माँ का प्यार
Posted: 19 Dec 2014 09:52
माँ का प्यार-1
दोस्तो छुट्टियाँ ख़तम हो गई और मैं वापस अपने घर आ गया. अरे यार मैं अपने घर के बारे मे तो बताना ही भूल गया. मेरे पिता मिल में काम करने वाले एक सीधे साधे आदमी थे उनमें बस एक खराबी थी, वे बहुत शराब पीते थे अक्सर रात को बेहोशी की हालत में उन्हें उठा कर बिस्तर पर लिटाना पड़ता था पर माँ के प्रति उनका व्यवहार बहुत अच्छा था और माँ भी उन्हें बहुत चाहती थी और उनका आदर करती थी
मैंने बहुत पहले माँ पर हमेशा छाई उदासी महसूस कर ली थी पर बचपन में इस उदासी का कारण मैं नहीं जान पाया था मैं माँ की हमेशा सहायता करता था सच बात तो यह है कि माँ मुझे बहुत अच्छी लगती थी और इसलिए मैं हमेशा उसके पास रहने की कोशिश करता था माँ को मेरा बहुत आसरा था और उसका मन बहलाने के लिए मैं उससे हमेशा तरह तरह की गप्पें लडाया करता था उसे भी यह अच्छा लगता था क्योंकि उसकी उदासी और बोरियत इससे काफ़ी कम हो जाती थी
मेरे पिता सुबह जल्दी घर से निकल जाते थे और देर रात लौटते फिर पीना शुरू करते और ढेर हो जाते उनकी शादी अब नाम मात्र को रह गई थी, ऐसा लगता था बस काम और शराब में ही उनकी जिंदगी गुजर रही थी और माँ की बाकी ज़रूरतों को वे नज़रअंदाज करने लगे थे दोनों अभी भी बातें करते, हँसते पर उनकी जिंदगी में अब प्यार के लिए जैसे कोई स्थान नहीं था
मैने पढने के साथ साथ पार्ट-टाइम काम करना शुरू कर दिया था इससे कुछ और आमदनी हो जाती थी पर यार दोस्तों में उठने बैठने का मुझे समय ही नहीं मिलता था, प्यार व्यार तो दूर रहा जब सब सो जाते थे तो मैं और माँ किचन में टेबल के पास बैठ कर गप्पें लडाते माँ को यह बहुत अच्छा लगता था उसे अब बस मेरा ही सहारा था और अक्सर वह मुझे प्यार से बाँहों में भर लेती और कहती कि मैं उसकी जिंदगी का चिराग हूँ
बचपन से मैं काफ़ी समझदार था और दूसरों से पहले ही जवान भी हो गया था सोलह साल का होने पर आपको तो मालूम ही है शन्नो मौसी ने और रवि मौसा जी , ललिता रश्मि डॉली की सारी कहानी पहले ही बता चुका हूँ . अब मैं धीरे धीरे माँ को दूसरी नज़रों से देखने लगा किशोरावस्था में प्रवेश के साथ ही मैं यह जान गया था कि माँ बहुत आकर्षक और मादक नारी थी उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे और तीन बच्चे होने के बावजूद उसका शरीर बड़ा कसा हुआ और जवान औरतों सा था अपनी बड़ी काली आँखों से जब वह मुझे देखती तो मेरा दिल धडकने लगता था
हम हर विषय पर बात करते यहाँ तक कि व्यक्तिगत बातें भी एक दूसरे को बताते मैं उसे अपनी प्रिय अभिनेत्रियों के बारे में बताता वह शादी के पहले के अपने जीवन के बारे में बात करती वह कभी मेरे पिता के खिलाफ नहीं बोलती क्योंकि शादी से उसे काफ़ी मधुर चीज़ें भी मिली थीं जैसे कि उसके बच्चे
माँ के प्रति बढ़ते आकर्षण के कारण मैं अब इसी प्रतीक्षा में रहता कि कैसे उसे खुश करूँ ताकि वह मुझे बाँहों में भरकर लाड दुलार करे और प्यार से चूमे जब वह ऐसा करती तो उसके उन्नत स्तनों का दबाव मेरी छाती पर महसूस करते हुए मुझे एक अजीब गुदगुदी होने लगती थी मैं उसने पहनी हुई साड़ी की और उसकी तारीफ़ करता जिससे वह कई बार शरमा कर लाल हो जाती काम से वापस आते समय मैं उसके लिए अक्सर चॉकलेट और फूलों की वेणी ले आता हर रविवार को मैं उसे सिनेमा और फिर होटल ले जाता
