दास्तान - वक्त के फ़ैसले Complete Story

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RohitKapoor
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दास्तान - वक्त के फ़ैसले Part-4

Unread post by RohitKapoor » 22 Oct 2014 23:31

प्रशाँत ध्यान से उसकी चूत देख रहा था। उसे लगा कि ज़ूबी ने हाल ही में अपनी चूत की बड़े सलीके से वैक्सिंग की थी। उसने देखा कि उसकी चूत अब चुदने के लिये एकदम तैयार थी।

सीमा अब अपनी अँगुलियाँ उसकी चूत पर फ़िराने लगी। जैसे ही सीमा की अँगुलियों ने ज़ूबी की चूत के दाने को छुआ, उसके शरीर में उत्तेजना की एक नयी लहर सी दौड़ गयी। सीमा ने उस दाने को अपनी अँगुलियों में लिया और मसलने लगी। ना चाहते हुए भी ज़ूबी के मुँह से हल्की सी सिस्करी निकल पड़ी, “ओहहहहह आआआआहहहहह,” और उसके कुल्हे अपने आप ही आगे को हो गये।

सीमा ने अपनी एक अँगुली उसकी चूत के मुहाने पर रखी तो उसने महसूस किया कि ज़ूबी की चूत किस हद तक गीली हो चुकी थी। सीमा ने अपनी अँगुली उसकी चूत के अंदर घुसा दी और अंदर बाहर करने लगी। उसकी इस हर्कत से उसकी चूत से जो आवाज़ निकल रही थी वो कमरे में सभी को उत्तेजित करने के लिये काफी थी।

ज़ूबी उत्तेजना और मस्ती में इस कदर खो गयी थी कि जब सीमा ने उसकी चूत से अँगुली निकाली तो पागल सी हो गयी। उसका मुँह खुला का खुला रह गया था और वो गहरी साँसें ले रही थी।

सीमा ने अपनी अँगुली बाहर निकाली और उसका हाथ पकड़ कर उसे वहाँ ले गयी जहाँ प्रशाँत कुर्सी पर बैठा था। जब ज़ूबी के घुटनों ने प्रशाँत की टाँगों को छुआ तो उसने महसूस किया कि वो मर्द अब उसके सामने था।

ज़ूबी शांति से प्रशाँत के सामने खड़ी थी, उसकी साँसें थमी तो नहीं थी फिर भी उसने अपने मुँह को कस कर बंद कर लिया था। तभी उसने एक मोटी अँगुली को अपनी चूत में घुसते हुए महसूस किया। वो अँगुली आराम से उसकी चूत में घुस गयी और उसके बहते रस से भीग गयी।

ज़ूबी को हैरानी हुई कि वो अँगुली जिस तेजी से उसकी चूत के अंदर घुसी थी उतनी ही तेजी से बाहर आ गयी। उसे और हैरानी हुई जब वो अँगुली जबर्दस्ती उसके अध-खुले होठों से उसके मुँह मे घुस गयी। उसका दिमाग हैरान था कि वो उस मर्द की अँगुली पर लगे अपने ही रस का स्वाद ले रही थी।

“इसे चूस कर साफ़ करो?” सीमा ने उसके कान मे धीरे से कहा।

ज़ूबी ने अपने मुँह में उस अँगुली को कसा और जीभ में फँसा कर चूसने लगी। प्रशाँत ने अपनी अँगुली उसके मुँह से बाहर निकाली और उसे खिंच कर अपनी और झुका लिया। ज़ूबी की चूचियाँ अब उसकी छाती को छू रही थी।

प्रशाँत ने खींच कर उसे अपने सामने इस तरह खड़ा कर लिया कि उसका लंड ज़ूबी के पीठ को छू रहा था। प्रशाँत अब अपना हाथ उसके चूतड़ों पर फिराने लगा। ज़ूबी नहीं जानती थी कि ये मर्द उससे क्या चाहता है, फिर भी उसने अपनी टाँगें थोड़ी फैला दी जिससे उसे आसानी हो।

