अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:39

अधूरा प्यार--5 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...

इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

'' मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "

दोस्तों कहानी का ये पार्ट पढ़ने के बाद कमेन्ट जरूर देना इस कहानी को आगे भी पोस्ट करू या नही

गतांक से आगे ............................

"थोड़ी देर बातें मत करो प्लीज़... मुझे कुच्छ सुनाई नही दे रहा.." श्रुति अब पूरी रंग में रंग चुकी थी....

"क्या हुआ?" नितिन ने अंजान बनते हुए पूचछा...

"पता नही.. पर प्लीज़.. बाद में चाहे कुच्छ पूच्छ लेना.. अब सहन नही हो रहा.." श्रुति बदहवास हो चुकी थी..

"स्कर्ट निकाल दो.." नितिन ने कहते हुए उसके गालों को चूम लिया....

नितिन के इस आदेश को पूरा करने में श्रुति ने एक पल भी नही लगाया.. उसको तो पहले ही नितिन और उसकी जांघों के बीच कपड़े की वो बारीक सी दीवार अपनी सौतन लगने लगी थी.. इस आदेश को श्रुति ने उसकी जान बखसने की शर्त नही बुल्की निमंत्रण माना.. झटके के साथ वह उठी और जांघों से स्कर्ट को खिसका उसके नितंबों से उपर करके कमर तक चढ़ा लिया और तुरंत वापस बैठ गयी...

श्रुति के नितंब उसके गालों की तरह ही गोरे और एकद्ूम चिकने थे.. उनको देख नितिन भी पागला सा गया और अपनी सारी प्लॅनिंग भूल कर उस पर टूट पड़ा.. श्रुति को अपनी गोद से उठाकर बेड पर पटका और उसके नितंबों की करारी खाई में अपनी उंगली फिराने लगा.. आनंद के मारे श्रुति ने उनको और उपर उठा चौड़ा करके उस गहराई को थोड़ा कम कर दिया...

"आआआहह बापू.. मैं तो गयी..." करारी और सॉफ किए हुए हुल्के बालों वाली योनि के दाने पर जैसे ही नितिन की उंगली ने स्पर्श किया.. श्रुति के बदन में आनंद की एक मीठी सी लहर दौड़ गयी.. एक ही पल में नितिन का हाथ मीठी गंध के योनि रस से तरबतर हो गया... श्रुति बिस्तेर पर अर्धमूर्छछित अवस्था में लंबी लंबी साँसे ले रही थी...

पर नितिन अब उसको आराम देने के मूड में नही था... उसने अपना पयज़ामा उतार फैंका.. वह भी बिना अंडरवेर के ही सोच समझ कर आया था... पयज़ामा उतारते ही फन उठाकर खड़े हो गये उसके हथियार को उसने श्रुति के हाथ में दे दिया.. श्रुति उल्टी लेटी होने के कारण उसको ढंग से देख नही पा रही थी... पर हाथ में गरमागरम तने हुए नितिन के लिंग के आते ही वह पलट गयी," हाए राम.. इतना बड़ा..!" आस्चर्य से उसने कहा..

नितिन बिना कुच्छ बोले सिर्फ़ मुस्कुराया और बाकी बचा हुआ श्रुति का शरीर भी स्कर्ट से बेदखल कर दिया... स्कर्ट से बाहर आते ही श्रुति की गोरी मस्त चूचियाँ कबूतरों की तरह फड़फड़ने लगी.. सख़्त हो जाने के बावजूद प्यारी सी कोमलता समेटे हुए दोनो चूचियों को अपने हाथों से मसलकर उनका आनंद लेता हुआ नितिन श्रुति की छाती पर आ चढ़ा.. उसका लिंग अब श्रुति की चूचियों के बीच फुफ्कार रहा था.. थोड़ा आगे झुक कर नितिन ने उसको श्रुति के होंटो से छुआ दिया.. पर श्रुति समझ नही पाई कि क्या करना है..?"

"मुँह खोलो..." पगलाए हुआ सा नितिन अब भी आदेशात्मक आवाज़ का इस्तेमाल कर रहा था..

श्रुति अब उसका इशारा समझ गयी.. अपना मुँह पूरा खोल कर उसने होंटो को गोल करके जितना हो सका उसने उनका दायरा बढ़ा दिया... नितिन ने झुक कर उसके मुँह में अपना सूपड़ा थूस दिया...," चूसो इसे... और अंदर लेने की कोशिश करो.. गले तक.."

श्रुति को ये सब अजीब सा लगा.. पर बेहूदा बिल्कुल नही.. अपनी तरफ से वो पूरी कोशिश करने लगी.. जितना अंदर ले सकती थी लिया और फिर अपना मुँह हिलाकर उसको अंदर बाहर करने लगी.. नितिन आनंद के मारे मरा जा रहा था.. सच है कि इस खेल में अनुभव का अलग ही मज़ा है.. पर ये भी सच है कि पार्ट्नर अगर बिल्कुल अनाड़ी हो तो उत्तेजना अपने चरम पर रहती है...

अचानक नितिन को लगा कि वह अब कुच्छ पल का ही मेहमान है तो उसने श्रुति के हाथों को दबोचा और पूरी ताक़त से अपना लिंग उसके गले में उतार दिया...

श्रुति छॅट्पाटा उठी.. उसको अपना दम घुट'ता सा महसूस होने लगा और उसने उसको निकालने की भरसक कोशिश की.. पर जब तक वो सफल होती.. नितिन के लिंग से निकले रस की धार उसके गले को तर करती चली गयी.. और उसके बाद अपने आप ही लिंग ने छ्होटा होकर उसको साँस लेने लायक जगह गले में दे दी...

नितिन मुस्कुराता हुआ उसके उपर से उठ गया.. श्रुति कुच्छ समझ नही पाई.. जिस पल नितिन ने उसके गले में लिंग फँसाया.. उसको तो यही अहसास हुआ था कि ये कोई मारने का तरीका है.. नितिन के अपने उपर से हट जाने के बाद वो उसको आँखें फाड़ कर देखने लगी...

"क्या हुआ..? नितिन ने उसको अपनी बाहों में उठा अपनी गोद में लिटा सा लिया.. इस स्थिति में श्रुति के नितंब एक बार फिर नितिन की जांघों के बीच थे.. पर इस बार नज़ारा दूसरा था.. गोद में सीधी लेटी हुई श्रुति की जांघों में छिपि बैठी कुँवारी तितली लाल होकर नितिन के मुँह में लार का कारण बन रही थी..

श्रुति को जब तक समझ में आता.. नितिन उसको बिस्तेर पर लिटा 69 की पोज़िशन में उसके उपर आ चुका था.. जैसे ही नितिन ने श्रुति की योनि को अपने होंटो से च्छुआ, उसकी सिसकी निकल गयी..,"अया.. ये क्या है?" कसमसाते हुए श्रुति ने कहा...

"बस देखती जाओ.. तुम्हारा दिल करे वो तुम करो.. मेरा दिल जो कर रहा है.. वो मैं करूँगा.." कहते ही नितिन ने वापस उसकी योनि से अपने होन्ट सताए और उसकी पतली फांकों के बीच रास्ते को अपनी जीभ से कुरेदने लगा..

श्रुति उन्माद से पागल सी होती जा रही थी.. जब कुच्छ और उसकी समझ में नही आया तो अपनी आँखों के सामने झूल रहे उसके लिंग को अपने सिर के नीचे तकिया लेकर अपने मुँह में भर लिया.. और पहले की तरह चूसने लगी...

खेल करीब 5 मिनिट तक चला... दोनो पागल से होकर एक दूसरे के अंगों को काट खाने को उतावले से होने लगे.. जैसे ही श्रुति की सिकियाँ बढ़ने लगी.. नितिन ने तैयार होकर अपने होंटो को पूरा खोलकर उसकी योनि को ढक लिया.. ताकि रस के एक भी कतरे से वह वंचित ना रह पाए... सखलन आरंभ होते ही श्रुति ने अपने नितंबों को उपर उठा लिया और हाँफने लगी.. बिस्तेर पर निढाल पड़ी हुई श्रुति पहले ही दिन दूसरी बार यौन आनंद के सागर में गोते लगाने लगी...

