खेल खिलाड़ी का compleet
Posted: 04 Nov 2014 16:03
खेल खिलाड़ी का पार्ट--1
सुनसान सड़क पे देर रात वो लड़की तेज़ कदमो से बढ़ी चली जा रही थी.उसके चुस्त सलवार कमीज़,हाथ मे पकड़े मोबाइल & कंधे पे लटके बॅग को देख के सॉफ ज़ाहिर था कि वो पास की किसी बिल्डिंग के दफ़्तर मे काम करती थी & आज उसे वाहा से निकलने मे देर हो गयी थी.
सड़क इतनी सुनसान थी की 1 आवारा कुत्ता भी कही दिखाई नही दे रहा था.तभी लड़की के कानो मे पीछे से किसी वहाँ के आने की आवाज़ आई.उसने इस उम्मीद से गर्दन घुमाई की कोई टॅक्सी या ऑटो-रिक्शा होगा मगर वो तो कोई वॅन थी.लड़की फिर से तेज़ी से आगे बढ़ने लगी.
"मस्त माल है,बच्चू!",वॅन उसके करीब आ गयी थी & बिल्कुल धीमी हो उसके साथ चल रही थी.लड़की ने गर्दन घुमाई तो वन का पिच्छला दरवाज़ा पीच्चे सरका पाया.अंदर की सीट पे 1 लंबा,भरी शरीर का शख्स बैठा था जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी & तंबाकू से पीले हो चुके दाँत उसकी छिछोरि मुस्कान के चलते नुमाया थे.उसके साथ पिच्छली सीट पे 1 आदमी बैठा था & आगे 2 और लोग थे.चारो शक्ल से ही ज़ारायाम पेशा लगते थे.
लड़की ने अपनी चाल & तेज़ कर दी,"हाई!गंद तो देखो साली की!",उस शख्स ने जोकि सबका सरदार लगता था फबती कसी तो लड़की और घबरा गयी.उसे पता था कि तेज़ चाल के चलते उसकी 28 इंच की कमर & ज़्यादा बल खाने लगी होगी & उसके नीचे उसकी 36 इंच की गंद भी और मटकने लगी होगी.उसका चेहरा लाल हो रहा था.
"छ्चोड़ो बिल्ला उस्ताद.जाने दो.कही इस लौंडिया के चक्कर मे निकलने मे देर ना हो जाए."
"अबे,चुप!",बिल्ला की नज़रे तो उस लड़की की गंद से चिपकी ही हुई थी जोकि चलते हुए अपने मोबाइल के बटन्स दबाए जा रही थी,"..इसे तो साथ ले चलते हैं.रास्ता काटने मे आसानी होगी.गाड़ी लगा सामने,छोटू.",ड्राइवर ने वॅन को तिर्छि कर उस लड़की के सामने कर उसका रोका & बैठे-2 ही बिल्ला ने अपने बाए हाथ से लड़की की दाई बाँह उसकी कलाई के उपर पकड़ी.
उसके बाद जो हुआ उसने सभी गुणडो को हैरान कर दिया & वो कुच्छ पॅलो के लिए मानो जैसे बुत बन गये & यही कुच्छ पल उनकी मुसीबत का सबब बने.लड़की ने दाए हाथ को ज़रा सा घुमा के बिल्ला की बाई कलाई पकड़ी & उसे घुमा दिया.बिजली की फुर्ती से उसने अपना मोबाइल अपने कुर्ते की जेब मे डाला & बाए कंधे से बॅग को नीचे गिरा दिया.
बिल्ला ने अपना दाया हाथ बढ़ा के अपना बाया हाथ लड़की की गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश करनी ही चाही थी कि लड़की के बाए हाथ का कराटे चॉप उसकी गर्दन की दाई तरफ पड़ा & जैसे उसे लकवा मार गया.लड़की ने अपनी बाई टांग को बिल्ला की सीट पे टीकाया & फिर उसी के सहारे बिल्ला का हाथ खींच उसे गाड़ी से नीचे गिरा दिया.
बिल्ला भी शातिर अपराधी था & अपनी हैरानी से बाहर भी आ चुका था.वो पीठ के बल सड़क पे लेटे ही अपनी बाई टांग को चला लड़की की टाँगो पे मार उसे नीचे गिराने की कोशिश की मगर लड़की होशियार थी,वो उसका वार बचाते हुए हवा मे उच्छली & अपना बाया घुटना मोड़ उसके सीने पे लॅंड कराया.
