गाओं की गोरियाँ

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raj..
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गाओं की गोरियाँ

Unread post by raj.. » 17 Dec 2014 22:03

गाओं की गोरियाँ पार्ट--1


हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक ओर नई कहानी लेकर आपके सामने हाजिर हूँ .
दोस्त जिस तरह आप सब को मेरी पिछली सभी कहानियाँ पसंद आई हैं आशा करता हूँ
ये कहानी भी आपको पसंद आएगी कहानी की शुरू-आत कुछ इस तरह से है
आनंद एक गाओं की ऑफीस मे नौकरी करता था. वो उस गाओं के हर आदमी
और औरतों को जानता था. गाओं के किसी भी आदमी को कोई भी काम हो पर वो
सब आनंद के पास पहले आते थे और बाद मे बीडीओ से मिलते थे. ऐसा ना
करने पर ऑफीस से उनकी फाइल कभी ना कभी गायब हो जाया करती
थी और वो फाइल तब तक नही मिलती थी जब तक ना आनंद को खुश
कर दिया जाता था. इस तरह से आनंद का गाओं मे काफ़ी दबदबा था.
आनंद की शादी अभी नही हुई थी और इसी लिए वो गाओं की औरत
और लड़कियों को घूर घूर कर देखता था. गाओं के कुँवारी लरकियाँ भी
आनंद को छुप छुप कर देखती थी क्योंकि वो एक तो अभी कुँवारा था
और दूसरी तरफ उसका गाओं मे काफ़ी रुतबा था. आनंद इस बात से वाकिफ़
था और बारे इतमीनान से अपने लिए सुंदर लड़की की तलाश मे था.
आनंद की सरकारी नौकरे से काफ़ी आमदनी हो जाती थी और इसलिए उसको
पैसे की कोई कमी नही थी.

एक दिन आनंद सहर से सरकारी काम ख़तम करके लौट रहा था. वो
जब अपने गाओं मे बस से उतरा तो उस समय दुपहर के करीब 1.00 बजा
था. ऊन्दिनो गर्मी बहुत पड़ रही थी और मई का महीना था. उस
वक़्त कोई भी आदमी अपने घर के बाहर नही रुकता था. इसलिए उस
दोपहर के समय सड़क काफ़ी सुनसान थी और आनंद को कोई सवारी गाओं
तक मिलने की आशा नही थी. आनंद बहादुरी के साथ अपने गाओं, जो
की करीब दो किलोमेटेर दूर था, पैदल ही चल पड़ा. वो अपने सर के
उपर छाता लगा कर और अपने कंधों पर ऑफीस फाइल का बॅग रख
कर गाओं की तरफ पैदा ही चल पड़ा. वो काफ़ी ज़ोर-ज़ोर चल रहा था
जिससे की जल्दी से वो अपने घर को पहुँच जाए.

आनंद चलते चलते गाओं के किनारे तक पहुँच गया. गाओं के किनारे
आम का बगीचा था जो की टूटी फूटी तार के बाड़े से घिरा था.
आनंद ने सोचा कि अगर आम के बगीचा के अंदर से जाया जाए तो थोड़ी
सी दूरी कम होगी और धूप से भी बचा जा सकेगा. ये सोच कर
आनंद तार के बाड़े मे घुस गया और अपने छाता को मोड़ कर चलने लगा.
वो अभी थोरी दूर ही चला होगा की सामने बगीचा के रखवाले,
नरेन्द्रा, की झोपड़ी तक पहुँच गया. अनानद ने सोचा की वो नरेन्द्रा
के घर थोरी देर आराम कर पानी और छाछ पी कर अपने घर जाएगा.
आनंद सोचा रहा था की वो पहले नहर मे नहाएगा और पानी पिएगा.