सिनेमा देखते हुए अक्सर मैं बड़े मासूम अंदाज में उससे सट कर बैठ जाता और उसके हाथ अपने हाथों में ले लेता जब उसने कभी इसके बारे में कुछ नहीं कहा तो हिम्मत कर के मैं अक्सर अपना हाथ उसके कंधे पर रख कर उसे पास खींच लेता और वह भी मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर पिक्चर देखती अब वह हमेशा रविवार की राह देखती खुद ही अपनी पसंद की पिक्चर भी चुन लेती
पिक्चर के बाद अक्सर हम एक बगीचे में गप्पें मारते हुए बैठ जाते एक दूसरे से मज़ाक करते और खिलखिलाते एक दिन माँ बोली "राज अब तू बड़ा हो गया है, जल्द ही शादी के लायक हो जाएगा तेरे लिए अब एक लड़की ढूँढना शुरू करती हूँ"
मैंने उसका हाथ पकडते हुए तुरंत जवाब दिया "अम्मा, मुझे शादी वादी नहीं करनी मैं तो बस तुम्हारे साथ ही रहना चाहता हूँ" मेरी बात सुनकर वह आश्चर्य चकित हो गई और अपना हाथ खींच कर सहसा चुप हो गई "क्या हुआ अम्मा? मैंने कुछ ग़लत कहा?" मैंने घबरा कर पूछा वह चुप रही और कुछ देर बाद रूखे स्वरों में बोली "चलो, घर चलते हैं, बहुत देर हो गई है"
मैंने मन ही मन अपने आप को ऐसा कहने के लिए कोसा पर अब जब बात निकल ही चुकी थी तो साहस करके आगे की बात भी मैंने कह डाली "अम्मा, तुम्हें ग़लत लगा तो क्षमा करो पर सच तो यही है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ" काफ़ी देर माँ चुप रही और फिर उदासी के स्वर में बोली "ग़लती मेरी है बेटे यहा सब पहले ही मुझे बंद कर देना था लगता है की अकेलेपना के अहसास से बचाने के लिए मैंने तुझे ज़्यादा छूट दे दी इसलिए तेरे मन में ऐसे विचार आते हैं"
दोस्तो छुट्टियाँ ख़तम हो गई और मैं वापस अपने घर आ गया. अरे यार मैं अपने घर के बारे मे तो बताना ही भूल गया. मेरे पिता मिल में काम करने वाले एक सीधे साधे आदमी थे उनमें बस एक खराबी थी, वे बहुत शराब पीते थे अक्सर रात को बेहोशी की हालत में उन्हें उठा कर बिस्तर पर लिटाना पड़ता था पर माँ के प्रति उनका व्यवहार बहुत अच्छा था और माँ भी उन्हें बहुत चाहती थी और उनका आदर करती थी
मैंने बहुत पहले माँ पर हमेशा छाई उदासी महसूस कर ली थी पर बचपन में इस उदासी का कारण मैं नहीं जान पाया था मैं माँ की हमेशा सहायता करता था सच बात तो यह है कि माँ मुझे बहुत अच्छी लगती थी और इसलिए मैं हमेशा उसके पास रहने की कोशिश करता था माँ को मेरा बहुत आसरा था और उसका मन बहलाने के लिए मैं उससे हमेशा तरह तरह की गप्पें लडाया करता था उसे भी यह अच्छा लगता था क्योंकि उसकी उदासी और बोरियत इससे काफ़ी कम हो जाती थी
मेरे पिता सुबह जल्दी घर से निकल जाते थे और देर रात लौटते फिर पीना शुरू करते और ढेर हो जाते उनकी शादी अब नाम मात्र को रह गई थी, ऐसा लगता था बस काम और शराब में ही उनकी जिंदगी गुजर रही थी और माँ की बाकी ज़रूरतों को वे नज़रअंदाज करने लगे थे दोनों अभी भी बातें करते, हँसते पर उनकी जिंदगी में अब प्यार के लिए जैसे कोई स्थान नहीं था
मैने पढने के साथ साथ पार्ट-टाइम काम करना शुरू कर दिया था इससे कुछ और आमदनी हो जाती थी पर यार दोस्तों में उठने बैठने का मुझे समय ही नहीं मिलता था, प्यार व्यार तो दूर रहा जब सब सो जाते थे तो मैं और माँ किचन में टेबल के पास बैठ कर गप्पें लडाते माँ को यह बहुत अच्छा लगता था उसे अब बस मेरा ही सहारा था और अक्सर वह मुझे प्यार से बाँहों में भर लेती और कहती कि मैं उसकी जिंदगी का चिराग हूँ
