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007
- Platinum Member
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- Joined: 14 Oct 2014 17:28
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by 007 » 26 Dec 2014 18:58
Jemsbond wrote:5
"क्या....? ठाकुर साहब हैरान होते हुए बोले - "पहनने के लिए कपड़े नही हैं. तो क्या महाशय घर से नंगे पुँगे ही आए हैं?
"जी...नही." ये आवाज़ सीढ़ियों की ओर से आई थी. ठाकुर साहब के साथ सबकी नज़रें उस ओर घूमी. रवि सीढ़ियाँ उतरता हुआ दिखाई दिया. उसके बदन पर दीवान जी के कपड़े थे. उनके कपड़ों में रवि किसी कार्टून की तरह लग रहा था. उसे देखकर एक बार निक्की के मूह से भी हँसी छूट पड़ी. वहीं ठाकुर साहब अपनी बातों पर झेंप से गये. उन्हे बिल्कुल भी अंदाज़ा नही था कि उनकी बातें रवि के कानो तक जा सकती है.
कॉन्टिन्यू............................................
दोस्त कहानी बहुत अच्छी है
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Jemsbond
- Silver Member
- Posts: 436
- Joined: 18 Dec 2014 12:09
Unread post
by Jemsbond » 27 Dec 2014 18:27
अपडेट 6
"माफ़ कीजिएगा डॉक्टर....असल में हम काफ़ी देर से आपका इंतेज़ार कर रहे थे. आपके नीचे ना आने की वजह से हम परेशान हो रहे थे." ठाकुर साहब अपनी झेंप मिटाते हुए बोले -"वैसे आपके कपड़ों को क्या हुआ? दीवान जी कह रहे थे कि आपके पास कपड़े नही हैं."
"दर-असल रास्ते में आते वक़्त मेरे साथ एक दुर्घटना घट गयी." रवि ठाकुर साहब को देखता हुआ बोला -"मुझसे रास्ते में एक जंगली बिल्ली टकरा गयी. उसी के कारण मैं अपना संतुलन खो बैठा और मेरी गाड़ी एक पत्थेर से टकरा गयी. मेरा सूटकेस खुलकर सड़क पर बिखर गया और मेरे सारे कपड़े खराब हो गये. यहाँ आने के बाद मैने एक महाशय को कपड़े इस्त्री करने को दिया तो वो साहब कपड़े लेकर गायब हो गये. लगभग एक घंटे बाद कोई नौकरानी मेरे कपड़ों को लेकर आई. जब मैने कपड़े पहनने के लिए उठाया तो देखा मेरे सारे कपड़े जले हुए हैं." रवि ने अपनी बात पूरी की.
"किसी नौकरानी ने आपके कपड़े जलाए हैं?" ठाकुर साहब आश्चर्य से बोले - "लेकिन हवेली में तो एक ही नौकरानी है. और वो बहुत सालो से हमारे यहाँ काम कर रही है. वो ऐसा नही कर सकती. खैर जो भी हो हम पता लगाएँगे. फिलहाल आपको जो कष्ट हुआ उसके लिए हम माफी चाहते हैं." ठाकुर साहब नम्र स्वर में बोले.
"आप मुझसे बड़े हैं ठाकुर साहब," रवि ठाकुर साहब से बोला फिर अपनी दृष्टि निक्की पर डाली - "आपको मुझसे माफी माँगने की ज़रूरत नही. जिसने मेरे साथ ये मज़ाक किया है उससे मैं खुद निपट लूँगा."
उसकी बातों से निक्की का चेहरा सख़्त हो उठा. वो लाल लाल आँखों से रवि को घूर्ने लगी. लेकिन रवि उसकी परवाह किए बिना ठाकुर साहब से मुखातिब हुआ - "मैं आपकी पत्नी राधा देवी को देखना चाहता हूँ. मुझे उनका कमरा दिखाइए."
"आइए." ठाकुर साहब बोले. और रवि को लेकर राधा देवी के कमरे की ओर बढ़ गये. उनके पिछे निक्की और दीवान जी भी थे.
