चुदसी आंटी और गान्डू दोस्त sex hindi long story
Re: चुदसी आंटी और गान्डू दोस्त sex hindi long story
आंटी: “हन विजय अच्छा क्यों नहीं लगेगा जब तुम्हारी उमर के बेटे आपने दोस्तों के साथ पिक्चर जाते हैं, बाहर खाते हैं तब तुम्हे आपनी इस अधेड़ आंटी की याद रहती है, आंटी के सुख दुख की फ़िक़ार रहती है.”
में: “आंटी, तुम आपने आप को अधेड़ क्यों कहती हो? अभी तो तुम पूरी जवान हो. कल तुम्हें बताया तो था की तुम्हारे सामने तो पिक्चर की हेरोइनें भी फीकी हैं. फिर तुम्हारा ख़याल नहीं रखूँगा तो और किस का रखूँगा? मुझे पता है वहाँ गाँव में तो तूने आपनी आधी जिंदगी यूँ ही घुट घुट के बिठा दी, जब तुम्हारे मौज मस्ती करने के दिन थे तभी अंकल ने बिस्तर पकड़ लिया और फ़र्ज़ के आयेज तुम मन मसोसके रह गई पर अब में यहाँ तुझे दुनिया का हर सुख दूँगा, तुम्हारे हर शौक पुर करूँगा. चलो आंटी तुम्हे एक जगह की आइस्करीम खिला के लाता हूँ.”
आंटी: “अब इतनी देर गये.”
में: “तो क्या? यहाँ तो इसी समय लोग बाग बाहर निकलते हैं. फिर आज मुन्ना भी नहीं है. मुन्ना रहता है तो गप्प सपप करने में मज़ा आता है.” में और आंटी 15 मिनिट में ही थोड़े तैयार होकर ऐसे एक मशहूर आइस्करीम पार्लर पर पाहूंछ गये जहाँ अधिकतर नौजवान आपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ आइस्करीम का मज़ा लेने आते हैं. में दो आइस्करीम कॅंडी ले आया और एक आंटी को डेडी. फिर हम दोनो एक दूसरे के देखते हुए मस्ती से कॅंडी चूस मज़ा लेने लगे. आंटी को मुख गोल बनाके कॅंडी चूस्टे देख मेरी नीचेवली कॅंडी में हलचल होने लगी और में इसी सोच में आंटी को लेकर वापस घर आ गया और आपने कमरे में जा बेड पर अकेला प़ड़ गया की एक दिन आंटी मेरे वाला भी इसी कॅंडी की तरह चूसेगी.
दूसरा दिन सनडे का था. सनडे को में हमैइषा दरसे उठता हूँ. आज हालाँकि नींद तो रोज वाले समय पर खुल गई फिर भी सनडे की वजह से बिस्तर पर पड़ा था. मेरी आंटी हालाँकि आज तक गाँव में ही रही पर वा आधुनिकता की, शहरी सभ्यता की शौकीन ज़रूर है. तभी तो उसे विधवा होते हुए भी बन तन के रहने में, शृंगार करने में, रोमॅंटिक पिक्चर देखने में, रोमॅंटिक जगहू का शायर सपाटा करने में संकोच नहीं हो रहा था. इन सब में उसे आनंद आ रहा था. यही तो में चाहता हूँ की उसे आनंद मिले. मुझे पक्का भरोशा है की मेरे द्वारा यदि उसे आनंद मिलता जाएगा तो एक दिन उसके द्वारा भी मुझे आनंद मिलेगा. पर में खुल के आंटी पर यह बिल्कुल प्रगट नहीं कर रहा था की वास्तव में मेरे मन में क्या है?
आज तैयार होके नास्टा कम लंच करते करते 11 बाज गये. नास्टा ख़त्म कर मेने आंटी को बता दिया की अभी तो मुझे किसी सप्लाइयर के यहाँ सॅंपल देखने जाना है पर में 5-6 बजे तक वापस आ जवँगा तब शाम का प्रोग्राम बनाएँगे. जिस सप्लाइयर के पास मुझे जाना था उसके पास ओवरसाइज़ ब्रा, पेंटी और नाइटी का नया स्टॉक आया हुवा था.
में 6.30 के करीब वापस घर आ गया. आंटी सोफे पर बैठी कोई सीरियल देख रही थी. मेरे हाथ में सॅंपल गारमेंट्स का एक बड़ा सा पॅकेट था जो मुझे उस सप्लाइयर ने दिया था.
आंटी: “ज़रा देखूं तो आज मेरा लाल मेरे लिए क्या नया लेके आया है?” यह कह माने मेरे हाथ से पॅकेट ले लिया और उसे खोलने लगी. उसमें से 2 ऐसी पेंटी निकली जो मुश्किल से चुत भर को धक सके और उन 2 में से 1 ट्रॅन्स्परेंट भी थी. 2 ही बिना बाँह की तंग और टाइट ब्रा थी. 1 झीनी नाइटी थी और एक ओपन लॅडीस नाइट गाउन था. सारे आंटी की साइज़ के थे क्योंकि इस लाइन में काम करने से मुझे एग्ज़ॅक्ट पता था की आंटी को किस साइज़ के फिट बैठेंगे. आंटी उलट पलट के देखती रही.
आंटी: “तो आज तू आपनी आंटी के लिए ये सब लाया है.”
में: “अरे आंटी ये तो सॅंपल है जो मुझे उस सप्लाइयर ने दिए हैं. यदि तुझे पसंद है तो सारे तुम रख लो.”
आंटी: “तो क्या शहर की औरातें ऐसे कपड़े पहनती है की कुच्छ भी धक्का ना रहे. मुझे तो इनको देख के ही शरम आ रही है.”
में: “आंटी ये सब हल्के और बहुत अच्छी क्वालिटी के हैं. इन्हें नीचे पहन के बहुत आराम लगता है और पता ही नहीं चलता की कुच्छ पहन रखा है. तुम से बड़ी बड़ी उमर की औराते इन्हें लेने के लिए हमारे स्टोर में भीड़ लगाए रखती हैं. फिर तुम किसी से कम थोड़े ही हो. रख लो इन्हें, ऐसे कपड़े पहनने से सोच भी मॉडर्न होती है.”
आंटी: “हन तुम ठीक कह रहे हो. आजकल तो ऐसी ही चीज़ों का चलन है और मॉडर्न लोगों का ही बोलबाला है. पिकतुरों में, होटेलों में, पारलौूरों में कहीं भी देखो लोग खुल के मौज मस्ती करते हैं, ना किसी की शंका शरम, ना किसी से लेना देना.”
