ज़िंदगी के रंग--6
गतान्क से आगे..................
किरण जब घर पोहन्चि तो अली की गाड़ी से उतार कर देखा के मनोज उसे उपर की खिड़की से देख रहा है. उन दोनो की निगाहे एक दूजे से मिली और पटेल की आँखौं मे जो उसने देखा उससे वो काँप उठी. क्या वो नफ़रत थी यां पागलपन? ये तो वो समझ नही पाई मगर उसको ऐसे देख कर डर ज़रूर गयी. क्या ये डर उसे पटेल से था यां इस बात से के कहीं वो उसे खो ना दे? सच तो ये था के अब वो इस ज़िंदगी की ऐसी आदि हो चुकी थी के अगर पटेल ने अपना हाथ उससे दूर खेंच लिया तो वो क्या करेगी ये उसे मालूम ना था. घर के अंदर गयी तो देखा के उसकी मा बिस्तर पे लेट भी चुकी है. कपड़े बदलने के बाद जा के वो उनकी मालिश करने लग गयी. कुछ ही देर मे माता जी के खर्राटे कमरे मे गूंजने लगे जिस से सॉफ ज़ाहिर था के वो गहरी नींद सो चुकी थी. वो भी कुछ थक सी गयी थी और सोने ही वाली थी के दरवाज़े मे उसे मनोज खड़ा नज़र आया. उसने आँखौं से ही उसे उपर आने का इशारा किया और चला गया. ये पहली बार नही था के वो उसके पास जाने वाली थी. पटेल उसके जिस्म को हर तरहा से तो इस्तेमाल कर चुका था. फिर ऐसा क्यूँ था के आज सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त वो घबरा रही थी?.............
किरण जब कमरे मे आई तो मनोज कमरे की खिड़की के पास उसकी तरफ पीठ किए खड़ा हुआ था. किरण ने कमरे मे आ के खुद ही दरवाज़ा बंद कर दिया. जाने क्यूँ उसके मुँह से कोई शब्द नही निकल पा रहे थे? उसने आज से पहले मनोज को कभी इस तरहा गुस्से मे नही देखा था. साथ ही साथ उसका ज़हन ये समझ नही पा रहा था के वो गुस्से मे है क्यूँ? आख़िर मनोज ने ही इस खामोशी को तोड़ा.
मनोज:"बैठ जाओ किरण." वो चुप चाप कमरे मे पड़ी कुर्सी पे बैठ गयी. मनोज उसके सामने आ के ज़मीन पे बैठ गया और उसकी आँखौं मे गुस्से से देखने लगा. मनोज की आँखौं मे जो गुस्सा था उससे देख कर किरण काँप उठी. वो अब पहले से भी ज़्यादा घबरा गयी थी.
मनोज:"किरण क्या तुम्हे किसी चीज़ की कमी है?" उसने धीमी आवाज़ मे मगर गुस्से से पूछा.
किरण:"न.....नही तो"
मनोज:"क्या कभी भी तुम्हे पेसौं की कोई परेशानी होने दी है?"
किरण:"नही" किरण ने मुस्किल से जवाब दिया.
मनोज:"तुम्हे पता है के पेसे के लिए दुनिया मे क्या क्या कुछ करना पड़ता है? तुम्हारे से भी ज़्यादा ख़ौबसूरत लड़कियाँ 100-100 रुपए के लिए ऐसे बन्दो के साथ भी सोती हैं जिन की शकल भी वो आम तोर पे देखना पसंद ना करे. क्या तुम भी चाहती हो के पेसौं के लिए तुम्हे भी 2 ताकि की रंडियों की तरहा जगह जगह जाना पड़े?"
किरण:"नही" उसकी ख़ौबसूरत आँखो से ये सुन कर आँसू एक दरिया की तरहा बहने लगे थे. आज तक उसने अपने आप को फरेब की दुनिया मे रखा हुआ था. मनोज के कमरे मे जो भी होता था उसे कमरे से निकलते साथ ही वो भुला देती थी. आँधेरे की दुनिया मे रहने वालो को जब सच्चाई नज़र आती है तो उसकी रोशनी उनकी आँखे से नही पाती. कुछ ये ही हाल किरण का भी हो रहा था. कितने ही लड़के उसकी खोबसूरती के दीवाने थे पर आज उसे यौं लग रहा था के वो शीशे के सामने खड़ी है और शीशे मे उसे दुनिया की सब से बदसूरत लड़की का चेहरा नज़र आ रहा है. बड़ी मुस्किल से रोते हुए उसने पूछा
किरण:"मेरी ग़लती क्या है? आज तक आप ने जो कहा वोई तो करती आई हूँ?" ये सुन कर तो मनोज गुस्से से पागल हो गया.
मनोज:"साली रंडी मे तुझे कहता हूँ के दूसरे लड़को के साथ गुलचरे उड़ा?"
किरण:"आप ग़लत समझ रहे हैं. मे तो अपने कॉलेज के दोस्तो.." तपाक थप्पड़ की गूँज से कमरा गूँज उठा और किरण का सर घूमने लगा. दर्द से लगा रहा था किसी ने उसका मुँह ही तोड़ दिया हो.
