तड़फती जवानी-1
यह कहानी मेरी और मेरी एक सहेली जिसका नाम हेमलता है, उसकी है। मेरी वैसे दो सहेलियाँ हैं जो बचपन से साथ में खेली, पढ़ी और लिखी हैं जिनमें से मैंने तारा के बारे में ‘अंगूर का मजा किशमिश में’ कहानी में बताया था।
हम तीन सहेलियाँ आज भी एक-दूसरे के संपर्क में हैं पर समय के साथ पारिवारिक काम-काज में व्यस्त रहने की वजह से मिलना-जुलना कम हो गया है।
मैं धन्यवाद करना चाहूँगी उन लोगों का जिन्होंने फोन और इन्टरनेट जैसे साधन बनाए जो हमें आज भी जोड़े हुए हैं।
हेमलता भी मेरी तरह एक मध्य वर्ग की एक पारिवारिक महिला है, उम्र 46, कद काफी अच्छा-खासा है, लगभग 5’8″ होगा, उम्र के हिसाब से भारी-भरकम शरीर और 2 बच्चों की माँ है। उसके दोनों बच्चों की उम्र 24 और 21 है और अभी पढ़ाई ही कर रहे हैं।
हेमलता हम तीन सहेलियों में से एक थी, जिसकी शादी सबसे पहले 21 वर्ष की आयु में हुई और बच्चे भी जल्दी हुए। उसके पति एक सरकारी स्कूल में क्लर्क थे और जब उसका दूसरा बच्चा सिर्फ 2 साल का था तब स्कूल की छत बरसात में गिर गई, जिसमें उसके पति के सर पर गहरी चोट आई।
शहर के सरकारी सदर अस्पताल ने उन्हें अपोलो रांची भेज दिया, पर रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई थी। यह समाचार मेरे लिए काफी दु:खद था मैंने उसके बारे में पता किया तो मुझे ऐसा लगा कि जैसे उसके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया हो।
वो केवल 28 साल की एक जवान महिला थी जो अब दो बच्चों की विधवा माँ थी।
खैर… उसे इन सबसे उबरने में काफी समय लग गया और एक अच्छी बात यह हुई कि उसे अपने पति की जगह नौकरी मिल गई। उसने अपनी पढ़ाई शादी के बाद भी जारी रखी थी और स्नातक पूरा कर लिया था। जिसके वजह से आज वो अपने पति की कुर्सी पर है और बच्चों का भविष्य अच्छा है।
मैंने और तारा ने अपनी तरफ से उसे इस भारी सदमे से उबरने में हर संभव प्रयास किया जहाँ तक हमारी सीमाएँ थीं।
हेमा की नौकरी लग जाने से परिणाम भी सही निकला, दफ्तर जाने और काम में व्यस्त होने के बाद वो पूरी तरह से इस हादसे से उबर चुकी थी।
चार साल बीत गए थे। इस बीच तारा तो नहीं पर मैं हफ्ते में एक बार उससे बात कर लिया करती थी और कभी उड़ीसा से घर जाती तो मिल भी लेती थी।
एक अकेली जवान औरत किसी शिकार की तरह होती है, जिसके दो शिकारी होते हैं। एक तो मनचले मर्द जो किसी अकेली औरत को भूखे भेड़िये की तरह देखते हैं और दूसरा उसका स्वयं मन भी उसे गलत रास्ते पर ले जाता है।
मनचले मर्दों को तो औरत दरकिनार भी कर दे पर अपने मन से कैसे बचे कोई..!
यही शायद हेमा के साथ भी अब होने लगा था, वो दूसरे मर्दों से तो खुद को बचाती फिर रही थी, पर अपने मन से बचना मुश्किल होता जा रहा था।
हेमा अब 33 साल की एक अकेली जवान विधवा थी और दो बच्चों की माँ भी, इसलिए कोई मर्द उसे पत्नी स्वीकार ले असंभव सा था। ऊपर से आज भी छोटे शहरों में समाज, जो औरतों की दूसरी शादी पसंद नहीं करता।
इसी सिलसिले में मैंने एक बार हेमा के घरवालों से बात की पर वो तैयार नहीं हुए ये कह कर कि हेमा अब किसी और घर की बहू है।
पर मेरे बार-बार विनती करने पर उन्होंने हेमा के ससुराल वालों से बात की, पर जवाब न सिर्फ नकारात्मक निकला बल्कि नौकरी छोड़ने की नौबत आ गई।
उसके ससुराल वालों ने यह शक जताया कि शायद हेमा का किसी मर्द के साथ चक्कर है सो उसे जोर देने लगे कि नौकरी छोड़ दे।
पर हेमा जानती थी कि उसके बच्चों का भविष्य उसके अलावा कोई और अच्छे से नहीं संवार सकता इसलिए उसने सभी से शादी की बात करने को मना कर दिया और दुबारा बात नहीं करने को कहा।
हालांकि उसने हमसे कभी शादी की बात नहीं की थी, बस हम ही खुद भलाई करने चले गए जिसकी वजह से हेमलता से मेरी दूरी बढ़ने लगी।
मैंने सोच लिया था कि अब उससे कभी बात नहीं करुँगी, पर बचपन की दोस्ती कब तक दुश्मनी में रह सकती है।
कुछ महीनों के बाद हमारी बातचीत फिर से शुरू हो गई।
वो शाम को जब फुर्सत में होती तो हम घन्टों बातें करते और मैं हमेशा यही प्रयास करती कि वो अपने दु:खों को भूल जाए। इसलिए वो जो भी मजाक करती, मैं उसका जरा भी बुरा नहीं मानती। वो कोई भी ऐसा दिन नहीं होता कि मेरे पति के बारे में न पूछे और मुझे छेड़े ना।
धीरे-धीरे मैंने गौर किया कि वो कुछ ज्यादा ही मेरे और मेरे पति के बीच जो कुछ रात में होता है उसे जानने की कोशिश करने लगी।
एक बार की बात है मैं बच्चे को स्कूल पहुँचा कर दुबारा सो गई क्योंकि मेरी तबियत थोड़ी ठीक नहीं थी। तभी हेमा ने मुझे फोन किया मेरी आवाज सुन कर वो समझ गई कि मैं सोई हुई थी।
उसने तुरंत मजाक में कहा- क्या बात है.. इतनी देर तक सोई हो… जीजाजी ने रात भर जगाए रखा क्या?
मैंने भी उसको खुश देख मजाक में कहा- क्या करूँ… पति परमेश्वर होता है, जब तक परमेश्वर की इच्छा होती है.. सेवा करती हूँ!
उसने कहा- लगता है.. कल रात कुछ ज्यादा ही सेवा की है?
मैंने कहा- हाँ.. करना तो पड़ता ही है, तूने नहीं की क्या?
मेरी यह बात सुन कर वो बिल्कुल खामोश हो गई। मैंने भी अब सोचा कि हे भगवान्… मैंने यह क्या कह दिया!
वो मेरे सामने नहीं थी, पर मैं उसकी ख़ामोशी से उसकी भावनाओं को समझ सकती थी। पर उसने भी खुद को संभालते हुए हिम्मत बाँधी और फिर से मुझसे बातें करने लगी।
दरअसल बात थी कि मैं अपने एक चचेरे भाई की शादी में घर जाने वाली थी और उसने यही पूछने के लिए फोन किया था कि मैं कब आऊँगी, क्योंकि गर्मी की छुट्टी होने को थी तो वो भी मायके आने वाली थी।
शाम को मैंने उसका दिल बहलाने के लिए फिर से उसे फोन किया। कुछ देर बात करने पर वो भावुक हो गई।
एक मर्द की कमी उसकी बातों से साफ़ झलकने लगी। मैं भी समझ सकती थी कि अकेली औरत और उसकी जवानी कैसी होती है। सो मैंने उससे उसके दिल की बात साफ़-साफ़ जानने के लिए पूछा- क्या कोई है.. जिसे वो पसंद करती है?
उसने उत्तर दिया- नहीं.. कोई नहीं है और मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती.. मैं एक विधवा हूँ..!
तो मैं हैरान हो गई कि अभी कुछ देर पहले इसी तरह की बात कर रही थी, अब अचानक क्या हो गया। मैंने भी उसे भांपने के लिए कह दिया- अगर ऐसा सोच नहीं सकती तो फिर हर वक़्त क्यों किसी के होने न होने की बात करती हो..!
उसने भी मेरी बात को समझा और सामान्य हो गई।
तब मैंने सोचा कि चलो इसके दिल की बात इसके मुँह से आज निकलवा ही लेती हूँ और फिर मैंने अपनी बातों में उसे उलझाने की कोशिश शुरू कर दी।
कुछ देर तो वो मासूम बनने का ढोंग करती रही पर मैं उसकी बचपन की सहेली हूँ इसलिए उसका नाटक ज्यादा देर नहीं चला और उसने साफ़ कबूल कर लिया कि उसे भी किसी मर्द की जरुरत है जो उसके साथ समय बिताए… उसे प्यार करे..! तब मैंने उससे पूछा- क्या कोई है.. जो उसे पसंद है?
