एक अनोखा बंधन

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The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:49

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अब आगे ....

भौजी समझ चुकीं थीं की मैं रात को उनके जाने के बाद ही घर आऊँगा| भौजी ने कहाँ नहीं खाया...रात में खाना उन्होंने ही बनाया था और माँ ने फोन कर के डिनर के लिए बुलाया तो मैंने कह दिया की मैं थोड़ी देर में आ रहा हूँ..पर मैं दस बजे पिताजी और चन्दर भैया के साथ लौटा| अगले दो दिन तक मैं यही करता था...सुबह पिताजी के साथ निकल जाता.... और रात को देर से आता| लंच और डिनर के समय मैं पिताजी से कोई न कोई बहन कर के गोल हो जाता| चाय-वाय पी लेता..हल्का-फुल्का कुछ भी खा लेता..पर घर पे कभी खाना नहीं खाता| रात में सोते समय परेशान रहता...नींद नहीं आती...की आखिर हो क्या रहा है मेरे साथ? क्या करूँ? कुछ नहीं पता!

तीसरे दिन तो आफ़त हो गई| भौजी की तबियत ख़राब हो गई थी| मेरी वजह से पिछले तीन दिनों से वो फांके कर रहीं थीं| मैं चार बजे से जाग रहा था और दिवार से पीठ लगाये बैठा था| घडी में सात बज रहे थे की तभी माँ धड़धडाते हुए अंदर आईं और बोलीं;

माँ: क्या कहा तूने बहु से?

मैं: (हैरान होते हुए) मैंने? मैंने क्या कहा उनसे?

माँ: कुछ तो कहा है...वरना बहु खाना-पीना क्यों छोड़ देती?

अब ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए| मैं उठ के खड़ा हुआ और उनके घर की तरफ दौड़ लगाईं...literally दौड़ लगाईं! उनके घर पहुँच के दरवाजा खटखटाया, दरवाजा चन्दर भैया ने खोला|

मैं: कहाँ हैं भौजी?

चन्दर भैया: अंदर हैं.... देख यार पता नहीं क्या कह दिया तूने और इसने तीन दिन से खाना-पीना बंद कर दिया?

मैं धड़धड़ाते हुए उनके कमरे में घुसा तो देखा की आयुष और नेहा भौजी को घेर के बैठे हैं| मैं जाके उनके सिरहाने बैठ गया;

मैं: Hey what happened?

भौजी ने ना में सर हिलाया ... पर उन्होंने मेरे हाथ को पकड़ के हलके से दबा दिया| परेशानी मेरे चेहरे से साफ़ जहलक रही थी| मैं समझा गया की वो क्या कहना चाहती हैं|

मैं: बेटा आप दोनों यहीं बैठो मैं डॉक्टर को लेके आता हूँ|

भौजी: नहीं...डॉक्टर की कोई जर्रूरत नहीं है|

मैं: Hey I'm not asking you !

और मैं डॉक्टर को लेने चला गया| डॉक्टर सरिता हमारी फैमिली डॉक्टर हैं, उन्होंने उन्हें चेक किया...दवाइयाँ दीं और चलीं गईं| चन्दर भैया भी पिताजी के साथ साइट पे चले गए| अब भौजी के घर पे बस मैं, माँ, नेहा और आयुष रह गए थे|

माँ: बेटा...मैं कुछ बनती हूँ...और सुन तू (मैं) जब मैं फोन करूँ तब आ जाइओ और फिर अपनी "भौजी" को खिला दो| और खबरदार जो तूने आज के बाद बहु को "भाभी" कहा तो? और बहु तू इस पागल की बात को दिल से लगाया मत कर| ये तो उल्लू है!

और माँ चलीं गईं| उन्होंने ये सोचा की उस दीं मैंने भौजी को "भाभी" कहा इस बात को भौजी ने दिल से लगा लिया और खाना-पीना छोड़ दिया|

आज सात साल में पहली बार मैंने भौजी को छुआ! मैंने उनका हाथ पकड़ा और अपने दोनों हाथों के बीच में रख के उन्हें दिलासा देने लगा|

मैं: क्यों किया ये?

भौजी: खुद को सजा दे रही थी....आपके साथ जो मैंने अन्याय किये ...उसके लिए!

मैं: पर मैंने आपको माफ़ कर दिया...दिल से माफ़ कर दिया|

भौजी: पर मुझे अपनाया तो नहीं ना?

मैं: मैं...... शायद अब मैं आपसे प्यार नहीं करता!

ये सुन के भौजी की आँखें भर आईं...

भौजी: कौन है वो लड़की? (उन्होंने सुबकते हुए पूछा)

मैं: 2008 में कोचिंग में मिली थी....बस उससे एक बार बात की ....अच्छी लगी...दिल में बस गई.... पर मई में एग्जाम थे...उस एग्जाम के बाद इस शहर में वो लापता हो गई| आज तक उससे बात नहीं हुई.... या देखा नहीं?

भौजी: तो आप मुझे भूल गए?

मैं: नहीं.... आपको याद करता था.... पर याद करने पे दिल दुखता था....वो दुःख शक्ल पे दीखता था....और मेरा दुःख देख के माँ परेशान हो जाया करती थी| इसलिए आपकी याद को मैंने सिर्फ सुनहरे पलों में समेत के रख दिया| उस टेलीफोन वाली बात को छोड़के सब याद करता था....

भौजी: आपने कभी उस लड़की से कहा की आप उससे प्यार करते हो?

मैं: नहीं.... इतनी अच्छी लड़की थी की उसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड तो होगा ही! अब सीरत अच्छी होने से क्या होता है? शक्ल भी तो अच्छी होनी चाहिए?

भौजी: (उठ के बैठ गईं और बेडपोस्ट का सहारा ले के बैठ गईं) जो लड़की शक्ल देख के प्यार करे क्या वो प्यार सच्चा होता है?

मैं: नहीं .... (मैंने बात बदलने की सोची, क्योंकि मुझे उनकी हेल्थ की ज्त्यादा चिंता थी ना की मेरे love relationship की, जो की था ही नहीं) मैं...अभी आता हं...माँ ने आपके लिए सूप बनाया होगा|

मैं उठ के जाने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया और जाने नहीं दिया|

भौजी: माँ ने कहा था की वो आपको फोन कर की बुलाएंगी...और अभी तो फोन नहीं आया ना? आप बैठो ..आज आप अच्छे मूड में हो...मुझे आपसे बहुत सारी बातें करनी है| पता नहीं क्यों पर मुझे लग रहा है की आप कुछ छुपा रहे हो?

मैं: नहीं तो....

भौजी: शायद आप भूल गए पर हमारे दिल अब भी connected हैं! बताओ ना....प्लीज?

मैं: मैं .... आपको कभी भुला नहीं पाया...पर ऐसे में उस नै लड़की का जादू...... मतलब मुझे ऐसा लगा की मैं आपके साथ दग़ा कर रहा हूँ!

भौजी: Did you got physical with her?

मैं: कभी नहीं...मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता| मतलब इसलिए नहीं की मैं आपसे प्यार करता था...या हूँ...पर इसलिए की मैं उस लड़की के बारे में आज तक मैंने ऐसा कुछ नहीं सोचा|

भौजी: फिर ...क्यों लगा आपको की आप मुझे cheat कर रहे हो?

