खानदानी चुदाई का सिलसिला

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rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 07:58

Hum 4 bhaion men se main sabse chhota tha. Meri umar us samay 10 saal ki thi jab Bade bhaiya ki shaadi hui. Main un dino shehr men padai kar raha tha. Didi ki tab shaadi ho chuki thi. Ghar men bade bhaiya, bhabhi, majhle dono bhai aur hamare 2 chacha / chachi (unme se kaun kiske pita the pata nahi) rehte the. Jab Bhabhi ko 2 saal tak koi bachcha nahi hua to Bade bhaiya ne dono Chacha se nivedan kia ki woh apni bahu ko bachhe ka sukh den. par sath hi sath dono chhote bhai bhi koshish karte rahe. Phir sabse pehle Raju ka janam hua. Tab majhle bhaiya ki bhi shaadi ho gai. Meri umar un dino 13 saal ki thi uske aur 2 saal ke baad majhli bhabhi se Sujit ka janam hua. Tab main 15 saal ka ho chuka tha. Main bhi kuchch samay ke lie gaanv chala gaya. Tab mujhe pehli baar apni dono bhabhion ke sath sone ka mauka mila. Uske baad Sanjay ka janam hua. Ab tum teeno ko ye to pata hai ki main tumhara Pita nahi hoon par shayad main Sanjay ka pita ho sakta hoon aur shayad nahi bhi. Tum teeno ke asli pita kaun hain ye kisi ko bhi nahi pata.

Uska main kaaran hai ki jab Badi bhabhi ko sabse pehle Chacha logon ke sath sona tha tab se Bade bhaiya ne ye reet banai ki ek raat men woh kisi ek ke sath nahi soengi. Kam se kam 2 mard ek sath honge. Iski wajah thi ki khaandaan men kabhi kisi ko ye na pata chale ki hone wla bachha hum logon ka bhai hai ya hamari aulaad. Islie hamesha kisi na kisi chacha ke sath koi na koi bhai zaroor hota tha. kabhi kabhi to 3 log ek sath hote the.

Ab iss hisaab se tm mere bhai bhi ho sakte ho aur mere bhatije bhi. Choonki meri khud ki shaadi kabhi nahi hui islie main sirf Sanajy ka pita ho sakta hoon.

Babuji ke muh se ye sab sunke sab stabhd reh gae. Sabke chehre ke rang udd chuke the. 3 bhaion ke ye to pata tha ki Babuji unke pita nahi hain chacha hain par jaisa ki unke ghar ka niyam banaya gaya tha ki har kisi ko Babuji kaha jaata tha. Ye wajah unhe aaj samjh aai.

'' Mere bachhon ye bahuon ke sath sone ka riwaaj aur bhaionka aapas men ek doosre ki biwion ko bantna hamare khaandaan men 3 peedi se chala aa raha hai. Tum log ab aakhiri peedi ho jis pe ye shraap hai uske baad sab normal ho jaega. maine soch rakha tha ki jab tak tum teeno ki shaadi nahi ho jaati tab tak ye baat tum logon se chhuppa ke rakhunga. Mere man men bas ek hi cheez thi ki tum log aapas men ek sath raho aur miljul ke chalo. Ye baat ab main garv se keh sakta hoon ki hum sab ek bada achcha parivaar hain. Aur mujhe umeed hai ki aage bhi aise hi rahenge.''
kramashah..............................

rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 07:59

खानदानी चुदाई का सिलसिला--3

गतान्क से आगे..............
ये कह के बाबूजी चुप हो गए और सबको देखने लगे. सबके चेहरों पे हैरानी के भाव थे. संजय और राजू चुप चाप से अपने रूम में चले गए. मिन्नी और राखी किचन की तरफ बढ़ चली. सखी और सुजीत कमरे में बैठे गहरी सोच में डूबे हुए थे.

करीब एक घंटे तक घर में शांति छाई रही. कोई कुच्छ खास बात करने के मूड में नही था. पर सखी को ये सब हजम नही हो रहा था सो उससे रुका नही गया. उसने सबको एक के बाद एक ड्रॉयिंग रूम में वापिस बुला लिया. तब तक बाबूजी अपना दूसरा पेग ले रहे थे. जब सब एक साथ बैठ गए तो सखी ने सबको संबोधित किया.

