मम्मी – पापा का खेल
बबली मेरे पड़ोस मैं रहती थी. बचपन मैं हम एक खेल खेलते थे,
जिसका नाम था "घर-घर". उमर कोई यों ही 3-6 साल तक रहा करती
होगी. घर के किसी कोने मैं हम बच्चे लोग एक दो चदडार के सहारे
किसी बड़े पलंग के नीचे साइड से ढककर घर बनाते…फिर उसे
सजाते…छोटे छोटे खिलोनो से और ये खेल खेलते. दिन – दिन भर
खेलते रहते थे. खास तौर से गर्मियों की छुट्टियों मैं. एक बच्चा
डॅडी बनता…एक मम्मी बनती….और बाकी उनके बच्चे. फिर डॅडी ऑफीस
जाते…मम्मी खाना बनाती…..बच्चे स्कूल जाते….खेलने जाते……और वो सब
हम सब बच्चे नाटक करते….जैसा की अक्सर घर मैं होता था.अक्सर…
हम आस-पड़ोस के आठ-दस बच्चे इस खेल को खेला करते. पता नहीं उस
छोटी सी उमर मैं मुझे याद है , जब जब बबली मम्मी बनती थी और
मैं पापा, तो मुझे खेल मैं एक अलग सा आनंद मिलता था. सामने वाले
शर्मा जी की बेटी थी वो. शर्मा जी कोई बड़े अमीर तो ना थे, पर उनकी
बेटी, यानी की रिंकी…अपने गोरे-चिट रंग…और खूबसूरत चेहरे से,
शर्मा जी की बेटी कम ही लगती थी.
उस उमर मैं वो बड़ी प्यारी बच्ची थी. कौन जानता था की बड़ी होकर वो
सारी कॉलोनी पर कयामत ढाएगी! वो मेरी अच्छी दोस्त बनी रही , जिसकी
एक वजह ये भी थी की हम एक ही स्कूल मैं पड़ते थे. और धीरे
धीरे ज्यों ज्यों साल बीतने लगे….भगवान बबली को दोनो हाथों से
रंग रूप देने लगे….और दोस्तों रूप अपने साथ नज़ाकत…और कशिश
अपने आप लाने लगता है……खूबसूरत लड़की कुछ जल्दी ही नशीली और
जवान होने लगती है. बबली के 14थ जन्मदिन पर जब हम उसके स्कूल
और कॉलोनी के दोस्त उसे बधाई देने लगे……मैं एक कोने से छुपी और
चोरी चोरी की नज़रों से उसे देख रहा था. मेरी कोशिश ये थी कि
उसकी खूबसूरती को अपनी आँखों से पी लेने मैं मुझे कोई डिस्टर्ब ना
कर दे.वो एक मदहोश कर देने वाली गुड़िया की तरह लग रही
थी…….उसके हाव-भाव देख कर मेरी सारी नस तन गयी….करीब 18 बरस
का ये नौजवान लड़का अपनी झंघाओं के बीच मैं कुछ गरमी महसूस
कर रहा था….और मैने नीचे तनाव महसूस किया. बबली का गुदाज
जिस्म….अपने गोरेपन के साथ मुझे खींचता ले जा रहा था….उस नरम
त्वचा को छूने के लिए सहसा मेरे अंदर एक तड़प उठने लगी. कहीं
एकांत मैं बबली के साथ..केवल जहाँ वो हो और जहाँ मैं हूँ. और
फिर उस एकांत मैं नियती हमसे वो करवा दे जो की दो जवान दिल और
जिस्म नज़दीकी पा कर कर उठते हैं.
कुछ और समय बीता और बबली का शरीर और खिलने लगा…आंग बढ़ने
लगी और उसके साथ मेरा दीवानापन बढ़ने लगा…..एक सुद्ध वासना जो उसके
आंग आंग के कसाव, बनाव और उभरून को देख कर मुझे अपने आगोश
मैं लपेट लेती थी. तक़दीर ने मुझ पर एक दिन छप्पर फाड़ कर
खुशी दी. एक बार फिर मैने "घर-घर"का खेल खेला, पर करीब 15
बरस की जवान गदराई…भरपूर मांसल लड़की के साथ. केवल अपनी बबली
के साथ.
