय्यार ही नही. कभी कोई बात तो कभी कोई और पर दिमाग़ में कुच्छ ना कुच्छ चल ही रहा था. मैं पार्शन होकर फिर सोफे पर उठकर बैठ गया और मुझे फिर वही आवाज़ सुनाई दी.
वो इस बार भी जैसे कोई लोरी ही गा रही थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे को सुलाने की कोशिश कर रही हो. उस रात की तरह ही मुझे अब भी लोरी के बोल समझ नही आ रहे थे और ना ही कोई म्यूज़िक था. बस एक बहुत मीठी सी हल्की सी आवाज़ जैसे कोई बहुत धीरे धीरे गा रहा हो. अब तो मैं ये भी नही कह सकता था के देवयानी या रुक्मणी गा रही थी क्यूंकी दोनो ही घर में नही था. आवाज़ बहुत धीमी थी इसलिए अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल था के किस और से आ रही है पर फिर भी मैने ध्यान से सुनने की कोशिश की.
आवाज़ खिड़की की तरफ से आ रही थी मतलब के बाहर कोई गा रहा था. मैं उठा और अपने घर से निकालकर बाहर रोड पर आया. मुझे उम्मीद थी के बाहर आने पर आवाज़ शायद थोडा सॉफ सुनाई देगी पर ऐसा हुआ नही. अब भी वॉल्यूम उतना ही था. वही धीमी शांत ठहरी सी आवाज़. सड़क सुनसान थी बल्कि उस वक़्त तो पूरी कॉलोनी ही कोई वीराना लग रही थी. चारो तरफ ऊँचे ऊँचे पेड़ और ठंडी चलती हवा की आवाज़ और उसके बीच आती उस गाने की आवाज़. मैने फिर ध्यान लगाकर सुना तो मुझे आवाज़ अपने घर के सामने के घर से आती हुई महसूस हुई. मैं घर की तरफ बढ़ा पर जैसे जैसे करीब होता गया आवाज़ दूर होती गयी. जब मैं उस घर के सामने पहुँचा तो मुझे लगा के आवाज़ मेरे अपने घर से आ रही है. अपने घर की तरफ पलटा तो लगा के आवाज़ हमारे साइड के घर से आ रही है. जब उस घर की तरफ देखा तो आवाज़ कहीं और से आती महसूस हुई. और उस रात की तरह ही इस बार भी उस गाने का असर होना शुरू हो चुका था. सड़क पर खड़े खड़े ही मेरी आँखें इस तरह भारी होने लगी थी जैसे मैं कई साल से नही सोया. एक पल के लिए मुझे लगने लगा के मैं वहीं सड़क पर लेटकर ही सो जाऊँगा. मैने कदम वापिस अपने घर की तरफ बढ़ाए और अंदर आकर सोफे पर गिर पड़ा. गाने की आवाज़ अब भी सुनाई दे रही थी और मुझे पता ही नही चला के मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
उसके बाद अगले कुच्छ दीनो तक मेरी ज़िंदगी जैसे एक ही ढर्रे पर चलती रही. मैं सुबह ऑफीस के लिए निकल जाता और शाम को घर आ जाता. रुक्मणी और देवयानी के साथ डिन्नर करता और जाकर सो जाता. देवयानी कब तक यहाँ रहने वाली थी इस बात का ना तो मुझे अंदाज़ा था और ना ही मुझे कुच्छ रुक्मणी से पुछने का मौका मिला पर अब उसके वहाँ होने से मुझे अजीब सी चिड होने लगी थी. वो हमेशा अपनी बहेन से चिपकी रहती और एक पल के लिए भी मुझे रुक्मणी के साथ अकेले ना मिलने देती. उसके उपेर से जब भी मौका मिलता तो वो मुझे छेड़ने से बाज़ नही आती थी. जानकर मेरे सामने ढीले गले के कपड़े पहेनकर आती और मौका मिलते ही झुक जाती ताकि मैं उसके कपड़ो के अंदाज़ का नज़ारा सॉफ देख सकूँ. पर इससे ज़्यादा बात नही बनी. ऑफीस में भी अब प्रिया नही आ रही थी. उसके बड़े भाई की शादी थी जिसके लिए उसने 2 महीने की छुट्टी ली हुई थी. मैं ऑफीस जाता तो वहाँ कोई ना होता और रोज़ रात को मैं बिस्तर पर भी अकेला ही सोता.
