रश्मि एक सेक्स मशीन compleet
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -58
गतान्क से आगे...
मुझे उस आदमी पर गुस्सा आने लगा. लग रहा था जैसे मैं बेकार ही मेहनत कर रही हूँ. उनमे शायद अब कोई उत्तेजना बाकी नही रही थी.
काफ़ी कोशिशों के बाद लिंग मे कुच्छ तनाव आया तो मैं वहीं फर्श पर चौपाया बन कर उसे जैसे तैसे अपनी योनि मे लेकर खुद ही धक्के मारने लगी. पूरी तरह खड़ा ना होने की वजह से बार बार उनका लिंग मेरी गीली योनि से फिसल कर बाहर आ जाता था. मुझे लग रहा था कि उस बुड्ढे को एक लात मार कर अपने जिस्म से हटा दूं और कमरे से निकल जाऊ. लेकिन मुझे तो अपना काम निकालना था. मुझे उनका वीर्य चाहिए था.
जब उनका लिंग योनि मे नही घुस पाया तो मैने उनके लिंग से मुख मैथुन कर वीर्य निकालने की ठान ली. मैं उनके लिंग को वापस अपने मुँह मे लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. उनके लिंग पर मैं अपने होंठों से और अपनी जीभ से दबाव बना कर रखी थी. वो मेरे बदन को पूरी ताक़त से मसल रहे थे. कुच्छ ही देर मे उन्हों ने अपना पानी छ्चोड़ दिया. जिसे मैने अपने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया.
उनके साथ संभोग कर मेरी आग तो बुझी नही लेकिन उस थोड़े से समय मे उन्हों ने मेरे पूरे बदन को तोड़ मरोड़ कर रख दिया. उनके दाँतों के निशान मेरे स्तनों पर और मेरी जांघों पर चमक रहे थे.
मैं उठ कर बाहर आई. दो ही संभोग ने मुझे इतना थका दिया था कि मैं खड़ी भी ठीक से नही हो पा रही थी. अब और मुझमे हिम्मत नही थी कि किसी और के पास जाऊ. सुबह से मैं सात लोगों से संभोग कर चुकी थी. कुच्छ लोगों ने तो मुझे बुरी तरह तोड़ कर रख दिया था. एक एक अंग फोड़े की तरह दुख रहा था. मैं बाहर निकल कर लड़खड़ा गयी. मैने दीवार का सहारा ले लिया. रत्ना कुच्छ ही दूर बैठी थी. वो दौड़ कर मेरे पास आइ.
मैने रत्ना से अपनी अवस्था के बारे मे बताया और अगले संभोगो के लिए जाने मे अपनी असमर्थता जताई. उसने इशारा किया तो दो सेवक मुझे दोनो ओर से सहारा देते हुए एक कमरे मे ले गये. वहाँ खूबसूरत सा एक बिस्तर लगा हुआ था. रत्ना मेरे लिए तरह
तरह का नाश्ता लेकर आ गयी. मैने नाश्ता करके वापस वही शरबत पिया जिससे जिस्मानी भूख बढ़ जाती है. रत्ना ने मुझे बिस्तर पर लिटा कर एक चादर से मेरे नंग बदन को ढक दिया. वो मुझे लिटा कर कमरे से बाहर निकल गयी. मैं वापस गहरी नींद मे डूब गयी. सपने मे भी मैं अपने आप को किसी के द्वारा भोगे जाते हुए ही देख रही थी.
काफ़ी देर बाद रत्ना जी के पुकारे जाने पर ही नींद खुली. एक नींद लेने के बाद शरीर मे काफ़ी ताज़गी आ गयी थी. मैं सुबह से उन सात शिष्यों से संभोग करते हुए करीब बारह बार स्खलित हुई थी. किसी नॉर्मल महिला के लिए ये एक काफ़ी मुश्किल बात है.
“ रत्ना मैं नहाना चाहती हूँ जिससे जिस्म मे कुच्छ ताज़गी आए.” मैने उससे कहा.
“ नही अभी नही. तुम अपना कार्य पूरा होने से पहले नहा नही सकती. इससे हम जिस कार्य के लिए निकले हैं उस कार्य मे विघ्न पैदा हो जाएगा.” रत्ना ने मुझे साफ साफ मना कर दिया.
रत्ना ने मुझे वापस उसी वस्त्र को पहनाया. मेरे पूरे बदन पर और उन वस्त्रों पर वीर्य के धब्बे और पपड़ियाँ दिख रही थी. मेरे बाल बिखरे हुए थे. वो भी वीर्य से संकर लाटो जैसे हो गये थे. मुझे पूरा कार्यक्रम ख़त्म होने से पहले अपने शरीर को सॉफ करने या नहाने की इजाज़त नही मिली थी. मुझे पूरे दिन उसी तरह रहना
था. यहाँ तक की चेहरा भी साफ नही कर सकती थी.
रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे तक गयी. कमरे मे घुसने से पहले ही उसने मुझे चेता दिया.
" दिशा अब जिस के पास जा रही हो ये स्वामीजी कुच्छ अलग हैं औरों से. इन्हे योनि से ज़्यादा गुदा का शौक है. इस लिए इनसे मिलने से पहले अपने गुदा मे क्रीम लगा लेना. नही तो हालत खराब हो जाएगी. इनका लिंग लंबा और पतला है. जब अंदर घुसता है तो लगता है मानो पेट फाड़ कर ही निकलेगा."
"दीदी क्रीम लाकर दो ना. आप ही लगा दो." मैने कहा.
"अंदर सब मिल जाएगा. उनसे ही माँग लेना. जो इस तरह का शौक रखते हैं वो इनके सारे साधन भी साथ रखते हैं." रत्ना ने कहा.
