सुबह का वक्त काँच के ग्लासस लगाई इमारातों के जंगल मे एक इमारात और उस इमारात के चौथे मेलेपर एक एक कर के कर्मचारी एक इट कोपनी के कर्मचारी आने लगे थे. डूस बजनेको आए थे और कर्मचारियों की भीड़ अचानक बढ़ने लगी. सब कर्मचारी ऑफीस मे जाने के लिए भीड़ और जल्दी जल्दी करने लगे, कारण एक ही था देरी ना हो जे. सब कर्मचारियोंके आनेका वक्त दरवाजेपर ही स्मार्ट कार्ड रीडर पर दर्ज़ किया जाता था. कंपनी का जो कानचसे बना मुख्या दरवाजा था उसे मॅग्नेटिक लॉक लगाया था और दरवाजा कर्मचारियों ने अपना कार्ड दिखाने के सिवा खुलता नही था. उस कार्ड रीडर की वजह से कंपनी की सुरक्षा और नियमितता बरकरार न्यू एअर जाती थी. डूस का घंटा बाज गया औट तब तक कंपनी के सारे कर्मचारी अंदर पहुच गये थे. कंपनी की डाइरेक्टर और सेयो अंकिता भी.
अंकिता ने ब.ए. कंप्यूटर किया तट और उसकी उमरा ज़्याडसे ज़्यादा 23 होगी. उसके पिता कंपनी के पूर्व डाइरेक्टर और सेयो, अचानक गुजर जाने से, उमरा के लिहाज से कंपनी की बड़ी ज़िम्मेदारी उसपर आन पड़ी थी, नही तो यह तो उसके हासने खेलने के और मस्ती करने के दिन थे. उसकी आगे की पढ़ाई उ.स. मे करने की एक्च्छा थी, लेकिन उसकी एक्च्छा पिताजी गुजर जानेसए केवल एक्च्छा ही रह गयी थी. वह भी कंपनी की ज़िम्मेदारी अछी तरह से निभाती थी और साथ मे अपने मस्ती के, हासने और खेलने दिन मुरझा ना जाए इसका ख़याल रखती थी.
हॉल मे दोनो तरफ क्यूबिकल्स थे और उसके बिचमेसए जो सांकरा रास्ता था उससे गुजराते हुए अंकिता अपने कॅबिन की तरफ जा रही थी. वैसे वह ऑफीस मे पहन ने के लिए कॅषुयल्स पहनावा ही ज़्यादा पसंद कराती थी – ढीला सफेद टी-शर्ट और कॉतन का ढीला बादामी पंत. कोई बड़ा प्रोग्राम होने पर या कोई स्पेशल क्लाइंट के साथ मीटिंग होने पर ही वह फ़ॉर्मर ड्रेस पहन ना पसंद कराती थी. ऑफीस के बाकी स्टाफ और डेवालेपर्स को भी फॉर्मल ड्रेस की कोई ज़बरदस्ती नही थी. वे जिन कपड़ो मे कंफर्टबल महसूस करे ऐसा पहनावा पहन ने की उन सबको चुत थी.
ऑफीस के कम के बड़े मे अंकिता का एक सट्रा था, की सब लोग ऑफीस का कम भी एंजाय करने मे सक्षम होना चाहिए. अगर लोग कम भी एंजाय कर पाएँगे तो उन्हे कम की थकान कभी महसूस ही नही होगी. उसने ऑफीस मे स्विम्मिंग पूल, ज़ेन चेंबर, मेडिटेशन रूम, टीटी रूम ऐसी अलग अलग सुविधाए कर्मचारीओयोंको मुहैया करा कर उनका ऑफीस के बड़े मे अपना पं बढ़ने की कोशिश थी और उसे उसके अच्छे परिणाम भी दिखने लगे थे.
उसके कॅबिन की तरफ जाते जाते उसे उसके कंपनी के कुछ कर्मचारी करॉस हो गये, उन्होने उसे आदबके साथ विश किया. उसने भी एक मीठे स्माइल के साथ अंडू विश कर प्राति उत्तर दिया. वे सिर्फ़ दर के कारण विश नही करते थे तो उनकी मन मे उसके बड़े मे उस की काबिलियत के बड़े मे एक आदर दिख रहा था. वह अपने कॅबिन के पास पहुच गयी. उसके कॅबिन की एक ख़ासियत थी की उसकी कॅबिन बाकी कर्मचारियों से भारी समान से ना भारी होकर, जो सुविधाए उसके कर्मचारियोंको थी वही उसके कॅबिन मे भी थी. ‘मैं भी तुम मे से एक हूँ.‚ यह भावना सबके मन मे दृढ़ हो, यह उसका उद्देश्या होगा.
