प्यार हो तो ऐसा पार्ट--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर आपके लिए हाजिर हूँ दोस्तो ये कहानी भी एक लंबी कहानी है ये कहानी नही बल्किएक प्रेम साधना है
पूर्णिमा की रात है, चाँद की चाँदनी चारो ओर फैली हुई है. वर्षा अपनी बाल्कनी में खड़ी हुई चाँदनी में लहलहाते खेतो को देख रही है. पर उसका दिल बहुत बेचैन है
“उफ्फ ये चाँदनी रात क्या आज ही होनी थी, अब मैं कैसे बाहर जाउन्गि, किसी ने देख लिया तो मुशिबत हो जाएगी. अंधेरा होता तो आराम से निकल जाती. अब क्या करूँ ? ……. मदन मेरा इंतेज़ार कर रहा होगा, कैसे जाउ मैं अब………… वैसे मुझे यकीन है कि वो मेरी मज़बूरी समझ जाएगा”
वर्षा मन ही मन ये सब सोच रही है
इधर मदन भी चाँदनी रात में लहलहाते खेतो को देख रहा है. ऐसा लग रहा है जैसे की हवायें चाँदनी रात में खेतो में गीत गा रही हैं. बहुत ही सुन्दर नज़ारा है. पर मदन ज़्यादा देर तक इस नज़ारे में खो नही पाता क्योंकि वो बड़ी बेचैनी से वर्षा का इंतेज़ार कर रहा है
वो सोच रहा है कि अगर वर्षा किसी तरह से आ गयी तो वो दोनो पहली बार ऐसी तन्हाई में मिलेंगे.
आज सुबह वर्षा ने मंदिर के बाहर मदन से कहा था, “मदन पिता जी मेरे लिए लड़का ढूंड रहे हैं, मुझे बहुत डर लग रहा है”
“तुम चिंता मत करो…ऐसा करो आज रात अपने बंगलोव के पीछे के खेत में मिलो ……हम आराम से बात करेंगे”
“मैं वाहा कैसे आउन्गि मदन, मुझे डर लगता है”
“मुझे इतना प्यार करती हो, फिर मुझ से अकेले में मिलने से क्यो डरती हो”
“वो बात नही है मदन, मैं तो ये कह रही थी कि रात को उस सुनसान खेत में कैसे आउन्गि में, किसी ने देख लिया तो”
“उस खेत की ज़िम्मेदारी मुझ पर है, मैं ही रात भर उसकी रखवाली करता हूँ, वाहा डरने की कोई बात नही है, तुम आओ तो सही हम ढेर सारी बाते करेंगे”
“वो तो ठीक है ………… अछा मैं कोशिस करूँगी, मेरे लिए घर से निकलना बहुत मुस्किल होगा, पर मैं पूरी कोशिस करूँगी”
ये बातें हुई थी सुबह मंदिर के बाहर दोनो के बीच
इधर वर्षा अभी भी कसंकश में है कि क्या करे क्या ना करे. वो हिम्मत करके चलने का फ़ैसला करती है
वो चुपचाप सीढ़ियों से दबे पाँव नीचे उतरती है और घर के पीछे की दीवार पर चढ़ कर खेत में उतर जाती है. मगर हर पल उसका दिल डर के मारे धक धक कर रहा है
“कहाँ है ये मदन, उसे क्या यहा नही खड़े रहना चाहिए था, मैं अकेली कैसे उसे ढूनडूँगी” --- वर्षा मन ही मन बड़बड़ा रही है.
प्यार हो तो ऐसा compleet
Re: प्यार हो तो ऐसा
इधर मदन को भी अहसास होता है कि उसे वर्षा के बंगलोव की तरफ चलना चाहिए
“अगर वर्षा आ रही होगी तो अकेली डर जाएगी”
वो सोचता है और वर्षा के बंगलोव की तरफ चल देता है.
वर्षा डरी डरी आगे बढ़ रही है, वो सामने से आते एक साए को देख कर डर जाती है और वापिस मूड कर भागने लगती है.
