nonvag sex story - पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो
Posted: 14 Dec 2016 10:53
मैं बिहार के एक गाँव का हूँ।
पुणे में, इंजिनियरिंग कर रहा हूँ।
उम्र 22 साल, रंग गोरा और मजबूत कद काठी।
सेक्स के बारे में, उस समय मैं ज़्यादा कुछ नहीं जानता था।
बस कभी कभार पेड़ पर, झाड़ियों में छुप कर गाँव की लड़कियों और औरतों को नहाते और उनको अपनी छातियों को मलते देखा है।
मेरी गाँव में, काफ़ी लंबी चौड़ी जमींदारी है।
बड़ी सी हवेली है। नौकर चाकर।
घर में, वैसे तो कई लोग हैं। पर, मुख्य हैं – मेरे पापा, माँ, चाचा और चाची।
राघव, हमारी हवेली का मुख्य नौकर है और उसकी पत्नी, जमुना मुख्य नौकरानी।
मेरे पापा, करीब 52 के होंगे और माँ करीब 48 की।
मेरा जन्म, इस हवेली में हुआ है और यहीं पर मैंने अपना पूरा बचपन और जवानी के कुछ साल बिताए हैं।
राघव की उम्र, तकरीबन 42 की होगी और जमुना की करीब 36–37 की।
उनकी बेटी श्रुति की उम्र, तकरीबन 17-18 की होगी। जो की, मेरे से करीब 5 साल छोटी थी।
बचपन में, श्रुति मेरे साथ ही ज़्यादातर रहती थी।
मैं उसे पढ़ाता था और हम साथ में खेला भी करते थे।
हमारा पूरा परिवार, राघव और जमुना को बहुत मानता था।
मैं तांगे पर बैठा था और तांगा, अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था।
मेरे गाँव का इलाक़ा, अभी भी काफ़ी पिछड़ा हुआ है और रास्ते की हालत तो बहुत ही खराब थी।
जैसे तैसे, मैं अपने गाँव के करीब पहुँचा।
यहाँ से मुझे, करीब पाँच किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी थी।
शाम हो आई थी।
मैंने जल्दी जल्दी, चलना शुरू कर दिया।
गाँव पहुँचते पहुँचते, रात हो गई थी।
मेरे घर का दरवाजा, खुला हुआ था।
मुझे ताजूब नहीं हुआ क्योंकि मेरे परिवार का यहाँ काफ़ी दबदबा है।
मैं अंदर घुसा और सोच रहा थे की सब कहाँ गये और तभी मुझे, श्रुति दिखाई पड़ी।
मैंने उसको आवाज़ लगाई।
वो तो एकदम से हड़बड़ा गई और खुशी से दौड़ कर, मेरे सीने से आ लगी।
उसने मुझे, अपने बाहों में भर लिया।
मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर कर, ऊपर उठा लिया और उसे घुमाने लगा।
वो डर गई और नीचे उतारने की ज़िद करने लगी।
मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घूमता ही रहा।
तभी एकदम अचानक से, मुझे उसकी “जवानी” का एहसास हुआ।
एकदम से गदराई हुई छाती, मेरे सीने से दबी हुई थी।
एक करेंट सा लगा, मुझे।
रोशनी हल्की थी, इसलिए मैं चाह कर भी उसकी चूचियाँ नहीं देख पाया पर देखने की क्या ज़रूरत थी।
मैं उसके बूब्स का दबाव, भली भाँति समझ रहा था।
मैंने धीरे से, श्रुति को उतार दिया।
श्रुति खड़ी होकर, अपनी उखड़ी हुई साँस को व्यवस्थित करने लगी।
मैं उस साधारण रोशनी में भी, उसके सीने के उतार चढ़ाव को देख रहा था।
एक मिनट बाद, वो मेरी तरफ झपटी और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।
मैं हंसता हुआ, उसकी तरफ लपका तो वो भागने लगी।
मैंने पीछे से, उसको दबोच लिया।
वो, हंस रही थी।
मुझे उसकी निश्चल हँसी, बहुत ही प्यारी लगी लेकिन मेरे मन में “शैतान” जागने लगा था।
जब मैंने उसको दबोचा तो जान बुझ कर, मैं उसके पीछे हो गया और पीछे से ही उसको अपने बाहों के घेरे में ले लिया।
बचपन के साथी थे, हम इसलिए उसको कोई एतराज नहीं था।
ऐसा, मैं सोच रहा था।
मैंने धीरे से, अपना उल्टा हाथ उसके सीधे मम्मे पर रख दिया और बहुत ही हल्के से दबा भी दिया।
हे भगवान!! मैंने कभी भी सोचा ना था की लौंडिया की चूची दबाने में, इतना मज़ा आता है।
मेरे मुँह से एक सिसकारी, निकलते निकलते रह गई।
मैंने उसे यूँ ही दबाए हुए पूछा – घर के सब लोग, कहाँ गये हैं.. !!
उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया की सब लोग पास के गाँव में शादी में गये हैं और घर पर उसके माँ और पिताजी के अलावा और कोई नहीं है.. !!
बात करते हुए, मैं उसकी चूची को सहला रहा था।
वो घाघरा चोली में थी और उसने कोई ब्रा नहीं पहनी थी।
मैं बता नहीं सकता, साहब की मैं कौन से आसमान पर उड़ रहा था।
उसकी मस्त चूची का ये एहसास ही, मुझे पागल किए दे रही थी।
पर मैं हैरान था की उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया क्यूँ नहीं हो रही है।
हम आँगन में खड़े थे और मैं बहुत हल्के हल्के, उसकी चूचियों को सहला रहा था और वो हंस हंस के मुझसे बात किए जा रही थी।
उसने खुद को मुझसे छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।
मुझे एक झटका सा लगा।
क्या श्रुति एकदम इनोसेंट (मासूम) है और उसे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता।
मेरे मन ने मुझे धिक्कारा और मैं एक दम से, जैसे होश में आया और श्रुति को छोड़ दिया।
फिर उसने मेरा सूटकेस उठाया और हम दोनों, मेरे कमरे की तरफ चल पड़े।
नहा धो कर, मैंने शॉर्ट और बनियान पहन लिया और अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा हो गया।
हमारे गाँव में लाइट कम ही आती है, इसलिए लालटेन से ही ज़्यादातर काम होता है।
बरामदे की लालटेन की रोशनी आँगन में पड़ रही थी और चाँद की रोशनी भी।
तभी मैंने जमुना को, आँगन में आते हुए देखा।
उसके हाथ में, कुछ सामान था।
वो सामान को एक तरफ रख कर खड़ी हुई थी की आँगन में, मेरे चाचा ने प्रवेश किया।
चाचा – क्या रे, जमुना.. !! भैया भाभी, सब आए की नहीं.. !!
जमुना – कहाँ मालिक, अभी कहाँ.. !! उनको तो लौटने में, काफ़ी देर हो जाएगी.. !!
चाचा – और राघव.. !!
जमुना – वो तो शहर गये हैं.. !! कुछ कोर्ट का काम था.. !! बड़े मालिक ने भेजा है.. !! शायद, आज ना आ पाए.. !!
चाचा – हूँ.. !! तो फिर आज पूरे घर में कोई नहीं है.. !!
जमुना – जी मालिक.. !!
चाचा – अच्छा, ज़रा पानी पिला दे.. !!
मैं अपनी खिड़की पर ही खड़ा था, जो की दूसरी मंज़िल पर है।
उन दोनों को ही, मेरे आगमन का पता नहीं था।
चाचा खटिया पर बैठ कर, अपने मूँछो पर ताव दे रहे थे।
अचानक, वो उठे और उन्होंने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया।
उनकी ये हरकत, मुझे बड़ी अजीब लगी।
दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत थी।
मेरा माथा ठनका।
मैं कुछ सोच पता इसके पहले ही, जमुना एक प्लेट में गुड और जग में पानी ले कर आई।
चाचा ने पानी पिया और उठ खड़े हुए।
जमुना जैसे ही जग लेकर घूमी, चाचा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
कहानी को बीच में रोकते हुए, मैं जमुना के बारे मैं कुछ बता दूँ।
एकदम, “मस्त माल” है।
5 फीट 4 इंच की लंबाई, मेहनत कश शरीर, पतली कमर, भरा पूरा सीना – 36 साइज़। एकदम से उठाव लिया हुआ, मानो उसके स्तन आपको चुनौती दे रहे हो की आओ और ध्वंस कर दो, इन गगनचुंबी पर्वत की चोटियों को।
भारी भारी गाण्ड, मानो दो बड़े बड़े खरबूजे।
जब चलती है तो गाँव वालों में, हलचल मच जाती है।
सारे गाँव वाले राघव से जलते थे की साले ने क्या तक़दीर पाई है।
मस्त चोदता होगा, यह जमुना को और जमुना भी इसे निहाल कर देती होगी।
मैंने खुद कई बार लोगों को उसकी छातियों की तरफ या फिर, उसके गाण्ड की तरफ ललचाई नज़रों से घूरते हुए देखा है।
मैं तब, इसका मतलब नहीं जानता था।
खैर, चाचा के इस बर्ताव से जमुना हड़बड़ा गई।
चाचा ने उसे अपनी तरफ खींचा तो वो जैसे होश में आए।
जमुना – मालिक, ये आप क्या कर रही हैं.. !!