तब उसने बताया- हाँ.. एक मर्द कृपा है जो मेरे स्कूल में पढ़ाता है और हर समय मुझसे बात करने का बहाना ढूंढता रहता है.. वो अभी भी कुँवारा है, पर मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि वो मुझे पसंद करता है या सिर्फ मेरी आँखों का धोखा है!
तब मैंने उसे समझाया कि वो उसे थोड़ा नजदीक आने दे ताकि पता चल सके आखिर बात क्या है।
उसने वैसा ही किया और एक दिन हेमा ने मुझे फोन करके बताया कि उस आदमी ने उससे कहा कि वो उससे प्यार करता है और शादी करना चाहता है।
पर हेमा ने उससे कह दिया- शादी के लिए कोई भी तैयार नहीं होगा और सबसे बड़ी मुसीबत तो जाति की हो जाती क्योंकि वो दूसरी जाति का है।
तब मैंने हेमा से पूछा- आखिर तू क्या चाहती है?
उसने खुल कर तो नहीं कहा, पर उसकी बातों में न तो ‘हाँ’ था न ही ‘ना’ था। मैं समझ गई कि हेमा चाहती तो थी कि कोई मर्द उसका हाथ दुबारा थामे, पर उसकी मज़बूरी भी थी जिसकी वजह से वो ‘ना’ कह रही थी।
खैर… इसी तरह वो उस आदमी से बातें तो करती पर थोड़ा दूर रहती, क्योंकि उसे डर था कहीं कोई गड़बड़ी न हो जाए।
पर वो आदमी उसे बार बार उकसाने की कोशिश करता।
एक दिन मैंने हेमा से कहा- मेरी उससे बात करवाओ।
तो हेमा ने उसकी मुझसे बात करवाई फिर मैंने भी उसे समझाया।
वो लड़का समझदार था सो वो समझ गया पर उसने कहा- मेरे लिए हेमा को भूलना मुश्किल है।
शादी का दिन नजदीक आ गया और मैं घर चली आई और हेमा से मिली।
मैंने उसके दिल की बात उसके सामने पूछी- क्या तुम उस लड़के को चाहती हो?
उसने कहा- चाहने न चाहने से क्या फर्क पड़ता है जो हो नहीं सकता, उसके बारे में सोच कर क्या फ़ायदा!
मैंने उससे कहा- देखो अगर तुम उसे पसंद करती हो तो ठीक है, जरुरी नहीं कि शादी करो समय बिताना काफी है, तुम लोग रोज मिलते हो अपना दुःख-सुख उसी कुछ पलों में बाँट लिया करो।
तब उसने कहा- मैं उसके सामने कमजोर सी पड़ने लगती हूँ.. जब वो कहता है कि वो मुझसे प्यार करता है।
मैंने उससे पूछा- क्या लगता है तुम्हें..!
मेरा सवाल सुन कर उसकी आँखों में आंसू आ गए और कहने लगी- जब वो ऐसे कहता है.. तब मुझे लगता है उसे अपने सीने से लगा लूँ, उसकी आँखों में इतना प्यार देख कर मुझसे रहा नहीं जाता!
मैं उसके दिल की भावनाओं को समझ रही थी, पर वो रो न दे इसलिए बात को मजाक में उड़ाते हुए कहा- तो ठीक है.. लगा लो न कभी सीने से.. मौका देख कर..!
और मैं हँसने लगी।
मेरी हँसी देख कर वो अपने आंसुओं पर काबू करते हुए मुस्कुराने लगी।
तड़फती जवानी
-
- Platinum Member
- Posts: 1803
- Joined: 15 Oct 2014 22:49
Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-2
मेरा सवाल सुन कर उसकी आँखों में आंसू आ गए और कहने लगी- जब वो ऐसे कहता है.. तब मुझे लगता है उसे अपने सीने से लगा लूँ, उसकी आँखों में इतना प्यार देख कर मुझसे रहा नहीं जाता!
मैं उसके दिल की भावनाओं को समझ रही थी, पर वो रो न दे इसलिए बात को मजाक में उड़ाते हुए कहा- तो ठीक है.. लगा लो न कभी सीने से.. मौका देख कर..!
और मैं हँसने लगी।
मेरी हँसी देख कर वो अपने आंसुओं पर काबू करते हुए मुस्कुराने लगी।
मैंने उसका दिल बहलाने के लिए कहा- एक काम कर.. शादी-वादी भूल जा सुहागरात मना ले..!
वो मुझे मजाक में डांटते हुए बोली- क्या पागलों जैसी बातें करती है।
मैंने कहा- चल मैं भी समझती हूँ तेरे दिल में क्या है, अच्छा बता वो दिखने में कैसा है?
उसने तब मुझे बताया- वो दिखने में काफी आकर्षक है।
मैंने उससे कहा- मैं अपने भाई को बोल कर शादी में उसे भी बुला लेती हूँ, ताकि तुम दोनों मिल भी सको और घर का कुछ काम भी हो जाए।
वो बहुत खुश हुई, पर नखरे करती रही कि किसी को पता चल जाएगा तो मुसीबत होगी।
मैंने उसे समझाया- डरो मत, मैं सब कुछ ठीक कर दूँगी..!
वो बुलाने पर आ गया, पर हैरानी की बात ये थी के वो मेरे पड़ोस के एक लड़के सुरेश का दोस्त था जो हमारे साथ ही स्कूल में पढ़ा था।
यह सुरेश वही था जो मुझे पसंद करता था, पर मैं अपने घर वालों के डर से कभी उसके सवाल का उत्तर न दे सकी थी। आज भी मैं जब सुरेश से मिलती हूँ तो मुझे वैसे ही देखता है, जैसे पहले देखा करता था। वो मुझसे ज्यादा नहीं पर स्कूल के समय हेमा से ज्यादा बातें करता था।
सुरेश ने हेमा के जरिये ही मुझसे अपने दिल की बात कही थी।
मैंने सोचा चलो अच्छा है सुरेश के बहाने अगर हो सके तो हेमा को उसके प्यार से मिलवा दिया जाएगा।
मैंने सुरेश से बातें करनी शुरू कर दीं, फिर एक दिन मैंने बता दिया कि हेमा उसके दोस्त को पसंद करती है इसलिए उसे यहाँ बहाने से बुलाया था, पर अगर वो साथ दे तो हेमा को उससे मिलवाने में परेशानी नहीं होगी और सुरेश भी मान गया।
अब रात को हम रोज सारा काम खत्म करने के बाद छत पर चले आते और घन्टों बातें करते। हेमा को हम अकेला छोड़ देते ताकि वो लोग आपस में बात कर सकें।
कुछ दिनों में घर में मेहमानों का आना शुरू हो गया और घर में सोने की जगह कम पड़ने लगी तो मैं बाकी लोगों के साथ छत पर सोने चली जाती थी।
गर्मी का मौसम था तो छत पर आराम महसूस होता था। बगल वाले छत पर सुरेश और कृपा भी सोया करते थे।
एक दिन कृपा ने मुझसे पूछा कि क्या कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ वो हेमा से अकेले में मिल सके।
मैं समझ गई कि आखिर क्या बात है, पर मेहमानों से भरे घर में मुश्किल था और हेमा सुरेश के घर नहीं जा सकती थी क्योंकि कोई बहाना नहीं था।
तो उसने मुझसे कहा- क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हेमा रात को छत पर ही सोये?
मैंने उससे कहा- ठीक है.. घर में काम का बहाना बना कर मैं उसके घर पर बोल दूँगी कि मेरे साथ सोये।
मैंने उसके घर पर बोल दिया कि शादी तक हेमा मेरे घर पर रहेगी, काम बहुत है उसके घर वाले मान गए। रात को हम छत पर सोने गए।
कुछ देर हम यूँ ही बातें करते रहे क्योंकि सबको पता था कि हम साथ पढ़े हैं किसी को कोई शक नहीं होता था कि हम लोग क्या कर रहे हैं।
जब बाकी लोग सो चुके थे, तब मैंने भी सोचा कि अब सोया जाए। मैंने सुरेश की छत पर ही मेरा और हेमा का बिस्तर लगा दिया और सुरेश और कृपा का बिस्तर भी बगल में था।
कृपा और हेमा आपस में बातें कर रहे थे और मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और बगल में सुरेश अपने बिस्तर पर लेटा था।
तभी सुरेश ने मुझसे पूछा- तुम्हारे पति कैसे हैं?
मैंने कहा- ठीक हैं!
कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछा- उसने जो मुझसे कॉलेज के समय कहा था, उसका जवाब क्यों नहीं दिया?
मैंने तब उससे कहा- पुरानी बातों को भूल जाओ मैं अब शादीशुदा हूँ।
फिर उसने दुबारा पूछा- अगर जवाब देना होता तो मैं क्या जवाब देती?
