Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

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007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 30 Dec 2014 07:17

बहन की इच्छा—11

गतान्क से आगे…………………………………..

अब में ऊर्मि दीदी के साम'ने पूरा नंगा था. उसकी नज़र मेरे अध-खड़े लंड पर टिकी हुई थी. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ और वो मेरे लंड को देख रही है ये अह'सास मुझे पागल कर'ने लगा. देख'ते ही देख'ते मेरा लंड कड़ा होने लगा. उस में जैसे जान भर दी हो और एक अलग जानवर की तरह वो डोल'ने लगा और तन के खड़ा हो गया. जैसे जैसे मेरा लंड कड़ा होता गया वैसे वैसे ऊर्मि दीदी की आँखें चौंक'ती गई.

एक पल के लिए वो मेरी तरफ देख'ती थी तो अगले पल मेरे कड़े हो रहे लंड को देख'ती थी. मेरे ध्यान में आया के मेरे जल्दी जल्दी कड़े हो रहे लंड को देख'कर वो हैरान हो रही थी.

"सागर!! क्या है ये.! कित'ना जल्दी तुम्हारा लंड तन के खड़ा हो गया!! मेने ऐसे लंड को खड़े होते हुए कभी नही देखा था!"

"सच, दीदी??. ये तो तुम्हारा कमाल है, दीदी!"

"मेरा कमाल?? मेने क्या किया, सागर?"

"नही. प्रैक्टिकली तुम'ने कुच्छ नही किया. लेकिन में तुम्हारे साम'ने नंगा हूँ ना. मेरी बहन के साम'ने में नंगा हूँ इस भावना से में इतना उत्तेजीत हो गया हूँ के पुछो मत.."

"मुझे पुच्छ'ने की ज़रूरत ही नही, सागर. में देख सक'ती हूँ ये कमाल." वो अब भी मेरे लंड को हैरानी से देख रही थी.

"ये, सागर. में ज़रा तुम्हारे लंड को अच्छी तरह से देख लूँ? मेरे मन में ये बहुत दिनो की 'इच्छा' है." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मेरे दोनो पैर फैला दिए और वो मेरे पैरो के बीच में बैठ गयी.

"कमाल है, दीदी. तुम'ने कभी जीजू के लंड को अच्छी तरह से देखा नही क्या?" मेने आश्चर्य से पुछा.

"हाँ. उनके लंड को क्या अच्छी तरह से देख'ना. वो तो मुझे हाथ भी लगाने नही देते थे. और हम दोनो रात के नाइट लॅंप में सेक्स कर'ते थे इस'लिए उनका लंड कभी अच्छी तराहा से देख'ने को भी नही मिला मुझे."

"अच्च्छा!.. तो आद'मी का लंड अच्छी तरह से देख'ने को मिले ये तुम्हारी 'इच्छा' थी हाँ."

"हां. लेकिन किसी भी आद'मी का नही. सिर्फ़ तुम्हारे जीजू का लंड."

"ओहा आय सी!. लेकिन ये तो जीजू का लंड नही है, दीदी."

"हां ! डियर सागर. मुझे मालूम है वो.. मेरे पति का लंड नही तो ना सही.. मेरे भाई का लंड तो है. इसी को निहार के में अप'नी 'इच्छा' पूरी कर लूँगी.." ऊर्मि दीदी की बात सुन'कर में ज़ोर ज़ोर'से हंस'ने लगा. उस'ने चौन्क के मेरी तरफ देखा और पुछा, "ऐसे क्यों हंस रहे हो, सागर?"

"इस'लिए के. अब तुम कित'नी आसानी से 'लंड' वग़ैरा शब्द बोल रही हो और थोड़ी देर पह'ले तुम 'शी!' कर रही थी. वो मुझे याद आया और मुझे हँसी आई!" मेने हंस'ते हुए उसे जवाब दिया.

"तो फिर क्या.. ये तो तुम्हारा ही कमाल है, सागर. तुम्ही ने मुझे गंदी कर दिया है."

"अब तक तो नही." उसे सुनाई ना दे ऐसी आवाज़ में मेने धीरे से कहा.

"क्या? क्या कहा तुम'ने??" उस'ने चमक कर पुछा.

