हिंदी सेक्स कहानी - मेरी आशिकी तुमसे ही है
Posted: 07 Jul 2016 09:24
सुबहका वक्त. कांचके ग्लासेस लगाई इमारतोंके जंगलमें एक इमारत और उस इमारतके चौथे मालेपर एक एक करके एक आयटी कंपनीके कर्मचारी आने लगे थे. दस बजनेको आए थे और कर्मचारीयोंकी भीड अचानक बढने लगी. सब कर्मचारी ऑफीसमें जानेके लिए भीड और जल्दी करने लगे. कारण एकही था की देरी ना हो जाए. सब कर्मचारीयोंके आनेका वक्त दरवाजेपरही स्मार्ट कार्ड रिडरपर दर्ज कीया जाता था.
सिर्फ जानेका वक्तही नही तो उनकी पुरी अंदर बाहर जानेकी गतिविधीयां उस कार्ड रिडरपर दर्ज किई जाती था. कंपनीका जो कांचसे बना मुख्य दरवाजा था उसे मॅग्नेटीक लॉक लगाया था और दरवाजा कर्मचारीयोंने अपना कार्ड दिखानेके सिवा खुलता नही था. उस कार्ड रिडरकी वजहसे कंपनीकी सुरक्षा और नियमितता बरकरार रखी जाती थी. दसका बझर बज गया और तबतक कंपनीके सारे कर्मचारी अंदर पहूंच गए थे. कंपनीकी डायरेक्टर और सिईओ अंजलीभी.
अंजलीने बी.ई कॉम्प्यूटर किया था और उसकी उम्र जादासे जादा 23 होगी. उसके पिता, कंपनीके पुर्व डायरेक्टर और सिईओ, अचानक गुजर जानेसे, उम्रके लिहाजसे कंपनीकी बहुत बडी जिम्मेदारी उसपर आन पडी थी. नही तो यह तो उसके हंसने खेलनेके और मस्ती करनेके दिन थे.
उसकी आगेकी पढाई यु.एस. में करनेकी इच्छा थी. लेकिन उसकी वह इच्छा पिताजी गुजर जानेसे केवल इच्छाही रह गई थी. वहभी कंपनीकी जिम्मेदारी अच्छी तरहसे निभाती थी और साथमें अपने मस्तीके, हंसने खेलनेके दिन मुरझा ना जाए इसका खयाल रखती थी.
हॉलमें दोनो तरफ क्यूनिकल्स थे और उसके बिचमेंसे जो संकरा रास्ता था उससे गुजरते हूए अंजली अपने कॅबिनकी तरफ जा रही थी. वैसे वह ऑफीसमें पहननेके लिए कॅजुअल्स पहनावाही जादा पसंद करती थी – ढीला सफेद टी शर्ट और कॉटनका ढीला बादामी पॅंन्ट. कोई बडा प्रोग्रॅम होनेपर या कोई स्पेशल क्लायंट के साथ मिटींग होनेपर ही वह फॉर्मल ड्रेस पहनना पसंद करती थी.
ऑफीसके बाकी स्टाफ और डेव्हलपर्सकोभी फॉर्मल ड्रेसकी कोई जबरदस्ती नही थी. वे जिन कपडोमें कंफर्टेबल महसूस करे ऐसा पहनावा पहननेकी उन सबको छूट थी. ऑफीसके कामके बारेमें अंजलीका एक सूत्र था. की सब लोग ऑफीस का कामभी ऍन्जॉय करनेमें सक्षम होना चाहिए. अगर लोग कामभी ऍन्जॉय कर पाएंगे तो उन्हे कामकी थकान कभी महसूसही नही होगी. उसने ऑफीसमेंभी काम और विश्राम या हॉबी इसका अच्छा खासा तालमेंल बिठाकर कर उसके कंपनीमें काम कर रहे कर्मचारीयोंकी प्रॉडक्टीव्हीटी बढाई थी.
उसने ऑफीसमें स्विमींग पुल, झेन चेंबर, मेडीटेशन रुम, जीम, टी टी रुम ऐसी अलग अलग सुविधाए कर्मचारीययोंको मुहय्या कराकर उनका ऑफीसके बारेमें अपनापन बढानेकी कोशीश की थी. और उसे उसके अच्छे परिणामभी दिखने लगे थे.
उसके कॅबिनकी तरफ जाते जाते उसे उसके कंपनीके कुछ कर्मचारी क्रॉस हो गए. उन्होने उसे अदबके साथ विश किया. उसनेभी एक मीठे स्माईलके साथ उनको विश कर प्रतिउत्तर दिया. वे सिर्फ डरके कारण उसे विश नही करते थे तो उनके मनमें उसके बारेमें उसके काबीलीयतके बारेमें एक आदर दिख रहा था. वह अपने कॅबिनके पास पहूंच गई.