वह अपने कॅबिन के पास पहुचते ही उसने स्प्रिंग लगाया हुवा अपने कॅबिन का कंचका दरवाजा अंदर की और धकेला और वह अंदर चली गयी.
अंकिता ने ऑफीस मे आए बराबर रोज के जो इंपॉर्टेंट कम थे वह निपटाए. जैसे इंपॉर्टेंट खत, अफीशियल मेल्स, प्रोग्रेस रिपोर्ट्स एट्सेटरा. कुछ इंपॉर्टेंट मेल्स थी उन्हे जवाब भेज दिया, कुछ मेल्स के प्रिंट्स लिए. सब इंपॉर्टेंट कम निपतने के बाद उसने अपने कंप्यूटर का चाटिंग सेशन ओपन किया. कम की थकान महसूस होने से या कुछ खाली वक्त मिलने पर वह चाटिंग कराती थी. यह उसका हर दिन कार्यकरम रहता था. यू भी इतनी बड़ी कंपनी की ज़िम्मेदारी संभालना कोई मामूली बात नही थी. कम का तनाव, टेन्षन्स इनसे छुटकारा पाने के लिए उसने चाटिंग के रूप मे बहुत अच्छा विकल्प चुना था. तभी फोने की घंटी बाजी. उसने चाटिंग विंडोस मे आए मेसेजस पढ़ते हुए फोने उठाया. हूबहू कंप्यूटर के पॅरलेल प्रोसेसिंग जैसे सारे कम वह एक ही वक्त कर सकती थी.
“हा सारिका”
“मेडम… नेट सेकुराज मॅनेजिंग डाइरेक्टर …. मिस्टर. जाधव इस ऑन थे लाइन….” उधर से सारिका का आवाज़ आया.
“कनेक्ट प्लीज़”
‘ही‚ तब तक चाटिंग पर किसी का मेसेज आया.
अंकिता ने किसका मेसेज है यह चेक किया… ‘घोस्ट राइडर‚ मेसेज भेजने वाले ने धारण किया हुवा नाम था.
‘क्या चिपकू आदमी है‚ अंकिता ने सोचा.
यही ‘घोस्ट राइडर‚ हमेशा चाटिंग पर उसे मिलता था और लग भाग हर बार अंकिता ने चाटिंग सेशन ओपन किए बराबर उसका मेसेज आया नही ऐसा बहुत कम होता था.
‘इसे कुछ काम धांडे है की नही… जब देखो तब चाटिंग पर पड़ा रहता है.‚
प्यार और जुर्म – 1
प्यार और जुर्म - Pyaar Aur Jurm - hindi long sex story - -
Re: प्यार और जुर्म - Pyaar Aur Jurm - hindi long sex story -
अंकिता ने आज भी उसे इग्नोर करने की तन ली, दो तीन ऑफलाइन मेसेजस थे.
अंकिता कन और कंधे के बीच फोने का करीडल पकड़ कर के बोर्ड पर सफाई से अपनी नाज़ुक उंगलिया चलते हुए वे ऑफलाइन मेसेजस चेक करने लगी.
“गुड मॉर्निंग मिस्टर. जाधव… हाउ र उ?” अंकिता ने फोने कनेक्ट होते ही मिस्टर. जाधव का स्वागत किया और वह उधर से जाधव की बातचीत सुन ने के लिए बीच मे रुक गयी.
“देखिए जाधवजी… वी अरे थे बेस्ट अट और क्वालिटी और डेलाइवरी शेड्यूल्स… यू डॉन‚त वरी… वी विल डेलाइवर युवर प्रॉडक्ट ऑन टाइम… हमारी डेलाइवरी वक्त के अंदर नही हुई ऐसा कभी हुवा है क्या? …. नही ना?… देन डॉन‚त वरी… आप एकदम निसचिंत रहिएगा… एस…. ओक.. बाइ…” अंकिता ने फोने रख दिया और फिर से दो डिजिट डाइयल कर फोने उठाया,” ज़रा विभा को अंदर भेज दो.”
फोने पर चल रहे बात चीतसे अंकिता का कंप्यूटर पर ख़याल नही रहा था, क्योंकि उस वक्त कम महत्वपूर्ण था और बाकी बाते बाद मे.
तभी कंप्यूटर पर ‘बीप‚ बजा, चाटिंग विंडो मे अंकिता को किसी का मेसेज आया था. अंकिता ने चिढ़कर मॉनिटर की तरफ देखा.