मनोज:"साली रंडी झूट बोलती है मुझसे? कितनी गर्मी है साली तुझे जो मेरे बाद भी दूसरो से चुदवाने जाती है? इधर आ आज तेरी गर्मी तो बुझाता हूँ मैं." ये कह कर उसने किरण को उसके सर के बालो से पकड़ के बिस्तर की तरफ़ फेंक दिया. वो बेचारी ज़ोर से बिस्तर पे गिरी और उसका सर पलंग से टकराया. पहले ही आँखो के आगे तारे नज़र आ रहे थे और अब सर और भी दर्द से फटने लगा. मनोज ने पीछे से आ कर उसकी शलवार खेंच के उतार दी और उसे ज़ोर से घोड़ी बना दिया. किरण को समझ ही नही आ रही थी के क्या होरहा है के अचानक उसके मुँह से चीख निकलने लगी. "अहह नही अहह छोड़ो मुझे" मनोज ने बगैर कुछ लगाए ही अपना लंड ज़ोर से उसकी चूत मे घुसा दिया था. बिल्कुल खुसक और जाहनी तोर पे तैयार ना होने की वजह से किरण को बहुत ही ज़्यादा दर्द होने लगा. दर्द इतना तेज था के उसे ऐसे लग रहा था के किसी ने एक दम से उससे छुर्रि मार दी हो. मनोज को एक अजीब सी बीमारी थी के जब तक उसे ऐसा ना लगता के वो ज़बरदस्ती कर रहा है उसका ठीक से खड़ा नही होता था. इसी लिए वो हमेशा किरण के साथ ज़बरदस्ती करने का ड्रामा कर के उसे चोदता था. पर आज जब सच मे वो उसका रेप कर रहा था तो उसका लंड लोहे की तरहा सख़्त हो गया था. किरण की सिसकियाँ सुन कर उसे और भी मज़ा आने लगा था. वो ज़ोर ज़ोर से झटके मारने लगा और साथ ही साथ खेंच खेंच के थप्पड़ उसकी बुन्द पे भी मारने लगा.
ज़िंदगी के रंग compleet
Re: ज़िंदगी के रंग
मनोज:"क्यूँ साली कुतिया मज़ा आ रहा है ना तुझे? ऐसे ही चुदवाती है ना तो बाहर जा के? बोल बोल भाडवी?" वो गंदी गंदी गलियाँ निकालते हुए किरण को चोदता रहा. शोर से कहीं उसकी बीमार मा जाग ना जाए इस लिए किरण ने अपने मुँह मे बिस्तर की चादर घुसा ली थी. आँसू थे के रुक ही नही रहे थे और उसका मुँह लाल हो गया था. दर्द से उसे लग रहा था के वो मर ही जाएगी. मनोज हेवानो की तरहा उसे ज़ोर ज़ोर से आधा घंटा चोदता रहा और किरण का वो हाल हो गया था के दर्द से बस बेहोश होने ही वाली थी. आख़िर ज़ोर से झटके मारते हुए वो किरण के बीच ही झाड़ गया. मनोज का लंड जब नरम पढ़ा तो निकाल के बिस्तर पे ही वो लेट गया और हांपने लगा. किरण उसी हालत मे वहाँ पड़ी थी. रो रो के अब तो आँसू भी सूख गये थे. आँखे सूज के लाल हो गयी थी और जिस्म दर्द से टूट रहा था. थोड़ी देर बाद बड़ी मुस्किल से उठ कर उसने अपनी शलवार पहनी और बड़ी मुस्किल से चलते हुए कमरे के दरवाज़े की तरफ चलने लगी.
मनोज:"रुक जाओ. ऐसे भला केसे जाने दूँगा तुझे? किरण मेरी एक बात अपने पल्ले बाँध ले. ये जो कॉलेज के लौंदे हैं ना इनकी दोस्ती कॉलेज मे ही ख़तम कर के आया कर. अगर मैने तुझे कभी किसी भी हराम जादे के साथ आइन्दा देख लिया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा. टू बस मेरी कुतिया है और मेरे साथ ही वफ़ादार रहना पड़ेगा. समझ गयी ना?" वो बेचारी बस हल्का सा सर ही हिला पाई.
मनोज:"चल अब ये पकड़." ये कह कर मनोज ने नोटो की एक गद्दी तकिये के नीचे से निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी. कुछ लम्हे वो अपनी जगह पर बुत बन गयी. वो उन नोटो को देख रही थी जिन की वजह से आज उसकी ये हालत हो गयी थी. क्या ये ही मेरी सच्चाई है अब? एक दरिंदे की रखैल? 2 आँसू उसकी आँखो से फिर निकल गये और उसने काँपते हाथो से नोटो की गद्दी को पकड़ लिया और कमरे से बाहर निकल गयी. कोई पहली बार अपनी इज़्ज़त लुटवा कर तो वो मनोज के कमरे से बाहर नही आ रही थी पर आज पहली बार अपनी इज़्ज़त के साथ साथ वो खुद भी अपनी नज़रौं मे गिर गयी थी. सीडीयाँ नीचे उतरते समय एक एक सीडी पे कदम रखते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो हज़ार बार मर रही हो.
