अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
Re: अनाड़ी पति और ससुर रामलाल
अजय ने कहा, "सुन्नो, देख मैं तुझे समझा तो दूंगा इन शब्दों का मतलब, लेकिन जब तब इनपर प्रेक्टिकल काके नहीं समझाऊंगा तेरी समझ में कुछ नहीं आने वाला। बोल ... समझेगी?" "हाँ भैया, मुझे कैसे भी समझाओ, मुझे मंजूर है।" "उस दिन जब मैंने तेरी चूचियों पर हाथ फिराया था तो तू नाराज होकर अन्दर क्यों भागी थी?" "भैया, उस समय मुझे डर लग रहा था। हम लोग बाहर खड़े थे, कोई देख लेता तो ..? मैं अन्दर आई ही इसीलिए थी कि अगर आप अन्दर आकर मेरी चूचियां सहलाओगे तो किसी को भी पता नहीं चलेगा और मुझे भी अच्छा लगेगा।" अजय बोला, "इसका मतलब तो ये हुआ कि तू उस दिन भी तैयार थी अपनी चूचियों को मसलवानेके लिए? अरे यार, मैं ही बुद्धू था, जो उस दिन बुरी तरह डर कर भाग निकला। अच्छा, आ बैठ मेरे पास और एक बात बता ...क्या सच में तू मेरे साथ मज़े लूटना चाहती है या मुझे उल्लू बनाने के मूड में है। अगर वाकई तू जवानी के मज़े लेना चाहती है तो चल मेरे बैड पर चलते हैं।" सुनीता और अजय दोनों अब बैड पर आ बैठे। "अजय ने पूछा, "लाइट यों ही जलने दूं या बंद कर दूं?" सुनीता बोली, "भैया, जैसी आपकी मर्ज़ी, वैसे अँधेरे में मेरी समझ में क्या आएगा। मुझे अभी आपसे बहुत कुछ पूछना बाकी है।" "जैसा तू ठीक समझे, देख शरमाना बिलकुल नहीं ...बरना कुछ मज़ा नहीं आएगा। एक बात और ..." "क्या भैया?" "कल को किसी से कहेगी तो नहीं कि भैया ने मेरे साथ ये सब किया।" "नहीं भैया, मैं कसम खाकर कहती हूँ किसी को कुछ नहीं बताऊंगी" " तो चल, पहले मैं तेरे संग वो करता हूँ जहाँ से पति-पत्नी के मिलन की शुरुआत होती है। तू मेरे बिलकुल करीब आकर मुझसे चिपट जा ..." सुनीता आकर अजय से चिपट गई और उसके गले में हाथ डालकर बोली, "बताओ भैया, अब मुझे क्या करना है।" अजय बोला, "अब तुझे कुछ भी नहीं करना है, बस मज़े लेती जाना। जहाँ तुझे परेशानी हो मुझसे कहना, ठीक है ?" "ठीक है भैया ..." अजय ने सुनीता के होटों पर अपने होट रख दिए और उन्हें चूंसने लगा। सुनीता ने भी उसका पूरा साथ दिया। अजय के हाथ सुनीता की ब्रा के हुक खोल रहे थे, सुनीता ने जरा भी विरोध न किया। वह सुनीता की चूचियों को जोरों से दबाने लगा। उसने चूची की घुंडियों को मुंह में डालकर उन्हें भी चूसना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे अजय के हाथ सुनीता की नाभि के नीचे के भाग को टटोल रहे थे। अजय का एक हाथ सुनीता की सलवार के नाड़े से जा उलझा। वह उसे खोलने का प्रयास करने लगा और कुछ ही देर में अजय ने सुनीता की सलवार उतारकर पलंग के एक ओर रख दी। सुनीता कौतूहलवश यह सब चुपचाप देखे जा रही थी।
उसकी दिल की धड़कने बढ़ने लगी थीं। साँसों की गति भी तेज हो गई थी किन्तु फिर भी वह अजय के अपनी नाभि से नीचे की ओर फिसलते हुए हाथों को रोकने का प्रयास तक नहीं कर पा रही थी। अजय के हाथ धीरे-धीरे सुनीता की नंगी-चिकनी जाँघों पर फिसलने लगे। फिर उसने सुनीता की दोनों जाँघों के बीच में कुछ टटोलना आरम्भ कर दिया। इससे पहले अजय ने अभी तक किसी लड़की की चूत इतनी करीब से नहीं देखी थी और न किसी की चूत को सहलाया ही था। वह बोला, "सुन्नो, आज मैं तेरी प्यारी-प्यारी चूत को गौर से देखना चाहता हूँ।" सुनीता बोली, "भैया, मुझे भी अपना लंड दिखाओ न," "दिखा दूंगा, तुझे अपना लंड भी दिखाऊंगा, घवराती क्यों है सुन्नो मेरी जान! आज मैं तेरी हर वो इच्छा पूरी करूंगा जो तू कहेगी।" " तो पहले अपना लंड मेरे हाथों में दो, मैं देखना चाहती हूँ कि मेरी चूत में यह अपनी जगह बना भी पायेगा या फाड़कर रख देगा मेरी चूत को।" अजय ने झट-पट अपने सारे कपड़े उतार फैंके और एक दम नंगा होकर सुनीता की बगल में आ लेटा। सुनीता की ऊपर की कुर्ती भी उसने उतार कर पलंग के नीचे गिरा दी। अब सुनीता भी एक दम नंगी हो गई थी। दोनों एक दूसरे से बुरी तरह से चिपट गए। और एक दूसरे के गुप्तांगों से खेल रहे थे। अजय सुनीता की चूत में अपनी एक उंगली डालकर आगे-पीछे यानि अन्दर-बाहर कर रहा था जिससे सुनीता के मुंह से सिसकियाँ निकल रहीं थीं। अजय ने सुनीता को बताया कि इसी कार्य को फिंगरिंग कहते हैं। फिंगरिंग अर्थात चूत में उंगली डालकर उसे अन्दर-बाहर करना। इस क्रिया को हिन्दी में हस्त-मैथुन तथा अंग्रेजी में मास्टरबेशन कहते हैं। अजय बोला, "जब औरत काफी कामुक और बैश्यालु प्रकृति की हो उठती है तो वह किसी भी मर्द से या स्वयं ही अपनी योनि में पूरी मुट्टी डलवाकर सम्भोग से भी कहीं अधिक आनंद का लाभ उठाती है। सुन्नो, अब मैंने तीनो शब्दों का अर्थ बता दिया है। अब मैं तुझसे इसकी फीस बसूलूंगा।"
