घनश्यामलंड Ghanshyam Land
Posted: 09 Sep 2015 07:51
सुषमा एक ३५ साल की शादी शुदा महिला है जिसका पति, विनोद कुमार, है। सुषमा एक सुन्दर औरत है जो दिखने में एक २०-२२ साल की लड़की की तरह दिखती है। ५’ २” ऊंचा कद, छोटे स्तन, गठीला सुडौल शरीर, रसीले होंट, काले लम्बे बाल ओर मोहक मुस्कान।
विनोद कुमार एक सेक्सी आदमी था जो की पत्नी को सिर्फ एक सेक्स का खिलौना समझता था। उसकी आवाज़ में कर्कशता और व्यवहार में रूखापन था। वोह रोज़ ऑफिस से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। उसको सेक्स और ब्लू फिल्म का शौक था जो उसे अपने पड़ोस में ही मुफ्त मिल जाते थे।
रोज़ वोह ब्लू फिल्म लगा कर देखता। फिर खाना खा कर अपनी पत्नी से सम्भोग करता। यह उसकी रोज़ की दिन चर्या थी।
बेचारी सुषमा का काम सिर्फ सीधे या उल्टे लेट जाना होता था। विनोद कुमार बिना किसी भूमिका के उसके साथ सम्भोग करता जो कई बार सुषमा को बलात्कार जैसा लगता था। उसकी कोई इच्छा पूर्ति नहीं होती थी ना ही उस से कुछ पूछा जाता था। वह अपने पति से बहुत तंग आ चुकी थी पर एक भारतीय नारी की तरह अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। उसका पति उसका बिलकुल ध्यान नहीं रखता था। सम्भोग भी क्रूरता के साथ करता था। न कोई प्यारी बातें ना ही कोई प्यार का इज़हार। बस सीधा अपना लंड सुषमा की चूत में घुसा देना। सुषमा की चूत ज्यादातर सूखी ही होती थी और उसे इस तरह के सम्भोग से बहुत दर्द होता था। पर कुछ कह नहीं पाती थी क्योंकि पति घर में और भी बड़ा थानेदार होता था। इस पताड़ना से सुषमा को महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती थी जब मासिक धर्म के कारण विनोद कुमार कुछ नहीं कर पाता था। विनोद कुमार की एक बात अच्छी थी की वो निरीक्षक होने के बावजूद भी पराई औरत या वेश्या के पास नहीं जाता था।
सुषमा एक कंपनी में सेक्रेटरी का काम करती थी। वह एक मेहनती और ईमानदार लड़की थी जिसके काम से उसका बॉस बहुत खुश था। उसका बॉस एक ५० साल का सेवा-निवृत्त फौजी अफसर था। वह भी शादीशुदा था और एक दयालु किस्म का आदमी था। कई दिनों से वह नोटिस कर रहा था कि सुषमा गुमसुम सी रहती थी। फौज में उसने औरतों का सम्मान करना सीखा था। उसे यह तो मालूम था कि उसका बेटा नहीं रहा पर फिर भी उसका मासूम दुखी चेहरा उसको ठेस पहुंचाता था। वह उसके लिए कुछ करना चाहता था पर क्या और कैसे करे समझ नहीं पा रहा था। वह उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। उधर सुषमा अपने बॉस का बहुत सम्मान करती थी क्योंकि उसे अपने बॉस का अपने स्टाफ के प्रति व्यवहार बहुत अच्छा लगता था। बॉस होने के बावजूद वह सबसे इज्ज़त के साथ बात करता था और उनकी छोटी बड़ी ज़रूरतों का ध्यान रखता था। सिर्फ सुषमा ही नहीं, बाकी सारा स्टाफ भी बॉस को बहुत चाहता था।
एक दिन, जब सबको महीने की तनख्वाह दी जा रही थी, बॉस ने सबको जल्दी छुट्टी दे दी। सब पैसे ले कर घर चले गये, बस सुषमा हिसाब के कागजात पूरे करने के लिए रह गई थी। जब यह काम ख़त्म हो गया तो वह बॉस की केबिन में उसके हस्ताक्षर लेने गई। बॉस, जिसका नाम ललित है, उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने उसे बैठने को कहा और उसका वेतन उसे देते हुए उसके काम की सराहना की। सुषमा ने झुकी आँखों से धन्यवाद किया और जाने के लिए उठने लगी।
ललित ने उसे बैठने के लिए कहा और उठ कर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। उसने प्यार से उस से पूछा कि वह इतनी गुमसुम क्यों रहती है? क्या ऑफिस में कोई उसे तंग करता है या कोई और समस्या है?
