जिस्म की प्यास--26
गतान्क से आगे……………………………………
लंच के दौरान नारायण ने रश्मि को अपने कमरे में बुलाया और उसको बैठने के लिए कहा... उसने हिम्मत दिखाते हुए रश्मि से पूछा
"ये मेरे पीठ पीछे क्या चल रहा है"
रश्मि ने पूछा "क्या चल रहा है सर" वो नारायण को सर सिर्फ़ उसे तंग करने के लिए बोल रही थी...
नारायण बोला "देखो तुम जितने पैसे माँग रही हो मैं तुम्हे दे रहा हूँ... कल जब मैं जब घर के लिए जा रहा था तब मैने एक क्लासरूम में रीत एक पीयान के साथ अकेले थी
और उसने वो दरवाज़ा भी अंदर से बंद कर रखा था... जब मैने रीत से पूछा इस बारे में तो उसने ये कहा कि मैं ये सब करवा रहा हूँ"
रश्मि नारायण को चिड़ा कर बोली "सर अब आप भोली लड़कियों से ये काम भी करवाने लग गये"
नारायण परेशान होके बोला "देखो" "दिखाइए" रश्मि ने एक दम से कहा..
फिर रश्मि बोली "हां मैने ये सब करवाया.. और ये सब क्यूँ किसलिए करवाया इसमे मुझे तुझे सफाई देने की ज़रूरत नही है.. तुझसे जितना बोलती हूँ उतना करा कर.
.ज़्यादा अकल दौड़ाएगा ना तो जितनी भी अकल है वो भी भाग जाएगी"
नारायण रश्मि की ऐसी बाते सुनके बोला "तुम्हे जो करना है करो मगर मेरा नाम मत लाओ.. प्लीज़"
रश्मि कुर्सी से उठी और कॅबिन के बाहर जाके बोली "अच्छी बात है तुझे ये पता चल ही गया है क्यूंकी अब कुच्छ च्छुपाने की ज़रूरत नही होगी" ये सुनकर नारायण
और भी ज़्यादा घबरा गया...
उधर दिल्ली में पूरे घर में शन्नो और चेतन रह गये थे और जब दोनो घर पे अकेले हो तो ज़्यादा दूर नहीं रह सकते.... चेतन ने अपनी मा को सफेद रंग की
बड़ी टी-शर्ट दी और उसको बोला, एक तरीके से हुकुम किया कि वो सिर्फ़ यही पेहेन्के घर पे घूमेगी... शन्नो अपने बेटे को ज़रा सा भी निराश नही करना चाहती थी
और अपनी नाइटी उतार के उस टी-शर्ट को पहेन लिया... वो टी-शर्ट उसकी आधी जाँघो को ही धक पा रही थी और उसने अपनी चूत को एक सफेद रंग की चड्डी से ढका हुआ था...
चेतन ने शन्नो को ब्रा पहेन ने के लिए सॉफ मना कर दिया था और शन्नो ने भी खुशी खुशी उसका कहना माना... सुबह से दोपहर होने तक केयी बारी चेतन
अपनी मा को छेड़ चुका था... कभी उसका हाथ शन्नो के मम्मो पे पड़ता तो कभी जाँघो पर... जब वो नाश्ता बनाने में लगी हुई तो चेतन में मस्ती में शन्नो
की शर्ट को उपर करकर उसकी सफेद पैंटी को देखने लगता... जब भी शन्नो झुकती तो उसके स्तनो की बीच की मलाई वाली सड़क उसके बेटे को सॉफ दिख जाती....
शन्नो इन्न हर्कतो से काफ़ी मचल उठी थी... दोपहर के कुच्छ 2 बज रहे थे और फोन की घंटी बजी.... शन्नो ने जब फोन उठाया तो उसको उसकी बहन की आवाज़ सुनाई दी
"हेलो दीदी.... कैसी हो आप" आकांक्षा ने प्यार से पूछा
शन्नो ने रूखा सूखा कह दिया "ठीक हूँ... बोलो क्या काम था"
आकांक्षा की आवाज़ में सॉफ झिझक थी.. उसने पूछा "चेतन है??"