प्रशाँत ने उसके चूतड़ों को सहलाते हुए अचानक अपनी अँगुली उसकी चूत में घुसा दी। थोड़ी देर अँगुली को अंदर बाहर करने के बाद उसने अपनी अँगुली बाहर निकाली और उसकी गाँड के छेद पर फिराने लगा। ज़ूबी ने महसूस किया कि उसकी चूत से पानी बह कर उसकी चूत के बाहरी हिस्सों के साथ उसकी जाँघों और टाँगों तक बह रहा है।

प्रशाँत अब अपनी गीली अँगुलियों से उसकी गाँड के छेद मे अपनी अँगुली घुसाने की कोशिश करने लगा।

“नहीं वहाँआँआँ नहीं,” ज़ूबी जोर से चिल्लायी।

ज़ूबी ने हाथ पैर पटक कर बहुत कोशिश की कि वो उस मर्द को उसकी गाँड में अँगुली डालने से रोक सके, पर वो सफ़ल ना हो सकी। उस मर्द के मजबूत हाथ और साथ में सीमा कि पकड़ ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। अचानक उसे अपनी गाँड मे जोरों का दर्द महसूस हुआ। उस मर्द की अँगुली उसकी गाँड में घुस चुकी थी।

ज़ूबी की छटपटाहट और दर्द देख कर प्रशाँत को मज़ा आने लगा था। उसने उसे और परेशान करने के लिये जोर से उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मार दिया।

ज़ूबी के चूतड़ों पर पड़ते थप्पड़ की आवाज़ कमरे में गूँज उठी। दर्द के मारे ज़ूबी की आँखों में आँसू आ गये। एक तो गाँड में अँगुली का अंदर बाहर होना और साथ में इतनी जोर के थप्पड़ - उसे बेहताशा दर्द हो रहा था।

ज़ूबी प्रशाँत के थप्पड़ों से बचने के लिये विरोध करती रही और प्रशाँत था कि अब जोरों से उसके चूतड़ों पर थप्पड़ मार रहा था।

“आआआआआवववव ओंओंओंओंओं,” ज़ूबी सुबक रही थी। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। आज से पहले कभी किसी ने उसे मारना तो दूर की बात है, कभी छुआ तक नहीं था।

सीमा से भी ये देखा नहीं गया और वो बोल पड़ी, “रुक जाओ मत करो ऐसा।”

पर जैसे प्रशाँत के कानों पे उसकी आवाज़ का कोई असर नहीं हुआ।

“अपनी टाँगें थोड़ी फ़ैलाओ?” प्रशाँत ने ज़ूबी से कहा।

ज़ूबी की समझ में आ गया कि विरोध करना बेकार था, ये मर्द कुछ सुनने या मानने वाला नहीं था। उसने अपनी टाँगें थोड़ी सी फैला दी।

ज़ूबी का सिर शरम से झुक गया था कि सीमा के सामने वो मर्द उसे नंगा निहार रहा रहा है। अचानक प्रशाँत की अंगुलियाँ उसकी चूत के मुहाने पर चलने लगी तो ज़ूबी सिसक पड़ी। उसकी मोटी अँगुली उसकी चूत में घुस रही थी, और उसके शरीर में कामुक्ता की एक लहर सी दौड़ रही थी। ज़ूबी ने बहुत कोशिश की कि वो स्थिर खड़ी रहे पर उसने उत्तेजना में खुद-ब-खुद टाँगें इस कदर फैला दी कि उस मर्द की अँगुली आसानी से उसकी चूत के अंदर बाहर होने लगी।

तभी ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब दो अँगुलियाँ उसकी चूत के अंदर डाल कर चोद रहा है। प्रशाँत ने अपनी अँगुलियाँ अच्छी तरह से उसकी चूत के पानी से गीली कर ली और अब उसकी गाँड के छेद पे फ़िराने लगा।