मैंने कुछ नहीं कहा, बस चुप लेटी रही, उसे लगा कि मैं सो गई हूँ.. सो वो भी अब खामोश हो गया।
रात काफी हो चुकी थी, अँधेरा पूरी तरह था हर चीज़ काली परछाई की तरह दिख रही थी।
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि हेमा मेरे बगल में आकर लेट गई है। गौर किया तो कृपा भी उसके बगल में लेटा हुआ था।
मुझे लगा अब सब सोने जा रहे हैं सो मैं भी सोने का प्रयास करने लगी। तभी मुझे कुछ फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। उस फुसफुसाहट से सुरेश भी करवट लेने लगा तो फुसफुसाहट बंद हो गई।
कुछ देर के बाद मुझे फिर से फुसफुसाने की आवाज आई।
यह आवाज हेमा की थी, वो कह रही थी- नहीं.. कोई देख लेगा.. मत करो।
फिर एक और आवाज आई- सभी सो गए हैं किसी को कुछ पता नहीं चलेगा!
मैं मौन होकर सब देखने की कोशिश करने लगी पर कुछ साफ़ दिख नहीं रहा था बस हल्की फुसफुसाहट थी।
थोड़ी देर में मैंने देखा तो एक परछाई जो मेरे बगल में थी वो कुछ हरकत कर रही थी, यह हेमा ही थी, मैंने गौर किया तो उसके हाथ खुद के सीने पर गए और वो अपने ब्लाउज के हुक खोल रही थी, फिर उसके हाथ नीचे आए और साड़ी को ऊपर उठाने लगे और कमर तक उठा कर उसने अपनी पैंटी निकाल कर तकिये के नीचे रख दी।
मैं समझ गई कि आज दोनों सुहागरात मनाने वाले हैं और मेरी उत्सुकता बढ़ गई।
मैंने अब सोचा कि देखा जाए कि कृपा आखिर क्या कर रहा है।
मैंने धीरे से सर उठाया तो देखा उसका हाथ हिल रहा है, मैं समझ गई कि वो अपने लिंग को हाथ से हिला कर तैयार कर रहा है।
तभी फिर से फुसफुसाने की आवाज आई हेमा ने कहा- आ जाओ।
और कुछ ही पलों में मुझे ऐसा लगा कि जैसे एक परछाई के ऊपर दूसरी परछाई चढ़ी हुई है।
कृपा हेमा के ऊपर चढ़ा हुआ था, हेमा ने पैर फैला दिए थे जिसकी वजह से उसका पैर मेरे पैर से सट रहा था। उनकी ऐसी हरकतें देख कर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था। मैं सोच में पड़ गई कि आखिर इन दोनों को क्या हुआ जो बिना किसी के डर के मेरे बगल में ही ये सब कर रहे हैं।
उनकी हरकतों से मेरी अन्तर्वासना भी भड़कने लगी थी, पर मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी। मैं ऐसी स्थिति में फंस गई थी कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि मेरी कोई भी हरकत उन्हें परेशानी में डाल सकता था और मैं हेमा को इस मौके का मजा लेने देना चाहती थी इसलिए चुपचाप सोने का नाटक करती रही।
अब एक फुसफुसाते हुई आवाज आई- घुसाओ..!
यह हेमा की आवाज थी जो कृपा को लिंग योनि में घुसाने को कह रही थी।
कुछ देर की हरकतों के बाद फिर से आवाज आई- नहीं घुस रहा है, कहाँ घुसाना है.. समझ नहीं आ रहा!
यह कृपा था।
तब हेमा ने कहा- कभी इससे पहले चुदाई नहीं की है क्या.. तुम्हें पता नहीं कि लण्ड को बुर में घुसाना होता है?
कृपा ने कहा- मुझे मालूम है, पर बुर का छेद नहीं मिल रहा है।
तभी हेमा बोली- हाँ.. बस यहीं लण्ड को टिका कर धकेलो..!
मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, पर उनकी बातों से सब समझ आ रहा था कि कृपा ने पहले कभी सम्भोग नहीं किया था। इसलिए उसे अँधेरे में परेशानी हो रही थी और वो अपने लिंग से योनि के छेद को टटोल रहा था। जब योनि की छेद पर लिंग लग गया, तो हेमा ने उससे कहा- धकेलो!
तभी हेमा की फिर से आवाज आई- क्या कर रहे हो.. जल्दी करो.. बगल में दोनों (मैं और सुरेश) हैं.. जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी!
कृपा ने कहा- घुस ही नहीं रहा है, जब धकेलने की कोशिश करता हूँ तो फिसल जाता है।
तब हेमा ने कहा- रुको एक मिनट!
और उसने तकिये के नीचे हाथ डाला और पैंटी निकाल कर अपनी योनि की चिकनाई को पौंछ लिया और बोली- अब घुसाओ..!
मैंने गौर किया तो मुझे हल्का सा दिखा कि हेमा का हाथ उसके टांगों के बीच में है, तो मुझे समझ में आया कि वो कृपा का लिंग पकड़ कर उसे अपनी योनि में घुसाने की कोशिश कर रही है।
फिर हेमा की आवाज आई- तुम बस सीधे रहो.. मैं लण्ड को पकड़े हुए हूँ, तुम बस जोर लगाओ, पर थोड़ा आराम से.. तुम्हारा बहुत बड़ा और मोटा है।
तभी हेमा कसमसाते हुए कराह उठी, ऐसे जैसे वो चिल्लाना चाहती हो, पर मुँह से आवाज नहीं निकलने देना चाहती हो और बोली- ऊऊईईइ माँ…आराम से…डाल..!
तब कृपा रुक गया और हेमा को चूमने लगा। हेमा की कसमसाने और कराहने की आवाज से मुझे अंदाजा हो रहा था कि उसे दर्द हो रहा है, क्योंकि काफी समय के बाद वो सम्भोग कर रही थी।
हेमा ने कहा- इतना ही घुसा कर करो.. दर्द हो रहा है..!
पर कृपा का यह पहला सम्भोग था इसलिए उसके बस का काम नहीं था कि खुद पर काबू कर सके, वो तो बस जोर लगाए जा रहा था।
हेमा कराह-कराह कर ‘बस.. बस’ कहती रही।
हेमा ने फिर कहा- अब ऐसे ही धकेलते रहोगे या चोदोगे भी?
कृपा ने उसके स्तनों को दबाते हुआ कहा- हाँ.. चोद तो रहा हूँ..!
उसने जैसे ही 10-12 धक्के दिए कि कृपा हाँफने लगा और हेमा से चिपक गया।
हेमा ने उससे पूछा- हो गया?
कृपा ने कहा- हाँ, तुम्हारा हुआ या नहीं?
हेमा सब जानती थी कि क्या हुआ, किसका हुआ सो उसने कह दिया- हाँ.. अब सो जाओ!
मैं जानती थी कि कृपा अपनी भूख को शांत कर चुका था, पर हेमा की प्यास बुझी नहीं थी, पर वो भी क्या करती कृपा सम्भोग के मामले में अभी नया था।
तभी कृपा की आवाज आई- हेमा, एक बार और चोदना चाहता हूँ!
हेमा ने कहा- नहीं.. सो जाओ..!
मुझे समझ नहीं आया आखिर हेमा ऐसा क्यों बोली।
तभी फिर से आवाज आई- प्लीज बस एक बार और!
हेमा ने कहा- इतनी जल्दी नहीं होगा तुमसे… काफी रात हो गई है.. सो जाओ फिर कभी करना..!
पर कृपा जिद करता रहा, तो हेमा मान गई और करवट लेकर कृपा की तरफ हो कर लेट गई।
मैंने अपना सर उठा कर देखा तो कृपा हेमा के स्तनों को चूस रहा था, साथ ही उन्हें दबा भी रहा था और हेमा उसे लिंग को हाथ से पकड़ कर हिला रही थी।
कुछ देर बाद हेमा ने उससे कहा- अपने हाथ से मेरी बुर को सहलाओ…!
कृपा वही करने लगा।
कुछ देर के बाद वो दोनों आपस में चूमने लगे फिर हेमा ने कहा- तुम्हारा लण्ड कड़ा हो गया है जल्दी से चोदो, अब कहीं सारिका या सुरेश जग ना जाएँ!
उसे क्या मालूम था कि मैं उनका यह खेल शुरू से ही देख रही थी।
हेमा फिर से सीधी होकर लेट गई और टाँगें फैला दीं। तब कृपा उसके ऊपर चढ़ गया और उसने लिंग योनि में भिड़ा कर झटके से धकेल दिया।
हेमा फिर से बोली- आराम से घुसाओ न..!
कृपा ने कहा- ठीक है.. तुम गुस्सा मत हो!
कृपा अब उसे धक्के देने लगा। कुछ देर बाद मैंने गौर किया कि हेमा भी हिल रही है। उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।
दोनों की साँसें तेज़ होने लगी थीं और फिर कुछ देर बाद कृपा फिर से हाँफते हुए गिर गया, तो हेमा ने फिर पूछा- हो गया?
कृपा ने कहा- हाँ.. हो गया..!
तब हेमा ने उसे तुरंत ऊपर से हटाते हुए अपने कपड़े ठीक करने लगी और बोली- सो जाओ अब..!