‘फिर से उसी घोस्ट राइडर का ही मेसेज होगा‚ उसने सोचा.
लेकिन वह मेसेज घोस्ट राइडर का नही था. इसलिए वह पढ़ने लगी.
मेसेज था – ‘क्या तुम मेरी दोस्त बन ना पसंद करोगी?‚ मॉनिटर पर अब भी ‘क्या तुम मेरा दोस्त बन ना पसंद करोगी?‚ यह चाटिंग पर आया मेसेज दिख रहा था. अब इसे क्या जवाब भेजा जाए ताकि वह अपना पीछा छोड़ेगा ऐसा सोचते हुए अनीकिता ने मेसेज भेजनेवाले का नाम देखा. लेकिन वह ‘घोस्ट राइडर‚ नही था यह देख कर उसे सुकून महसूस हुवा.
‘क्यो नही? ज़रूर… दोस्ती करने से निभाना ज़्यादा मायने रखता है” अंकिता ने मेसेज टाइप किया.
तभी विभा – अंकिता की सेकरेटरी अंदर आ गया.
“एस मेडम”
“विभा मैने तुम्हे कितनी बार कहा है… की डॉन‚त कॉल मे मेडम… कॉल मे सिंप्ली अंकिता… तुम जब मुझे मेडम कहती हो मुझे एकदम 23 साल से 50 साल का हुए जैसा लगता है” अंकिता चिढ़कर बोली.
वह उसपर गुस्सा तो हो गयी लेकिंग फिर उसे बुरा लगने लगा.
अंकिता अचानक एकदम गंभीर होकर बोली, “सच काहु तो पापा के अचानक जाने के बाद यह ज़िम्मेदारी मुझ पर आन पड़ी है… नही तो अभी तो मेरे हासने खेलने के दिन थे… सच काहु तो… मैने तुम्हे यहा जानबूझकर बुला लिया है… ताकि इस काम काजी माहौल मे अपने हँसी खुशी ना खो डू… कम से कम तुम तो मुझे अंकिता कह सकती हो… तुम मेरी दोस्त पहले हो और सेकरेटरी बाद मे… समझी?” अंकिता ने कहा.
“एस मेडम… ई मीन अंकिता” विभा ने कहा.
अंकिता विभा के तरफ देख कर मंद मंद मुस्कुराने लगी. विभा उसके सामने कुर्सी पर बैठ गयी तभी फिरसे कंप्यूटर का बीप बाज गया. चाटिंग विंडो मे फिरसे मेसेज आ गया था –
‘तुम्हारा नाम क्या है?‚
‘मेरा नाम अंकिता …. तुम्हारा?‚ अंकिता ने मेसेज टाइप किया.
अंकिता ने सेंड बतन पर माउस क्लिक किया और बोल ने के लिए विभा बैठी थी उधर अपने चेर घुमाई.
“वह नेट सेकुरका प्रॉजेक्ट कैसा चल रहा है?…” अंकिता ने पूछा.
“वैसे सब तो ठीक है… लेकिन एक मॉड्यूल सिस्टम को बार बार करॅश कर रहा है… बग क्या है समझ मे नही आ रहा है…” विभा ने जानकारी दी.
तभी चाटिंग पर फिरसे मेसेज आया –
‘मेरा नाम संतोष है… बाये थे वे… आपकी पसंदीदा चीज़े क्या है… ई मीन हॉबीस?‚
अंकिता ने कंप्यूटर की तरफ देखा और उस मेसेज की तरफ ध्यान ना देते हुए चींतयुक्त चेहरे से विभा की तरफ देखने लगी.
“उस मॉड्यूल पर कौन काम कर रहा है?” अंकिता ने पूछा.
“सचिन गुराव” विभा ने जानकारी दी.
“वही ना जो पिछले महीने जाय्न हुवा था?” अंकिता ने पूछा.
“हाँ वही”
प्यार और जुर्म – 2
अंकिता कन और कंधे के बीच फोने का करीडल पकड़ कर के बोर्ड पर सफाई से अपनी नाज़ुक उंगलिया चलते हुए वे ऑफलाइन मेसेजस चेक करने लगी.
“गुड मॉर्निंग मिस्टर. जाधव… हाउ र उ?” अंकिता ने फोने कनेक्ट होते ही मिस्टर. जाधव का स्वागत किया और वह उधर से जाधव की बातचीत सुन ने के लिए बीच मे रुक गयी.
