सीता --एक गाँव की लड़की--10
अचानक श्याम मेरे शरीर को झकझोर कर जगाते हुए बोले,"ऐ सीता, उतरना नहीं है क्या?"
मैं हड़बड़ाते हुए जैसे नींद से जागी। ऑटो कब की रुक चुकी थी। मैं शर्मा गई और उतरते हुए एक नजर ड्राइवर की तरफ देखी। उसकी नजर मेरी चुची पर गड़ी भद्दी सी मुस्कान दे रहा था। मैं जल्दी से साड़ी ठीक करती उतर के खड़ी हो गई। हालाँकि मेरी साड़ी ठीक ही थी पर देखने वाले तो चंद मिनट में ही नंगी कर देते हैं।
ऑटो में बैठते ही मैं अपनी पुरानी यादों में इतनी खो गई कि मैं कब पहुँच गई मालूम ही नहीं पड़ी। श्याम उसे किराया देने के बाद सामान उठाते हुए अपने फ्लैट की ओर चल दिए। मैं भी उनके पीछे चल दी। गेट के पहुँचते ही मेरी नजर पता नहीं क्यों ऑटो-ड्राइवर की चली गई। वो अभी भी रुका भद्दी मुस्कान देते हुए अपना लंड मसल रहा था। मैं सकपकाती हुई तेजी से कदम बढ़ाती कैम्पस के अंदर चली आई। मन ही मन में उसे गाली भी दे रही थी।
कैम्पस उतनी बड़ी तो नहीं थी पर छोटी भी नहीं थी। जिसके चारों तरफ चारदिवारी थी। कैम्पस के गेट से फ्लैट तक पक्की पगडंडी बनी थी, जबकि दोनों तरफ घास लगी हुई थी। घास के बाद चारदिवारी से सटी चारों तरफ रंग बिरंगी अनेक तरह की फूल लगी थी। कुल मिलाकर कैम्पस काफी अच्छी तरह से सजी थी। मैं मुआयना करती चल रही थी। घर भी हम लोगों के लिए अच्छी खासी थी। 3 मंजिल के घर में मेरी फ्लैट पहली मंजिल पर थी। मैं सीढ़ी चढती अपने रूम तक पहुँच गई। श्याम गेट नॉक किए, कुछ देर बाद गेट खुली।
पूजा देखते ही चहक के हमें गले लगा ली। मैं भी हँसती हुई पूजा को अपनी बाँहों में भर ली। श्याम भी मुस्कुराते हुए अंदर सामान रख फ्रेश होने चले गए। पूजा मुझे खींचते हुए अपने रूम में ले गई और एक जोरदार किस के ख्याल से अपने होंठ मेरे होंठ पर चिपका दी। मैं भी एक भूखी की तरह चूमने लगी। जब काफी देर चुसने के बाद पूजा अलग हुई तो मैं पूछी,"क्या बात है, आजकल तो दिन ब दिन और निखरती जा रही है मेरी पूजा। अंकल का पानी कुछ ज्यादा ही असरदार लग रही है।"
"भाभी,जलो मत। अंकल का पानी जब अपने चूत में लेगी तो आप भी निखर जाओगी।" पूजा हँसती हुई बोली।
"चुप कर कमीनी। आपके भैया घर में ही हैं, कहीं सुन लिए तो खैर नहीं।" मैं डरती हुई धीमे आवाजोँ में बोली।
"ओह सॉरी। आपके आने की खुशी में सब कुछ भूल ही गई थी। अच्छा अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ, मैं नाश्ता तैयार कर रही हूँ। फिर ढेर सारी बातें करेंगे।" पूजा भी सकपका के बोली।
तभी बाथरुम से श्याम निकल अपने रूम में चले गए। मैं भी बाथरुम में फ्रेश होने घुस गई।
फ्रेश होने के बाद हम सब साथ ही नाश्ता किए और कुछ देर आराम करने अपने रूम में चली गई।
शाम में करीब 5 बजे नींद खुली। श्याम भी तब जग चुके थे और शायद बाहर जाने के लिए कपड़े पहन रहे थे। तैयार होने के बाद बोले,"आ रहा हूँ कुछ देर में।" और निकल गए।
मैं भी उठी और मुँह हाथ धो पूजा के रूम की तरफ बढ़ गई। पूजा बैठी पढ़ रही थी। मैं दखल दिए बिना वापस जाने की सोची कि तभी पूजा की नजर मुझ पर पड़ गई। वो देखते ही बोली,"भाभी, आओ ना। मैं पढ़ते-2 थक गई हूँ, तो कुछ देर फ्री होने की सोच रही थी। पर भैया की वजह से जबरदस्ती पढ़ रही थी।"
मैं मुस्कुराते हुए रुक गई। फिर पूजा उठी और बोली,"चलो छत पर चलते हैं।"
मैं हामी भरती हुई पूजा के साथ चल दी। छत पर पहुँचते ही पूजा फोन निकाली और नम्बर डायल करने लगी। मैं बिना कुछ पूछे पूजा की तरफ देख रही थी। तभी उधर से आवाज आई,"हाय मेरी रण्डी, क्या हाल है।"
ये अंकल की आवाज थी जिसे मैं सुनते ही पहचान गई। पूजा मेरी तरफ देख एक आँख दबाती हुई बोली,"मैं तो ठीक हूँ,पर मेरी चूत की हालत कुछ ठीक नहीं है अंकल।"
सच पूजा की रण्डीपाना देख मेरी तो हँसी निकल गई।
पता नहीं क्यों अब मैं भी ऐसी गंदी बातों को काफी मजे से सुन रही थी।
"वो तो होना ही था। आखिर 3 मर्द रात भर तेरी चूत बजाए जो हैं। हा हा हा हा" अंकल कहते हुए हँस पड़े तो साथ में पूजा भी हँसती हुई बोली,"हाँ अगर मैं नहीं जाती तो आप वहीं गाँव में मुखिया बनके बड़े नेता से गांड़ मरवाते रहते।" पूजा की बात सौ फीसदी सच थी तभी तो अंकल भी तुरंत उसकी हाँ में हाँ मिला दिए।
"अच्छा,अभी आप कहाँ है? आपसे मिलने के लिए कोई यहाँ बेसब्री से इंतजार कर रही है।" पूजा बात को सीधे प्वाइँट पर लाती हुई बोली।
पूजा यही बताने के लिए तो फोन की थी। अंकल खुशी से चहकते हुए बोले,"क्या, सीता आ गई है?"
"हाँ..."
"ओह मेरी रानी। ये साला चुनाव सिर पर चढ़ा है सो मूड खराब कर रखा है। अच्छा एक-दो दिन में मैं किसी तरह समय निकाल आ जाऊँगा। अच्छा पूजा, उसकी चूत कब दिलवा रही हो। मैं काफी उतावला हो रहा हूँ।" अंकल एक ही सुर में सवाल जवाब सब कर गए। अंकल की बातें सुन इधर मेरी चूत तो पानी भी छोड़ने लग गई थी।
पूजा हँसते हुए बोली,"मिल जाएगी अंकल, बस एक-दो बार और उसे अपने लंड महसूस करा दो। फिर तो वो खुद ही अपनी चूत खोल देगी आपके लिए.."
पूजा की बात सुन मैं शर्मा सी गई और उसकी पीठ पर एक चपत लगा दी। वैसे पूजा भी सही ही कह रही थी, मैं भी तो अंकल से चुदने के लिए काफी बेसब्र हो गई अब।
"थैंक्स पूजा, समय मिलते ही आ जाऊँगा मैं। अभी रख रहा हूँ, एक मीटिंग में जाना है। बाहर सब इंतजार कर रहे हैं।" अंकल कहते हुए फोन रख दिए। पूजा फोन कटते ही बोली,"शाली, मारती क्यों है।"
"ऐसे क्यों बोल रही थी जो मार खाती है।" मैं मुस्कुराती हुई बोली।
"गलत थोड़े ही कह रही थी जो मारती हो।" पूजा भी कहते हुए हँस दी।
"अच्छा बाबा... छोड़ो ये सब और नीचे चलो। अँधेरा होने वाली है।" मैं बातों को ज्यादा ना बढ़ाते हुए कहने लगी।
पूजा हँसती हुई बिना कुछ नीचे की तरफ चल दी। अचानक वो रुकी और बोली,"भाभी,उस छत पर देखो।"
अब तक हम दोनों जहाँ पर थे, वहाँ से वो छत नहीं दिख रही थी क्योंकि पानी टंकी की दूसरी तरफ थे हम दोनों। मैं उधर नजर दौड़ाई तो देखते ही मेरी आँखे फटी की फटी रह गई।
नई नई शादी शुदा जोड़े खुली छत पर बेफिक्र हो सेक्स करने में मग्न थे। लड़की छत की रेलिँग के सहारे खड़ी पीछे की तरफ सिर की हुई थी और लड़का उसकी नंगी दोनों चुची पकड़ तेज-2 धक्के लगाए जा रहा था। हे भगवान, कितनी बेशर्म हो दोनों चुदाई कर रहे हैं। अगल बगल की छत की तरफ देखी तो कई और भी लोग थे जो उसे मुँह खोले एकटक देखे जा रहे थे। मैं शर्म के मारे पूजा को पकड़ते हुए नीचे की भागी। पूजा हँसते हुए बोली,"अरे भाभी, कर वे दोनों रहे हैं और शर्म आपको लग रही है। ये तो उनका लगभग रोज का काम है।"
मैं हँसती हुई बोली,"चल नीचे, मुझे इतनी बेशर्म नहीं बननी।"
"अरे मेरी लाडो, बेशर्म नहीं बनेगी तो मजे कैसे लेगी? वैसे अंकल से ढंग से चुद गई तो कितनी बड़ी बेशर्म बनेगी, वो तो समय ही बताएगी" पूजा अब साथ चलते हुए बोली। मैं चुपचाप पूजा की बात सुन मुस्कुरा ली और गेट खोलती अंदर आ गई। मेरी चूत काफी देर से पानी छोड़े जा रही थी तो झड़ने के ख्याल से बाथरुम में घुस गई। जब फ्रेश हो निकली तो पूजा चिढाती हुई बोली,"लगता है अब अंकल को जल्द ही बुलाना पड़ेगा। मेरी भाभी की गुफा से कुछ ज्यादा ही नदी बहने लगती है।"
"हाँ हाँ.. जल्द बुला ले वर्ना कहीं तुम नदी में बह नहीं जाओ।"मैं भी तैश में बोल हँस पड़ी। चूँकि अब ज्यादा शर्म करने से कुछ फायदा नहीं थी। पूजा भी मेरी बात जोर से हँस पड़ी।
फिर हम किचन का काम करने लगी और पूजा पढ़ने चली गई। कुछ ही देर में श्याम भी आ गए। फिर रात का खाना खा हम लोग सो गए। रात में श्याम ने जम के चुदाई की, मैं भी कई बार झड़ी। पर अब तो मैं दर्द के साथ चुदाई करने की सोच रखने लगी थी, जो कि भैया ने दिए थे। खैर चुदाई के बाद सपनों की दुनिया में खोती सो गई।
सुबह 5 बजे मेरी नींद खुल गई। पूजा और श्याम अभी भी सो रहे थे। अगर रात में हमें चुदाई की दर्द मिलती तो शायद मेरी भी नींद नहीं खुलती। श्याम को जगाए बिना मैं उठी और बालकनी में ताजी हवा खाने के निकल चली आई। कुछ ही देर बाद एक दूधवाला में साइकिल से आते हुए हमारी मेन गेट के पास आकर रुक गया और गेट पर लगी घंटी दबा दिया। ओह ये तो मेरे ही फ्लैट की घंटी दबा रहा था। मैं चौँकती हुई उसकी तरफ देखी। वो अब अपना सिर हमारी फ्लैट की तरफ उठा देखने लगा। मुझे देखते ही वो बोला,"मेमसाब दूध।"
मैं बिना कुछ बोले हाँ में सिर हिलाती अंदर से बर्तन ली और निकल गई।गेट खोल बर्तन उसकी तरफ बढ़ा दी। उसने दूध डालते हुए बोला,"मेमसाब, अब लगता है मुझे सुबह सुबह ज्यादा चीखने या घंटी दबाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।"
मैं थोड़ी आश्चर्य से उसकी तरफ देखने लगी।
"मेमसाब,आपके वो साहब और वो छोटी बिटिया दोनों कुंभकर्ण के भी बाप हैं। रोज 10 बार चीखता तब जाकर उनकी नींद खुलती थी।" दूधवाला अपनी बातें कहते हुए हँस दिया। मैं भी उसकी बात पर हँस दी।
"लो बेटा, दूध लो।"दूध देते हुए वो अपनी साइकिल पर सवार हो गया और चल दिया।
मैं तो सोच में पड़ गई कि अक्सर सुनती रहती थी कि शहर में बड़े-2 घर की औरतों को दूधवाला अक्सर फँसा लेता है। पर यहाँ तो मेरे साथ कुछ और ही देखने मिल गई। कितने अच्छे स्वभाव का था ये। इन्हीं कुछ अच्छे लोगों की बदौलत तो ये दुनिया टिकी हुई है वर्ना.....।
तभी तेज आवाजोँ में गाना बजाती हुई एक ऑटो आई और ठीक मेरे सामने रुक गई। मैं आश्चर्य से उस ऑटो की तरफ देखी। ओह ये तो वही था जो हमें कल छोड़ने आया था। वो अपनी वही कल वाली हरकत करते हुए अपना लंड मसलते हुए जीभ फेर रहा था। मेरी तो सुबह-2 मूड खराब हो गई। मैं तेजी से गेट बंद की और अपने फ्लैट की तरफ बढ़ गई।
उसके बाद घर में ज्यादा कुछ नहीं हुई। एक अच्छी कामकाजी गृहिणी की तरह सारे काम की। श्याम तैयार हो ड्यूटी पर चले गए और पूजा कॉलेज।
मैं भी फ्रेश हो खाना खाई और आराम करने चली गई। दिन में करीब 2 बजे पूजा आई। आते ही बोली,"भाभी, जल्दी तैयार हो जाओ। बाहर घूमने कहीं चलते हैं।"
"क्या?"