आनंद जैसे ही नरेन्द्रा के झोपड़ी के पास पहुँचा तो उसे बर्तन
गिरने की आवाज़ सुनने मे आई. "अरे भाभी, साबधानी से काम कर, मेरे
बर्तनो को मत तोड़," नरेन्द्रा की आवाज़ सुनाई दी. "माफ़ करना
नरेन्द्रा, बर्तन मेरे हाथ से फिसल गया," एक औरत की आवाज़ सुनाई
दी. "ये तो बड़ी अजीब बात है," आनंद. ने सोचा क्यूंकी नरेन्द्रा
की पत्नी का देहांत कई साल पहले हो चुक्का था. "अब ये औरत कौन
हो सकती है? आनंद सोचने लगा. आनंद बहुत उत्सुक हो गया कि ये
औरत नरेन्द्रा के घर मे कौन आई है. वो धीरे धीरे दबे पावं
नरेन्द्रा के घर की तरफ चल पड़ा. वो एक आम के छोटे से पेड के
पीछे जा कर खड़ा हो गया और वहा से नरेन्द्रा के घर मे झाँकने
लगा. उसने देखा की नरेन्द्रा अपने घर मे एक चबूतरे मे बैठ कर
अपने आप पंखा झल रहा है.

raj..
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Re: गाओं की गोरियाँ

Unread post by raj.. » 17 Dec 2014 22:03



"ओह! कितनी गर्मी है" ये कहते हुए एक औरत अंदर से बाहर आई.
आनंद उसको देख कर चौंक उठा. वो आनंद के खास दोस्त, अजीत" की
पत्नी थी और उसकी नाम आशा था. आनंद उनके घ्रर कई बार जा चुक्का
था. आशा एक बहुत ही सुंदर और एक सरीफ़ औरत है. आशा ने इस समय
सिर्फ़ एक साड़ी पहन रखी थी और उसके साथ ब्लाउस नही पहन
रखा था और अपनी छाती अपने पल्लू से छुपा रखी थी. पल्लू के
उप्पेर से आशा की चूंची साफ साफ दिख रही थी, क्योंकी साडी बहुत
ही महीन थी. आशा नरेन्द्रा के पास आकर बैठ गयी. आशा चबूतरे
के किनारे पर बैठी थी, उसकी एक टांग चबूतरे के नीचे लटक
रही थी और एक टांग उसने अपने नीचे मोड़ रखी थी. इस तरह
बैठने से उसकी साड़ी काफ़ी उप्पेर उठ चुकी थी और उसके चूतर
साफ साफ दिख रहे थे. "मेरे गोदी मे लेट जाओ नरेन्द्रा, मैं तुम्हे
पंखा से हवा कर देती हूँ. कम से कम आम के पेड़ के नीचे थोड़ा
बहुत ठंडा है" आशा बोली.

"इस तरफ की गर्मी कई साल के बाद पड़ी है," नरेन्द्रा ने कहा और
आशा की गोदी ने अपना सर रख कर लेट गया, जैसे ही आशा पंखा
झलने लगी तो नरेन्द्रा ने उप्पेर की तरफ देखा तो आशा की चूंची को
अपने चहेरे के उप्पेर पाया. नरेन्द्रा अपने आप को रोक नही पाया और
साडी के उप्पेर से ही वो आशा की चूंची को धीरे धीरे दबाने
लगा. "अजीत बहुत किस्मत वाला है, उसे हर रोज इन सुंदर चूंचियों से
खेलने को मिलता है. अजीत इतनी सुंदर औरत को हर रात
चोद्ता है," नरेन्द्रा बोल रहा था और आशा की चूंची को धीरे
धीरे दबा रहा था. "तुम अपने आप को और मुझको परेशान मत करो,
तुम अच्छी तरफ से जानते हो कि मुझको कितनी देर तक उसका लंड चूस
चूस कर खड़ा करना पड़ता है. फिर उसके बाद वो दो चार धक्के मार
कर झाड़ जाता है. अगर वो मुझको अच्छी तरफ से चोद पाता तो क्या मैं
तुम्हारे पास कभी आती? खैर अब मुझको कोई परेशानी नही है और
ना मुझको कोई शिकायत है." इतना कहा कर आशा झुक कर नरेन्द्रा की
धोती के उप्पेर से उसका आधे खड़े लंड को उपर हाथ सेमसल्ने लगी.
ऐसा करने से आशा की चूंची अब नरेंद्र के मुँह के साथ रगड़ खाने
लगी नरेन्द्रा झट आशा की पतली साडी का पल्लू हटा कर
उसकी चूंची को अपने हाथों मे लेकर उनसे खेलने लगा. फिर नरेन्द्रा
आशा की दाँयी चूंची अपने मूह मे ले चूसने लगा और बाँयी
चूंची की मसल्ने लगा.

