फ्रेंड्स सलीम जावेद मस्ताना की कहानियों के बिना सेक्स कहानियो का संसार अधूरा है वैसे तो ये कहानियाँ हर साइट पर मिल जाएँगी लेकिन किसी ने भी कहानियों का क्रेडिट लेखक को नही दिया . इसीलिए मैं मस्ताना की कहानियो को उनके नाम से पोस्ट कर रहा हूँ आशा करता हूँ इससे सलीम जावेद मस्ताना जी को खुशी होगी . फ्रेंड्स इस सूत्र मे आपको इनकी ही कहानियाँ मिलेंगी . और आपको ज़रूर पसंद आएँगी
सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
लेखक==सलीम जावेद मस्ताना
चौधराइन
भाग 1 - चौधराइन की दुनिया
हमारे गांव के चौधरी साहब की चौधराइन का नाम माया देवी है। माया देवी, प्रभावशाली व्यक्तित्व के अलावा एक स्वस्थ भरे-पूरे शरीर और की मालकिन भी हैं। अच्छे खान पान तथा मेहनती दिनचर्या से उनके बदन में सही जगहों पर भराव है । सुडौल मांसल बाहें उन्नत वक्ष, कमर थोड़ी मोटी सी, पर केले के खम्भों जैसी मोटी मोटी जांघे, भारी कूल्हे और नितम्बों के कारण बुरी न लग के मादक लगती हैं और पीछे से तो गुदाज पीठ के नीचे भारी कूल्हे थिरकते चूतड़ भी गजब ढाते हैं। सुंदर रोबदार चेहरा तेज तर्रार पर नशीली आंखे तो ऐसी जैसे दो बोतलें शराब पी रखी हो। वह अपने आप को खूब सजा संवार के रखती हैं। घर में भी बहुत तेज-तर्रार अन्दाज में बोलती हैं और सारे घर के काम वह खुद ही नौकरो की सहायता से करवाती हैं । उसने सारे घर को एक तरह से अपने कब्जे में कर रखा है। उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बांध कर रखा है। चौधरी शुरू से ही अपनी बीवी से डरता भी था। बीवी जब आई थी तो बहुत सारा दहेज ले के आई थी इसलिये उसके सामने मुंह खोलने में भी डरता है, बीवी शुरू से ही उसके ऊपर पूरा हुकुम चलाती थी। धीरे धीरे चौधरी ने घर के मामलों में जो थोड़ी बहुत टिका टिप्पड़ी वो करता थ वो भी बन्द कर सबकुछ उसे ही सौंप अपनी अलग दुनियां बना ली क्योंकि काम-वासना के मांमले में भी वह बीवी से थोड़ा उन्नीस ही पड़ता था सो अगर चौधराइन ने कभी हाथ धरने दे दिया तो ठीक नहीं तो गांव की कुछ अन्य औरतों से भी उसका टाँका था। माया देवी कुछ ज्यादा ही गरम लगती हैं। उसका नाम ऐसी औरतों में शामिल है जो पायें तो खुद मर्द के ऊपर चड़ जाये। गांव की लगभग सारी औरते उनको मानती हैं और कभी भी कोई मुसीबत में फँसने पर उन्हें ही याद करती है। चौधरी बेचारा तो बस नाम का ही चौधरी है असली चौधरी तो चौधराइन हैं।
गांव के वैद्यराज पन्डित सदानन्द पान्डे ने पन्डिताई और वैद्यगी करते करते थोड़ी जमीन जायदाद जोड़ छोटे मोटे जमींदार भी हो गये हैं एक तो पण्डितजी चौधराइन के गाँव के थे, दूसरे पन्डिताइन चौधरी साहब को अपना भाई मानती हैं ऊपर से पैसे और रहन सहन के मामले में दोनों का बराबर का होने की वजह से भी उनकी चौधरी परिवार से काफ़ी गाढ़ी छनती है। पाण्डे जी का का एक ही बेटा मदन है प्यार से सब उसे मदन कहते हैं। वो देखने में बचपन से सुंदर था, थोड़ी बहुत चंचल पर वैसे सीधा सादा लड़का है। वो चौधराइन को चाची कहता है उसका भी एक कारण है चौधराइन उससे कहती थी मुझे बुआ कहा कर पर उसकी पन्डिताइन माँ कहती थी चौधरी तेरे मामा और चौधराइन मामी हैं। बच्चे ने परेशान हो कर चाचा चाची कहना शुरू कर दिया क्यों कि गाँव के सब बच्चे चौधरी चौधराइन को चाचा चाची ही कहते थे । मदन से थोड़ी छोटी, चौधराइन की एक मात्र लड़की मोना थी। वो जब बड़ी हुई तो चौधराइन ने उसे शहर पढ़ने भेज दिया । देखा देखी पाण्डे जी को भी लगा की लड़के को गांव के माहौल से दूर भेज दिया जाये ताकि इसकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से हो और गांव के लौंडों के साथ रह कर बिगड़ ना जाये। चौधराइन और सदानन्द ने सलाह कर के मोना और मदन दोनों को मदन के मामा के पास भेज दिया जो की शहर में रह कर व्यापार करता था।
दिन इसी तरह बीत रहे थे। चौधरी सबकुछ चौधराइन पर छोड़ बाहर अपनी ही दुनिया में अपने में ही मस्त रहते हैं। अगर घर में होते भी तो के सबसे बाहर वाले हिस्से जिसे मर्दाना कहते हैं और चौधराइन या अन्य कोई घर की औरत उधर नहीं जाती में ही रहते हैं वहीं वे अपने मिलने वालों और मिलने वालियों से मिलते हैं और दोस्तों के साथ हुक्का पीते रहते। चौधराइन का सामना करने के बजाय नौकर से खाना मंगवा बाहर ही खा लेते और वहीं सो जाते।
आज चौधराइन ने पण्डितजी को खबर भेजी कि एक जरूरी बात बिचरवानी है जल्दी से आ जायें। पण्डितजी अपना काम समेट करीब साढ़े 11 बजे चौधराइन से मिलने चले ।
तकरीबन १२ बजे के आस पास जब चौधराइन माया देवी अपने पति चौधरी साहब से कुछ अपना दुखड़ा बयान कर रही थीं। तब तक पण्डित सदानन्द पाण्डे जी आ पहुँचे।
चौधरी साहब, “आओ सदानन्द! लो माया, आगया तुम्हारा भाई अब मेरा पीछा छोड़ जो पूछना है इससे पूछ ले। मुझे जरूरी काम से बाहर जाना है।”
यों बोल चौधरी साहब खिसक लिये।
माया देवी सदानन्द उसको देख कर खुश होती हुई बोली आओ सदानन्द भाई अच्छा किया आप जल्दी आ गये, पता नही दो तीन दिन से पीठ में बड़ी अकड़न सी हो रही है। पण्डित सदानन्द पाण्डे जी ने पोथी खोल के कुछ बिचारा और बोले “वायू प्रकोप है एक महीने चलेगा।”
“कोई उपाय पण्डितजी” माया देवी ने मुस्कुरा के पूछा।
पण्डित सदानन्द - “उपाय तो है अभिमन्त्रित(मन्त्रों से शुद्ध किये) तेल से मालिश और जाप पर ये सब मुझे अभी ही शुरू करना होगा।”
चौधराइन, “ठीक है”
पण्डितजी “एकान्त और थोड़े सरसों के तेल की व्यवस्था कर लें। ”
चौधराइन, “ठीक है।”
जाप क्या होना था, ये जो पण्डित सदानन्द पाण्डे जी हैं ये चौधराइन के पूराने आशिक हैं पण्डितजी और चौधराइन दोनों को अपने गन्दे दिमाग के साथ अभी भी पूरे गांव की तरह तरह की बाते जैसे कि कौन किसके साथ लगी है, कौन किससे फँसी है और कौन किसपे नजर रखे हुए है आदि करने में बड़ा मजा आता है। गांव, मुहल्ले की बाते खूब नमक मिर्च लगा कर और रंगीन बना कर एकदूसरे से बताने में उन्हें बड़ा मजा आता था। इसीलिये दोनो की जमती भी खूब है। इस प्रकार अपनी बातों और हरकतों से पण्डितजी और कामुक चौधराइन एक दूसरे को संतुष्टि प्रदान करते हैं।
हाँ तो फिर चौधराइन पण्डितजी को ले इलाज करवाने के लिये अपने कमरे में जा घुसी। दरवाजा बंद करने के बाद चौधराइन बिस्तर पर पेट के बल लेट गई और पण्डित सदानन्द पाण्डे जी उसके बगल में साइड टेबिल पर तेल की कटोरी रखकर खड़े हो गये। दोनो हाथों में तेल लगा कर पण्डितजी ने अपने हाथों को धीरे धीरे चौधराइन की कमर और पेट पर चलाना शुरु कर दिया था। चौधराइन की गोल-गोल नाभि में अपने उंगलियों को चलाते हुए पण्डितजी और चौधराइन की बातो का सिलसिला शुरु हो गया । चौधराइन ने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए पुछा “और सुना सदानन्द, कुछ गांव का हाल चाल तो बता, तुम तो पता नही कहाँ कहाँ मुंह मारते रहते हो।”
पण्डितजी के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई “अरे नहीं माया, मैं शरीफ़ आदमी हूँ हाल चाल क्या बताये गांव में तो अब बस जिधर देखो उधर जोर जबरदस्ती हो रही है, परसों मुखिया ने नंदु कुम्भार को पिटवा दिया पर आप तो जानती ही हो आज कल के लडकों को, मुखिया पड़ा हुआ है अपने घर पर अपनी टूटी टाँग ले के।”
चौधराइन “पर एक बात तो बता मैंने तो सुना है की मुखिया की बेटी का कुछ चक्कर था नन्दु के बेटे से।”
पण्डितजी “सही सुना है चौधराइन, दोनो मे बड़ा जबरदस्त नैन-मटक्का चल रहा है, इसी से मुखिया खार खाये बैठा था बड़ा खराब जमाना आ गया है, लोगों में एक तो उंच नीच का भेद मिट गया है, कौन किसके साथ घुम फिर रहा है यह भी पता नही चलता है,
चौधराइन “खैर और सुनाओ पण्डित, मैंने सुना है तेरा भी बड़ा नैन-मटक्का चल रहा है आज कल उस सरपंच की बीबी के साथ, साले अपने को शरीफ़ आदमी कहते हो ।”