विपिन सोनी का खून हुए 2 महीने से भी ज़्यादा वक़्त हो चुका था पर अब भी रोज़ाना ही न्यूसपेपर में उसके बारे में कुच्छ ना कुच्छ होता था. मिश्रा से मेरी बात इस बारे में अब नही होती थी. मैने कई बार उसको फोन करने की कोशिश की पर वो मिला नही और ना ही उसने कभी खुद मुझे फोन किया. धीरे धीरे मेरा इंटेरेस्ट भी केस में ख़तम हो गया और अब मेरे लिए विपिन सोनी का केस सिर्फ़ न्यूसपेपर में छपने वाली एक खबर होता था.
जितना मैने न्यूसपेपर में पढ़ा उस हिसाब से विपिन सोनी कोई बहुत बड़ा आदमी था. एक बहुत ही अमीर इंसान जिसके पास बेशुमार दौलत थी. उसकी पहली बीवी से उसको एक बेटी थी और बीवी के मर जाने के बाद उसने बुढ़ापे में भूमिका से दूसरी शादी की थी. एक ज़माने में वो पॉलिटिक्स में बहुत ज़्यादा इन्वॉल्व्ड था और ये भी कहा जाता था के जिस तरह से माहरॉशट्रे के पोलिटिकल वर्ल्ड में उसकी पकड़ थी, उस तरीके से वो दिन दूर नही जब वो खुद एक दिन माहरॉशट्रे के चीफ मिनिस्टर होता. मुंबई का वो जाना माना बिज़्नेसमॅन था और शायद ही कोई इंडस्ट्री थी जहाँ उसका पैसा नही लगा हुआ था. पर अपनी बीवी के गुज़रने के बाद जैसे उसने अपने आपको दुनिया से अलग सा कर लिया. पॉलिटिक्स से उसने रिश्ता तोड़ दिया और उसका बिज़्नेस भी उसके मॅनेजर्स ही संभालते थे. पता नही कितना सच था पर उसके किसी नौकर के हवाले से एक न्यूसपेपर ने ये भी छपा था के अपनी बीवी के गुज़रने के बाद सोनी जैसे आधा पागल हो गया था और एक साइकिट्रिस्ट के पास भी जाता था.
इन सब बातों का नतीजा ये निकला के मीडीया ने उसके खून के मामले को दबने ना दिया. नेवपपेर्स और टीवी चॅनेल्स तो जैसे दिन गिन रहे थे और रोज़ाना ही ये बात छपती के सोनी का खून हुए इतने दिन हो चुके हैं और पोलीस को उसके खूनी का कोई सुराग अब तक नही मिल पाया है.
ऐसे ही एक दिन मैं अपने ऑफीस में अकेला बैठा था के दरवाज़ा खुला और मिश्रा दाखिल हुआ.
"बड़े दिन बाद" मैं उसको देखकर मुस्कुराता हुआ बाओला "आज इस ग़रीब की याद कैसे आई?"
"पुच्छ मत यार" वो मेरे सामने बैठता हुआ बोला "ज़िंदगी हराम हो रखी है साली"
"क्यूँ क्या हुआ?" मैने पुचछा
"अरे वही विपिन सोनी का केस यार" उसके हाथ में एक न्यूसपेपर था जिसे वो मेरी तरफ बढ़ता हुआ बोला "मेरी जान की आफ़त बन गया है ये केस. वो सला सोनी पोलिटिकली इन्वॉल्व्ड था और कयि बड़े लोगों को जानता था. रोज़ाना ही मेरे ऑफीस में फोन खड़कता रहता है के केस में कोई प्रोग्रेस है के नही"
"ह्म्म्म्म" मैने उसके हाथ से न्यूसपेपर लिया
"और उपेर से ये मीडीया वाले" वो अख़बार की तरह इशारा करते हुए बोला "बात को दबने ही नही दे रहे. और आज ये एक नया तमाशा छाप दिया"
"क्या छाप दिया?" मैने अख़बार खोला. उस दिन सुबह मैं कोर्ट के लिए लेट हो रहा था इसलिए न्यूसपेपर उठाने का वक़्त नही मिला था
"खुद पढ़ ले" उसने कहा और सामने रखे ग्लास में पानी डालकर पीने लगा
मैने न्यूसपेपर खोला और हेडलाइन देखकर चौंक पड़ा
"पढ़ता रह" मिश्रा ने कहा
न्यूसपेपर वालो ने खुले तौर पर पोलीस का मज़ाक उड़ाया था और इस बात को के पोलीस 2 महीने में भी खूनी की तलाश नही कर पाई थी पोलीस की नाकामयाबी बताया था. जिस बात को पढ़कर मैं चौंका वो ये थी के न्यूसपेपर में मिश्रा के नाम का सॉफ ज़िक्र था.