साम के साथ सब कुछ बदल जाता है बस फराक ये होता है कुछ चीज़े रात गये ही बदल जाती हैं तो कुछ धीरे धीरे. जैसे वक़्त एक जगह रुक नही जाता वैसे ज़िंदगी की गाड़ी भी आगे को चलती रहती है. मोना भी धीरे धीरे बदल रही थी. चाहे कभी मिनी स्कर्ट ना पहने पर अब कम से कम ऐसे तो थी के शहर की लड़की तो दिखने ही लगी थी. मेक अप भी भले ही दोसरि लड़कियो के मुक़ाबले मे कम था पर हल्का फूलका करना तो शुरू कर ही दिया था. कॉलेज के लड़को ने भी उस मे ज़्यादा इंटेरेस्ट लेना शुरू कर दिया था पर ये बात अलग थी के अभी भी वो किसी को ज़्यादा घास नही डालती थी. पर कुछ हद तक बदला तो ये भी था. अब किरण की तरहा अली भी उसका दोस्त बन चुका था. वो लड़का है, अमीर खानदान से है ऐसी बतो के बारे मे उसने सौचना छोड़ दिया था. अभी कल ही की तो बात लगती थी के केसे वो अकेली उसके साथ आइस क्रीम खाते भी शर्मा रही थी और अब तो कॉलेज के बाद वो ही उसे अपनी गाड़ी पे घर छोड़ने लग गया था. उनकी उस मुलाक़ात को अब कोई 2 महीने हो चुके थे. इस दोरान मोना की ज़िंदगी मे छोटी मोटी बहुत सी चीज़े बदल गयी थी. जैसे के उसने कॉल सेंटर पर पार्ट टाइम जॉब शुरू कर दी थी. शहर मे रहते हुए पेसौं की ज़रूरत तो पड़ती ही है और वो अपने पिता पर बोझ नही बनना चाहती थी. रही बात ममता आंटी की तो उसका बस नाम ही ममता था वरना ममता नाम की उस मे तो कोई चीज़ थी ही नही. उसको बंसी के साथ अपना मुँह काला करवाने से थोड़ी फ़ुर्सत मिलती तो दूसरो के बारे मे सोचती ना?
उसको कॉल सेंटर पे नौकरी किरण ने ही दिलवाई थी. किरण भी तो पछले 2 महीने से बहुत बदल गयी थी और उस मे ये बदलाव सब से ज़्यादा मोना ने ही महसूस किया था. कुछ घाव इंसान को पूरी तरहा तोड़ कर रख देते हैं तो कुछ उसको पहले से भी ज़्यादा मज़बूत बना देते हैं. किरण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जो किरण अपने इर्द गिर्द लड़को को भंवरौं की तरहा घूमने पे मजबूर कर देती थी वो अब उनसे ज़्यादा बात नही करती थी और ना ही किसी का तोफा कबूल करती थी. खुद किरण ने ही कॉल सेंटर मे नौकरी मिलने के 2 हफ्ते बाद ही मोना को भी वहाँ नौकरी दिलवा दी थी. पहले तो मोना को अजीब सा लगा जब किरण ने उससे कहा के वो उसे भी नौकरी दिलवा सकती है पर फिर किरण ने ही उसे मना भी लिया.
किरण:"मोना अपने आप को कभी किसी के सहारे का मौहताज ना होने देना. खुद को इतना मज़बूत बना लो के अगर कल को कोई तूफान भी आए तो तुम तन्हा ही उसका मुक़ाबला कर सको." ये बात जाने क्यूँ सीधी मोना के दिल पे लगी और उसने हां कर दी. "सच मे मोना बहुत बदल गयी है" ऐसा मोना सौचने लगी थी. अब तो वो दूसरो को छोड़ो अली और मोना के साथ भी कहीं बाहर नही जाती थी. हमेशा कोई ना कोई बहाना बना दिया करती थी और फिर कुछ दीनो बाद इन दोनो ने भी उससे पूछना छोड़ दिया. पर जो भी था मोना को किरण पहले से भी अच्छी लगने लगी थी. वो उसको दोस्त से ज़्यादा अपनी बेहन मानती थी. और अली के बारे मे वो क्या सौचती थी? ये तो बताना बहुत ही कठिन है. अली उसके साथ मज़ाक करता था, उसे अक्सर बाहर घुमाने के लिए भी ले जाता था मघर कभी उसने ऐसी कोई बात नही की जिस से ऐसा सॉफ ज़ाहिर हो के वो मोना को प्यार करता है. "क्या ये प्यार है या दोस्ती?" ऐसा वो तन्हाई मे सौचा करती थी.
ऐसा नही था के अली उस से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए बेचैन नही था. पर पहला प्यार वो आहेसास है जो महसूस तो हर इंसान कभी ना कभी करता ही है पर उसका इज़हार करना आसान बात नही होती. ये डर के कहीं इनकार हो गया तो क्या होगा? इंसान को अंदर ही अंदर खाए जाता है. फिर अली अभी जल्दी मे ये दोस्ती भी हाथ से गँवाना नही चाहता था जो उनके दरमियाँ हो गयी थी. उसने देखा था के केसे मोना किसी लड़के को भी अपने पास भटकने नही देती थी. ऐसे मे कही उसे वो दोसरे लड़को की तरहा लोफर ना समझ ले ये डर भी तो था. रोज़ाना जो समय वो दोनो एक साथ गुज़ारते वो उसके दिन के सब से हसीन लम्हे होते थे. मोना के ख़ौबसूरत चेहरे पे उसकी मासूम हँसी तो कभी उसकी एक आध ज़ुलाफ जब हवा मे बेक़ाबू हो कर उसके चेहरे पे आ जाती थी तो वो उसे बहुत ही अच्छी लगती थी. थोड़े ही दीनो मे उसने मोना के बारे मे सब कुछ जान लिया था. सॉफ दिल के लोग वैसे भी दिल मे बात छुपा के नही रखते और मोना का दिल तो अभी भी शीशे के जैसे बिल्कुल सॉफ था. शायद इशी लिए अली को कभी कभार महसूस हो ही जाता था के मोना भी उससे एक दोस्त से बढ़ कर पसंद करती है. जैसे जैसे दिन गुज़रे उसकी मोहब्बत मोना के लिए पहले से भी मज़बूत होती चली गयी और अब उसको बस इंतेज़ार था उस मौके का जब वो अपने दिल की बात मोना को कह सके. और ऐसा मौका उससे जल्द ही मिल भी गया.......
