फूफी फ़रहीन compleet
Posted: 14 Dec 2014 17:39
फूफी फ़रहीन
उस दिन में और फूफी फ़रहीन घर में अकेले थे क्योंके डैड अपने बैंक के हेड ऑफीस कराची गए हुए थे जबके हमारी नौकरानी 3 दिन की छुट्टी पर थी. दरअसल उससे छुट्टी देना भी मेरी ही कारिस्तानी थी क्योंके जो कुछ में करना चाहता था उस के लिये घर का खाली होना बहुत ज़रूरी था. मेरा कोई भाई बहन नही है जिस की वजह से में अक्सर-ओ-बैस्तर घर में तन्हा ही होता था. मेरी अम्मी तब ही इंतिक़ाल कर गई थीं जब में 3 साल का था. डैड ने दूसरी शादी नही की और हम दोनो अकेले ही रहते थे. वो एक गैर-मुल्की बैंक में एक आला ओहदे पर फॅया'इज़ थे और ज़ियादा तार अपने काम में मसरूफ़ रहते थे.
मेरी चारों फुफियों में फूफी फ़रहीन का नंबर दूसरा था यानी वो फूफी नीलोफर से तीन साल छोटी थीं और 40 बरस की थीं . वो लाहोर में रहती थीं और 2/3 महीने के बाद पिंडी हमारे घर कुछ दिन ठहरने के लिये आया करती थीं . दूसरी फुफियों के मुक़ाबले में उनका हमारे हाँ सब से ज़ियादा आना जाना था. अब की बार डैड ने खुद ही उन्हे लाहोर से पिंडी बुलवा लिया था. मेरी बाक़ी फुफियों की तरह फूफी फ़रहीन की तबीयत भी ज़रा गुस्से वाली ही थी और जब उनका दिमाग खराब होता तो मर्दों की तरह बड़ी गलीज़ गालियाँ दिया करती थीं . उनकी गालियाँ सारे खानदान में मशहूर थीं .
अम्मी के ना होने की वजह से फूफी फ़रहीन मुझ से बहुत शफक़त से पेश आया करती थीं लेकिन मेरी नियत उनके बारे में बहुत बचपन से ही खराब थी. मै उनके साथ अपनी इस क़ुरबत का फायदा उठा कर उन्हे चोदना चाहता था. वो खानदान की उन औरतों में से थीं जिन को में बालिग़ होने से भी पहले से पसंद करता था. मुझे उस वक़्त सेक्स का ईलम नही था मगर ये ज़रूर मालूम था के फूफी फ़रहीन को देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाया करता था और में उनके मम्मों और चूतड़ों को छुप छुप कर देखा करता था. फिर जब में बालिग़ हुआ तो फूफी फ़रहीन और खानदान की दूसरी औरतों के बारे में अपने जिन्सी जज़्बात का एहसास हुआ.
आज उनको आये हुए पहला दिन था और मेरी शदीद खाहिश थी के किसी तरह फूफी फ़रहीन की फुद्दी मार लूं. उनके आने के बाद मेरा लंड बार बार बिला-वजा खड़ा हो जाता था. मोक़ा भी बेहतरीन था क्योंके अगले 3/4 दिन उन्होने मेरे साथ घर में बिल्कुल अकेले ही होना था. अगर में इस दफ़ा उन्हे चोदने में नाकाम रहता तो शायद ऐसा सुनेहरा मोक़ा मुझे फिर कभी नसीब ना होता.
फूफी फ़रहीन का शुमार खूबसूरत औरतों में किया जा सकता था. उनके 2 बच्चे थे दो दोनो कॉलेज में पढ़ते थे. लेकिन अब भी वो जिस्मानी तौर पर इंतिहा भरपूर औरत थीं . लंबी चौड़ी दूध की तरह सफ़ेद और निहायत ही सहेत्मंद. उनके मम्मे कुछ ज़रूरत से ज़ियादा ही मोटे थे जिन को वो हमेशा बड़े बड़े रंग बरंगी ब्रा में बाँध कर रखती थीं . मैंने कभी भी उनके मम्मे ब्रा के बगैर नही देखे थे यहाँ तक के वो रात को भी ब्रा पहन कर ही सोती थीं . शायद इस वजह से भी फूफी फ़रहीन के मम्मे इतने मोटे और बड़े थे.