“अरे रूको वर्षा, ये मैं हूँ तुम्हारा मदन” --- मदन पीछे से आवाज़ लगाता है
वर्षा रुक जाती है और पीछे मूड कर देखती है कि मदन उसकी तरफ दौड़ा चला आ रहा है
“तुम्हे मेरी बिल्कुल परवाह नही है, क्या तुम्हे बंगलोव के पास नही होना चाहिए था”
“वर्षा पिता जी साथ थे, वो आज मुझे घर भेज कर खुद खेत में रुकना चाहते थे, बड़ी मुस्किल से उन्हे यहाँ से भेजा है”
“पता है कितना डर लग रहा था मुझे, मैं कभी भी रात को ऐसे बाहर नही निकली हूँ, ऐसा लग रहा था कि कोई मेरा पीछा कर रहा है” --- वर्षा ने गुस्से में कहा
“मैं समझ सकता हूँ वर्षा, मेरे बस में होता तो में खुद तुम्हे अपनी गोदी में उठा कर लाता” ---- मदन ने कहा
“बस-बस रहने दो”
“मैं सच कह रहा हूँ वर्षा मेरा यकीन करो”
ये कह कर मदन वर्षा को अपनी बाहों में जाकड़ लेता है
वर्षा के तन बदन में बीजली दौड़ जाती है, वो पहली बार मदन की बाहों में थी, वो भी रात की तन्हाई में
“छ्चोड़ो मुझे मदन ये क्या कर रहे हो”
“वर्षा मैं बहुत खुस हूँ …… मुझे बिल्कुल यकीन नही था कि तुम आओगी….. मुझे थोड़ी देर अपने करीब रहने दो”
“मुझे शरम आ रही है मदन, छ्चोड़ो ना”
मदन वर्षा को छ्चोड़ देता है, और अपनी आँखो में आए आँसुओ को पोंछने लगता है
“क्या हुवा मदन ?…. मुझसे कोई ग़लती हुई क्या ? ….. ठीक है भर लो मुझे बाहों में, मैं तो बस ये कह रहे थी कि मुझे शरम आ रही है. पहले कभी तुम्हारे इतने करीब नही आई ना…..” ---- वर्षा मदन के कंधे पर हाथ रख कर कहती है
“वर्षा जब से तुमसे प्यार हुवा है कभी सपने में भी नही सोचा था कि तुम्हारे इतने करीब आ पाउन्गा. आँखे भर आई हैं तुम्हारे इतने करीब आ कर, कहाँ तुम कहाँ मैं” – मदन ने भावुक हो कर कहा
“कहाँ तुम कहाँ मैं का क्या मतलब ???, अब प्यार में भी क्या ये सब सोचा जाता है”
“वो तो ठीक है वर्षा पर तुम नही जानती तुम्हारा प्यार मेरे लिए एक ख्वाब सा लगता है. हम दौनो अक्सर आँखो आँखो में बात करते आए हैं, बहुत कम हम दौनो ने मूह से बात की है, वैसे भी यहा मिलने का मौका ही कहा है जो कुछ बात करें. बड़े दीनो बाद आज मंदिर के बाहर बात हुई थी और आज ही पहली बार हम तन्हाई में मिल रहे हैं…. क्या ये सब सपना सा नही लगता?”
“हाँ मदन मुझे भी ये सपना सा लगता है, पता नही मैं क्यों तुमसे प्यार कर बैठी हूँ, मुझे आछे से पता है कि इस प्यार का अंजाम बहुत भयानक होगा पर फिर भी जाने क्यों…. मेरा दिल बस तुम्हारे लिए धड़कता है”
“वर्षा चलो कहीं भाग चलते हैं, यहा से बहुत दूर जहा ये उन्च-नीच, जात-पात की दीवार ना हो”
“मदन मैं तुम्हारे साथ कहीं भी चलने को तैयार हूँ पर पिता जी हमें ढूंड निकालेंगे और हमें वो खौफनाक सज़ा मिलेगी जिसकी तुम कल्पना भी नही कर सकते”
“मौत से ज़्यादा खौफनाक क्या हो सकता है वर्षा”
”तुम अभी मेरे पिता जी को नही जानते, वो तुम्हारे पूरे परिवार को तबाह कर देंगे, मैं ऐसा हरगिज़ नही होने दूँगी”
“तो इसका क्या ये मतलब है कि इस प्यार को हम भूल जायें और इस दुनिया के आगे इस प्यार का बलिदान कर दें”
“मैने ऐसा तो नही कहा मदन”
“फिर तुम कहना क्या चाहती हो”
“हम साथ जी नही सकते पर साथ मर् तो सकते हैं”
ये कहते हुवे वर्षा की आँखो में आँसू उतर आए
“ये क्या पागलपन है वर्षा… ऐसे दिल छोटा करने से क्या होगा, अगर भगवान ने इस प्यार में हमारी मौत ही लीखी है तो क्यों ना हम एक कोशिस करके मरें, क्या पता हमारे सचे प्यार के आगे भगवान का दिल पीघल जाए और वो हमें एक खुशाल ज़ींदगी दे दें”
“कैसी कोसिस मदन, मैं समझी नही” वर्षा ने अपने आँसू पोंछते हुवे कहा
“हम यहा से बहुत दूर चले जाएँगे, बहुत दूर…. जहा किसी को हमारी जात पात का पता ना हो”
“हम कहा रहेंगे मदन, हमारे पास कुछ भी तो नही है”
“जिस भगवान ने ये प्यार बनाया है वही इस प्यार को मंज़िल तक भी ले जाएँगे, चलो सच्चे मन से अपने प्यार के लिए एक कोशिस करते हैं, बाकी सब भगवान पर छ्चोड़ देते हैं. कोशिस करने से कुछ भी मिल सकता है वर्षा, बिना कोशिस किए हार मान-ना इस प्यार का अपमान होगा”
“अगर वर्षा आ रही होगी तो अकेली डर जाएगी”
वो सोचता है और वर्षा के बंगलोव की तरफ चल देता है.