शन्नो ने झूठ में कह दिया "वो स्कूल गया हुआ है"
"झूठ मत बोलो दीदी वो घर पर ही होगा मगर वो मोब नही उठा रहा" आकांक्षा ने मायूस होके कहा
शन्नो खुश हो गयी थी ये जानके और बोली " वो स्कूल में ही है'
इस दौरान चेतन पीछे से आया शन्नो की टी-शर्ट में हाथ घुसाकर उसके स्तनो को दबाने लगा... उसके होंठ शन्नो की गर्दन को चूमे जा रहे थे...
शन्नो के मुँह से सिसकने की आवाज़ आने लगी और उन्हे सुनके आकांक्षा को पता चल गया कि चेतन घर पर ही है.... आकांक्षा फोन पे चेतन चेतन करती रही और वही चेतन ने
अपना सीधा हाथ अपनी अपनी मा की पैंटी में घुसा दिया था... चेतन की उंगलिया उसकी मा की चूत मे अंदर बाहर हुए जा रही थी...
शन्नो कुच्छ ज़्यादा ही मदहोश हो गयी थी और शायद इसकी वजह ये थी कि उसकी बहन दूसरी तरफ चेतन के लिए तड़प रही थी.... उसको और तड़पाने के लिए शन्नो
ने फोन कट नहीं करा बल्कि चेतन को बाँहो में लेके उसको चूमने लगी और चेतन चेतन करके आवाज़ें निकालने लगी...
जिस्म की प्यास compleet
Re: जिस्म की प्यास
चेतन को अंदाज़ा हो गया था कि उसकी मा किसको जलाने में लगी हुई थी और वैसे भी अपनी मा को इतना गरम देखकर उसका लंड पूरा खंबे की तरह तना हुआ था...
दोनो फोन के सामने ही रहकर एक दूसरे को खुश करने लगे... ऐसा करने की शन्नो के पास 2 ही वजह थी पहली उसे ये सब करने में बहुत मज़ा आ रहा था और दूसरे
अपनी छ्होटी बहन को जलाने की....
खैर उधर दोनो बहने भोपाल के स्टेशन पे उतरी तो अब्दुल गाड़ी लेके आया हुआ था... डॉली ने अब्दुल को ललिता से मिलवाया और फिर तीनो घर के लिए रवाना हो गये...
डॉली ललिता को हर वो चीज़ बताने लग गयी भोपाल के बारे में जो उसे पता थी और ललिता भी वो सारी बातें कान खोलके सुनने लगी...
दोनो बहन पीछे बैठी थी तो अब्दुल ने भी कुच्छ बोला नहीं बस गाड़ी चला रहा था... फिर घर को देखकर ही ललिता काफ़ी खुश हो गयी... ये घर दिल्ली वाले
घर से काफ़ी बड़ा और काफ़ी अच्च्छा था... डॉली ने ललिता को पूरा घर दिखाया और फिर उसे उसका नया कमरा भी दिखाया....
डॉली ने नारायण को फोन करके बता दिया कि वो घर आ गयी है तो नारायण भी स्कूल से निकलके घर के लिए रवाना हो गया क्यूंकी स्कूल में रहकर उसका दिमाग़
फटा जा रहा था....
घर पहूचकर नारायण को बहुत ज़्यादा राहत मिली... अपनी दोनो बेटियो को देखकर वो काफ़ी खुश हुआ.. उसकी ज़िंदगी में तूफान आया था वो उस वक़्त के लिए कही खो
चुका था.... उस रात नारायण बड़ी चैन की नींद सोया... डॉली ने तकरीबन 3 घंटे तक अपने प्यार राज से फोन पे बात करी और बात करते करते सो गयी...
ललिता अपने बिस्तर पर चैन की नींद सो गयी...
अगली सुबह दिल्ली में जब घंटी बजी तो शन्नो अपने बिस्तर से उठी तो उसकी नज़र उसके बेटे चेतन पर पड़ी जोकि कल रात उसके साथ एक ही चद्दर में सोया था...
शन्नो के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.... शन्नो ने अभी भी वोई लंबी सफेद रंग की टी-शर्ट पहनी थी और उसके नीचे वो पूरी नंगी थी...
घर की घंटी फिर से बजी तो शन्नो ने जल्दी से फर्श पे पड़ी अपनी पैंटी को उठाया और उसे पहेन लिया और भाग कर अलमारी की तरफ नीचे कुच्छ पहनने के लिए बढ़ी तो
चेतन ने अपनी नींद से भारी आवाज़ में कहा "अब इस्की क्या ज़रूरत है"
शन्नो अलमारी खोलते खोलते रुक गयी... चेतन बोला "आज आप ऐसे ही दूधवाले भैया के पास जाओगी बिना किसी झिझक के..."