हेमा की बातों में थोड़ा चिढ़चिढ़ापन था जिससे साफ़ पता चल रहा था कि वो चरम सुख से अभी भी वंचित थी।
कृपा अब सो चुका था, पर हेमा अभी भी जग रही थी। उसने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। वो शायद देख रही थी कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई।
मेरा किसी तरह का हरकत न देख उसने अपनी साड़ी के अन्दर हाथ डाल और अपनी योनि से खेलने लगी थोड़ी देर में वो अपने शरीर को ऐंठते हुए शांत हो गई।
मैं यूँ ही खामोशी से उसे दखती रही पर काफी देर उनकी ये कामक्रीड़ा देख मुझे भी कुछ होने लगा था। साथ ही एक ही स्थिति में सोये-सोये बदन अकड़ सा गया था, तो मैंने सोचा कि अब थोड़ा उठ कर बदन सीधा कर लूँ, सो मैं पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि सुरेश जगा हुआ है और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।
मेरा सवाल सुन कर उसकी आँखों में आंसू आ गए और कहने लगी- जब वो ऐसे कहता है.. तब मुझे लगता है उसे अपने सीने से लगा लूँ, उसकी आँखों में इतना प्यार देख कर मुझसे रहा नहीं जाता!
मैं उसके दिल की भावनाओं को समझ रही थी, पर वो रो न दे इसलिए बात को मजाक में उड़ाते हुए कहा- तो ठीक है.. लगा लो न कभी सीने से.. मौका देख कर..!
और मैं हँसने लगी।
मेरी हँसी देख कर वो अपने आंसुओं पर काबू करते हुए मुस्कुराने लगी।
मैंने उसका दिल बहलाने के लिए कहा- एक काम कर.. शादी-वादी भूल जा सुहागरात मना ले..!
वो मुझे मजाक में डांटते हुए बोली- क्या पागलों जैसी बातें करती है।
मैंने कहा- चल मैं भी समझती हूँ तेरे दिल में क्या है, अच्छा बता वो दिखने में कैसा है?
उसने तब मुझे बताया- वो दिखने में काफी आकर्षक है।
मैंने उससे कहा- मैं अपने भाई को बोल कर शादी में उसे भी बुला लेती हूँ, ताकि तुम दोनों मिल भी सको और घर का कुछ काम भी हो जाए।
वो बहुत खुश हुई, पर नखरे करती रही कि किसी को पता चल जाएगा तो मुसीबत होगी।
मैंने उसे समझाया- डरो मत, मैं सब कुछ ठीक कर दूँगी..!
वो बुलाने पर आ गया, पर हैरानी की बात ये थी के वो मेरे पड़ोस के एक लड़के सुरेश का दोस्त था जो हमारे साथ ही स्कूल में पढ़ा था।
यह सुरेश वही था जो मुझे पसंद करता था, पर मैं अपने घर वालों के डर से कभी उसके सवाल का उत्तर न दे सकी थी। आज भी मैं जब सुरेश से मिलती हूँ तो मुझे वैसे ही देखता है, जैसे पहले देखा करता था। वो मुझसे ज्यादा नहीं पर स्कूल के समय हेमा से ज्यादा बातें करता था।
सुरेश ने हेमा के जरिये ही मुझसे अपने दिल की बात कही थी।
मैंने सोचा चलो अच्छा है सुरेश के बहाने अगर हो सके तो हेमा को उसके प्यार से मिलवा दिया जाएगा।
मैंने सुरेश से बातें करनी शुरू कर दीं, फिर एक दिन मैंने बता दिया कि हेमा उसके दोस्त को पसंद करती है इसलिए उसे यहाँ बहाने से बुलाया था, पर अगर वो साथ दे तो हेमा को उससे मिलवाने में परेशानी नहीं होगी और सुरेश भी मान गया।
अब रात को हम रोज सारा काम खत्म करने के बाद छत पर चले आते और घन्टों बातें करते। हेमा को हम अकेला छोड़ देते ताकि वो लोग आपस में बात कर सकें।
कुछ दिनों में घर में मेहमानों का आना शुरू हो गया और घर में सोने की जगह कम पड़ने लगी तो मैं बाकी लोगों के साथ छत पर सोने चली जाती थी।
गर्मी का मौसम था तो छत पर आराम महसूस होता था। बगल वाले छत पर सुरेश और कृपा भी सोया करते थे।
एक दिन कृपा ने मुझसे पूछा कि क्या कोई ऐसी जगह नहीं है, जहाँ वो हेमा से अकेले में मिल सके।
मैं समझ गई कि आखिर क्या बात है, पर मेहमानों से भरे घर में मुश्किल था और हेमा सुरेश के घर नहीं जा सकती थी क्योंकि कोई बहाना नहीं था।
तो उसने मुझसे कहा- क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हेमा रात को छत पर ही सोये?
मैंने उससे कहा- ठीक है.. घर में काम का बहाना बना कर मैं उसके घर पर बोल दूँगी कि मेरे साथ सोये।
मैंने उसके घर पर बोल दिया कि शादी तक हेमा मेरे घर पर रहेगी, काम बहुत है उसके घर वाले मान गए। रात को हम छत पर सोने गए।
कुछ देर हम यूँ ही बातें करते रहे क्योंकि सबको पता था कि हम साथ पढ़े हैं किसी को कोई शक नहीं होता था कि हम लोग क्या कर रहे हैं।
जब बाकी लोग सो चुके थे, तब मैंने भी सोचा कि अब सोया जाए। मैंने सुरेश की छत पर ही मेरा और हेमा का बिस्तर लगा दिया और सुरेश और कृपा का बिस्तर भी बगल में था।
कृपा और हेमा आपस में बातें कर रहे थे और मैं अपने बिस्तर पर लेटी हुई थी और बगल में सुरेश अपने बिस्तर पर लेटा था।
तभी सुरेश ने मुझसे पूछा- तुम्हारे पति कैसे हैं?
मैंने कहा- ठीक हैं!
कुछ देर बाद उसने मुझसे पूछा- उसने जो मुझसे कॉलेज के समय कहा था, उसका जवाब क्यों नहीं दिया?
मैंने तब उससे कहा- पुरानी बातों को भूल जाओ मैं अब शादीशुदा हूँ।
फिर उसने दुबारा पूछा- अगर जवाब देना होता तो मैं क्या जवाब देती?
मैंने कुछ नहीं कहा, बस चुप लेटी रही, उसे लगा कि मैं सो गई हूँ.. सो वो भी अब खामोश हो गया।
रात काफी हो चुकी थी, अँधेरा पूरी तरह था हर चीज़ काली परछाई की तरह दिख रही थी।
कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि हेमा मेरे बगल में आकर लेट गई है। गौर किया तो कृपा भी उसके बगल में लेटा हुआ था।
मुझे लगा अब सब सोने जा रहे हैं सो मैं भी सोने का प्रयास करने लगी। तभी मुझे कुछ फुसफुसाने की आवाज सुनाई दी। उस फुसफुसाहट से सुरेश भी करवट लेने लगा तो फुसफुसाहट बंद हो गई।
कुछ देर के बाद मुझे फिर से फुसफुसाने की आवाज आई।
यह आवाज हेमा की थी, वो कह रही थी- नहीं.. कोई देख लेगा.. मत करो।
फिर एक और आवाज आई- सभी सो गए हैं किसी को कुछ पता नहीं चलेगा!
मैं मौन होकर सब देखने की कोशिश करने लगी पर कुछ साफ़ दिख नहीं रहा था बस हल्की फुसफुसाहट थी।
थोड़ी देर में मैंने देखा तो एक परछाई जो मेरे बगल में थी वो कुछ हरकत कर रही थी, यह हेमा ही थी, मैंने गौर किया तो उसके हाथ खुद के सीने पर गए और वो अपने ब्लाउज के हुक खोल रही थी, फिर उसके हाथ नीचे आए और साड़ी को ऊपर उठाने लगे और कमर तक उठा कर उसने अपनी पैंटी निकाल कर तकिये के नीचे रख दी।
मैं समझ गई कि आज दोनों सुहागरात मनाने वाले हैं और मेरी उत्सुकता बढ़ गई।
मैंने अब सोचा कि देखा जाए कि कृपा आखिर क्या कर रहा है।
मैंने धीरे से सर उठाया तो देखा उसका हाथ हिल रहा है, मैं समझ गई कि वो अपने लिंग को हाथ से हिला कर तैयार कर रहा है।
तभी फिर से फुसफुसाने की आवाज आई हेमा ने कहा- आ जाओ।
और कुछ ही पलों में मुझे ऐसा लगा कि जैसे एक परछाई के ऊपर दूसरी परछाई चढ़ी हुई है।
कृपा हेमा के ऊपर चढ़ा हुआ था, हेमा ने पैर फैला दिए थे जिसकी वजह से उसका पैर मेरे पैर से सट रहा था। उनकी ऐसी हरकतें देख कर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा था। मैं सोच में पड़ गई कि आखिर इन दोनों को क्या हुआ जो बिना किसी के डर के मेरे बगल में ही ये सब कर रहे हैं।
उनकी हरकतों से मेरी अन्तर्वासना भी भड़कने लगी थी, पर मैं कुछ कर भी नहीं सकती थी। मैं ऐसी स्थिति में फंस गई थी कि कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि मेरी कोई भी हरकत उन्हें परेशानी में डाल सकता था और मैं हेमा को इस मौके का मजा लेने देना चाहती थी इसलिए चुपचाप सोने का नाटक करती रही।
अब एक फुसफुसाते हुई आवाज आई- घुसाओ..!