आनंद फटी फटी आँखो से देखने लगा की आशा की चूंचियाँ मीडियम साइज़
के पपीते के बराबर कड़ी और खड़ी थी. नरेन्द्रा अपने
दोनो हाथों से आशा की चूंची को संभाल नही पा रहा था. आनंद
जब जब अजीत के घर जाया करता था तब वो आशा की चूंचियों को अपने
कनखेओं से देखा करता था. लेकिन आनंद को यह उम्मीद नही थी की
आशा की चूंचियाँ इतनी बड़ी बड़ी और सुंदर होगी. आशा ने अपने हाथों
से नरेन्द्रा की धोती उतार कर उसका लंड बाहर निकाल लिया. फिर उसको
अपने होठों मे लेकर धीरे सहलाने लगी और फिर नरेन्द्रा के उपर
उल्टी लेट कर (69 पोज़िशन) नरेन्द्रा का लंड अपने मूह मे ले लिया.
नरेन्द्रा तबतक आशा की साडी उसके चूतर तक उठा चुका था और उसकी झांतों
भरी चूत को पूरी तरफ से नंगी कर दिया. आशा की गोरी गोरी
जघे बहुत सुडोल और सुंदर थी और उसकी चूतर भी भी गोल गोल थे.
नरेन्द्रा अब आशा की चूत की फांको को अपने हाथों से फैला कर उसकी
चूत को चाटने लगा. आनंद जहाँ खड़ा था उसको सब कुछ साफ साफ
दिख रहा था. अनद का लंड अब खड़ा हो चुक्का था, उसने अपने पैंट
की ज़िप खोल कर अपना 10" का तननाया हुआ लंड बाहर निकाल कर अपने
हाथों से सहलाने लगा. आनंद ने देखा की आशा की चूत पर से
झांतो की चादर हटाने से चूत के अंदर का लाल लाल हिस्सा साफ साफ
दिख रहा था. नरेन्द्रा अपनी जीभ निकाल कर के आशा की चूत पर
फिराने लगा. आशा अपनी चूत पर नरेन्द्रा का जीभ लगते ही धीमे
धीमे आवाज़ निकालने लगी. आशा अपनी चूत नरेन्द्रा के मुँह पर
रगड़ने लगी और वो नरेन्द्रा का लॅंड इतने ज़ोर ज़ोर से चूसने लगीकी
आनंद को बाहर से उसकी आवाज़ सुनाई देने लगी.

ऊन्दोनो ने अपनी पोज़िशन बदल ली और अब नरेन्द्रा के उप्पेर आशा
पूरी मस्ती से बैठी थी और अपनी चूत नरेन्द्रा से चुस्वा रही
थी. इस समय आशा की चूंची बहुत ज़ोर ज़ोर से हिल रही थी और
उन चूंचियों को नरेन्द्रा अपने दोनो हाथो से पकड़ कर मसल रहा था.
इस समय आशा अपने मूह से तरफ तरफ की आवाज़ निकाल रही थी. आनंद
ने यह सब देख कर अपने हाथों से अपना लंड ज़ोर ज़ोर से मलने लगा.
एका एक आशा चबूतरे से नीचे उतार. . नीचे उतरते ही उसकी
साडी जो कि बहुत ढीली हो चुकी थी आशा की बदन से फिसल कर
नीचे गिर पड़ी और वो पूरी तरफ से नंगी हो गयी. आनंद अब आशा
के गोल गोल चूतरो को साफ साफ देख रहा था और उनको पकर कर मसल्ने
के लिए बेताब हो रहा था. अब आशा चबूतरे को हाथों से पकड़ कर
झुक कर खड़ी हो गयी और अपने पैर फैला दिए. नरेन्द्रा ने आशा
के पीछे जा कर अपना मूसल जैसा खड़ा लंड आशा की चूत मे घुसेड
दिया और ज़ोर ज़ोर से आशा को पीछे से चोदने लगा. इस समय नरेन्द्रा
और आशा दो नो ही गर्म हो चुके थे और दोनो एक दूसरे को ज़ोर ज़ोर से
चोद रहे थे. आनंद भी ये सब देख कर ज़ोर ज़ोर अपने हाथों से मूठ
मारने लगा. जल्दी ही अनद का पानी निकल गया और उधर नरेन्द्रा और
आशा दोनो एक दूसरे को ज़ोर ज़ोर से चोद रहे थे और बॅड बड़ा रहे
थे. आनंद अब अपने छुपने की जगह से निकल कर चुप चाप दूसरे
रास्ते से अपने घर की तरफ चल पड़ा और उधर नरेन्द्रा और आशा
दोनो झाड़ चुके थे.