अजय एक तकिया उसके नितम्बों के नीचे लगाते हुए बोला, "अब मैं तेरी चूत में उंगली डालकर मैं अपनी उंगली को आगे-पीछे सरकाऊँगा यानि फिंगरिंग करूंगा" अजय ने सुनीता की चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर रगड़ना शुरू कर दिया। सुनीता के मुंह से सिसकियाँ फूटने लगीं। अजय ने पूछा, "बता सुन्नो, तुझे कैसा महसूस हो रहा है?" "अच्छा लग रहा है भैया, जरा जोर से करों न, आह: मज़ा आ रहा है। एक बात बताओ भैया, आपने मेरे चूतड़ों के नीचे यह तकिया क्यों लगा दिया?" "इसलिए कि चूतड़ों के नीचे तकिया लगाने से औरत की चूत पहले की अपेक्षा कुछ अधिक खुल जाती है और उसमे कितना ही मोटा लंड क्यों न डाल दो, वह सब-कुछ आसानी से झेल जाती है।" सुनीता बोली, "भैया, बुरा तो नहीं मानोगे, एक बात पूछूं आपसे।" "पूछ चल, " "कहीं आप मेरी चूत में अपना लंड डालने की तैयारी तो नहीं कर रहे?" "हो भी सकता है अगर मेरे लंड से बर्दाश्त नहीं हुआ तो तेरी चूत मैं इसे घुसेड़ भी सकता हूँ।" "भैया, पहले अपने लंड का साइज़ दिखाओ मुझे ... मैं भी तो देखूं कितना मोटा है आपका..मैं आपका लम्बा-मोटा लिंग झेल भी पाऊँगी या नहीं" "चल तुझे अपना लंड दिखाता हूँ ...तू भी क्या याद करेगी कि भैया ने अपना लंड दिखाया, सुन्नो, एक बात तुझे पहले बताये देता हूँ, अगर मेरा मन कहीं तेरी चूत लेने को हुआ तो देनी पड़ेगी। फिर तुझे बिना चोदे मैं छोड़ने का नहीं।" यह कहते हुए अजय ने अपने पेण्ट की जिप खोली और अपना लम्बा-मोटा लिंग निकाल कर सुनीता के हाथ में थमा दिया। सुनीता ने कहा, "भैया, इसे मैं सहलाऊँ?" "सहला दे ..." सुनीता ने सहलाते-सहलाते उसके लिंग को चूम लिया और उसे ओठों से सहलाने लगी। अजय ने ताब में आकर सुनीता की चूचियां जोरों से रगडनी शुरू कर दीं। सुनीता बोली, "भैया, अब खुद भी नंगे हो जाओ न, मुझे आपका लंड खुलकर देखने की जल्दी हो रही है।" अजय ने अपना पैंट और अंडरवियर दोनों ही उतार फैंके और सुनीता के ऊपर आ चढ़ा। सुनीता बोली, "क्यों न हम एक दूसरे का नंगा बदन गौर से देखें। मुझे तो तुम्हारा ये गोरा और मोटा लंड बहुत ही उत्तेजित कर रहा है।" अजय बोला, "मैंने भी तेरी चूत अभी गौर से कहाँ देखी है। चल फैला तो अपनी दोनों जांघें इधर-उधर।" सुनीता ने अपनी दोनों जांघें फैलाकर अपनी चूत के दर्शन कराये। अजय सचमुच सुनीता की चूत देखकर निहाल हो गया। वह सुनीता से बोला, "सुन्नो, मेरी जान, आज तो अपनी इस गोरी, चिकनी और चुस्त चूत को मेरे हवाले कर दे। तेरी कसम जो भी तू कहेगी जिन्दगी भर करूंगा।" "वादा करते हो भैया, जो कहूँगी करोगे?" "हाँ, चल वादा रहा ..." अपने ख़ास दोस्तों से चुदवाओगे मुझे? देखो तुमने वादा किया है मुझसे।" अच्छा चल, चुदवादूंगा तुझे, लेकिन ये बता कि तू इतनी चुदक्कड़ कबसे बन गई।" यह सब बाद में बताऊँगी, पहले अपना लंड मेरी सुलगती बुर में डालकर तेजी से कस-कस कर धक्के लगा दो।"
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अजय को भी अब बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था। उसने अपने लंड की सुपारी सुनीता की चूत के मुंह पर रखकर एक जोर का धक्का मारा। उसका समूंचा लंड सुनीता की चूत में जा समाया। आनंदानुभूति से किलकारियां भरने वह और जोरों से चिल्ला-चिल्लाकर अपने दोनों चूतड़ उछाल-उछाल कर अजय के मोटे लंड को अपनी चूत में गपकने की चेष्टा करने लगी। अजय को भी लगा कि उसका लंड किसी गर्म सुलगती भट्टी में जा समाया है। गर्म भट्टी में होने के बावजूद उसे आनंद की अनुभूति हो रही थी। वह जोरों के धक्के सुनीता की बुर में लगाए जा रहा था। इधर सुनीता का हाल तो काबिले-बयाँ था। वह तो इतनी गरमा गई थी की मुंह से अनेक गंदे-गंदे शब्दों का प्रयोग कर रही थी। जैसे - आह: फाड़ डालो मेरी चूत को ...