बिल्ला दर्द से छॅट्पाटा उठा.उसके बाकी साथी तब तक वॅन से उतर अपने कपड़ो मे च्छूपे हथ्यार बाहर निकाल के उसकी ओर आ चुके थे की तभी ना जाने कहा से 14-15 पोलिसेवाले वाहा आ गये & उन्हे घेर लिया.थोड़ी ही देर बाद सभी बदमाश पोलीस वॅन मे हथकड़ियो से बँधे बैठे थे.
"आहह....ये लड़की है कौन यार?",दर्द से कराहते बिल्ला ने वॅन के दरवाज़े पे ताला लगाते हवलदार से पुचछा.
"एसीपी दिव्या माथुर.",हवलदार मुस्कुराता हुआ वाहा से चला गया.
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दिव्या माथुर पोलीस की क्राइम ब्रांच की शायद सबसे तेज़-तर्रार अफ़सर थी.बचपन से ही दिव्या को खेल-कूद मे बड़ी दिलचस्पी थी.स्कूल & फिर कॉलेज की बॅडमिंटन,वॉलीबॉल & जाइमनॅसटिक्स टीम शायद ही कभी उसके बिना किसी मुक़ाबले मे हिस्सा लेती थी.कॉलेज पार करते-2 उसने ताए क्वान दो मे भी महारत हासिल कर ली थी & पोलीस ट्रैनिंग के दौरान करते के गुर भी उसने बहुत जल्दी सिख लिए थे.
खेल ने उसमे खुद्दारी & हौसले का जज़्बा भरा & जब सिविल सर्विस का इम्तिहान पास करने पे उसकी पसंद पुछि गयी तो उसने बेझिझक पुलिस सर्विस को चुना.मा-बाप समझाते रह गये कि अड्मिनिस्ट्रेटिव सर्विस चुन ले पर दिव्या खुद को 1 दफ़्तर मे दिन भर बैठे सोच के ही घबरा जाती थी.
ट्रैनिंग के बाद जब वो एसीपी दिव्या माथुर बनके डेवाले आई तो वाहा के आला अफसरो को भी इस नयी अफ़सर की काबिलियत पता चलने मे ज़्यादा वक़्त नही लगा & उन्होने फ़ौरन उसे वाहा की क्राइम ब्रांच मे पोस्ट कर दिया.कल सुबह ही जैसे ही दिव्या को मुखबिरो के हवाले से खबर मिली कि बिल्ला जिसने कुच्छ ही दिन पहले 1 सुपारी किल्लिंग की थी,कल रात शहर से भागने वाला है तो उसने उसे पकड़ने की प्लॅनिंग शुरू कर दी.उसके मातहत काम करने वाले इनस्पेक्टर्स जिनमे से कुच्छ उस से उम्र मे काफ़ी बड़े थे & उनका तजुर्बा भी उस से कही ज़्यादा था,उसे नकबंदी करने की सलाह दी मगर दिव्या ने उनकी बात नही मानी.
उसका कहना था कि बिल्ला तो नकबंदी की उमीद ही कर रहा होगा.क्यू ना कुच्छ ऐसा किया जाए जिसकी उसे बिल्कुल उमीद ना हो & फिर उसे पकड़ने मे आसानी हो.तभी दिव्या ने ये प्लान बनाया.इस प्लान मे अगर ज़रा भी गड़बड़ होती या उसकी टीम उसके मोबाइल के मेसेज मिलने के बाद वक़्त पे नही पहुँचती तो दिव्या की जान भी जा सकती थी मगर दिव्या ने इतने दीनो मे जो सबसे बड़ा सबक सीखा था वो ये की अगर उसने ख़तरे के डर से कदम पीछे खींचे तो मुजरिम आगे बढ़ जाएगा & वो उस से मुक़ाबला हार जाएगी & हार लफ्ज़ से उसे सख़्त नफ़रत थी.
"मेडम.",1 हवलदार ने उसे सलाम ठोंका.
"हूँ.",दिव्या ने 1 बार फाइल से नज़र उठाके उसे आराम से होने का इशारा किया & फिर वापस फाइल निपटाने लगी.पोलीस की नौकरी के बाद दिव्या ने 1 और सबक सीखा था की चाहे फ़ौजी बन सरहद पे क्यू ना तैनात हो जाओ,बिना काग़ज़ काले किए काम नही चलने वाला!
"आप जब दफ़्तर से बाहर थी तो डीसीपी साहब का मेसेज आया था इंटरकम पे कि शाम को 7 बजे आप उनके कॅबिन मे रिपोर्ट करें,उन्हे कल के एनकाउंटर के बारे मे आपसे रिपोर्ट लेनी है.",हवलदार ने सलाम ठोंका & कॅबिन से बाहर चला गया.