ठाकुर साहब राधा देवी के कमरे के बाहर रुके. दरवाज़े पर लॉक लगा हुआ था. उनका कमरा हमेशा बंद ही रहता था. उनका कमरा दिन में एक बार उन्हे खाना पहुँचाने हेतु खोला जाता था. और ये काम घर की एकमात्र नौकरानी धनिया के ज़िम्मे था. उसके अतिरिक्त किसी को भी इस कमरे में आने की इज़ाज़त नही थी. वही उनके लिए खाना और कपड़ा पहुँचाया करती थी. हवेली में वही एक ऐसी सदस्य थी जिसे देखकर राधा देवी को दौरे नही पड़ते थे. वो पागलो जैसी हरकत नही करती थी. वो बिल्कुल सामान्य रहती थी. धनिया ना केवल उन्हे खाना खिलाती थी बल्कि उन्हे बहला फुसलाकर नहलाती भी थी उसके कपड़े भी बदलती थी. हालाँकि इसके लिए उसे काफ़ी मेहनत करनी पड़ती थी.
नौकर दरवाज़े का ताला खोल चुका था. रवि ठाकुर साहब से बोला - "आप लोग बाहर ही रुकिये. जब मैं बोलू तभी आप लोग अंदर आईएगा."
ठाकुर साहब ने सहमति में सर हिलाया. निक्की के दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी. उसे अपनी मा को देखे हुए एक अरसा बीत गया था. उसे तो अब उनकी सूरत तक याद नही थी. वो अपनी मा को देखने के लिए बहुत बेचैन थी.
रवि अंदर पहुँचा. उसकी दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी. किंतु चेहरा शांत था. दिमाग़ पूरी तरह खाली था. उसने राधा देवी की तलाश में अपनी नज़रें दौड़ाई. राधा देवी अपने बिस्तर पर एक ओर करवट लिए लेटी हुई नज़र आईं. उनकी पीठ रवि की तरफ थी. कहना मुश्किल था कि वो जाग रही थी या सो रही थी.
रवि ने धड़कते दिल के साथ उनकी ओर अपने कदम बढ़ाया. उसके कदमों की आहट से राधा पलटी. उसकी गोद में वही कपड़े की गुड़िया थी. रवि को देखते ही राधा देवी झट से उठ खड़ी हुई. राधा देवी अपनी बड़ी बड़ी आँखों से रवि को घूर्ने लगी. अगले ही पल उनकी आँखों में भय उतरा. राधा देवी ने अपने हाथ में थमी गुड़िया को अपनी छाते से भींचा. रवि शांत था वो उनकी हर गतिविधि को बड़े ही ध्यान से देख रहा था. वह समझ चुका था कि उसे देखकर राधा देवी डर गयी है. वह अपने हाथ जोड़ते हुए उनके आगे झुका. उसका अंदाज़ ठीक वैसा ही था जैसे राजा महाराजा के सामने लोग झुक कर सलाम करते हैं - "नमस्ते मा जी."
राधा की आँखें सिकुड़ी. उन्होने आश्चर्य और भय के मिले जुले भाव से रवि को देखा. फिर उनके हाथ भी नमस्ते करने के अंदाज़ में जुड़ गये - "नमस्ते" वह सहमी सी बोली. उनकी आवाज़ में कंपन था - "कौन हैं आप? क्या आप मुझे जानते हैं?"
"हां." वा शांत स्वर में बोला - "मेरा नाम डॉक्टर. रवि भटनागर है. मुझे आपकी बेटी निक्की ने यहाँ भेजा है. आपसे अपनी शादी की बात करने के लिए."
"निक्की....कौन निक्की?" वह चौंकी. फिर अपनी गुड़िया को देखते हुए बोली - "मेरी बेटी का नाम निक्की नही....रानी है. और ये तो अभी बहुत छ्होटी है."
रवि धीरे से मुस्कुराया और दो कदम आगे बढ़ा. - "आपके हाथ में निक्की की गुड़िया है. निक्की तो बाहर खड़ी है. और वो बहुत बड़ी हो गयी है."
राधा देवी ने गर्दन उठाकर दरवाज़े से बाहर देखा. वहाँ कोई नज़र नही आया. उनकी दृष्टि रवि की ओर घूमी. रवि उनके चेहरे पर बदलते भाव को तेज़ी से पढ़ रहा था. उनकी आँखों में अब डर की जगह आश्चर्य और परेशानी ने ले ली थी. - "क्या आप निक्की से मिलना चाहेंगी?"