मैं चुप चाप दरवाजा खोल कर अंदर गयी. सामने ज़मीन पर एक शिष्य बैठे थे. उनकी आँखें बंद थी और वो शायद ध्यान मे लीन थे. मेरे अंदर आने की आवाज़ से उन्हों ने आँख खोल कर मुझे देखा. फिर आँखें बंद कर ली मैं उनके सामने आकर बैठ गयी.
कुच्छ देर तक चुप चाप हाथ जोड़े बैठी रही फिर मेने अपने बदन पर ओढ़े हुए वस्त्र को हटा दिया. मैं अब उनके सामने पूरी तरह नग्न बैठ गयी. मैने इधर उधर अपनी नज़रें दौड़ाई क्रीम की शीशी के लिए मगर कुच्छ नज़र नही आया.
तभी उन्हों ने दोबारा आँखें खोली और मेरे बदन से उनकी नज़रें चिपक कर रह गयी. मैने आगे की ओर झुक कर उनके चरण च्छुए. उन्हों ने मेरे नग्न कंधों पर अपने हाथों को रखा और फिर उन्हे सरकाते हुए मेरे स्तनो को च्छुआ. एक बार उन्हे मसल कर मेरे दोनो निपल्स को अपने हाथों से पकड़ कर उमेथ्ने लगे. मेरे मुँह से उत्तेजना और दर्द से मिली जुली "आआआहह" निकलने लगी.
उन्हों ने अचानक मेरे दोनो निपल्स को अपने मुत्ठियों मे भर कर अपनी ओर एक झटके से खींचा. मैं घुटने के बल चल कर उनके समीप आ गयी.
" आआहह स्वामीजी म्म्म्मममम बस….बस….आज माइईइ बहुत थक गयी
हूँ. इनपर आज बहुत अत्याचाार हो चुक्काआअ हाीइ. मेरे दोनो स्तन फोड़े की तरह दुख रहीए हाऐं. प्लीईईसए अभी भी काफ़ी लोगों के पास जाना है" मैने कहा.
“ देवी फिर मेरे पास आने की ज़रूरत ही क्या थी.” उनकी आवाज़ मे हल्की सी नाराज़गी झलक रही थी.
“ आअप के लिंग का प्रसाद लेने आइ हूऊं. आप का प्रसाद मुझे देदेन प्रभुऊऊ.” मैने अपने हाथ मे पकड़े कलश को उपर उठाया.
“ देवी किसी चीज़ को पाने के लिए मेहनत तो करनी पड़ती है. कुच्छ समर्पित करना पड़ता है तो कुच्छ बर्दास्त भी करना पड़ता है. इन्सब का असर हमारे जिस्म पर पड़ता ही पड़ता है. बिना मेहनत किए तो आदमी के मुँह तक रोटी ही नही पहुँचती. देवी जितना तुम्हारा जिस्म टूटेगा उतना ही तुम्हे मज़ा आएगा.” उन्हों ने मुझे कहा.
“ जी गुरुदेव….मैं तो बस आपको इनपर थोड़ा प्यार दिखाने के लिए ही याचना कर रही थी.” मैने अपने सिर को उनके कदमों पर झुकाते हुए कहा.
"चलो वहाँ तिपाई पर रखी तेल की शीशी ले आओ." मैं उठी और तिपाई तक गयी तेल की शीशी लाने के लिए.जब मैं जा रही थी वो बड़ी गहरी नज़रों से मेरे नितंबों की थिरकन का मज़ा ले रहे थे.
“ अद्भुत देवी…अद्भुत.” मैने अपनी गर्देन घुमा कर उन्हे देखा,” देवी तुम्हारे बदन का गठन बड़ा ही उत्तेजक है. जितनी तुम सुंदर हो तुम्हारे शरीर की बनावट उतनी ही आकर्षक है. लगता है देवताओं ने बड़ी तसल्ली से गढ़ा है तुम्हारा जिस्म.”
मैने मुस्कुरा कर उन्हे देखा और ला कर तेल की शीशी लाकर उन्हे दी.
" देवी अब तुम किसी कुतिया की तरह अपने हाथों और पैरों के बल झुक जाओ. मेरा लिंग तुम बिना चिकनाई के नही झेल पओगि. तुम्हारी योनि की जगह मैं तुम्हारे गुदा मे प्रवेश करना चाहता हूँ. तुम्हे कोई आपत्ति तो नही" उन्हों ने कहा.
उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैने देखा की उन्हो ने तेल की शीशी से कुच्छ तेल अपनी हथेली पर लिया और एक उंगली उसमे डुबो कर मेरे गुदा द्वार पर फेरने लगे.
मैं पहले से ही इस हमले के लिए तैयार थी. पहले एक फिर दो उंगलियाँ मेरे गुदा द्वार से प्रवेश कर अंदर तक की दीवारो पर तेल मालिश करने लगी. ऐसा करते समय मुझे
दर्द हो रहा था. मैं बार बार चिहुनक कर कभी अपनी नितंबों को भींच लेती तो कभी इधर उधर सरक जाती तो वो ज़बरदस्ती मुझे वापस उसी पोज़िशन मे कर देते.
वो मेरी परेशानी को भाँप गये और मेरे ध्यान को वहाँ से हटाने के लिए वो ज़ोर ज़ोर से मेरे स्तनो को मसल्ने लगे. उनके मसल्ने से स्तनो मे ज़्यादा दर्द होने लगा इसलिए मेरा ध्यान स्वतः ही गुदा से हट कर स्तनो पर आ गया.