"अम?. का. कुच्छ नही, दीदी. तुम कर रही हो ना मेरे लंड का परीक्षण??" मेने बात पलट'कर उसे कहा. फिर मेने ऊर्मि दीदी को मेरे पैरो के बीच में आराम से लेट'ने के लिए कहा. वो मेरे पैरो के बीच अप'ने पेट'पर लेट गयी और उस'ने अपना चेह'रा मेरे लंड के नज़दीक लाया. कुच्छ पल के लिए मेरे लंड को उप्पर से नीचे देख'ने के बाद उस'ने धीरे से अपना हाथ बढ़ाया और मेरा लंड पकड़ लिया.

"अहहा!! !" मेरी बहन के हाथ का स्पर्श मेरे लंड को हुआ और अप'ने आप मेरे मूँ'ह से सिस'की बाहर निकल गई.

"क्या हुआ, सागर? तुम्हें दर्द हुआ कही?" ऊर्मि दीदी ने परेशानी से पुछा.

"दर्द नही. सुख. सुख का अनुभव हुआ, दीदी!." उस अनोखे सुख से आँखें बंद कर'ते मेने कहा.

"सुख का अनुभव? यानी क्या, सागर??"

"अरे, दीदी!. तुम मेरा लंड हाथ में ले लो ये मेरी बहुत दिनो की 'इच्छा' थी."

"कौन, में???"

"तुम यानी.. कोई भी लड़'की. दीदी!"

007
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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 30 Dec 2014 07:18

"अच्च्छा!. कोई और लड़'की. वही में सोचूँ. के में तुम्हारा लंड हाथ में ले लू ऐसी 'इच्छा' तुम्हारे मन में क्यों होंगी?" अब में ऊर्मि दीदी को क्या बताऊ??. के मेरा लंड सिर्फ़ उसके हाथ में ही क्या.. और कहाँ कहाँ देने की, डाल'ने की 'इच्छा' कित'ने बरसो से मेरे मन में है. में चुप'चाप पड़ा रहा और वो मेरा लंड हाथ में लेकर उसे गौर से देख'ने लगी. उस'ने पह'ले मेरा लंड पकड़'कर उस'का आगे पिछे से परीक्षण किया.

फिर मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते मेरे लंड के नीचे के अंडकोष का परीक्षण किया. एक हाथ से मेरा लंड मुठ्ठी में पकड़'कर दूसरे हाथ से मेरी गोटीयों को सहलाया. उसके उप्पर के मेरे झान्ट के बाल अप'नी उंगली में पकड़'कर उन्हे खींच के देखा. बालों को खींच'ने से मेरी गोटीयों की चमड़ी का तनना और छोड़'ने के बाद चमड़ी का वापस पहेले जैसा होना. ये बात उसे काफ़ी दिलचस्प लगी.

मेरी गोटीयों की चमड़ी को उप्पर करके ऊर्मि दीदी उसके नीचे के भाग का परीक्षण कर'ने लगी. उसे मेरे गोटीयों के नीचे का भाग अच्छी तरह से देख'ने को मिले इस'लिए मेने मेरे पैर और फैलाए और उप्पर किए. वो अप'नी उंगली मेरी गोटीयों के निचले भाग पर घुमा रही थी. जब उसकी उंगली का स्पर्श मेरे गान्ड के हॉल को लगा तब में छिटक गया. उसे मेरी गान्ड का हॉल दिख रहा होगा इसका मुझे यकीन था लेकिन दीदी वहाँ पर उंगली लगाएगी ये मेने सोचा नही था. में आश्चर्य से उड़ गया ये देख'कर वो हंस दी और उस'ने मेरा लंड छोड़ दिया. जैसे ही उस'ने लंड छोड़ दिया वैसे ही वो तन के खड़ा हो गया.

फिर ऊर्मि दीदी ने वापस मेरा लंड सूपदे के नीचे मुठ्ठी में भर लिया और सूपदे की चमड़ी नीचे सरका के सूपड़ा खुला किया. सुपारी जैसा कड़ा और चिकना सूपड़ा देख'कर उसे रहा ना गया और उस'ने अप'नी उंगली उस'पर घुमाई. शुपाडे के उप्पर जो छेद था उस'पर भी उस'ने उंगली घुमाई. फिर दो उंगलीयो से उस'ने छेद को फैलाया और उस मूत के हॉल का परीक्षण किया. उस'ने उंगलीया हटाते ही छेद बंद हो गया और उस में से मेरे वीर्य की पानी जैसी बूँद बाहर आई.