पण्डितजी का चेहरा कान तक लाल हो गया था, चोरी पकड़े जाने पर चेहरे पर शरम की लाली दौड़ गई।
शरमाते और मुस्कुराते हुए बोले “अरे कहाँ चौधराइन मुझ बुड्ढ़े को कौन घास डालता है ये तो आप हैं कि बचपन की दोस्ती निभा रही हैं वैसे मुझे भी आपके मुकाबले तो कोई जचती नहीं ।”
पण्डितजी, ”उह बुड्ढ़ा और साले तू! परसों पण्डिताइन ने बताया था कि तू आधी रात तक उसे रौन्दता रहा था जब्कि उसी दिन दोपहर में मुझे पूरा निचोड़ चुका था साले तेरा बस चले तो गाँव की सारी जवान बुड्ढी सबको समूचा निगल जाये।“
ये सुन कर पण्डित सदानन्द ने पूरा जोर लगा के चौधराइन की कमर को थोड़ा कस के दबाया, गोरी चमड़ी लाल हो गई, चौधराइन के मुंह से हल्की सी आह निकल गई,
“आआह।”
पण्डितजी का हाथ अब तेजी से चौधराइन की कमर पर चल रहा था। तेज चलते हाथों ने चौधराइन को थोड़ी देर के लिये भूला दिया की वो क्या पूछ रही थी। पण्डितजी ने अपने हाथों को अब कमर से थोड़ा नीचे चलाते हुए पेट तक फ़िर नाभि के नीचे तक पेटीकोट के अन्दर तक ले जाने लगे । इस प्रकार करने से चौधराइन की पेटीकोट के अन्दर नाभि के पास खुसी हुइ साड़ी धीरे धीरे बाहर निकल आई और फ़िर धीरे से पण्डितजी ने चौधराइन की कमर की साइड में हाथ डाल कर पेटीकोट के नाड़े को खोल दिया। चौधराइन चिहुंकी, सर घुमा के देखा तो पण्डितजी की धोती में उनका फ़ौलादी लण्ड फ़ुफ़्कार रहा था चौधराइन ने अपना मुंह फ़िर नीचे तकिये पर कर लिया पर धीरे से हाथ बढ़ाकर उनका साढ़े आठ इन्च का फ़ौलादी लण्ड धोती के ऊपर से ही थाम फ़ुसफ़ुसाते हुए बोलीं -
“खाल में रहो पण्डित अभी इतना टाइम नहीं है बहुत काम है।”
पण्डितजी ने सुनी अनसुनी सी करते हुए चौधराइन के पेटीकोट को ढीला कर उसने अपने हाथों से कमर तक चढ़ा दिया। पण्डितजी हाथों में तेल लगा कर चौधराइन के मोटे-मोटे चूतड़ों को अपनी हथेलीं में दबोच-दबोच कर मजा लेने लगे। माया देवी के मुंह से हर बार एक हल्की-सी आनन्द भरी आह निकल जाती थी। अपने तेल लगे हाथों से पण्डितजी चौधराइन की पीठ से लेकर उसके मांसल चूतड़ों तक के एक-एक कस बल को ढीला कर दिया था। उनका हाथ चूतड़ों को मसलते मसलते उनके बीच की दरार में भी चला जाता था। चूतड़ों की दरार को सहलाने पर हुई गुद-गुदी और सिहरन के करण चौधराइन के मुंह से हल्की-सी हँसी के साथ कराह निकल जाती थी। पण्डितजी के मालिश करने के इसी मस्ताने अन्दाज की माया देवी दिवानी थी। पण्डितजी ने अपना हाथ चूतड़ों पर से खींच कर उसकी साड़ी को जांघो तक उठा कर उसके गोरे-गोरे बिना बालों की गुदाज मांसल जांघो को अपने हाथों में दबा-दबा के मालिश करना शुरु कर दिया। चौधराइन की आंखे आनन्द से मुंदी जा रही थी। उनके हाथ से लण्ड छूट गया। पण्डित सदानन्द का हाथ घुटनों से लेकर पूरी जाँघों तक घुम रहे थे। जांघो और चूतड़ों के निचले भाग पर मालिश करते हुए पण्डितजी का हाथ अब धीरे धीरे चौधराइन की चूत और उसकी झांठों को भी टच कर रहा था। पण्डितजी ने अपने हाथों से हल्के हल्के चूत को छूना करना शुरु कर दिया था। चूत को छूते ही माया देवी के पूरे बदन में सिहरन-सी दौड़ गई थी। उसके मुंह से मस्ती भरी आह निकल गई। उस से रहा नही गया और पलट कर पीठ के बल होते हुए झपट कर उनका हलव्वी लण्ड थाम बोलीं “तु साला न मेरी शादी से पहले मानता था न आज मानेगा।”
“चौधराइन पण्डित वैद्य से इलाज करवाने का यही तो मजा है”
“चल, आज जल्दी निबटा दे मुझे बहुत सारा काम है”
“अरे काम-धाम तो सारे नौकर चाकर कर ही रहे है चौधराइन, जरा अच्छे से पण्डित से जाप करवा लो बदन हल्का हो जायेगा तो काम भी ज्यादा कर पाओगी।“
चौधराइन -“हट्ट साले आज मैं तेरे से बदन हल्का करवाने के चक्कर में नही पड़ती थका डालेगा साला मुझे । जाके पण्डिताइन का बदन हलका कर।”
चौधराइन ने अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी और पण्डितजी का हाथ सीधा साड़ी और पेटीकोट के नीचे से माया देवी की चूत पर पहुंच गया था। चूत की फांको पर उंगलियाँ चलाते हुए अपने अंगुठे से हलके से माया देवी की चूत की पुत्तियों को सहला दिया। चूत एकदम से पनिया गई।”
चौधराइन ने सिसकारी ली “सीस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सई आआह शैतान।”
अब चौधराइन अपनी पीठ के पीछे दो तीन मोटे बड़े तकियों की धोक लगा कर अधलेटी हो गईं जिससे छातियों पर से आंचल नीचे सरक गया। चौधराइन की साड़ी पेटीकोट पण्डितजी की हरकतों से जाँघों के ऊपरी हिस्से तक पहले ही सिमट चुका था उन्होंने अपनी जांघो को फ़ैला, और चौड़ा कर दिया फ़िर अपना एक पैर घुटनो के पास से मोड़ दिया। जिससे साड़ी पेटीकोट और सिमट कर कमर के आसपास इकट्ठा हो गया और दोनों फ़ैली जांघों के बीच झाँकती चूत पण्डितजी को दिखने लगी मतलब चौधराइन ने पण्डित सदानन्द को ये सीधा संकेत दे दिया कि कर ले अपनी मरजी की, जो भी करना चाहता है। बिस्तर की साइड में खड़े पण्डितजी मुस्कुराते हुए बिस्तर पर चढ़ आये और उनकी टाँगों के बीच घुटनों के बल बैठ गये इस कार्यवाही में उनका लण्ड चौधराइन के हाथों से निकल गया। चौधराइन की गोरी चिकनी मांसल टांगो पर तेल लगाते हुए पण्डितजी ने धीरे से हाथ बढ़ा चूत को हथेली से एक थपकी लगाई और चौधराइन की ओर देखते हुए मुस्कुरा के बोले
“पानी तो छोड़ रही हो मायारानी”
इस पर माया देवी सिसकते हुए बोली –“सीस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सई आआह! साले ऐसे थपकी लगायेगा तो पानी तो निकलेगा ही।“
पण्डितजी ने पुछा “क्या ख्याल है जाप पूरा करवाओगी चौधराइन।
चौधराइन ने पण्डित सदानन्द की तरफ़ घूर के देखा और उनका फ़ौलादी लण्ड झपटकर अपनी चूत की तरफ़ खीचते हुए बोलीं “पूरा तो करवाना ही पडेगा साले पण्डित अब जब तूने आग लगा दी है तो।”
चौधराइन के लण्ड खींचने से पण्डित अपना सन्तुलन सम्हाल नहीं पाये और चौधराइन के ऊपर गिरने लगे। सम्हलने के लिए उन्होंने चौधराइन के कन्धे थामें तो उनका मुँह चौधराइन के मुँह के बेहद करीब आ गया और लण्ड चूत से जा टकराया । बस पन्डित ने मुँह आगे बढ़ा उनके रसीले होठों पर होठ रख दिये और चूसने लगे। चौधराइन भी भी अपने बचपन के यार से अपने रसभरे होठ चूसवाते हुए उसका लण्ड अपनी चूत पर रगड़ रही थीं। पण्डित के हाथ कन्धों से सरक पीठ पर पहुँचे और चौधराइन के ब्लाउज के हुक खोलने लगी। ब्लाउज के बटन खुलते ही पन्डित सदानन्द ने बड़ी फ़ुर्ती से ब्रा का हुक भी खोल दिया और ब्लाउज और ब्रा एक साथ कन्धों से उतार दी उनकी इस अचानक कार्यवाही से हड़बड़ा कर चौधराइन ने सीने के पास ब्रा पे हाथ रख उन्हें धकेलते हुए बोलीं –
“अरे अरे रुको तो!”
पन्डित सदानन्द (झपट के ब्रा नोच उनके बदन से अलग करते हुए) –“अभी तो कह रहीं थी जल्दी करो, अब कहती हो रुको रुको।”
झटके से ब्रा हटने से चौधराइन के दोनों बड़े बड़े खरबूजों जैसे स्तन उछल के बाहर आगये तो पन्डित सदानन्द ने अपने दोनों हाथ बढ़ा माया देवी की हलव्वी खरबूजे थाम लिये और उनको हल्के हाथों से पकड़ कर सहलाने लगे जैसे की पुचकार रहे हो। “सीस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सई आआह!
सदानन्द की हरकतों से उत्तेजित चौधराइन सिसकारियाँ भरते हुए उनका लण्ड अपनी चूत पर रगड़ रही थीं । पन्डित सदानन्द ने अपने हाथों पर तेल लगा के पहले दोनो चुचों को दोनो हाथों से पकड़ के हल्के से खिंचते हुए निप्पलो को अपने अंगुठे और उंगलियों के बीच में दबा कर मसलने लगे। निप्पल खड़े हो गये थे और दोनो चुचों में और भी मांसल कठोरता आ गयी थी । पण्डितजी की समझ में आ गया था की अब चौधराइन को गरमी पूरी चढ़ गई है। उत्तेजना से बौखलाई चौधराइन की दोनों आँखें बन्द थीं और उनके मुँह से “सीस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सई आआह!
