मम्मी – पापा का खेल
Posted: 17 Dec 2014 21:56
मम्मी – पापा का खेल
बबली मेरे पड़ोस मैं रहती थी. बचपन मैं हम एक खेल खेलते थे,
जिसका नाम था "घर-घर". उमर कोई यों ही 3-6 साल तक रहा करती
होगी. घर के किसी कोने मैं हम बच्चे लोग एक दो चदडार के सहारे
किसी बड़े पलंग के नीचे साइड से ढककर घर बनाते…फिर उसे
सजाते…छोटे छोटे खिलोनो से और ये खेल खेलते. दिन – दिन भर
खेलते रहते थे. खास तौर से गर्मियों की छुट्टियों मैं. एक बच्चा
डॅडी बनता…एक मम्मी बनती….और बाकी उनके बच्चे. फिर डॅडी ऑफीस
जाते…मम्मी खाना बनाती…..बच्चे स्कूल जाते….खेलने जाते……और वो सब
हम सब बच्चे नाटक करते….जैसा की अक्सर घर मैं होता था.अक्सर…
हम आस-पड़ोस के आठ-दस बच्चे इस खेल को खेला करते. पता नहीं उस
छोटी सी उमर मैं मुझे याद है , जब जब बबली मम्मी बनती थी और
मैं पापा, तो मुझे खेल मैं एक अलग सा आनंद मिलता था. सामने वाले
शर्मा जी की बेटी थी वो. शर्मा जी कोई बड़े अमीर तो ना थे, पर उनकी
बेटी, यानी की रिंकी…अपने गोरे-चिट रंग…और खूबसूरत चेहरे से,
शर्मा जी की बेटी कम ही लगती थी.
उस उमर मैं वो बड़ी प्यारी बच्ची थी. कौन जानता था की बड़ी होकर वो
सारी कॉलोनी पर कयामत ढाएगी! वो मेरी अच्छी दोस्त बनी रही , जिसकी
एक वजह ये भी थी की हम एक ही स्कूल मैं पड़ते थे. और धीरे
धीरे ज्यों ज्यों साल बीतने लगे….भगवान बबली को दोनो हाथों से
रंग रूप देने लगे….और दोस्तों रूप अपने साथ नज़ाकत…और कशिश
अपने आप लाने लगता है……खूबसूरत लड़की कुछ जल्दी ही नशीली और
जवान होने लगती है. बबली के 14थ जन्मदिन पर जब हम उसके स्कूल
और कॉलोनी के दोस्त उसे बधाई देने लगे……मैं एक कोने से छुपी और
चोरी चोरी की नज़रों से उसे देख रहा था. मेरी कोशिश ये थी कि
उसकी खूबसूरती को अपनी आँखों से पी लेने मैं मुझे कोई डिस्टर्ब ना
कर दे.वो एक मदहोश कर देने वाली गुड़िया की तरह लग रही
थी…….उसके हाव-भाव देख कर मेरी सारी नस तन गयी….करीब 18 बरस
का ये नौजवान लड़का अपनी झंघाओं के बीच मैं कुछ गरमी महसूस
कर रहा था….और मैने नीचे तनाव महसूस किया. बबली का गुदाज
जिस्म….अपने गोरेपन के साथ मुझे खींचता ले जा रहा था….उस नरम
त्वचा को छूने के लिए सहसा मेरे अंदर एक तड़प उठने लगी. कहीं
एकांत मैं बबली के साथ..केवल जहाँ वो हो और जहाँ मैं हूँ. और
फिर उस एकांत मैं नियती हमसे वो करवा दे जो की दो जवान दिल और
जिस्म नज़दीकी पा कर कर उठते हैं.
कुछ और समय बीता और बबली का शरीर और खिलने लगा…आंग बढ़ने
लगी और उसके साथ मेरा दीवानापन बढ़ने लगा…..एक सुद्ध वासना जो उसके
आंग आंग के कसाव, बनाव और उभरून को देख कर मुझे अपने आगोश
मैं लपेट लेती थी. तक़दीर ने मुझ पर एक दिन छप्पर फाड़ कर
खुशी दी. एक बार फिर मैने "घर-घर"का खेल खेला, पर करीब 15
बरस की जवान गदराई…भरपूर मांसल लड़की के साथ. केवल अपनी बबली
के साथ.
