अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet
Posted: 14 Dec 2014 10:32
अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....
कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...
इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:
"मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "
नीचे महफ़िल जम चुकी थी.. कुच्छ देर रवि का इंतजार करने के बाद अमन ने वहीं प्रोग्राम जमा लिया.. गिलासों को खड़खड़ाते अब करीब आधा घंटा हो चुका था.. शराब के नशे में रोहन वो सब कुच्छ बोलने लगा था जिसको बताने में अब तक वो हिचक रहा था...
"ओह तेरी.. फिर क्या हुआ?" अमन जिगयासू होकर आगे झुक गया...
"छ्चोड़ो यार.. क्यूँ टाइम खोटा कर रहे हो.. आइ डॉन'ट बिलीव इन ऑल दीज़ फूलिश थिंग्स.. एक सपने को लेकर इतना सीरीयस और एमोशनल होने की ज़रूरत नही है.. " शेखर सूपरस्टिशस किस्म की बातों में विस्वाश नही कर पा रहा था...
"पूरी बात तो सुन ले डमरू... रोहन ने शेखर को डांटा और कहानी सुनाने लगा....
"कौन डमरू.. मैं.. हा हा हा...!" शेखर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," डमरू.. हा हा हा!"
"तुझे नही सुन'नि ना.. चल.. जाकर सामने बैठ.. और अपना मुँह बंद रख.. मैं मानता हूँ.. और मुझे सुन'नि हैं..." अमन आकर सामने वाले सोफे पर शेखर और रोहन के बीच में फँस गया.. शेखर उठा और बड़बड़ाता हुआ सामने चला गया," डमरू.. हा हा हा!"
बातें अभी चल ही रही थी की मुस्कुराते हुए रवि ने कमरे में प्रवेश किया..," अच्च्छा.. अकेले अकेले..!"
शेखर उसके आते ही खड़ा हो गया," साले डमरू! अकेले अकेले तू फोड़ के आया है या हम.. ? बात करता है...
"भाई तू मेरे को डमरू कैसे बोल रहा है.. वो तो रोहन बोलता है..." रवि ने उसके पास बैठते हुए कहा...
"क्यूंकी मेरे अंदर रोहन का भूत घुस आया है.. हे हे हा हा हो हो!" शेखर ने भूतों वाली बात का मज़ाक बना लिया....
"चुप कर ओये जॅलील इंसान.. ऐसी बातों को मज़ाक में नही लेते.. किसी के साथ भी कुच्छ भी हो सकता है..." अमन ने प्यार से उसको दुतकारा...
"किस के साथ क्या हो गया भाई? मुझे भी तो बता दो.." रवि ने अपना गिलास उठाया और सबके साथ चियर्स किया...
"वो बात बाद में शुरू से शुरू करेंगे.. अब सबको सीरीयस होकर सुन'नि हैं.. पहले तू बता.. दी भी या नही.. मुझे तो उसकी चीख सुनकर ऐसा लगा जैसे तू अपना हाथ में पकड़े उसके पिछे दौड़ रहा है.. और वो बचने के लिए चिल्लाती हुई कमरे में इधर उधर भाग रही है...हा हा हा.. साली ने नखरे बहुत किए थे पहले दिन... मैं ऐसी नही हूँ.. मैं वैसी नही हूँ.. पर डालने के बाद पता लगा वो तो पकई पकाई है..." अमन ने अपना अनुभव सुनाया....
रवि ने छाती चौड़ी करके अपने कॉलर उपर कर लिए," देती कैसे नही... !"
"अरे... सच में.. चल आ गले लग जा.. बधाई हो बधाई.." अमन आकर उसके गले लग गया..," हां.. यार.. बात तो तू सही कह रहा है.. सलमा की खुश्बू आ रही है तेरे में से.... पर वो चिल्लाई क्यूँ यार.. साली एक नंबर. की नौटंकी है.. तुझे भी यही कह रही थी क्या कि पहली बार मरवा रही हूँ.." अमन ने वापस रोहन के पास बैठते हुए कहा...
" नही यार.. वो तो साना की चीख थी... उसकी पहली बार फटी है ना आज!" रवि ने अपनी बात भी पूरी नही की थी कि अमन ने गिलास रखा और उच्छल कर खड़ा हो गया..," तूने साना की मार ली????"
