जवानी की मिठास--1
written by RKS
सावधान-
दोस्तो ये कहानी मा और बहन की चुदाई पर आधारित है जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने मे अरुचि होती है कृपया वो इस कहानी को ना पढ़े
विजय अपनी मोटरबिक पर 70 की रफ़्तार मे उड़ा जा रहा था, तभी अचानक तीन-चार पोलीस वालों ने दूर से विजय की बाइक को
हाथ देकर रोक लिया और विजय ने अपनी बाइक की रफ़्तार कम करके एक तरफ खड़ी करली,
विजय- क्या हुआ साहब
पोलीस- गाड़ी के पेपर और लाइसेन्स दिखाओ,
विजय ने अपनी जेब से लाइसेन्स निकाल कर दिया तब पोलीस वाले ने पेपर माँगे तब विजय ने कहा गाड़ी के पेपर तो उसके घर
पर ही रह गये है, पोलीस वालो ने विजय को गाड़ी एक ओर लगाने को कहा और तभी एक सिपाही जिसका नाम लखन सिंग था ने
साहेब से कहा अरे साहेब यह हमरे गाँव का है इसे जाने दो, और साहेब आप कहो तो मैं भी गाँव तक इसके साथ चला जाउ बड़ा ज़रूरी काम है.
विजय- अरे धन्यवाद लखन तुम ना आते तो पता नही मुझे कितनी देर परेशान होना पड़ता
लखन- अरे नही विजय भैया हमरे रहते आप कैसे परेशान होगे, पर यह बताओ आज गाँव की तरफ कैसे चल दिए
विजय- अरे लखन भैया मेरी नौकरी शहर मे है और वाहा से गाँव 50-60 क्म पड़ता है तो मैं हर सनडे गाँव आ
जाता हू आख़िर मा और गुड़िया से भी तो मिलना पड़ता है ना.
लखन-अच्छा चलो मुझे भी गाँव तक चलना है, मैं तुम्हारे साथ ही चला चलता हू साहेब से भी छुट्टी माँग ली है
विजय- क्यो नही लखन बैठो
विजय लखन को लेकर गाँव की ओर चल देता है, विजय एक 30 साल का हॅटा-कॅटा जवान था और शहर मे सरकारी नौकरी
करता था और अपना पूरा नाम विजय सिंग ठाकुर लिखता था, गाँव मे उसकी मा रुक्मणी और बहन गुड़िया रहते थे,
रुक्मणी करीब 48 साल की एक भरे बदन की औरत थी और करीब 10 साल पहले ही उसके पति की मौत हो चुकी थी उसे लोग गाँव
मैं ठकुराइन के नाम से ही पुकारते थे, विजय की बहन गुड़िया अब 25 बरस की हो चली थी, लेकिन अभी तक दोनो भाई बहन
मैं से किसी की शादी नही हुई थी, लेकिन सभी की कामनाए दबी हुई थी,
लखन- विजय भैया कहो तो आज थोड़ा मदिरापान हो जाए, कहो तो एक बोतल ले लू गाँव के हरे भरे पेड़ो के नीचे बैठ
कर पीने का मज़ा ही कुछ और आता है.