भैया, आज मेरी चूत को चोद -चोदकर निहाल कर दो मुझे ... आज अपने लंड के सारे जौहर मेरी चूत के ऊपर ही दिखादो ...जरा जोरों से चोदो न, अगर तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया तो मैं अपनी सारी सहेलियों को तुमसे चुदवा डालूंगी ..." लगभग एक घंटे की काम-क्रीडा के बाद अजय ने सुनीता को पूरी तरह से छका दिया और खुद ने भी छक कर उसकी चूत का मज़ा लिया। आधी रात के बाद सुनीता की योनि फिर गरम होने लगी। उसने अजय का लंड पकड़ कर सहलाना शुरू कर दिया। काफी देर तक वह अजय का लंड पकडे उसे चूमती-चाटती रही। अंतत: अजय की आँखें खुल ही गईं। वह बोला, "सुन्नो, अब हम-लोग काफी थक गए हैं, अभी सो जाओ, कल की रात भी तो आएगी ही। बाकी अगर आज कोई कमी रह गई है तो कल पूरी कर लेंगे। अब हम-तुम एक दूसरे के इतने करीब आ गए हैं कि हमारा ये साथ छुटाए नहीं छूटेगा। जाओ आराम कर लो।" सुनीता अब एक ऐसी औरत बन चुकी थी कि उसे तृप्त करना कोई आसान काम नहीं रह गया था। उसकी तो ख्वाहिश इतनी बढ़ चुकी थी कि एक साथ अगर उसपर दस-बारह लोग भी उतर जाएँ तो भी वह थकने वाली न थी।
सुबह नाश्ते की टेबल पर अजय ने उससे पूंछा, "सुन्नो, रात मैंने एक बात नोटिस की कि तूने मेरा आठ इंच का लंड आसानी से झेल लिया और न तो तेरी चूत फटी और न ही उससे खून ही निकला।" "सच-सच बताऊँ ..तो सुनो। जब मैं दीदी के यहाँ गई तो उस समय तक मैं बिलकुल अछूती, अनछुई या ये कहिये बिलकुल कच्ची कली थी। दोपहर को दीदी ने मुझे एक ब्लू-फिल्म दिखाई जिसे देख कर मेरा दिल मेरे काबू से बाहर हो गया और मैं किसी मर्द का लंड अपनी चूत में डलवाने को तड़प उठी। मेरी तड़प देखकर दीदी बोली, "घवरा मत, आज तेरी इच्छा पूरी करवा दूँगी। मैंने चौक कर पूछा कि कौन है जो मेरी इच्छा पूरी कर सकता है तो दीदी ने बताया कि उसके ससुर (रामलाल) हैं। मैंने आश्चर्य से पूछा कि वह क्या कह रहीं हैं, तो ज्ञात हुआ कि वह स्वयं भी उन्हीं से अपनी आग ठंडी करवाती है। दीदी ने बताया कि जीजू तो किसी काम के हैं नहीं। वे तो एकदम नपुंशक हैं। दीदी ने बहुत कोशिश की पर जीजू का लंड खड़ा होने का नाम ही नहीं लेता। अंत में हार-थक कर दीदी को ससुर की बात ही माननी पड़ी और आज उनके पेट में जो बच्चा पल रहा है वो भी उनके ससुर का ही है। जिस रात में ब्लू-फिल्म देख कर बेकाबू हो रही थी उसी रात को दीदी ने मुझे भी उन्ही से चुदवाने की राय दी और मैं मान गई। लेकिन भैया, एक बात तो माननी पड़ेगी। मौसा जी का लंड है बड़े गजब का। पट्ठे ने एक साथ हम दोनों बहिनो की रात में तीन वार ली परन्तु मज़ाल क्या जो जरा भी कमजोर पड़ जाता हमारे आगे। सारी बात सुनकर अजय बोला, "सुन्नो, मुझे दीदी के ससुर पर क्रोध भी आ रहा है और उसे धन्यवाद देने का मन भी कर रहा है।" सुनीता ने पूछा, "ऐसा क्यों भैया?" अजय बोला, "गुस्सा इसलिए कि वह अपनी बेटी समान बहु और उसकी बहिन की लेने से नहीं चूका। और धन्यवाद इसलिए देता हूँ की अगर वह तुझे न चोदता तो तू मुझसे कैसे चुदवाती। अच्छा चल, दीदी के यहाँ चलने का प्रोग्राम बनाते हैं किसी दिन।" "मैंने पूछा, "भैया, अचानक आपको दीदी के यहाँ जाने की क्या सूझी?" अजय ने मुस्कुराकर कहा, "पगली, जब दीदी अपने ससुर से चुदवा सकती है तो मैं क्यों उसे नहीं चोद सकता?" अजय ने सुनीता को समझाया - देख सुनीता, हम-तुम तो जीवन भर एक-दूजे के रहेंगे। पर अगर दीदी की चूत मिल जाए तो क्या बुरी बात है। तू अपनी मर्ज़ी बता, अगर मैं कुछ गलत सोच रहा होऊं तो। और फिर मैंने तुझसे ये वादा भी तो किया है कि मैं अपने सारे दोस्तों से तुझे चुदवाने की खुली छूट दे दूंगा और तू अपनी सहेलियों की मुझे दिलाएगी। इस बात पर दोनों ही सहमत हो चुके थे।
