कामुक-कहानियाँ ससुराल सिमर का compleet
Posted: 10 Oct 2014 11:19
चेतावनी ...........दोस्तो ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है
"बेटा, सिमर की याद आ रही है, वो भी रहती थी तो बड़ा मज़ा आता था चुदाई में" माँ ने चूतड. उछालते हुए कहा.
मैं माँ पर चढ कर चोद रहा था. माँ की चूची मुँह से निकाल कर मैंने कहा "अम्मा, तू क्यों परेशान हो रही है, दीदी मस्त चुदवा रही होगी जीजाजी से"
"अरे शादी को तीन महने हो गये घर नहीं आई, पास के शहर में घर है फिर भी फ़ोन तक नहीं करती, मैं करती हूँ तो दो मिनिट बात करके रख देती है. आह & हॅ & बेटे, मस्त चोद रहा है तू, ज़रा गहरा पेल अब, मेरी बच्चेदानी तक, हाँ & ऐसे ही मेरे लाल" माँ कराहते हुए बोली.
मैं झड़ने को आ गया था पर माँ को झडाने के पहले झडता तो वो नाराज़ हो जाती. उसकी आदत ही थी घंटों चुदाने की. और ख़ास कर गहरा चुदवाने की, जिससे लंड उसकी बच्चेदानी पर चोट करे! मैं और कस कर धक्के लगाने लगा. "ले मेरी प्यारी अम्मा, ऐसे लगाऊ? कि और ज़ोर से? और ज़ोर से चुदवाना हो तो घोड़ी बन जा और. पीछे से चोद देता हू"
"अरे ऐसे ही ठीक है, अब अच्छा चोद रहा है तू, कल तो चोदा था तूने पीछे से और फिर गांद मार ली थी, मैं मना कर रही थी फिर भी, ज़बरदस्ती! अब तक दुख रही है" माँ मुझे बाँहों में भींच कर और ज़ोर से कमर हिलाते हुए बोली. "हाँ तो मैं सिमर के बारे में ..."
मुझे तैश आ गया. सिमर दीदी के बारे में मैं अभी नहीं सुनना चाहता था. अपने मुँह से मैंने माँ का मुँह बंद किया और चूसते हुए ऐसे चोदा कि दो मिनिट में झड. कर मचलने लगी. यहाँ उसने मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गढ़ाये, जैसा वह झडते समय करती थी, वहाँ मैं भी आखरी का धक्का लगाकर झड. गया. फिर उसके उपर पड़ा पड़ा आराम करने लगा.
सुस्ताने के बाद उठ कर बोला "अब बोलो अम्मा, क्या बात है? चोदते समय दीदी की याद ना दिलाया कर. झड्ने को आ जाता हू, ख़ास कर जब याद आता है कि कैसे वो तेरी चूत चूसती थी और मैं उसकी गांद मारता था"
"हाँ, मेरी बच्ची को गांद मरवाने का बहुत शौक है. याद है कैसे तू उसकी गांद में लंड डाल कर सोफे पर बैठ कर नीचे से उसकी मारता था और मैं सामने बैठ कर उसकी बुर चाटती थी. हाय बेटे, ना जाने वो दिन कब आएगा जब मेरी बेटी फिर मैके आएगी अपनी अम्मा और छोटे भाई की प्यास बुझाने. तू जाकर क्यों नहीं देख आता बात क्या है? जा तू ले ही आ एक हफ्ते को" अम्मा टाँगें फैलाकर अपनी चूत तौलिए से पोंछते हुए बोली.
"ठीक है अम्मा, कल चला जाता हू. बिन बताए जाऊन्गा, पता तो चले कि माजरा क्या है" माँ की चूचि दबाते हुए मैं बोला.