मेरे गुदा के बाहर और अंदर काफ़ी देर तक तेल लगाने के बाद उन्हों ने अपने बदन से
धोती को हटा दी. उनका तना हुआ लिंग देख कर मेरा कलेजा छलक गया. उनका लिंग दस इंच के करीब लंबा था. ये किसी आदमी का नही बल्कि किसी गधे के लिंग जितना मोटा था. ये लिंग जब मेरे गुदा मे घुसेगा तो सब कुच्छ चीरता हुआ पेट तक चला जाएगा.
" स्वामी…आपका तो काफ़ी बड़ा है. मैं इसे नही ले पाउन्गी. ये मेरी अंतदियों को चीर कर रख देगा. एम्म मुझे घबराहट हो रही है." मैने डरते हुए उनसे कहा.
"ऐसा कुच्छ भी नही होगा देवी तुम डरो नही. मैं अब तक कई महिलाओं को संतुष्ट कर चुका हूँ. शुरू मे हो सकता है कुच्छ दर्द हो लेकिन बहुत जल्दी तुम मेरे लिंग की अभ्यस्त हो जाओगी." कहते हुए वो पीछे से मेरे दोनो घुटनो के बीच आ गये.
सामने लगे बड़े से शीशे मे मुझे हम दोनो का अक्स दिख रहा था. वो भी शीशे मे मेरे नग्न बदन को मेरे झूलते हुए स्तनो को और मेरे खुले हुए
होंठों को देख कर मुस्कुरा रहे थे.
उन्हों ने ढेर सारा तेल लेकर अपने उस मोटे लिंग पर लगाया और अपने हाथों से मेरे नितंबों को फैला कर मेरे गुदा द्वार पर अपने लिंग को सताया. मैं अपने सिर को झुका कर आने वाले दर्द का इंतेज़ार कर रही थी. उन्हों ने अपने लिंग से एक ज़ोर का धक्का मारा और मैं दर्द से बिलबिला उठी," उवूऊयियैआइयैयीयीयियी म्म्म्माआ"
लेकिन उनका लिंग एक मिलीमेटेर भी अंदर नही घुस पाया. मेरे गुदा द्वार का मुँह इतना संकरा था कि उस मोटे लंड को कहाँ से ले पाता. उन्हों ने वापस मेरे नतंबों को फैला कर एक और ज़ोर का धक्का मारा. ऐसा लगा मानो मेरी गुदा आज फट जाएगी. लेकिन फिर भी उनका लिंग अंदर नही गया. दर्द इतना ज़्यादा हुआ कि मैं अपनी चीख नही रोक सकी ऐसा लग रहा था मानो कोई मेरे गुदा मे डंडा करना चाहता हो.
" माआआआआआआअ" मैं ज़ोर से चीख उठी.
"तुम्हारा गुदा बहुत टाइट है देवी." उन्हों ने दोबारा तेल लेकर मेरे गुदा के अंदर तक लगाया. मेरी आँखों से दर्द से आँसू निकल आए थे. वो लुढ़क कर मेरे गालो तक आ रहे थे. इस बार मैने अपने दोनो नितंबों को दोनो हाथों से पकड़ कर और चौड़ा किया और उन्हों ने अपने हाथों से अपने लिंग को मेरे छेद पर लगा कर एक ज़ोर का धक्का दिया.
मैं दर्द से चीखने लगी, " उईईईईईईईईईईइमाआ आअहह मैं मर गइईई" कहते हुए मैं मुँह के बल ज़मीन पर गिरगई क्योंकि मेरे हाथ नितंबों पर थे. मैने जल्दी से अपने हाथ वहाँ से हटा कर ज़मीन पर टिकाए.
उनके लिंग का सूपड़ा मेरे गुदा मे धँस चुका था. मेरी आँखें दर्द से बाहर को उबल आ रही थी. मैं घबरा कर उठना चाहती थी लेकिन वो मुझसे काफ़ी ज़्यादा बलशाली थे. उन्हों ने मुझे दबोचकर हिलने तक नही दिया. इतना लंबा लिंग मैने कभी अपने गुदा मे नही लिया था. ऐसा लग रहा था जैसे उनका लिंग पेट को फाड़ता हुआ गले तक
पहुँच जाएगा. मेरे गुदा मे उनके लिंग का अभी तक सिर्फ़ टोपा ही गया था. जब पूरा लिंग जाता तो मेरी क्या हालत होती.
"आआहह स्वामीजीीइईईईई…….स्वामीजी…….प्लीईईसए……..ईसीईए बहाआअर निकऊऊओ" मैं दर्द से छॅट्पाटा रही थी. वो पूरी ताक़त से अपने लिंग को मेरे गुदा मे दबा रखे थे. वो अपने उस लंबे लंड के टोपे को किसी भी कीमत पर बाहर निकालने को तैयार नही थे. उन्हों ने मेरी कमर को ऐसे पकड़ रखा था कि मैं अपनी कमर को हिला भी नही पा रही थी.
क्रमशः............
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रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -59
गतान्क से आगे...
मैं चीखे जा रही थी. मगर उनपर कोई असर नही हो रहा था. उन्हो ने अपने लिंग को कुच्छ बाहर खींचा तो लगा कि शायद उनको मुझ पर रहम आ गया हो. मैं उनके लिंग के बाहर निकलने का इंतेज़ार कर रही थी की उन्हो ने एक और ज़ोर का धक्का मारा और उनका लिंग अब आधे के करीब मेरे गुदा मे समा गया. मैं तड़प कर उठने लगी मगर हिल भी नही सकी. उनको मेरे दर्द मे मज़ा आ रहा था. वो मेरी चीखें सुन कर हंस रहे थे.
"ऊओमााअ……..बचाऊ कोइईईई……मैईईइ माआर जौउुउऊनगिइिईईईई……..हे प्रभुऊऊउ बचाऊ…." मैं दर्द से रोने लगी. मई दर्द से बुरी तरह छॅट्पाटा रही थी. वे अब मुझे पूचकार कर चुप करने की कोशिश करने लगे. मुझे इस तरह रोता देख वो एक बार घबरा गये थे.