जैसी आवाजे आ रहीं थीं और वो अपनी गुदाज हथेली में पण्डित सदानन्द का हलव्वी लण्ड दबाये अपनी चूत के बूरी तरह गीले हो रहे मुहाने पर जोर जोर से रगड़ रही थीं तभी चौधराइन ने पण्डित सदानन्द की तरफ़ देखा दोनों की नजरें मिलीं और चौधराइन ने आँख से इशारा किया । चौधराइन का इशारा समझ तेल लगी चुचियों को सहलाते दबाते धक्का मारा और उनका सुपाड़ा पक से चौधराइन की चूत में घुस गया ।
सीस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सई आआह!
चौधराइन ने दबी आवाज में सिसकारी भरी पर साथ ही चूतड़ उछालकर पण्डित सदानन्द को बचा लण्ड चूत मे डालने में मदद भी की।
सदानन्द ने चौधराइन की मदद से तीन ही धक्कों मे पूरा लण्ड धाँस दिया बस फ़िर क्या था कभी पण्डित ऊपर तो कभी चौधराइन, दोनों ने धुँआधार चुदाई की।
क्रमश:………………………………
सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
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चौधराइन
भाग -2 बेला मालिन - गाँव का रेडियो
पण्डित वैद्यराज सदानन्द जी की चुदाई भरे इलाज से बुरी तरह थकी चौधराइन, उन के जाने के बाद सो गई तो उनकी नींद करीब साढ़े तीन बजे दोपहर में खुली । उनका बदन बुरी तरह टूट रहा था । सोचा अब तो सचमुच मालिश करवानी पड़ेगी। कमरे से बाहर आयीं नौकर को आवाज दी,
“बल्लू जा बेला मालिन को बुला ला बोलना मालकिन ने मालिश के लिए बुलाया है।”
बेला मालिन आयी और आंगन में खुलने वाले सारे दर्वाजे बन्द कर चौधराइन को धूप में बैठा आंगन में मालिश(असली वाली) करवाने लगीं। जब चौधराइन मालिश करवाती थीं तो वो सोच रही थी कि पन्डित सदानन्द की मालिश और असली मालिश में कितना फ़र्क है पन्डित सदानन्द साला थका देता है जबकी असली मालिश थकान उतारती है।”
बेला “क्या सोच रहीं हई मालकिन ।
उसी समय घर के मुख्य दरवाजे से “चाची ओ चौधराइन चाची!”
पुकारते हुए मदन अन्दर आया । चौधराइन की साड़ी घुटनों तक ऊपर उठी हुई थी और पिन्डलियाँ दोपहर की धूप की रोशनी में चमक रही थी। ये सब इतना अचानक हुआ कि ना तो चौधराइन ना ही बेला के मुंह से कुछ निकला। कुछ देर तक ऐसे ही रहने के बाद बेला को जैसे कुछ होश आया तो उसने जल्दी से चौधराइन की पिन्डलियों को साड़ी खींच कर ढक दिया। चौधराइन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेटते झेंप मिटाते हुए बोली,
" क्या बात है मदन, कब आया शहर से।"
अब मदन को भी अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपना सर नीचे करते हुए कहा,
" दो हफ़्ते हुए, वो पिता जी ने पूछने भेजा है कि उनको चौधरी चचा से कुछ काम है कल घर पर कितने बजे तक रहेंगे ।"
इस बीच माया देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी। उन्होंने सहज हो मदन को देखा और बोलीं – “कल शाम चार बजे से पहले क्या ही आयेंगे तो उससे पहले तो उनसे मुलाकात होनेकी कोई उम्मीद नहीं।तू तो काफ़ी बड़ा हो गया है रे कौन सी क्लास में पहुंच गया ।”
मदन बताने लगा कि अब वो सत्रह बरस का हो चुका है। बारहवी कि परीक्षा उसने दे दी है। परीक्षा जब खतम हुई तो शहर में रह कर क्या करता?, परीक्षा के खतम होते ही वह गांव वापस आ गया। मोना (चौधराइन की लड़की) उससे एक साल छोटे क्लास में है उसकी परीक्षा अगले महीने है। मैं यहां भी बोर होने लगा था पर गांव के कुछ बचपन के दोस्त मिल गये हैं, उनके साथ सुबह शाम क्रिकेट घुमना फिरना शुरु कर दिया है।”
मदन बता रहा था और चौधराइन देख रही थीं । मदन (मदन) पर नई-नई जवानी चढी है। शहर की हवा लग चुकी है पर पंडिताइन ने गांव से खाने पीने का ख्याल रखा है जिससे बदन खूब गठीला हो गया है।
फ़िर मदन प्रणाम कर वहां से चला गया।
बेला ने झट से उठ कर दरवाजा बंद किया और बोली,
" दरवाजा लगता है, पूरी तरह से बंद नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की जरुरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर तो कोई आता नहीं ऐसे।"
"चल जाने दे जो हुआ सो हुआ अपने सदानन्द का बेटा ही तो है।"
इतना बोल कर चौधराइन चुप हो गई पर बेला एक हरामिन थी उसकी नजरें चौधराइन की नजरों ताड़ रही थी और खूब पहचान रही थीं सो उसने फिर से बाते छेड़नी शुरु कर दी,
“मालकिन अब क्या बोलु, मदन बाबू (मदन) भी कम उस्ताद नहीं है”
बेला को घूरते हुए माया देवी ने पुछा, “क्यों, क्या किया मदन ने तेरे साथ।”
“अरे मेरे साथ नहीं पर…
चौधराइन चौकन्नी हो गई
“हाँ हाँ बोल ना क्या बोलना है”
“मालकिन अपने मदन बाबू भी कम नही है, उनकी भी संगत बिगड़ गई है”
“ऐसा कैसे बोल रही है तु”
“ऐसा इसलिये बोल रही हुं क्यों की, मदन बाबू भी तालाब के चक्कर खूब लगाते है”
“ हो सकता है दोस्तों के साथ खेलने या फिर तैरने चला जाता होगा”
“खाली तैरने जाये तब तो ठीक है मालकिन मगर, मदन बाबू को तो मैंने कल तालाब किनारे वाले पेड़ पर चढ़ कर छुप कर बैठे हुए भी देखा है।”
चौधराइन और ज्यादा जानना चाहती थी, इसलिये फिर बेला को कुरेदते हुए कहा
“अब जवान भी तो हो गया है थोड़ी बहुत तो उत्सुकता सब के मन में होती है, वो भी देखने चला गया होगा इन मुए गांव के छोरो के साथ।”
“पर मालकिन मैंने तो उनको शाम में बगीचे में गुलाबो के ब्लाउज में हाथ घुसेड़ दबाते हुए भी देखा है।”
चौधराइन, “अरे अभी दो ही हफ़्ते तो हुए हैं इसे आये और इसने ये सब कर डाला।” बेला हँसती हुइ बोली “मालकिन मैं एकदम सच-सच बोल रही हूँ। झूठ बोलु तो मेरी जुबान कट के गिर जाये अरे मदन बाबू को तो कई बार मैंने गांव की औरते जिधर दिशा-मैदान करने जाती है उधर भी घुमते हुए देख है।”
“हाय दैय्या उधर क्या करने जाता है”
“बसन्ती के पीछे भी पड़े हुए है छोटे मालिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है। साली को जैसे ही मदन बाबू को देखती है और ज्यादा चूतड़ मटका मटका के चलने लगती है, मदन बाबू भी पूरे लट्टु हुए बैठे है।”
“क्या जमाना आ गया है, इतना पढ़ाने लिखाने का कुछ फायदा नही हुआ, सब मिट्टी में मिला दिया, सदानन्द ने इन्ही भन्गिनो और धोबनो के पीछे घुमने के लिये इसे शहर भेजा था”
“आप भी मालकिन बेकार में नाराज हो रही हो, नया खून है थोड़ा बहुत तो उबाल मारेगा ही, फिर यहां गांव में कौन-सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिये थोड़ा बहुत इधर उधर कर लेते है”
“नही मैं सोचती थी कम से कम पन्डित सदानन्द का बेटा तो ऐसा ना होगा”
“तो आप के हिसाब से जैसे आप खुद आग में जलती रहती हो वैसे ही हर कोई जले”
बेला से नजरे छुपाते हुए चौधराइन ने कहा
“मैं कौन सी आग में जल रही हूँ री कुतिया “
“क्यों जलती नही हो क्या, क्या मुझे पता नही की मर्द के हाथों की गरमी पाये आपको ना जाने कितने साल बीत चुके है,चौधरी जाने कहाँ अपने ही में मस्त रहते हैं क्या मुझे पता नहीं है। अगर मैं आप की जगह होती तो अपने गाँव के (पन्डित सदानन्द चौधराइन के ग़ांव के हैं) रिश्ते का ऐसा चाची चाची करने वाला भतीजा कभी न छोड़ती क्योंकि किसी को कभी शक हो ही नहीं सकता वैसे मदन बाबू आपकी गोरी गोरी सुडौल गुदगुदी पिन्डलियों को चोरी चोरी देख भी रहे थे।”
“ऐसा नही है री, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है।”
“बच्चा है, आप कहती हो बच्चा है अरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मां बना दे ।”
“चल साली क्या बकवास करती है”
चौधराइन की दोनो टांगो को फैला कर बेला उनके बीच में बैठ गई। बेला ने मुस्कुराते हुए चौधराइन के पेटीकोट के ऊपर से उनकी पावरोटी सी फ़ूली चूत पर हाथ फ़ेरते हुए कहा- अभी आपको मेरी बाते तो बकवास ही लगेगी मगर मालकिन सच बोलु तो आपने अभी मदन बाबू का औजार नहीं देखा मदन बाबू का औजार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी।
“दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम मेरे तेरे बेटे की उमर का है।”
“हंह! बेटे की उमर का है तो क्या औजार अन्दर घुसने से इन्कार कर देगा।”
बेला ने चौधराइन की पावरोटी सी फ़ूली चूत की दरार को पेटीकोट के ऊपर से सहलाते हुए कहा । चौधराइन ने अपनी जांघो को और ज्यादा फैला दिया, बेला के पास अनुभव था अपने हाथों से मर्दों और औरतों के जिस्म में जादु जगाने का। माया देवी के मुंह से बार-बार सिसकारियां फुटने लगी। बेला ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो फिर से बातों का सिलसिला शुरु कर दिया
“मेरी बात मान लो मालकिन, कुछ जुगाड़ कर लो।”
“क्या मतलब है री तेरा”
“मतलब तो बड़ा सीधा सादा है मालकिन, मालकिन आपकी चूत मांगती है लण्ड और आप हो की इसको खीरा ककडी खिला रही हो”
-बेला ने तवा गरम देख खुल के कहा
“चुप साली, अब कोई उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की बिना मर्द के सुख के इतने दिन बीत गये तो अब क्या, अब तो बुढिया हो गई हुँ ।”
“ आप क्या जानो गाँव के सारे जवान आप को देख आहे भरते हैं”
“चल साली क्यों चने के झाड़ पर चढ़ा रही है”
“क्या मालकिन मैं ऐसा क्यों करूँगी, मैं तो सच्चाई बता रही थी कि क्यों अपनी जवानी यूँ ही सत्यानाश करवा रही हो”
“तु क्यों मुझे बिगाडने पर क्यों तुली हुई है।”
बेला ने हँसते हुए कहा, “थोड़ा आप बिगड़ो और थोड़ा अपने मुँहबोले भतीजे को को भी बिगड़ने का मौका दो से मदन बाबू से बढ़िया मौका अब दूसरा मिलना मुश्किल है। चाची चाची कहता है किसी को कभी शक भी न होगा।”
“छी रण्डी कैसी कैसी बाते करती है! सदानन्द मेरे गाँव के हैं मैं भाई कहती हूँ उन्हें।”
“अरे छोड़िये मालकिन कौन से आपके सगे भाई भतीजे हैं। मैं आपकी जगह होती तो सबसे पहले पन्डितजी को टाँगों के बीच लाती फ़िर मदन बाबू को । एक भाई दूसरा भतीजा जी भर के मजे करो किसी साले को कभी शक हो ही नहीं सकता।
ये सुन चौधराइन मन ही मन मुसकराई, अब वो बेला को ये कैसे बतायें कि पन्डितजी तो टाँगों के बीच रहते ही हैं।”
बेला आगे बोल रही थी –“अरे मुझे क्या है मैं तो आप के लिए परेशान हूँ वैसे भी ईमानदारी से देखा जाय तो मदन बाबू जैसे कड़ियल जवान को आप जैसी सुन्दर भरी पूरी साफ़ सुथरी औरत मिलनी चाहिये न कि गाँव की गन्दी छिछोरियाँ । इस रिश्तों की भलमनसाहत और शरम में मदन बाबू चाची चाची करते रहेंगे और आप बेटा बेटा। आप अपने जिस्म की आग खीरा, ककड़ी में बर्बाद करना, उधर आपका मुँहबोला भतीजा अपने जिस्म की आग से परेशान हो हो कर गाँव की गन्दी छिछोरियों मे अपनी कड़ियल जवानी और अपना सुन्दर जवान जिस्म बरबाद कर डालेगा। मैं तो अनपढ़ जाहिल हूँ पर क्या मुँहबोले प्यारे भतीजे की उस बरबादी की तरफ़ आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ।”
“वो कोई ऐसा काम क्यों करेगा री। वो कुछ नही करने वाला।”
“मालकिन बड़ा मस्त हथियार है मदन बाबू का, गांव की छोरियां छोड़ने वाली नही।”
ये सुनते ही चौधराइन को पण्डित सदानन्द के हलव्वी लण्ड का ख्याल आया वो मन ही मन हँसीं कि लगता है जैसा बाप वैसा ही बेटा भी है पर प्रकट में बेला को लताड़ा –“हरामजादी, छोरियों की बात छोड़ मुझे तो लगता है तु ही उसको नही छोड़ेगी, शरम कर बेटे की उमर का है।“
“यही तो मैं कह रही हूँ मदन बाबू मुझे भी घूरते रहते हैं किसी दिन पटक के चढ़ बैठे तो आपके हिस्से का ये केला मुझ नासपीटी को ना खाना पड़ जाये।”
अगर ऐसा हुआ तो मैं तेरा मुंह नोच लुँगी”
“हाय मालकिन उतना बड़ा औजार देख के तो मैं सब कुछ भुल जाती हुँ। पर इसमें मेरी कोई गलती नहीं है उसे देख किसी भी औरत का यही हाल होगा।”
इतनी देर से ये सब सुन-सुन के माया देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी। उसने आखिर बेला से पूछ ही लिया,,,,
" कैसे देख लिया तूने मदन का। "
बेला ने अन्जान बनते हुए पुछा, "मदन बाबू का क्या मालकिन। "
फिर बेला को चौधराइन की एक लात खानी पड़ी, फिर चौधराइन ने हँसते हुए कहा,
" कमीनी सब समझ के अन्जान बनती है। "
बेला ने भी हँसते हुए कहा,
" मालकिन मैं तो सोच रही थी कि आप अभी तक तो बेटा भतीजा कर रही थी फिर उसके औजार के बारे में थोड़े ही न पूछोगी?"
बेला की बात सुन कर चौधराइन थोड़ा शरमा गई। उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि वो बेला को क्या जवाब दे। फिर भी उन्होंने थोड़ा झेपते हुए कहा,
" साली मैं तो ये पूछ रही थी की तूने कैसे देख लिया. '
" मैंने बताया तो था मालकिन की मदन बाबू जिधर गांव की औरतें दिशा-मैदान करने जाती है, उधर घुमते रहते है, और ये साली बसन्ती भी उनपे लट्टु हुइ बैठी है। एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झाड़ियों में खुसुर पुसुर की आवाज आ रही है। मैंने सोचा देखु तो जरा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताऊँ, मदन बाबू और बसन्ती दोनो खुसुर पुसुर कर रहे थे। मदन बाबू का हाथ बसन्ती की चोली में और बसन्ती का हाथ मदन बाबू की हाफ पैन्ट में घुसा हुआ था। मदन बाबू रिरयाते हुए बसन्ती से बोल रहे थे, ' एक बार अपना माल दिखा दे. ' और बसन्ती उनको मना कर रही थी।"
इतना कह कर बेला चुप हो गई तो माया देवी ने पूछा,
" फिर क्या हुआ। "
" मदन बाबू ने फिर जोर से बसन्ती की एक चुची को एक हाथ में थाम लिया और दूसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जांघो के बीच रख के पूरी मुठ्ठी में उसकी चूत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले,
' हाय दिखा दे एक बार, चखा दे अपनी लालमुनीया को बस एक बार रानी फिर देख मैं इस बार मेले में तुझे सबसे महंगा लहंगा खरीद दुँगा, बस एक बार चखा दे रानी॑.' , इतनी जोर से चुची दबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी मदन बाबू के हाथ को हटाने की उसने कोशिश नही की, खाली मुंह से बोल रही थी,
' हाय छोड़ दो मालिक. छोड़ दो मालिक. '
मगर मदन बाबू हाथ आई मुर्गी को कहाँ छोड़ने वाले थे। "
ये सब सुनकर माया देवी की चूत भी पसीज रही थी उसके मन में एक अजीब तरह का कौतुहल भरा हुआ था। बेला भी अपनी मालकिन के मन को खूब समझ रही थी इसलिये वो और नमक मिर्च लगा कर मदन की करतुतों की कहानी सुनाये जा रही थी।
" फिर मालकिन मदन बाबू ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले, ' बहुत मजा आयेगा रानी बस एक बार चखा दो, हाय जब तुम चूतड़ मटका के चलती हो तो क्या बताये कसम से कलेजे पर छूरी चल जाती है, बसन्ती बस एक बार चखा दो॑. ' बसन्ती शरमाते हुए बोली,
' नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जायेगी॑, '
इस पर मदन बाबू ने कहा,
' हाथ से पकड़ने पर तो मोटा लगता ही है, जब चूत में जायेगा तो पता भी नही चलेगा॑. '
फिर उन्होंने बसन्ती का हाथ अपनी नीकर से निकाल, अपनी नीकर उतार, झट से अपना लण्ड बसन्ती के हाथ में दे दिया, हाय मालकिन क्या बताऊँ कलेजा धक-से मुंह को आ गया, बसन्ती तो चीख कर एक कदम पीछे हट गई, क्या भयंकर लण्ड था मालिक का एक दम से काले सांप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाड़ी आलु के जैसा गुलाबी सुपाड़ा और मालकिन सच कह रही हु कम से कम १० इंच लम्बा और कम से कम २.५ इंच मोटा लण्ड होगा मदन बाबू का, उफफ ऐसा जबरदस्त औजार मैंने आज तक नही देखा था, बसन्ती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वहीं खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर मदन बाबू का लण्ड उसकी चूत में नही जाता."
