रश्मि एक सेक्स मशीन compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 07 Dec 2014 07:33

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -49

गतान्क से आगे...


“ गुरुजी से तुम खुद अपने संस्था मे शामिल करने के लिए अनुरोध करना.” रत्ना ने आगे कहा “ और उनसे कहना कि वो अपना महाप्रसाद देकर तुम्हे आशीर्वाद दें. तुम लेना चाहोगी उनका महाप्रसाद”



“ ये महाप्रसाद क्या होता हिया?” मैं कुच्छ समझ नही पायी.



“ अरे बुद्धू, स्वामी जी का महाप्रसाद बहुत किस्मेत वाले ही ग्रहण कर पाते हैं. स्वामीजी से महाप्रसाद पाना हर किसी की किस्मेत मे नही होता. ये उनके प्रति पूरी लगन से पूर्ण समर्पण भावना से ही हासिल हो सकता है. ये कोई खाने या पीने की वास्तु नही है. इसे तो अपनी कोख मे ग्रहण करना पड़ता है. उनका महाप्रसाद यहाँ पड़ता है.” कहकर रत्ना ने मेरी नाभि के निचले हिस्से को च्छुआ “ उसे नौ महीने तक अपनी कोख मे सहेज कर रखना पड़ता है तब जा कर उनका महाप्रसाद फूल का रूप ग्रहण करता है. उनके जैसी एक दिव्य संतान का आशीर्वाद मिलता है. कब तक यूँ ही अकेली रहोगी? अब तो एक सुंदर सा बच्चा परिवार मे आने का समय हो गया है. अपनी कोख मे सबसे पहले गुरुदेव का आशीर्वाद लेना. तुम्हारा जीवन धन्य हो जाएगा.”



“ आश्रम मे कई महिलाओं को स्वामी जी का आशीर्वाद मिल चुक्का है. उनके वीर्य मे इतनी शक्ति है की फूल काफ़ी तंदुरुस्त और मेघावी होता है. अब तुम्हे भी तो शादी को कितने दिन हो चुके हैं. अभी तक अकेली ही हो. तुम्हे नही लगता जिंदगी का सूना पन?” सेवकराम ने पूचछा.



मैं चुप चाप खड़ी रही. कुकछ देर असमंजसयता मे रही क्योंकि इसके साइड एफेक्ट्स भी हो सकते हैं. पता नही देव इसे किस तरह ले. कहीं इसका परिणाम हमारे वैवाहित संबंधों मे शक़ के बीज ना पैदा कर दें. कहीं हमारा संबंध ही टूट जाए. क्या देव इस तरह के बच्चे को स्वीकार कर पाएगा. इतने दिन तो हमारे जीवन मे किसी की किल्कारी नही गूँज पाई. ऐसे ही गोद भर जाए तो बुराई क्या है. खून तो मेरा ही होगा ना. मैं इस खुशी के लिए कुच्छ भी कर सकती हूँ.



मैने अपने सिर को उठाए बिना हामी मे सिर हिला दिया.



आश्रम के इनएग्रेशन के मौके पर पूरे आश्रम को बहुत सजाया गया था. मैं भी अक्सर आश्रम मे चली जाती थी. जैसा की मैने पहले बताया कि रत्ना जी और सेवकराम जी के बहलाने फुसलाने पर देव भी आश्रम का शिष्य बन गया था. उसे आश्रम की शिष्याओं ने ऐसा अपना रंग दिखाया की देव तो बस लट्तू हो कर रह गया. वैसे भी शुरू से ही उसकी आदत थी इधर उधर मुँह मारने की उपर से अक्सर शहर से बाहर रहने की मजबूरी सोने पे सुहागा का काम करती थी. पता नही मेरी नज़रों से दूर होकर कब किसके साथ गुकच्छर्रे उड़ाता होगा.



देव को मैने अपने सेक्षुयल रिलेशन्स के बारे मे कुच्छ भी नही बताया था. मैं शुरू शुरू मे झिझक रही थी. कुच्छ भी हो किसी पति के लिए उनकी पत्नी का दूसरे आदमियों से शारीरिक संबंध के बारे मे जानकारी देना हमेशा ख़तरेवाला काम रहा है. मेरे एक्सट्रा मार्षल अफेर्स के बारे मे धीरे धीरे उसे सब पता चला इसलिए उसने इसे सहजता से स्वीकार कर लिया. अब हम दोनो जानते थे कि दूसरा आश्रम मे क्या कर रहा होगा. मगर एक दो बार आपसी सेक्स के दौरान फॅंटसाइज़ करने के अलावा हम दोनो एक दूसरे को इस बारे मे टोकते नही थे.



वैसे उसने कभी भी मुझे किसी बात से मना नही किया था. वो खुद ही मुझे एक्सपोषर के लिए उकसाता रहता था. दूसरो के सामने मेरी नुमाइश करने मे उसे मज़ा आता था. हम जब हनिमून पर गोआ गये थे तो उसने मुझे वहाँ पब्लिक बीच पर टू पीस बिकनी मे रहने को कहा था. बिकनी भी वो खुद ही पसंद कर लाया था. वो इतनी छ्होटी थी कि लगभग पूरा बदन ही नग्न दिख जाता था. ड्रेस मेटीरियल भी काफ़ी महीन था और हल्के रंग का होने से वो भीगने के बाद पारदर्शी फिल्म की तरह बदन से चिपक जाता था. मुझे तो शुरू शुरू मे बहुत गुस्सा आता था उसकी इन छिछोरि हरकतों पर और उसके इस तरह के पागलपन के शौक़ पर. इसे ले कर हम लोगों मे बहुत झगड़ा हुया था. मगर बाद मे मुझे ही उनके आगे झुकना पड़ा. मुझे अपने बदन की नुमाइश करने मे शर्म आती थी क्योंकि मैं देहात से थी, हमारे यहा लड़कियों पर बहुत पाबंदी रहती थी. लेकिन हज़्बेंड की खुशी की खातिर मैने जल्दी ही अपने को बदल लिया.