उस बूँद को बाहर आते देख ऊर्मि दीदी खिल उठी और मेरी तरफ देख कर हंस दी. फिर नीचे देख'कर उस'ने हलके से उस बूँद को उंगली लगाई और वो बूँद उसकी उंगलीपर आया. उस'ने दोनो उंगली से उस बूँद को मसल दिया और उसके गाढ़ेपन का अंदाज लिया. पूरा समय में ऊर्मि दीदी क्या क्या कर रही थी वो में बड़े मज़े से देख रहा था. आख़िर उस'ने मेरा लंड छोड़ दिया और वो उठ के बैठ गयी.

"कुच्छ भी कहो, सागर. लेकिन. पुरुष का ये भाग कुच्छ अलग ही दिखता है!" ऊर्मि दीदी ने हंस'कर कहा.

"पुरुष का ही क्यों. तुम स्त्रियों का भी वो भाग कुच्छ अलग होता है. ना समझ'ने वाला. किसी पहेली जैसा.. उलझन जैसा."

"कौन सी स्त्री का देखा है तुम'ने, सागर? मेरा तो यक़ीनन देखा नही."

"इस'लिए तो कह रहा हूँ. किसी पहेली जैसा. क्योंकी तुम्हारा 'वो' भाग मेने सिर्फ़ उप्पर ही उप्पर देखा है. लेकिन उसे अच्छी तरह से देख'कर ये पहेली सुलझाने की कोशीष मुझे कर'नी है."

"ना बाबा ना.. में नही अप'नी पहेली सुलझाने दूँगी तुम्हें."

"वो तो देख लेंगे हम बाद में, दीदी. चलो अभी. ज़रा मेरे लंड को चूस के मुझे जन्नत की सैर करा दो." मेने हंस'ते हुए उसे कहा.

"तो फिर बताओ मुझे. में कैसे कैसे. क्या क्या कारू. मेरे 'गाइड', वत्सायन!!" उस'ने 'गाइड' शब्द पर ज़ोर देते हुए हंस'ते हंस'ते कहा.

"ओके, दीदी! अब तुम पह'ले जैसी मेरे पैरो के बीच लेट जाओ. हाँ.. ऐसे ही.. अब मेरा लंड ऐसे सीधा पकड़ लो. ऐसेच. अब. धीरे से तुम्हारे होंठो से मेरे लंड के सुपाडे को चूम लो. अहहाहा!!. ऐसेही. आहा!. थोड़ी देर ऐसे ही मेरे लंड को चूम'ती रहो.. यस!. यस!!. अब तुम्हारी जीभ बाहर निकाल'कर मेरे सुपाडे को चाट लो. ऐसे ही. यस!. बिल'कुल लालीपोप चाटते है वैसे. ऐसेही. राइट!. बिल'कुल ऐसेही. अहहा. अब मेरे लंड के सुपाडे का जो छेद है ना.. उसे अप'नी जीभ से चाटो. और खुरेद दो.. आहा!. बिलाकूल ऐसेही, दीदी!. तुम बिल'कुल सही तरह से कर रही हो. ऐसे ही कर'ती रहो. अहहा!!."

मेरे साम'ने का नज़ारा मुझे पागल कर देने वाला था. ऊर्मि दीदी, मेरी सग़ी बड़ी बहन, मेरे पैरो में लेटी थी और में उसे बता रहा था के मेरा लंड कैसे चूसे. वो मेरे लंड का सुपाडा चाट रही थी और बीच बीच में उसके उप्पर के मूत के छेद को जीभ से खुरेद रही थी. मुझे तो कुच्छ अलग ही सेंसेशन अनुभव हो रहा था. मेने मेरे लंड को अंदर से एक झटका दिया और अचानक सुपाडे के छेद से मेरे वीर्य की पतली बूँद उप्पर आई. ऊर्मि दीदी ने शरारती नज़र से मुझे देखा. और वैसे ही मेरी नज़र से नज़र मिलाकर उस'ने अप'नी जीभ से वो बूँद चाट ली. फिर जीभ अप'ने मूँ'ह में लेकर उस'ने मेरे वीर्य का स्वाद चख लिया और झट से मुझे आँख मारी.