विजय जानता था कि लखन एक रंगीन मिज़ाज का आदमी है और विजय एक दो बार पहले भी लखन और एक दो लोगो के साथ बैठ कर
पी चुका था, उसने सोचा चलो अब शाम भी हो रही है और गाँव भी 10 किमी होगा थोड़ा मूड फ्रेश कर ही लिया जाए
लखन और विजय गाँव से 3-4 किमी दूर एक तालाब के किनारे लगे पेड़ो के नीचे बैठ कर पीना शुरू कर देते है,
लखन- अच्छा विजय भैया कोई माल वग़ैरह पटाया है कि नही शहर मे या ऐसे ही नीरस जिंदगी जी रहे हो,
विजय- अरे बिना औरत के क्या जिंदगी नीरस रहती है,
लखन- अरे और नही तो क्या, अब हमको ही देख लो तुमसे 2 साल छोटे है पर जबसे हमारी शादी हुई है तब से हम को
अपनी औरत को चोदे बिना नींद ही नही आती है,
विजय को लखन की बातो मैं बड़ा मज़ा आ रहा था और उसका नशा चढ़ता ही जा रहा था, उधर लखन की यह कमज़ोरी थी
कि वह पीने के बाद सिर्फ़ और सिर्फ़ चूत और चुदाई की ही बाते करता था,
विजय- तो क्या तुम अपनी औरत को रोज चोद्ते हो
लखन- शराब का बड़ा सा घूँट गटकते हुए, हा भैया मुझे तो बिना अपनी औरत की चूत मारे नींद ही नही आती है,
विजय- लगता है तेरी बीबी बहुत सुंदर है
लखन- सुंदर तो है भैया लेकिन जैसे माल की हमे चाहत थी वैसा माल नही है,
विजय- क्यो तुझे कैसे माल की चाहत थी
लखन- अब क्या बताउ भैया मुझे लोंदियो को चोदने मे उतना मज़ा नही आता है जितना मज़ा बड़ी उमर की औरतो को
चोदने मैं आता है,
विजय- बड़ी उमर की मतलब, किस तरह की औरत
लखन- भैया मुझे तो अपनी मा की उमर की औरतो को चोदने मे मज़ा आता है,
विजय- क्यो मा की उमर की औरतो मे कुछ खास बात होती है क्या
लखन- अच्छा पहले यह बताओ तुमने कभी अपनी मा की उमर की औरत को पूरी नंगी देखा है,
विजय- नही देखा क्यो
लखन- अगर देखा होता तो जानते, मैं तो शादी के पहले ऐसी ही औरतो को सोच-सोच कर खूब अपना लंड हिलाता था,
विजय- अच्छा, तो क्या तूने किसी को पूरी नंगी भी देखा था
लखन- नशे मैं मुस्कुराते हुए, देखो भैया तुमसे बता रहा हू क्यो कि तुम मेरे भाई जैसे हो पर यह बात कही और
ना करना,
विजय- लखन क्या तुझे मुझ पर भरोसा नही है
लखन- भरोसा है तभी तो बता रहा हू भैया, एक बार मैंने अपनी अम्मा को पूरी नंगी देखा था, क्या बताउ भैया
इतनी भरे बदन की है मेरी अम्मा की उसकी गदराई उफान खाती जवानी देख कर मेरा लंड किसी डंडे की तरह तन गया था,
बस तब से ही भैया मुझे अपनी अम्मा जैसी औरते ही अच्छी लगती है और जब भी मैं अपनी औरत को चोदता हू तो मुझे
ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी अम्मा को पूरी नंगी करके चोद रहा हू,
kamuk kahaani-जवानी की मिठास compleet
Re: kamuk kahaani-जवानी की मिठास
विजय- लखन की बात सुन कर हैरान रह जाता है लेकिन उसका लंड उसके पेंट मे पूरी तरह तना हुआ था,
विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया
लखन- अरे विजय भैया तुम इन औरतो को नही जानते इनकी उमर जितनी बढ़ती जाती है उनकी जवानी और उठने लगती है, मेरी
अम्मा को चूत मे खूब खुजली मची होगी इसीलिए वह पूरी नंगी होकर घर के आँगन मे नहा रही थी और मैं चुपचाप
छुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था,
विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा,
लखन- अब भैया घर मे ऐसा छोड़ने लायक माल हो तो उसे पूरी नंगी देखे बिना रहा भी तो नही जाता, पता नही तुम
30 बरस के हो चले हो और तुम्हारा मन क्यो नही होता है, जबकि तुम्हारी मा तो..............
