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अब आगे ....
बच्चों को स्कूल छोड़ मैं काम पे निकल गया...और रात को आने में देर हो गई| भौजी ने खाना खा लिया था... और वो मुझ पर बहुत गुस्सा थीं|
भौजी: आपने एक कॉल तक नहीं किया? इतना busy हो गए थे?
मैं: जान फ़ोन की बैटरी discharge हो गई थी...इसलिए नहीं कर पाया ... मैं जानता हूँ की आपने खाना नहीं खाया है...I'm Sorry !
भौजी: नहीं...मैंने खाना खा लिया|
उनका जवाब बड़ा रुखा था और वो अपने कमरे में चली गईं| मैंने माँ से पूछा तो उन्होंने बताया की हाँ भौजी ने सब के साथ बैठ के खाना खाया था|उन्होंने रात को बच्चों को मेरे पास भी सोने नहीं दिया... दिवाली आने तक उनका व्यवहार अचानक मेरे साथ रूखा हो गया था.... बात-बात पे चिढ़ जातीं ....गुस्से में बात करती...फोन नहीं उठातीं....तो कभी-कभी इतने फोन करती की पूछो मत| आखिर दिवाली आ ही गई और आज वो बड़ी चुप थीं| सुबह पिताजी ने मुझे डाइनिंग टेबल पे बिठा के कुछ बात की;
पिताजी: बेटा हमारा प्रोजेक्ट फाइनल हो चूका है ...और ये तो तूने सारा काम संभाल लिया...वरना बहुत नुक्सान होता| ये ले चेक ...जैसा तूने कहा था...इन पैसों की तू नेहा और आयुष के नाम की FD बना दे और तेरे हिस्से का प्रॉफिट मैंने तेरे अकाउंट में डाल दिया है|
मैं: जी बेहतर!
मैंने मुड़ के भौजी की तरफ देखा तो उनका मुंह अब भी उतरा हुआ था| मैं सारी बात समझ गया|
मैं: पिताजी...दिवाली के लिए कुछ खरीदारी करनी है...तो आप की आज्ञा हो तो मैं इन्हें (भौजी), माँ और बच्चों को ले जाऊं?
पिताजी: बेटा आज मुझे तेरी माँ के साथ मिश्रा जी के यहाँ जाना है| दिवाली का दिन है...उन्हें मिठाई दे आते हैं| तू अपनी भौजी और बच्चों को ले जा|
मैं: जी ठीक है|
हम सारे तैयार हो के एक साथ निकले| मैं भौजी को सामान खरीदने के लिए बाजार ले गया| बच्चे इन दिनों में अपनी मम्मी से मिल रहे रूखेपन के करण उन से नाराज थे और मुझसे बातें करते थे और भौजी के आते ही चुप हो जाते थे| आज भी दोनों चुपचाप चल रहे थे|
मैं: नेहा...बेटा आपने स्कूल में रंगोली बनाई थी?
नेहा: जी पापा ...
मैं: तो यहाँ घर पे बनाओगे?
नेहा: हाँ (उसकी आँखें चमक उठीं)
मैं: ये लो पैसे और जो सामान लाना है ले लो...
भौजी: लोई जर्रूरत नहीं...घर पे सब रखा है|
नेहा सेहम गई और वापस मेरे पास आ गई|
मैं: आप चलो मेरे साथ...मैं आपको सामान दिलाता हूँ|
नेहा ने एक नजर भौजी को देखा और फिर से सेहम गई और जाने से मना कर दिया|
मैं: उनको मत देखो...चलो मेरे साथ!
मैं जबरदस्ती उन्हें दूकान में ले गया और रंग वगेरह खरीद दिए| फिर आयुष को चखरी, फूलझड़ी, अनार और राकेट दिला दिए| वो भी भौजी की तरफ देख के सहमा हुआ था पर मेरे साथ होने से वो कम डरा हुआ था| फिर भौजी ने खुद ही दिए लिए, और जो भी सामान लेना था सब लिया और हम घर आ गए| पिताजी और माँ अभी तक लौटे नहीं थे वो मिश्रा जी के यहाँ लंच के लिए रूक गए थे| घर पर हम अकेले थे....भौजी खाना बनाने लगीं तो मैंने उन्हें ओके दिया, ये कह की मैंने खाना आर्डर कर दिया है|
उन्होंने गुस्से में आके गैस बंद की और अपने कमरे में जाने लगीं तो मैंने उनका हाथ थाम लिया और अपने कमरे में ले आया| बच्चे टी.वी. देखने में व्यस्त थे.....
मैं: बैठो...कुछ बात करनी है|
भौजी बैठ गईं पर अब भी उनका मुँह उदास दिख रहा था|
मैं: जानता हूँ आप ये सब जान बुझ के कर रहे हो| बार-बार गुस्सा हो जाना... मेरे बिना खाए खाना खा लेना....बिना बात के बच्चों को डाँटना...डरा के रखना... और वो सब जो करवाचौथ के बाद आप कर रहे हो|
ये सुनते ही उन्होनेनजरें उठा के मेरी तरफ देखा...
मैं: जान-बुझ के इसलिए कर रहे हो ताकि मैं आपसे खफा हो जाऊँ और पिताजी से बात ना करूँ| है ना?
भौजी: हाँ (और उनकी आँखें छलक आईं)
मैं: और आपको लगा की मैं गुस्से में आपसे नफरत करने लगूंगा और आपको छोड़ दूँगा.... आपने ये सोच भी कैसे लिया?
भौजी रोने लगीं...मुझसे उनका रोना नहीं देखागया और मैं उनके सामने घुटनों पे आ गया और वो मेरे गले लग गईं|
मैं: मेरी एक बात का जवाब दो? क्या आप मुझसे प्यार नहीं करते? आप नहीं चाहते की हम एक साथ रहे ना की इस तरह छुप-छुप के...
भौजी: मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ...बस आपको खोना नहीं चाहती...कल आप पिताजी से वो बात कहेंगे तो वो हमें अलग कर देंगे....
मैं: ऐसा कुछ नहीं होगा...और अगर हुआ तो....मैं आपको भगा के ले जाऊँगा|
भौजी: यही मैं नहीं चाहती...मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से आप अपने माँ-पिताजी से अलग हो जाओ|
मैं: ऐसी नौबत नहीं आएगी....अब चुप हो जाओ ...आज त्यौहार का दिन है| प्लीज....आयुष...नेहा....बेटा इधर आओ|
दोनों बैठक से उठ के मेरे कमरे में आये;
मैं: बेटा मम्मी के गले लगो...
दोनों थोड़ा झिझक रहे थे ...
मैं: देखा आपके जरा सा रुखपन दिखाने से ये आपसे कितना डर गए हैं| बेटा ...मम्मी मुझसे नाराज थीं...और आप पर गुस्सा निकाल दिया|इन्हें माफ़ कर दो और गले लगो|
तब जाके दोनों भौजी के गले लगे|
खेर हम लोगों ने खाना खाया और घर की decoration में लग गए| मैंने छत पे जाके लड़ियाँ लगा दीं और भौजी और नेहा मिलके रंगोली बनाने लगे| माँ-पिताजी के आते -आते घर चमक रहा था! आयुष तो रात होने का इन्तेजार कर रहा था ताकि वो पटके जल सके| भौजी अब खुश लग रहीं थीं.... कुछ देर बाद मेरे नंबर पे अनिल (भौजी का भाई)का फोन आया| उससे बात हुई...और मैंनेफोन भौजी को दे दिया| दरसल भौजी के फोन की बैटरी discharge हो गई थी और उन्हें पता ही नहीं था| मैंने ही उनका फोन चार्जिंग पे लगाया|
रात को पूजा के समय हम लोग कुछ इस तरह बैठे थे| माँ और पिताजी एक साथ फिर मैं और भौजी, नेहा मेरी दाहिनी तरफ बैठी थी और आयुष मेरी गोद में बैठा था| पूजा के बाद हम छत पे आ गए पटाखे जलाने के लिए| आयुष को मैंने सिर्फ फूलझड़ी दी और मैं अनार जलने लगा| अनार के जलते ही वो ख़ुशी से कूदने लगा| नेहा पिताजी के साथ कड़ी-कड़ी ख़ुशी से चीख रही थी| मैंने एक फूलझड़ी जल के नेहा को दी, पहले तो वो डर रही थी फिर पिताजी ने उसके सर पे प्यार से हाथ फेरा तो वो मान गई और मेरे हाथ से फूलझड़ी ले ली| अब बारी थी चखरी जलाने की ..... मैंने आयुष को तरीका बताया और उसने पहली बार कोई पटाखा जलाया| चखरी को गोल-गोल घूमता देख दोनों भाई-बहन के उसके आस-पास कूदने लगे| बच्चों को इस तरह खुश देख मेरी आँखें ख़ुशी के मारे नम हो गईं| भौजी भी उन्हें कूदता हुआ देख खुश थीं| अब बारी थी राकेट जलाने की| अब मैंने अपनी जिंदगी में सिर्फ एक ही राकेट जलाया था जो की ऊपर ना जाके नीचे ही फ़ट गया था| उस दिन के बाद मैंने कभी राकेट नहीं जलाया| इसलिए राकेट जलाने का काम मैंने पिताजी को दिया| अब पिताजी भी बच्चे बन के नेहा और आयसुह के साथ पटाखे जला रहे थे| मैं उठ के माँ और भौजी के पास बैठ गया| टेबल पे कुछ सोन पापड़ी और ढोकला रखा हुआ था| मैं वही खाने लगा तभी माँ और भौजी की बात शुरू हुई;
माँ: बेटा तो कैसी लगी दिवाली हमारे साथ?
भौजी: माँ...सच कहूँ तो ये मेरी अब तक की सबसे बेस्ट दिवाली है| गाँव में ना तो इतनी रौशनी होती है...न ये शोर-गुल| रात की पूजा के बाद शायद ही कोई पटाखे जलाता है| पिछले साल मैंने आयसुह को फूलझड़ी का एक पैकेट खरीद के दिया था.... वो और नेहा तो जानते थे की यही दिवाली होती है! यहाँ आके पता चला की दिवाली क्या होती है!
माँ: बेटा वो ठहरा गाँव और ये शहर! पटाखे तो मानु कभी नहीं खरीदता था...पता नहीं इस बारी कैसे खरीद लिए? जब मैं कहती थी की पटाखे ले आ तो कहता था...माँ धरती पे pollution बढ़ गया है| और आज देखो?
मैं: मैं अब भी कहता हूँ की pollution बढ़ गया है....इसीलिए तो मैं बम नहीं लाया| उनसे noise pollution भी होता है और air pollution भी| रही बात फूलझड़ी और अनार की तो ये तो कुछ भी नहीं है...थोड़ा बहुत तो बच्चों के लिए करना ही होता है|
माँ: ठीक है बेटा ...मैं तुझे कब मना करती थी| अच्छा खाना मांगा ले!
भौजी: पर माँ मैंने पुलाव बना लिया है|
माँ: पुलाव? तुझे कैसे पता की दिवाली पे मैं पुलाव बनाती थी? इस बार तो समय नहीं मिला इसलिए नहीं बना पाई....
भौजी ने मेरी तरफ देख के इशारा किया और माँ समझ गईं|
माँ: हम्म्म....
एक पल के लिए लगा की माँ समझ गईं हों की हमारे बीच में क्या चल रहा है| पर शायद उन्होंने उस बात को तवज्जो नहीं दी और बच्चों को पटाखे जलाते हुए देखने लगीं माँ का ध्यान सामने की तरफ था और इतने में किसी ने दस हजार बम की लड़ी जला दी|
अब कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था...तो मैं भौजी के नजदीक गया और उनके कान में बोला;
मैं: दस मिनट बाद नीचे मिलना|
भौजी: ठीक है|
दरअसल मुझे भौजी को एक सरप्राइज देना था| मैं नीचे की चाभी ले के पहले आ गया| करीब पांच मिनट बाद भौजी भी आ गईं|
मैं: Hey .... क्या हुआ आपको?
भौजी: (नजरें झुकाते हुए) कुछ नहीं|
मैं: Awwww ...
मैंने भौजी को गले लगा लिया और उन्होंने मुझे अपनी बाहों में कस के जकड लिया|
मैं: I got a surprise for you !
मैंने अपने कमरे से उन्हें एक Bengali Design की साडी निकाल के दी| वो सेट पूरा कम्पलीट था और पिछले कुछ दिनों में टेलर मास्टर ने उसे सिल के तैयार कर दिया था|
मैं: इसे पहन लो|
भौजी: आप...आप ये कब लाये?
मैं: काफी दिन हो गए...टेलर मास्टर ने जब तक इसे कम्पलीट नहीं किया मैंने आप से छुपा के रखा| आज मौका अच्छा है...पहन लो फिर drive पे चलते हैं|
भौजी: ड्राइव पे? पर गाडी कहाँ है?
मैं: मैंने आज के लिए किराए पे ली है|
भौजी: पर माँ-पिताजी?
मैं: मैं उन्हें संभाल लूंगा...आप तैयार तो हो जाओ?
भौजी: रुकिए...पहले मैं भी आपको एक सरप्राइज दे दूँ|
भौजी फटाफट अपने कमरे में गईं और मेरे लिए एक कुरता-पजामा ले आईं| मैं: आपने ये कब खरीदा? आप तो नाराज थे ना मुझसे?
भौजी: ऑनलाइन आर्डर किया था ...आपके लिए!
मैं: तो ठीक है भई...दोनों तैयार हो जाते हैं|
मैं अपने कमरे में घुसा और वो अपने कमरे में...मैं तो दो मिनट में तैयार हो गया था...और डाइनिंग टेबल पे बैठा उनका इन्तेजार कर रहा था| करीब पंद्रह मिनट बाद वो निकलीं ...."WOW !" बिलकुल दुल्हन की तरह सजी हुई थीं|
भौजी: WoW ! शुक्र है आपको फिट आ गया| मैं तो दर रही थी की कहीं आपको फिट ना आया तो मेरा सरप्राइज खराब हो जायेगा| वैसे ये बताओ की आपको कैसे पता की मेरा ब्लाउज किस साइज का है?
मैं: उम्म्म्म....वो मैंने ..छत पे सुख रहे आपके कपडे....मतलब उस दिन...मैंने आपका ब्लाउज चुराया और माप के लिए दे दिया|
भौजी: अच्छा जी....!!! तो इसमें शर्माने वाली क्या बात है?
मैं: यार मैंने आजतक कभी ऐसा नहीं किया...इसलिए शर्मा रहा था...खेर चलो चलते हैं|
भौजी: ठीक है...आप-माँ पिताजी को बोल आओ|
मैं: आप भी साथ चलो...तो माँ-पिताजी मना नहीं करेंगे|
मैंने पिताजी से ड्राइव पे जाने को कहा तो पिताजी ने रोका नहीं...बच्चे तो वैसे भी पिताजी को पटाखे फोड़ने में लगाय हुए थे| माँ ने बस इतना कहा की बेटा जल्दी आ जाना, खाना भी खाना है| मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैंने गाडी किराए पर ली है वरना वो जाने नहीं देते| हाँ उन्होंने हमारे कपड़ों के बारे में अवश्य पूछा तो मैंने कह दिया की हमने एक दूसरे को गिफ्ट दिया है! जूठ बोलने की इच्छा नहीं थी...और साथ-साथ मैं ये भी चाहता थकी कल की बात के लिए मुझे कुछ BASE भी मिल जाए|
मैं और भौजी फटाफट निकल आये| मैंने गाडी घुमाई और भगाता हुआ इंडिया गेट के पास ले आया, पूरे रास्ते भौजी का सर मेरे कंधे पे था और उन्होंने गाने भी बड़े रोमांटिक लगा दिए थे| सही जगह पहुँच के मैंने गाडी रोकी और भौजी की तरफ मुड़ा|
मैं: Hey ...मूड रोमांटिक हो रहा है?
भौजी: आपके साथ अकेले में समय बिताने को मिले और मूड रोमांटिक ना हो...तो कैसे चलेगा?
मैं: तो चलें बैक सीट?
भौजी: I was hoping you'd never ask!
हम गाडी की बैकसीट पे आ गए| गाडी रोड की एक तरफ कड़ी ही और दिवाली के चलते यहाँ जयदा चहल-पहल नहीं थी| मैंने स्विफ्ट गाडी किराय पे ली थी! भौजी मेरी तरफ देख रहीं थीं और मैं उनकी तरफ| हम दोनों एक दूसरे को प्यासी नजरों से देख रहे थे| अब समय था आगे बढ़ने का.....
हम दोनों ही सीट पे एक दूसरे की तरफ आगे बढे और दोनों ने एक साथ एक दूसरे के लबों को छुआ और बेतहाशा एक दूसरे को चूमने लगे| दोनों की सांसें तेज हो चलीं थीं...दिल जोरों से धड़क रहा था...एक उतावलापन था! तभी अचानक डैशबोर्ड में रखे फोन की घंटी बज उठी! ये अनिल का फोन था....रात के साढ़े नौ बजे...अनिल का फोन? कहीं कोई परेशानी तो नहीं? पहले तो मन किया की भौजी को सब बता दूँ...पर फिर रूक गया...उनका मूड कल को लेके पहले से ही खराब था, वो तो मैं उन्हें ड्राइव पे ले आया तो वो कुछ खुश लग रहीं थीं| मैंने फोन उतहया और चुप-चाप गाडी के बाहर आ गया और फोन पे बात करते-करते आगे गाडी से दूर जाने लगा|
मैं: हेल्लो!
अनजान आवाज: जी नमस्ते.... आपका कोई रिश्तेदार जिसका एक्सीडेंट हो गया था वो यहाँ हॉस्पिटल में admit है!
मैं: क्या? ये ....ये तो अनिल का नंबर है| वो ठीक तो है? (मैं बहुत घबरा गया था|)
अनजान आवाज: जी वो फिलहाल बेहोश है...उसके हाथ में फ्रैक्चर हुआ है| में ... मैं ही उसे हॉस्पिटल लाया था|
मैं: आप कौन हो? और किस हॉस्पिटल में हो?
अनजान आवाज: जी मेरा नाम सुरेन्द्र है...मैं यहाँ Lilavati Hospital & Research Centre Bandra West से बोल रहा हूँ| मैं यहाँ PG डॉक्टर हूँ| मुझे आपका ये रिश्तेदार जख्मी हालत में मिला | मैं इसे तुरंत हस्पताल ले आया| उसके मोबाइल में लास्ट dialed नंबर आपका था तो आपको फोन किया|
तब मुझे याद आया की आखरी बार उसकी बात मुझसे और भौजी से हुई थी|)
मैं: Thank You Very Much! मैं....मैं.....कल ही मुंबई पहुँचता हूँ...आप प्लीज मेरे साले का ध्यान रखना| Please .....
सुरेन्द्र: जी आप चिंता ना करें|
फोन disconnect हुआ और मैं चिंता में पड़ गया की भौजी को कुछ बताऊँ या नहीं? शक्ल पे बारह बजे हुए थे.... कुछ समझ नहीं आ रहा था| फिर मैंने दिमाग को थोड़ा शांत किया....तब एक दम बात दिमाग में आई की दिषु के एक चाचा मुंबई में रहते हैं| मैंने तुरंत दिषु को फोन मिलाया....एक बार... दो बार....तीन बार....चार बार.... पांच बार.... पर वो फोन नहीं उठा रह था| मैं गाडी की तरफ भाग और ड्राइविंग सीट पे बैठा और गाडी भगाई|
भौजी: क्या हुआ? आप परेशान लग रहे हो?
