घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा compleet

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The Romantic
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घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा compleet

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 14:27

घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा

पुणे में औंध के बंगला सोसाइटी में, कविता शर्मा अपने बंगले की खिड़की पर खडी हो कर गली में बाहर का नज़ारा देख रहीं थीं. कविता एक बहुत की खूबसूरत औरत थीं - गोरा रंग, लम्बा कद, काले लम्बे बाल, . उनका बदन एक संपूर्ण भारतीय नारी की तरह भरा पूरा था. कविता एक जिन्दा दिल इंसान थीं जिन्हें जिन्दगी जी भर के जीना पसंद था. कविता इस घर में अपने हैण्डसम पति विवेक और अपनी बेटी तृषा के साथ रहती थी. तृषा यूनिवर्सिटी में फाइनल इयर की क्षात्र थीं. कविता एक गृहणी थीं. विवेक एक सॉफ्टवेयर कंपनी में ऊंची पोस्ट पर थे. कविता को ये बिलकुल अंदाजा नहीं था की उसकी जिन्दगी में काफी कुछ नया होने वाला है.

कविता के सामने वाला घर कई महीनों से खाली था. उसके पुराने मालिक उनका मोहल्ला छोड़ कर दिल्ली चले गया थे. आज उस घर के सामने एक बड़ा सा ट्रक खड़ा था. उसके ट्रक के बगल में एक BMW खडी थी जिसमें मुंबई का नंबर था. लगता था मुंबई से कोई पुणे मूव हो रहा था. पुराने पडोसी काफी खडूस थे. मोहल्ले में कोई उनसे खुश नहीं था. कविता मन ही मन उम्मीद कर रही थी कि नए पडोसी अच्छे लोग होंगे जो सब से मिलना जुलना पसंद करते होंगे.

कविता ने देखा की उस परिवार से तीन लोगों थे. पति पत्नी शायद 40 प्लस की उम्र में होंगे. उनकी बेटी कविता की अपनी बेटी तृषा की उम्र की लग रही थी.

कविता ने अपने पति विवेक को पुकारा, "हनी, जल्दी आओ. हमारे नए पडोसी आ चुके हैं"

विवेक लगभग दौड़ता हुआ आया और बाहर का नज़ारा देखते ही उसकी बांछे खिल उठीं. बाहर एक हैण्डसम आदमी की बहुत ही सेक्सी बीवी अपने बॉब कट हेयर स्टाइल में एकदम कातिल हसीना लग रही थी. जैसे जैसे वो चलती थी, उसकी चून्चियां उसकी टी-शर्ट में इधर से उधर हिलती थीं. इसी बीच विवेक की नज़रों में उनकी कमसिन जवानी वाली बेटी आई. विवेक का तो लंड उसके पाजामें के अन्दर खड़ा होने लग गया. नए पड़ोसियों की बेटी ने लो-कट टी-शर्ट पहन रखी थी. इसके कारण उसके आधे मम्मे एकदम साफ़ दिखाई पड़ रह थे. उसके मम्मे उसके माँ की भांति सुडौल थे जो एक नज़र में किसी को भी दीवाना बना सकते थे. उसने बहुत छोटे से शॉर्ट्स पहन रखे थे जिससे उसके गोर और सुडौल नितंब दिखाई पद रहे थे.

विवेक सारा नज़ारा अपनी पत्नी कविता ने पीछे खड़ा हो कर देख रहा था. विवेक ने पीछे से कविता को अपने बाहीं में भर लिया. उसके हाथ कविता के दोनों चून्चियों पर रेंगने लगे. कविता मुस्कराई और उसने अपनी गुन्दाज़ चूतडों को विवेक के खड़े लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया. इससे विवेक का खड़ा लंड कविता की गांड की दरार में गड़ने लगा.

कविता ने धीरे से हँसते हुए पूंछा, "डार्लिंग! तुम्हारा लंड किसे देख के खड़ा हो गया?"

विवेक बोला, "दोनों को देख कर. तुमने देखा की उनकी लडकी ने किस तरह के कपडे पहने हैं"?

"वो बहुत हॉट है न? जरा सोचो अपनी तृषा अगर ऐसे कपडे पहने तो?" कविता बोली.

विवेक के हाथ अब कविता के ब्लाउज के अन्दर थे. वो उसकी ब्रा का आगे का हुक खोल रहा था. विवेक कविता की चून्चियों को अपने हाहों में भर रहा था और धीरे मसल रहा था. विवेक को अपनी चून्चियों के साथ खेलने के अनुभव से कविता भी गर्म हो रही थी.

वो बोली, "विवेक डार्लिंग! आह.. मुझे बहुत अच्छा लग रहा है. मुझे खुशी हुई की नए पड़ोसियों को देख कर तुम्हें "इतनी" खुशी हुई... अब मुझे तुम्हें यहाँ बुला कर उन्हें दिखाने का इनाम मिलेगा ना?"

विवेक कविता को जोर जोर से चूमने लगा. उसने कविता का गर्म बदन अपने ड्राइंग रूम में बिछे हुए कालीन पर खींच लिया. उसके हाथ अब कविता के स्कर्ट के अन्दर थे, उसकी उंगलिया उसकी गीली चूत पर रेंग रहीं थी. कविता ने अपनी टाँगे पूरी चौड़ी कर रखीं थीं. हालांकि दोनों के विवाह को 19 साल हो गए थे, पर दोनों आज भी ऐसे थे जैसे उनका विवाह 19 घंटे पहले ही हुआ है - जब भी उन्हें जरा भी मौका मिलता था, चुदाई वो जरूर करते थे.

विवेक ने अपना पजामा उतार के अपने लौंड़े को आज़ाद किया. कविता इस लंड को अपनी चूत में उतार के चोदने के लिए एकदम तैयार थी. कविता को चुदाई बहुत पसंद थी. वो वाकई चुदवाना चाहती थी. पर विवेक को चिढाने के लिए उसने बोला,

"विवेक डार्लिंग... नहीं...तृषा के घर आने का टाइम हो गया है. वो कभी भी आ सकती है"

विवेक ने अपना लौंडा कविता के चूत के मुहाने पर टिका के एक हल्का सा धक्का लगाया जिससे उसके लंड का सुपाडा कविता की गीली चूत में जा कर अटक सा गया. कविता ने अपनी गांड को ऊपर उठाया ताकि विवेक का पूरा का पूरा लंड उसकी चूत के अन्दर घुस सके. विवेक धीरे धीरे अपनी गांड हिलाने लगा ताकि वो अपनी पूरी तरह गरम चुकी बीवी की गांड के धक्कों को मैच कर सके और बोला,

"अच्छा को कि तृषा किसी दिन हमारी चुदाई देख ले...कभी कभी मुझे लगता है कि उसकी शुरुआत करने की उम्र भी अब हो गयी है."