में: “हन आंटी, शहरी और पढ़े-लिखे लोगों की सोच यह है की जब मौज मस्ती करने की उमर है, साधन है और शौक है तो खुल के मौज मस्ती करो. एक बार उमर और तबीयत चली गई तो फिर बस किसी तरह जिंदगी गुजारनी रह जाती है. इसीलिए तो तुम्हारा इतना ध्यान रखता हूँ. जो सुख तुझे गाँव में नहीं मिला वा सुख यहाँ तो खुल के भोगो. यहाँ ना तो गाँव का वातावरण है और ना कोई यह देखने वाला की तुम क्या कराती हो और कैसे रहती हो. तुम्हें खाली जिंदगी गुजारनी थोड़े ही है तुम्हे तो इस हसीन जिंदगी का पूरा मज़ा लेना है. तुम्हे यहाँ किस बात की कमी है. गाँव की जायदाद से कम से कम 40 लॅक मिल जाएँगे और दो दो जवान बेटे कमाने वाले हैं. चलो आंटी अच्छे से तैयार हो जाओ, आज तुझे ऐसी जगह दिखाता हूँ की तुझे भी पता चले की लोग जिंदगी का मज़ा कैसे लेते हैं.”
मेरी बात सुन आंटी आपने कमरे में चली गई. मेने आपनी ओर से दाना डाल दिया था. अब देखना था की चिड़िया कब जाल में फँसती है. मुझे बिल्कुल जल्दी नहीं थी. में आंटी में तड़प पैदा कर देना चाहता था और चाह रहा था की पहल माकी तरफ से हो. थोड़ी देर में में भी उठ आपने कमरे में चला गया. मेने शवर लिया, टाइट जीन्स और स्पोर्टिंग पहनी और टीवी के सामने बैठा आंटी का इंतज़ार करने लगा. थोड़ी देर में आंटी भी तैयार होके निकली. आज उसने बड़ी दिलकश सारी बिना बाँह के ब्लाउस के साथ पहनी हुई थी और उसकी मांसल दूधिया नंगी बाहें बड़ी मस्त लग रही थी. हल्की लिपस्टिक और चेहरे पर हल्का मेकप कर रखा था. वाह! माको इस रूप में देख मज़ा आ गया. मेरे जैसे 6‚2″ के गबरू गतीले शरीर वाले जवान के साथ यह बीवी के रूप में या पटाए हुए माल के रूप में बिल्कुल चल सकती थी.
हमें घर से निकलते निकलते 8 बाज गये. आज में माको ले शहर से थोड़ा बाहर ऐसे पार्क की शायर कराने ले चला जहाँ काफ़ी तादाद में मनचले आपने जोड़ीदार के साथ मौज मस्ती के लिए आते थे. सनडे की वजह से पार्क में और दिनों की आपेक्षा काफ़ी भीड़ थी. अभी 8.30 ही हुए थे सो काफ़ी तादाद में फॅमिली वाले भी आपने बच्चों के साथ थे. मौज मस्ती वाले जोड़े कम थे. वे 9 बजे आने शुरू होते हैं जब फॅमिली वाले वापस जाने लग जाते हैं. पार्क बहुत बड़े एरिया में फैला हुवा था, कई फव्वारे फुल बढ़ता में चल रहे थे, तरह तरह की आकृति में कटिंग किए हुए झाड़ जगह जगह थे, पार्क के चारों और करीब 6′ चौड़ी पगडंडी थी जिस पर वॉक करने वाले पार्क का रौंद काट रहे थे, बच्चों के लिए एक स्थान पर कई तरह के झूले और स्लिडिंग्स भी बने हुए थे. इसी स्थान के चारों और चाट, पाव-भाजी, कोल्ड ड्रिंक, आइस करीम, गोल-गप्पे, खुशबूदार पॅयन के कई स्टॉल थे जिन पर सनडे की वजह से काफ़ी भीड़ थी.
आंटी: “विजय , आज तो तुम मुझे स्वर्ग में ले आए हो. बहुत ही अच्छी जगह है.” में माको लेके लाइटिंग और म्यूज़िक वाले फव्वारे के पास आ गया. संगीत की धुन और लाइटिंग की चकाचौंध में फव्वारा मानो डॅन्स कर रहा हो. फव्वारे के चारों और युवतियाँ, आंटी के उमर की औरातें और बूधियाँ भी बहुत ही मॉडर्न, शरीर के उभारों को उजागर करते परिधानों में सजी धजी हंस रही थी, इस दिलकश वातावरण का पूरा मज़ा ले रही थी, आपने पुरुष साथियों के साथ हाथ में हाथ डाले घुल मिल बातें कर रही थी. चारों ओर लिपीसटिक पुते होंठ, फेशियल सा सज़ा चेहरा, बॉब कट तथा खुले केश, जीन्स में कसे नितंब, अधकती चोलियों से झाँकते स्तन की बहार थी. हम कई देर उस फव्वारे का आनंद लेते रहे.
“चलो आंटी पहले कुच्छ खा पे लेते हैं फिर तुम्हें पूरा पार्क दिखावँगा.” मेने आंटी से कहा. में कुच्छ समय व्यतीत करना चाहता था ताकि पार्क में घूमते समाय आंटी मनचले जोड़ों की भी मस्ती देखे. जो सेक्स की भूख पिच्छले 15 साल से उस में दबी पड़ी थी वा ऐसे मस्त वातावरण में उजागर हो जाय. में आंटी को ले खाने पीने के स्टल्लों में आ गया. हमने आलू टिकिया, दही चाट, गोलगप्पे इत्यादि का मिल के आनंद उठाया. फिर हमने कोल्ड ड्रिंक की 2 बॉटल्स ली और एक झाड़ के पास बैठ मज़े से पी.
में: “आंटी तुम यहीं बैठो; में आइस करीम यहीं ले आता हूँ. कैसी लओन – कॅंडी या कोन.”
आंटी: “मेरे लिए तो कल जैसी चूसने वाली ही लाना.” में आंटी के लिए 1 कॅंडी और मेरे लिए 1 कोन लेके आ गया. आंटी कॅंडी को मुख में ले चूसने लगी और में कोन में जीभ डाल डाल आइस करीम खाने लगा.
में: “आंटी, तुम आपने आप को अधेड़ क्यों कहती हो? अभी तो तुम पूरी जवान हो. कल तुम्हें बताया तो था की तुम्हारे सामने तो पिक्चर की हेरोइनें भी फीकी हैं. फिर तुम्हारा ख़याल नहीं रखूँगा तो और किस का रखूँगा? मुझे पता है वहाँ गाँव में तो तूने आपनी आधी जिंदगी यूँ ही घुट घुट के बिठा दी, जब तुम्हारे मौज मस्ती करने के दिन थे तभी अंकल ने बिस्तर पकड़ लिया और फ़र्ज़ के आयेज तुम मन मसोसके रह गई पर अब में यहाँ तुझे दुनिया का हर सुख दूँगा, तुम्हारे हर शौक पुर करूँगा. चलो आंटी तुम्हे एक जगह की आइस्करीम खिला के लाता हूँ.”
आंटी: “अब इतनी देर गये.”
