प्यार और जुर्म - Pyaar Aur Jurm - hindi long sex story - -
Posted: 16 Oct 2015 20:35
सुबह का वक्त काँच के ग्लासस लगाई इमारातों के जंगल मे एक इमारात और उस इमारात के चौथे मेलेपर एक एक कर के कर्मचारी एक इट कोपनी के कर्मचारी आने लगे थे. डूस बजनेको आए थे और कर्मचारियों की भीड़ अचानक बढ़ने लगी. सब कर्मचारी ऑफीस मे जाने के लिए भीड़ और जल्दी जल्दी करने लगे, कारण एक ही था देरी ना हो जे. सब कर्मचारियोंके आनेका वक्त दरवाजेपर ही स्मार्ट कार्ड रीडर पर दर्ज़ किया जाता था. कंपनी का जो कानचसे बना मुख्या दरवाजा था उसे मॅग्नेटिक लॉक लगाया था और दरवाजा कर्मचारियों ने अपना कार्ड दिखाने के सिवा खुलता नही था. उस कार्ड रीडर की वजह से कंपनी की सुरक्षा और नियमितता बरकरार न्यू एअर जाती थी. डूस का घंटा बाज गया औट तब तक कंपनी के सारे कर्मचारी अंदर पहुच गये थे. कंपनी की डाइरेक्टर और सेयो अंकिता भी.
अंकिता ने ब.ए. कंप्यूटर किया तट और उसकी उमरा ज़्याडसे ज़्यादा 23 होगी. उसके पिता कंपनी के पूर्व डाइरेक्टर और सेयो, अचानक गुजर जाने से, उमरा के लिहाज से कंपनी की बड़ी ज़िम्मेदारी उसपर आन पड़ी थी, नही तो यह तो उसके हासने खेलने के और मस्ती करने के दिन थे. उसकी आगे की पढ़ाई उ.स. मे करने की एक्च्छा थी, लेकिन उसकी एक्च्छा पिताजी गुजर जानेसए केवल एक्च्छा ही रह गयी थी. वह भी कंपनी की ज़िम्मेदारी अछी तरह से निभाती थी और साथ मे अपने मस्ती के, हासने और खेलने दिन मुरझा ना जाए इसका ख़याल रखती थी.
हॉल मे दोनो तरफ क्यूबिकल्स थे और उसके बिचमेसए जो सांकरा रास्ता था उससे गुजराते हुए अंकिता अपने कॅबिन की तरफ जा रही थी. वैसे वह ऑफीस मे पहन ने के लिए कॅषुयल्स पहनावा ही ज़्यादा पसंद कराती थी – ढीला सफेद टी-शर्ट और कॉतन का ढीला बादामी पंत. कोई बड़ा प्रोग्राम होने पर या कोई स्पेशल क्लाइंट के साथ मीटिंग होने पर ही वह फ़ॉर्मर ड्रेस पहन ना पसंद कराती थी. ऑफीस के बाकी स्टाफ और डेवालेपर्स को भी फॉर्मल ड्रेस की कोई ज़बरदस्ती नही थी. वे जिन कपड़ो मे कंफर्टबल महसूस करे ऐसा पहनावा पहन ने की उन सबको चुत थी.
ऑफीस के कम के बड़े मे अंकिता का एक सट्रा था, की सब लोग ऑफीस का कम भी एंजाय करने मे सक्षम होना चाहिए. अगर लोग कम भी एंजाय कर पाएँगे तो उन्हे कम की थकान कभी महसूस ही नही होगी. उसने ऑफीस मे स्विम्मिंग पूल, ज़ेन चेंबर, मेडिटेशन रूम, टीटी रूम ऐसी अलग अलग सुविधाए कर्मचारीओयोंको मुहैया करा कर उनका ऑफीस के बड़े मे अपना पं बढ़ने की कोशिश थी और उसे उसके अच्छे परिणाम भी दिखने लगे थे.
उसके कॅबिन की तरफ जाते जाते उसे उसके कंपनी के कुछ कर्मचारी करॉस हो गये, उन्होने उसे आदबके साथ विश किया. उसने भी एक मीठे स्माइल के साथ अंडू विश कर प्राति उत्तर दिया. वे सिर्फ़ दर के कारण विश नही करते थे तो उनकी मन मे उसके बड़े मे उस की काबिलियत के बड़े मे एक आदर दिख रहा था. वह अपने कॅबिन के पास पहुच गयी. उसके कॅबिन की एक ख़ासियत थी की उसकी कॅबिन बाकी कर्मचारियों से भारी समान से ना भारी होकर, जो सुविधाए उसके कर्मचारियोंको थी वही उसके कॅबिन मे भी थी. ‘मैं भी तुम मे से एक हूँ.‚ यह भावना सबके मन मे दृढ़ हो, यह उसका उद्देश्या होगा.