दिव्या हल्के से मुस्कुराइ & फाइल पूरी करती रही.
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सुनसान सड़क पे देर रात वो लड़की तेज़ कदमो से बढ़ी चली जा रही थी.उसके चुस्त सलवार कमीज़,हाथ मे पकड़े मोबाइल & कंधे पे लटके बॅग को देख के सॉफ ज़ाहिर था कि वो पास की किसी बिल्डिंग के दफ़्तर मे काम करती थी & आज उसे वाहा से निकलने मे देर हो गयी थी.
सड़क इतनी सुनसान थी की 1 आवारा कुत्ता भी कही दिखाई नही दे रहा था.तभी लड़की के कानो मे पीछे से किसी वहाँ के आने की आवाज़ आई.उसने इस उम्मीद से गर्दन घुमाई की कोई टॅक्सी या ऑटो-रिक्शा होगा मगर वो तो कोई वॅन थी.लड़की फिर से तेज़ी से आगे बढ़ने लगी.
"मस्त माल है,बच्चू!",वॅन उसके करीब आ गयी थी & बिल्कुल धीमी हो उसके साथ चल रही थी.लड़की ने गर्दन घुमाई तो वन का पिच्छला दरवाज़ा पीच्चे सरका पाया.अंदर की सीट पे 1 लंबा,भरी शरीर का शख्स बैठा था जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी & तंबाकू से पीले हो चुके दाँत उसकी छिछोरि मुस्कान के चलते नुमाया थे.उसके साथ पिच्छली सीट पे 1 आदमी बैठा था & आगे 2 और लोग थे.चारो शक्ल से ही ज़ारायाम पेशा लगते थे.
लड़की ने अपनी चाल & तेज़ कर दी,"हाई!गंद तो देखो साली की!",उस शख्स ने जोकि सबका सरदार लगता था फबती कसी तो लड़की और घबरा गयी.उसे पता था कि तेज़ चाल के चलते उसकी 28 इंच की कमर & ज़्यादा बल खाने लगी होगी & उसके नीचे उसकी 36 इंच की गंद भी और मटकने लगी होगी.उसका चेहरा लाल हो रहा था.
"छ्चोड़ो बिल्ला उस्ताद.जाने दो.कही इस लौंडिया के चक्कर मे निकलने मे देर ना हो जाए."
"अबे,चुप!",बिल्ला की नज़रे तो उस लड़की की गंद से चिपकी ही हुई थी जोकि चलते हुए अपने मोबाइल के बटन्स दबाए जा रही थी,"..इसे तो साथ ले चलते हैं.रास्ता काटने मे आसानी होगी.गाड़ी लगा सामने,छोटू.",ड्राइवर ने वॅन को तिर्छि कर उस लड़की के सामने कर उसका रोका & बैठे-2 ही बिल्ला ने अपने बाए हाथ से लड़की की दाई बाँह उसकी कलाई के उपर पकड़ी.
उसके बाद जो हुआ उसने सभी गुणडो को हैरान कर दिया & वो कुच्छ पॅलो के लिए मानो जैसे बुत बन गये & यही कुच्छ पल उनकी मुसीबत का सबब बने.लड़की ने दाए हाथ को ज़रा सा घुमा के बिल्ला की बाई कलाई पकड़ी & उसे घुमा दिया.बिजली की फुर्ती से उसने अपना मोबाइल अपने कुर्ते की जेब मे डाला & बाए कंधे से बॅग को नीचे गिरा दिया.
बिल्ला ने अपना दाया हाथ बढ़ा के अपना बाया हाथ लड़की की गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश करनी ही चाही थी कि लड़की के बाए हाथ का कराटे चॉप उसकी गर्दन की दाई तरफ पड़ा & जैसे उसे लकवा मार गया.लड़की ने अपनी बाई टांग को बिल्ला की सीट पे टीकाया & फिर उसी के सहारे बिल्ला का हाथ खींच उसे गाड़ी से नीचे गिरा दिया.
बिल्ला भी शातिर अपराधी था & अपनी हैरानी से बाहर भी आ चुका था.वो पीठ के बल सड़क पे लेटे ही अपनी बाई टांग को चला लड़की की टाँगो पे मार उसे नीचे गिराने की कोशिश की मगर लड़की होशियार थी,वो उसका वार बचाते हुए हवा मे उच्छली & अपना बाया घुटना मोड़ उसके सीने पे लॅंड कराया.