ज़ूबी ने इस बर कोई विरोध नहीं किया और उसकी अँगुली उसकी कसी हुई गाँड मे घुस गयी।

“ओहहहहह आआआहहहह” ज़ूबी सिसक पड़ी।

थोड़ी देर उसकी गाँड मे अँगुली करने के बाद उसने अपनी अँगुली बाहर निकाल ली। उसने सीमा को ज़ूबी की दोनों बांहें कस के पकड़ने का इशारा किया और खुद ज़ूबी के पीछे आकर खड़ा हो गया। उसका लंड मूसल खूँटे कि तरह तन कर खड़ा था।

ज़ूबी कुर्सी पर इस तरह थी कि उसके घुटने तो कुर्सी पर थे और दोनों बांहें हथे पर। सीमा ने उसकी दोनों बांहें कस कर पकड़ रखी थी। ज़ूबी ने महसूस किया कि वो मर्द अब उसके पीछे खड़ा होकर अपना खूँटे जैसा लंड उसकी गाँड के छेद पर घिस रहा है।

प्रशाँत ज़ूबी को कुर्सी पर झुका हुआ देख रहा था। उसकी गुलाबी चूत पीछे से उभर कर बाहर को निकल आयी थी। उसने अपना लंड उसकी चूत पर रखा और अंदर घुसाने लगा। उसे कोई जल्दी नहीं थी, वो आराम से अपने लंड को थोड़ा-थोड़ा अंदर पेल रहा था। जब उसका पूरा लंड ज़ूबी की चूत में घुस गया तो वो बड़े आराम से अपनी सहकर्मी को चोदने लगा।

थोड़ी देर उसकी चूत चोदने के बाद उसने अपना लंड बाहर निकाला और उसकी चूत के ऊपर गाँड के छोटे छेद पर घिसने लगा। उसने ज़ूबी के चूतड़ पकड़ कर थोड़ा फ़ैलाये और अपना लंड अंदर घुसाने लगा।

“नहीं वहाँआँआँ नहींईंईंईं,” ज़ूबी चींख पड़ी, “प्लीज़ वहाँ नहींईंईं।”

पर जैसे ज़ूबी की चींख का उस पर कोई असर नहीं पड़ा। सीमा ने ज़ूबी की बांहें कस कर पकड़ रखी थी जिससे वो कोई विरोध ना करे। वैसे तो सीमा मन से इस क्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी पर उसने देखा कि ज़ूबी सिर्फ़ मुँह से ही विरोध कर रही थी शरीर से नहीं।

जैसे ही प्रशाँत ने अपना लंड उसकी गाँड में घुसाया, ज़ूबी ने महसूस किया कि उसके शरीर की गर्मी और बढ़ गयी। उसे लगा कि जैसे कोई गरम लोहा उसकी गाँड मे घुसा दिया हो।

“नहीं प्लीज़ नहीं,” ज़ूबी ने एक बार फिर विरोध करने की कोशिश की।

पर प्रशाँत उसकी बात को अनासुना कर अपना लंड उसकी गाँड में घुसाता गया।

“प्लीज़,” ज़ूबी फिर बोल पड़ी, “मेरी चूत में डालो, मुझे अपनी चूत में लंड अच्छा लग रहा था।”

ज़ूबी ने जब देखा कि उसकी इल्तज़ा का उस मर्द पर कोई असर नहीं हो रहा है तो उसने अपने शरीर को ढीला छोड़ दिया और अपनी टाँगें और फैला दी। उसने महसूस किया कि अब उस मर्द का लंड आसानी से उसकी गाँड के अंदर बाहर हो रहा है।

प्रशाँत अब उसकी गाँड में धक्के लगा रहा था। ज़ूबी ने सीमा के हाथों को कस कर पकड़ रखा था जिससे वो उसके धक्कों की ताकत से गिर ना जये। जब प्रशाँत के अंडकोश ज़ूबी की चूत से टकराते तो ज़ूबी का शरीर उत्तेजना में और बिदक जाता और खुद-ब-खुद पीछे हो कर उसके लंड को अपनी गाँड में और ले लेती। ज़ूबी के शरीर और मादकता ने फिर एक बार उसे धोखा दे दिया।