विजय-बोल-बोल क्या कह रहा था
लखन- माफ़ करना भैया ग़लती से मूह से निकल गया
विजय- उसकी बोतल लेकर एक सांस मे तीन-चार घूँट खिचते हुए, अरे बोल ना क्या कह रहा था मेरी मा के बारे मैं, जब
मैं तेरी मा के बारे मे सुन सकता हू तो अपनी मा के बारे मे भी सुन सकता हू, बोल तू क्या कहना चाहता है, तू मेरा दोस्त
है मैं तेरी बात का बुरा नही मानूँगा और अगर मुझे बात बुरी लगी तो मैं तुझे करने के लिए मना कर दूँगा, अब बोल भी
दे
लखन- विजय की बात सुन कर थोडा जोश मैं आ चुका था और भैया मैं तो यह कह रहा था की इस पूरे गाँव मैं अगर
सबसे गदराया बदन और नशीली जवानी अगर किसी की है तो वह है आपकी मा ठकुराइन की, क्या आपका लंड आपकी मा को
देख कर खड़ा नही होता है जब कि आप तो हमेशा उनके साथ घर पर ही रहते हो, ठकुराइन जब गाँव मे चलती है तो
अच्चो -अच्चो के लंड खड़े हो जाते है,
विजय- नशे मैं बहुत मस्त हो रहा था और जब उसने लखन के मूह से अपनी मा की गदराई ज्वानी की बात सुनी तो उसका मोटा
लॅंड झटके खाने लगा था, क्या इतनी मस्त लगती है मेरी मा
लखन- सच कहु विजय भैया अगर तुम्हारी जगह मैं ठकुराइन का बेटा होता तो दिन रात ठकुराइन को खूब कस-कस कर
चोदता, सच विजय भैया आपकी मा बहुत मालदार औरत है, कितने सालो से उन्होने कोई लंड भी नही लिया है उनकी चूत तो
पूरी कुँवारी लोंदियो जैसी हो गई होगी,
विजय- अच्छा तो एक बात बता लखन तूने कभी अपनी अम्मा को चोदने की कोशिश नही की,
लखन- अरे नही विजय भैया मेरी मा बहुत गरम मिज़ाज की औरत है और इसीलिए मेरी गंद फाटती है इन सब कामो से,
विजय- तूने ठीक ही किया है, कोई मा अपने बेटे से अपनी चूत थोड़े ही चुदवा लेगी,
लखन- हाँ वो तो है भैया पर जिस औरत को लंबे समय से लंड ना मिला हो वह औरत अगर किसी जवान लोंडे का मस्त लंड
देख ले तो उसकी चूत पिघल सकती है और जब औरत खूब चुदासि हो जाती है तो फिर वह किसी का भी लंड ले सकती है,
विजय बात लखन से कर रहा था लेकिन लखन की बातो के कारण उसके दिमाग़ मे सिर्फ़ उसकी मा रुक्मणी का ही ख्याल आ रहा
था और उसे कभी रुक्मणी की मोटी लहराती गंद कभी उसके मोटे-मोटे कसे हुए दूध और कभी उसके रसीले होंठ और
उभरा हुआ पेट ही नज़र आ रहा था,
विजय- अच्छा यह बता लखन और कौन औरत गाँव मे सबसे पताका लगती है तुझे.
लखन- अरे भैया हमे लगने से क्या होता है सच कहु तो असली माल तुम्हारे घर मे है और तुम हो कि एक दम नीरस
आदमी हो,
विजय- तो मुझे क्या करना चाहिए लखन
लखन- भैया औरत की दबी हुई आग अगर भड़का दो तो फिर तुम्हे कुछ करने की ज़रूरत नही पड़ेगी औरत खुद ही सब
कुछ कर लेगी,
विजय- तूने अपनी बीबी को अपनी अम्मा को नंगी देखने वाली बात बताई है कि नही
लखन- अरे वह तो सब जानती है, कई बार तो वह खुद कहती है कि मुझे अपनी अम्मा समझ कर चोदो, जब तुम मुझे अपनी
अम्मा समझ कर चोद्ते हो तो बहुत अच्छे से चोद्ते हो,
विजय- मुस्कुराता हुआ, साले अपनी औरत को भी पटा लिया है तूने
विजय- चल अब चलते है बहुत देर हो रही है,
विजय- पर तूने अपनी अम्मा को पूरी नंगी कैसे देख लिया
लखन- अरे विजय भैया तुम इन औरतो को नही जानते इनकी उमर जितनी बढ़ती जाती है उनकी जवानी और उठने लगती है, मेरी
अम्मा को चूत मे खूब खुजली मची होगी इसीलिए वह पूरी नंगी होकर घर के आँगन मे नहा रही थी और मैं चुपचाप
छुप कर उसकी गदराई जवानी देख रहा था,
विजय- तब तो तू रोज अपनी अम्मा को नंगी देखता होगा,
लखन- अब भैया घर मे ऐसा छोड़ने लायक माल हो तो उसे पूरी नंगी देखे बिना रहा भी तो नही जाता, पता नही तुम
30 बरस के हो चले हो और तुम्हारा मन क्यो नही होता है, जबकि तुम्हारी मा तो..............