वह अपने कॅबिन के पास पहुचते ही उसने स्प्रिंग लगाया हुवा अपने कॅबिन का कंचका दरवाजा अंदर की और धकेला और वह अंदर चली गयी.
अंकिता ने ऑफीस मे आए बराबर रोज के जो इंपॉर्टेंट कम थे वह निपटाए. जैसे इंपॉर्टेंट खत, अफीशियल मेल्स, प्रोग्रेस रिपोर्ट्स एट्सेटरा. कुछ इंपॉर्टेंट मेल्स थी उन्हे जवाब भेज दिया, कुछ मेल्स के प्रिंट्स लिए. सब इंपॉर्टेंट कम निपतने के बाद उसने अपने कंप्यूटर का चाटिंग सेशन ओपन किया. कम की थकान महसूस होने से या कुछ खाली वक्त मिलने पर वह चाटिंग कराती थी. यह उसका हर दिन कार्यकरम रहता था. यू भी इतनी बड़ी कंपनी की ज़िम्मेदारी संभालना कोई मामूली बात नही थी. कम का तनाव, टेन्षन्स इनसे छुटकारा पाने के लिए उसने चाटिंग के रूप मे बहुत अच्छा विकल्प चुना था. तभी फोने की घंटी बाजी. उसने चाटिंग विंडोस मे आए मेसेजस पढ़ते हुए फोने उठाया. हूबहू कंप्यूटर के पॅरलेल प्रोसेसिंग जैसे सारे कम वह एक ही वक्त कर सकती थी.
“हा सारिका”
“मेडम… नेट सेकुराज मॅनेजिंग डाइरेक्टर …. मिस्टर. जाधव इस ऑन थे लाइन….” उधर से सारिका का आवाज़ आया.
“कनेक्ट प्लीज़”
‘ही‚ तब तक चाटिंग पर किसी का मेसेज आया.
अंकिता ने किसका मेसेज है यह चेक किया… ‘घोस्ट राइडर‚ मेसेज भेजने वाले ने धारण किया हुवा नाम था.
‘क्या चिपकू आदमी है‚ अंकिता ने सोचा.
यही ‘घोस्ट राइडर‚ हमेशा चाटिंग पर उसे मिलता था और लग भाग हर बार अंकिता ने चाटिंग सेशन ओपन किए बराबर उसका मेसेज आया नही ऐसा बहुत कम होता था.
‘इसे कुछ काम धांडे है की नही… जब देखो तब चाटिंग पर पड़ा रहता है.‚
प्यार और जुर्म – 1
अंकिता ने ब.ए. कंप्यूटर किया तट और उसकी उमरा ज़्याडसे ज़्यादा 23 होगी. उसके पिता कंपनी के पूर्व डाइरेक्टर और सेयो, अचानक गुजर जाने से, उमरा के लिहाज से कंपनी की बड़ी ज़िम्मेदारी उसपर आन पड़ी थी, नही तो यह तो उसके हासने खेलने के और मस्ती करने के दिन थे. उसकी आगे की पढ़ाई उ.स. मे करने की एक्च्छा थी, लेकिन उसकी एक्च्छा पिताजी गुजर जानेसए केवल एक्च्छा ही रह गयी थी. वह भी कंपनी की ज़िम्मेदारी अछी तरह से निभाती थी और साथ मे अपने मस्ती के, हासने और खेलने दिन मुरझा ना जाए इसका ख़याल रखती थी.
हॉल मे दोनो तरफ क्यूबिकल्स थे और उसके बिचमेसए जो सांकरा रास्ता था उससे गुजराते हुए अंकिता अपने कॅबिन की तरफ जा रही थी. वैसे वह ऑफीस मे पहन ने के लिए कॅषुयल्स पहनावा ही ज़्यादा पसंद कराती थी – ढीला सफेद टी-शर्ट और कॉतन का ढीला बादामी पंत. कोई बड़ा प्रोग्राम होने पर या कोई स्पेशल क्लाइंट के साथ मीटिंग होने पर ही वह फ़ॉर्मर ड्रेस पहन ना पसंद कराती थी. ऑफीस के बाकी स्टाफ और डेवालेपर्स को भी फॉर्मल ड्रेस की कोई ज़बरदस्ती नही थी. वे जिन कपड़ो मे कंफर्टबल महसूस करे ऐसा पहनावा पहन ने की उन सबको चुत थी.