हुआ यूँ की फिर वही गर्मियों की छुट्टिया थी. बबली देल्ही जा रही
थी अपने अंकल के यहाँ. मैं भी देहली गया था किसी काम से. वापस
आते समय मैने सोचा की क्यों ना एक फोन कर के पूछ लूँ कि शायद
शर्मा जी का परिवार भी वापस चल रहा हो तो साथ साथ मैं भी
चलूं (दरअसल मैं बबली के साथ और दीदार के लिए मरा जा रहा
था.). फोन बबली ने ही उठाया और वो बड़ी खुश हुई की मैं वापस
जा रहा हूँ मुंबई, और बोली की वो भी चलेगी मेरे साथ. उसकी ज़िद के
आगे शरमजी झुक गये और इस तरह बबली अकेली मेरे साथ मुंबई चल
दी. हालाँकि वो घर पर अपने भाई के साथ रहती, पर मैं इस यात्रा से
बड़ा खुश था. मैने शताब्दी एक्स्प की दो टिकेट्स बुक की और हम
चले. मैने उसका परा ख़याल रखा और इस यात्रा ने हम दोनो को फिर
बहुत नज़दीक कर दिया. यात्रा के दौरान ही एक बार फिर घर –घर
खेलने का प्रोग्राम बना और बबली ने वादा किया की वो मेरे घर आएगी
किसी दिन और हम बचपन की यादें ताज़ा करेंगे. मैने महसूस किया की
वो अभी स्वाभाव मैं बच्चीी ही है..पर उसका जवान शरीर…..ग़ज़ब
मादकता लिए हुए था. हम बहुत खुल गये ढेर सी बाते की. उसने
मुझे यहाँ तक बताया की उसकी मम्मी उसे ब्रा नहीं पहने देती और इस
बात पर वो अपनी मुम्मी से बहुत नाराज़ है. मैने उससे पूछा की उसका
साइज़ क्या है.
उसने मेरी आँखों मैं देखा, "पता नहीं….."
कभी नापा नहीं. बबली बोली.
अच्छा गेस करो……. वो बोली.
मैने गेस किया – 34-18-35.
वाह…आप तो बड़े होशियार हो…..
अच्छा…. मेरा साइज़ बताओ?
लड़को का कोई साइज़ होता है क्या?
मैने कहा हां होता है……
तो फिर आप ही बताओ….मुझे तो नहीं पता
8 इंच….और 6 इंच
ये क्या साइज़ होता है…?
तुम्हे पता नहीं….?
नहीं…….वो बोली.
अच्छा फिर कभी बताऊँगा….!
नहीं अभी बताओ ना…प्लीज़ …..
अच्छा जब घर-घर खेलने आओगी तब बताऊँगा…..
प्रॉमिस?
यस प्रॉमिस.
मम्मी – पापा का खेल
Re: मम्मी – पापा का खेल
इस यात्रा ने मेरा निश्चय पक्का कर दिया ….क्योंकि उसके बेइंतहा
सौंदर्या ने, उसके साथ की मदहोशी ने….उसके मांसल सीने को जब मैने
इतने नज़दीक से देखा……जीन्स मैं कसे उसके चौड़े गोल पुत्तों को
…उफफफफफ्फ़…मैं कैसा तड़प रहा था मैं ही जानता हूँ.
जल्द ही वो दिन आ गया…..मैं उस दिन घर पर अकेला था. बबली भी आ
गयी….लंच के बाद. मेरी त्यारी पूरी थी. एक बहुत सुंदर बीच ब्रा
और जी-स्ट्रिंग मैने खरीदी. एक नया जॉकी अंडरवेर अपने लिए या
कहूँ की उस दिन के लिए, जिसका मुझे किसी भी चीज़ से ज़्यादा इंतज़ार
था.