"नौकरी पर बन आई है यार" मिश्रा ने आँखें बंद की और कुर्सी पर आराम से फेल गया "समझ नही आता क्या करूँ"
"कोई सुराग नही?" मैने न्यूसपेपर को एक तरफ रखते हुए कहा
मिश्रा ने इनकार में सर हिलाया. मुझे याद था के आखरी बार जब मैने मिश्रा से इस बार में बात की थी तो मैने उसको भूमिका सोनी के बारे में पता करने को कहा था.
"उसकी बीवी के बारे में पता किया तूने?" मैने मिश्रा से सवाल किया
"आबे यार तू यही क्यूँ कहता है के खून उसने किया है?" मिश्रा ने सवाल किया
"मैं ये नही कहता के खून उसकी बीवी ने किया है" मैने जवाब दिया "मैं सिर्फ़ ये कह रहा हा के ऐसा हो सकता है."
"नही यार" मिश्रा ने कहा
"क्यूँ?" मैने पुचछा
"पता किया है मैने. पर्फेक्ट अलिबाइ हैं उसके पास. " मिश्रा बोला. कमरे में कुच्छ देर खामोशी रही
"यार जिस तरह से वो अब तक अपने पति के खून को ले रही है उस हिसाब से मैं तो कहता हूँ के ज़रा भी गम नही है उसको अपने पति की मौत का. और उस दिन यूँ पोलीस स्टेशन में बेहोश हो जाना भी सला एक ड्रामा था" मैने अपना शक जताते हुए क़ा
अगले एक घंटे तक मिश्रा मेरे ऑफीस में बैठा रहा और मैं ये कहता रहा के भूमिका ने खून किया हो सकता है पर वो नही माना.
उस रात डिन्नर के बाद मैं घर से थोड़ी देर बाहर घूमने के लिए निकल गया. ऐसे ही टहलता हुआ मैं बंगलो नंबर 13 के सामने से निकला तो एक पल के लिए वही खड़ा होकर उस घर की तरफ देखने लगा. उस घर में 2 खून हो चुके थे. एक आज से कई साल पहले जब एक पति ने गुस्से में अपने बीवी को गोली मार दी थी और जिसके बात ये बात फेल गयी थी के उस घर में उस औरत की आत्मा आज भी भटकती है और दूसरा खून विपिन सोनी का. पहले खून में तो पति को सज़ा हो गयी थी पर सोनी को मारने वाला आज भी फरार था.
थोड़ी देर वहीं रुक कर मैने एक लंबी साँस ली और आगे बढ़ने के लिए कदम उठाए ही थे के फिर वही गाने की आवाज़ मेरे कान में पड़ी.
आवाज़ अब भी वैसे ही थी. बहुत ही सुरीली और धीमी आवाज़ में कुच्छ गया जा रहा था पर क्या ये समझ अब भी नही आया. फिर ऐसा लगा जैसे कोई माँ अपने बच्चे को एक लोरी गाकर सुला रही है. मैं एक पल के लिए फिर वहीं रुक गया और जब मेरी नज़र बंगलो की तरफ पड़ी तो जैसे मेरी रूह तक काँप गयी.
आवाज़ यक़ीनन बंगलो की तरफ से ही आ रही थी पर जिस बात ने मुझे अंदर तक डरा दिया था वो थी घर के अंदर से आती हुई रोशनी. घर की सारी खिड़कियाँ खुली हुई थी और उनपर पड़े पर्दों के पिछे एक रोशनी एक कमरे से दूसरे कमरे तक आ जा रही थी. लग रहा था जैसे कोई हाथ में एक कॅंडल लिए घर के अंदर एक कमरे से दूसरे कमरे में फिर तीसरा कमरे में घूम रहा है और गाने की आवाज़ भी उसी तरफ से आती जिस तरफ से रोशनी आती. मुझे बंगलो के बारे में सुनी गयी हर वो बात याद आ गयी के इस घर में एक आत्मा भटकती है और लोगों ने अक्सर इस घर में रातों को किसी को गाते हुए सुना है. मैने आज तक कभी इस बात पर यकीन नही किया था और नही ही कभी ये सोचा के ये सच हो सकती है. मैं तो उल्टा ये बात सुनकर हस देता था पर आज जो हो रहा था वो मेरी आँखों के सामने था. बंगलो के अंदर रोशनी मैं अपने आँखो से देख रहा था और गाने की आवाज़ अपने कान से सुन रहा था. मेरे कदम वहीं जमे रह गये और मेरी नज़र उस रोशनी के साथ साथ ही जैसे चलने लगी.