उनकी गांड़ भी बहुत मोटी और चौड़ी थी और जब वो चलतीं तो उनके इंतिहा मज़बूत और वज़नी चूतड़ एक दूसरे के साथ रगड़ खाते रहते. वो चाहे जो मर्ज़ी कपड़े पहन लें मगर उनके चूतड़ों का हिलना नही छुपता था. अपने सेहतमंद बदन की वजह से उनकी कमर पतली तो नही थी मगर मोटे मोटे चूतड़ों और काफ़ी ज़ियादा उभरे हुए मम्मों के मुक़ाबले में छोटी नज़र आती थी. सोने पर सुहागा ये के उनका पेट बाहर निकला हुआ नही था और दो बच्चों की पैदा’इश् के बाद भी साइड से नज़र नही आता था. पेट ना होने से उनकी गांड़ और मम्मे और भी नुमायाँ हो गए थे. उनके बाल बहुत लंबे और घने थे जो अब भी उनके मोटे मोटे चूतड़ों से कुछ ऊपर तक आते थे.
रात के खाने के बाद में अपने कमरे में आ गया और फूफी फ़रहीन अपने कमरे में सोने चली गईं. वो इस बात से बे-खबर थीं के मैंने खाने के वक़्त उनके कोक में नींद की गोली पीस कर मिला दी थी ताके वो गहरी नींद सो ज़ाइन. ये मेरे प्लान के लिये बहुत ज़रूरी था. उन्हे कोक कुछ कडुवा भी लगा था लेकिन बाहरहाल वो उससे पी गई थीं . रात तक़रीबन दो बजे में खामोशी से उनके कमरे में दाखिल हुआ. मुझे अंदाज़ा हो गया के वो गहरी नींद सोई हुई हैं. मेरे पास छोटी सी एक टॉर्च थी जो मैंने जला कर फूफी फ़रहीन के बेड पर डाली.
वो करवट लिये सो रही थीं और उनके लंबे बाल तकिये पर बिखरे थे. उनके खुले हुए गिरेबान से उनके मोटे मम्मे और सफ़ेद ब्रा का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा था. लगता था जैसे उनके सेहतमंद मम्मे ब्रा और क़मीज़ फाड़ कर बाहर निकालने ही वाले हैं. मुझ से रहा नही गया और मैंने आहिस्ता से उनके एक मम्मे को क़मीज़ के ऊपर से ही हाथ लगा कर दबाया. ब्रा की वजह से मेरा हाथ उनके मम्मों तक तो नही पुहँच पाया मगर मुझे ये ज़रूर महसूस हुआ के ब्रा के नीचे बहुत मोटे और बड़े बड़े मम्मे मोजूद हैं. मैंने उनकी क़मीज़ के गिरेबान में उंगली डाल कर उससे ज़रा नीचे किया तो देखा के ब्रा के अंदर उनका एक मम्मा दूसरे मम्मे के उपर पडा हुआ था. टॉर्च की सफ़ेद रोशनी में उनके गोरे मम्मों पर नीली नीली रगै साफ़ नज़र आ रही थीं .