चौधराइन साँस रोके ये सब सुन रही थी। बेला को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पूछ बैठी,
"आगे क्या हुआ। "
बेला ने फिर हँसते हुए बताया, " अरे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झाड़ियों में सुरसुराहट हुई, मदन बाबू तो कुछ समझ नही पाये मगर बसन्ती तो चालु है, मालकिन, साली झट से लहंगा समेट कर पीछे की ओर भागी और गायब हो गई। और मदन बाबू जब तक सम्भलते तब तक उनके सामने बसन्ती की भाभी मुटल्ली लाजवन्ती जिसे लाजो भी कहते हैं अपने घड़े जैसे चूतड़ हिलाती आ के खड़ी हो गई। अब आप तो जानती ही हो की इस साली लाजवन्ती ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शरम की औरत है। जब साली और नई नई शादी हो के गांव में आई थी तो बसन्ती की उमर की थी तब से उसने २ साल में गांव के सारे जवान मर्दों के लण्ड का पानी चख लिया था। अभी भी हरामजादी ने अपने आप को बना संवार के रखा हुआ है।" इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई।
" फिर क्या हुआ, लाजवन्ती तो खूब गुस्सा हुई होगी. "
"अरे नही मालकिन, उसे कहाँ पता चला की अभी अभी २ सेकंड पहले मदन बाबू अपना लण्ड उसकी ननद को दिखा रहे थे। वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुई थी। उसने जब मदन बाबू का बलिश्त भर का खड़ा मुसलण्ड देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया और मदन बाबू को पटाने के इरादे से बोली यहां क्या कर रहे है मदन बाबू आप कब से हम गरीबों की तरह यहाँ खुले में दिशा करने लगे॑। मदन बाबू तो बेचारे हक्के बक्के से खड़े थे, उनकी समझ में नही आ रहा था की क्या करें, एक दम देखने लायक नजारा था। हाफ पैन्ट घुटनो तक उतरी हुइ थी और शर्ट मोड़ के पेट पर चढ़ा रखी थी, दोनो जांघो के बीच एक दम काला भुजंग मुसल लहरा रहा था ।"
" मदन बाबू तो बस. ' अरे वो आ मैं तो' कर के रह गये। तब तक लाजवन्ती मदन बाबू के एक दम पास पहुंच गई और बिना किसी झिझक या शरम के उनके हथियार को अप्नी गोरी गुदाज हथेली में धर दबोचा और बोली,
'क्या मालिक कुछ ।गड़बड तो नही कर रहे थे पूरा खड़ा कर के रखा हुआ है। इतना क्यों फनफना रहा है आपका औजार, कहीं कुछ देख तो नही लिया॑।"
इतना कह कर हँसने लगी । मदन बाबू के चेहरे की रंगत देखने लायक थी। एक दम हक्के-बक्के से लाजवन्ती का मुंह ताके जा राहे थे। अपना हाफ पैन्ट भी उन्होंने अभी तक नही उठाया था। लाजवन्ती ने सीधा उनके मुसल को अपने हाथों में थाम रखा था और मुस्कुराती हुइ बोली
“क्या मालिक औरतन को हगते हुए देखने आये थे क्या॑”
कह कर खी खी कर के हँसते हुए साली ने मदन बाबू के औजार को अपनी गुदाज हथेली से कस के दबा दिया।
उस अन्धेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाड़ी आलु जैसा सुपाड़ा एक दम से चमक गया जैसे की उसमें बहुत सारा खून भर गया हो और लण्ड और फनफना के लहरा उठा।”
“बड़ी हरामखोर है ये लाजवन्ती, साली को जरा भी शरम नही है क्या”
“जिसने सारे गांव के लौंडो क लण्ड अपने अन्दर करवाये हो वो क्या शरम करेगी”
“फिर क्या हुआ, मेरा मदन तो जरुर भाग गया होगा वहां से बेचारा”
“मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी २ मिनट पहले आपको बताया था की आपका भतीजा बसन्ती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा समझ रही हो, जबकी उन्होंने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा”
चौधराइन एक दम से चौंक उठी, "क्या कर दिया, बात को क्यों घुमा फिरा रही है"
"वही किया जो एक जवान मर्द करता है"
"क्यों झूठ बोलती हो, जल्दी से बताओ ना क्या किया" ,
मदन बाबू में भी पूरा जोश भरा हुआ था और ऊपर से लाजवन्ती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया। लाजवन्ती बोली
“छोरियों को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारी में थे क्या, या फिर किसी लौन्डिया के इन्तजार में खड़ा कर रखा है॑”
मदन बाबू क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख से लग रहा था की उनकी सांसे तेज हो गयी है। उन्होंने भी अब की बार लाजवन्ती के हाथों को पकड़ लिया और अपने लण्ड पर और कस के चिपका दिया और बोले
“हाय भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था॑”
इस पर वो बोली “तो फिर खड़ा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुछ चाहिये क्या॑”
मदन बाबू की तो बांछे खिल गई। खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था। झट से बोले “चाहिये तो जरुर अगर तु दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दुँगा।“
खुशी के मारे तो साली लाजवन्ती क चेहरा चमकने लगा, मुफ्त में मजा और माल दोनो मिलने के आसार नजर आ रहे थे। झट से वहीं पर घास पर बैठ गई और बोली, “हाय मालिक कितना बड़ा और मोटा है आपका, कहाँ कुवांरियों के पीछे पड़े रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औजार है, बसन्ती तो साली पूरा ले भी नही पायेगी॑”
मदन बाबू बसन्ती का नाम सुन के चौंक उठे की इसको कैसे पता बसन्ती के बारे में। लाजवन्ती ने फिर से कहा
“कितना मोटा और लम्बा है, ऐसा लण्ड लेने की बड़ी तमन्ना थी मेरी॑”
इस पर मदन बाबू ने लाजो के टमाटर से गाल पर चुम्मा लेते हुए कहा आज तमन्ना पूरी कर ले, बस चखा दे जरा सा, बड़ी तलब लगी है॑ इस पर लाजवन्ती बोली जरा सा चखना है या पूरा मालिक॑”
तो फिर मदन बाबू बोले-
“हाय पूरा चखा दे तो मेले से तेरी पसंद की पायल दिलवा दूँगा।
बेला की बात अभी पूरी नही हुई थी की चौधराइन बीच में बोल पड़ी "ओह सदानन्द तेरी तो किस्मत ही फुट गई, बेटा रण्डियों पर पैसा लुटा रहा है, किसी को लहंगा तो किसी हरामजादी को पायल बांट रहा है।"
कह कर बेला को फिर से एक लात लगायी और थोड़े गुस्से से बोली, "हरामखोर, तु ये सारा नाटक वहां खड़ी हो के देखे जा रही थी, तुझे जरा भी पन्डितजी का खयाल नही आया, एक बार जा के दोनो को जरा सा धमका देती दोनो भाग जाते।"
बेला ने मुंह बिचकाते हुए कहा, " मेरी तो औकात नहीं है वरना मेरा बस चले तो खुद ही ऐसे गोरे चिट्टे पन्डितजी पर चढ़ बैठूँ। फ़िर मैं शेर के मुंह के आगे से निवाला छिनने की औकात कहाँ से लाती मालकिन, मैं तो बुस चुप चाप तमाशा देख रही थी।"
कह कर बेला चुप हो गई और मालिश करने लगी। चौधराइन के मन की उत्सुकता दबाये नही दब रही थी कुछ देर में खुद ही कसमसा कर बोली, " चुप क्यों हो गई आगे बता ना "
क्रमशः……………………………
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Re: सलीम जावेद की रंगीन दुनियाँ
चौधराइन
भाग 3 - बेला की सीख पर चौधराइन का प्लान
" फिर क्या होना था मालकिन, लाजो वहीं घास पर लेट गई और मदन बाबू उसके ऊपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे। कभी वो ऊपर कभी मदन बाबू ऊपर। मदन बाबू ने अपना मुंह लाजवन्ती की चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहेंगे को ऊपर उठा के उसकी चूत सहलाने लगे, लाजो के हाथ में मालिक का मोटा लण्ड था और दोनो चिपक चिपक के मजा लूटने लगे। कुछ देर बाद मदन बाबू उठे और लाजो की दोनो टांगो के बीच बैठ गये। उस छिनाल ने भी अपनी साड़ी को ऊपर उठा, दोनो टांगो को फैला दिया। मदन बाबू ने अपना मुसलण्ड सीधा उसकी चूत के ऊपर रख के धक्का मार दिया। जब मदन बाबू का हलव्वी लण्ड चूत फ़ैलाता हुआ अन्दर जाने लगा तो साली चुद्दक्कड़ का इतना धाकड़ चुद्दक्कड़ भोसड़ा भी चिगुरने लगा और वो कराह उठी
“उम्म्म्ह मालिक”
इतना मोटा लण्ड घुसने से कोई कितनी भी बड़ी रण्डी हो उसकी हेकडी एक पल के लिये तो गुम हो ही जाती है। फ़िर मदन बाबू का तो अभी नया खून है, उन्होंने कोई रहम नही दिखाया, उलटा और कस कस के धक्के लगाने लगे."
" हाय मालकिन पर कुछ ही धक्कों के बाद तो साली चुद्दकड़ अपने घड़े जैसे चूतड़ ऊपर उछालने लगी और गपा गप मदन बाबू के लण्ड को निगलते हुए बोल रही थी, 'हाय मालिक मजा आ गया फ़ाड़ दो, हाय ऐसा लण्ड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही पन्डितजी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस के॑..”
मदन बाबू भी पूरे जोश में थे, हुमच हुमच के ऐसा धक्का लगा रहे थे की क्या कहना, जैसे चूत फ़ाड़ के चूतड़ों से लण्ड निकाल देंगे, दोनों हाथ से पपीते जैसी चूचियाँ दबाते हुए पका पक लण्ड पेले जा रहे थे। लाजवन्ती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी, ' मालिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मजा करवाऊंगी, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लण्ड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आऊँगी, हाय मालिक पूरे गांव में आपके लण्ड के टक्कर का कोई नही है॑।' " इतना कह कर बेला चुप हो गई।
बेला ने जब लाजवन्ती के द्वारा कही गई ये बात की, पूरे गांव में मदन के लण्ड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधराइन मानना पड़ा कि ये जरूर सच होगा क्योंकि लाजो से तो कोई लण्ड शायद ही बचा होगा।
फिर भी चौधराइन ने बेला से पूछा, " तु जो कुछ भी मुझे बता रही है वो सच है ना बना के तो नहीं बता रही? "
" हां मालकिन सौ-फीसदी सच बोल रही हूँ। माफ़ करना मालकिन छोटा मुँह बड़ी बात पर अब मैं आप से अपना सवाल दोहराती हूँ क्या अपने मुँहबोले भाई के बेटे, अपने भतीजे की उस बरबादी की तरफ़ आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ।”
चौधराइन कुछ सोचने सी लगी और उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया
चालाक बेला समझ गई कि लोहा गरम है तो उसने आखरी चोट की-
“हाय मालकिन जब मैं रात में बिस्तर पर लेट, मदन बाबू के कसरती बदन में दबते पिसते आपके इस मांसल संगमरमरी जिस्म की कल्पना करती हूँ तो मेरी चूत पनिया जाती है”
अब चौधराइन चौंकी उन्होंने बेला से पूछा तेरी पनिया जाती है! अच्छा एक बात बता तू मुझे ये सब करने के लिए क्यों उकसा रही है इसमें तेरा क्या फ़ायदा है?
