मजदूर नेता compleet
Posted: 01 Nov 2014 22:36
मजदूर नेता
मेरा नाम अंजलि सिंग है. मैं एक शादी शुदा महिला हूँ. गुजरात मे सूरत के पास एक टेक्सटाइल इंडस्ट्री मे हज़्बेंड मिस्टर. ब्रिजभूषण सिंग ( वी कॉल हिम ब्रिज) इंजिनियर के पोस्ट मे काम करते हैं. उनके टेक्सटाइल मिल मे हमेशा लेबर प्राब्लम रहती है.
मजदूरों का नेता भोगी भाई बहुत ही काइयां टाइप का आदमी है. ऑफीसर लोगों को उस आदमी को हमेशा पटा कर रखना पड़ता है. मेरे पति की उस से बहुत पट ती थी. मुझे उनकी दोस्ती फूटी आँख भी नहीं सुहाति थी. शादी के बाद मैं जब नयी नयी आई थी वह पति के साथ अक्सर आने लगा. उसकी आँखें मेरी बदन पर फिरती रहती थी. मेरा बदन वैसे भी काफ़ी सेक्सी था. वह पूरे बदन पर नज़रें फेरता रहता था. ऐसा लगता था मानो वह कल्पना में मुझे नंगा कर रहा हो. शादी के बाद मुझे किसी को यह बताने के बाद बहुत शर्म आती थी. फिर भी मैने ब्रिज को समझाया कि ऐसे आदमियों से दोस्ती छ्चोड़ दे मगर वह तर्क देता था कि प्राइवेट कंपनी मे नौकरी करने पर थोड़ा बहुत ऐसे लोगों से बना कर रखना पड़ता ही है.
उनके तर्क के आगे मैं चुप हो जाती थी. मैने कहा भी कि वह आदमी मुझे बुरी नज़रों से घूरता रहता है. मगर वो मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं देते थे. भोगी भाई कोई 45 साल का भैसे की तरह काला आदमी था. उसका काम हर वक़्त कोई ना कोई खुराफात करना रहता था. उसकी पहुँच उपर तक थी. उसका दबदबा आस पास के कई कंपनी मे चलता था.
बाजार के नुक्कड़ पर उसकी कोठी थी जिसमे वो अकेला ही रहता था. कोई फॅमिली नहीं थी मगर लोग बताते हैं कि वो बहुत ही रंगीला आदमी है और अक्सर उसके घर मे लड़कियाँ भेजी जाती थी. हर वक़्त कई चम्चो से घिरा रहता था. वो सब देखने मे गुण्डों से लगते थे. सूरत और इसके आसपास काफ़ी टेक्सटाइल के छ्होटे मोटे फॅक्टरीस हैं. इन सब मे भोगी भाई की आग्या के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. उसकी पहुँच यहाँ के एमएलए से भी ज़्यादा है.
ब्रिज के सामने ही कई बार मेरे साथ गंदे मज़ाक भी करता था. मैं गुस्से से लाल हो जाती थी मगर ब्रिज हंस कर टाल देता था. बाद मे मेरे शिकायत करने पर मुझे बाहों मे लेकर मेरे होंठों को चूम कर कहता,
“अंजू तुम हो ही ऐसी कि किसी का भी मन डोल जाए तुम पर. अगर कोई तुम्हें देख कर ही खुश हो जाता हो तो हमे क्या फ़र्क़ पड़ता है.” घर के मैन डोर की च्चितकनी मे कोई नुखस था. दरवाजे को ज़ोर से धक्का देने पर च्चितकनी अपने आप गिर जाती थी.
होली से दो दिन पहले एक दिन पहले किसी काम से भोगी भाई हमारे घर पहुँचा. दिन का वक़्त था. मैं उस समय बात रूम मे नहा रही थी. बाहर से काफ़ी आवाज़ लगाने पर भी मुझे सुनाई नहीं दिया था. शायद उसने घंटी भी बजाई होगी मगर अंदर पानी की आवाज़ मे मुझे कुच्छ भी सुनाई नहीं दिया.
मैं अपने धुन मे गुनगुनाती हुई नहा रही थी. उसने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजे की च्चितकनी गिर गयी और दरवाजा खुल गया. भोगी भाई ने बाहर से आवाज़ लगाई मगर कोई जवाब ना पाकर दरवाजा खोल कर झाँका. कमरा खाली पाकर वह अंदर प्रवेश कर गया. उसे शायद बाथरूम से पानी गिरने की एवं मेरे गुनगुनाने की आवाज़ आई तो पहले तो वह वापस जाने के लिए मुड़ा मगर फिर कुच्छ सोच कर धीरे से दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया. और मूड कर बेड रूम मे प्रवेश कर गया.