मैं: मतलब....आप के होते हुए मैं एक ऐसी लड़की के प्रति "आकर्षित" हो गया...जिसे ......(मैंने बात अधूरी छोड़ दी)

भौजी: What did you just say? "आकर्षित"....O ...... समझी.....!!! It’s not LOVE….. its just attraction!!! Love and attraction are different?

मैं: How can you say this? I mean…मुझे वो अच्छी लगती है...

भौजी: You know what? मुझे सलमान खान अच्छा लगता है....तो क्या I’m in love with him? Its just you were attracted to her….और कहीं न कहीं दोष मेरा भी है...बल्कि देखा जाए तो दोष मेरा ही है| ना मैं उस दिन आपसे वो बकवास करती और ना ही आपका दिल टूटता! जब किसी का दिल टूटता है ना तो वो किसी की यादों के साथ जी ने लगता है| जैसे मैं आपकी यादों...मतलब आयुष के सहारे जिन्दा थी| आपके पास मेरी कोई याद नहीं थी...शायद वो रुमाल था?

मैं: था....गुस्से में आके मैंने ही उसे धो दिया!

भौजी: See I told you ! गुस्सा....मेरी बेवकूफी ने आपको गुस्से की आग में जला दिया| आपको सहारा चाहिए था....आपका दोस्त था पर वो भी आपके साथ emotionally तो attached नहीं था| ऐसे में कोचिंग में वो लड़की मिली...जिसके प्रति आप सिर्फ attract हो गए| That's it ! मैं जहाँ तक आपको जानती हूँ...अगर मैंने वो बेवकूफी नहीं की होती तो आप कभी किसी की तरफ attract नहीं होते| मैंने आपको कहा भी था की You’re a one woman man! ये मेरी गलती थी....मैं आपके भविष्य के बारे में जयादा सोचने लगी...वो भी बिना आपसे कुछ पूछे की मेरे इस फैसले से आपको कितना आघात लगेगा? मेरे इस कठोर फैसले ने आपको अपने ही बेटे से वंचित कर दिया...आपको नेहा से दूर कर दिया.... पर मैं सच कह रही हूँ...मैं कभी नहीं सोचा था की मेरे एक गलत फैसले से हम दोनों की जिंदगियाँ तबाह हो जाएँगी?

मैं: I’m still confused! मुझे अब भी लगता है की मैं उससे प्यार करता हूँ? मैं उसकी जन्मदिन की तारिख अब तक नहीं भुला...उहर साल उसके जन्मदिन पे उसकी ख़ुशी माँगता हूँ|

भौजी: क्या आप दिषु के जन्मदिन पे उसकी ख़ुशी नहीं मांगते? वो आपका Best friend है ना?

मैं: हाँ माँगता हूँ| मैं तो आपके जन्मदिन पर भी आपकी ख़ुशी माँगता हूँ?

भौजी: See ..... आप सब के जन्मदिन पे उनकी ख़ुशी चाहते हो.... That doesn’t make her special? मैं आपको गुमराह नहीं कर रही..बस आपके मन में उठ रहे सवालों का जवाब दे रही हूँ| वो भी आपकी पत्नी बनके नहीं बल्कि एक Neutral इंसान की तरह|

मैं: तो मैं उसके बारे में क्यों सोचता हूँ?

भौजी: सोचते तो आप मेरे बारे में भी हो?

मैं: Look may be you’re right or maybe not…but I…I ….can’t decide anything now.

भौजी: Take yor time…or may be ask Dishu, he’ll help you!

मैं: थैंक्स...मेरे दिमाग में उठे सवालों का जवाब देने के लिए|

भौजी: नहीं...अभी भी कुछ बाकी है

मैं: क्या?
भौजी ने आयुष को आवाज लगाईं| वो घर के बहार ही गली में खेल रहा था, अपनी मम्मी की आवाज सुन के वो भगा हुआ अंदर आया|

भौजी: बेटा बैठो मेरे पास|

आयुष मेरे पास बैठ गया| कमरे में बस मैं. भौजी और आयसुह ही थे|

भौजी: बेटा ये आपके पापा हैं...

मैंने भौजी के मुँह पे हाथ रख के उन्हें चुप कराया पपर वो नहीं मानी और मेरा हाथ हटा दिया और अपनी बात पूरी की|

भौजी: बेटा..मैंने आपको बताया था न की आपके पापा शहर में पढ़ रहे हैं|

आयुष ने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर मेरी तरफ देखने लगा| मैं अब खुद को रोक नहीं पाया और मन में उठ रही तीव्र इच्छा प्रकट की;

मैं: बेटा...आप एक बार मेरे गले लगोगे?

आयुष ने बिना कुछ सोचे-समझे ...मेरे गले लगा गया.... उस एहसास के लिए मैं सालों से तरस रहा था और उस एहसास का वर्णन मैं बस एक लाइन में कर सकता हूँ:

"मुझे ऐसा लगा जैसे सवान के प्यास को, तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया हो|"

कालेज जो गुस्से की आग में पिछले सात सालों से जल रहा था उसे आज जाके ठंडक मिली हो| मेरी आँखें भर आईं और तभी आयुष बोला;

आयुष: पापा

उसके मुँह से ये शब्द सुन के मेरे सारे अरमान पूरे हो गए| उस समय मैं दुनिया का सब से खुशनसीब इंसान था! इस ख़ुशी का इजहार आँखों ने "नीर" बहा के किया! इस पिता-पुत्र के मिलान को देख भौजी की आँखें भी भर आईं| मैंने आयुष को खुद से अलग किया और उसके गालों को माथे को चूमने लगा| आज जो भी गुस्सा अंदर भरा हुआ था वो प्यार बनके बहार आ गया|

मैं: बेटा I missed you so much !!!

अब मुझे ग्लानि महसूस होने लगी थी| मैंने भौजी को कितना गलत समझा! उन्होंने मुझसे दूर होते हुए भी मेरे बच्चों के मन में मेरी याद जगाय राखी और मैं यहाँ अपने गुस्से की आग में जलता रहा और उन्हें दोष देता रहा? अब मुझे इसका confession उनके सामने करना बहुत जर्रुरी था|

मैं: बेटा...नेहा को बुला के लाना|

आयुष नेहा को बुलाने चला गया|

भौजी: उस दिन आयुष ने पहली बार आपको देखा था..अब तक तो वो सिर्फ तस्वीर ही देखता था और तस्वीर में आपकी दाढ़ी-मूंछ नहीं थी ना....इसलिए आपको पहचान नहीं पाया|

मैं: I get it! वैसे आपने आयुष को बताय की वो सब के सामने मुझे "पापा" नहीं कह सकता?

भौजी: ये मैं कैसे कह सकती थी? मैं तो चाहती हूँ कि वो हमेशा आपको पापा ही कह के बुलाये|

मैं: आप जानते हो की ये Possible नहीं है| खेर मैं उससे बात कर लूँगा|

इतने में आयुष और नेहा दोनों आ गए| नेहा आके मेरे पास कड़ी हो गई और आयुष मेरे सामने भौजी के पास बैठ गया|

मैं: बेटा आपसे एक बात कहनी है| I hope आप समझ पाओगे| (एक लम्बी सांस लेते हुए) आप मुझे सब के सामने "पापा" नहीं कह सकते| (एक लम्बी सांस छोड़ते हुए) सिर्फ अकेले में ही ...आप कह सकते हो? आपकी दीदी भी ये बात जानती है|

आयुष: पर क्यों पापा?