कविता ने अपने पैर विवेक की गांड पर लपेट लिए और अपनी भरी आवाज में बोली,

"अरे गंदे आदमी...यहाँ तुम अपनी बीवी की ले रहा है और साथ में अपनी बेटी को चोदने के सपने देख रहा है...सुधर जा...."

विवेक ने कविता को दनादन फुल स्पीड में चोदना चालू कर दिया. उसका लंड कविता की चूत के गीलेपन और गहराइयों को महसूस कर रहा था. कविता आह आह कर रही थी और अपनी चूत को विवेक के लंड पर टाइट कर रही थी. विवेक को कविता की चूत की ये ट्रिक बेहद पसंद थी. विवेक ने धक्कों की रफ़्तार खूब तेज कर दी और वो कविता की चूत में झड़ने लगा. कविता ने अपने चूत में विवेक के लंड से उसके वीर्य की गरम धार महसूस की और वो भी झड़ गयी. कविता झड़ते हुए इतनी जोर से चिल्लाई की उसकी अवाज नए पड़ोसियों तक भी शायद पहुची हो. दोनों एक दुसरे से लिपटे हुए थोड़े देर पड़े रहे. फिर विवेक के अपना लौंडा उसकी चूत से निकाला उसे होठों पर चूमा और बाथरूम की तरफ चला गया.

कविता ने अपने कपडे ठीक किये और वापस खिड़की पर चली गयी ताकि देख सके की नए पड़ोसी अब क्या कर रहे हैं.

अब माँ और बेटी शायद घर के अन्दर थे और पिता बाहर खड़ा हुआ था. विवेक बाथरूम से लौट आया और उसने कविता के गर्दन के पीछे चूमा. कविता गर्दन के पीछे चूमा जाना बहती पसंद था. कविता ने अपनी भरी आवाज में बोला

"मज़ा आया विवेक. मुझे बहुत अच्छा लगता है जब तुम कहीं भी और कभी भी मेरी लेते हो.."

"ओह यस बेबी...इस शहर का सबसे टॉप माल तो तू है न..."
कहते हुए विवेक ने कविता की गांड पर एक हल्की चपत लगाईं.

कविता हंसने लगी और विवेक की बाहों में लिपटने लगी और बोली,

"थैंक्स डार्लिंग....मैं टॉप माल हूँ..और तुम्हारी बेटी तृषा? क्या तुम उसे हमारे खेल में जल्दी शामिल करने की सोच रहे हो?"

"पता नहीं बेबी....पर मुझे लगता है इस मामले में किसी तरह की जल्दबाजी ठीक नहीं है"

कविता को फिर से अपनी गांड में कुछ गड़ता हुआ सा महसूस हुआ. उसे विवेक का ये कभी भी तैयार रहने का अंदाज़ बड़ा भाता था. कविता जब विवेक से मिली थी तब तक सेक्स के प्रति उसका रुझान कुछ ख़ास नहीं था. पर विवेक के साथ बिठाये पहले 6 महीने में कविता एक ऐसी औरत में तब्दील हो गयी जिसे हमेशा सेक्स चाहिए. वो एक दुसरे के लिए एकदम खुली किताब थे. उन्हें एक दुसरे की पसंद, नापसंद, गंदी सेक्सी सोच सब बहुत अच्छी तरह से पता था. वो दोनों बहुत दिन से अपने १८ वर्ष की बेटी को अपने सेक्स के खेल में लाने की सोच रहे थे. जब भी मौका मिलता, वे दोनों इस विषय में चर्चा करना नहीं चूकते थे. कविता को ये अच्छी तरह से पता था की तृषा का काम तो होना ही है, आज नहीं तो कल ...

विवेक खिड़की से झांकता हुआ बोला,
"अपना नए पडोसी की बॉडी तो एकदम मस्त है और देखने में भी हैण्डसम है. उसे उतार लो शीशे में. किसी दिन जब मैं ऑफिस में हूँ, तुम उसे किसी बहाने से यहाँ बुला कर जम कर चोदना"

कविता आनंदातिरेक से भर उठी. उसकी एक और कल्पना थी की वो अपने पति विवेक के अलावा किसी गैर मर्द के साथ यौन सुख का आनंद ले. विवेक को ये बात पता थी. वो इस बारे में अक्सर बात करते थे. वो सेक्स करने के दौरान गैर मर्द वाला विषय अक्सर ले आते थे. ऐसा करने से इससे उन्हें चुदाई में अतिरिक्त आनंद मिलता था.

कविता और विवेक दोनों एक दुसरे के पसंद अच्छी तरह समझते थे. शायद यही उनके खुश वैवाहिक जीवन का राज था.

उनके पडोसी का सामन अब तक अनलोड हो चुका था. वो मूविंग ट्रक के ड्राईवर से कुछ बात कर रहा था. उसने एक पतली टी-शर्ट और टाइट शॉर्ट्स पहन रखे थे. विवेक ने कविता के कान के पीछे का हिस्सा चूमते हुए पूछा,

"कविता, उसके टाइट शॉर्ट्स में उसका सामान देख रही हो? मुझे पक्का पता है कि तुम उसका लौंडा मुंह में लेकर चूस डालोगी न? सोचो न उसका लंड तुम्हारे मुंह में अन्दर बाहर हो रहा है."

कविता गहरी साँसे ले कर कुछ बडबडायी. विवेक ने उसकी स्कर्ट उठा दी और अपना लौंडा उसकी गांड की दरार में रगड़ने लगा. कविता आगे झकी और अपने चूतडों को उठाया. विवेक ने अपना लंड कविता की चूत के छेद पर भिड़ाया और एक ही झटके में पूरा घुसेड़ दिया. कविता इस अचानक आक्रमण से सिहर सी उठी. उसकी सीत्कार से पूरा कमरा गूंज उठा.

कविता बोली,
"एस..विवेक सार्लिंग...चोदो मुझे...हाँ मुझे पडोसी का लंड बड़ा मजेदार दिख रहा है....मैं किसी दिन जब तुम ऑफिस में होगे ...उसे यहाँ बुलाऊंगी ...और जम के चुद्वाऊंगी.....आह...आह...पेलो...."