"मगर चेतन" शन्नो के आगे बोलने से पहले ही चेतन बोला "कुच्छ मगर नहीं जाओ दरवाज़ा खोला.. दूध लो.. और दरवाज़ा बंद करदो... इसके अलावा कुच्छ करने की ज़रूरत नहीं है..."
एक बारी फिर से घंटी बजी तो शन्नो के कदम घर के दरवाज़े के तरफ बढ़ने लगे... चेतन की ऐसे बातें सुनकर शन्नो का गला सूख गया था...
शन्नो ने मूड के देखा तो चेतन अब अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ा हो गया ये सबका मज़ा लूटने के लिए.... शन्नो ने सोचा कि वो पहले पतीला निकाल
लेती है ताकि ज़्यादा समय नही लगे तो उसने किचन सेपटीला निकाला और दरवाज़े की कुण्डी उपर से खोली जिस कारण उसकी टी-शर्ट उपर हो गई और उसकी सफेद पैंटी
पूरी तरह से दिखने लगी... अपनी टी-शर्ट को नीचे करते हुए शन्नो ने दरवाज़ा खोला...
उसकी जान में जान आ गयी... शायद दूधवाला वहाँ से तंग होके चला गया था... शन्नो ने झट से दरवाज़ा बंद करा और वापस चेतन के कमरे में चली गयी....
उसके दिमाग़ में चल रहा था कि अगर उस दूधवाले ने उसे ऐसी हालत में देख लिया होता तो क्या होता?? क्या वो सिर्फ़ आँखो से मज़ा लूटता?
या फिर मुझे वही दबोच लेता?? ये फिर हार्ट अटॅक से ही मर जाता"
सुबह भोपाल में नारायण के स्कूल चले जाने के बाद डॉली नहा के तैयार हो रही थी....
उसने एक स्किन टाइट ब्लू जीन्स पहनी थी और उसके उपर थोड़े बाजू वाला पीले रंग का टॉप... उसने जल्दी से जाके ललिता को उठाया जो कि अभी बिस्तर पे पड़ी सो रही थी... ललिता ने डॉली को तैयार देख कर पूछा "क्या कहीं जा रही हो क्या??"
डॉली बोली "नहीं हम कहीं नही जा रहे बस राज यहाँ पे आ रहा है मुझसे मिलने"
ये सुनके ललिता डॉली को चिडाने लगी...
डॉली ने ललिता का हाथ हाथ में लेके पूछा "अच्छा सुन तुझे कोई दिक्कत तो नहीं है ना यार"
"कैसी बात करदी आपने... मुझे क्या दिक्कत" ये सुनके डॉली ललिता के गले लग गयी और बोली "चल तू भी नहा और कुच्छ ढंग का पहेनले वो आ जाएगा थोड़ी देर में"
दोनो फोन के सामने ही रहकर एक दूसरे को खुश करने लगे... ऐसा करने की शन्नो के पास 2 ही वजह थी पहली उसे ये सब करने में बहुत मज़ा आ रहा था और दूसरे
अपनी छ्होटी बहन को जलाने की....
खैर उधर दोनो बहने भोपाल के स्टेशन पे उतरी तो अब्दुल गाड़ी लेके आया हुआ था... डॉली ने अब्दुल को ललिता से मिलवाया और फिर तीनो घर के लिए रवाना हो गये...
डॉली ललिता को हर वो चीज़ बताने लग गयी भोपाल के बारे में जो उसे पता थी और ललिता भी वो सारी बातें कान खोलके सुनने लगी...
दोनो बहन पीछे बैठी थी तो अब्दुल ने भी कुच्छ बोला नहीं बस गाड़ी चला रहा था... फिर घर को देखकर ही ललिता काफ़ी खुश हो गयी... ये घर दिल्ली वाले
घर से काफ़ी बड़ा और काफ़ी अच्च्छा था... डॉली ने ललिता को पूरा घर दिखाया और फिर उसे उसका नया कमरा भी दिखाया....
डॉली ने नारायण को फोन करके बता दिया कि वो घर आ गयी है तो नारायण भी स्कूल से निकलके घर के लिए रवाना हो गया क्यूंकी स्कूल में रहकर उसका दिमाग़
फटा जा रहा था....