'' मैं आज आप लोगों से कुच्छ कहना चाहती हूँ. आज जो बात बाबूजी ने बताई है ये सब सुन के मैं बहुत खुश हूँ कि मैं इस परिवार में आई. ये सच्चाई जान लेने के बाद मुझे अपने परिवार पे गर्व महसूस हो रहा है क्योंकि यही एक ऐसा परिवार है जिसमे रिश्ते आपस में इतने मिले जुले हैं कि प्यार के अलावा किसी चीज़ की गुंजाइश नही. मुझे बाबूजी को थॅंक्स कहना है कि उन्होने मुझे अपने इस परिवार के काबिल समझा जहाँ के 3नो पुत्र इतने अच्छे हैं. मुझे अपने दोनो बड़े भैया और पति को देख के अच्छा महसूस होता है कि उनकी परवरिश एक संयुक्त परिवार में इतनी अच्छी हुई है कि आज के ज़माने में भी वो एक साथ एक छत के नीचे इतने प्यार से रहते हैं. और आने वाले समय में मैं यही चाहूँगी कि मेरी कोख से जन्मी हुई संतान चाहे किसी की भी हो पर उसे ये भरपूरा परिवार मिलेगा और उसे कभी प्यार से वंचित नही रहना परेगा....थॅंक यू बाबूजी'' और ये कहते कहते उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे.

मिन्नी ने तुरंत ही उसे अपने गले से लगा लिया और अपनी साड़ी से उसका चेहरा पोंच्छने लगी. बाबूजी का भी गला रुंध गया और वो चुप चाप अपने ग्लास की तरफ देखने लगे. उनकी आँखों में भी नमी थी. उसकी वजह थी कि उनको ये आत्म्गलानि हो रही थी उन्होने 3नो बहुओं को ये राज शादी से पहले नही बताया कि उनके अपने पति उन्हे मा नही बना सकते पर इस बात में उनका स्वार्थ था क्योंकि उन्हे पता था कि अगर ये बात उनके सम्धिओ को पता चल जाती तो उनके 3नो लड़कों की शादी नही हो पाती. इस एहसास ने उनकी आँखों से आँसू छलका दिए.

'' मैं तुम 3नो बहुओं से कुच्छ कहना चाहता हूँ. मैं तुम लोगों से माफी माँगना चाहता हूँ कि मैने तुम लोगों और तुम्हारे परिवार वालों से ये बात च्छुप्पई नही तो मेरे किसी बच्चे की शादी नही हो पाती. और हमारा वंश आगे नही बढ़ता. मुझे तुम 3नो माफ़ कर देना. मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई.. '' कह के बाबूजी की आँखों से अश्रुधारा बह चली.

राखी जो कि बाबूजी को बहुत मान और प्यार देती थी उससे रहा नही गया और वो भी फूट पड़ी और रोते रोते बाबूजी के पास चली गई. उसने बाबूजी के गले में अपनी बाहें डाल दी और उनसे लिपट गई. करीब 15 सेकेंड तक ससुर बहू ऐसे ही रोते रहे. बाकी सब उन्हे देख रहे थे. कमरे में सभी आँखें नम थी. तभी राखी ने बाबूजी से अलग होते हुए उनकी तोड़ी को पकड़ा और उनके चेहरे को उपर उठाया.

'' बाबूजी आपने चाहे जो भी किया पर आप जैसा ससुर मुझे नही मिल सकता था. आपने आज तक कभी हमें महसूस नही होने दिया कि हम लोग अपने ससुराल में हैं. हमेशा यहाँ से अपने मैके जाते हुए मुझे दुख होता था और वापिस आने पे खुशी. ये मेरा ससुराल नही मेरा मायका है और आप मेरे प्रिय हो. आप ने कोई ग़लत काम नही किया और आप निश्चिंत रहिए कि कभी हम आपको इन बातों का दोष देंगे. आप की आत्मा पवित्र थी तभी आज आपने ये बात हमे बताई नही तो आप चाहते तो ये राज आपके साथ ही ख़तम हो जाता. और मैं ये अपने लिए नही ये हम 3नो की तरफ से कह रही हूँ. जितना मैं मिन्नी भाभी को जानती हूँ उस हिसाब से वो मेरी बात से ज़रूर सहमत होंगी. क्यों मिन्नी भाभी मैने सही कहा ना.... सखी ने तो अपनी बात कह ही दी है. आप बिल्कुल चिंता ना करें हम 3नो बहुएँ आपके खानदान को आगे बढ़ाएँगी और सभी बच्चे इस परिवार में बराबर का प्यार पाएँगे.'' ये कहते कहते राखी ने बाबूजी के आँसू पोंच्छ दिए और उन्हे अपनी छाती से लगा लिया.