" देवी……देवी थोड़ा धीरज रखो. बस अब थोड़ा सा ही बचा है. एक बार अंदर घुस गया तो फिर दर्द नही होगा. अपने शरीर को ढीला छ्चोड़ो देवी." वो मेरे सिर पर और मेरे गाल्लों पर हाथ फेर रहे थे.
" नही स्वामी मैं नही झेल पाउन्गी आपको.. मेरा गुदा फट जाएगा. दर्द से मेरा बुरा हाल है स्वामी मुझ पर रहम करो." मैने गिड़गिदते हुए कहा.
" थोड़ा और सबर करो देवी कुच्छ नही होगा. तुम बेवजह घबरा रही हो." कहकर उन्हो ने वापस अपने लिंग को बाहर की ओर खींचा. सूपदे के अलावा पूरे लिंग को बाहर निकाल कर इस बार बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ने लगे. एक एक मिल्लिमेटेर करके सरकता हुआ लिंग मेरे गुदा की दीवारो को चीरता हुआ अंदर प्रवेश कर रहा था. धीरे धीरेकब तीन चौथाई मेरे गुदा मे समा गया मुझे पता ही नही चला. मैने अपना एक हाथ पीछे ले जाकर उनके लंड को टटोला तब जाकर पता चला.
वो उस अवस्था मे एक मिनिट रुके फिर अपने लिंग को वापस बाहर खींचा. अब दर्द कुच्छ कम हुया तो मैं भी मज़े लेने लगी मगर उन्हे तो मुझे दर्द देने मे ही मज़ा आ रहा था. अगली बार वापस उन्हों ने पूरी ताक़त को अपने लिंग पर झोंक दिया और एक जोरदार धक्का मेरे गुदा मे लगाया. फिर एक तेज दर्द की लहर पूरे जिस्म को कन्पाती चलीगाई.
" ऊऊऊऊओमााआआअ……ऊऊऊफफफफफफफफ्फ़……आआआआअहह" मेरे मुँह से निकला और मैं ज़मीन पर गिर पड़ी. मेरी गुदा मे उनका लिंग इस तरह फँस गया था कि मेरे गिरते ही उनका लिंग बाहर नही निकला बल्कि वो भी मेरे उपर गिरते चले गये. गिरने से उनके लिंग का जो थोड़ा बहुत हिस्सा अंदर जाने से रह गया था वो पूरा अंदर तक घुस गया.
“ ऊऊहह…स्वाआअमी…….आआप बाआहूत निष्ठुर हो. मेरिइइ जाअँ निकााल डियी आपनईए………उईईईईईई म्म्म्ममाआअ……..” मैं वापस रोने लगी.
" देखो अब पूरा घुस गया है अब थोड़ी ही देर मे सब कुच्छ अच्च्छा लगने लगेगा." उन्हो ने वापस उठते हुए मुझे भी अपने साथ उठाकर पहले वाली पोज़िशन मे किया.
कुच्छ देर तक उन्हो ने अपने लिंग को पूरा मेरी गंद के अंदर फँसा रहने दिया. जब दर्द कुच्छ कूम हुआ तो पहले धीरे धीरे उन्हों ने अपने लिंग को हरकत देना शुरू किया. धीरे धीरे दर्द कम होता गया. कुच्छ ही देर मे वो मेरी गुदा मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगे. हर धक्के के साथ अपने लिंग को लगभग पूरा बाहर निकालते और वापस पूरा अंदर थेल देते.
मैं उनके हर धक्के के साथ सिसक उठती. शायद मेरे गुदा के अंदर की दीवार छिल गयी थी इसलिए हर धक्के के साथ हल्का सा दर्द हो रहा था. ऐसा लग रहा था उनका डंडा आज मेरी अंतदियों का कचूमर बना कर छ्चोड़ेगा.
गांद मार मार कर उन्हों ने मेरा दम ही निकाल दिया. मैं भी उत्तेजना मे अपने बदन को नीचे पसार कर सिर्फ़ अपने कमर को उँचा कर रखी थी. अपने एक हाथ से मैं अपनी योनि को मसल रही थी. जिससे दो बार रस की धारा बह कर मेरे जांघों को चिपचिपा कर चुकी थी.
काफ़ी देर तक इसी तरह मुझे ठोकने के बाद उन्हों ने अपने लिंग को बाहर निकाला.
“ ले..ले…संभाल मेरे वीर्य को….मेराअ निकलने वलाअ हाऐी…….अयाया.” वो अपने लिंग को थामे बड़बड़ाने लगे थे.
मैं लपक कर कलश को उनके लिंग के सामने पकड़ कर अपने हाथों से उनके लिंग को झटके देने लगी. कुच्छ ही देर मे उनके वीर्य की एक तेज धार निकली जिसे मैने उस कलश मे इकट्ठा कर लिया. उनके ढेर सारे वीर्य से वो लोटा तकरीबन भर गया था. सारा वीर्य निकल जाने के बाद उनका लिंग वापस लटक कर चूहे जैसा हो गया.
मैं उठी और अपने वस्त्र को किसी तरह बदन पर लपेट कर बाहर निकली. पूरा बदन दर्द कर रहा था. गुदा तो लग रहा था की फट गयी है. मैं लड़खड़ते हुए बाहर निकली और रत्ना जी की बाहों मे ढेर हो गयी. उन्हों ने मुझे सांत्वना देते हुए मुझे सम्हाला. मेरे बदन को सहारा देते हुए वापस उस कमरे तक ले गयी जो मुझे रुकने के लिए दिया हुआ था. अब हर संभोग के बाद मुझे आराम की ज़रूरत पड़ रही थी. बदन सुबह से हो रही चुदाई से टूटने लगा था.