मैं: हाँ...वो मेरे कॉलेज का एक दोस्त है...वो बीमार है| तो हम अभी दिषु के घर जा रहे हैं|
भौजी: क्या हुआ आपके दोस्त को?
मैं: Exactly पता नहीं...बस इतना पता है की तबियत खराब है|
भौजी: पर तबियत खराब होने पे आप इतना परेशान क्यों हैं?
मैं: यार....वो.....मेरा जिगरी दोस्त है| आप ऐसा करो ये मेरा फोन ओ और दिषु का नंबर तरय करते रहो| जैसे ही उठाये कहना घर के नीचे मुझे मिले|
भौजी को फोन देने से पहले मैं उसमें से अनिल की कॉल की entry delete का चूका था| भौजी दिषु का नंबर मिलाये जा रहीं थीं और करीब-करीब दस बार मिलाने के बाद उसकी माँ न उठाया| उसकी माँ से क्या बात हुई मुझे नहीं पता मैं ड्राइव कर रहा था और सोह रहा था की घर में कैसे बताऊंगा ये सब? और क्या मैं भौजी के घरवालों को फोन करूँ या नहीं? मुझे बस इतना सुनाई दिया; "आंटी जी दिषु से बात करनी है....मैं उनके दोस्त की भाभी बोल यही हूँ|" और फिर कुछ देर बाद; "दिषु...आपके दोस्त अभी ड्राइव कर रहे हैं और उन्होंने कहा है की आप हमें पांच मिनट में घर के नीचे मिलो...कुछ अर्जेंट काम है|" हम अगले पांच मिनट में दिषु के घर पे थे| भौजी अब भी बैक सीट पर ही बैठी थीं और मैं उत्तर के गाडी के सामने दिषु से बात कर रहा था|
मैं: भाई...तेरी help चाहिए?
दिषु: हाँ..हाँ बोल.... अंदर बैठ के बात करते हैं आजा|
मैं: नहीं यार...इनका (भौजी) का भाई मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में है| इन्हें ये बात मैंने बताई नहीं है...उसका एक्सीडेंट हो गया और को PG डॉक्टर है सुरेन्द्र उसने अनिल को हॉस्पिटल में एडमिट किया है| भाई तू प्लीज अपने चाचा से बात कर ले और उन्हें एक बार चेक करने को भेज दे...कही कोई फुद्दू बना रहा हो| मैं अभी फ्लाइट की टिकट बुक करता हूँ ...और तू कन्फर्म करेगा तो मैं मुम्बई के लिए निकल जाऊँगा| प्लीज यार!
दिषु: रूक एक मिनट|
उसने मेरे साने ही अपने चाचा के लड़के को फोन मिलाया और उसे हॉस्पिटल भेजा| किस्मत से उसके चाचा बांद्रा वेस्ट में ही रहते थे| मैं आधे घंटे तक वहीँ खड़ा रहा उसके साथ और बाउजी गाडी में...वो बाहर निकल के आना चाहती थीं पर मैंने मना कर दिया|
दिषु: तुम दोनों गए कहाँ थे?
मैं: ड्राइव पे
दिषु: और ये गाडी किस की है?
मैं: किराय पे बुक की|
दिषु: अबे साले तेरा दिमाग खराब है...मुझसे चाभी ले लेता?
मैं: यार... अभी वो सब छोड़...तू जरा फोन करके पूछना?
दिषु: करता हूँ|
उसने फोन किया और मैं मन ही मन प्रार्थना कर रह था की कोई फुद्दू बना रहा हो...!!! ये बात जूठी हो !!! पर फोन पे बात करते-करते दिषु गंभीर हो आया मतलब बात serious थी| अभी उसने फ़ोन काटा भी नहीं था और मैंने अपना फोन निकाल के flights चेक करना शुरू कर दिया| सबसे जल्दी की फ्लाइट रात एक बजे की थी|
दिषु: यार बात सच है...मेरा cousin किसी Dr. सुरेन्द्र से मिला ...उसने अनिल से मिलवाया...वो फ़िलहाल होश में है ...उसके सीधे हाथ में fracture है|
मैं: Thanks yaar .... मैंने टिकट बुक कर ली है|
दिषु: सुन...साढ़े गयरह तैयार रहिओ मैं तुझे एयरपोर्ट ड्राप कर दूँगा|
मैं: Thanks भाई!
मैं गाडी में वापस बैठा...और भौजी से क्या बहाना मारूँ सोचने लगा|
भौजी: क्या हुआ? आपका दोस्त ठीक तो है?
मैं: हाँ...वो दरअसल किसी प्रोजेक्ट के लिए आज ही बुला रहा है|
भौजी: प्रोजेक्ट? कैसा प्रोजेक्ट? तो आप परेशान क्यों थे? आप कुछ तो छुपा रहे हो?
मैं: वो...दरअसल उसने किसी कंपनी के लिए ठेका उठाया था...एडवांस पैसे इधर-उधर खर्च कर दिए और अब बीमार पड़ा है| उसे हमारी मदद चाहिए...परसों कंपनी वाले साइट विजिट करे आ रहे हैं और ये बिस्तर से हिल-डुल नहीं सकता| अब अगर मैंने वहां पहुँच के काम शुरू नहीं किया तो ये फंसेगा...कंपनी सीधा केस ठोक देगी| इसलिए आज रात की flight से मुंबई जा रहा हूँ|
भौजी: आज रात की फ्लाइट से? कितने बजे?
मैं: फ्लाइट एक बजे की है| साढ़े गयरह-बारह बजे के around निकलूंगा|
भौजी: ठीक है...आप डिनर करो तब तक मैं आपका सामान पैक कर देती हूँ|
भौजी मेरी बातों से पूरी तरह आश्वस्त थीं| मैं भी हैरान था की मैं इतना बड़ा झूठ कैसे बोल गया| अब ये समझ नहीं आ रह था की घर आके माँ-पिताजी से सच कहूँ या झूठ| घर पहुंचा तो माँ-पिताजी खाने के टेबल पर ही बैठे थे और हमारा इन्तेजार कर रहे थे| मैंने पिताजी को एक मिनट के लिए उनके कमरे में बलाया और उन्हें सब सच बता दिया की अनिल का एक्सीडेंट हो गया है...और मैं रात एक बजे की flight से मुंबई जा रहा हूँ| पिताजी ने मुझे जाने से बिलकुल नहीं रोक और कुछ पैसे कॅश देने लगे| मैंने लेने से मन कर दिया क्योंकि मैं flight में पैसे carry नहीं करना चाहता था| मैंने उन्हें कह दिया की इस बात का जिक्र वो भौजी से बिलकुल ना करें...पहले मैं एक बार सुनिश्चित कर लूँ की सब ठीक है फिर मैं ही उन्हें बता दूँगा| पिताजी को ये बात जचि नहीं पर मेरे रिक्वेस्ट करने पे वो मान गए| परन्तु उन्होंने कह दिया की अगर बात गंभीर निकली तो ना केवल वो भौजी को बताएँगे बल्कि उनके माता-पिता को भी बता देंगे| माँ को भी ये बात पता चल गई और वो तो बताने के लिए आतुर थीं...जो की सही भी था...पर मेरे जोर देने पर वो चुप हो गईं|
मैंने बच्चों को सुलाया और निकलते समय भौजी ने मुझे मेरा ATM Card खुद ही दे दिया| मैंने उनके माथे को चूमा और इतने में दिषु आ चूका था| रास्ते में दिषु ने मुझे बताया की उसके cousin ने हॉस्पिटल में पैसे जमा करा दिए हैं और अब घबराने की कोई बात नहीं है| पर जब तक मैं उसे देख नही लेता दिल को चैन कहाँ पड़ने वाला था| अगले डेढ़ घंटे में मैं मुंबई पहुँच गया और जैसे ही मैं एयरपोर्ट से निकला और टैक्सी ली की भौजी का फोन आगया|
भौजी: जानू...पहुँच गए?
मैं: हाँ जान... बस बीस मिनट हुए|
भौजी: जल्दी काम निपटाना...यहाँ कोई आप का बेसब्री से इन्तेजार कर रहा है|
मैं: जानता हूँ....अच्छा मैं आपको कल सुबह फोन करता हूँ|
भौजी: पहले I Love You कहो?
मैं: I Love You जान!
भौजी: I Love You Toooooooooooooooooooooo ! Muah !!!
एक अनोखा बंधन
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे ....
कुछ देर में हॉस्पिटल पहुँच गए| गेट पे मुझे दिषु का cousin मिल गया| उसने मुझे सब बता दिया और डॉक्टर से भी मिला दिया| मैंने उसे दस हजार दिए जो उसने जमा कराये थे और उसे घर भेज दिया| उसे विदा कर के मैं और डॉक्टर अनिल के कमरे में आये| अनिल सो रहा था पर दरवाजा खुलने की आवाज से उठ बैठा| मैं तेजी से चल के उसके पास पहुँचा, उसने पाँव छूने चाहे पर मैंने उसे रोक दिया|
मैं: ये बता की ये सब हुआ कैसे?
अनिल: जीजू...वो मैं बाइक से जा रहा था....
मैं: बाइक? पर तेरे पास बाइक कैसे आई?
अनिल: जी वो मेरे दोस्त की थी|
मैं: फिर...?
अनिल: इनकी गाडी wrong साइड से आ रही थी और मुझे आ लगी...
मैंने पलट के डॉक्टर की तरफ देखा| सुरेन्द्र घबरा गया और बोला;
सुरेन्द्र: Sorry Sir .... मैंने आप से झूठ कहा...गलती मेरी थी.... मैं फोन पे बात कर रहा था और सामने नहीं देख रहा था ....I'm Sorry ! Please मुझे माफ़ कर दीजिये!!!
मुझे गुस्सा तो बहुत आया...पर फिर खुद को रोक लिया और ये सोचा की अगर ये चाहता तो अनिल को उसी हालत पे मरने को छोड़ जाता और हमें कभी पता ही नहीं चलता| पर अगर ये इंसान अपनी इंसानियत नहीं भुला तो मैं कैसे भूल जाऊँ|
मैं: Calm down ... I'm not gonna file any complaint against you! Relax .... आप चाहते तो इसे वहीँ छोड़ के भाग सकते थे...और मुझे कभी पता भी नहीं चलता...पर ना केवल आपने इसे हॉस्पिटल पहुँचाया बल्कि इसके फोन से मुझे कॉल भी किया और मेरे आने तक इसका पूरा ध्यान रखा| Thank You .... Thank You Very Much !
मैंने उससे हाथ मिलाया तब जा के उसकी घबराहट कम हुई|
मैं: अब आप प्लीज ये बता दो की अनिल को यहाँ कितने दिन रहना है? दरअसल इनकी दीदी नहीं जानती की इनका एक्सीडेंट हुआ है... तो मैं इसे जल्द से जल्द गाँव भेज दूँ जहाँ इसकी देखभाल अच्छे से होगी|
सुरेन्द्र: सर....कल का दिन और रुकना पड़ेगा| कल शाम तक मैं discharge करवा दूँगा|
अनिल: जीजू...मैं गाँव नहीं जा सकता..exams आ रहे हैं| attendance भी short है|
मैं: पर यहाँ तेरा ख्याल कौन रखेगा?
सुरेन्द्र: सर.. If you don’t mind…मैं हॉस्टल में रहता हूँ and I can take good care of him! वैसे भी गलती मेरी ही है|
मैं: Sorry यार I don’t want to trouble you anymore.
अनिल: जीजू...वो.....मेरी grilfreind है...and she can take good care of me!
मैं: अबे साले तूने girlfriend भी बना ली?
अनिल मुस्कुराने लगा|
मैं: कहाँ है वो? मैं जब से आया हूँ मुझे तो दिखी नहीं|
अनिल: वो ... उसे इसका पता नहीं है... वो मेरे ही साथ पढ़ती है! पर प्लीज घर में किसी को कुछ मत बताना|
मैं: ठीक है... पर अभी तू आराम कर सुबह के पाँच बज रहे हैं|
सुरेन्द्र: सर आप मेरे केबिन में आराम करिये|
मैं: No Thanks ! मैं यहीं बैठता हूँ और जरा घर फोन कर दूँ|
अनिल: नहीं जीजू...प्लीज एक्सीडेंट के बारे में किसी को कुछ मत बताना...सब घबरा जायेंगे|
मैं: अरे यार...मेरे माँ-पिताजी को सब पता है और मैं उन्हें तो बात दूँ| वो किसी से नहीं कहेंगे..अब तू सो जा|
अनिल: जी ठीक है!
मैंने पिताजी को फोन कर के सब बताया तो वो उस डॉक्टर पे बहुत गुस्सा हुए, पर फिर मैंने उन्हें समझाया की घबराने की बात नही है...अनिल के सीधे हाथ में फ्रैक्चर हुआ है ... उस डॉक्टर ने इंसानियत दिखाई...और न केवल अनिल को हॉस्पिटल लाया..बल्कि उसे स्पेशल वार्ड में दाखिल कराया और उसका ध्यान वही रख रहा था| तब जाके उनका क्रोध शांत हुआ और मैंने उन्हें बता दिया की मैं एक-दो दिन में आ जाऊँगा| बात खत्म हुई और मैं भी वहीँ सोफे पे बैठ गया और आँख लग गई| सुबह आठ बजे फोन बजा...फोन भौजी का था....उन्हें अब भी बात नहीं पता थी उन्होंने तो फोन इसलिए किया की बच्चे बात करना चाहते थे|
आयुष: हैल्लो पापा...आप मेरे लिए क्या लाओगे?
मैं: आप बोलो बेटा क्या चाहिए आपको?
आयुष: Game ... Assassin's Creed Unity
मैं: बेटा ...वो तो वहां भी मिलेगी...यहाँ से क्या लाऊँ?
आयुष: पता नहीं ...
और पीछे से मुझे नेहा और भौजी के हंसने की आवाज आई| बात हंसने वाली ही थी...आयुष चाहता था की मैं उसके लिए कुछ लाऊँ...पर क्या ये उसे नहीं पता था!!! फिर नेहा से बात हुई तो उसने कहा की उसे कुछ स्पेसल चाहिए....क्या उसने नहीं बताया| अगली बारी भौजी की थी;
भौजी: तो जानू.... कब आ रहे हो?
मैं: बस जान.... एक-दो दिन!
भौजी: आप चूँकि वहां हो तो आप अनिल से मिल लोगे? भाई-दूज के लिए आ जाता तो अच्छा होता? आप उसे साथ ले आओ ना?
मैं: उम्म्म्म ऐसा करता हूँ मैं आपकी बात उससे करा देता हूँ|
भौजी: हाँ दो न उसे फोन?
मैं: Hey ... मैं अपने दोस्त के घर हूँ| अनिल की बगल में नहीं बैठा| मैं उससे आज शाम को मिलूंगा...तब आपकी बात करा दूँगा|
भौजी: ठीक है...और आपका दोस्त कैसा है?
मैं: ठीक है.... ! अच्छा मैं चलता हूँ...बैटरी डिस्चार्ज होने वाली है|
भौजी: ठीक है...लंच में फोन करना|
मैं: Done!
मैं अनिल के कमरे में लौटा तो वो उठ चूका था| मैंने उसे बताया की उसकी दीदी का फोन था;
मैं: तेरी दीदी कह रही है की भाई-दूज के लिए तुझे साथ ले आऊँ?
अनिल: इस हालत में? ना बाबा ना .... आपने दीदी का गुस्सा नहीं देखा! मैं उनसे शाम को बात कर लूँगा|
मैं: तो तूने फोन कर दिया अपनी गर्लफ्रेंड को?
अनिल: हाँ...वो आ रही है| मैं उसके साथ उसके कमरे में ही रुकूँगा?
मैं: अबे...तू कुछ ज्यादा तेज नहीं जा रहा? साले लेटे-लेटे सारा प्लान बना लिया?
अनिल शर्मा गया!
मैं: आय-हाय शर्म देखो लौंडे की ?? (मैं उसे छेड़ रहा था और शर्म से उसके गाल लाल थे|)
अनिल: जीजू...आप भी ना.... खेर छोडो ये सब और आप बताओ की कैसा चल रहा है आपका काम? कब शादी कर रहे हो? (उसने बात बदल दी)
मैं: काम सही चल रहा है.... और शादी....वो जल्दी ही होगी|
अनिल: जल्दी? कब?
मैं: पता चल जायेगा|
अनिल: कौन है लड़की? ये तो बताओ?
मैं: तू मेरी वाली छोड़ और ये बता की इस के साथ तेरा क्या relationship है? Time pass या Serious भी है तू?
अनिल: जी...serious वाला केस है| कोर्स पूरा होते ही शादी कर लूँगा|
मैं: घर वालों को पता है?
अनिल: नहीं...और जानता हूँ वो मानेंगे नहीं...पर देखते हैं की आगे क्या होता है? वैसे भी आप और दीदी तो है ही|
मैं: पागल कहीं का...
इतने में वो लड़की आ गई, जिसकी हम बात कर रहे थे| दिखने में बड़ी सेंसिबल थी| अनिल अब भी मुझे जीजू ही ख रहा था और वो भी यही समझ रही थी की मैं उसका जीजू ही हूँ| डॉक्टर आके अनिल को चेक कर रहे थे तो हम दोनों बहार आ गए| उस लड़की का नाम सुमन था;
मैं: सुमन... If you don’t mind me asking you….ummmm… how’s he in studies?
सुमन: He’s good…. मतलब मेरे से तो अच्छा ही है| मैं इसी से टूशन लेती हूँ|
मैं: I hope he doesn’t drink or do shit like that?
सुमन: Naa…he’s very shy to these things…even I don’t do drinks and all! Ummmm…. (वो कुछ कहना चाहती थी...पर कहते-कहते रूक गई|)
मैं: क्या हुआ? You wanna say something?
सुमन: अम्म्म..actually जीजू.....इसकी थर्ड और फोर्थ सेमेस्टर की फीस पेंडिंग है.... मैंने इसे कहा की मुझसे लेले ...पर माना नहीं...कहता है की घर में कुछ प्रॉब्लम है...तो....
मैं: Fees कैसे जमा होती है?
सुमन: जी चेक से, कॅश से...ड्राफ्ट से ...
मैंने अपनी जेब से चेक-बुक निकाली और कॉलेज का नाम भर के उसे दे दिया| फीस 50,000/- की थी| मुझे देने में जरा भी संकोच नहीं हुआ... जब अनिल का चेकअप हो गया तो हम कमरे में आये और मैंने उसे फीस का चेक दे दिया| वो हैरान हो के मुझे देखने लगा फिर गुस्से से सुमन को देखने लगा|
मैं: Hey .... मैंने उससे पूछा था...वो बता नहीं रही थी...तेरी कसम दी तब बोली| अब उसे घूर मत और इसे संभाल के रख| मैं जरा एकाउंट्स डिपार्टमेंट से होके आया|
मैं एकाउंट्स डिपार्टमेंट पहुँचा तो सुरेन्द्र वहीँ खड़ा था .... उसने बिल सेटल कर दिया था|
सुरेन्द्र: सर आप चाहें तो अभी अनिल को घर ले जा सकते हैं| हाँ बीच-बीच में उसे follow up के लिए आना होगा तो मैंने उसे अपना नंबर दे दिया है..वो मुझसे मिल लेगा और मैं जल्दी से उसका check up करा दूँगा|
मैं: (एकाउंट्स क्लर्क से) ये लीजिये ..(मैंने उन्हें debit card दिया)
क्लर्क: सर पेमेंट तो हो गई...Mr. Surendra ने आपके Behalf पे पेमेंट कर दी|
मैं: What? सुरेन्द्र...ये नहीं चलेगा....