में: “तो क्या? यहाँ तो इसी समय लोग बाग बाहर निकलते हैं. फिर आज मुन्ना भी नहीं है. मुन्ना रहता है तो गप्प सपप करने में मज़ा आता है.” में और आंटी 15 मिनिट में ही थोड़े तैयार होकर ऐसे एक मशहूर आइस्करीम पार्लर पर पाहूंछ गये जहाँ अधिकतर नौजवान आपनी गर्लफ्रेंड्स के साथ आइस्करीम का मज़ा लेने आते हैं. में दो आइस्करीम कॅंडी ले आया और एक आंटी को डेडी. फिर हम दोनो एक दूसरे के देखते हुए मस्ती से कॅंडी चूस मज़ा लेने लगे. आंटी को मुख गोल बनाके कॅंडी चूस्टे देख मेरी नीचेवली कॅंडी में हलचल होने लगी और में इसी सोच में आंटी को लेकर वापस घर आ गया और आपने कमरे में जा बेड पर अकेला प़ड़ गया की एक दिन आंटी मेरे वाला भी इसी कॅंडी की तरह चूसेगी.
दूसरा दिन सनडे का था. सनडे को में हमैइषा दरसे उठता हूँ. आज हालाँकि नींद तो रोज वाले समय पर खुल गई फिर भी सनडे की वजह से बिस्तर पर पड़ा था. मेरी आंटी हालाँकि आज तक गाँव में ही रही पर वा आधुनिकता की, शहरी सभ्यता की शौकीन ज़रूर है. तभी तो उसे विधवा होते हुए भी बन तन के रहने में, शृंगार करने में, रोमॅंटिक पिक्चर देखने में, रोमॅंटिक जगहू का शायर सपाटा करने में संकोच नहीं हो रहा था. इन सब में उसे आनंद आ रहा था. यही तो में चाहता हूँ की उसे आनंद मिले. मुझे पक्का भरोशा है की मेरे द्वारा यदि उसे आनंद मिलता जाएगा तो एक दिन उसके द्वारा भी मुझे आनंद मिलेगा. पर में खुल के आंटी पर यह बिल्कुल प्रगट नहीं कर रहा था की वास्तव में मेरे मन में क्या है?
आज तैयार होके नास्टा कम लंच करते करते 11 बाज गये. नास्टा ख़त्म कर मेने आंटी को बता दिया की अभी तो मुझे किसी सप्लाइयर के यहाँ सॅंपल देखने जाना है पर में 5-6 बजे तक वापस आ जवँगा तब शाम का प्रोग्राम बनाएँगे. जिस सप्लाइयर के पास मुझे जाना था उसके पास ओवरसाइज़ ब्रा, पेंटी और नाइटी का नया स्टॉक आया हुवा था.
में 6.30 के करीब वापस घर आ गया. आंटी सोफे पर बैठी कोई सीरियल देख रही थी. मेरे हाथ में सॅंपल गारमेंट्स का एक बड़ा सा पॅकेट था जो मुझे उस सप्लाइयर ने दिया था.
आंटी: “ज़रा देखूं तो आज मेरा लाल मेरे लिए क्या नया लेके आया है?” यह कह माने मेरे हाथ से पॅकेट ले लिया और उसे खोलने लगी. उसमें से 2 ऐसी पेंटी निकली जो मुश्किल से चुत भर को धक सके और उन 2 में से 1 ट्रॅन्स्परेंट भी थी. 2 ही बिना बाँह की तंग और टाइट ब्रा थी. 1 झीनी नाइटी थी और एक ओपन लॅडीस नाइट गाउन था. सारे आंटी की साइज़ के थे क्योंकि इस लाइन में काम करने से मुझे एग्ज़ॅक्ट पता था की आंटी को किस साइज़ के फिट बैठेंगे. आंटी उलट पलट के देखती रही.
आंटी: “तो आज तू आपनी आंटी के लिए ये सब लाया है.”
में: “अरे आंटी ये तो सॅंपल है जो मुझे उस सप्लाइयर ने दिए हैं. यदि तुझे पसंद है तो सारे तुम रख लो.”
आंटी: “तो क्या शहर की औरातें ऐसे कपड़े पहनती है की कुच्छ भी धक्का ना रहे. मुझे तो इनको देख के ही शरम आ रही है.”
में: “आंटी ये सब हल्के और बहुत अच्छी क्वालिटी के हैं. इन्हें नीचे पहन के बहुत आराम लगता है और पता ही नहीं चलता की कुच्छ पहन रखा है. तुम से बड़ी बड़ी उमर की औराते इन्हें लेने के लिए हमारे स्टोर में भीड़ लगाए रखती हैं. फिर तुम किसी से कम थोड़े ही हो. रख लो इन्हें, ऐसे कपड़े पहनने से सोच भी मॉडर्न होती है.”
आंटी: “हन तुम ठीक कह रहे हो. आजकल तो ऐसी ही चीज़ों का चलन है और मॉडर्न लोगों का ही बोलबाला है. पिकतुरों में, होटेलों में, पारलौूरों में कहीं भी देखो लोग खुल के मौज मस्ती करते हैं, ना किसी की शंका शरम, ना किसी से लेना देना.”
में: “हन आंटी, शहरी और पढ़े-लिखे लोगों की सोच यह है की जब मौज मस्ती करने की उमर है, साधन है और शौक है तो खुल के मौज मस्ती करो. एक बार उमर और तबीयत चली गई तो फिर बस किसी तरह जिंदगी गुजारनी रह जाती है. इसीलिए तो तुम्हारा इतना ध्यान रखता हूँ. जो सुख तुझे गाँव में नहीं मिला वा सुख यहाँ तो खुल के भोगो. यहाँ ना तो गाँव का वातावरण है और ना कोई यह देखने वाला की तुम क्या कराती हो और कैसे रहती हो. तुम्हें खाली जिंदगी गुजारनी थोड़े ही है तुम्हे तो इस हसीन जिंदगी का पूरा मज़ा लेना है. तुम्हे यहाँ किस बात की कमी है. गाँव की जायदाद से कम से कम 40 लॅक मिल जाएँगे और दो दो जवान बेटे कमाने वाले हैं. चलो आंटी अच्छे से तैयार हो जाओ, आज तुझे ऐसी जगह दिखाता हूँ की तुझे भी पता चले की लोग जिंदगी का मज़ा कैसे लेते हैं.”
मेरी बात सुन आंटी आपने कमरे में चली गई. मेने आपनी ओर से दाना डाल दिया था. अब देखना था की चिड़िया कब जाल में फँसती है. मुझे बिल्कुल जल्दी नहीं थी. में आंटी में तड़प पैदा कर देना चाहता था और चाह रहा था की पहल माकी तरफ से हो. थोड़ी देर में में भी उठ आपने कमरे में चला गया. मेने शवर लिया, टाइट जीन्स और स्पोर्टिंग पहनी और टीवी के सामने बैठा आंटी का इंतज़ार करने लगा. थोड़ी देर में आंटी भी तैयार होके निकली. आज उसने बड़ी दिलकश सारी बिना बाँह के ब्लाउस के साथ पहनी हुई थी और उसकी मांसल दूधिया नंगी बाहें बड़ी मस्त लग रही थी. हल्की लिपस्टिक और चेहरे पर हल्का मेकप कर रखा था. वाह! माको इस रूप में देख मज़ा आ गया. मेरे जैसे 6‚2″ के गबरू गतीले शरीर वाले जवान के साथ यह बीवी के रूप में या पटाए हुए माल के रूप में बिल्कुल चल सकती थी.