सुनीता और अजय दोनों भाई-बहिन अपनी दीदी अनीता के यहाँ आगये थे। अनीता ने भाई बहिन की खूब खातिरदारी की। सुनीता ने पूछा, "दीदी, कहीं मौसा जी दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। अनीता ने मुस्कुराते हुए पूछा, "क्या बात है सुनीता, मौसा जी को देखे बिना चैन नहीं पड़ रहा? ठीक है, अभी दुकान तक ही गए हैं आते ही होंगे। " सुनीता बोली, "दीदी, जीजू कैसे हैं? उनमे कोई बदलाब आया है क्या?" अनीता जीजू के नाम पर झुझलाकर बोली, "अब उनमे कोई बदलाब नहीं आने वाला। एक दिन तो उन्होंने साफ़-साफ़ कह दिया कि अगर रहना है तो रह मेरे पास वर्ना किसे से भी अपने यौन-सम्बन्ध बना ले, मुझे कोई एतराज नहीं। अब तुझे मैं उनके वारे में क्या खाक बताऊँ?" अनीता ने पूछा - तू बता इतनी जल्दी कैसे वापस आगयी? क्या मौसा जी की याद खीच लाई। सुनीता ने सर हिलाकर हामी भरी और बोली, "दीदी, तुमने वह सीडी दिखाकर मेरे तन-बदन में जो आग लगाईं है न, वो अब बुझाये नहीं बुझ रही है। मन में आया कि चलकर मौसा जी से ही मज़े लिए जाएँ। वैसे दीदी बुरा न मानना, मैंने अजय भैया को भी अपनी दे डाली है। क्या करती, हम-दोनों खिड़की की ओट से बड़े भैया और मझली भाभी की ब्लू-फिल्म देख रहे थे कि अजय भैया ने मेरी चूचियां सहलानी शुरू कर दीं और मैं उनके बढ़ते हुए हाथो को कतई रोक न पाई।
हम लोग कमरे में आ गए और उन्होंने मेरी सलवार उतार कर मेरी चूत में उंगली डालकर अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया। मैंने तो फिर उनके आगे हथियार डाल दिए और अपने को उनके हाल पर छोड़ दिया। फिर क्या था, उन्होंने मेरी ब्रा खोली और खूब जमकर उन्होंने मेरी चूचियों को रगडा, चूंसा और सहलाया। मुझे विरोध न करते देख उनकी हिम्मत इतनी बढ़ गयी कि उन्होंने मेरी सलवार भी उतार फैंकी और खुद भी नंगे होकर मुझ पर चढ़ गए और फिर उन्होंने मेरी चूत पर अपना मोटा लंड टिकाकर मुझे जोरों से चोदना शुरू कर दिया। सारी रात उन्होंने मेरी ली। मेरा भी मन नहीं भर रहा था इसलिए मेरे कहने पर उन्होंने मेरी बुर चार-पांच वार चोदी। फिर मैं उन्हें पटाकर तुमसे मिलने का बहाना बना कर अजय भैया को यहाँ ले आई। सुनीता की जुबानी सारी सच्चाई सुनकर अनीता ने पूछा - कहीं अजय अब मेरी तो नहीं लेगा। देख सुनीता, तूने तो मेरे इतना मना करने के बावजूद भी उससे अपनी चुदवा ली, पर याद रखना मैं ऐसा हरगिज़ नहीं करवा सकती। चाहे वह बुरा माने या भला। बहराल मुझे किसी कीमत पर उसे अपनी नहीं देनी है। सुनीता बोली - दीदी, ये तुम्हारी अपनी मर्ज़ी है। पर एक बात तो है कि मैं मौसा जी से आज रात जरूर चुदवाउंगी।
अनीता ने पूंछा - अच्छा सुनीता एक बात बता, अजय का लिंग भी तेरे मौसा जी के लिंग के बराबर ही है? सुनीता बोली - दीदी, है तो करीबन उतना ही लम्बा और मोटा किन्तु सख्त बहुत है। सच मानना दीदी, तीन दिन तक तो मेरी बुर सूजी रही थी। पूरे एक घंटे तक ली थी भैया ने मेरी। आह: दीदी, सच पूंछो तो अजय भैया का लंड भी न, बड़ा ही मज़े देता है। मेरी बात मानकर अपनी चूत में एक वार उनका लंड ले जाकर तो देखो, अगर न अपने तन की सुध-बुध भूल जाओ तो कहना। देख अजय के लंड की इतनी तारीफें कर-करके मेरे मुंह में पानी मत भरवा। तू कितनी ही कोशिश कर मैं खूंटे पर रख कर फाड़ दूँगी अपनी परन्तु अजय को नहीं दूँगी। सुनीता बोली - जैसा तुम ठीक समझो दीदी, मैं तो रात में अपने बिस्तर से उठ कर मौसा जी के कमरे में चली जाउंगी। आज रात तुम्हारे कमरे में अजय भैया और तुम ही सोओगी सिर्फ।
सुनीता की बात पर अनीता अजय की वारे में बहुत देर तक सोचती रही। वह सोच रही थी की जब सुनीता उसके लंड की इतनी तारीफ़ कर रही है तो उसका स्वाद भी चख लिया जाए। जब मैं पिता समान ससुर से चुदवा सकती हूँ तो वह तो फिर भी मेरा भाई ही है। इसी उधेड़-बुन में कब रात हो गयी। उसे तो तब पता चला जब रामलाल दुकान से समान लेकर भी लौट आया और उसने ढेरों बातें सुनीता से भी कर डालीं। अनीता ने पास आकर रामलाल से कहा - जानू आज मेरा छोटा भाई आया है। उसके सामने अपनी पोल न खुल जाए इसलिए सुनीता मौका पाकर तुम्हारे कमरे में खुद ही आ जायेगी, ज्यादा द्वन्द मत काटना। काटना, खूब लेना मज़े लेकिन सुनीता के साथ। मुझे बिलकुल भी आवाज न देना। रामलाल एक समझदार ससुर की भांति बहू की बात मान गया। खाना खाकर सब लोग अपने-अपने कमरे में चले गए। अजय ने प पूछा - मौसा जी, जीजू कहाँ गए हैं? रामलाल ने बताया की आज उसे अनाज लेकर अनाज मंडी भेजा है। अजय की तो मन की बात हो गयी। उसके दिल में अन्दर ही अन्दर लड्डू फूटने लगे थे। अब वह आसानी से दीदी की चूत ले सकेगा।
क्रमशः....