जहाँ किरण की मोहबत का दम भरने वाले लड़के एक एक कर के उससे उसका रवैया बदलने की वजा से दूर होते जा रहे थे वहाँ ही एक इंसान ऐसा भी था जो उसे बरसो से देख रहा था और अब उस मे इस तब्दीली के आने की वजा से बहुत खुश था. वो दूसरे लड़को की तरहा शोख ना सही पर दिल का भला इंसान था जो पागलौं की तरहा किरण को चाहता था. ये चाहत कोई 2-4 दिन पुरानी भी नही थी. वो स्कूल के ज़माने से ही किरण को पसंद करता था पर कभी दिल की बात ज़ुबान पर ला नही पाया था. "क्या अब साम आ गया है के उसे बता दू के मैं उसे पागलौं की तरहा चाहता हूँ?" शरद ने अपने से कुछ दूर बैठी किरण को कॉल सेंटर मे काम करते देख कर सोचा...
क्रमशः....................
मनोज:"रुक जाओ. ऐसे भला केसे जाने दूँगा तुझे? किरण मेरी एक बात अपने पल्ले बाँध ले. ये जो कॉलेज के लौंदे हैं ना इनकी दोस्ती कॉलेज मे ही ख़तम कर के आया कर. अगर मैने तुझे कभी किसी भी हराम जादे के साथ आइन्दा देख लिया तो ज़िंदा नहीं छोड़ूँगा. टू बस मेरी कुतिया है और मेरे साथ ही वफ़ादार रहना पड़ेगा. समझ गयी ना?" वो बेचारी बस हल्का सा सर ही हिला पाई.
मनोज:"चल अब ये पकड़." ये कह कर मनोज ने नोटो की एक गद्दी तकिये के नीचे से निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी. कुछ लम्हे वो अपनी जगह पर बुत बन गयी. वो उन नोटो को देख रही थी जिन की वजह से आज उसकी ये हालत हो गयी थी. क्या ये ही मेरी सच्चाई है अब? एक दरिंदे की रखैल? 2 आँसू उसकी आँखो से फिर निकल गये और उसने काँपते हाथो से नोटो की गद्दी को पकड़ लिया और कमरे से बाहर निकल गयी. कोई पहली बार अपनी इज़्ज़त लुटवा कर तो वो मनोज के कमरे से बाहर नही आ रही थी पर आज पहली बार अपनी इज़्ज़त के साथ साथ वो खुद भी अपनी नज़रौं मे गिर गयी थी. सीडीयाँ नीचे उतरते समय एक एक सीडी पे कदम रखते हुए उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो हज़ार बार मर रही हो.
साम के साथ सब कुछ बदल जाता है बस फराक ये होता है कुछ चीज़े रात गये ही बदल जाती हैं तो कुछ धीरे धीरे. जैसे वक़्त एक जगह रुक नही जाता वैसे ज़िंदगी की गाड़ी भी आगे को चलती रहती है. मोना भी धीरे धीरे बदल रही थी. चाहे कभी मिनी स्कर्ट ना पहने पर अब कम से कम ऐसे तो थी के शहर की लड़की तो दिखने ही लगी थी. मेक अप भी भले ही दोसरि लड़कियो के मुक़ाबले मे कम था पर हल्का फूलका करना तो शुरू कर ही दिया था. कॉलेज के लड़को ने भी उस मे ज़्यादा इंटेरेस्ट लेना शुरू कर दिया था पर ये बात अलग थी के अभी भी वो किसी को ज़्यादा घास नही डालती थी. पर कुछ हद तक बदला तो ये भी था. अब किरण की तरहा अली भी उसका दोस्त बन चुका था. वो लड़का है, अमीर खानदान से है ऐसी बतो के बारे मे उसने सौचना छोड़ दिया था. अभी कल ही की तो बात लगती थी के केसे वो अकेली उसके साथ आइस क्रीम खाते भी शर्मा रही थी और अब तो कॉलेज के बाद वो ही उसे अपनी गाड़ी पे घर छोड़ने लग गया था. उनकी उस मुलाक़ात को अब कोई 2 महीने हो चुके थे. इस दोरान मोना की ज़िंदगी मे छोटी मोटी बहुत सी चीज़े बदल गयी थी. जैसे के उसने कॉल सेंटर पर पार्ट टाइम जॉब शुरू कर दी थी. शहर मे रहते हुए पेसौं की ज़रूरत तो पड़ती ही है और वो अपने पिता पर बोझ नही बनना चाहती थी. रही बात ममता आंटी की तो उसका बस नाम ही ममता था वरना ममता नाम की उस मे तो कोई चीज़ थी ही नही. उसको बंसी के साथ अपना मुँह काला करवाने से थोड़ी फ़ुर्सत मिलती तो दूसरो के बारे मे सोचती ना?
