Hindi sexi stori
मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट--1
मैं स्मृति हूँ. 26 साल की एक शादीशुदा महिला. गोरा रंग और
खूबसूरत नाक नक्श. कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे
पाने के लिए तड़प उठता था. मेरी फिगर अभी 34(ल)-28-38. मेरा
बहुत सेक्सी
है. मेरी शादी पंकज से 6 साल पहले हुई थी. पंकज एक आयिल
रेफाइनरी मे काफ़ी
अच्च्ची पोज़िशन पर कम करता है. पंकज निहायत ही हॅंडसम और
काफ़ी अच्छे
स्वाभाव का आदमी है. वो मुझे बहुत ही प्यार करता है. मगर मेरी
किस्मेत मे सिर्फ़ एक आदमी का प्यार नही लिखा हुआ था. मैं आज दो
बच्चो की मा हूँ मगर उनमे से किसका बाप है मुझे नही मालूम.
खून तो शायद उन्ही की फॅमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ
या
नही इसमे संदेह है. आपको ज़्यादा बोर नही करके मैं आपको पूरी
कहानी
सुनाती हूँ. कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई ख़तम
करके
किसी कंपनी मे
सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सेक्स मशीन मे तब्दील
हो गयी. शादी
से पहले मैने किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात नही रखे थे. मैने अपने
सेक्सी बदन को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर
रखा था. एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कोमार्य
सुरक्षित रख पाना अपने आप मे बड़ा ही मुश्किल का काम था. लेकिन
मैने इसे संभव कर दिखाया था. मैने अपना कौमार्या अपने पति को
ही समर्पित किया था. लेकिन एक बार मेरी योनि का बंद द्वार पति के
लिंग से खुल जाने के बाद तो पता नही कितने ही लिंग धड़ाधड़ घुसते
चले गये. मैं कई मर्दों के साथ हुमबईस्तर हो चुकी थी. कई
लोगों
ने तरह तरह से मुझसे संभोग किया……………
मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फॅमिली को बिलॉंग
करती थी. पढ़ाई ख़तम होने के बाद मैने शॉर्ट हॅंड आंड ऑफीस
सेक्रेटरी का कोर्स किया. कंप्लीट होने पर मैने कई जगह अप्लाइ
किया. एक कंपनी सुदर्शन इंडस्ट्रीस से पी ए के लिए कॉल आया.
इंटरव्यू मे सेलेक्षन हो गया. मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर. खुशी
राम की पीए के पोस्ट के लिए सेलेक्ट किया गया. मैं बहुत खुश हुई.
घर
की हालत थोड़ी नाज़ुक थी. मेरी तनख़्वाह ग्रहस्थी मे काफ़ी मदद करने
लगी.
मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी राम जी की नियत अच्छि
नही
थी. खुशिरामजी देखने मे किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे.
उनके पूरे चेहरे
पर चेचक के निशान उनके व्य्क्तित्व को और बुरा बनाते थे. जब वो
बोलते तो उनके होंठों के दोनो किनारों से लार निकलती थी. मुझे
उसकी
शक्ल से ही नफ़रत थी. मगर
क्या करती मजबूरी मे उन्हे झेलना पड़ रहा था.
मैं ऑफीस मे सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार
गुजरने
लगा. लंबी आस्तीनो वाले ढीले ढले कमीज़ से उन्हे मेरे बदन की
झलक नही मिलती थी और ना ही मेरे बदन के तीखे कटाव ढंग से
उभरते.
"यहाँ तुम्हे स्कर्ट और ब्लाउस पहनना होगा. ये यहाँ के पीए का ड्रेस
कोड
है." उन्हों ने मुझे दूसरे दिन ही कहा. मैने उन्हे कोई जवाब नही
दिया. उन्हों ने शाम तक एक टेलर को वही ऑफीस मे बुला कर मेरे
ड्रेस का ऑर्डर दे दिया. ब्लाउस का गला काफ़ी डीप रखवाया और स्कर्ट
बस इतनी लंबी की मेरी आधी जाँघ ही ढक पाए.