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अनाड़ी पति और ससुर रामलाल--5
गतान्क से आगे............. ....
रात के करीब 11 बजे का बक्त होगा, सुनीता चुपचाप अनीता के पास से उठकर रामलाल के कमरे में जा घुसी। अनीता और अजय अपने-अपने बिस्तर पर लेटे नीद आने का इन्तजार कर रहे थे। अनीता के मन में धक्-धक् हो रही थी कि कहीं अजय उसके साथ कुछ करने लगे तो उसे कैसे रोकेगी वह। सुनीता की तो ले ही चुका है, अब उसका अगला निशाना कहीं वह न हो। इसी बीच अजय ने अनीता को आवाज दी - दीदी, क्या सो गयीं? अनीता ने कहा - नहीं तो, क्या बात है? अजय बोला, दीदी, तुम्हें भी नीद नहीं आ रही क्या? अनीता बोली - ऐसी बात नहीं, पर मेरे सिर में कुछ दर्द सा है, इसी लिए नीद नहीं आ रही है। अजय बोला - दीदी आपका सिर दबा दूं? मेरे हाथो में जादू है। हलके हाथ से दबाने पर ही सर दर्द गायव हो जाएगा। अनीता कुछ न बोली और अजय उसकी मौन स्वीकृति को भांप कर अनीता के सिरहाने जा बैठा और हलके-हलके उसका सर दबाने लगा। अजय के हाथ अनीता के सर पर इसप्रकार से फिर रहे थे कि उसे स्वयं भी अच्छा लगने लगा था। दीदी, कन्धों में भी दर्द हो रहा है न, ऐसा कहकर उसने अनीता की हाँ, ना का इंतजार न करते हुए उसके कन्धों पर भी धीरे-धीरे हाथ फिराने शुरू कर दिए थे। अनीता ने सोने का अभिनय करते हुए खर्राटे भरने शुरू कर दिए थे। अजय ने अवसर पाकर उसके कन्धों से नीचे की ओर अपने हाथ फिसलाने शुरू कर दिए और उसकी चूचियों को भी हलके से सहलाना आरम्भ कर दिया। अनीता तो जगी ही पड़ी थी किन्तु फिर भी वह अनजान बनी चुपचाप लेटी रही। उसने नीद में होने का अभिनय करते हुए अपने बदन को बिलकुल सीधा कर दिया।
अजय को उससे अनीता के सारे बदन को टटोलने में काफी सुबिधा हो गयी। वह अंपने हाथ धीरे-धीरे फिसलाता हुआ उसकी जाँघों तक ले आया। धीरे से उसने अनिता की साड़ी उठाकर उसके पेट पर रख दी और उसकी चिकनी मासल जाँघों पर हाथ फिराने लगा। अनीता के मुंह से एक हलकी सी सिसकारी फूटी जिसका अजय ने तुरंत लाभ उठाकर अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। अनीता ने मस्ती में आकर अपना एक हाथ अजय के लिंग को टटोल कर उसे पकड़ लिया और बोली - अजय तू मुझसे कितना छोटा है, तुझे चोदने को सिर्फ मैं ही मिली थी। अजय बोला - नहीं दीदी, आपसे पहले मैं सुनीता को भी चोद चुका हूँ चुदवाते वक्त सुनीता ने मुझे सब-कुछ बता दिया कि सबसे पहले उसने तुम्हारे ससुर से अपनी चूत फटवाई है। उसने यह भी बताया क़ि जीजू तो नामर्द हैं। इसी लिए दीदी भी अपने ससुर से अपनी आग शांत करवाती हैं। अब दीदी, एक बात बताओ, अगर तुम्हारा छोटा भाई भी बहती गंगा में हाथ धो लेगा तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा। ऐसा कहकर अजय ने अपनी उंगलिओं से अनीता की चूत सहलानी शुरू कर दी और दोनों छातियों को कस-कस कर दबाने और चूंसने लगा।
अनीता के बदन के सारे तार झनझना उठे। उसने कस कर अजय को अपनी बांहों में जकड़ लिया और बोली - अच्छा चल तू भी लेले मेरी, डाल दे अपना पूरा लंड मेरी चूत में। पर तुझे मेरी कसम, इस बात का ज़िक्र किसी से भूल कर भी न करना। अजय बोल - दीदी, क्या मैं पागल हूँ जो किसी से ऐसी बातें कहूँगा। लोग मुझे 'बहनचोद' कहकर नहीं पुकारेंगे। तो ठीक है, आ जा सारे कपडे उतार कर मेरे ऊपर। और फिर अजय ने एक ही धक्के में अनिता की चूत में अपना पूरा लंड घुसेड़ दिया। अजयबोला - दीदी, आपको तो जरा भी दर्द नहीं हुआ और मेरा समूंचा लंड तुम्हारी बुर में समां गया। सुनीता ने कुछ दर्द महसूस तो किया था। देख अजय, मैं कब से अपने ससुर से चुदवा रही हूँ। अनीता ने सिर्फ एक सप्ताह ही अपने मौसा जी से चुदवाई है। उसकी मुझसे ज्यादा चुस्त तो होगी ही। अच्छा, अब देर मत कर, मेरी चूत को जितनी तेजी से फाड़ सके, फाड़ डाल इसे। अजय ने एक जोरदार धक्का फिर अनीता की चूत में दे मारा और अनीता ख़ुशी से उछल पड़ी और उसकी सिसकियाँ उस बड़े कमरे में गूंजने लगीं ... आह: अजय ....मेरे भाई .....आज पूरी ताकत से मेरी बुर को फाड़ डाल मेरे भैया, अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो फिर तेरे लिए अपनी चूत के द्वार हमेशा-हमेशा के लिए खोल दूँगी ...आज मेरी चूत का चित्तोड़-गढ़ बना डाल। तेरा जीजू तो न मर्द है साला ....अनीता चूतड़ उछाल -उछाल कर अजय के लंड को अन्दर ले जाने का भरसक प्रयास कर रही थी। और अंत में दोनों ही एक साथ झड़ गए।