बाबूजी अब थोड़ा संभाल चुके थे और उनका चेहरा अपनी मनझली बहू की चुचियो से सटा हुआ था. राखी उनकी गर्दन के पीछे के बालों को सहला रही थी. बाबूजी की नॉर्मल साँसे उसके सीने में हलचल पैदा कर रही थी. उसके उरोज कसमसाने लगे थे. उसे एहसास हुआ कि इस बात को यहीं ख़तम करने का सबसे अच्छा तरीका है क सब लोग सॅटर्डे नाइट पार्टी के मूड में आ जाएँ. आज तक तो पहल बाबूजी या बड़े भैया किया करते थे पर आज उसके पास सुनेहरी मौका था आज की शाम की शुरुआत करने का. ये सोचते सोचते उसकी चूचियाँ सख़्त हो गई और साँसे तेज. बाबूजी को उसकी हालत का अंदाज़ा हो रहा था और उनकी साँसे गरम होने लगी थी. राखी ने मौका ना गँवाते हुए बाबूजी को कस के अपनी चूचियो की दरार की तरफ धकेल दिया. बाबूजी की नाक में उसके बदन की खुश्बू भर गई. वो उसकी चूचिओ की दरार में गहरी साँसे लेके उसकी खुश्बू का मज़ा लूटने लगे.

rajaarkey
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Re: खानदानी चुदाई का सिलसिला

Unread post by rajaarkey » 30 Dec 2014 07:59


राखी ने आव देखा ना ताव और बाबूजी को पिछे किया और उन्हे थोड़ा पीठ के बल सोफे पे लिटा दिया और खुद सोफा की साइड में बैठ गई. उसने तुरंत ही आनन फानन में बाबूजी की धोती खोल दी और उनका आधा खड़ा लंड अपने मूह में भर लिया. उसे किसी का भी लंड अपने मूह में कड़ा करने में मज़ा आता था. उसे इस बात पे नाज़ था कि वो घर में सबसे अच्छा लंड चूस्ति है और सब मर्दों को एक के बाद एक सॅटिस्फाइ कर सकती है. आफ्टर ऑल केले पे की गई प्रॅक्टीस ने उसकी लंड चूसने की कला और स्टॅमिना दोनो को अच्छे से निखार दिया था.

बाबूजी बड़े प्यार से उसका सिर सहला रहे थे और फिर धीरे धीरे उसके बाल खोल दिए. राखी के बाल उसके कंधों से थोड़ा नीचे तक आते थे, उसके खुले बालों और मूह में भरे लंड को देख के 3नो भाईओं और ससुर को उर्मिला मातोंडकर की याद आती थी. बाबूजी भी अब मस्ती में आ चुके थे और वो हल्के हल्के आमिर ख़ान और उर्मिला की मूवी ''रंगीला'' का गाना गाने लगे.

'' क्या करें क्या ना करें ये कैसी मुश्किल हाए कोई तो बता दे इसका हल ओ मेरे भाई....आआअरर्ग्घह ऊऊऊहह मेरे भाआऐईई...ययययईए ईईए ईईईईई मेरे भ्ााऐययइ...''' ये गाना अक्सर राखी की चुदाई के समय उपयोग होता था चाहे वो किसी के भी साथ हो. ये सुनके सब हंस पड़े और कमरे में एक बार फिर से मस्ती की ल़हेर दौड़ पड़ी. बाबूजी के लंड की सेवा होते देख सखी से रहा नही गया और उसने हल्के हल्के मादक मुद्राओं से अपनी साड़ी और पेटिकोट खोल दिया. ब्लाउस, ब्रा और पॅंटी में वो राजू के पास पहुँच गई और उससे अपने ब्लाउस के हुक खुलवाने लगी. इतने में सुजीत और संजय ने मिन्नी को दबोच लिया और उसके कपड़े उतारने लगे. मिन्नी तो दिन में झाड़ चुकी थी पर पिच्छले 2 - 3 दिन की चुदास ने उसे फिर से लंड के लिए उतावला बना दिया. बस फिर क्या था एक दम कमरे में सेक्स का वातावरण बन गया.

इस समय सभी को एक दम से मस्ती आ गई थी और बच्चों की तरह सब खिलोनों की तरफ झपट पड़े. अब तक सखी पूरी नंगी होके राजू के लंड पे चढ़ के सोफे पे उसकी चुदाई शुरू कर चुकी थी. राजू आधा लेटा हुआ था. नीचे कार्पेट पे मिन्नी संजय के लंड का चूपा भर रही थी और कुतिया बनी सुजीत का लंड चूत में पिलवा रही थी. बाबूजी ने राखी को नंगी करके अपनी गोद में बिठा लिया था. उसकी पीठ बाबूजी की छाती पे थी और उनका काला नाग उसकी चूत में आधा घुसा हुआ आराम कर रहा था. आधी मूडी अवस्था में वो बाबूजी की जीभ से लड़ाई कर रही थी और बाबूजी उसके मोटे मोटे स्तन मसल्ते जा रहे थे. घर में स्तनो के मामले में अच्छी वेराइटी थी. राखी के मम्मे सबसे बड़े और नरम थे. उसके निपल भी बड़े बड़े थे. खड़े होने पे तकरीबन 1/2'' लंबे हो जाते थे. गोरे गोरे मम्मो पे उसके काले काले दाने बहुत सुंदर दिखते थे. कुल मिला के राखी 40 सी की ब्रा पहनती थी तो अब उसके साइज़ और शेप का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. और अभी वोही मोटे मोटे गोरे माममे उसके ससुर के हाथों की शोभा बढ़ा रहे थे.