हमें घर से निकलते निकलते 8 बाज गये. आज में माको ले शहर से थोड़ा बाहर ऐसे पार्क की शायर कराने ले चला जहाँ काफ़ी तादाद में मनचले आपने जोड़ीदार के साथ मौज मस्ती के लिए आते थे. सनडे की वजह से पार्क में और दिनों की आपेक्षा काफ़ी भीड़ थी. अभी 8.30 ही हुए थे सो काफ़ी तादाद में फॅमिली वाले भी आपने बच्चों के साथ थे. मौज मस्ती वाले जोड़े कम थे. वे 9 बजे आने शुरू होते हैं जब फॅमिली वाले वापस जाने लग जाते हैं. पार्क बहुत बड़े एरिया में फैला हुवा था, कई फव्वारे फुल बढ़ता में चल रहे थे, तरह तरह की आकृति में कटिंग किए हुए झाड़ जगह जगह थे, पार्क के चारों और करीब 6′ चौड़ी पगडंडी थी जिस पर वॉक करने वाले पार्क का रौंद काट रहे थे, बच्चों के लिए एक स्थान पर कई तरह के झूले और स्लिडिंग्स भी बने हुए थे. इसी स्थान के चारों और चाट, पाव-भाजी, कोल्ड ड्रिंक, आइस करीम, गोल-गप्पे, खुशबूदार पॅयन के कई स्टॉल थे जिन पर सनडे की वजह से काफ़ी भीड़ थी.
आंटी: “विजय , आज तो तुम मुझे स्वर्ग में ले आए हो. बहुत ही अच्छी जगह है.” में माको लेके लाइटिंग और म्यूज़िक वाले फव्वारे के पास आ गया. संगीत की धुन और लाइटिंग की चकाचौंध में फव्वारा मानो डॅन्स कर रहा हो. फव्वारे के चारों और युवतियाँ, आंटी के उमर की औरातें और बूधियाँ भी बहुत ही मॉडर्न, शरीर के उभारों को उजागर करते परिधानों में सजी धजी हंस रही थी, इस दिलकश वातावरण का पूरा मज़ा ले रही थी, आपने पुरुष साथियों के साथ हाथ में हाथ डाले घुल मिल बातें कर रही थी. चारों ओर लिपीसटिक पुते होंठ, फेशियल सा सज़ा चेहरा, बॉब कट तथा खुले केश, जीन्स में कसे नितंब, अधकती चोलियों से झाँकते स्तन की बहार थी. हम कई देर उस फव्वारे का आनंद लेते रहे.
“चलो आंटी पहले कुच्छ खा पे लेते हैं फिर तुम्हें पूरा पार्क दिखावँगा.” मेने आंटी से कहा. में कुच्छ समय व्यतीत करना चाहता था ताकि पार्क में घूमते समाय आंटी मनचले जोड़ों की भी मस्ती देखे. जो सेक्स की भूख पिच्छले 15 साल से उस में दबी पड़ी थी वा ऐसे मस्त वातावरण में उजागर हो जाय. में आंटी को ले खाने पीने के स्टल्लों में आ गया. हमने आलू टिकिया, दही चाट, गोलगप्पे इत्यादि का मिल के आनंद उठाया. फिर हमने कोल्ड ड्रिंक की 2 बॉटल्स ली और एक झाड़ के पास बैठ मज़े से पी.
में: “आंटी तुम यहीं बैठो; में आइस करीम यहीं ले आता हूँ. कैसी लओन – कॅंडी या कोन.”
आंटी: “मेरे लिए तो कल जैसी चूसने वाली ही लाना.” में आंटी के लिए 1 कॅंडी और मेरे लिए 1 कोन लेके आ गया. आंटी कॅंडी को मुख में ले चूसने लगी और में कोन में जीभ डाल डाल आइस करीम खाने लगा.
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में: “आंटी तुझे आइस करीम चूस के खाने में मज़ा आता है पर मुझे तो इस लंबी कोन में जीभ डाल चाट के खाने में मज़ा आता है.” आंटी खिलखिलके हंस पड़ी. “आंटी यह पार्क बहुत बड़ा है. क्या पार्क का पूरा चक्कर काट के देखोगी?”
आंटी: “हन, देखो लोग कैसे चक्कर काट रहे हैं. में तो अभी भी ऐसे पार्क के 3 चक्कर काट लूँ.” आंटी की बात सुन में उठ खड़ा हुवा और आंटी की तरफ हाथ बढ़ा दिया जिसे पकड़ वा भी खड़ी हो गई. पहले हम आंटी बेटों ने एक एक खुशबूदार पॅयन खाया और फिर हम भी पगडंडी पर आ गये. 9.30 बाज गये थे. पगडंडी पर नौजवान जोड़े, अधेड़ जोड़े सब थे जो साथ की महिला के हाथ में हाथ डाले, उसके कंधे पर हाथ रखे, उसकी कमर में हाथ डाले या उसे आपने बदन से बिल्कुल सटाए दीं दुनिया से बिल्कुल बेख़बर हो चल रहे थे. हम आंटी बेटे भी जो दुनिया की नज़र में जो भी हू उससे बेख़बर चुपचाप चल रहे थे. चलते चलते हम पार्क के उस भाग में आ पाहूंचे जहाँ आपेक्षाकृत कुच्छ अंधेरा था और काफ़ी तादाद में घने झाड़ थे. हर झाड़ के साए में एक जोड़ा बैठा हुवा था, पगडंडी से विपरीत दिशा में मुख किए एक दूसरे को बाँहू में समेटे गड्डमड्ड हो रहे थे, पुरुष महिलाओं की जांघों पर लेते हुए थे, कुच्छेक पुरुष तो महिलाओं को चेहरे पर झुके हुए किस कर रहे थे. चारों तरफ बहुत ही रंगीन और वासनात्मक नज़ारा था. आंटी कनखियों से जोड़ों की हरकतें देख रही थी और मेरे साथ चुपचाप चल रही थी.
ऐसे वातावरण में मेरी हालत खराब होना लाज़िमी थी खाष्कर जब मेरी जवान मस्त आंटी मेरे साथ थी जिसे में आपना बनाना चाह रहा था. पर मेने आपने आप पर पूरा काबू कर रखा था और आपनी ओर से कोई जल्दबाज़ी या पहल करना नहीं चाहता था. में आंटी की सेक्स की भूख को पूरा जगा देना चाहता था और उस में तड़प पैदा करना चाह रहा था. एक चक्कर काट के ही हम पार्क से बहार आ गये. 10.30 पर हम घर पाहूंछ गये और में आपने रूम में बाथरूम में घुस गया. बाथरूम से फ्रेश होके निकला तो देखा की आंटी का रूम बंद था और में भी आंटी के साथ फॅंटेसी में काम करीड़ा करते करते सो गया.