बचपन से मैं काफ़ी समझदार था और दूसरों से पहले ही जवान भी हो गया था सोलह साल का होने पर आपको तो मालूम ही है शन्नो मौसी ने और रवि मौसा जी , ललिता रश्मि डॉली की सारी कहानी पहले ही बता चुका हूँ . अब मैं धीरे धीरे माँ को दूसरी नज़रों से देखने लगा किशोरावस्था में प्रवेश के साथ ही मैं यह जान गया था कि माँ बहुत आकर्षक और मादक नारी थी उसके लंबे घने बाल उसकी कमर तक आते थे और तीन बच्चे होने के बावजूद उसका शरीर बड़ा कसा हुआ और जवान औरतों सा था अपनी बड़ी काली आँखों से जब वह मुझे देखती तो मेरा दिल धडकने लगता था
हम हर विषय पर बात करते यहाँ तक कि व्यक्तिगत बातें भी एक दूसरे को बताते मैं उसे अपनी प्रिय अभिनेत्रियों के बारे में बताता वह शादी के पहले के अपने जीवन के बारे में बात करती वह कभी मेरे पिता के खिलाफ नहीं बोलती क्योंकि शादी से उसे काफ़ी मधुर चीज़ें भी मिली थीं जैसे कि उसके बच्चे
माँ के प्रति बढ़ते आकर्षण के कारण मैं अब इसी प्रतीक्षा में रहता कि कैसे उसे खुश करूँ ताकि वह मुझे बाँहों में भरकर लाड दुलार करे और प्यार से चूमे जब वह ऐसा करती तो उसके उन्नत स्तनों का दबाव मेरी छाती पर महसूस करते हुए मुझे एक अजीब गुदगुदी होने लगती थी मैं उसने पहनी हुई साड़ी की और उसकी तारीफ़ करता जिससे वह कई बार शरमा कर लाल हो जाती काम से वापस आते समय मैं उसके लिए अक्सर चॉकलेट और फूलों की वेणी ले आता हर रविवार को मैं उसे सिनेमा और फिर होटल ले जाता
सिनेमा देखते हुए अक्सर मैं बड़े मासूम अंदाज में उससे सट कर बैठ जाता और उसके हाथ अपने हाथों में ले लेता जब उसने कभी इसके बारे में कुछ नहीं कहा तो हिम्मत कर के मैं अक्सर अपना हाथ उसके कंधे पर रख कर उसे पास खींच लेता और वह भी मेरे कंधे पर अपना सिर रखकर पिक्चर देखती अब वह हमेशा रविवार की राह देखती खुद ही अपनी पसंद की पिक्चर भी चुन लेती
पिक्चर के बाद अक्सर हम एक बगीचे में गप्पें मारते हुए बैठ जाते एक दूसरे से मज़ाक करते और खिलखिलाते एक दिन माँ बोली "राज अब तू बड़ा हो गया है, जल्द ही शादी के लायक हो जाएगा तेरे लिए अब एक लड़की ढूँढना शुरू करती हूँ"
मैंने उसका हाथ पकडते हुए तुरंत जवाब दिया "अम्मा, मुझे शादी वादी नहीं करनी मैं तो बस तुम्हारे साथ ही रहना चाहता हूँ" मेरी बात सुनकर वह आश्चर्य चकित हो गई और अपना हाथ खींच कर सहसा चुप हो गई "क्या हुआ अम्मा? मैंने कुछ ग़लत कहा?" मैंने घबरा कर पूछा वह चुप रही और कुछ देर बाद रूखे स्वरों में बोली "चलो, घर चलते हैं, बहुत देर हो गई है"
मैंने मन ही मन अपने आप को ऐसा कहने के लिए कोसा पर अब जब बात निकल ही चुकी थी तो साहस करके आगे की बात भी मैंने कह डाली "अम्मा, तुम्हें ग़लत लगा तो क्षमा करो पर सच तो यही है कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ तुम्हारी खुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ" काफ़ी देर माँ चुप रही और फिर उदासी के स्वर में बोली "ग़लती मेरी है बेटे यहा सब पहले ही मुझे बंद कर देना था लगता है की अकेलेपना के अहसास से बचाने के लिए मैंने तुझे ज़्यादा छूट दे दी इसलिए तेरे मन में ऐसे विचार आते हैं"