"हाँ, घर में ज्यादा रहेगी तो बोर हो जाएगी। और भैया से मैं पहले ही वादा कर चुकी हूँ कि भाभी को रोज बाहर घुमाने ले जाऊंगी।" पूजा फ्रेश होने बाथरुम में घुसती हुई बोली। मैं उसकी और श्याम के बीच हुई वादे सुन हँस पड़ी।
"अच्छा बाबा। पहले नाश्ता तो कर लो।" मैं भी अपने रूम की तरफ बढ़ते हुए बोली।
पूजा OK कहती हुई निकली और नाश्ता निकाल करने लगी। मैं भी कुछ ही देर में एक अच्छी सी साड़ी पहन तैयार हो गई थी। पूजा भी काले रंग की जींस और सफेद रंग की टीशर्ट पहनी थी जो पूजा पर काफी अच्छी लग रही थी।
फ्लैट लॉक की और हम दोनों बाहर निकल गई। हम लोग मेन रोड से तकरीबन 1 किमी अंदर रहते थे तो इधर कोई सवारी इक्का-दुक्का ही आती थी। हम दोनों पैदल ही बातें करती मेन रोड की तरफ बढ़ने लगी।
तभी मेन रोड की तरफ से एक ऑटो आई और हम दोनों के ठीक सामने रुक गई।
"मैडम, स्टेशन चलना है क्या?"
ओह गॉड, ये तो यही ड्राइवर था सुबह वाला। पता नहीं कहाँ से बार-2 आ टपकता है साला। तब तक पूजा जवाब देती हुई बोली,"नहीं,बोरिँग रोड चलोगे क्या?"
"ठीक है मैडम, बैठिए।" कहते हुए उसने ऑटो हम दोनों के काफी करीब ला खड़ी कर दी। पूजा बढ़ते हुए चढ़ गई, मैं तो चढना नहीं चाहती थी पर क्या करती। मन ही मन गाली देती मैं भी चढ़ गई।
तभी मेरी नजर ऑटो के दोनों साइड मिरर पर पड़ी। ओह गॉड, एक मिरर मेरी चुची की तरफ थी जबकि दूसरी पूजा की चुची पर टिकी थी। मेरी तो खून खौल गई। दो टके की ड्राइवर की इतनी हिम्मत। किसी तरह खुद पर काबू करते हुए एक शरीफ लड़की की तरह अपनी नजरें दूसरी तरफ कर ली। क्यों बेवजह इस कमीने के मुँह लग खुद को नीच साबित करती।
कोई 20 मिनट बाद पूजा एक लेडिज ब्यूटी पॉर्लर के पास रोकने बोली। ऑटो रुकते ही मैं तेजी से नीचे उतर गई। पूजा भी उतरते हुए उसे पैसे दी और मुस्कुराते हुए बोली,"भाभी, ये सब तो यहाँ सब के साथ होती है। आप भी आदत डाल लो और मजे करो। कौन सा वो हमें चोद रहा था,बस चुची ही तो देख रहा था।"
मैं तो पूजा की बात सुनते ही शॉक हो गई। इतनी बेहूदा हरकतों को बस नॉर्मल कह रही थी। खैर मैं सिर हिलाती पूजा के साथ चल दी।
"भाभी,ये यहाँ की सबसे अच्छी पॉर्लर है। बड़ी-2 घर की लेडिज यहाँ ही आती है। कॉलेज की एक दोस्त इसके बारे में बताई थी।"पूजा कहती हुई सीढ़ी चढती हुई ऊपर चलने लगी। पूजा की बातों सुनते हुए मैं भी बढ़ रही थी। दिखने में तो काफी अच्छी लग रही थी।
कुछ ही देर में हम दोनों ब्यूटी पॉर्लर के अंदर थी। बेहद ही आधुनिक और उम्दा वर्ग की पॉर्लर लग रही थी। अंदर 4 औरतें थी जिसमें 2 तो काम कर रही थी और 2 गप्पे लड़ा रही थी। हम दोनों पर नजर पड़ते ही उनमें से एक उठी और बोली,"आइये मैडम, इधर आ जाइये।" हम दोनों की नजर उस तरफ गई जहाँ दो कुर्सी लगी थी जो कि काफी High classes Chair थी। पूजा के साथ मैं भी कुर्सी पर बैठ गई।
"कहिए मैडम?" पूजा के पास एक लेडिज खड़ी होती पूछी।
"मैम, बाल एडजस्ट कर कट कर दीजिए,फिर Face wash।" पूजा कुर्सी पर पीछे की तरफ लेटती हुई बोली।
"और हाँ, भाभी की सिर्फ Face....। बाल तो इनके काफी अच्छे ही हैं।"पूजा मेरी तरफ खड़ी लेडिज को बताती हुई बोली। पूजा की बात सुनते ही दोनों लेडिज अपने अपने काम में व्यस्त हो गई।अगले कुछ ही देर में बगल वाली दोनों लेडिज अपना काम करवा चुकी थी। वे दोनों बिल पे करती हुई निकल गई। उनके साथ दो वर्कर भी निकल गई शायद कुछ होगी। अब सिर्फ हम दोनों थी पॉर्लर में।
"नई-2 आई हैं क्या पटना में?" पूजा के बाल कट करती हुई वो लेडिज पूछी।
"जी हाँ, मैं तो पिछले महीने ही आई थी पर ये मेरी भाभी कल आई हैं।" पूजा उनकी बातों का जवाब देते हुए बोली।
"ओह, गुड! यहाँ कहाँ रहती है आप लोग"
"मैम,हम लोग आशियाना में रहते हैं। मेरे भैया यहाँ रेलवे में जॉब करते हैं।"
"Good... आप क्या करती हैं मिस....।"
"पूजा! और ये मेरी भाभी सीता। मैं यहाँ पढ़ने आई हूँ। वो वीमेँस कॉलेज में भूगोल से B.A. कर रही हूँ।" पूजा लेटी-2 मेरी तरफ इशारा करती हुई बोली। मैं भी उसकी बात सुन एक नजर पूजा की तरफ दौड़ाई,फिर सीधी कर ली।
"काफी अच्छे नाम हैं आप दोनों के। मैं कोमल वर्मा हूँ, यहाँ आने वाली हर लेडिज मुझे कोमल दीदी कहकर बुलाती हैं। साथ में इस पॉर्लर की मालकिन भी हूँ। और ये मेरी कॉलेज दोस्त हैं जो कि मेरे काम में सहायता करने आती हैं।" अपना परिचय देते हुए वो लेडिज बोली।
मालकिन सुनते ही मेरी नजर एक बार फिर मुड़ गई। कोई 40 साल की एक भरी हुई शरीर की भी मालकिन थी। थोड़ी मोटी जरूर थी पर उतनी भी नहीं कि कोई उन्हें मोटी कह दे। रंग रूप में भी कोई कमी नहीं थी। उनके बाल कंधे तक ही आती थी। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। और उनके एक हाथों में कलाई तक चूड़ी भरी हुई थी जबकि दूसरी में सिर्फ एक पतली सी कंगन थी। पहनावा भी काफी High थी।
"थैंक्स कोमल दीदी, आपसे मिल के हमें काफी खुशी हुई।"तभी पूजा कोमल दीदी की तरफ हाथ बढ़ा दी। कोमल दीदी भी मुस्कुरा के हाथ मिलाई।
तभी कोमल दीदी मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोली,"अरे आप भी पहली बार ही मेरी पॉर्लर में आई हैं तो कम से कम दोस्ती तो कर लीजिए।"
मैं भी हँसती हुई हाथ मिलाई और थैंक्स बोली। तब तक बाल एडजस्ट कर कट कर चुकी थी और Face पे अलग-2 क्रीम लगाने लगी।
"अच्छा पूजा, अगर बुरा नहीं मानोगी तो एक बात पुछूँ" कोमल दीदी बात करते हुए अपने हाथ से क्रीम रगड़ने लगी। पूजा उनकी बात सुन हँसती हुई बोली,"अब दोस्ती कर ही लिए हैं तो बोलने में क्यों झिझकते हैं।"
"ओके पूजा! महीने में कितना कमा लेती हो।"
कोमल दीदी की बात सुन हम दोनों एक साथ चौँक गई।पूजा कोई जॉब तो करती नहीं फिर कैसे..?
"अरे दीदी,बताई तो थी कि मैं स्टूडेँट हूँ और अलग से कोई पॉर्ट टाइम जॉब करती भी नहीं हूँ।"पूजा जवाब देते हुए बोली।
कोमल दीदी बोली,"मैं 20 वर्षों से पॉर्लर चलाती हूँ। तो रोज ही मेरी मुलाकात अलग-2 लेडिज और लड़की से होती है। ऐसे में हर लेडिज चाहे वो जॉब करने वाली हो या कॉलेज जाने वाली लड़की,उसकी Figure देखते ही मालूम पड़ जाती है कि कौन कैसी है?"
हम दोनों ही ध्यान से कोमल दीदी की बात सुन रहे थे। कोमल दीदी आगे बोली,"और अब तो इतनी अनुभव हो ही गई है कि कौन सी लेडिज सिर्फ एक से सेक्स करती है या फिर अनेक से,बता ही सकती हूँ। तुम्हारी शरीर तो साफ-2 बता रही है कि इसके कई लोग मजे ले चुके हैं।" कहते हुए कोमल दीदी हँस दी। अब तक मेरे चेहरे से क्रीम साफ कर दी थी।मैं कभी पूजा की तरफ तो कभी कोमल दीदी की तरफ हैरानी भरी नजरों से देखी जा रही थी। पूजा के तो A.C. चलने के बावजूद पसीने निकल रहे थे। उसकी मुँह खुली की खुली रह गई इतनी बड़ी बात कोमल दीदी सिर्फ देख के ही कैसे बता दी।
"आप लोग टेँशन मत लीजिए। ये सब बातें यहाँ Secret रहती है। अब दोस्त जब बनी हैं तो हर एक अच्छी-बुरी बातें तो कर ही सकते हैं ना।"तभी कोमल दीदी की वर्कर दोस्त मेरे कंधे को दबाती हुई बोली जिसे कोमल दीदी भी हाँ करते हुए दिलाशा दी। आगे कोमल दीदी बिना कुछ कहे अपने काम में लगी रही,शायद वो पूजा के जवाब की इंतजार कर रही थी। पूरे रूम में जहाँ कुछ क्षण पहले पूजा चहक-2 के कोमल दीदी से बातें कर रही थी,वहीं अब उसकी तो हालत किसी गूंगी से भी बदतर हो गई थी। इधर मैं भी एक बूत बनी सिर्फ मन में कोमल दीदी के कहे हर शब्द अनेक सवाल पैदा कर रही थी। कुछ ही देर में मैं और पूजा को काम खत्म होने की जानकारी कोमल दीदी ने दी। कोमल दीदी बिल मेरी तरफ बढ़ा दी,जिसे मैं अदा की और जल्द यहाँ से निकलने की सोची ताकि हमें या पूजा को उनकी और कोई बातें सुननी नहीं पड़े। पूजा तब तक पॉर्लर से बाहर निकल गेट के पास रुक मेरा इंतजार करने लगी। मैं उसके पीछे चलती जैसे ही गेट के पास पहुँची कि कोमल दीदी पीछे से आवाज दी,"सीता...."
मेरे कदम ज्यों के त्यों रुक गए। दिल की धड़कन काफी तेज हो गई कि पता नहीं अब ये मेरे बारे में क्या विस्फोट करने वाली है। कहीं.....?