दो दिन मे मेरा ड्रेस तैयार हो कर आगेया. मुझे शुरू मे कुच्छ दिन
तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने मे बहुत शर्म आती
थी. मगर धीरे धीरे मुझे लोगों की नज़रों को सहने की हिम्मत
बनानी पड़ी. ड्रेस तो इतनी छ्होटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती
तो सामने वाले को मेरे ब्रा मे क़ैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी
पॅंटी के नज़ारे के दर्शन करवाती.
मैं घर से सलवार कमीज़ मे आती और ऑफीस आकर अपना ड्रेस चेंज
करके अफीशियल स्कर्ट ब्लाउस पहन लेती. घर के लोग या मोहल्ले वाले
अगर मुझे उस ड्रेस मे देख लेते तो मेरा उसी मुहूर्त से घर से
निकलना ही बंद कर दिया जाता. लेकिन मेरे पेरेंट्स बॅक्वर्ड ख़यालो
के
भी नही थे. उन्हों ने कभी मुझसे मेरे पर्सनल लाइफ के बारे मे
कुच्छ भी पूछ ताछ नही की थी.
एक दिन खुशी राम ने अपने कॅबिन मे मुझे बुला कर इधर उधर की
काफ़ी
बातें
की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा. मैं कुच्छ डिसबॅलेन्स हुई तो
उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उसने मेरे होंठों को अपने
होंठों से च्छू लिए. उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी.
मैं एक दम घबरा गयी. समझ मे ही नही आया कि ऐसे हालत का
सामना
किस तरह से करूँ. उनके हाथ मेरे दोनो चूचियो को ब्लाउस के उपर
से मसल्ने के बाद स्कर्ट के नीचे पॅंटी के उपर फिरने लगे. मई
उनसे
अलग होने के लिए कसमसा रही थी. मगर उन्होने ने मुझे अपनी बाहों
मे बुरी तरह से जाकड़ रखा था. उनका एक हाथ एक झटके से मेरी
पॅंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया. मैने
अपने दोनो टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन
तब तक तो उनकी उंगलियाँ मेरी योनि के द्वार तक पहुँच चुकी थी.
दोनो उंगलियाँ एक मेरी योनि मे घुसने के लिए कसमसा रही थी.
मैने पूरी ताक़त लगा कर एक धक्का देकर उनसे अपने को अलग किया.
और वहाँ से भागते हुए
निकल गयी. जाते जाते उनके शब्द मेरे कानो पर पड़े.
"तुम्हे इस कंपनी मे काम करने के लिए मेरी हर इच्च्छा का ध्यान
रखना पड़ेगा."
मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची. मेरी साँसे तेज तेज
चल रही थी. मैने एक
ग्लास ठंडा पानी पिया. बेबसी से मेरी आँखों मे आँसू आ गये. नम
आँखों से मैने अपना रेसिग्नेशन लेटर टाइप किया और उसे वही पटक
कर ऑफीस से
बाहर निकल गयी. फिर दोबारा कभी उस रास्ते की ओर मैने पावं नही
रखे.
फिर से मैने कई जगह अप्लाइ किया. आख़िर एक जगह से इंटरव्यू कॉल
आया.
सेलेक्ट होने के बाद मुझे सीईओ से मिलने के लिए ले जाया गया. मुझे
उन्ही
की पीए के पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी. मैं एक बार चोट खा चुकी
थी इस लिए दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था. मैने सोच रखा था
कि
अगर मैं कहीं को जॉब करूँगी तो अपनी इच्च्छा से. किसी मजबूरी या
किसी की रखैल बन कर नही. मैने सकुचते हुए उनके
कमरे मे नॉक किया और अंदर गयी.
Hindi sexi stori मैं हूँ हसीना गजब की compleet
Re: Hindi sexi stori मैं हूँ हसीना गजब की
"यू आर वेलकम टू दिस फॅमिली" सामने से आवाज़ आई. मैने देखा
सामने एक३7 साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था. मैं सीईओ मिस्टर.