उसके कॅबिनकी एक खासियत थी की उसकी कॅबिन बाकि कर्मचायोंसे भारी सामानसे ना भरी होकर, जो सुविधाएँ उसके कर्मचारीयोंको थी वही उसके कॅबिनमेंभी थी. ‘मै भी तुममेंसे एक हूँ.’ यह भावना सबके मनमें दृढ हो, यह उसका उद्देश्य होगा.
वह अपने कॅबिनके पास पहूँचतेही उसने स्प्रिंग लगाया हूवा अपने कॅबिनका कांचका दरवाजा अंदरकी ओर धकेला और वह अंदर चली गई.
अंजलीने ऑफीसमें आयेबराबर रोजके जो महत्वपुर्ण काम थे वह निपटाए. जैसे महत्वपुर्ण खत, ऑफीशियल मेल्स, प्रोग्रेस रिपोर्ट्स इत्यादी. कुछ महत्वपुर्ण मेल्स थी उन्हे जवाब भेज दिया, कुछ मेल्सके प्रिंट लिए. सब महत्वपुर्ण काम निपटनेके बाद उसने अपने कॉम्प्यूटरका चॅटींग सेशन ओपन किया.
कामकी थकान महसूस होनेसे या कुछ खाली वक्त मिलनेपर वह चॅटींग करती थी. यह उसका हर दिन कार्यक्रम रहता था. यूभी इतनी बडी कंपनीकी जिम्मेदारी संभालना कोई मामूली बात नही थी. कामका तणाव, टेन्शन्स इनसे छूटकारा पानेके लिए उसने चॅटींगके रुपमें बहुत अच्छा विकल्प चुना था.
तभी फोनकी घंटी बजी. उसने चॅटींग विंडोमें आये मेसेजेस पढते हूए फोन उठाया. हुबहु कॉम्प्यूटरके पॅरेलल प्रोसेसिंग जैसे सारे काम वह एकही वक्त कर सकती थी.
” यस मोना”
” मॅडम .. नेट सेक्यूराज मॅनेजींग डायरेक्टर … मि. भाटीया इज ऑन द लाईन…” उधरसे मोनाका आवाज आया.
” कनेक्ट प्लीज”
‘ हाय’ तबतक चॅटींगपर किसीका मेसेज आया.
अंजलीने किसका मेसेज है यह चेक किया. ‘टॉम बॉय’ मेसेज भेजनेवालेने धारण किया हुवा नाम था.
‘ क्या चिपकू आदमी है ‘ अंजलीने सोचा.
यही ‘टॉम बॉय’ हमेशा चॅटींगपर उसे मिलता था. और लगभग हरबार अंजलीने चॅटींग सेशन ओपन किए बराबर उसका मेसेज आया नही ऐसा बहुत कम होता था.
‘ इसे कुछ काम धंदे है की नाही … जब देखो तब चॅटींगपर पडा रहता है ‘
अंजलीने आजभी उसे इग्नोर करनेकी ठान ली. दो तिन ऑफलाईन मेसेजेस थे.
सिर्फ जानेका वक्तही नही तो उनकी पुरी अंदर बाहर जानेकी गतिविधीयां उस कार्ड रिडरपर दर्ज किई जाती था. कंपनीका जो कांचसे बना मुख्य दरवाजा था उसे मॅग्नेटीक लॉक लगाया था और दरवाजा कर्मचारीयोंने अपना कार्ड दिखानेके सिवा खुलता नही था. उस कार्ड रिडरकी वजहसे कंपनीकी सुरक्षा और नियमितता बरकरार रखी जाती थी. दसका बझर बज गया और तबतक कंपनीके सारे कर्मचारी अंदर पहूंच गए थे. कंपनीकी डायरेक्टर और सिईओ अंजलीभी.
अंजलीने बी.ई कॉम्प्यूटर किया था और उसकी उम्र जादासे जादा 23 होगी. उसके पिता, कंपनीके पुर्व डायरेक्टर और सिईओ, अचानक गुजर जानेसे, उम्रके लिहाजसे कंपनीकी बहुत बडी जिम्मेदारी उसपर आन पडी थी. नही तो यह तो उसके हंसने खेलनेके और मस्ती करनेके दिन थे.
उसकी आगेकी पढाई यु.एस. में करनेकी इच्छा थी. लेकिन उसकी वह इच्छा पिताजी गुजर जानेसे केवल इच्छाही रह गई थी. वहभी कंपनीकी जिम्मेदारी अच्छी तरहसे निभाती थी और साथमें अपने मस्तीके, हंसने खेलनेके दिन मुरझा ना जाए इसका खयाल रखती थी.
हॉलमें दोनो तरफ क्यूनिकल्स थे और उसके बिचमेंसे जो संकरा रास्ता था उससे गुजरते हूए अंजली अपने कॅबिनकी तरफ जा रही थी. वैसे वह ऑफीसमें पहननेके लिए कॅजुअल्स पहनावाही जादा पसंद करती थी – ढीला सफेद टी शर्ट और कॉटनका ढीला बादामी पॅंन्ट. कोई बडा प्रोग्रॅम होनेपर या कोई स्पेशल क्लायंट के साथ मिटींग होनेपर ही वह फॉर्मल ड्रेस पहनना पसंद करती थी.