सीता --गाँव की लड़की शहर में compleet
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--11
कोमल दीदी खुद ही चलकर मेरे पास आ गई।
"सीता,मैं आप लोगों की दिल दुखाना नहीं चाहती थी। मैं तो बस एक दोस्त की तरह जुड़ना चाहती हूँ। अगर आप लोगों को मेरी बातों से ठेस पहुँची हो तो प्लीज माफ कर देना। पर प्लीज दोस्ती मत छोड़ना।"
मैं उन्हें एक टक देखी जा रही थी। उनकी आँखें बोलते-2 नम सी हो गई थी। उनकी हालत देख मैं भी भावुक सी हो गई। फिर वो अपनी आँखें पोँछती बोली,"ये लो मेरी कार्ड, अगर अपनी इस नादान से बात करने की इच्छा हुई तो बेहिचक फोन करना।"
मैं अब उन्हें ज्यादा देर तक ऐसी देख नहीं पा रही थी और जल्द से जल्द निकलना चाहती थी। मैंने कार्ड ली और ओके कहते हुए सीढ़ी से नीचे उतरने लगी।
पूरे रास्ते गुमशुम सी बैठी रही, मानोँ साँप छू गई हो। कई बार बोलने की कोशिश भी की पर उसने कोई जवाब ही नहीं दी। घर आते ही उसने रूम में घुस कमरे लॉक कर ली। मैं भी कुछ देर टाइम पास करने टीवी के सामने बैठ गई।
बैठे-2 नौ कब बज गए, मालूम ही नहीं पड़ी। श्याम भी आ गए थे। जल्दी से खाना बनाई और श्याम को खाना खिला दी। फिर पूजा को आवाज दी तो वो भी आई और चुपचाप खाना खा चली गई। मैं भी सोने चली गई।
अगली सुबह फिर वही कल वाली बात। दूध लेने के बाद उस ऑटो वाले की बेहूदा हरकतेँ देख के भागना। मन ही मन सोचने लगी कि ये ऑटो वाला रोज कैसे हमारी गली में आ जाता है।कहीं वो सिर्फ मुझे ही देखने ही नहीं आता है।
नहीं. नहीं. शायद घर होगा आगे। तभी तो रोज इधर से ही आता है। कल भी तो दोपहर में इधर की तरफ ही तो आ रहा था। पर मुझे देखते ही वापस हो गया था। खैर मैं अपने सिर को झटकते हुए उसकी बातों को दिमाग से निकाल देना चाहती थी।
सुबह भी पूजा कुछ नहीं बोल रही थी। नाश्ता करने के बाद वो कॉलेज निकल गई। श्याम भी कुछ देर में ड्यूटी पर निकल गए। मैं भी सारे काम निपटा आराम करने रूम में चली आई पर दिल में अब बेचैनी सी होने लगी थी। पता नहीं पूजा कुछ क्यों नहीं बोल रही है। अगर उसने नहीं बोली कभी इस बारे में तो पता नहीं मैं खुद को कैसे मना पाऊंगी। कैसे अपने दिल को समझा पाऊंगी। इन्हीं सब बातों में खोती कब सो गई मालूम नहीं।
पूजा कॉलेज से आ गई थी और नाश्ता कर रही थी, तब मेरी नींद खुली। मैं उसकी तरफ एक नजर डाली और बाथरुम की तरफ चली गई। फ्रेश होने के बाद जैसे ही निकली, पूजा बोली,"भाभी, अब आपको क्या हो गया जो मुँह फेर रही हो।"
मैं ठिठकती हुई रुक गई और पूजा की तरफ मुड़ के बोली,"मुझे क्या होगी! खुद ही कल से ऐसे चुप हैं मानोँ जैसे आसमान गिर गई हो तेरे सिर पे।"
मैं शिकायत करते हुए मुस्कुरा दी। पूजा तब तक नाश्ता कर चुकी थी। हाथ साफ करती हुई बोली,"भाभी, मैं उनकी बातों से बिल्कुल नाराज नहीं थी क्योंकि वो झूठ तो नहीं कह रही थी।" मैं भी पूजा की बातों को हाँ में सहमति दी। पूजा मेरे निकट आ गई और बोली," बस थोड़ी सी डर गई थी कि इन शहरी लोगों का पता नहीं पैसों के लिए कब किसे हलाल कर दे।"
"मतलब......!"मैं चौंक कर पूजा को बात समझाने के लिए पूछी।
"मतलब ये कि कहीं वो हमें ब्लैक-मेल तो नहीं करने की सोच रही ये सब बातें कह कर। यहाँ तो रोज ऐसी बातें होती रहती है।"पूजा मुझे समझाते हुए बोली।
मैं तो हैरान सी रह गई पूजा की सोच देख कर। किसी भी बात को तुरंत ही अंत तक ले जाकर सोचती है कि परिणाम क्या होगी इसकी।
मेरी दिमाग में ये बातें आते ही आगे की सोच सिहर गई।तभी पूजा बोली,"पर अब टेँशन लेने की कोई बात नहीं है भाभी।"
"क्यों?"मैं तो पूजा की हर बात सुन परेशान हुई जा रही थी। कभी कुछ कहती, कभी कुछ।
"आज कॉलेज में उसी दोस्त को सारी बात बताई थी। वो तो पहले खूब हँसी फिर बोली कि वो फायदा उठाने वाली लेडिज नहीं हैं। जहाँ तक वो एक दोस्त की तरह हर मुसीबत में हर वक्त साथ देती है।"
मैं भी पूजा की बात से कोमल दीदी को याद कर मुस्कुरा पड़ी।
"वो तो ठीक है पर अगर गाँव की देख उनकी नेचर बाद में बदल गई तो...।"अब मेरे मन में भी थोड़ी शंका हुई।
"भाभी, मैं ये कहाँ कह रही कि उनसे दोस्ती कर ही लो। जस्ट उनके बारे में बता रही हूँ और आप हो कि...."
मेरी बात पर पूजा हैरानी भरी आवाजोँ में बोली। मैं मुस्कुराती हुई बोली,"अच्छा छोड़ ये सब। चलो छत पर थोड़ी लाइव देखते हैं।"
"Wow मेरी जानेमन! कुछ तो बोली। पर अभी तो धूप निकली ही है और लाइव शुरू होने में करीब 30 मिनट बचे हैं।" पूजा तो ऐसे समझाने लगी कि मानो वो तो उनका पूरा टाइम टेबल जानती है।
"अच्छा चलो ना फिर भी। कुछ देर यूँ ही टाइमपास करेंगे।" मैं पुनः जोर देते हुए बोली।
पूजा मुस्कुरा दी और हामी भरते हुए छत की तरफ चल दी। अब पूजा को क्या पता कि मैं तो कुछ और ही देखने जा रही थी। गेट लॉक की और कुछ ही देर में हम दोनों छत पर थे।
मेरी नजर तो सबसे पहले उस छत की तरफ गई जहाँ कल लाइव शो चल रही थी। वहाँ तो अभी एक भी लोग नहीं थे। मैं फिर दूसरी तरफ देखने लगी। मेन रोड की तरफ देखी तो एक से एक बिल्डिँग नजर आ रही थी। यहाँ से मेनरोड नजर तो नहीं आ रही थी पर वहाँ सड़कों पर दौड़ रही गाड़ियों की तेज आवाजें जरूर सुनाई दे रही थी।
दूसरी तरफ नजर दौड़ाई तो गली आगे जा कर बाएँ और दाएँ की मुड़ गई थी। इधर की तरफ घर भी धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे थे आगे।
"पूजा,ये सड़क आगे जाकर खत्म हो जाती है क्या?" पूजा को अपनी बगल में खड़ी देख पूछी।
"नहीं भाभी,ये सड़क आगे उस कॉलोनी से होती हुई आगे पुनः मेनरोड पर निकल जाती है।"पूजा हल्के शब्दों में बता दी।
मेरी नजर दोनों कॉलोनी की तरफ गई जहाँ कोई भी घर दो मंजिल से ज्यादा की नहीं थी।कुछ घर तो बिल्कुल गाँवों की झोपड़ी की तरह थी। तभी पूजा आगे बोली,"भाभी, इन दोनों कॉलोनी में सिर्फ कम आय वाले लोग रहते हैं जैसे कि मजदूर,दूधवाला, ऑटोवाला वगैरह-2। यहाँ मेन रोड से जितनी अंदर जाओगी, वैसी ही लोगों की रैंक भी कम होती जाती है।"
पूजा की बात सुन हम दोनों इस वर्गीकरण पर हँस पड़े।
मैं छत पर खड़ी उस कॉलोनी की तरफ देख रही थी या कहो किसी को ढूँढने की कोशिश कर रही थी। पूजा मेरी बगल से निकल दूसरी तरफ चली गई।
मैं मन में सोचे जा रही थी कि कहाँ पर होगी उस ऑटो वाले का घर?
अचानक मैं अपने सिर को झटकी... छिः.. पता नहीं मेरे अंदर उस मामूली ड्राइवर कैसे आ गया। ड्राइवर तो था पर था वो मेरी हुस्न का दीवाना... ड्राइवर तो सब दिन अपनी बीबी या रण्डी को ही चोदता है तो उसकी ऐसी हरकत तो वाजिब थी। अगले ही पल मैं एक बार सोचनी लग गई..
ऑटो ड्राइवर है तो किसी झोपड़ी में ही रहता होगा। घर में उसकी बीबी-बच्चे होंगे। दिन भर कमा कर आता होगा थका हुआ और खाना खा सो जाता होगा। नहीं.. नहीं.. दिखने में तो काफी हिष्ट-पुष्ट है.. जरूर अपनी बीबी को जम के चोदता होगा फिर सोता होगा।घनी-2 मूँछेँ,सिर पर गमछी लपेटे,कमीज की सिर्फ नीचे की एक बटन लगी, लाल-2 आँखें, मुँह में गुटखा चबाए भयानक लग रहा था। और किसी लड़की को देखता तो मानोँ अगर वो लड़की अकेली मिल जाए तो उसी जगह पटक के चोद ले। उसकी तरह उसकी बीबी भी काली होगी पर काफी सेक्सी होगी.. क्योंकि काले लोगों में सेक्स कूट-2 के भरी होती है। दोनों जब सेक्स करते होंगे तो पड़ोसी की निश्चित ही नींद टूट जाती होगी...
और ऐसी बातें सोचते-2 मेरे होंठों पर मुस्कान तैर गई।
"ओ भाभी,कहाँ खोई हुई है? आपके फोन में किसी का मैसेज आया है.."तभी दूसरी तरफ से आई पूजा की आवाज सुन मैं ख्वाबोँ की दुनिया से बाहर निकली। पूजा की तरफ नजर दौड़ा एक छोटी सी स्माइल दी और मैसेज देखने लगी।
"कुछ दोस्त जिंदगी में इस कदर शामिल हो जाते हैं,
अगर भुलाना चाहो तो और याद आते हैं।
बस जाते हैं वो दिल में इस कदर कि,
आँखें बंद करो तो सामने नजर आते हैं।।"
मैसेज पढ़ मेरी होंठों पर मुस्कान आ गई। पूजा मुझे मुस्कुराते देख पास आती हुई बोली,"क्यों मेरी रानी, बड़ी चवनिया मुस्कान दे रही है मैसेज देख कर। जरा हमें भी तो दिखाओ किसके हैं।"
मैं अभी भी मुस्कुराए जा रही थी।पूजा मेरे हाथों से फोन ले पहले नम्बर देखी,फिर हँसते हुए जोर-जोर से मैसेज पढ़ने लगी। मेरी तो हँसी के साथ-2 शर्म भी आने लगी थी। जैसे ही मैसेज खत्म हुई पूजा फोन मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली,"हाय, अपने इस दीवाने को जल्दी से उत्तर दो।"
मैं ना में सिर हिला दी। पूजा चौँकती हुई बोली,"ओ मेरी सती सावित्री, ऐसे कैसे चलेगा। जल्दी से जवाब दे वर्ना तुम जिंदगी भर अंकल के लंड को याद करने में ही गुजार दोगी। समझी कुछ."
पूजा की बात सुनते ही मैं उसके हाथ से फोन ली और बोली,"बड़ी आई मैसेज-2 खेलने वाली.. मैं नहीं खेलने वाली।"
और फोन लेते हुए नम्बर डायल कर फोन कान में लगा ली। ये देखते ही पूजा खुशी से उछल पड़ी और बोली," Woww! भाभी, तुम तो बड़ी कमीनी निकली। मैं कहाँ मैसेज करने की सोच रही और तुम तो सीधी.."
पूजा अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी कि तब तक मैंने उसके मुँह को हाथों से बंद कर दी।
"प्रणाम अंकल.." फोन रिसीव होते ही मैं बोली।
"जीती रहो बेटा, कैसी हो? नई जगह पर मन तो लग रहा है ना।पूजा जब तक कॉलेज रहती तब तक तो अकेली बोर हो जाती होगी।"अंकल एक ही बार में कई सवाल कर गए।
मैं हँसती हुई बोली,"बिल्कुल ठीक हूँ अंकल। और यहाँ हम दोनों काफी मजे में हैं.. हाँ कभी कभी बोर जरूर हो जाती।"
"ओह मेरी बच्ची.. तो तुम फोन क्यों नहीं कर लेती। बात कर लेगी तो थोड़ी रिलेक्स हो जाएगी और बाहर भी घूमने चली जाया करना।"अंकल तरस खाते हुए बोले।इधर पूजा गौर से हम दोनों की बातें सुन रही थी।
"जी अंकल।"मैं अंकल की बातों को समर्थन देते हुए बोली।
"अंकल, आप हमसे मिलने कब आओगे?" पूजा की नाचती नजरों में देखती मुस्कुराती हुई बोली। पूजा मेरी इस सवाल पर Wow कहने की मुद्रा में अपनी होंठ कर ली।
"अरे सीता बेटा, मैं खुद ही आपसे मिलने के लिए कितना तरस रहा हूँ; तुम सोच नहीं सकती। कल तक किसी तरह समय निकाल कर आ जाऊँगा।"अंकल के हर शब्दों में बेकरारी साफ-2 झलक रही थी।
"ठीक है अंकल,मैं इंतजार करूँगी।" मैं अंकल की बेसब्री पर मुस्कुराती हुई थोड़े और जख्म दे दी।
"ओफ्फ.... थैंक्स बेटा.. मन तो नहीं है पर अभी एक जरूरी मीटिंग में जाना है इसलिए रख रहा हूँ। फुर्सत में आराम से बात करेंगे।" अंकल के बुझे हुए शब्द मेरे कानों में पड़ी तो मैं झूम सी गई। अंकल तो सच में पूरे फिदा थे।
"ठीक है अंकल पर...."मैं अंकल को लगभग रोकती हुई बोली। इधर पूजा मेरी तरफ आँखें फाड़ कर देखने लगी कि अब क्या कहने वाली है।
"पर क्या बेटा?"अंकल एक बार फिर जोश में आते हुए बोले।मैं कुछ देर खामोश सी हो गई। पूजा भी मुझे समझने की कोशिश करती देखी जा रही थी।
"हैल्लो.. सीता बेटा.. अरे बोलो ना.. कुछ दिक्कत है या कोई बात है, बेहिचक बोलो।"अंकल की आवाजें एक बार फिर गूँजी। मैं थोड़ी हकलाती हुई बोली,"वो अं..अंकल.. मुझे उस दिन वाला प्यार चाहिए था आपसे.."
मैं अब सच में थोड़ी शर्मा गई कहते हुए और साथ में मेरी चूत भी। पूजा तो अपने दोनों हाथ से मुँह ढँक दबी हुई हँसी हँसने लगी। वो दोनों समझ गए थे कि मैं चुम्मा माँग रही हूँ।मैं अपने चेहरे पर आई पसीने साफ करती हुई पूजा को चुप रहने की इशारा की।
"अम्म..म.. वो पूजा नहीं है क्या घर पर।" अंकल भी थोड़े डर गए और हकलाते हुए बोले। अब हँसी निकालने की बारी मेरी थी अंकल की हालत देख,पर किसी तरह काबू पाते हुए नाराज भरे शब्दों में बोली,"अंकल,पूजा घर पर रहती तो थोड़े ही ना माँगती। वो अपने दोस्त के साथ बाहर गई है..प्लीज अंकलललल..."