दूसरे दिन मंडे की वजह से मुझे स्टोर से वापस आने में ही रात के 9 बाज गये. खाना ख़त्म करके टीवी के सामने बैठते बैठते 10 बाज गये. में थोड़ी देर न्यूज़ चॅनेल्स देखता रहा. फिर मेने मासे बात च्छेदी, “क्यों आंटी, यहाँ चंडीगार्ह की शहरी जिंदगी पसंद आ रही है ना? बोल गाँव से अच्छी है या नहीं?”
आंटी: “मुझे एक बात यहाँ की बहुत अच्छी लगी की लोग एक दूसरे से मतलब नहीं रखते की कौन क्या पहन रहा है, कैसे रह रहा है. वहाँ गाँव में तो कोई अच्छा पहन ले तो लोग बात बनाने लग जाते हैं.”
में: “आंटी, अब यहाँ तुम कैसे एंजाय कराती हो यह कोई देखने वाला नहीं या तुम्हारे बड़े में सोचने वाला नहीं. में तुम्हें हर वा सुख दूँगा जो आज तक तुझे गाअंव में पाती की इतनी सेवा करके भी नहीं मिला. अब से मेरा केवल एक ही उद्देश्या है की तुझे दुनिया का हर वह सुख डून जो तुम जैसी सुंदर और जवान नारी को मिले.” में धीरे धीरे पासा फेंक रहा था.
आंटी,”जब उमर थी तो ये सब मिले नहीं.”
में: ” आंटी तुम्हें देखकर कोई भी तुम्हें 35 से ज़्यादा की नहीं बताएगा. फिर मन की तो तुम इतनी जवान हो की कुँवारी लड़कियों को भी मॅट देती हो. पिच्छले 15 साल से बीमार अंकल की सेवा करते करते तुम्हारी सोच कुच्छ ऐसी हो गई है. लेकिन अब तुम यहाँ आ गई हो और आपने वे सारे शौक और दबी हुई इच्छाएँ पूरी करो. यहाँ मेरी जान पहचान का एक बहुत ही अच्छा बेउटी पार्लर है. कल स्टोर जाते समय में तुझे वहाँ छोड़ दूँगा. तुम वहाँ फेशियल, आइब्रो, बालों की सेट्टिंग सब ठीक से करवा लेना.”
आंटी,”में जानती हूँ की तुम मुझे बहुत खुश देखना चाहते हो और में यहाँ सचमुच में बहुत खुश हूँ. पर ये सब करके मुझे किसे दिखाना है?”
में: “अरे आंटी ये किसी को दिखाने की बात नहीं है बल्कि खुद का सॅटिस्फॅक्षन होता है. देखना तुम्हें खुद पर नाज़ होगा. फिर में मुन्ना को सर्प्राइज़ देना चाहता हूँ. वा जब गाँव से वापस आएगा तो तुम्हे देखता ही रह जाएगा और सोचेगा की हमारे घर में यह स्वर्ग की आप्सरा कहाँ से आ गई?‚
आंटी: “मेरे ऐसे शहरी रूप को तो मेरा शहरी नटखट बड़ा ही देखना चाहता है. अजय तो भोलाभाला और सीधा साधा है उसे तो सीधी साधी ही आंटी चाहिए.”
में: “आंटी, मुन्ना अब पहलेवला मुन्ना नहीं रहा. कुच्छ ही दिनों में यहाँ रह के पूरा चालू हो गया है. स्टोर में भी उसने आपना काम इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया है की सब उसकी प्रशंसा करते हैं.”
आंटी: “तुम्हारे साथ रह के तो आजे चालू नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा. कुच्छ ही दिनों में उसे भी आपने जैसा बना लेगा.”
में: “आंटी, अजय भी तुम्हारी तरह पूरा शौकीन है. वा तो चुपा रुस्तम निकला पर मुझे पता चल गया और एक बार मेरे से खुल गया तो बहुत जल्दी पूरा खुल गया. मेरा दोस्त वैसे ही मक्खन सा चिकना है, अब देखो कैसे स्मार्ट बन के रहता है और टाइट स्मार्ट कपड़ों में कैसा मस्त लगता है. तुम तो वैसे ही इतनी स्मार्ट हो और तोडसा भी रख रखाव रखोगी तो पूरी निखार जाओगी.”
आंटी: “पर एक विधवा का ज़्यादा बन तन के रहना…. भला आस पास के लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?”
में: “आंटी ये सब गाँव की बातें हैं. यहाँ शहर में इन बातों की कोई परवाह नहीं कराता. मुझे ऐसे लोगों की कोई परवाह नहीं. जिस भी चीज़ से या काम से तुझे खुशी दे सकूँ उसे करने में ना तो मुझे कोई संकोच है और ना ही किसी की परवाह. यह विधवा वाली सोच मन से बिल्कुल निकाल दो. कौन कहता है की तुम विधवा हो? तुम तो मॅन्ज़ एकदम सधवा हो. अब तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह बन तन के रहा करो.”
आंटी: “तो अब तुम मुझे विधवा से वापस सुहागन बनाएगा.”
आंटी: “हन, देखो लोग कैसे चक्कर काट रहे हैं. में तो अभी भी ऐसे पार्क के 3 चक्कर काट लूँ.” आंटी की बात सुन में उठ खड़ा हुवा और आंटी की तरफ हाथ बढ़ा दिया जिसे पकड़ वा भी खड़ी हो गई. पहले हम आंटी बेटों ने एक एक खुशबूदार पॅयन खाया और फिर हम भी पगडंडी पर आ गये. 9.30 बाज गये थे. पगडंडी पर नौजवान जोड़े, अधेड़ जोड़े सब थे जो साथ की महिला के हाथ में हाथ डाले, उसके कंधे पर हाथ रखे, उसकी कमर में हाथ डाले या उसे आपने बदन से बिल्कुल सटाए दीं दुनिया से बिल्कुल बेख़बर हो चल रहे थे. हम आंटी बेटे भी जो दुनिया की नज़र में जो भी हू उससे बेख़बर चुपचाप चल रहे थे. चलते चलते हम पार्क के उस भाग में आ पाहूंचे जहाँ आपेक्षाकृत कुच्छ अंधेरा था और काफ़ी तादाद में घने झाड़ थे. हर झाड़ के साए में एक जोड़ा बैठा हुवा था, पगडंडी से विपरीत दिशा में मुख किए एक दूसरे को बाँहू में समेटे गड्डमड्ड हो रहे थे, पुरुष महिलाओं की जांघों पर लेते हुए थे, कुच्छेक पुरुष तो महिलाओं को चेहरे पर झुके हुए किस कर रहे थे. चारों तरफ बहुत ही रंगीन और वासनात्मक नज़ारा था. आंटी कनखियों से जोड़ों की हरकतें देख रही थी और मेरे साथ चुपचाप चल रही थी.