"हां.. कुच्छ ग़लत हो गया क्या?" रवि ने मरा सा मुँह बनाकर कहा...
"ग़लत क्या यार..? ये तो कमाल हो गया.. साली को तीन बार बुला चुका हूँ.. सलमा के हाथों.. पर वो तो हाथ ही नही लगाने देती थी यार.. तूने किया कैसे.. अब तो ज़ोर की पार्टी होनी चाहिए यार.. ज़ोर की.. तूने मेरा काम आसान कर दिया...!" अमन जोश में पूरा पैग एक साथ पी गया...
"वो कैसे? " रवि की समझ में नही आई बात....
"क्या बताउ यार.. तुझे तो पता होगा.. वो और सलमा दोनो सग़ी बेहन हैं..!"
अमन को रवि ने बीच में ही टोक दिया," क्या? सग़ी बेहन हैं.. ?"
"हां.. चल छ्चोड़ यार.. लंबी कहानी है.. उसके बारे में बाद में बात करेंगे... पहले रोहन भाई की सुनते हैं.. चल भाई रोहन.. अब सब इकट्ठे हो गये हैं.. शुरू से शुरू करके आख़िर तक सुना दे.. पहले बोल रहा हूँ शेखर.. बीच में नही बोलेगा.. देख ले नही तो...!" अमन शेखर को चेतावनी सी देते हुए बोला..
"नही बोलूँगा यार... चलो सूनाओ!" कहकर शेखर भी रोहन की और देखने लगा....
रोहन ने कहानी सुननी शुरू कर दी.....
"आबे, ये क्या था?" रोहन अचानक ही आसपास की घनी झाड़ियों से अपनी और उच्छल कर आए गिलहरी नुमा जानवर को देखकर उच्छल कर तीव्रता से एक और हट गया.. जानवर की उछाल में जिस प्रकार की तीव्रता थी, उस'से यही प्रतीत हुआ की उसने उन्न पर हमला करने का प्रयास किया था...," तूने इसके दाँत देखे?"
करीब 10 - 10 फीट की लंबी छलान्ग लगाता हुआ वो उस उबड़ खाबड़ रास्ते के दूसरी तरफ की झाड़ियों में खो गया..
दोनो 2 पल वहीं खड़े होकर उस अजीबोगरीब गिलहरी को आँखों से औझल होते देखते रहे.. और फिर से अपनी अंजान मंज़िल की और बढ़ चले..
"अफ.. कहाँ ले आया यार...? कितना सन्नाटा है यहाँ? यहाँ पर तो आदमी की जात भी नज़र नही आती... कितना अजीब सा लग रहा है यहाँ सब कुच्छ... तुझे लगता है यहाँ तुझे तेरी नीरू मिल जाएगी..? ... देख मुझे तो लगता है किसी ने तेरा उल्लू बनाया है.. क्यूँ बेवजह अपनी रात बर्बाद कर रहा है... और मेरी भी.. चल वापस चल!" नितिन ने बोलते हुए सावधानी बरत'ने के इरादे से रिवॉल्वेर निकाल कर अपने हाथ में ले ली..
"ऐसी बात नही है यार.. वो यहीं रहती है.. आसपास, देखना! कोशिश करेंगे तो वो हमें ज़रूर मिलेगी.. वो अगर नही मिली तो मैं पागल हो जाउन्गा यार!" रोहन ने आगे चलते चलते ही बात कही...
नितिन आगे आगे बहुत चौकन्ना होकर चल रहा था.. चौकन्ना होना लाजिमी भी था.. जहाँ इस समय वो थे, उस जगह के आसपास कोई शहर या गाँव नही था.. हर तरफ सन्नाटे की भयावह सी चादर पसरी हुई थी... आवाज़ें अगर आ रही थी तो मैंधको के टर्रने की, और रह रह कर झाड़ियों के झुरपुट में कुच्छ रेंगते होने की...दूर दूर तक कृत्रिम रोशनी का नामोनिशान तक नही था.. बस आधे चाँद और टिमटिमाते हुए तारों की हुल्की फुल्की रोशनी ही थी जो उनको रास्ता दिखा रही थी.. रास्ता भी ऐसा जो ना होने के ही बराबर था.. कहीं उँचा, कहीं नीचा.. बीच बीच में गहरे गहरे गड्ढे.. इतने गहरे की ध्यान से ना चला जाए तो अचानक पूरा आदमी ही उनमें गायब हो जाए.. दोनो और करीब 4 - 4 फीट ऊँची झाड़ियाँ थी...