काफी देर तक दोनों एक दूसरे से नंगे बदन लिपटे रहे। सुबह सुनीता ने आकर दोनों के ऊपर से कम्बल उठाया तो दोनों को नंगा लिपटे देखकर खिलखिलाकर हंस पड़ी तो उनकी नीद टूटी। अनीता की बात बन आई, वह बोली - क्यों दीदी, याद है तुमने क्या कहा था 'खूंटे पे रखकर फाड़ दूँगी पर भाई को नहीं दूँगी।' अनीता झेंप सी गई और बोली - चुप हरामजादी, तूने ही तो इसके लंड की तारीफों के पुल बाँध कर मुझे इससे चुदने को मजबूर कर दिया। दीदी, सुनीता बोली -अब तो में अजय भैया से रोज रात को चुदवा सकती हूँ? सच बताओ तुम्हें भैया का लंड कैसा लगा। अनीता मुस्कुरा भर दी। अगले दिन सुनीता और अजय ने बिदा ली और अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर दोनों लोग अपने अगले प्लान के वारे में सोचते रहे। अंत में उन्होंने तय किया कि वह किस प्रकार अपने बड़े भैया जो मझली भाभी को चोदते हैं, को ब्लैकमेल करके पहले उनसे खुद चुदवायेगी और फिर वह मझली भाभी को डरा-धमका कर अजय भैया से चुदवाने को मजबूर कर देगी।
सुनीता और अजय दोनों अब पूरी योजना बना चुके थे कि उन्हें बड़े भैया रविशंकर को और मझली भाभी को अपने शिकंजे में कैसे फांसना है। सुनीता का मकसद था बड़े भैया के साथ मजे लेना और अजय का इरादा था अपनी मझली भाभी की योनि लेना। अत: एक दिन मौका पाकर सुनीता बड़े भैया के कमरे में जा पहुंची और बोली, "बड़े भैया, मेरे सीने में एक गाँठ उभर आई है। इसमें सुबह से हल्का सा दर्द हो रहा है।" ऐसा कहते हुए सुनीता ने रवि का हाथ पकड़ अपनी दाहिनी चूची पर रख दिया। रवि के तन-बदन में एक झुरझुरी सी आ गयी। सुनीता बोली-"भैया अन्दर से पकड़ कर देखो, ऊपर से गाँठ दिखाई नहीं देगी।" रवि को सकुचाते देख सुनीता ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी कुर्ती के अन्दर डाल दिया। अन्दर ब्रा न पहने होने के कारण सुनीता की समूची नंगी चूची रवि के हाथ में आ गई। रवि ने हिम्मत करके उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। सुनीता पर मदहोशी सी छाने लगी। बोली, "भैया, आप ऐसे ही धीरे-धीरे सहलाते रहो, इससे दर्द कुछ कम सा होता जा रहा है।" रवि भी अत्तेजित हो उठा था। उसने धीरे-धीरे अपना हाथ दोनों चूचियों पर फिराना शुरू कर दिया। सुनीता के सारे शरीर में करंट सा दौड़ गया। उसके मुंह से सिसकारियाँ फूटने लगीं। रवि ने हाथ पेट से होते हुए नीचे नाभि तक सरकाना शुरू कर दिया। उसका लिंग तन कर खड़ा होने लगा था जो सुनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था।
रवि ने कहा, "सुन्नो, अपनी कुर्ती उतार दे। में अभी दरबाजा बंद करके आता हूँ।" और जब रवि लौटा तो उसने सुनीता को अपनी बांहों में भर कर चूम और बोला, "सुन्नो, तू सीधी होकर लेट जा, मैं इस गाँठ को अभी ठीक करता हूँ।" तब रवि ने अर्ध-नग्न सुनीता की दोनों चूचियों को खुलकर सहलाना शुरू कर दिया और घुंडियों को मुंह में लेकर चूंसना भी आरम्भ कर दिया था। सुनीता मस्ती में भर कर सिस्कारियां भरने लगी थी। रवि ने अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के अन्दर सरका कर उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया था। सुनीता सिंहर उठी और उसने रवि के सीने में अपना मुंह छुपा लिया। वह बोली, "भैया, यह क्या कर रहे हो?" "तुझे जी भर के प्यार कर रहा हूँ पगली, आज में तुझे इतना प्यार करूंगा जितना तुझे कभी किसी ने नहीं किया होगा। बोल चाहती है कि मैं तुझे इसी तरह प्यार करूँ ...या तुझे अच्छा नहीं लग रहा यह सब करना?" "नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। मगर मुझे गुदगुदी सी हो रही है।" "कहाँ हो रही है गुदगुदी सी, जरा मैं भी तो देखूं ..." "दोनों जाँघों के बीच में भैया ... आह: ... उंगली अन्दर न डालो भैया ..." "क्यों, क्या दर्द हो रहा है? अच्छा, एक काम कर ...." "क्या भैया?" "अपनी सलवार भी उतार दे। आज तुझे पूरा मज़ा दे ही डालूँ ..." "नहीं भैया, मुझे डर लगता है। आप वैसे ही करोगे, जैसा मझली भाभी के संग करते हो। .."