खैर हम बात कर रहे थे आश्रम के इनॉवौग्रेशन की. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि बड़े स्वामी जी के सामने मैं किस तरह अपने साथ सहवास का प्रस्ताव रखूँगी. कुच्छ भी हो स्वामी जी थे तो अंजान ही. उनके सामने एकदम से संभोग का प्रस्ताव रखना किसी भी घरेलू औरत के लिए एक बड़ी बात थी.

सेवकराम जी के साथ शारीरिक संबंध तो एक तरह से छल से शुरू हुआ था. रत्ना ना होती तो शायद इस संबंध की नीव ही नही पड़ पाती. रत्ना ने हम दोनो के बीच किसी सेतु का काम किया था. ये अलग बात है मैने उनके साथ सहवास को अपनी कल्पना से भी ज़्यादा एंजाय किया था. लेकिन किसी अंजान आदमी से प्रण निवेदन वो भी पहली मुलाकात मे. पता नही वो मुझे क्या समझेंगे. मैं इस तरह के कई शन्शयो से घिरी हुई थी. मन मे कुच्छ झिझक भी थी. लेकिन रत्ना के और सेवकराम जी के समझा ने पर कुच्छ मन मे तसल्ली हुई. रत्ना ने स्वामी जी की इतनी तारीफ की उनके किसी घोड़े के समान लिंग की इतनी व्याख्या की, कि मैं उनसे अपने पहले मिलन के दिन मे जागते हुए भी सपने देखने लगी. मुझे ऐसा लगने लगा कि अगर मैने बड़े स्वामी जी के साथ सेक्स नही किया तो मेरे इस जीवन के ही कोई मायने नही रह जाएँगे.

फिर भी एक डर सा बना हुआ था कि देव को जिस दिन पता चलेगा कि उसका पहले बच्चे का बाप वो नहीं कोई और है तो पता नही वो कैसे रिक्ट करेंगे. लेकिन आश्रम जाय्न करने के बाद उनके हावभाव से लग गया था कि वो कुच्छ नही बोलेंगे. और पूरी घटना को सहजता से लेंगे.

खैर देव भी इनॉवौग्रेशन की तैयारी मे व्यस्त हो गया. लेकिन अचानक ही किसी ज़रूरी काम से उसे कोलकाता जाना पड़ा. दस - पंद्रह दिन का प्रोग्राम था. ये खबर मेरे लिए बहुत सुकून लेकर आई. इस खबर को सुनकर मेरी साँस मे साँस आई क्योंकि अब मैं किसी भी तरह के कार्य के लिए आज़ाद थी. किसी से अब कोई रोक टोक या ख़तरा नही था.



बस तीन दिन ही बाकी थे कार्यक्रम शुरू होने मे. जाने से पहले मेरे कहने पर तृप्ति (उस आश्रम की एक सन्यासिन) आई और देव को कह दिया कि मुझे आश्रम के कामो मे बिज़ी रखेगी इसलिए हो सकता है फोन पर मैं नहीं उपलब्ध हो सकूँ. देव उसके और रत्ना के मनाने पर खुशी खुशी मान गया. बदले मे उन्होंने देव को जाने से पहले एक हसीन रात दी जिसमे रात भर ना देव सोया और ना तृप्ति और रत्ना. दोनो ने सुबह तक देव को झींझोड़ कर रख दिया. उस दौरान मैं सेवक राम के कमरे मे ही थी.

मैं घर मे अब कम समय बिताती और दिन भर आश्रम मे रहने लगी. वहाँ एक से एक मर्द थे जिनसे मैं अपने बदन की भूख मिटाती थी. मेरी हालत सेक्स की किसी भूखी न्यंफोमानियाक की तरह हो गयी थी. अब मेरा मन किसी एक के संभोग से नही भरता. जब तक घंटो की चुदाई नही होती तब तक मेरे जिस्म की आग नही बुझ पाती थी. दिन मे दो चार बार संभोग हुए बिना मुझे शांति नही मिलती थी. सेवकराम जी ने मुझे जी भर कर भोगा था. सिर्फ़ सेवकराम जी ही क्यों उस आश्रम मे कोई ऐसा नही बचा था जिसने मुझे चोदा ना हो. आश्रम के हर शिष्य ने अपने वीर्य से मेरा बदन को रंगा था. हर शख्स ने अपनी भूख मुझ से मिटाई. अब तो सिर्फ़ बड़े स्वामी जी का इंतेज़ार था.



उन लोगों के मुँह से रोज़रोज बड़े गुरुजी के साइज़ और उनके स्टॅमिना के बारे मे सुन सुन कर मैं गीली हो जाती थी. कई बार रात मे अकेले मे उन्हे याद करके अपनी उंगलियों से ही अपनी प्यास मिटाती थी.

कार्यक्रम के एक दिन पहले आश्रम के संस्थापक बड़े गुरुजी श्री त्रिलोकनंद जी पधारे. अफ क्या चमक थी उनके चेहरे पर. क्या व्यक्तित्व था उनका. मैं तो किसी चकोर की तरह उन्हे देखती ही रह गयी. उनके एक एक अंग से पौरुष्टा फूट रही थी. जैसा उनका कद था वैसी ही काठी. उनकी बोली तो और ही ज़्यादा मीठी थी. इसमे कोई आश्चर्य नही कि जो भी एक बार उनसे मिलता वो उनके सम्मोहन मे ना बँध जाता हो.