"अब रास्ता सॉफ होता तो गाड़ी ही ले आते.. तुझे क्या लगता है..? यहाँ पर कोई इंसान रहता होगा.. और वो भी लड़की.. सच बताना, खुद तुझे डर नही लग रहा, यहाँ का माहौल देख कर..." नितिन ने चलते चलते रोहन से सवाल किया...
"डर लग रहा है तभी तो तुम्हे लेकर आया हूँ भाई.. नही तो मैं अकेले ही ना चला आता.." रोहन ने जवाब दिया..और अचानक ही उच्छल पड़ा," नितिन देख.. आगे पक्की सड़क दिखाई दे रही है.. मैं ना कहता था.. हम ज़रूर कामयाब होंगे... आगे ज़रूर कोई बस्ती मिलेगी... देख लेना!"
"आबे बस्ती के बच्चे.. उस'से कोई ढंग का रास्ता भी तो पूच्छ सकता था तू.. आख़िर वो लोग भी तो शहर जाते होंगे..?" नितिन को भी आगे का रास्ता पिच्छले रास्ते के मुक़ाबले बेहतर देख कर कुच्छ उम्मीद बँधी....
"यार, क्या करूँ, जब यही एक रास्ता बताया उसने...!" रोहन ने तेज़ी से चलना शुरू कर चुके नितिन के कदमों से कदम मिलाते हुए कहा....
"अजीब प्रेमिका है तेरी.. एक तो रात में मिलने की ज़िद करी और उपर से रास्ता ऐसा बताया.. चल देख.. लगता है हम पहुँचने ही वाले हैं.. उधर लाइट दिखाई दे रही है.." नितिन ने अपनी बाई तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए कहा...
दोनो बाई तरफ मुड़े ही थे की अचानक ठिठक गये..," यहाँ तो पानी है..यार!" रोहन ने अपने कदम वापस खींचते हुए कहा..
"हुम्म.. कोई तालाब लगता है..चल.. आगे से रास्ता होगा... !" नितिन ने रोहन से कहा और दोनो फिर से सीधे रास्ते पर चल पड़े..
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....
कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...
इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:
"मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "
नीचे महफ़िल जम चुकी थी.. कुच्छ देर रवि का इंतजार करने के बाद अमन ने वहीं प्रोग्राम जमा लिया.. गिलासों को खड़खड़ाते अब करीब आधा घंटा हो चुका था.. शराब के नशे में रोहन वो सब कुच्छ बोलने लगा था जिसको बताने में अब तक वो हिचक रहा था...
"ओह तेरी.. फिर क्या हुआ?" अमन जिगयासू होकर आगे झुक गया...
"छ्चोड़ो यार.. क्यूँ टाइम खोटा कर रहे हो.. आइ डॉन'ट बिलीव इन ऑल दीज़ फूलिश थिंग्स.. एक सपने को लेकर इतना सीरीयस और एमोशनल होने की ज़रूरत नही है.. " शेखर सूपरस्टिशस किस्म की बातों में विस्वाश नही कर पा रहा था...
"पूरी बात तो सुन ले डमरू... रोहन ने शेखर को डांटा और कहानी सुनाने लगा....
"कौन डमरू.. मैं.. हा हा हा...!" शेखर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," डमरू.. हा हा हा!"
"तुझे नही सुन'नि ना.. चल.. जाकर सामने बैठ.. और अपना मुँह बंद रख.. मैं मानता हूँ.. और मुझे सुन'नि हैं..." अमन आकर सामने वाले सोफे पर शेखर और रोहन के बीच में फँस गया.. शेखर उठा और बड़बड़ाता हुआ सामने चला गया," डमरू.. हा हा हा!"
बातें अभी चल ही रही थी की मुस्कुराते हुए रवि ने कमरे में प्रवेश किया..," अच्च्छा.. अकेले अकेले..!"
शेखर उसके आते ही खड़ा हो गया," साले डमरू! अकेले अकेले तू फोड़ के आया है या हम.. ? बात करता है...
"भाई तू मेरे को डमरू कैसे बोल रहा है.. वो तो रोहन बोलता है..." रवि ने उसके पास बैठते हुए कहा...