यह हेमा की आवाज थी जो कृपा को लिंग योनि में घुसाने को कह रही थी।
कुछ देर की हरकतों के बाद फिर से आवाज आई- नहीं घुस रहा है, कहाँ घुसाना है.. समझ नहीं आ रहा!
यह कृपा था।
तब हेमा ने कहा- कभी इससे पहले चुदाई नहीं की है क्या.. तुम्हें पता नहीं कि लण्ड को बुर में घुसाना होता है?
कृपा ने कहा- मुझे मालूम है, पर बुर का छेद नहीं मिल रहा है।
तभी हेमा बोली- हाँ.. बस यहीं लण्ड को टिका कर धकेलो..!
मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था, पर उनकी बातों से सब समझ आ रहा था कि कृपा ने पहले कभी सम्भोग नहीं किया था। इसलिए उसे अँधेरे में परेशानी हो रही थी और वो अपने लिंग से योनि के छेद को टटोल रहा था। जब योनि की छेद पर लिंग लग गया, तो हेमा ने उससे कहा- धकेलो!
तभी हेमा की फिर से आवाज आई- क्या कर रहे हो.. जल्दी करो.. बगल में दोनों (मैं और सुरेश) हैं.. जाग गए तो मुसीबत हो जाएगी!
कृपा ने कहा- घुस ही नहीं रहा है, जब धकेलने की कोशिश करता हूँ तो फिसल जाता है।
तब हेमा ने कहा- रुको एक मिनट!
और उसने तकिये के नीचे हाथ डाला और पैंटी निकाल कर अपनी योनि की चिकनाई को पौंछ लिया और बोली- अब घुसाओ..!
मैंने गौर किया तो मुझे हल्का सा दिखा कि हेमा का हाथ उसके टांगों के बीच में है, तो मुझे समझ में आया कि वो कृपा का लिंग पकड़ कर उसे अपनी योनि में घुसाने की कोशिश कर रही है।
फिर हेमा की आवाज आई- तुम बस सीधे रहो.. मैं लण्ड को पकड़े हुए हूँ, तुम बस जोर लगाओ, पर थोड़ा आराम से.. तुम्हारा बहुत बड़ा और मोटा है।
तभी हेमा कसमसाते हुए कराह उठी, ऐसे जैसे वो चिल्लाना चाहती हो, पर मुँह से आवाज नहीं निकलने देना चाहती हो और बोली- ऊऊईईइ माँ…आराम से…डाल..!
तब कृपा रुक गया और हेमा को चूमने लगा। हेमा की कसमसाने और कराहने की आवाज से मुझे अंदाजा हो रहा था कि उसे दर्द हो रहा है, क्योंकि काफी समय के बाद वो सम्भोग कर रही थी।
हेमा ने कहा- इतना ही घुसा कर करो.. दर्द हो रहा है..!
पर कृपा का यह पहला सम्भोग था इसलिए उसके बस का काम नहीं था कि खुद पर काबू कर सके, वो तो बस जोर लगाए जा रहा था।
हेमा कराह-कराह कर ‘बस.. बस’ कहती रही।
हेमा ने फिर कहा- अब ऐसे ही धकेलते रहोगे या चोदोगे भी?
कृपा ने उसके स्तनों को दबाते हुआ कहा- हाँ.. चोद तो रहा हूँ..!
उसने जैसे ही 10-12 धक्के दिए कि कृपा हाँफने लगा और हेमा से चिपक गया।
हेमा ने उससे पूछा- हो गया?
कृपा ने कहा- हाँ, तुम्हारा हुआ या नहीं?
हेमा सब जानती थी कि क्या हुआ, किसका हुआ सो उसने कह दिया- हाँ.. अब सो जाओ!
मैं जानती थी कि कृपा अपनी भूख को शांत कर चुका था, पर हेमा की प्यास बुझी नहीं थी, पर वो भी क्या करती कृपा सम्भोग के मामले में अभी नया था।
तभी कृपा की आवाज आई- हेमा, एक बार और चोदना चाहता हूँ!
हेमा ने कहा- नहीं.. सो जाओ..!
मुझे समझ नहीं आया आखिर हेमा ऐसा क्यों बोली।
तभी फिर से आवाज आई- प्लीज बस एक बार और!
हेमा ने कहा- इतनी जल्दी नहीं होगा तुमसे… काफी रात हो गई है.. सो जाओ फिर कभी करना..!
पर कृपा जिद करता रहा, तो हेमा मान गई और करवट लेकर कृपा की तरफ हो कर लेट गई।
मैंने अपना सर उठा कर देखा तो कृपा हेमा के स्तनों को चूस रहा था, साथ ही उन्हें दबा भी रहा था और हेमा उसे लिंग को हाथ से पकड़ कर हिला रही थी।
कुछ देर बाद हेमा ने उससे कहा- अपने हाथ से मेरी बुर को सहलाओ…!
कृपा वही करने लगा।
कुछ देर के बाद वो दोनों आपस में चूमने लगे फिर हेमा ने कहा- तुम्हारा लण्ड कड़ा हो गया है जल्दी से चोदो, अब कहीं सारिका या सुरेश जग ना जाएँ!
उसे क्या मालूम था कि मैं उनका यह खेल शुरू से ही देख रही थी।
हेमा फिर से सीधी होकर लेट गई और टाँगें फैला दीं। तब कृपा उसके ऊपर चढ़ गया और उसने लिंग योनि में भिड़ा कर झटके से धकेल दिया।
हेमा फिर से बोली- आराम से घुसाओ न..!
कृपा ने कहा- ठीक है.. तुम गुस्सा मत हो!
कृपा अब उसे धक्के देने लगा। कुछ देर बाद मैंने गौर किया कि हेमा भी हिल रही है। उसने भी नीचे से धक्के लगाने शुरू कर दिए थे।
दोनों की साँसें तेज़ होने लगी थीं और फिर कुछ देर बाद कृपा फिर से हाँफते हुए गिर गया, तो हेमा ने फिर पूछा- हो गया?
कृपा ने कहा- हाँ.. हो गया..!
तब हेमा ने उसे तुरंत ऊपर से हटाते हुए अपने कपड़े ठीक करने लगी और बोली- सो जाओ अब..!
हेमा की बातों में थोड़ा चिढ़चिढ़ापन था जिससे साफ़ पता चल रहा था कि वो चरम सुख से अभी भी वंचित थी।
कृपा अब सो चुका था, पर हेमा अभी भी जग रही थी। उसने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। वो शायद देख रही थी कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई।
मेरा किसी तरह का हरकत न देख उसने अपनी साड़ी के अन्दर हाथ डाल और अपनी योनि से खेलने लगी थोड़ी देर में वो अपने शरीर को ऐंठते हुए शांत हो गई।
मैं यूँ ही खामोशी से उसे दखती रही पर काफी देर उनकी ये कामक्रीड़ा देख मुझे भी कुछ होने लगा था। साथ ही एक ही स्थिति में सोये-सोये बदन अकड़ सा गया था, तो मैंने सोचा कि अब थोड़ा उठ कर बदन सीधा कर लूँ, सो मैं पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि सुरेश जगा हुआ है और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।
-
- Platinum Member
- Posts: 1803
- Joined: 15 Oct 2014 22:49
Re: तड़फती जवानी
तड़फती जवानी-3
कृपा अब सो चुका था, पर हेमा अभी भी जग रही थी। उसने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। वो शायद देख रही थी कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई।
मेरा किसी तरह का हरकत न देख उसने अपनी साड़ी के अन्दर हाथ डाल और अपनी योनि से खेलने लगी थोड़ी देर में वो अपने शरीर को ऐंठते हुए शांत हो गई।
मैं यूँ ही खामोशी से उसे देखती रही पर काफी देर उनकी कामक्रीड़ा देख मुझे भी कुछ होने लगा था। साथ ही एक ही स्थिति में सोये-सोये बदन अकड़ सा गया था, तो मैंने सोचा कि अब थोड़ा उठ कर बदन सीधा कर लूँ, सो मैं पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि सुरेश जगा हुआ है और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।
मैं उसे नजरअंदाज करते हुए उठ कर चली गई। पेशाब करके वापस आई और लेट गई। तब सुरेश ने धीरे से पूछा- क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या?
मैंने कहा- मैं तो सो चुकी थी, अभी नींद खुली।
तब उसने कहा- तुमने कुछ देखा क्या?
मैंने कहा- क्या?
उसने कहा- वही.. जो तुम्हारे बगल में सब कुछ हुआ?
मैं अनजान बनती हुई बोली- क्या हुआ?
उसने कहा- तुम्हें सच में पता नहीं या अनजान बन रही हो?
मैंने कहा- मुझे कुछ नहीं पता, मैं सोई हुई थी।
उसने कहा- ठीक है, चलो नहीं पता तो कोई बात नहीं.. सो जाओ!
मैं कुछ देर सोचती रही फिर उससे पूछा- क्या हुआ था?