साँसों की गति कम होने पर जैसे ही श्रुति ने आँखें खोली, नितिन को सामने बैठकर अपनी जांघों के बीच कुच्छ टटोलते पाया... वासना की खुमारी उतरने के बाद जब उसने नितिन को इस तरह अपनी कुँवारी योनि पर नज़रें गड़ाए देखा तो वह शरम से लाल हो गयी," क्या कर रहे हो?"

"अभी पता चल जाएगा..." नितिन ने इतना ही कहा और उसकी रस से तर योनि में अपनी उंगली घुसा दी.. हुल्के पर अजीब से दर्द ने श्रुति को उच्छलने पर मजबूर कर दिया..," ऊओई.. "

नितिन उसकी और देखकर मुस्कुराया और बोला," सच में लड़कियाँ इतनी कमसिन और नादान होती हैं.. आज पहली बार पता लगा...!"

ज़बरदस्ती वहाँ लाकर उसको डरा धमका हर बात के लिए मजबूर करने को नितिन के द्वारा 'प्यार' का नाम देने पर श्रुति की आँखें डॅब्डबॉ गयी..," प्यार ऐसे होता है क्या? जान से मारने की धमकी देकर.." श्रुति में जाने कहाँ से व्यंग्य करने का साहस आ गया...

"कौन मार रहा है तुमको जान से... तुम तो जान के करीब रखने वाली चीज़ हो जानेमन..." नितिन ने उंगली धीरे धीरे आगे पीछे करनी शुरू कर दी.. अब उंगली सररर से अंदर बाहर हो रही थी.. बिना रुकावट के..."

"अब तो मुझे बखस दोगे ना..? जाने दोगे ना यहाँ से...?" श्रुति बहकति हुई साँसों के साथ भावुक हो उठी...

"तुम्हे कुच्छ नही होगा जान.. मैं बाद में बात करूँगा... अब प्लीज़ चुप हो जाओ और प्यार करने का आनंद लो.. मेरा वादा है.. तुम जो चाहोगी वैसा ही होगा..." नितिन इतने कोरे माल को पाकर धन्य हो उठा था...

श्रुति ने अपनी आँखें बंद कर ली और एक बार फिर नितिन की उंगली के साथ अपने नितंबों की थिरकन से ताल मिलाने लगी.. नितिन का जोश भी अब हिलौरे मार रहा था.. उसने अपनी उंगली निकाली और श्रुति की टाँगें उपर उठाकर योनि के होंटो पर अपना लिंग सटा दिया...

इसके साथ ही श्रुति को फिर से बेचैनी सी महसूस होने लगी.. उंगली की बजाय इस गरम और मोटी चीज़ का स्पर्श ज़्यादा आनंदकरी था.. पर इतना मोटा?.. यही सोचकर उसकी धड़कने बढ़ने लगी थी," प्लीज़.. आराम से.. तो... आआआआअहह.. मर गयी.. निकाल लो... प्लीज़.." श्रुति का लहज़ा बोलते बोलते अचानक बदल गया.. आनंद अचानक तीव्र पीड़ा में बदल गया और अंदर गये औजार को बाहर निकालने की अनुनय करती हुई वा च्चटपटाने सी लगी...

"अब निकालने का कोई फायडा नही जान.. उल्टा दर्द ज़्यादा ही होगा..." कहते हुए अपने सूपदे को योनि मुख में डाले हुए ही उसने श्रुति को कसकर दबोचा और उसकी चूचियो पर झुक गया... गोल गोल छाती को एक हाथ से प्यार से मसलता हुआ नितिन जैसे ही उसकी दूसरी चूची से रास्पान सा करने लगा.. श्रुति का मन दावदोल हो गया.. आनंद और पीड़ा की एक साथ अनुभूति ने उसको अजीब से धर्मसंकट में डाल दिया... धीरे धीरे जब उसकी पीड़ा कम होनी शुरू हुई तो आनंद उस पर हावी हो गया और वो फिर से 'तीसरी' बार की तैयारी में मस्त होकर नितंब उपर उठाने लगी.. नितिन धीरे धीरे अंदर होता जा रहा था...

"आआआहह.." जैसे ही नितिन का लिंग पूरा श्रुति के अंदर समाया, श्रुति पागल सी हो गयी.. दर्द के मारे नही.. आनंद के मारे.. नितिन ने लगभग पूरा लिंग बाहर खींचा और इस बार ज़्यादा तेज़ी के साथ अंदर कर दिया.. तेज़ी बढ़ने से आनंद में भी वृधि हुई थी.. श्रुति ने नितिन की कमर पर हाथ ले जाकर उसको अपनी चूचियो पर चिपका लिया.. अब रास्ता एकद्ूम सॉफ था.. नितिन के धक्कों की गति तेज हो गयी और हर धक्के के साथ वो बढ़ती ही गयी.. साथ में साँसें भी... साथ में धड़कने भी.. श्रुति के मंन का सारा डर निकल कर अब वासना के इस अजीबोगरीब सफ़र में नितिन का हुमराही बन गया.. नितिन उपर से धक्का लगाता और एक उसी वक़्त श्रुति नीचे से... धक्कम धक्का की इस रेलाम पेल में उनको ये अहसास तक नही हुआ कि बिस्तेर की चदडार का एक छ्होटा सा हिस्सा खून के धब्बों से रंग चुका है... ये रेलाम पेल तब तक जारी रही, जब तक कि श्रुति ने तीसरी बार सखलित होकर अपनी जांघें भींचने की कोशिश शुरू नही कर दी... अब नितिन का ठहरना नामुमकिन था.. पर अंदर ही झड़ने की बजाय उसने श्रुति के योनि रस और खून से सना अपना लिंग निकाल कर उसके पेट पर धारदार पिचकारी छ्चोड़ दी.... और फिर उसके उपर लाटेकर ही अपनी साँस उतारने लगा....

श्रुति की आँखें नम हो गयी... नितिन ने देखा और पूचछा," क्या हुआ?"

"अब तुम मुझे मारोगे तो नही ना....?" श्रुति ने उसकी आँखों में देखते हुए पूचछा....

"तुम तो बिल्कुल पागल हो... जाओ.. जाकर नहा लो.. फिर बात करते हैं..." कहते हुए नितिन ने उसको बाहों में उठाया और बाथरूम के दरवाजे पर उतार दिया...," मैं भी नाहकार आता हूँ.. तब तक..."

श्रुति उसको गौर से देखती हुई पल पल में आ रहे उसमें बदलाव के कारण को समझने की कोशिश करने लगी... अटनाक से ग्रस्त उसके दिल के एक छ्होटे से हिस्से में अब जीने की आस बढ़ गयी थी..

बाथरूम से नहा कर श्रुति ठहरे और थके हुए कदमों से बाहर निकली.. उत्तेजना का भूत दिमाग़ से उतरते ही उसको फिर से 'अपनी जान' और बापू की चिंता सताने लगी.. नितिन नहा धोकर बेड पर पसरा हुआ था.. श्रुति को देखते ही उसने बैठ कर अपनी बाहें फैला दी," आओ जाने मॅन!"

श्रुति किसी खिलौने की तरह उसके करीब आकर खड़ी हो गयी.. नितिन ने हाथ बढ़कर उसका हाथ पकड़ा और अपनी बाहों में खींच लिया.. श्रुति निढाल सी उसके उपर जा गिरी...

नितिन ने प्यार से उसके गालों को चूमा," तुम किसी बात की फिकर ना करो... वो सब सिर्फ़ एक नाटक था.. तुम्हे डराने के लिए.. ताकि तुम चुपचाप मेरी हर बात मान लो.."

नितिन के बात करने के लहजे में आए बदलाव से श्रुति कुच्छ हद तक निसचिंत हुई.. पर पूरी तसल्ली उसको नही हुई थी," पर.. वो लाशें?" याद करते हुए श्रुति का पूरा बदन झनझणा उठा...

"हा हा हा... एक मिनिट.. भगवान दास...!" नितिन ने ज़रा ज़ोर से आवाज़ लगाई...

"जी साहब.."भगवान दास दरवाजे के बाहर से बोला...

