सेक्स (प्रेम) के सात सबक- must read majedaar hai
Posted: 25 Oct 2015 11:07
वातस्यायन ने सच ही कहा है कि सृष्टि के रचना काल से ही नर नारी के सम्बन्ध चले आ रहे हैं। यदि ये सम्बन्ध नहीं होते तो इतना बड़ा संसार कहीं नज़र नहीं आता और यह संसार केवल पत्थरों, पहाड़ों, जंगलों और मरुस्थलों से अटा पड़ा होता। इस संसार की उत्पत्ति काम से हुई है और यह उसी के वशीभूत है। प्रकृति ने संसार
का अस्तित्व जन्म प्रक्रिया द्वारा हमेशा बनाए रखने के लिए “काम” को जन्म दिया है और उसमें इतना आनंद भरा है। स्त्री पुरुष के मिलन के समय प्राप्त होने वाले आनंद को बार बार प्राप्त करने की मानवीय चाह ने संसार को विस्तार और अमरता दी है। जिस प्रकार भूख प्यास और निद्रा सभी प्राणियों की अनिवार्य आवश्यकताएं
हैं उसी प्रकार “काम” (सेक्स) भी एक अनिवार्य आवश्यकता है इसका दमन हानिप्रद होता है।
दरअसल इस पवित्र और नैसर्गिक क्रिया का नाम ही गलत रखा गया है। इसका नाम तो सेक्स या चुदाई के स्थान पर केवल ‘प्रेम’ ही होना चाहिए। ब्रह्मांड के कण कण में प्रेम समाया हुआ है। चकोर चन्द्रिका से प्रेम करता है, मीन जल से, झरना नदी से और नदी सागर से आलिंगन बद्ध होने को भागी जा रही है। सागर की
लहरें पूर्णिमा के चन्द्र को चूमने के लिए आकाश को छू लेना चाहती है। इनके पीछे प्रेम की मोहिनी शक्ति है। उर्जायें प्रेम की तरंगों से उद्वेलित होती हैं। वस्तुतः प्रेम ही जीवन का सार और सुखमय दाम्पत्य जीवन का आधार है।
जब भी कामांगों सेक्स (लंड, चूत और चुदाई) का नाम जबान पर आता है तो पता नहीं ये तथाकथित समाज और धर्म के ठेकेदार क्यों अपनी नाक भोंहें सिकोड़ने लगते हैं और व्यर्थ ही हंगामा मचाने लग जाते हैं। मैं एक बात पूछना चाहता हूँ कि क्या इन्होंने कभी सेक्स नहीं किया या बच्चे पैदा नहीं किये ? सेक्स तो प्राणी मात्र की
अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है तो फिर इस नाम और नैसर्गिक क्रिया से इतनी चिढ़ क्यों ?
…… सेक्स की प्रचलित भ्रांतियों और मिथकों को खोलती काम गुरु की एक कहानी……………………….
