शीशे का ताजमहल
Posted: 13 Sep 2015 09:39
शबनम का बैठकखाना खूबसूरती से सजा हुआ था, कमरे की दीवारें हल्के गुलाबी रंग से पुती हुई थी, बाईं दीवार पर एक अस्त व्यस्त ग्रामीण बाला की आदमकद तस्वीर लगी हुई थी। ठीक उसी के नीचे बड़े से दीवान पर खूबसूरत सा बेड कवर बिछा हुआ था, फर्श पर महंगा गद्देदार कालीन, सुन्दर सोफासेट..। कुल मिलकर बैठकखाना एक परिष्कृत अभिरुचि का एक जीता जागता नमूना था।
कमरे की जो चीज मुझे सबसे अधिक आकर्षित कर रही थी, वो थी सोफासेट के बाजू में एक काले स्टूल पर रखी हुई ताजमहल की प्रतिकृति !
लगभग दो फीट ऊँची वह प्रतिकृति चमकदार शीशे की बनी हुई थी जो कमरे की मद्धम रोशनी में हीरे की तरह जगमगा रही थी। मेरा ध्यान बार बार उस ताजमहल की ओर चला जाता और मैं भाव विभोर होकर उस कला के अद्भुत नमूने को निहारता रहता।
मन होता उसे छू लूँ..। पर लगता कि मेरे छू लेने भर से कहीं वह टूट न जाये।
आप सोच रहे होंगे कि यह शबनम भला कौन है और मैं उसके बैठक खाने में कैसे पहुँच गया। दरअसल शबनम मेरे दीदी की अन्तरंग सहेली है जो मेरे दीदी के घर से थोड़ी दूर पर रहती है। मेरे दीदी की शादी अहमदाबाद के एक खाते-पीते परिवार में हुई है। जीजा जी का आयात-निर्यात का अपना कारोबार है जिसमें वो अक्सर व्यस्त रहते हैं। दीदी की उम्र 35 साल है और मेरी 28 साल।
दीदी की ननद की शादी नवम्बर माह में तय हुई थी। जीजाजी की व्यस्तता के कारण दीदी ने मुझे शादी की तैयारियों के लिए एक माह पहले ही बुलवा लिया था। अहमदाबाद में दीदी की आलिशान कोठी थी। दीदी ने मेरे रहने के लिए ऊपर की मंजिल में एक अलग से कमरा मुझे दे रखा था। शादी की खरीददारी के लिए दीदी अपनी अन्तरंग सहेली शबनम और मुझे साथ लेकर जाया करती थी।
शबनम की उम्र 32 होगी, वह बहुत गोरी तो नहीं थी पर रंग साफ़ था। ऊंचाई लगभग 5 फीट होगी। उसके घने लम्बे घुंघराले बाल कूल्हे तक आते थे जिन्हें वो अक्सर जूड़े के रूप में बांधकर रखती थी। उसके भरे हुए गदराये जिस्म पर उभरे हुए विशाल वक्ष उसके व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करते थे। वो गंभीर थी… शालीन थी.. कुल मिलाकर मैं उसके व्यक्तित्व के मोहपाश में बुरी तरह जकड़ चुका था।
शादी की खरीददारी के लिए जब मैं पहली बार शबनम के घर गया तो मैं उसके ड्राइंग रूम की सजावट देखकर मंत्रमुग्ध हो गया था। विशेषकर ड्राइंग रूम में रखे उस बेहद खूबसूरत शीशे के ताजमहल के प्रति। मुझे उसके व्यक्तिगत अभिरुचि का आभास भी हो चुका था।
हम लगभग प्रतिदिन शाम को चार बजे खरीददारी के लिए निकलते और रात करीब 9 बजे वापस लौट आते थे। इस बीच हम किसी काफी हाउस में काफी आदि पी लिया करते थे। मुझे शबनम का साथ अच्छा लगने लगा था। वो ज्यादा बात नहीं करती थी..। पर मैं उसकी बातें बड़े ध्यान से सुनता था….। उसकी हर ज़रूरत का ख्याल रखता था। मैं ज्यादा से ज्यादा समय उसके साथ रहने की कोशिश करने लगा था।
उसमें निश्छलता थी पर मेरे अन्दर कपटपूर्ण भाव आने लगे थे। इसलिए कभी-कभार मौका देखकर जानबूझकर अनजान बनते हुए उसके शरीर का स्पर्श करने से अपने आप को रोक नहीं पाता था।ऐसा करने पर जो आनन्द की अनुभूति मुझे होती थी वह अवर्णननीय है। अपने मन की भावनाओं को छिपाकर मैंने शबनम के बारे में जानना चाहा तो दीदी ने मुझे बताया कि वह तलाकशुदा है। लगभग चार साल पहले उसने प्रेम विवाह किया था, उसके पति एक बड़े कंपनी में ऊँचे पद पर पदस्थ हैं। उसके पति ने लगभग दो साल पहले अपने घरवालों के दबाव में अपने किसी दूर के रिश्तेदार की बेटी से दूसरा विवाह कर लिया, जिससे शबनम के आत्मसम्मान को इतनी गहरी ठेस लगी कि उसने अपने शौहर से सम्बन्ध तोड़ लिया। शबनम के पति ने उस सम्बन्ध को बनाये रखने की भरपूर कोशिश की थी पर शबनम की जिद के आगे उसकी एक न चली।
कमरे की जो चीज मुझे सबसे अधिक आकर्षित कर रही थी, वो थी सोफासेट के बाजू में एक काले स्टूल पर रखी हुई ताजमहल की प्रतिकृति !