शाम को खाना खाने के बाद जब वो अपने कमरे मे गये. तो रत्ना मुझे लेकर उनके कमरे मे गयी. रत्ना ने पहले से ही मुझे सब समझा रखा था की उनके सामने क्या करना है और कैसे करना है.



मेरे बदन पर उस वक़्त सिर्फ़ एक झीनी साडी थी. सारी के अलावा मुझे कुच्छ भी नही पहनने दिया था. उनके कमरे मे प्रवेश करने से पहले रत्ना मुझे एक कमरे मे ले गयी और वहाँ मुझे अपने अन्द्रूनि वस्त्र खोल कर रख देने को कहा. मैने वैसा ही किया. मैने अपने सारे कपड़े उतार कर सिर्फ़ सारी को बदन पर लप्पेट लिया. सारी भी ऐसी थी की मेरा एक एक अंग बेपर्दा था. रत्ना ने मेरे पूरे बदन को घुमा फिरा कर निहारा. फिर मेरे कपड़ों को तह करके वहाँ मौजूद एक शेल्फ मे रख दिया.



सामने लगे आदमकद आईने मे मैने अपने आप को निहारा. मैं तो बला की खूबसूरत लग रही थी उस परिधान मे. मेरी हर चाल पर मेरे दोनो भारी भारी स्तन इधर उधर उच्छल रहे थे. रत्ना ने वहाँ मुझे स्टूल पर बिठा कर मेरे चेहरे पर हल्का सा मेकप किया. बदन पर एक पर्फ्यूम भी लगा दिया. ऐसा लग रहा था मानो रत्ना मुझे अपने प्रियतम से मिलने ले जाने के लिए तैयार कर रही हो. तभी एक शिष्य आकर ढेर सारी गुलाब की पंखुड़िया दे गया. रत्ना ने मेरे हाथों को जोड़ कर उसमे गुलाब की पंखुड़ीयाँ भर दी थी. फिर मुझे लेकर वो स्वामीजी के कमरे तक गयी.

मुझे दरवाजे पर रुकने को कहकर पल भर के लिए रत्ना अंदर गयी. मैं उस वक़्त चुपचाप बाहर खड़ी रही.कुच्छ ही देर मे वो बाहर आकर मुझे वापस अपने साथ लेकर कमरे मे ले गयी.

कमरे मे एक भीनी भीनी सुगंध फैली हुई थी. सामने एक उँचा बिस्तर लगा था. जिस पर मखमल की चादर के उपर शेर की छाल बिछि थी. स्वामी जी अपने सारे वस्त्र खोल कर बिल्कुल नग्न अवस्था मे बिस्तर पर बैठे हुए थे.



पूरे बदन मे एक वस्त्र भी नही था. सिर्फ़ उनके टाँगों के जोड़ पर लिंग के उपर एक छ्होटा सा तौलिया रखा हुआ था. तौलिया किसी टेंट की तरह उठा हुया ये साबित कर रहा था कि उनका लिंग कितना लंबा है और वो पूरी तरह जोश मे खड़ा है. लेकिन अफ़सोस तब तक उनके लिंग की झलक मुझे नही मिल पा रही थी.

मैं जाकर उनके सामने सिर झुका कर खड़ी हो गयी. उनकी आँखों मे और उनके चेहरे पर इतना तेज था कि मैं उनसे नज़रें नही मिला पा रही थी. रत्ना ने मुझे उनके सामने बैठने का इशारा किया. रत्ना जैसे जैसे कहती जा रही थी मैं बिना झिझक वैसा ही करती जा रही थी. मैने घुटनो के बल बैठ कर उनके पैरों पर फूल अर्पित किए. फिर उनके पैरों पर अपना सिर झुकाकर उनके चरनो पर अपना माथा टीकाया. रत्ना एक हाथ से मेरे सिर को उनके कदमो पर दबा रखी थी और इस अवस्था मे उसने आगे बढ़कर धीरे से स्वामीजी के कानो मे कुच्छ कहा.



स्वामीजी ने अपने हाथों से मेरे सिर को थाम कर उठाया. उन्हों ने मेरी ठुड्डी के अपने हाथ रख कर मेरे चेहरे को उँचा किया. उस अवस्था मे कुच्छ देर तक मेरे चेहरे को निहारते रहे. मैने नज़रें उठाई तो उनकी नज़रों से मेरी नज़रें टकरा गयी. ऐसा लगा मानो मेरी नज़रें उनकी नज़रों से चिपक कर रह गयी. उनकी आँखों से एक अद्भुत सा तेज निकल रहा था. वो एक टक मेरी ओर देख रहे थे. तभी उन्हों ने अपने दूसरे हाथ से कुच्छ इशारा किया.
क्रमशः............


raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 07 Dec 2014 07:35


रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -50

गतान्क से आगे...
रत्ना ने आगे बढ़ कर अपने हाथों से मेरे कंधे पर टिकी मेरी सारी के आँचल को हटा
दिया. मेरी नग्न चूचियाँ बाहर बेपर्दा हो गयी. मैने जल्दी से अपनी सारी के आँचल से अपनी चूचियों को वापस ढक लिया. लेकिन स्वामीजी की नज़र उन नाज़ुक फूलों को देख चुकी थी.

" सुंदर…….बहुत सुंदर. देवी तुम्हारा योवन तुम्हारे जिस्म का हा रंग अपनी अद्भुत चटा बिखेर रहा है. देवी रत्ना कहाँ छिपा रखा था इस सोन्दर्य की मूरत को? " स्वामी जी ने मेरे माथे पर अपना हाथ रख कर मुझे आश्रर्वाद दिया.