रत्ना को पहले से ही मालूम था इसलिए सारा इंटेज़ाम पहले से ही कर रखी थी.सारा समान पहले से ही मौजूद था. एक कटोरी मे पानी गर्म हो रहा था. उसमे किसी दवाई की दो बूँदें अपनी हथेली पर डाल कर उन्हों ने मेरे गुदा की सिकाई की. इससे मुझे बहुत आराम मिला. कुच्छ देर मे जब दर्द कम हुआ तो मैं अपने अगले गेम के लिए तैयार थी.
हमने अगले किसी संभोग से पहले दोपहर का खाना खाया और फिर मैने दो घंटे की नींद ली अब मैं वापस तरोताजा हो गयी थी. अब दो ही शिष्य बचे थे. शाम हो चली थी सूरज डूबने से पहले मुझे अपनी चुदाई पूरी करनी थी.
मेरे जागने पर रत्ना ने मुझे इसबार शरबत की जगह कुच्छ खाने को दिया जिससे इतनी थकान मे भी मेरे बदन मे चिंगारिया भरने लगी. मेरी योनि मे तेज जलन होने लगी. मेरा बदन किसी के लंड से जबरदस्त चुदाई को तड़पने लगा.
रत्ना मुझे लेकर अगले कमरे मे पहुँची तो कमरा बाहर से बंद था. पूच्छने पर पता नही चल पाया कि वो इस वक़्त कहाँ मिलेंगे. हम वहीं कमरे के बाहर सत्यानंद जी का इंतेज़ार करने लगे.
कुच्छ देर इंतेज़ार करने के बाद भी जब वो नही आए तो रत्ना ने कहा, "समय कम है चलो अगले स्वामीजी के पास पहले हो लेते हैं. उनसे निबट कर हम वापस यहाँ आ जाएँगे.”
हम कुच्छ दूर मे बने एक कमरे तक गये. वहाँ दरवाजा खटखटाया तो एक जवान काफ़ी बालिश्ट साधु ने दरवाजा खोला. मुझे बाहर देख कर उन्हों ने बिना कुच्छ बोले सिर्फ़ सिर हिलाया ये जानने के लिए कि मैं कौन हूँ. मैने भी बिना कुच्छ बोले अपने हाथों मे पकड़े कलश को उपर किया. वो कलश को देख कर सब समझ गये. पल भर को मेरे बदन को उपर से नीचे तक निहारा. जिसमे उनकी आँखें मेरे स्तनो के उभार पर एवं मेरे टाँगों के जोड़ पर दो सेकेंड रुकी और फिर आगे बढ़ गयी. उन्हों ने मुझे अच्छि तरह से नाप तौल कर स्वीकार किया.
मुझे निहारने के बाद उन्होने बिना कुच्छ कहे दरवाजे से एक ओर हटकर मुझे अंदर आने को रास्ता दिया. कमरे मे प्रवेश करने के लिए अब भी रास्ता पूरा नही था. वो इस तरह खड़े थे की बिना उनके जिस्म से अपने जिस्म को रगडे मैं अंदर नही घुस सकती थी.
मैने उनकी बगल से उनकी तरफ मुँह कर कमरे मे प्रवेश किया. इस कोशिश मे मेरे दोनो उन्नत स्तन उनकी चौड़ी छाती पर अच्छि तरह से रगड़ खा गये. अंदर मैने देखा कि एक और शिष्य ज़मीन पर बैठे हुए हैं. मुझे अंदर आते देख वो चौंक उठे.
" सत्यानंद..ये देवी गुरु महाराज का महा प्रसाद ग्रहण करने आई है. इसलिए ये हम सब से पहले हमारा प्रसाद इकट्ठा कर रही है. मेरे ख्याल से हम दोनो ही बचे हैं. क्यों देवी बाकी सबके साथ तन का मेल तो हो चुक्का है ना?" मेरे साथ वाले शिष्य ने अंदर बैठे अपने साथी से कहा.
“ ज्ज्ज…जीि” मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाई.
" बहुत खूबसूरत ….अद्भुत सोन्दर्य की देवी है. कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही है. आओ देवी सामने आओ." मैं चलते हुए उनके पास आई. मेरे पीछे जो शिष्या थे वो भी जाकर उनकी बगल मे बैठ गये.
" तेरे बदन मे कितनी सुंदरता, कितनी कामुकता, कितनी आग भरी हुई है. देवी अपने सोन्दर्य को बेपर्दा कर दो. हम भी तो दर्शन करें तुम्हरे इस अदभुत योवन के.”
मैं बिना कुच्छ कहे उनके सामने चुपचाप खड़ी रही.
“मैं हूँ सत्यानंद और ये राजेश्वरणद. तुम शायद पहले मेरे कमरे मे गयी होगी. मुझसे मिलने के बाद इनके पास आना था. इनका नंबर इस लिस्ट मे आख़िरी है. चलो अच्च्छा हुआ दोनो एक साथ ही मिल गये. अब एक साथ दोनो से प्रसाद ग्रहण कर लोगि. और तुझे यहाँ वहाँ भटकना नही पड़ेगा." सत्यानंद ने कहा.
“ चलो अपने बदन के वस्त्र अलग कर दो.” राजेश्वरनंद ने कहा.
मैने अपने बदन पर पहनी सारी को अलग कर ज़मीन पर गिर जाने दिया. बदन पर सिर्फ़ एक ही वस्त्र होने के कारण अब मैं उनके सामने निवस्त्र खड़ी थी.