नितिन उठा और दरवाजा खोलते हुए बोला," ज़रा एक बार वो लाश उठाकर लाना..!"

भगवान को अहसास नही था कि नाटक ख़तम हो चुका है.. नितिन के करीब आते हुए धीरे से बोला..," पर साहब.. उनको तो मैने धो दिया है..."

"हां.. हां.. वही.." कहते हुए नितिन वापस बिस्तेर पर आकर श्रुति से दूरी बनाकर बैठ गया...," दरअसल वो रब्बर के पुतले हैं.. शिकार के दौरान उन्न पर खून लगा मैं उनको जानवरों को आकर्षित करने के लिए यूज़ करता हूँ.. अभी तुम पूरी रोशनी में उनको देखोगी तो सब समझ जाओगी..."

श्रुति प्रतिक्रिया देने ही वाली थी कि भगवान दास 'एक लाश' को बालों से पकड़ कर खींचता हुआ कमरे में ले आया...

श्रुति हैरत के मारे उच्छल पड़ी," ये तो... नकली हैं...!"

"मैं क्या अभी फ़ारसी में बोल रहा था...!" नितिन ने मुस्कुराते हुए कहा...," मैं क्या तुम्हे आदमख़ोर दिखाई देता हूँ...?"

श्रुति ने खुद को ठगा सा महसूस किया... ये पुतले ही थे जिन्होने श्रुति को अपनी मर्ज़ी से बिना किसी प्रतिरोध के अपना शरीर नितिन को सौंपने पर मजबूर कर दिया.. वरना..," अब तो मुझे घर छ्चोड़ आओ.. मैं कुच्छ भी कह दूँगी बापू को... सुबह तक नही गयी तो वो तो मर ही जाएँगे..."

"अभी कहाँ.. अभी तो तुम्हे लाने का असली मकसद पूरा करना है... बापू जी की चिंता मत करो.. मैने एक लड़की से घर फोने करवा दिया है कि तुम उसके पास हो..." नितिन ने श्रुति को धाँढस बँधाया...

"पर... तुम्हे घर का नंबर. कहाँ से मिला...?" श्रुति ने आस्चर्य से कहा...

" तुम्हारे बापू से लिया था.. जब मैं और वो अकेले बैठे थे... यूँही.." नितिन दरवाजा बंद करके उसके पास आकर बैठ गया...

श्रुति को अब अपने आप से ग्लानि हो रही थी.. जान बचने का भरोसा मिलने के बाद उसको अपने भंग हो चुके कौमार्या का गहरा पासचताप था... ये पीड़ा अब उसके दिल में टीस बनकर उभरने लगी...," पर आपने ऐसा क्यूँ किया.. मेरे साथ?" श्रुति ने भावुक होकर दर्द से भारी आँखों से नितिन की आँखों में देखा..

"तुम्हारे 10 करोड़ और अपने 30 करोड़ के लिए.. अगर तुम मुझसे शादी करना चाहो तो ये हमारे 40 करोड़ भी हो सकते हैं..." शादी का जिकर करके नितिन ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया.. उसको कतयि अहसास नही था कि उसको शादी के लिए प्रपोज़ करने वाला पहला शख्स इस अंदाज में उस'से रूबरू होगा.... सोचकर ही श्रुति पूरी तरह टूट गयी और सुबकने लगी...

"डॉन'ट बी एमोशनल यार.. जिंदगी में कुच्छ हासिल करने के लिए कुच्छ खोना ही पड़ता है... और 10 करोड़ के लिए ये कीमत कुच्छ भी नही.. तुम रोना धोना छ्चोड़ ध्यान से मेरी बात सुनो...!" नितिन ने उसकी और गौर से देखते हुए कहा...

"क्या सुनू मैं अब?" श्रुति फट सी पड़ी..," आपको अहसास भी है कि एक लड़की के लिए उसकी इज़्ज़त क्या मायने रखती है.. ? आप मेरी कीमत लगा रहे हो.. मेरी जिंदगी की... अब अगर मैं जियूंगी तो सिर्फ़ बापू के लिए.. घुट घुट कर.. आपको नही पता की आपने मुझे क्या जखम दिया है..!" श्रुति सुबकने लगी...

"पर मैने कहा ना.. मैं तुमसे शादी तक करने को तैयार हूँ.. मेरी बात तो सुन लो..." नितिन एक पल के लिए श्रुति की नफ़रत उगलती आँखों को देख बॅकफुट पर आ गया...

" सीना तान कर कहते हो कि जाने कितनी ही लड़कियों को इस तरह बिस्तेर पर लेकर आए हो! किस किस से शादी करोगे.. बलात्कार करने के बाद... बोलो!" श्रुति चिल्ला पड़ी.. उसके आँसू अब भी नही थम रहे थे...

"हे.. एक मिनिट.. मैने तुम्हारे साथ कोई ज़बरदस्ती नही की.. मेरे पास सबूत भी है.. अब मेरी नरमी का ज़्यादा फयडा उठाने की कोशिश मत करो.. शादी के लिए मैने सिर्फ़ इसीलिए ऑफर किया है कि तुम मुझे पसंद हो.. इसीलिए नही कि मैं तुमसे प्यार करने का हर्जाना भुगतना चाहता हूँ.. समझी.. चुप चाप मेरी बात सुनो.. वरना भगवान दास को भी नयी नयी लड़कियों का बड़ा शौक है... और उसका अंदाज तुमसे सहन नही हो पाएगा..." नितिन खिज कर गुर्राने सा लगा...

श्रुति को तो डरने के लिए हूल्का सा इशारा ही काफ़ी था.. खुद को भगवान दास को सौंप दिए जाने की धमकी सुनकर तो वह थर्रा सी उठी... यहाँ वह उनका विरोध कर भी कैसे सकती थी.. अपने आपको सिसकने से रोकने की कोशिश करते हुए उसने आँसुओं को पौंच्छा और चुप होकर बैठ गयी....

"मेरा एक काम तुम्हे करना होगा.. बदले में तुम्हे मैं इसकी कीमत भी दूँगा.. 10 करोड़..." नितिन ने उसके हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा....

"क्या? " श्रुति का जवाब 10 करोड़ के लालच की वजह से नही आया.. पर जवाब देना ज़रूरी था.. बात सुन'ना ज़रूरी था..

"पहले तुम्हे मैं एक कहानी सुना दूं... रोहन अपने बाप का इकलौता लड़का है.. जाहिर है उसके बाप की 80 करोड़ की वसीयत सीधी उसके ही हिस्से आनी है... पर मुझे नही लगता वो इस दौलत को संभाल पाएगा.. बड़ा सीधा और सरल है बेचारा... कोई ना कोई उस'से वो दौलत हथिया ही लगा.. तो क्यूँ ना मैं ही कुच्छ सोच लूँ.. हे हे हे.. वैसे मुझे बड़ा भाई मानता है बेचारा...!" कहते हुए नितिन रुक गया...


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:40

श्रुति के कोई प्रतिक्रिया ना देने पर उसने बोलना जारी किया..," दर असल कयि महिने से उसको अजीब से सपने आ रहे हैं... उसके सपनो में तुम आती हो और अपने पास बुलाती हो.. पूर्व जनम का वास्ता देकर.. ये सब अजीब है और मेरी समझ से बाहर भी.. पर कुच्छ घटनाओ ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया है.. रात को तुम्हारा जो कमीज़ फटा.. वो तुमने खुद उसके सपने में फाडा था.. कितना अजीब है ना.. खैर हमें उस'से क्या लेना देना.. सिर्फ़ काम की बात सुनो.. तुम्हे देखकर वो तुम्हे ही अपने सपनो की रानी मान'ने लगा था.. पर फिर सपने में तुमने ही उसको ये बोला कि वो लड़की मैं नही हूँ.. कोई और है.. नीरू नाम की.. समझी कुच्छ?"

"नही..!" सच में श्रुति के मॅन में कुच्छ भी पल्ले नही पड़ा...

"चलो एक मिनिट.. तुम्हे सारी बात विस्तार से बताता हूँ.." कहकर नितिन उसको पूरी कहानी बताने लगा जो उनके टीले पर जाने से शुरू हुई और आज दोपहर रोहन द्वारा सारी सपना-कहानी का पटाक्षेप करने पर ख़तम....