अचानक गाने की आवाज़ रुक गयी और मेरे ठीक पिछे बिल्कुल मेरे कान के पास एक औरत की धीमी सी आवाज़ आई
"इशान"
उसके बाद क्या हुआ मुझे कुच्छ याद नही.
मेरी आँख खुली तो मैं हॉस्पिटल में था. मेरा अलावा कमरे में सिर्फ़ एक रुक्मणी थी.
"क्या हुआ?" मैने उठकर बैठने की कोशिश की
"लेते रहो" मुझे होश में देखकर वो फ़ौरन मेरे करीब आई
"हॉस्पिटल कैसे पहुँच गया मैं?" मैने उससे पुचछा
"तुम बंगलो 13 के सामने बेहोश मिले थे हमें" वो मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोली "क्या हो गया था?"
मेरे दिमाग़ में सारी बातें एक एक करके घूमती चली गयी. वो गाने की आवाज़, रोशनी और फिर मेरे पिछे से मेरे नाम का पुकारा जाना.
"क्या हो गया था?" रुक्मणी ने सवाल दोहराया
अब मैं उसको कैसे बताता के मैं अपना नाम सुनकर डर के मारे बेहोश हो गया था इसलिए इनकार में सर हिलाने लगा.
"पता नही मैं वॉक कर रहा था के अचानक ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा. उसके बाद कुच्छ याद नही"
एक नज़र मैने घड़ी पर डाली तो सुबह के 7 बज रहे थे.
"कौन लाया मुझे यहाँ" मैने रुक्मणी से पुचछा
"मैं और कौन?" उसने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा "जब तुम 3 घंटे तक वापिस नही आए तो मैं और देवयानी ढूँढने निकले. बंगलो के सामने तो सड़क किनारे बेहोश पड़े थे"
मुझे अपने उपेर और शरम आने लगी. मैं डर के मारे 3 घंटे तक बेहोश पड़ा रहा सड़क पे पर इसके साथ ही कई सारे सवाल फिर से दिमाग़ में घूमने लगे. रोशनी देखी वो तो समझ आता है के कोई बंगलो के अंदर हो सकता है पर वो गाने की आवाज़ और मेरे पिछे से मेरा नाम किसने पुकारा था. मुझे याद था के जिस तरह से मेरा नाम लिया गया था उससे सॉफ ज़ाहिर था के कोई मेरे पिछे बहुत करीब खड़ा था. बरहाल मैने रुक्मणी से इस बात का ज़िक्र ना करना ही ठीक समझा.
डॉक्टर ने मुझे हॉस्पिटल से एक घंटे के अंदर ही डिसचार्ज कर दिया. मैं बिल्कुल ठीक था और ऑफीस जाना चाहता था पर रुक्मणी ने मना कर दिया. उसके हिसाब से मुझे आज आराम करना चाहिए था. मेरी कोर्ट में कोई हियरिंग भी नही थी इसलिए मैने भी ज़िद नही की और घर आ गया.
घर पहुँचा तो देवयानी मुझे देखते ही मुस्कुराइ.
"ठीक हो? मैं तो घबरा ही गयी थी"
पता नही वो सच घबराई थी या ड्रामा कर रही थी पर उसका यूँ पुच्छना मुझे जाने क्यूँ अच्छा लगा.
"मैं ठीक हूँ" मैने कहा और अपने कमरे में आ गया. मैं अभी चेंज ही कर रहा था के मेरा फोन बजने लगा. नंबर प्रिया का था.
"कब आएगी तू?" मैने फोन उठाते ही सीधा सवाल किया
"ना ही ना हेलो सीधा सवाल?" दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई "मैं तो आ चुकी हूँ बॉस पर आप ऑफीस कब आएँगे?"
मैने उसको बताया के आज मेरी तबीयत ठीक नही है इसलिए आ नही सकूँगा. थोड़ी देर बात करके मैने फोन रखा ही था के फोन दोबारा बजने लगा. इस बार मिश्रा था.
"क्या हो गया भाई?" इस बार फोन उठाते ही सवाल उसने कर दिया.
