कितनी सैक्सी हो तुम compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

कितनी सैक्सी हो तुम compleet

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:22


कितनी सैक्सी हो तुम --1

आज से मेरे बेटे का नाम करण पड़ गया। कई दिनों से नामकरण संस्कार की तैयारियों में पूरा परिवार व्यस्त था। किसी के पास सांस लेने भर की फुर्सत नहीं थी। परन्तु अब सभी कुछ आराम करना चाहते थे।

सारे मेहमान भी जाने लगे थे। मैं भी करण को अपनी गोदी में लेकर अपने कमरे में आ गई।

मेरे पति आशीष आज बहुत ही खुश थे। आखिर शादी के करीब 9 साल बाद उनको यह दिन देखना नसीब हुआ था।

वैसे भी हम दोनों ही नहीं घर में सभी मेरे सास ससुर, मम्मी पापा और ननद सभी तो इसी दिन के लिये पता नहीं कितनी दुआयें माँग रहे थे। करण मेरे बराबर में सो रहा था।

आशीष बहुत खुश थे, मेहमानों के जाने के बाद आशीष ही पूरा बचा-खुचा काम पूरा कराने में लगे हुए थे। परन्तु आज आशीष शायद खुद अपने हाथों से सबकुछ करना चाहते थे। आखिर आज उनके बेटे का नामकरण संस्कार हुआ था। उनकी खुशी देखते ही बनती थी।

पूरा काम निपटाकर आशीष कमरे में आये और मुझे बाहों में भरकर चूम लिया। हालांकि मेरी प्रतिक्रिया मिली जुली थी क्योंकि मैं बहुत थकी हुई थी पर आशीष की खुशी तो मानों सातवें आसमान पर थी।

अन्दर से तो मैं भी बहुत खुश थी आखिर अब मेरे माथे पर बांझपन का कलंक मिट गया था।

पापा मेरी शादी में कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहते थे। मैं उनकी इकलौती बेटी जो हूँ और पापा ने अपनी सारी सरकारी नौकरी में इतना माल बनाया था कि खर्च करते नहीं बन रहा था।

हमारी शानो-शौकत देखने लायक थी, कम तो आशीष का परिवार भी नहीं था, आशीष दो-दो फैक्ट्री के मालिक थे देशभर में उनका बिजनेस फैला था।

चूंकि शादी दो बड़े घरानों के बीच हो रही थी इसीलिये शायद जयपुर क्या राजस्थान की कोई बड़ी ऐसी हस्ती नहीं थी जो मेरी शादी में शामिल नहीं हुई।

मैं तो बचपन से ही बहुत सुन्दर थी और आज शादी वाली रात मुझे सजाने के लिये ब्यूटीपार्लर वाला ग्रुप मुम्बई से आया था।

उन्होंने मुझे ऐसा सजाया कि देखने वालों की नजरें बार-बार मुझ पर ही जम जाती।

आशीष भी बहुत सुन्दर लग रहे थे। 5 फुट 10 इंच लम्बाई के चौड़े सीने वाले आशीष किसी हीरो से कम नहीं लग रहे थे। देखने वाले कभी हम दोनों को राम-सीता की जोड़ी बताते तो कभी राधा-कृष्ण की।

शादी के बाद मैं मायके से विदा होकर ससुराल में आ गई। मन में अनेक प्रकार की खुशियाँ घर करने लगी थी। आशीष को पाकर को मैं जैसे धन्‍य ही हो गई थी। एक पल के लिये भी मुझे अपने 23 साल पुराने घर को छोड़ने का मलाल नहीं था।

मैं तो आशीष के साथ जीवन के हसीन सपने संजों रही थी। मेरी विदाई के समय भी मम्मी पापा से खुशी-खुशी विदा लेकर आई।

ससुराल में मेरा ऐसा स्वागत हुआ कि मैं खुद को किसी राजकुमारी से कम नहीं मान रही थी। राजकुमारी तो मैं थी भी, पापा ने मुझे हमेशा राजकुमारी की तरह ही पाला था। मैं उनकी इकलौती संतान जो थी, और घर में पैसे का अथाह समुन्दर।

पर इस घर का अहसास कुछ ही घंटों में मुझे अपना सा लगने लगा।

मैं तो एक दिन में ही पापा का घर भूल गई। सारा दिन रिश्तेदारों में हंसी खुशी कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।

शाम होते होते मुझे बहुत थकान होने लगी। खाना भी सब लोगों ने मिलकर ही खाया। ज्यादातर रिश्तेदार भी अपने अपने घर जा चुके थे। परिवार में दूर के रिश्ते की बहुओं और मेरी ननद ने मुझे नहाकर तैयार होने को कहा।

मैं भी उनकी आज्ञा मानकर नहाने चली गई। आशीष के रूम से सटे बाथरूम से नहाकर जैसे ही मैं नहाकर जैसी ही मैं बाहर आई तो देखा कमरे का दरवाजा बाहर से बंद था।

मैं समझ गई कि यह सब जानबूझ कर किया गया है। मैं खुशी-खुशी ड्रेसिंग के सामने खड़ी होकर अपनी खूबसूरती को निहारती हुई हल्का सा मेकअप करने लगी। आखिर बेवकूफ तो मैं भी नहीं थी। मुझे भी आभास था कि आज की रात मेरे लिये कितनी कीमती है।