जल्दी ही विवेक कविता की चूत में झड गया. कविता को विवेक से चुदना और साथ में पडोसी को ले कर गंदी गंदी बात सुनने में बड़ा मज़ा आया.

विवेक ने अपना लंड कविता की चूत से निकाल लिया और ऊपर शावर लेने चला गया. ऊपर से बोला.
"कविता, तुम जा कर हेल्लो हाय कर के आ जाओ. और उन्हें शाम को बाद में चाय नाश्ते के लिए इनवाईट लेना"

बाद में, विवेक जब शावर से निकला, उसने देखा कविता वहां खडी हो कर कपडे उतार रही थी, नीचे ब्रा नहीं पहनी थी.

"ओह... तुम्हारी ब्रा को क्या हुआ जानेमन?" विवेक ने पूछा.

"वो मैंने पड़ोसियों से मिलने जाने के पहले उतार ली थी." कविता ने आँख मारते हुए बोला.

"ह्म्म्म..तो पड़ोसियों ने तुम्हारे शानदार मम्मे ठीक से ताके की नहीं" विवेक ने पूछा.

"शायद.... एनी वे, बंसल्स यानी की हमारे नए पडोसी शाम को 6:00 बजे आयेंगे. ओह विवेक वो बहुत अच्छा आदमी है...अब तुम देखते जाओ..वो जिस तरह से मुझे तक रहा था..मुझे लगता है की मेरा बरसों पुराना सेक्सी सपना पूरा होने वाला है..."
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बंसल्स ठीक शाम 6:00 बजे पहुँच गए. सब ने एक दुसरे से परिचय किया. हर आदमी एक दुसरे को टाइट हग कर रहा था. तृषा वहां खड़े हो कर आश्चर्य से इन सब का मिलाप देख रही थी. कविता को जब गौरव ने हग किया तो वो इतना टाइट हग था की कविता उसका मोटा और लम्बा लंड अपने बदन पर गड़ता हुआ महसूस कर सकती थी. गौरव ने अपना हाथ कविता की गांड पर रखा और हलके से मसला. कविता ने घूम कर इधर उधर देखा - विवेक रेनू लगभग उसी हालत में थे. सायरा और तृषा पीछे के दरवाजे से निकल रहे थे. कविता ने गौरव से नज़रें मिलाईं और मुस्कराई और फुसफुसाई
"ध्यान से गौरव...जरा ध्यान से"
इस बात का मतलब था की मेरी गांड से खेलो जरूर पर तब जब कोई देख न रहा हो.

सब लोगों ने ड्राइंग रूम पार कर के पेटियो में प्रवेश किया. कविता ने वहां सैंडविच, समोसे, चाय वगैरह लगवा रखे थे. विवेक और कविता एक दुसरे के देख कर बीच बीच में मुस्करा लेते थे. विवेक ने ध्यान दिया की उनकी बेटी तृषा एक वहां अकेली लडकी थी जिसने ब्रा पहनी हुई थी.

सायरा हर बहाने से अपने शरीर की नुमाइश कर रही थी. उसे पता था की विवेक उसे देख देख के मजे ले रहा है.

गौरव की पत्नी रेनू काफी खुशनुमा स्वभाव की थी. तब वो झुक कर खाना अपनी प्लेट में डाल रही थी, उसके लो-कट ब्लाउज से उसके मम्मे दिखते थे. विवेक को यह देख कर बड़ा आनंद आ रहा था. वैसे रेनू और कविता दोनों की दिल्ली की लड़कियां थीं. शायद इसी लिए इस मामले में दोनों काफी खुले स्वभाव की थीं.

सब लोग नाश्ता खाते हुए एक दुसरे से बात कर रहे थे. सायरा और तृषा जल्दी से गायब हो गए. शायद वे दोनों तृषा के रूम में बैठ कर कुछ मूवी देख रहे थे. कविता गौरव को अन्दर ले कर गयी और उसे दिखाने लगी की उनका इम्पोर्टेड स्टोव कैसे काम करता है. रेनू विवेक को देख कर मुस्कुरा रही थी.

"सो ये मोहल्ला मजेदार है की नहीं विवेक. हम जब मुंबई से मूव हो रहे थे, तो वहां के पड़ोसियों को छोड़ने का बड़ा अफ़सोस था हमें. हम उनसे काफी करीब भी आ चुके थे"

रेनू ने पूछा.

विवेक मुस्कराने हुए रेनू के मस्त उठे हुए मम्मे देख रहा था. उसने उसे देखा और जवाब दिया,
"मुझे लगता है आप लोगों के आने से मोहल्ले में नयी रौनक आ जायेगी."

रेनू मुस्कराई और बोली,
"ये मुझे एक इनविटेशन जैसा लग रहा है विवेक. जब हम लोग थोडा सेटल हो जाएँ, तुम और कविता हमारे साथ एक शाम गुजारना."

विवेक बोला,
"ओह उसमें तो बड़ा मज़ा आएगा. हम लोग आपके मुंबई के पड़ोसियों वाले खेल भी खेल सकते हैं उस दिन"

"रियली? क्या तुम और कविता वो वाले खेल खेलना चाहोगे?" रेनू ने चहकते हुए पूंछा.
रेनू मनो ये पूँछ रही हो, "अरे विवेक तो तुम्हें मालूम भी है की हम कौन सा खेल खेल खेलते हैं वहां?"

विवेक मन ही मन मुस्कराते हुए मना रहा था कि भगवान् करे तुम उसी खेल की बात कर रही हो जिसमें उसे रेनू की स्कर्ट के अन्दर जाने का मौका मिले.

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Re: घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 14:30


वह आँख मारते हुए बोला

"रेनू, अगर तुम सिखाने को तैयार को वो खेल तो हम लोग सीखने में बड़े माहिर हैं"

ऐसी गर्म बातें सुनते ही विवेक का लंड न चाहते हुए भी थोडा टाइट हो गया. रेनू ने ये बात तुरंत नोटिस की. वो अपने होठों को होठों से चबाते हुए मुस्कराई और विवेक की तरफ थोडा झुक गयी. उसका बलाउज थोडा खुल सा गया और विवेक को उसकी गुलाबी और मस्त टाइट चून्चियों का मस्त नज़ारा दिख गया. उसने चून्चियों का अपनी आँखों से सराहते हुआ कहा,

"हमको लगता था की हमें दोस्ती करने में थोडा वक़्त लगेगा. पर तुम लोगों से मिल कर लगता है की मैं गलत था."