"कहाँ?" मैने सवाल के बदले सवाल किया
"अबे कहाँ नही तुझे क्या हो गया. अभी हॉस्पिटल से फोन आया था के कल रात एक औरत किसी इशान आहमेद नाम के वकील को बेहोशी में लाई थी." उसने कहा "अब इशान आहमेद नाम का वकील तो शहेर में तू ही है"
"किसका फोन था?" मैने पुचछा
"डॉक्टर का" उसने जवाब दिया "कह रहा था के वैसे तुझे कोई चोट नही थी इसलिए कल रात ही फोन नही किया पर जब पता चला के तू सड़क के किनारे पड़ा मिला था तो उसने हमें बताना बेहतर समझा"
"मैं ठीक हूँ यार" मैने कहा "ऐसे ही थोड़ा सर चकरा गया था. एक काम कर आज शाम को डिन्नर करते हैं साथ. फिर बताता हूँ"
मैं मिश्रा से उस रोशनी और गाने के बारे में बात करना चाहता था इसलिए रात को डिन्नर के लिए पास के एक होटेल में मिलने को कहा.
मैं नाहकार कमरे से बाहर जाने की सोची ही रहा था के रुक्मणी कमरे में आ गयी.
"कैसा लग रहा है अब?" उसने मुझसे पुचछा
"मैं ठीक हूँ. वो तो तुम ज़बरदस्ती घर ले आई वरना मैं ऑफीस जा सका था" मैने अपने बालों में कंघा घूमाते हुए कहा
मेरी बात सुनकर वो हस पड़ी.
"इसलिए ले आई क्यूंकी तुम्हारी फिकर है मुझे. कुच्छ चाहिए तो नही?"
इस बार सवाल सुनकर मैं हस पड़ा.
"तुम जानती हो मुझे क्या चाहिए" मैने आँख मारी
"उसका इंतज़ाम तो नही हो सकता" उसने कहा
"देवयानी घर पे है?" मैने पुचछा तो वो इनकार में सर हिलाने लगी
"बाहर गयी है" कहते हुए वो मेरे करीब आई और मेरे गले में बाहें डालकर खड़ी हो गयी
"तो क्यूँ नही हो सकता?" मेरे हाथ उसकी कमर पर आ गये
"आज डेट क्या है भूल गये क्या?" कहते हुए उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए
मुझे याद आया के इन दीनो उसके पीरियड्स होते हैं. देवयानी के घर पर ना होने की बात सुनकर मेरा जो चेहरा खिल गया था वो पीरियड्स की बात सोचकर मुरझा गया
"फिकर मत करो" मेरे चेहरे के बदलते भाव रुक्मणी ने पढ़ लिए "एक इंतज़ाम और है मेरा पास"
कहते हुए उसने अपना हाथ मेरे सीने पर रखा और मुझे बेड की तरफ धक्का देकर गिरा दिया. मैं समझ गया के वो क्या करने वाली है इसलिए आराम से लेटकर मुस्कुराने लगा. मेरे सामने खड़ी रुक्मणी ने अपनी कमीज़ को उपेर की तरफ खींचा और उतारकर एक तरफ फेंक दिया. फिर खड़े खड़े ही उसके हाथ पिछे गये और अपना ब्रा खोलकर उसने कमीज़ के साथ ही गिरा दिया. उपेर से नंगी होकर वो बिस्तर पर आई और एक हाथ पेंट के उपेर से ही मेरे लंड पर फिराया और मेरे पेट पर किस किया.
"आआहह " उसके यूँ लंड पकड़कर दबाने से मेरे मुँह से आह निकल गयी.
वो मेरे पेट पर किस करती हुई धीरे धीरे उपेर की ओर आने लगी. मेरी च्चती पर किस करते हुए उसके होंठ मेरे निपल्स तक आए और वो मेरे निपल्स चूस्ते हुए उनपर जीभ फिराने लगी. उसकी इस हरकत से मुझे हमेशा गुदगुदी होती थी और इस बार भी ऐसा ही हुआ. मुझे गुदगुदी होने लगी और मैं उसका चेहरा अपने निपल्स से हटाने लगे.
मुझे हस्ते देखकर वो खुद भी हस्ने लगी और फिर अगले ही पल उपेर को होकर अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए.