ऑफीस के कम के बड़े मे अंकिता का एक सट्रा था, की सब लोग ऑफीस का कम भी एंजाय करने मे सक्षम होना चाहिए. अगर लोग कम भी एंजाय कर पाएँगे तो उन्हे कम की थकान कभी महसूस ही नही होगी. उसने ऑफीस मे स्विम्मिंग पूल, ज़ेन चेंबर, मेडिटेशन रूम, टीटी रूम ऐसी अलग अलग सुविधाए कर्मचारीओयोंको मुहैया करा कर उनका ऑफीस के बड़े मे अपना पं बढ़ने की कोशिश थी और उसे उसके अच्छे परिणाम भी दिखने लगे थे.
उसके कॅबिन की तरफ जाते जाते उसे उसके कंपनी के कुछ कर्मचारी करॉस हो गये, उन्होने उसे आदबके साथ विश किया. उसने भी एक मीठे स्माइल के साथ अंडू विश कर प्राति उत्तर दिया. वे सिर्फ़ दर के कारण विश नही करते थे तो उनकी मन मे उसके बड़े मे उस की काबिलियत के बड़े मे एक आदर दिख रहा था. वह अपने कॅबिन के पास पहुच गयी. उसके कॅबिन की एक ख़ासियत थी की उसकी कॅबिन बाकी कर्मचारियों से भारी समान से ना भारी होकर, जो सुविधाए उसके कर्मचारियोंको थी वही उसके कॅबिन मे भी थी. ‘मैं भी तुम मे से एक हूँ.‚ यह भावना सबके मन मे दृढ़ हो, यह उसका उद्देश्या होगा.
वह अपने कॅबिन के पास पहुचते ही उसने स्प्रिंग लगाया हुवा अपने कॅबिन का कंचका दरवाजा अंदर की और धकेला और वह अंदर चली गयी.
अंकिता ने ऑफीस मे आए बराबर रोज के जो इंपॉर्टेंट कम थे वह निपटाए. जैसे इंपॉर्टेंट खत, अफीशियल मेल्स, प्रोग्रेस रिपोर्ट्स एट्सेटरा. कुछ इंपॉर्टेंट मेल्स थी उन्हे जवाब भेज दिया, कुछ मेल्स के प्रिंट्स लिए. सब इंपॉर्टेंट कम निपतने के बाद उसने अपने कंप्यूटर का चाटिंग सेशन ओपन किया. कम की थकान महसूस होने से या कुछ खाली वक्त मिलने पर वह चाटिंग कराती थी. यह उसका हर दिन कार्यकरम रहता था. यू भी इतनी बड़ी कंपनी की ज़िम्मेदारी संभालना कोई मामूली बात नही थी. कम का तनाव, टेन्षन्स इनसे छुटकारा पाने के लिए उसने चाटिंग के रूप मे बहुत अच्छा विकल्प चुना था. तभी फोने की घंटी बाजी. उसने चाटिंग विंडोस मे आए मेसेजस पढ़ते हुए फोने उठाया. हूबहू कंप्यूटर के पॅरलेल प्रोसेसिंग जैसे सारे कम वह एक ही वक्त कर सकती थी.
“हा सारिका”
“मेडम… नेट सेकुराज मॅनेजिंग डाइरेक्टर …. मिस्टर. जाधव इस ऑन थे लाइन….” उधर से सारिका का आवाज़ आया.
“कनेक्ट प्लीज़”
‘ही‚ तब तक चाटिंग पर किसी का मेसेज आया.
अंकिता ने किसका मेसेज है यह चेक किया… ‘घोस्ट राइडर‚ मेसेज भेजने वाले ने धारण किया हुवा नाम था.
‘क्या चिपकू आदमी है‚ अंकिता ने सोचा.
यही ‘घोस्ट राइडर‚ हमेशा चाटिंग पर उसे मिलता था और लग भाग हर बार अंकिता ने चाटिंग सेशन ओपन किए बराबर उसका मेसेज आया नही ऐसा बहुत कम होता था.
‘इसे कुछ काम धांडे है की नही… जब देखो तब चाटिंग पर पड़ा रहता है.‚
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