सुरेन्द्र: सर...गलती मेरी थी...मेरी वजह से आप को दिल्ली से यहाँ अचानक आना पड़ा...
मैं: आपने अपनी इंसानियत का फ़र्ज़ पूरा किया और अनिल को हॉस्पिटल तक लाये...उसका इलाज कराया..वो भी मेरी अनुपस्थिति में...मैं नहीं जानता की जब तक मरीज का कोई रिश्तेदार ना हो आपलोग आगे इलाज नहीं करते? प्लीज ...ऐसा मत कीजिये मैं बहुत ही गैरतमंद इंसान हूँ| प्लीज...सुनिए (एकाउंट्स क्लर्क) इनके पैसे वापस कीजिये और पेमेंट इस कार्ड से काटिये| प्लीज!
क्लर्क ने एक नजर सुरेन्द्र को देखा पर सुरेन्द्र के मुख पर कोई भाव नहीं थे... उसने (क्लर्क) ने कॅश पैसे मुझे दिए और कार्ड से पेमेंट काटी| मैंने पैसे सुरेन्द्र को वापस किये...वो ले नहीं रहा था पर मेरी गैरत देख के मान गया|
मैं अनिल को discharge करवा के सुमन के फ्लैट पे ले आया
अनिल: सॉरी जीजू...मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ हुई.... extremely sorry!
मैं: ओ पगले! कोई तकलीफ नहीं हुई....बस कर और आराम कर| तो सुमन...आप ध्यान रख लोगे ना इस का?
सुमन: जीजू आप चिंता ना करें... मैं इनका अच्छे से ध्यान रखूंगी?
मैं: तो फिर मैं आज रात की flight ले लेता हूँ?
सुमन: अरे जीजू...आज तो मिलु हूँ आपसे... आजतक ये बताता ही था आपके बारे में...कुछ दिन तो रहो| कुछ घूमते-फिरते...!!
मैं: मैं यहाँ ये सोच के आया था की इसे गाँव छोड़ दूँगा...पर ये तुम्हारे पास रहना चाहता है| किसी को "तकलीफ" नहीं देना चाहता| बहाना अच्छा मारा था! खेर...अब तुम हो ही इसका ध्यान रखने...मैं चलता हूँ...वहां सब काम छोड़ के यहाँ भागा आया था| रही घूमने-फिरने की बात तो..... अगली बार ...और शायद मेरे साथ इसकी दीदी भी हों...!!!
बात खत्म करके मैं फ्रेश हुआ, टिकट बुक की...और चाय पी|
मैं: ओह...यार तू पहले अपनी दीदी से बात कर ले... (मैंने उसे भौजी का नंबर मिला के दिया|)
दोनों ने बात की और भौजी को अभी तक कुछ पता नहीं था| मैंने रात की फ्लाइट पकड़ी और बारह बजे तक घर पहुँच गया| बारह बजे तक बच्चे जाग ही रहे थे| मैं अपने कमरे में दाखिल हुआ तो देखा दोनों जागे हुए थे और पलंग के ऊपर खड़े हुए और मेरी तरफ लपके| मैंने दोनों को गले लगा लिया|
मैं: okay ..okay ... आपके लिए मैं स्पेशल gifts लाया हूँ| नेहा के लिए जो गिफ्ट है वो बाहर हॉल में है|
(नेहा बाहर हॉल की तरफ भागी| वो अपना गिफ्ट उठा के अंदर लाई| ये 30 inch का टेडी बेयर था!)
मैं: अब बारी है आयसुह की....तो ...आपके लिए मैं लाया हूँ Hot Wheels का Track set !
(वो भी अप गिफ्ट देख के खुश उअ और उसे खोल के tracks को सेट करने लगा|
भौजी: हे राम! आप ना....कभी नहीं सुधरोगे?
मैं: Oh Comeon यार!
भौजी: और मेरे लिए?
मैं: oops !!!
भौजी: कोई बात नहीं...आप आ गए..वही काफी है|
मैं: Sorry! जरा एक ग्लास पानी लाना|
भौजी पानी लेने गईं इतने में मैंने उनका एक गिफ्ट छुपा दिया| जब वो वापस आइन तब मैं उनहीं उनका दूसरा गिफ्ट दिया;
मैं: Here you go .... Handmade Chocolates for my beautiful wife!
भौजी: जानती थी...आप कुछ न कुछ लाये जर्रूर होगे|
फिर मैं माँ-पिताजी के कमरे में गया और उनके लिए कुछ gifts लाया था जो उन्हें दिए| पिताजी के लिए कोल्हापुरी चप्पल और माँ के लिए पश्मीना शाल!
पिताजी: बहु तुम जाके सो जाओ...मैं जरा इससे कुछ काम की बात कर लूँ|
भौजी चली गईं|
पिताजी: हाँ...तू बता...अब कैसा है अनिल?
मैं: जी plaster चढ़ा है...और उसके कॉलेज के दोस्त हैं तो उसका ख्याल वही रखेंगे| वो नहीं चाहता की गाँव में ये बात पता चले तो आप प्लीज कुछ मत कहना| अगर कल को बात खुली भी तो कह देना मैंने आपको कुछ नहीं बताया|
पिताजी: पर आखिर क्यों? गाँव जाता तो उसका ख्याल अच्छे से रखते सब|
मैं: उसके अटेंडेंस short है...लेक्टुरेस बाकी है...कह रहा था manage कर लेगा|
पिताजी: ठीक है जैसे तू कहे|
मैंने एक बात नोट की, जब से पिताजी गाँव से लौटे थे उनका मेरे प्रति थोड़ा झुकाव हो गया था| क्यों, ये मैं नहीं जानता था| खेर मैं भी अपने कमरे में आगया और बच्चों को बड़ी मुश्किल से सुकया| नेहा तो मान गई सोने के लिए पर आयुष...आयुष..जब तक ओ track set जोड़ नहीं लेता वो सोने वाला नहीं था| मैं भी उसके साथ track set जोड़ने लग गया और ट्रैक सेट जुड़ने के बाद उसने लांचर से कार चलाई तब जाके वो सोया| अगली सुबह.... एक नई खबर से शुरू हुई| खबर ये की समधी जी मतलब भौजी के पिताजी अगले हफ्ते आ रहे हैं| मैंने मन ही मन सोचा की चलो इसी बहाने मैं उसने भी बात कर लूँगा| पर पहले....पहले मुझे पिताजी से बात करनी थी| वो बात जो इतने सालों से मेरे मन में दबी हुई थी!
सुबह नाश्ता करने के बाद मैं और पिताजी डाइनिंग टेबल पे बैठे थे, बच्चे अंदर खेल रहे थे और माँ और भौजी किचन पे काम कर रहे थे| यही समय था उनसे बात करने का....पर ये समझ नहीं आ रहा था की की शुरू कैसे करूँ? शब्दों का चयन करने में समय बहुत लग रहा था ...और समय हाथ से फिसल रहा था| आखिर मैंने दृढ निश्चय किया की मैं आज बात कर के रहूँगा|
मैं: अ.आआ... पिताजी....मुझे आपसे और माँ से कुछ बात करनी है|
पिताजी: हाँ हाँ बोल?
मैं: माँ...आप भी प्लीज बैठ जाओ इधर| (मेरी आवाज गंभीर हो चली थी|) और आप (भौजी) प्लीज अंदर चले जाओ|
माँकुर्सी पे बैठते हुए) क्यों...?
मैं: माँ....बात कुछ ऐसी है|
भौजी समझ चुकी थीं ...और वो चुपचाप अंदर चली गईं| नजाने मुझे क्यों लगा की वो हमारी बातें सुन रही हैं!
मैं: (एक गहरी साँस लेटे हुए) पिताजी...आज मैं आपको जो बात कहने जा रहा हूँ...वो मेरे अंदर बहत दिनों से दबी हुई थी...आपसे बस एक गुजारिश है| जानता हूँ की ये बात सुन के आपको बहुत गुस्सा आएगा...पर प्लीज...प्लीज एक बार मेरी बात पूरी सुन लेना..और अंत में जो आप कहंगे वही होगा| (मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और अपनी बात आगे कही|) मैं संगीता(भौजी का नाम) से प्यार करता हूँ!
ये सुन के पिताजी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया|
मैं: ये सब तब शुरू हुआ जब हम गाँव गए थे| हम दोनों बहुत नजदीक आ गए| वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती हैं...जितना मैं उनसे! आयुष................आयुष मेरा बेटा है!
पिताजी का सब्र टूट गया और वो जोर से बोले;
पिताजी: क्या? ये क्या बकवास कर रहा है तू? होश में भी है?
मैं: प्लीज...पिताजी...मेरी पूरी बात सुन लीजिये| पिताजी: बात सुन लूँ? अब बचा क्या है सुनने को? देख लो अपने पुत्तर की करतूत|
मैं: पिताजी...मैं ...संगीता से शादी करना चाहता हूँ! (मैंने एक दम से अपनी बात उनके सामने रख दी|)
पिताजी: मैं तेरी टांगें तोड़ दूँगा आगे बकवास की तो!! होश है क्या कह रहा है? वो पहले से शादी शुदा है...उसका परिवार है...तू क्यों उसके जीवन में आग लगा रहा है?
मैं: तोड़ दो मेरी टांगें...खून कर दो मेरा...पर मैं उनके बिना नहीं जी सकता| वो भी मुझसे प्यार करती हैं.... उनके पेट में हमारा बच्चा है....और जिस शादी की आप बात कर रहे हो...उसे उन्होंने कभी शादी माना ही नहीं| चन्दर भैया के बारे में आप सब जानते हो...शादी से पहले से ही उनके क्या हाल थे.... उन्होंने भौजी की बहन के साथ भी वो किया...जो उन्हें नहीं करना चाइये ...इसीलिए तो वो उन्हें खुद को छूने तक नहीं देती|
पिताजी ने तड़ाक से एक झापड़ मुझे रसीद किया|
पिताजी: तू इतना नामाकूल हो गया की ऐसी गन्दी बातें करता है? यही शिक्षा दी थी मैंने तुझे?
इतने में संगीता (भौजी) की रोती हुई आवाज आई|
संगीता: नहीं पिताजी...ये सच कह रहे हैं|
पिताजी: तू बीच में मत पद बहु...ये तुझे बरगला रहा है| पागल हो गया है ये !!! बच्चों के प्यार में आके ये ऐसा कह रहा है! बहुत प्यार करता है ना ये बच्चों से...ये भी भूल गया की जिसे ये भौजी कहता था उसी के बारे में....छी....छी....छी....
मैं: आपने कभी गोर नहीं किया...मैंने इन्हें भौजी कहना कब का छोड़ दिया| कल रात भी तो मैं इन्हें आप ही कहा रह था ना?
पिताजी ने एक और झापड़ रसीद किया|
अब आगे ....
कुछ देर में हॉस्पिटल पहुँच गए| गेट पे मुझे दिषु का cousin मिल गया| उसने मुझे सब बता दिया और डॉक्टर से भी मिला दिया| मैंने उसे दस हजार दिए जो उसने जमा कराये थे और उसे घर भेज दिया| उसे विदा कर के मैं और डॉक्टर अनिल के कमरे में आये| अनिल सो रहा था पर दरवाजा खुलने की आवाज से उठ बैठा| मैं तेजी से चल के उसके पास पहुँचा, उसने पाँव छूने चाहे पर मैंने उसे रोक दिया|
मैं: ये बता की ये सब हुआ कैसे?
अनिल: जीजू...वो मैं बाइक से जा रहा था....
मैं: बाइक? पर तेरे पास बाइक कैसे आई?
अनिल: जी वो मेरे दोस्त की थी|
मैं: फिर...?
अनिल: इनकी गाडी wrong साइड से आ रही थी और मुझे आ लगी...
मैंने पलट के डॉक्टर की तरफ देखा| सुरेन्द्र घबरा गया और बोला;
सुरेन्द्र: Sorry Sir .... मैंने आप से झूठ कहा...गलती मेरी थी.... मैं फोन पे बात कर रहा था और सामने नहीं देख रहा था ....I'm Sorry ! Please मुझे माफ़ कर दीजिये!!!
मुझे गुस्सा तो बहुत आया...पर फिर खुद को रोक लिया और ये सोचा की अगर ये चाहता तो अनिल को उसी हालत पे मरने को छोड़ जाता और हमें कभी पता ही नहीं चलता| पर अगर ये इंसान अपनी इंसानियत नहीं भुला तो मैं कैसे भूल जाऊँ|
मैं: Calm down ... I'm not gonna file any complaint against you! Relax .... आप चाहते तो इसे वहीँ छोड़ के भाग सकते थे...और मुझे कभी पता भी नहीं चलता...पर ना केवल आपने इसे हॉस्पिटल पहुँचाया बल्कि इसके फोन से मुझे कॉल भी किया और मेरे आने तक इसका पूरा ध्यान रखा| Thank You .... Thank You Very Much !
मैंने उससे हाथ मिलाया तब जा के उसकी घबराहट कम हुई|
मैं: अब आप प्लीज ये बता दो की अनिल को यहाँ कितने दिन रहना है? दरअसल इनकी दीदी नहीं जानती की इनका एक्सीडेंट हुआ है... तो मैं इसे जल्द से जल्द गाँव भेज दूँ जहाँ इसकी देखभाल अच्छे से होगी|
सुरेन्द्र: सर....कल का दिन और रुकना पड़ेगा| कल शाम तक मैं discharge करवा दूँगा|
अनिल: जीजू...मैं गाँव नहीं जा सकता..exams आ रहे हैं| attendance भी short है|
मैं: पर यहाँ तेरा ख्याल कौन रखेगा?
सुरेन्द्र: सर.. If you don’t mind…मैं हॉस्टल में रहता हूँ and I can take good care of him! वैसे भी गलती मेरी ही है|
मैं: Sorry यार I don’t want to trouble you anymore.
अनिल: जीजू...वो.....मेरी grilfreind है...and she can take good care of me!
मैं: अबे साले तूने girlfriend भी बना ली?
अनिल मुस्कुराने लगा|
मैं: कहाँ है वो? मैं जब से आया हूँ मुझे तो दिखी नहीं|
अनिल: वो ... उसे इसका पता नहीं है... वो मेरे ही साथ पढ़ती है! पर प्लीज घर में किसी को कुछ मत बताना|
मैं: ठीक है... पर अभी तू आराम कर सुबह के पाँच बज रहे हैं|
सुरेन्द्र: सर आप मेरे केबिन में आराम करिये|
मैं: No Thanks ! मैं यहीं बैठता हूँ और जरा घर फोन कर दूँ|
अनिल: नहीं जीजू...प्लीज एक्सीडेंट के बारे में किसी को कुछ मत बताना...सब घबरा जायेंगे|
मैं: अरे यार...मेरे माँ-पिताजी को सब पता है और मैं उन्हें तो बात दूँ| वो किसी से नहीं कहेंगे..अब तू सो जा|
अनिल: जी ठीक है!
मैंने पिताजी को फोन कर के सब बताया तो वो उस डॉक्टर पे बहुत गुस्सा हुए, पर फिर मैंने उन्हें समझाया की घबराने की बात नही है...अनिल के सीधे हाथ में फ्रैक्चर हुआ है ... उस डॉक्टर ने इंसानियत दिखाई...और न केवल अनिल को हॉस्पिटल लाया..बल्कि उसे स्पेशल वार्ड में दाखिल कराया और उसका ध्यान वही रख रहा था| तब जाके उनका क्रोध शांत हुआ और मैंने उन्हें बता दिया की मैं एक-दो दिन में आ जाऊँगा| बात खत्म हुई और मैं भी वहीँ सोफे पे बैठ गया और आँख लग गई| सुबह आठ बजे फोन बजा...फोन भौजी का था....उन्हें अब भी बात नहीं पता थी उन्होंने तो फोन इसलिए किया की बच्चे बात करना चाहते थे|
आयुष: हैल्लो पापा...आप मेरे लिए क्या लाओगे?
मैं: आप बोलो बेटा क्या चाहिए आपको?
आयुष: Game ... Assassin's Creed Unity
मैं: बेटा ...वो तो वहां भी मिलेगी...यहाँ से क्या लाऊँ?
आयुष: पता नहीं ...
और पीछे से मुझे नेहा और भौजी के हंसने की आवाज आई| बात हंसने वाली ही थी...आयुष चाहता था की मैं उसके लिए कुछ लाऊँ...पर क्या ये उसे नहीं पता था!!! फिर नेहा से बात हुई तो उसने कहा की उसे कुछ स्पेसल चाहिए....क्या उसने नहीं बताया| अगली बारी भौजी की थी;
भौजी: तो जानू.... कब आ रहे हो?
मैं: बस जान.... एक-दो दिन!
भौजी: आप चूँकि वहां हो तो आप अनिल से मिल लोगे? भाई-दूज के लिए आ जाता तो अच्छा होता? आप उसे साथ ले आओ ना?
मैं: उम्म्म्म ऐसा करता हूँ मैं आपकी बात उससे करा देता हूँ|
भौजी: हाँ दो न उसे फोन?
मैं: Hey ... मैं अपने दोस्त के घर हूँ| अनिल की बगल में नहीं बैठा| मैं उससे आज शाम को मिलूंगा...तब आपकी बात करा दूँगा|
भौजी: ठीक है...और आपका दोस्त कैसा है?
मैं: ठीक है.... ! अच्छा मैं चलता हूँ...बैटरी डिस्चार्ज होने वाली है|
भौजी: ठीक है...लंच में फोन करना|
मैं: Done!
मैं अनिल के कमरे में लौटा तो वो उठ चूका था| मैंने उसे बताया की उसकी दीदी का फोन था;
मैं: तेरी दीदी कह रही है की भाई-दूज के लिए तुझे साथ ले आऊँ?
अनिल: इस हालत में? ना बाबा ना .... आपने दीदी का गुस्सा नहीं देखा! मैं उनसे शाम को बात कर लूँगा|
मैं: तो तूने फोन कर दिया अपनी गर्लफ्रेंड को?
अनिल: हाँ...वो आ रही है| मैं उसके साथ उसके कमरे में ही रुकूँगा?
मैं: अबे...तू कुछ ज्यादा तेज नहीं जा रहा? साले लेटे-लेटे सारा प्लान बना लिया?
अनिल शर्मा गया!
मैं: आय-हाय शर्म देखो लौंडे की ?? (मैं उसे छेड़ रहा था और शर्म से उसके गाल लाल थे|)
अनिल: जीजू...आप भी ना.... खेर छोडो ये सब और आप बताओ की कैसा चल रहा है आपका काम? कब शादी कर रहे हो? (उसने बात बदल दी)
मैं: काम सही चल रहा है.... और शादी....वो जल्दी ही होगी|
अनिल: जल्दी? कब?
मैं: पता चल जायेगा|
अनिल: कौन है लड़की? ये तो बताओ?
मैं: तू मेरी वाली छोड़ और ये बता की इस के साथ तेरा क्या relationship है? Time pass या Serious भी है तू?