वर्षा डरी डरी आगे बढ़ रही है, वो सामने से आते एक साए को देख कर डर जाती है और वापिस मूड कर भागने लगती है.
“अरे रूको वर्षा, ये मैं हूँ तुम्हारा मदन” --- मदन पीछे से आवाज़ लगाता है
वर्षा रुक जाती है और पीछे मूड कर देखती है कि मदन उसकी तरफ दौड़ा चला आ रहा है
“तुम्हे मेरी बिल्कुल परवाह नही है, क्या तुम्हे बंगलोव के पास नही होना चाहिए था”
“वर्षा पिता जी साथ थे, वो आज मुझे घर भेज कर खुद खेत में रुकना चाहते थे, बड़ी मुस्किल से उन्हे यहाँ से भेजा है”
“पता है कितना डर लग रहा था मुझे, मैं कभी भी रात को ऐसे बाहर नही निकली हूँ, ऐसा लग रहा था कि कोई मेरा पीछा कर रहा है” --- वर्षा ने गुस्से में कहा
“मैं समझ सकता हूँ वर्षा, मेरे बस में होता तो में खुद तुम्हे अपनी गोदी में उठा कर लाता” ---- मदन ने कहा
“बस-बस रहने दो”
“मैं सच कह रहा हूँ वर्षा मेरा यकीन करो”
ये कह कर मदन वर्षा को अपनी बाहों में जाकड़ लेता है
वर्षा के तन बदन में बीजली दौड़ जाती है, वो पहली बार मदन की बाहों में थी, वो भी रात की तन्हाई में
“छ्चोड़ो मुझे मदन ये क्या कर रहे हो”
“वर्षा मैं बहुत खुस हूँ …… मुझे बिल्कुल यकीन नही था कि तुम आओगी….. मुझे थोड़ी देर अपने करीब रहने दो”
“मुझे शरम आ रही है मदन, छ्चोड़ो ना”
मदन वर्षा को छ्चोड़ देता है, और अपनी आँखो में आए आँसुओ को पोंछने लगता है
“क्या हुवा मदन ?…. मुझसे कोई ग़लती हुई क्या ? ….. ठीक है भर लो मुझे बाहों में, मैं तो बस ये कह रहे थी कि मुझे शरम आ रही है. पहले कभी तुम्हारे इतने करीब नही आई ना…..” ---- वर्षा मदन के कंधे पर हाथ रख कर कहती है
“वर्षा जब से तुमसे प्यार हुवा है कभी सपने में भी नही सोचा था कि तुम्हारे इतने करीब आ पाउन्गा. आँखे भर आई हैं तुम्हारे इतने करीब आ कर, कहाँ तुम कहाँ मैं” – मदन ने भावुक हो कर कहा
“कहाँ तुम कहाँ मैं का क्या मतलब ???, अब प्यार में भी क्या ये सब सोचा जाता है”
“वो तो ठीक है वर्षा पर तुम नही जानती तुम्हारा प्यार मेरे लिए एक ख्वाब सा लगता है. हम दौनो अक्सर आँखो आँखो में बात करते आए हैं, बहुत कम हम दौनो ने मूह से बात की है, वैसे भी यहा मिलने का मौका ही कहा है जो कुछ बात करें. बड़े दीनो बाद आज मंदिर के बाहर बात हुई थी और आज ही पहली बार हम तन्हाई में मिल रहे हैं…. क्या ये सब सपना सा नही लगता?”