पूजा की तो हँसी से हालत खराब हो रही थी। वो वहीं अपनी पेट पकड़ बैठ गई। पूजा घर पर नहीं है सुन अंकल थोड़ी राहत की साँस लिए और नॉर्मल होने की कोशिश करते हुए बोले,"अच्छा बेटा, अभी तो जल्दी में हूँ वर्ना ढेर सारी देता। कहाँ पर दूँ, जल्दी बोलो."
मैं थोड़ी इठलाती हुई बोली,"अंकल..जहाँ पर उस दिन दिए थे।"
"वो तो ठीक है मेरी रानी बिटिया, पर अगर उस जगह की नाम बता देती तो और भी अच्छे ढंग से देता।"अंकल थोड़े से सकुचाते हुए बोले शायद उन्हें झिझक हो रही थी। पर कह तो सही रहे थे। कोई लड़की अगर खुल के सेक्सी बातें बोलती है तो पार्टनर दुगुने उत्साह से मजे दिलाता है।
मैं अब ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहती थी क्योंकि अब मेरी भी चूत फव्वारे छोड़ने लगी थी।
अबकी बार तो मैं सच में सिहर गई और शर्माते हुए बोली," ज..जी अंकल वो मेरी होंठों पर..."
इतनी ही कह पाई कि मेरी साँसें तेज होने लगी थी। और पूजा तो हँसते-2 एक तरफ लुढक चुकी थी। दूसरी तरफ अंकल एक मुख से एक आहहह निकली और घबराई हुई शब्दों में बोले," बेटा, होंठ नहीं कहो... प्यारी-2, सुंदर, रसीली और शहद जैसी मीठी होंठ कहो। अच्छा अब जरा आप अपने होंठों पर मोबाइल रखिए.."
मैं हल्की हँसी हँसती हुई बोली.. "जी अंकल, रख दी।"
तभी अंकल की एक जोरदार और लम्बी सी चुम्मी की तेज आवाज मोबाइल से निकली...
और पीछे से अंकल हल्के शब्दों में बोले,"आह मेरी रानी"
मैं समझ गई कि अंकल अब पूरे जोश में आ गए हैं.. मैं हल्की हँसी के साथ मुस्कुराती हुई बोली,"थैंक्स अंकल,अब आप जाइए.. और जल्दी ही मिलने आइएगा। उम्मुआहहहह...." इस बार अंकल को एक झटके देती हुई मैं भी उतावला हो गई थी.. अंकल तो बदहवास से कहीं खो गए। उनकी तरफ से कोई आवाज नहीं सुन मैं हैल्लो की तो अंकल की सिर्फ सिसकारि निकल सकी। मैं तेजी से बाय अंकल कहती हुई फोन रख दी। फोन रखने के साथ ही हम दोनों की 15 मिनट की रुकी हुई हँसी एक साथ गूँज उठी...
कोमल दीदी खुद ही चलकर मेरे पास आ गई।
"सीता,मैं आप लोगों की दिल दुखाना नहीं चाहती थी। मैं तो बस एक दोस्त की तरह जुड़ना चाहती हूँ। अगर आप लोगों को मेरी बातों से ठेस पहुँची हो तो प्लीज माफ कर देना। पर प्लीज दोस्ती मत छोड़ना।"
मैं उन्हें एक टक देखी जा रही थी। उनकी आँखें बोलते-2 नम सी हो गई थी। उनकी हालत देख मैं भी भावुक सी हो गई। फिर वो अपनी आँखें पोँछती बोली,"ये लो मेरी कार्ड, अगर अपनी इस नादान से बात करने की इच्छा हुई तो बेहिचक फोन करना।"
मैं अब उन्हें ज्यादा देर तक ऐसी देख नहीं पा रही थी और जल्द से जल्द निकलना चाहती थी। मैंने कार्ड ली और ओके कहते हुए सीढ़ी से नीचे उतरने लगी।
पूरे रास्ते गुमशुम सी बैठी रही, मानोँ साँप छू गई हो। कई बार बोलने की कोशिश भी की पर उसने कोई जवाब ही नहीं दी। घर आते ही उसने रूम में घुस कमरे लॉक कर ली। मैं भी कुछ देर टाइम पास करने टीवी के सामने बैठ गई।
बैठे-2 नौ कब बज गए, मालूम ही नहीं पड़ी। श्याम भी आ गए थे। जल्दी से खाना बनाई और श्याम को खाना खिला दी। फिर पूजा को आवाज दी तो वो भी आई और चुपचाप खाना खा चली गई। मैं भी सोने चली गई।
अगली सुबह फिर वही कल वाली बात। दूध लेने के बाद उस ऑटो वाले की बेहूदा हरकतेँ देख के भागना। मन ही मन सोचने लगी कि ये ऑटो वाला रोज कैसे हमारी गली में आ जाता है।कहीं वो सिर्फ मुझे ही देखने ही नहीं आता है।
नहीं. नहीं. शायद घर होगा आगे। तभी तो रोज इधर से ही आता है। कल भी तो दोपहर में इधर की तरफ ही तो आ रहा था। पर मुझे देखते ही वापस हो गया था। खैर मैं अपने सिर को झटकते हुए उसकी बातों को दिमाग से निकाल देना चाहती थी।
सुबह भी पूजा कुछ नहीं बोल रही थी। नाश्ता करने के बाद वो कॉलेज निकल गई। श्याम भी कुछ देर में ड्यूटी पर निकल गए। मैं भी सारे काम निपटा आराम करने रूम में चली आई पर दिल में अब बेचैनी सी होने लगी थी। पता नहीं पूजा कुछ क्यों नहीं बोल रही है। अगर उसने नहीं बोली कभी इस बारे में तो पता नहीं मैं खुद को कैसे मना पाऊंगी। कैसे अपने दिल को समझा पाऊंगी। इन्हीं सब बातों में खोती कब सो गई मालूम नहीं।
पूजा कॉलेज से आ गई थी और नाश्ता कर रही थी, तब मेरी नींद खुली। मैं उसकी तरफ एक नजर डाली और बाथरुम की तरफ चली गई। फ्रेश होने के बाद जैसे ही निकली, पूजा बोली,"भाभी, अब आपको क्या हो गया जो मुँह फेर रही हो।"
मैं ठिठकती हुई रुक गई और पूजा की तरफ मुड़ के बोली,"मुझे क्या होगी! खुद ही कल से ऐसे चुप हैं मानोँ जैसे आसमान गिर गई हो तेरे सिर पे।"
मैं शिकायत करते हुए मुस्कुरा दी। पूजा तब तक नाश्ता कर चुकी थी। हाथ साफ करती हुई बोली,"भाभी, मैं उनकी बातों से बिल्कुल नाराज नहीं थी क्योंकि वो झूठ तो नहीं कह रही थी।" मैं भी पूजा की बातों को हाँ में सहमति दी। पूजा मेरे निकट आ गई और बोली," बस थोड़ी सी डर गई थी कि इन शहरी लोगों का पता नहीं पैसों के लिए कब किसे हलाल कर दे।"
"मतलब......!"मैं चौंक कर पूजा को बात समझाने के लिए पूछी।
"मतलब ये कि कहीं वो हमें ब्लैक-मेल तो नहीं करने की सोच रही ये सब बातें कह कर। यहाँ तो रोज ऐसी बातें होती रहती है।"पूजा मुझे समझाते हुए बोली।
मैं तो हैरान सी रह गई पूजा की सोच देख कर। किसी भी बात को तुरंत ही अंत तक ले जाकर सोचती है कि परिणाम क्या होगी इसकी।
मेरी दिमाग में ये बातें आते ही आगे की सोच सिहर गई।तभी पूजा बोली,"पर अब टेँशन लेने की कोई बात नहीं है भाभी।"
"क्यों?"मैं तो पूजा की हर बात सुन परेशान हुई जा रही थी। कभी कुछ कहती, कभी कुछ।
"आज कॉलेज में उसी दोस्त को सारी बात बताई थी। वो तो पहले खूब हँसी फिर बोली कि वो फायदा उठाने वाली लेडिज नहीं हैं। जहाँ तक वो एक दोस्त की तरह हर मुसीबत में हर वक्त साथ देती है।"
मैं भी पूजा की बात से कोमल दीदी को याद कर मुस्कुरा पड़ी।
"वो तो ठीक है पर अगर गाँव की देख उनकी नेचर बाद में बदल गई तो...।"अब मेरे मन में भी थोड़ी शंका हुई।
"भाभी, मैं ये कहाँ कह रही कि उनसे दोस्ती कर ही लो। जस्ट उनके बारे में बता रही हूँ और आप हो कि...."
मेरी बात पर पूजा हैरानी भरी आवाजोँ में बोली। मैं मुस्कुराती हुई बोली,"अच्छा छोड़ ये सब। चलो छत पर थोड़ी लाइव देखते हैं।"
"Wow मेरी जानेमन! कुछ तो बोली। पर अभी तो धूप निकली ही है और लाइव शुरू होने में करीब 30 मिनट बचे हैं।" पूजा तो ऐसे समझाने लगी कि मानो वो तो उनका पूरा टाइम टेबल जानती है।
"अच्छा चलो ना फिर भी। कुछ देर यूँ ही टाइमपास करेंगे।" मैं पुनः जोर देते हुए बोली।
पूजा मुस्कुरा दी और हामी भरते हुए छत की तरफ चल दी। अब पूजा को क्या पता कि मैं तो कुछ और ही देखने जा रही थी। गेट लॉक की और कुछ ही देर में हम दोनों छत पर थे।
मेरी नजर तो सबसे पहले उस छत की तरफ गई जहाँ कल लाइव शो चल रही थी। वहाँ तो अभी एक भी लोग नहीं थे। मैं फिर दूसरी तरफ देखने लगी। मेन रोड की तरफ देखी तो एक से एक बिल्डिँग नजर आ रही थी। यहाँ से मेनरोड नजर तो नहीं आ रही थी पर वहाँ सड़कों पर दौड़ रही गाड़ियों की तेज आवाजें जरूर सुनाई दे रही थी।
दूसरी तरफ नजर दौड़ाई तो गली आगे जा कर बाएँ और दाएँ की मुड़ गई थी। इधर की तरफ घर भी धीरे-धीरे छोटे होते जा रहे थे आगे।
"पूजा,ये सड़क आगे जाकर खत्म हो जाती है क्या?" पूजा को अपनी बगल में खड़ी देख पूछी।
"नहीं भाभी,ये सड़क आगे उस कॉलोनी से होती हुई आगे पुनः मेनरोड पर निकल जाती है।"पूजा हल्के शब्दों में बता दी।
मेरी नजर दोनों कॉलोनी की तरफ गई जहाँ कोई भी घर दो मंजिल से ज्यादा की नहीं थी।कुछ घर तो बिल्कुल गाँवों की झोपड़ी की तरह थी। तभी पूजा आगे बोली,"भाभी, इन दोनों कॉलोनी में सिर्फ कम आय वाले लोग रहते हैं जैसे कि मजदूर,दूधवाला, ऑटोवाला वगैरह-2। यहाँ मेन रोड से जितनी अंदर जाओगी, वैसी ही लोगों की रैंक भी कम होती जाती है।"
पूजा की बात सुन हम दोनों इस वर्गीकरण पर हँस पड़े।
मैं छत पर खड़ी उस कॉलोनी की तरफ देख रही थी या कहो किसी को ढूँढने की कोशिश कर रही थी। पूजा मेरी बगल से निकल दूसरी तरफ चली गई।
मैं मन में सोचे जा रही थी कि कहाँ पर होगी उस ऑटो वाले का घर?
अचानक मैं अपने सिर को झटकी... छिः.. पता नहीं मेरे अंदर उस मामूली ड्राइवर कैसे आ गया। ड्राइवर तो था पर था वो मेरी हुस्न का दीवाना... ड्राइवर तो सब दिन अपनी बीबी या रण्डी को ही चोदता है तो उसकी ऐसी हरकत तो वाजिब थी। अगले ही पल मैं एक बार सोचनी लग गई..
ऑटो ड्राइवर है तो किसी झोपड़ी में ही रहता होगा। घर में उसकी बीबी-बच्चे होंगे। दिन भर कमा कर आता होगा थका हुआ और खाना खा सो जाता होगा। नहीं.. नहीं.. दिखने में तो काफी हिष्ट-पुष्ट है.. जरूर अपनी बीबी को जम के चोदता होगा फिर सोता होगा।घनी-2 मूँछेँ,सिर पर गमछी लपेटे,कमीज की सिर्फ नीचे की एक बटन लगी, लाल-2 आँखें, मुँह में गुटखा चबाए भयानक लग रहा था। और किसी लड़की को देखता तो मानोँ अगर वो लड़की अकेली मिल जाए तो उसी जगह पटक के चोद ले। उसकी तरह उसकी बीबी भी काली होगी पर काफी सेक्सी होगी.. क्योंकि काले लोगों में सेक्स कूट-2 के भरी होती है। दोनों जब सेक्स करते होंगे तो पड़ोसी की निश्चित ही नींद टूट जाती होगी...