विजय-बोल-बोल क्या कह रहा था
लखन- माफ़ करना भैया ग़लती से मूह से निकल गया
विजय- उसकी बोतल लेकर एक सांस मे तीन-चार घूँट खिचते हुए, अरे बोल ना क्या कह रहा था मेरी मा के बारे मैं, जब
मैं तेरी मा के बारे मे सुन सकता हू तो अपनी मा के बारे मे भी सुन सकता हू, बोल तू क्या कहना चाहता है, तू मेरा दोस्त
है मैं तेरी बात का बुरा नही मानूँगा और अगर मुझे बात बुरी लगी तो मैं तुझे करने के लिए मना कर दूँगा, अब बोल भी
दे
लखन- विजय की बात सुन कर थोडा जोश मैं आ चुका था और भैया मैं तो यह कह रहा था की इस पूरे गाँव मैं अगर
सबसे गदराया बदन और नशीली जवानी अगर किसी की है तो वह है आपकी मा ठकुराइन की, क्या आपका लंड आपकी मा को
देख कर खड़ा नही होता है जब कि आप तो हमेशा उनके साथ घर पर ही रहते हो, ठकुराइन जब गाँव मे चलती है तो
अच्चो -अच्चो के लंड खड़े हो जाते है,
विजय- नशे मैं बहुत मस्त हो रहा था और जब उसने लखन के मूह से अपनी मा की गदराई ज्वानी की बात सुनी तो उसका मोटा
लॅंड झटके खाने लगा था, क्या इतनी मस्त लगती है मेरी मा
लखन- सच कहु विजय भैया अगर तुम्हारी जगह मैं ठकुराइन का बेटा होता तो दिन रात ठकुराइन को खूब कस-कस कर
चोदता, सच विजय भैया आपकी मा बहुत मालदार औरत है, कितने सालो से उन्होने कोई लंड भी नही लिया है उनकी चूत तो
पूरी कुँवारी लोंदियो जैसी हो गई होगी,
विजय- अच्छा तो एक बात बता लखन तूने कभी अपनी अम्मा को चोदने की कोशिश नही की,
लखन- अरे नही विजय भैया मेरी मा बहुत गरम मिज़ाज की औरत है और इसीलिए मेरी गंद फाटती है इन सब कामो से,
विजय- तूने ठीक ही किया है, कोई मा अपने बेटे से अपनी चूत थोड़े ही चुदवा लेगी,
लखन- हाँ वो तो है भैया पर जिस औरत को लंबे समय से लंड ना मिला हो वह औरत अगर किसी जवान लोंडे का मस्त लंड
देख ले तो उसकी चूत पिघल सकती है और जब औरत खूब चुदासि हो जाती है तो फिर वह किसी का भी लंड ले सकती है,
विजय बात लखन से कर रहा था लेकिन लखन की बातो के कारण उसके दिमाग़ मे सिर्फ़ उसकी मा रुक्मणी का ही ख्याल आ रहा
था और उसे कभी रुक्मणी की मोटी लहराती गंद कभी उसके मोटे-मोटे कसे हुए दूध और कभी उसके रसीले होंठ और
उभरा हुआ पेट ही नज़र आ रहा था,
विजय- अच्छा यह बता लखन और कौन औरत गाँव मे सबसे पताका लगती है तुझे.
लखन- अरे भैया हमे लगने से क्या होता है सच कहु तो असली माल तुम्हारे घर मे है और तुम हो कि एक दम नीरस
आदमी हो,
विजय- तो मुझे क्या करना चाहिए लखन
लखन- भैया औरत की दबी हुई आग अगर भड़का दो तो फिर तुम्हे कुछ करने की ज़रूरत नही पड़ेगी औरत खुद ही सब
कुछ कर लेगी,
विजय- तूने अपनी बीबी को अपनी अम्मा को नंगी देखने वाली बात बताई है कि नही
लखन- अरे वह तो सब जानती है, कई बार तो वह खुद कहती है कि मुझे अपनी अम्मा समझ कर चोदो, जब तुम मुझे अपनी
अम्मा समझ कर चोद्ते हो तो बहुत अच्छे से चोद्ते हो,
विजय- मुस्कुराता हुआ, साले अपनी औरत को भी पटा लिया है तूने
विजय- चल अब चलते है बहुत देर हो रही है,
Re: kamuk kahaani-जवानी की मिठास
लखन- फिर कभी बैठने का मूड हो भैया तो उसी नाके पर आ जाना जहा तुम्हारी गाड़ी रोकी थी मेरी ड्यूटी उसी चौकी पर