"म्म्म्ममम आती सुंदर. क्या स्तन हैं मानो हिमालय की चोटियाँ. और नितंब….पीछे घूमो देवी” सत्या जी ने कहा. मैं उनका कहा मान कर अपनी जगह पर पीछे की ओर घूम गयी. मेरी ढालाव दार पीठ और उन्नत नितंबों को देख कर दोनो की जीभों मे पानी आ गया.
“ वाआह…क्या कटाव हैं. नितंब तो जैसे मानो तानपूरा हों. अब तुम्हारी योनि को भी तो देखें कैसा खजाना छिपा रखा है दोनो जांघों के बीच. दोनो पैरों को चौड़ा करो देवी" राजेश ने कहा.
मैने बिना कुच्छ कहे अपने दोनो पैरों को फैला दिया मेरी काले जंगल से घिरी योनि कुछ कुछ सामने से दिखाई पड़ने लगी.
" वाआह क्या अद्भुत सुंदरता की मूरत हो तुम. अपने हाथों को छत की ओर उठा दो और अपने रेशमी बालों को अपने स्तनो के उपर से हटा कर पीठ की ओर कर दो." उन्हों ने जैसा कहा मैने वैसा ही किया. मैं दो मर्दों के सामने अपने हाथों को उपर किए और अपनी टाँगों को चौड़ी किए अपनी सुंदरता की नुमाइश कर रही थी.
“ देवी अब झुक कर अपने पंजों को अपनी उंगलियों से छुओ.” उन्हों ने कहा. मैने अपनी टाँगें घुटनो से मोड बगैर झुक कर अपनी उंगलिओ से अपने पैरों के पंजों को छुआ. ऐसा करने से मेरे नितंब आसमान की ओर मुँह करके खड़े हो गये. एक साथ दोनो छेद उनके सामने थे. मेरे स्तन पके हुए आम की तरह मेरे सीने से झूल रहे थे. वो मेरी सुंदरता को दूर से ही निहारते रहे.
" एम्म्म ऐसे नही. अपनी योनि को उभार कर तो दिखाओ.धनुष आसान जानती हो?" एक ने पूछा.
"हां" मैने बुदबुदते हुए अपने सिर को हिलाया.
" वहाँ ज़मीन पर लेट जाओ और हमारे सामने अपनी योनि खोल कर दिखाओ" मैने देखा दोनो के लंड उत्तेजित हो चुके थे और दोनो अपने अपने खड़े लंड को सहला रहे थे.
मैं वहीं ज़मीन पर नग्न पीठ के बल लेट गयी और अपने पैरों को एवं अपने हाथों को मोड़ कर अपनी कमर को ज़मीन से उठाया. मेरे पैर कुच्छ खुले हुए थे. मेरा पूरा शरीर धनुष की तरह बेंड हो गया और मेरी चिकनी योनि दोनो की आँखों के सामने खुल गयी. दोनो के मुँह से उत्तेजना भरी सिसकारियाँ निकलने लगी.
क्रमशः............
Re: रश्मि एक सेक्स मशीन
रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -60
गतान्क से आगे...
मैं उसी अवस्था मे कुच्छ देर तक रही. एक ने आगे बढ़कर अपनी उंगलियों से मेरी योनि की फांकों को अलग किया. अंदर की लाल सुरंग उनके सामने लपलपा रही थी. दोनो अपने अपने होंठों पर जीभ फिराते हुए उन्हे निमंत्रण देती मेरी योनि को देख रहे थे. दोनो ने एक एक कर मेरी योनि को चटा और फिर अपनी अपनी जीभ कुच्छ देर तक मेरी योनि के अंदर भी घुमा दिए.
" अद्भुत नशीला स्वाद है तुम्हारी योनि का. इसीलिए तो आज सब नशे मे चूर हो गये हैं. अब तुम उठ जाओ देवी.” एक ने कहा. मैं लेट गयी. फिर उठ कर अपनी जगह पर बैठ गयी. दोनो एक खाट पर बैठे थे
“ इधर आओ हमारे पास. ना ना उठो मत घुटनो के बल आगे आओ.” दूसरे ने कहा. मैं उसके कहे अनुसार अपने घुटने और हाथों के बल चलती हुई उनके पास आई. मैं उनके सामने घुटने के बल अपना सिर झुकाए हुए बैठी थी.
“ देवी दिशा आगे आओ और हम दोनो के लिंग को अपने सिर से च्छुआ कर आशीर्वाद लो" मैं उठकर घुटने के बल बैठी थी.
दोनो मेरे सामने तखत पर पैर लटका कर बैठे हुए थे धोती के बाहर से ही उनके लिंग के उभार नज़र आ रहे थे. मैने पहले सत्यानंद जी के लिंग को धोती से बाहर निकाला. फिर अपने सिर से उसे च्छुअया. उनका लिंग एकदम तन कर खड़ा था. उन्हों ने मेरे सिर पर अपने लिंग के सूपदे को रख कर मुझे आशीर्वाद दिया. फिर यही क्रिया मैने दूसरे के साथ भी दोहराई.
उसके बाद दोनो ने मुझे उठा कर अपने बीच बिठा लया. दोनो मेरे एक एक स्तन को लेकर चूसने और मसल्ने लगे. मेरे दोनो हाथों मे दोनो के लिंग थे जिसे मैं सहला रही थी. दोनो मेरे निपल्स को अपनी अपनी जीभ से सहला रहे थे.
“ गुरुदेव जब तुम्हारी कोख भरेंगे तब ये तरबूज भी रसीले हो जाएँगे. इनसे जब दूध निकलेगा तब उस पर हमारा भी हक़ होगा.” एक ने कहा.
“ हमे अपना स्तन पान करओगि ना?” दूसरे ने पूछा. मैं क्या कहती मुस्कुरा कर चुप ही रही. तभी एक ने मेरी टाँगो को कमर से पकड़ कर उठाया और उसी हालत मे मुझे तखत पर लिटा दिया. दूसरा तब अपनी धोती को बदन से हटा रहा था.