गतान्क से आगे............. ....
रात के करीब 11 बजे का बक्त होगा, सुनीता चुपचाप अनीता के पास से उठकर रामलाल के कमरे में जा घुसी। अनीता और अजय अपने-अपने बिस्तर पर लेटे नीद आने का इन्तजार कर रहे थे। अनीता के मन में धक्-धक् हो रही थी कि कहीं अजय उसके साथ कुछ करने लगे तो उसे कैसे रोकेगी वह। सुनीता की तो ले ही चुका है, अब उसका अगला निशाना कहीं वह न हो। इसी बीच अजय ने अनीता को आवाज दी - दीदी, क्या सो गयीं? अनीता ने कहा - नहीं तो, क्या बात है? अजय बोला, दीदी, तुम्हें भी नीद नहीं आ रही क्या? अनीता बोली - ऐसी बात नहीं, पर मेरे सिर में कुछ दर्द सा है, इसी लिए नीद नहीं आ रही है। अजय बोला - दीदी आपका सिर दबा दूं? मेरे हाथो में जादू है। हलके हाथ से दबाने पर ही सर दर्द गायव हो जाएगा। अनीता कुछ न बोली और अजय उसकी मौन स्वीकृति को भांप कर अनीता के सिरहाने जा बैठा और हलके-हलके उसका सर दबाने लगा। अजय के हाथ अनीता के सर पर इसप्रकार से फिर रहे थे कि उसे स्वयं भी अच्छा लगने लगा था। दीदी, कन्धों में भी दर्द हो रहा है न, ऐसा कहकर उसने अनीता की हाँ, ना का इंतजार न करते हुए उसके कन्धों पर भी धीरे-धीरे हाथ फिराने शुरू कर दिए थे। अनीता ने सोने का अभिनय करते हुए खर्राटे भरने शुरू कर दिए थे। अजय ने अवसर पाकर उसके कन्धों से नीचे की ओर अपने हाथ फिसलाने शुरू कर दिए और उसकी चूचियों को भी हलके से सहलाना आरम्भ कर दिया। अनीता तो जगी ही पड़ी थी किन्तु फिर भी वह अनजान बनी चुपचाप लेटी रही। उसने नीद में होने का अभिनय करते हुए अपने बदन को बिलकुल सीधा कर दिया।
अजय को उससे अनीता के सारे बदन को टटोलने में काफी सुबिधा हो गयी। वह अंपने हाथ धीरे-धीरे फिसलाता हुआ उसकी जाँघों तक ले आया। धीरे से उसने अनिता की साड़ी उठाकर उसके पेट पर रख दी और उसकी चिकनी मासल जाँघों पर हाथ फिराने लगा। अनीता के मुंह से एक हलकी सी सिसकारी फूटी जिसका अजय ने तुरंत लाभ उठाकर अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसेड़ कर उसे अन्दर-बाहर करने लगा। अनीता ने मस्ती में आकर अपना एक हाथ अजय के लिंग को टटोल कर उसे पकड़ लिया और बोली - अजय तू मुझसे कितना छोटा है, तुझे चोदने को सिर्फ मैं ही मिली थी। अजय बोला - नहीं दीदी, आपसे पहले मैं सुनीता को भी चोद चुका हूँ चुदवाते वक्त सुनीता ने मुझे सब-कुछ बता दिया कि सबसे पहले उसने तुम्हारे ससुर से अपनी चूत फटवाई है। उसने यह भी बताया क़ि जीजू तो नामर्द हैं। इसी लिए दीदी भी अपने ससुर से अपनी आग शांत करवाती हैं। अब दीदी, एक बात बताओ, अगर तुम्हारा छोटा भाई भी बहती गंगा में हाथ धो लेगा तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा। ऐसा कहकर अजय ने अपनी उंगलिओं से अनीता की चूत सहलानी शुरू कर दी और दोनों छातियों को कस-कस कर दबाने और चूंसने लगा।
अनीता के बदन के सारे तार झनझना उठे। उसने कस कर अजय को अपनी बांहों में जकड़ लिया और बोली - अच्छा चल तू भी लेले मेरी, डाल दे अपना पूरा लंड मेरी चूत में। पर तुझे मेरी कसम, इस बात का ज़िक्र किसी से भूल कर भी न करना। अजय बोल - दीदी, क्या मैं पागल हूँ जो किसी से ऐसी बातें कहूँगा। लोग मुझे 'बहनचोद' कहकर नहीं पुकारेंगे। तो ठीक है, आ जा सारे कपडे उतार कर मेरे ऊपर। और फिर अजय ने एक ही धक्के में अनिता की चूत में अपना पूरा लंड घुसेड़ दिया। अजयबोला - दीदी, आपको तो जरा भी दर्द नहीं हुआ और मेरा समूंचा लंड तुम्हारी बुर में समां गया। सुनीता ने कुछ दर्द महसूस तो किया था। देख अजय, मैं कब से अपने ससुर से चुदवा रही हूँ। अनीता ने सिर्फ एक सप्ताह ही अपने मौसा जी से चुदवाई है। उसकी मुझसे ज्यादा चुस्त तो होगी ही। अच्छा, अब देर मत कर, मेरी चूत को जितनी तेजी से फाड़ सके, फाड़ डाल इसे। अजय ने एक जोरदार धक्का फिर अनीता की चूत में दे मारा और अनीता ख़ुशी से उछल पड़ी और उसकी सिसकियाँ उस बड़े कमरे में गूंजने लगीं ... आह: अजय ....मेरे भाई .....आज पूरी ताकत से मेरी बुर को फाड़ डाल मेरे भैया, अगर तूने मुझे खुश कर दिया तो फिर तेरे लिए अपनी चूत के द्वार हमेशा-हमेशा के लिए खोल दूँगी ...आज मेरी चूत का चित्तोड़-गढ़ बना डाल। तेरा जीजू तो न मर्द है साला ....अनीता चूतड़ उछाल -उछाल कर अजय के लंड को अन्दर ले जाने का भरसक प्रयास कर रही थी। और अंत में दोनों ही एक साथ झड़ गए।