मैंने नहाकर खुद को बहुत अच्छे से तैयार किया।

मैं आशीष को दुनिया की सबसे रूपवान औरत दिखना चाहती थी। इसीलिये मैंने अपनी थ्री-पीस नाइटी निकला ली। टावल हटाकर तसल्ली से अपनी कामुक बदन को निहारा। मुझे खुद पर ही गर्व होने लगा था।

अब मैं नाइटी पहनकर आशीष का इंतजार करने लगी। घड़ी की टिक-टिक करती सुई की आवाज मेरे दिल की धड़कन बढ़ा रहा थी।

इंतजार का एक-एक पल एक-एक घंटे जैसा बीत रहा था। घड़ी में 10 बज चुके थे पर आशीष की अभी तक कोई खबर नहीं थी।

इंतजार करना बहुत मुश्किल था पर घर में पहले दिन ही नाईटी पहनकर बाहर भी तो नहीं जा सकती थी ना, इसीलिये बैठी रही।

समय पास करने के लिये टीवी चला लिया।

जी क्लासिक चैनल पर माधुरी दीक्षित की फिल्म दयावान चल रही थी।

मुझे लगा यह मुआ टीवी भी मेरा दुश्मन बन गया है, फिल्म में माधुरी और विनोद खन्ना का प्रणय द़श्‍य मेरे दिल पर बहुत ही सटीक वार करने लगा।

मैं अब आशीष के लिये बिल्कुल तैयार थी पर वो कम्बख्त अन्दर कमरे में तो आये।

टीवी देखते देखते पता ही नहीं चला कब थकान मुझे पर हावी हो गई और मुझे नींद आ गई।

अचानक मेरी आँख खुली मैंने देखा कि आशीष मुझे बहुत ही प्यार से हिलाकर बिस्तर पर ही सीधा करने की कोशिश कर रहे थे, वो बराबर इस बात का भी ध्यान रख रहे थे कि मेरी नींद ना खुले।

पर मेरी नींद तो खुल गई।

आशीष को सामने देखकर मैं तुरन्त उठी और अपने कपड़े ठीक करने लगी।

“सो जाओ, सो जाओ, जान… मुझे पता है तुम बहुत थक गई होगी आज…” कहते हुए आशीष मेरे बराबर में लेट गये और मेरा सिर अपनी दांयी बाजू पर रखकर मुझे सुलाने की कोशिश करने लगे।

इतने प्यार से शायद कभी बचपन में पापा ने मुझे सुलाया था।

आशीष का प्रथम स्पर्श सचमुच नैसर्गिक था।

आशीष का दांया हाथ मेरे सिर के नीचे था और बांया हाथ लगातार सिर के ऊपर से मुझे सहला रहा था। आशीष का इतने प्यार से सहलाना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।

कुछ देर तो मैं ऐसे ही लेटी रही, फिर मैंने पीछे मुड़कर आशीष की तरफ देखा- ‘यह क्या….!?! आशीष तो सो चुके थे।’

नींद में भी वो कितने मासूम और प्यारे लग रहे थे, मैं उनकी नींद खराब नहीं करना चाहती थी इसीलिये वापस उनकी तरफ पीठ की और उनसे चिपक कर सो गई।

सुबह मेरी आँख 6 बजे खुली तो मैंने देखा मेरे मासूम से पतिदेव अभी तक गहरी नींद में थे।

मैं एक अच्छी बहू की तरह उठते ही अपने बैडरूम से सटे बाथरूम में गई और तुरन्त नहा धोकर तैयार होकर बाहर सास-ससुर के पास पहुँची।

मेरी ससुर टीवी में मार्निंग न्यूज देख रहे थे और सासू माँ ससुर जी के लिये चाय बना रही थी।

घर की नौ‍करानी भी काम पर लग चुकी थी।

मैंने सास से कहा- मम्मी जी, अगर आपको एतराज ना हो तो मैं आप दोनों को चाय बना दूँ?

उन्होंने उसके लिये भी तुरन्त मेरे ससुर को शगुन निकालने को कहा।

मैं पहले ही दिन घर में घुलने मिलने की कोशिश कर रही थी।

सास-ससुर को चाय पिलाकर और अपना शगुन लेकर मैं अपने कमरे में आशीष के पास पहुँची तो वो भी जाग चुके थे पर बिस्तर में पड़े थे।

मेरे पास जाते ही उन्होंने मुझे खींचकर अपनी छाती से चिपका लिया और एक मीठा सा चुम्बन दिया। मैं तो शर्म से धरती में गड़ी जा रही थी पर उनकी छाती से चिपकना न जाने क्यों बहुत ही अच्छा लग रहा था।

तभी बाहर से ससुर जी की आवाज आई और आशीष उठकर बाथरूम में नहाने चले गये।

घर में सास के साथ और सारा दिन कैसे निकल गया पता ही नहीं चला। शाम को मेरे मायके वालों के और सहेलियों के फोन आने शुरू हो गये।

मेरी सहेलियाँ बार बार पूछतीं- रात को क्या हुआ…!?!

अब मैं हंसकर टाल जाती, आखिर बताती भी तो क्या…!?!