मैं: बेटा.... (अपने माथे पे पड़ी शिकन पे हाथ फेरते हुए) मैं आपकी माँ को कितना प्यार करता हूँ ...ये कोई नहीं जानता...ये एक सीक्रेट है.... ये बात अब बस हम चार ही जानते हैं! नेहा मेरी बेटी नहीं है पर फिर भी मैं उसे आपके जितना ही प्यार करता हूँ...और आप...आप तो मेरा अपना खून हो... उस समय हालात ऐसे थे की हम (मैं और भौजी) एक हो गए| खेर उस बारे में समझने के लिए अभी आप बहुत छोटे हो और वैसे आपको वो बात जननी भी नहीं चाहिए? I hope आप समझ गए होगे|

आयुष ने हाँ में सर हिलाया, फिर मैंने उसे पुरस में से पचास रूपए दिए और दोनों को समोसे वगेरह लाने को भेज दिया|

इतने में मैंने सोचा की मैं अपने दिल की बात उन्हें कह ही दूँ;

मैं: I’ve a confession to make! मैंने आपको बहुत गलत समझा...बहुत...बहुत गलत.... जब से आप आये हो तब से आपको टोंट मारता रहा ...और उस दिन मने बिना कुछ जाने आपको इतना सब कुछ सुना दिया|..I’ve been very…very rude to you and for that I’m extrememly Sorry! आप मुझसे दूर हो के भी मुझे भुला नहीं पाये और इधर मैं आपको भुलाने की दिन रात कोशिश करता रहा|आपने हमारे बेटे का नाम भी वही रखा जो मैं उसे देना चाहता था..उसे वो सब बातें सिखाईं जो मैं सिखाना चाहता था...उसे आपने… मेरे बारे में भी बताया.... अगर मैं चाहता तो ये सब बात भुला के आपसे मिलने आ सकता था...आपकी, नेहा और आयुष की खोज-खबर ले सकता था| पर नहीं....मैं अपनी जूठी अकड़ और रोष की आग में जलता रहा| ये सब सुन के और देख के मुझे बहुत ग्लानि हो रही है| मैं शर्म से गड़ा जा रहा हूँ|

मेरी आँखें नम हो चलीं थीं|

भौजी: Hey ? What're you saying? You’re not wrong! गलती मेरी थी...मैं जानती थी की मेरी बात से आप को कितनी चोट लगेगी? पर मैंने एक पल के लिए भी ये नहीं सोच की आप पर क्या बीतेगी? आप कैसे झेल पाओगे? और आपका गुस्सा...बाप रे बाप! उसे कैसे मैं भूल गई? आपको जब गुस्सा आता है तो आप क्या-क्या करते हो ये जानती थी....फिर भी...बिना सोचे-समझे...मैंने वो फैसला किया! और आप खोज-खबर कैसे लेते? मैंने आपको फोन करने को जो मन किया था...और जहाँ तक मैं जानती हूँ...आप मेरी वजह से इतने गुस्से में थे की आपको तो गाँव आने से ही नफरत हो गई होगी| I was so stupid…. I mean I should have asked you…atleast for once? ना मैं ऐसा फैसला लेती और ना ही आज आपको इतनी तकलीफ झेलनी पड़ती|

मैं: तकलीफ...तकलीफ तो आप झेल रहे हो! बीमार आप पड़े हो.... मैं तो कुछ न कुछ खा लिया करता था पर आपने तो खुद को मेरी गलती की सजा दे डाली|

भौजी: Oh comeon ! Lets forget everthing …and start a fresh!

मैं: That is something I’ll have to think about!

आगे बात नहीं हो पाई और माँ का फोन आ गया की; "सूप तैयार हो गया है| आके ले जा और अपने सामने बहु को पिला दिओ|" फोन रखा ही था की इतने में बच्चे आ गए| मैं उन्हें वहां बैठा के घर आया और थर्मस में स्पूप ले के लौट आया| मैंने अपने हाथों से उन्हें वो सूप पिलाया और इधर नेहा, आयुष और मैं हम समोसे खा रहे थे| Finally सब खुश थे! पर अब भी कुछ तो था….. जो नहीं था! भौजी और चन्दर भैया को आये हफ्ता होने आया था...और अभी बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराना बाकी था| मैंने पिताजी से बात की और पास ही के स्कूल में ले जाके दोनों का एडमिशन करवा दिया| अब बारी थी भौजी का किचन सेट करने की!

भौजी: जानू...अलग रसोई की क्या जर्रूरत है?

मैं: Hey I’m just following orders!

भौजी: तो क्या आपके अनुसार अलग रसोई होनी चाहिए?

मैं: देखो.... to be honest ...मैं अंडा खाता हूँ! और जैसे की आप जानते हो की हमारे खानदान में सब शुद्ध शाकाहारी है ...ऐसे में .... एक रसोई....मतलब ...दिक्कत हो सकती है|

भौजी: सच में आप अंडा खाते हो? Hwwww !!! और इसके बावजूद आपने मुझे छुआ?

मैं: अरे मैं अंडा खा के थोड़े ही आपको छूता था| जो कुछ भी हुआ वो तब हुआ जब मैंने इन चीजों को हाथ भी नहीं लगाया था|

भौजी: माँ-पिताजी भी खाते हैं?

मैं: नहीं... मैं खुद बनता हूँ..खुद खाता हूँ...and don't woory ....अंडे वाले बर्तन अलग हैं और उसमें आप लोगों ने कभी नहीं खाया| और तो और मैं अंडा...हीटर पे बनाता था!

भौजी: (हँसते हुए बोलीं) पर आपने तो मेरा धर्म भ्रस्ट कर ही दिया|

मैं: हाँ....और साथ-साथ सारे घर का भी! ही..ही..ही... still if you think we shoul have a common kitchen talk to mom.

भौजी: ठीक है….मैं माँ से बात करुँगी|

भौजी ने माँ से पता नहीं क्या बात की...और माँ मान भी गईं तो आब भौजी और हम सब एक साथ खाना खाते हैं और खाना पकाने का काम ज्यादातर भौजी ही देखती हैं| ऐसे करते-करते दिन बीतने लगे...एक दिन की बात है की मेरी तबियत शाम से ठीक नहीं थी...बुखार था और सर दर्द कर रहा था| उसी दिन पिताजी के एक मित्र जो हमारे साथ काम करते हैं उनके घर में गोद-भराई का फंक्शन था और उन्होंने पिताजी और चन्दर भैया को सपरिवार बुलाया|

मैं; पिताजी....मैं नहीं आ पाउँगा..मेरी तबियत ठीक नहीं है|

पिताजी: ठीक है...तू आराम कर|

माँ: ठीक है फिर मैं भी रूक जाती हूँ|

पिताजी: नहीं...गोदभराई में मर्दों का कयाम काम...तुम्हें तो आना ही होगा| फिर मिश्रा जी की पत्नी ने ख़ास कर तुम्हें बुलाया है| ये अकेला रह लेगा|

मैं: हाँ माँ...आप जाओ...मैं वैसे भी सोने ही जा रहा हूँ|

चन्दर भैया: चाचा ... बच्चों को यहीं छोड़ देते हैं मानु भैया के पास|

पिताजी: ठीक है ...वैसे भी बहुत दिन हुए इसे कोई कहानी सुनाये|

मैंने नेहा और आयुष को आँख मारी और वो मेरे पास आके बैठ गए|

पिताजी: लो भई इन तीनों का प्रोग्राम तो सेट हो गया|

सब हँस पड़े पर भौजी के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था| उन्होंने हमेशा की तरह घूँघट काढ़ा हुआ था, उन्होंने माँ को अकेले में बुलाया और कुछ कहा|


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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:50

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अब आगे ....