उसने कहा- जाने दो, कुछ नहीं हुआ।
मैंने जोर देकर फिर से पूछा तो उसने कहा- तुम्हारे बगल में हेमा और कृपा चुदाई कर रहे थे।
मैंने उसे कहा- तुम झूठ बोल रहे हो, कोई किसी के सामने ऐसा नहीं करता.. कोई इतना निडर नहीं होता।
उसने तब कहा- ठीक है सुबह हेमा से पूछ लेना, कृपा ने हेमा को दो बार चोदा।
मैं समझ गई कि सुरेश भी उन्हें देख रहा था, पर मैं उसके सामने अनजान बनी रही। फिर मैं खामोश हो गई और मेरा इस तरह का व्यवहार देख सुरेश भी खामोश हो गया।
मैं हेमा और सुरेश का खेल देख कर उत्तेजित हो गई थी। फिर मैंने सोचा कि जब मैं उत्तेजित हो गई थी, तो सुरेश भी हुआ होगा। यही सोचते हुए मैं सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद नहीं आ रही थी।
कुछ देर तक तो मैं खामोश रही फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने सुरेश से पूछा- तुमने क्या-क्या देखा?
उसने उत्तर दिया- कुछ ख़ास तो दिख नहीं रहा था क्योंकि तुम बीच थीं, पर जब कृपा हेमा के ऊपर चढ़ा तो मुझे समझ आ गया था कि कृपा हेमा को चोद रहा है।
मैं तो पहले से ही खुद को गर्म महसूस कर रही थी और ऊपर से सुरेश जैसी बातें कर रहा था, मुझे और भी उत्तेजना होने लगी, पर खुद पर काबू किए हुई थी।
तभी सुरेश ने कहा- तुमने उस वक़्त मेरे सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया था?
मैंने कहा- मुझे डर लगता था इसलिए।
फिर उसने कहा- अगर तुम जवाब देतीं, तो क्या कहतीं.. ‘हाँ’ या ‘ना’..!
मैंने उसे कहा- वो पुरानी बात थी, उसे भूल जाओ मैं सोने जा रही हूँ।
यह बोल कर मैं दूसरी तरफ मुँह करके सोने चली गई, पर अगले ही पल उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया और कहा- सारिका, मैं आज भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।
मैंने उसे धकेलते हुए गुस्से में कहा- क्या कर रहे हो.. तुम जानते हो कि मैं शादीशुदा हूँ।
वो मुझसे अलग होने का नाम नहीं ले रहा था उसने मुझे जोरों से पकड़ रखा था और कहा- हेमा भी तो शादीशुदा है, फिर तुम उसकी मदद क्यों कर रही हो। मुझे मालूम है हेमा और कृपा की यहाँ सम्भोग करने की इतनी हिम्मत इसलिए हुई क्योंकि तुमने ही मदद की है।
अब मेरे दिमाग में यह डर बैठ गया कि सुरेश कहीं किसी को बता तो नहीं देगा कि हेमा और कृपा के बीच में कुछ है और मैं उनकी मदद कर रही हूँ।
सुरेश कहता या नहीं कहता पर मैं अब डर गई थी सो मैंने उससे पूछा- तुम क्या चाहते हो?
उसने कहा- मैं तुमसे अभी भी प्यार करता हूँ और यह कहते-कहते उसने मुझे अपनी तरफ घुमा लिया और मेरे होंठों से होंठ लगा दिए।
उसके छूते ही मेरे बदन में चिंगारी आग बनने लगी।
हालांकि मैं जानती थी कि मैं शादीशुदा हूँ, पर मैं डर गई थी और मैंने सुरेश का विरोध करना बंद कर दिया था।
मैंने उससे कहा- प्लीज ऐसा मत करो, मैं शादीशुदा हूँ और बगल में हेमा और कृपा हैं। उनको पता चल गया तो ठीक नहीं होगा।
उसने मुझे पागलों की तरह चूमते हुए कहा- किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, बस तुम चुपचाप मेरा साथ दो.. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूँगा।
और वो मेरे होंठों को चूमने लगा और मेरे स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से दबाने लगा।
मैं भी उसके हरकतों का कितनी देर विरोध कर पाती, क्योंकि हेमा और कृपा का सम्भोग देख कर मैं भी गर्म हो चुकी थी।
मैंने भी उसका साथ देने में ही भलाई सोची, पर मेरे मुँह से विरोध भरे शब्द निकलते रहे।
तब उसने कहा- तुम अगर ऐसे ही बोलती रहीं तो कोई न कोई जग जाएगा।
तो मैंने अपने मुँह से आवाजें निकालना बंद कर दीं।
उसने अब अपनी कमर को मेरी कमर से चिपका दिया और लिंग को पजामे के अन्दर से ही मेरी योनि के ऊपर रगड़ने लगा।
उसने अब मेरे स्तनों को छोड़ कर हाथ को मेरी जाँघों पर फिराते हुए सहलाने लगा। फिर मेरी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा मेरी नंगी मांसल जाँघों से खेलने लगा।
उसके इस तरह से मुझे छूने से मेरी योनि भी गीली होने लगी थी और मैं भी उसे चूमने लगी।
मैंने उसे कस कर पकड़ रखा था और हम दोनों के होंठ आपस में चिपके हुए थे।
तभी उसने मेरी पैंटी को खींचना शुरू किया और सरका कर घुटनों तक ले गया। फिर अपने हाथ से मेरी नंगे चूतड़ को सहलाने लगा और दबाने लगा मुझे उसका स्पर्श अब मजेदार लगने लगा था।
उसके स्पर्श से मैं और भी गर्म होने लगी थी और मैंने एक हाथ से उसके पजामे का नाड़ा खोल दिया और उसके लिंग को बाहर निकाल कर हिलाने लगी।
अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था, सो मैंने उससे कहा- सुरेश अब जल्दी से चोद लो.. वरना कोई जग गया तो देख लेगा..!
उससे भी अब रहा नहीं जा रहा था सो मुझे सीधा होने को कहा और मेरी पैंटी निकाल कर किनारे रख दी।
मैंने अपने पैर मोड़ कर फैला दिए और सुरेश मेरे ऊपर मेरी टांगों के बीच में आ गया।
उसने हाथ में थूक लेकर मेरी योनि पर मल दिया फिर झुक कर लिंग को मेरी योनि के छेद पर टिका दिया और धकेला, उसका आधा लिंग मेरी योनि में चला गया था।
अब वो मेरे ऊपर लेट गया और मुझे पकड़ कर मुझसे कहा- तुम बताओ न, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती थी?
मैंने भी सोचा कि यह आज मानने वाला नहीं है सो कह दिया- हाँ.. करती थी.. पर डर लगता था!
उसने फिर मुझे प्यार से चूमा और अपना पूरा लिंग मेरी योनि में धकेल दिया और कहा- मैं तो तुम्हें आज भी प्यार करता हूँ और करता रहूँगा, बस एक बार कहो ‘आई लव यू..!’
मैं भी अब जोश में थी सो कह दिया ‘आई लव यू..!’
मेरी बात सुनते ही उसने कहा- आई लव यू टू…!
और जोरों से धक्के देने लगा। मैं उसके धक्कों से सिसकियाँ लेने लगी, पर आवाज को दबाने की कोशिश भी करने लगी।
उसका लिंग मेरी योनि में तेज़ी से अन्दर-बाहर होने लगा था और मुझे बहुत मजा आ रहा था। मैं उसके धक्कों पर छटपटाने लगी। कभी टाँगें ऊपर उठा देती, तो कभी टांगों से उसे जकड़ लेती, कभी उसे कस कर पकड़ के अपनी और खींचती और अपने चूतड़ उठा देती। सुरेश को भी बहुत मजा आ रहा था वो भी धक्के जोर-जोर से लगाने लगा था।
हम दोनों मस्ती के सागर में डूब गए। फिर सुरेश ने कहा- सारिका तुम्हारी बुर बहुत कसी है, बहुत मजा आ रहा है चोदने में..!
मैंने भी उसे मस्ती में कहा- हाँ.. तुम्हारा लण्ड कितना सख्त है.. बहुत मजा आ रहा है.. बस चोदते रहो ऐसे ही..आह्ह..!
मैं इतनी गर्म हो गई थी कि सुरेश से सम्भोग के दौरान धीमी आवाज में कामुक बातें भी करने लगी थी। मुझे ऐसा लगने लगा था कि जैसे मेरे सोचने समझने कि शक्ति खत्म हो गई है। बस उसके लिंग को अपने अन्दर महसूस करना चाह रही थी।
वो मेरी योनि में अपना लिंग बार-बार धकेले जा रहा था और मैं अपनी टांगों से उसे और जोरों से कसती जा रही थी और वो मेरी गर्दन और स्तनों को चूमता हुआ मुझे पागल किए जा रहा था।
उसने मुझसे कहा- तुमने बहुत तड़फाया है मुझे… मैं तुम्हें चोद कर आज अपनी हर कसर निकाल लूँगा… तुम्हारी बुर मेरे लिए है।
मैंने भी उसे कहा- हाँ.. यह तुम्हारे लिए है मेरी बुर.. इसे चोदो जी भर कर और इसका रस निकाल दो..!