फिर उस दिन वो आई…लंच के बाद. वो सुबह टशन गयी थी, तब उसका
भाई ताला लगाकर कहीं चला गया था. कुछ और काम ना था तो वो
मेरे घर आ गई. उस दिन मैं भी अकेला था.क्या बताऊं जब दरवाजा
खोला और उसे खड़ा देखा तो मेरे बदन मैं एक झुरजुरी सी हो गई.
वो कमसिन हसीना मेरे सामने खड़ी थी.उन्नत तना हुई शर्ट मैं कसे
कसे बूब्स….वो गड्राया बदन….मेरी नस –नस फड़कने लगी. हम
बातचीत मैं खो गये. आख़िर वोही बोली चलो घर-घर खेलते
हैं…..जैसे हम बचपन मैं खेलते थे!
हां चलो…..बहुत मज़ा आएगा……देखते हैं बचपन का खेल अब खेलने
मैं कैसा लगता है……ठीक है…..तुम मम्मी …मैं डॅडी……
और हमारे बच्चे…? उसने हंसते हुए पूछा….
अरे हां….बच्चा तो कोई भी नहीं..है….तो फिर तो हम केवल पति
–पत्नी हुए ना अभी…..ना की मम्मी-डॅडी.
वो खुस हुई….हां ये ठीक है…..पति-पत्नी. आप मेरे पति और मैं
आपकी पत्नी. और आज हम पूरे घर के अंदर ये खेलेंगे…ना की किसी
कोने मैं…..
ओके….मैने कहा.
और हम पति-पत्नी की तरह आक्टिंग करने लगे. खेल सुरू हो गया. मैं
फिर उसकी खूबसूरती के जादू मैं डूबने लगा. मेरे शरीर मैं एक
खुशनुमा मादकता च्चाने लगी. उसके बदन को छूने …देखने के बहाने
मैं ढूँढने लगा. जैसे वो किचन मैं चाइ बनाने लगी…तो मैं
चुपके से पीछे पहुँच गया….और उसके बम्स पर एक चिकोटी काटी. वो
उच्छली…ऊऊ….क्या कर रहे हैं आप…..
अपनी खूबसूरत बीबी से छेड़ छाड़…..मैने मुस्कुराते हुए कहा.
वो वाक़ई मैं बेलन लेकर झूठ-मूठ मरने के लिए मेरे पीछे
आई….मैं दूसरे कमरे मैं भगा….उसने एक मारा भी…..
आआहह….तुम तो मारने वाली बीबी हो…..मैने शिकायत भरे स्वर मैं
कहा……देखना जो मेरी असली बीवी होगी ना….वो मुझसे पागलों की तरह
प्यार करेगी.
और आप….? आप उसे कितना प्यार करोगे….?
मैं…..आपने से भी ज़्यादा……दुनिया उसके कदमों मे रख दूँगा मैं…..
साच…? वो कितनी लकी होगी…..अच्छा आप उसे किस तरह पुकरूगे…?
मैं उसे हमेशा डार्लिंग कहूँगा…..
तो आज के लिए मुझे भी कहो ना….
ओके…..तो मेरी डार्लिंग बबली…..ये बेलन वापस रखो…..और नाश्ता
दो…..मुझे ऑफीस भी जाना है….
ओह…..हां अभी देती हूँ…..आप ऑफीस के लिए त्यार हो जाओ…
वो जैसे ही जाने लगी…मैने कहा एक मिनिट. वो रुकी. मैं आगे बड़ा ,
अचानक मैने उसे आपनी बाहों मैं उठा लिया…और ले चला….
आआहह….ऊओह…आप क्या कर रहे हैं……ऊओ..हह..और वो खिलखिलाई.
अपनी सुंदर सेक्सी पत्नी..को मैं ऐसे ही भाहों मैं उठा रखूँगा …..