“ स्वामी जी ये महिला बहुत दिनो से किसी चकोर की तरह आस लगाए बैठी है की कब आपके दर्शन होंगे. आपने इसके जीवन को सफल कर दिया स्वामी आपने इसका उद्धार कर दिया.” रत्ना ने कहा.

" रत्ना हमारे मेहमान को हमारा प्रसाद दो." रत्ना एक कटोरे मे वही शरबत जो मैने पहले भी पी रखी थी, लेकर आई. उसने वो कटोरा मुझे दिया. उसके इशारा करते ही मैने उसे पूरा पी लिया. उस शरबत का स्वाद कुच्छ ज़्यादा तेज था. मुझे एक बार खालकी सी उबकाई भी आई मगर मैने अपने आप को कंट्रोल किया और बिना कुच्छ कहे उसे पूरा पी लिया.

उस शरबत को पीने के बाद पूरे शरीर मे सिहरन सी दौड़ने लगी. इस दौरान स्वामीजी अपने हाथ से मेरे माथे को छू कर कुच्छ बुदबुदा रहे थे. कुच्छ देर बाद वो मेरे सिर को सहलाने लगे. मैं उनके सामने घुटने के बल बैठी हुई थी उस वक़्त मेरे स्तन बेपर्दा उनके सामने उन्मुक्त भाव से खड़े उन्हे ललकार रहे थे की आओ और इन फूलों को अपने हाथों से मसल दो.



उस शरबत को पीने के बाद से ही पूरे बदन मे एक अजीब सी बेचैनी सी होने लगी. ये उसी प्रकार का शरबत था जो मुझे पहली बार आश्रम मे आने पर पीने को मिला था. इसे पीने के बाद शरीर मे सेक्स की भावना बहुत तीव्र हो जाती थी. पीने वाले का अपनी इच्च्छाओं से कंट्रोल हट जाता था. उसके जिस्म पर चींटियाँ चलने लगती थी. योनि मे इतनी तेज खुजली होती थी अपने ऊपर कंट्रोल करना ही मुश्किल हो जाता था. बस ऐसा लगता था कि कोई उसे यूही प्यार करता रहे. ऐसा लगता कि कोई उसके साथ दिन भर सेक्स करे. मेरी भी वही हालत हो रही थी.

"हां अब बोलो क्या चाहती हो? रत्ना…..पूछ इससे." उन्हो ने अपनी आँखें बंद कर ली.

"ज....ज्ज.जीि " मेरी ज़ुबान तो जैसे शर्म से चिपक गयी थी. मैं बिल्कुल नही बोल सकी.

" स्वामी जी इसे आपका आशीर्वाद चाहिए. ये आश्रम की नयी मेंबर है. इसे आपका महा प्रसाद चाहिए" रत्ना ने कहा.

"हुउऊँ" कहकर स्वामीजी ने एक हुंकार छ्चोड़ी.

" अब ये आपकी छत्र छाया मे है इसकी इच्च्छाओं की पूर्ति करना आपका धर्म है. आप इसे अपना आशीर्वाद दे दें" रत्ना ने कहा.

" ये महिला नयी है. इसे समझा दो रत्ना कि मेरा आशीर्वाद या महाप्रसाद हर किसी को नही मिलता. इसे लेने के लिए काकी कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है और अपने काफ़ी कुच्छ इच्च्छाओं की तिलांजलि देनी पड़ती हैं. ये कर सकेगी ऐसा?"

"मैने इसे पहले ही समझा दिया है गुरुदेव" रत्ना ने कहा.

" देवी तुमने अच्छे से सोच तो लिया है ना कि अगर तुम्हारे पति को पता चल जाए तो अनर्थ भी हो सकता है. उनकी अनुमति ली हो क्या? देवी मेरा महाप्रसाद लेने के लिए इस पूरी दुनिया को भूल कर सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी बन कर रहना होगा. तुम एक बार अगर ठान लॉगी तो उससे मुँह मोड़ कर वापस नही जा सकती." उन्हों ने मुझ से कहा.

मैं अब तक चुप थी आख़िर मे मैने बोला, " स्वामीजी मैं कुच्छ भी करने के लिए तैयार हूँ. आप जैसा करने के लिए कहेंगे मैं वैसा ही करूँगी. आपको किसी तरह की शिकायत का मौका नही दूँगी. और रही मेरे पति की सहमति की बात तो मैं आपको बता दूँ कि वो आपके आश्रम के मेंबर बन चुके हैं और मेरे किसी भी फ़ैसले से उन्हे इत्तेफ़ाक नही
होगा." मुझे पहली बार किसी से इस तरह का प्रण निवेदन करने मे बहुत शर्म आ रही थी. वो भी अपने हज़्बेंड के अलावा किसी और आदमी से.

" देखो देवी…..कोई जल्दी बाजी नहीं है. अभी मैं दस दिन यहीं रहूँगा. अपने इस फ़ैसले पर कुच्छ गहन विचार कर्लो. फिर मेरे पास आना. कहीं बाद मे ऐसा ना लगे कि तुमने जल्दी बाजी मे कोई ग़लत फ़ैसला ले लिया. तुम्हे बाद मे किसी प्रकार का पछतावा ना हो इसलिए तुम अपने निर्णय पर विचार कर सकती हो." स्वामी जी ने कहा.

" जी मैने कई दिन तक अच्छि तरह विचार करने के बाद ही ये फ़ैसला लिया है. मुझे अपने इस फ़ैसले से कोई इत्तेफ़ाक़ नही है. मैं अपनी पूर्ण रज़ामंदी से अपना जिस्म आपको सौंपती हूँ." मैने कहा.

