रेल यात्रा compleet

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raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:38


मोटी जांघों वाली को उसने पतली टांगों वाली के मुंह के ऊपर बैठा दिया।
पतली टांगों वाली की छातियों के पास घुटने रखवाकर! कविता के पैर रानी के
पैरों तले दबकर वही जम गए। उसके चूतड़ ऊपर उठे हुए थे। चूत को पूरा खोले
हुए। रानी की मांसल जांघें कविता के चेहरे के दोनों तरफ थी। और रानी की
चूत कविता के मुंह के ऊपर!।.....आशीष एक पल को देखता रहा। उसकी कलाकारी
में कहाँ कमी रह गयी और फिर मोटी फ़ांको वाली चूत का जूस निकलने लगा! अपनी
जीभ से। सीधा कर्रेंट कविता के दिमाग तक गया। वो मचल उठी और रानी की छोटी
सी चूत से बदला लेने लगी। उसकी जीभ कविता की चूत में आग लगा रही थी और
कविता की जीभ रानी को चोदने योग्य बना रही थी।

रानी में तूफ़ान सा आ गया और वो भी बदला लेने लगी। कविता की चूचियों को मसल मसल कर।
अब आशीष ने कविता की चूत को अपने लंड से खोदने लगा। खोदना इसीलिए कह रहा
हूँ क्यूंकि वो खोद ही रहा था। ऊपर से नीचे। चूत का मुंह ऊपर जो था।
जितना अधिक मजा कविता को आता गया उतना ही मजा वो रानी को देती गयी। अपनी
जीभ से चोद कर।
अब रानी आशीष के सर को पकड़ कर अपने पास लायी और अपनी जीभ आशीष के मुंह में दे दी।
आशीष कविता को खोद रहा था। कविता रानी को चोद रही थी...(जीभ से ) और रानी
आशीष को चूस रही थी! सबका सब कुछ व्यस्त था। कुछ भी शांत नहीं था।
आशीष ने खोदते-खोदते अपना खोदना उसकी चूत से निकाल और खड़ा होकर रानी के
मुंह में फंसा दिया। अब रानी के दो छेद व्यस्त थे।
ऐसे ही तीन चार बार निकाला-चूसाया फ़िर आशीष ने कविता की गांड के छेद पर
थूका और उसमें अपना लंड फंसने लगा। 1...2...3....4... आशीष धक्के मारता
गया। लंड हर बार थोडा थोडा सरकता गया और आखिर में आशीष के गोलों ने कविता
के चुताड़ों पर दस्तक दी। कुछ देर बर्दास्त करने के बाद अब कविता को भी
दिक्कत नहीं हो रही थी। आशीष ने
रानी को कविता की चूत पर झुका दिया। वो जीभ से उसकी चूत के आस पास चाटने
लगी। अब सबको मजा आ रहा था।
अचानक रानी की चूत ने रस छोड़ दिया। कविता के मुंह पर। ज्यादातर कविता के
मुंह में ही गया। और कविता की चूत भी तर हो गयी।
अब रानी की बारी थी। वो तैयार भी थी दर्द सहन करने को। आशीष ने सबका आसन
बदल दिया। अब कविता की जगह रानी थी और रानी की जगह कविता!

आशीष ने रानी की चूत पर गौर किया। वो सच में ही छोटी थी। उसके लंड के
लिए। पर एक न एक दिन तो इसको बड़ा होना ही है। तो आज ही क्यूँ नहीं!
आशीष ने पहले से ही गीली रानी की चूत पर थोडा थूक लगाया और उसपर अपना लंड
रखकर धीरे धीरे बैठने लगा। जैसे कविता की गांड में बैठा था।
1...2...3...4.. और दर्द में बिलखती रानी ने कविता की चूत को काट खाया।
कविता की चूत से काटने की वजह से खून बहने लगा और रानी की चूत से झिल्ली
फटने से खून बहने लगा। दोनों दर्द से दोहरी होती गयी।!
झटके लगते रहे। फिर मजा आने लगा और जैसे ही रानी का मजा दोबारा पूरा हुआ।
आशीष ने उसकी चूत के रस को वापस ही भेज दिया। अन्दर। अपने लंड से पिचकारी
मारकर। योनी रस की!
तीनों बेड पर अलग अलग बिखर गए। रानी भी औरत बन गयी।

ऐसा करके आशीष को एक बात तो पक्का हो गयी। जब कविता की चूचियों में दूध
नहीं है। तो वो माँ नहीं हो सकती एक साल के बच्चे की!