राज शर्मा को देखती ही रह गयी. वो उठे और मेरे पास आकर हाथ
बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही. ये सभ्यता के खिलाफ था
मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी. लेकिन उन्हों ने बिना
कुच्छ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया. मैं होश मे
आई. मैने तपाक से उनसे हाथ मिलाया. वो मेरे
हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की चेर तक ले गये और चेर को
खींच कर मुझे बैठने के लिए कहा. जब तक वो घूम कर अपनी
सीट पर पहुँचे मैं तो उन के डीसेन्सी पर मर मिटी. इतना बड़ा आदमी
और इतना सोम्य व्यक्तित्व. मैं तो किसी ऐसे ही एंप्लायर के पास काम
करने का सपना इतने दीनो से संजोए थी.
खैर अगले दिन से मैं अपने काम मे जुट गयी. धीरे धीरे उनकी
अच्च्छाइयों से अवगत होती गयी. सारे ऑफीस के स्टाफ उन्हे दिल से
चाहते थे. मैं भला उनसे अलग कैसे रहती. मैने इस कंपनी मे
अपने
बॉस के बारे मे उनसे मिलने के पहले जो धारणा बनाई थी उसका उल्टा
ही
हुआ. यहाँ पर तो मैं खुद अपने बॉस पर मर मिटी, उनके एक एक काम
को
पूरे मन से कंप्लीट करना अपना धर्म मान लिया. मगर बॉस
था कि घास ही नही डालता था. यहा मैं सलवार कमीज़ पहन कर ही
आने लगी. मैने अपने कमीज़ के गले बड़े कार्वालिए जिससे उन्हे मेरे
दूधिया रंग के बूब्स देखें. बाकी सारे ऑफीस वालों के सामने तो
अपने बदन को चुनरी से ढके रखती थी. मगर उनके सामने जाने से
पहले अपनी छातियो पर से चुनरी हटा कर उसे जान बूझ कर टेबल
पर छ्चोड़ जाती थी. मैं जान बूझ कर उनके सामने झुक
कर काम करती थी जिससे मेरे ब्रा मे कसे हुए बूब्स उनकी आँखों के
सामने झूलते रहें. धीरे धीरे मैने महसूस किया कि उनकी नज़रों
मे भी परिवर्तन आने लगा है. आख़िर वो कोई साधु महात्मा तो थे
नही ( दोस्तो आप तो जानते है मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा कैसा बंदा हूँ
ये सब तो चिड़िया को जाल मे फाँसने के लिए एक चारा था ) और मैं थी भी
इतनी सुंदर की मुझ से दूर रहना एक नामुमकिन
काम था. मैं अक्सर उनसे सटने की कोशिश करने लगी. कभी कभी
मौका देख कर अपने बूब्स उनके बदन से च्छुआ देती
मैने ऑफीस का काम इतनी निपुणता से सम्हाल लिया था कि अब राजकुमार
जी ने काम की काफ़ी ज़िम्मेदारियाँ मुझे सोन्प दी थी. मेरे बिना वो बहुत
असहाय फील करते थे. इसलिए मैं कभी छुट्टी नही लेती थी.
धीरे धीरे हम काफ़ी ओपन हो गये. फ्री टाइम मे मैं उनके कॅबिन मे
जाकर उनसे बातें करती रहती. उनकी नज़र बातें करते हुए कभी
मेरे
चेहरे से फिसल कर नीचे जाती तो मेरे निपल्स बुलेट्स की तरह तन
कर खड़े हो जाते. मैं अपने उभारों को थोडा और तान लेती थी.
उनमे गुरूर बिल्कुल भी नही था. मैं
रोज घर से उनके लिए कुच्छ ना कुच्छ नाश्ते मे बनाकर लाती थी हम
दोनो साथ बैठ कर नाश्ता करते थे. मैं यहाँ भी कुच्छ महीने
बाद स्कर्ट ब्लाउस मे आने लगी. जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाउस मे
आई, मैने उनकी आँखो मे मेरे लिए एक प्रशंसा की चमक देखी.
