Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

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007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 20 Dec 2014 15:38

राज भाई जब तक रिस्पोन्स नही मिलता लिखने को मन नही करता हाँ ये वादा है जो मेरी अधूरी स्टोरी हैं उन्हे ज़रूर पूरा करूँगा

raj..
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by raj.. » 20 Dec 2014 15:45

दोस्त आज से मेरा वादा है मैं आपकी हर पोस्ट पर कमेंट दूँगा

007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 21 Dec 2014 15:55

चेतावनी ........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है



दोस्तो ये एक पुरानी कहानी है इसे मैने हिन्दी फ़ॉन्ट मे कॅन्वेर्ट किया है उम्मीद करता हूँ ये कहानी आपको पसंद आएगी
कहानी किसने लिखी है ये तो मैं नही जानता पर इस कहानी का क्रेडिट इस कहानी के रायटर को जाता है



बहन की इच्छा--1


जब में**** साल का था तब से मेरे मन में लड़कियो के बारे में लैंगिक आकर्षण चालू हुआ था. में हमेशा लड़'की और सेक्स के बारे में सोचने लगा. 18/19 साल के लडके के अंदर सेक्स के बारे में जो जिग्यासा होती है और उसे जान'ने के लिए वो जो भी करता है वह सब में कर'ने लगा. मिसाल के तौर पर, लड़कियों और औरतों को चुपके से निहारना, उनके गदराए अंगो को देख'ने के लिए छटपटाना. उनके पह'ने हुए कपडो के अंदर के अंतर्वस्त्रों के रंग और पैटर्न जान'ने की कोशिस कर'ना. चुपके से वयस्कों की फिल्में देख'ना, ब्लू-फिल्म देख'ना. अश्लील कहानियाँ पढ़ना वग़ैरा वग़ैरा. धीरे धीरे मेरे संपर्क में रह'नेवाली और मेरे नज़र में आनेवाली सभी लड़कियों और औरतों के बारे में मेरे मन में काम लालसा जाग'ने लगी. में स्कूल की मेरे से बड़ी लड़कियों, चिक'नी और सुंदर मेंडम, रास्ते पे जा रही लड़कियों और औरतें, हमारे अडोस पडोस में रहेनेवाली लड़कियों और औरतें इन सब की तरफ काम वासना से देख'ने लगा. यहाँ तक कि मेरे रिश्तेदारी की कुच्छ लड़कियों और औरतों को भी में काम वासना से देख'ने लगा था. एक बार मेने अप'नी सग़ी बड़ी बहन को कपड़े बदलते सम'य ब्रेसीयर और पैंटी में देखा. जो मेने देखा उस'ने मेरे दिल में घर कर लिया और में काफ़ी उत्तेजित भी हुआ. पह'ले तो मुझे शरम आई के अप'नी सग़ी बहन को भी में वासना भरी निगाहा से देखता हूँ. लेकिन उसे वैसे अधनन्गी अवस्था में देख'कर मेरे बदन में जो काम लहरे उठी थी और में जितना उत्तेजीत हुआ था वैसा मुझे पह'ले कभी महसूस नही हुआ था. बाद में में अप'नी बाहें को अलग ही निगाह से देख'ने लगा. मुझे एक बार चुदाई की कहानियो की एक हिन्दी की किताब मिली . उस किताब में कुच्छ कहा'नियाँ ऐसी थी जिनमें नज़दीकी रिश्तेदारो के लैंगिक संबंधो के बारे में लिखा था. जिनमें भाई-बहेन के चुदाइ की कह'नी भी थी जिसे पढ़ते सम'य बार बार मेरे दिल में मेरी बहेन, ऊर्मि दीदी का ख़याल आ रहा था और में बहुत