फूफी फ़रहीन मेरे सामने कभी दुपट्टा नही लिया करती थीं और इस लिये मैंने कम-आज़-कम क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मे हज़ारों दफ़ा देखे थे. मगर आज पहली दफ़ा मुझे उनके मम्मों का कुछ हिस्सा नंगा नज़र आया था. होश उड़ा देने वाला मंज़र था. मैंने अपने मंसूबे के मुताबिक़ एल्फी की ट्यूब निकाली और बड़ी आहिस्तगी से उनके बांया मम्मे के बिल्कुल नीचे ब्रा के साथ क़मीज़ पर 6/7 कतरे टपका दिये. फिर मैंने इसी तरह उनके लेफ्ट चूतड़ से क़मीज़ का दामन हटाया और उस के ऊपर भी 9/10 कतरे एल्फी डाल दी. एल्फी चीजें जोड़ने के काम आती है और फॉरन ही सख़्त हो जाती है. मै चाहता था के एल्फी खुश्क हो कर फूफी फ़रहीन के बदन से उनकी क़मीज़ और शलवार को चिपका दे और चूँके जिसम के ऊपर से इससे हटाना आसान नही होता इस लिये उनका परेशां होना यक़ीनी था. मै उसी तरह खामोशी से अपने कमरे में वापस आ गया.
में जानता था के फूफी फ़रहीन ज़रा जल्दी घबरा जाने वाली औरत थीं और बहुत मुमकिन था के वो कपड़ों को अपने बदन से चिपका देख कर मुझ से ज़रूर बात करतीं क्योंके और तो घर में कोई था ही नही. वो खुद कभी भी एल्फी को अपने बदन से साफ़ नही कर सकती थीं . ऐसी सूरत में इंकान यही था के मुझे उनके बदन को बहुत क़रीब से देखने और उससे हाथ लगाने का मोक़ा मिल जाता. फिर अगर हालात थोड़े से भी साज़गार होते तो में उनकी फुद्दी मारने की कोशिश भी कर सकता था. यही बातें सोचते सोचते मेरी आँख लग गई.
सुबह 9 बजे के क़रीब मुझे फूफी फ़रहीन की आवाज़ सुनाई दी.
“अमजद देखो ये किया हो गया है?” वो मुझे उठाते हुए कह रही थीं .
पहले तो मुझे नींद की वजह से उनकी बात समझ नही आई लेकिन फिर अचानक अपनी रात वाली हरकत याद आ गई.
“किया हुआ फूफी फ़रहीन?” मैंने अंजान बनते हुए पूछा.
“मेरी क़मीज़ और शलवार जिसम से चिपक गए हैं. मैंने हटाने की कोशिश की तो दर्द होने लगा. ज़ोर से खैंचने पर ज़ख़्मी ही ना हो जाओ’ओं. ज़रा देखो ये किया है?” उन्होने ज़रा परैशानी से कहा.
में फॉरन उतर कर उनके क़रीब आ गया और जहाँ एल्फी लगी थी वहाँ नज़रें जमा दीं. फूफी फ़रहीन के बांया मम्मे के नीचे एल्फी ने खुसक हो कर 3/4 इंच का दाग सा बना दिया था और उनकी क़मीज़ उनके बदन के साथ बड़ी सख्ती से चिपकी हुई थी. इसी वजह से उनकी क़मीज़ एक तरफ से थोड़ी सी ऊपर भी उठी हुई थी. उनके ब्रा का निचला हिस्सा भी उनके बदन के साथ चिपक गया था. मैंने एल्फी वाली जगह पर उंगली फेरी तो वो बहुत खुरड्र और सख़्त महसूस हुई. मैंने पीछे आ कर उनके चूतड़ों को देखा तो वहाँ इस से भी बड़ी जगह पर एल्फी खुसक हो चुकी थी और उनकी शलवार उनके मोटे चूतड़ के साथ चिपक कर टखने से कुछ ऊपर उठ गई थी.
“फूफी फ़रहीन आप के जिसम के साथ कोई छिपकने वाली चीज़ लग गई है. बहुत सख़्त है खैंचने से खून निकल सकता है. लेकिन आप फ़िकरमंद ना हूँ सोचते हैं के किया करें.” मैंने उनके मोटे और उभरे हुए मम्मों की तरफ देखते हुए कहा.
“लेकिन ये है किया और अब कैसे हटे गी?” उन्होने पूछा. फूफी फ़रहीन परेशां थीं और उनकी समझ में नही आ रहा था के किया करें.