विवेक और रेनू की नज़रें एक दुसरे से मिलीं. विवेक किसी भी लडकी से इतनी जल्दी नहीं घुला मिला था. दोनों को बहुत अच्छी तरह से पता था की उनके दिमाग में क्या खिचड़ी पाक रही थी. विवेक रेनू को जल्दी से जल्दी चोदना चाह रहा था. रेनू को ये बात बहुत साफ़ दिखाई पद रही थी. और सबसे बड़ी बात तो ये थी की विवेक को रेनू के स्कीम बड़ी अच्छे तरह से पता थी.

विवेक मुस्कराया और बोला,
"मैं हमारे खेल खेलने का बेसब्री से इंतज़ार कर रजा हूँ."

"वो तो ठीक है मिस्टर विवेक, पर तुम्हारी बेगम कविता का क्या"
रेनू ने पूछा.
"मुझे लगता है की उसे भी ये खेल पसंद आएगा, हम दोनों ने कुछ करते हुए इस बारे में कई बारे में बात करी है" , विवेक बोला.

"कुछ करते हुए ..हाँ.. पर क्या करते हुए?" रेनू ने उसे चिढाया.

"वही जो मैं तुम्हारे साथ करना चाह आहा हूँ." विवेक ने अंततः बोल ही डाला. उसने ये मान लिया था की गौरव को इससे कोई समस्या नहीं है.

रेनू ने विवेक के खड़े लंड उसके शॉर्ट्स के अन्दर देखा और एक सिहरन भरते हुए बोला,
"अजीब सी बात है. अभी अभी खाया है पर फिर से कुछ खाने का दिल करने लगा"

विवेक हंसने लगा और बोला,
"मुझे भी. क्या हमने कुछ और खाने के लिए तुम लोगों के सेटल होने का इंतज़ार करना पड़ेगा?"

"किस बात के लिए विवेक" रेनू ने उसे फिर से चिढाते हुए पूछा.

विवेक को रेनू का ये चिढाने का अंदाज़ बड़ा भाया. वो बोला

"वही बात जिसमें मुझे तुम्हारे सारे ओपेनिंग्स भरने का मौका मिले."
"ओह..बात तो ये है की मैं तो बिलकुल तैयार हूँ, अभी के अभी.. पर तुम कल सुबह हमारे यहाँ क्यों नहीं आ जाते...हम मिल कर अपने खेलों की प्रक्टिस जम कर करेंगे ..."

"किस वक़्त""

"दस बजे? हमारा दरवाजा खुला छोड़ देंगे. बस आ जाना. और विवेक साहब...मुझे तुम्हारी ओपेनिंग्स भरने वाला खेल बहुत पसंद...बहुत..."

बाहर अँधेरा होने लगा था. वो दोनों वहां बैठ कर बात कर रहे थे. दोनों खड़े होते और उन्हें हाथ एक दूसरे के शरीर पर चल रहे थे मानों एक दुसरे में कुछ ढूंढ रहे हों. विवेक के हाथ रेनू की फिट गांड पर रेंग रहे थे, वो बीच बीच में उसके ब्लाउज में हाथ डाल कर उसके मम्मे मसल लेता. तो कभी पैंटी मन डाल कर उसकी चूत में उंगली डाल देता. रेनू विवेक के शॉर्ट्स में हाथ डाले बैठी थी और उसके खड़े लंड को अपने मुलायम हाथों से सहला रही थी. ये सोच कर की कल ये लंड उसकी चूत में होगा उसे एक अजीब सी सिहरन सी हो रही थी.

इसी बीच किसी के आने की आवाज ने उन्हें चौंका दिया और वो दोनों एक दम से अलग दूर हो कर खड़े हो गए थे मानों उनके बीच कुछ हुआ ही न हो.

गौरव और कविता वापस आ गए थे. विवेक ने देखा की कविता उसकी तरफ देख कर मुस्करा रही थी. शायद वो सोच रही थी की उसके अनुपस्थिति में विवेक और रेनू के बीच क्या हुआ होगा. विवेक भी ये सोच रहा था की गौरव ने कविता के साथ क्या क्या किया होगा.

बाद में उस रात जब विवेक और कविता बिस्तर पर लेटे, कविता बड़ी गर्म थी. वो एक मिनट के लिए विवेक का लंड चूसती, तो दुसरे ही पल विवेक का मुंह अपनी चूत में भिड़ा के अन्दर खींच देती. फिर अगले ही पल वह विवेक को नीचे लिटा कर उसके ऊपर चढ़ गयी और लगी उसे दनादान छोड़ने. कविता को खुद पता नहीं था की वो चोद चोद कर कितनी बार झडी. जब वो आखिरी बार झडी तो वो विवेक के ऊपर से जैसे साइड में बिस्तर पर कटे पेड़ की तरह गिर पडी.

"आज की चुदाई बड़ी ही मजेदार है मेरी जान."

विवेक थोडा ऊपर खिसका और कविता की चून्चियों से खेलते हुए बोला,
"मुझे लगता है की तुमने आज गौरव के साथ थोड़ी तो मौज की है पर जब तुम लौटे तो तुम्हारे चेहरे पर एक अजीब सा लुक था. हैं ना?"

कविता थोड़ी हिचकिचाई उसने अपने हाथों से विवेक का मुलायम पद गया लौंडा पकड़ लिया और उससे तब तक खेला जब तक की वो फिर से खड़ा बहिन हो गया. वो बोली,
"गौरव मुझे लाइन मार रहा था जोरों से. जब मैं उसे अपना स्टोव दिखा रही थी, वो पीछे खड़ा था. वो अपने हाथ मेरे हाथों के नीचे से ला कर मेरे मम्मे सहलाने लगा. और उसने मेरी गर्दन के पीछे किस भी किया."

"और तुमने क्या किया बेबी डॉल?"

"पहले तो मैं वह चुपचाप खडी रही. मुझे विशवास नहीं हो रहा था की ये सब वास्तव में हो रहा है..... फिर मैं वापस उसकी तरफ घूमी....तुम्हें तो पता ही है की मैं ऐसे समय ब्रा नहीं पहनती ताकि मेरे तगड़े मम्मों की जम के नुमाइश कर सकूं...उसने मेरे मम्मों को देखा..और बोला - कविता तुम्हारे मम्मे तो लाजवाब हैं."