मुझे आज फिर से रात का इंतजार था, आशीष का मैं बेसब्री से इंतजार करने लगी।

पापा और आशीष 8 बजे तक घर आये। मैंने और मम्मी जी ने मिलकर डायनिंग पर खाना लगाया।

मैं जल्दी-जल्दी काम निपटाकर अपने कमरे में जाकर तैयार होना चाहती थी, सोच रही थी शायद आज मेरी सुहागरात हो…’

खाना खाकर कुछ देर परिवार के सभी सदस्यों ने साथ बैठकर गप्पें मारी।

फिर मम्मी जी जी ने खुद ही बोल दिया- …बेटी तू जा, थक गई होगी अपने कमरे में जाकर आराम कर।

मैं तो जैसे इसी पल का इंतजार कर रही थी, मैं तुरन्त उठी और अपने कमरे में आ गर्इ, अपना नाईट गाऊन उठाकर बाथरूम में गई, नहाकर फिर से कल की तरह तैयार होकर अपने बिस्तर पर लेटकर टीवी देखने लगी।

मुझे आशीष का बेसब्री से इंतजार था। कल तो कुछ मेहमान और दोस्ते थे घर में पर आज तो कोई नहीं था, आशीष को कमरे में जल्दी आना चाहिए था।

देखते देखते 10 बज गये पर आशीष बाहर ही थे।

मैंने चुपके से कमरे का दरवाजा खोलकर ओट से बाहर देखा आशीष हॉल में अकेले बैठे टीवी ही देख रहे थे।

‘तो क्या उनको मेरी तरह अपनी सुहागरात मनाने की बेसब्री नहीं है… ‘क्या उनका मन नहीं है अपनी पत्नी के साथ समय बिताने का…?’

जब मम्मी जी और पिताजी दोनों ही अपने कमरे में जा चुके थे, मैं भी अपने कमरे में थी, घर के नौकर भी अपने सर्वेन्ट रूम में चले गये थे तो आशीष क्यों अकेले हॉल में बैठकर टीवी देख रहे थे !?!

मैं आशीष को अन्दर कमरे में बुलाना चाहती थी पर चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पाई।

मैं वापस जाकर उनका इंतजार करते करते टीवी देखने लगी। आज भी मुझे पता नहीं चला कब नींद आ गई।

रात को किस वक्त आशीष कमरे में आये मुझे नहीं पता।

सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो मुझसे चिपक कर सो रहे थे।

उनका यह व्यवहार मुझे बहुत अजीब लग रहा था, मैं कुछ भी समझ नहीं पा रहा थी- क्या मैं आशीष को पसन्द नहीं थी…? यदि नहीं… तो वो मुझसे ऐसे चिपक कर क्यों सो रहे थे। यदि ‘हां…’ तो फिर वो रोज रात को कमरे में मेरे सोने के बाद ही क्यों आते हैं?

“किससे अपनी बात बताऊं, किससे इसके बारे में समझूं… कहीं मैं ही तो गलत नहीं सोच रही थी…” यही सोचते सोचते मैं आज फिर से बाहर आई। मम्मी जी और पिताजी के पांव छुए और खुद ही उनके लिये चाय बनाने रसोई में चली गई।

उनको चाय देते ही पिता जी बोले- बेटा, जरा आशीष को बुला।

“जी पिताजी…” बोलकर मैं अपने कमरे में गई आशीष को जगाया।

आँखें खुलते ही उन्होंने दोनों बाहों में मुझे जकड़ लिया और मेरे होठों पर एक प्यारा सा चुम्बन दिया।

मैंने शर्माते हुए कहा- बाहर पिताजी बुला रहे हैं जल्दी चलिये।

आशीष तुरन्त एक आज्ञाकारी बेटे की तरह उठकर बाहर आये और पिताजी के सामने बैठ गये।

पिताजी बोले- बेटा, फैक्ट्री में ज्यादा काम की वजह से तुम दोनों हनीमून के लिये नहीं गये। यह बात मेरी समझ में आती है पर कम से कम एक दिन को बहु को कहीं बाहर घुमा लाओ।

पहले तो आशीष ने फैक्ट्री के काम का हवाला देकर पिताजी को मना किया पर पिताजी के जबरदस्ती करने पर वो आज दिन में कहीं बाहर जाने के लिये मान गये, मुझसे बोले- चलो आज बाहर घूमने चलते हैं, तुम तैयार हो जाओ जल्दी से और मैं भी नहाकर आता हूँ।

मैं तो जैसे उनके आदेश की ही प्रतीक्षा कर रही थी। फिर भी एक बहू होने के नाते मैंने पहले मम्मी जी और पिताजी को नाश्ता करवाकर चलने को कहा तो मम्मी जी बोली- नहीं बेटा, ये ही दिन हैं घूमने फिरने के, तुम जाओ घूम आओ।

“जी मम्मी जी…” बोलकर मैं तुरन्त अपने कमरे में गई और नहाकर तैयार होने लगी।

मेरे बाहर आते ही आशीष भी बाथरूम में घुस गये अभी मैं अपना मेकअप कर ही रही थी कि आशीष नहाकर बाहर आये और मुझे मेकअप करता देखकर पीछे से मुझसे लिपटकर बोले- कितनी सैक्सी लग रही हो तुम…

मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा- फिर घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दें क्या?