"अगर उसकी सारी कहानी उसके दिमाग़ का वेहम है तो फिर तुम्हे वो पीपल के पास दौरा क्यूँ पड़ा..?" श्रुति ने कहानी में पूरी दिलचस्पी ली.. हालाँकि वह उसको उसके दिमाग़ का वेहम नही बुल्की पूर्वजनम की कोई सच्ची अनकही कहानी मान रही थी...

"वो मैने नाटक किया था.. एक तरफ मैं उसको ये कह रहा था की ये सब कुच्छ नही है.. दूसरी तरफ उसके दिमाग़ में थूस थूस कर नीरू का भूत भर देना चाहता हूँ.. ताकि उसको मुझ पर रत्ती भर भी शक ना हो..." नितिन ने जैसे अपने मन की पूरी गंदगी निकाल कर उसके सामने रख दी...

श्रुति ने उसकी आँखों में देखा.. नितिन को अपने लिए श्रुति की आँखों में घृणा का संचार होते देखा," ऐसे क्या देख रही हो?"

"कुच्छ नही.. अब.. मुझसे क्या चाहते हो...?" श्रुति ने नज़रें झुकते हुए कहा...

"यही कि तुम इस प्लान में मेरा साथ दो... तुम रोहन को विस्वास दिलाओ की तुम्हे सब कुच्छ याद आ गया है.. और तुम्ही उसके पूर्वज़नम की प्रिया हो.. यानी इस जनम में रोहन की नीरू...!"

......................................................................................................

"समय की पाबंदी तो कोई तुमसे सीखे.. कितने बजे का टाइम दिया था तुझे?" रोहन रविंदर के आते ही उस पर गुर्राया...

"ओये होये.. क्या बात हो गयी यारा...? टेन्षन ना ले.. आ तो गया ना मैं.. देख तेरी खातिर बिना नहाए ही भाग आया हूँ उठते ही... खाली ड्राइक्लेन की और पर्फ्यूम लगा लिया..," रविंदर ने अगली बात धीरे से उसके कान में कही," मैइले कपड़ों में ही.. धुले हुए मिले ही नही यार.. तूने कल रात को ही बताया..."

"तू नही सुधरेगा...! ट्रेन निकाल दी ना.. ट्रेन से चलने का प्रोग्राम था.. अब बस से जाना पड़ेगा.." रोहन ने मुँह बनाया...

" ऐसी भी क्या जल्दी है? आने वाली अपने आप सुधार देगी.. कोई इस जैसी सोहनी.." पास से गुजर रही सुंदर सी मस्त फिगर वाली लड़की को देखकर रविंदर ने जुमला फैंका... लड़की ने शायद बात सुन ली.. अपनी चाल को धीमी करके लड़की ने रविंदर को घूरा और आगे निकल गयी..

"देख कैसे देख रही थी.. मुझे ऐसी ही किसी की ज़रूरत है.. लाल मिर्ची जैसी.. जो मुझे सुधार सके.. है ना!.. हे हे हे" रविंदर ने थोड़ी और तेज आवाज़ में बात कहकर लड़की तक अपनी फरियाद पहुँचा ही दी....

"अपनी ज़ुबान को फेविकोल से चिपका कर रखा कर.. नही तो किसी दिन ऐसी धुलाई होगी कि.." रोहन ने वापस मुड़कर देख रही लड़की की तरफ देख कर आँखों ही आँखों में खेद प्रकट किया..

"ओये धुलाई उलाई छ्चोड़.. चल बस स्टॅंड ढूँढते हैं.. नही तो बस निकलने का ठीकरा भी मेरे ही सिर फोड़ेगा तू... बाकी लड़की पटाखा थी यार... नही?" रविंदर अब भी बाज नही आया...

"अबे ये क्या है चाचा... बस स्टॅंड ही तो है ये!" रोहन चिल्ला उठा...

"ओह माइ गॉड.. आइ'एम सो सॉरी.. मैं तो भूल ही गया था कि तूने मुझे दोबारा फोन करके बस-स्टॅंड पर आने को बोला था.. पर हम जा कहाँ रहे हैं.. ये तो बता दे..." रविंदर का बोलना बदस्तूर जारी था...

"जहन्नुम में.. अब तू चुप चाप खड़ा रह.. थोड़ी देर.. बस आने वाली है..."

"देख भाई.. जन्नत में चल या जहन्नुम में.. पर ख़टरा बस में में नही जाउन्गा.. नयी सी बस होनी चाहिए कोई... एक्सप्रेस!" रविंदर ने कहा...

"हुम्म.. तेरे बाप दादा ने एरपोर्ट बनवा रखा है यहाँ... खैर.. उसकी चिंता मत कर.. ए.सी. कोच है.."

"फिर ठीक है.. देख भाई.. जहाँ भी चलना है.. मुझसे बात मत करना.. रास्ते भर सोता जाउन्गा.. आज 5 घंटे पहले उतना पड़ गया.. तेरी वजह से... वैसे चलना कहाँ है यार.. बता ना..."

"तू चुप होगा तभी तो मैं बात करूँगा....यहाँ से अमृतसर चल रहे हैं.. आगे की आगे बताउन्गा.. अब और कुच्छ मत पूच्छना...!" रोहन ने उसको कहा...

"अमृतसर? अमृतसर में तो एक बार मेरी दादी खो गयी थी यार... स्वरण मंदिर के आगे कुलच्चे खाने के लिए गाड़ी से उतर गयी.. और मेरे दादा जी को याद ही नही रहा की उनके साथ दादी जी भी हैं.. बस.. फिर क्या था.. गाड़ी स्टार्ट करके चलते बने... बाद में ध्यान आया तो बड़े परेशान हुए.. पता है ढूँढते हुए वापस आए तो दादी क्या करती मिली...?" रविंदर तूफान मैल की तरह था....

"क्या यार?" रोहन ने खीजकर कहा...

"कुल्छे खाते मिली.. और क्या? कुल्छे खाने ही तो उतरी थी.. हे हे हे"

"बस अब चुप हो जा... बस आ गयी.. चल बॅग उठा...." रोहन ने उसका भोँपू बंद करवाया और बॅग उठाकर वो बस की तरफ चल पड़े....

"आहा.. अगर बस की सीट ऐसी हों तो फिर घर का पेट्रोल क्यूँ फूँकना....! सच में.. मस्त नींद आएगी यहाँ तो.." कहते हुए रविंदर ने अपने पैर उपर करके आगे वाली सीट पर रखकर सोने का प्रोग्राम सेट करना शुरू कर दिया..

आगे वाली सीट से एक सरदार जी ने पिछे मुँह निकल कर रविंदर को घूरा," ओये! पूरी बस को खरीद लिया है क्या तूने... पैर तो नीचे कर ले...!"

"अभी कहाँ सरदार जी.. अभी तो टेस्ट ड्राइव पर जा रहे हैं... हा हा हा.." कहते हुए रविंदर ने पैर नीचे रखे और अपनी बेल्ट ढीली करने लगा....

"क्या हुआ जी? क्यूँ सारा दिन सींग पीनाए घूमते रहते हो?.. सीधे नही बैठा जाता क्या?" सरदार्णि अपने सरदार पर ही सवार हो गयी...

"मैने क्या कहा है लाडो.. मेरे कंधे पर पैर रखेगा तो क्या मैं बोलूं भी नही..... देख.. तेरी गिफ्टेड शर्ट पर मिट्टी लगा दी... बस.. इसीलिए गुस्सा आ गया था..." सरदार जी ने खीँसे निपोर्ते हुए सरदारनी के आगे घुटने टेक दिए..

अचानक बस में चढ़ि एक लड़की को देख रोहन की साँसे वहीं की वहीं थम गयी.. खुले बालों को सुलझती हुई सी वो लड़की नज़रें नीची किए हुए अपनी सीट का नंबर. ढूँढती हुई आ रही थी... गोरे रंग और सम्मोहित कर देने वाले नयन नख्स ने रोहन को कुच्छ पलों के लिए बाँध सा दिया.. ग्रे कलर की धरीदार जीन और राउंड नेक की वाइट टी-शर्ट के उपर कॉलर वाली लाइट वाय्लेट कलर की बिना बटन की जॅकेट पहने उस लड़की की आँखों में ऐसा जादू था कि बस में बैठा हर सख्स उसको निहारने लगा...रोहन का क्षणिक सम्मोहन तभी टूटा जब वो उनके पास आकर खड़ी हुई..,"एक्सक्यूस मे! ये हमारी सीट है...!"