प्रशाँत अब कस कर धक्के मार रहा था और ज़ूबी भी आगे पीछे हो कर उसके धक्कों का साथ दे रही थी। ज़ूबी अब अपनी खुद की दुनिया में खो गयी थी और अपने बदन में उठती गर्मी को शाँत करने में लग गयी।

प्रशाँत ने देखा कि ज़ूबी ने अपना एक हाथ नीचे को कर रखा था और उसके धक्कों के साथ-साथ अपनी चूत में अँगुली अंदर बाहर कर रही थी। प्रशाँत ने देखा कि ज़ूबी हर धक्के पर उसका साथ दे रही थी और थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया।

जैसे ही ज़ूबी की चूत ने पानी छोड़ा, प्रशाँत ने अपना लंड उसकी गाँड से बाहर निकाल लिया। उसने ज़ूबी को घुमा कर अपने सामने घुटनों के बल कर दिया। ज़ूबी समझ गयी कि अब वो क्या चाहता है।

आँखों पर पट्टी बंधे होने की वजह से ज़ूबी उसके लंड को देख तो नहीं सकती थी। उसने अपनी जीभ बाहर निकाल ली और उसके लंड पर फिराने लगी जो थोड़ी देर पहले उसकी गाँड के अंदर घुसा हुआ था। फिर अपना पूरा मुँह खोल कर उसने लंड को अंदर लिया और चूसने लगी। अब वो जोरों से अपने मुँह को ऊपर नीचे कर के उसके लंड को चूस रही थी।

सीमा ने पीछे से ज़ूबी की दोनों चूचियों को पकड़ा और मसलने लगी और वो एक हाथ से उसकी चूत को सहला रही थी।

ज़ूबी जोरों से लंड को चूस रही थी। उसने महसूस किया कि उस मर्द का लंड अकड़ने लगा है, वो समझ गयी कि वो अब झड़ने वाला है। ज़ूबी अब और जोरों से लंड को चूस रही थी। प्रशाँत की हुँकार कमरे में गूँजने लगी और उसने अपना गाढ़ा वीर्य ज़ूबी के मुँह मे छोड़ दिया।

ज़ूबी उस वीर्य को निगलने की कोशिश कर रही थी और प्रशाँत ने उसकी आँखों पर बंधी पट्टी को खोल दिया। पट्टी खुलते ही ज़ूबी ने अपने बॉस प्रशाँत की शक्ल देखी। वो हैरत भारी नज़रों से प्रशाँत को घूर रही थी जिसका लंड उसके मुँह में अंदर बाहर हो रहा था।

दिल्ली से घर लौटते वक्त प्लेन में ज़ूबी बड़ी मुश्किल से अपनी आँख में आते आँसूओं को रोक पा रही थी। वो अपनी ज़िंदगी के बारे मे सोच रही थी जिसने उसे एक वकील से रंडी बना कर रख दिया था। उसने लाख सोने की कोशिश की पर बीते हुए कुछ दिनों की यादें उसे सोने नहीं दे रही थी।

एक बात अब भी उसकी समझ में नहीं आ रही थी कि प्रशाँत वहाँ कैसे पहुँच गया। एक बार तो उसे लगा कि मिस्टर राज ने जान-बूझ कर उसे फँसाया है। पर दिल कहता कि राज ऐसा क्यों करेगा? उसे प्रशाँत से क्या फायदा हो सकता है। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अगर ऑफिस में उसके साथियों को अगर पता चला तो वो क्या सफ़ाई देगी। और उसका शौहर तो तुरंत उसे तलाक दे देगा। इन ही सब ख्यालों में डूबी ज़ूबी ने अपने आप को नसीब के सहारे छोड़ दिया, और आने वाली ज़िंदगी का इंतज़ार करने लगी।

समाप्त

rajaarkey
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Re: दास्तान - वक्त के फ़ैसले Complete Story

Unread post by rajaarkey » 27 Oct 2014 19:51

thanks to post this storie

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