"इसके पहले की मैं कुछ कहती वो मेरे दोनों मम्मे मसलने लगा ...मैं कुछ बुद्बुदाई..मुझे बड़ा आनंद आ रहा था....उसने मेरा ब्लाउज खोल दिया और मेरे मम्मों को एकदम नंगा कर के मसलने लगा ...थोड़ी देर में मैने उसका हाथ हटा दिया और ब्लाउज के बटन लगा दिए."

"तुम्हारा मन नहीं हुआ की गौरव को वहीं के वहीं चोद डालो कविता मेरी जान!"

कविता विवेक का लौंड़े को जोर से हिला रही थी. उसने विवेक की आँखों में ऑंखें डाल के बोला,

"विवेक, प्लीज बुरा मत मानना पर सच्चाई ये है की मेरा बस चलता तो उसे वहीँ पटक कर चोद देती उसे. अगर तुम दोनों दुसरे कमरे में नहीं होते तो भगवान् न जाने आज मैं क्या कर बैठती"

"ओह, मुझे मालूम है बेबीडॉल की तू क्या करती. तू अपनी टाँगे फैला कर गौरव का बड़ा और मोटा लौंडा अपनी प्यासी चूत में गपाक से डाल लेती ना? वैसे लगता है अब समय आ गया की हम अपना इतना पुराना सपना पूरा करें... गौरव और रीता स्वैप करने में पूरी तरह से इंटरेस्टेड हैं..तू क्या बोलती है मेरी जान? "

कविता पूरे उन्स्माद में भर चुकी थी. वो विवेक के ऊपर चढ़ गयी और उसका लौंडा अपनी खुली चूत में भर कर उसे जम के छोड़ने लगी. जैसे वो ऊपर ने नीचे आती उसकी आज़ाद चुन्चिया हवा में उछल जाती थीं. उन दोनों की ये चुदाई बड़ी की स्पेशल थी क्योंकि पहली बार वो अपनी चुदाई में औरों को सामिल करने के काफी करीब थे.

कविता ने अपनी हस्की आवाज में पूछा,
"क्या तुम पड़ोसियों के साथ ये सब करना चाहोगे? ओह..मुझे तो पहले से पता है की तुम रेनू को चोदना चाहते हो. मुझे पता है की तुम मेरे अलावा और औरतों को चोदते हो और मुझे इससे कोई समस्या नहीं रहे है. तुमने मुझे हमेशा खुश रखा है...पर पड़ोसियों के साथ का ये सब तुम्हें ठीक रहेगा विवेक? गौरव ने मुझे बोल ही रखा है की वो कहीं और मिल कर मेरी लेना चाहता है"

"ओह तो ये बात है बेबी डॉल! लगता है हमारे पडोसी समय बर्बाद करने में बिलकुल विश्वाश नहीं रखते हैं"

विवेक ने भी कविता को बताया कि इस दौरान रेनू और उसके बीच में क्या हुआ. विवेक कविता की चूत में अपना लंड उछल उछल कर डालने लगा. कविता को विवेक का लौंडा अपनी चूत के अन्दर फूलता हुआ सा लगा. विवेक धीमे धीमे से छोड़ने लगा और एक पल बाद ही जोर से चोदने लगता. पूरा कमरा चुदाई की मस्की गंध से भर सा गया. कविता ने झुक कर विवेक का लंड गपागप अपनी चूत में जाते देखा और विवेक से पूछा,
"तो तुम मानसिक रूप से उस बात के लिए बिलकुल तैयार हो की गौरव मुझे छोड़ दे? तुम्हारा रेनू को चोदना मुझे तो बड़ा अच्छा लगेगा....पर तुम गैर मर्द की मेरे साथ चुदाई देख सकोगे?"

"अगर तुम गौरव से चुदना चाह रही तो मुझे इससे कोई समस्या नहीं है बेबी डॉल. मेरी तो ये सब करने की वर्षों की तमन्ना थी."

"ओह शिट विवेक... मैं तो उस समय के लिए तरस रही हूँ जब गौरव मेरी ले रहा होगे और तुम मुझे उससे चुदते हुए देख रहे होगे. गैर मर्द से चुदने के विचार से मुझे मजा आने लगता है"

विवेक ने कविता को अपने रेनू के साथ के अनुभव को अब विस्तार में बता रहा था और उसे चोद रहा था. इस समय कविता को पता चला की उन्हें पड़ोसियों से मिलने अगली सुबह जाना है,

"ओह यस....तुम रेनू को जोर से चोद देना विवेक....ओह...आईईई...ई..ई.....मैं गयी रे... " कहते हुए कविता झड गयी.

दोनो एक दुसरे की बाहों में लिपट कर नंगे ही सो गए. उन्हें अगले दिन की सुबह का इंतज़ार था. उन्हें पता था की वो सुबह उनके जीवन में कई नए आयाम ले कर आयेगी.

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Re: घर में मजा पड़ोस में डबल-मजा

Unread post by The Romantic » 11 Dec 2014 14:31

कविता और विवेक नंगे बदन एक दुसरे की बाँहों में समाये साड़ी रात सोते रहे. दोनों ने पिछली रात एक दुसरे को चोद चोद कर इतना थकाया था की जब वो एक बार सोये तो सुबह कब हुई ये पता नहीं चला. विवेक की आँख 9:30 पर खुली और वो तुरंत ब्रश करने चला गया. वापस आकर कविता के होठों पर होंठ रखे और धीरे से बोला, "बाय". विवेक अपने सामने के घर में कल ही शिफ्ट हुए पड़ोसी की बीवी रेनू से मिलने जा रहा था.

कविता को विवेक के वापस आने के लिए लगभग दो घंटे इंतज़ार करना पड़ा. विवेक को देखते ही कविता समझ गयी को वो रेनू को जम कर छोड़ कर आया है. विवेक ने उसे साड़ी आपबीती सुनाई. उसने बताय की जब वो उसके घर पहुंचा रेनू बिस्तर पर नंगी लेट कर उसका इंतज़ार कर रही थी. दोनों ने एक दुसरे पहले तो चूस चूस कर पानी निकाला फिर चोद चोद कर.

"कविता उन्होंने हमें शाम को ड्रिंक्स के लिए बुलाया है. तुम अभी भी राजी हो ना?"

कविता हंसी और बोली,
"अरे ये भी कोई पूछने की बात है... ऐसा मौका छोड़ने का तो सवाल ही नहीं उठता."

"अच्छा एक बात - रेनू पूछ रही थी की क्या तुम्हें औरत के साथ सेक्स पसंद है"

कविता बोली ... "मुझे लगता है की ये कला भी सीखने का वक़्त आ ही गया है...."