घर पहूचकर नारायण को बहुत ज़्यादा राहत मिली... अपनी दोनो बेटियो को देखकर वो काफ़ी खुश हुआ.. उसकी ज़िंदगी में तूफान आया था वो उस वक़्त के लिए कही खो
चुका था.... उस रात नारायण बड़ी चैन की नींद सोया... डॉली ने तकरीबन 3 घंटे तक अपने प्यार राज से फोन पे बात करी और बात करते करते सो गयी...
ललिता अपने बिस्तर पर चैन की नींद सो गयी...
अगली सुबह दिल्ली में जब घंटी बजी तो शन्नो अपने बिस्तर से उठी तो उसकी नज़र उसके बेटे चेतन पर पड़ी जोकि कल रात उसके साथ एक ही चद्दर में सोया था...
शन्नो के चेहरे पर मुस्कान आ गयी.... शन्नो ने अभी भी वोई लंबी सफेद रंग की टी-शर्ट पहनी थी और उसके नीचे वो पूरी नंगी थी...
घर की घंटी फिर से बजी तो शन्नो ने जल्दी से फर्श पे पड़ी अपनी पैंटी को उठाया और उसे पहेन लिया और भाग कर अलमारी की तरफ नीचे कुच्छ पहनने के लिए बढ़ी तो
चेतन ने अपनी नींद से भारी आवाज़ में कहा "अब इस्की क्या ज़रूरत है"
शन्नो अलमारी खोलते खोलते रुक गयी... चेतन बोला "आज आप ऐसे ही दूधवाले भैया के पास जाओगी बिना किसी झिझक के..."
"मगर चेतन" शन्नो के आगे बोलने से पहले ही चेतन बोला "कुच्छ मगर नहीं जाओ दरवाज़ा खोला.. दूध लो.. और दरवाज़ा बंद करदो... इसके अलावा कुच्छ करने की ज़रूरत नहीं है..."
एक बारी फिर से घंटी बजी तो शन्नो के कदम घर के दरवाज़े के तरफ बढ़ने लगे... चेतन की ऐसे बातें सुनकर शन्नो का गला सूख गया था...
शन्नो ने मूड के देखा तो चेतन अब अपने कमरे के दरवाज़े के पास ही खड़ा हो गया ये सबका मज़ा लूटने के लिए.... शन्नो ने सोचा कि वो पहले पतीला निकाल
लेती है ताकि ज़्यादा समय नही लगे तो उसने किचन सेपटीला निकाला और दरवाज़े की कुण्डी उपर से खोली जिस कारण उसकी टी-शर्ट उपर हो गई और उसकी सफेद पैंटी
पूरी तरह से दिखने लगी... अपनी टी-शर्ट को नीचे करते हुए शन्नो ने दरवाज़ा खोला...
उसकी जान में जान आ गयी... शायद दूधवाला वहाँ से तंग होके चला गया था... शन्नो ने झट से दरवाज़ा बंद करा और वापस चेतन के कमरे में चली गयी....
उसके दिमाग़ में चल रहा था कि अगर उस दूधवाले ने उसे ऐसी हालत में देख लिया होता तो क्या होता?? क्या वो सिर्फ़ आँखो से मज़ा लूटता?
या फिर मुझे वही दबोच लेता?? ये फिर हार्ट अटॅक से ही मर जाता"
सुबह भोपाल में नारायण के स्कूल चले जाने के बाद डॉली नहा के तैयार हो रही थी....
उसने एक स्किन टाइट ब्लू जीन्स पहनी थी और उसके उपर थोड़े बाजू वाला पीले रंग का टॉप... उसने जल्दी से जाके ललिता को उठाया जो कि अभी बिस्तर पे पड़ी सो रही थी... ललिता ने डॉली को तैयार देख कर पूछा "क्या कहीं जा रही हो क्या??"
डॉली बोली "नहीं हम कहीं नही जा रहे बस राज यहाँ पे आ रहा है मुझसे मिलने"
ये सुनके ललिता डॉली को चिडाने लगी...