और ऐसी बातें सोचते-2 मेरे होंठों पर मुस्कान तैर गई।
"ओ भाभी,कहाँ खोई हुई है? आपके फोन में किसी का मैसेज आया है.."तभी दूसरी तरफ से आई पूजा की आवाज सुन मैं ख्वाबोँ की दुनिया से बाहर निकली। पूजा की तरफ नजर दौड़ा एक छोटी सी स्माइल दी और मैसेज देखने लगी।
"कुछ दोस्त जिंदगी में इस कदर शामिल हो जाते हैं,
अगर भुलाना चाहो तो और याद आते हैं।
बस जाते हैं वो दिल में इस कदर कि,
आँखें बंद करो तो सामने नजर आते हैं।।"
मैसेज पढ़ मेरी होंठों पर मुस्कान आ गई। पूजा मुझे मुस्कुराते देख पास आती हुई बोली,"क्यों मेरी रानी, बड़ी चवनिया मुस्कान दे रही है मैसेज देख कर। जरा हमें भी तो दिखाओ किसके हैं।"
मैं अभी भी मुस्कुराए जा रही थी।पूजा मेरे हाथों से फोन ले पहले नम्बर देखी,फिर हँसते हुए जोर-जोर से मैसेज पढ़ने लगी। मेरी तो हँसी के साथ-2 शर्म भी आने लगी थी। जैसे ही मैसेज खत्म हुई पूजा फोन मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली,"हाय, अपने इस दीवाने को जल्दी से उत्तर दो।"
मैं ना में सिर हिला दी। पूजा चौँकती हुई बोली,"ओ मेरी सती सावित्री, ऐसे कैसे चलेगा। जल्दी से जवाब दे वर्ना तुम जिंदगी भर अंकल के लंड को याद करने में ही गुजार दोगी। समझी कुछ."
पूजा की बात सुनते ही मैं उसके हाथ से फोन ली और बोली,"बड़ी आई मैसेज-2 खेलने वाली.. मैं नहीं खेलने वाली।"
और फोन लेते हुए नम्बर डायल कर फोन कान में लगा ली। ये देखते ही पूजा खुशी से उछल पड़ी और बोली," Woww! भाभी, तुम तो बड़ी कमीनी निकली। मैं कहाँ मैसेज करने की सोच रही और तुम तो सीधी.."
पूजा अपनी बात पूरी भी नहीं कर सकी कि तब तक मैंने उसके मुँह को हाथों से बंद कर दी।
"प्रणाम अंकल.." फोन रिसीव होते ही मैं बोली।
"जीती रहो बेटा, कैसी हो? नई जगह पर मन तो लग रहा है ना।पूजा जब तक कॉलेज रहती तब तक तो अकेली बोर हो जाती होगी।"अंकल एक ही बार में कई सवाल कर गए।
मैं हँसती हुई बोली,"बिल्कुल ठीक हूँ अंकल। और यहाँ हम दोनों काफी मजे में हैं.. हाँ कभी कभी बोर जरूर हो जाती।"
"ओह मेरी बच्ची.. तो तुम फोन क्यों नहीं कर लेती। बात कर लेगी तो थोड़ी रिलेक्स हो जाएगी और बाहर भी घूमने चली जाया करना।"अंकल तरस खाते हुए बोले।इधर पूजा गौर से हम दोनों की बातें सुन रही थी।
"जी अंकल।"मैं अंकल की बातों को समर्थन देते हुए बोली।
"अंकल, आप हमसे मिलने कब आओगे?" पूजा की नाचती नजरों में देखती मुस्कुराती हुई बोली। पूजा मेरी इस सवाल पर Wow कहने की मुद्रा में अपनी होंठ कर ली।
"अरे सीता बेटा, मैं खुद ही आपसे मिलने के लिए कितना तरस रहा हूँ; तुम सोच नहीं सकती। कल तक किसी तरह समय निकाल कर आ जाऊँगा।"अंकल के हर शब्दों में बेकरारी साफ-2 झलक रही थी।
"ठीक है अंकल,मैं इंतजार करूँगी।" मैं अंकल की बेसब्री पर मुस्कुराती हुई थोड़े और जख्म दे दी।
"ओफ्फ.... थैंक्स बेटा.. मन तो नहीं है पर अभी एक जरूरी मीटिंग में जाना है इसलिए रख रहा हूँ। फुर्सत में आराम से बात करेंगे।" अंकल के बुझे हुए शब्द मेरे कानों में पड़ी तो मैं झूम सी गई। अंकल तो सच में पूरे फिदा थे।
"ठीक है अंकल पर...."मैं अंकल को लगभग रोकती हुई बोली। इधर पूजा मेरी तरफ आँखें फाड़ कर देखने लगी कि अब क्या कहने वाली है।
"पर क्या बेटा?"अंकल एक बार फिर जोश में आते हुए बोले।मैं कुछ देर खामोश सी हो गई। पूजा भी मुझे समझने की कोशिश करती देखी जा रही थी।
"हैल्लो.. सीता बेटा.. अरे बोलो ना.. कुछ दिक्कत है या कोई बात है, बेहिचक बोलो।"अंकल की आवाजें एक बार फिर गूँजी। मैं थोड़ी हकलाती हुई बोली,"वो अं..अंकल.. मुझे उस दिन वाला प्यार चाहिए था आपसे.."
मैं अब सच में थोड़ी शर्मा गई कहते हुए और साथ में मेरी चूत भी। पूजा तो अपने दोनों हाथ से मुँह ढँक दबी हुई हँसी हँसने लगी। वो दोनों समझ गए थे कि मैं चुम्मा माँग रही हूँ।मैं अपने चेहरे पर आई पसीने साफ करती हुई पूजा को चुप रहने की इशारा की।
"अम्म..म.. वो पूजा नहीं है क्या घर पर।" अंकल भी थोड़े डर गए और हकलाते हुए बोले। अब हँसी निकालने की बारी मेरी थी अंकल की हालत देख,पर किसी तरह काबू पाते हुए नाराज भरे शब्दों में बोली,"अंकल,पूजा घर पर रहती तो थोड़े ही ना माँगती। वो अपने दोस्त के साथ बाहर गई है..प्लीज अंकलललल..."
पूजा की तो हँसी से हालत खराब हो रही थी। वो वहीं अपनी पेट पकड़ बैठ गई। पूजा घर पर नहीं है सुन अंकल थोड़ी राहत की साँस लिए और नॉर्मल होने की कोशिश करते हुए बोले,"अच्छा बेटा, अभी तो जल्दी में हूँ वर्ना ढेर सारी देता। कहाँ पर दूँ, जल्दी बोलो."
मैं थोड़ी इठलाती हुई बोली,"अंकल..जहाँ पर उस दिन दिए थे।"
"वो तो ठीक है मेरी रानी बिटिया, पर अगर उस जगह की नाम बता देती तो और भी अच्छे ढंग से देता।"अंकल थोड़े से सकुचाते हुए बोले शायद उन्हें झिझक हो रही थी। पर कह तो सही रहे थे। कोई लड़की अगर खुल के सेक्सी बातें बोलती है तो पार्टनर दुगुने उत्साह से मजे दिलाता है।
मैं अब ज्यादा वक्त नहीं लेना चाहती थी क्योंकि अब मेरी भी चूत फव्वारे छोड़ने लगी थी।
अबकी बार तो मैं सच में सिहर गई और शर्माते हुए बोली," ज..जी अंकल वो मेरी होंठों पर..."
इतनी ही कह पाई कि मेरी साँसें तेज होने लगी थी। और पूजा तो हँसते-2 एक तरफ लुढक चुकी थी। दूसरी तरफ अंकल एक मुख से एक आहहह निकली और घबराई हुई शब्दों में बोले," बेटा, होंठ नहीं कहो... प्यारी-2, सुंदर, रसीली और शहद जैसी मीठी होंठ कहो। अच्छा अब जरा आप अपने होंठों पर मोबाइल रखिए.."
मैं हल्की हँसी हँसती हुई बोली.. "जी अंकल, रख दी।"
तभी अंकल की एक जोरदार और लम्बी सी चुम्मी की तेज आवाज मोबाइल से निकली...
और पीछे से अंकल हल्के शब्दों में बोले,"आह मेरी रानी"
मैं समझ गई कि अंकल अब पूरे जोश में आ गए हैं.. मैं हल्की हँसी के साथ मुस्कुराती हुई बोली,"थैंक्स अंकल,अब आप जाइए.. और जल्दी ही मिलने आइएगा। उम्मुआहहहह...." इस बार अंकल को एक झटके देती हुई मैं भी उतावला हो गई थी.. अंकल तो बदहवास से कहीं खो गए। उनकी तरफ से कोई आवाज नहीं सुन मैं हैल्लो की तो अंकल की सिर्फ सिसकारि निकल सकी। मैं तेजी से बाय अंकल कहती हुई फोन रख दी। फोन रखने के साथ ही हम दोनों की 15 मिनट की रुकी हुई हँसी एक साथ गूँज उठी...
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Re: सीता --गाँव की लड़की शहर में
सीता --एक गाँव की लड़की--12
हम दोनों की हँसी रुकते नहीं रुक रही थी। वहीं बैठ किसी तरह हँसी रोकने की कोशिश कर रही थी। तभी पूजा की नजर उस तरफ गई जहाँ वही जोड़ा खुली छत पर सेक्स कर रही थी। पूजा देखते ही बोली,"क्या यार, रोज-2 ऐसे करते मन नहीं उबता क्या? कभी तो जगह,पोज बदला करो। इससे अच्छी मस्ती तो हम लोग कर रहे हैं।"पूजा उसकी तरफ देख कहते हुए हँस पड़ी।
कुछ देर यूँ ही छत पर टहलने के बाद हम दोनों नीचे आ गए। फिर रात का खाना खा सो गए।
अगले दिन सुबह दूध ले वापस अपने फ्लैट की तरफ आ रही थी। तभी रोज की तरह वही ऑटो वाला गाना बजाते हुए आ रहा था। पता नहीं मन में क्या सुझी? पहली सीढ़ी पर रखी पैर वापस खींचते हुए बाहर उस ऑटो की तरफ देखने लगी। रोज की तरह ऑटो रुकी और ड्राइवर अपने लंड मसलते हुए जीभ फेरने लगा। बिना किसी शर्म के मैं उसकी आँखों में देखे जा रही थी। तभी उस ड्राइवर ने फ्लाइंग किस मेरी तरफ उछाल दिया। ना चाहते हुए भी मैं मुस्कुरा पड़ी और वापस भागती हुई अपने फ्लैट में चली आई। मेरी साँसें तेज चलने लगी थी.. मैं किचन में खड़ी हँसते हुए साँसें पर काबू पाने की कोशिश करने लगी। मैं तो उसकी हिम्मत की कायल हो गई। कैसे वो बिना डर के पहले लंड मसल रहा था, फिर थोड़ी रिस्पांस मिलते ही फ्लाइंग किस दे बैठा। इसी तरह उसके बारे में सोचते किचन के काम में लग गई। रोज की तरह श्याम ड्यूटी,पूजा कॉलेज और मैं खाना खा के आराम करने चली गई।
दोपहर में करीब 1 बजे डोरबेल की आवाजें से मेरी नींद खुली। मैं तेजी से उठी और गेट खोली। सामने अंकल को देखते ही मैं चौंक पड़ी। अगले ही पल मैं संभलती हुई प्रणाम की। अंकल मेरी दोनों बाँहेँ पकड़ते हुए बोले,"अरे बेटा, दिल में रहने वाले लोग पैर नहीं छूते, बल्कि गले मिलते हैं।" कहते हुए अंकल अपने मजबूत बाँहों में मुझे समेट लिए। मैं भी सिमटती हुई अंकल के बाँहों में सिमट गई। सच अंकल के बाँहों में काफी सुकून मिल रही थी। कुछ देर किसी प्रेमी जोड़े की तरह लिपटी रहने के बाद मैं ऊपर उनकी आँखों में देखते हुए बोली,"यहीं पर से वापस जाएँगे क्या? अंदर चलिए ना....!"
मेरी बात सुन अंकल मेरी होंठों को हल्के से चूमते हुए बोले,"ओके बेटा,जैसी आपकी मर्जी।"
फिर हम दोनों अलग हुए और गेट बंद करते हुए अपने रूम की तरफ चल दी। अंकल भी मेरे पीछे आते हुए रूम में आए और सोफे पर बैठ गए। मैं फ्रिज से पानी की बोतल निकाल उनकी तरफ बढ़ा दी। बोतल पकड़ते हुए अंकल बोले,"सीता, खाना नहीं खाती क्या? कितनी दुबली हो गई। गाँव में थी तब अच्छी लगती थी। और पूजा कॉलेज से नहीं आई क्या?"