अनिल: जी...serious वाला केस है| कोर्स पूरा होते ही शादी कर लूँगा|
मैं: घर वालों को पता है?
अनिल: नहीं...और जानता हूँ वो मानेंगे नहीं...पर देखते हैं की आगे क्या होता है? वैसे भी आप और दीदी तो है ही|
मैं: पागल कहीं का...
इतने में वो लड़की आ गई, जिसकी हम बात कर रहे थे| दिखने में बड़ी सेंसिबल थी| अनिल अब भी मुझे जीजू ही ख रहा था और वो भी यही समझ रही थी की मैं उसका जीजू ही हूँ| डॉक्टर आके अनिल को चेक कर रहे थे तो हम दोनों बहार आ गए| उस लड़की का नाम सुमन था;
मैं: सुमन... If you don’t mind me asking you….ummmm… how’s he in studies?
सुमन: He’s good…. मतलब मेरे से तो अच्छा ही है| मैं इसी से टूशन लेती हूँ|
मैं: I hope he doesn’t drink or do shit like that?
सुमन: Naa…he’s very shy to these things…even I don’t do drinks and all! Ummmm…. (वो कुछ कहना चाहती थी...पर कहते-कहते रूक गई|)
मैं: क्या हुआ? You wanna say something?
सुमन: अम्म्म..actually जीजू.....इसकी थर्ड और फोर्थ सेमेस्टर की फीस पेंडिंग है.... मैंने इसे कहा की मुझसे लेले ...पर माना नहीं...कहता है की घर में कुछ प्रॉब्लम है...तो....
मैं: Fees कैसे जमा होती है?
सुमन: जी चेक से, कॅश से...ड्राफ्ट से ...
मैंने अपनी जेब से चेक-बुक निकाली और कॉलेज का नाम भर के उसे दे दिया| फीस 50,000/- की थी| मुझे देने में जरा भी संकोच नहीं हुआ... जब अनिल का चेकअप हो गया तो हम कमरे में आये और मैंने उसे फीस का चेक दे दिया| वो हैरान हो के मुझे देखने लगा फिर गुस्से से सुमन को देखने लगा|
मैं: Hey .... मैंने उससे पूछा था...वो बता नहीं रही थी...तेरी कसम दी तब बोली| अब उसे घूर मत और इसे संभाल के रख| मैं जरा एकाउंट्स डिपार्टमेंट से होके आया|
मैं एकाउंट्स डिपार्टमेंट पहुँचा तो सुरेन्द्र वहीँ खड़ा था .... उसने बिल सेटल कर दिया था|
सुरेन्द्र: सर आप चाहें तो अभी अनिल को घर ले जा सकते हैं| हाँ बीच-बीच में उसे follow up के लिए आना होगा तो मैंने उसे अपना नंबर दे दिया है..वो मुझसे मिल लेगा और मैं जल्दी से उसका check up करा दूँगा|
मैं: (एकाउंट्स क्लर्क से) ये लीजिये ..(मैंने उन्हें debit card दिया)
क्लर्क: सर पेमेंट तो हो गई...Mr. Surendra ने आपके Behalf पे पेमेंट कर दी|
मैं: What? सुरेन्द्र...ये नहीं चलेगा....
सुरेन्द्र: सर...गलती मेरी थी...मेरी वजह से आप को दिल्ली से यहाँ अचानक आना पड़ा...
मैं: आपने अपनी इंसानियत का फ़र्ज़ पूरा किया और अनिल को हॉस्पिटल तक लाये...उसका इलाज कराया..वो भी मेरी अनुपस्थिति में...मैं नहीं जानता की जब तक मरीज का कोई रिश्तेदार ना हो आपलोग आगे इलाज नहीं करते? प्लीज ...ऐसा मत कीजिये मैं बहुत ही गैरतमंद इंसान हूँ| प्लीज...सुनिए (एकाउंट्स क्लर्क) इनके पैसे वापस कीजिये और पेमेंट इस कार्ड से काटिये| प्लीज!
क्लर्क ने एक नजर सुरेन्द्र को देखा पर सुरेन्द्र के मुख पर कोई भाव नहीं थे... उसने (क्लर्क) ने कॅश पैसे मुझे दिए और कार्ड से पेमेंट काटी| मैंने पैसे सुरेन्द्र को वापस किये...वो ले नहीं रहा था पर मेरी गैरत देख के मान गया|
मैं अनिल को discharge करवा के सुमन के फ्लैट पे ले आया
अनिल: सॉरी जीजू...मेरी वजह से आपको इतनी तकलीफ हुई.... extremely sorry!
मैं: ओ पगले! कोई तकलीफ नहीं हुई....बस कर और आराम कर| तो सुमन...आप ध्यान रख लोगे ना इस का?
सुमन: जीजू आप चिंता ना करें... मैं इनका अच्छे से ध्यान रखूंगी?
मैं: तो फिर मैं आज रात की flight ले लेता हूँ?
सुमन: अरे जीजू...आज तो मिलु हूँ आपसे... आजतक ये बताता ही था आपके बारे में...कुछ दिन तो रहो| कुछ घूमते-फिरते...!!
मैं: मैं यहाँ ये सोच के आया था की इसे गाँव छोड़ दूँगा...पर ये तुम्हारे पास रहना चाहता है| किसी को "तकलीफ" नहीं देना चाहता| बहाना अच्छा मारा था! खेर...अब तुम हो ही इसका ध्यान रखने...मैं चलता हूँ...वहां सब काम छोड़ के यहाँ भागा आया था| रही घूमने-फिरने की बात तो..... अगली बार ...और शायद मेरे साथ इसकी दीदी भी हों...!!!
बात खत्म करके मैं फ्रेश हुआ, टिकट बुक की...और चाय पी|
मैं: ओह...यार तू पहले अपनी दीदी से बात कर ले... (मैंने उसे भौजी का नंबर मिला के दिया|)
दोनों ने बात की और भौजी को अभी तक कुछ पता नहीं था| मैंने रात की फ्लाइट पकड़ी और बारह बजे तक घर पहुँच गया| बारह बजे तक बच्चे जाग ही रहे थे| मैं अपने कमरे में दाखिल हुआ तो देखा दोनों जागे हुए थे और पलंग के ऊपर खड़े हुए और मेरी तरफ लपके| मैंने दोनों को गले लगा लिया|
मैं: okay ..okay ... आपके लिए मैं स्पेशल gifts लाया हूँ| नेहा के लिए जो गिफ्ट है वो बाहर हॉल में है|
(नेहा बाहर हॉल की तरफ भागी| वो अपना गिफ्ट उठा के अंदर लाई| ये 30 inch का टेडी बेयर था!)
मैं: अब बारी है आयसुह की....तो ...आपके लिए मैं लाया हूँ Hot Wheels का Track set !
(वो भी अप गिफ्ट देख के खुश उअ और उसे खोल के tracks को सेट करने लगा|
भौजी: हे राम! आप ना....कभी नहीं सुधरोगे?
मैं: Oh Comeon यार!
भौजी: और मेरे लिए?
मैं: oops !!!
भौजी: कोई बात नहीं...आप आ गए..वही काफी है|
मैं: Sorry! जरा एक ग्लास पानी लाना|
भौजी पानी लेने गईं इतने में मैंने उनका एक गिफ्ट छुपा दिया| जब वो वापस आइन तब मैं उनहीं उनका दूसरा गिफ्ट दिया;
मैं: Here you go .... Handmade Chocolates for my beautiful wife!
भौजी: जानती थी...आप कुछ न कुछ लाये जर्रूर होगे|
फिर मैं माँ-पिताजी के कमरे में गया और उनके लिए कुछ gifts लाया था जो उन्हें दिए| पिताजी के लिए कोल्हापुरी चप्पल और माँ के लिए पश्मीना शाल!
पिताजी: बहु तुम जाके सो जाओ...मैं जरा इससे कुछ काम की बात कर लूँ|
भौजी चली गईं|
पिताजी: हाँ...तू बता...अब कैसा है अनिल?
मैं: जी plaster चढ़ा है...और उसके कॉलेज के दोस्त हैं तो उसका ख्याल वही रखेंगे| वो नहीं चाहता की गाँव में ये बात पता चले तो आप प्लीज कुछ मत कहना| अगर कल को बात खुली भी तो कह देना मैंने आपको कुछ नहीं बताया|
पिताजी: पर आखिर क्यों? गाँव जाता तो उसका ख्याल अच्छे से रखते सब|
मैं: उसके अटेंडेंस short है...लेक्टुरेस बाकी है...कह रहा था manage कर लेगा|
पिताजी: ठीक है जैसे तू कहे|
मैंने एक बात नोट की, जब से पिताजी गाँव से लौटे थे उनका मेरे प्रति थोड़ा झुकाव हो गया था| क्यों, ये मैं नहीं जानता था| खेर मैं भी अपने कमरे में आगया और बच्चों को बड़ी मुश्किल से सुकया| नेहा तो मान गई सोने के लिए पर आयुष...आयुष..जब तक ओ track set जोड़ नहीं लेता वो सोने वाला नहीं था| मैं भी उसके साथ track set जोड़ने लग गया और ट्रैक सेट जुड़ने के बाद उसने लांचर से कार चलाई तब जाके वो सोया| अगली सुबह.... एक नई खबर से शुरू हुई| खबर ये की समधी जी मतलब भौजी के पिताजी अगले हफ्ते आ रहे हैं| मैंने मन ही मन सोचा की चलो इसी बहाने मैं उसने भी बात कर लूँगा| पर पहले....पहले मुझे पिताजी से बात करनी थी| वो बात जो इतने सालों से मेरे मन में दबी हुई थी!
सुबह नाश्ता करने के बाद मैं और पिताजी डाइनिंग टेबल पे बैठे थे, बच्चे अंदर खेल रहे थे और माँ और भौजी किचन पे काम कर रहे थे| यही समय था उनसे बात करने का....पर ये समझ नहीं आ रहा था की की शुरू कैसे करूँ? शब्दों का चयन करने में समय बहुत लग रहा था ...और समय हाथ से फिसल रहा था| आखिर मैंने दृढ निश्चय किया की मैं आज बात कर के रहूँगा|
मैं: अ.आआ... पिताजी....मुझे आपसे और माँ से कुछ बात करनी है|
पिताजी: हाँ हाँ बोल?
मैं: माँ...आप भी प्लीज बैठ जाओ इधर| (मेरी आवाज गंभीर हो चली थी|) और आप (भौजी) प्लीज अंदर चले जाओ|
माँकुर्सी पे बैठते हुए) क्यों...?
मैं: माँ....बात कुछ ऐसी है|
भौजी समझ चुकी थीं ...और वो चुपचाप अंदर चली गईं| नजाने मुझे क्यों लगा की वो हमारी बातें सुन रही हैं!
मैं: (एक गहरी साँस लेटे हुए) पिताजी...आज मैं आपको जो बात कहने जा रहा हूँ...वो मेरे अंदर बहत दिनों से दबी हुई थी...आपसे बस एक गुजारिश है| जानता हूँ की ये बात सुन के आपको बहुत गुस्सा आएगा...पर प्लीज...प्लीज एक बार मेरी बात पूरी सुन लेना..और अंत में जो आप कहंगे वही होगा| (मैंने एक गहरी साँस छोड़ी और अपनी बात आगे कही|) मैं संगीता(भौजी का नाम) से प्यार करता हूँ!
ये सुन के पिताजी का चेहरा गुस्से से तमतमा गया|
मैं: ये सब तब शुरू हुआ जब हम गाँव गए थे| हम दोनों बहुत नजदीक आ गए| वो भी मुझसे उतना ही प्यार करती हैं...जितना मैं उनसे! आयुष................आयुष मेरा बेटा है!
पिताजी का सब्र टूट गया और वो जोर से बोले;
पिताजी: क्या? ये क्या बकवास कर रहा है तू? होश में भी है?
मैं: प्लीज...पिताजी...मेरी पूरी बात सुन लीजिये| पिताजी: बात सुन लूँ? अब बचा क्या है सुनने को? देख लो अपने पुत्तर की करतूत|
मैं: पिताजी...मैं ...संगीता से शादी करना चाहता हूँ! (मैंने एक दम से अपनी बात उनके सामने रख दी|)
पिताजी: मैं तेरी टांगें तोड़ दूँगा आगे बकवास की तो!! होश है क्या कह रहा है? वो पहले से शादी शुदा है...उसका परिवार है...तू क्यों उसके जीवन में आग लगा रहा है?
मैं: तोड़ दो मेरी टांगें...खून कर दो मेरा...पर मैं उनके बिना नहीं जी सकता| वो भी मुझसे प्यार करती हैं.... उनके पेट में हमारा बच्चा है....और जिस शादी की आप बात कर रहे हो...उसे उन्होंने कभी शादी माना ही नहीं| चन्दर भैया के बारे में आप सब जानते हो...शादी से पहले से ही उनके क्या हाल थे.... उन्होंने भौजी की बहन के साथ भी वो किया...जो उन्हें नहीं करना चाइये ...इसीलिए तो वो उन्हें खुद को छूने तक नहीं देती|
पिताजी ने तड़ाक से एक झापड़ मुझे रसीद किया|
पिताजी: तू इतना नामाकूल हो गया की ऐसी गन्दी बातें करता है? यही शिक्षा दी थी मैंने तुझे?
इतने में संगीता (भौजी) की रोती हुई आवाज आई|
संगीता: नहीं पिताजी...ये सच कह रहे हैं|
पिताजी: तू बीच में मत पद बहु...ये तुझे बरगला रहा है| पागल हो गया है ये !!! बच्चों के प्यार में आके ये ऐसा कह रहा है! बहुत प्यार करता है ना ये बच्चों से...ये भी भूल गया की जिसे ये भौजी कहता था उसी के बारे में....छी....छी....छी....
मैं: आपने कभी गोर नहीं किया...मैंने इन्हें भौजी कहना कब का छोड़ दिया| कल रात भी तो मैं इन्हें आप ही कहा रह था ना?
पिताजी ने एक और झापड़ रसीद किया|
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Re: एक अनोखा बंधन
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अब आगे ....
पिताजी: चुप कर!
संगीता: प्लीज पिताजी.....
मैं: मैं इनके बिना नहीं जी सकता| जानता था की आप कभी नहीं मानोगे...फिर भी ...फिर भी आपसे सच कहने की हिम्मत जुटाई| प्लीज ...पिताजी...ये उस इंसान के साथनहीं रहना चाहतीं और अब मैं इनके बिना नहीं जी सकता.... आप अगर जबर्द्द्स्ती मेरी शादी किसी और से भी करा दोगे तो मैं उस लड़की को कभी प्यार नहीं कर पाउँगा| सात साल इनके बिना मैंने कैसे काटे हैं...ये अप माँ से पूछ लो...मैं कितना तनहा महसूस करता था...गुम-सुम रहता था...माँ से पूछो...उन्हें सब पता है| कितनी बार उन्होंने मुझे दिलासा दिया...और वो भी जानती हैं की मैं संगीता से emotionally attached हूँ! कोई फायदा नहीं होगा? प्लीज?
पिताजी अब हार मानने लगे थे....गुस्से से तो वो मुझे काबू नहीं कर पाये...इधर माँ बिलख-बिलख के रो रही थीं|
मैं: माँ...प्लीज...आप तो...
माँ: मत कह मुझे माँ....तूने....तूने ये क्या किया?
पिताजी: बेटा...तू जो कह रहा है वो नहीं हो सकता| समाज क्या कहेगा? बिरादरी में हमारा हुक्का-पानी बंद हो जाएगा...संगीता के घर वाले कभी नहीं मानेंगे?...मेरे अड़े भाई...वो कभी नहीं मानेंगे? सब खत्म हो जायेगा बेटा!!! सब खत्म ....
मैं: आपकी और माँ की भी लव मैरिज थी ना? आपके भाई ने उसे तक नहीं माना था...पर धीरे-धीरे सब ठीक हो गया ना?
पिताजी: बेटा वो अलग बात थी...ये अलग है? तुम दोनों ये भी तो देखो की तुम्हारी उम्र क्या है?
मैं: पिताजी...जब मुझे इनसे प्यार हुआ तब मुझे इनकी उम्र नहीं दिखी.... आप वो देख रहे हो की ...की दुनिया क्या कहेगी? आप ये नहीं देख रहे की मेरी ख़ुशी किस्में है? क्या आपको मेरी ख़ुशी जरा भी नहीं प्यारी? क्या आपके लिए सिर्फ दुनियादारी ही सब कुछ है? कल को आप मेरी शादी किसी अनजान लड़की से करा दोगे....जिसको मैं नहीं जानता| शादी के बाद वो क्या करेगी किसी को नहीं पता? हो सकता है मुझे आपसे अलग कर दे...या मुझे उसे divorce देना पड़े? पर दूसरी तरफ ये (संगीता) हैं... आप इन्हें जानते हो...पहचानते हो... ये कितना ख्याल रखती हैं आप लोगों का...माँ ...आप तो इन्हीें अपनी बहु की तरह प्यार करते हो! उस दिन जब मैंने इन्हें आपकी गोद में सर रखे देखा तो मैं बता नहीं सकता मुझे कितनी ख़ुशी हुई| आप लोगों को तो ये भी नहीं पता की एक पल के लिए मेरे मन में ख्याल आया था की मैं इन्हें भगा के ले जाऊँ... पर आप जानते हो इन्होने क्या कहा; "मैं नहीं चाहती आप मेरी वजह से अपने माँ-पिताजी को छोडो..मैं रह लुंगी उस इंसान के साथ|" आप ही बताओ कौन कहता है इतना? प्लीज पिताजी...प्लीज....एक बार आप दोनों ठन्डे दिमाग से सोचो की क्या ये मेरी पत्नी के रूप में ठीक नहीं हैं? रही दुनिया की बात तो वो तो हमेशा कुछ न कुछ कहेंगे ही? शादी के बाद लड़की मुझे आप से अलग कर दे तो भी और ना करे तो भी? मैं आप लोगों को धमका नहीं रहा...बस अपनी बात रख रहा हूँ| प्लीज पिताजी...हमें अलग मत करिये....हम जी नहीं पाएंगे|
पिताजी: पर ..पर ये सब होगा कैसे? क्या तू सब को बिना बताये?
मैं: नहीं पिताजी...मैं कोई पाप नहीं कर रहा जो सब से छुपाऊँ.... अगले हफ्ते इनके पिताजी आ रहे हैं| मैं खुद उन से बात करूँगा...फिर बड़के दादा से भी मैं ही बात करूँगा| आप बस अपना फैसला सुनाइए?