सुषमा ने सिर हिला कर मना किया पर बोली कुछ नहीं। ललित को लगा कि ज़रूर कोई ऑफिस की ही बात है और वह बताने से शरमा या घबरा रही है। उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा कि उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है और वह बेधड़क उसे सच सच बता सकती है। सुषमा कुछ नहीं बोली और सिर झुकाए बैठी रही। ललित उसके सामने आ गया और उसकी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाई तो देखा कि उसकी आँखों में आँसू थे।
ललित ने उसके गालों से आँसू पौंछे और उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया। इस समय सुषमा कुर्सी पर बैठी हुई थी और ललित उसके सामने खड़ा था। इसलिए सुषमा का सिर ललित के पेट से लगा था और ललित के हाथ उसकी पीठ और सिर को सहला रहे थे। सुषमा अब एक बच्चे की तरह रोने लग गई थी और ललित उसे रोने दे रहा था जिस से उसका मन हल्का हो जाये। थोड़ी देर बाद वह शांत हो गई और अपने आप को ललित से अलग कर लिया। ललित उसके सामने कुर्सी लेकर बैठ गया। पास के जग से एक ग्लास पानी सुषमा को दिया। पानी पीने के बाद सुषमा उठकर जाने लगी तो ललित ने उसे बैठे रहने को कहा और बोला कि अपनी कहानी उसे सुनाये। क्या बात है ? क्यों रोई ? उसे क्या तकलीफ है ?
विनोद कुमार एक सेक्सी आदमी था जो की पत्नी को सिर्फ एक सेक्स का खिलौना समझता था। उसकी आवाज़ में कर्कशता और व्यवहार में रूखापन था। वोह रोज़ ऑफिस से आने के बाद अपने दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। उसको सेक्स और ब्लू फिल्म का शौक था जो उसे अपने पड़ोस में ही मुफ्त मिल जाते थे।
रोज़ वोह ब्लू फिल्म लगा कर देखता। फिर खाना खा कर अपनी पत्नी से सम्भोग करता। यह उसकी रोज़ की दिन चर्या थी।
बेचारी सुषमा का काम सिर्फ सीधे या उल्टे लेट जाना होता था। विनोद कुमार बिना किसी भूमिका के उसके साथ सम्भोग करता जो कई बार सुषमा को बलात्कार जैसा लगता था। उसकी कोई इच्छा पूर्ति नहीं होती थी ना ही उस से कुछ पूछा जाता था। वह अपने पति से बहुत तंग आ चुकी थी पर एक भारतीय नारी की तरह अपना पत्नी धर्म निभा रही थी। उसका पति उसका बिलकुल ध्यान नहीं रखता था। सम्भोग भी क्रूरता के साथ करता था। न कोई प्यारी बातें ना ही कोई प्यार का इज़हार। बस सीधा अपना लंड सुषमा की चूत में घुसा देना। सुषमा की चूत ज्यादातर सूखी ही होती थी और उसे इस तरह के सम्भोग से बहुत दर्द होता था। पर कुछ कह नहीं पाती थी क्योंकि पति घर में और भी बड़ा थानेदार होता था। इस पताड़ना से सुषमा को महीने में पांच दिन की छुट्टी मिलती थी जब मासिक धर्म के कारण विनोद कुमार कुछ नहीं कर पाता था। विनोद कुमार की एक बात अच्छी थी की वो निरीक्षक होने के बावजूद भी पराई औरत या वेश्या के पास नहीं जाता था।