“आप यहाँ बैठाइं में इस पर पानी लगा कर देखता हूँ शायद उतार जाए.” मैंने तजवीज़ दी.
“हन ये ठीक है तुम रूको में पानी ले कर आती हूँ.” उन्होने जवाब दिया.
फिर वो घूम कर पानी लेने शायद डिन्निंग रूम की तरफ चली गईं. मैंने उनके हिलते हुए चौड़े चूतड़ देखे और मेरे मुँह में पानी भर आया. उनके चूतरों में चलते वक़्त अजीब सी लरज़िश आ जाती थी. मै सोचने लगा के फूफी फ़रहीन के मोटे चूतड़ कितने सफ़ेद और मजेदार हूँ गे और अगर उनकी गांड़ मारी जाए तो किस क़िसम का पागल कर देने वाला मज़ा आये गा. मुझे ख़याल आया के उनके शौहर फ़ूपा सलीम जो बहुत दुबले पतले से आदमी थे भला इतनी हटती कटती और सेहतमंद औरत को कैसे चोदते हूँ गे. फूफी फ़रहीन तो तब ही ठंडी हो सकती थीं जब कोई मज़बूत और जवान लंड उनकी मोटी चूत का भुर्कस निकालता.
वो थोड़ी देर बाद एक जग में पानी ले आईं और टेबल पर रख दिया.
“फूफी फ़रहीन हमें एहतियात करनी चाहिये अगर कुछ गलत हो गया तो आप ज़ख़्मी हो सकती हैं और फिर जिसम पर दाग भी हमेशा के लिये रह जाए गा.” मैंने कहा. मुझे मालूम था के अपने आप से फूफी फ़रहीन को कितनी मुहाबत थी और अपने गोरे बदन पर दाग तो उन्हे किसी सूरत में भी क़बूल नही था. उन्हे डराना ज़रूरी था ताके में जो कुछ करना चाहता था कर सकूँ और वो मुझे ना रोकैयन
उस दिन में और फूफी फ़रहीन घर में अकेले थे क्योंके डैड अपने बैंक के हेड ऑफीस कराची गए हुए थे जबके हमारी नौकरानी 3 दिन की छुट्टी पर थी. दरअसल उससे छुट्टी देना भी मेरी ही कारिस्तानी थी क्योंके जो कुछ में करना चाहता था उस के लिये घर का खाली होना बहुत ज़रूरी था. मेरा कोई भाई बहन नही है जिस की वजह से में अक्सर-ओ-बैस्तर घर में तन्हा ही होता था. मेरी अम्मी तब ही इंतिक़ाल कर गई थीं जब में 3 साल का था. डैड ने दूसरी शादी नही की और हम दोनो अकेले ही रहते थे. वो एक गैर-मुल्की बैंक में एक आला ओहदे पर फॅया'इज़ थे और ज़ियादा तार अपने काम में मसरूफ़ रहते थे.
मेरी चारों फुफियों में फूफी फ़रहीन का नंबर दूसरा था यानी वो फूफी नीलोफर से तीन साल छोटी थीं और 40 बरस की थीं . वो लाहोर में रहती थीं और 2/3 महीने के बाद पिंडी हमारे घर कुछ दिन ठहरने के लिये आया करती थीं . दूसरी फुफियों के मुक़ाबले में उनका हमारे हाँ सब से ज़ियादा आना जाना था. अब की बार डैड ने खुद ही उन्हे लाहोर से पिंडी बुलवा लिया था. मेरी बाक़ी फुफियों की तरह फूफी फ़रहीन की तबीयत भी ज़रा गुस्से वाली ही थी और जब उनका दिमाग खराब होता तो मर्दों की तरह बड़ी गलीज़ गालियाँ दिया करती थीं . उनकी गालियाँ सारे खानदान में मशहूर थीं .