उधर बुढ़े ने कमरे का एक-एक कोना छान मारा। पर उसे उन पैसों का कोई सुराग
नहीं मिला। जिनके बारे में आशीष बार- बार कह रहा था कि पैसे बहुत हैं। थक
हार कर मन मसोस कर वो बिस्टर पर लेट गया और आशीष के बहार आने का इंतज़ार
करने लगा।

आशीष को याद आया उसको आरक्षण भी कराना है। तीन और टिकटों का।

वह बहार निकाल गया। रेलवे स्टेशन पर।

raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:39



उसने तीन ही बजे चार नयी सीट अरक्षित करा ली। उसको उनके साथ वाली सीट ही चाहिए थी।

उधर आशीष के जाते ही कविता दूसरे कमरे में गयी।

"बापू! कुछ मिला?"

"कहाँ कविता।! मैंने तो हर जगह देख लिया।"

"कहीं उसके पर्स में न हों "

रानी भी आ गयी!

"तू पागल है क्या? भला पर्स में इतने रुपैये होते है।" बूढ़े ने कहा

"तो फिर चलें। कविता ने कहा। "वो तो बहार गया है "

बूढ़ा- क्या जल्दी है। आरक्षण वाला सफ़र करके भी देख लेंगें शायद वहां कुछ
बात बन जाये। उसने कुछ किया तो नहीं!

कविता- किया नहीं? ये देखो क्या बना दिया। मेरी चूत और गांड का।

कविता ने अपनी सलवार खोल कर दिखा दी। "चल रानी। तू भी दिखा दे!"

रानी ने कुछ नहीं दिखाया। वो चुपचाप सुनती रही।

कविता- ओहो! वहां तो बड़ी खुश होकर चुद रही थी। तुझे भी बडे लंडों का शौक है!

तीनों इक्कठे ही बैठे थे। जब आशीष आरक्षण कराकर अन्दर आया। आशीष को देखते
ही कविता ने अपना पल्लू ठीक किया।

आशीष- ट्रेन 9:00 बजे की है। कुछ देर सो लो फिर खाना खाकर चलते हैं!
और आशीष के इशारा करते ही, वो तीनो वहां से उठ कर जाने लगे। तो आशीष ने
सबसे पीछे जा रही रानी का हाथ पकड़ कर खीच लिया।

रानी- मुझे जाने दो!

आशीष (दरवाजा बंद करते हुए)- "क्यूँ जाने दू मेरी रानी?"

रानी- तुम फिर से मेरी चूत मरोगे!

आशीष- तो तुम्हारा दिल नहीं करता?

रानी- नहीं, चूत में दर्द हो रहा है। बहुत ज्यादा। मुझे जाने दो न।

आशीष ने उसको छोड़ दिया। जाते हुए देखकर वो उसको बोला-- "तुम इन कपड़ों में
बहुत सुन्दर लग रही हो।"

रानी हंसने लगी। और दरवाजा खोलकर चली गयी!

दूसरे कमरे में जाते ही बूढ़े ने रानी को डाँटा- "तुमने उस लौंडे को कुछ
बताया तो नहीं?"

रानी डर गयी पर बोली- "नहीं मैंने तो कुछ नहीं बताया।"

कविता- रानी, राजकुमार को तो तुमने हाथ भी नहीं लगाने दिया था। इससे कैसे
करवा लिया?

रानी कुछ न बोली। वो कविता की बराबर में जाकर लेट गयी।

बूढ़े ने पूछा- "रानी! तुमने उसके पास पैसे-वैसे देखे हैं।

रानी- हाँ! पैसे तो बहुत हैं। वो एक कमरे में गया था और वहां से पैसे
लाया था बहुत सारे!

बूढ़ा- कमरे से? कौन से कमरे से?

रानी- उधर। मार्केट से
बूढ़ा- साला ATM में पैसे हैं इसके। ऐसा करो कविता! तुम इसको अपने जाल में
फांस कर अपने गाँव में ले चलो। वहां इससे ATM भी छीन लेंगे और उसका वो
कोड। भी पूछ लेंगे जिसके भरने के बाद पैसे निकलते हैं।
कविता का उससे फिर से अपनी गांड चुदवाने का दिल कर रहा था। बड़ा मजा आया
था उसको। पैसों में तो उसको बूढ़े ही ज्यादा लेकर जाते थे- "मैं अभी
जाऊं।। फंसने!"

बूढ़ा- ज्यादा जल्दी मत किया करो। अगर उसका मन तुमसे भर गया तो। फिर नहीं चलेगा वो!

कविता- तो फिर ये है न। बड़ी मस्त होकर फढ़वा रही थी उससे!