“देखिए जाधवजी… वी अरे थे बेस्ट अट और क्वालिटी और डेलाइवरी शेड्यूल्स… यू डॉन‚त वरी… वी विल डेलाइवर युवर प्रॉडक्ट ऑन टाइम… हमारी डेलाइवरी वक्त के अंदर नही हुई ऐसा कभी हुवा है क्या? …. नही ना?… देन डॉन‚त वरी… आप एकदम निसचिंत रहिएगा… एस…. ओक.. बाइ…” अंकिता ने फोने रख दिया और फिर से दो डिजिट डाइयल कर फोने उठाया,” ज़रा विभा को अंदर भेज दो.”
फोने पर चल रहे बात चीतसे अंकिता का कंप्यूटर पर ख़याल नही रहा था, क्योंकि उस वक्त कम महत्वपूर्ण था और बाकी बाते बाद मे.
तभी कंप्यूटर पर ‘बीप‚ बजा, चाटिंग विंडो मे अंकिता को किसी का मेसेज आया था. अंकिता ने चिढ़कर मॉनिटर की तरफ देखा.
‘फिर से उसी घोस्ट राइडर का ही मेसेज होगा‚ उसने सोचा.
लेकिन वह मेसेज घोस्ट राइडर का नही था. इसलिए वह पढ़ने लगी.
मेसेज था – ‘क्या तुम मेरी दोस्त बन ना पसंद करोगी?‚ मॉनिटर पर अब भी ‘क्या तुम मेरा दोस्त बन ना पसंद करोगी?‚ यह चाटिंग पर आया मेसेज दिख रहा था. अब इसे क्या जवाब भेजा जाए ताकि वह अपना पीछा छोड़ेगा ऐसा सोचते हुए अनीकिता ने मेसेज भेजनेवाले का नाम देखा. लेकिन वह ‘घोस्ट राइडर‚ नही था यह देख कर उसे सुकून महसूस हुवा.
‘क्यो नही? ज़रूर… दोस्ती करने से निभाना ज़्यादा मायने रखता है” अंकिता ने मेसेज टाइप किया.
तभी विभा – अंकिता की सेकरेटरी अंदर आ गया.
“एस मेडम”
“विभा मैने तुम्हे कितनी बार कहा है… की डॉन‚त कॉल मे मेडम… कॉल मे सिंप्ली अंकिता… तुम जब मुझे मेडम कहती हो मुझे एकदम 23 साल से 50 साल का हुए जैसा लगता है” अंकिता चिढ़कर बोली.
वह उसपर गुस्सा तो हो गयी लेकिंग फिर उसे बुरा लगने लगा.
अंकिता अचानक एकदम गंभीर होकर बोली, “सच काहु तो पापा के अचानक जाने के बाद यह ज़िम्मेदारी मुझ पर आन पड़ी है… नही तो अभी तो मेरे हासने खेलने के दिन थे… सच काहु तो… मैने तुम्हे यहा जानबूझकर बुला लिया है… ताकि इस काम काजी माहौल मे अपने हँसी खुशी ना खो डू… कम से कम तुम तो मुझे अंकिता कह सकती हो… तुम मेरी दोस्त पहले हो और सेकरेटरी बाद मे… समझी?” अंकिता ने कहा.
“एस मेडम… ई मीन अंकिता” विभा ने कहा.
अंकिता विभा के तरफ देख कर मंद मंद मुस्कुराने लगी. विभा उसके सामने कुर्सी पर बैठ गयी तभी फिरसे कंप्यूटर का बीप बाज गया. चाटिंग विंडो मे फिरसे मेसेज आ गया था –
‘तुम्हारा नाम क्या है?‚
‘मेरा नाम अंकिता …. तुम्हारा?‚ अंकिता ने मेसेज टाइप किया.
अंकिता ने सेंड बतन पर माउस क्लिक किया और बोल ने के लिए विभा बैठी थी उधर अपने चेर घुमाई.
“वह नेट सेकुरका प्रॉजेक्ट कैसा चल रहा है?…” अंकिता ने पूछा.
“वैसे सब तो ठीक है… लेकिन एक मॉड्यूल सिस्टम को बार बार करॅश कर रहा है… बग क्या है समझ मे नही आ रहा है…” विभा ने जानकारी दी.
तभी चाटिंग पर फिरसे मेसेज आया –
‘मेरा नाम संतोष है… बाये थे वे… आपकी पसंदीदा चीज़े क्या है… ई मीन हॉबीस?‚
अंकिता ने कंप्यूटर की तरफ देखा और उस मेसेज की तरफ ध्यान ना देते हुए चींतयुक्त चेहरे से विभा की तरफ देखने लगी.
“उस मॉड्यूल पर कौन काम कर रहा है?” अंकिता ने पूछा.