मैने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली. कई बार काम का बोझ ज़्यादा
होता तो मैं उन्हे बातों बातों मे कहती, "सर अगर आप कहें तो फाइल
आपके घर ले आती हूँ छुट्टी के दिन या ऑफीस टाइम के बाद रुक जाती
हूँ. मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उल्टा रहता.
वो कहते "स्मृति मैं अपनी टेन्षन घर लेजाना
पसंद नही करता और चाहता हूँ की तुम भी छुट्टी के बाद अपनी
लाइफ एंजाय करो. अपने घर वालो के साथ अपने बाय्फरेंड्स के साथ
शाम एंजाय करो. क्यों कोई है क्या?" उन्हों ने मुझे छेड़ा.
"आप जैसा हॅंडसम और शरीफ लड़का जिस दिन मुझे मिल जाएगा उसे
अपना बॉय फ्रेंड बना लूँगी. आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते
नहीं हैं." उन्हों ने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया.
अब मैं अक्सर उन्हे छूने लगी. एक बार उन्हों ने सिरदर्द की शिकायत
की. मुझे कोई टॅबलेट ले कर आने को कहा.
" सर, मैं सिर दबा देती हूँ. दवाई मत लीजिए." कहकर मैं उनकी
चेर के पीछे आई और उनके सिर को अपने हाथों मे लेकर दबाने
लगी. मेरी उंगलिया उनके बलों मे घूम रही थी. मैं अपनी उंगलियों
से उनके सिर को दबाने लगी. कुच्छ ही देर मे आराम मिला तो उनकी आँखें
अपने आप मूंडने लगी. मैने उनके सिर को अपने बदन से सटा दिया.
अपने दोनो चुचियो के बीच उनके सिर को दाब कर उनके सिर को दबाने लगी.
मेरे दोनो उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे. उन्हों ने भी
शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुच्छ कहा नही. मेरे दोनो उरोज सख़्त हो
गये और निपल्स तन गये. मेरे गाल शर्म से लाल हो गये थे.
Re: Hindi sexi stori मैं हूँ हसीना गजब की
"बस अब काकी आराम है कह कर जब उन्हों ने अपने सिर मेरी छातियो
से उठाया तो मुझे इतना बुरा लगा की कुच्छ बयान नही कर सकती. मैं
अपनी नज़रे ज़मीन पर गड़ाए उनके सामने कुर्सी पर आ बैठी.
धीरे धीरे हम बेताकल्लूफ होने लगे. अभी सिक्स मोन्थ्स ही हुए थे
कि एक दिन मुझे अपने कॅबिन मे बुला कर उन्होने एक लिफ़ाफ़ा दिया. उसमे
से लेटर निकाल कर मैने पढ़ा तो खुशी से भर उठी. मुझे
पर्मनेंट कर दिया गया था और मेरी तनख़्वाह डबल कर दी गयी
थी.
मैने उनको थॅंक्स कहा तो वो कह उठे. "सूखे सूखे थॅंक्स से काम
नही चलेगा. बेबी इसके लिए तो मुझे तुमसे कोई ट्रीट मिलनी चाहिए"
"ज़रूर सर अभी देती हूँ" मैने कहा
"क्या?" वो चौंक गये. मैने मौके को हाथ से नही जाने देना चाहती
थी. मैं
झट से उनकी गोद मे बैठ गयी और उन्हे अपनी बाहों मे भरते हुए
उनके लिप्स चूम लिए. वो इस अचानक हुए हमले से घबरा गये.
"स्मृति क्या कर रही हो. कंट्रोल युवरसेल्फ. इस तरह भावनाओं मे मत
बहो. " उन्हों ने मुझे उठाते हुए कहा "ये उचित नही है. मैं एक
शादी शुदा बाल बच्चेदार आदमी हूँ"
"क्या करूँ सर आप हो ही इतने हॅंडसम की कंट्रोल नही हो पाया." और
वहाँ से शर्मा कर भाग गयी.