"ठीक है देवी" स्वामीजी ने एक लंबी साँस छोड़ी. "ठीक है अगर तुमने मन मे ठान ही ली है तो वही सही…….लेकिन रत्ना ने तुम्हे इसके कठोर नियमो के बारे मे अब तक बताया है या नही. क्यों रत्ना….तुमने इसे सॅबनियमो के बारे मे इसे समझाया है या नही."

"जी" मैने कहा. स्वामीजी ने रत्ना को इशारा किया.

" इसका सबसे ज़रूरी नियम है कि तुम इसे पूरे दिल से एंजाय करोगी. सब कुच्छ खुशी से होना चाहिए. किसी भी आदेश पर उसके विपरीत प्रतिक्रिया नही होनी चाहिए. तुम हमारे हर आदेश का पालन बिना किसी झिझक बिना किसी शन्सय के पूरा करोगी. मनजूर है. हो सकता है मेर कुच्छ आदेश तुम्हे पसंद नही आए. मगर उनका भी पालन तुम्हे चुपचाप सिर झुका कर करना होगा."

" आप निसचिंत रहें स्वामीजी इसके मन मे किसी प्रकार की कोई झिझक नही आएगी. मैने इसे अच्छि तरह सब समझा दिया है. आप तो बस इसका निवेदन स्वीकार कर लें" रत्ना ने कहा.

" ठीक है....... रत्ना ज़रा इस देवी के शारीरिक सोन्दर्य के हमे दर्शन तो कराओ… देखें तो सही ये फूल बिना आवरण के कैसा लगता है."

"जी गुरुदेव....जैसी आपकी आग्या." कहकर रत्ना ने मेरे कंधे पर रखे सारी के आँचल को कंधे से नीचे सरका दिया. मैने अपनी नज़रें शर्म से झुका दी. मेरे स्तन युगल गुरुजी के सामने तन कर खड़े उन्हे ललकार रहे थे. मैं टॉपलेस हालत मे घुटने मोड़ कर उनके सामने बैठी हुई थी. रत्ना ने मेरे बालों को समेट कर पीछे कर दिया और मेरे हाथों को सिर से उपर कर दिया जिससे मेरे स्तन बिल्कुल नग्न स्वामी जी के सामने तने रहें.

" अद्भुत...... .अद्भुत.. ..." गुरुजी बुदबुदा रहे थे. रत्ना ने मेरे
स्तानो के नीचे अपनी हथेली लगा कर उनको कुच्छ उठा कर स्वामी जी को निमंत्रण सा दिया. मेरा दोनो स्तन वैसे ही काफ़ी बड़े और सख़्त थे मगर रत्ना की हरकतों ने उन्हे और सख़्त कर दिया. निपल्स उत्तेजना मे खड़े हो गये थे. यहाँ तक की उनके चारों ओर फैले गोल दायरे मे फैले रोएँ ऐसे खड़े हो गये थे कि पिंपल्स का आभास दे रहे थे.



स्वामीजी ने अपने हाथ बढ़ाकर मेरे दोनो निपल्स को हल्के से स्पर्श किया. उन्हे अपने अंगूठे और उंगली के बीच लेकर हल्के से मसला. उसके बाद मेरे स्तनो पर कुछ देर तक इतने हल्के से हाथ फेरते रहे कि मुझे लगा मेरे स्तनो पर कोई रूई का फ़ाहा फिरा रहा हो. मेरा गला सूखने लगा था और मेरे पूरे बदन मे एक सिहरन सी दौड़ रही थी. मैने अपनी आँखें भींच ली और अपने दन्तो के बीच अपने होंठों को दबा लिया जिससे मेरे होंतों से सिसकारियाँ छ्छूटने ना लग जाए.



" अद्भुत…..अद्भुत देवी अद्भुत.” उनकी आँख खुशी से भर गयी, “ ह्म्‍म्म्मम...... रत्ना…. इसे पूरा उतारो" मुझे स्वामी त्रिलोकनंद की गंभीर आवाज़ सुनाई दी.



रत्ना ने मेरी बाँह पकड़ कर मुझे उठाया और मेरे शरीर से सारी को खींच कर उतार दिया. मैं बिल्कुल नग्न उनके सामने खड़ी थी. मेरे खड़े ललचाते उभार, पतली कमर, भरे भरे नितंब और जांघों के बीच रेशमी जंगल किसी को भी लुभाने के लिए काफ़ी था.



रत्ना ने मेरे कंधे को हल्के से दबाया. मैं उनका इशारा समझ कर वापस स्वामीजी के सामने घुटने के बल बैठ गयी. रत्ना ने मेरे बालों को भी खोल कर बिखेर दिया. स्वामीजी ने मेरी ठुड्डी के नीचे अपना हाथ देकर मेरे चेहरे को उपर उठाया. मैने झिझकते हुए अपनी आँखे खोल दी. उनकी आँखों से आँखें मिलते ही मैं एक सम्मोहन मे बँध सी गयी. क्या तेज था उन आँखों मे ऐसा लग रहा था मानो उनकी आँखे बोल रही हों. उनकी नज़रों की तपिश मेरी आँखों से होते हुए दिल के अंदर तक उतर रही थी. उन्हों ने मेरी आँखों मे आँखें डाल कर कहा,

"अद्भुत....अद्भुत. ....सुंदरी तुम्हारा जिस्म तो मानो देव ने बहुत तसल्ली के साथ तराशा है. किसी अप्सरा से कम नही हो तुम. तुम्हारा स्वागत है मेरी छत्र्छाया मे." कहते हुए उन्हों ने वापस मेरे स्तनो को सहलाया. इस बार उनके हाथों मे कुच्छ सख्ती थी. उन्हों ने मेरे स्तन यूगल को हल्के से दबाया.