“सचिन गुराव” विभा ने जानकारी दी.
“वही ना जो पिछले महीने जाय्न हुवा था?” अंकिता ने पूछा.
“हाँ वही”
प्यार और जुर्म – 2
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“उसके साथ कोई सीनियर असोसीयेट करो और सी तट थे मॅटर इस रिसॉल्व्ड” अंकिता ने एक पल मे उस समस्या की जड़ ढून्दते हुए उसपर उपाय भी सुझाया था.
“एस मेडम… ई मीन अंकिता” विभा बड़े गर्व के साथ अंकिता के तरफ देखते हुए बोली.
उसे अपने बॉस और दोस्त अंकिता के मॅनेज्मेंट स्किल से हमेशा अभिमानित महसूस कराती थी.
अंकिता ने फिरसे अपना रुख़ अपने कंप्यूटर की तरफ किया.
विभा वाहा से उठकर बाहर गयी और अंकिता कंप्यूटर पर आए चाटिंग मेसेज का जवाब टाइप करने लगी.
‘हॉबीस …. हाँ…. पढ़ना, स्विम्मिंग… कभी कभी लिखना और ऑफ कोर्स चाटिंग‚
अंकिता ने मेसेज टाइप कर ‘सेंड‚ के दबाकर वह भेजा और चाटिंग विंडो मिनिमाइज़ कर उसने माएकरोसॉफ्ट एक्स्सेल की दूसरी एक विंडो ओपन की. वह उस एक्स्सेल शीट मे लिखे हुए आँकड़े पढ़ते हुए गुमसी गयी. शायद वह उसके कंपनी के किसी प्रॉजेक्ट के फाइनान्षियल डीटेल्स थे.
तभी फिरसे एक चाटिंग मेसेज आ गया.
‘अरे वह…. क्या संयोग है… मेरी हॉबीस भी तुम्हारी हॉबीस से मेल खाती है… एकदम हूबहू… एक कम ना एक ज़्यादा…‚ उधरसे संतोष था.
‘रियली?‚ उसने उपरोधसे भारी लहाजेसे जवाब दिया.
फ्लर्टिंग इस पूरेाने नुस्केसे अंकिता अक्च्ची तरह से वाकिफ़ थी.
तभी पेवं अंदर आया. उसने कुछ कागजाद दस्तख़त करने के लिए अंकिता के सामने रखे. अंकिता ने उन सब कागजाद पर एक दौड़ती हुई नज़र घुमाई और उनपर दस्तख़त करने लगी.
‘ई स्वेर‚ मॉनिटर पर संतोष ने उधरसे भेजा हुवा मेसेज आ गया.
शायद उसे उसके शब्दो मे छुपा उपरोध समझ मे आया था.
‘मुझे तुम्हारा मेलिंग अड्रेस मिलेगा?‚ उधरसे संतोष का फिरसे मेसेज आ गया…
‘अंकिता5000@गमाल.कॉम‚ अंकिता ने खास चाटिंग पर मिलनेवाले अजनबी लोगो को देने के लिए बनाया मैल अड्रेस उसे भेज दिया.
अंकिता ने अब अपनी चेर घूमकर अपनी डाइयरी ढुंडई और अपने घड़ी की तरफ देखते हुए वह कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी.
अपनी डेरी लेकर वह जाने के लिए घूम गयी तभी फिरसे कंप्यूटर पल चाटिंग का बीप बाज गया. उसने जाते जाते मुड़कर मॉनिटर की तरफ देखा.
मॉनिटर पर संतोष का मेसेज था, ‘ओक थॅंक यू…. बाइ… सी यू सम टाइम….‚इंटरनेट केफे मे संतोष एक कंप्यूटर के सामने बैठकर कुछ कर रहा था. एक उसके ही उमरा के लड़के ने, शायद उसका दोस्त ही हो, रोहित ने पीछे से आकर उसके दोनो कंधो पर अपने हाथ रख दिए और उसके कंधे हल्के से दबाकर कहा, “ही संतोष… क्या कर रहे हो?”
अपने धुँसे बाहर आते हुए संतोष ने पीछे मुड़कर देखा और फिरसे अपने काम मे व्यस्त होते हुए बोला, “कुछ नही यार… एक लड़की को मैल भेजने की कोशिश कर रहा हूँ”
“लड़की को? … ओह हो… तो मामला इश्क का है” रोहित उसे चिढ़ते हुए बोला.
“अरे नही यार… बस सिर्फ़ दोस्त है…” संतोष ने कहा.
“प्यारे… मानो या ना मानो….