जब इतना होने के बाद भी उन्हों ने कुच्छ नही कहा तो मैं उनसे और
खुलने लगी.
"राज जी एक दिन मुझे घर ले चलो ना अपने" एक दिन मैने उन्हे
बातों बातों मे कहा. अब हमारा संबंध बॉस और पीए का कम दोस्तों
जैसा अधिक हो गया था.
"क्यों घर मे आग लगाना चाहती हो?" उन्हों ने मुस्कुराते हुए पूचछा.
"कैसे?"
"अब तुम जैसी हसीन पीए को देख कर कौन भला मुझ पर शक़ नही
करेगा."
"चलो एक बात तो आपने मान ही लिया आख़िर."
"क्या?" उन्हों ने पूछा.
"कि मैं हसीन हूँ और आप मेरे हुष्ण से डरते हैं."
"वो तो है ही."
"मैं आपकी वाइफ से आपके बच्चों से एक बार मिलना चाहती हूँ."
"क्यों? क्या इरादा है?"
" ह्म्म्म कुच्छ ख़तरनाक भी हो सकता है." मैने अपने निचले होंठ
को दाँत से काटते हुए उठ कर उनकी गोद मे बैठ गयी. मैं जब भी बोल्ड
हो जाती थी वो घबरा उठते थे. मुझे उन्हे इस तरह सताने मे बड़ा
मज़ा आता था.
" देखो तुम मेरे लड़के से मिलो. उसे अपना बॉय फ़्रेंड बना लो. बहुत
हॅंडसम है वो. मेरा तो अब समय चला गया है तुम जैसी लड़कियों
से फ्लर्ट करने का." उन्हों ने मुझे अपने गोद से उठाते हुए कहा.
"देखो ये ऑफीस है. कुच्छ तो इसकी मर्यादा का ख्याल रखा कर. मैं
यहा तेरा बॉस हूँ. किसी ने देख लिया तो पता नही क्या सोचेगा कि
बुड्ढे की मति मारी गयी है."
इस तरह अक्सर मैं उनसे चिपकने की कोशिश करती थी मगर वो किसी
मच्चली की तरह हर बार फिसल जाते थे.
इस घटना के बाद तो हम काफ़ी खुल गये. मैं उनके साथ उल्टे सीधे
मज़ाक भी करने लगी. लेकिन मैं तो उनकी बनाई हुई लक्ष्मण रेखा
क्रॉस करना चाहती थी. मौका मिला होली को.
होली के दिन हुमारे ऑफीस मे छुट्टी थी. लेकिन फॅक्टरी बंद नही
रखा जाता था
कुच्छ ऑफीस स्टाफ को उस दिन भी आना पड़ता था. मिस्टर. राज हर होली को
अपने
स्टाफ से सुबह-सुबह होली खेलने आते थे. मैने भी होली को उनके
साथ हुड़दंग करने के प्लान बना लिया. उस दिन सुबह मैं ऑफीस
पहुँच गयी.
ऑफीस मे कोई नही था. सब बाहर एक दूसरे को गुलाल लगाते थे. मैं
लोगों की नज़र बचाकर ऑफीस के अंदर घुस गयी. अंदर होली
खेलना
अलोड नही था. मैं ऑफीस मे अंदर से दरवाजा बंद कर के
उनका इंतेज़ार करने लगी. कुच्छ ही देर मे राज की कार अंदर आई. वो
कुर्ते पायजामे मे थे. लोग उनसे गले मिलने लगे और गुलाल लगाने
लगे. मैने गुलाल निकाल कर एक प्लेट मे रख लिया बाथरूम मे जाकर
अपने बालों को खोल दिया.रेशमी जुल्फ खुल कर पीठ पर बिखर गये.
मैं एक पुरानी शर्ट और स्कर्ट पहन रखी
थी.