डॉली ने ललिता का हाथ हाथ में लेके पूछा "अच्छा सुन तुझे कोई दिक्कत तो नहीं है ना यार"
"कैसी बात करदी आपने... मुझे क्या दिक्कत" ये सुनके डॉली ललिता के गले लग गयी और बोली "चल तू भी नहा और कुच्छ ढंग का पहेनले वो आ जाएगा थोड़ी देर में"
Re: जिस्म की प्यास
ललिता बिस्तर से उठी.. नहा धोकर तैयार होके बैठ गयी... उसने काली रंग की कॅप्री पहनी जो उसके पैरो से थोड़ी उपर तक
थी और उसके उपर उसने एक वाइट शर्ट पहेन ली.... ललिता डॉली का हाल देख देख के हँसे जा रही थी...
डॉली बहुत ही बेसब्री से अपने आशिक़ का इंतजार करने में लगी हुई थी और ललिता उसको चिड़ा चिड़ा कर मज़े लूट रही थी...
आख़िर कार वो पल आ ही गया और घर की घंटी बजी और डॉली भाग कर दरवाज़ा खोलने गयी....
जैसी उसने दरवाज़ा खोला तो राज ने उसको बाँहो में ले लिया ये सोचके कि वो घर पर अकेली थी...
राज अपने दोनो हाथ डॉली की पीठ फेरने लगा और डॉली को भी ख़याल नही रहा कि उसकी बहन ये सब कुच्छ देख रही होगी... ललिता जान के दो बारी ख़ासी ताकि दोनो को एहसास हो जाए कि वो भी घर में है...
ललिता पे नज़र पड़ते ही राज डॉली से दूर हो गया... डॉली ने भी अपने आपको काबू में करा और दरवाज़ा बंद
करकर उसने ललिता को राज से मिलवाया.... दोनो ने एक दूसरे से हाथ मिलवाया और फिर डॉली राज को अपने कमरे
में लेके चली गयी... ललिता को राज बड़ा चंदर टाइप का लगा क्यूंकी वो दिखने में गोरा क्यूट सा था और भोला भी
काफ़ी लग रहा था... खैर ललिता ने अपना समय टीवी देख कर बिताया मगर कहीं ना कहीं उसके दिमाग़ में
ये भी चल रहा था कि उसकी बड़ी बहन और उसका बॉय फ्रेंड बंद कमरे में कर क्या रहे होंगे...
शन्नो से रहा नही गया और वो टीवी बंद करके दबे पाओ डॉली के कमरे की तरफ बढ़ी.... कमरे का दरवाज़ा बंद था तो
ललिता उस दरवाज़े पर कान रखके दोनो की बातें सुनने लगी... दोनो इतनी धीमी धीमी बात कर रहे थे कि ललिता को
कुच्छ सुनाई भी नही दे रहा था... हारकर ललिता अपने कमरे में चली गयी और बिस्तर पे बैठकर कुछ ना कुछ सोचने लगी....
उधर डॉली के कमरे में दोनो बैठे हुए एक दूसरे की आँखों में देखकर इश्क़ लड़ा रहे थे...
राज बार बार कुच्छ ना कुच्छ कहकर डॉली को शरमाने में मझबूर कर रहा था.... डॉली का पीला टॉप उपर
से गहरा गला था जिसकी वजह उसका हल्का सा क्लीवेज दिख रहा था... जब भी वो झुकती तो क्लीवेज बड़ा हो जाता और
राज की साँस अटक जाती... राज से रहा नही जा रहा था और वो अपने सामने डॉली को कपड़े उतारते हुए
नंगा देखना चाहता था...... मौका मिलते ही उसने उस क्लीवेज पे अपनी उंगली चला दी और डॉली उसकी उंगली को मारते
हुए उसे थोड़ा दूर हो गयी... राज ने बड़े प्यार से डॉली को कहा "आज तुम बहुत ही ज़्यादा हॉट लग रही हो"
ये सुनके डॉली ने भी कहा "आज तुम बड़े डॅशिंग लग रहे हो" जिसको सुनके राज भी मुस्कुरा उठा...
कुच्छ देर इधर उधर की बातें करने के बाद डॉली बिस्तर से उठ कर अलमारी से अपना नया खरीदा हुआ टॉप राज को
दिखाने के लिए उठी तो राज ने उसकी टाइट गान्ड पे हाथ फेर दिया और डॉली हद्द से ज़्यादा शर्मा उठी....
डॉली ने राज को कुच्छ नहीं कहा और अलमारी खोलके अपना नया टॉप निकाला जोकि काले रंग का स्लीव्ले टॉप था....