ऑफीसके बाकी स्टाफ और डेव्हलपर्सकोभी फॉर्मल ड्रेसकी कोई जबरदस्ती नही थी. वे जिन कपडोमें कंफर्टेबल महसूस करे ऐसा पहनावा पहननेकी उन सबको छूट थी. ऑफीसके कामके बारेमें अंजलीका एक सूत्र था. की सब लोग ऑफीस का कामभी ऍन्जॉय करनेमें सक्षम होना चाहिए. अगर लोग कामभी ऍन्जॉय कर पाएंगे तो उन्हे कामकी थकान कभी महसूसही नही होगी. उसने ऑफीसमेंभी काम और विश्राम या हॉबी इसका अच्छा खासा तालमेंल बिठाकर कर उसके कंपनीमें काम कर रहे कर्मचारीयोंकी प्रॉडक्टीव्हीटी बढाई थी.
उसने ऑफीसमें स्विमींग पुल, झेन चेंबर, मेडीटेशन रुम, जीम, टी टी रुम ऐसी अलग अलग सुविधाए कर्मचारीययोंको मुहय्या कराकर उनका ऑफीसके बारेमें अपनापन बढानेकी कोशीश की थी. और उसे उसके अच्छे परिणामभी दिखने लगे थे.
उसके कॅबिनकी तरफ जाते जाते उसे उसके कंपनीके कुछ कर्मचारी क्रॉस हो गए. उन्होने उसे अदबके साथ विश किया. उसनेभी एक मीठे स्माईलके साथ उनको विश कर प्रतिउत्तर दिया. वे सिर्फ डरके कारण उसे विश नही करते थे तो उनके मनमें उसके बारेमें उसके काबीलीयतके बारेमें एक आदर दिख रहा था. वह अपने कॅबिनके पास पहूंच गई.
उसके कॅबिनकी एक खासियत थी की उसकी कॅबिन बाकि कर्मचायोंसे भारी सामानसे ना भरी होकर, जो सुविधाएँ उसके कर्मचारीयोंको थी वही उसके कॅबिनमेंभी थी. ‘मै भी तुममेंसे एक हूँ.’ यह भावना सबके मनमें दृढ हो, यह उसका उद्देश्य होगा.
वह अपने कॅबिनके पास पहूँचतेही उसने स्प्रिंग लगाया हूवा अपने कॅबिनका कांचका दरवाजा अंदरकी ओर धकेला और वह अंदर चली गई.
अंजलीने ऑफीसमें आयेबराबर रोजके जो महत्वपुर्ण काम थे वह निपटाए. जैसे महत्वपुर्ण खत, ऑफीशियल मेल्स, प्रोग्रेस रिपोर्ट्स इत्यादी. कुछ महत्वपुर्ण मेल्स थी उन्हे जवाब भेज दिया, कुछ मेल्सके प्रिंट लिए. सब महत्वपुर्ण काम निपटनेके बाद उसने अपने कॉम्प्यूटरका चॅटींग सेशन ओपन किया.
कामकी थकान महसूस होनेसे या कुछ खाली वक्त मिलनेपर वह चॅटींग करती थी. यह उसका हर दिन कार्यक्रम रहता था. यूभी इतनी बडी कंपनीकी जिम्मेदारी संभालना कोई मामूली बात नही थी. कामका तणाव, टेन्शन्स इनसे छूटकारा पानेके लिए उसने चॅटींगके रुपमें बहुत अच्छा विकल्प चुना था.
तभी फोनकी घंटी बजी. उसने चॅटींग विंडोमें आये मेसेजेस पढते हूए फोन उठाया. हुबहु कॉम्प्यूटरके पॅरेलल प्रोसेसिंग जैसे सारे काम वह एकही वक्त कर सकती थी.
” यस मोना”
” मॅडम .. नेट सेक्यूराज मॅनेजींग डायरेक्टर … मि. भाटीया इज ऑन द लाईन…” उधरसे मोनाका आवाज आया.
” कनेक्ट प्लीज”
‘ हाय’ तबतक चॅटींगपर किसीका मेसेज आया.
अंजलीने किसका मेसेज है यह चेक किया. ‘टॉम बॉय’ मेसेज भेजनेवालेने धारण किया हुवा नाम था.
‘ क्या चिपकू आदमी है ‘ अंजलीने सोचा.
यही ‘टॉम बॉय’ हमेशा चॅटींगपर उसे मिलता था. और लगभग हरबार अंजलीने चॅटींग सेशन ओपन किए बराबर उसका मेसेज आया नही ऐसा बहुत कम होता था.
‘ इसे कुछ काम धंदे है की नाही … जब देखो तब चॅटींगपर पडा रहता है ‘
अंजलीने आजभी उसे इग्नोर करनेकी ठान ली. दो तिन ऑफलाईन मेसेजेस थे.