The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: कितनी सैक्सी हो तुम

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:23

कितनी सैक्सी हो तुम --2

पिताजी बोले- बेटा, फैक्ट्री में ज्यादा काम की वजह से तुम दोनों हनीमून के लिये नहीं गये। यह बात मेरी समझ में आती है पर कम से कम एक दिन को बहु को कहीं बाहर घुमा लाओ।

पहले तो आशीष ने फैक्ट्री के काम का हवाला देकर पिताजी को मना किया पर पिताजी के जबरदस्ती करने पर वो आज दिन में कहीं बाहर जाने के लिये मान गये, मुझसे बोले- चलो आज बाहर घूमने चलते हैं, तुम तैयार हो जाओ जल्दी से और मैं भी नहाकर आता हूँ।

मैं तो जैसे उनके आदेश की ही प्रतीक्षा कर रही थी। फिर भी एक बहू होने के नाते मैंने पहले मम्मी जी और पिताजी को नाश्ता करवाकर चलने को कहा तो मम्मी जी बोली- नहीं बेटा, ये ही दिन हैं घूमने फिरने के, तुम जाओ घूम आओ।

“जी मम्मी जी…” बोलकर मैं तुरन्त अपने कमरे में गई और नहाकर तैयार होने लगी।

मेरे बाहर आते ही आशीष भी बाथरूम में घुस गये अभी मैं अपना मेकअप कर ही रही थी कि आशीष नहाकर बाहर आये और मुझे मेकअप करता देखकर पीछे से मुझसे लिपटकर बोले- कितनी सैक्सी लग रही हो तुम…

मैंने उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा- फिर घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दें क्या?

अचानक यह पूछते ही मैं झेंप गई, पता नहीं एकदम मैं इतनी बोल्ड कैसे हो गई पति के सामने।

परन्तु पति शायद पहले ही दिन से अपना लगने लगता है।

आशीष भी तेजी से तैयार होने लगे और बोले- नहीं, आज तुमको जयपुर घुमाता हूँ।

‘चलो किसी बहाने आशीष के साथ समय बिताने के मौका तो मिला।’ यह सोचकर ही मैं उत्तेजित थी, मैं तैयार होकर बाहर आई, तो पीछे पीछे आशीष भी आ गये।

बाहर आकर मैंने एक बार फिर से मम्मी जी और पापा जी के पैर छुए, और आशीष के साथ-साथ घर से निकल गई।

आशीष ने ड्राइवर से कार की चाबी ली और बहुत अदब से दरवाजा खोलकर मुझे कार में बिठाया।

उनके इस सेवाभाव से ही मैं गदगद हो गई।

कार का स्टेलयरिंग सम्भालते ही आशीष बोले- कहाँ चलोगी मेरी जान !!

मैंने हल्का सा शर्माकर कहा- जहाँ आप ले जाओ। मेरी कहीं घूमने में नहीं आपके साथ समय बिताने में है।

कार में बैठे-बैठे आशीष ने मेरा माथा प्यार से चूम लिया। मैं तो सिहर ही गई, मेरे बदन पर किसी मर्द का यह पहला चुम्बन था।

मेरा पूरा शरीर एक चुम्बन से ही कांप गया, गाल लाल हो गये, रौंगटे खड़े हो गए।

तभी आशीष ने मेरी तंद्रा तोड़ी और बोले- चलो, पहले किसी रेस्टोरेन्ट में नाश्ता करते हैं, फिर घूमने चलेंगे।

मैंने उनकी हाँ में हाँ मिलाई और हम नाश्ता करने पहुँचे, वहीं से आगे का प्रोग्राम बना लिया।

दिन भर में आशीष ने सिटी पैलेस, हवामहल, आमेर का किला और न जाने क्या-क्या दिखाया।

शाम को 7 बजे भी आशीष से मैंने की कहा- अब घर चलते हैं, मम्मी-पापा इंतजार करते होंगे।

आशीष कुछ देर और घूमना चाहते थे पर मुझे तो घर पहुँचने की बहुत जल्दी थी।

आशीष भी बहुत अच्‍छे मूड में थे तो मुझे लगा कि इस माहौल का आज फायदा उठाना चाहिए।

जल्दी घर पहुँचकर फ्रैश होकर अपने कमरे में घुस जाऊँगी आशीष को लेकर।

मैंने घर चलने की जिद की तो आशीष भी मान गये। वापस चलने के लिये बैठते समय आशीष ने फिर से मेरे माथे पर एक प्यारा सा चुम्बन दिया।

मुझे उनका चुम्बन बहुत ही अच्छा लग रहा था, बल्कि मैं तो ये चुम्बन सिर्फ माथे पर नहीं अपने पूरे बदन पर चाहती थी, उम्मीद लगने लगी थी कि शायद आज मेरी सुहागरात जरूर होगी।

आज आशीष के साथ घूमने का सबसे बड़ा फायदा ये हुआ कि अब मैं उनके साथ खुलकर बात कर पा रही थी, अपनी बात उनसे कह पा रही थी।

जल्दी ही हम घर पहुँच गये, आशीष ने घर के दरवाजे पर ही कार की चाबी ड्राइवर को दी और हम दोनों घर के अन्दर आ गये।