सत्या ने मेरी टाँगों को मोड़ कर मेरे नितंबों से लगा दिया. फिर घुटनो को पकड़ कर मेरी जांघों को अलग कर दिया. मेरी योनि खुल कर सामने आ गयी. उन्हों ने अपने होंठ मेरी योनि पर लगा दिए. मैने खुद अपनी उंगलियों से अपनी योनि की फांके अलग कर उन्हे आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया. उनकी जीभ मेरी योनि मे घुस कर आगे पीछे हो रही थी. मैं उत्तेजना मे अपनी कमर को तखत से उपर उठा दी. मैने अपने दोनो हाथों से सत्या के सिर को पकड़ कर अपनी योनि पर दाब दिया.
जब वो इस तरह मेरी योनि को चाट रहे थे तब राजेश मेरे सिर के पास आकर अपने खड़े लिंग को मेरे होंठों के उपर फिराने लगा. मैने नज़रें उठा कर उसको देखा तो वो मुझे अपने लिंग को मुँह मे लेने के लिए अनुरोध कर रहा था. मैने बिना किसी झिझक के अपना मुँह खोल कर उसे अपने लिंग को अंदर करने का आमंत्रण दिया.
उसका लिंग अब मेरे मुँह के अंदर प्रवेश कर चुक्का था. उसने मेरे सिर को अपने दोनो हाथों से थाम कर बिस्तर से उपर उठा कर अपनेर लिंग पर दाब दिया. अब वो मेरे मुँह मे धक्के मारने लगा. अब एक लिंग मेरे मुँह मे धक्के मार रहा था तो दूसरे के मुँह पर मैं धक्के मार रही थी. बहुत जल्दी ही मेरे बदन से चिंगारियाँ फूटने लगी और मैं स्खलित हो गयी.
स्खलन के वक़्त उत्तेजना मे मैने दूसरे आदमी के लिंग पर अपने दाँत गढ़ा दिए और उनके लिंग को कुच्छ इस तरह अपनी जीभ से चूसा की वो मेरे बालों मे अपनी उंगलियाँ फँसा कर अपने लिंग को मेरे मुँह मे ठूँसने लगे मगर मैने उनका आशय समझ कर अपने दिल की बजाय दिमाग़ से काम लेते हुए अपने सिर को बाहर की ओर खींचा. जैसे ही उनका लिंग मेरे गले से बाहर निकल कर मेरे मुँह मे आया उनके लिंग से एक ज़ोर दार पिचकारी के रूप मे वीर्य निकल कर मेरे मुँह मे भरने लगा. मेरे मुँह मे मैं जितना इकट्ठा कर सकती थी उतना मैने इकट्ठा कर लिया और उसके बाद उनका वीर्य मेरे होंठों के कोरों से छलक छलक कर मेरे गाल्लों से होते हुए बालों मे समाने लगा. जब उनके लंड से सारा वीर्य निकल गया तो मैने “ उम्म्म्म..उम्म्म” की आवाज़ निकाल कर उन्हे इशारा किया. वो मेरी बात समझ कर जल्दी से उस लोटे को मेरे होंठों के पास ले आए. मैने अपने मुँह मे इकट्ठा किए वीर्य को पहले मुँह खोल कर उनको दिखाया फिर सारा उस लोटे मे उलीच दिया.
अब वो खल्लास हो कर वहीं बैठ कर हाँफने लगे. सत्या अब मेरी योनि को चूस्ता चाट्ता हुया मेर उपर लेट गया. उसने भी मेरी योनि से निकला सारा वीर्य चाट चट कर सॉफ कर दिया था. अब वो मेरे जिस्म के ऊपर लेट कर मेरी योनि को दोनो हाथों से चौड़ा कर के उसे बुरी तरह से चाट रहा था. उसका मस्त मोटा लंड मेरे चेहरे के ऊपर ठोकरे मार रहा था.
मुझसे रहा नही गया और मैने उसके लिंग को पकड़ कर अपने मुँह मे भर लिया. मेरे जबड़े पहले मुख मैथुन से दुख रहे थे मगर मैने उसकी परवाह ना कर उनके लिंग को मुँह मे भर लिया. अब हम 69 पोज़िशन मे एक दूसरे के गुप्तांगों को चूस रहे थे.
वो मेरे उपर लेट कर मेरे मुँह को मेरी चूत समझ कर धक्के मार रहा था तो मैं उसकी जीभ को ज़्यादा से ज़्यादा अपनी योनि मे लेने के लिए उसकी जीभ को उसका लंड मान कर नीचे से अपनी कमर को उच्छाल रही थी. उसका लंड जड़ तक मेरे मुँह मे घुस जाता तब उसकी गेंदे मेरे नाक को दबा देती. उसके लंड के चारों ओर फैले बाल मेरे नथुनो मे घुस जाते. एक बार तो मैं ज़ोर से छिन्क दी. ऐसा करते वक़्त मेरे दाँत उसके लंड पर गढ़ गये और वो “ अयीई” कर उठा. लेकिन उसकी रफ़्तार कुच्छ ही पल मे वापस पहले जैसी ही हो गयी.
“ आआहह……….उम्म्म्मम……आब्ब्ब्ब्ब्ब्बबब….उप्प्प्प्प” जैसी आवाज़ें मेरे मुँह से निकल रही थी तो योनि की तरफ से “ स्लूर्र्ररर्प……चहात…..उम्म्म्म” जैसी आवाज़ें आ रही थीं.
मेरी योनि से दोबारा रस बहने लगा. मगर उसके लंड मे और उसके जोश मे कोई भी ढील नही महसूस हो रही थी. वो लगा तार मेरे मुँह मे उसी रफ़्तार से धक्के मारते हुए मेरी योनि से बह रहे रास को पूरा चाट चाट कर सॉफ कर दिया.