“हाँ मदन मुझे भी ये सपना सा लगता है, पता नही मैं क्यों तुमसे प्यार कर बैठी हूँ, मुझे आछे से पता है कि इस प्यार का अंजाम बहुत भयानक होगा पर फिर भी जाने क्यों…. मेरा दिल बस तुम्हारे लिए धड़कता है”
“वर्षा चलो कहीं भाग चलते हैं, यहा से बहुत दूर जहा ये उन्च-नीच, जात-पात की दीवार ना हो”
“मदन मैं तुम्हारे साथ कहीं भी चलने को तैयार हूँ पर पिता जी हमें ढूंड निकालेंगे और हमें वो खौफनाक सज़ा मिलेगी जिसकी तुम कल्पना भी नही कर सकते”
“मौत से ज़्यादा खौफनाक क्या हो सकता है वर्षा”
”तुम अभी मेरे पिता जी को नही जानते, वो तुम्हारे पूरे परिवार को तबाह कर देंगे, मैं ऐसा हरगिज़ नही होने दूँगी”
“तो इसका क्या ये मतलब है कि इस प्यार को हम भूल जायें और इस दुनिया के आगे इस प्यार का बलिदान कर दें”
“मैने ऐसा तो नही कहा मदन”
“फिर तुम कहना क्या चाहती हो”
“हम साथ जी नही सकते पर साथ मर् तो सकते हैं”
ये कहते हुवे वर्षा की आँखो में आँसू उतर आए
“ये क्या पागलपन है वर्षा… ऐसे दिल छोटा करने से क्या होगा, अगर भगवान ने इस प्यार में हमारी मौत ही लीखी है तो क्यों ना हम एक कोशिस करके मरें, क्या पता हमारे सचे प्यार के आगे भगवान का दिल पीघल जाए और वो हमें एक खुशाल ज़ींदगी दे दें”
“कैसी कोसिस मदन, मैं समझी नही” वर्षा ने अपने आँसू पोंछते हुवे कहा
“हम यहा से बहुत दूर चले जाएँगे, बहुत दूर…. जहा किसी को हमारी जात पात का पता ना हो”
“हम कहा रहेंगे मदन, हमारे पास कुछ भी तो नही है”
“जिस भगवान ने ये प्यार बनाया है वही इस प्यार को मंज़िल तक भी ले जाएँगे, चलो सच्चे मन से अपने प्यार के लिए एक कोशिस करते हैं, बाकी सब भगवान पर छ्चोड़ देते हैं. कोशिस करने से कुछ भी मिल सकता है वर्षा, बिना कोशिस किए हार मान-ना इस प्यार का अपमान होगा”
Re: प्यार हो तो ऐसा
“मैं तुम्हारी हूँ मदन, मुझे जहाँ चाहे वाहा ले चलो, मुझे अपनी चिंता नही है. अपनी चिंता होती तो ये प्यार ही ना करती. मुझे बस तुम्हारी और तुम्हारे घर वालो की चिंता है”
“तुम किसी की चिंता मत करो, जिसने ये जीवन दिया है वही इसकी रक्षा भी करेंगे, मुझे भी अपने घर वालो की चिंता है, पर मैं अपने दिल के हाथो मजबूर हूँ, मुझे यकीन है कि सब कुछ ठीक होगा” ---- मदन ने कहा
“ठीक है मदन जैसा तुम ठीक समझो”
चाँद की चाँदनी चारो तरफ फैली हुई है और दो प्यार में डूबे दिल दुनिया की हर दीवार को तोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं.
हरे हरे खेत के एक कोने में आम के वृक्षा के नीचे दो दिल अपने प्यार को मंज़िल तक ले जाने की बाते कर रहे हैं
“वर्षा एक बात बताओ”
“हाँ पूछो”
“क्या तुम्हे डर नही लगा मेरे पास तन्हाई में आते हुवे”
“मदन एक तुम ही हो जिसको में कभी भी कहीं भी मिल सकती हूँ, तुमसे इतना प्यार जो करती हूँ, वरना मुझे हर आदमी से डर लगता है”
“ऐसा क्या है मुझ में वर्षा ?”