मेरी अम्मा चालीस साल की है. घर में बस मैं, माँ और मेरी बड़ी बहन सिमर हैं. मेरी उमर सोलहा साल की है. दीदी मुझसे पाँच साल बड़ी है. अम्मा और दीदी का लेस्बियन इश्क चलता है ये मुझे दो साल पहले मालूम हुआ. उसके पहले से मैं दोनों को अलग अलग चोदता था. बल्कि वी मुझे चोदती थीं ये कहना बेहतर होगा. उसके बाद हम साथ चोदने लगे. यह अलग कहानी है, बाद में कभी बताऊन्गा.
दीदी की शादी तीन माह पहले हुई. हमें छोड़. कर जाने को वो तैयार नहीं थी. पर हमने मनाया, ऐसा अच्छा घर फिर नहीं मिलेगा. अच्छा धनवान परिवार, घर में सिर्फ़ जीजाजी याने दीपक, उनके बड़े भाई रजत और सास. दीपक था भी हैम्डसम नौजवान. और शादी तो करनी ही थी, सब रिश्तेदार बार बार पूछते थे, उन्हें क्या जवाब दें! अम्मा ने भी समझाया की पास ही ससुराल है, हर महने आ जाया कर चोदने को.
दीदी ने आख़िर मान लिया पर बोली कि वो तो हर महने आएगी, अगर माँ और छोटे भैया से नहीं चुदाया तो पागल हो जाएगी, हमारे बिना वहाँ रह नहीं सकती थी. इसीलिए जब तीन महने दीदी नहीं आई तो माँ का माथा ठनका कि उसकी प्यारी बच्ची सकुशल है या नहीं.
दूसरे दिन मैं दोपहर को निकला. जाने के पहले माँ की गांद मारने का मूड था. वो तैयार नहीं हो रही थी. मुझसे सैकडों बार मरा चुकी है फिर भी हर बार नखरा करती है. कहती है कि दुखता है. सब झूठ है, उसकी अब इतनी मुलायामा हो गयी है की लंड आराम से जाता है, तेल बिना लगाए भी. पर नखरे में उसे मज़ा आता है. गांद मराने में भी उसे आनंद आता है पर कभी मेरे सामने स्वीकार नहीं करती. दीदी ने मुझे अकेले में बताया था. इसलिए अब मैं उसकी किरकिरा की परवाह नहीं करता.
जाने की पूरी तैयारी करके कपड़े पहनने के बाद मैंने माँ की मारी. सोचा - कम से कम आज का तो सामान हो जाए, फिर तो मुठ्ठ ही मारना है दो तीन दिन. दीदी के ससुराल में तो भीगी बिल्ली जैसे रहना पड़ेगा. बेडरूम से माँ को आवाज़ दी "माँ मैं चला"
माँ आई तो उसे पकड़कर मैंने दीवाल से सटा कर उसकी साड़ी उठाई और लंड ज़िप से निकाला और उसके गोरे चूतडो के बीच गाढ. दिया. फिर कस के दस मिनिट उसे दीवाल पर दबा कर हचक हचक कर उसकी मारी.
वो भी नखरा करके "हाय बेटे, मत मार, बहुत दुखता है, मारना ही है तो धीरे मार मेरे बच्चे" कहती रही. पर मेरे झड्ने के बाद पलट कर साड़ी उठाकर बोली "जाने से पहले चूस दे मेरे लाल, अब दो दिन उपवास है मेरा"
माँ भी क्या चुदैल है, दो मिनिट पहले दर्द से बिलख रही थी, पर चूत ऐसे बहा रही थी जैसे नई नवेली दुल्हन हो. शायद जानबूझ कर दर्द का बहाना करती है, जानती है कि इससे मैं और मचल जाता हू और ज़ोर से गांद मारता हू.
माँ की बुर का पानी चाट कर मैंने मुँह पोंच्छा और फिर कपड़े ठीक करके निकल पड़ा. माँ को वादा किया कि फ़ोन करुँगा और हो सके तो सिमर दीदी को साथ ले आऊन्गा.