उसका उस दिन मुझे यूँ चूमना अजीब था. उसके चूमने के अंदाज़ में जैसे सब कुच्छ शामिल था सिवाय वासना के. उसके मेरे लिए प्यार, मेरे लिए फिकर करना, मेरे लिए परेशान होना सब कुच्छ उस एक चुंबन से ज़ाहिर हो रहा था. वो मेरे यूँ बेहोश मिलने से घबरा गयी थी ये बात मैं जानता था. हालाँकि उसने अपने मुँह से कुच्छ नही कहा था पर उसके चेहरे पर मैने सब कुच्छ देख लिया था. और इस वक़्त भी वो मुझे ऐसे चूम रही थी जैसे कोई मुझे उससे छींके ले गया था और वो बढ़ी मुश्किल से अपनी खोई हुई चीज़ वापिस लाई है. वो ऐसी ही थी. कहती नही थी कुच्छ और ना ही मुझपर हक जताती थी पर दिल ही दिल में बहुत ज़्यादा चाहती थी मुझे.
उसके दिल में अपने लिए मोहब्बत देखकर मैने भी पलटकर उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसी तरह से उसको चूमने लगा. उसके होंठ से लेकर उसके चेहरे और गले के हर हिस्से पर मेरे होंठ फिर गये. वो हल्की सी उपेर को हुई और मेरे साइड में लेते लेते अपनी दोनो छातियो मेरे चेहरे के उपेर ले आई. उसके दोनो निपल्स मेरे मुँह के सामने लटक गये जिन्हें मैने फ़ौरन अपने होंठों के बीच क़ैद कर लिया और बारी बारी चूसने लगा. मैने एक निपल चूस्ता तो दूसरी फिर से मेरे जिस्म को चूमती हुई नीचे को जाने लगी. मेरे पेट से होती हुई वो मेरे लंड तक पहुँची और बिना लंड को हाथ लगाए उसके अपनी एक जीब मेरे लंड के नीचे से उपेर तक फिरा दी.
"आआक्कककक रुकी" मैं बिस्तर पर हमेशा उसको प्यार से रुकी बुलाता था और इस वक़्त भी लंड पर उसकी जीभ महसूस होने से मेरे मुँह से उसका वही नाम निकला.
वो कुच्छ देर तक यूँ ही मेरे लंड पर बिना हाथ फिराए जीभ घूमती रही. मेरे पूरा लंड उसकी जीभ से गीला हो चुका था. फिर वो थोड़ा और नीचे हुई और अपने दोनो हाथो से मेरी टांगे फेला दी. आपने चेहरा उसने नीचे को झुकाया और मेरी बॉल्स के ठीक नीचे से अपनी जीभ उपेर मेरे लंड तक फिराने लगी. उसकी इस हरकत से मेरा पूरा जिस्म जैसे काँप उठा और एक पल के लिए मेरे दिमाग़ में ये ख्याल तक आ गया के आज पीरियड्स में सेक्स करके देख लूँ. ऑफ कोर्स ये ख्याल मैने दिमाग़ से फ़ौरन निकाल भी दिया.
रुक्मणी ने चेहरा उठाकर मेरी और देखा और मुस्कुराइ और मेरे लंड को अपने मुँह में लिया. मुझसे नज़र मिलाए मिलाए ही वो लंड अपने मुँह में लेती चली गयी जब तक के मेरा पूरा लंड उसके मुँह में गले के अंदर तक नही पहुँच गया. लंड यूँ ही मुँह में रखे रखे वो अंदर ही अंदर अपनी जीभ मेरे लंड के निचले हिस्से पर रगड़ने लगी. कुच्छ देर तक यूँ ही करने के बाद उसने लंड बाहर निकाला और फिर से अपने मुँह ही ले लिया और अंदर बाहर करने लगी. अब उसका एक हाथ भी इस मेरे लंड तक आ चुका था. वो मेरे लंड की उपेर के हिस्से को चूस रही थी और नीचे से हाथ से हिला रही थी. उसका दूसरा हाथ नीचे मेरी बॉल्स को सहला रहा था. कभी वो लंड और हाथ का ऐसे कॉंबिनेशन मिलती के मेरे लिए रोकना मुश्किल हो जाता. लंड मुँह में जाता तो हाथ लंड को नीचे से पकड़ता और जब मुँह से निकलता तो हाथ लंड को सहलाता हुआ उपेर तक आ जाता.
जब रोकना मुश्किल हो गया तो मैने उसका सर अपने हाथों में पकड़ लिया और नीचे से कमर हिलाने लगा. वो इशारा समझ गयी और चूसना बंद करके अपना मुँह पूरा खोल दिया. मैं नीचे से लेटा लेटा ही धक्के मारने लगा और उसके मुँह को चोदने लगा. एक आखरी धक्का मारकर मैने पूरा लंड उसके गले तक उतार दिया और लंड ने पानी छ्चोड़ दिया.
क्रमशः..........................