उसको कॉल सेंटर पे नौकरी किरण ने ही दिलवाई थी. किरण भी तो पछले 2 महीने से बहुत बदल गयी थी और उस मे ये बदलाव सब से ज़्यादा मोना ने ही महसूस किया था. कुछ घाव इंसान को पूरी तरहा तोड़ कर रख देते हैं तो कुछ उसको पहले से भी ज़्यादा मज़बूत बना देते हैं. किरण के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था. जो किरण अपने इर्द गिर्द लड़को को भंवरौं की तरहा घूमने पे मजबूर कर देती थी वो अब उनसे ज़्यादा बात नही करती थी और ना ही किसी का तोफा कबूल करती थी. खुद किरण ने ही कॉल सेंटर मे नौकरी मिलने के 2 हफ्ते बाद ही मोना को भी वहाँ नौकरी दिलवा दी थी. पहले तो मोना को अजीब सा लगा जब किरण ने उससे कहा के वो उसे भी नौकरी दिलवा सकती है पर फिर किरण ने ही उसे मना भी लिया.
किरण:"मोना अपने आप को कभी किसी के सहारे का मौहताज ना होने देना. खुद को इतना मज़बूत बना लो के अगर कल को कोई तूफान भी आए तो तुम तन्हा ही उसका मुक़ाबला कर सको." ये बात जाने क्यूँ सीधी मोना के दिल पे लगी और उसने हां कर दी. "सच मे मोना बहुत बदल गयी है" ऐसा मोना सौचने लगी थी. अब तो वो दूसरो को छोड़ो अली और मोना के साथ भी कहीं बाहर नही जाती थी. हमेशा कोई ना कोई बहाना बना दिया करती थी और फिर कुछ दीनो बाद इन दोनो ने भी उससे पूछना छोड़ दिया. पर जो भी था मोना को किरण पहले से भी अच्छी लगने लगी थी. वो उसको दोस्त से ज़्यादा अपनी बेहन मानती थी. और अली के बारे मे वो क्या सौचती थी? ये तो बताना बहुत ही कठिन है. अली उसके साथ मज़ाक करता था, उसे अक्सर बाहर घुमाने के लिए भी ले जाता था मघर कभी उसने ऐसी कोई बात नही की जिस से ऐसा सॉफ ज़ाहिर हो के वो मोना को प्यार करता है. "क्या ये प्यार है या दोस्ती?" ऐसा वो तन्हाई मे सौचा करती थी.
ऐसा नही था के अली उस से अपने प्यार का इज़हार करने के लिए बेचैन नही था. पर पहला प्यार वो आहेसास है जो महसूस तो हर इंसान कभी ना कभी करता ही है पर उसका इज़हार करना आसान बात नही होती. ये डर के कहीं इनकार हो गया तो क्या होगा? इंसान को अंदर ही अंदर खाए जाता है. फिर अली अभी जल्दी मे ये दोस्ती भी हाथ से गँवाना नही चाहता था जो उनके दरमियाँ हो गयी थी. उसने देखा था के केसे मोना किसी लड़के को भी अपने पास भटकने नही देती थी. ऐसे मे कही उसे वो दोसरे लड़को की तरहा लोफर ना समझ ले ये डर भी तो था. रोज़ाना जो समय वो दोनो एक साथ गुज़ारते वो उसके दिन के सब से हसीन लम्हे होते थे. मोना के ख़ौबसूरत चेहरे पे उसकी मासूम हँसी तो कभी उसकी एक आध ज़ुलाफ जब हवा मे बेक़ाबू हो कर उसके चेहरे पे आ जाती थी तो वो उसे बहुत ही अच्छी लगती थी. थोड़े ही दीनो मे उसने मोना के बारे मे सब कुछ जान लिया था. सॉफ दिल के लोग वैसे भी दिल मे बात छुपा के नही रखते और मोना का दिल तो अभी भी शीशे के जैसे बिल्कुल सॉफ था. शायद इशी लिए अली को कभी कभार महसूस हो ही जाता था के मोना भी उससे एक दोस्त से बढ़ कर पसंद करती है. जैसे जैसे दिन गुज़रे उसकी मोहब्बत मोना के लिए पहले से भी मज़बूत होती चली गयी और अब उसको बस इंतेज़ार था उस मौके का जब वो अपने दिल की बात मोना को कह सके. और ऐसा मौका उससे जल्द ही मिल भी गया.......
जहाँ किरण की मोहबत का दम भरने वाले लड़के एक एक कर के उससे उसका रवैया बदलने की वजा से दूर होते जा रहे थे वहाँ ही एक इंसान ऐसा भी था जो उसे बरसो से देख रहा था और अब उस मे इस तब्दीली के आने की वजा से बहुत खुश था. वो दूसरे लड़को की तरहा शोख ना सही पर दिल का भला इंसान था जो पागलौं की तरहा किरण को चाहता था. ये चाहत कोई 2-4 दिन पुरानी भी नही थी. वो स्कूल के ज़माने से ही किरण को पसंद करता था पर कभी दिल की बात ज़ुबान पर ला नही पाया था. "क्या अब साम आ गया है के उसे बता दू के मैं उसे पागलौं की तरहा चाहता हूँ?" शरद ने अपने से कुछ दूर बैठी किरण को कॉल सेंटर मे काम करते देख कर सोचा...