हम दोनों बुरी तरह से पसीने में भीग चुके थे। मेरा ब्लाउज गीला हो चुका था और हल्की-हल्की हवा चलने लगी थी। सो, जब मेरे ऊपर से हवा गुजरती थी, मुझे थोड़ा आराम मिल रहा था। मेरी योनि भी इतनी गीली हो चुकी थी कि सुरेश का लिंग ‘फच.. फच’ करता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था और पसीने से मेरी जाँघों और योनि के किनारे भीग गए थे।
जब सुरेश अपना लिंग बाहर निकलता तो हवा से ठंडी लगती, पर जब वापस अन्दर धकेलता तो गर्म लगता। ये एहसास मुझे और भी मजेदार लग रहा था।
मैं अब झड़ने को थी, सो बड़बड़ाने लगी- सुरेश चोदो.. मुझे.. प्लीज और जोर से चोदो.. बहुत मजा आ रहा.. है.. मेरा पानी निकाल दो…
वो जोश में जोरों से धक्के देने लगा और कहने लगा- हाँ.. मेरी जान चोद रहा हूँ.. आज तुम्हारी बुर का पानी निचोड़ दूँगा!
मैं मस्ती में अपने बदन को ऐंठने लगी और उसे अपनी ओर खींचने लगी, अपनी कमर को उठाते हुए और योनि को उसके लिंग पर दबाते हुए झड़ गई।
मैं हल्के से सिसकते हुए अपनी पकड़ को ढीली करने लगी, साथ ही मेरा बदन भी ढीला होने लगा पर सुरेश ने मेरे चूतड़ों को अपने हाथों से पकड़ कर खींचा और धक्के देता रहा।
उसने मुझे कहा- क्या हुआ सारिका, तुम्हारा पानी निकल गया क्या?
मैं कुछ नहीं बोली, बस यूँ ही खामोश रही जिसका इशारा वो समझ गया और धक्के जोरों से देने लगा।
करीब 5 मिनट वो मुझसे ऐसे ही चोदता रहा फिर मैंने उसके सुपारे को अपनी योनि में और भी गर्म महसूस किया, मैं समझ गई कि वो भी अब झड़ने को है। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं और धक्के इतनी तेज़ जैसे ट्रेन का पहिया…!
फिर अचानक उसने रुक-रुक कर 10-12 धक्के दिए, फिर उसका जिस्म और भी सख्त हो गया और उसने मेरे चूतड़ को जोरों से दबाया और उसकी सांस कुछ देर के लिए रुक गई और मेरी योनि के अन्दर एक गर्म धार सी छूटी। फिर उसने धीरे-धीरे सांस लेना शुरू किया और अपने लिंग को मेरी योनि में हौले-हौले अन्दर-बाहर करने लगा।
मैं समझ गई कि वो भी झड़ चुका है।
सुरेश धीरे-धीरे शान्त हो गया और मेरे ऊपर लेट गया।
मैंने उससे पूछा- हो गया?
उसने कहा- हाँ.. मैं झड़ गया.. पर कुछ देर मुझे आराम करने दो अपने ऊपर..!
मैंने उससे कहा- लण्ड बाहर निकालो.. मुझे अपनी बुर साफ़ करना है।
उसने कहा- कुछ देर रुको न.. तुम्हारी बुर का गर्म अहसास बहुत अच्छा लगा रहा है, तुम्हारी बुर बहुत गर्म और कोमल है।
मैंने उसे यूँ ही कुछ देर लेटा रहने दिया फिर उसे उठाया और अपनी बुर साफ़ की और कपड़े ठीक करके सो गई।
कृपा अब सो चुका था, पर हेमा अभी भी जग रही थी। उसने मेरी तरफ देखा मैंने तुरंत अपनी आँखें बंद कर लीं। वो शायद देख रही थी कि कहीं उसकी चोरी पकड़ी तो नहीं गई।
मेरा किसी तरह का हरकत न देख उसने अपनी साड़ी के अन्दर हाथ डाल और अपनी योनि से खेलने लगी थोड़ी देर में वो अपने शरीर को ऐंठते हुए शांत हो गई।
मैं यूँ ही खामोशी से उसे देखती रही पर काफी देर उनकी कामक्रीड़ा देख मुझे भी कुछ होने लगा था। साथ ही एक ही स्थिति में सोये-सोये बदन अकड़ सा गया था, तो मैंने सोचा कि अब थोड़ा उठ कर बदन सीधा कर लूँ, सो मैं पेशाब करने के लिए उठी तो देखा कि सुरेश जगा हुआ है और मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था।
मैं उसे नजरअंदाज करते हुए उठ कर चली गई। पेशाब करके वापस आई और लेट गई। तब सुरेश ने धीरे से पूछा- क्या हुआ नींद नहीं आ रही क्या?
मैंने कहा- मैं तो सो चुकी थी, अभी नींद खुली।
तब उसने कहा- तुमने कुछ देखा क्या?
मैंने कहा- क्या?
उसने कहा- वही.. जो तुम्हारे बगल में सब कुछ हुआ?
मैं अनजान बनती हुई बोली- क्या हुआ?
उसने कहा- तुम्हें सच में पता नहीं या अनजान बन रही हो?
मैंने कहा- मुझे कुछ नहीं पता, मैं सोई हुई थी।
उसने कहा- ठीक है, चलो नहीं पता तो कोई बात नहीं.. सो जाओ!
मैं कुछ देर सोचती रही फिर उससे पूछा- क्या हुआ था?
उसने कहा- जाने दो, कुछ नहीं हुआ।
मैंने जोर देकर फिर से पूछा तो उसने कहा- तुम्हारे बगल में हेमा और कृपा चुदाई कर रहे थे।
मैंने उसे कहा- तुम झूठ बोल रहे हो, कोई किसी के सामने ऐसा नहीं करता.. कोई इतना निडर नहीं होता।
उसने तब कहा- ठीक है सुबह हेमा से पूछ लेना, कृपा ने हेमा को दो बार चोदा।
मैं समझ गई कि सुरेश भी उन्हें देख रहा था, पर मैं उसके सामने अनजान बनी रही। फिर मैं खामोश हो गई और मेरा इस तरह का व्यवहार देख सुरेश भी खामोश हो गया।
मैं हेमा और सुरेश का खेल देख कर उत्तेजित हो गई थी। फिर मैंने सोचा कि जब मैं उत्तेजित हो गई थी, तो सुरेश भी हुआ होगा। यही सोचते हुए मैं सोने की कोशिश करने लगी, पर नींद नहीं आ रही थी।
कुछ देर तक तो मैं खामोश रही फिर पता नहीं मुझे क्या हुआ मैंने सुरेश से पूछा- तुमने क्या-क्या देखा?
उसने उत्तर दिया- कुछ ख़ास तो दिख नहीं रहा था क्योंकि तुम बीच थीं, पर जब कृपा हेमा के ऊपर चढ़ा तो मुझे समझ आ गया था कि कृपा हेमा को चोद रहा है।
मैं तो पहले से ही खुद को गर्म महसूस कर रही थी और ऊपर से सुरेश जैसी बातें कर रहा था, मुझे और भी उत्तेजना होने लगी, पर खुद पर काबू किए हुई थी।
तभी सुरेश ने कहा- तुमने उस वक़्त मेरे सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया था?
मैंने कहा- मुझे डर लगता था इसलिए।
फिर उसने कहा- अगर तुम जवाब देतीं, तो क्या कहतीं.. ‘हाँ’ या ‘ना’..!
मैंने उसे कहा- वो पुरानी बात थी, उसे भूल जाओ मैं सोने जा रही हूँ।
यह बोल कर मैं दूसरी तरफ मुँह करके सोने चली गई, पर अगले ही पल उसने मुझे पीछे से पकड़ लिया और कहा- सारिका, मैं आज भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।
मैंने उसे धकेलते हुए गुस्से में कहा- क्या कर रहे हो.. तुम जानते हो कि मैं शादीशुदा हूँ।
वो मुझसे अलग होने का नाम नहीं ले रहा था उसने मुझे जोरों से पकड़ रखा था और कहा- हेमा भी तो शादीशुदा है, फिर तुम उसकी मदद क्यों कर रही हो। मुझे मालूम है हेमा और कृपा की यहाँ सम्भोग करने की इतनी हिम्मत इसलिए हुई क्योंकि तुमने ही मदद की है।
अब मेरे दिमाग में यह डर बैठ गया कि सुरेश कहीं किसी को बता तो नहीं देगा कि हेमा और कृपा के बीच में कुछ है और मैं उनकी मदद कर रही हूँ।
सुरेश कहता या नहीं कहता पर मैं अब डर गई थी सो मैंने उससे पूछा- तुम क्या चाहते हो?