की एक कहानी
कोई जड़ हो या चेतन सभी किसी ना किसी तरह काम के वशीभूत हैं। क्या आप बता सकते है चकोर चाँद की ओर क्यों देखता रहता है ? नदियाँ सागर की ओर क्यों भागी जा रही हैं ? पपीहा पी कहाँ पी कहाँ की रट क्यों लगाए है ? मेघ पर्वतों की ओर क्यों भागे जा रहे हैं ? परवाने क्यों अपनी जान की परवाह किये बिना शमा
की लो चूमने दौड़े चले आते हैं ? दरअसल ये सारी सृष्टि ही काम (प्रेम) से सराबोर है। तभी तो ये संसार ये सृष्टि और जीवन चक्र चल रहा है। व्यक्ति जैसे जैसे बड़ा होता है जीवन में तनाव और समस्याएं जीवन का अंग बन जाती हैं। इस तनाव को दूर करने का प्रकृति ने एक अनमोल भेंट काम (सेक्स) के रूप में मनुष्य को दी है।
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो सेक्स की पूर्णता पर ओर्गास्म होने पर फेरोमोन नामक हारमोंस का शरीर में स्त्राव होता है जिसके कारण पूरा शरीर तरंगित हो जाता है और व्यक्ति तनावमुक्त और संतुष्ट हो जाता है। फिर ऐसे पवित्र कर्म या इसके नाम को गन्दा और अश्लील क्यों कहा जाए ? दरअसल यह तो नासमझ और
गंदे लोगों की गन्दी सोच है।
यह उस समय की बात है जब मैं उदयपुर में दसवीं में पढ़ता था। हमारे पड़ोस में एक नई आंटी रहने के लिए आई थी। वो आई तो दिल्ली से थी पर सुना था कि वो पंजाब के पटियाला शहर की रहने वाली थी। उनके माँ बाप बहुत सालों पहले कश्मीर से आकर पटियाला बस गए थे। नाम शायद सुषमा गुलचंदानी था पर उसकी
देहयष्टि (फिगर) के हिसाब से तो उसे गुलबदन ही कहना ठीक होगा। अगर सच कहूँ तो मेरी पहली सेक्स गुरु तो ये आंटी गुलबदन ही थी। हालांकि हमारी चुदाई बहुत थोड़े दिनों ही चली थी पर उसने 7 दिनों में ही मुझे सेक्स के सात सबक सिखा कर प्रेम चन्द्र माथुर से “प्रेम गुरु” जरुर बन दिया था। जिस प्रकार की ट्रेनिंग
(प्रशिक्षण) उसने मुझे दी थी मुझे नहीं लगता कि उसके बाद अगर मैं आगे की जानकारी के लिए सेक्स में पी एच डी भी कर लूं तो मुझे मिल पाएगी।
उसकी उम्र कोई 32-33 साल की रही होगी। लम्बाई 5’ 7″ फिगर 36-30-38 पूरी पंजाबी पट्ठी लगती थी जैसे उस जमाने की सुस्मिता सेन हो। गोरा रंग, भरा हुआ बदन, मोटे मोटे नितम्ब और गोल गोल मस्त चुन्चियाँ सानिया मिर्जा की तरह। जैसे कोई दो टेनिस की गेंदें हों। जो मानो कह रही हों कि हमें आजाद करो चूसो
का अस्तित्व जन्म प्रक्रिया द्वारा हमेशा बनाए रखने के लिए “काम” को जन्म दिया है और उसमें इतना आनंद भरा है। स्त्री पुरुष के मिलन के समय प्राप्त होने वाले आनंद को बार बार प्राप्त करने की मानवीय चाह ने संसार को विस्तार और अमरता दी है। जिस प्रकार भूख प्यास और निद्रा सभी प्राणियों की अनिवार्य आवश्यकताएं
हैं उसी प्रकार “काम” (सेक्स) भी एक अनिवार्य आवश्यकता है इसका दमन हानिप्रद होता है।
दरअसल इस पवित्र और नैसर्गिक क्रिया का नाम ही गलत रखा गया है। इसका नाम तो सेक्स या चुदाई के स्थान पर केवल ‘प्रेम’ ही होना चाहिए। ब्रह्मांड के कण कण में प्रेम समाया हुआ है। चकोर चन्द्रिका से प्रेम करता है, मीन जल से, झरना नदी से और नदी सागर से आलिंगन बद्ध होने को भागी जा रही है। सागर की
लहरें पूर्णिमा के चन्द्र को चूमने के लिए आकाश को छू लेना चाहती है। इनके पीछे प्रेम की मोहिनी शक्ति है। उर्जायें प्रेम की तरंगों से उद्वेलित होती हैं। वस्तुतः प्रेम ही जीवन का सार और सुखमय दाम्पत्य जीवन का आधार है।
जब भी कामांगों सेक्स (लंड, चूत और चुदाई) का नाम जबान पर आता है तो पता नहीं ये तथाकथित समाज और धर्म के ठेकेदार क्यों अपनी नाक भोंहें सिकोड़ने लगते हैं और व्यर्थ ही हंगामा मचाने लग जाते हैं। मैं एक बात पूछना चाहता हूँ कि क्या इन्होंने कभी सेक्स नहीं किया या बच्चे पैदा नहीं किये ? सेक्स तो प्राणी मात्र की
अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है तो फिर इस नाम और नैसर्गिक क्रिया से इतनी चिढ़ क्यों ?