क्रमशः....................
Re: ज़िंदगी के रंग
ज़िंदगी के रंग--7
गतान्क से आगे..................
इतने महीने बीतने के बाद भी मोना ममता को एक आँख ना भाती थी. उसे घर मे मौजूद दोनो मर्दौ को अपनी उंगलियो पे नचाने की आदत पड़ गयी थी. उसके पति और बंसी उसके ही गीत गाते रहे ये ही वो चाहती थी. ऐसे मे डॉक्टर सहाब की ज़रूरत से ज़्यादा मीठी ज़ुबान और बंसी की मोना को देख कर राल टपकाना ममता को गुस्से से पागल बना रहा था. कितने ही दीनो से वो ऐसे मौके की तलाश मे थी के मोना से छुटकारा पा सके पर मोना उसे मौका ही भला कब देती थी? ममता अगर गुस्से से भी उससे बोलती थी तो वो चुप रहती थी और अगर कभी कोई ग़लत बात भी कह जाती तो मोना नज़र अंदाज़ कर देती थी. "साली बहुत ही मेस्नी है ये तो?" ऐसा सौच सौच के उसका गुस्सा उसके अंदर ही रहता पर समय के साथ साथ ये गुस्सा बढ़ते बढ़ते ज्वालामुखी बन चुका था जो एक दिन फॅट ही गया.
जब अली ने मोना को घर छोड़ना शुरू किया तो पहली बार तो देख ममता को भी अच्छा लगा. खुशी उसे इस बात की नही थी के मोना के लिए आसानी हो गयी बल्कि उसकी सौच तो ये थी के "मुझे पता था ये रंडी सती सावित्री बनने का ढोंग करती है. जुम्मा जुम्मा आठ दिन नही हुए और यहाँ पे यार भी बना लिया." ग़लत इंसान हमेशा दूसरो को ग़लत काम करता देख खुश होता है. शायद इस लिए के उससे अपने बारे मे अच्छा महसूस होता है या फिर यौं कह लो के ये आहेसास होता है के चलो हम ही बुरे नही सारी की सारी दुनिया की खराब है. डॉक्टर सहाब कामके सिलसिले मे कुछ दिन के लिए शहर से बाहर गये हुए थे. ऐसा मौका भला कहाँ मिलने वाला था ममता को? खाने की मेज पे जैसे ही मोना आ कर बैठ गयी, मुमता ने अपनी ज़ुबान के तीर चलाने शुरू कर दिया.
ममता:"बंसी खाना परोस दो मेम साहब को. आज कल बहुत कुछ करवा के आती हैं ने इस लिए थक जाती होंगी." अब मोना कोई बच्ची तो थी नही. देल्ही मे इतने महीने बिताने के बाद वो शहर वालो की दो मिनिंग वाली बतो को भी खूब समझने लग गयी थी. ममता की ये बात उसे बहुत अजीब लगी और इस बार वो चुप ना रह पाई.
मोना:"आंटी आप कहना क्या चाहती हैं?"
ममता:"अब तुम इतनी भी बची नही हो. खूब समझ सकती हो के क्या मे कह रही हूँ और क्या नही. हां पर एक बात समझ लो, मैने कोई धूप मे खड़े हो के बॉल सफेद नही किए. ये जो कुछ तुम कर रही हो ना इन हरकटो से बाज़ आ जाओ." हर इंसान के बर्दाशत की भी एक सीमा होती है और वैसे भी मन के सच्चे लोग तो किसी को ना ग़लत बात करते हैं और ना ही सुनना पसंद करते हैं. कितने ही अरसे से तो वो ममता की ज़हर भरी बतो को बर्दाशत कर रही थी पर आज जब उसने मोना के चरित्र पे उंगली उठाई तो मोना से भी बर्दाशत नही हो पाया. वो कहते हैं ना के सांच को कोई आँच नही होती. इसी लिए वो भी बोलना शुरू हो गयी.
मोना:"अपने माता पिता से दूर होने के बावजूद भी मे आज भी उनके दिए संस्कार नही भूली. कभी ज़िंदगी मे ऐसी कोई हरकत ही नही की जिस के लिए शर्मिंदा होना पड़े. आप ने मुझे घर मे रखा और ये अहेसान मे कभी नही भूलूंगी पर उसका ये मतलब नही के आप मेरे चरित्र पे कीचड़ उछालो और मैं चुप चाप देखती रहू."
ममता:"आरे वाह बंसी देखो तो ज़रा. इन मेडम के तो पर निकल आए हैं. एक तो चोरी उपर से सीना ज़ोरी. कहाँ जाते हैं तुम्हारी मा के दिया संस्कार जब रोज़ाना मुँह काला करवा के अपने यार के साथ आती हो?" बस अब तो मोना का गुस्सा भी ज्वाला मुखी की तरहा फॅट गया ये सुन कर.
मोना:"बस! दूसरो को बात करने से पहले अपनी गेरेबान मे झाँक कर देखो पहले. अपने नौकर के साथ पति के पीछे मुँह काला करवाते तुम्हे शरम नही आती और दूसरो पे इल्ज़ाम लगा रही हो? मैं तुम्हारी तरहा गिरी हुई नही जो ऐसी घटिया हरकते कारू." ये कह कर मोना तो गुस्से से उठ कर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से चली गयी और जा के दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया पर ममता वहीं बुत बन गयी. "क्या इसको मेरे और बंसी के बारे मे पता है? अगर इसने ऐसे ही अपनी ज़ुबान उनके सामने खोल दी तो मेरा क्या होगा?" कुछ लम्हो बाद जब उसने अपने आप पे काबू पाया तो उसका गुस्सा पहले से भी ज़्यादा शिदत के साथ वापिस आ गया. गुस्से से चिल्लाति हुई वो मोना के कमरे की तरफ चिल्लाते हुए जाने लगी.