मेरा नाम अंजलि सिंग है. मैं एक शादी शुदा महिला हूँ. गुजरात मे सूरत के पास एक टेक्सटाइल इंडस्ट्री मे हज़्बेंड मिस्टर. ब्रिजभूषण सिंग ( वी कॉल हिम ब्रिज) इंजिनियर के पोस्ट मे काम करते हैं. उनके टेक्सटाइल मिल मे हमेशा लेबर प्राब्लम रहती है.
मजदूरों का नेता भोगी भाई बहुत ही काइयां टाइप का आदमी है. ऑफीसर लोगों को उस आदमी को हमेशा पटा कर रखना पड़ता है. मेरे पति की उस से बहुत पट ती थी. मुझे उनकी दोस्ती फूटी आँख भी नहीं सुहाति थी. शादी के बाद मैं जब नयी नयी आई थी वह पति के साथ अक्सर आने लगा. उसकी आँखें मेरी बदन पर फिरती रहती थी. मेरा बदन वैसे भी काफ़ी सेक्सी था. वह पूरे बदन पर नज़रें फेरता रहता था. ऐसा लगता था मानो वह कल्पना में मुझे नंगा कर रहा हो. शादी के बाद मुझे किसी को यह बताने के बाद बहुत शर्म आती थी. फिर भी मैने ब्रिज को समझाया कि ऐसे आदमियों से दोस्ती छ्चोड़ दे मगर वह तर्क देता था कि प्राइवेट कंपनी मे नौकरी करने पर थोड़ा बहुत ऐसे लोगों से बना कर रखना पड़ता ही है.
उनके तर्क के आगे मैं चुप हो जाती थी. मैने कहा भी कि वह आदमी मुझे बुरी नज़रों से घूरता रहता है. मगर वो मेरी बात पर कोई ध्यान नहीं देते थे. भोगी भाई कोई 45 साल का भैसे की तरह काला आदमी था. उसका काम हर वक़्त कोई ना कोई खुराफात करना रहता था. उसकी पहुँच उपर तक थी. उसका दबदबा आस पास के कई कंपनी मे चलता था.
बाजार के नुक्कड़ पर उसकी कोठी थी जिसमे वो अकेला ही रहता था. कोई फॅमिली नहीं थी मगर लोग बताते हैं कि वो बहुत ही रंगीला आदमी है और अक्सर उसके घर मे लड़कियाँ भेजी जाती थी. हर वक़्त कई चम्चो से घिरा रहता था. वो सब देखने मे गुण्डों से लगते थे. सूरत और इसके आसपास काफ़ी टेक्सटाइल के छ्होटे मोटे फॅक्टरीस हैं. इन सब मे भोगी भाई की आग्या के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. उसकी पहुँच यहाँ के एमएलए से भी ज़्यादा है.
ब्रिज के सामने ही कई बार मेरे साथ गंदे मज़ाक भी करता था. मैं गुस्से से लाल हो जाती थी मगर ब्रिज हंस कर टाल देता था. बाद मे मेरे शिकायत करने पर मुझे बाहों मे लेकर मेरे होंठों को चूम कर कहता,
“अंजू तुम हो ही ऐसी कि किसी का भी मन डोल जाए तुम पर. अगर कोई तुम्हें देख कर ही खुश हो जाता हो तो हमे क्या फ़र्क़ पड़ता है.” घर के मैन डोर की च्चितकनी मे कोई नुखस था. दरवाजे को ज़ोर से धक्का देने पर च्चितकनी अपने आप गिर जाती थी.
होली से दो दिन पहले एक दिन पहले किसी काम से भोगी भाई हमारे घर पहुँचा. दिन का वक़्त था. मैं उस समय बात रूम मे नहा रही थी. बाहर से काफ़ी आवाज़ लगाने पर भी मुझे सुनाई नहीं दिया था. शायद उसने घंटी भी बजाई होगी मगर अंदर पानी की आवाज़ मे मुझे कुच्छ भी सुनाई नहीं दिया.
मैं अपने धुन मे गुनगुनाती हुई नहा रही थी. उसने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया तो दरवाजे की च्चितकनी गिर गयी और दरवाजा खुल गया. भोगी भाई ने बाहर से आवाज़ लगाई मगर कोई जवाब ना पाकर दरवाजा खोल कर झाँका. कमरा खाली पाकर वह अंदर प्रवेश कर गया. उसे शायद बाथरूम से पानी गिरने की एवं मेरे गुनगुनाने की आवाज़ आई तो पहले तो वह वापस जाने के लिए मुड़ा मगर फिर कुच्छ सोच कर धीरे से दरवाजे को अंदर से बंद कर लिया. और मूड कर बेड रूम मे प्रवेश कर गया.