जब कभी लड़की से बात करना हो और लाब्ज़ ना सुझे….
और जब कभी लड़की को खत लिखना हो और शब्द ना सुझे….
तो समझो मामला इश्क का है….”
रोहित उसे और चिढ़ते हुए बोला.
संतोष कुछ ना बोलते हुए सिर्फ़ मुस्करा दिया.
“देखो देखो गाल कैसे लाल लाल हो रहे है… ” रोहित ने कहा.
संतोष फिरसे कुछ ना बोलते हुए सिर्फ़ मुस्करा दिया.
“जब कोई ना करे इनकार….
या ना करे एकरार….
रोहित उसे छोड़ने के लिए तैयार नही था.
लेकिन अब संतोष चिढ़ गया, “तू यहा से जाने वाला है या मुझसे पीतने वाले हो?…”
“तुम जैसा समझ रहे हो ऐसा कुछ नही है… मैं सिर्फ़ अपने फ्ड के टॉपिक्स सर्च कर रहा हू और बीच बीच मे बोरियत से बचने के लिए मेल्स भेज रहा हू बॅस…” संतोष ने अपना चिढ़ना काबू मे रखने की कोशिश करते हुए कहा.
“बॅस?” रोहित.
“तुम अब जानेवाले हो? …. या तुम्हारी इतने सारे लोगो के सामने अपमानित होने की एक्च्छा है?” संतोष फिरसे चिढ़कर बोला.
“ओक…. ओक… क्लॅम डाउन… अक्च्छा तुम्हारी फ्ड टॉपिक्स क्या है?” रोहित ने पूछा.
“इट्स सीकरेट टॉपिक डियर… ई कॅंट डिस्क्लोस तो एनिवन….” संतोष ने कहा.
“नोट तो मे ऑल्सो?…” रोहित ने पूछा…
“एस नोट तो यू ऑल्सो” संतोष ने ज़ोर देकर कहा.
“तुम्हारा अक्च्छा है… सीकरेसी के पीछे… इश्क का चक्कर भी चल रहा है….” रोहित ने कहा.
“तुम वह कुछ भी समझो…” संतोष ने कहा.
“नही अब मैं समझ ने के भी आगे पहुच चुका हू….” रोहित ने कहा.
“मतलब?”
“मतबलब… मुझे कुछ समझ ने की ज़रूरात नही बची है..”
“मतलब..?”
“मतबलब… अब मुझे पक्का यकीन हो गया है…” रोहित ने कहा.
संतोष फिरसे चिढ़कर पीछे मुड़ा… तब तक रोहित मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखते हुए वाहा से दरवाजे की तरफ निकल चुका था…सुबह के लगभग डूस बजे होंगे. अंकिता जल्दी जल्दी अपने कॅबिन मे घुस गयी. जब वह कॅबिन मे आ गयी थी तब विभा का कॅबिन की चीज़े ठीक लगाना चल रहा था. अंकिता के अनुपस्थिति मे उसके कॅबिन की पूरी ज़िम्मेदारी विभा की ही रहती थी.
अंकिता के कॅबिन मे प्रवेश करते ही विभा ने आडब्से खड़े रहते हुए उसे विश किया, “गुड मॉर्निंग….”
‘मेडम‚ उसके मुँह मे आते आते रह गया. अंकिता उसे कितनी भी दोस्ती की तरह लगती हो या उससे दोस्ती की तरफ व्यवहार कराती हो फिर भी विभा को कम से कम उसके कॅबिन मे उससे दोस्ती की तरफ बर्ताव करना बड़ा कठिन जाता था, और वह भी कभी कभी बाकी लोगों के सामने.
अंकिता ने अंदर आकर उसके पास से गुजराते हुए पीतपार थपथपाते हुए कहा, “हिी”
उसके पीछे पीछे उसका ड्राइवर उसकी सूटकेस लेकर अंदर आ गया. जैसे ही अंकिता अपने कुरसीपर बैठ गयी, ड्राइवर ने सूटकेस उसके बगल मे रख दी और वह कॅबिन से निकल गया.
विभा अंकिता के आमने सामने कुरसीपर बैठ गयी और उसने उसकी अपायंटमेंट की डाइयरी खोलकर उसके सामने खिस्काई. अंकिता ने अपने कंप्यूटर का स्विच ऑन किया और वह डाइयरी मे लिखी अपायंट्मेंट्स पढ़ने लगी.