चाचा – क्यों क्या हुआ.. !! तू मेरी नौकरानी है.. !! तुझे मुझे हर तरह से, खुश रखना चाहिए.. !!
जमुना – नहीं मालिक.. !! मैं और किसी की बीवी हूँ.. !!
चाचा – साली, रांड़.. !! नखरे मारती है.. !! सालों से, कम से कम 100 बार तुझे चोद चुका हूँ.. !! कौन जाने, श्रुति मेरी बेटी है या राघव की.. !!
जमुना ने ठहाका लगाया और बोली – अरे मालिक, आपको तो गुस्सा आ गया.. !! आओ, मेरे मालिक मेरा दूध पिलो और अपना दिमाग़ ठंडा करो.. !! असल में, मैं तो खुद कब से इस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी की किसी दिन यह घर खाली मिले और श्रुति के बापू भी घर में ना रहें.. !! उस दिन आप के साथ, “पलंग कबड्डी” खेला जाए.. !! पर मालिक, मैं औरत हूँ.. !! थोड़ा नखरा दिखना तो बनता है.. !! आपने तो मुझे रांड़ बना दिया.. !! वैसे, सच में मालिक आप बड़ा मस्त चोदते हैं.. !! मैं तो आपके चोदने के बाद, 2–3 दिन श्रुति के बापू को छूने भी नहीं देती.. !! इतना “नशा” रहता है, आपसे चुद कर.. !!
इतना कहते कहते, जमुना ने चाचा की धोती में हाथ डाल दिया।
चाचा भी उसकी दोनों मस्त चूचियों पर पिल पड़े और ज़ोर ज़ोर से, उसे दबाने और मसलने लगे।
जमुना ने चाचा का हथोड़ा बाहर निकाला और उसे ज़ोर से चूमने लगी।
मैं खिड़की पर खड़ा सब देख रहा था और मन ही मन, सोच रहा था की कैसे इस जमुना को चोदा जाए।
पुणे में, इंजिनियरिंग कर रहा हूँ।
उम्र 22 साल, रंग गोरा और मजबूत कद काठी।
सेक्स के बारे में, उस समय मैं ज़्यादा कुछ नहीं जानता था।
बस कभी कभार पेड़ पर, झाड़ियों में छुप कर गाँव की लड़कियों और औरतों को नहाते और उनको अपनी छातियों को मलते देखा है।
मेरी गाँव में, काफ़ी लंबी चौड़ी जमींदारी है।
बड़ी सी हवेली है। नौकर चाकर।
घर में, वैसे तो कई लोग हैं। पर, मुख्य हैं – मेरे पापा, माँ, चाचा और चाची।
राघव, हमारी हवेली का मुख्य नौकर है और उसकी पत्नी, जमुना मुख्य नौकरानी।
मेरे पापा, करीब 52 के होंगे और माँ करीब 48 की।
मेरा जन्म, इस हवेली में हुआ है और यहीं पर मैंने अपना पूरा बचपन और जवानी के कुछ साल बिताए हैं।
राघव की उम्र, तकरीबन 42 की होगी और जमुना की करीब 36–37 की।
उनकी बेटी श्रुति की उम्र, तकरीबन 17-18 की होगी। जो की, मेरे से करीब 5 साल छोटी थी।
बचपन में, श्रुति मेरे साथ ही ज़्यादातर रहती थी।
मैं उसे पढ़ाता था और हम साथ में खेला भी करते थे।
हमारा पूरा परिवार, राघव और जमुना को बहुत मानता था।
मैं तांगे पर बैठा था और तांगा, अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था।
मेरे गाँव का इलाक़ा, अभी भी काफ़ी पिछड़ा हुआ है और रास्ते की हालत तो बहुत ही खराब थी।
जैसे तैसे, मैं अपने गाँव के करीब पहुँचा।
यहाँ से मुझे, करीब पाँच किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी थी।
शाम हो आई थी।
मैंने जल्दी जल्दी, चलना शुरू कर दिया।
गाँव पहुँचते पहुँचते, रात हो गई थी।