अम्मी के ना होने की वजह से फूफी फ़रहीन मुझ से बहुत शफक़त से पेश आया करती थीं लेकिन मेरी नियत उनके बारे में बहुत बचपन से ही खराब थी. मै उनके साथ अपनी इस क़ुरबत का फायदा उठा कर उन्हे चोदना चाहता था. वो खानदान की उन औरतों में से थीं जिन को में बालिग़ होने से भी पहले से पसंद करता था. मुझे उस वक़्त सेक्स का ईलम नही था मगर ये ज़रूर मालूम था के फूफी फ़रहीन को देख कर मेरा लंड खड़ा हो जाया करता था और में उनके मम्मों और चूतड़ों को छुप छुप कर देखा करता था. फिर जब में बालिग़ हुआ तो फूफी फ़रहीन और खानदान की दूसरी औरतों के बारे में अपने जिन्सी जज़्बात का एहसास हुआ.
आज उनको आये हुए पहला दिन था और मेरी शदीद खाहिश थी के किसी तरह फूफी फ़रहीन की फुद्दी मार लूं. उनके आने के बाद मेरा लंड बार बार बिला-वजा खड़ा हो जाता था. मोक़ा भी बेहतरीन था क्योंके अगले 3/4 दिन उन्होने मेरे साथ घर में बिल्कुल अकेले ही होना था. अगर में इस दफ़ा उन्हे चोदने में नाकाम रहता तो शायद ऐसा सुनेहरा मोक़ा मुझे फिर कभी नसीब ना होता.
फूफी फ़रहीन का शुमार खूबसूरत औरतों में किया जा सकता था. उनके 2 बच्चे थे दो दोनो कॉलेज में पढ़ते थे. लेकिन अब भी वो जिस्मानी तौर पर इंतिहा भरपूर औरत थीं . लंबी चौड़ी दूध की तरह सफ़ेद और निहायत ही सहेत्मंद. उनके मम्मे कुछ ज़रूरत से ज़ियादा ही मोटे थे जिन को वो हमेशा बड़े बड़े रंग बरंगी ब्रा में बाँध कर रखती थीं . मैंने कभी भी उनके मम्मे ब्रा के बगैर नही देखे थे यहाँ तक के वो रात को भी ब्रा पहन कर ही सोती थीं . शायद इस वजह से भी फूफी फ़रहीन के मम्मे इतने मोटे और बड़े थे.
उनकी गांड़ भी बहुत मोटी और चौड़ी थी और जब वो चलतीं तो उनके इंतिहा मज़बूत और वज़नी चूतड़ एक दूसरे के साथ रगड़ खाते रहते. वो चाहे जो मर्ज़ी कपड़े पहन लें मगर उनके चूतड़ों का हिलना नही छुपता था. अपने सेहतमंद बदन की वजह से उनकी कमर पतली तो नही थी मगर मोटे मोटे चूतड़ों और काफ़ी ज़ियादा उभरे हुए मम्मों के मुक़ाबले में छोटी नज़र आती थी. सोने पर सुहागा ये के उनका पेट बाहर निकला हुआ नही था और दो बच्चों की पैदा’इश् के बाद भी साइड से नज़र नही आता था. पेट ना होने से उनकी गांड़ और मम्मे और भी नुमायाँ हो गए थे. उनके बाल बहुत लंबे और घने थे जो अब भी उनके मोटे मोटे चूतड़ों से कुछ ऊपर तक आते थे.
रात के खाने के बाद में अपने कमरे में आ गया और फूफी फ़रहीन अपने कमरे में सोने चली गईं. वो इस बात से बे-खबर थीं के मैंने खाने के वक़्त उनके कोक में नींद की गोली पीस कर मिला दी थी ताके वो गहरी नींद सो ज़ाइन. ये मेरे प्लान के लिये बहुत ज़रूरी था. उन्हे कोक कुछ कडुवा भी लगा था लेकिन बाहरहाल वो उससे पी गई थीं . रात तक़रीबन दो बजे में खामोशी से उनके कमरे में दाखिल हुआ. मुझे अंदाज़ा हो गया के वो गहरी नींद सोई हुई हैं. मेरे पास छोटी सी एक टॉर्च थी जो मैंने जला कर फूफी फ़रहीन के बेड पर डाली.