"क्यूंकी मेरे अंदर रोहन का भूत घुस आया है.. हे हे हा हा हो हो!" शेखर ने भूतों वाली बात का मज़ाक बना लिया....
"चुप कर ओये जॅलील इंसान.. ऐसी बातों को मज़ाक में नही लेते.. किसी के साथ भी कुच्छ भी हो सकता है..." अमन ने प्यार से उसको दुतकारा...
"किस के साथ क्या हो गया भाई? मुझे भी तो बता दो.." रवि ने अपना गिलास उठाया और सबके साथ चियर्स किया...
"वो बात बाद में शुरू से शुरू करेंगे.. अब सबको सीरीयस होकर सुन'नि हैं.. पहले तू बता.. दी भी या नही.. मुझे तो उसकी चीख सुनकर ऐसा लगा जैसे तू अपना हाथ में पकड़े उसके पिछे दौड़ रहा है.. और वो बचने के लिए चिल्लाती हुई कमरे में इधर उधर भाग रही है...हा हा हा.. साली ने नखरे बहुत किए थे पहले दिन... मैं ऐसी नही हूँ.. मैं वैसी नही हूँ.. पर डालने के बाद पता लगा वो तो पकई पकाई है..." अमन ने अपना अनुभव सुनाया....
रवि ने छाती चौड़ी करके अपने कॉलर उपर कर लिए," देती कैसे नही... !"
"अरे... सच में.. चल आ गले लग जा.. बधाई हो बधाई.." अमन आकर उसके गले लग गया..," हां.. यार.. बात तो तू सही कह रहा है.. सलमा की खुश्बू आ रही है तेरे में से.... पर वो चिल्लाई क्यूँ यार.. साली एक नंबर. की नौटंकी है.. तुझे भी यही कह रही थी क्या कि पहली बार मरवा रही हूँ.." अमन ने वापस रोहन के पास बैठते हुए कहा...
" नही यार.. वो तो साना की चीख थी... उसकी पहली बार फटी है ना आज!" रवि ने अपनी बात भी पूरी नही की थी कि अमन ने गिलास रखा और उच्छल कर खड़ा हो गया..," तूने साना की मार ली????"
"हां.. कुच्छ ग़लत हो गया क्या?" रवि ने मरा सा मुँह बनाकर कहा...
"ग़लत क्या यार..? ये तो कमाल हो गया.. साली को तीन बार बुला चुका हूँ.. सलमा के हाथों.. पर वो तो हाथ ही नही लगाने देती थी यार.. तूने किया कैसे.. अब तो ज़ोर की पार्टी होनी चाहिए यार.. ज़ोर की.. तूने मेरा काम आसान कर दिया...!" अमन जोश में पूरा पैग एक साथ पी गया...
"वो कैसे? " रवि की समझ में नही आई बात....
"क्या बताउ यार.. तुझे तो पता होगा.. वो और सलमा दोनो सग़ी बेहन हैं..!"
अमन को रवि ने बीच में ही टोक दिया," क्या? सग़ी बेहन हैं.. ?"
"हां.. चल छ्चोड़ यार.. लंबी कहानी है.. उसके बारे में बाद में बात करेंगे... पहले रोहन भाई की सुनते हैं.. चल भाई रोहन.. अब सब इकट्ठे हो गये हैं.. शुरू से शुरू करके आख़िर तक सुना दे.. पहले बोल रहा हूँ शेखर.. बीच में नही बोलेगा.. देख ले नही तो...!" अमन शेखर को चेतावनी सी देते हुए बोला..
"नही बोलूँगा यार... चलो सूनाओ!" कहकर शेखर भी रोहन की और देखने लगा....
रोहन ने कहानी सुननी शुरू कर दी.....
"आबे, ये क्या था?" रोहन अचानक ही आसपास की घनी झाड़ियों से अपनी और उच्छल कर आए गिलहरी नुमा जानवर को देखकर उच्छल कर तीव्रता से एक और हट गया.. जानवर की उछाल में जिस प्रकार की तीव्रता थी, उस'से यही प्रतीत हुआ की उसने उन्न पर हमला करने का प्रयास किया था...," तूने इसके दाँत देखे?"
करीब 10 - 10 फीट की लंबी छलान्ग लगाता हुआ वो उस उबड़ खाबड़ रास्ते के दूसरी तरफ की झाड़ियों में खो गया..