माँ वापस ड्राइंग रूम में आईं जहाँ हम बैठे हुए थे और बोलीं;

माँ: लो भई ...बहु नहीं जाना चाहती| उसका कहना है की वो यहाँ रूक के मानु का ध्यान रखेगी|

मैं: अरे...आप जाओ...मैं बच्चों के साथ हूँ ना|

भौजी: पर ये आपको सोने नहीं देंगे| छल कूद कर-कर के आपकी नाक में डीएम कर देंगे|

मैं: नहीं करेंगे...क्यों बच्चों आप तंग नहीं करोगे ना?

दोनों ने एक साथ हाँ भरी|

भौजी: और खाने का क्या?

मैं: मैं मैगी बना लूँगा..और हम तीनों वही खाएंगे?

पिताजी: ठीक है...तो बात पक्की| हम चारों जायेंगे और तुम तीनों घर में ऊधम मत मचाना! चन्दर बेटा जाओ और जल्दी से तैयार हो के आ जाओ|

दोनों निकल गए और बच्चे मेरे साथ कमरे में आ गए| मैंने दोनों को कंप्यूटर पे गेम लगा दी और दोनों खेलने लगे| दोनों बहिय शोर कर रहे थे पर मुझे इस शोर को सुन के मजा आ रहा था| फिर दोनों जिद्द करने लगे की मैं भी उनके साथ गेम खेलूं तो मैं भी उनके साथ बैठ गया| हालाँकि मेरे सर में दर्द हो रहा था पर...बच्चों की ख़ुशी के आगे सब काफूर हो गया| हम NFS Rivals खेल रहे थे| मैंने आवाज तेज कर दी और दोनों मुझे ही ड्राइव करने को कह रहे थे| जब मैं gadgets use करता और कोई गाडी थोक देता या उस पर gadgets use करता तो दोनों चिल्लाने लगते| इतने में माँ आ गईं;

माँ: हाँ तो ये आराम हो रहा है?

मैं: माँ दोनों जिद्द करने लगे तो....

माँ: ठीक है बेटा.....हम जा रहे हैं|

माँ: बाय

नेहा और आयुष: बाय-बाय दादी जी|

माँ: बाय बच्चों|

माँ चलीं गईं और हम तीनों फिर से खेलने लगे| घडी में चार बज रहे थे ...हम खेलते रहे..मैंने उन्हें frozen फिम दिखाई...घर पे पॉपकॉर्न थे वो बना के खिलाये...घर पे Thumsup पड़ी थी वो भी पी मतलब मैंने अपने कमरे को थिएटर बना दिया था, और फिर पता ही नहीं चला की शाम के आठ बज गए| माँ कह गई थीं की वो दस बजे तक आएँगी| कमरे में मूवी की आवाज बहुत तेज थी और अब भूख लगने लगी थी;

मैं: तो बच्चों भूख लगी है?

नेहा और आयुष ने एक साथ हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं: मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया?

अब दोनों एक साथ चीखे "हाँ पापा"!!!

मैं: चलो फिर अब हम मिलके कुछ बनाते हैं?

तीनों किचन में आये और मैंने उन्हें 6 in 1 मैगी का पैकेट निकाल के दिया और उन्हें एक सेफ्टी scissor दी और पैकेट खोलने को कहा| (ये Recipe मेरी है ..कहीं से copy नहीं की है|) जब तक वो पैकेट खोल रहे थे मई फटा-फ़ट टमाटर-प्याज और मिर्च काटी| ये मेरा मैगी बनाने का नया ट्विस्ट था|

एक पतीले में मैगी उबाली और एक कढ़ाई में थोड़ा सा तेल डाला और फिर प्याज और मिर्च दाल दी...जब प्याज पाक गए तब उसमें टमाटर डाल के गैस की आंच कम की और ढक्कन ढक के पकने को छोड़ दिया| इधर मैगी उबाल गई थी, उसे छन के पानी निकाल दिया| इधर टमाटर गाल चुके थे, अब इसमें उबली हुई मैगी डाली और ऊपर से मैगी मसाला डाला और मिक्स किया..और my personal touch a hint of Sirka and one drop of soya sauce! Yummy!!! मैगी तैयार हुई...और मैंने तीन fork निकाले और कढ़ाई उठा के डाइनिंग टेबल पे ले आया ... नेहा और आयुष तो टेबल के ऊपर ही बैठ गए| तीनों ने कढ़ाई में ही खाया|

मैं: तो बच्चों कैसी लगी पापा की बनाई हुई मैगी?

नेहा: टेस्टी पापा!

आयुष: नहीं दीदी ...superb !!!

दोनों बहुत खुश थे! और उन्हें खुश देख के मैं भी खुश था| खेर खाना तो हो गया अब बाकी था सोना|

मैं: तो अब किस-किस को कहानी सुन्नी है?

दोनों ने हाथ उठा के एक साथ कहा; "मुझे...पापा"|

मैं: ठीक है..आप दोनों को सुनाऊँगा| चलो पहले ब्रश कर लो|

तीनों ने ब्रश किया और फिर हम बिस्तर पर लेट गए| पहले थोड़ी "पिलो फाइट" हुई.. आयुष और नेहा एक टीम में थे और मैं अकेला...दोनों ने मुझे गिरा दिया और तकिये से मुझे मारने लगे...मैं दोनों को गुदगुदी कर के हटा देता पर वो फिर मुझे खींच के गिरा देते....इसी मस्ती में हम तीनों खूब हँसे...मजे किये! घडी ने नौ बजाये और आख़िरकार मैं बेडपोस्ट का सहारा लेके बैठा गया और मेरी एक बगल नेहा थी और दूसरी बगल में आयुष| मैं दोनों के सर पे हाथ फेरते हुए कहानी सुनाने लगा|दोनों मुझे झप्पी डाल के सो गए| नींद तो मुझे भी आ रही थी...

पर दिमाग ने कहा की थोड़ा self assessment करते हैं जो उस दिन भौजी ने मुझे कहा था| कुछ देर self assessment करने के बाद मैंने फैसला कर लिया और फिर बैठे-बैठे ही सो गया| सुबह छः नजी मेरी आँख खुल गई और मैंने दोनों बच्चों को प्यार से उठाया| दोनों कुनमुना रहे थे...फिर दोनों के गालों को Kiss किया और नेहा को पीठ पे और आयुष को गोद में उठा के मैं कमरे से बहार आया| बाहर बैठक में पिताजी और चन्दर भैया बैठे थे और मुझे इस तरह दोनों को उठाय हुए देख दोनों मुस्कुरा दिए| इतने में भौजी स्कूल यूनिफार्म और बैग्स ले के आ गईं| स्कूल घर के ज्यादा नज्दीक नहीं था..करीब आधा घंटा दूर इसलिए पिताजी ने मुझे प्राइवेट वैन लगाने को बोला था| मैं बच्चों को वैन में बैठा आया और फिर फ्रेश होने लगा| तैयार हो के बाहर निकला तो भौजी दिखीं..उनके हाथ में चाय की प्याली थी|

भौजी: So you guys had your fun right?