डार्लिंग! मैने उसे उठा कर किचन तक ले गया….जिस्मों की ये पहली
मुलाकात बड़ी असरदायक थी. उसके दूधिया बूब्स की एक छोटी सी झलक
मिली जो उसने मुझे वहाँ पर देखते हुए देखा भी. झंघाओं का वो
स्पर्श…जब मैं उसे उठाए हुए था….धीरे धीरे उसके जिस्म से मेरी
छेड़ चाड बादने लगी. एक दो बार मैने उसे बाहों मैं भी भरा. वो
थोडा शरमाई भी..ज़्यादा नहीं…हल्की सी सुर्ख लाली …..गालों पर.
चलो आब ऑफीस जाओ…बहुत नटखट है ये मेरा पति…..सिर्फ़ शैतानिया
ही सुझति हैं आपको….वो बोली.
मैं झूठ-मूठ ऑफीस जाने का नाटक करने लगा (ये इस खेल का एक हिस्सा
होता था). ऑफीस जाने से पहले….मैं फिर उसके सामने खड़ा हो गया.
अब क्या है…..?
उसके कान मैं मैने कहा…….एक किस…..डार्लिंग, जो हर बीवी आपने पति
को ऑफीस जाने से पहले देती है.
और ये कहकर मैने उसे बाहों मैं भर लिया. वो
कसमसाई….छ्चोड़िए….क्या कर रहे हैं….बट अब मेरे होंठों ने….अपनी
प्यास भुझा ने की ठान ली थी. मैने उसे कसते हुए एक चुंबन उसके
दाहिने गाल पर जाड दिया…..सुंदर मदहोश कर देने वाला एक लंबा सा
किस. फिर उसे एक भरपूर नजऱ से देखा……उसके खूबसूरत चेहरे
को…दोनो मुस्कुराए…या मुस्कुराने की कोशिश की…..और फिर एक उनपेक्षित
चुंबन मैने उसके होंठो पर रख दिया. इस चुंबन ने जादू सा
किया. इसका प्रभाव ये हुआ की मेरे उठते हुए काम लंड ने इस चुंबन के
असर मैं आकर उसकी पेल्विस मैं एक चुभन दे डाली.ठीक वहीं
जहाँ…कुदरत ने उसका कर्म क्षेत्र बनाया है.
Re: मम्मी – पापा का खेल
मैने एक बार उसके होंठ छोड़ दिए….कहा….तुम बहुत सुंदर हो
बबली….तुम जैसी ही बीवी तो चाहिए मुझे….. कितना सुंदर बदन है
तुम्हारा…..और एक बार फिर मैं उसके होंठ पीने लगा. एक लंबे
चुंबन के बाद….. उसने साथ नहीं दिया था…….मैने
पूछा….बबली….बुरा तो नहीं लगा?
नहीं…बिल्कुल नहीं…..आप तो किस करने मैं माहिर हैं!…. .वो नज़र
झुकाए ही बोली.
तो फिर तुमने क्यों नहीं किस किया मुझे…..?
मुझे नहीं आता …… आप सिख़ाओगे? अच्छा पर अभी आप ऑफीस जाओ……. वो
मुझे धक्का देने लगी.
अच्छा बाबा…जाता हूँ …..मैं हंसते हुए बोला.
मेरे लिए ऑफीस से वापस आते हुए क्या लाओगे…..?
एक गरमागरम किस…..
मारूंगी हां…..वो बनावटी गुस्से से बोली…..
मैं जाते हुए बोला…..अक्चा अक्च्छा मैं लाओंगा…..
थोड़ी देर के लिए मैं घर से बाहर गया. ऐसे ही नाटक करते हुए
मैं वापस भी आ गया. वो बेडरूम मैं थी. मैं चुपके से दूसरे
कमरे गया. उसके लिए मैने जो बीच ब्रा और जी-स्ट्रिंग पॅंटी खरीदी
थी वो पॅकेट निकाला……इन कपड़ों को चूमा. फिर जैसे की ऑफीस से
वापस आ गया……वापस बेडरूम मैं आ गया, जहाँ वो लेटी थी.
फिर यूँ ही खेल के कुछ और हिस्से चले…..फिर शाम भी हुई ….घूमने
गये….एसा करते करते हमारे खेल मैं रात आई…
इस खेल के डिन्नर के बाद…..? जब हमै रात मैं एक साथ सोना
था…उस समय उसने पूछा ….मेरे लिए क्या लाए…?