दूसरी ओर मिन्नी के मम्मे मीडियम साइज़ के थे पर नरम थे. उसके मम्मो में अभी भी कसाव था. जब वो नंगी होके छाती बाहर निकाल के कुतिया बन के या खड़े खड़े पिछे से चुदती थी तो उसके मम्मे साइड तो साइड हिलते थे पर राखी की तरफ ज़ियादा उपर नीचे नही होते थे. उसके निपल लाइट ब्राउन कलर के थे, पर उसके निपल्स के आस पास का घेरा बहुत बड़ा था. ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने उसके मम्मो के बेचों बीच एक छ्होटी कटोरी रख के चारों तरफ एक गोला बना दिया हो और उसमे हल्का भूरा रंग भर दिया हो. और ठीक उनके बीच दो निपल सज़ा दिए हों. इसी वजह से वो कभी भी बाहर हल्के कलर्स के ब्लाउस पहेन के नही जाती थी. ब्रा की अड्जस्टमेंट कभी इधर उधर हो जाए तो उसके निपल के आस पास का भूरा पोर्षन हल्के ब्लाउस में से छल्कने लगता था. उसको वैसे तो 36सी की ब्रा आती थी पर वो जान बूझ के 36ब की ब्रा ख़रीदती थी ताकि उसकी चूचिओ की गहराई अच्छे से उभर के आए.

तीसरी ओर थी सखी घर की सबसे छ्होटी और कद काठी में भी छ्होटी. उसकी चूचियाँ 34ब की थी. साँवली होने के कारण उसके निपल्स का कलर इतना पता नही चलता था पर उसके निपल एक दम पैने थे. सबसे सख़्त मम्मो की मालकिन जब नंगी होती तो दो पेयर शेप के माममे किसी भी लंड पे गजब ढा सकते थे. उसके मम्मो की ख़ासियत थी उनका स्वाद. पता नही उसके बदन में ऐसा क्या था कि जो एक बार चूस ले वो उनका स्वाद कभी नही भूलता था और इस समय वही हाल राजू का भी था. दोनो छ्होटे छ्होटे मम्मो को पकड़े हुए उसने सखी को अपने मूह की तरफ खींच रखा था और वो छिनाल उसके लंड पे कूदियाँ मार रही थी.

सुजीत का लंड मिन्नी की चूत के रस से सारॉबार हो चुका था. चुदास मिन्नी एक बार झाड़ चुकी थी पर उसकी चुदाई और लंड चूसने की गति बरकरार थी. उसे हर हाल में एक साथ अपने मूह और चूत मे पिचकारियाँ चाहिए थी. वीर्य का शौक उसे राखी से लगा था जो कि कोई भी मौका नही छोड़ती थी उसे वीर्य पिलाने का. कभी कभी तो राखी उसे आधी नींद से उठा के अपने मूह में भरा वीर्य लेके पहुँच जाती थी और उसका चुंबन लेते हुए उसे अपनी ज़ुबान से वीर्य पिलाती थी. दोनो कई बार ऐसा करके गरम होके एक साथ बिस्तर में रंग रलियाँ मनाती थी. जब मिन्नी की चूत में पिचकारियाँ छूटती तो वो भी अपनी मूत से भरी चूत लेके राखी के मूह पे जड़ देती और उसे खूब मस्ती में अपनी चूत और घर के किसी मर्द के मुत्त का मिश्रण पिलाती.

दोनो ने धीरे धीरे सखी को भी प्रॅक्टीस देनी शुरू कर दी थी पर वो अभी नई थी और उसे वक़्त लगना था. सखी की एक बात बहुत अच्छी थी और वो थी उसकी जिग्यासा. कभी भी कोई नया सेक्स का तरीका करना हो तो उसका हाथ पहले खड़ा होता था. जब बाबूजी ने उसकी शादी के 1 महीने बाद उसे राजू और सुजीत के साथ एक साथ सोने को कहा तो उसने एक बार भी मना नही किया और बड़े सहज रूप से उनके साथ सो गई. उस रात उन दोनो की पहली रात थी उसके साथ और 2 दिन तक उसकी चूत की सूजन नही गई थी.

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