दोनों ने बाकी का दिन शाम का इंतज़ार करते हुए ही गुज़ारा. शाम को जब वो पड़ोसियों के लिए निकलने ही वाले थे, उसके घर की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो देखा पड़ोसियों की बेटी सायरा खडी थी.

"मैंने सोचा की मैं तृषा को यहाँ कंपनी दूंगी, ताकि आप दोनों को मेरी मम्मी और पापा को ठीक से जानने का पूरा मौका मिले."

सायरा अन्दर आई. वो मिनी स्कर्ट और लो कट ब्लाउज पहने हुए थी. कविता अभी भी ऊपर तैयार हो रही थी. विवेक ने सायरा की चून्चियों को घूरा और बोला,

"ये बड़ी अच्छी बात है सायरा.. ये तो बड़ा अच्छा होगा अगर तुम और तृषा अच्छी सहेलियां बन जाओ.."

सायरा मुस्करा रही थी उसे अच्छे तरह पता था की विवेक इस समय उसके चुन्चियों को मजे ले कर घूर रहा है. वो बोली,
"मुझे पूरा यकीन है की हम दोनों बेस्ट सहेलियां बनेंगे ... क्या आप मेरे दोस्त बनेंगे
विवेक अंकल? मुंबई में मेरी कई सहेलियों के पिता लोग मेरे बड़े अच्छे दोस्त थे”

विवेक मन ही मन सोच रहा था की सायरा क्या उसे हिंट दे रही थी कि मुंबई में वो अपनी सहेलियों के पिताओं के साथ मौज कर रही थी. इस ख़याल से ही उसका लंड खड़ा हो गया. उसने सायरा की आँखों में आँखें डाल कर बोला,
"मुझसे दोस्ती करोगी सायरा?"
"ओह.. बिलकुल"

उसी समय कविता सीढ़ियों से उतारते हुए नीचे आई. उसकी ड्रेस बहुत ही सेक्सी थी, विवेक और सायरा जैसे कविता को घूरते जा रहे थे. तृषा कविता के पीछे पीछे आई और कविता की ड्रेस का बिलकुल ध्यान न देते हुए उसने सायरा का हाथ पकड़ा और अपने ऊपर कमरे में चली गयी.

कविता और विवेक हाथों में हाथ डाले जब पड़ोसियों के यहाँ पहुचे, गौरव और रेनू दोनों ने बड़े ही खुशी से उसका दरवाजे पर उनका स्वागत किया. जल्दी गौरव ने सबको ड्रिंक्स बना दिए. इस परिस्थिति में सब के लिए ड्रिंक्स जरूरी था. जैसे ही थोडा सरूर चढ़ा, वो चार लोग एक दुसरे के साथ और भी खुलते गए. गौरव के चुटकुले और विवेक के जवाबी चुटकुले नॉन-वेज होते चले जा रहे थे. लड़कियां उन गंदे चुटकुलों पर जम के ताली बजा बजा कर हंस रही थीं. विवेक और गौरव एक दुसरे की बीवियों के साथ खड़े थे. थोड़े समय में ही दोनों जोड़ियाँ एक दुसरे से थोडा दूर होती गयीं. एक दुसरे के कानों में फुसफुसाना शुरू हो गया. एक दुसरे को छूने का छोटा से छोटा मौका भी कोई छोड़ नहीं रहा था. सारा मामला बिलकुल ठीक दिशा में जा रहा था. कुल मिला कर गौरव के बनाए हुए ड्रिंक्स जैसे बिलकुल ठीक काम कर रहे थे. विवेक ने कविता को चेक किया. कविता के मम्मे आनंद में कड़े हो गए थे, उसके गाल शायद थोडा नर्वस होने की वज़ह से लाल हो गए थे.

कविता भी विवेक को बीच बीच में देख लेती थी. वैसे उसे विवेक और रेनू के बारे में कुछ सोचने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि वो दोनों तो आज सुबह ही अपनी चुदाई की शुरुआत कर चुके थे. बात ये थी की उसके और गौरव के बीच की बात कुछ आगे बढेगी या नहीं?

गौरव शायद कविता की इस अदृश्य उलझन को भांप गया. वो बोला,

"कविता तुमने अपने घर में मुझे अपना स्टोव दिखाया था. आओ मैं तुम्हें अपना होम थिएटर रूम दिखाता हूँ.”

कविता तो मानों पहले से ही तैयार बैठी थी. गौरव ने उसका हाथ अपने हाथों में लिया और बढ़ गया. अब ध्यान देने की बात ये है कि होम थिएटर रूम देखने का निमंत्रण विवेक और रेनू को क्यों नहीं मिला. शायद गौरव और कविता जल्दी से जल्दी रेनू और विवेक से बराबरी करना चाहते थे. क्योंकि सुबह कि चुदाई के बाद विवेक और रेनू का स्कोर इनके मुकाबले में 1-0 था. जैसे ही वे दोनों वहां से निकले, रेनू ने दीवाल पर अलग हुआ स्विच आन कर दिया. वो विवेक की तरफ मुडी और मुस्कराते हुए बोली,

"अब हम गौरव और तुम्हारी प्यारी और मासूम बीवी के बीच जो कुछ भी होगा वो सारा हाल इस स्पीकर पर सुन सकेंगे."

उन्हें स्पीकर पर दरवाजा खुलने की आवाज आई और फिर गौरव और कविता के परों की आहट सुनाई पडी. साड़ी चीजें बिलकुल साफ़ सुनाई पड़ रही थीं. उन्होंने क्लिक की आवाज सुनी, लगता है गौरव ने दरवाजा लॉक कर लिया हो. कविता मुंह दबा कर हंस रही थी. उसकी दिल की धडकनें जोर से चल रही थीं. गौरव ने लाइट ऑफ कर के वहां अँधेरा कर दिया. कविता ने जोर से सांस भरी और उई की अव्वाज निकाली क्योंकि गौरव अपना हाथ उसकी स्कर्ट के अन्दर डाल कर उसकी चूत सहला रहा था. कविता ने अपने पैरों को फैला दिया ताकि गौरव उसकी चूत को मजे से सहला सके और बोली,
"मौका मिला की की दरवाजा बंद और बत्ती बंद और काम चालू गौरव जी?"

"अरे मै तो तुम्हारे लिये कब से कितना बेकरार हूँ, बस मौका मिलने की ही देर थी जानेमन."