मैने पॅकेट उसके हाथ मैं दिया……देखो…..
क्या है….. वो ब्रा और पॅंटी निकालते हुए बोली……
वाउ….कितनी सुंदर है ये…..पर ये तो बहुत छोटी छोटी हैं…….
ब्रा और पॅंटी कोई बड़ी बड़ी होती हैं क्या…? मैं तो अपनी बीवी को ऐसी
ही पहनाओंगा….
पहनकर तो देखो…..
ओके….देखती हूँ…सच आप वाक़ई अच्छे पति हो आपको याद था की मुझे
ब्रा पहनना बहुत पसंद है? थॅंक यू…
थॅंक यू से काम नहीं चलेगा….पहनकर दिखना पड़ेगा……मैं भी तो
देखूं 34-18-35 के खूबसूरत जिस्म पर ये कैसे सुंदर लगते हैं….!
धात…स्ष…मैं कोई इन कपड़ों मैं आपके सामने आओंगी…?
क्यों भाई पति से शरमाओगी क्या? तो फिर दिखओगि किसे …डार्लिंग?
प्लीआसस्स्सीए! दिखाओ ना!
आच्छा ठीक है पर दूर से देखना पास ना आना. ओके?
ठीक है बाबा…तुम जाओ तो सही!
और ये क्या है…ये मेरा अंडरवेर है…..मैने आपना जॉकी उसके हाथ से
लेते हुए कहा….
वो दूसरे कमरे मैं चली गई…….मैने बिजली की फुरती से अपने कपड़े
निकाले और सिर्फ़ वो नया जॉकी का अंडरवेर पहन लिया….और मिरर के
सामने देखने लगा. जैसे की देख रहा हूँ कि ये अंडरवेर कैसा लगता
है. अंडरवेर बहुत सेक्सी था.फ्रंट मैं सिर्फ़ लंड को कवर करता
था.बाकी उस्मै बॉल तक सारे दिख रहे थे.
उसने आवाज़ दी ….मैं आऊ?
हां हां…डार्लिंग…मेरी जान आओ….!
वो थोड़ा शरमाती हुई आई…..अभी मैने उसके बदन की झलक ही देखी
थी की वो …वापस पलट गई….उउउइइइइमम्माआ……..!!!!!!!!!!!
मैं उसके पीछे लपका….और दूसरे कमरे मैं उसके सामने खड़ा हो गया.
एयाया….प्प्प..प्प्प नंगे क्यों हो गये…?
मैं….तो…तो..तो…अंडरवेर …पा…आ..आ..हहान..सीसी..आ….र्ररर देख रहा था….था…!
फिर हुमारे मुख मैं जैसे बोल अटक गये. मैं भी रोज एक्सर्साइज़ करता
था और मेरा बदन भी बड़ा गथीला था. वो मेरे जिस्म मैं खो गई
और मैं उसके उठाव –चढ़ाव- उतराव मैं. एक कमसिन अक्षत कौमार्या
मेरे सामने लगभग नग्न खड़ी थी. उस नयी जवानी भरे जिस्म पर वो
उठे हुए कसे कसे बड़े बड़े बूब्स….वो पतला सा पेट…..दुबली सी
कमनीया कमर….और फिर चौड़े नितंब……जी-स्ट्रिंग तो उसके उभरे हुए
गुलाबी चूत को भी पूरा नहीं धक पा रही थी.थोड़े थोड़े से रेशमी
बाल इधर उधर बिखरे थे.उसका वेजाइनल माउंड काफ़ी बड़े आकर का और
उभरा हुआ था…फूला फूला सा. और उसकी वो मादक झंघा….पतली लंबी
टांगे……बला की सेक्सी थी वो…फिल्म की हेरोयिन भी क्या उसके सामने
टिकेंगी…..मैं अचंभित सा कामुक दृष्टि से उसे यौं ही देखता
रहा….और कब मेरा लंड टंकार खड़ा हो गया …..मुझे खुद पता ना
चला.