कमरे की हालत देखि तो तीनों ने कमरे की हालत ख़राब कर दी थी...बिस्तर तहस नहस हो गया था| टेबल पर पॉपकॉर्न बिखरे हुए थे...जगह-जगह कोल्ड ड्रिंक गिरी हुई थी....और रसोई तो मैं साफ़ करनी ही भूल गया था|

मैं: हाँ...

भौजी: तो मुझे क्यों भेज दिया? मैं होती तो और मजा आता?

मैं: यार .... after all these years I really needed sometime alone with kids. So….वैसे भी मुझे लगा की इसी बहाने आपके और दोस्त बनेंगे|

भौजी: पर मेरा मन नहीं था...आपकी वजह से गई| और दोस्त...वो तो मुझे बनाने आते ही नहीं| वहां तो बस Gossip ही चल रही थी! बोर हो गई.....

भौजी मुझे चाय दे के जाने लगीं तो मैं चाय का सुड़का लेते हुए बोला ;

मैं: Thanks !

भौजी: किस लिए?

मैं: For the advice ..... कल रात self assessment के बाद.... finally उस लड़की का भूत सर से उतर गया|

भौजी बस मुस्कुरा दीं और चलीं गईं| उस दीं पिताजी ने मुझे सप्लायर के पास भेजा था कुछ पेमेंट क्लियर करने को| उसके बाद मैं लंच के लिए घर जल्दी आ गया और अपने कंप्यूटर पे बैठ ये कहानी टाइप कर रहा था, की तभी माँ ने आवाज लगाईं|

मैं: जी माँ

माँ: बीटा कोई सब्जी नहीं है..जा के कुछ ले आ?

मैं: मैं? सब्जी? मजाक कर रहे हो? आजतक जब भी सब्जी लाया हूँ तब आप होते हो या दिषु....मुझे सब्जी लेनी कहाँ आती है?

तभी भौजी बीच में बोल पड़ीं;

भौजी: माँ...मैं सीखा देती हूँ इन्हें|

माँ: हाँ बहु...तुम दोनों जाओ पर जल्दी आना, बारह बज गए हैं|

मैंने थैला उठाया और हम बाजार पहुँच गए| बाजार करीब पंद्रह मिनट दूर था| भौजी ने घूँघट हटा लिया था...मतलब सर पे पल्लू था|तभी भौजी ने अचानक मेरा हाथ पकड़ लिया| उनके छूते ही मुझे करंट लगा....बड़ा अजीब सा एहसास हुआ... जैसे किसी पवित्र चीज के छूने पर होता है| मैंने अपना हाथ धीरे से छुड़ा लिया| भौजी को ये बात अटपटी लगी जो उनके चेहरे से झलक रही थी पर उन्होंने कुछ नहीं कहा ..ये सोच के की हम घर के आस-पास ही हैं और यहाँ लोग मुझे जानते हैं| शायद इस दर से मैं उन्हें स्पर्श नहीं कर रहा! खेर हम सब्जी ले के घर आ गए| मेरे जन्मदिन आने तक भौजी कई बार मुझे छूतीं... कभी अपने घर पे...कभी हमारे घर पे...अकेले में ...सब के सामने नजर बचा के...पर हर बार मैं खुद को उनके स्पर्श से बचाने की कोशिश करता| आखिरकर मेरा जन्म दीं आ ही गया|

जन्मदिन से एक रात पहले, बारह बज के एक मिनट पे माँ-पिताजी मुझे B'day Wish करने आये| उनके जाने के बाद मैं लेट गया, की तभी दो मिनट बाद भौजी का फोन आया;

भौजी: Haapy B'day जानू!

मैं: Thanks !

भौजी: I Love You

मैं: (अब मुझे उन्हें I Love You बोलने में भी अजीब लगने लगा था| जुबान जैसे ये बोलना ही नहीं चाहती थी....दर रही थी कुछ कहने से!) हम्म्म्म ....

भौजी: ये क्या होता है "हम्म्म" say it properly

मैं कुछ नहीं बोला और उन्हें जूठ-मूठ के खर्राटें सुनाने लगा| हालाँकि वो जानती थी की मैं खरांटे नहीं मारता पर उन्होंने बिना कुछ कहे फोन रख दिया| कुछ देर बाद दिषु का फोन आया और उसने भी मुझे wish किया| फिर मैं सो गया...बरसों बाद आजकल मुझे चैन की नींद आ रही थी| All Thanks to her ! अगली सुबह surprises वाली थी| मैं सो रहा था की नेहा और आयुष कमरे में आये और मेरे ऊपर कूद पड़े और मेरे गालों को Kiss करते हुए बोले; "Happy B'day पापा !!!"

मैं: थैंक्स बच्चों!!! (फिर मैंने उन्हें चूमा और उठ के बैठ गया|)

पास ही भौजी भी खड़ीं थी और मुस्कुरा रहीं थी;

मैं: Good Morning !

भौजी: (नाराज होते हुए बोलीं) Good Morning !

मैं: अब मैंने क्या कर दिया की आपका मुँह उतरा हुआ है?

भौजी: कल रात में आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?

मैं: वो मैं सो गया था....All thanks to you ...की मुझे आजकल चैन की नींद आ रही है|

भौजी: ठीक है...तो अब कह दो?

मैं: क्या? (मैंने अनजान बनते हुए कहा)

भौजी: I Love You

मैं: (सोच में पड़ गया) बाद में...अभी फ्रेश हो जाऊँ| (और मैंने जानबूझ के माँ को आवाज लगाईं) माँ....माँ...

माँ: हाँ बोल?

मैं: पिताजी चले गए?

भौजी: (बीच में बोल पड़ीं) मुझसे भी तो पूछ सकते थे...माँ को क्यों तंग किया?

मैं: ओह ! सॉरी !

भौजी समझ गईं की मैं बात घुमा रहा हूँ|

माँ: अरे बहु इसका तो ऐसा ही है| तू चल मेरे साथ...लाड-साहब का नाश्ता बनाना है|

मैं: नहीं..आप लोग रहने दो ....मैं आज अंडा खाऊंगा|

माँ: लो भई... सबसे आखिर में बना लिओ| पहले अपने भैया और पिताजी को जाने दे|

मैं उठ के बाथरूम में घुसने ही वाला था की नेहा ने मेरा हाथ पकड़ा और वापस पलंग पे बैठा दिया|

नेहा: पापा ..आज आप दो बजे आ जाना?

मैं: क्यों?

आयुष: वो तो सरप्राइज है|

मैं: ooh I love surprises ..और specially अगर वो आप दोनों ने प्लान किया है तो!

नेहा: हम दोनों ने नहीं...तीनों ने|

आयुष: हमने तो बस के....

आगे कुश भी बोलने से नेहा ने आयुष को रोक दिया|

नेहा: वो सब बाद में| दो बजे...पक्का...वरना हम आपसे बात नहीं करेंगे|

मैं: ठीक है बीटा...अब आप लोग स्कूल के लिए तैयार हो जाओ...!!!

दोनों को वैन में बैठा के मैं लौटा तो पिताजी और चन्दर भैया निकल रहे थे|

माँ: बेटा तेरी भौजी ने टमाटर-प्याज काट दिए हैं| अंडे ले आया तू?

मैं: हाँ..ये रहे| (मैंने अंडे एक कपडे के बैग में छुपा रखे थे, ताकि चन्दर भैया ना देख लें| पिताजी तो जानते थे की मैं अंडा खाता हूँ|)

भौजी: क्या बनाओगे?