उसने कहा- मैं तुमसे अभी भी प्यार करता हूँ और यह कहते-कहते उसने मुझे अपनी तरफ घुमा लिया और मेरे होंठों से होंठ लगा दिए।
उसके छूते ही मेरे बदन में चिंगारी आग बनने लगी।
हालांकि मैं जानती थी कि मैं शादीशुदा हूँ, पर मैं डर गई थी और मैंने सुरेश का विरोध करना बंद कर दिया था।
मैंने उससे कहा- प्लीज ऐसा मत करो, मैं शादीशुदा हूँ और बगल में हेमा और कृपा हैं। उनको पता चल गया तो ठीक नहीं होगा।
उसने मुझे पागलों की तरह चूमते हुए कहा- किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, बस तुम चुपचाप मेरा साथ दो.. मैं तुम्हें बहुत प्यार करूँगा।
और वो मेरे होंठों को चूमने लगा और मेरे स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से दबाने लगा।
मैं भी उसके हरकतों का कितनी देर विरोध कर पाती, क्योंकि हेमा और कृपा का सम्भोग देख कर मैं भी गर्म हो चुकी थी।
मैंने भी उसका साथ देने में ही भलाई सोची, पर मेरे मुँह से विरोध भरे शब्द निकलते रहे।
तब उसने कहा- तुम अगर ऐसे ही बोलती रहीं तो कोई न कोई जग जाएगा।
तो मैंने अपने मुँह से आवाजें निकालना बंद कर दीं।
उसने अब अपनी कमर को मेरी कमर से चिपका दिया और लिंग को पजामे के अन्दर से ही मेरी योनि के ऊपर रगड़ने लगा।
उसने अब मेरे स्तनों को छोड़ कर हाथ को मेरी जाँघों पर फिराते हुए सहलाने लगा। फिर मेरी साड़ी को ऊपर कमर तक उठा मेरी नंगी मांसल जाँघों से खेलने लगा।
उसके इस तरह से मुझे छूने से मेरी योनि भी गीली होने लगी थी और मैं भी उसे चूमने लगी।
मैंने उसे कस कर पकड़ रखा था और हम दोनों के होंठ आपस में चिपके हुए थे।
तभी उसने मेरी पैंटी को खींचना शुरू किया और सरका कर घुटनों तक ले गया। फिर अपने हाथ से मेरी नंगे चूतड़ को सहलाने लगा और दबाने लगा मुझे उसका स्पर्श अब मजेदार लगने लगा था।
उसके स्पर्श से मैं और भी गर्म होने लगी थी और मैंने एक हाथ से उसके पजामे का नाड़ा खोल दिया और उसके लिंग को बाहर निकाल कर हिलाने लगी।
अब मुझसे सहन नहीं हो रहा था, सो मैंने उससे कहा- सुरेश अब जल्दी से चोद लो.. वरना कोई जग गया तो देख लेगा..!
उससे भी अब रहा नहीं जा रहा था सो मुझे सीधा होने को कहा और मेरी पैंटी निकाल कर किनारे रख दी।
मैंने अपने पैर मोड़ कर फैला दिए और सुरेश मेरे ऊपर मेरी टांगों के बीच में आ गया।
उसने हाथ में थूक लेकर मेरी योनि पर मल दिया फिर झुक कर लिंग को मेरी योनि के छेद पर टिका दिया और धकेला, उसका आधा लिंग मेरी योनि में चला गया था।
अब वो मेरे ऊपर लेट गया और मुझे पकड़ कर मुझसे कहा- तुम बताओ न, क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती थी?
मैंने भी सोचा कि यह आज मानने वाला नहीं है सो कह दिया- हाँ.. करती थी.. पर डर लगता था!
उसने फिर मुझे प्यार से चूमा और अपना पूरा लिंग मेरी योनि में धकेल दिया और कहा- मैं तो तुम्हें आज भी प्यार करता हूँ और करता रहूँगा, बस एक बार कहो ‘आई लव यू..!’
मैं भी अब जोश में थी सो कह दिया ‘आई लव यू..!’
मेरी बात सुनते ही उसने कहा- आई लव यू टू…!
और जोरों से धक्के देने लगा। मैं उसके धक्कों से सिसकियाँ लेने लगी, पर आवाज को दबाने की कोशिश भी करने लगी।
उसका लिंग मेरी योनि में तेज़ी से अन्दर-बाहर होने लगा था और मुझे बहुत मजा आ रहा था। मैं उसके धक्कों पर छटपटाने लगी। कभी टाँगें ऊपर उठा देती, तो कभी टांगों से उसे जकड़ लेती, कभी उसे कस कर पकड़ के अपनी और खींचती और अपने चूतड़ उठा देती। सुरेश को भी बहुत मजा आ रहा था वो भी धक्के जोर-जोर से लगाने लगा था।
हम दोनों मस्ती के सागर में डूब गए। फिर सुरेश ने कहा- सारिका तुम्हारी बुर बहुत कसी है, बहुत मजा आ रहा है चोदने में..!
मैंने भी उसे मस्ती में कहा- हाँ.. तुम्हारा लण्ड कितना सख्त है.. बहुत मजा आ रहा है.. बस चोदते रहो ऐसे ही..आह्ह..!
मैं इतनी गर्म हो गई थी कि सुरेश से सम्भोग के दौरान धीमी आवाज में कामुक बातें भी करने लगी थी। मुझे ऐसा लगने लगा था कि जैसे मेरे सोचने समझने कि शक्ति खत्म हो गई है। बस उसके लिंग को अपने अन्दर महसूस करना चाह रही थी।
वो मेरी योनि में अपना लिंग बार-बार धकेले जा रहा था और मैं अपनी टांगों से उसे और जोरों से कसती जा रही थी और वो मेरी गर्दन और स्तनों को चूमता हुआ मुझे पागल किए जा रहा था।
उसने मुझसे कहा- तुमने बहुत तड़फाया है मुझे… मैं तुम्हें चोद कर आज अपनी हर कसर निकाल लूँगा… तुम्हारी बुर मेरे लिए है।
मैंने भी उसे कहा- हाँ.. यह तुम्हारे लिए है मेरी बुर.. इसे चोदो जी भर कर और इसका रस निकाल दो..!
हम दोनों बुरी तरह से पसीने में भीग चुके थे। मेरा ब्लाउज गीला हो चुका था और हल्की-हल्की हवा चलने लगी थी। सो, जब मेरे ऊपर से हवा गुजरती थी, मुझे थोड़ा आराम मिल रहा था। मेरी योनि भी इतनी गीली हो चुकी थी कि सुरेश का लिंग ‘फच.. फच’ करता हुआ अन्दर-बाहर हो रहा था और पसीने से मेरी जाँघों और योनि के किनारे भीग गए थे।
जब सुरेश अपना लिंग बाहर निकलता तो हवा से ठंडी लगती, पर जब वापस अन्दर धकेलता तो गर्म लगता। ये एहसास मुझे और भी मजेदार लग रहा था।
मैं अब झड़ने को थी, सो बड़बड़ाने लगी- सुरेश चोदो.. मुझे.. प्लीज और जोर से चोदो.. बहुत मजा आ रहा.. है.. मेरा पानी निकाल दो…
वो जोश में जोरों से धक्के देने लगा और कहने लगा- हाँ.. मेरी जान चोद रहा हूँ.. आज तुम्हारी बुर का पानी निचोड़ दूँगा!
मैं मस्ती में अपने बदन को ऐंठने लगी और उसे अपनी ओर खींचने लगी, अपनी कमर को उठाते हुए और योनि को उसके लिंग पर दबाते हुए झड़ गई।
मैं हल्के से सिसकते हुए अपनी पकड़ को ढीली करने लगी, साथ ही मेरा बदन भी ढीला होने लगा पर सुरेश ने मेरे चूतड़ों को अपने हाथों से पकड़ कर खींचा और धक्के देता रहा।
उसने मुझे कहा- क्या हुआ सारिका, तुम्हारा पानी निकल गया क्या?
मैं कुछ नहीं बोली, बस यूँ ही खामोश रही जिसका इशारा वो समझ गया और धक्के जोरों से देने लगा।
करीब 5 मिनट वो मुझसे ऐसे ही चोदता रहा फिर मैंने उसके सुपारे को अपनी योनि में और भी गर्म महसूस किया, मैं समझ गई कि वो भी अब झड़ने को है। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं और धक्के इतनी तेज़ जैसे ट्रेन का पहिया…!
फिर अचानक उसने रुक-रुक कर 10-12 धक्के दिए, फिर उसका जिस्म और भी सख्त हो गया और उसने मेरे चूतड़ को जोरों से दबाया और उसकी सांस कुछ देर के लिए रुक गई और मेरी योनि के अन्दर एक गर्म धार सी छूटी। फिर उसने धीरे-धीरे सांस लेना शुरू किया और अपने लिंग को मेरी योनि में हौले-हौले अन्दर-बाहर करने लगा।
मैं समझ गई कि वो भी झड़ चुका है।
सुरेश धीरे-धीरे शान्त हो गया और मेरे ऊपर लेट गया।
मैंने उससे पूछा- हो गया?
उसने कहा- हाँ.. मैं झड़ गया.. पर कुछ देर मुझे आराम करने दो अपने ऊपर..!
मैंने उससे कहा- लण्ड बाहर निकालो.. मुझे अपनी बुर साफ़ करना है।
उसने कहा- कुछ देर रुको न.. तुम्हारी बुर का गर्म अहसास बहुत अच्छा लगा रहा है, तुम्हारी बुर बहुत गर्म और कोमल है।
मैंने उसे यूँ ही कुछ देर लेटा रहने दिया फिर उसे उठाया और अपनी बुर साफ़ की और कपड़े ठीक करके सो गई।