ममता:"आरे ओ रंडी तेरी जुरत केसे हुई ये बकवास करने की? तुम छोटे ज़ात वाले लोगो को ज़रा सी इज़्ज़त क्या दे दो सर पे चढ़ के नाचने लगते हो. जाने किस किस से मुँह काला करवा के आ के तू मेरे ही घर मे मुझ पे ही इल्ज़ाम लगाती है हराम जादि? निकल बाहर कुतिया तेरा मे आज खून पी जाऔन्गि." वो ऐसे ही कितनी ही देर कमरे के बाहर खड़े हो कर आनाप शनाप बकती रही पर कमरे के अंदर से मोना ने कोई जवाब ना दिया. फिर जब कुछ देर बाद कमरे का दरवाज़ा खोला तो मोना हाथो मे अपना सूटकेस पकड़े खड़ी थी. उसकी आँखो मे जो आग ममता को नज़र आई उसने उसका मुँह बंद कर दिया.
मोना:"कहना चाहू तो बहुत कुछ कह सकती हूँ और अगर चाहू तो तुम्हारी असलियात पूरी दुनिया के सामने ला सकती हूँ. कैसा लगे गा डॉक्टर सहाब को ये जान कर के उनकी धरम पत्नी एक रंडी से भी ज़्यादा गिरी हुई है जो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपना शरीर बेचती है. पर मे ऐसा करौंगी नही. इसको मेरी कमज़ोरी मत समझना बल्कि तुम्हारे अहेसान का बदला उतार के जा रही हूँ. एक बात याद रखना. तुम्हारे जैसी औरत औरतज़ात पे एक काला धब्बा है. आइन्दा दूसरो पे उंगली उठाने से पहले हो सके तो अपना चेहरा आईने मे देख लेना." ममता का तो मुँह खुले का खुला रह गया ये सब सुन कर और उसके मुँह से फिर एक शब्द भी नही निकल पाया जब मोना उसके सामने घर से बाहर जा रही थी. घर से बाहर निकलते समय मोना को भी पूरी तरहा से नही मालूम था के अब वो क्या करेगी और कहाँ जाएगी पर ये ज़रूर जानती थी के ये दुनिया बहुत बड़ी है और जहाँ मन मे चाह हो वहाँ राह मिल ही जाती है......
गतान्क से आगे..................
इतने महीने बीतने के बाद भी मोना ममता को एक आँख ना भाती थी. उसे घर मे मौजूद दोनो मर्दौ को अपनी उंगलियो पे नचाने की आदत पड़ गयी थी. उसके पति और बंसी उसके ही गीत गाते रहे ये ही वो चाहती थी. ऐसे मे डॉक्टर सहाब की ज़रूरत से ज़्यादा मीठी ज़ुबान और बंसी की मोना को देख कर राल टपकाना ममता को गुस्से से पागल बना रहा था. कितने ही दीनो से वो ऐसे मौके की तलाश मे थी के मोना से छुटकारा पा सके पर मोना उसे मौका ही भला कब देती थी? ममता अगर गुस्से से भी उससे बोलती थी तो वो चुप रहती थी और अगर कभी कोई ग़लत बात भी कह जाती तो मोना नज़र अंदाज़ कर देती थी. "साली बहुत ही मेस्नी है ये तो?" ऐसा सौच सौच के उसका गुस्सा उसके अंदर ही रहता पर समय के साथ साथ ये गुस्सा बढ़ते बढ़ते ज्वालामुखी बन चुका था जो एक दिन फॅट ही गया.
जब अली ने मोना को घर छोड़ना शुरू किया तो पहली बार तो देख ममता को भी अच्छा लगा. खुशी उसे इस बात की नही थी के मोना के लिए आसानी हो गयी बल्कि उसकी सौच तो ये थी के "मुझे पता था ये रंडी सती सावित्री बनने का ढोंग करती है. जुम्मा जुम्मा आठ दिन नही हुए और यहाँ पे यार भी बना लिया." ग़लत इंसान हमेशा दूसरो को ग़लत काम करता देख खुश होता है. शायद इस लिए के उससे अपने बारे मे अच्छा महसूस होता है या फिर यौं कह लो के ये आहेसास होता है के चलो हम ही बुरे नही सारी की सारी दुनिया की खराब है. डॉक्टर सहाब कामके सिलसिले मे कुछ दिन के लिए शहर से बाहर गये हुए थे. ऐसा मौका भला कहाँ मिलने वाला था ममता को? खाने की मेज पे जैसे ही मोना आ कर बैठ गयी, मुमता ने अपनी ज़ुबान के तीर चलाने शुरू कर दिया.
ममता:"बंसी खाना परोस दो मेम साहब को. आज कल बहुत कुछ करवा के आती हैं ने इस लिए थक जाती होंगी." अब मोना कोई बच्ची तो थी नही. देल्ही मे इतने महीने बिताने के बाद वो शहर वालो की दो मिनिंग वाली बतो को भी खूब समझने लग गयी थी. ममता की ये बात उसे बहुत अजीब लगी और इस बार वो चुप ना रह पाई.