रहती है,
विजय- क्यो नही लखन अब तो तेरे साथ बैठना ही पड़ेगा, तेरी बाते पूरा मूड फ्रेश कर देती है,
लखन- अगर ऐसी बात है भैया तो अगली बार जब हम साथ बैठेंगे तब मैं तुम्हे और भी कई मस्त बाते बताउन्गा,
विजय- मुस्कुराते हुए किसके बारे मे अपनी अम्मा के बारे मे या मेरी मा के बारे मे
लखन- तुम जिसके बारे मे सुनना चाहोगे भैया उसके बारे मे बता दूँगा, पोलीस वाला हू सबकी खबर रखता हू, और
हा भैया आपसे एक बात कहना भूल गया, बुरा मत मानना पर मेरी सलाह है अपनी बहन गुड़िया को अपने साथ शहर मे
रखो यहा गाँव का महॉल बड़ा खराब रहता है, किसी दिन कुछ उन्च नीच ना हो जाए,
विजय- तू कुछ छुपा रहा है लखन, साफ-साफ बता क्या बात है
लखन- भैया बुरा मत मानना पर एक दिन मैंने देखा की मनोहर काका अपना लंड निकाल कर मूत रहा था और गुड़िया
झाड़ियो के पीछे छुप कर उसका मोटा लंड देख रही थी, अब वह बड़ी हो गई है, उसका भी मन अब इन चीज़ो की तरफ जाने लगा है,
विजय- अरे लखन तूने बहुत अच्छा किया जो मुझे पहले से ही इन बतो के बारे मे बता दिया मैं कल ही गुड़िया को यहा के महॉल से शहर ले जाता हू वाहा कुछ सिलाई बुनाई सीख लेगी तो ससुराल मे उसके काम आएगी, दोनो बाते करते हुए गाँव पहुच जाते है और फिर लखन अपने और विजय अपने घर की ओर आ जाता है,
विजय का लंड अभी-अभी बैठा ही था कि घाघरा चोली पहने गुड़िया दौड़ कर आती है और विजय के सीने से लग जाती है, विजय के सीने मे गुड़िया की पपीते जैसी बड़ी-बड़ी ठोस छातियाँ पूरी तरह से चुभने लगती है, विजय गुड़िया को पहली बार इस तरह महसूस कर रहा था और वह गुड़िया को अपने सीने से पूरी तरह कस कर उसके गालो को चूम लेता है,
गुड़िया उसके सीने से अलग होकर उसके सीने पर मुक्के मार कर हस्ती हुई,
गुड़िया-क्या भैया आपने तो कहा था कि दिन मे ही आ जाओगे और आप आधी रात को आ रहे हो मैं कब से आपका रास्ता देख रही थी. विजय शराब के नशे मे पूरी तरह मदहोश था और गुड़िया की गदराई जवानी को पहली बार इतनी गौर से देख रहा था, उसे गुड़िया के मोटे-मोटे दूध इतना मस्त कर रहे थे कि वह अपनी नज़रे अपनी बहन के दूध से हटा ही नही पा रहा था,
गुड़िया- अच्छा भैया मेरे लिए क्या लाए हो, विजय कुर्सी पर बैठता हुआ, पहले यह बता मा कहा है,
गुड़िया- मा तो जमुना काकी के यहा बैठी है,
विजय- देख मैं तेरे लिए ये पायल लेकर आया हू,
पायल देखते ही गुड़िया चहक कर विजय से लिपट जाती है और विजय भी कोई मोका छोड़ना नही चाहता था इसलिए वह गुड़िया को अपनी गोद मे बिठा कर अपने हाथ उसकी भरी हुई कठोर चूचियों पर ले जाकर धीरे-धीरे उसे सहलाता हुआ गुड़िया के गालो को चूमता हुआ, मेरी प्यारी बहना रानी अब तो खुश है अपने भैया से
गुड़िया- हा लेकिन यह पायल तुम्हे ही पहनानी होगी मेरे पैरो मैं,
विजय- उसे खड़ी करके, क्यो नही मेरी रानी बहना ला पैर उठा और फिर विजय अपनी बहन के पैरो को पकड़ कर अपनी जाँघो मे रख लेता है और दूसरे हाथ से उसका घाघरा उसके घटनो तक चढ़ा देता है जिससे एक पैर की गोरी पिंदलिया और दूसरे पैर की मोटी जंघे भी विजय को नज़र आने लगती है, विजय का लंड खड़ा हो जाता है और वह अपने लंड को अपनी पेंट मे अड्जस्ट करना चाहता है पर सोचता है कि गुड़िया देखेगी तो क्या सोचेगी, लेकिन फिर उसे याद आता है कि गुड़िया की चूत भी अब खुजलाने लगी है तभी तो मनोहर काका का लंड छुप कर देख रही थी, विजय उसे पायल पहनाते हुए अपने मोटे लंड को गुड़िया के सामने ही मसल देता है,