काफी देर तक दोनों एक दूसरे से नंगे बदन लिपटे रहे। सुबह सुनीता ने आकर दोनों के ऊपर से कम्बल उठाया तो दोनों को नंगा लिपटे देखकर खिलखिलाकर हंस पड़ी तो उनकी नीद टूटी। अनीता की बात बन आई, वह बोली - क्यों दीदी, याद है तुमने क्या कहा था 'खूंटे पे रखकर फाड़ दूँगी पर भाई को नहीं दूँगी।' अनीता झेंप सी गई और बोली - चुप हरामजादी, तूने ही तो इसके लंड की तारीफों के पुल बाँध कर मुझे इससे चुदने को मजबूर कर दिया। दीदी, सुनीता बोली -अब तो में अजय भैया से रोज रात को चुदवा सकती हूँ? सच बताओ तुम्हें भैया का लंड कैसा लगा। अनीता मुस्कुरा भर दी। अगले दिन सुनीता और अजय ने बिदा ली और अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते भर दोनों लोग अपने अगले प्लान के वारे में सोचते रहे। अंत में उन्होंने तय किया कि वह किस प्रकार अपने बड़े भैया जो मझली भाभी को चोदते हैं, को ब्लैकमेल करके पहले उनसे खुद चुदवायेगी और फिर वह मझली भाभी को डरा-धमका कर अजय भैया से चुदवाने को मजबूर कर देगी।
सुनीता और अजय दोनों अब पूरी योजना बना चुके थे कि उन्हें बड़े भैया रविशंकर को और मझली भाभी को अपने शिकंजे में कैसे फांसना है। सुनीता का मकसद था बड़े भैया के साथ मजे लेना और अजय का इरादा था अपनी मझली भाभी की योनि लेना। अत: एक दिन मौका पाकर सुनीता बड़े भैया के कमरे में जा पहुंची और बोली, "बड़े भैया, मेरे सीने में एक गाँठ उभर आई है। इसमें सुबह से हल्का सा दर्द हो रहा है।" ऐसा कहते हुए सुनीता ने रवि का हाथ पकड़ अपनी दाहिनी चूची पर रख दिया। रवि के तन-बदन में एक झुरझुरी सी आ गयी। सुनीता बोली-"भैया अन्दर से पकड़ कर देखो, ऊपर से गाँठ दिखाई नहीं देगी।" रवि को सकुचाते देख सुनीता ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी कुर्ती के अन्दर डाल दिया। अन्दर ब्रा न पहने होने के कारण सुनीता की समूची नंगी चूची रवि के हाथ में आ गई। रवि ने हिम्मत करके उसे धीरे-धीरे सहलाना शुरू कर दिया। सुनीता पर मदहोशी सी छाने लगी। बोली, "भैया, आप ऐसे ही धीरे-धीरे सहलाते रहो, इससे दर्द कुछ कम सा होता जा रहा है।" रवि भी अत्तेजित हो उठा था। उसने धीरे-धीरे अपना हाथ दोनों चूचियों पर फिराना शुरू कर दिया। सुनीता के सारे शरीर में करंट सा दौड़ गया। उसके मुंह से सिसकारियाँ फूटने लगीं। रवि ने हाथ पेट से होते हुए नीचे नाभि तक सरकाना शुरू कर दिया। उसका लिंग तन कर खड़ा होने लगा था जो सुनीता की जाँघों से रगड़ खा रहा था।
रवि ने कहा, "सुन्नो, अपनी कुर्ती उतार दे। में अभी दरबाजा बंद करके आता हूँ।" और जब रवि लौटा तो उसने सुनीता को अपनी बांहों में भर कर चूम और बोला, "सुन्नो, तू सीधी होकर लेट जा, मैं इस गाँठ को अभी ठीक करता हूँ।" तब रवि ने अर्ध-नग्न सुनीता की दोनों चूचियों को खुलकर सहलाना शुरू कर दिया और घुंडियों को मुंह में लेकर चूंसना भी आरम्भ कर दिया था। सुनीता मस्ती में भर कर सिस्कारियां भरने लगी थी। रवि ने अपना एक हाथ सुनीता की सलवार के अन्दर सरका कर उसकी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया था। सुनीता सिंहर उठी और उसने रवि के सीने में अपना मुंह छुपा लिया। वह बोली, "भैया, यह क्या कर रहे हो?" "तुझे जी भर के प्यार कर रहा हूँ पगली, आज में तुझे इतना प्यार करूंगा जितना तुझे कभी किसी ने नहीं किया होगा। बोल चाहती है कि मैं तुझे इसी तरह प्यार करूँ ...या तुझे अच्छा नहीं लग रहा यह सब करना?" "नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। मगर मुझे गुदगुदी सी हो रही है।" "कहाँ हो रही है गुदगुदी सी, जरा मैं भी तो देखूं ..." "दोनों जाँघों के बीच में भैया ... आह: ... उंगली अन्दर न डालो भैया ..." "क्यों, क्या दर्द हो रहा है? अच्छा, एक काम कर ...." "क्या भैया?" "अपनी सलवार भी उतार दे। आज तुझे पूरा मज़ा दे ही डालूँ ..." "नहीं भैया, मुझे डर लगता है। आप वैसे ही करोगे, जैसा मझली भाभी के संग करते हो। .."