मैं: भुर्जी

भौजी; वो क्या होती है?

मैं: जब बनेगी तब देख लेना?

मैंने फटाफट भुर्जी बनाई और जब उसकी खुशबु भौजी की नाक में गईं तो वो मेरे पास आईं|

भौजी: तो इसे कहते हैं भुर्जी?

मैं: हाँ...खाओगे?

माँ: ओ लड़के क्यों सब का धर्म भ्रस्ट करने में लगा है!!!!

मैं: पूछ ही तो रहा हूँ?

भौजी: माँ खुशबु तो बहुत अच्छी है... चख के देखूं?

माँ: तेरी मर्जी बहु...

भौजी: पर आप किसी से बताना मत|

माँ: अरे नहीं बहु...खा ले..कोई बात नहीं.... यही उम्र तो है तुम लोगों की खाने पीने की.... अब ये टी बड़े बुजुर्गों ने नियम बना रखे हैं की ये नहीं खाना ..वो नहीं खाना...और एक आध बार खाने से कुछ नहीं होता ….ये भी तो खाता ही है|

माँ खाने-पीने के लिए कभी नहीं रोकती थी, बस ये कहती थी की खाना अच्छा खाओ| जहाँ तक Hardcore Non-Veg की बात है तो उसे खाने का मेरा मन कभी नहीं हुआ| मेरा ये मन्ना है की इक जीव की हत्या कर देना ...वो भी सिर्फ स्वाद के लिए? छी!!! हाँ अण्डों के बारे में मुझे ज्यादा डिटेल नहीं पता...अगर ये भी उसी श्रेणी में आता है तो मैं इसे भी खाना बंद कर दूँगा|

भौजी: आप खिला दो|

मैं: क्यों?

भौजी: मेरा हाथ लगाने को मन नहीं करता|

मैं: पर खाने का करता है?

फिर मैंने एक प्लेन परांठा जो माँ ने बनाया था उस के साथ भौजी को एक छोटा कौर भुर्जी के साथ खिलाया|

भौजी: उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म्म wow !!

माँ: कैसा लगा बहु?

भौजी: बहुत स्वादिष्ट माँ!

मैं: लो भई हो गया धर्म भ्रस्ट!

ये सुन के सब एक साथ हँस पड़े| फिर भौजी ने आखिर कर अंडा पहलीबार छुआ और अपने हाथ से खाया| नाश्ता खा के मैं बर्तन धोने जा रहा था की भौजी ने रोक दिया;

भौजी: रहने दो ..मैं धो लुंगी| धर्म तो भ्रस्ट हो ही गया! (और हम फिर से हँस पड़े)

मैं भौजी और माँ को बाय कह के निकल गया| जाते समय पिताजी ने मुझे काम समझा दिया था| अब बस देर थी दो बजने की और मुझे भौजी के घर पहुँचने की|

पिताजी ने मुझे किसी से पेमेंट लेने भेजा था...तो मैं उसी के ऑफिस में बैठा था| उस आदमी को आने में देर हो गई| वो आया 01 : 45 pm ...देरी की सुइन क्षमा मांगी और मैंने फटाफट उससे पैसे लिए और बैंक भागा| बैंक पहुँचते-पहुँचते दो बज गए| लंच हो गया अब ढाई बजे बैंक खुलना था| मैं वहीँ बैठा था, की तभी भौजी का फोन आया;

नेहा: हेल्लो पापा...

मैं: हाँ बेटा

नेहा: आप कहाँ हो? कब आ रहे हो?

मैं: बेटा बस बैंक आया हूँ...लंच टाइम हो गया है....थोड़ा लेट हो जाऊँगा|

इतने में आयुष की आवाज आई;

आयुष: पापा अगर आप जल्दी से नहीं आये तो कट्टी!

मैं: बेटा...45 मिनट लगेंगे बस... आपके दादु ने पैसे जमा करनाए को बोला है..बस बैंक आधे घंटे में खुलेगा .... पैसे जमा करा के मैं आपके पास ही आ रहा हूँ|

फिर भौजी की आवाज आई;

भौजी: जानू...45 मिनट में नहीं आये ना तो हम में से कोई बात नहीं करेगा|

मैं: ठीक है बाबा!

मैंने कह तो दिया की मैं 45 मिनट में आ जाऊँगा पर घर से बैंक आधा घंटा दूर था| ना मेरे पास कार थी न बाइक... ऊपर से घर पे लंच तीन बजे होता था !!! खेर बैंक का लंच खत्म हुआ पर कॅश जमा कराने की लाइन बहुत बड़ी थी| जिस बन्दे को मैं जानता था वो आज छुट्टी पे था| फिर भी किसी तरह तिगड़म लगा के मैंने पैसे जमा करा दिए और बैंक से भागा| ऑटो किया...पर रास्ते में जाम था! इधर भौजी के फोन इ फोन आ रहे थे! घर पहुँचते-पहुँचते 03 : 15 pm हो गए| अब घर पहुंचा तो भौजी का मुँह फुला हुआ ...नेहा का मन फुला हुआ..और आयुष का भी मुँह फुला हुआ था| तीनों में से कोई मुझसे बात नहीं कर रहा था| मैं डाइनिंग टेबल के पास आके खड़ा हुआ... नेहा, आयुष और भौजी तीनों रसोई में खड़े थे और मुझे देख के अपना गुस्सा जाहिर कर रहे थे| मैंने इशारे से आयुष और नेहा को अपने पास बुलाया पर कोई नहीं आया| फिर मई कान पकडे और घुटनों पे बैठ गया| मैंने दोनों को गले लगाने का इशारा किया तो दोनों भागते हुए आये और मेरे गले लग गए|


The Romantic
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Re: एक अनोखा बंधन

Unread post by The Romantic » 25 Dec 2014 22:50

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अब आगे ....

पिताजी और चन्दर भैया डाइनिंग टेबल पर बैठे सब देख रहे थे|

पिताजी: अरे भई ये क्या हो रहा है? बड़ी माफियाँ मांगी जा रही हैं?

मैं: कुछ नहीं पिताजी ...वो दोनों ने मिलके सरप्राइज प्लान किया था और मैं लेट हो गया तो.....

पिताजी: कैसा सरप्राइज बेटा?

इतने में भौजी ड्राइंग रूम से बोलीं;

भौजी: पिताजी...इधर है सरप्राइज|

हम सब ड्राइंग रूम में पहुंचे तो वहाँ सेंटर टेबल पे एक केक रखा हुआ था|

पिताजी: वाह भई वाह! केक!!! बहु ये अच्छा किया तुमने...बहुत सालों से हमने इसका जन्मदिन नहीं मनाया| हमेशा पैसे ले के निकल जाता था और दोस्तों को बहार ही खिला-पिला देता था| रात को हम घर पर कुछ बहार से माँगा लेते ..बस हो गया जन्मदिन|

मैं: Wow !!!

माँ: चल जल्दी से केक काट!

चन्दर भैया: जन्मदिन मुबारक हो मानु भैया|

मैं: Thanks भैया|

मैंने candle बुझाईं...केक काटा और पहला टुकड़ा पिताजी को खिलाया...दूसरा माँ को...तीसरा चन्दर भैया को ....चौथा नेहा और आयुष को!आखरी टुकड़ा उठा के मैंने भौजी को खिलाना चाहा पर उन्होंने शर्म दिखाते हुए मना कर दिया| वैसे भी उन्होंने घूँघट काढ़ा हुआ था तो ऐसे में वो पिताजी के पास घूँघट कैसे उठातीं| सब वापस डाइनिंग टेबल पे आ गए बस भौजी और मैं ही कमरे में रह गए|

मैं: नाराज हो मुझसे?