दोनो 2 पल वहीं खड़े होकर उस अजीबोगरीब गिलहरी को आँखों से औझल होते देखते रहे.. और फिर से अपनी अंजान मंज़िल की और बढ़ चले..
"अफ.. कहाँ ले आया यार...? कितना सन्नाटा है यहाँ? यहाँ पर तो आदमी की जात भी नज़र नही आती... कितना अजीब सा लग रहा है यहाँ सब कुच्छ... तुझे लगता है यहाँ तुझे तेरी नीरू मिल जाएगी..? ... देख मुझे तो लगता है किसी ने तेरा उल्लू बनाया है.. क्यूँ बेवजह अपनी रात बर्बाद कर रहा है... और मेरी भी.. चल वापस चल!" नितिन ने बोलते हुए सावधानी बरत'ने के इरादे से रिवॉल्वेर निकाल कर अपने हाथ में ले ली..
"ऐसी बात नही है यार.. वो यहीं रहती है.. आसपास, देखना! कोशिश करेंगे तो वो हमें ज़रूर मिलेगी.. वो अगर नही मिली तो मैं पागल हो जाउन्गा यार!" रोहन ने आगे चलते चलते ही बात कही...
नितिन आगे आगे बहुत चौकन्ना होकर चल रहा था.. चौकन्ना होना लाजिमी भी था.. जहाँ इस समय वो थे, उस जगह के आसपास कोई शहर या गाँव नही था.. हर तरफ सन्नाटे की भयावह सी चादर पसरी हुई थी... आवाज़ें अगर आ रही थी तो मैंधको के टर्रने की, और रह रह कर झाड़ियों के झुरपुट में कुच्छ रेंगते होने की...दूर दूर तक कृत्रिम रोशनी का नामोनिशान तक नही था.. बस आधे चाँद और टिमटिमाते हुए तारों की हुल्की फुल्की रोशनी ही थी जो उनको रास्ता दिखा रही थी.. रास्ता भी ऐसा जो ना होने के ही बराबर था.. कहीं उँचा, कहीं नीचा.. बीच बीच में गहरे गहरे गड्ढे.. इतने गहरे की ध्यान से ना चला जाए तो अचानक पूरा आदमी ही उनमें गायब हो जाए.. दोनो और करीब 4 - 4 फीट ऊँची झाड़ियाँ थी...
"अब रास्ता सॉफ होता तो गाड़ी ही ले आते.. तुझे क्या लगता है..? यहाँ पर कोई इंसान रहता होगा.. और वो भी लड़की.. सच बताना, खुद तुझे डर नही लग रहा, यहाँ का माहौल देख कर..." नितिन ने चलते चलते रोहन से सवाल किया...
"डर लग रहा है तभी तो तुम्हे लेकर आया हूँ भाई.. नही तो मैं अकेले ही ना चला आता.." रोहन ने जवाब दिया..और अचानक ही उच्छल पड़ा," नितिन देख.. आगे पक्की सड़क दिखाई दे रही है.. मैं ना कहता था.. हम ज़रूर कामयाब होंगे... आगे ज़रूर कोई बस्ती मिलेगी... देख लेना!"
"आबे बस्ती के बच्चे.. उस'से कोई ढंग का रास्ता भी तो पूच्छ सकता था तू.. आख़िर वो लोग भी तो शहर जाते होंगे..?" नितिन को भी आगे का रास्ता पिच्छले रास्ते के मुक़ाबले बेहतर देख कर कुच्छ उम्मीद बँधी....
"यार, क्या करूँ, जब यही एक रास्ता बताया उसने...!" रोहन ने तेज़ी से चलना शुरू कर चुके नितिन के कदमों से कदम मिलाते हुए कहा....
"अजीब प्रेमिका है तेरी.. एक तो रात में मिलने की ज़िद करी और उपर से रास्ता ऐसा बताया.. चल देख.. लगता है हम पहुँचने ही वाले हैं.. उधर लाइट दिखाई दे रही है.." नितिन ने अपनी बाई तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए कहा...
दोनो बाई तरफ मुड़े ही थे की अचानक ठिठक गये..," यहाँ तो पानी है..यार!" रोहन ने अपने कदम वापस खींचते हुए कहा..
"हुम्म.. कोई तालाब लगता है..चल.. आगे से रास्ता होगा... !" नितिन ने रोहन से कहा और दोनो फिर से सीधे रास्ते पर चल पड़े..