काफ़ी देर तक इस तरह एक दूसरे को चूसने चाटने के बाद वो मेरे उपर से उठा. तब तक राजेश जी वापस चार्ज हो चुके थे.उनका लिंग वापस तन कर खड़ा हो गया था.
“ सत्या भाई इस तरह मज़ा नही आया. एक काम करते हैं आप दो पॅकेट वहाँ शेल्फ से निकालो.” सत्या जी उठे और शेल्फ से दो कॉंडम के पॅकेट निकाल कर ले आए.
“ हां राजेश भाई अब हम अंदर ही डालेंगे. ठीक उत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर बाहर निकालना नही पड़ेगा.” सत्या जी ने कह कर एक पॅकेट खोल कर उन्हे पकड़ाया. दोनो मेरे करीब अपने अपने खड़े लंड लेकर खड़े हो गये. मैने एक एक करके दोनो के लंड पर कॉंडम चढ़ाया. मैने देखा दोनो कॉंडम रिब्ब्ड थे एक्सट्रा मज़ा देने के लिए.
इस बार राजेश जी तखत पर लेट गये और मुझे अपने ऊपर आने का इशारा किया. मैं अपनी टाँगे उसके पेट के दोनो ओर रख कर अपनी कमर को कुच्छ उठा कर अपनी योनि को उसके लंड के ऊपर सेट किया. फिर अपनी योनि के मुँह पर उसके लिंग को लगा कर मैं उसके लिंग पर बैठ गयी. उसका लंड बिना किसी परेशानी के मेरी योनि मे घुस गया था.
उसने मेरे दोनो स्तनो पर अपने पंजे रख दिए. उन्हे वो अपनी उंगलियों से उमेथ्ने लगा. मेरे निपल्स उसकी इन हरकतों से खड़े और लंबे हो गये थे. वो उन दोनो निपल्स को अपनी उंगलियों मे सख्ती से पकड़ कर एक दूसरे की उल्टी दिशा मे मसल्ने लगे. सुबह से वैसे ही दोनो स्तनो मे लोगों के द्वारा मसले जाने से टीस बनी हुई थी. उपर से उनके उमेठे जाने से मुझे ऐसा दर्द होने लगा मानो वहाँ कोई घाव हो गया हो. मैं दर्द से बिलखने लगी.
“ प्लीईसए इनहीए हाथ मॅट लगाऊऊ…..आआआअहह….माआआ…..माइइ दाअर्द से मार जौंगिइिईईईई.” मैं च्चटपटाते हुए उनसे अपने साथ प्यार से पेश आने की मिन्नत कर रही थी.
“ लगता है भाइयों ने इसके बदन को बुरी तरह मसला कुचला है. हम तक आते आते औरतों मे दम ही नही बचता चुदवाने का. ठीक है चल लेट जा मेरे सीने पर.” राजेश ने कहा.
मैं उनके कहे अनुसार उनके सीने पर लेट गयी. उनका लंड अभी भी मेरी योनि के अंदर था. उन्हों ने अपने टाँगों को फैला दिया था. सत्या जी ने एक तकिया लाकर उनकी कमर के नीचे लगा दिया. जिससे उनकी कमर कुच्छ टेढ़ी रहे और मुझे उनके पूरे लंड का मज़ा मिले. राजेश जी ने मुझे अपनी बाँहों के बंधन मे बाँध कर अपने सीने पर चिप्टा लिया. राजेश जी अब मेरे गुदा मे अपनी उग्लियों मे तेल लेकर अंदर तक लगाने लगे. आच्छि तरह मेरे गांद के छेद मे और अपने लंड पर तेल चुपाड़ने के बाद उन्हों ने मेरे नितंबों को अपनी हतलियों मे भर कर फैलाया. कॉंडम लूब्रिकेटेड होने के बावजूद उन्हों ने उसे अच्छि तरह तेल से चुपद दिया था.
अब अपने कॉंडम चढ़े लंड को मेरी गांद की छेद पर रख कर ज़ोर लगाया. हल्के से दर्द के साथ पहले उनके लंड का मोटा टोपा अंदर घुस गया. वो इस अवस्था मे दो मिनिट रुके. नीचे से राजेश जी ने एक दो झटके दिए अपने लंड के उसके बाद सत्या जी ने पूरा ज़ोर लगा कर अगला झटका मारा और उनका लंड आधे के करीब मेरर गुदा मे धँस गया. मैं छॅट्पाटा उठी. मगर राजेश जी के मजबूत बंधन मे मैं सिर्फ़ मचल सकती थी.
मेरे बदन मे दर्द की हिलोरें उठने लगी. राजेश जी का लंड भी अच्च्छा मोटा था इसलिए मुझे काफ़ी तकलीफ़ हो रही थी. मेरे मुँह से दबी दबी कराहें निकल रही थी.
“ आआहह…..ऊऊऊ…म्म्म्माआआअ” मैं दर्द से तड़पने लगी थी मगर उन दोनो को अपने अपने मज़े से मतलब था. कुच्छ देर रुक कर सत्या जी ने अपने लिंग को कुच्छ बाहर खींचा. लिंग पर लगे कॉंडम के रिब्स से मेरे गुदा की दीवारें घिस कर जलन करने लगी. उन्हों ने अपने लंड को कुच्छ बाहर निकाल कर दोबारा पूरी ताक़त से अपने लंड को मेरे गुदा मे पूरे ज़ोर से धक्का मारा. मैं दोनो के बीच फँसी मचल उठी और उनका लंड जड़ तक मेरी गांद के अंदर घुस गया.
क्रमशः............