अंकल की बात सुन मैं हँसती हुई बोली,"अंकल मैं तो वैसी ही हूँ जैसी गाँव में थी। पूजा भी कुछ देर में आ जाएगी।" कहते हुए मैं किचन में आई और चाय बनाने लगी। जैसी की मुझे उम्मीद थी, अंकल अगले ही पल किचन में मौजूद थे। मैं मन ही मन मुस्कुरा दी और बिना मुड़े चाय बनाने में मग्न रही। पर शरीर में तो अंकल के अगले कदम को सोच झुरझुर्री आ गई थी। तभी अंकल पीछे से अपनी लंड मेरी गांड़ के ऊपर रखते हुए चिपक गए और मेरी बाल एक तरफ करते हुए कान की बाली अपने मुँह में भर लिए। मैं तो जोर से सिहर गई। ओफ्फ करती हुई कसमसाने लगी। उनकी गर्म साँसें सीधे मेरी सुर्ख गालोँ पर पड़ रही थी जिससे मैं कांप सी गई। अगले ही पल अंकल अपने हाथ मेरी साड़ी के नीचे होते हुए नंगी पेट पर रख दिए। मेरी तो हालत जल बिन मछली की तरह हो गई। मैं सिसकती हुई अंकल के सीने पर अपने सर टिका दी। मेरी आँखें मदहोशी में बंद हो चुकी थी और नीचे मेरी चूत रस बहाने लगी थी। तभी अंकल मेरी कान की बाली को मुँह से आजाद कर दिए। मेरी साँसें अब तेज चलने लगी कि पता नहीं अब अंकल क्या करेंगे। तभी अंकल अपना दूसरा हाथ मेरी चूत के ठीक बगल में रख दिए। मैं मस्ती के सागर में डूबती हुई अपने दोनों पैर सिकुड़ कर पीछे को हुई। पर पीछे से अंकल अपने लंड को तैनात किए हुए थे जो किसी काँटे की भाँति मेरी मांसल चूतड़ में धँस गई। अंकल की एक छोटी सी हँसी सुनाई दी जिससे मैं शर्मा गई। तभी अंकल चूत के पास रखे अपने हाथ धीरे-2 ऊपर की तरफ सरकाने लगे। हाथ थी तो साड़ी के ऊपर पर वो अपने जलवे मेरी रूहोँ को तक दिखा रही थी। अंकल बिना रुके अपने कड़क हाथ पेट के ऊपर से गुजारते जा रहे थे। जैसे ही हाथ मेरी चुची के निचले हिस्से को छुई, मैं तड़प के अपने हाथों से उन्हें रोकने की कोशिश की। पर मेरी हाथ क्या पूरे शरीर में थोड़ी भी ताकत नहीं रह गई थी कि अंकल को अब रोक सकूँ। अंकल मेरे हाथ सहित अपने हाथ मेरी चुची पर ऊपर की तरफ ले जाने लगे। मेरी चुची के ठीक बीचोँबीच आते ही उन्होंने अपने हाथ नचा दिए। मैं काम वासना में इतनी जल गई थी कि इसे बर्दाश्त नहीं कर पाई और चीखते हुए झड़ने लगी। मेरी पूरी शरीर कांपने लगी थी, जिसे अंकल तुरंत समझ गए और पेट पर रखे हाथ से मुझे कस के पकड़ लिए ताकि मैं उनके साथ खड़ी रह सकूँ। तब तक अंकल के हाथ मेरी चुची को रगड़ती हुई मेरी गाल तक पहुँच गई। फिर मेरी गालोँ को हल्के से घुमाते हुए अपने तरफ करने लगे। मेरी साँसे उखड़ने लगी। मैं चाह कर भी कुछ करने लायक नहीं बची थी। अगले ही क्षण मेरी कांपती होंठ पर उनके होंठ चिपक गए। उनके होंठ लगते ही मैं जन्नत में पहुँच गई। मैं एक बार झड़ने के बावजूद पुनः गर्म हो गई और आपा खोते हुए किस करने लगी। मेरी तरफ से अनुमति मिलते ही अंकल तेजी से किस करने लगे। अगले ही पल मेरी पेट पर रखे हाथ को सीधा मेरी चुची पर रख दिए। अब मैं सारी दुनिया भूल अपने रसीली होंठ के रस चुसवा रही थी। और अंकल भी बदहवास मेरी चुची मर्दन करते किस किए जा रहे थे और नीचे अपने लंड से हौले-2 धक्का दे रहे थे। गैस पर चढ़ी का तो पता नहीं जल के बची भी होगी या नहीं..
10 मिनट तक लगातार चुसाई के बाद भी हम दोनों अपनी जीभ से जीभ लड़ाते हुए किस किए जा रहे थे कि तभी "Please Open The Door" की आवाज सुनते ही अंकल से छिटकते हुए गेट की तरफ लपकी।
जब मैं गेट खोली तो सामने देखते ही चौंक पडी़ ... सामने पूजा खड़ी थी और उसके पीछे ऑटो ड्राइवर खड़ा मुस्कुरा रहा था... मैं एक बारगी तो सकपका गई... अगले ही पल मेरी नजर अंकल की तरफ पहुँच गई.. अंकल भी किचन से निकल आ गए और ड्राइवर पर नजर पड़ते ही बोले,"क्या हुआ पूजा?"
पूजा अंकल की तरफ हँसती हुई बोली,"कुछ नहीं अंकल, आज रास्ते में मेरी पर्स पता नहीं कहाँ गुम हो गई.. ये ऑटो वाले हैं, किराया लेने के लिए आए हैं.."
कहते हुए पूजा अंदर चली आई.. अंकल भी घूरते हुए ड्राइवर की तरफ देखते पूजा के पीछे चल दिए.. शायद अब वे पूजा को भी...
तभी मेरी नजर ड्राइवर पर पड़ी जो बेशर्मी से अपना लंड मसलने लगा... मेरी तो डर के मारे कांप सी गई.. मैं पलटती हुई तेजी से अपने रूम की तरफ भागी..
रूम में जाते ही मेरी नजर पूजा और अंकल पर पड़ी जो कि आते ही चिपक कर किस कर रहे थे..
मैं चौंकती हुई वापस मुड़ी कि पूजा किस रोकती हुई बोली,"भाभी, वो ड्राइवर को प्लीज किराया दे देना.. " और फिर वो दोनों अपने काम में जुट गए..
मैं मुस्काती हुई उनके बगल से होती हुई अपने पर्स लेने गई.. पैसे निकाल वापस आ रही थी कि अंकल किस करते हुए अपने हाथ बढ़ा मेरी चुची पकड़ लिए.
मैं अंकल की इस हरकत के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी.. मैं जोर से चीख पड़ी.. चीख इतनी तेज थी कि बाहर खड़े ड्राइवर स्पष्ट सुना होगा.. पूजा मेरी चीख सुन अंकल के हाथों पर एक चपत लगा दी.. अंकल बिना किस तोड़े हँसते हुए अपने हाथ हटा लिए..
मौं साड़ी ठीक करती हुई ड्राइवर के पास आई और पैसे बढ़ा दी..
वो मुस्कुराता हुआ पैसे लेने के लिए हाथ बढ़ा मेरी केहुनी को सहलाता नीचे मेरी हाथ तक आया और पैसे लेते हुए मेरी हाथ दबा दी ..
मैं इस्ससस करती हुई सिसक पड़ी.. तभी वो आगे बढ़ते हुए काफी निकट आते हुए बोला,"मैडम, आप तो खूब मजे लेती हैं.. एक बार हमका भी मजा दे के देखो ना़.. आप मुझे काफी अच्छी लगती हो.."
मैं पहले से ही काफी गर्म थी ही, अब उसकी बात हमें पिघलाए जा रही थी.. मैं वासना की आग में जलती कुछ बोल नहीं पा रही थी..फिर वो आगे बोला,"मैडम, अभी तो आप इन साहब को मजे दे दो, बाकी कुछ बचा तो अपने इस दिवाने का ख्याल रखना.."
और कहते हुए वापस नीचे की तरफ बढ़ गया...मैं अचानक ही धीरे से आवाज लगाती हुई उसे रूकने बोली.. वो फौरन वापस मेरे पास आ खड़ा हो गया..
"तुम ना वो जो मुझे देख गंदी हरकत करते रहते हो वो प्लीज आगे से मत करना.. अच्छी नहीं लगती हमें.. ठीक है अब तुम जाओ.."
मेरी बात सुनते ही वो मुस्कुराता हुआ हामी भर चल दिया.. उसके जाते ही मैं गेट बंद की .. तभी अंकल और पूजा भी रूम से निकलते हुए आए.. मेरे पास आते ही अंकल मूझे अपनी बाँहों में कसते हुए बोले," थैंक्स मेरी रानी, आज तो आपका आधे प्यार पा मैं गदगद हो गया.. मैं बहुत जल्द ही आपके पूरे प्यार को पाने आउंगा.."
"मतलब अभी आप जा रहे हैं.."मैं उनके सीने से चिपकते हुए बोली..
बगल में खड़ी पूजा मुस्कुरा रही थी..अब पूजा के सामने अब शर्म करने से कोई फायदे की बात तो थी नहीं जो शर्म करती...
"मन तो तनिक भी नहीं है आपसे हटने की पर क्या करूँ इन 1 घंटे भी सैकड़ों फोन आ चुके हैं..वो तो शुक्र है कि फोन साइलेंट थी वर्ना ....."
अंकल कहते हुए अपना लंड मेरी चुत पर रगड़ते हुए मेरी नंगी पीठ पर पर हाथ चलाने लगे.. तभी बीच में पूजा बोल पड़ी," अंकल, मेरी समझ में नहीं आ रही है कि भाभी आपको आधे प्यार कैसे दे दी.."
पूजा की बात सुनते ही अंकल झुकते हुए मेरी उभारों को चूमते हुए बोले," यहाँ से पूजा.."
अंकल के चूमते ही मैं सिसक पड़ी..और शर्म से नजरें छुपाती हुई मुस्कुराने लगी...
"वाह अंकल, भाभी को तो अभी भी शर्म आ रही है.. अच्छा बाकी के प्यार कब लेने आओगे?"पूजा मेरे कंधों पर हाथ रखती हुई पूछी..
"बहुत जल्द आउंगा साहिबा..अब तो रूक पाना मेरे बस की बात नहीं है..अगर विश्वास नहीं हो तो सीता से पुछ लो"अंकल अपने लंड की हालत बयान करते हुए बोले जो कि मेरी चूत में घुसी जा रही थी..
पूजा अंकल की बात सुन हँसती हुई बोली,"ओहो अंकल, मगर थोड़ा आराम से,, कहीं भाभी की साड़ी मत फाड़ देना.."
मेरी हालत पूजा की बात से और खराब होने लगी..
"वो सब छोड़ो अंकल, अब आप जल्दी जाओ वर्ना आपको जाने भी नहीं दूँगी.."मैं अंकल को थोड़ी ढ़ीली करते हुए बोली..
"हाँ हाँ अंकल, अब आप जाओ नहीं तो मेरी गरम भाभी आपका रेप कर देगी.." पूजा अंकल को हमसे अलग करती हुई हँसती हुई बोली.. मैं और अंकल भी साथ में हँस पड़े..
"जैसी आज्ञा मेरी रानी, रात में फोन करूँगा."अंकल गेट खोलते हुए बोले..
पूजा हाँ में सिर हिला दी..फिर अंकल को छोड़ने बाहर तक चली गई.. फिर वापस आते ही जल्दी से गेट लॉक की और अपनी चूत की गरमी निकालने के लिए पूजा को दबोच पलंग पर कूद गई...
पूजा के साथ झड़ने के बाद कुछ देर खुली छत पर हवा खाई.. फिर वापस नीचे आ घर के काम में लग गई..
रोज की तरह अगली सुबह भी दूध लेने के बाद कुछ देर रूक उस ड्राइवर का इंतजार करने लगी...
इंतजार तो ऐसे कर रही थी कि मानों मैं उसकी प्रेमिका ही हूँ.. ज्यादा देर तक इंतजार करनी नहीं पड़ी..
आज वो काफी अच्छे से साफ-सुथरा लग रहा था.. हम दोनों की नजर टकराते ही याथ मुस्कुरा दिए और वापस अंदर आ गई..
आज वो कोई गंदी हरकत किए बिना ही चला गया, जिससे मैं काफी खुश लग रही थी..
घर के कामों से फ्री हो आराम करने लगी..आज पता नहीं अकेली काफी बोर क्यों हो रही थी...
फोन उठाई और नम्बर डायल करने लगी.. कुछ ही पल में भैया फोन रिसीव कर लिए..
भैया: "हैल्लो सीता, कैसी है तू और फोन क्यों नहीं करती.."
"मैं तो मस्त हूँ भैया, आप कैसे हैं?"
भैया: " मैं भी ठीक हूँ सीता, तुम तो वहां जाते ही हमें भूल गई.."
"नहीं भैया, भला अपने प्यारे भैया को कैसे भूल सकती हूँ.. अच्छा भैया भाभी कहां है.."
भैया: "वो तो घर पर है.. घर जाते ही बात करवा दूंगा.."
"ठीक है करवा देना, और आप कब आ रहे हैं हमें वो वाली दर्द देने......" मैं थोड़ी सकुचाती हुई बोली..
"ओहो मतलब मेरी रानी अभी अकेली है.. आउंगा जान, मौका मिलते ही तुम्हारी चूत मारने आ टपकूंगा" कहते हुए भैया हंस पड़े..
मैं भी भैया से चुदने की बात सुन शर्म से लाल हो गई..
"जल्दी आना भैया,, आपकी याद में काफी गीली हो जाती हूँ.." मैं अपनी हालत बयां करने की कोशिश की..
भैया: " जरूर रानी, और हाँ रानी जरा अपनी चूत को मजबूत बना कर रखना..अब तुझे प्यार से चोदने वाला नहीं हूँ.."
मेरी चूत ऐसी कामुक बातें सुन पानी छोड़नी शुरू कर दी थी..मैं बोली,"कोई बात नहीं भैया, जब एक बार ले ली तो डरने की क्या जरूरत अब.."
भैया: "अच्छा, वो तो तब पूछूंगा ना जब तू चिल्ला के छोड़ने की भीख मांगेगी और मैं तुझे किसी रंडी की तरह पेलता रहूँगा.."
भैया के मुँह से रंडी शब्द सुन मैं काफी रोमांचित हो उठी.. कैसे भैया मुझे बाजारू रंडी की तरह मसलेंगे..
"मैं इंतजार करूंगी भैया, मुझे सब मंजूर है.." मैं अपने भैया से एक रंडी की चुदने की हामी भर दी.
भैया: "आहहहह मेरी रंडी बहना, अब सब्र नहीं हो रहा.. अगली बार आएगी तो तुझे रंडी की तरह पूरे गांव वाले से चुदवाउंगा..."
भैया की बात से मेरी उंगली कब मेरी चूत में समा गई, रामजाने....मैं तेज तेज उंगली चलाती हुई बोली,"पहले आप तो पहले ठीक से कर लो भैया, फिर औरों की सोचना..हीहीहीही..
तभी भैया जोर से चीख पड़े...
"आहहहहहहह मेरी रंडी सीता.आ.आ.आ.आ.आ...."
भैया झड़ रहे थे... तभी मेरी चूत की भी नली खुल गई और आहहहहहहहह भैया कहते हुए मैं भी झड़ने लगी..