में धन्य हो गया!!. मेरा जीवन जैसे सफल हो गया!! मेरी बहन ने मेरे वीर्य का पानी चाट लिया. और उसे उस'का स्वाद पसंद भी आया!!. इस बात से मुझे यकीन हो गया के अगर में उसके मूँ'ह में झाड़ जाउ तो वो मेरा पूरा वीर्य निगल लेगी. इस ख़याल से में खूस हो गया और उत्साह से उसे आगे क्या कर'ना है ये बताने लगा.

"अब, दीदी. तुम अपना मूँ'ह खोल दो और मेरे लंड का सिर्फ़ सुपाडा अप'ने मूँ'ह में ले लो. हाँ. ऐसेही. ओहा. अब. अप'ने होठों से सुपाडे के बेस को जाकड़ लो. और फिर अप'नी जीभ और मूँ'ह के अंदर का उप्परी भाग. इस'के बीच पकड़ा के सुपाडे को ज़ोर से चूसो. अहहाहा!. ऐसेही. ग्रेट!.. ऐसे ही कर'ते रहो. ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो. धीरे धीरे.. हाँ. इतना ही. बराबर. चूसो. दीदी. चूसो मेरा लंड.." यकायका मेरा लंड चुसते चुसते ऊर्मि दीदी हंस'ने लगी. वो क्यों हंस रही है ये मेरी समझ में नही आया इस'लिए मेने उसे पुछा,

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Re: Bahan ki ichha -बहन की इच्छा

Unread post by 007 » 30 Dec 2014 07:19

"क्या हुआ, दीदी? तुम हंस क्यों रही हो??"

"कुच्छ नही रे, सागर." ऊर्मि दीदी ने अपना सर उठाते हुए कहा,

"तुम'ने मुझे धीरे से चूस'ने के लिए कहा तो मुझे थोड़ी देर पहेले की बात याद आई. तुम भी मेरी चूत ऐसे ही ज़ोर से चाट रहे थे और मुझे भी पह'ले पह'ले थोड़ी तकलीफ़ हुई. इस'लिए अब उस'का बदला लेने के लिए में तुम्हें ज़ोर से चूसूंगी." ऐसा कह'कर हंस'ते हंस'ते वो वापस मेरा लंड चूस'ने लगी. मेने डराते हुए उसे कहा,

"अरे नही, दीदी. वैसे ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो.. उस से मेरे लंड को तकलीफ़ होगी. बहुत ही नज़ूक होता है लंड.. तुम्हारी चूत जैसा नही होता है."

"नही रे, सागर!. में तो मज़ाक में कह रही हूँ.. में कैसे तुम्हें तकलीफ़ दूँगी? डरो मत..! में धीरे से चूस'ती हूँ तुम्हारा लंड!!."

"ओहा "थॅंक्स, दीदी!.. अहहाहा.. ऐसेही, दीदी.. ऐसेच. क्या बताउ तुम्हें, दीदी.. कित'ना अच्छा लगा रहा है.. अब. तुम मेरा पूरा लंड. अप'ने मूँ'ह में.. लेने की कोशीष करो.. हम. ऐसेही नीचे जाओ. और नीचे. और. अप'नी नाक से साँस लो.. ज़ोर ज़ोर से. जिस'से तुम्हें आना ईज़ी फील नही होगा. जाओ. और नीचे जाओ."

मेरे लंड का लग'भाग सत्तर, अस्सी प्रतिशत भाग ऊर्मि दीदी के मूँ'ह में गायब हो गया था. अभी और थोड़ा अंदर जाना बाकी था. मेरे लंड के सुपाडे का उसके गले के उप्परी भाग को हो रहा स्पर्श में अनुभव कर रहा था. मेने उसके सर के पिछे हाथ रख और कुच्छ पल उसके बालो को सहलाया. फिर में उस'का सर मेरे लंड पर नीचे धीरे धीरे दाब'ने लगा और उसे कह'ने लगा,

"अप'नी नाक से साँसे ले लो, दीदी. अब ले लो मेरा बाकी लंड अप'ने मूँ'ह में.. ले लो.. और ले लो.. जाओ नीचे. तुम्हारा सर थोड़ा उप्पर करो. हाँ. ऐसेही. बराबर. अब दबाओ अपना मुँह और नीचे. और. मेरे लंड का सुपाडा जा'ने दो अप'ने गले में. जा'ने दो. और. बराबर. ऐसेही. और थोड़ा. एसा.. डॅट्स इट.. ग्रेट!. यू आर ग्रेट, दीदी!."

क्रमशः……………………………

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