“मदन बाबू अगर आपके आकर्षण में फ़ंस यहाँ आने लगे तो इस गाँव की इन मर्दखोर हरामिनों से बच जायेंगे और कभी कभी मुझे भी आप की जूठन मिल जाया करेगी।”
अपनी बात का असर होते देख बेला झोंक में बोल गई फ़िर सकपका के बात सम्हालने कि कोशिश करने लगी –“मेरामतलब है…………
तब तक चौधराइन ने हँसते हुए लात जमायी और बेला हँसते हुए वहाँ से भाग गई।
पर बेला की बात थोड़ी बहुत चौधराइन के भेजे में भी घुस गई थी भतीजे को बचाने की चाहत और शायद दिल के किसी कोने में उसके अनोखे हथियार को देखने की उत्सुकता भी पैदा होगई थी। वो सोचने लगीं कि इतना सीधा लड़का आखिर बिगड़ कैसे गया ।
चौधराइन कुछ देर तक सोचती रही कैसे सदानन्द के बेटे अपने मुँहबोले भतीजे को अपनी पकड़ में लाया जाये। चुदक्कड़ औरत की खोपड़ी तो शैतानी थी ही। तरकीब सुझ गई। सबेरे उठ कर सीधी आम के बगीचे की ओर चल दीं।
चौधराइन जानती थीं कि उनके जितने भी बगीचे हैं, सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मैंनेजर करते ही हैं, पर अनदेखा करती थीं क्योंकि पर अनदेखा करती थीं क्योंकि अन्य बड़े आदमियों कि तरह वो भी सोचती थीं कि चौधरी की इतनी जमीन-जायदाद है गरीब थोड़ा बहुत चुरा भी लेंगे तो कौन सा फ़रक पड़ जायेगा । आम के बगीचे में तो कोई झांकने भी नही जाता. जब फल पक जाते तभी चौधराइन एक बार चक्कर लगाती थी।
मई महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था। बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मैंनेजर बैठा हुआ, दो लड़कियों की टोकरियों में अधपके और कच्चे आम गिन-गिन कर रख रहा था। चौधराइन एकदम से उसके सामने जा कर खड़ी हो गयी। मैंनेजर हडबड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ।
“क्या हो रहा है, ?,,,,,,ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो ?,,,,,,,”
मैंनेजर की तो घिग्घी बन्ध गई, समझ में नही आ रहा था क्या बोले ?।
“ऐसे ही हर रोज एक दो टोकरी बेच देते हो क्या,,,,,,,,, ?” थोड़ा और धमकाया।
“मालकिन,,,,,,,, मालकिन,,,,,,,,,,,,वो तो ये बेचारी ऐसे ही,,,,,,,,बड़ी गरीब बच्चीयां है. अचार बनाने के लिये मांग रही थी,,,,,,,,,,"
दोनो लड़कियां तब तक भाग चुकी थी।
“खूब अचार बना रहे हो।"
मैंनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा। चौधराइन ने अपने पैर पीछे खींच लिए, और वहाँ ज्यादा बात न कर तेजी से घर आ गयीं। घर आ कर चौधराइन ने तुरन्त मैंनेजर और रखवाले को बुलवा भेजा, खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उनकी ड्युटी हटा दी और चौधरी को बोला कि मैंने बगीचे से मैंनेजर और रखवाले की ड्युटी हटा दी है दीनू को रखवाली के लिये बगीचे में भेज दे और सदानन्द से आग्रह करके जितने दिन उसका बेटा मदन गाँव में है तब तक अगर हो सके तो वो दीनू और बाकी रखवालों की निगरानी करे। तबतक या तो आप दूसरा मैंनेजर खोज लें नहीं तो खुद जाकर देखभाल करें।
चौधराइन ने सोचा मैंने एक तीर से तीन शिकार किये हैं एक तो गाँव की छिछोरी औरतों से पीछा छूट जायेगा दूसरे मदन बाबू के द्वारा बगीचे का काम सुधर जायेगा तीसरे सबसे बढ़कर मदन बाबू का चौधराइन के घर आना जाना बढ़ जायेगा तो फ़िर मौके और माहौ को देख उसके हिसाब से अगले कदम के बारे में सोचा जायेगा।
दोपहर को अपने सदानन्द भाई से अपनी चूत का जाप करवाते समय चौधराइन ने जब छुट्टियों भर मदन को बगीचे का काम देखने के लिए पूछा तो उनकी चूत के प्रेमरस में डूबे सदानन्द ने तुरन्त हाँ कर दी कि अच्छा है लड़का कुछ सीखेगा ही और उसका बोर होना भी खत्म हो जायेगा ।
आम के बगीचे में खलिहान के साथ जो मकान बना था वो वास्तव में चौधरी पहले की ऐशगाह थी। वहां वो रण्डियां नचवाता और मौज-मस्ती करता था। अब उमर बढ़ने के साथ साथ उसका मन इन नाच गाना हो हुल्लड़ से भर गया था अब उसकी दिलचस्पी उन्ही औरतों में थी जिनसे उसका टाँका था वो घर परिवार वाली औरते उससे बगीचे में तो मिलने आने से रहीं। उनसे वो उनके या अपने घर के अपने बाहर वाले कमरे में (जहाँ वो उठता, बैठता, दारू पीता था) मिलता था, तब से उसकी बगीचे और उस मकान में दिलचस्पी खत्म हो गई थी सो चौधरी ने वहां जाना लगभग छोड़ ही दिया था।
पर आज के चौधाराइन के आदेश से चौधरी घबड़ाया कि ऐसे तो उसकी सारी आजादी खत्म हो जायेगी सो उसने दूसरे दिन सुबह सुबह ही सदानन्द के घर जा मदन को बड़े प्यार मनुहार से बेटा बेटा कर इस काम के लिये राजी कर लिया और सब रखवालों को हिदायत कर दी कि मदन बाबू के आदेश पर काम करें और मदन कहीं इनकार न कर दे इस डर से उससे कह दिया कि वो अपने दोस्तों को क्रिकेट खेलने के लिये वहीं बुला लिया करे और गाहे बगाहे आराम के लिये बगीचे वाले मकान की चाबी भी दे दी।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें, मदन ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाबी ले ली। और तुरन्त बगिया में दीनू को बोल दिया ' तु भी चोर है बगिया मे दिखाई मत देना दिखा तो टांग तोड़ दुँगा' दीनू डर के मारे गया ही नही, और ना ही किसी से इसकी शिकायत की।
बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गांव में होता है, वैसा ही दिखता था मगर अन्दर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसुरत और आलीशान बना रखा था। दो कमरे, जो की काफी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था। सुख-सुविधा के सारे सामान वहां थे।
इस बीच जैसाकि आप जानते ही हैं मदन ने गांव की लाजो भौजी (लाजवन्ती) को तो चोद ही दिया था. और उसकी ननद बसन्ती के स्तन दबाये थे, मगर चोद नही पाया था। सीलबन्ध माल थी। आजतक मदन ने कोई अनचुदी बुर नही चोदी थी. इसलिये मन में आरजु पैदा हो गई की, बसन्ती की लेते। बसन्ती, मदन बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी। हाथ ही नही आ रही थी। उसकी शादी हो चुकी थी मगर, गौना नही हुआ था।
मदन बाबू के शैतानी दिमाग ने बताया की, बसन्ती की बुर का रास्ता लाजो भौजी की चूत से होकर गुजरता है। तो फिर उन्होंने लाजो भौजी को पटाने की ठानी। मदन जब दीनू से चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाबी ले लौट रहे थे तो गन्ने के खेत के पास लाजो लोटा हाथ में लिये वापस आती दिखी, मदन ने आवाज दी,
"क्या भौजी, उस दिन के बाद से तो दिखना ही बन्द हो गया, तुम्हारा,,,,?"
लाजो पहले तो थोड़ा चौंकी, फिर जब देखा की आस पास कोई नही है, तब मुस्कुराती हुइ बोली,
"आप तो खुद ही गायब हो गये मदन बाबू, वादा कर के,,,,,,!"
"अरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हूँ. और हम पन्डित लोग झूठ नहीं बोलते. मुझे सब याद है,"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम,,,,,,,,,"
"ऐसे कैसे दे दूँ, भौजी !?,,,,,,,,इतनी हडबड़ी भी ना दिखाओ,,,,,'
"अच्छा, अभी मैं तेजी दिखा रही हूँ !!?,,,,,,और उस दिन खेत में लेटे समय तो बड़ी जल्दी में थे आप, छोटे मालिक,,,,,,आप सब मर्द लोग एक जैसे ही हो."
मदन ने लाजो का हाथ पकड़ कर खींचा, और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया। लाजो दर्द से चीखी तो उसका मुंह दबाते हूए बोला,
"क्या करती हो भौजी ?, चीखो मत, सब मिलेगा,,,,,,तेरी पायल मैं ले आया हूँ, और बसन्ती के लिये लहँगा भी।"
मदन ने चारा फेंका। लाजो चौंक गई,
"हाय मालिक, बसन्ती के लिये क्यों,,,,,,?।"
"उसको बोला था की, लहँगा दिलवा दूँगा सो ले आया ।",
कह कर लाजो को एक हाथ से, कमर के पास से पकड़, उसकी एक चूची को बायें हाथ से दबाया।
लाजो थोड़ा कसमसाती हुई, मदन के हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली,
"उस से कब बोला था, आपने ?"
"अरे जलती क्यों है ?,,,,,,उसी दिन खेत में बोला था, जब तेरी चूत मारी थी..",
और अपना हाथ चूची पर से हटा कर, चूत पर रखा और हल्के से दबाया।
"अच्छा अब समझी, तभी आप उस दिन वहां खड़ा कर के खड़े थे. मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे ऊपर हाथ साफ कर लिया ।"
"एकदम ठीक समझी रानी,,,,,,,",
और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया। लाजो चिहुंक गई। मदन का हाथ हटाती बोली,
"छोड़ो मालिक, वो तो एकदम कच्ची कली है।"
अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजो को तुरन्त समझ में आ गया।
अरे, कहाँ की कच्ची कली ?, मेरे उमर की तो है,,,,"
"हां, पर अनचुदी है,,,,,,एकदम सीलबन्द,,,,,,,दो महीने बाद उसका गौना है.."
"धत् तेरे की, बस दो महीने की ही मेहमान है. तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे,,,,,,"
कह कर उसके होठों पर चुम्मा लिया।
ऊउ...हहहह छोड़ो, कोई देख लेगा !?,,,,,,,पायल तो दी नही, और अब मेरी कोरी ननद भी मांग रहे हो,,,,,,,,बड़े चालु हो, छोटे मालिक...!!!"
लाजो को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लण्ड साड़ी के ऊपर से चूत पर रगड़ते हुए, उसकी चूतड़ों की दरार में उँगली चला, मदन बोला,
"अरे कहाँ ना, दोनो चीज ले आया हूँ,,,,,दोनो ननद-भौजाई एक दिन आ जाना, फिर,,,,,"
"लगता है, छोटे मालिक का दिल बसन्ती पर पूरा आ गया है..."
"हां रे ,तेरी बसन्ती की जवानी है ही ऐसी,,,,,,,,बड़ी मस्त लगती है,,,,,,"
"हां मालिक, गांव के सारे लौंडे उसके दिवाने है,,,,....."