रविंदर रोहन को कहाँ बोलने देता," अच्च्छा.. सीट साथ लानी पड़ती हैं क्या घर से? मैने सोचा बस में ही मिल जाती होंगी.... कोई ना जी.. आप भी आ जाओ.. काफ़ी चौड़ी सीट है.. वो क्या है कि हम सीट लाना भूल गये.. क्यूँ रोहन?" कहकर रविंदर एक तरफ को खिसक लिया....

लड़की को उसकी बात पर हँसी भी आई और गुस्सा भी.. उसकी बेढंगी बात से सहम सी गयी लड़की को अचानक समझ नही आया की क्या बोले.. वो कुच्छ बोलती, इस'से पहले ही रोहन बोल पड़ा...," सॉरी मिस! ये कभी बस में बैठा नही है.. इसीलिए.. पर मेरे ख़याल से ये हमारी ही सीट है....!"

"अच्च्छा.. मेरे मज़ाक को मेरी नासमझी बता कर तू मेरा ही मज़ाक उड़ा रहा है साअ.." फिर लड़की की और देखकर मुँह से निकल गयी ग़ाली को वापस खींचते हुए बोला," वो क्या है की.. जैसे मर्द कभी अपनी ज़ुबान नही बदलते.. वैसे ही सीट भी नही बदलते.. पर जाओ.. हमारी सीट ढूँढ कर उस पर बैठ जाओ.. हम बड़े ही नरम दिल वाले हैं.. कुच्छ नही कहेंगे.. क्यूँ रोहन?" कहकर रविंदर लड़की की और आँखें फाड़ कर देखने लगा...

लड़की को अचानक जाने क्या सूझा.. उसने खिड़की से बाहर झाँका और आवाज़ लगाई..," रिट्युयूवूयूयुयूवयू.. जल्दी आआआआ!"

"क्या हुआ?" लड़की कुच्छ इस अंदाज में उपर चढ़ि जैसे आपात स्थिति में किसी ने उसको मदद के लिए पुकारा हो... लड़की वही थी जिस पर रवि ने बस-स्टॅंड पर खड़े होकर बातों ही बातों में जुमले कसे थे...," क्या हुआ? कोई प्राब्लम है क्या?"

ऋतु से अपने लिए इतनी हुम्दर्दि पाकर लड़की सुबकने लगी," ये हमारी सीट नही छ्चोड़ रहे..."

"तुम? " ऋतु रवि को पहचान कर गुस्से से आग बाबूला हो गयी...

"ओह्ह.. हम एक दूसरे को जानते हैं क्या? मेरी यादास्त थोड़ी कमजोर हैं.. पर देख लो.. तुम्हारा नाम अभी भी मुझे याद है.. ऋतु!.. वैसे.. कहाँ मिले हैं हम पहले..?" रवि ने सीना तानते हुए बत्तीसी निकाल दी..

"अभी बताती हूँ... चलो.. उठो यहाँ से.. नही तो अभी पोलीस अंकल को बुलाती हूँ..." ऋतु ने तैश में आकर बाँह चढ़ा कर कुल्हों पर हाथ जमा लिए...

"पोलीस मामा तुम्हारे अंकल हैं क्या? हमारी तो वैसे ही रिश्तेदारी निकल आई... हे हे हे.." रवि कहाँ काबू में आता....?

"चल उठ ना यार.. पिछे वाली सीट होगी हमारी.. सॉरी.. मिस.. डॉन'ट माइंड प्लीज़.." कहते हुए रोहन ने खड़ा होकर रवि को खींच लिया... मजबूरन रवि को उठना पड़ा... और दोनो पिछे वाली सीट पर जाकर बैठ गये...

"एय्यय.." लड़की ने पिछे देख कर रवि को अपने नाज़ुक हाथों के डोले बना कर चिड़ाया," पता है ऋतु.. मर्द कभी अपनी सीट नही बदलते... हा हा हा हा..."

रवि कुच्छ बोलता, इस'से पहले ही रोहन ने उसके मुँह को अपने हाथ से दबा दिया," कुच्छ मत बोल यार.. लड़कियाँ हैं.. खम्खा पंगा हो जाएगा..."

बेचारों को बैठे पूरा 1 मिनिट भी नही बीता होगा की एक जोड़ा आकर उनके पास खड़ा हो गया," एक्सक्यूस मे.. ये हमारी सीट है..."

रवि से रहा ना गया... अमिताभ की आवाज़ की नकल करते हुए बोला," जाओ.. पहले वो सीट देख कर आओ जिस पर हमारा नंबर. लिखा है.. ये लो हमारी टिकेट... हयें.."

मरियल से उस आधे गंजे हो चुके लड़के ने चुपचाप टिकेट्स पकड़ ली.. और नंबर. देखते ही बोला..," सर यही तो हैं आपकी सीट.. आगे वाली..."

"क्या? क्या कहा? फिर से बोलना मेरे यार.. प्लीज़..." रवि उच्छल कर सीट से खड़ा हो गया..

"हां सर.. यही तो हैं.. 13-14 नंबर.. ये लड़कियाँ ग़लती से बैठ गयी लगती हैं.." लड़के ने दोहराया..

"ओये होये.. लाले दी जान.. जी करता है तेरा सिर चूम लूँ.." रवि ने एक पल भी नही लगाया आगे वाली सीट तक पहुँचने में," आ.. उठती है या पोलीस मामा को बुलाउ? हा हा हा हा हा.. मर्द कभी अपनी सीट नही छ्चोड़ते..."

अब लड़कियों को भी थोड़ा शक हुआ.. ऋतु ने कहा," ढंग से देख एक बार.. हमारी सीट का नंबर.."

लड़की ने अपनी जेब से टिकेट्स निकाली और बोली," यही तो हैं.. 8-9 नंबर."

"चल उठ यहाँ से.. 8-9 नंबर. अगली सीट्स का है... सीट नंबर. सीट के पिछे लिखा होता है पागल..." और दोनो लड़कियाँ झेन्प्ते हुए सीट छ्चोड़ने लगी...

"वा वा वा वा.. आजकल लड़कियाँ भी डोले शोले दिखाने लगी हैं.. क्या बात है.. वा वा!" रवि से इस मौके का फायडा उठाए बिना रहा ना गया...

"चुप कर यार.. बहुत हो गया.. ग़लती किसी से भी हो सकती है..." रोहन ने उसको शांत रहने की सलाह दी....

बेचारी दोनो लड़कियाँ सरदार जी के पास पहुँच गयी," एक्सक्यूस मे अंकल.. ये सीट हमारी है..."

"ओये कमाल कर रही हो कूडियो.. अभी इन्न बच्चों के पिछे पड़ी थी.. अब हमें परेशान करने आ गयी.. सारी सीट तुम्हारी हैं क्या? ये देखो हमारे नंबर. 8-9. सीधे भटिंडा तक की हैं..." सरदार ने सीना ठोंक कर कहा...

रवि जो उनकी बातें बड़े गौर से सुन रहा था, तपाक से बोला," पर ताउ.. बस तो अमृतसर जा रही है...."

"हैं? क्या?" सरदारजी ने चौंकते हुए पूचछा...

"और क्या? " कहकर लड़कियाँ भी हँसने लगी....

"ओह तेरी.. हमारी तो बस ही निकल गयी.. मैं भी कहूँ आज बस इतनी लेट कैसे है...?" सरदारजी सकपकाकर खड़े हुए और अपना सामान उतारने लगे....

"ले.. कब सीखेगा तू सीधे रास्ते चलना.. मेरे तो करम ही फुट गये तेरे साथ ब्याह करके.." सरदारनी सरदरजी को कोस्ती हुई उसके पिछे पिछे बस से उतर गयी...

..................................................................................................