“सुबह आए बराबर मीटिंग…” अंकिता बूरासा मुँह बनाकर बोली, “अक्च्छा इस दोपहर के सेमिनार को में नही जा पौँगी… क्यों ना गुप्ता जी को भेज दे?…”
“ठीक है” विभा उस अपायंटमेंट के सामने स्तर मार्क करते हुए बोली.
तो समझो वह प्यार है”
प्यार और जुर्म – 3
“एस मेडम… ई मीन अंकिता” विभा बड़े गर्व के साथ अंकिता के तरफ देखते हुए बोली.
उसे अपने बॉस और दोस्त अंकिता के मॅनेज्मेंट स्किल से हमेशा अभिमानित महसूस कराती थी.
अंकिता ने फिरसे अपना रुख़ अपने कंप्यूटर की तरफ किया.
विभा वाहा से उठकर बाहर गयी और अंकिता कंप्यूटर पर आए चाटिंग मेसेज का जवाब टाइप करने लगी.
‘हॉबीस …. हाँ…. पढ़ना, स्विम्मिंग… कभी कभी लिखना और ऑफ कोर्स चाटिंग‚
अंकिता ने मेसेज टाइप कर ‘सेंड‚ के दबाकर वह भेजा और चाटिंग विंडो मिनिमाइज़ कर उसने माएकरोसॉफ्ट एक्स्सेल की दूसरी एक विंडो ओपन की. वह उस एक्स्सेल शीट मे लिखे हुए आँकड़े पढ़ते हुए गुमसी गयी. शायद वह उसके कंपनी के किसी प्रॉजेक्ट के फाइनान्षियल डीटेल्स थे.
तभी फिरसे एक चाटिंग मेसेज आ गया.
‘अरे वह…. क्या संयोग है… मेरी हॉबीस भी तुम्हारी हॉबीस से मेल खाती है… एकदम हूबहू… एक कम ना एक ज़्यादा…‚ उधरसे संतोष था.
‘रियली?‚ उसने उपरोधसे भारी लहाजेसे जवाब दिया.
फ्लर्टिंग इस पूरेाने नुस्केसे अंकिता अक्च्ची तरह से वाकिफ़ थी.
तभी पेवं अंदर आया. उसने कुछ कागजाद दस्तख़त करने के लिए अंकिता के सामने रखे. अंकिता ने उन सब कागजाद पर एक दौड़ती हुई नज़र घुमाई और उनपर दस्तख़त करने लगी.
‘ई स्वेर‚ मॉनिटर पर संतोष ने उधरसे भेजा हुवा मेसेज आ गया.
शायद उसे उसके शब्दो मे छुपा उपरोध समझ मे आया था.
‘मुझे तुम्हारा मेलिंग अड्रेस मिलेगा?‚ उधरसे संतोष का फिरसे मेसेज आ गया…
‘अंकिता5000@गमाल.कॉम‚ अंकिता ने खास चाटिंग पर मिलनेवाले अजनबी लोगो को देने के लिए बनाया मैल अड्रेस उसे भेज दिया.
अंकिता ने अब अपनी चेर घूमकर अपनी डाइयरी ढुंडई और अपने घड़ी की तरफ देखते हुए वह कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी.
अपनी डेरी लेकर वह जाने के लिए घूम गयी तभी फिरसे कंप्यूटर पल चाटिंग का बीप बाज गया. उसने जाते जाते मुड़कर मॉनिटर की तरफ देखा.
मॉनिटर पर संतोष का मेसेज था, ‘ओक थॅंक यू…. बाइ… सी यू सम टाइम….‚इंटरनेट केफे मे संतोष एक कंप्यूटर के सामने बैठकर कुछ कर रहा था. एक उसके ही उमरा के लड़के ने, शायद उसका दोस्त ही हो, रोहित ने पीछे से आकर उसके दोनो कंधो पर अपने हाथ रख दिए और उसके कंधे हल्के से दबाकर कहा, “ही संतोष… क्या कर रहे हो?”
अपने धुँसे बाहर आते हुए संतोष ने पीछे मुड़कर देखा और फिरसे अपने काम मे व्यस्त होते हुए बोला, “कुछ नही यार… एक लड़की को मैल भेजने की कोशिश कर रहा हूँ”
“लड़की को? … ओह हो… तो मामला इश्क का है” रोहित उसे चिढ़ते हुए बोला.
“अरे नही यार… बस सिर्फ़ दोस्त है…” संतोष ने कहा.
“प्यारे… मानो या ना मानो….
जब कभी लड़की से बात करना हो और लाब्ज़ ना सुझे….
और जब कभी लड़की को खत लिखना हो और शब्द ना सुझे….
तो समझो मामला इश्क का है….”
रोहित उसे और चिढ़ते हुए बोला.