"गांव के छोरे, मां चुदाये,,,,,,,तू बस मेरे बारे में सोच,,,,,,,"
कह कर उसके होठों पर चुम्मी ले, फिर से चूची को दबा दिया।
"सीईई,,,,,,मालिक क्या बताये..??, वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दिवाना हो गया है, की,,,,,,,,उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चेन दिखा रहा था, कह रहा था की भौजी, 'एक बार बसन्ती की,,,,,,!!! ' पर, मैंने तो भगा दिया साले को. दोनो बाप-बेटे कमीने है.."
मदन समझ गया की, साली रण्डी, अपनी औकात पर आ गई है। पैंट की जेब में हाथ डाल कर पायल निकाली, और लाजो के सामने लहरा कर बोला,
"ले, बहुत पायल-पायल कर रही है ना, तो पकड़ इसको,,,,,,,,,और बता बसन्ती को कब ले कर आ रही है ?,,,,,,"
"हाय मालिक, पायल लेकर आये थे,,,,,और देखो, तब से मुझे तड़पा रहे थे,,,,,,,,"
और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी। मदन ने सोचा, जब पेशगी दे ही दी है, तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाये. और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अन्दर खींच लिया।
लाजो अभी भी पायल में ही खोई हुई थी। मदन ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला,
"ला पहना दूँ"
लाजो ने चारो तरफ देखा, तो पाया की वो खेत के और अन्दर आ गई है। किसी के देखने की सम्भावना नही है, तो चुप-चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया। मदन ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनायी, फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा। लाजो ने कोई विरोध नही किया। दोनो पैरों के बीच आ जब मदन लण्ड डालने वाला था, तभी लाजो ने अपने हाथ से लण्ड पकड़ लिया और बोली,
"हाय, मालिक थोड़ा खेलने दें न ।“
और लण्ड थाम अपनी चूत के होठों पर रगड़ती हुई बोली,
"वैसे छोटे मालिक, एक बात बोलुं,,,,,,,???"
"हां बोल,,,,,,,,,पर ज्यादा खेल मत कर छेद पर लगा दे, मुझ से रुका न जायेगा ।"
"सोने की चैन बहुत महेंगी आती है, क्या??"
क्रमश:………………………
भाग 3 - बेला की सीख पर चौधराइन का प्लान
" फिर क्या होना था मालकिन, लाजो वहीं घास पर लेट गई और मदन बाबू उसके ऊपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे। कभी वो ऊपर कभी मदन बाबू ऊपर। मदन बाबू ने अपना मुंह लाजवन्ती की चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहेंगे को ऊपर उठा के उसकी चूत सहलाने लगे, लाजो के हाथ में मालिक का मोटा लण्ड था और दोनो चिपक चिपक के मजा लूटने लगे। कुछ देर बाद मदन बाबू उठे और लाजो की दोनो टांगो के बीच बैठ गये। उस छिनाल ने भी अपनी साड़ी को ऊपर उठा, दोनो टांगो को फैला दिया। मदन बाबू ने अपना मुसलण्ड सीधा उसकी चूत के ऊपर रख के धक्का मार दिया। जब मदन बाबू का हलव्वी लण्ड चूत फ़ैलाता हुआ अन्दर जाने लगा तो साली चुद्दक्कड़ का इतना धाकड़ चुद्दक्कड़ भोसड़ा भी चिगुरने लगा और वो कराह उठी
“उम्म्म्ह मालिक”
इतना मोटा लण्ड घुसने से कोई कितनी भी बड़ी रण्डी हो उसकी हेकडी एक पल के लिये तो गुम हो ही जाती है। फ़िर मदन बाबू का तो अभी नया खून है, उन्होंने कोई रहम नही दिखाया, उलटा और कस कस के धक्के लगाने लगे."
" हाय मालकिन पर कुछ ही धक्कों के बाद तो साली चुद्दकड़ अपने घड़े जैसे चूतड़ ऊपर उछालने लगी और गपा गप मदन बाबू के लण्ड को निगलते हुए बोल रही थी, 'हाय मालिक मजा आ गया फ़ाड़ दो, हाय ऐसा लण्ड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही पन्डितजी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस के॑..”
मदन बाबू भी पूरे जोश में थे, हुमच हुमच के ऐसा धक्का लगा रहे थे की क्या कहना, जैसे चूत फ़ाड़ के चूतड़ों से लण्ड निकाल देंगे, दोनों हाथ से पपीते जैसी चूचियाँ दबाते हुए पका पक लण्ड पेले जा रहे थे। लाजवन्ती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी, ' मालिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मजा करवाऊंगी, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लण्ड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आऊँगी, हाय मालिक पूरे गांव में आपके लण्ड के टक्कर का कोई नही है॑।' " इतना कह कर बेला चुप हो गई।
बेला ने जब लाजवन्ती के द्वारा कही गई ये बात की, पूरे गांव में मदन के लण्ड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधराइन मानना पड़ा कि ये जरूर सच होगा क्योंकि लाजो से तो कोई लण्ड शायद ही बचा होगा।
फिर भी चौधराइन ने बेला से पूछा, " तु जो कुछ भी मुझे बता रही है वो सच है ना बना के तो नहीं बता रही? "
" हां मालकिन सौ-फीसदी सच बोल रही हूँ। माफ़ करना मालकिन छोटा मुँह बड़ी बात पर अब मैं आप से अपना सवाल दोहराती हूँ क्या अपने मुँहबोले भाई के बेटे, अपने भतीजे की उस बरबादी की तरफ़ आप की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ।”
चौधराइन कुछ सोचने सी लगी और उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया
चालाक बेला समझ गई कि लोहा गरम है तो उसने आखरी चोट की-
“हाय मालकिन जब मैं रात में बिस्तर पर लेट, मदन बाबू के कसरती बदन में दबते पिसते आपके इस मांसल संगमरमरी जिस्म की कल्पना करती हूँ तो मेरी चूत पनिया जाती है”
अब चौधराइन चौंकी उन्होंने बेला से पूछा तेरी पनिया जाती है! अच्छा एक बात बता तू मुझे ये सब करने के लिए क्यों उकसा रही है इसमें तेरा क्या फ़ायदा है?
“मदन बाबू अगर आपके आकर्षण में फ़ंस यहाँ आने लगे तो इस गाँव की इन मर्दखोर हरामिनों से बच जायेंगे और कभी कभी मुझे भी आप की जूठन मिल जाया करेगी।”
अपनी बात का असर होते देख बेला झोंक में बोल गई फ़िर सकपका के बात सम्हालने कि कोशिश करने लगी –“मेरामतलब है…………
तब तक चौधराइन ने हँसते हुए लात जमायी और बेला हँसते हुए वहाँ से भाग गई।
पर बेला की बात थोड़ी बहुत चौधराइन के भेजे में भी घुस गई थी भतीजे को बचाने की चाहत और शायद दिल के किसी कोने में उसके अनोखे हथियार को देखने की उत्सुकता भी पैदा होगई थी। वो सोचने लगीं कि इतना सीधा लड़का आखिर बिगड़ कैसे गया ।
चौधराइन कुछ देर तक सोचती रही कैसे सदानन्द के बेटे अपने मुँहबोले भतीजे को अपनी पकड़ में लाया जाये। चुदक्कड़ औरत की खोपड़ी तो शैतानी थी ही। तरकीब सुझ गई। सबेरे उठ कर सीधी आम के बगीचे की ओर चल दीं।
चौधराइन जानती थीं कि उनके जितने भी बगीचे हैं, सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मैंनेजर करते ही हैं, पर अनदेखा करती थीं क्योंकि पर अनदेखा करती थीं क्योंकि अन्य बड़े आदमियों कि तरह वो भी सोचती थीं कि चौधरी की इतनी जमीन-जायदाद है गरीब थोड़ा बहुत चुरा भी लेंगे तो कौन सा फ़रक पड़ जायेगा । आम के बगीचे में तो कोई झांकने भी नही जाता. जब फल पक जाते तभी चौधराइन एक बार चक्कर लगाती थी।
मई महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था। बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मैंनेजर बैठा हुआ, दो लड़कियों की टोकरियों में अधपके और कच्चे आम गिन-गिन कर रख रहा था। चौधराइन एकदम से उसके सामने जा कर खड़ी हो गयी। मैंनेजर हडबड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ।
“क्या हो रहा है, ?,,,,,,ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो ?,,,,,,,”
मैंनेजर की तो घिग्घी बन्ध गई, समझ में नही आ रहा था क्या बोले ?।
“ऐसे ही हर रोज एक दो टोकरी बेच देते हो क्या,,,,,,,,, ?” थोड़ा और धमकाया।
“मालकिन,,,,,,,, मालकिन,,,,,,,,,,,,वो तो ये बेचारी ऐसे ही,,,,,,,,बड़ी गरीब बच्चीयां है. अचार बनाने के लिये मांग रही थी,,,,,,,,,,"
दोनो लड़कियां तब तक भाग चुकी थी।
“खूब अचार बना रहे हो।"
मैंनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा। चौधराइन ने अपने पैर पीछे खींच लिए, और वहाँ ज्यादा बात न कर तेजी से घर आ गयीं। घर आ कर चौधराइन ने तुरन्त मैंनेजर और रखवाले को बुलवा भेजा, खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उनकी ड्युटी हटा दी और चौधरी को बोला कि मैंने बगीचे से मैंनेजर और रखवाले की ड्युटी हटा दी है दीनू को रखवाली के लिये बगीचे में भेज दे और सदानन्द से आग्रह करके जितने दिन उसका बेटा मदन गाँव में है तब तक अगर हो सके तो वो दीनू और बाकी रखवालों की निगरानी करे। तबतक या तो आप दूसरा मैंनेजर खोज लें नहीं तो खुद जाकर देखभाल करें।