पापा अभी तक फैक्ट्री से नहीं आये थे।

हमारे आते ही मम्मी जी ने चाय बनाई और मुझसे पूछा- कैसा रहा आज का दिनॽ

‘बहुत अच्छा..’ मैंने भी खुश होकर जवाब दिया।

कुछ ही देर में पापा भी आ गये, हम चारों से एक साथ बैठकर खाना खाया।

फिर मैं मम्मी की इजाजत लेकर तेजी से अपने कमरे में चली गई।

आशीष आज भी बाहर पिताजी के साथ बैठकर टीवी ही देख रहे थे।

पर मुझे उम्मीद थी कि आज आशीष जल्दी अन्दर आयेंगे।

मैं पिछले दिनों की तरह नहाकर नई नई नाईटी पहनकर आशीष का इंतजार करने लगी।

पर यह क्या साढ़े दस बज गये आशीष आज भी बाहर ही थे।

मैंने दरवाजा खोलकर बाहर झांका तो पाया कि आशीष अकेले बैठकर टीवी देख रहे थे।

मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि ये रोज ही क्यों हो रहा हैॽ यदि आशीष को टीवी इतना ही पसन्द है तो अपने कमरे में भी तो है। वैसे तो मुझसे बहुत प्यार जता रहे थे फिर रोज ही मुझे कमरे में अकेला क्यों छोड़ देते हैं… क्यों वो कमरे में देर से आते हैं…? क्या उनको मैं पसन्द नहीं हूं… क्या वो मेरे साथ अकेले में समय नहीं बिताना चाहते…?

तो फिर मुझे पर इतना प्यार क्यों लुटाते हैं…?

उनका यह व्यवहार आज मुझे अजीब लगने लगा, मेरी नींद उड़ चुकी थी, आज मुझे अपने साथ आशीष की जरूरत महसूस होने लगी थी।

मैंने अपने कमरे के अन्दर जाकर अपने मोबाइल से आशीष को फोन किया।

उन्होंने फोन उठाया तो मैंने तुरन्त अन्दर आने का आग्रह किया।

वो बोले- तुम सो जाओ, मैं अपने आप आकर सो जाऊँगा।

उनका यह व्यवहार मेरे गले नहीं उतर रहा था, बैठे-बैठे पता नहीं क्यों मुझे आज घर में अकेलापन सा लगने लगा। जो घर 2 दिन पहले मुझे बिल्कुल अपना लग रहा था, आज 2 ही दिन में वो घर मुझे बेगाना लगने लगा।

अचानक ही मेरी आँखों से आँसू बहने लगे। बाहर हॉल में जाकर उनसे बात करने की मेरी हिम्मत नहीं थी। मैंने आज सारी रात जागने का निर्णय किया कि आज आशीष किसी भी समय कमरे में आयेंगे मैं तब ही उनसे बात जरूर करूँगी।

रात को 12 बजे करीब कमरे का दरवाजा बहुत ही धीरे से खुला। आशीष ने धीरे से अन्दर झांका, और मुझे सोता देखकर अन्दर आ गये।दरवाजा अन्दर से बन्द किया, फिर अपना नाइट सूट पहनकर वो मेरी बगल में आकर लेट गये, मुझे पीछे से पकड़कर मुझसे चिपककर सोने की प्रयास करने लगे।

मैं तभी उठकर बैठ गई, मेरी आँखों से आँसू झरने की तरह बह रहे थे।

मेरे आँसू देखकर आशीष भी परेशान हो गये, बोले- क्या हुआ जानू… रो क्यों रही हो?

पर मैं थी कि रोये ही जा रही थी, मेरे मुख से एक शब्द भी नहीं फूट रहा था, बस लगातार रोये जा रही थी।

आशीष ने फिर पूछा- क्या अपने मम्मी-पापा याद आ रहे हैं तुमको… चलो कल तुमको आगरा ले चलूंगा। मिल लेना उन सबसे।

आशीष मेरे मन की बात नहीं समझ पा रहे थे और इधर मैं बहुत कुछ बोलना चाहती थी… पर बोल नहीं पा रही थी। आशीष बिस्तर पर मेरे बगल में अधलेटी अवस्था में बैठ गये, मेरा सिर अपनी गोदी पर रखकर सहलाने लगे।

कुछ देर रोने के बाद मैंने खुद ही आशीष की ओर मुंह किया तो पाया कि वो तो बैठे बैठे ही सो गये थे।

अब मैं उनको क्या कहती… या तो आशीष कमरे में ही नहीं आ रहे थे और जब आये तो मुझे सहलाते सहलाते ही कब सो गये पता भी नहीं चला।

मैं वहाँ से उठी, बाथरूम में जाकर मुँह धोया, वापस आकर देखा तो आशीष बिस्तर पर सीधे सो चुके थे। अब पता नहीं आशीष नींद में सीधे हो गये थे या मेरे सामने सोने का नाटक कर रहे थे?

मैं कुछ भी नहीं कर सकी, चुपचाप उनके बगल में जाकर सो गई।

सुबह आशीष ने ही मुझे जगाया। मैंने घड़ी देखी तो अभी तो साढ़े पांच ही बजे थे, वो बहुत प्यार से मुझे जगा रहे थे, मैं भी उस समय फ्रैश मूड में थी, मुझे लगा कि शायद आज सुबह सुबह आशीष सुहागरात मनायेंगे मेरे साथ…

जैसे ही मेरी आँख खुली, आशीष ने मेरी आँखों पर बड़े प्यार से चुम्बन लिया और बोले- कितनी सुन्दर हो तुम…

मैं तो जैसे उनकी इस एक लाइन को सुनकर ही शर्म से दोहरी हो गई।

तभी आशीष ने कहा- जल्दी से उठकर तैयार हो जाओ, आगरा चलना है ना।

मेरे तो जैसे पांव के नीचे से जमीन ही खिसकने लगी, समझ में नहीं आया कि आखिर आशीष चाहते क्या् हैंॽ ये मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैंॽ

अपने आप ही फिर से मेरी रूलाई फूट गई। अब तो मैं बिफर चुकी थी, मैंने चिल्लाकर कहा- क्यों जाऊँ मैं उनके घर… अब वहाँ मेरा कौन है… मेरा तो अब जो भी है यहीं है आपके पास… और आप हैं कि अपनी पत्नी के साथ परायों की तरह व्यवहार करते हैं। आपकी पत्नी आपके प्यार को तरस जाती है, आप हैं कि उसके साथ अकेले में कुछ समय भी नहीं बिताना चाहते, मुझे मेरे माँ-बाप ने सिर्फ आप ही के भरोसे यहाँ भेजा है..!