दीदी के घर पहुँचा तो शाम हो गयी थी. दीदी की सास शन्नो जी ने दरवाजा खोला. मेरा स्वागत करते हुए बोलीं. "आओ अमित बेटे, आख़िर याद आ गयी दीदी की. मैं सोच ही रही थी कि कैसे अब तक कोई सिमर बिटिया के घर से देखने नहीं आया. वैसे तुम्हारी दीदी बहुत खुश है. मैंने कई बार कहा फ़ोन कर ले पर अनसुना कर देती है"
मैंने उनके पाँव छुए, एकदम गोरे पाँव थे उनके. "मांजी, आपके यहाँ दीदी खुश नहीं होगी तो कहाँ होगी. मैं तो बस इस तरफ आ रहा था इसलिए मिलने चला आया"
मांजी ने मुझे चाय पिलाई. बातें करने लगी. माँ के बारे में पूछा कि सकुशल हैं ना. मैंने कहा कि दीदी नहीं दिख रही है, बाहर गयी होगी शायद तो शन्नो जी बोलीं कि दीदी अभी आ जाएगी, उपर सो रही है. रजत आफ़िस से अभी आया नहीं है. आगे मुझे बोलीं कि आए हो तो अब दो दिन रहो. मैंने हाँ कर दी.
मैं उन्हें गौर से देख रहा था. शन्नो जी माँ से सात आठ साल बड़ी थीं, सैंतालीस अडतालीस के आसपास की होंगी. गोरी चिकनी थीं, खाया पिया भारी भरकम मांसल बदन था, यहा मोटापा भी उन्हें एकदमा जच रहा था. पर साड़ी और घूँघट में और कुछ दिख नहीं रहा था. चेहरा हसमुख और सुंदर था. जब से मैं माँ को चोदने लगा हू, उसकी उमर की हर औरत को ऐसे ही देखता हू. सोचने लगा कि दीदी की सास भी माल हैं, इतनी उमर में भी पूरा जोबन सजाए हुए हैं. पर चांस मिलना कठिन ही है, कुछ करना भी ठीक नहीं है, आख़िर दीदी की ससुराल है, लेने के देने ना पड. जाएँ.
क्रमशः………………..
"बेटा, सिमर की याद आ रही है, वो भी रहती थी तो बड़ा मज़ा आता था चुदाई में" माँ ने चूतड. उछालते हुए कहा.
मैं माँ पर चढ कर चोद रहा था. माँ की चूची मुँह से निकाल कर मैंने कहा "अम्मा, तू क्यों परेशान हो रही है, दीदी मस्त चुदवा रही होगी जीजाजी से"
"अरे शादी को तीन महने हो गये घर नहीं आई, पास के शहर में घर है फिर भी फ़ोन तक नहीं करती, मैं करती हूँ तो दो मिनिट बात करके रख देती है. आह & हॅ & बेटे, मस्त चोद रहा है तू, ज़रा गहरा पेल अब, मेरी बच्चेदानी तक, हाँ & ऐसे ही मेरे लाल" माँ कराहते हुए बोली.
मैं झड़ने को आ गया था पर माँ को झडाने के पहले झडता तो वो नाराज़ हो जाती. उसकी आदत ही थी घंटों चुदाने की. और ख़ास कर गहरा चुदवाने की, जिससे लंड उसकी बच्चेदानी पर चोट करे! मैं और कस कर धक्के लगाने लगा. "ले मेरी प्यारी अम्मा, ऐसे लगाऊ? कि और ज़ोर से? और ज़ोर से चुदवाना हो तो घोड़ी बन जा और. पीछे से चोद देता हू"
"अरे ऐसे ही ठीक है, अब अच्छा चोद रहा है तू, कल तो चोदा था तूने पीछे से और फिर गांद मार ली थी, मैं मना कर रही थी फिर भी, ज़बरदस्ती! अब तक दुख रही है" माँ मुझे बाँहों में भींच कर और ज़ोर से कमर हिलाते हुए बोली. "हाँ तो मैं सिमर के बारे में ..."