उसको देखते ही राज बोला "ह्म्म ठीक है"
डॉली उदास होके बोली "बस ठीक... मुझे लगा तुम्हे बड़ा अच्छा लगेगा"
राज डॉली को देख कर बोला "पहन्के दिखाओ तो शायद ढंग से पता चलेगा"
डॉली उठ कर जाने लगी तो राज ने उसको रोक के पूछा "अर्रे कहाँ जा रही हो??"
डॉली बोली "तुमने ही तो बोला पेहेन्के दिखाओ तो चेंज करने जा रही थी बाथरूम"
राज बोला "क्यूँ मेरे सामने करने में क्या दिक्कत है"
डॉली हंस के बोली "मैं जानती थी तुम यही चाहते हो गंदे बच्चे"
राज ने रोने वाला चेहरा बना लिया जिसको देख कर डॉली बोली "अच्छा एक शर्त पे... तुम अपनी आँखें बंद कर्लो मैं यही चेंज करलूंगी"
दोनो में थोड़ी देर बहस होने के बाद राज ने बोला "ठीक है जैसे आप कहें"
"चलो फिर अपनी आखें बंद करो... आंड नो चीटिंग" डॉली ने राज से कहा और उसने अपनी आखें बंद करली मगर
उसके चेहरे पे से मुस्कुराहट जाने का नाम ही नहीं ले रही थी.... डॉली ने कुच्छ सेकेंड राज की ईमानदारी देखी और
फिर अपने बाल खोल दिए ताकि उसका पीला टॉप उनमें ना फँस जायें... उसने अपने टॉप को दोनो हाथो से पकड़ा और
उतारके बिस्तर पे रखा.... जब उसने वो काला टॉप बिस्तर से उठाया तो वो उसे खीच नहीं पाई क्यूंकी
राज ने पहले से ही उसका एक कोना पकड़ रखा था... राज ने भी उसी वक़्त अपनी आँखें खोली और डॉली को सफेद ब्रा
में देख कर हंस ने लगा... फिर उसने दोनो टॉप्स को अपनी मुट्ठी में कर लिया और डॉली उससे हाथा पाई करने लगी...
दोनो भूल गये थे कि ललिता अभी भी घर में मौजूद है और एक डूस्र से मज़ाक मज़ाक में लड़ने लगे...
राज ने डॉली को दोनो नाज़ुक हाथो को अपने एक हाथ से पकड़ लिया और दोनो एक दूसरे की आँखों में देखने लगे....
थी और उसके उपर उसने एक वाइट शर्ट पहेन ली.... ललिता डॉली का हाल देख देख के हँसे जा रही थी...
डॉली बहुत ही बेसब्री से अपने आशिक़ का इंतजार करने में लगी हुई थी और ललिता उसको चिड़ा चिड़ा कर मज़े लूट रही थी...
आख़िर कार वो पल आ ही गया और घर की घंटी बजी और डॉली भाग कर दरवाज़ा खोलने गयी....
जैसी उसने दरवाज़ा खोला तो राज ने उसको बाँहो में ले लिया ये सोचके कि वो घर पर अकेली थी...
राज अपने दोनो हाथ डॉली की पीठ फेरने लगा और डॉली को भी ख़याल नही रहा कि उसकी बहन ये सब कुच्छ देख रही होगी... ललिता जान के दो बारी ख़ासी ताकि दोनो को एहसास हो जाए कि वो भी घर में है...
ललिता पे नज़र पड़ते ही राज डॉली से दूर हो गया... डॉली ने भी अपने आपको काबू में करा और दरवाज़ा बंद
करकर उसने ललिता को राज से मिलवाया.... दोनो ने एक दूसरे से हाथ मिलवाया और फिर डॉली राज को अपने कमरे
में लेके चली गयी... ललिता को राज बड़ा चंदर टाइप का लगा क्यूंकी वो दिखने में गोरा क्यूट सा था और भोला भी
काफ़ी लग रहा था... खैर ललिता ने अपना समय टीवी देख कर बिताया मगर कहीं ना कहीं उसके दिमाग़ में
ये भी चल रहा था कि उसकी बड़ी बहन और उसका बॉय फ्रेंड बंद कमरे में कर क्या रहे होंगे...
शन्नो से रहा नही गया और वो टीवी बंद करके दबे पाओ डॉली के कमरे की तरफ बढ़ी.... कमरे का दरवाज़ा बंद था तो
ललिता उस दरवाज़े पर कान रखके दोनो की बातें सुनने लगी... दोनो इतनी धीमी धीमी बात कर रहे थे कि ललिता को
कुच्छ सुनाई भी नही दे रहा था... हारकर ललिता अपने कमरे में चली गयी और बिस्तर पे बैठकर कुछ ना कुछ सोचने लगी....