“देवी रत्ना….ये आज से हमारी ख़ास शिष्या हुई. तुम इस परी को मेरे समर्क मे लाई हो इसके लिए मैं तुम्हारा शुक्रिया करता हूँ.” उन्हों ने रत्ना को इशारा किया. रत्ना आकर उनके चर्नो पर झुक गयी. उन्हों ने रत्ना के बालों पर हाथ फेरा फिर मुझसे कहा, “अब बोलो तुम क्या चाहती हो?”

मैने अपनी नज़रें उठाकर उन्हे देखा मानो पूच्छना चाहती हूँ की इतनी सारी बातें होने के बाद फिर इस प्रकार का सवाल

" देवी तुम्हे अपनी इच्छा अपनी ज़ुबान से बतानी होगी. बिना माँगे तो उपरवाला भी कुच्छ नही देता. हम तो मनुश्य हैं. "

" दिशा तुम्हे महप्रसाद के लिए इनसे याचना करनी पड़ेगी." रत्ना ने मुझे अपनी कोहनी से एक टोहका देते हुए कहा.

" स्वामीजी मुझे आपका महाप्रसाद चाहिए. मेरी कोख आपके अमृत का इंतेज़ार कर रही है. मुझे अपनी कोख मे आपका महाप्रसाद चाहिए" मैने अपनी नज़रें झुकाते हुए धीरे से कहा.



“ प्रभु इन्हे अपना पौरुष तो दिखाओ. इसे भी तो दर्शन करने दो आपके दिव्य रूप का.” रत्ना ने उनसे कहा.



“ और तुझे…..? तुझे दर्शन नही करना?”



“ मैं तो आपकी दासी हूँ. इसको दर्शन कराएँगे तो मेरे भी भाग खुल जाएँगे. बहुत अरसा हो गया आपने मेरे जिस्म को छुये हुए. कभी हम पर भी कृपा दृष्टि डाल दिया करें.” रत्ना ने उनसे कहा.



“ चलो आज तुम्हारी विनती मान लेता हूँ.”

स्वामी जी ने अपने जांघों के बीच रखे तौलिए को हटाया. मेरी नज़र तो बस उस स्थान पर चिपक कर रह गयी. वो अब पूरी तरह नग्न थे. उनका लिंग पूरी तरह से खड़ा था.
क्रमशः............


raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: रश्मि एक सेक्स मशीन

Unread post by raj.. » 07 Dec 2014 07:37


रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -51

गतान्क से आगे...


ओफफफफफ्फ़ कितना मोटा और लंबा था उनका लिंग. ऐसा लग रहा था मानो कोई खंबा हो. मैने अपनी जिंदगी मे इतना मोटा तगड़ा लंड किसी का भी नही देखा. ऐसा लग रहा था मानो किसी मनुष्य का नही किसी घोड़े का लिंग हो. मैने चौंक कर रत्ना की तरफ देखा तो उसने प्यार से मेरे सिर पर हाथ फिराया,

" अरे तू घबरा क्यों गयी. एक बार लेकर देखना फिर और कोई दूसरा लिंग जिंदगी मे पसंद नही आएगा."

स्वामीजी ने मेरे सिर को पकड़ा और मेरे माथे पर अपने लिंग के टोपे को च्छुअया. फिर उससे निकलते एक दो बूँद प्रेकुं को मेरी माँग पर फेर दिया. उसके बाद उन्हों ने अपने लिंग को मेरे ललाट से नीचे लाते हुए नाक के उपर से सरकाते हुए मेरे होंठों से च्छुअया.



मुझे कुच्छ भी बोलने की अब ज़रूरत नही पड़ी मैने उनका इशारा पाकर अपने मुँह को खोल कर उनके लिंग को अपने मुँह मे ले लिया. उन्हों ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फिराया और मेरे सिर के पीछे अपनी हथेली रख कर मेरे सिर को अपने लिंग की तरफ खींचा. उनका लिंग इतना मोटा था की मेरे मुँह मे ही नही जा पा रहा था. सिर्फ़ उनके लिंग का टोपा ही मेरे मुँह के अंदर जगह बना पाया. मुझे लग रहा था की अगर मैने उनके लिंग को और अंदर लेने की कोशिश की तो शायद मेरे होंठ फट जाएँगे. उन्हों ने भी ज़ोर ज़बरदस्ती नही की.



कुच्छ ही देर मे जैसे ही मैं उनके गधे समान विशाल लंड की अभ्यस्त हुई, उनके लंड को पूरे जोश चूसने लगी. कुच्छ देर की कोशिशों के बाद उनका लिंग बड़ी मुश्किल से एक चौथाई ही जा पाया था मेरे मुँह के अंदर. उससे ज़्यादा लेने की मुझमे हिम्मत नही थी. शायद दम ही घुट जाता या मेरा गला ही फट जाता.



कुच्छ देर बाद स्वामीजी ने मेरे सिर को अपने हाथों से थामा और धीरे धीरे उस मूसल के समान लिंग को अंदर ठेलने लगे. मैं अपने मुँह को जितना खोल सकती थी खोल दी. उन्हों ने मेरे सिर को अपने लिंग के उपर दबाना शुरू कर दिया. मेरा दूं घुटने लगा. आँखें बाहर को उबल रही थी. उनका लिंग मेरे मुँह मे घुसता चला गया. करीब आधे लिंग को उन्हों ने मेरे मुँह के अंदर डाल दिया. मेरा जबड़ा दुखने लगा था. लेकिन मैने उनको रोकने की कोई कोशिश नही की. दो पल उस अवस्था मे रुक कर उन्हों ने एक झटके मे अपने लिंग को पूरा बाहर निकाला और मेरे सिर को छ्चोड़ दिया.