वो करवट लिये सो रही थीं और उनके लंबे बाल तकिये पर बिखरे थे. उनके खुले हुए गिरेबान से उनके मोटे मम्मे और सफ़ेद ब्रा का कुछ हिस्सा दिखाई दे रहा था. लगता था जैसे उनके सेहतमंद मम्मे ब्रा और क़मीज़ फाड़ कर बाहर निकालने ही वाले हैं. मुझ से रहा नही गया और मैंने आहिस्ता से उनके एक मम्मे को क़मीज़ के ऊपर से ही हाथ लगा कर दबाया. ब्रा की वजह से मेरा हाथ उनके मम्मों तक तो नही पुहँच पाया मगर मुझे ये ज़रूर महसूस हुआ के ब्रा के नीचे बहुत मोटे और बड़े बड़े मम्मे मोजूद हैं. मैंने उनकी क़मीज़ के गिरेबान में उंगली डाल कर उससे ज़रा नीचे किया तो देखा के ब्रा के अंदर उनका एक मम्मा दूसरे मम्मे के उपर पडा हुआ था. टॉर्च की सफ़ेद रोशनी में उनके गोरे मम्मों पर नीली नीली रगै साफ़ नज़र आ रही थीं .
फूफी फ़रहीन मेरे सामने कभी दुपट्टा नही लिया करती थीं और इस लिये मैंने कम-आज़-कम क़मीज़ के ऊपर से उनके मम्मे हज़ारों दफ़ा देखे थे. मगर आज पहली दफ़ा मुझे उनके मम्मों का कुछ हिस्सा नंगा नज़र आया था. होश उड़ा देने वाला मंज़र था. मैंने अपने मंसूबे के मुताबिक़ एल्फी की ट्यूब निकाली और बड़ी आहिस्तगी से उनके बांया मम्मे के बिल्कुल नीचे ब्रा के साथ क़मीज़ पर 6/7 कतरे टपका दिये. फिर मैंने इसी तरह उनके लेफ्ट चूतड़ से क़मीज़ का दामन हटाया और उस के ऊपर भी 9/10 कतरे एल्फी डाल दी. एल्फी चीजें जोड़ने के काम आती है और फॉरन ही सख़्त हो जाती है. मै चाहता था के एल्फी खुश्क हो कर फूफी फ़रहीन के बदन से उनकी क़मीज़ और शलवार को चिपका दे और चूँके जिसम के ऊपर से इससे हटाना आसान नही होता इस लिये उनका परेशां होना यक़ीनी था. मै उसी तरह खामोशी से अपने कमरे में वापस आ गया.
में जानता था के फूफी फ़रहीन ज़रा जल्दी घबरा जाने वाली औरत थीं और बहुत मुमकिन था के वो कपड़ों को अपने बदन से चिपका देख कर मुझ से ज़रूर बात करतीं क्योंके और तो घर में कोई था ही नही. वो खुद कभी भी एल्फी को अपने बदन से साफ़ नही कर सकती थीं . ऐसी सूरत में इंकान यही था के मुझे उनके बदन को बहुत क़रीब से देखने और उससे हाथ लगाने का मोक़ा मिल जाता. फिर अगर हालात थोड़े से भी साज़गार होते तो में उनकी फुद्दी मारने की कोशिश भी कर सकता था. यही बातें सोचते सोचते मेरी आँख लग गई.
सुबह 9 बजे के क़रीब मुझे फूफी फ़रहीन की आवाज़ सुनाई दी.
“अमजद देखो ये किया हो गया है?” वो मुझे उठाते हुए कह रही थीं .
पहले तो मुझे नींद की वजह से उनकी बात समझ नही आई लेकिन फिर अचानक अपनी रात वाली हरकत याद आ गई.