raj..
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Re: गाओं की गोरियाँ

Unread post by raj.. » 17 Dec 2014 22:04



उस दिन शाम को आनंद अपने दोस्त अजीत के घर गया और अजीत से गपशप
करने लगा. उसने आशा को अपने कनखेओं से देखा और उसके दिमाग़ मे उस
दिन दोपहर की घटना फिर से घूम गयी. आनन्द को इस समय आशा का
भरा भरा बदन बहुत ही अच्छा लग रहा था और वो उस बदन को अपनी
वासना भरी आँखो से नाप तोल; रहा था. आशा को इस सब बातों का एहसास
नही था और वो भी आनंद से पहले जैसी बातें कर रही थी. आनद
को अपने आप को रोक पाना मुश्किल हो रहा था और वो एक बहाने के साथ
अजीत के घर से उठ कर अपने घर की तरफ चल पड़ा. अपने घर आकर
अकेले मे भी उसका दिमाग़ शांत नही हुआ. वो सोच रह था की कैसे वो
आशा को अपने बाहों मे भर कर चोदेगा. उसके दिमाग़ मे अब एक ही बात
घूम रहा थी की कैसे वो आशा को अपना बनाएगा, चाहे हमेशा के
लिए या फिर चाहे एक बार के लिए. उसको आशा की चूत मे अपना लंड
पेलने की ख्वाइश थी. वो अपने दोस्त की नकाबलियत जान चुक्का था और
रात भर आशा के बारे मे सोचता रहा. इस समय आनंद सिर्फ़ आशा की चूत
चाहता था. आख़िर कार वो थक कर चुप चाप सो गया औरसूबह जब
उसकी आँख खुली तब धूप आसमान पर चढ़ चुकी थी. वो अपने नित्या
क्रिया पर जुट गया.

उस दिन रविबार था. आनंद के दिमाग़ मे अब आशा ही आशा थी और वो
सोच रहा था की कैसे वो आशा को अपने जाल मे फँसाएगा. आनद अपनी
सुबह की सैर पर निकल पड़ा. चलते चलते, आनद अंजाने मे आशा के
आम के बगीचे की तरफ निकल पड़ा. वो आशा के आम के बगीचे मे घुस
कर नरेन्द्रा के झोपड़ी की तरफ चल पड़ा. आनंद जब नरेन्द्रा की
झोपड़ी के पास पहुँचा तो उसको आशा की आवाज़ सुनाई दी. आनद ने झट
अपने आप को एक आम के पेड के पीछे छुपा लिया और छुप कर देखने
लगा. उसने देखा की नरेन्द्रा अपने आप को एक तौलिया मे लप्पेट कर
कुछ कपरे और साबुन लिए नहर की तरफ जा रहा है और आशा उसके
पीछे पीछे चल रही है. जैसे वी लोग आनंद के सामने निकल कर
नहर की तरफ मूड गये, आनंद भी अपने छुपने के जगह से निकल कर
नहर के किनारे जा कर छुप गया और उनकी क्रिया कलाप देखने लगा.