मैं अपने गले को थाम कर रत्ना के बाँहों मे गिर पड़ी. मैं उस अवस्था मे पसरे हुए ज़ोर ज़ोर से साँसे ले रही थी. उनके लिंग के कारण काफ़ी देर तक मुझे साँस रोक कर रहना पड़ा था. मुझे ऐसा लग रहा था मानो कुच्छ देर और अगर मैं उस अवस्था मे रहती तो शायद बेहोश ही हो जाती. मैं रत्ना के सीने मे अपने मुँह को छिपा कर कुच्छ देर तक खाँसती रही.

त्रिलोकनांदजी ने मेरे रेशमी बालों को अपनी हथेली मे लिया और अपने लिंग पर लगे वीर्य को उसमे पोंच्छ दिया. वापस उन्हों ने अपने लिंग पर तौलिया रख दिया. और कुच्छ देर आँख बंद करके ना जाने किस साधना मे लीन हो गये. मैं कुच्छ देर तक रत्ना की गोद मे पड़ी अपनी साँसों को व्यवस्थित करती रही. कुच्छ देर बाद जब मैं कुच्छ नॉर्मल हुई तो अपने आप को संहाल कर स्वामी जी के सामने वापस सिर झुकाए उनके आँखें खोलने का इंतेज़ार करती रही.



कुच्छ देर बाद वापस उनकी आवाज़ सुनाई दी तो पता चला कि उन्हों ने अपनी आँखें खोल दी हैं. उन्हों ने रत्ना से कहा,

" मैं संतुष्ट हूँ. देवी मेरे जिस्म की काम्ज्वाला की तपिश को सहने के लिए उपयुक्त है. इसके जिस्म मे वो शक्ति है कि काम की पार्कश्ठा मे भी ये उफ्फ नही करेगी. बहुत सुंदर देवी आती सुंदर.” उन्हों ने आगे कहा,” देवी रत्ना मेरे महाप्रसाद को ग्रहण करने के लिए इसे जो जो हिदायतों को पालन करना पड़ेगा वो इसे समझा दिया है ना. ये हमारे बंधानो को, इस आश्रम के नियमों को पालन करने के लिए पूरे दिल से राज़ी है ना? बिना लेने वाले की पूरी रज़ामंदी के मैं किसी को भी महाप्रसाद नही देता. मेरे महाप्रसाद को बिना किसी किंतु परंतु के स्वीकार करने वाला ही फल पाता है. किसी तरह की झिझक हो तो तुम अभी भी उठ कर यहाँ से जा सकती हो."



” स्वामी मैने इसे एक बार तो समझा दिया था. अभी आपके सामने दोबारा समझा देती हूँ” रत्ना ने फिर मुझसे कहा, " तुम्हे यहाँ रहने के लिए जिन जिन नियमो का पालन करना पड़ेगा वो मैं तुमको सुना ती हूँ. तुम्हे इस आश्रम के हर नियम का पालन बिना किसी विरक्ति के करना पड़ेगा. अगर किसी पर कोई भी शंका हो तो पहले ही उसका निवारण कर लेना."

मैं स्वामी जी के सामने मई हाथ जोड़े उसी तरह नग्न बैठी हुई थी. मैने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी.

" तुम्हे एक हफ्ते के लिए इस आश्रम मे रहना पड़ेगा बिना किसी से मिले बिना बाहर की रोशनी देखे." रत्ना ने कहा

"मुझे मंजूर है" मैने अपनी स्वीकृति दी.

" इस पूरे हफ्ते तुम यहाँ से बाहर नही जा सकती. चाहे कितना भी ज़रूरी काम क्यों ना आ पड़े. तुम्हे ये सात दिन स्वामीजी के साथ इनके कमरे मे गुजारने होंगे. " रत्ना ने आगे बताया.

" मुझे मंजूर है"

" तुम्हे आश्रम मे निवास के दौरान स्वामीजी की सेवा पूरे तन और मन से करनी होगी. तुम्हे अपना तन इनके हवाले करना होगा. इस दौरान तुम्हारे दिमाग़ और तुम्हारे जिस्म पर सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वामीजी का हक़ रहेगा. तुम एक तरह से एक हफ्ते के लिए स्वामीजी किकिसी ब्यहता की तरह ही सेवा करनी है."

" मुझे मंजूर है. मैं पूरे तन मन से इनकी सेवा करूँगी"

" तुम इनके किसी भी आदेश का उल्लंघन नही कर सकती. इनके आदेश के बिना तुम कुच्छ नही करोगी. ये तुम्हे जैसा चाहेंगे वैसे भोगेंगे."

" आप दुविधा मे ना पड़ें स्वामी मैं आपकी दासी बन कर रहूंगी. किसी गुलाम की तरह आपकी सेवा करूँगी. आप बस मुझे अपनी छत्र छाया मे रहने का मौका दें" मैने कहा.

" इस पूरे एक हफ्ते तुम किसी तरह का कोई भी वस्त्र बिना स्वामीजी की अग्या के नही धारण कर सकती. तुम्हे बिल्कुल नग्न रहना होगा. तुमको उसी हालत मे आश्रम मे घूमना फिरना पड़ेगा. इस आश्रम का कोई भी शिष्य तुम्हारे जिस्म को भोग सकता है मगर तुम्हारी कोख मे अमृत वर्षा करने का हक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ स्वामी जी को होगा." उसने आख़िर मे कहा.