चौधराइन ने सोचा मैंने एक तीर से तीन शिकार किये हैं एक तो गाँव की छिछोरी औरतों से पीछा छूट जायेगा दूसरे मदन बाबू के द्वारा बगीचे का काम सुधर जायेगा तीसरे सबसे बढ़कर मदन बाबू का चौधराइन के घर आना जाना बढ़ जायेगा तो फ़िर मौके और माहौ को देख उसके हिसाब से अगले कदम के बारे में सोचा जायेगा।
दोपहर को अपने सदानन्द भाई से अपनी चूत का जाप करवाते समय चौधराइन ने जब छुट्टियों भर मदन को बगीचे का काम देखने के लिए पूछा तो उनकी चूत के प्रेमरस में डूबे सदानन्द ने तुरन्त हाँ कर दी कि अच्छा है लड़का कुछ सीखेगा ही और उसका बोर होना भी खत्म हो जायेगा ।
आम के बगीचे में खलिहान के साथ जो मकान बना था वो वास्तव में चौधरी पहले की ऐशगाह थी। वहां वो रण्डियां नचवाता और मौज-मस्ती करता था। अब उमर बढ़ने के साथ साथ उसका मन इन नाच गाना हो हुल्लड़ से भर गया था अब उसकी दिलचस्पी उन्ही औरतों में थी जिनसे उसका टाँका था वो घर परिवार वाली औरते उससे बगीचे में तो मिलने आने से रहीं। उनसे वो उनके या अपने घर के अपने बाहर वाले कमरे में (जहाँ वो उठता, बैठता, दारू पीता था) मिलता था, तब से उसकी बगीचे और उस मकान में दिलचस्पी खत्म हो गई थी सो चौधरी ने वहां जाना लगभग छोड़ ही दिया था।
पर आज के चौधाराइन के आदेश से चौधरी घबड़ाया कि ऐसे तो उसकी सारी आजादी खत्म हो जायेगी सो उसने दूसरे दिन सुबह सुबह ही सदानन्द के घर जा मदन को बड़े प्यार मनुहार से बेटा बेटा कर इस काम के लिये राजी कर लिया और सब रखवालों को हिदायत कर दी कि मदन बाबू के आदेश पर काम करें और मदन कहीं इनकार न कर दे इस डर से उससे कह दिया कि वो अपने दोस्तों को क्रिकेट खेलने के लिये वहीं बुला लिया करे और गाहे बगाहे आराम के लिये बगीचे वाले मकान की चाबी भी दे दी।
अन्धा क्या चाहे दो आँखें, मदन ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाबी ले ली। और तुरन्त बगिया में दीनू को बोल दिया ' तु भी चोर है बगिया मे दिखाई मत देना दिखा तो टांग तोड़ दुँगा' दीनू डर के मारे गया ही नही, और ना ही किसी से इसकी शिकायत की।
बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गांव में होता है, वैसा ही दिखता था मगर अन्दर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसुरत और आलीशान बना रखा था। दो कमरे, जो की काफी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था। सुख-सुविधा के सारे सामान वहां थे।
इस बीच जैसाकि आप जानते ही हैं मदन ने गांव की लाजो भौजी (लाजवन्ती) को तो चोद ही दिया था. और उसकी ननद बसन्ती के स्तन दबाये थे, मगर चोद नही पाया था। सीलबन्ध माल थी। आजतक मदन ने कोई अनचुदी बुर नही चोदी थी. इसलिये मन में आरजु पैदा हो गई की, बसन्ती की लेते। बसन्ती, मदन बाबू को देखते ही बिदक कर भाग जाती थी। हाथ ही नही आ रही थी। उसकी शादी हो चुकी थी मगर, गौना नही हुआ था।
मदन बाबू के शैतानी दिमाग ने बताया की, बसन्ती की बुर का रास्ता लाजो भौजी की चूत से होकर गुजरता है। तो फिर उन्होंने लाजो भौजी को पटाने की ठानी। मदन जब दीनू से चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाबी ले लौट रहे थे तो गन्ने के खेत के पास लाजो लोटा हाथ में लिये वापस आती दिखी, मदन ने आवाज दी,
"क्या भौजी, उस दिन के बाद से तो दिखना ही बन्द हो गया, तुम्हारा,,,,?"
लाजो पहले तो थोड़ा चौंकी, फिर जब देखा की आस पास कोई नही है, तब मुस्कुराती हुइ बोली,
"आप तो खुद ही गायब हो गये मदन बाबू, वादा कर के,,,,,,!"
"अरे नही रे, दो दिन से तो तुझे खोज रहा हूँ. और हम पन्डित लोग झूठ नहीं बोलते. मुझे सब याद है,"
"तो फिर लाओ मेरा इनाम,,,,,,,,,"
"ऐसे कैसे दे दूँ, भौजी !?,,,,,,,,इतनी हडबड़ी भी ना दिखाओ,,,,,'
"अच्छा, अभी मैं तेजी दिखा रही हूँ !!?,,,,,,और उस दिन खेत में लेटे समय तो बड़ी जल्दी में थे आप, छोटे मालिक,,,,,,आप सब मर्द लोग एक जैसे ही हो."
मदन ने लाजो का हाथ पकड़ कर खींचा, और कोने में ले खूब कस के गाल काट लिया। लाजो दर्द से चीखी तो उसका मुंह दबाते हूए बोला,
"क्या करती हो भौजी ?, चीखो मत, सब मिलेगा,,,,,,तेरी पायल मैं ले आया हूँ, और बसन्ती के लिये लहँगा भी।"
मदन ने चारा फेंका। लाजो चौंक गई,
"हाय मालिक, बसन्ती के लिये क्यों,,,,,,?।"
"उसको बोला था की, लहँगा दिलवा दूँगा सो ले आया ।",
कह कर लाजो को एक हाथ से, कमर के पास से पकड़, उसकी एक चूची को बायें हाथ से दबाया।
लाजो थोड़ा कसमसाती हुई, मदन के हाथ की पकड़ को ढीला करती हुई बोली,
"उस से कब बोला था, आपने ?"
"अरे जलती क्यों है ?,,,,,,उसी दिन खेत में बोला था, जब तेरी चूत मारी थी..",
और अपना हाथ चूची पर से हटा कर, चूत पर रखा और हल्के से दबाया।
"अच्छा अब समझी, तभी आप उस दिन वहां खड़ा कर के खड़े थे. मुझे देख कर वो भाग गई और आपने मेरे ऊपर हाथ साफ कर लिया ।"
"एकदम ठीक समझी रानी,,,,,,,",
और उसकी चूत को मुठ्ठी में भर कस कर दबाया। लाजो चिहुंक गई। मदन का हाथ हटाती बोली,
"छोड़ो मालिक, वो तो एकदम कच्ची कली है।"
अचानक सुबह सुबह उसके रोकने का मतलब लाजो को तुरन्त समझ में आ गया।
अरे, कहाँ की कच्ची कली ?, मेरे उमर की तो है,,,,"
"हां, पर अनचुदी है,,,,,,एकदम सीलबन्द,,,,,,,दो महीने बाद उसका गौना है.."
"धत् तेरे की, बस दो महीने की ही मेहमान है. तो फिर तो जल्दी कर भौजी कैसे भी जल्दी से दिलवा दे,,,,,,"
कह कर उसके होठों पर चुम्मा लिया।
ऊउ...हहहह छोड़ो, कोई देख लेगा !?,,,,,,,पायल तो दी नही, और अब मेरी कोरी ननद भी मांग रहे हो,,,,,,,,बड़े चालु हो, छोटे मालिक...!!!"
लाजो को पूरा अपनी तरफ घुमा कर चिपका लिया और खड़ा लण्ड साड़ी के ऊपर से चूत पर रगड़ते हुए, उसकी चूतड़ों की दरार में उँगली चला, मदन बोला,
"अरे कहाँ ना, दोनो चीज ले आया हूँ,,,,,दोनो ननद-भौजाई एक दिन आ जाना, फिर,,,,,"
"लगता है, छोटे मालिक का दिल बसन्ती पर पूरा आ गया है..."
"हां रे ,तेरी बसन्ती की जवानी है ही ऐसी,,,,,,,,बड़ी मस्त लगती है,,,,,,"
"हां मालिक, गांव के सारे लौंडे उसके दिवाने है,,,,....."
"गांव के छोरे, मां चुदाये,,,,,,,तू बस मेरे बारे में सोच,,,,,,,"
कह कर उसके होठों पर चुम्मी ले, फिर से चूची को दबा दिया।
"सीईई,,,,,,मालिक क्या बताये..??, वो मुखिया का बेटा तो ऐसा दिवाना हो गया है, की,,,,,,,,उस दिन तालाब के पास आकर पैर छुने लगा और सोने की चेन दिखा रहा था, कह रहा था की भौजी, 'एक बार बसन्ती की,,,,,,!!! ' पर, मैंने तो भगा दिया साले को. दोनो बाप-बेटे कमीने है.."
मदन समझ गया की, साली रण्डी, अपनी औकात पर आ गई है। पैंट की जेब में हाथ डाल कर पायल निकाली, और लाजो के सामने लहरा कर बोला,
"ले, बहुत पायल-पायल कर रही है ना, तो पकड़ इसको,,,,,,,,,और बता बसन्ती को कब ले कर आ रही है ?,,,,,,"
"हाय मालिक, पायल लेकर आये थे,,,,,और देखो, तब से मुझे तड़पा रहे थे,,,,,,,,"
और पायल को हाथ में ले उलट पुलट कर देखने लगी। मदन ने सोचा, जब पेशगी दे ही दी है, तो थोड़ा सा काम भी ले लिया जाये. और उसका एक हाथ पकड़ खेत में थोड़ा और अन्दर खींच लिया।
लाजो अभी भी पायल में ही खोई हुई थी। मदन ने उसके हाथ से पायल ले ली और बोला,
"ला पहना दूँ"
लाजो ने चारो तरफ देखा, तो पाया की वो खेत के और अन्दर आ गई है। किसी के देखने की सम्भावना नही है, तो चुप-चाप अपनी साड़ी को एक हाथ से पकड़ घुटनो तक उठा एक पैर आगे बढ़ा दिया। मदन ने बड़े प्यार से उसको एक-एक करके पायल पहनायी, फिर उसको खींच कर घास पर गिरा दिया और उसकी साड़ी को उठाने लगा। लाजो ने कोई विरोध नही किया। दोनो पैरों के बीच आ जब मदन लण्ड डालने वाला था, तभी लाजो ने अपने हाथ से लण्ड पकड़ लिया और बोली,
"हाय, मालिक थोड़ा खेलने दें न ।“
और लण्ड थाम अपनी चूत के होठों पर रगड़ती हुई बोली,
"वैसे छोटे मालिक, एक बात बोलुं,,,,,,,???"
"हां बोल,,,,,,,,,पर ज्यादा खेल मत कर छेद पर लगा दे, मुझ से रुका न जायेगा ।"
"सोने की चैन बहुत महेंगी आती है, क्या??"
क्रमश:………………………