मुझे तैश आ गया. सिमर दीदी के बारे में मैं अभी नहीं सुनना चाहता था. अपने मुँह से मैंने माँ का मुँह बंद किया और चूसते हुए ऐसे चोदा कि दो मिनिट में झड. कर मचलने लगी. यहाँ उसने मेरी पीठ पर अपने नाख़ून गढ़ाये, जैसा वह झडते समय करती थी, वहाँ मैं भी आखरी का धक्का लगाकर झड. गया. फिर उसके उपर पड़ा पड़ा आराम करने लगा.
सुस्ताने के बाद उठ कर बोला "अब बोलो अम्मा, क्या बात है? चोदते समय दीदी की याद ना दिलाया कर. झड्ने को आ जाता हू, ख़ास कर जब याद आता है कि कैसे वो तेरी चूत चूसती थी और मैं उसकी गांद मारता था"
"हाँ, मेरी बच्ची को गांद मरवाने का बहुत शौक है. याद है कैसे तू उसकी गांद में लंड डाल कर सोफे पर बैठ कर नीचे से उसकी मारता था और मैं सामने बैठ कर उसकी बुर चाटती थी. हाय बेटे, ना जाने वो दिन कब आएगा जब मेरी बेटी फिर मैके आएगी अपनी अम्मा और छोटे भाई की प्यास बुझाने. तू जाकर क्यों नहीं देख आता बात क्या है? जा तू ले ही आ एक हफ्ते को" अम्मा टाँगें फैलाकर अपनी चूत तौलिए से पोंछते हुए बोली.
"ठीक है अम्मा, कल चला जाता हू. बिन बताए जाऊन्गा, पता तो चले कि माजरा क्या है" माँ की चूचि दबाते हुए मैं बोला.
मेरी अम्मा चालीस साल की है. घर में बस मैं, माँ और मेरी बड़ी बहन सिमर हैं. मेरी उमर सोलहा साल की है. दीदी मुझसे पाँच साल बड़ी है. अम्मा और दीदी का लेस्बियन इश्क चलता है ये मुझे दो साल पहले मालूम हुआ. उसके पहले से मैं दोनों को अलग अलग चोदता था. बल्कि वी मुझे चोदती थीं ये कहना बेहतर होगा. उसके बाद हम साथ चोदने लगे. यह अलग कहानी है, बाद में कभी बताऊन्गा.
दीदी की शादी तीन माह पहले हुई. हमें छोड़. कर जाने को वो तैयार नहीं थी. पर हमने मनाया, ऐसा अच्छा घर फिर नहीं मिलेगा. अच्छा धनवान परिवार, घर में सिर्फ़ जीजाजी याने दीपक, उनके बड़े भाई रजत और सास. दीपक था भी हैम्डसम नौजवान. और शादी तो करनी ही थी, सब रिश्तेदार बार बार पूछते थे, उन्हें क्या जवाब दें! अम्मा ने भी समझाया की पास ही ससुराल है, हर महने आ जाया कर चोदने को.
दीदी ने आख़िर मान लिया पर बोली कि वो तो हर महने आएगी, अगर माँ और छोटे भैया से नहीं चुदाया तो पागल हो जाएगी, हमारे बिना वहाँ रह नहीं सकती थी. इसीलिए जब तीन महने दीदी नहीं आई तो माँ का माथा ठनका कि उसकी प्यारी बच्ची सकुशल है या नहीं.
दूसरे दिन मैं दोपहर को निकला. जाने के पहले माँ की गांद मारने का मूड था. वो तैयार नहीं हो रही थी. मुझसे सैकडों बार मरा चुकी है फिर भी हर बार नखरा करती है. कहती है कि दुखता है. सब झूठ है, उसकी अब इतनी मुलायामा हो गयी है की लंड आराम से जाता है, तेल बिना लगाए भी. पर नखरे में उसे मज़ा आता है. गांद मराने में भी उसे आनंद आता है पर कभी मेरे सामने स्वीकार नहीं करती. दीदी ने मुझे अकेले में बताया था. इसलिए अब मैं उसकी किरकिरा की परवाह नहीं करता.