ऐसे वातावरण में मेरी हालत खराब होना लाज़िमी थी खाष्कर जब मेरी जवान मस्त आंटी मेरे साथ थी जिसे में आपना बनाना चाह रहा था. पर मेने आपने आप पर पूरा काबू कर रखा था और आपनी ओर से कोई जल्दबाज़ी या पहल करना नहीं चाहता था. में आंटी की सेक्स की भूख को पूरा जगा देना चाहता था और उस में तड़प पैदा करना चाह रहा था. एक चक्कर काट के ही हम पार्क से बहार आ गये. 10.30 पर हम घर पाहूंछ गये और में आपने रूम में बाथरूम में घुस गया. बाथरूम से फ्रेश होके निकला तो देखा की आंटी का रूम बंद था और में भी आंटी के साथ फॅंटेसी में काम करीड़ा करते करते सो गया.
दूसरे दिन मंडे की वजह से मुझे स्टोर से वापस आने में ही रात के 9 बाज गये. खाना ख़त्म करके टीवी के सामने बैठते बैठते 10 बाज गये. में थोड़ी देर न्यूज़ चॅनेल्स देखता रहा. फिर मेने मासे बात च्छेदी, “क्यों आंटी, यहाँ चंडीगार्ह की शहरी जिंदगी पसंद आ रही है ना? बोल गाँव से अच्छी है या नहीं?”
आंटी: “मुझे एक बात यहाँ की बहुत अच्छी लगी की लोग एक दूसरे से मतलब नहीं रखते की कौन क्या पहन रहा है, कैसे रह रहा है. वहाँ गाँव में तो कोई अच्छा पहन ले तो लोग बात बनाने लग जाते हैं.”
में: “आंटी, अब यहाँ तुम कैसे एंजाय कराती हो यह कोई देखने वाला नहीं या तुम्हारे बड़े में सोचने वाला नहीं. में तुम्हें हर वा सुख दूँगा जो आज तक तुझे गाअंव में पाती की इतनी सेवा करके भी नहीं मिला. अब से मेरा केवल एक ही उद्देश्या है की तुझे दुनिया का हर वह सुख डून जो तुम जैसी सुंदर और जवान नारी को मिले.” में धीरे धीरे पासा फेंक रहा था.
आंटी,”जब उमर थी तो ये सब मिले नहीं.”
में: ” आंटी तुम्हें देखकर कोई भी तुम्हें 35 से ज़्यादा की नहीं बताएगा. फिर मन की तो तुम इतनी जवान हो की कुँवारी लड़कियों को भी मॅट देती हो. पिच्छले 15 साल से बीमार अंकल की सेवा करते करते तुम्हारी सोच कुच्छ ऐसी हो गई है. लेकिन अब तुम यहाँ आ गई हो और आपने वे सारे शौक और दबी हुई इच्छाएँ पूरी करो. यहाँ मेरी जान पहचान का एक बहुत ही अच्छा बेउटी पार्लर है. कल स्टोर जाते समय में तुझे वहाँ छोड़ दूँगा. तुम वहाँ फेशियल, आइब्रो, बालों की सेट्टिंग सब ठीक से करवा लेना.”
आंटी,”में जानती हूँ की तुम मुझे बहुत खुश देखना चाहते हो और में यहाँ सचमुच में बहुत खुश हूँ. पर ये सब करके मुझे किसे दिखाना है?”
में: “अरे आंटी ये किसी को दिखाने की बात नहीं है बल्कि खुद का सॅटिस्फॅक्षन होता है. देखना तुम्हें खुद पर नाज़ होगा. फिर में मुन्ना को सर्प्राइज़ देना चाहता हूँ. वा जब गाँव से वापस आएगा तो तुम्हे देखता ही रह जाएगा और सोचेगा की हमारे घर में यह स्वर्ग की आप्सरा कहाँ से आ गई?‚
आंटी: “मेरे ऐसे शहरी रूप को तो मेरा शहरी नटखट बड़ा ही देखना चाहता है. अजय तो भोलाभाला और सीधा साधा है उसे तो सीधी साधी ही आंटी चाहिए.”
में: “आंटी, मुन्ना अब पहलेवला मुन्ना नहीं रहा. कुच्छ ही दिनों में यहाँ रह के पूरा चालू हो गया है. स्टोर में भी उसने आपना काम इतनी अच्छी तरह से संभाल लिया है की सब उसकी प्रशंसा करते हैं.”
आंटी: “तुम्हारे साथ रह के तो आजे चालू नहीं बनेगा तो और क्या बनेगा. कुच्छ ही दिनों में उसे भी आपने जैसा बना लेगा.”
में: “आंटी, अजय भी तुम्हारी तरह पूरा शौकीन है. वा तो चुपा रुस्तम निकला पर मुझे पता चल गया और एक बार मेरे से खुल गया तो बहुत जल्दी पूरा खुल गया. मेरा दोस्त वैसे ही मक्खन सा चिकना है, अब देखो कैसे स्मार्ट बन के रहता है और टाइट स्मार्ट कपड़ों में कैसा मस्त लगता है. तुम तो वैसे ही इतनी स्मार्ट हो और तोडसा भी रख रखाव रखोगी तो पूरी निखार जाओगी.”
आंटी: “पर एक विधवा का ज़्यादा बन तन के रहना…. भला आस पास के लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे और क्या सोचेंगे?”
में: “आंटी ये सब गाँव की बातें हैं. यहाँ शहर में इन बातों की कोई परवाह नहीं कराता. मुझे ऐसे लोगों की कोई परवाह नहीं. जिस भी चीज़ से या काम से तुझे खुशी दे सकूँ उसे करने में ना तो मुझे कोई संकोच है और ना ही किसी की परवाह. यह विधवा वाली सोच मन से बिल्कुल निकाल दो. कौन कहता है की तुम विधवा हो? तुम तो मॅन्ज़ एकदम सधवा हो. अब तुम बिल्कुल एक सुहागन की तरह बन तन के रहा करो.”
आंटी: “तो अब तुम मुझे विधवा से वापस सुहागन बनाएगा.”
Re: चुदसी आंटी और गान्डू दोस्त sex hindi long story
हम आंटी बेटे इस प्रकार कई देर बातें करते रहे. फिर रोज की तरह आंटी आपने कमरे में सोने के लिए चली गई. में बिस्तर पर कई देर पड़े पड़े सोचता रहा की आंटी मेरी कोई भी बात का थोड़ा सा भी विरोध नहीं कराती है. पर में आंटी को पूरी तरह खोल लेना चाहता था की आंटी की मस्त जवानी का खुल के मज़ा लिया जाय. आंटी आधुनिक विचारों की, घूमने फिरने की, पहनने ओढ़ने की तथा मौज मस्ती की शौकीन थी. इसलिए में कोई भी हड़बड़ी नहीं करना चाहता था. में इंतज़ार कर रहा था की जल्द ही यह फूल खुद बा खुद टूट के मेरी गोद में गिरे. उसे विधवा से सुहागन बनाओन और उसका सुहाग में खुद बनूँ.