“तुम्हे याद है आज से करीब 4 साल पहले जब में खेतो में रास्ता भटक गयी थी तब तुम मुझे घर तक छ्चोड़ कर आए थे. अंधेरा होने को था और तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे कि ‘डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ ना’. उस दिन पिता जी से खूब डाँट पड़ी थी इस बात को ले कर कि मैं क्यों अपनी सहेलियों के साथ खेतो में घूमने गयी थी. पर सब कुछ भुला कर रात भर मैं बस तुम्हे ही सोच रही थी. उस दिन तुम जाने अंजाने मेरे दिल के एक कोने में अपना घर बना गये थे”
“वो दिन मुझे भी याद है, उस दिन तुम्हे पहली बार देखा था मैने, पता नही था कि तुम कौन हो कहा से हो. तुम खेत के एक कोने में परेशान सी खड़ी थी. मैं तुम्हे देखते ही समझ गया था कि तुम रास्ता भटक गयी हो. जब मैने पूछा था कि क्या बात है ? तुमने रोनी सूरत बना कर कहा था, “मुझे घर जाना है” और मैने कहा था चलो मैं तुम्हे घर छ्चोड़ देता हूँ”
“उस वक्त मैं बहुत डर गयी थी मदन, मेरी सहेलियाँ जाने कहाँ थी और अंधेरा घिर आया था, और वो पहली बार था कि मैं घर से ऐसे बाहर थी”
“हाँ तुम तो मुझ से भी डर रही थी”
“मैं तुम्हे तब जानती नही थी, डरना लाज़मी था, अकेली लड़की के साथ कुछ भी हो सकता है, पर मुझे अछा लगा था कि तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे”
“हां पर बड़ी मुस्किल से तुम मेरे साथ चली थी”
“तुम्हारे साथ तब मज़बूरी में चली थी लेकिन आज तुम्हारे साथ अपनी ख़ुसी से कहीं भी चलने को तैयार हूँ”
“इतना प्यार क्यों करती हो तुम मुझे वर्षा ?”
“पता नही मदन, मुझे सच में नही पता”
“याद है जब मैने तुम्हारे घर के बारे में पूछा था तो तुम बड़े गरूर से बोली थी कि मैं रुद्र प्रताप सिंग की बेटी हूँ”
“मैं तुम्हे डराना चाहती थी ताकि तुम कुछ ऐसा वैसा ना सोचो, और तुम मेरे पिता जी का नाम सुन कर डर भी तो गये थे”
“उनके नाम से यहा कौन नही डरता वर्षा, उनके एक इशारे पर किसी की भी जान जा सकती है”
“पर 4 दिन बाद ही तुम में बहुत हिम्मत आ गयी थी, मुझे लाल गुलाब का फूल दे कर गये थे वो भी बड़े अजीब तरीके से. मैं मंदिर से निकल रही थी और तुम मेरे रास्ते में गुलाब का फूल फेंक कर भाग गये थे, मैं तुम्हे देखती रही पर तुमने पीछे मूड कर भी नही देखा. आज तक संभाल कर रखा है मैने वो फूल”
“पता नही क्या हो गया था मुझे, डरते डरते तुम्हारे रास्ते में फूल फेंका था, वो तो सूकर था कि किसी ने देखा नही वेर्ना मुसीबत हो जाती”
“मैने भी डरते डरते वो फूल उठाया था, वो पल आज तक मेरी आँखो में घूमता है, तुम तो फूल फेंक कर भाग गये थे, उठाते वक्त मुझ पर जो बीती थी वो मैं ही जानती हूँ”
“और अगले दिन तुमने क्या किया था, खुद भी तो एक गुलाब वहीं उसी जगह गिरा दिया था जहाँ मैने अपना गुलाब फेंका था. अगले दिन तुम में कहा से हिम्मत आ गयी थी?”
“पता नही, तुम्हारे प्यार का ज्वाब प्यार से देना चाहती थी”
“वर्षा मैने भी तुम्हारा गुलाब आज तक संभाल कर रखा है”
दौनो हंस पड़ते हैं
“तुम किसी की चिंता मत करो, जिसने ये जीवन दिया है वही इसकी रक्षा भी करेंगे, मुझे भी अपने घर वालो की चिंता है, पर मैं अपने दिल के हाथो मजबूर हूँ, मुझे यकीन है कि सब कुछ ठीक होगा” ---- मदन ने कहा
“ठीक है मदन जैसा तुम ठीक समझो”
चाँद की चाँदनी चारो तरफ फैली हुई है और दो प्यार में डूबे दिल दुनिया की हर दीवार को तोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं.