जाने की पूरी तैयारी करके कपड़े पहनने के बाद मैंने माँ की मारी. सोचा - कम से कम आज का तो सामान हो जाए, फिर तो मुठ्ठ ही मारना है दो तीन दिन. दीदी के ससुराल में तो भीगी बिल्ली जैसे रहना पड़ेगा. बेडरूम से माँ को आवाज़ दी "माँ मैं चला"
माँ आई तो उसे पकड़कर मैंने दीवाल से सटा कर उसकी साड़ी उठाई और लंड ज़िप से निकाला और उसके गोरे चूतडो के बीच गाढ. दिया. फिर कस के दस मिनिट उसे दीवाल पर दबा कर हचक हचक कर उसकी मारी.
वो भी नखरा करके "हाय बेटे, मत मार, बहुत दुखता है, मारना ही है तो धीरे मार मेरे बच्चे" कहती रही. पर मेरे झड्ने के बाद पलट कर साड़ी उठाकर बोली "जाने से पहले चूस दे मेरे लाल, अब दो दिन उपवास है मेरा"
माँ भी क्या चुदैल है, दो मिनिट पहले दर्द से बिलख रही थी, पर चूत ऐसे बहा रही थी जैसे नई नवेली दुल्हन हो. शायद जानबूझ कर दर्द का बहाना करती है, जानती है कि इससे मैं और मचल जाता हू और ज़ोर से गांद मारता हू.
माँ की बुर का पानी चाट कर मैंने मुँह पोंच्छा और फिर कपड़े ठीक करके निकल पड़ा. माँ को वादा किया कि फ़ोन करुँगा और हो सके तो सिमर दीदी को साथ ले आऊन्गा.
दीदी के घर पहुँचा तो शाम हो गयी थी. दीदी की सास शन्नो जी ने दरवाजा खोला. मेरा स्वागत करते हुए बोलीं. "आओ अमित बेटे, आख़िर याद आ गयी दीदी की. मैं सोच ही रही थी कि कैसे अब तक कोई सिमर बिटिया के घर से देखने नहीं आया. वैसे तुम्हारी दीदी बहुत खुश है. मैंने कई बार कहा फ़ोन कर ले पर अनसुना कर देती है"
मैंने उनके पाँव छुए, एकदम गोरे पाँव थे उनके. "मांजी, आपके यहाँ दीदी खुश नहीं होगी तो कहाँ होगी. मैं तो बस इस तरफ आ रहा था इसलिए मिलने चला आया"
मांजी ने मुझे चाय पिलाई. बातें करने लगी. माँ के बारे में पूछा कि सकुशल हैं ना. मैंने कहा कि दीदी नहीं दिख रही है, बाहर गयी होगी शायद तो शन्नो जी बोलीं कि दीदी अभी आ जाएगी, उपर सो रही है. रजत आफ़िस से अभी आया नहीं है. आगे मुझे बोलीं कि आए हो तो अब दो दिन रहो. मैंने हाँ कर दी.
मैं उन्हें गौर से देख रहा था. शन्नो जी माँ से सात आठ साल बड़ी थीं, सैंतालीस अडतालीस के आसपास की होंगी. गोरी चिकनी थीं, खाया पिया भारी भरकम मांसल बदन था, यहा मोटापा भी उन्हें एकदमा जच रहा था. पर साड़ी और घूँघट में और कुछ दिख नहीं रहा था. चेहरा हसमुख और सुंदर था. जब से मैं माँ को चोदने लगा हू, उसकी उमर की हर औरत को ऐसे ही देखता हू. सोचने लगा कि दीदी की सास भी माल हैं, इतनी उमर में भी पूरा जोबन सजाए हुए हैं. पर चांस मिलना कठिन ही है, कुछ करना भी ठीक नहीं है, आख़िर दीदी की ससुराल है, लेने के देने ना पड. जाएँ.
क्रमशः………………..