भौजी: नहीं तो...आज कैसे नाराज हो सकती हूँ! आपका एक सरप्राइज घर पे wait कर रहा है!

मैं: सच में? यार You're full of surprises!

फिर हम सबने खाना खाया और बचा हुआ केक हमने स्वीट डिश में खा लिया और केक खत्म| लंच के बाद भैया और पिताजी तो काम पे चले गए और मुझे आज दोस्तों के साथ एन्जॉय करने को कह गए| मैं सोने जा रहा था क्यों की दिषु कुछ दिनों के लिए बहार गया हुआ था|

तभी भौजी का फोन आया;

मैं: हाँ जी बोलो

भौजी: जल्दी से घर आ जाओ!

मैं उनके घर पहुँच गया| बच्चे सो चुके थे बस भौजी जाग रहीं थीं|

मैं: हाँ तो क्या है सरप्राइज?

भौजी ने एक छोटा सा गत्ते का बॉक्स मेरे सामने खोला| उसमें दो पेस्ट्री थीं| उन्होंने एक पे एक मोमबत्ती लगा दी और उसे जल दिया|

मैं: okay !

भौजी: वो प्लान बच्चों का था...और ये वाला Specially आपके लिए ...मेरी तरफ से!

मैंने candle बुझाई और वो टुकड़ा उन्हें खिलाया, भुजी ने दूसरा टुकड़ा मुझे खिलाया| भौजी मुझसे लिपट गईं और बोलीं;

भौजी: Happy B'day जानू!

मैंने अब भी उन्हें नहीं छुआ था.... वो मुझसे लिपटीं थीं पर मेरे हाथ उनकी कमर या पीठ पे नहीं थे, बल्कि मैंने अपने हाथ पीछे मोड़ रखे थे|

मैं: thanks

फिर मैंने उन्हें खुद से दूर किया और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गया| जाहिर था की इतने दिनों से मेरा व्यवहार उन्हें अटपटा लग रहा था और आखिर उन्होंने पूछ ही लिया;

भौजी: आप पिछले कुछ दिनों से इतना weired क्यों behave कर रहे हो? अब भी नाराज हो?

मैं: नहीं तो

भौजी: तो बात क्या है? ना आप मुझे छूते हो...ना पहले के जैसे "जान" कह के बुलाते हो... कल रात आपको मैंने I Love You कहा...आपने उसका कोई जवाब नहीं दिया...बल्कि मुझे अपने खरांटे सुनाने लगे...क्या मैं नहीं जानती की आप खरांटे नहीं लेते? आज सुबह भी आपने मेरे कहने पर भी I Love You नहीं कहा? अकेले में जब भी आपको छूतीं हूँ या कोशिश करती हूँ तो आप भाग जाते हो? आखिर क्यों मुझसे दूरी बना रहे हो? मैं यहाँ सिर्फ आपके लिए ही तो आई हूँ|

मैं: जानता हूँ...पर ....पर ....अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा| आप...आप मेरे लिए वो नहीं रहे जो पहले थे! I mean I use to love you…but now its like …I….I worship you! उस दिन आपने जो कुछ कहा...I mean आयुष और नेहा ...वो...वो सब.... I still feel guilty! आप हमेशा सही थे...और मैं आपको ही गलत मानता रहा| मैंने आपको दोषी बना डाला... सरे इल्जाम आप पर थोप दिए... मतलब... hHow could I ever do that! और इस सब के होने के बाद मेरे पास आपको छूने का या कुछ भी कहने का हक़ नहीं रहा| मेरे लिए तो आप वो संगे मरमर की मूरत हो जिसे मेरे जैसा पापी अगर देख भर ले तो वो मूरत गन्दी हो जाए...ऐसे में मैं आपको कैसे छूं| the truth is I don’t deserve you!

भौजी: Oh God ! I’m not a Goddess !!! मैं बस आपसे प्यार करती हूँ..और बस यही चाहती हूँ की आप मुझे वैसे ही प्यार करो जैसे किया करते थे| मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया..बलिक एहसान तो आपने किया है| आप मेरी जिंदगी में आय...और मुझे वो साड़ी खुशियां दीं जो मुझे मिलनी चाहिए थी| उसके बाद मेरी एक गलती की वजह से आप बिना कुछ कहे बिना कुछ मांगे...चले गए| आप ने तो expect करना ही छोड़ दिया| I mean आपकी जगह कोई और होता तो वो मुझसे कितनी उम्मीद बाँध लेता...और जैसा मैंने किया उसके बाद तो वो सब जगह जाके ढिंढोरा पीट देता की ये बच्चा उसका है और उसके बाद क्या होता ये मुझे कहने कोई जर्रूरत नहीं| आपने तो यहाँ तक आयसुह को खुद को "पापा" कहने से भी रोक दिया सिर्फ इसलिए की किसी को पता न चल जाये| और आज भी आप मुझे छूने से झिझकते हो....इतना बड़ा दिल किस इंसान का होता है? It’s you who should be worshipped!

मैं: Oh No..No…I don’t deserve that!

भौजी: तो promise me आप ये सब नहीं सोचोगे?

मैं: I can’t do that!

भौजी: Ok… कहते हैं जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है|

मैं: क्या मतलब?

भौजी: जब तक आप मुझे नहीं छूते मैं खाना-पीना सब छोड़ दूंगी|

मैं: That’s not fair!

भौजी: Well you once said, everything’s fair in love and war.

मैं जानता था की अगर मैंने उन्हें छुआ नहीं तो वो फिर से बीमार पड़ जाएँगी| तभी भौजी का फोन आया;

मैं: हाँ जी बोलो

भौजी: जल्दी से घर आ जाओ!

मैं उनके घर पहुँच गया| बच्चे सो चुके थे बस भौजी जाग रहीं थीं|

मैं: हाँ तो क्या है सरप्राइज?

भौजी ने एक छोटा सा गत्ते का बॉक्स मेरे सामने खोला| उसमें दो पेस्ट्री थीं| उन्होंने एक पे एक मोमबत्ती लगा दी और उसे जल दिया|

मैं: okay !

भौजी: वो प्लान बच्चों का था...और ये वाला Specially आपके लिए ...मेरी तरफ से!

मैंने candle बुझाई और वो टुकड़ा उन्हें खिलाया, भुजी ने दूसरा टुकड़ा मुझे खिलाया| भौजी मुझसे लिपट गईं और बोलीं;

भौजी: Happy B'day जानू!

मैंने अब भी उन्हें नहीं छुआ था.... वो मुझसे लिपटीं थीं पर मेरे हाथ उनकी कमर या पीठ पे नहीं थे, बल्कि मैंने अपने हाथ पीछे मोड़ रखे थे|

मैं: thanks

फिर मैंने उन्हें खुद से दूर किया और सामने पड़ी कुर्सी पे बैठ गया| जाहिर था की इतने दिनों से मेरा व्यवहार उन्हें अटपटा लग रहा था और आखिर उन्होंने पूछ ही लिया;

भौजी: आप पिछले कुछ दिनों से इतना weired क्यों behave कर रहे हो? अब भी नाराज हो?