हुआ यूँ की फिर वही गर्मियों की छुट्टिया थी. बबली देल्ही जा रही
थी अपने अंकल के यहाँ. मैं भी देहली गया था किसी काम से. वापस
आते समय मैने सोचा की क्यों ना एक फोन कर के पूछ लूँ कि शायद
शर्मा जी का परिवार भी वापस चल रहा हो तो साथ साथ मैं भी
चलूं (दरअसल मैं बबली के साथ और दीदार के लिए मरा जा रहा
था.). फोन बबली ने ही उठाया और वो बड़ी खुश हुई की मैं वापस
जा रहा हूँ मुंबई, और बोली की वो भी चलेगी मेरे साथ. उसकी ज़िद के
आगे शरमजी झुक गये और इस तरह बबली अकेली मेरे साथ मुंबई चल
दी. हालाँकि वो घर पर अपने भाई के साथ रहती, पर मैं इस यात्रा से
बड़ा खुश था. मैने शताब्दी एक्स्प की दो टिकेट्स बुक की और हम
चले. मैने उसका परा ख़याल रखा और इस यात्रा ने हम दोनो को फिर
बहुत नज़दीक कर दिया. यात्रा के दौरान ही एक बार फिर घर –घर
खेलने का प्रोग्राम बना और बबली ने वादा किया की वो मेरे घर आएगी
किसी दिन और हम बचपन की यादें ताज़ा करेंगे. मैने महसूस किया की
वो अभी स्वाभाव मैं बच्चीी ही है..पर उसका जवान शरीर…..ग़ज़ब
मादकता लिए हुए था. हम बहुत खुल गये ढेर सी बाते की. उसने
मुझे यहाँ तक बताया की उसकी मम्मी उसे ब्रा नहीं पहने देती और इस
बात पर वो अपनी मुम्मी से बहुत नाराज़ है. मैने उससे पूछा की उसका
साइज़ क्या है.
उसने मेरी आँखों मैं देखा, "पता नहीं….."
कभी नापा नहीं. बबली बोली.
अच्छा गेस करो……. वो बोली.
मैने गेस किया – 34-18-35.
वाह…आप तो बड़े होशियार हो…..
अच्छा…. मेरा साइज़ बताओ?
लड़को का कोई साइज़ होता है क्या?
मैने कहा हां होता है……
तो फिर आप ही बताओ….मुझे तो नहीं पता
8 इंच….और 6 इंच
ये क्या साइज़ होता है…?
तुम्हे पता नहीं….?
नहीं…….वो बोली.
अच्छा फिर कभी बताऊँगा….!
नहीं अभी बताओ ना…प्लीज़ …..
अच्छा जब घर-घर खेलने आओगी तब बताऊँगा…..
प्रॉमिस?
यस प्रॉमिस.
बबली मेरे पड़ोस मैं रहती थी. बचपन मैं हम एक खेल खेलते थे,
जिसका नाम था "घर-घर". उमर कोई यों ही 3-6 साल तक रहा करती
होगी. घर के किसी कोने मैं हम बच्चे लोग एक दो चदडार के सहारे
किसी बड़े पलंग के नीचे साइड से ढककर घर बनाते…फिर उसे
सजाते…छोटे छोटे खिलोनो से और ये खेल खेलते. दिन – दिन भर
खेलते रहते थे. खास तौर से गर्मियों की छुट्टियों मैं. एक बच्चा
डॅडी बनता…एक मम्मी बनती….और बाकी उनके बच्चे. फिर डॅडी ऑफीस
जाते…मम्मी खाना बनाती…..बच्चे स्कूल जाते….खेलने जाते……और वो सब
हम सब बच्चे नाटक करते….जैसा की अक्सर घर मैं होता था.अक्सर…
हम आस-पड़ोस के आठ-दस बच्चे इस खेल को खेला करते. पता नहीं उस
छोटी सी उमर मैं मुझे याद है , जब जब बबली मम्मी बनती थी और
मैं पापा, तो मुझे खेल मैं एक अलग सा आनंद मिलता था. सामने वाले
शर्मा जी की बेटी थी वो. शर्मा जी कोई बड़े अमीर तो ना थे, पर उनकी
बेटी, यानी की रिंकी…अपने गोरे-चिट रंग…और खूबसूरत चेहरे से,
शर्मा जी की बेटी कम ही लगती थी.