" आपका हर आदेश सिर आँखों पर. " मैने उनके चर्नो पर अपना सिर झुकाया, “ मैं आपको वचन देता हूँ कि मेरी ओर से आपको किसी तरह की कोई परेशानी का सामना नही करना पड़ेगा.”

" बहुत अच्च्छा ठीक है देवी तुम कल सुबह आ जाना" स्वामी जी ने मेरे सिर पर हाथ रखा, “ देवी रत्ना कल के कार्यक्रम के बारे मे इसे अच्छे से समझा देना. कल इसे काफ़ी मेहनत करनी है. इसलिए आज भरपूर आराम करले.”



“ उठो दिशा स्वामीजी के आराम का वक़्त हो गया है. अब इन्हे आराम करने दो. “ रत्ना ने मुझे उठाया. मैं उठ कर अपनी साडी को बदन पर लपेट कर रत्ना के साथ बाहर आ गयी..

" दिशा अब घर जा कर रेस्ट करो. कल सुबह चार बजे मैं तुम्हे लेने तुम्हारे घर आ जाउन्गी. कोई समान लेने की ज़रूरत नही. ज़रूरत का सारा समान वहाँ मिल जाएगा. और जितने दिन वहाँ रहोगी उतने दिन बदन पर कुच्छ पहनना तो है नही फिर कुच्छ लेने की क्या ज़रूरत. " रत्ना ने कहा. मैने सहमति मे सिर हिलाया और वहाँ से घर आ गयी.

मैने देव को फोन करके बता दिया कि मैं आश्रम के इनॉवौग्रेशन के कार्यक्रमो की वजह से हफ्ते भर आश्रम मे बिज़ी रहूंगी इसलिए उससे कॉंटॅक्ट नही हो पाएगा. देव कुच्छ नही बोला. हमने काफ़ी देर तक बातें की. उसने बताया कि उसे आने मे काफ़ी दिन लगेंगे इसलिए आश्रम के इनॉवौग्रेशन समारोह मे शामिल नही हो पाएगा.



उसे काफ़ी उत्सुकता हो रही थी कि हफ्ते भर तक क्या क्या कार्यक्रम होने वाले हैं. अब मैं उन्हे क्या बताती कि आश्रम का कार्यक्रम तो बस एक दिन का है. बाकी छह दिनो का कार्यक्रम तो मेरा होने वाला है जिसमे पता नही कितन बिज़ी रहूंगी मैं.

मैं रात को जल्दी ही सो गयी. सोई क्या थी रात भर आने वाले हफ्ते की कल्पना करते करते कब सुबह के चार बज गये पता ही नही चला. ठीक चार बजे रत्ना ने डोरबेल बजाई. मैने उसे अंदर बुला कर कुच्छ देर इंतेज़ार करने को कहा जिससे मैं तैयार हो लूँ.

" चलो फटाफट नहा लो. आओ मैं नहला देती हूँ तुझे. " रत्ना ने कहा. रत्ना ने मेरे कपड़े एक एक करके उतार दिए फिर मुझे बाथरूम मे ले जाकर खूब नहलाया. उसने मेरे पूरे बदन को अच्छी तरह से नहलाया. फिर मेरा बदन तौलिए से पोंच्छ कर मुझे बाहर ले आइ. उसने पहले मेरे बदन मे पर्फ्यूम का स्प्रे किया. रत्ना ने मुझे तैयार करते हुए मेरे शरीर के सारे गहने, यहाँ तक की चूड़ियाँ और मन्गल्सुत्र तक उतार दिया. मैं वैसे भी नयी ब्यहताओं की तरह माँग मे सिंदूर
नही भरती थी. उसने मेरे माथे की बिंदिया भी उतार दी. मेरे जिस्म पर मेरी शादी शुदा जिंदगी की कोई निशानी नही रहने डी. अब मुझे देख कर कोई नही कह सकता था कि मैं कोई ब्यहता हूँ. मैने एक सुंदर सी सारी निकाली पहनने के लिए तो रत्ना ने रोक दिया.,

" भारी सारी मत पहनना. बस कोई सूती की हल्की सी सारी पहन लो."

उसके कहे अनुसार मैने उस सारी को वापस रख कर एक सूती सारी निकाल ली. उसने मेरा हल्का सा मेकप किया. हम दोनो अगले दस मिनिट मे तैयार होकर घर से निकल कर आश्रम पहुँचे. आश्रम के लोग उस वक़्त दैनिक काम से फारिग हो रहे थे.

रत्ना मुझे लेकर सीधे सेवकराम जी के पास गयी. सेवकराम जी ने कहा,

" देवी तुम्हे अब आश्रम का पवित्र वस्त्र ग्रहण करना पड़ेगा. पहले अपने वस्त्र बदल कर कुंड मे डुबकी लगा कर आओ फिर आगे के नियम पर बात करेंगे."

रत्ना मुझे लेकर एक कमरे मे घुसी वहाँ मुझे एक सारी देते हुए कहा, " चलो अपने सारे वस्त्र उतार कर इस सारी को पहन लो" मैने वैसा ही किया. सारी सफेद रंग की बहुत ही झीनी सूती सारी थी. सारी के नीचे किसी अंडरगार्मेंट्स नही होने की वजह से मेरे पूरे बदन की सॉफ झलक सामने से मिल रही थी. हर कदम पर मेरे बड़े बड़े उरोज हिलने लगते. देखने वाले के बदन मे अगर तनाव ना अजाए तो ये एक ताज्जुब की बात ही होती. मुझे इतने सारे मर्दों के बीच इस प्रकार अर्धनग्न अवस्था मे चलते फिरते हुए बहुत शर्म आ रही थी.
क्रमशः............


Post Reply