पिताजी ने माँ की तरफ देखा और माँ का रोना अब बंद हो चूका था...फिर माँ खुद बोलीं;
माँ: बहु....इधर आ...मेरे पास बैठ|
भौजी उनके पास कुर्सी पे बैठ गईं और देखते ही देखते उन्होंने संगीता को गले लगा लिया|
पिताजी: देख बेटा....हमारे लिए बस तू ही एक जीने का सहारा है.... अब अगर तू ही हम से दूर हो गया तो हम कैसे जिन्दा रहेंगे? माँ-बाप हमेशा बच्चों की ख़ुशी चाहते हैं...ठीक है....हमें मंजूर है|
मैं: oh पिताजी ! ...मैं बता नहीं सकता आपने मुझे आज वो ख़ुशी दी है....की मैं बयान नहीं कर सकता| Thank you पिताजी|
मैं पिताजी के सीने से लग गया और वो थोड़े भावुक हो गए थे| मैंने उनके पाँव छुए फिर माँ के पाँव छुए.... और फिर दोनों से माफ़ी भी मांगी| खेर अब जाके घर में सब शांत था! आज मुझे समझ गया की पिताजी का आखिर मेरे प्रति क्यों झुकाव था? वो मुझे किसी भी कीमत पे खोना नहीं चाहते थे| और दुनिया का कोई भी बाप ये नहीं चाहता|
अब बात थी भौजी के पिताजी से बात करने की| उन्हें अगले हफ्ते आना था और मैंने ये सोच लिया था की मुझे इस हफ्ते क्या करना है? सतीश जी पेशे से वकील थे तो उनसे सलाह लेना सब से सही था| मैं अगले दिन उनके पास गया और उनसे प्रोसीजर के बारे में पूछा| उन्होंने कहा की सबसे पहले तो हमें डाइवोर्स के लिए फाइल करना होगा| उसके बाद ही हम दोनों शादी कर सकते हैं| पर ये इतना आसान नहीं है...केस कोर्ट में जाएगा और अगले डेढ़ साल में फैसला आएगा की डाइवोर्स मंजूर हुआ की नहीं| इसका एक शॉर्टकट है पर वो legal नहीं है| Divorce thorough Registeration ....इसमें पंगा ये है की ये कोर्ट में मंजूर नहीं किया गया है| इसके चलते आप दूसरी शादी तो कर सकते हो पर जो aggrieved पार्टी है वो आगे चल के केस कर सकती है| अब मैं दुविधा में पद गया...मैं चाहता था की संगीता के माँ बनने से पहले हमारी शादी हो जाए ताकि मैं officially बच्चे को अपना नाम दे सकूँ| तो मैंने सतीश जी से एक बात पुछि, "की अगर शादी के बाद उनका पति हमपे case कर दे तो क्या उस हालत में आप बात संभाल सकते हैं?" तो उन्होंने जवाब दिया; " देखो मानु...वैसे तो उसके केस करने का कोई base नहीं है...वो जयदा से ज्यादा तुम से पैसे ही मांगेगा...अब ये तो मैं नहीं बता सकता की तुम उसे पैसे दे दो...या कुछ"|
मैं: उस सूरत में क्या मैं संगीता की तरफ से Domestic Voilence का case फाइल कर सकता हूँ?
सतीश जी: वो बहुत बड़ा पचड़ा है... तुम उसमें ना ही पदो तो बेहतर है| अब चूँकि तुम अपने हो तो एक रास्ता है| थोड़ा टेढ़ा है ...पर मैं संभाल लूँगा| कुछ खर्चा भी होगा?
मैं: बोलिए?
सतीश: मैं डाइवोर्स papers तैयार कर देता हूँ| तुम चन्दर को डरा-धमका के उसके sign ले लो| संगीता तो इस्पे sign कर हीदेगी क्योंकि वो तुमसे प्यार करती है| मैं ये केस फाइल कर देता हूँ और इसी बीच तुम शादी कर लो| marriage certificate का जुगाड़ मैं कर देता हूँ| केस को चलने दो...जब मौका आएगा तो मेरी यहाँ जान-पहचान अच्छी है...मैं कैसे न कैसे करके डेढ़ साल बाद ही सही संगीता का डाइवोर्स करा दूँगा| हाँ ये बात court में दबी रहनी चाहिए की तुम-दोनों शादी शुदा हो वरना कोर्ट उसे मतलब चन्दर को reimburse करने का आर्डर दे सकती है|
मैं: ये बात दबी कैसे रहेगी?
सतीश: यही तो पैसा खर्च होगा.... मैं अपने जान-पहचान के जज की कोर्ट में केस ले जाऊँगा| चन्दर वकील तो यहीं करेगा न?
मैं: अगर नहीं किया तो?
सतीश: हमारी Bar Council में जो चीफ थे उनसे मेरी अच्छी जान पहचान है...वो बात संभाल लेंगे|
मैं: ठीक है सर ...पर मुझे Marriage Certificate Original ही चाहिए|
सतीश: यार वो ओरिजिनल ही मिलता है| तू चिंता ना कर और मुख़र्जी नगर में XXX XXXX (उस जगह का नाम) वहां जो भी दिन हो मुझे बता दिओ... वहीँ शादी करा देंगे| मेरी अच्छी जान पहचान है वहां|
मैं: Thank you सर!
सतीश: अरे यार थैंक यू कैसा? दो प्यार करने वालों को मिलाना पुण्य का काम है|
मैंने घर लौट के पिताजी को और माँ को सारी बात बता दी| वो चाहते तो थे की शादी धूम-धाम से हो पर...हालात कुछ ऐसे थे की...ये पॉसिबल नहीं था| पर मैंने उनकी ख़ुशी के लिए मैंने Reception प्लान कर ली|
माँ पिताजी इस एक हफ्ते में बहुत खुश थे...और माँ ने तो संगीता को अपनी बहु की तरह दुलार करना शुर कर दिया था और अब संगीता भी बहुत खुश थी...बच्चे भी खुश थे...और मैं...मैं अपने होने वाले सौर जी से बात करने की सोच रहा था| खेर वो दिन आ ही गया जब होनेवाले ससुर जी आ गए, उन्हें रिसीव करने मैं ही स्टेशन गया| उनके पाँव छुए...और सामान उठा के गाडी में रखा और रास्ते भर वो बड़े इत्मीनान से बात कर रहे थे....जब घर पहुंचे तो संगीता ने उनके पाँव छुए और उनके गले लगी| दरअसल वो यहाँ संगीता को अपने साथ गाँव वापस ले जाने आये थे| जब उन्होंने ये बात रखी तो मजबूरन मुझे ही बात शुरू करनी पड़ी|
ससुर जी: अरे संगीता बेटा...तुमने तो यहाँ डेरा ही डाल लिया| तुम्हारा पति वहां गाँव में है...हॉस्पिटल मं भर्ती है और तुम यहाँ हो? मैं तुम्हें लेने आया हूँ! चलो सामान पैक करो रात की गाडी है|
मैं: उम्...मुझे माग कीजिये ...पर वो वहां वापस नहीं जाएँगी|
ससुर जी: क्या? पर क्यों?
मैं: क्योंकि वो इंसान इन्हें मारता-पीटता है...बदसलूकी करता है!
ससुर जी: हाँ तो? वो पति है इसका?
अमिन: तो वो जो चाहे कर सकता है? यही कहना चाहते हैं ना आप?
ससुर जी: वो उसकी बीवी है...धर्म है उसका की निभाय अपने पति के साथ?
मैं: वाह! सही धर्म सिखाया आपने? वो स्त्री है तो आप दबाते चले जाओगे?
(मैं अब भी बड़े आराम से बात कर रहा था|)
ससुर जी: तो तुम मेरी लड़की की वकालत कर रहे हो?
मैं: नहीं...मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं...मैं उनसे प्यार करता हूँ!
ससुर जी: क्या? सुन रहे हैं आप?
उन्होंने मेरे पिताजी से कहा और इससे पहले की वो कुछ कहते मैंने पिताजी को रोक दिया और उनकी बात का जवाब दिया|
मैं: हाँ वो सब जानते हैं.... और मैं सिर्फ कह नहीं रहा| मैं आपकी बेटी से प्यार करता हूँ...और वो भी मुझसे पय्यार करती है| और हम...शादी करना चाहते हैं!!!
जवाब बहुत सीधा था... और वो हैरान....की मैं ये सब क्या कह रहा हूँ|
ससुर जी: तू....तू ....पागल हो चूका है...लड़के.....तू नहीं जानता...तू क्या कह रहा है| तू एक शादी शुदा औरत से शादी करना चाहता है? वो औरत जिसे तू "भौजी" कहता है? कभी नहीं...ऐसा कभी नहीं हो सकता...मैं ...मैं बिरादरी में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूँगा| नहीं....नहीं ...मैं ये नहीं होने दूँगा| संगीता...संगीता ...सामान बाँध...हम अभी निकल रहे हैं|
मैं: देखिये...मैंने उन्हें भौजी बोलना कब का छोड़ दिया.... और सिर्फ बोलने से क्या होता है? ना तो मैंने उन्हें कभी अपनी भाभी माना और ना ही कभी उन्होंने मुझे अपना देवर...प्लीज ...
उनके अंदर का अहंकार बोलने लगा था| पर मैं अब भी नम्र था...मैंने अपने घुटनों पे आके उनसे विनती की;
मैं: प्लीज...प्लीज...पिताजी हम एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते...प्लीज हमें अलग मत कीजिये?
ससुर जी: लड़के...तू होश में नहीं है...ये शादी कभी नहीं होगी! कभी नहीं! कभी नहीं! संबगीता ...तू चल यहाँ से?
संगीता उनकी बगल में खड़ी थीं पर कुछ बोल नहीं रही थी और ना ही उनके साथ जा रही थी| ससुर जी ने संगीता का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती खींच के ले जाने लगे पर वो नहीं हिलीं;
ससुर जी: तो तू भी यही चाहती है? तू प्यार करती है इस लड़के से?
संगीता: हाँ...
ससुर जी: तो आखिर इसका जादू चल ही गया तुझ पे? मुझे पहले ही शक था....जब तू अपने चरण काका के यहाँ शादी में आई थी| हमारे बुलाने पे तू ना आई...बस इस लड़के ने जरा सा कह दिया और तू आ गई|
संगीता: जादू...कैसा जादू..... प्यार मैं इनसे करती हूँ....जब से मैंने इन्हें देखा था.... आप नहीं जानते पिताजी....पर मैंने इनसे प्यार का इजहार किया था... मुझे इनसे पहली नजर में प्यार हो गया था| इन्होने मुझे अपनाया...नेहा को भी!
(डर के मारे भौजी के मुंह से बातें आगे-पीछे निकल रही थीं|)
ससुर जी: अगर तू ने इससे शादी की...तो हमसे सारे नाते -रिश्ते तोड़ने होंगे! मेरे घर के दरवाजे तेरे लिए बंद!
मैं: नहीं...प्लीज ऐसा मत कहिये! संगीता...प्लीज ....प्लीज.... आप चले जाओ....प्लीज...मैं नहीं चाहता की आप...आप मेरी वजह से अपने परिवार से अलग हो!
पिताजी: ये तू क्या कह रहा है? अगर ये अपने घर के दरवाजे बंद कर डाई तो क्या? अब वो बहु है हमारी!
मैं: पिताजी... जब वो नहीं चाहती थीं की, उनकी वजह से मैं आपसे अलग हूँ तो भला ...भला मैं कैसे?
पिताजी: पर बेटा?
मैं: कुछ नहीं पिताजी? आप सोच लेना की मैं जिद्द कर रहा था...और...
इसके आगे बोलने की मुझमें हिम्मत नहीं थी| मेरे सारे सपने ससुर जी के एक वाक्य ने तोड़ डाले थे! पर मैं उन्हें बिलकुल भी नहीं कोस रहा था...बस अफ़सोस ये था की उन्हें अपनी बेटी की ख़ुशी नहीं बल्कि अपना अहंकार बड़ा लग रहा था! मैं पलट के बाहर जाने लगा तो संगीता की आवाज ने मेरे कदम रोक दिए;
संगीता: सुनिए .... मेरा जवाब नहीं सुनेंगे?
मैं: नहीं....क्योंकि मैं नहीं चाहता आप अपने माँ-बाप का दिल तोड़ो| मैं ये कतई नहीं चाहता|
संगीता: मेरी ख़ुशी भी नहीं चाहते?
मैं: चाहता हूँ ...पर .... Not at the cost of your parents!
संगीता: पर मैं आपसे अलग मर जाऊँगी...
मैं: मैं भी...अपर आपको हमारे बच्चों के लिए जीना होगा!
संगीता: और आप?
मैं: मुझे अपने माँ-पिताजी के लिए जीना होगा? मुश्किल होगी....पर...
संगीता: पर मैं अब भी आपसे शादी करना चाहती हूँ!
मैं: नहीं...
आगे उन्होंने कुछ नहीं सुना और आके मेरे गले लग गईं और रो पड़ीं...मेरे भी आँसूं निकल पड़े| अब बात साफ़ थी... भौजी ने अपने परिवार की बजाय मुझे चुना था!
पिताजी: भाईसाहब...मैं चुप था...अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए....पर आप...आपको अपना गुरुर ज्यादा प्यार है...अपनी बेटी की ख़ुशी नहीं! पर आप चिंता मत कीजिये.... ये हमारी बेटी बन के रहेगी|
ससुर जी ने अपनी अकड़ दिखाई और चले गए|
मैं: I'm sorry ....so sorry .... I put you in this difficult situation! I'm sorry !!!
संगीता: नहीं...आपने कुछ नहीं किया....मेरे पिताजी....उन्होंने आपका इतना अपमान किया...और फिर भी आप.....नहीं चाहते थे की हम शादी करें| आप तो मेरे परिवार के लिए हमारे प्यार को कुर्बान कर रहे थे| (भौजी ने ये सब रोते-रोते कहा...इसलिए उनके शब्द इसी प्रकार निकल रहे थे|)
हम दोनों ये भूल ही गए की घर में पिताजी और माँ मौजूद हैं| जब पिताजी की आवाज कान में पड़ी तब जाके हमें उनकी मौजूदगी का एहसास हुआ|
पिताजी: बेटा...तुम दोनों का प्रेम .... मेरे पास शब्द नहीं हैं...तू मदोनों एक दूसरे से इतना प्रेम करते हो की एक दूसरे के परिवार के लिए अपने प्रेम तक को कुर्बान करने से नहीं चूकते| मुझे तुम दोनों पे फक्र है....मानु की माँ...इन दोनों को शादी करने की इज्जाजत देके हमने कोई गलत फैसला नहीं किया|
और पिताजी ने हम दोनों को अपने सीने से लगा लिया|
पिताजी: अब बस जल्दी से तुम दोनों की शादी हो जाए!
मैं: पिताजी....अभी भी कुछ बाकी है! चन्दर के sign! (मैंने अपने आँसूं पोछे और कहा) बगावत का बिगुल तो अब बज चूका है|
मैं जानता था की आज जो आग ससुर जी के कलेजे में लगी है वो गाँव में हमारे घर तक पहुँच गई होगी| रात के खाने के बाद मैं ऑनलाइन टिकट बुक कर रहा था की तभी पिताजी कमरे में आ गए| भले ही पिताजी ने हम दोनों को शादी की इज्जाजत दे दी हो पर हमारे कमरे अब भी लग थे...और हम अब पहले की तरह चोरी-छुपे नहीं मिलते थे!
पिताजी: बेटा टिकट बुक कर रहा है?
मैं: जी ..कल दोपहर की गोरक्धाम की टिकट अवेलेबल है!
पिताजी: दो बुक करा|
मैं: दो...पर आप क्यों?
पिताजी: तू बेटा है मेरा....तेरा हर फैसला मेरा फैसला है| और वो बड़े भाई है मेरे....मैं उन्हें समझा लूँगा|
मैं: आपको लगता है...की वो मानेंगे?
पिताजी: तुझे लगा था मैं मानूँगा?
मैं: नहीं...पर एक उम्मीद थी|
पिताजी: मुझे भी है| अब चल टिकट बुक कर|
मैंने टिकट बुक कर ली और Divorce Papers और अपने एक जोड़ी कपड़े रखने लगा| इतने में संगीता आ गई|
संगीता: तो कल जा रहे हो आप?
मैं:हाँ...
संगीता: अगर उन्होंने sign नहीं किया तो?
मैं: I'm not gonna give him a choice!
अब उन्होंने मेरे कपडे तह कर के पैक करने शुरू कर दिए|
संगीता: जल्दी आना?
मैं: ofcourse ...अब तो वहां रुकने का कोई reason भी नहीं है हमारे पास!
संगीता: हमारी एक गलती ने ....सब कुछ...
मैं: Hey .... गलती? Like Seriously? आपको लगता है की हमने गलती की? अगर सोच समझ के करते तो गलती होती..पर क्या आपने प्यार करने से पहले सोचा था?
संगीता: नहीं ...
मैं: See told you ...
भौजी मुस्कुराईं और अपने कमरे में चली गईं| उसी एक बैग में माँ ने पिताजी के कपडे भी पैक कर दिए| रात को as usual बच्चों कोमैने संगीता के कमरे में ही सुला दिया और मैं अपने कमरे में आ के सो गया|
सुबह तैयार हो के हम निकलने वाले थे की मैं अपना रुमाल लेने आया तो पीछे से संगीता भी आ गई;
संगीता: I'm sorry ...for last night! I didn't mean that!
मैं: Hey .... I know ....
मैंने उन्हें गले लगा लिया और उनके सर को चूमा| उन्होंने ने भी मुझे कस के गले लगा लिया| इतने में माँ आ गईं और हमें इस तरह देखा;
माँ: O ... अभी शादी नहीं हुई है तुम्हारी...चलो....
माँ ने बड़े प्यार से दोनों को छेड़ते हुए कहा और उनका हाथ पकड़ के बाहर ले आईं| मैं भी उनके पीछे-पीछे बाहर आ गया|
माँ: ये दोनों ....अंदर गले लगे हुए थे!
माँ ने हँसते हुए कहा और ये सुन भौजी ने माँ के कंधे पे सर रख के अपना मुँह छुपा लिया|
पिताजी: (हँसते हुए) भई ये तो गलत है! (पिताजी ने ये नसीरुद्दीन साहब की तरह गर्दन हिलाते हुए कहा|)
हम हँसते हुए घर से निकले और ट्रैन पकड़ के अगले दिन गाँव पहुंचे| हालाँकि हमें लखनऊ में हॉस्पिटल (नशा मुक्ति केंद्र) जाना था और वहां से चन्दर के sign ले के गाँव जाना था परन्तु वहां पहुँच के पता ये चला की वो तो दो दिन पहले ही वहां से भाग के घर आ चुके हैं| तो अब अगला स्टॉप था गाँव!
हम गाँव पहुंचे तो वहां के हालात जंग के जैसे थे| जैसा की मैंने सोचा था, ससुर जी के कलेजे की आग ने घर को आग लगा दी थी|
बड़के दादा: अब यहाँ क्या लेने आये हो? (उन्होंने गरजते हुए कहा)
पिताजी: भैया...एक बार इत्मीनान से मेरी बात सुन लो?
बड़के दादा: अब सुनने के लिए कुछ नहीं बचा है! चले जाओ यहाँ से...इससे पहले की मैं भूल जाऊँ की तू मेरा ही भाई है!
मैं: दादा...प्लीज ...मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ...एक बार मेरी बात सुन लीजिये! उसके बाद दुबारा मैं आपको कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा
इतने में बड़की अम्मा भी आ गईं|
बड़की अम्मा: सुनिए...एक बार सुन तो लीजिये लड़का क्या कहने आया है? शायद माफ़ी मांगने आया हो!
मैं: दादा ...मैं आपसे माफ़ी मांगने नहीं आया...बल्कि बात करने आया हूँ| मैं संगीता से बहुत प्यार करता हूँ...और शादी करना चाहता हूँ|
बड़के दादा: देख लिए...ये बेगैरत हम से इस तरह बात करता है| हमारे प्यार का ये सिला दिया है?