सारी रात श्रुति बेड के एक कोने में सिमटी लेटी रही.. नितिन उसकी बराबर में ही चैन से सोया पड़ा था... पर श्रुति ने एक बार भी झपकी नही ली.. सोने से पहले नितिन ने वादा किया था कि कल उसको वो कॉलेज छ्चोड़ देगा.. नितिन के द्वारा सुनाई गयी कहानी उसके दिमाग़ में किसी पिक्चर की तरह चल रही थी.. लेते लेते उसने कयि बार रोहन के बारे में सोचा.. शकल से एक दम शरीफ और क्यूट से दिखने वाले रोहन से उसको पूरी हुम्दर्दि थी.. अगर उस'से प्यार करने और शादी करने तक की ही बात होती तो श्रुति इसको अपना सौभाग्य ही मान'ती.. नितिन के कहे अनुसार रोहन उसका दीवाना था भी.. पर नितिन उसको जिस रास्ते पर लेकर जाना चाहता था उसके बारे में तो श्रुति को सोचना भी पाप लगता था.. धोखा देना तो उसने कभी सीखा ही नही.. या यूँ कहें कि उसके खून में ही नही था.. बचपन में ही उसकी मा के गुजर जाने के बाद उसके बापू ने दूसरी शादी तक नही की.. ये सिर्फ़ उसकी मा के प्रति उसके बापू की वफ़ा नही तो और क्या थी.. वरना वंश चलाना कौन नही चाहता.. ना.. वो ऐसा नही कर सकती.. और करेगी भी नही..

रात भर करवट बदलते बदलते श्रुति ने यही फ़ैसला लिया था, कि वो नितिन की हर हां में हां मिलाएगी.. जब तक की एक बार उसके चंगुल से आज़ाद नही हो जाती.. पर घर जाने के बाद वो सब कुच्छ अपने बापू को बता देगी.. सिर्फ़ अपना कौमार्या भंग होने की बात छ्चोड़कर.... साथ ही कोशिश करेगी कि इस कामीने आदमी की मंशा कभी पूरी ना हो.. चाहे इसके लिए उसको पोलीस में खबर करनी पड़े.. चाहे उसको कॉलेज ही क्यूँ ना छ्चोड़ना पड़े..

इन्ही विचारों की उथल पुथल में कब सवेरा हो गया, श्रुति को अहसास तक नही हुआ... अचानक नितिन के करवट बदलकर उसके सीने पर हाथ रखते ही वो उठ बैठी..

"जाग गयी तुम?" नितिन ने उठकर अंगड़ाई लेते हुए कहा...

"जी.." श्रुति ने घुटनो को मॉड्कर अपनी छाती से लगा रखा था.. वो भूल गयी थी की उसने स्कर्ट पहन रखी है और उसकी चिकनी जांघें घुटने मोड़ने की वजह से काफ़ी उपर तक नंगी हो गयी हैं... जैसे ही नज़रें उठाकर उसने नितिन की और देखा.. वह सकपका गयी.. नितिन की आँखों का निशाना उसकी जांघें ही थी..

श्रुति ने तुरंत अपने पैर सीधे करके स्कर्ट नीचे खींच ली...

"तुम्हारी इसी अदा का दीवाना हूँ मैं", नितिन वापस बेड पर लटेकर स्कर्ट के उपर से उसकी चिकनी जांघों पर हाथ फेरने लगा," क्या चीज़ हो यार तुम.. तुमसे कभी दिल नही भरेगा..."

श्रुति को हद से ज़्यादा अजीब लग रहा था.. पर मजबूरी थी की सीधे तौर पर मना नही कर सकती थी," प्लीज़.. मुझे देर हो रही है.. कॉलेज भी जाना है.."

"हाँ हाँ.. छ्चोड़ दूँगा.. चिंता क्यूँ करती हो मेरी जान.. पर तुमने ये तो बताया नही कि तुमने क्या फ़ैसला किया" नितिन ने उसको बेचैन होते देख अपना हाथ हटा लिया...

"ठीक है!" श्रुति ने इतना सा जवाब दिया...

"क्या ठीक है? उसके बारे में बताओ ना.. 10 करोड़ के बारे में क्या सोचा..?" नितिन की घाघ आँखों में उसका आनमना सा जवाब चुभ गया...

"हां.. कह तो रही हूँ कि जैसा तुम कहोगे.. मैं वैसा ही करूँगी.." श्रुति ने इस बार शब्दों में कुच्छ इज़ाफा करके बोला...

"कहीं ऐसा तो नही की तुम सिर्फ़ यहाँ से वापस जाने के लिए ही ऐसा बोल रही हो.. ये भी तो हो सकता है ना.." नितिन ने पैनी निगाहों से उसके मॅन को टटोलने की कोशिश की..

श्रुति को उसकी बात में छिपि दृढ़ता को भाँप कर महसूस हुआ कि जैसे उसका झूठ पकड़ा गया हो.. पर वह संभालते हुए बोली.. ," 10 करोड़ के लिए तो मैं 10 लोगों का उल्लू बनाने को भी तैयार हूँ.. और फिर ये तो कोई काम भी नही है.. मुझे उस'से प्यार का नाटक ही तो करना है.. या फिर वही करना है जो जो तुम कहोगे.."

"गुड.. दट'स लाइक अन इंटेलिजेंट गर्ल.. अक्सर खूबसूरत लड़कियों में दिमाग़ की कमी होती है.. मुझे खुशी है कि तुम्हारे अंदर बेपनाह हुष्ण के साथ साथ दिमाग़ भी है.. देखना हम दोनो मिलकर कैसे रोहन को जाल में फाँसते है..." फिर कुच्छ रुकते हुए बोला," फिर भी.. हो सकता है की कल को तुम्हारा दिल उसकी नादानी और शराफ़त देखकर पिघल जाए.. इसीलिए मैं ये पक्का कर देना चाहता हूँ कि अब तुम्हारा अपने बीच हुए इस करार से मुकरना तुम्हारी पूरी जिंदगी को मौत से भी बदतर बना सकता है... एक मिनिट"

नितिन उठकर कोने में रखे ल सी डी टीवी के पास गया और साथ रखे डी वी डी में सीडी डाल दी.. और वापस आकर बिस्तेर पर बैठ गया...," ये कुच्छ हसीन पल हैं जो तुमने मेरे साथ गुज़ारे हैं..."

टी.वी. पर तस्वीर उभरते ही श्रुति का कलेजा मुँह को आ गया.. शुरुआत वहाँ से हुई थी जहाँ श्रुति अपना स्कर्ट उठा, कमर तक खुद को नगा करके.. सिसकियाँ लेती हुई नितिन की जांघों के बीच बैठ गयी थी.. यहाँ से तो श्रुति की मर्ज़ी भी वासना के उस गंदे खेल में शामिल हो गयी थी जिसमें वो अन्यथा अपनी जान गँवाने के डर से शामिल हुई थी.. शुरुआती सहमति उसकी मजबूरी थी पर बाद में आनच्छुए यौवन पर वासना हावी हो जाने की वजह से वो भी पागल सी होकर उसका साथ देने लगी थी.. उस'से लिपटने लगी थी... वीडियो में कहीं भी ऐसा नही लग रहा था कि उसमें श्रुति को डराया गया है या ज़बरदस्ती की गयी है..

कुच्छ देर बाद ही श्रुति टी.वी. से नज़रें हटाकर नितिन की और निरीह आँखों से देखने लगी.. उसकी आँखों से आँसू लुढ़कने लगे," ययए.. मुझे दे दो ...प्लीज़..!"

"हा हा हा हा!" नितिन ठहाका लगाकर हँसने लगा... फिर रुक कर बोला," क्या इतना प्यार है मुझसे.. या फिर अपने पहली रात को सहेज कर रखना चाहती हो.. डोंट वरी डार्लिंग.. अब तो हमारा मिलना लगा ही रहेगा.. इसकी एक कॉपी तुम्हे दे दूँगा.. ये भी वादा रहा.. एक मिनिट.. रोहन आज ही बतला जाने की बात कर रहा था.. मैं उसको फोन मिलाता हूँ.. उसको बोलो कि तुम्हारा आज ही उस'से मिलना बहुत ज़रूरी है.. सपने के बारे में..." कहकर नितिन ने रोहन का नंबर. डाइयल किया...