रानी- नहीं मैं नहीं करुँगी। मेरी तो दुःख रही है अभी तक।

बूढ़ा- तो अभी सो जाओ। रेलगाड़ी में ही करना। अब काम। उसके साथ ही बैठ
जाना। और तीनो लेट गए।

raj..
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Re: रेल यात्रा

Unread post by raj.. » 13 Oct 2014 21:40



ठीक 9:00 बजे राजधानी एक्सप्रेस स्टेशन पर आई। जब आशीष ने उनको एक डिब्बा
दिखाया तो बूढ़ा भाग कर उसमें चढ़ने की कोशिश करने लगा और उसके पीछे ही वो
दोनों भी भाग ली। उनको लगा जैसे पीछे रह गए तो सीट नहीं मिलेगी। तभी बूढ़ा
खड़ा होकर हंसने लगा- "अरे आरक्षण में भी कोई भाग कर चढ़ता है। यहाँ तो सीट
मिलनी ही मिलनी है, चाहे सबसे बाद में चढो!

आशीष हंसने लगा।
चारों ट्रेन में चढ़े। आशीष अपनी सीट देखकर ऊपर जा बैठा। तो पीछे-पीछे ही
वो भी उसी बर्थ पर चढ़ गए।
आशीष- क्या हो गया ताऊ? अपनी सीट पर जाओ न नीचे!
ताऊ- तो ये अपनी सीट नहीं है क्या?
आशीष उनकी बात समझ गया!- "ताऊ, सबकी अलग अलग सीट हैं। ये चारों सीटें अपनी ही हैं।

ताऊ- अच्छा बेटा, मैं तो आरक्षण में कभी बैठा ही नहीं हूँ। गलती हो गयी!
कहकर ताऊ नीचे उतर गया। रानी भी। और कविता सामने वाली बर्थ पर ऊपर जा
बैठी। बूढ़ा आशीष के ठीक नीचे था! और रानी नीचे के सामने वाले सीट पर।
उनको इस तरह करते हुए देख एक नकचढ़ी लड़की बोली- "कभी बैठे नहीं हो क्या
ट्रेन में?" कहकर वो हंसने लगी। बड़ी घमंडी सी मालूम होती थी और बड़े घर
की भी।
आशीष ने उस पर गौर किया। 22-23 साल की गोरी सी लड़की थी कोई। आशीष को
सिर्फ उसका चेहरा दिखाई दिया। वो लेटी हुयी थी।

उसकी बात सुनकर कविता तुनक कर लड़ाई के मूड में आ गयी- "तुमको क्या है? हम
जहाँ चाहेंगे वहां बैठेंगे। चारो सीटें हमारी हैं। बड़ी आई है!"
इस बात पर उस लड़की को भी गुस्सा आ गया- "हे स्टुपिड विलेजर। जस्ट बी इन
लिमिट। डोन्ट ट्राई टू मैस विद मी!
कविता- अरे क्या बक बक कर रही है तू। तेरी माँ होगी स्टूपिड! कविता को बस
स्टूपिड ही समझ में आया था और उसको पता था ये एक गली होती है।

उस लड़की ने बात बिगड़ते देख आशीष को कहा- "ए मिस्टर! जस्ट शट उप यूर पेट्स
और इ विल...
आशीष- सॉरी म़ा 'म मैं।

"इ 'ऍम नोट a म़ा 'म, यू नो! माय नेम इज मिस शीतल! "

आशीष- सॉरी मिस शीतल! माई नेम इज आशीष!

शीतल- आई हव नो एनी बिज़नस विद योर नेम एंड फेम। जस्ट स्टॉप दा बास्टर्ड(हरामी)!

आशीष को लगा बड़ी तीखी है साली। पर उसने कविता को शांत कर दिया।

इतने में ही एक भाई साहब जो उसके बराबर वाली सीट पर बैठे थे, उन्होंने सर
निकाल कर कहा।- "भैया! खुली हुयी गधी के पीछे नहीं जाते। लात मार देती
है।"

उस शीतल को उसकी कहावत समझ नहीं आई पर आशीष उसकी बात सुनकर जोर-जोर से हंसने लगा।

इससे शीतल की समझ में आ गया की उसने उसी को गधी कहा है और वो उसी से उलझ
पड़ी।- "हाउ डेयर यू टू कॉल। "

पर उस आदमी की हिम्मत गजब की थी। उसने शीतल को बीच में ही रोक कर अपनी
सुनानी शुरू कर दी- "ए! आई डोन्ट केयर! फ़किंग द गर्ल्स इज माई बिज़नेस।
O.k. माई नेम इज संजय राजपूत। अरे गाँव वाले बेचारे क्या इन्सान नहीं
होते। तुझे शर्म नहीं आई उन पर हँसते हुए। यु आर इवेन मोर इलिट्रेट दैन
दे आर। डर्टी बिच!"

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