बिल्ला दर्द से छॅट्पाटा उठा.उसके बाकी साथी तब तक वॅन से उतर अपने कपड़ो मे च्छूपे हथ्यार बाहर निकाल के उसकी ओर आ चुके थे की तभी ना जाने कहा से 14-15 पोलिसेवाले वाहा आ गये & उन्हे घेर लिया.थोड़ी ही देर बाद सभी बदमाश पोलीस वॅन मे हथकड़ियो से बँधे बैठे थे.
"आहह....ये लड़की है कौन यार?",दर्द से कराहते बिल्ला ने वॅन के दरवाज़े पे ताला लगाते हवलदार से पुचछा.
"एसीपी दिव्या माथुर.",हवलदार मुस्कुराता हुआ वाहा से चला गया.
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दिव्या माथुर पोलीस की क्राइम ब्रांच की शायद सबसे तेज़-तर्रार अफ़सर थी.बचपन से ही दिव्या को खेल-कूद मे बड़ी दिलचस्पी थी.स्कूल & फिर कॉलेज की बॅडमिंटन,वॉलीबॉल & जाइमनॅसटिक्स टीम शायद ही कभी उसके बिना किसी मुक़ाबले मे हिस्सा लेती थी.कॉलेज पार करते-2 उसने ताए क्वान दो मे भी महारत हासिल कर ली थी & पोलीस ट्रैनिंग के दौरान करते के गुर भी उसने बहुत जल्दी सिख लिए थे.
खेल ने उसमे खुद्दारी & हौसले का जज़्बा भरा & जब सिविल सर्विस का इम्तिहान पास करने पे उसकी पसंद पुछि गयी तो उसने बेझिझक पुलिस सर्विस को चुना.मा-बाप समझाते रह गये कि अड्मिनिस्ट्रेटिव सर्विस चुन ले पर दिव्या खुद को 1 दफ़्तर मे दिन भर बैठे सोच के ही घबरा जाती थी.
ट्रैनिंग के बाद जब वो एसीपी दिव्या माथुर बनके डेवाले आई तो वाहा के आला अफसरो को भी इस नयी अफ़सर की काबिलियत पता चलने मे ज़्यादा वक़्त नही लगा & उन्होने फ़ौरन उसे वाहा की क्राइम ब्रांच मे पोस्ट कर दिया.कल सुबह ही जैसे ही दिव्या को मुखबिरो के हवाले से खबर मिली कि बिल्ला जिसने कुच्छ ही दिन पहले 1 सुपारी किल्लिंग की थी,कल रात शहर से भागने वाला है तो उसने उसे पकड़ने की प्लॅनिंग शुरू कर दी.उसके मातहत काम करने वाले इनस्पेक्टर्स जिनमे से कुच्छ उस से उम्र मे काफ़ी बड़े थे & उनका तजुर्बा भी उस से कही ज़्यादा था,उसे नकबंदी करने की सलाह दी मगर दिव्या ने उनकी बात नही मानी.
उसका कहना था कि बिल्ला तो नकबंदी की उमीद ही कर रहा होगा.क्यू ना कुच्छ ऐसा किया जाए जिसकी उसे बिल्कुल उमीद ना हो & फिर उसे पकड़ने मे आसानी हो.तभी दिव्या ने ये प्लान बनाया.इस प्लान मे अगर ज़रा भी गड़बड़ होती या उसकी टीम उसके मोबाइल के मेसेज मिलने के बाद वक़्त पे नही पहुँचती तो दिव्या की जान भी जा सकती थी मगर दिव्या ने इतने दीनो मे जो सबसे बड़ा सबक सीखा था वो ये की अगर उसने ख़तरे के डर से कदम पीछे खींचे तो मुजरिम आगे बढ़ जाएगा & वो उस से मुक़ाबला हार जाएगी & हार लफ्ज़ से उसे सख़्त नफ़रत थी.
"मेडम.",1 हवलदार ने उसे सलाम ठोंका.
"हूँ.",दिव्या ने 1 बार फाइल से नज़र उठाके उसे आराम से होने का इशारा किया & फिर वापस फाइल निपटाने लगी.पोलीस की नौकरी के बाद दिव्या ने 1 और सबक सीखा था की चाहे फ़ौजी बन सरहद पे क्यू ना तैनात हो जाओ,बिना काग़ज़ काले किए काम नही चलने वाला!
"आप जब दफ़्तर से बाहर थी तो डीसीपी साहब का मेसेज आया था इंटरकम पे कि शाम को 7 बजे आप उनके कॅबिन मे रिपोर्ट करें,उन्हे कल के एनकाउंटर के बारे मे आपसे रिपोर्ट लेनी है.",हवलदार ने सलाम ठोंका & कॅबिन से बाहर चला गया.
दिव्या हल्के से मुस्कुराइ & फाइल पूरी करती रही.
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