एक ही सांस में पता नहीं मैं इतना सब कैसे बोल गई, पता नहीं मुझमें इतनी हिम्मत कहाँ से आ गईॽ

मैं लगातार रोये जा रही थी।

आशीष ने मुझे ऊपर करके गले से लगा लिया और चुप कराने की कोशिश कर रहे थे।

मुझे चुप कराने की कोशिश करते-करते मैंने देखा कि आशीष की आँखों से भी आँसू निकलने लगे, उनका फफकना सुनकर मेरी निगाह उठी, मैंने आशीष की तरफ देखा वो भी लगातार रो रहे थे।

मैं सोचने लगी कि ऐसा मैंने क्या गुनाह कर दिया जो इनको भी रोना आ रहा है।

मैंने खुद को संभालते हुए उनको चुप कराने का प्रयास किया और कहा- आप क्यों रो रहे होॽ मुझसे गलती हो गई जो मैं आपे से बाहर आ गई आगे से जीवन में कभी भी आपको मेरी तरफ से शिकायत नहीं मिलेगी।

आशीष ने मुझे सीने से लगा लिया और बोले- तुम इतनी अच्छी क्यों हो नयना…

मैं उनको नार्मल करने का प्रयास करने लगी।

यकायक उन्होंने मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए, मुझे जैसे करन्टी सा लगा।

‘आह…’ एक झटके के साथ मैं पीछे हट गई, मैंने नजरें उठाकर आशीष की ओर देखा। आशीष की निगाहों में मेरे लिये बस प्यार ही प्यार दिखाई दे रहा था।

तभी मुझे एहसास हुआ कि मैं तो पीछे हट गई पर मैं पीछे क्यों हटीॽ मैं भी तो यही चाहती थी। अपने बदन पर आशीष के गर्म होठों का स्पर्श…

पर मेरे लिये ये बिल्कुल नया था। मेरी 23 साल की आयु में पहली बार किसी ने मेरे होठों को ऐसे छुआ था।

मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी दौड़ गई। एक ही सैकेण्ड में मुझे ऐसा झटका लगा जिसने मुझे पीछे धकेल दिया, हम दोनों के आँसू पता नहीं कहाँ गायब हो गये थे, आशीष हौले से आगे आकर बिस्तर पर चढ़ गये, और मेरे बराबर में आ गये। उन्हों ने अपनी दांयी बाजू मेरे सिर के नीचे की और मुझे अपनी तरफ खींच लिया, मुझे लगा जैसे मेरे मन की मुराद पूरी होने वाली है अपने मन के अन्दर सैकड़ो अरमान समेटे मैं आशीष की बाहों में समाती चली गई।

आशीष ने यकायक फिर से मेरे होठों पर अपने गर्म-गर्म होठों को रख दिया, अब तो मैं भी खुद को मानसिक रूप से तैयार कर चुकी थी। मैं भी आशीष का साथ देने लगी, आखिर मैं भी तो मन ही मन यही चाह रही थी। चूमते-चूमते आशीष ने हौले से मेरे होठों पर पूरा कब्जा कर लिया।

अब तो मेरे निचले होंठ को अपने होठों के बीच में दबाकर चूस रहे थे, मेरा रोम-रोम थर्र-थर्र कांप रहा था।

आशीष के हाथ मेरी गाऊन के अन्दर होते हुए मेरी पीठ तक पहुँच चुके थे वो बिस्तर पर अधलेटे से हो गये और मुझे अपने ऊपर झुका लिया।

ऐसा लग रहा था मानो आज ही वो मेरे होठों का सारा रस पी जायेंगे। पता नहीं क्यों पर अब मुझे भी उनका अपने होठों का ऐसे रसपान करना बहुत अच्छा लग रहा था मन के अंदर अजीब अजीब सी परन्तु मिठास सी पैदा हो रही थी। इधर आशीष की उंगलियाँ मेरी पीठ पर गुदगुदी करने थी अचानक ही मैंने आशीष को सिर से पकड़ा और तेजी से खुद से चिपका लिया।

आशीष की उंगलियाँ मेरी पीठ पर जादू करने लगीं, पूरे बदन में झुरझुरी हो रही थी। मेरे यौवन को पहली बार कोई मर्द ऐसे नौच रहा था, उस समय होने वाले सुखद अहसास को शब्‍दों में बयान करना नामुमकिन था। अचानक आशीष ने पाला बदला और मुझे नीचे बैड पर लिटा दिया, अब वो मेरे ऊपर आ गये।

मेरे होंठ उनके होठों से मुक्त हो गये। अब उनके होंठ मेरी गर्दन का नाप लेने में लग गये। उनके हाथ भी पीठ से हटकर मेरी नाईटी को खोलने लगे।