"ओह नो .... ओह... नो ..... बड़ा मजा आ रहा है, तुम जिस तरह से मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी रगड़ रहे हो.... ओह गौरव ... तुम तो बड़े खिलाडी निकले..आह्ह..."

"आओ यहाँ इस काउंटर पर बैठो, ताकि मैं तुम्हारी बुर चाट सकूं कविता."

बाहर विवेक और रेनू स्पीकर पर चलने की आवाज फिर गीली चीज चाटने की आवाज और साथ में कविता के सिहरने की आवाज सुन रहे थे.

"ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ... यस गौरव... बहुत अच्छे ... कितना मजा आ रहा है..... ओह शिट गौरव लगता है की झड जाऊंगी... फक......."

भरी साँसों के आवाजों से सारा कमरा भर उठा. थोडी समय बाद कविता एक धीमी से चीख मार कर शांत हो गयी. कविता बोली,
"अब कुछ खाने का मेरा टर्न गौरव.... चलो खोलो और दिखाओ यहाँ क्या छुपा रखा है ..."

और इसके बाद स्पीकर पर गौरव के लंड के ऊपर कविता का गीले मुंह की आवाजें सुनाई दीं. गौरव को मजा लेने की आवाजें भी बीच में आ रही थीं.

और कुछ ही छड़ों बाद

"मैं तुम्हारी बुर चोदना चाहता हूँ कविता... अभी के अभी..."

"यस .... जल्दी से.... ओह यस ...मजा आ रहा है ..... सो गुड. ओह तुम्हारा बड़ा लंड बड़ा प्यारा है गौरव... पेल दो इसे .... छोड़ दो मुझे...मुझे चोदो....... फक...फक...”

थोड़ी देर में जब आवाजें आनी बंद हो गयीं, गौरव बोला,
"ओह कविता, कपडे वापस पहनने की जरूरत नहीं है. चलो वापस विवेक और रेनू के पास चलते हैं... मुझे पूरा यकीन है की वो दोनों ऐसा की कुछ कर रहे होंगे"

"मुझे भी ऐसा जी लगता है"

जब गौरव और कविता नंगे बदन वापस विवेक और रेनू के वापस आये, रेनू फर्श पर फैले कालीन पर पूरी तरह से नंगी लेटी हुई थी. उसने अपने पैर पूरी तरह से फैला रखे थे. विवेक उसकी दोनों लम्बी और सुन्दर टांगों के बीच में बैठा उसकी चूत को अपने मोटे लंड से धीरे धीरे धक्के लगाता हुआ छोड़ रहा था. दोनों काफी आवाजें निकाल रहे थे. कविता ने विवेक को दूसरी औरत को चोदते हुए कभी नहीं देखा था. ये नज़ारा देख कर उसके बदन में जैसे ऊपर से नीचे तक चीटियाँ रेंग गयीं और उसकी चूत फिर से चुदाई के लिए बिलकुल तैयार हो गयी.
गौरव को तो बस इशारा ही काफी था. उसने खड़े खड़े ही पीछे से अपना लंड कविता की बुर में डाल दिया और उसे तब तक चोदा जब तक दोनों झड नहीं गए.

सबने बाद में बैठ कर बड़े ही आराम से डिनर खाया. खाने की टेबल पर बैठ कर उन्होंने खूब सारी बातें की. ध्यान देने वाली बात ये थी की सारी की सारी बातें सेक्स से ही सम्बंधित थीं और चारों लोग डिनर टेबल पर पूरी तरह से नंगे बैठ कर खाना खा रहे थे. खाना ख़तम कर के जब वे वापस उस कमरे में लौटे तो रेनू कविता के साथ चल रही थी. रेनू ने कविता की नंगी कमर को अपने हाथो में भर कर पूछा,
"तुमने कभी किसी औरत के साथ सेक्स किया है कविता?"

"अभी तक तो नहीं ... पर ऐसा लगता है की आज इस चीज पर भी हाथ साफ कर ही डालूँ..पर मुझे पता नहीं है की कैसे करते हैं..."

"अरे कभी न कभी तो जब आदमी के साथ किया होगा तो पहली बार ही हुआ होगा न? करना चालू करो तो बाकी सब अपने आप हो जाएगा..देखो, पहले मैं तुमारी बुर चाटना शुरू करती हूँ...उसके बाद तुम जैसा मैं तुम्हारे साथ करू वो तुम्हें अगर तुम्हें ठीक लगे तो मेरे साथ करते जाना.. बस मजा आना चाहिए..”

विवेक और गौरव दोनों लोग अपने हाथ में स्कॉच का जाम ले कर बैठ गए. ऐसा लग रहा था की जैसे लड़के लोग नाईट क्लब में बैठ कर दारू पीते हुए कोई शो देख रहे हों. रेनू ने कविता को सोफे के इनारे पर बिठा कर लिटा दिया और अपने तजुर्बेकार मुंह से कविता की बुर को चाटने लगी. रेनू की जीभ कविता की बुर के बाहर की खल के ऊपर थिरकती और दुसरे ही पल वह उसके बुर के दाने को चाट लेती, अगले पल वह कविता की बुर के छेद में अपनी जीभ घुसेड कर जैसे उसे थोडा सा अपनी जीभ से छोड़ सा देती थी. कविता उन्माद में सिस्कारिया भर रही थी. रेनू धीरे धीरे बुर के दोनों तरफ की खाल चाट रही थी और उसने अपने एक उंगली कविता की बुर में डाल राखी थी और दूसरी उंगली उसके गांड में. कविता के लिए यह अनुभव एकदम नया था और वो इसे जी भर के मजे ले कर ले रही थी. कविता अपना बदन एक नागिन की तरह उन्माद में घुमा रही थी. वो उन्माद में चीख रही थी. इतना आनंद उसके बाद के बाहर हो गया और एक चीत्कार के साथ ही उसने रेनू की जीभ पर अपनी बुर का रस उड़ेल दिया. कविता का बदन शिथिल पद गया. वह रेनू के कन्धों पर अपने पर डाले हुए सोफे पर टाँगे फैला कर नंगे पडी हुई थी.

कविता ने लेटे लेटे अपनी बुर की तरफ देखा. रेनू ने अपना चेहरा उसकी दोनों टांगों के बीच से ऊपर उठा. दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्काये. कविता उठी और रेनू को पकड़ कर उसके होठों से होठों का चुम्बन दिया. कविता ने रेनू के होठों पर लगा हुआ अपनी ही बुर का रस चाट चाट कर स्सफ कर दिया.