मैं: दादा...मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ और अम्मा आप...आप मेरे लिए दूसरी माँ हो...मेरी बड़ी माँ...पर संगीता वो इस (मैंने चन्दर की तरफ इशारा किया जो पीछे खड़ा था|) इस इंसान से प्यार नहीं करती....बल्कि मुझसे प्यार करती हैं| वो इससे क्यों प्यार नहीं करती ये आप लोग जानते हैं...बल्कि मुझसे बेहतर जानते हैं| शादी से पहले ये जैसा हैवान था...शादी के बाद भी वैसे ही हैवान है|
चन्दर : ओये ...जुबान संभाल के बात कर|
मैं: Shut up! (मैंने चिल्लाते हुए कहा|) आप लोगों ने ये सब जानते हुए भी इसकी शादी संगीता से कर दी.... क्यों बर्बाद किया उसका जीवन| ये जानवर उन्हें मारता-पीटता है ...जबरदस्ती करता है... और तो और ये बार-बार मामा जी के घर भाग जाता है! जानते हैं ना आप....किस लिए भागता है वहां...और किसके लिए भागता है? फिर भी आप मुझे ही गलत मानते हैं?
बड़के दादा: अगर जाता भी है तो इसका कारन बहु ही है! वो इसकी जर्रूरतें पूरी नहीं करेगी तो ये और क्या करेगा?
मैं: जर्रूरतें? इस वहशी दरिंदे ने उनकी बहन तक को नहीं छोड़ा....ये जानने के बाद ऐसी कौन सी लड़की होगी जो ऐसे इंसान को खुद को छूने देगा?
बड़के दादा: वो औरत है?
अब तो मेरे सब्र का बाँध टूट गया पर इससे पहले मैं कुछ बोलता पिताजी का गुस्सा उबल पड़ा|
पिताजी: बस बहुत हो गया.... वो औरत है तो क्या उसे आप दबा के रखोगे? जैसे आपने भाभी (बड़की अम्मा) को दबा के रखा था? मैं आज भी वो दिन नहीं भुला जब आप भाभी को दरवाजे के पीछे खड़ा कर के उनके हाथ को कब्जे के बीच में दबा के दर्द दिया करते थे| मैं उस वक़्त छोटा था...आप से डरता था इसलिए कुछ नहीं कहा...पर ना आप बदले और ना ही आपकी सोच! अब भी वही गिरी हुई सोच!
बड़के दादा: जानता था....जैसा बाप वैसा बेटा.... जब बाप को प्यार का बुखार चढ़ा और उसने दूसरी जाट की लड़की से ब्याह कर लिया तो लड़का....लड़का भी तो वही करेगा ना...बल्कि तू तो दो कदम आगे ही निकला? अपनी ही भाभी पे बुरी नजर डाली|
अब मेरा सब्र टूट चूका था...उन्होंने हमारे रिश्ते को गाली दी थी|
मैं: बहुत हो गया....मैंने बुरी नजर डाली....मैं उनसे प्यार करता हूँ...वो भी मुझसे प्यार करती हैं.... और मैं यहाँ आप लोगों के कीचड भरी बातें सुनने नहीं आया| ये ले sign कर इन पर|
मैंने divorce papers chander की तरफ बढाए| वो हैरानी से इन्हें देखने लगा;
मैं: देख क्या रहा है? तलाक के कागज़ हैं...चल sign कर! (मैंने बड़े गुस्से में कहा|)
चन्दर: मैं....मैं नहीं ...करूँगा sign!
मैं: जानता था...तू यही कहेगा....
मैंने जेब से फोन निकाला और सतीश जी को मिलाया|
मैं: हेल्लो सतीश जी... सर मुझे आपसे कुछ पूछना था... (मैंने फोन loudspeaker पे डाल दिया|) जो पति अपनी बीवी को मारता-पीटता हो ...उसके साथ जबरदस्ती करता हो...ऐसे इंसान को कौन सी दफा लगती है?
सतीश जी: सीधा-सीधा Domestic Voilence का केस है| पत्नी हर्जाने के तहत कितने भी पैसे मांग सकती है...ना देने पर जेल होगी और हाँ किसी भी तरह का धमकाना...जोर जबरदस्ती की गई तो जेल तो पक्की है|
मैं: और हाँ cheating की कौन सी दफा लगती है?
सतीश जी: दफा 420
इसके आगे सुनने से पहले ही चन्दर ने घबरा कर sign कर दिया|
मैंने उसके हाथ से पेन और पेपर खींच लिए और वापस निकलने को मुड़ा... फिर अचानक से पलटा;
मैं: अम्मा...दादा तो अभी गुस्से में हैं...शायद मुझे माफ़ भी ना करें ....पर आप...आप प्लीज मुझे कभी गलत मत समझना| मैं शादी में आपके आशीर्वाद का इन्तेजार करूँगा|
मैंने आगे बढ़ के बड़के दादा और बड़की अम्मा के पैर छूने चाहे तो बड़के दादा तो मुझे अपनी पीठ दिखा के चले गए पर बड़की अम्मा वहीँ खड़ी थीं और उन्होंने मेरे सर पे हाथ रखा और मूक आशीर्वाद दिया| मेरे लिए इतना ही काफी था! शायद अम्मा संगीता के दर्द को समझ सकती थीं! पिताजी ने भी हाथ जोड़ के अपने भाई-भाभी से माफ़ी माँगी| मुझे लगा शायद बड़के दादा का दिल पिघल जाए पर आगे जो उन्होंने कहा ...वो काफी था ये दर्शाने के लिए की उनके दिल में हमारे लिए कोई जगह नहीं|
बड़के दादा: दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना| इस गाँव से अब तुम्हारा हुक्का-पानी बंद!
ये सुनने के बाद पिताजी का दिल तो बहुत दुख होगा...और इसका दोषी मैं ही था! सिर्फ और सिर्फ मैं! इसके लिए मैं खुद को ताउम्र माफ़ नहीं कर पाउँगा! कभी नहीं! मैंने पिताजी के कंधे पे हाथ रखा और उनका कन्धा दबाते हुए उन्हें दिलासा देने लगा| हम मुड़े और वापस पैदल ही Main रोड के लिए निकल पड़े|
और तभी अचानक से खेतों में से भागती हुई रास्ते में सुनीता मिल गई|
सुनीता: नमस्ते अंकल!
पिताजी: नमस्ते बेटी...खुश रहो!
सुनीता: Hi !
मैं: Hi !
सुनीता: मानु जी...आप जा रहे हो? मेरी शादी कल है...प्लीज रूक जाओ ना?
मैं: सुनीता...My Best Wishes for your marriage! पर मैं तुम्हारी शादी attend नहीं कर पाउँगा| तुम तो जानती ही हो...और तुम क्या पूरा गाँव जानता है की मैं संगीता से शादी करने जा रहा हूँ| तो ऐसे में मैं अगर तुम्हारी शादी के लिए रुका तो खामखा तुम्हारी शादी में भंग पड़ जायेगा|
सुनीता: प्लीज रूक जाओ ना!
मैं: अगर रूक सकता तो मना करता?
सुनीता: नहीं...
मैं: अच्छा ये बताओ की लड़का कौन है?
सुनीता: मेरे ही कॉलेज का! Wholesale की दूकान है ...दिल्ली में|
मैं: WOW! मतलब लड़का तुम्हारी पसंद का है! शादी के बाद तुम भी दिल्ली में ही रहोगी... That's cool! तब तो मेरी शादी में जर्रूर आना?
सुनीता: मैं बिन बुलाये आ जाउंगी| अपना मोबाइल नंबर दो!
मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया और उसने तुरंत miss call मारके अपना नंबर दे दिया| हम ने उससे विदा ली और रात की गाडी से अगले दिन सुबह-सुबह दिल्ली पहुँच गए| घर पहुँचते ही पिताजी ने मेरे सामने अपना सरप्राइज खोल दिया;
पिताजी: बेटा... तुम्हारी शादी धूम-धाम से हो ये हम दोनों की ख्वाहिश है| तो मैंने तीन दिन पहले ही पंडित जी को तुम दोनों की कुंडली दिखाई थी और उन्होंने मुहूर्त 8 दिसंबर का निकाला है!
मैं: सच? (ये सुन के मेरा चेहरा ख़ुशी से खिल गया|)
पिताजी: हाँ...शादी की तैयारी भी शुरू हो चुकी है.... पर ये अभी तक secret था....तुम्हारी माँ का कहना था की ये बात तुम्हें आज ही के दिन पता चले|
मैं उठा और जा के माँ और पिताजी के पाँव छुए| पिताजी ने तो मुझे ख़ुशी से अपने गले ही लगा लिया|
पिताजी: तो बेटा वैसे तो guest की लिस्ट तैयार है...पर कुछ लोग ...जैसे की अनिल मेरा होनेवाला साल), अशोक, अनिल, गट्टू (तीनों बड़के दादा के लड़के) इन सब को बुलाएं या नहीं...समझ नहीं आता|
मैं: हजहां तक अनिल, मतलब मेरे होने वाले साले सहब (ये मैंने जान बुझ के संगीता की तरफ देख के बोला) की बात है...तो मैं उनसे बात करता हूँ| बाकी बचे तीन लोग....में से कोई नहीं आएगा|
पिताजी: पर अशोक? वो तो तुझे बहुत मानता है?
मैं: उनसे एक बार बात कर के देखता हूँ! इन सब के आलावा आपने और किस-किस को बुलाया है?
पिताजी: ये रही लिस्ट...खुद देख ले और मैं चला चांदनी चौक...तेरी शादी के कार्ड्स लेने!
मैं: आपने वो भी बनवा दिए...पिताजी आप तो आज surprise पे surprise दे रहे हो|
पिताजी: बेटा तुझी से सीखा है! (पिताजी खिलखिला के हँसे और चला दिए| सच पूछो तो उनके और माँ के चेहरों पे ख़ुशी देख के मैं बहुत खुश था|)
माँ नहाने चली गईं और पिताजी तो निकल ही चुके थे|
अब बारी थी अनिल से बात करने की, मैं जानता था की उसे अब तक इस बात की भनक लग गई होगी| बस यही सोच रहा था की उसने फोन क्यों नहीं किया? क्या वो मुझसे नफरत करता है? पर मेरे सवालों का जवाब दरवाजे पे खड़ा था| दरवाजे पे knock हुई और संगीता ने दरवाजा खोला ये सोच के की पिताजी ही होंगे| पर जब उन्होंने अनिल को दरवाजे पे देखा और उसके हाथ में प्लास्टर देखा तो वो दांग रह गईं|
संगीता: अनिल...ये...ये सब कैसे हुआ?
अनिल: दीदी...वो सब बाद में ... क्या मैंने जो सुना वो सच है? आप मानु जी से शादी कर रहे हो? (उसने काफी गंभीर होते हुए कहा|)
संगीता: तू पहले अंदर आ और बैठ फिर बात करते हैं|
अनिल अंदर आया और बैठक में बैठ गया| मैं उसके सामने ही सोफे पे बैठा था....
संगीता: हाँ...हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी कर रहे हैं|
अनिल: पर आपने मुझसे ये बात क्यों छुपाई? क्या मुझ पे भरोसा नहीं था? I mean ...मुझे तो पहले से ही लगता था की मानु जी....आप से दिल ही दिल में बहुत प्यार करते हैं...और आप....आप भी तो उनके बारे में ही कहते रहते थे...पर आपने मुझे बताया क्यों नहीं?
संगीता: भाई...
मैं: (मैंने उनकी बात काट दी) क्योंकि हम नहीं जानते थे की हम इस मोड़ पे पहुँच जायेंगे की .... एक दूसरे के बिना जिन्दा नहीं रह सकते! Still if you think we're guilty ....then I guess we're sorry ...for not telling you anything !
अनिल: नहीं मानु जी....आप दोनों ने कोई गलती नहीं की....मैं...मैं आपकी बात समझ गया..... खेर...मेरी ओर से आप दोनों को बधाइयाँ?
मैं: क्यों? तू शादी तक नहीं रुकेगा? शादी 8 दिसंबर की है!
अनिल: I'm sorry .... दरअसल पिताजी ने मुझे कल ही फोन करके आप लोगों के बारे में बताया...खुद को रोक नहीं पाया और इस तरह यहाँ आ धमका... और दीदी ...आपने तो घर से सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए!
संगीता: इसका मतलब तू हमारी शादी में नहीं आएगा?
अनिल: किसने कहा? मैं तो जर्रूर आऊंगा...पर आज मुझे जाना है... मेरी return ticket शाम की है| 1 दिसंबर की टिकट बुक करा लूँगा और आप दोनों को कोई चिंता नहीं करनी...मैं सब संभाल लूँगा|
दोनों बहुत खुश थे ...और संगीता के चेहरे की मुस्कान ने मुझे भी खुश कर दिया था|
संगीता: अब ये बता की .... तुझे ये चोट कैसे लगी?
अनिल मेरी तरफ देखने लगा...शायद उसे लगा की मैंने सब बता दिया होगा और हम दोनों की ये चोरी संगीता ने पकड़ ली|
संगीता: तो आपको सब पता था? है ना?
मैं: हाँ... याद है वो दिवाली वाली रात... जो फ़ोन आया था ...वो अनिल के मोबाइल से ही आया था|
फिर मैंने उन्हें साड़ी बात बता दी...सुमन की बात भी...बस college fees की बात छुपा गया|
संगीता: आपने इतनी बड़ी बात छुपाई मुझसे?
मैं: I'm sorry यार.....really very sorry !!! पर आप वैसे ही उन दिनों बहुत परेशान थे... और हलता काबू में थे ...इसलिए नहीं बताया! Sorry !
संगीता: और माँ-पिताजी को?
मैं: घर में सब जानते हैं सिवाय आपके.... और सास-ससुर जी को भी कुछ नहीं पता| I'm sorry !!!
संगीता: मैं आपसे बात नहीं करुँगी!
मैं उठा और जाके उन्हें मानाने लगा पर वो बहुत गुस्से में थी...मैं अपने घुटनों पे आ के उनसे माफियाँ माँग रहा था...पर कोई असर नहीं! आखिर अनिल ने उन्हें सब बता दिया की उसने ही जोर दिया था की मैं किसी को कुछ ना बताऊँ! वरना सब परेशान हो जाते! और उसने ये भी बता दिया की उसके कॉलेज की फीस मैंने ही भरी है! तब जाके उनका दिल पिघला और उन्होंने बिना कुछ सोचे ही अनिल के सामने मुझे गले लगा लिया| मैं उनके कान में खुस-फुसाया:
मैं: He's watchin us!
तब जाके उन्होंने मुझे छोड़ा!
अनिल: Okay I don't need any proof now ..... My sister is in safe hands! और मानु जी प्लीज मेरी बहन को खुश रखना?
मैं: यार I Promise!
संगीता: (उन्होंने अनिल से कहा) You don't have to say that ... He Loves me..... (आगे वो कुछ कहतीं इससे पहले माँ नहा के आ चुकीं थीं|
माँ: अरे अनिल...बेटा तू कब आया? बहु...चाय बना ....और मालपुए ला...तुझे बहुत पसंद है ना?
मैं खड़ा हैरानी से देख रहा था की हैं....माँ को कैसे पता की उसे मालपुए पसंद हैं! शायद संगीता ने ही बताया होगा| खेर मैं साइट पे फोन करने लगा और घर से बाहर आ गया|
जब मैं फोन करके वापस आया तो माँ अपने कमरे में फोन पे बात कर रही टी और दोनों भाई-बहन गप्पें मार रहे थे|
संगीता: तू तो मुझे बड़ा कह रहा था की आपने मुझे अपने और उन बारे में कुछ नहीं बताया ...और तू...तूने भी तो अपने और सुमन के बारे में कुछ नहीं बताया?
अनिल: दीदी ... वो?
मैं: शर्मा गया... गाल लाल हो जाते हैं जब उसका नाम आता है तो!!!
अनिल: वो मानु जी....
संगीता: तू इन्हें नाम से क्यों बुला रहा है? ये तो तेरे जीजा जी हैं?
अनिल: दीदी... पहले बुलाता था किसी और रिश्ते से...इन्हें जीजा नहीं मानता था...बस मुंह से कहता था...पर अब 8 तरीक के बाद, जॉब तुम्हारी शादी हो जाएगी तब से इन्हें जीजा जी ही कहूँगा|
संगीता: तो अभी भी तो ये तेरे होने वाले जीजा जी ही हैं?
मैं: यार होने वाले हैं...हुए तो नहीं ना? अब कुछ टाइम तो हम दोनों को Lovers बने रहना है!
मेरी बात सुन के मैं और अनिल तो ठहाके मारके हंसने लगे और संगीता ने अपना मुँह मेरे बाएं कंधे पे रख के छुपा लिया|
अब आगे ....
पिताजी: चुप कर!
संगीता: प्लीज पिताजी.....
मैं: मैं इनके बिना नहीं जी सकता| जानता था की आप कभी नहीं मानोगे...फिर भी ...फिर भी आपसे सच कहने की हिम्मत जुटाई| प्लीज ...पिताजी...ये उस इंसान के साथनहीं रहना चाहतीं और अब मैं इनके बिना नहीं जी सकता.... आप अगर जबर्द्द्स्ती मेरी शादी किसी और से भी करा दोगे तो मैं उस लड़की को कभी प्यार नहीं कर पाउँगा| सात साल इनके बिना मैंने कैसे काटे हैं...ये अप माँ से पूछ लो...मैं कितना तनहा महसूस करता था...गुम-सुम रहता था...माँ से पूछो...उन्हें सब पता है| कितनी बार उन्होंने मुझे दिलासा दिया...और वो भी जानती हैं की मैं संगीता से emotionally attached हूँ! कोई फायदा नहीं होगा? प्लीज?
पिताजी अब हार मानने लगे थे....गुस्से से तो वो मुझे काबू नहीं कर पाये...इधर माँ बिलख-बिलख के रो रही थीं|
मैं: माँ...प्लीज...आप तो...
माँ: मत कह मुझे माँ....तूने....तूने ये क्या किया?
पिताजी: बेटा...तू जो कह रहा है वो नहीं हो सकता| समाज क्या कहेगा? बिरादरी में हमारा हुक्का-पानी बंद हो जाएगा...संगीता के घर वाले कभी नहीं मानेंगे?...मेरे अड़े भाई...वो कभी नहीं मानेंगे? सब खत्म हो जायेगा बेटा!!! सब खत्म ....
मैं: आपकी और माँ की भी लव मैरिज थी ना? आपके भाई ने उसे तक नहीं माना था...पर धीरे-धीरे सब ठीक हो गया ना?
पिताजी: बेटा वो अलग बात थी...ये अलग है? तुम दोनों ये भी तो देखो की तुम्हारी उम्र क्या है?