“किया हुआ फूफी फ़रहीन?” मैंने अंजान बनते हुए पूछा.
“मेरी क़मीज़ और शलवार जिसम से चिपक गए हैं. मैंने हटाने की कोशिश की तो दर्द होने लगा. ज़ोर से खैंचने पर ज़ख़्मी ही ना हो जाओ’ओं. ज़रा देखो ये किया है?” उन्होने ज़रा परैशानी से कहा.
में फॉरन उतर कर उनके क़रीब आ गया और जहाँ एल्फी लगी थी वहाँ नज़रें जमा दीं. फूफी फ़रहीन के बांया मम्मे के नीचे एल्फी ने खुसक हो कर 3/4 इंच का दाग सा बना दिया था और उनकी क़मीज़ उनके बदन के साथ बड़ी सख्ती से चिपकी हुई थी. इसी वजह से उनकी क़मीज़ एक तरफ से थोड़ी सी ऊपर भी उठी हुई थी. उनके ब्रा का निचला हिस्सा भी उनके बदन के साथ चिपक गया था. मैंने एल्फी वाली जगह पर उंगली फेरी तो वो बहुत खुरड्र और सख़्त महसूस हुई. मैंने पीछे आ कर उनके चूतड़ों को देखा तो वहाँ इस से भी बड़ी जगह पर एल्फी खुसक हो चुकी थी और उनकी शलवार उनके मोटे चूतड़ के साथ चिपक कर टखने से कुछ ऊपर उठ गई थी.
“फूफी फ़रहीन आप के जिसम के साथ कोई छिपकने वाली चीज़ लग गई है. बहुत सख़्त है खैंचने से खून निकल सकता है. लेकिन आप फ़िकरमंद ना हूँ सोचते हैं के किया करें.” मैंने उनके मोटे और उभरे हुए मम्मों की तरफ देखते हुए कहा.
“लेकिन ये है किया और अब कैसे हटे गी?” उन्होने पूछा. फूफी फ़रहीन परेशां थीं और उनकी समझ में नही आ रहा था के किया करें.
“आप यहाँ बैठाइं में इस पर पानी लगा कर देखता हूँ शायद उतार जाए.” मैंने तजवीज़ दी.
“हन ये ठीक है तुम रूको में पानी ले कर आती हूँ.” उन्होने जवाब दिया.
फिर वो घूम कर पानी लेने शायद डिन्निंग रूम की तरफ चली गईं. मैंने उनके हिलते हुए चौड़े चूतड़ देखे और मेरे मुँह में पानी भर आया. उनके चूतरों में चलते वक़्त अजीब सी लरज़िश आ जाती थी. मै सोचने लगा के फूफी फ़रहीन के मोटे चूतड़ कितने सफ़ेद और मजेदार हूँ गे और अगर उनकी गांड़ मारी जाए तो किस क़िसम का पागल कर देने वाला मज़ा आये गा. मुझे ख़याल आया के उनके शौहर फ़ूपा सलीम जो बहुत दुबले पतले से आदमी थे भला इतनी हटती कटती और सेहतमंद औरत को कैसे चोदते हूँ गे. फूफी फ़रहीन तो तब ही ठंडी हो सकती थीं जब कोई मज़बूत और जवान लंड उनकी मोटी चूत का भुर्कस निकालता.
वो थोड़ी देर बाद एक जग में पानी ले आईं और टेबल पर रख दिया.
“फूफी फ़रहीन हमें एहतियात करनी चाहिये अगर कुछ गलत हो गया तो आप ज़ख़्मी हो सकती हैं और फिर जिसम पर दाग भी हमेशा के लिये रह जाए गा.” मैंने कहा. मुझे मालूम था के अपने आप से फूफी फ़रहीन को कितनी मुहाबत थी और अपने गोरे बदन पर दाग तो उन्हे किसी सूरत में भी क़बूल नही था. उन्हे डराना ज़रूरी था ताके में जो कुछ करना चाहता था कर सकूँ और वो मुझे ना रोकैयन