धीरे-धीरे नाईटी खुलती गई, आशीष को मेरी गोरी काया की झलक देखने को मिलती, तो आशीष और अधीर हो जाते। कमरे में फैली ट़यूब की रोशनी में अब मुझे शर्म महसूस होने लगी, फिर भी आशीष का इस तरह प्यार करना मुझे जन्नत का अहसास देने लगा। तभी मुझे अहसास हुआ कि मेरी पूरी नाईटी खुल चुकी है आशीष मेरी ब्रा के ऊपर से ही अपने हाथों से मेरे उरोजों को हौले-हौले सहला रहे थे उनके गीले होंठ भी मेरे उरोजों के ऊपरी हिस्से के इर्द-गिर्द के क्षेत्र में गुदगुदी पैदा करने लगे।

मेरे होंठ सूखने लगे।

आशीष ने मुझे पीछे घुमाकर मेरी ब्रा का हुक कब खोला मुझे तो पता भी नहीं चला। मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से से ब्रा के रूप में अंतिम वस्त्र भी हट गया, मेरे दोनों अमृतकलश आशीष के हाथों में थे, आशीष उनको अपने हाथों में भरने का प्रयास करने लगे।

परन्तु शायद वो आशीष के हाथों से बढ़े थे इसीलिये आशीष के हाथों में नहीं आ रहे थे। मेरे गुलाबी निप्पल कड़े होने लगे।

अचानक आशीष ने पाला बदलते हुए मेरे बांये निप्पल को अपने मुंह में ले लिया और किसी बच्चे की तरह चूसने लगे। मैं तो जैसे होश ही खोने लगी।


The Romantic
Platinum Member
Posts: 1803
Joined: 15 Oct 2014 22:49

Re: कितनी सैक्सी हो तुम

Unread post by The Romantic » 07 Nov 2014 09:24

कितनी सैक्सी हो तुम --3

आशीष ने मुझे पीछे घुमाकर मेरी ब्रा का हुक कब खोला मुझे तो पता भी नहीं चला। मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से से ब्रा के रूप में अंतिम वस्त्र भी हट गया, मेरे दोनों अमृतकलश आशीष के हाथों में थे, आशीष उनको अपने हाथों में भरने का प्रयास करने लगे।

परन्तु शायद वो आशीष के हाथों से बढ़े थे इसीलिये आशीष के हाथों में नहीं आ रहे थे। मेरे गुलाबी निप्पल कड़े होने लगे।

अचानक आशीष ने पाला बदलते हुए मेरे बांये निप्पल को अपने मुंह में ले लिया और किसी बच्चे की तरह चूसने लगे। मैं तो जैसे होश ही खोने लगी।

आशीष मेरे दांयें निप्पल को अपने बांयें हाथ की दो उंगलियों के बीच में दबाकर मींजने में लगे थे जिससे तीव्र दर्द की अनुभूति हो रही थी परन्तु उस समय मुझ पर उस दर्द से ज्यादा कामवासना हावी हो रही थी और उसी वासना के कम्पन में दर्द कहीं खोने लगा, मेरी आँखें खुद-ब-खुद ही बंद होने लगी, मैं शायद इसी नैसर्गिक क्षण के लिये पिछले कुछ दिनों से इंतजार कर रही थी, मेरी आँखें पूरी तरह बंद हो चुकी थी।

मुझे महसूस हुआ कि आशीष ने मेरे निप्पलों को चाटना छोड़ दिया है अब वो अपने दोनों हाथों से मेरे निप्पलों को सहला रहे थे और उनकी जीभ मेरे नाभिस्थल का निरीक्षण कर रही थी।

यकायक उन्होंने मेरे पूरे नाभिप्रदेश को चाटना शुरू कर दिया पर यह क्याॽ

अब उनके दोनों हाथ मेरे उरोजों पर नहीं थे।

यह मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा, मैं तो चाह रही थी कि यह रात यहीं थम जाये और आशीष सारी रात मेरे उरोजों को यूँ ही सहलाते रहें और मेरा बदन यूँ ही चाटते रहें।

मेरी आँखें फिर से खुल गई तो मैंने पाया कि आशीष भी अपनी शर्ट और बनियान उतार चुके थे। ओहहहहहहह… तो अब समझ में आया कि जनाब के हाथ मेरे नरम नरम खरबूजों को छोड़कर कहाँ लग गये थे ! मैं आशीष की तरफ देख ही रही थी, उन्होंने भी मेरी आँखों में देखा।

हम दोनों की नजरें चार हुईं और लज्जा से मेरी निगाह झुक गई पर मेरे होंठों की मुस्कुराहट ने आशीष को मेरी मनोस्थिति समझा दी होगी।

आशीष नंगे ही फिर से मेरे ऊपर गये, ‘नयना…’ आशीष ने मुझे पुकारा !

‘हम्‍म्‍म…’ बस यही निकल पाया मेरे गले से।

‘कैसा महसूस कर रही हो…” आशीष ने फिर से मुझसे पूछा।

मैं तो अब जवाब देने की स्थिति में ही नहीं रही थी, मैंने बस खुद को तेजी से आशीष से नंगे बदन से चिपका लिया, मेरे बदन से निकलने वाली गर्मी खुद ही मेरी हालत बयाँ करने लगी।

आशीष के हाथ फिर से अपनी क्रिया करने लगे, पता नहीं आशीष को मेरे निप्पल इतने स्वादिष्ट लगे क्या, जो वो बार बार उनको ही चूस रहे थे !