मोना:"आंटी आप कहना क्या चाहती हैं?"
ममता:"अब तुम इतनी भी बची नही हो. खूब समझ सकती हो के क्या मे कह रही हूँ और क्या नही. हां पर एक बात समझ लो, मैने कोई धूप मे खड़े हो के बॉल सफेद नही किए. ये जो कुछ तुम कर रही हो ना इन हरकटो से बाज़ आ जाओ." हर इंसान के बर्दाशत की भी एक सीमा होती है और वैसे भी मन के सच्चे लोग तो किसी को ना ग़लत बात करते हैं और ना ही सुनना पसंद करते हैं. कितने ही अरसे से तो वो ममता की ज़हर भरी बतो को बर्दाशत कर रही थी पर आज जब उसने मोना के चरित्र पे उंगली उठाई तो मोना से भी बर्दाशत नही हो पाया. वो कहते हैं ना के सांच को कोई आँच नही होती. इसी लिए वो भी बोलना शुरू हो गयी.
मोना:"अपने माता पिता से दूर होने के बावजूद भी मे आज भी उनके दिए संस्कार नही भूली. कभी ज़िंदगी मे ऐसी कोई हरकत ही नही की जिस के लिए शर्मिंदा होना पड़े. आप ने मुझे घर मे रखा और ये अहेसान मे कभी नही भूलूंगी पर उसका ये मतलब नही के आप मेरे चरित्र पे कीचड़ उछालो और मैं चुप चाप देखती रहू."
ममता:"आरे वाह बंसी देखो तो ज़रा. इन मेडम के तो पर निकल आए हैं. एक तो चोरी उपर से सीना ज़ोरी. कहाँ जाते हैं तुम्हारी मा के दिया संस्कार जब रोज़ाना मुँह काला करवा के अपने यार के साथ आती हो?" बस अब तो मोना का गुस्सा भी ज्वाला मुखी की तरहा फॅट गया ये सुन कर.
मोना:"बस! दूसरो को बात करने से पहले अपनी गेरेबान मे झाँक कर देखो पहले. अपने नौकर के साथ पति के पीछे मुँह काला करवाते तुम्हे शरम नही आती और दूसरो पे इल्ज़ाम लगा रही हो? मैं तुम्हारी तरहा गिरी हुई नही जो ऐसी घटिया हरकते कारू." ये कह कर मोना तो गुस्से से उठ कर अपने कमरे की तरफ तेज़ी से चली गयी और जा के दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया पर ममता वहीं बुत बन गयी. "क्या इसको मेरे और बंसी के बारे मे पता है? अगर इसने ऐसे ही अपनी ज़ुबान उनके सामने खोल दी तो मेरा क्या होगा?" कुछ लम्हो बाद जब उसने अपने आप पे काबू पाया तो उसका गुस्सा पहले से भी ज़्यादा शिदत के साथ वापिस आ गया. गुस्से से चिल्लाति हुई वो मोना के कमरे की तरफ चिल्लाते हुए जाने लगी.
ममता:"आरे ओ रंडी तेरी जुरत केसे हुई ये बकवास करने की? तुम छोटे ज़ात वाले लोगो को ज़रा सी इज़्ज़त क्या दे दो सर पे चढ़ के नाचने लगते हो. जाने किस किस से मुँह काला करवा के आ के तू मेरे ही घर मे मुझ पे ही इल्ज़ाम लगाती है हराम जादि? निकल बाहर कुतिया तेरा मे आज खून पी जाऔन्गि." वो ऐसे ही कितनी ही देर कमरे के बाहर खड़े हो कर आनाप शनाप बकती रही पर कमरे के अंदर से मोना ने कोई जवाब ना दिया. फिर जब कुछ देर बाद कमरे का दरवाज़ा खोला तो मोना हाथो मे अपना सूटकेस पकड़े खड़ी थी. उसकी आँखो मे जो आग ममता को नज़र आई उसने उसका मुँह बंद कर दिया.
मोना:"कहना चाहू तो बहुत कुछ कह सकती हूँ और अगर चाहू तो तुम्हारी असलियात पूरी दुनिया के सामने ला सकती हूँ. कैसा लगे गा डॉक्टर सहाब को ये जान कर के उनकी धरम पत्नी एक रंडी से भी ज़्यादा गिरी हुई है जो अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए अपना शरीर बेचती है. पर मे ऐसा करौंगी नही. इसको मेरी कमज़ोरी मत समझना बल्कि तुम्हारे अहेसान का बदला उतार के जा रही हूँ. एक बात याद रखना. तुम्हारे जैसी औरत औरतज़ात पे एक काला धब्बा है. आइन्दा दूसरो पे उंगली उठाने से पहले हो सके तो अपना चेहरा आईने मे देख लेना." ममता का तो मुँह खुले का खुला रह गया ये सब सुन कर और उसके मुँह से फिर एक शब्द भी नही निकल पाया जब मोना उसके सामने घर से बाहर जा रही थी. घर से बाहर निकलते समय मोना को भी पूरी तरहा से नही मालूम था के अब वो क्या करेगी और कहाँ जाएगी पर ये ज़रूर जानती थी के ये दुनिया बहुत बड़ी है और जहाँ मन मे चाह हो वहाँ राह मिल ही जाती है......