दूसरे दिन स्टोर जाते समय में आंटी को बेऔती पार्लर पर ले गया. पार्लर की आंटी की उमर की अधेड़ मालकिन मेरे स्टोर की पर्मनेंट ग्राहक थी सो मेरा उससे बहुत अच्छा परिचय था. आंटी की उमर की होने के बावजूद उसका फिगर, रहण सहन और बनाव शृंगार बिल्कुल युवतियों जैसा था. उसकी टाइट जीन्स, स्लॉगान लिखा टॉप, बॉब कट बाल, फेशियल से पुता फेस सब मुझे बहुत अच्छा लगता था. इस पार्लर में अधिकतर अधेड़ महिलाएँ ही आती थी जिनकी चाह उस मालकिन जैसी बनने की रहती थी. मेने उस पार्लर की मालकिन से हाय हेल्लोव की, आंटी का उसे परिचय दिया और आंटी को वहीं छोड़ में आपने स्टोर में चला गया.
रात जब 8 बजे के करीब घर पाहूंचा तो आंटी ने ही दरवाजा खोला. आंटी का चेहरा बिल्कुल चमक दमक रहा था. फेशियल, आइब्रो, बालों की कटिंग सब कुच्छ बहुत सलीके से की गयी थी. में कई देर आंटी को एक तक देखते रह गया और आंटी लज्जशील नारी की तरह मंद मंद मुस्करते हुए शर्मा रही थी.
में: “वाह! आज तो बदले बदले सरकार नज़र आ रहे हैं. आंटी तुम्हें तो उस बेऔती पार्लर वाली म्र्स. केपर ने एकदम आपने जैसी नौजवान युवती सा बना दिया है. जानती हो वा भी तुम्हारी उमर की एक विधवा है पर क्या आपने आप को मेनटेन रखती है की बस मेरे जैसे नौजवान भी उसे देख आहें भरे.”
आंटी: “तो उन आहें भर्नेवालों में एक तुम भी हो. चलो हाथ मुँह धो रीडी हो जाओ में खाना परौसती हूँ.” फिर में थोड़ी ही देर में आंटी के साथ डाइनिंग टेबल पर था. रोज की तरह हम आंटी बेटों ने साथ साथ खाना खाया. में खाना ख़ाके आज आपने रूम में आ गया और बेड पर लेट गया. थोड़ी देर में आंटी भी मेरे रूम में आ गई. मुझे लेता देख उसने पूछा,
“अरे विजय आज खाना खाते ही लेट गये. क्या बात है, तबीयत तो ठीक है ना? कहीं उस बेऔती पार्लर वाली की याद तो नहीं आ रही?”
में: “नहीं आंटी जब से तुम यहाँ आ गई हो मुझे और किसी की याद नहीं आती. मेरे लिए तो तुम ही सब कुच्छ हो.”
आंटी,”तुम आजकल बातें बड़ी प्यारी प्यारी करते हो. कहीं कोई लड़की तो नहीं पटाने लगे?”
में,”आंटी तुम तो जानती हो की लड़की वादकी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं.”
“लेकिन मेरा तो आजकल तुम बहुत ही ध्यान रख रहे हो.” यह कह आंटी भी मेरे पास मेरे बेड पर बैठ गई और में भी बेड पर टाँगें पसार बैठ गया.
में,”पर आंटी तुम कोई लड़की थोड़े ही हो.” ऐसा कह कर मेने डबल बेड पर बैठी हुई आंटी को आपने आगोश में भर लिया और कहा,”और अगर तुम लड़की होती तो ज़रूर पाटाता और यदि नहीं पट्टी तो ज़बरदस्ती भगा के ले जाता.”
“पर में तो कोई लड़की नहीं. में तो 46 साक़ल की एक ढलती उमर की पूरी औरात हूँ. मुझे भगा के तू क्या करेगा?” आंटी ने मेरी आगोश में ही मेरे सीने पर सर टिकाते हुए कहा. आंटी मेरी और देख कर हंस रही थी. मेने आंटी को आगोश से मुक्त कर दिया और उसके घने बालों पर हाथ फेरने लगा.
में,”आंटी मुझे तो शुरू से ही तुम्हारे जैसी बड़ी उमर की औरातें ही अच्छी लगती है. स्टोर में एक से एक नौजवान लड़कियाँ मेरे पर माराती है, पर में उनकी तरफ देखता तक नहीं.”
आंटी: “तो क्या मेरे जैसी किसी से शादी करेगा? मेरा इतना सजीला नौजवान है, ऐसे गतीले मर्द को तो एक से एक सुंदर और मॉडर्न लड़की मिल जाएगी. कहीं कोई चक्कर वाककर चल रहा है तो बता, उसे कल ही तेरी बाँहो बना ले आती हूँ.”
में: “नहीं आंटी, ऐसा सोचना भी मत. अभी तो तुम जैसी मन मिलने वाली आंटी के रूप में मुझे दोस्त मिली है. अभी तो मेरा पूरा ध्यान इसी बात पर है की तुझे हर प्रकार का सुख डून, तेरी जी भर के सेवा करूँ. मुझे तेरे ही साथ सिनिमा जाने में , होटेलों में खाने में, पार्कोन की शायर करने में मज़ा आता है. फिर अजय जैसा प्यारा दोस्त मिला है की आपने बड़े भैया की खुशी के लिए कुच्छ भी करने को हरदम तैयार रहता है. इतने दिन तो में शहर में अकेला था, अब इतनी प्यारी आंटी और दोस्त का साथ मिला है तो तू कह रही है की कोई मॉडर्न लड़की को तेरी बाँहो बना के ले अओन. जानती हो ऐसी लड़की आते ही सबसे पहले तेरी और अजय की यहाँ से छूटटी करेगी. जो घर प्यार का स्वर्ग बना हुवा है उसे नरक बना देगी. मुझे तो तेरे जैसी कोई चाहिए जिसने पाती की सेवा में, घर को जोड़े रखने में आपने सारे सुख चैन छोड़ दिए.”
आंटी: “तो क्या म्र्स. केपर चाहिए? उसकी तो बड़ी प्रशंसा कर रहे थे. लगता है उसके तो पुर दीवाने हो. तेरे जैसे गबरू गतीले जवान को पाके तो वा निहाल हो जाएगी. यदि उसे दुबारा शादी नहीं भी करनी है तो तेरे जैसे मस्त जवान की बात आते ही वा शादी के लिए मचल जाएगी. तू कहे तो बात चला के देखूं.”
“तूने भी कहाँ से ये शादी वाली बात च्छेद दी. मुझे कोई केपर वपूर नहीं चाहिए. अभी तो मुझे मेरी प्यारी प्यारी आंटी चाहिए जिसके सामने म्र्स. केपर तो एक लौंडिया जैसी है. तो आंटी मेरे जैसे को देख वा म्र्स. केपर शादी के लिए तैयार हो जाएगी तो फिर तुम्हें भी मेरे जैसा कोई मिल गया तो फ़ौरन पाट जाओगी.” यह कह मेने माको वापस आपने आगोश में भर लिया.