…… सेक्स की प्रचलित भ्रांतियों और मिथकों को खोलती काम गुरु की एक कहानी……………………….
की एक कहानी
कोई जड़ हो या चेतन सभी किसी ना किसी तरह काम के वशीभूत हैं। क्या आप बता सकते है चकोर चाँद की ओर क्यों देखता रहता है ? नदियाँ सागर की ओर क्यों भागी जा रही हैं ? पपीहा पी कहाँ पी कहाँ की रट क्यों लगाए है ? मेघ पर्वतों की ओर क्यों भागे जा रहे हैं ? परवाने क्यों अपनी जान की परवाह किये बिना शमा
की लो चूमने दौड़े चले आते हैं ? दरअसल ये सारी सृष्टि ही काम (प्रेम) से सराबोर है। तभी तो ये संसार ये सृष्टि और जीवन चक्र चल रहा है। व्यक्ति जैसे जैसे बड़ा होता है जीवन में तनाव और समस्याएं जीवन का अंग बन जाती हैं। इस तनाव को दूर करने का प्रकृति ने एक अनमोल भेंट काम (सेक्स) के रूप में मनुष्य को दी है।
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखा जाए तो सेक्स की पूर्णता पर ओर्गास्म होने पर फेरोमोन नामक हारमोंस का शरीर में स्त्राव होता है जिसके कारण पूरा शरीर तरंगित हो जाता है और व्यक्ति तनावमुक्त और संतुष्ट हो जाता है। फिर ऐसे पवित्र कर्म या इसके नाम को गन्दा और अश्लील क्यों कहा जाए ? दरअसल यह तो नासमझ और
गंदे लोगों की गन्दी सोच है।
यह उस समय की बात है जब मैं उदयपुर में दसवीं में पढ़ता था। हमारे पड़ोस में एक नई आंटी रहने के लिए आई थी। वो आई तो दिल्ली से थी पर सुना था कि वो पंजाब के पटियाला शहर की रहने वाली थी। उनके माँ बाप बहुत सालों पहले कश्मीर से आकर पटियाला बस गए थे। नाम शायद सुषमा गुलचंदानी था पर उसकी
देहयष्टि (फिगर) के हिसाब से तो उसे गुलबदन ही कहना ठीक होगा। अगर सच कहूँ तो मेरी पहली सेक्स गुरु तो ये आंटी गुलबदन ही थी। हालांकि हमारी चुदाई बहुत थोड़े दिनों ही चली थी पर उसने 7 दिनों में ही मुझे सेक्स के सात सबक सिखा कर प्रेम चन्द्र माथुर से “प्रेम गुरु” जरुर बन दिया था। जिस प्रकार की ट्रेनिंग
(प्रशिक्षण) उसने मुझे दी थी मुझे नहीं लगता कि उसके बाद अगर मैं आगे की जानकारी के लिए सेक्स में पी एच डी भी कर लूं तो मुझे मिल पाएगी।
उसकी उम्र कोई 32-33 साल की रही होगी। लम्बाई 5’ 7″ फिगर 36-30-38 पूरी पंजाबी पट्ठी लगती थी जैसे उस जमाने की सुस्मिता सेन हो। गोरा रंग, भरा हुआ बदन, मोटे मोटे नितम्ब और गोल गोल मस्त चुन्चियाँ सानिया मिर्जा की तरह। जैसे कोई दो टेनिस की गेंदें हों। जो मानो कह रही हों कि हमें आजाद करो चूसो