मैं: पिताजी...जब मुझे इनसे प्यार हुआ तब मुझे इनकी उम्र नहीं दिखी.... आप वो देख रहे हो की ...की दुनिया क्या कहेगी? आप ये नहीं देख रहे की मेरी ख़ुशी किस्में है? क्या आपको मेरी ख़ुशी जरा भी नहीं प्यारी? क्या आपके लिए सिर्फ दुनियादारी ही सब कुछ है? कल को आप मेरी शादी किसी अनजान लड़की से करा दोगे....जिसको मैं नहीं जानता| शादी के बाद वो क्या करेगी किसी को नहीं पता? हो सकता है मुझे आपसे अलग कर दे...या मुझे उसे divorce देना पड़े? पर दूसरी तरफ ये (संगीता) हैं... आप इन्हें जानते हो...पहचानते हो... ये कितना ख्याल रखती हैं आप लोगों का...माँ ...आप तो इन्हीें अपनी बहु की तरह प्यार करते हो! उस दिन जब मैंने इन्हें आपकी गोद में सर रखे देखा तो मैं बता नहीं सकता मुझे कितनी ख़ुशी हुई| आप लोगों को तो ये भी नहीं पता की एक पल के लिए मेरे मन में ख्याल आया था की मैं इन्हें भगा के ले जाऊँ... पर आप जानते हो इन्होने क्या कहा; "मैं नहीं चाहती आप मेरी वजह से अपने माँ-पिताजी को छोडो..मैं रह लुंगी उस इंसान के साथ|" आप ही बताओ कौन कहता है इतना? प्लीज पिताजी...प्लीज....एक बार आप दोनों ठन्डे दिमाग से सोचो की क्या ये मेरी पत्नी के रूप में ठीक नहीं हैं? रही दुनिया की बात तो वो तो हमेशा कुछ न कुछ कहेंगे ही? शादी के बाद लड़की मुझे आप से अलग कर दे तो भी और ना करे तो भी? मैं आप लोगों को धमका नहीं रहा...बस अपनी बात रख रहा हूँ| प्लीज पिताजी...हमें अलग मत करिये....हम जी नहीं पाएंगे|
पिताजी: पर ..पर ये सब होगा कैसे? क्या तू सब को बिना बताये?
मैं: नहीं पिताजी...मैं कोई पाप नहीं कर रहा जो सब से छुपाऊँ.... अगले हफ्ते इनके पिताजी आ रहे हैं| मैं खुद उन से बात करूँगा...फिर बड़के दादा से भी मैं ही बात करूँगा| आप बस अपना फैसला सुनाइए?
पिताजी ने माँ की तरफ देखा और माँ का रोना अब बंद हो चूका था...फिर माँ खुद बोलीं;
माँ: बहु....इधर आ...मेरे पास बैठ|
भौजी उनके पास कुर्सी पे बैठ गईं और देखते ही देखते उन्होंने संगीता को गले लगा लिया|
पिताजी: देख बेटा....हमारे लिए बस तू ही एक जीने का सहारा है.... अब अगर तू ही हम से दूर हो गया तो हम कैसे जिन्दा रहेंगे? माँ-बाप हमेशा बच्चों की ख़ुशी चाहते हैं...ठीक है....हमें मंजूर है|
मैं: oh पिताजी ! ...मैं बता नहीं सकता आपने मुझे आज वो ख़ुशी दी है....की मैं बयान नहीं कर सकता| Thank you पिताजी|
मैं पिताजी के सीने से लग गया और वो थोड़े भावुक हो गए थे| मैंने उनके पाँव छुए फिर माँ के पाँव छुए.... और फिर दोनों से माफ़ी भी मांगी| खेर अब जाके घर में सब शांत था! आज मुझे समझ गया की पिताजी का आखिर मेरे प्रति क्यों झुकाव था? वो मुझे किसी भी कीमत पे खोना नहीं चाहते थे| और दुनिया का कोई भी बाप ये नहीं चाहता|
अब बात थी भौजी के पिताजी से बात करने की| उन्हें अगले हफ्ते आना था और मैंने ये सोच लिया था की मुझे इस हफ्ते क्या करना है? सतीश जी पेशे से वकील थे तो उनसे सलाह लेना सब से सही था| मैं अगले दिन उनके पास गया और उनसे प्रोसीजर के बारे में पूछा| उन्होंने कहा की सबसे पहले तो हमें डाइवोर्स के लिए फाइल करना होगा| उसके बाद ही हम दोनों शादी कर सकते हैं| पर ये इतना आसान नहीं है...केस कोर्ट में जाएगा और अगले डेढ़ साल में फैसला आएगा की डाइवोर्स मंजूर हुआ की नहीं| इसका एक शॉर्टकट है पर वो legal नहीं है| Divorce thorough Registeration ....इसमें पंगा ये है की ये कोर्ट में मंजूर नहीं किया गया है| इसके चलते आप दूसरी शादी तो कर सकते हो पर जो aggrieved पार्टी है वो आगे चल के केस कर सकती है| अब मैं दुविधा में पद गया...मैं चाहता था की संगीता के माँ बनने से पहले हमारी शादी हो जाए ताकि मैं officially बच्चे को अपना नाम दे सकूँ| तो मैंने सतीश जी से एक बात पुछि, "की अगर शादी के बाद उनका पति हमपे case कर दे तो क्या उस हालत में आप बात संभाल सकते हैं?" तो उन्होंने जवाब दिया; " देखो मानु...वैसे तो उसके केस करने का कोई base नहीं है...वो जयदा से ज्यादा तुम से पैसे ही मांगेगा...अब ये तो मैं नहीं बता सकता की तुम उसे पैसे दे दो...या कुछ"|
मैं: उस सूरत में क्या मैं संगीता की तरफ से Domestic Voilence का case फाइल कर सकता हूँ?
सतीश जी: वो बहुत बड़ा पचड़ा है... तुम उसमें ना ही पदो तो बेहतर है| अब चूँकि तुम अपने हो तो एक रास्ता है| थोड़ा टेढ़ा है ...पर मैं संभाल लूँगा| कुछ खर्चा भी होगा?
मैं: बोलिए?
सतीश: मैं डाइवोर्स papers तैयार कर देता हूँ| तुम चन्दर को डरा-धमका के उसके sign ले लो| संगीता तो इस्पे sign कर हीदेगी क्योंकि वो तुमसे प्यार करती है| मैं ये केस फाइल कर देता हूँ और इसी बीच तुम शादी कर लो| marriage certificate का जुगाड़ मैं कर देता हूँ| केस को चलने दो...जब मौका आएगा तो मेरी यहाँ जान-पहचान अच्छी है...मैं कैसे न कैसे करके डेढ़ साल बाद ही सही संगीता का डाइवोर्स करा दूँगा| हाँ ये बात court में दबी रहनी चाहिए की तुम-दोनों शादी शुदा हो वरना कोर्ट उसे मतलब चन्दर को reimburse करने का आर्डर दे सकती है|
मैं: ये बात दबी कैसे रहेगी?
सतीश: यही तो पैसा खर्च होगा.... मैं अपने जान-पहचान के जज की कोर्ट में केस ले जाऊँगा| चन्दर वकील तो यहीं करेगा न?
मैं: अगर नहीं किया तो?
सतीश: हमारी Bar Council में जो चीफ थे उनसे मेरी अच्छी जान पहचान है...वो बात संभाल लेंगे|
मैं: ठीक है सर ...पर मुझे Marriage Certificate Original ही चाहिए|
सतीश: यार वो ओरिजिनल ही मिलता है| तू चिंता ना कर और मुख़र्जी नगर में XXX XXXX (उस जगह का नाम) वहां जो भी दिन हो मुझे बता दिओ... वहीँ शादी करा देंगे| मेरी अच्छी जान पहचान है वहां|
मैं: Thank you सर!
सतीश: अरे यार थैंक यू कैसा? दो प्यार करने वालों को मिलाना पुण्य का काम है|
मैंने घर लौट के पिताजी को और माँ को सारी बात बता दी| वो चाहते तो थे की शादी धूम-धाम से हो पर...हालात कुछ ऐसे थे की...ये पॉसिबल नहीं था| पर मैंने उनकी ख़ुशी के लिए मैंने Reception प्लान कर ली|
माँ पिताजी इस एक हफ्ते में बहुत खुश थे...और माँ ने तो संगीता को अपनी बहु की तरह दुलार करना शुर कर दिया था और अब संगीता भी बहुत खुश थी...बच्चे भी खुश थे...और मैं...मैं अपने होने वाले सौर जी से बात करने की सोच रहा था| खेर वो दिन आ ही गया जब होनेवाले ससुर जी आ गए, उन्हें रिसीव करने मैं ही स्टेशन गया| उनके पाँव छुए...और सामान उठा के गाडी में रखा और रास्ते भर वो बड़े इत्मीनान से बात कर रहे थे....जब घर पहुंचे तो संगीता ने उनके पाँव छुए और उनके गले लगी| दरअसल वो यहाँ संगीता को अपने साथ गाँव वापस ले जाने आये थे| जब उन्होंने ये बात रखी तो मजबूरन मुझे ही बात शुरू करनी पड़ी|
ससुर जी: अरे संगीता बेटा...तुमने तो यहाँ डेरा ही डाल लिया| तुम्हारा पति वहां गाँव में है...हॉस्पिटल मं भर्ती है और तुम यहाँ हो? मैं तुम्हें लेने आया हूँ! चलो सामान पैक करो रात की गाडी है|
मैं: उम्...मुझे माग कीजिये ...पर वो वहां वापस नहीं जाएँगी|
ससुर जी: क्या? पर क्यों?
मैं: क्योंकि वो इंसान इन्हें मारता-पीटता है...बदसलूकी करता है!
ससुर जी: हाँ तो? वो पति है इसका?
अमिन: तो वो जो चाहे कर सकता है? यही कहना चाहते हैं ना आप?
ससुर जी: वो उसकी बीवी है...धर्म है उसका की निभाय अपने पति के साथ?
मैं: वाह! सही धर्म सिखाया आपने? वो स्त्री है तो आप दबाते चले जाओगे?
(मैं अब भी बड़े आराम से बात कर रहा था|)
ससुर जी: तो तुम मेरी लड़की की वकालत कर रहे हो?
मैं: नहीं...मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैं...मैं उनसे प्यार करता हूँ!
ससुर जी: क्या? सुन रहे हैं आप?
उन्होंने मेरे पिताजी से कहा और इससे पहले की वो कुछ कहते मैंने पिताजी को रोक दिया और उनकी बात का जवाब दिया|
मैं: हाँ वो सब जानते हैं.... और मैं सिर्फ कह नहीं रहा| मैं आपकी बेटी से प्यार करता हूँ...और वो भी मुझसे पय्यार करती है| और हम...शादी करना चाहते हैं!!!
जवाब बहुत सीधा था... और वो हैरान....की मैं ये सब क्या कह रहा हूँ|
ससुर जी: तू....तू ....पागल हो चूका है...लड़के.....तू नहीं जानता...तू क्या कह रहा है| तू एक शादी शुदा औरत से शादी करना चाहता है? वो औरत जिसे तू "भौजी" कहता है? कभी नहीं...ऐसा कभी नहीं हो सकता...मैं ...मैं बिरादरी में कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूँगा| नहीं....नहीं ...मैं ये नहीं होने दूँगा| संगीता...संगीता ...सामान बाँध...हम अभी निकल रहे हैं|
मैं: देखिये...मैंने उन्हें भौजी बोलना कब का छोड़ दिया.... और सिर्फ बोलने से क्या होता है? ना तो मैंने उन्हें कभी अपनी भाभी माना और ना ही कभी उन्होंने मुझे अपना देवर...प्लीज ...
उनके अंदर का अहंकार बोलने लगा था| पर मैं अब भी नम्र था...मैंने अपने घुटनों पे आके उनसे विनती की;
मैं: प्लीज...प्लीज...पिताजी हम एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते...प्लीज हमें अलग मत कीजिये?
ससुर जी: लड़के...तू होश में नहीं है...ये शादी कभी नहीं होगी! कभी नहीं! कभी नहीं! संबगीता ...तू चल यहाँ से?
संगीता उनकी बगल में खड़ी थीं पर कुछ बोल नहीं रही थी और ना ही उनके साथ जा रही थी| ससुर जी ने संगीता का हाथ पकड़ा और जबरदस्ती खींच के ले जाने लगे पर वो नहीं हिलीं;
ससुर जी: तो तू भी यही चाहती है? तू प्यार करती है इस लड़के से?
संगीता: हाँ...
ससुर जी: तो आखिर इसका जादू चल ही गया तुझ पे? मुझे पहले ही शक था....जब तू अपने चरण काका के यहाँ शादी में आई थी| हमारे बुलाने पे तू ना आई...बस इस लड़के ने जरा सा कह दिया और तू आ गई|
संगीता: जादू...कैसा जादू..... प्यार मैं इनसे करती हूँ....जब से मैंने इन्हें देखा था.... आप नहीं जानते पिताजी....पर मैंने इनसे प्यार का इजहार किया था... मुझे इनसे पहली नजर में प्यार हो गया था| इन्होने मुझे अपनाया...नेहा को भी!
(डर के मारे भौजी के मुंह से बातें आगे-पीछे निकल रही थीं|)
ससुर जी: अगर तू ने इससे शादी की...तो हमसे सारे नाते -रिश्ते तोड़ने होंगे! मेरे घर के दरवाजे तेरे लिए बंद!
मैं: नहीं...प्लीज ऐसा मत कहिये! संगीता...प्लीज ....प्लीज.... आप चले जाओ....प्लीज...मैं नहीं चाहता की आप...आप मेरी वजह से अपने परिवार से अलग हो!
पिताजी: ये तू क्या कह रहा है? अगर ये अपने घर के दरवाजे बंद कर डाई तो क्या? अब वो बहु है हमारी!
मैं: पिताजी... जब वो नहीं चाहती थीं की, उनकी वजह से मैं आपसे अलग हूँ तो भला ...भला मैं कैसे?
पिताजी: पर बेटा?
मैं: कुछ नहीं पिताजी? आप सोच लेना की मैं जिद्द कर रहा था...और...
इसके आगे बोलने की मुझमें हिम्मत नहीं थी| मेरे सारे सपने ससुर जी के एक वाक्य ने तोड़ डाले थे! पर मैं उन्हें बिलकुल भी नहीं कोस रहा था...बस अफ़सोस ये था की उन्हें अपनी बेटी की ख़ुशी नहीं बल्कि अपना अहंकार बड़ा लग रहा था! मैं पलट के बाहर जाने लगा तो संगीता की आवाज ने मेरे कदम रोक दिए;
संगीता: सुनिए .... मेरा जवाब नहीं सुनेंगे?
मैं: नहीं....क्योंकि मैं नहीं चाहता आप अपने माँ-बाप का दिल तोड़ो| मैं ये कतई नहीं चाहता|
संगीता: मेरी ख़ुशी भी नहीं चाहते?
मैं: चाहता हूँ ...पर .... Not at the cost of your parents!
संगीता: पर मैं आपसे अलग मर जाऊँगी...
मैं: मैं भी...अपर आपको हमारे बच्चों के लिए जीना होगा!
संगीता: और आप?
मैं: मुझे अपने माँ-पिताजी के लिए जीना होगा? मुश्किल होगी....पर...
संगीता: पर मैं अब भी आपसे शादी करना चाहती हूँ!
मैं: नहीं...
आगे उन्होंने कुछ नहीं सुना और आके मेरे गले लग गईं और रो पड़ीं...मेरे भी आँसूं निकल पड़े| अब बात साफ़ थी... भौजी ने अपने परिवार की बजाय मुझे चुना था!
पिताजी: भाईसाहब...मैं चुप था...अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए....पर आप...आपको अपना गुरुर ज्यादा प्यार है...अपनी बेटी की ख़ुशी नहीं! पर आप चिंता मत कीजिये.... ये हमारी बेटी बन के रहेगी|
ससुर जी ने अपनी अकड़ दिखाई और चले गए|
मैं: I'm sorry ....so sorry .... I put you in this difficult situation! I'm sorry !!!
संगीता: नहीं...आपने कुछ नहीं किया....मेरे पिताजी....उन्होंने आपका इतना अपमान किया...और फिर भी आप.....नहीं चाहते थे की हम शादी करें| आप तो मेरे परिवार के लिए हमारे प्यार को कुर्बान कर रहे थे| (भौजी ने ये सब रोते-रोते कहा...इसलिए उनके शब्द इसी प्रकार निकल रहे थे|)
हम दोनों ये भूल ही गए की घर में पिताजी और माँ मौजूद हैं| जब पिताजी की आवाज कान में पड़ी तब जाके हमें उनकी मौजूदगी का एहसास हुआ|
पिताजी: बेटा...तुम दोनों का प्रेम .... मेरे पास शब्द नहीं हैं...तू मदोनों एक दूसरे से इतना प्रेम करते हो की एक दूसरे के परिवार के लिए अपने प्रेम तक को कुर्बान करने से नहीं चूकते| मुझे तुम दोनों पे फक्र है....मानु की माँ...इन दोनों को शादी करने की इज्जाजत देके हमने कोई गलत फैसला नहीं किया|
और पिताजी ने हम दोनों को अपने सीने से लगा लिया|
पिताजी: अब बस जल्दी से तुम दोनों की शादी हो जाए!
मैं: पिताजी....अभी भी कुछ बाकी है! चन्दर के sign! (मैंने अपने आँसूं पोछे और कहा) बगावत का बिगुल तो अब बज चूका है|
मैं जानता था की आज जो आग ससुर जी के कलेजे में लगी है वो गाँव में हमारे घर तक पहुँच गई होगी| रात के खाने के बाद मैं ऑनलाइन टिकट बुक कर रहा था की तभी पिताजी कमरे में आ गए| भले ही पिताजी ने हम दोनों को शादी की इज्जाजत दे दी हो पर हमारे कमरे अब भी लग थे...और हम अब पहले की तरह चोरी-छुपे नहीं मिलते थे!
पिताजी: बेटा टिकट बुक कर रहा है?
मैं: जी ..कल दोपहर की गोरक्धाम की टिकट अवेलेबल है!
पिताजी: दो बुक करा|
मैं: दो...पर आप क्यों?
पिताजी: तू बेटा है मेरा....तेरा हर फैसला मेरा फैसला है| और वो बड़े भाई है मेरे....मैं उन्हें समझा लूँगा|
मैं: आपको लगता है...की वो मानेंगे?
पिताजी: तुझे लगा था मैं मानूँगा?
मैं: नहीं...पर एक उम्मीद थी|
पिताजी: मुझे भी है| अब चल टिकट बुक कर|
मैंने टिकट बुक कर ली और Divorce Papers और अपने एक जोड़ी कपड़े रखने लगा| इतने में संगीता आ गई|
संगीता: तो कल जा रहे हो आप?
मैं:हाँ...
संगीता: अगर उन्होंने sign नहीं किया तो?
मैं: I'm not gonna give him a choice!
अब उन्होंने मेरे कपडे तह कर के पैक करने शुरू कर दिए|
संगीता: जल्दी आना?
मैं: ofcourse ...अब तो वहां रुकने का कोई reason भी नहीं है हमारे पास!
संगीता: हमारी एक गलती ने ....सब कुछ...
मैं: Hey .... गलती? Like Seriously? आपको लगता है की हमने गलती की? अगर सोच समझ के करते तो गलती होती..पर क्या आपने प्यार करने से पहले सोचा था?
संगीता: नहीं ...
मैं: See told you ...
भौजी मुस्कुराईं और अपने कमरे में चली गईं| उसी एक बैग में माँ ने पिताजी के कपडे भी पैक कर दिए| रात को as usual बच्चों कोमैने संगीता के कमरे में ही सुला दिया और मैं अपने कमरे में आ के सो गया|
सुबह तैयार हो के हम निकलने वाले थे की मैं अपना रुमाल लेने आया तो पीछे से संगीता भी आ गई;
संगीता: I'm sorry ...for last night! I didn't mean that!
मैं: Hey .... I know ....