सुषमा एक कंपनी में सेक्रेटरी का काम करती थी। वह एक मेहनती और ईमानदार लड़की थी जिसके काम से उसका बॉस बहुत खुश था। उसका बॉस एक ५० साल का सेवा-निवृत्त फौजी अफसर था। वह भी शादीशुदा था और एक दयालु किस्म का आदमी था। कई दिनों से वह नोटिस कर रहा था कि सुषमा गुमसुम सी रहती थी। फौज में उसने औरतों का सम्मान करना सीखा था। उसे यह तो मालूम था कि उसका बेटा नहीं रहा पर फिर भी उसका मासूम दुखी चेहरा उसको ठेस पहुंचाता था। वह उसके लिए कुछ करना चाहता था पर क्या और कैसे करे समझ नहीं पा रहा था। वह उसके स्वाभिमान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था। उधर सुषमा अपने बॉस का बहुत सम्मान करती थी क्योंकि उसे अपने बॉस का अपने स्टाफ के प्रति व्यवहार बहुत अच्छा लगता था। बॉस होने के बावजूद वह सबसे इज्ज़त के साथ बात करता था और उनकी छोटी बड़ी ज़रूरतों का ध्यान रखता था। सिर्फ सुषमा ही नहीं, बाकी सारा स्टाफ भी बॉस को बहुत चाहता था।
एक दिन, जब सबको महीने की तनख्वाह दी जा रही थी, बॉस ने सबको जल्दी छुट्टी दे दी। सब पैसे ले कर घर चले गये, बस सुषमा हिसाब के कागजात पूरे करने के लिए रह गई थी। जब यह काम ख़त्म हो गया तो वह बॉस की केबिन में उसके हस्ताक्षर लेने गई। बॉस, जिसका नाम ललित है, उसका इंतज़ार कर रहा था। उसने उसे बैठने को कहा और उसका वेतन उसे देते हुए उसके काम की सराहना की। सुषमा ने झुकी आँखों से धन्यवाद किया और जाने के लिए उठने लगी।
ललित ने उसे बैठने के लिए कहा और उठ कर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया। उसने प्यार से उस से पूछा कि वह इतनी गुमसुम क्यों रहती है? क्या ऑफिस में कोई उसे तंग करता है या कोई और समस्या है?
सुषमा ने सिर हिला कर मना किया पर बोली कुछ नहीं। ललित को लगा कि ज़रूर कोई ऑफिस की ही बात है और वह बताने से शरमा या घबरा रही है। उसने प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराते हुए कहा कि उसे डरने की कोई ज़रुरत नहीं है और वह बेधड़क उसे सच सच बता सकती है। सुषमा कुछ नहीं बोली और सिर झुकाए बैठी रही। ललित उसके सामने आ गया और उसकी ठोडी पकड़ कर ऊपर उठाई तो देखा कि उसकी आँखों में आँसू थे।
ललित ने उसके गालों से आँसू पौंछे और उसे प्यार से अपने सीने से लगा लिया। इस समय सुषमा कुर्सी पर बैठी हुई थी और ललित उसके सामने खड़ा था। इसलिए सुषमा का सिर ललित के पेट से लगा था और ललित के हाथ उसकी पीठ और सिर को सहला रहे थे। सुषमा अब एक बच्चे की तरह रोने लग गई थी और ललित उसे रोने दे रहा था जिस से उसका मन हल्का हो जाये। थोड़ी देर बाद वह शांत हो गई और अपने आप को ललित से अलग कर लिया। ललित उसके सामने कुर्सी लेकर बैठ गया। पास के जग से एक ग्लास पानी सुषमा को दिया। पानी पीने के बाद सुषमा उठकर जाने लगी तो ललित ने उसे बैठे रहने को कहा और बोला कि अपनी कहानी उसे सुनाये। क्या बात है ? क्यों रोई ? उसे क्या तकलीफ है ?