राधा देवी ने धीरे से हां में सर हिलाया. रवि मुस्कुराया और निक्की को आवाज़ दिया. - "निक्की....अंदर आ जाओ."
राधा देवी की नज़रें दरवाज़े की तरफ ठहर गयी. तभी निक्की दरवाज़े में नज़र आई. वो धीरे धीरे चलती हुई रवि के पास आकर खड़ी हो गयी. उसने बोझिल नज़रों से अपनी मा को देखा. दिल में एक हुक सी उठी, मन किया आगे बढ़कर वो उनसे लिपट जाए. लेकिन वो रवि के आदेश के बिना कुच्छ भी ऐसा वैसा नही करना चाहती थी जिससे कि बना बनाया काम बिगड़ जाए.
राधा भी बहुत ध्यान से निक्की को देख रही थी, उसके माथे पर सिलवटें पड़ गयी थी. वो निक्की को पहचानने की कोशिश कर रही थी. - "मुझे कुच्छ भी याद नही आ रहा है. मैने तुम्हे पहले कभी नही देखा. क्या तुम सच में मेरी बेटी निक्की हो?"
"मा !" निक्की की रुलाई फुट पड़ी. ममता की प्यासी निक्की खुद को रोक ना सकी वह आगे बढ़ी और राधा से लिपट गयी.
"अरे क्या हुआ इसे? ये क्यों रो रही है?" राधा घबराते हुए बोली.
"बहुत दिनो तक आपसे दूर रही थी ना, आज मिली है तो बहुत भावुक हो गयी है." रवि राधा देवी से बोला.
राधा निक्की को दिलासा देने लगी. वह अपने कमज़ोर हाथों को उसके पीठ पर फेरने लगी. दूसरे हाथ से निक्की के गालों में बहते आँसू पोच्छने लगी. - "मत रो बेटी, लेकिन तू मुझसे इतने दिन तक दूर क्यों रही. अगर मेरी इतनी ही याद आती थी तो पहले ही मिलने क्यों नही आई?"
"मैं शहर में पढ़ाई कर रही थी मा. इसलिए आपसे मिलने नही आ सकी." निक्की खुद को संयत करते हुए बोली.
"क्या तुम दोनो साथ ही में पढ़ते हो?" राधा निक्की का चेहरा उठाकर बोली.
"पढ़ते थे." रवि बोला - "अब हमारी पढ़ाई पूरी हो चुकी है. अब हम आपका आशीर्वाद लेकर शादी करना चाहते हैं. क्या आप निक्की का हाथ मेरे हाथ में देंगी?"
"हां...हां क्यों नही, आख़िर तुम दोनो एक दूसरे से प्यार करते हो. मैं तो तुम्हारे जैसा ही दूल्हा अपनी बेटी के लिए चाहती थी. लेकिन बेटा शादी की बात करने के लिए तुम्हारे घर से कोई बड़ा नही आया. क्या तुम्हारे घर में कोई नही है?" राधा देवी ने रवि से पुछा. वो अब पूरी तरह से नॉर्मल होकर बात कर रही थी. निक्की अभी भी उनसे चिपकी हुई थी.
रवि आगे बढ़ा. और राधा से बोला - "मेरी मा है मा जी, लेकिन उनकी तबीयत कुच्छ ठीक नही थी इसीलिए वो नही आ सकी. कुच्छ ही दिनो में मा भी आ जाएँगी."
"ठीक है कुच्छ दिन इंतेज़ार कर लूँगी. मैं भी जल्दी से निक्की का विवाह करके छुट्टी पाना चाहती हूँ."
"तो अब हमें इज़ाज़त दीजिए." रवि बोला - "हम फिर आपसे मिलने आएँगे. आप आराम कीजिए. हम लोग दूसरे कमरे में हैं. आपको कभी भी हमारी ज़रूरत हो बुला लीजिएगा."
"हां...हां जाओ आराम करो. तुम लोग भी दूर शहर से आए हो थक गये होगे." राधा बोली और निक्की के सर पर हाथ फेरने लगी.
रवि उन्हे फिर से नमस्ते बोलकर निक्की के साथ बाहर आ गया.