मैंने उन्हें गले लगा लिया और उनके सर को चूमा| उन्होंने ने भी मुझे कस के गले लगा लिया| इतने में माँ आ गईं और हमें इस तरह देखा;
माँ: O ... अभी शादी नहीं हुई है तुम्हारी...चलो....
माँ ने बड़े प्यार से दोनों को छेड़ते हुए कहा और उनका हाथ पकड़ के बाहर ले आईं| मैं भी उनके पीछे-पीछे बाहर आ गया|
माँ: ये दोनों ....अंदर गले लगे हुए थे!
माँ ने हँसते हुए कहा और ये सुन भौजी ने माँ के कंधे पे सर रख के अपना मुँह छुपा लिया|
पिताजी: (हँसते हुए) भई ये तो गलत है! (पिताजी ने ये नसीरुद्दीन साहब की तरह गर्दन हिलाते हुए कहा|)
हम हँसते हुए घर से निकले और ट्रैन पकड़ के अगले दिन गाँव पहुंचे| हालाँकि हमें लखनऊ में हॉस्पिटल (नशा मुक्ति केंद्र) जाना था और वहां से चन्दर के sign ले के गाँव जाना था परन्तु वहां पहुँच के पता ये चला की वो तो दो दिन पहले ही वहां से भाग के घर आ चुके हैं| तो अब अगला स्टॉप था गाँव!
हम गाँव पहुंचे तो वहां के हालात जंग के जैसे थे| जैसा की मैंने सोचा था, ससुर जी के कलेजे की आग ने घर को आग लगा दी थी|
बड़के दादा: अब यहाँ क्या लेने आये हो? (उन्होंने गरजते हुए कहा)
पिताजी: भैया...एक बार इत्मीनान से मेरी बात सुन लो?
बड़के दादा: अब सुनने के लिए कुछ नहीं बचा है! चले जाओ यहाँ से...इससे पहले की मैं भूल जाऊँ की तू मेरा ही भाई है!
मैं: दादा...प्लीज ...मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूँ...एक बार मेरी बात सुन लीजिये! उसके बाद दुबारा मैं आपको कभी अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा
इतने में बड़की अम्मा भी आ गईं|
बड़की अम्मा: सुनिए...एक बार सुन तो लीजिये लड़का क्या कहने आया है? शायद माफ़ी मांगने आया हो!
मैं: दादा ...मैं आपसे माफ़ी मांगने नहीं आया...बल्कि बात करने आया हूँ| मैं संगीता से बहुत प्यार करता हूँ...और शादी करना चाहता हूँ|
बड़के दादा: देख लिए...ये बेगैरत हम से इस तरह बात करता है| हमारे प्यार का ये सिला दिया है?
मैं: दादा...मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूँ और अम्मा आप...आप मेरे लिए दूसरी माँ हो...मेरी बड़ी माँ...पर संगीता वो इस (मैंने चन्दर की तरफ इशारा किया जो पीछे खड़ा था|) इस इंसान से प्यार नहीं करती....बल्कि मुझसे प्यार करती हैं| वो इससे क्यों प्यार नहीं करती ये आप लोग जानते हैं...बल्कि मुझसे बेहतर जानते हैं| शादी से पहले ये जैसा हैवान था...शादी के बाद भी वैसे ही हैवान है|
चन्दर : ओये ...जुबान संभाल के बात कर|
मैं: Shut up! (मैंने चिल्लाते हुए कहा|) आप लोगों ने ये सब जानते हुए भी इसकी शादी संगीता से कर दी.... क्यों बर्बाद किया उसका जीवन| ये जानवर उन्हें मारता-पीटता है ...जबरदस्ती करता है... और तो और ये बार-बार मामा जी के घर भाग जाता है! जानते हैं ना आप....किस लिए भागता है वहां...और किसके लिए भागता है? फिर भी आप मुझे ही गलत मानते हैं?
बड़के दादा: अगर जाता भी है तो इसका कारन बहु ही है! वो इसकी जर्रूरतें पूरी नहीं करेगी तो ये और क्या करेगा?
मैं: जर्रूरतें? इस वहशी दरिंदे ने उनकी बहन तक को नहीं छोड़ा....ये जानने के बाद ऐसी कौन सी लड़की होगी जो ऐसे इंसान को खुद को छूने देगा?
बड़के दादा: वो औरत है?
अब तो मेरे सब्र का बाँध टूट गया पर इससे पहले मैं कुछ बोलता पिताजी का गुस्सा उबल पड़ा|
पिताजी: बस बहुत हो गया.... वो औरत है तो क्या उसे आप दबा के रखोगे? जैसे आपने भाभी (बड़की अम्मा) को दबा के रखा था? मैं आज भी वो दिन नहीं भुला जब आप भाभी को दरवाजे के पीछे खड़ा कर के उनके हाथ को कब्जे के बीच में दबा के दर्द दिया करते थे| मैं उस वक़्त छोटा था...आप से डरता था इसलिए कुछ नहीं कहा...पर ना आप बदले और ना ही आपकी सोच! अब भी वही गिरी हुई सोच!
बड़के दादा: जानता था....जैसा बाप वैसा बेटा.... जब बाप को प्यार का बुखार चढ़ा और उसने दूसरी जाट की लड़की से ब्याह कर लिया तो लड़का....लड़का भी तो वही करेगा ना...बल्कि तू तो दो कदम आगे ही निकला? अपनी ही भाभी पे बुरी नजर डाली|
अब मेरा सब्र टूट चूका था...उन्होंने हमारे रिश्ते को गाली दी थी|
मैं: बहुत हो गया....मैंने बुरी नजर डाली....मैं उनसे प्यार करता हूँ...वो भी मुझसे प्यार करती हैं.... और मैं यहाँ आप लोगों के कीचड भरी बातें सुनने नहीं आया| ये ले sign कर इन पर|
मैंने divorce papers chander की तरफ बढाए| वो हैरानी से इन्हें देखने लगा;
मैं: देख क्या रहा है? तलाक के कागज़ हैं...चल sign कर! (मैंने बड़े गुस्से में कहा|)
चन्दर: मैं....मैं नहीं ...करूँगा sign!
मैं: जानता था...तू यही कहेगा....
मैंने जेब से फोन निकाला और सतीश जी को मिलाया|
मैं: हेल्लो सतीश जी... सर मुझे आपसे कुछ पूछना था... (मैंने फोन loudspeaker पे डाल दिया|) जो पति अपनी बीवी को मारता-पीटता हो ...उसके साथ जबरदस्ती करता हो...ऐसे इंसान को कौन सी दफा लगती है?
सतीश जी: सीधा-सीधा Domestic Voilence का केस है| पत्नी हर्जाने के तहत कितने भी पैसे मांग सकती है...ना देने पर जेल होगी और हाँ किसी भी तरह का धमकाना...जोर जबरदस्ती की गई तो जेल तो पक्की है|
मैं: और हाँ cheating की कौन सी दफा लगती है?
सतीश जी: दफा 420
इसके आगे सुनने से पहले ही चन्दर ने घबरा कर sign कर दिया|
मैंने उसके हाथ से पेन और पेपर खींच लिए और वापस निकलने को मुड़ा... फिर अचानक से पलटा;
मैं: अम्मा...दादा तो अभी गुस्से में हैं...शायद मुझे माफ़ भी ना करें ....पर आप...आप प्लीज मुझे कभी गलत मत समझना| मैं शादी में आपके आशीर्वाद का इन्तेजार करूँगा|
मैंने आगे बढ़ के बड़के दादा और बड़की अम्मा के पैर छूने चाहे तो बड़के दादा तो मुझे अपनी पीठ दिखा के चले गए पर बड़की अम्मा वहीँ खड़ी थीं और उन्होंने मेरे सर पे हाथ रखा और मूक आशीर्वाद दिया| मेरे लिए इतना ही काफी था! शायद अम्मा संगीता के दर्द को समझ सकती थीं! पिताजी ने भी हाथ जोड़ के अपने भाई-भाभी से माफ़ी माँगी| मुझे लगा शायद बड़के दादा का दिल पिघल जाए पर आगे जो उन्होंने कहा ...वो काफी था ये दर्शाने के लिए की उनके दिल में हमारे लिए कोई जगह नहीं|
बड़के दादा: दुबारा कभी अपनी शक्ल मत दिखाना| इस गाँव से अब तुम्हारा हुक्का-पानी बंद!
ये सुनने के बाद पिताजी का दिल तो बहुत दुख होगा...और इसका दोषी मैं ही था! सिर्फ और सिर्फ मैं! इसके लिए मैं खुद को ताउम्र माफ़ नहीं कर पाउँगा! कभी नहीं! मैंने पिताजी के कंधे पे हाथ रखा और उनका कन्धा दबाते हुए उन्हें दिलासा देने लगा| हम मुड़े और वापस पैदल ही Main रोड के लिए निकल पड़े|
और तभी अचानक से खेतों में से भागती हुई रास्ते में सुनीता मिल गई|
सुनीता: नमस्ते अंकल!
पिताजी: नमस्ते बेटी...खुश रहो!
सुनीता: Hi !
मैं: Hi !
सुनीता: मानु जी...आप जा रहे हो? मेरी शादी कल है...प्लीज रूक जाओ ना?
मैं: सुनीता...My Best Wishes for your marriage! पर मैं तुम्हारी शादी attend नहीं कर पाउँगा| तुम तो जानती ही हो...और तुम क्या पूरा गाँव जानता है की मैं संगीता से शादी करने जा रहा हूँ| तो ऐसे में मैं अगर तुम्हारी शादी के लिए रुका तो खामखा तुम्हारी शादी में भंग पड़ जायेगा|
सुनीता: प्लीज रूक जाओ ना!
मैं: अगर रूक सकता तो मना करता?
सुनीता: नहीं...
मैं: अच्छा ये बताओ की लड़का कौन है?
सुनीता: मेरे ही कॉलेज का! Wholesale की दूकान है ...दिल्ली में|
मैं: WOW! मतलब लड़का तुम्हारी पसंद का है! शादी के बाद तुम भी दिल्ली में ही रहोगी... That's cool! तब तो मेरी शादी में जर्रूर आना?
सुनीता: मैं बिन बुलाये आ जाउंगी| अपना मोबाइल नंबर दो!
मैंने उसे अपना मोबाइल नंबर दिया और उसने तुरंत miss call मारके अपना नंबर दे दिया| हम ने उससे विदा ली और रात की गाडी से अगले दिन सुबह-सुबह दिल्ली पहुँच गए| घर पहुँचते ही पिताजी ने मेरे सामने अपना सरप्राइज खोल दिया;
पिताजी: बेटा... तुम्हारी शादी धूम-धाम से हो ये हम दोनों की ख्वाहिश है| तो मैंने तीन दिन पहले ही पंडित जी को तुम दोनों की कुंडली दिखाई थी और उन्होंने मुहूर्त 8 दिसंबर का निकाला है!
मैं: सच? (ये सुन के मेरा चेहरा ख़ुशी से खिल गया|)
पिताजी: हाँ...शादी की तैयारी भी शुरू हो चुकी है.... पर ये अभी तक secret था....तुम्हारी माँ का कहना था की ये बात तुम्हें आज ही के दिन पता चले|
मैं उठा और जा के माँ और पिताजी के पाँव छुए| पिताजी ने तो मुझे ख़ुशी से अपने गले ही लगा लिया|
पिताजी: तो बेटा वैसे तो guest की लिस्ट तैयार है...पर कुछ लोग ...जैसे की अनिल मेरा होनेवाला साल), अशोक, अनिल, गट्टू (तीनों बड़के दादा के लड़के) इन सब को बुलाएं या नहीं...समझ नहीं आता|
मैं: हजहां तक अनिल, मतलब मेरे होने वाले साले सहब (ये मैंने जान बुझ के संगीता की तरफ देख के बोला) की बात है...तो मैं उनसे बात करता हूँ| बाकी बचे तीन लोग....में से कोई नहीं आएगा|
पिताजी: पर अशोक? वो तो तुझे बहुत मानता है?
मैं: उनसे एक बार बात कर के देखता हूँ! इन सब के आलावा आपने और किस-किस को बुलाया है?
पिताजी: ये रही लिस्ट...खुद देख ले और मैं चला चांदनी चौक...तेरी शादी के कार्ड्स लेने!
मैं: आपने वो भी बनवा दिए...पिताजी आप तो आज surprise पे surprise दे रहे हो|
पिताजी: बेटा तुझी से सीखा है! (पिताजी खिलखिला के हँसे और चला दिए| सच पूछो तो उनके और माँ के चेहरों पे ख़ुशी देख के मैं बहुत खुश था|)
माँ नहाने चली गईं और पिताजी तो निकल ही चुके थे|
अब बारी थी अनिल से बात करने की, मैं जानता था की उसे अब तक इस बात की भनक लग गई होगी| बस यही सोच रहा था की उसने फोन क्यों नहीं किया? क्या वो मुझसे नफरत करता है? पर मेरे सवालों का जवाब दरवाजे पे खड़ा था| दरवाजे पे knock हुई और संगीता ने दरवाजा खोला ये सोच के की पिताजी ही होंगे| पर जब उन्होंने अनिल को दरवाजे पे देखा और उसके हाथ में प्लास्टर देखा तो वो दांग रह गईं|
संगीता: अनिल...ये...ये सब कैसे हुआ?
अनिल: दीदी...वो सब बाद में ... क्या मैंने जो सुना वो सच है? आप मानु जी से शादी कर रहे हो? (उसने काफी गंभीर होते हुए कहा|)
संगीता: तू पहले अंदर आ और बैठ फिर बात करते हैं|
अनिल अंदर आया और बैठक में बैठ गया| मैं उसके सामने ही सोफे पे बैठा था....
संगीता: हाँ...हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं और शादी कर रहे हैं|
अनिल: पर आपने मुझसे ये बात क्यों छुपाई? क्या मुझ पे भरोसा नहीं था? I mean ...मुझे तो पहले से ही लगता था की मानु जी....आप से दिल ही दिल में बहुत प्यार करते हैं...और आप....आप भी तो उनके बारे में ही कहते रहते थे...पर आपने मुझे बताया क्यों नहीं?
संगीता: भाई...
मैं: (मैंने उनकी बात काट दी) क्योंकि हम नहीं जानते थे की हम इस मोड़ पे पहुँच जायेंगे की .... एक दूसरे के बिना जिन्दा नहीं रह सकते! Still if you think we're guilty ....then I guess we're sorry ...for not telling you anything !
अनिल: नहीं मानु जी....आप दोनों ने कोई गलती नहीं की....मैं...मैं आपकी बात समझ गया..... खेर...मेरी ओर से आप दोनों को बधाइयाँ?
मैं: क्यों? तू शादी तक नहीं रुकेगा? शादी 8 दिसंबर की है!
अनिल: I'm sorry .... दरअसल पिताजी ने मुझे कल ही फोन करके आप लोगों के बारे में बताया...खुद को रोक नहीं पाया और इस तरह यहाँ आ धमका... और दीदी ...आपने तो घर से सारे रिश्ते नाते तोड़ दिए!
संगीता: इसका मतलब तू हमारी शादी में नहीं आएगा?
अनिल: किसने कहा? मैं तो जर्रूर आऊंगा...पर आज मुझे जाना है... मेरी return ticket शाम की है| 1 दिसंबर की टिकट बुक करा लूँगा और आप दोनों को कोई चिंता नहीं करनी...मैं सब संभाल लूँगा|
दोनों बहुत खुश थे ...और संगीता के चेहरे की मुस्कान ने मुझे भी खुश कर दिया था|
संगीता: अब ये बता की .... तुझे ये चोट कैसे लगी?
अनिल मेरी तरफ देखने लगा...शायद उसे लगा की मैंने सब बता दिया होगा और हम दोनों की ये चोरी संगीता ने पकड़ ली|
संगीता: तो आपको सब पता था? है ना?
मैं: हाँ... याद है वो दिवाली वाली रात... जो फ़ोन आया था ...वो अनिल के मोबाइल से ही आया था|
फिर मैंने उन्हें साड़ी बात बता दी...सुमन की बात भी...बस college fees की बात छुपा गया|
संगीता: आपने इतनी बड़ी बात छुपाई मुझसे?
मैं: I'm sorry यार.....really very sorry !!! पर आप वैसे ही उन दिनों बहुत परेशान थे... और हलता काबू में थे ...इसलिए नहीं बताया! Sorry !
संगीता: और माँ-पिताजी को?
मैं: घर में सब जानते हैं सिवाय आपके.... और सास-ससुर जी को भी कुछ नहीं पता| I'm sorry !!!
संगीता: मैं आपसे बात नहीं करुँगी!
मैं उठा और जाके उन्हें मानाने लगा पर वो बहुत गुस्से में थी...मैं अपने घुटनों पे आ के उनसे माफियाँ माँग रहा था...पर कोई असर नहीं! आखिर अनिल ने उन्हें सब बता दिया की उसने ही जोर दिया था की मैं किसी को कुछ ना बताऊँ! वरना सब परेशान हो जाते! और उसने ये भी बता दिया की उसके कॉलेज की फीस मैंने ही भरी है! तब जाके उनका दिल पिघला और उन्होंने बिना कुछ सोचे ही अनिल के सामने मुझे गले लगा लिया| मैं उनके कान में खुस-फुसाया:
मैं: He's watchin us!
तब जाके उन्होंने मुझे छोड़ा!
अनिल: Okay I don't need any proof now ..... My sister is in safe hands! और मानु जी प्लीज मेरी बहन को खुश रखना?
मैं: यार I Promise!
संगीता: (उन्होंने अनिल से कहा) You don't have to say that ... He Loves me..... (आगे वो कुछ कहतीं इससे पहले माँ नहा के आ चुकीं थीं|
माँ: अरे अनिल...बेटा तू कब आया? बहु...चाय बना ....और मालपुए ला...तुझे बहुत पसंद है ना?
मैं खड़ा हैरानी से देख रहा था की हैं....माँ को कैसे पता की उसे मालपुए पसंद हैं! शायद संगीता ने ही बताया होगा| खेर मैं साइट पे फोन करने लगा और घर से बाहर आ गया|
जब मैं फोन करके वापस आया तो माँ अपने कमरे में फोन पे बात कर रही टी और दोनों भाई-बहन गप्पें मार रहे थे|
संगीता: तू तो मुझे बड़ा कह रहा था की आपने मुझे अपने और उन बारे में कुछ नहीं बताया ...और तू...तूने भी तो अपने और सुमन के बारे में कुछ नहीं बताया?
अनिल: दीदी ... वो?
मैं: शर्मा गया... गाल लाल हो जाते हैं जब उसका नाम आता है तो!!!
अनिल: वो मानु जी....
संगीता: तू इन्हें नाम से क्यों बुला रहा है? ये तो तेरे जीजा जी हैं?
अनिल: दीदी... पहले बुलाता था किसी और रिश्ते से...इन्हें जीजा नहीं मानता था...बस मुंह से कहता था...पर अब 8 तरीक के बाद, जॉब तुम्हारी शादी हो जाएगी तब से इन्हें जीजा जी ही कहूँगा|
संगीता: तो अभी भी तो ये तेरे होने वाले जीजा जी ही हैं?
मैं: यार होने वाले हैं...हुए तो नहीं ना? अब कुछ टाइम तो हम दोनों को Lovers बने रहना है!
मेरी बात सुन के मैं और अनिल तो ठहाके मारके हंसने लगे और संगीता ने अपना मुँह मेरे बाएं कंधे पे रख के छुपा लिया|