संतोष कुछ ना बोलते हुए सिर्फ़ मुस्करा दिया.
“देखो देखो गाल कैसे लाल लाल हो रहे है… ” रोहित ने कहा.
संतोष फिरसे कुछ ना बोलते हुए सिर्फ़ मुस्करा दिया.
“जब कोई ना करे इनकार….
या ना करे एकरार….
रोहित उसे छोड़ने के लिए तैयार नही था.
लेकिन अब संतोष चिढ़ गया, “तू यहा से जाने वाला है या मुझसे पीतने वाले हो?…”
“तुम जैसा समझ रहे हो ऐसा कुछ नही है… मैं सिर्फ़ अपने फ्ड के टॉपिक्स सर्च कर रहा हू और बीच बीच मे बोरियत से बचने के लिए मेल्स भेज रहा हू बॅस…” संतोष ने अपना चिढ़ना काबू मे रखने की कोशिश करते हुए कहा.
“बॅस?” रोहित.
“तुम अब जानेवाले हो? …. या तुम्हारी इतने सारे लोगो के सामने अपमानित होने की एक्च्छा है?” संतोष फिरसे चिढ़कर बोला.
“ओक…. ओक… क्लॅम डाउन… अक्च्छा तुम्हारी फ्ड टॉपिक्स क्या है?” रोहित ने पूछा.
“इट्स सीकरेट टॉपिक डियर… ई कॅंट डिस्क्लोस तो एनिवन….” संतोष ने कहा.
“नोट तो मे ऑल्सो?…” रोहित ने पूछा…
“एस नोट तो यू ऑल्सो” संतोष ने ज़ोर देकर कहा.
“तुम्हारा अक्च्छा है… सीकरेसी के पीछे… इश्क का चक्कर भी चल रहा है….” रोहित ने कहा.
“तुम वह कुछ भी समझो…” संतोष ने कहा.
“नही अब मैं समझ ने के भी आगे पहुच चुका हू….” रोहित ने कहा.
“मतलब?”
“मतबलब… मुझे कुछ समझ ने की ज़रूरात नही बची है..”
“मतलब..?”
“मतबलब… अब मुझे पक्का यकीन हो गया है…” रोहित ने कहा.
संतोष फिरसे चिढ़कर पीछे मुड़ा… तब तक रोहित मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखते हुए वाहा से दरवाजे की तरफ निकल चुका था…सुबह के लगभग डूस बजे होंगे. अंकिता जल्दी जल्दी अपने कॅबिन मे घुस गयी. जब वह कॅबिन मे आ गयी थी तब विभा का कॅबिन की चीज़े ठीक लगाना चल रहा था. अंकिता के अनुपस्थिति मे उसके कॅबिन की पूरी ज़िम्मेदारी विभा की ही रहती थी.
अंकिता के कॅबिन मे प्रवेश करते ही विभा ने आडब्से खड़े रहते हुए उसे विश किया, “गुड मॉर्निंग….”
‘मेडम‚ उसके मुँह मे आते आते रह गया. अंकिता उसे कितनी भी दोस्ती की तरह लगती हो या उससे दोस्ती की तरफ व्यवहार कराती हो फिर भी विभा को कम से कम उसके कॅबिन मे उससे दोस्ती की तरफ बर्ताव करना बड़ा कठिन जाता था, और वह भी कभी कभी बाकी लोगों के सामने.
अंकिता ने अंदर आकर उसके पास से गुजराते हुए पीतपार थपथपाते हुए कहा, “हिी”
उसके पीछे पीछे उसका ड्राइवर उसकी सूटकेस लेकर अंदर आ गया. जैसे ही अंकिता अपने कुरसीपर बैठ गयी, ड्राइवर ने सूटकेस उसके बगल मे रख दी और वह कॅबिन से निकल गया.
विभा अंकिता के आमने सामने कुरसीपर बैठ गयी और उसने उसकी अपायंटमेंट की डाइयरी खोलकर उसके सामने खिस्काई. अंकिता ने अपने कंप्यूटर का स्विच ऑन किया और वह डाइयरी मे लिखी अपायंट्मेंट्स पढ़ने लगी.
“सुबह आए बराबर मीटिंग…” अंकिता बूरासा मुँह बनाकर बोली, “अक्च्छा इस दोपहर के सेमिनार को में नही जा पौँगी… क्यों ना गुप्ता जी को भेज दे?…”
“ठीक है” विभा उस अपायंटमेंट के सामने स्तर मार्क करते हुए बोली.
तो समझो वह प्यार है”
प्यार और जुर्म – 3