उधर डॉली के कमरे में दोनो बैठे हुए एक दूसरे की आँखों में देखकर इश्क़ लड़ा रहे थे...
राज बार बार कुच्छ ना कुच्छ कहकर डॉली को शरमाने में मझबूर कर रहा था.... डॉली का पीला टॉप उपर
से गहरा गला था जिसकी वजह उसका हल्का सा क्लीवेज दिख रहा था... जब भी वो झुकती तो क्लीवेज बड़ा हो जाता और
राज की साँस अटक जाती... राज से रहा नही जा रहा था और वो अपने सामने डॉली को कपड़े उतारते हुए
नंगा देखना चाहता था...... मौका मिलते ही उसने उस क्लीवेज पे अपनी उंगली चला दी और डॉली उसकी उंगली को मारते
हुए उसे थोड़ा दूर हो गयी... राज ने बड़े प्यार से डॉली को कहा "आज तुम बहुत ही ज़्यादा हॉट लग रही हो"
ये सुनके डॉली ने भी कहा "आज तुम बड़े डॅशिंग लग रहे हो" जिसको सुनके राज भी मुस्कुरा उठा...
कुच्छ देर इधर उधर की बातें करने के बाद डॉली बिस्तर से उठ कर अलमारी से अपना नया खरीदा हुआ टॉप राज को
दिखाने के लिए उठी तो राज ने उसकी टाइट गान्ड पे हाथ फेर दिया और डॉली हद्द से ज़्यादा शर्मा उठी....
डॉली ने राज को कुच्छ नहीं कहा और अलमारी खोलके अपना नया टॉप निकाला जोकि काले रंग का स्लीव्ले टॉप था....
उसको देखते ही राज बोला "ह्म्म ठीक है"
डॉली उदास होके बोली "बस ठीक... मुझे लगा तुम्हे बड़ा अच्छा लगेगा"
राज डॉली को देख कर बोला "पहन्के दिखाओ तो शायद ढंग से पता चलेगा"
डॉली उठ कर जाने लगी तो राज ने उसको रोक के पूछा "अर्रे कहाँ जा रही हो??"
डॉली बोली "तुमने ही तो बोला पेहेन्के दिखाओ तो चेंज करने जा रही थी बाथरूम"
राज बोला "क्यूँ मेरे सामने करने में क्या दिक्कत है"
डॉली हंस के बोली "मैं जानती थी तुम यही चाहते हो गंदे बच्चे"
राज ने रोने वाला चेहरा बना लिया जिसको देख कर डॉली बोली "अच्छा एक शर्त पे... तुम अपनी आँखें बंद कर्लो मैं यही चेंज करलूंगी"
दोनो में थोड़ी देर बहस होने के बाद राज ने बोला "ठीक है जैसे आप कहें"
"चलो फिर अपनी आखें बंद करो... आंड नो चीटिंग" डॉली ने राज से कहा और उसने अपनी आखें बंद करली मगर
उसके चेहरे पे से मुस्कुराहट जाने का नाम ही नहीं ले रही थी.... डॉली ने कुच्छ सेकेंड राज की ईमानदारी देखी और
फिर अपने बाल खोल दिए ताकि उसका पीला टॉप उनमें ना फँस जायें... उसने अपने टॉप को दोनो हाथो से पकड़ा और
उतारके बिस्तर पे रखा.... जब उसने वो काला टॉप बिस्तर से उठाया तो वो उसे खीच नहीं पाई क्यूंकी
राज ने पहले से ही उसका एक कोना पकड़ रखा था... राज ने भी उसी वक़्त अपनी आँखें खोली और डॉली को सफेद ब्रा
में देख कर हंस ने लगा... फिर उसने दोनो टॉप्स को अपनी मुट्ठी में कर लिया और डॉली उससे हाथा पाई करने लगी...
दोनो भूल गये थे कि ललिता अभी भी घर में मौजूद है और एक डूस्र से मज़ाक मज़ाक में लड़ने लगे...
राज ने डॉली को दोनो नाज़ुक हाथो को अपने एक हाथ से पकड़ लिया और दोनो एक दूसरे की आँखों में देखने लगे....