कुछ देर तक हम दोनों बिना कुछ बोले झड़ते रहे...फिर भैया बिना कुछ कहे फोन काट दिए..शायद वो फ्रेश होने चले गए थे...
मैं भी उठी और बाथरूम में फ्रेश होने घुस गई...फ्रेश हो रूम में आई और बेड पर लेट गई.. मेरी नजर घड़ी की तरफ गई जिसमें अभी 11:30 बज रहे थे... पूजा तो 2 बजे से पहले आती नहीं थी..
मन विचलित सी हो रही थी.. झड़ने के बावजूद प्यास कम नहीं हो रही थी... अकेली घर में काफी बोर फील कर रही थी..
अगले ही पल उठी और ब्लैक कलर की साड़ी निकाली.. साथ में मैच करती हुई एक लो कट ब्लाउज भी निकाली..
फिर साड़ी पहन हल्की मेकअप की... बालों को खुली छोड़ दी जो कि पीठ पर लहरा रही थी...और गेट लॉक कर बाहर निकल गई...
मेन रोड तक पैदल ही पहुंच गई..इतनी देर में ना जाने कितने मर्द मुझे देख अपना लंड मसल चुके थे... मेन रोड पर तो काफी गाड़ी दौड़ रही थी पर मैं तो किसी और की इंतजार कर रही थी..
सड़क पर सभी की नजर मेरी आधी नंगी चुची पर टिक के थम जाती जो कि ब्लाउज से साफ दिख रही थी...
पल्लू तो जान बूझकर सिर्फ एक चुची पर रखी थी... तभी धड़धड़ाती हुई एक ऑटो मेरे आगे आ रूक गई...जिसमें पहले ही काफी लोग बैठे थे सिवाए एक सीट के...
मैं एक नजर ड्राइवर पर डाली.. उसे देखते ही मैं चुपचाप बैठ गई... और अगले ही पल झटके लेती हुई ऑटो चल पड़ी..
ज्यों ज्यों ऑटो आगे बढ़ रही थी, सभी पैसेंजर अपनी मंजिल के पास उतर रहे थे.. सिवाए हमके, क्योंकि मैं कहां जा रही थी खुद नहीं जानती थी....
और वो ड्राइवर मिरर में मुझे देख मुस्कुराता हुआ बढ़ा जा रहा था...कोई 10 मिनट बाद सभी यात्री उतर चुके थे... बस मैं ही बची थी ऑटो में...;
जब से मैं बैठी थी तब से गौर कर रही थी कि अब वो सिर्फ लोगों को उतार रहा है,, कोई चढ़ने के लिए इशारे भी करता तो वो बिना देखे चला जा रहा था...
इस हरकत पर मैं मुस्कुराते हुए पूछी," इन लोगों को बिठा क्यों नहीं रहे हो..?"
वो मिरर में झाँकते हुए बोला,"मैडम, कमा तो मैं बाद में भी लूँगा पर आप से बातें करने का मौका थोड़े ही हरदम मिलेगा."
उसकी बातें सुन मैं मुस्कुराती हुई बोली," अच्छा, मैं बातें करने के लिए थोड़े ही बैठी हूँ...मैं तो कोमल दीदी की पॉर्लर पर जाने के लिए बैठी हूँ..."
पर सच तो यही थी कि मैं ईसी से बातें करने आई थी.. कोमल दीदी तो एक बहाना है...
"क्यााा? पॉर्लर जाएगी आप? अरे अभी भी तो काफी सुंदर लग रही हैं फिर पॉर्लर जा के करेगी क्या?"ड्राइवर चौंकते हुए बोला.
"नहीं मेरे बाल कुछ गड़बड़ सी लग रही है,उसी को ठीक करवाउंगी.."मैं उसकी बात का जवाब देती हुई बोली.. पर सच में मेरे बाल ठीक ही थी..
"पता नहीं मैडम, इतने अच्छे बाल में आपको कहां गड़बड़ लग रही है.." उसने पीछे पलट एक नजर डाली और फिर आगे देखने लगा...
उसकी बात सुन मेरी हल्की हंसी आ गई, फिर मैं बिना कुछ कहे दूसरी तरफ देखने लगी...
कुछ ही देर में मैं पॉर्लर के पास पहुँच गई थी..मैं ऑटो से उतर पैसे दी और पॉर्लर की तरफ बढ़ गई....
[...कहानी जारी है]
हम दोनों की हँसी रुकते नहीं रुक रही थी। वहीं बैठ किसी तरह हँसी रोकने की कोशिश कर रही थी। तभी पूजा की नजर उस तरफ गई जहाँ वही जोड़ा खुली छत पर सेक्स कर रही थी। पूजा देखते ही बोली,"क्या यार, रोज-2 ऐसे करते मन नहीं उबता क्या? कभी तो जगह,पोज बदला करो। इससे अच्छी मस्ती तो हम लोग कर रहे हैं।"पूजा उसकी तरफ देख कहते हुए हँस पड़ी।
कुछ देर यूँ ही छत पर टहलने के बाद हम दोनों नीचे आ गए। फिर रात का खाना खा सो गए।
अगले दिन सुबह दूध ले वापस अपने फ्लैट की तरफ आ रही थी। तभी रोज की तरह वही ऑटो वाला गाना बजाते हुए आ रहा था। पता नहीं मन में क्या सुझी? पहली सीढ़ी पर रखी पैर वापस खींचते हुए बाहर उस ऑटो की तरफ देखने लगी। रोज की तरह ऑटो रुकी और ड्राइवर अपने लंड मसलते हुए जीभ फेरने लगा। बिना किसी शर्म के मैं उसकी आँखों में देखे जा रही थी। तभी उस ड्राइवर ने फ्लाइंग किस मेरी तरफ उछाल दिया। ना चाहते हुए भी मैं मुस्कुरा पड़ी और वापस भागती हुई अपने फ्लैट में चली आई। मेरी साँसें तेज चलने लगी थी.. मैं किचन में खड़ी हँसते हुए साँसें पर काबू पाने की कोशिश करने लगी। मैं तो उसकी हिम्मत की कायल हो गई। कैसे वो बिना डर के पहले लंड मसल रहा था, फिर थोड़ी रिस्पांस मिलते ही फ्लाइंग किस दे बैठा। इसी तरह उसके बारे में सोचते किचन के काम में लग गई। रोज की तरह श्याम ड्यूटी,पूजा कॉलेज और मैं खाना खा के आराम करने चली गई।
दोपहर में करीब 1 बजे डोरबेल की आवाजें से मेरी नींद खुली। मैं तेजी से उठी और गेट खोली। सामने अंकल को देखते ही मैं चौंक पड़ी। अगले ही पल मैं संभलती हुई प्रणाम की। अंकल मेरी दोनों बाँहेँ पकड़ते हुए बोले,"अरे बेटा, दिल में रहने वाले लोग पैर नहीं छूते, बल्कि गले मिलते हैं।" कहते हुए अंकल अपने मजबूत बाँहों में मुझे समेट लिए। मैं भी सिमटती हुई अंकल के बाँहों में सिमट गई। सच अंकल के बाँहों में काफी सुकून मिल रही थी। कुछ देर किसी प्रेमी जोड़े की तरह लिपटी रहने के बाद मैं ऊपर उनकी आँखों में देखते हुए बोली,"यहीं पर से वापस जाएँगे क्या? अंदर चलिए ना....!"
मेरी बात सुन अंकल मेरी होंठों को हल्के से चूमते हुए बोले,"ओके बेटा,जैसी आपकी मर्जी।"
फिर हम दोनों अलग हुए और गेट बंद करते हुए अपने रूम की तरफ चल दी। अंकल भी मेरे पीछे आते हुए रूम में आए और सोफे पर बैठ गए। मैं फ्रिज से पानी की बोतल निकाल उनकी तरफ बढ़ा दी। बोतल पकड़ते हुए अंकल बोले,"सीता, खाना नहीं खाती क्या? कितनी दुबली हो गई। गाँव में थी तब अच्छी लगती थी। और पूजा कॉलेज से नहीं आई क्या?"
अंकल की बात सुन मैं हँसती हुई बोली,"अंकल मैं तो वैसी ही हूँ जैसी गाँव में थी। पूजा भी कुछ देर में आ जाएगी।" कहते हुए मैं किचन में आई और चाय बनाने लगी। जैसी की मुझे उम्मीद थी, अंकल अगले ही पल किचन में मौजूद थे। मैं मन ही मन मुस्कुरा दी और बिना मुड़े चाय बनाने में मग्न रही। पर शरीर में तो अंकल के अगले कदम को सोच झुरझुर्री आ गई थी। तभी अंकल पीछे से अपनी लंड मेरी गांड़ के ऊपर रखते हुए चिपक गए और मेरी बाल एक तरफ करते हुए कान की बाली अपने मुँह में भर लिए। मैं तो जोर से सिहर गई। ओफ्फ करती हुई कसमसाने लगी। उनकी गर्म साँसें सीधे मेरी सुर्ख गालोँ पर पड़ रही थी जिससे मैं कांप सी गई। अगले ही पल अंकल अपने हाथ मेरी साड़ी के नीचे होते हुए नंगी पेट पर रख दिए। मेरी तो हालत जल बिन मछली की तरह हो गई। मैं सिसकती हुई अंकल के सीने पर अपने सर टिका दी। मेरी आँखें मदहोशी में बंद हो चुकी थी और नीचे मेरी चूत रस बहाने लगी थी। तभी अंकल मेरी कान की बाली को मुँह से आजाद कर दिए। मेरी साँसें अब तेज चलने लगी कि पता नहीं अब अंकल क्या करेंगे। तभी अंकल अपना दूसरा हाथ मेरी चूत के ठीक बगल में रख दिए। मैं मस्ती के सागर में डूबती हुई अपने दोनों पैर सिकुड़ कर पीछे को हुई। पर पीछे से अंकल अपने लंड को तैनात किए हुए थे जो किसी काँटे की भाँति मेरी मांसल चूतड़ में धँस गई। अंकल की एक छोटी सी हँसी सुनाई दी जिससे मैं शर्मा गई। तभी अंकल चूत के पास रखे अपने हाथ धीरे-2 ऊपर की तरफ सरकाने लगे। हाथ थी तो साड़ी के ऊपर पर वो अपने जलवे मेरी रूहोँ को तक दिखा रही थी। अंकल बिना रुके अपने कड़क हाथ पेट के ऊपर से गुजारते जा रहे थे। जैसे ही हाथ मेरी चुची के निचले हिस्से को छुई, मैं तड़प के अपने हाथों से उन्हें रोकने की कोशिश की। पर मेरी हाथ क्या पूरे शरीर में थोड़ी भी ताकत नहीं रह गई थी कि अंकल को अब रोक सकूँ। अंकल मेरे हाथ सहित अपने हाथ मेरी चुची पर ऊपर की तरफ ले जाने लगे। मेरी चुची के ठीक बीचोँबीच आते ही उन्होंने अपने हाथ नचा दिए। मैं काम वासना में इतनी जल गई थी कि इसे बर्दाश्त नहीं कर पाई और चीखते हुए झड़ने लगी। मेरी पूरी शरीर कांपने लगी थी, जिसे अंकल तुरंत समझ गए और पेट पर रखे हाथ से मुझे कस के पकड़ लिए ताकि मैं उनके साथ खड़ी रह सकूँ। तब तक अंकल के हाथ मेरी चुची को रगड़ती हुई मेरी गाल तक पहुँच गई। फिर मेरी गालोँ को हल्के से घुमाते हुए अपने तरफ करने लगे। मेरी साँसे उखड़ने लगी। मैं चाह कर भी कुछ करने लायक नहीं बची थी। अगले ही क्षण मेरी कांपती होंठ पर उनके होंठ चिपक गए। उनके होंठ लगते ही मैं जन्नत में पहुँच गई। मैं एक बार झड़ने के बावजूद पुनः गर्म हो गई और आपा खोते हुए किस करने लगी। मेरी तरफ से अनुमति मिलते ही अंकल तेजी से किस करने लगे। अगले ही पल मेरी पेट पर रखे हाथ को सीधा मेरी चुची पर रख दिए। अब मैं सारी दुनिया भूल अपने रसीली होंठ के रस चुसवा रही थी। और अंकल भी बदहवास मेरी चुची मर्दन करते किस किए जा रहे थे और नीचे अपने लंड से हौले-2 धक्का दे रहे थे। गैस पर चढ़ी का तो पता नहीं जल के बची भी होगी या नहीं..
10 मिनट तक लगातार चुसाई के बाद भी हम दोनों अपनी जीभ से जीभ लड़ाते हुए किस किए जा रहे थे कि तभी "Please Open The Door" की आवाज सुनते ही अंकल से छिटकते हुए गेट की तरफ लपकी।
जब मैं गेट खोली तो सामने देखते ही चौंक पडी़ ... सामने पूजा खड़ी थी और उसके पीछे ऑटो ड्राइवर खड़ा मुस्कुरा रहा था... मैं एक बारगी तो सकपका गई... अगले ही पल मेरी नजर अंकल की तरफ पहुँच गई.. अंकल भी किचन से निकल आ गए और ड्राइवर पर नजर पड़ते ही बोले,"क्या हुआ पूजा?"
पूजा अंकल की तरफ हँसती हुई बोली,"कुछ नहीं अंकल, आज रास्ते में मेरी पर्स पता नहीं कहाँ गुम हो गई.. ये ऑटो वाले हैं, किराया लेने के लिए आए हैं.."
कहते हुए पूजा अंदर चली आई.. अंकल भी घूरते हुए ड्राइवर की तरफ देखते पूजा के पीछे चल दिए.. शायद अब वे पूजा को भी...
तभी मेरी नजर ड्राइवर पर पड़ी जो बेशर्मी से अपना लंड मसलने लगा... मेरी तो डर के मारे कांप सी गई.. मैं पलटती हुई तेजी से अपने रूम की तरफ भागी..