दूसरे दिन स्टोर जाते समय में आंटी को बेऔती पार्लर पर ले गया. पार्लर की आंटी की उमर की अधेड़ मालकिन मेरे स्टोर की पर्मनेंट ग्राहक थी सो मेरा उससे बहुत अच्छा परिचय था. आंटी की उमर की होने के बावजूद उसका फिगर, रहण सहन और बनाव शृंगार बिल्कुल युवतियों जैसा था. उसकी टाइट जीन्स, स्लॉगान लिखा टॉप, बॉब कट बाल, फेशियल से पुता फेस सब मुझे बहुत अच्छा लगता था. इस पार्लर में अधिकतर अधेड़ महिलाएँ ही आती थी जिनकी चाह उस मालकिन जैसी बनने की रहती थी. मेने उस पार्लर की मालकिन से हाय हेल्लोव की, आंटी का उसे परिचय दिया और आंटी को वहीं छोड़ में आपने स्टोर में चला गया.
रात जब 8 बजे के करीब घर पाहूंचा तो आंटी ने ही दरवाजा खोला. आंटी का चेहरा बिल्कुल चमक दमक रहा था. फेशियल, आइब्रो, बालों की कटिंग सब कुच्छ बहुत सलीके से की गयी थी. में कई देर आंटी को एक तक देखते रह गया और आंटी लज्जशील नारी की तरह मंद मंद मुस्करते हुए शर्मा रही थी.
में: “वाह! आज तो बदले बदले सरकार नज़र आ रहे हैं. आंटी तुम्हें तो उस बेऔती पार्लर वाली म्र्स. केपर ने एकदम आपने जैसी नौजवान युवती सा बना दिया है. जानती हो वा भी तुम्हारी उमर की एक विधवा है पर क्या आपने आप को मेनटेन रखती है की बस मेरे जैसे नौजवान भी उसे देख आहें भरे.”
आंटी: “तो उन आहें भर्नेवालों में एक तुम भी हो. चलो हाथ मुँह धो रीडी हो जाओ में खाना परौसती हूँ.” फिर में थोड़ी ही देर में आंटी के साथ डाइनिंग टेबल पर था. रोज की तरह हम आंटी बेटों ने साथ साथ खाना खाया. में खाना ख़ाके आज आपने रूम में आ गया और बेड पर लेट गया. थोड़ी देर में आंटी भी मेरे रूम में आ गई. मुझे लेता देख उसने पूछा,
“अरे विजय आज खाना खाते ही लेट गये. क्या बात है, तबीयत तो ठीक है ना? कहीं उस बेऔती पार्लर वाली की याद तो नहीं आ रही?”
में: “नहीं आंटी जब से तुम यहाँ आ गई हो मुझे और किसी की याद नहीं आती. मेरे लिए तो तुम ही सब कुच्छ हो.”
आंटी,”तुम आजकल बातें बड़ी प्यारी प्यारी करते हो. कहीं कोई लड़की तो नहीं पटाने लगे?”
में,”आंटी तुम तो जानती हो की लड़की वादकी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं.”
“लेकिन मेरा तो आजकल तुम बहुत ही ध्यान रख रहे हो.” यह कह आंटी भी मेरे पास मेरे बेड पर बैठ गई और में भी बेड पर टाँगें पसार बैठ गया.
में,”पर आंटी तुम कोई लड़की थोड़े ही हो.” ऐसा कह कर मेने डबल बेड पर बैठी हुई आंटी को आपने आगोश में भर लिया और कहा,”और अगर तुम लड़की होती तो ज़रूर पाटाता और यदि नहीं पट्टी तो ज़बरदस्ती भगा के ले जाता.”
“पर में तो कोई लड़की नहीं. में तो 46 साक़ल की एक ढलती उमर की पूरी औरात हूँ. मुझे भगा के तू क्या करेगा?” आंटी ने मेरी आगोश में ही मेरे सीने पर सर टिकाते हुए कहा. आंटी मेरी और देख कर हंस रही थी. मेने आंटी को आगोश से मुक्त कर दिया और उसके घने बालों पर हाथ फेरने लगा.
में,”आंटी मुझे तो शुरू से ही तुम्हारे जैसी बड़ी उमर की औरातें ही अच्छी लगती है. स्टोर में एक से एक नौजवान लड़कियाँ मेरे पर माराती है, पर में उनकी तरफ देखता तक नहीं.”
आंटी: “तो क्या मेरे जैसी किसी से शादी करेगा? मेरा इतना सजीला नौजवान है, ऐसे गतीले मर्द को तो एक से एक सुंदर और मॉडर्न लड़की मिल जाएगी. कहीं कोई चक्कर वाककर चल रहा है तो बता, उसे कल ही तेरी बाँहो बना ले आती हूँ.”
में: “नहीं आंटी, ऐसा सोचना भी मत. अभी तो तुम जैसी मन मिलने वाली आंटी के रूप में मुझे दोस्त मिली है. अभी तो मेरा पूरा ध्यान इसी बात पर है की तुझे हर प्रकार का सुख डून, तेरी जी भर के सेवा करूँ. मुझे तेरे ही साथ सिनिमा जाने में , होटेलों में खाने में, पार्कोन की शायर करने में मज़ा आता है. फिर अजय जैसा प्यारा दोस्त मिला है की आपने बड़े भैया की खुशी के लिए कुच्छ भी करने को हरदम तैयार रहता है. इतने दिन तो में शहर में अकेला था, अब इतनी प्यारी आंटी और दोस्त का साथ मिला है तो तू कह रही है की कोई मॉडर्न लड़की को तेरी बाँहो बना के ले अओन. जानती हो ऐसी लड़की आते ही सबसे पहले तेरी और अजय की यहाँ से छूटटी करेगी. जो घर प्यार का स्वर्ग बना हुवा है उसे नरक बना देगी. मुझे तो तेरे जैसी कोई चाहिए जिसने पाती की सेवा में, घर को जोड़े रखने में आपने सारे सुख चैन छोड़ दिए.”
आंटी: “तो क्या म्र्स. केपर चाहिए? उसकी तो बड़ी प्रशंसा कर रहे थे. लगता है उसके तो पुर दीवाने हो. तेरे जैसे गबरू गतीले जवान को पाके तो वा निहाल हो जाएगी. यदि उसे दुबारा शादी नहीं भी करनी है तो तेरे जैसे मस्त जवान की बात आते ही वा शादी के लिए मचल जाएगी. तू कहे तो बात चला के देखूं.”
“तूने भी कहाँ से ये शादी वाली बात च्छेद दी. मुझे कोई केपर वपूर नहीं चाहिए. अभी तो मुझे मेरी प्यारी प्यारी आंटी चाहिए जिसके सामने म्र्स. केपर तो एक लौंडिया जैसी है. तो आंटी मेरे जैसे को देख वा म्र्स. केपर शादी के लिए तैयार हो जाएगी तो फिर तुम्हें भी मेरे जैसा कोई मिल गया तो फ़ौरन पाट जाओगी.” यह कह मेने माको वापस आपने आगोश में भर लिया.