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सरदरजी वाली सीट, जहाँ अब वो दोनो लड़कियाँ बैठी थी, के नीचे पड़ा मोबाइल हिलने लगा... फोने 'वाइब्रेशन्स' पर सेट किया हुआ था.. नितिन ने कयि बार नंबर. ट्राइ किया और अंत में गुस्से से अपने सेल को बेड पर पटक दिया..," लगता है अभी तक सो रहा है साला.. चलो.. बाद में ट्राइ करते हैं.. तुम जल्दी नहा लो.. नही तो कॉलेज में लेट हो जाने पर मुझसे नाराज़ हो जाओगी.. हे हे हे!"


raj..
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Unread post by raj.. » 14 Dec 2014 10:40

अधूरा प्यार--6 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...

इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

'' मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "

दोस्तों कहानी का ये पार्ट पढ़ने के बाद कमेन्ट जरूर देना इस कहानी को आगे भी पोस्ट करू या नही

गतांक से आगे ............................

"एक मिनिट रुक जा ना यार.. उनको उतरने दे" अमृतसर बस स्टॅंड पर उतरते ही रवि ने रोहन के कंधे पर टंगा बॅग पकड़ कर खींच लिया...

"क्यूँ? अब क्या कसर रह गयी है? जल्दी चल और पता करके आ बतला के लिए बस कहाँ से मिलेगी.." रोहन ने उसको लगभग घसीट'ते हुए कहा," सारे रास्ते तूने उनकी नाक में दम रखा.. अब उनका इलाक़ा आ गया है.. यहाँ तुझे छ्चोड़ेंगी नही..देख ले!"

"आए हाए.. क्या बात कही है मेरे यार.. इलाक़ा ही नही, सच पूच्छो तो मैं भी अब उनका ही हो गया हूँ.. खास तौर पर उस लाल मिर्ची का.. देखा नही तूने.. पिछे मड्मड कर ऐसे देख रही थी जैसे खा जाएगी वहीं.. अफ ये पंजाब की लड़कियाँ..." रवि ने पिछे मुड़कर बस की और देखते हुए कहा...

लड़कियाँ अभी बस से उतरी नही थी.. जैसे ही ऋतु उठने लगी.. उसको पैर के नीचे कुच्छ महसूस हुआ.. ये मोबाइल था," ओह.. ये किसका रह गया..?"

"ड्राइवर को दे दो ऋतु.. शायद बिचारे सरदार जी का होगा.. वापस आएगा तो ड्राइवर से ही पूछेगा..." दूसरी लड़की ने ऋतु से कहा...

"तू पागल है क्या? इतना महँगा फोन.. कोई वापस नही करेगा इसको.. जिसका भी होगा वो इस नंबर. पर फोन तो करेगा ही... तभी हम बता देंगे की फोन हमारे पास है.. आकर ले लो..." ऋतु ने समझदारी की बात कही...

"हाँ.. ये बात भी ठीक है.. आ? उस लड़के का तो नही है ये फोन..? देख.. हमारी और ही आ रहा है.." लड़की बस से उतरते ही रवि की और इशारा करते हुए बोली...

ऋतु रवि को देख आग बाबूला हो गयी...," आने दे उसको.. उसको तो मैं ऐसा फोन दूँगी की सपने में भी याद करेगा मुझको.. तू चुप रहना बस.." ऋतु ने फोन अपनी बॅक पॉकेट में डाल लिया...

ऋतु के पास आते ही रवि उसके तेवर देखकर सकपका सा गया.. वह लगातार उसको घूरे जा रही थी.. रवि की टोन अचानक बदल गयी," आप तो बुरा मान गयी.. मैने तो यूँही अपना सा मानकर कह दिया था.."

पहली बार रवि के मुँह से ऐसी बात सुनकर ऋतु के स्वर में भी नर्मी आई," अच्च्छा.. एक हम ही अपने से लगे आपको पूरी बस में?"

"अजी मेरा क्या है.. मैं तो अभी बिल्कुल कुँवारा हूँ..," रवि ने 'बिल्कुल' पर कुच्छ खास ज़ोर दिया," अभी तो सभी 'अपनी' हैं.. जब तक कोई लपेट'त्ति नही... वैसे ये बतला के लिए बस कहाँ से मिलेंगी..?"

"बतला? तुम.." दूसरी लड़की बोलने लगी थी कि ऋतु ने उसका हाथ पकड़ कर दोबोच दिया," पहली बार आए हो क्या यहाँ..?" ऋतु ने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए पूचछा...

" और नही तो क्या? बस यूँ समझ लो कि भगवान ने तुमसे मिलाने के लिए ही यहाँ खींच लिया.. उस रोहन की वजह से... मेरा नाम रवि है.. आपका?" ऋतु के मीठा बोलते ही रवि सीधा लिनेबाज़ी पर उतर आया...

"अनारकली.. अच्च्छा है ना.." ऋतु कहकर हँसने लगी..

"जी बहुत प्यारा है.. काश मेरा नाम सलीम होता.. और इनका.." रवि दूसरी लड़की को निहारते हुए पूचछा..

"गुलबो! तुम रास्ता पूच्छने आए थे या..?" ऋतु अब पक गयी थी...

"जी प्लीज़.. आइ'ल्ल बी ओब्लाइज्ड!" रवि ने अदब से झुकते हुए कहा..

"तुम्हे इंतजार करना पड़ेगा.. घंटे भर का.. उसके बाद वो सामने मिलेगी.. हो गया..?" ऋतु ने मुँह बनाकर कहा..

"अजी हमें तो पहली नज़र में ही हो गया था.. बस आपकी इनायत की ज़रूरत है.." रवि जाते जाते भी मसखरी करने से बाज़ नही आया..

गुलबो ने जाते ही ऋतु को घूरा..,"तूने उनको झूठ क्यूँ बोला.. बस तो चलने ही वाली होगी.. उसके बाद जाने कब आए..?"

"क्या बात है.. क्या बात है.. बड़ी चिंता हो रही है.. कौनसा पसंद आ गया?" ऋतु ने मज़ाक किया..

"तुझे पता है ऋतु.. मुझे ऐसी बातें बिल्कुल पसंद नही.. फिर क्यूँ?" गुलबो नाराज़ सी होते हुए बोली...

"अरे यार.. मज़ाक भी नही कर सकती क्या? खैर मैं अगर उसका उल्लू नही बनाती तो फिर से वो हमें पकाते हुए चलते.. साथ साथ.. चल अब जल्दी चल.. बस निकल गयी तो..." और दोनो जाकर चलने को तैयार खड़ी बस में जाकर बैठ गये... और बस चल पड़ी... ऋतु ने बस में बैठे हुए ही रवि को थैन्गा दिखाकर चिड़ाया और खिलखिलाकर हँसने लगी...

"यार.. अगर इनकी बस नही चलती तो ये अनारकली तो पाटी पटाई थी..." रवि ने अपने हाथ मसल्ते हुए कहा...

"हुन्ह.. तुझे लगता है कि तू इस जनम में कोई लड़की पटा पाएगा..?" रोहन ने मुस्कुराते हुए व्यंग्य किया...

"अर्रे.. क्या बात कर रहा है यार..? तूने वो.. क्या कहते हैं.. वो श्लोक नही सुना क्या 'लड़की हँसी तो फँसी.. देखा नही क्या तूने.. मेरी तरफ उसको हंसते हुए..' रवि ने ताल ठोनकी...

"हुम्म हंस रही थी?.. चल छ्चोड़.. यार अब घंटा भर इंतजार कैसे होगा.. और कोई वेहिकल नही जाता क्या बतला?" रोहन को बतला पहुँचने की जल्दी थी...

"यार ये अमृतसर तक की बात तो समझ में आती है.. पर ये बतला पतला में तेरी कौनसी अपायंटमेंट है..? जहाँ बसें भी नही जाती..." रवि ने कहा और दूर न्यूपेपर वाले को आवाज़ दी... पेपर वाला भागा भागा आया," जी साहब.. कौनसा दूं?"

"ये बतला के लिए बस कब आएगी.. और कुच्छ नही जाता क्या वहाँ..?" रवि ने पूचछा...