हरे हरे खेत के एक कोने में आम के वृक्षा के नीचे दो दिल अपने प्यार को मंज़िल तक ले जाने की बाते कर रहे हैं
“वर्षा एक बात बताओ”
“हाँ पूछो”
“क्या तुम्हे डर नही लगा मेरे पास तन्हाई में आते हुवे”
“मदन एक तुम ही हो जिसको में कभी भी कहीं भी मिल सकती हूँ, तुमसे इतना प्यार जो करती हूँ, वरना मुझे हर आदमी से डर लगता है”
“ऐसा क्या है मुझ में वर्षा ?”
“तुम्हे याद है आज से करीब 4 साल पहले जब में खेतो में रास्ता भटक गयी थी तब तुम मुझे घर तक छ्चोड़ कर आए थे. अंधेरा होने को था और तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे कि ‘डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ ना’. उस दिन पिता जी से खूब डाँट पड़ी थी इस बात को ले कर कि मैं क्यों अपनी सहेलियों के साथ खेतो में घूमने गयी थी. पर सब कुछ भुला कर रात भर मैं बस तुम्हे ही सोच रही थी. उस दिन तुम जाने अंजाने मेरे दिल के एक कोने में अपना घर बना गये थे”
“वो दिन मुझे भी याद है, उस दिन तुम्हे पहली बार देखा था मैने, पता नही था कि तुम कौन हो कहा से हो. तुम खेत के एक कोने में परेशान सी खड़ी थी. मैं तुम्हे देखते ही समझ गया था कि तुम रास्ता भटक गयी हो. जब मैने पूछा था कि क्या बात है ? तुमने रोनी सूरत बना कर कहा था, “मुझे घर जाना है” और मैने कहा था चलो मैं तुम्हे घर छ्चोड़ देता हूँ”
“उस वक्त मैं बहुत डर गयी थी मदन, मेरी सहेलियाँ जाने कहाँ थी और अंधेरा घिर आया था, और वो पहली बार था कि मैं घर से ऐसे बाहर थी”
“हाँ तुम तो मुझ से भी डर रही थी”
“मैं तुम्हे तब जानती नही थी, डरना लाज़मी था, अकेली लड़की के साथ कुछ भी हो सकता है, पर मुझे अछा लगा था कि तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे”
“हां पर बड़ी मुस्किल से तुम मेरे साथ चली थी”
“तुम्हारे साथ तब मज़बूरी में चली थी लेकिन आज तुम्हारे साथ अपनी ख़ुसी से कहीं भी चलने को तैयार हूँ”
“इतना प्यार क्यों करती हो तुम मुझे वर्षा ?”
“पता नही मदन, मुझे सच में नही पता”
“याद है जब मैने तुम्हारे घर के बारे में पूछा था तो तुम बड़े गरूर से बोली थी कि मैं रुद्र प्रताप सिंग की बेटी हूँ”
“मैं तुम्हे डराना चाहती थी ताकि तुम कुछ ऐसा वैसा ना सोचो, और तुम मेरे पिता जी का नाम सुन कर डर भी तो गये थे”
“उनके नाम से यहा कौन नही डरता वर्षा, उनके एक इशारे पर किसी की भी जान जा सकती है”
“पर 4 दिन बाद ही तुम में बहुत हिम्मत आ गयी थी, मुझे लाल गुलाब का फूल दे कर गये थे वो भी बड़े अजीब तरीके से. मैं मंदिर से निकल रही थी और तुम मेरे रास्ते में गुलाब का फूल फेंक कर भाग गये थे, मैं तुम्हे देखती रही पर तुमने पीछे मूड कर भी नही देखा. आज तक संभाल कर रखा है मैने वो फूल”
“पता नही क्या हो गया था मुझे, डरते डरते तुम्हारे रास्ते में फूल फेंका था, वो तो सूकर था कि किसी ने देखा नही वेर्ना मुसीबत हो जाती”
“मैने भी डरते डरते वो फूल उठाया था, वो पल आज तक मेरी आँखो में घूमता है, तुम तो फूल फेंक कर भाग गये थे, उठाते वक्त मुझ पर जो बीती थी वो मैं ही जानती हूँ”
“और अगले दिन तुमने क्या किया था, खुद भी तो एक गुलाब वहीं उसी जगह गिरा दिया था जहाँ मैने अपना गुलाब फेंका था. अगले दिन तुम में कहा से हिम्मत आ गयी थी?”
“पता नही, तुम्हारे प्यार का ज्वाब प्यार से देना चाहती थी”
“वर्षा मैने भी तुम्हारा गुलाब आज तक संभाल कर रखा है”
दौनो हंस पड़ते हैं