"ये तो वाकई बड़ा मजे वाला था रेनू... थैंक यू डार्लिंग. मुझे लगता है की मुझे भी बदले में कुछ करना चाहिए”

कविता रेनू को लिटा कर उसके ऊपर 69 का पोज बना कर लेट गयी. दोनों लड़कियां एक दुसरे की चूत मस्त हो कर चाट रहीं थीं.

गौरव के पास क्यूबा से लाये हुए सिगार थे. उसने एक गौरव को दिया और एक खुद के लिए रखा. दोनों लड़कियों के पास गए. गौरव ने रेनू की चूत में लगभग 2 इंच सिगार घुसेढ़ दिया. विवेक ने भी इसकी पूरी नक़ल करते हुए कविता की बुर में सिगार दाल दिया.
रेनू बोली, “क्या तुम लोगों के लंड अब इतना थक गए हैं की हम लोगों को अब सिगार से चुदना पड़ेगा”

“अरे नहीं मेरी जान, ये तो हम तुम्हें चोदने के पहले तुम्हारी चूतों को थोडा धूम्रपान करा रहे हैं” कहते हुए गौरव ने सिगार दुसरे सिरे से जलाने की कोशिश की. पर वो जला नहीं क्योंकि सिगार को फूंकने की जरूरत होती है. और रेनू की चूत में शायद फूंकने का हुनर नहीं था.

कविता ने जोर से डांट लगाई, “अरे ये आग हटाओ यार, हम लोग जल गए तो.. पागल हो क्या तुम लोग”

दोनों ने तुरंत अपनी बीवियों की आज्ञा का पालन करते हुए सिगार चूत से निकाल कर जला लिया. सिगार चूत के रस से लबालब था तो दोनों को सिगार पीने में ख़ास ही मज़ा आ रहा था. कमरे में चूत के रस के साथ शराब और सिगार के धुंएँ की गंध भर गयी.

कविता और रेनू एक दुसरे की चूत चूसते हुए लगता है झड़ने ही वाले थे. विवेक बाथरूम के लिए गया. जब वो वापस लौटा, उसने देखा की गौरव चेयर पर बैठा है और कविता उसकी बाहों में बाहें डाले उसके ऊपर बैठी हुई है. गौरव का लंड उसकी चूत में घुसा हुआ है. कविता धीरे धीरे ऊपर नीचे हो रही मानों घोड़े की सवारी कर रही हो. विवेक मुस्काराया और कविता के पीछे जा कर खड़ा हो गया. कविता के चूतर गौरव के मोटे लंड के ऊपर उछालते देख कर उसका लंड फटाक से खड़ा हो गया. रेनू को समझ आ गया की विवेक की मन्सा क्या है. उसने ड्रावर खोली और उसी KY जेली की ट्यूब निकाली और आँख मारते हुए विवेक को थमा दी. विवेक ने ट्यूब से क्रीम अपने लौंडे पर लगाई और ढेर सारी क्रीम उंगली में लगा कर कविता की गांड के छेद पर लगाने लगा. जैसे ही ठंडी क्रीम कविता की गांड में लगी, कविता चौंक कर उचक गयी. पीछे मुड़ कर देखा तो समझ गयी की विवेक के गंदे दिमाग में की योजना है. वो गौरव के लौंडे को चोदते हुए हाँफते हुए बोली,

"हाँ विवेक.... जल्दी करो... मैंने इस पोज के के बारे में कितना सोचा हुआ है... आज वो सपना हकीकत में बदलने जा रहा है....कम ऑन विवेक...गो फॉर इट..."

रेनू आगे आई और विवेक का क्रीम से सना हुआ लौंडा कविता की गांड के छेद के मुहाने पर टिकाया, ऊपर विवेक को देख कर आँख मारी, जैसे कि वो 100 मीटर रेस में रेस स्टार्ट के लिए फायर कर रही हो. विवेक ने एक धक्का दिया और उसका लौंडा कविता की गांड में जा घुसा. वैसे तो कविता ने विवेक का लौंडा अपनी गांड में कई बार लिया हुआ था. पर ये पहली बार था जब लंड गांड में तब घुसा, जब बुर में एक मोटा सा लंड पहले से घुस कर कमाल कर रहा था. ये अनुभव बड़ा ही अनोखा था और बड़ा की मजेदार भी. जैसे जैसे दो मोटे लंड उसके दोनों छेदों में अन्दर बाहर जाते थे, वह वासना के उन्माद में पागल सी हो जा रही थी. आनंद के चरम शीर्ष पर थी वो और कुछ भी बडबडा रही थी.

“चोदो मुझे तुम दोनों....ओह मई गॉड...मेरी गांड मारो विवेक....मेरी बुर को चोद डालो गौरव....ओह्ह...मैं झड़ने वाली हूँ...मेरी मारो जोर से ....आ...आ...आ..आह...उईईईईई.......”, कविता ये बडबडाते हुए जोरों से झड गयी.

उस रात बहुत कुछ हुआ. रेनू और कविता ने विवेक और गौरव से डबल-चुदाई कराई. कविता ने रेनू से अपनी बुर फिर से चुस्वाई और फिर कविता ने रेनू की चूत चूसी. गर्मी की ये लम्बी शाम चारों ने बहुत से खेल खेलते हुए गुजारी.

जब वे चलने लगे तो रेनू ने कहा,
“मुझे बड़ी खुशी है की हम लोगों का परिचय इतनी जल्दी तुम लोगों से हो गया. बड़ा अच्छा हो की और 4-5 कपल्स हमारे खेल में शामिल हो सकते. तुम लोगों किसी और कपल्स को जानते हो जो इसमें शामिल हो सकें? मैं अगले हफ्ते नया जॉब पर स्टार्ट कर रही हूँ. वहां पर मैं और लोगों को अन्दर लाने की कोशिश करूंगी. जल्द ही हमारे पास एक बड़ा और बढ़िया सा ग्रुप होगा. बहुत मजा आएगा न? हम यहाँ पर पार्टी करेंगे. हम हिल स्टेशन पर जा कर पार्टी करेंगे”

सब लोगों ने फिर से किस किया एक दुसरे के बदन को अच्छे से छुआ. उन्होंने अगले हफ्ते की पार्टी विवेक और कविता के घर पर तय की. चारों लोग अपनी इस नयी शुरुआत से बड़े खुश थे. वो जानते थे कि आने वाला समय उस सबके जीवन में नए नए आनंद ले कर आने वाला था और सब लोग इस बात से बड़े खुश थे.

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