लगभग दो फीट ऊँची वह प्रतिकृति चमकदार शीशे की बनी हुई थी जो कमरे की मद्धम रोशनी में हीरे की तरह जगमगा रही थी। मेरा ध्यान बार बार उस ताजमहल की ओर चला जाता और मैं भाव विभोर होकर उस कला के अद्भुत नमूने को निहारता रहता।
मन होता उसे छू लूँ..। पर लगता कि मेरे छू लेने भर से कहीं वह टूट न जाये।
आप सोच रहे होंगे कि यह शबनम भला कौन है और मैं उसके बैठक खाने में कैसे पहुँच गया। दरअसल शबनम मेरे दीदी की अन्तरंग सहेली है जो मेरे दीदी के घर से थोड़ी दूर पर रहती है। मेरे दीदी की शादी अहमदाबाद के एक खाते-पीते परिवार में हुई है। जीजा जी का आयात-निर्यात का अपना कारोबार है जिसमें वो अक्सर व्यस्त रहते हैं। दीदी की उम्र 35 साल है और मेरी 28 साल।
दीदी की ननद की शादी नवम्बर माह में तय हुई थी। जीजाजी की व्यस्तता के कारण दीदी ने मुझे शादी की तैयारियों के लिए एक माह पहले ही बुलवा लिया था। अहमदाबाद में दीदी की आलिशान कोठी थी। दीदी ने मेरे रहने के लिए ऊपर की मंजिल में एक अलग से कमरा मुझे दे रखा था। शादी की खरीददारी के लिए दीदी अपनी अन्तरंग सहेली शबनम और मुझे साथ लेकर जाया करती थी।
शबनम की उम्र 32 होगी, वह बहुत गोरी तो नहीं थी पर रंग साफ़ था। ऊंचाई लगभग 5 फीट होगी। उसके घने लम्बे घुंघराले बाल कूल्हे तक आते थे जिन्हें वो अक्सर जूड़े के रूप में बांधकर रखती थी। उसके भरे हुए गदराये जिस्म पर उभरे हुए विशाल वक्ष उसके व्यक्तित्व को पूर्णता प्रदान करते थे। वो गंभीर थी… शालीन थी.. कुल मिलाकर मैं उसके व्यक्तित्व के मोहपाश में बुरी तरह जकड़ चुका था।
शादी की खरीददारी के लिए जब मैं पहली बार शबनम के घर गया तो मैं उसके ड्राइंग रूम की सजावट देखकर मंत्रमुग्ध हो गया था। विशेषकर ड्राइंग रूम में रखे उस बेहद खूबसूरत शीशे के ताजमहल के प्रति। मुझे उसके व्यक्तिगत अभिरुचि का आभास भी हो चुका था।
हम लगभग प्रतिदिन शाम को चार बजे खरीददारी के लिए निकलते और रात करीब 9 बजे वापस लौट आते थे। इस बीच हम किसी काफी हाउस में काफी आदि पी लिया करते थे। मुझे शबनम का साथ अच्छा लगने लगा था। वो ज्यादा बात नहीं करती थी..। पर मैं उसकी बातें बड़े ध्यान से सुनता था….। उसकी हर ज़रूरत का ख्याल रखता था। मैं ज्यादा से ज्यादा समय उसके साथ रहने की कोशिश करने लगा था।
उसमें निश्छलता थी पर मेरे अन्दर कपटपूर्ण भाव आने लगे थे। इसलिए कभी-कभार मौका देखकर जानबूझकर अनजान बनते हुए उसके शरीर का स्पर्श करने से अपने आप को रोक नहीं पाता था।ऐसा करने पर जो आनन्द की अनुभूति मुझे होती थी वह अवर्णननीय है। अपने मन की भावनाओं को छिपाकर मैंने शबनम के बारे में जानना चाहा तो दीदी ने मुझे बताया कि वह तलाकशुदा है। लगभग चार साल पहले उसने प्रेम विवाह किया था, उसके पति एक बड़े कंपनी में ऊँचे पद पर पदस्थ हैं। उसके पति ने लगभग दो साल पहले अपने घरवालों के दबाव में अपने किसी दूर के रिश्तेदार की बेटी से दूसरा विवाह कर लिया, जिससे शबनम के आत्मसम्मान को इतनी गहरी ठेस लगी कि उसने अपने शौहर से सम्बन्ध तोड़ लिया। शबनम के पति ने उस सम्बन्ध को बनाये रखने की भरपूर कोशिश की थी पर शबनम की जिद के आगे उसकी एक न चली।