रूम में जाते ही मेरी नजर पूजा और अंकल पर पड़ी जो कि आते ही चिपक कर किस कर रहे थे..
मैं चौंकती हुई वापस मुड़ी कि पूजा किस रोकती हुई बोली,"भाभी, वो ड्राइवर को प्लीज किराया दे देना.. " और फिर वो दोनों अपने काम में जुट गए..
मैं मुस्काती हुई उनके बगल से होती हुई अपने पर्स लेने गई.. पैसे निकाल वापस आ रही थी कि अंकल किस करते हुए अपने हाथ बढ़ा मेरी चुची पकड़ लिए.
मैं अंकल की इस हरकत के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी.. मैं जोर से चीख पड़ी.. चीख इतनी तेज थी कि बाहर खड़े ड्राइवर स्पष्ट सुना होगा.. पूजा मेरी चीख सुन अंकल के हाथों पर एक चपत लगा दी.. अंकल बिना किस तोड़े हँसते हुए अपने हाथ हटा लिए..
मौं साड़ी ठीक करती हुई ड्राइवर के पास आई और पैसे बढ़ा दी..
वो मुस्कुराता हुआ पैसे लेने के लिए हाथ बढ़ा मेरी केहुनी को सहलाता नीचे मेरी हाथ तक आया और पैसे लेते हुए मेरी हाथ दबा दी ..
मैं इस्ससस करती हुई सिसक पड़ी.. तभी वो आगे बढ़ते हुए काफी निकट आते हुए बोला,"मैडम, आप तो खूब मजे लेती हैं.. एक बार हमका भी मजा दे के देखो ना़.. आप मुझे काफी अच्छी लगती हो.."
मैं पहले से ही काफी गर्म थी ही, अब उसकी बात हमें पिघलाए जा रही थी.. मैं वासना की आग में जलती कुछ बोल नहीं पा रही थी..फिर वो आगे बोला,"मैडम, अभी तो आप इन साहब को मजे दे दो, बाकी कुछ बचा तो अपने इस दिवाने का ख्याल रखना.."
और कहते हुए वापस नीचे की तरफ बढ़ गया...मैं अचानक ही धीरे से आवाज लगाती हुई उसे रूकने बोली.. वो फौरन वापस मेरे पास आ खड़ा हो गया..
"तुम ना वो जो मुझे देख गंदी हरकत करते रहते हो वो प्लीज आगे से मत करना.. अच्छी नहीं लगती हमें.. ठीक है अब तुम जाओ.."
मेरी बात सुनते ही वो मुस्कुराता हुआ हामी भर चल दिया.. उसके जाते ही मैं गेट बंद की .. तभी अंकल और पूजा भी रूम से निकलते हुए आए.. मेरे पास आते ही अंकल मूझे अपनी बाँहों में कसते हुए बोले," थैंक्स मेरी रानी, आज तो आपका आधे प्यार पा मैं गदगद हो गया.. मैं बहुत जल्द ही आपके पूरे प्यार को पाने आउंगा.."
"मतलब अभी आप जा रहे हैं.."मैं उनके सीने से चिपकते हुए बोली..
बगल में खड़ी पूजा मुस्कुरा रही थी..अब पूजा के सामने अब शर्म करने से कोई फायदे की बात तो थी नहीं जो शर्म करती...
"मन तो तनिक भी नहीं है आपसे हटने की पर क्या करूँ इन 1 घंटे भी सैकड़ों फोन आ चुके हैं..वो तो शुक्र है कि फोन साइलेंट थी वर्ना ....."
अंकल कहते हुए अपना लंड मेरी चुत पर रगड़ते हुए मेरी नंगी पीठ पर पर हाथ चलाने लगे.. तभी बीच में पूजा बोल पड़ी," अंकल, मेरी समझ में नहीं आ रही है कि भाभी आपको आधे प्यार कैसे दे दी.."
पूजा की बात सुनते ही अंकल झुकते हुए मेरी उभारों को चूमते हुए बोले," यहाँ से पूजा.."
अंकल के चूमते ही मैं सिसक पड़ी..और शर्म से नजरें छुपाती हुई मुस्कुराने लगी...
"वाह अंकल, भाभी को तो अभी भी शर्म आ रही है.. अच्छा बाकी के प्यार कब लेने आओगे?"पूजा मेरे कंधों पर हाथ रखती हुई पूछी..
"बहुत जल्द आउंगा साहिबा..अब तो रूक पाना मेरे बस की बात नहीं है..अगर विश्वास नहीं हो तो सीता से पुछ लो"अंकल अपने लंड की हालत बयान करते हुए बोले जो कि मेरी चूत में घुसी जा रही थी..
पूजा अंकल की बात सुन हँसती हुई बोली,"ओहो अंकल, मगर थोड़ा आराम से,, कहीं भाभी की साड़ी मत फाड़ देना.."
मेरी हालत पूजा की बात से और खराब होने लगी..
"वो सब छोड़ो अंकल, अब आप जल्दी जाओ वर्ना आपको जाने भी नहीं दूँगी.."मैं अंकल को थोड़ी ढ़ीली करते हुए बोली..
"हाँ हाँ अंकल, अब आप जाओ नहीं तो मेरी गरम भाभी आपका रेप कर देगी.." पूजा अंकल को हमसे अलग करती हुई हँसती हुई बोली.. मैं और अंकल भी साथ में हँस पड़े..
"जैसी आज्ञा मेरी रानी, रात में फोन करूँगा."अंकल गेट खोलते हुए बोले..
पूजा हाँ में सिर हिला दी..फिर अंकल को छोड़ने बाहर तक चली गई.. फिर वापस आते ही जल्दी से गेट लॉक की और अपनी चूत की गरमी निकालने के लिए पूजा को दबोच पलंग पर कूद गई...
पूजा के साथ झड़ने के बाद कुछ देर खुली छत पर हवा खाई.. फिर वापस नीचे आ घर के काम में लग गई..
रोज की तरह अगली सुबह भी दूध लेने के बाद कुछ देर रूक उस ड्राइवर का इंतजार करने लगी...
इंतजार तो ऐसे कर रही थी कि मानों मैं उसकी प्रेमिका ही हूँ.. ज्यादा देर तक इंतजार करनी नहीं पड़ी..
आज वो काफी अच्छे से साफ-सुथरा लग रहा था.. हम दोनों की नजर टकराते ही याथ मुस्कुरा दिए और वापस अंदर आ गई..
आज वो कोई गंदी हरकत किए बिना ही चला गया, जिससे मैं काफी खुश लग रही थी..
घर के कामों से फ्री हो आराम करने लगी..आज पता नहीं अकेली काफी बोर क्यों हो रही थी...
फोन उठाई और नम्बर डायल करने लगी.. कुछ ही पल में भैया फोन रिसीव कर लिए..
भैया: "हैल्लो सीता, कैसी है तू और फोन क्यों नहीं करती.."
"मैं तो मस्त हूँ भैया, आप कैसे हैं?"
भैया: " मैं भी ठीक हूँ सीता, तुम तो वहां जाते ही हमें भूल गई.."
"नहीं भैया, भला अपने प्यारे भैया को कैसे भूल सकती हूँ.. अच्छा भैया भाभी कहां है.."
भैया: "वो तो घर पर है.. घर जाते ही बात करवा दूंगा.."
"ठीक है करवा देना, और आप कब आ रहे हैं हमें वो वाली दर्द देने......" मैं थोड़ी सकुचाती हुई बोली..
"ओहो मतलब मेरी रानी अभी अकेली है.. आउंगा जान, मौका मिलते ही तुम्हारी चूत मारने आ टपकूंगा" कहते हुए भैया हंस पड़े..
मैं भी भैया से चुदने की बात सुन शर्म से लाल हो गई..
"जल्दी आना भैया,, आपकी याद में काफी गीली हो जाती हूँ.." मैं अपनी हालत बयां करने की कोशिश की..
भैया: " जरूर रानी, और हाँ रानी जरा अपनी चूत को मजबूत बना कर रखना..अब तुझे प्यार से चोदने वाला नहीं हूँ.."
मेरी चूत ऐसी कामुक बातें सुन पानी छोड़नी शुरू कर दी थी..मैं बोली,"कोई बात नहीं भैया, जब एक बार ले ली तो डरने की क्या जरूरत अब.."
भैया: "अच्छा, वो तो तब पूछूंगा ना जब तू चिल्ला के छोड़ने की भीख मांगेगी और मैं तुझे किसी रंडी की तरह पेलता रहूँगा.."
भैया के मुँह से रंडी शब्द सुन मैं काफी रोमांचित हो उठी.. कैसे भैया मुझे बाजारू रंडी की तरह मसलेंगे..
"मैं इंतजार करूंगी भैया, मुझे सब मंजूर है.." मैं अपने भैया से एक रंडी की चुदने की हामी भर दी.
भैया: "आहहहह मेरी रंडी बहना, अब सब्र नहीं हो रहा.. अगली बार आएगी तो तुझे रंडी की तरह पूरे गांव वाले से चुदवाउंगा..."
भैया की बात से मेरी उंगली कब मेरी चूत में समा गई, रामजाने....मैं तेज तेज उंगली चलाती हुई बोली,"पहले आप तो पहले ठीक से कर लो भैया, फिर औरों की सोचना..हीहीहीही..
तभी भैया जोर से चीख पड़े...
"आहहहहहहह मेरी रंडी सीता.आ.आ.आ.आ.आ...."
भैया झड़ रहे थे... तभी मेरी चूत की भी नली खुल गई और आहहहहहहहह भैया कहते हुए मैं भी झड़ने लगी..
कुछ देर तक हम दोनों बिना कुछ बोले झड़ते रहे...फिर भैया बिना कुछ कहे फोन काट दिए..शायद वो फ्रेश होने चले गए थे...
मैं भी उठी और बाथरूम में फ्रेश होने घुस गई...फ्रेश हो रूम में आई और बेड पर लेट गई.. मेरी नजर घड़ी की तरफ गई जिसमें अभी 11:30 बज रहे थे... पूजा तो 2 बजे से पहले आती नहीं थी..
मन विचलित सी हो रही थी.. झड़ने के बावजूद प्यास कम नहीं हो रही थी... अकेली घर में काफी बोर फील कर रही थी..
अगले ही पल उठी और ब्लैक कलर की साड़ी निकाली.. साथ में मैच करती हुई एक लो कट ब्लाउज भी निकाली..
फिर साड़ी पहन हल्की मेकअप की... बालों को खुली छोड़ दी जो कि पीठ पर लहरा रही थी...और गेट लॉक कर बाहर निकल गई...
मेन रोड तक पैदल ही पहुंच गई..इतनी देर में ना जाने कितने मर्द मुझे देख अपना लंड मसल चुके थे... मेन रोड पर तो काफी गाड़ी दौड़ रही थी पर मैं तो किसी और की इंतजार कर रही थी..
सड़क पर सभी की नजर मेरी आधी नंगी चुची पर टिक के थम जाती जो कि ब्लाउज से साफ दिख रही थी...
पल्लू तो जान बूझकर सिर्फ एक चुची पर रखी थी... तभी धड़धड़ाती हुई एक ऑटो मेरे आगे आ रूक गई...जिसमें पहले ही काफी लोग बैठे थे सिवाए एक सीट के...
मैं एक नजर ड्राइवर पर डाली.. उसे देखते ही मैं चुपचाप बैठ गई... और अगले ही पल झटके लेती हुई ऑटो चल पड़ी..
ज्यों ज्यों ऑटो आगे बढ़ रही थी, सभी पैसेंजर अपनी मंजिल के पास उतर रहे थे.. सिवाए हमके, क्योंकि मैं कहां जा रही थी खुद नहीं जानती थी....
और वो ड्राइवर मिरर में मुझे देख मुस्कुराता हुआ बढ़ा जा रहा था...कोई 10 मिनट बाद सभी यात्री उतर चुके थे... बस मैं ही बची थी ऑटो में...;
जब से मैं बैठी थी तब से गौर कर रही थी कि अब वो सिर्फ लोगों को उतार रहा है,, कोई चढ़ने के लिए इशारे भी करता तो वो बिना देखे चला जा रहा था...
इस हरकत पर मैं मुस्कुराते हुए पूछी," इन लोगों को बिठा क्यों नहीं रहे हो..?"
वो मिरर में झाँकते हुए बोला,"मैडम, कमा तो मैं बाद में भी लूँगा पर आप से बातें करने का मौका थोड़े ही हरदम मिलेगा."
उसकी बातें सुन मैं मुस्कुराती हुई बोली," अच्छा, मैं बातें करने के लिए थोड़े ही बैठी हूँ...मैं तो कोमल दीदी की पॉर्लर पर जाने के लिए बैठी हूँ..."
पर सच तो यही थी कि मैं ईसी से बातें करने आई थी.. कोमल दीदी तो एक बहाना है...
"क्यााा? पॉर्लर जाएगी आप? अरे अभी भी तो काफी सुंदर लग रही हैं फिर पॉर्लर जा के करेगी क्या?"ड्राइवर चौंकते हुए बोला.
"नहीं मेरे बाल कुछ गड़बड़ सी लग रही है,उसी को ठीक करवाउंगी.."मैं उसकी बात का जवाब देती हुई बोली.. पर सच में मेरे बाल ठीक ही थी..
"पता नहीं मैडम, इतने अच्छे बाल में आपको कहां गड़बड़ लग रही है.." उसने पीछे पलट एक नजर डाली और फिर आगे देखने लगा...
उसकी बात सुन मेरी हल्की हंसी आ गई, फिर मैं बिना कुछ कहे दूसरी तरफ देखने लगी...
कुछ ही देर में मैं पॉर्लर के पास पहुँच गई थी..मैं ऑटो से उतर पैसे दी और पॉर्लर की तरफ बढ़ गई....
[...कहानी जारी है]