जब विजय उसे पायल पहना रहा था तब वह बीच-बीच मे गुड़िया की पिंडलियो और जाँघो का भी जयजा ले रहा था और
जब वह अपनी बहन की गदराई जाँघो को च्छू रहा था तो उसकी जाँघो के गुदज स्पर्श से उसका लंड भनभना चुका था,
गुड़िया अपने दोनो पैरो को नीचे करके अपने घाघरे को घुटनो तक उठा कर अपने भैया को दिखाती हुई,
गुड़िया- देखो भैया कैसी लग रही है मेरी पायल
विजय- बहुत अच्छी लग रही है तेरे पैरो मैं
गुड़िया- अब देखना भैया जब मैं इन्हे पहन कर चलूंगी तब कैसी लगती हू बताना, और फिर गुड़िया अपनी मोटी-मोटी गंद
को मतकती हुई जब पायल पहन कर चलती है तो विजय से रहा नही जाता है और वह उठ कर गुड़िया के पीछे से जाकर उससे कस कर चिपक जाता है और उसे अपनी गोद मे उठा लेता है, विजय अपने हाथो को अपनी जवान बहन की मसल गंद के नीचे दबाए हुए उसे अपनी गोद मे उठा कर जब उसके गालो को चूमने जाता है तभी गुड़िया अपना मूह उसके मूह की ओर कर देती है और विजय के होंठ अपनी बहन के रसीले होंठो से चिपक जाते है और विजय एक पल के लिए अपनी बहन के रस भरे होंठो का रस पीने लगता है, और गुड़िया उसके सीने से कस कर चिपक जाती है, लेकिन फिर अचानक विजय को ध्यान आता है और वह अपनी बहन को नीचे उतार देता है,
क्रमशः...............
रहती है,
विजय- क्यो नही लखन अब तो तेरे साथ बैठना ही पड़ेगा, तेरी बाते पूरा मूड फ्रेश कर देती है,
लखन- अगर ऐसी बात है भैया तो अगली बार जब हम साथ बैठेंगे तब मैं तुम्हे और भी कई मस्त बाते बताउन्गा,
विजय- मुस्कुराते हुए किसके बारे मे अपनी अम्मा के बारे मे या मेरी मा के बारे मे
लखन- तुम जिसके बारे मे सुनना चाहोगे भैया उसके बारे मे बता दूँगा, पोलीस वाला हू सबकी खबर रखता हू, और
हा भैया आपसे एक बात कहना भूल गया, बुरा मत मानना पर मेरी सलाह है अपनी बहन गुड़िया को अपने साथ शहर मे
रखो यहा गाँव का महॉल बड़ा खराब रहता है, किसी दिन कुछ उन्च नीच ना हो जाए,
विजय- तू कुछ छुपा रहा है लखन, साफ-साफ बता क्या बात है
लखन- भैया बुरा मत मानना पर एक दिन मैंने देखा की मनोहर काका अपना लंड निकाल कर मूत रहा था और गुड़िया
झाड़ियो के पीछे छुप कर उसका मोटा लंड देख रही थी, अब वह बड़ी हो गई है, उसका भी मन अब इन चीज़ो की तरफ जाने लगा है,
विजय- अरे लखन तूने बहुत अच्छा किया जो मुझे पहले से ही इन बतो के बारे मे बता दिया मैं कल ही गुड़िया को यहा के महॉल से शहर ले जाता हू वाहा कुछ सिलाई बुनाई सीख लेगी तो ससुराल मे उसके काम आएगी, दोनो बाते करते हुए गाँव पहुच जाते है और फिर लखन अपने और विजय अपने घर की ओर आ जाता है,
विजय का लंड अभी-अभी बैठा ही था कि घाघरा चोली पहने गुड़िया दौड़ कर आती है और विजय के सीने से लग जाती है, विजय के सीने मे गुड़िया की पपीते जैसी बड़ी-बड़ी ठोस छातियाँ पूरी तरह से चुभने लगती है, विजय गुड़िया को पहली बार इस तरह महसूस कर रहा था और वह गुड़िया को अपने सीने से पूरी तरह कस कर उसके गालो को चूम लेता है,