"अभी आपके सामने ही तो गयी है साहब यहीं से.. पठानकोट वाली.. उधर से ही जाती है.. वैसे बाहर जाकर किसी को भी लिफ्ट के लिए टोक लो.. हम पंजाब वाले बड़े दिल के होते हैं साहब.. हे हे हे.. अख़बार कौनसा दूं..?"

"हुम्म.. बहुत बड़े दिल के होते हैं पंजाब वाले.. अगर तेरी किसी न्यूसपेपर से सेट्टिंग हो तो एक खबर छप्वा देना.. एक सूकड़ी सी पुंजाबन हमारा उल्लू बना गयी... चल ला.. कोई भी दे दे एक.." रवि ने कहते हुए रोहन की और मायूसी से देखा...

"समझ गया?.. क्यूँ हंस रही थी वो..?.. बोलता है.. 'हँसी तो फँसी..' चल आजा बाहर.. अब लटक कर चलते हैं.. लिफ्ट लेकर.." रोहन खड़ा हो गया...

"मेरी क्या ग़लती है यार...?" रवि संजीदा होते हुए उसके साथ चलने लगा..

"नही नही.. ग़लती तो मेरी है.. जो तुझे साथ ले आया.. अबे उनसे ही रास्ता पूच्छना था तुझे?" रोहन और रवि बाहर आकर खड़े ही हुए थे की एक लंबी सी गाड़ी आकर उनके पास रुकी.. गाड़ी का शीशा नीचे हुआ और अंदर बैठे एक बहुत ही स्मार्ट युवक ने उनसे पूचछा..," भाई साहब.. ये बतला और कितनी दूर है?"

रोहन बोलने ही वाला था कि रवि ने झट से अंदर हाथ देकर खिड़की को अनलॉक किया और तपाक से अंदर बैठ गया...

"क्या है भाई साहब?" युवक ने अपने गॉगल्स आँखों से हटाते हुए पूचछा...

रवि ने उसकी बात पर कोई ध्यान नही दिया और पिच्छली खिड़की भी खोल दी," बैठ ना रोहन.. भाई साहब भी बतला जा रहे हैं.."

रोहन ने उस युवक से नज़रें मिलाई तो उसने अपने कंधे उचका दिए... रोहन पिछे जा बैठा... युवक ने गाड़ी दौड़ा दी...

"कितनी दूर होगा बतला यहाँ से...?" युवक ने फिर पूचछा..

"आगे चलकर पूच्छ लेते हैं ना.. टेन्षन ना ले भाई.. अब मैं साथ हूँ.." रवि ने मुस्कुरकर उसकी और देखा...

"मतलब तुम्हे भी नही पता..?" युवक ने चेहरा घूमकर रवि की और गौर से देखा...

"उम्म्म.. ऐसा है भाई साहब.. आक्च्युयली हम भी पहली बार ही आए हैं... मैने सोचा.. एक से भले तीन.. आपकी भी मदद हो जाएगी.. और हम भी पहुँच जाएँगे..." रवि ने जवाब दिया...

"हा हा हा.. कमाल के आदमी हो यार... लो.. सिगरेट पीते हो?" युवक ने सिगरेट निकालते हुए पूचछा...

"ना भाई ना.. और जब तक हम गाड़ी में हैं.. इसको सुलगाना भी मत.." रवि ने गाड़ी पर ही कब्जा सा कर लिया...

युवक ने अचानक ब्रेक लगा दिए.. और रवि को घूर कर देखने लगा..

"क्या हुआ भाई..? आगे चलकर पूछ्ते हैं ना..." रवि ने उसके हाथ से सिगरेट लेकर वापस पॅकेट में डाल दी...

गाड़ी में बैठा वो युवक अचंभित सा था.. अचानक ठहाका लगाकर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और गाड़ी चला दी...

"नाम क्या है आपका?" रवि से ज़्यादा देर चुप बैठा नही गया..

"शेखर!" यौवक ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा और फिर पूचछा," अपना भी बता दो यार.. तुम वैसे भी मनोगे नही.. बिना बताए...!"

"रवि.. और ये जो पिछे बैठा मुझे घूर रहा है.. ये रोहन है.. मेरा सबसे प्यारा दोस्त.. ये मत समझना कि ये गुस्से में है.. दरअसल करीब 2 महीने से इसकी शकल ही ऐसी रहती है...

"ऐसा क्या हो गया भाई.. ग/फ रूठ गयी क्या?" शेखर ने पिछे देखते हुए कहा..

"नही भाई.. आप अभी तक भी नही समझे क्या इसको! ये ऐसा ही है.. इसकी किसी बात का बुरा मत मान'ना.." रोहन गाड़ी में बैठने के बाद पहली बार बोला..

"हा हा हा.. वो तो मैं देख ही रहा हूँ.. वैसे बतला कोई रिश्तेदारी है क्या?" शेखर ने पूचछा...

रोहन के बोलने से पहले ही रवि बोल पड़ा," रिश्तेदारी? अजी मुझे तो अभी ये भी नही पता की फूटपाथ पर सुलाएगा या कोई होटेल भी नसीब होगा कि नही..जाने क्या रखकर भूल गया है बतला.." रवि ने मुँह बनाया..

"जहाँ मैं सो-उँगा वहाँ तो सुला ही लूँगा.. अब तेरे लिए वहाँ होटेल तो खोलने से रहा मैं.." रोहन ने कहा...

"वैसे बताओ तो यार.. जा किस काम से रहे हो.." शेखर को जान'ने की उत्सुकता हुई...

"अभी मुझे ही नही बताया तो तुम्हे क्या बताएगा..? वैसे 5-7 दिन का काम बोल रहा है... अब बता भी दे यार.. क्यूँ दिमाग़ की दही कर रहा है..?" रवि ने रोहन को देखते हुए कहा...

रोहन खिड़की से बाहर देखने लगा.. उसको कुच्छ ना बोलता देख शेखर ही बोल पड़ा..," वैसे अगर 5-7 दिन की बात है तो तुम मेरे साथ रह सकते हो.. वहाँ मेरे दोस्त की कोठी है.. अकेला ही रहता है.. अगर तुम्हारे सीक्रेट मिशन पर कोई आँच ना आ रही हो तो?"

"थॅंक्स यार.. तू तो मुझसे भी कमाल का है.. बिना जाने पूच्छे ही साथ रहने का ऑफर कर दिया... अपनी खूब जमेगी लगता है.. " रवि ने खुश होकर कहा...

"तुम्हे जान'ने में किसी को वक़्त ही कितना लग सकता है.." शेखर ने कहा और हँसने लगा... रोहन भी मुस्कुराए बिना ना रह सका...

अचानक गाड़ी के ब्रेक लगते ही रोहन और रवि का ध्यान आगे की और गया..

"ओह तेरी.. ये तो वही बस है.." रवि ने कहा...

बस सड़क के बींचों बीच खड़ी थी... उसके सामने ट्राक्टेर खड़ा था.. शायद बस का आक्सिडेंट हो गया था.. बस के पास ही 8-10 सवारियाँ खड़ी थी.. उनमें ही रवि की अनारकली और 'वो' गुलबो भी थी... रवि का ध्यान सीधा उन्ही पर गया..

"एक मिनिट रोकना शेखर भाई" रवि ने कहा और बाहर मुँह निकाल कर ज़ोर से आवाज़ लगाई...," आ जाओ.. आ जाओ.." जैसे उनकी पुरानी जान पहचान हो...

लेकिन शेखर को अब की बार गुस्सा नही आया.. वा बस रवि को देखकर मुस्कुराता रहा...

रवि के आवाज़ लगते ही उन्न दोनो लड़कियों को छ्चोड़कर सभी सवारियाँ भागी भागी आई...

"थॅंकआइयू भाई साहब!" उनमें से एक सवारी ने बाहर पास आते ही कहा...

"अरे भाई.. किराए की नही है.. अपनी है अपनी.." रवि ने कहा और गाड़ी से उतर कर उन्न लड़कियों की और चला गया," आ भी जाओ.. कब तक खड़ी रहोगी.. बस तो एक घंटे के बाद आएगी ना..."


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