मैं: नहीं तो

भौजी: तो बात क्या है? ना आप मुझे छूते हो...ना पहले के जैसे "जान" कह के बुलाते हो... कल रात आपको मैंने I Love You कहा...आपने उसका कोई जवाब नहीं दिया...बल्कि मुझे अपने खरांटे सुनाने लगे...क्या मैं नहीं जानती की आप खरांटे नहीं लेते? आज सुबह भी आपने मेरे कहने पर भी I Love You नहीं कहा? अकेले में जब भी आपको छूतीं हूँ या कोशिश करती हूँ तो आप भाग जाते हो? आखिर क्यों मुझसे दूरी बना रहे हो? मैं यहाँ सिर्फ आपके लिए ही तो आई हूँ|

मैं: जानता हूँ...पर ....पर ....अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रहा| आप...आप मेरे लिए वो नहीं रहे जो पहले थे! I mean I use to love you…but now its like …I….I worship you! उस दिन आपने जो कुछ कहा...I mean आयुष और नेहा ...वो...वो सब.... I still feel guilty! आप हमेशा सही थे...और मैं आपको ही गलत मानता रहा| मैंने आपको दोषी बना डाला... सरे इल्जाम आप पर थोप दिए... मतलब... hHow could I ever do that! और इस सब के होने के बाद मेरे पास आपको छूने का या कुछ भी कहने का हक़ नहीं रहा| मेरे लिए तो आप वो संगे मरमर की मूरत हो जिसे मेरे जैसा पापी अगर देख भर ले तो वो मूरत गन्दी हो जाए...ऐसे में मैं आपको कैसे छूं| the truth is I don’t deserve you!

भौजी: Oh God ! I’m not a Goddess !!! मैं बस आपसे प्यार करती हूँ..और बस यही चाहती हूँ की आप मुझे वैसे ही प्यार करो जैसे किया करते थे| मैंने आप पर कोई एहसान नहीं किया..बलिक एहसान तो आपने किया है| आप मेरी जिंदगी में आय...और मुझे वो साड़ी खुशियां दीं जो मुझे मिलनी चाहिए थी| उसके बाद मेरी एक गलती की वजह से आप बिना कुछ कहे बिना कुछ मांगे...चले गए| आप ने तो expect करना ही छोड़ दिया| I mean आपकी जगह कोई और होता तो वो मुझसे कितनी उम्मीद बाँध लेता...और जैसा मैंने किया उसके बाद तो वो सब जगह जाके ढिंढोरा पीट देता की ये बच्चा उसका है और उसके बाद क्या होता ये मुझे कहने कोई जर्रूरत नहीं| आपने तो यहाँ तक आयसुह को खुद को "पापा" कहने से भी रोक दिया सिर्फ इसलिए की किसी को पता न चल जाये| और आज भी आप मुझे छूने से झिझकते हो....इतना बड़ा दिल किस इंसान का होता है? It’s you who should be worshipped!

मैं: Oh No..No…I don’t deserve that!

भौजी: तो promise me आप ये सब नहीं सोचोगे?

मैं: I can’t do that!

भौजी: Ok… कहते हैं जब घी सीधी ऊँगली से न निकले तो ऊँगली टेढ़ी करनी पड़ती है|

मैं: क्या मतलब?

भौजी: जब तक आप मुझे नहीं छूते मैं खाना-पीना सब छोड़ दूंगी|

मैं: That’s not fair!

भौजी: Well you once said, everything’s fair in love and war.

मैं जानता था की अगर मैंने उन्हें छुआ नहीं तो वो फिर से बीमार पड़ जाएँगी|

भौजी आयुष और नेहा के कमरे में जा रहीं थी की मैं उठा और पीछे से जाके उन्हें कमर से पकड़ लिया| मैं उनकी शरीर की महक को आज बरसों बाद सूंघ रहा था....भौजी ने भी मेरे हाथों को कस के पका डी लिया और अपने जिस्म पे दबाने लगीं|

भौजी: ह्म्म्म्म्म्म्म

मैं: So sorry ..... for behaving so weired .....so are you Happy now?

भौजी: ना ...You're missing something ?

मैं: Oh .... I love you

भौजी: I Love You Too !

फिर मैंने पीछे से ही भौजी के गालों को चूमा और उन्हें अपनी गिरफ्त से आजाद किया|

भौजी: वैसे.... मुझे अभी भी आपसे एक चीज चाहिए? जिसके लिए मैं बहुत तड़पी हूँ|

मैं: क्या?

भौजी: Kiss !

मैं: दिया तो अभी!

भौजी: वो Kiss थोड़े ही था...वो तो आपने घांस काटी है|

इतने में बच्चे उठ गए और दोनों आके मेरी गोद में बैठ गए| भौजी उठ के कपडे लेने के लिए छत पे चली गईं| मैंने भी बच्चों को अपने घर भेज दिया ये कहके की मैं अभी आ रहा हूँ| नीचे ताला लगाया और मैं भी छत पे पहुँच गया|

मैं: तो “जान”...आप कुछ मांग रहे थे?

भौजी ने शरारत भरी नजरों से मेरी ओर देखा ओर बोलीं;

भौजी: नहीं तो...

मैं: ठीक है ...मुझे लगा आपको वो अभी चाहिए था...पर ठीक है…..मैं जा रहा हूँ|

मैं जाने के लिए जैसे ही घुमा भौजी भाग के मेरे पास आऐं और मुझे झटके से पानी ओर घुमाया, मेरी कमीज के कॉलर को दोनों हाथों से पकड़ा और मेरे होठों पे अपने होंठ रख दिए| उनकी दोनों बाहों ने मेरी गर्दन के इर्द-गीर्द घेरा बना लिया और उन्होंने मेरे होठों को अपने मुँह में भर के चूसना शुरू कर दिया| जैसे ही बहूजी ने मेरे होठों को छोड़ा मैंने उनके होठों का रस पान शुरू कर दिया| दस मिनट तक हम एक दूसरे के इसी तरह Kiss करते रहे| जब अलग हुए तो भौजी बोलीं;

भौजी: सात साल...fucking सात साल इन्तेजार किया मैंने इसके लिए!!!

मैं: All you had to do was call me !

भौजी: पर तब वो आनंद नहीं आता जो आज आया| अच्छा आप ये बताओ...गाँव में तो आप मेरे कमरे में रात को आ जाया करते थे...तो यहाँ भी ऐसा ही करोगे?

मैं: ना यार... यहाँ कैसे हो सकता है| किसी ने रात में आपके पास आते देख लिया तो?

भौजी: वो मैं नहीं जानती.... आप आज रात आओगे|

इतने में मेरे फोन में मैसेज आया| मैंने मैसेज पढ़ा तो वो दिषु का था| उसके पास बैलेंस नहीं था और उसने मुझे कॉल करने को कहा था|मैंने तुरंत उसे फोन मिलाया;

मैं: हाँ भाई बोल?

दिषु: अगले दो घंटों में मैं दिल्ली पहुँच रहा हूँ| तू मुझे स्टेशन मिल|

मैं: पर किस लिए?

दिषु: ओये! बर्थडे ट्रीट कौन देगा?

मैं: यार पर....

दिषु: पर-वर कुछ नहीं... और हाँ...कपडे मस्त वाले पहनियो!

मैं: क्यों?

दिषु: मिल तब बताता हूँ|

मैंने फोन काटा और भौजी जो खडीन हमारी बातें सुन रहीं थी


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