ही उत्तेजीत हुआ था. वो कहा'नियाँ पढके मुझे थोड़ी तसल्ली हुई कि इस तरह के नाजायज़ संबंध इस दुनीया में है और में ही अकेला ऐसा नही हूँ जिसके मन में अप'नी बहन के बारे में कामवसना है. मेरी बहेन, ऊर्मि दीदी, मेरे से 8 साल बड़ी थी. में जब 16 साल का था तब वो 24 साल की थी. उस'का एकलौता भाई होने की वजह से वह मुझे बहुत प्यार करती थी. काफ़ी बार वो मुझे प्यार से अप'नी बाँहों में भरती थी, मेरे गाल की पप्पी लेती थी. में तो उस की आँख का तारा था. हम एक साथ खेल'ते थे, हंस'ते थे, मज़ा कर'ते थे. हम एक दूसरे के काफ़ी करीब थे. हम दोनो भाई-बहेन थे लेकिन ज़्यादातर हम दोस्तों जैसे रहते थे. हमारे बीच भाई-बहेन के नाते से ज़्यादा दोस्ती का नाता था और हम एक दूसरे को वैसे बोलते भी थे. ऊर्मि दीदी साधारण मिडल-क्लास लड़कियो जैसी लेकिन आकर्षक चेहरेवाली थी. उस'की फिगर 'सेक्ष्बम्ब' वग़ैरा नही थी लेकिन सही थी. उस'के बदन पर सही जगह 'उठान' और 'गहराइया' थी. उस'का बदन ऐसा था जो मुझे बेहद पागल करता था और हर रोज मुझे मूठ मार'ने के लिए मजबूर करता था. घर में रहते सम'य उसे पता चले बिना उसे वासना भरी निगाहा से निहार'ने का मौका मुझे हमेशा मिलता था. उस'के साथ जो मेरे दोस्ताना ताल्लूकात थे जिस'की वजह से जब वो मुझे बाँहों में भरती थी तब उस'की गदराई छाती का स्पर्श मुझे हमेशा होता था. हम कही खड़े होते थे तो वो मुझ से सट के खडी रहती थी, जिस'से उस'के भरे हुए चुत्तऱ और बाकी नज़ूक अंगो का स्पर्श मुझे होता था और उस'से में उत्तेजीत होता था. इस तरह से ऊर्मि दीदी के बारे में मेरा लैंगिक आकर्षण बढत ही जा रहा था. ऊर्मि दीदी के लिए में उस'का नट'खट छोट भाई था. वो मुझे हमेशा छोट बच्चा ही समझती थी और पहलेसे मेरे साम'ने ही कपड़े वग़ैरा बदलती थी. पह'ले मुझे उस बारे में कभी कुच्छ लगता नही था और में कभी उस'की तरफ ध्यान भी नही देता था. लेकिन जब से मेरे मन में उस'के प्रति काम वासना जाग उठी तब से वो मेरी बड़ी बहेन ना रहके मेरी 'काम'देवी' बन गयी थी. अब जब वो मेरे साम'ने कपड़े बदलती थी तब में उसे चुपके से कामूक निगाह से देखता था और उस'के अधनन्गे बदन को देख'ने के लिए छटपटाता था. जब वो मेरे साम'ने कपड़े बदलती थी तब में उस'के साथ कुच्छ ना कुच्छ बोलता रहता था जिस'की वजह से बोलते सम'य में उस'की तरफ देख सकता था और उस'की ब्रा में कसी गदराई छाती को देखता था. कभी कभी वो मुझे उस'की पीठ'पर अप'ने ड्रेस की झीप लगाने के लिए कहती थी तो कभी अप'ने ब्लाउस के बटन लगाने के लिए बोलती थी. उस'की जिप या बटन लगाते सम'य उस'की खुली पीठ'पर मुझे उस'की ब्रा की पत्तियां दिखती थी. कभी सलवार या पेटीकोट पहनते सम'य मुझे ऊर्मि दीदी की पैंटी दिखती थी तो कभी कभी पैंटी में भरे हुए उस'के चुत्तऱ दिखाई देते थे. उस'के ध्यान में ये कभी नही आया के उस'का छोट भाई उस'की तरफ गंदी निगाह से देख रहा है.

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