परन्तु मेरा भी मन यही कह रहा था कि आशीष लगातार मेरे दोनों निप्पल पीते रहें। हालांकि अब मेरी दोनों घुंडियाँ दर्द करने लगी थीं, पूरी तरह लाल हो गई परन्तु फिर भी इससे मुझे असीम आनन्द का अनुभव हो रहा था।

मेरी आँखें अब पूरी तरह बंद हो चुकी थी, मैं खुद को नशे में महसूस कर रही थी परन्तु मेरे साथ जो भी हो रहा था मैं उसको जरूर महसूस कर पा रही थी।

पूरे बदन में मीठी-मीठी बेचैनी अनुभव हो रही थी।

मैंने अपनी बाहें फैलाकर आशीष की पीठ को जकड़ लिया, आशीष का एक हाथ अब मेरी कमर पर कैपरी के इलास्टिक के इर्द-गिर्द घूमने लगा।

हौले-हौले आशीष मेरी केपरी उतारने की कोशिश कर रहे थे। जैसे ही मुझे इनका आभास हुआ मैंने खुद ही अपने नितम्ब हल्के से ऊपर करके उनकी मदद कर दी।

आशीष तो जैसे इसी पल के इंतजार में थे, उन्होंने मेरी केपरी के साथ ही कच्छी भी निकालकर फेंक दी।

अब मैं आशीष के सामने पूर्णतया नग्न अवस्था में थी परन्तु फिर भी दिल आशीष को छोड़ने का नहीं हो रहा था।

आशीष अब खुलकर मेरे बदन से खेलने लगे, वो मेरे पूरे बदन पर अपने होंठों के निशान बना रहे थे, शायद मेरे कामुक बदन को कोई एक हिस्सा भी ऐसा नहीं बचा था जिस को आशीष ने अपने होंठों से स्पर्श ना किया हो।

आशीष अब धीरे धीरे नीचे की तरफ बढ़ने लगे, मेरी नाभि चाटने के बाद आशीष मेरे पेड़ू को चाटने लगे।

आहहहह्…इस्‍स्… स्‍स्‍स्‍स…स‍… हम्‍म्‍म्‍म‍… उफ्फ… यह क्या कर दिया आशीष ने…

मुझ पर अब कामुकता पूरी तरह हावी होने लगी, मुझे अजीब तरह की गुदगुदी हो रही थी, मैं इस समय खुद के काबू में नहीं थी, मुझे बहुत अजीब सा महसूस हो होने लगा, ऐसी अनुभूति जीवन में पहले कभी नहीं हुई थी पर यह जो भी हो रहा था इतना सुखदायक था कि मैं उसे एक पल के लिये भी रोकना नहीं चाह रही थी।

मेरी सिसकारियाँ लगातार तेज होने लगी थी, तभी कुछ ऐसा हुए जिसने मेरी जान ही निकाल दी।

आशीष ने हौले ने नीचे होकर मेरी दोनों टांगों के बीच की दरार पर अपनी सुलगती हुई जीभ रख दी।’सीईईईई… ईईईई…’ मेरी जान ही निकल गई, अब मैं ऐसे तड़पने लगी जैसे जल बिन मछली।

ऊई माँऽऽऽ… अऽऽऽहऽऽ… यह क्या कर डाला आशीष नेॽ मेरा पूरा बदन एक पल में ही पसीने पसीने हो गया, थर्र-थर्र कांपने लगी थी मैं।

आशीष हौले-हौले उस दरार को ऊपर से नीचे तक चाट रहे थे।

उफ़्फ़… मुझसे अपनी तड़प अब बर्दाश्त नहीं हो रही थी, बिस्तर की चादर को मुट्ठी में भींचकर मैं खुद को नियंत्रित करने का असफल कोशिश करने लगी परन्तु ऐसा करने पर भी जब मैं खुद को नियंत्रित नहीं कर पाई तो आशीष को अपनी टांगों से दूर धकेलने की कोशिश की।

आशीष शायद मेरी स्थिति को समझ गये। खुद ही अब उन्होंने मेरी मक्खन जैसी योनि का मोह त्याग कर नीचे का रुख कर लिया।

अब आशीष मेरी जांघों को चाटते-चाटते नीचे पैरों की तरफ बढ़ गये, ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरी योनि में कोई फव्वारा छूटा हो, मेरी योनि में से सफेद रंग का गाढ़ा-गाढ़ा स्राव निकलकर बाहर आने लगा।

इस स्राव के निकलते ही मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ, अब मेरी तड़प भी कम हो गई थी, मैं होश में आने लगी परन्तु मेरे पूरे शरीर में मीठा-मीठा दर्द हो रहा था, मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरा पेशाब यहीं निकल जायेगा।

मैं तुरन्त आशीष से खुद को छुड़ाकर कमरे से सटे टायलेट की तरफ दौड़ी। टायलेट की सीट पर बैठते ही बिना जोर लगाये मेरी योनि से श्वे‍त पदार्थ मिश्रित स्राव बड़ी मात्रा में निकलने लगा।

परन्तु मूत्र विसर्जन के बाद मिलने वाली संतुष्टि भी कम सुखदायी नहीं थी।

अपनी योनि को अच्छी तरह धोने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आई तो देखा आशीष अपना नाईट सूट पहनकर टीवी देखने लगे।

मैं भी अब पहले से बहुत अच्छा अनुभव कर रही थी, आते ही आशीष की बगल में लेटकर टीवी देखने लगी। पता ही नहीं लगा कि कब मुझे नींद आ गई।


Post Reply