गुड़िया उसके सीने से अलग होकर उसके सीने पर मुक्के मार कर हस्ती हुई,
गुड़िया-क्या भैया आपने तो कहा था कि दिन मे ही आ जाओगे और आप आधी रात को आ रहे हो मैं कब से आपका रास्ता देख रही थी. विजय शराब के नशे मे पूरी तरह मदहोश था और गुड़िया की गदराई जवानी को पहली बार इतनी गौर से देख रहा था, उसे गुड़िया के मोटे-मोटे दूध इतना मस्त कर रहे थे कि वह अपनी नज़रे अपनी बहन के दूध से हटा ही नही पा रहा था,
गुड़िया- अच्छा भैया मेरे लिए क्या लाए हो, विजय कुर्सी पर बैठता हुआ, पहले यह बता मा कहा है,
गुड़िया- मा तो जमुना काकी के यहा बैठी है,
विजय- देख मैं तेरे लिए ये पायल लेकर आया हू,
पायल देखते ही गुड़िया चहक कर विजय से लिपट जाती है और विजय भी कोई मोका छोड़ना नही चाहता था इसलिए वह गुड़िया को अपनी गोद मे बिठा कर अपने हाथ उसकी भरी हुई कठोर चूचियों पर ले जाकर धीरे-धीरे उसे सहलाता हुआ गुड़िया के गालो को चूमता हुआ, मेरी प्यारी बहना रानी अब तो खुश है अपने भैया से
गुड़िया- हा लेकिन यह पायल तुम्हे ही पहनानी होगी मेरे पैरो मैं,
विजय- उसे खड़ी करके, क्यो नही मेरी रानी बहना ला पैर उठा और फिर विजय अपनी बहन के पैरो को पकड़ कर अपनी जाँघो मे रख लेता है और दूसरे हाथ से उसका घाघरा उसके घटनो तक चढ़ा देता है जिससे एक पैर की गोरी पिंदलिया और दूसरे पैर की मोटी जंघे भी विजय को नज़र आने लगती है, विजय का लंड खड़ा हो जाता है और वह अपने लंड को अपनी पेंट मे अड्जस्ट करना चाहता है पर सोचता है कि गुड़िया देखेगी तो क्या सोचेगी, लेकिन फिर उसे याद आता है कि गुड़िया की चूत भी अब खुजलाने लगी है तभी तो मनोहर काका का लंड छुप कर देख रही थी, विजय उसे पायल पहनाते हुए अपने मोटे लंड को गुड़िया के सामने ही मसल देता है,
जब विजय उसे पायल पहना रहा था तब वह बीच-बीच मे गुड़िया की पिंडलियो और जाँघो का भी जयजा ले रहा था और
जब वह अपनी बहन की गदराई जाँघो को च्छू रहा था तो उसकी जाँघो के गुदज स्पर्श से उसका लंड भनभना चुका था,
गुड़िया अपने दोनो पैरो को नीचे करके अपने घाघरे को घुटनो तक उठा कर अपने भैया को दिखाती हुई,
गुड़िया- देखो भैया कैसी लग रही है मेरी पायल
विजय- बहुत अच्छी लग रही है तेरे पैरो मैं
गुड़िया- अब देखना भैया जब मैं इन्हे पहन कर चलूंगी तब कैसी लगती हू बताना, और फिर गुड़िया अपनी मोटी-मोटी गंद
को मतकती हुई जब पायल पहन कर चलती है तो विजय से रहा नही जाता है और वह उठ कर गुड़िया के पीछे से जाकर उससे कस कर चिपक जाता है और उसे अपनी गोद मे उठा लेता है, विजय अपने हाथो को अपनी जवान बहन की मसल गंद के नीचे दबाए हुए उसे अपनी गोद मे उठा कर जब उसके गालो को चूमने जाता है तभी गुड़िया अपना मूह उसके मूह की ओर कर देती है और विजय के होंठ अपनी बहन के रसीले होंठो से चिपक जाते है और विजय एक पल के लिए अपनी बहन के रस भरे होंठो का रस पीने लगता है, और गुड़िया उसके सीने से कस कर चिपक जाती है, लेकिन फिर अचानक विजय को ध्यान आता है और वह अपनी बहन को नीचे उतार देता है,
क्रमशः...............