उस उमर मैं वो बड़ी प्यारी बच्ची थी. कौन जानता था की बड़ी होकर वो
सारी कॉलोनी पर कयामत ढाएगी! वो मेरी अच्छी दोस्त बनी रही , जिसकी
एक वजह ये भी थी की हम एक ही स्कूल मैं पड़ते थे. और धीरे
धीरे ज्यों ज्यों साल बीतने लगे….भगवान बबली को दोनो हाथों से
रंग रूप देने लगे….और दोस्तों रूप अपने साथ नज़ाकत…और कशिश
अपने आप लाने लगता है……खूबसूरत लड़की कुछ जल्दी ही नशीली और
जवान होने लगती है. बबली के 14थ जन्मदिन पर जब हम उसके स्कूल
और कॉलोनी के दोस्त उसे बधाई देने लगे……मैं एक कोने से छुपी और
चोरी चोरी की नज़रों से उसे देख रहा था. मेरी कोशिश ये थी कि
उसकी खूबसूरती को अपनी आँखों से पी लेने मैं मुझे कोई डिस्टर्ब ना
कर दे.वो एक मदहोश कर देने वाली गुड़िया की तरह लग रही
थी…….उसके हाव-भाव देख कर मेरी सारी नस तन गयी….करीब 18 बरस
का ये नौजवान लड़का अपनी झंघाओं के बीच मैं कुछ गरमी महसूस
कर रहा था….और मैने नीचे तनाव महसूस किया. बबली का गुदाज
जिस्म….अपने गोरेपन के साथ मुझे खींचता ले जा रहा था….उस नरम
त्वचा को छूने के लिए सहसा मेरे अंदर एक तड़प उठने लगी. कहीं
एकांत मैं बबली के साथ..केवल जहाँ वो हो और जहाँ मैं हूँ. और
फिर उस एकांत मैं नियती हमसे वो करवा दे जो की दो जवान दिल और
जिस्म नज़दीकी पा कर कर उठते हैं.
कुछ और समय बीता और बबली का शरीर और खिलने लगा…आंग बढ़ने
लगी और उसके साथ मेरा दीवानापन बढ़ने लगा…..एक सुद्ध वासना जो उसके
आंग आंग के कसाव, बनाव और उभरून को देख कर मुझे अपने आगोश
मैं लपेट लेती थी. तक़दीर ने मुझ पर एक दिन छप्पर फाड़ कर
खुशी दी. एक बार फिर मैने "घर-घर"का खेल खेला, पर करीब 15
बरस की जवान गदराई…भरपूर मांसल लड़की के साथ. केवल अपनी बबली
के साथ.
हुआ यूँ की फिर वही गर्मियों की छुट्टिया थी. बबली देल्ही जा रही
थी अपने अंकल के यहाँ. मैं भी देहली गया था किसी काम से. वापस
आते समय मैने सोचा की क्यों ना एक फोन कर के पूछ लूँ कि शायद
शर्मा जी का परिवार भी वापस चल रहा हो तो साथ साथ मैं भी
चलूं (दरअसल मैं बबली के साथ और दीदार के लिए मरा जा रहा
था.). फोन बबली ने ही उठाया और वो बड़ी खुश हुई की मैं वापस
जा रहा हूँ मुंबई, और बोली की वो भी चलेगी मेरे साथ. उसकी ज़िद के
आगे शरमजी झुक गये और इस तरह बबली अकेली मेरे साथ मुंबई चल
दी. हालाँकि वो घर पर अपने भाई के साथ रहती, पर मैं इस यात्रा से
बड़ा खुश था. मैने शताब्दी एक्स्प की दो टिकेट्स बुक की और हम
चले. मैने उसका परा ख़याल रखा और इस यात्रा ने हम दोनो को फिर
बहुत नज़दीक कर दिया. यात्रा के दौरान ही एक बार फिर घर –घर
खेलने का प्रोग्राम बना और बबली ने वादा किया की वो मेरे घर आएगी
किसी दिन और हम बचपन की यादें ताज़ा करेंगे. मैने महसूस किया की
वो अभी स्वाभाव मैं बच्चीी ही है..पर उसका जवान शरीर…..ग़ज़ब
मादकता लिए हुए था. हम बहुत खुल गये ढेर सी बाते की. उसने
मुझे यहाँ तक बताया की उसकी मम्मी उसे ब्रा नहीं पहने देती और इस
बात पर वो अपनी मुम्मी से बहुत नाराज़ है. मैने उससे पूछा की उसका
साइज़ क्या है.
उसने मेरी आँखों मैं देखा, "पता नहीं….."
कभी नापा नहीं. बबली बोली.
अच्छा गेस करो……. वो बोली.
मैने गेस किया – 34-18-35.
वाह…आप तो बड़े होशियार हो…..
अच्छा…. मेरा साइज़ बताओ?
लड़को का कोई साइज़ होता है क्या?
मैने कहा हां होता है……
तो फिर आप ही बताओ….मुझे तो नहीं पता
8 इंच….और 6 इंच
ये क्या साइज़ होता है…?
तुम्हे पता नहीं….?
नहीं…….वो बोली.
अच्छा फिर कभी बताऊँगा….!
नहीं अभी बताओ ना…प्लीज़ …..
अच्छा जब घर-घर खेलने आओगी तब बताऊँगा…..
प्रॉमिस?
यस प्रॉमिस.