आशा ने नहर पर आ कर नरेन्द्रा से उसके कपड़े लिए और घुटने तक पानी
मे अपनी साडी को उठा कर घुस गयी और नरेन्द्रा के कपड़े नहर के
पानी मे धोने लगी. आशा इस्सामय घुटने तक पानी मे थी और उसने
अपनी साडी को काफ़ी उप्पेर उठा रखी थी और इस इस समय उसकी गोरी
गोरी जाँघ काफ़ी उपेर तक दिख रही थी. नरेन्द्रा नहर किनारे एक
पठार बैठा बैठा आशा को देख रहा था और उसका तौलिया उसके
गुप्तन्ग के पास उठ कर एक तंबू की तरफ ताना हुआ था. कापरे. धोने
के बाद आशा ने नरेन्द्रा को आवाज़ दी, "नरेन्द्रा ई. आओ, मैं
तुम्हारे पीठ पर साबुन लगा देती हूँ." नरेन्द्रा अपने तौलिया को
तंबू बनाए नहर के पानी मे घुस कर आशा के पास आ गया . आशा ने तौलिया के
तंबू को देख कर उस पर हाथ लगाया और नरेन्द्रा के तौलिया को
खींच कर निकाल दिया. अब नरेन्द्रा बिल्कुल नंगा खड़ा था और उसका
खड़ा हुआ लंड आशा की तरफ था. आशा ने बड़े प्यार से नरेन्द्रा का
खड़ा हुआ लंड अपने हाथों मे लेकर सहलाया. फिर आशा ने नरेन्द्रा
को धीरे से पानी मे धकेल दिया. पानी मे धकेल ने से नरेन्द्रा तीन-
चार डुबकी लगा कर फिर से पत्थर पर जा कर खड़ा हो गया. आशा
उसके पीछे पीछे जा कर नरेन्द्रा के पास खड़ी हो गयी. नरेन्द्रा
पत्थर पर नगा ही बैठ गया. आशा नरेन्द्रा के सिर और पीठ पर
साबुन लगा कर रगड़ने लगी. नरेन्द्रा खड़ा हो गया. आशा तब
नरेन्द्रा के छाती और पेट पर साबुन लगा. लगी. वो नरेन्द्रा के
पेट के पास रुक गयी. नरेन्द्रा का खड़ा लंड आशा के लिए बहुत
लुववाना. था. लेकिन इस समय आशा कुछ करने की मूड मे नही थी,
क्योंकि, थोड़ी देर पहले ही नरेन्द्रा उसकी चूत मे अपना लंड पेल कर
आशा को रगड़ कर चोद चुक्का था.

"क्या तुम्हारा हथियार कभी सुस्त नही पड़ता?" आशा ने मुस्कुरा कर
नरेन्द्रा से पूछा. "कैसे सुस्त रह सकता है जब तुम पास मे हो?"
नरेन्द्रा ने जवाब दिया. "तुम्हे इसकी मदद करनी चाहिए" नरेन्द्रा ने
कहा. तब आशा बोली, "ज़रूर, मैं भी अपने आप को रोक नही पा रही
हूँ?" इसके बाद आशा ने नरेन्द्रा के खड़े लंड को झुक कर अपने मुँह
मे भर लिया और अपनी आँख बंद करके उसको चूसने लगी. थोरी देर के बाद
आशा ने नरेन्द्रा के चूतर को पाकर कर अपनी मुँह उठा उठा कर उसके
लंड कोबड़े चाब से ज़ोर ज़ोर से चूसने लगी. नरेन्द्रा ने अपनी कमर आगे
की तरफ झुका कर के अपनी आँख बंद करके बड़े आराम से अपना तननाया
हुआ लंड आशा की मुँह के अंदर पेलने लगा. नरेन्द्रा थोरी देर के बाद
आशा के सिर को अपने हाथों से पकड़ कर आशा के मुँह मे लंड पेल रहा
था. आनंद अपनी फटी फटी आँखों से यह सब कुछ देख रहा था. आशा
ज़ोर ज़ोर से नरेन्द्रा का चूस रही थी और थोड़ी देर के बाद नरेंद्रा
ने अपना पानी आशा की मुँह मे ही छोड़ दिया. आशा ने नरेन्द्रा का पानी
इतमीनान के साथ पी गयी और उसका लंड धीरे धीरे अपनी जीभ से
चाट कर साफ कर दिया. फिर आशा नहर मे गयी और नहर के पानी से
अपना मुँह धो लिया.

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