मेरे घर का दरवाजा, खुला हुआ था।
मुझे ताजूब नहीं हुआ क्योंकि मेरे परिवार का यहाँ काफ़ी दबदबा है।
मैं अंदर घुसा और सोच रहा थे की सब कहाँ गये और तभी मुझे, श्रुति दिखाई पड़ी।
मैंने उसको आवाज़ लगाई।
वो तो एकदम से हड़बड़ा गई और खुशी से दौड़ कर, मेरे सीने से आ लगी।
उसने मुझे, अपने बाहों में भर लिया।
मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर कर, ऊपर उठा लिया और उसे घुमाने लगा।
वो डर गई और नीचे उतारने की ज़िद करने लगी।
मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घूमता ही रहा।
तभी एकदम अचानक से, मुझे उसकी “जवानी” का एहसास हुआ।
एकदम से गदराई हुई छाती, मेरे सीने से दबी हुई थी।
एक करेंट सा लगा, मुझे।
रोशनी हल्की थी, इसलिए मैं चाह कर भी उसकी चूचियाँ नहीं देख पाया पर देखने की क्या ज़रूरत थी।
मैं उसके बूब्स का दबाव, भली भाँति समझ रहा था।
मैंने धीरे से, श्रुति को उतार दिया।
श्रुति खड़ी होकर, अपनी उखड़ी हुई साँस को व्यवस्थित करने लगी।
मैं उस साधारण रोशनी में भी, उसके सीने के उतार चढ़ाव को देख रहा था।
एक मिनट बाद, वो मेरी तरफ झपटी और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।
मैं हंसता हुआ, उसकी तरफ लपका तो वो भागने लगी।
मैंने पीछे से, उसको दबोच लिया।
वो, हंस रही थी।
मुझे उसकी निश्चल हँसी, बहुत ही प्यारी लगी लेकिन मेरे मन में “शैतान” जागने लगा था।
जब मैंने उसको दबोचा तो जान बुझ कर, मैं उसके पीछे हो गया और पीछे से ही उसको अपने बाहों के घेरे में ले लिया।
बचपन के साथी थे, हम इसलिए उसको कोई एतराज नहीं था।
ऐसा, मैं सोच रहा था।
मैंने धीरे से, अपना उल्टा हाथ उसके सीधे मम्मे पर रख दिया और बहुत ही हल्के से दबा भी दिया।
हे भगवान!! मैंने कभी भी सोचा ना था की लौंडिया की चूची दबाने में, इतना मज़ा आता है।
मेरे मुँह से एक सिसकारी, निकलते निकलते रह गई।
मैंने उसे यूँ ही दबाए हुए पूछा – घर के सब लोग, कहाँ गये हैं.. !!
उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया की सब लोग पास के गाँव में शादी में गये हैं और घर पर उसके माँ और पिताजी के अलावा और कोई नहीं है.. !!
बात करते हुए, मैं उसकी चूची को सहला रहा था।
वो घाघरा चोली में थी और उसने कोई ब्रा नहीं पहनी थी।
मैं बता नहीं सकता, साहब की मैं कौन से आसमान पर उड़ रहा था।
उसकी मस्त चूची का ये एहसास ही, मुझे पागल किए दे रही थी।
पर मैं हैरान था की उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया क्यूँ नहीं हो रही है।
हम आँगन में खड़े थे और मैं बहुत हल्के हल्के, उसकी चूचियों को सहला रहा था और वो हंस हंस के मुझसे बात किए जा रही थी।
उसने खुद को मुझसे छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।
मुझे एक झटका सा लगा।
क्या श्रुति एकदम इनोसेंट (मासूम) है और उसे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता।
मेरे मन ने मुझे धिक्कारा और मैं एक दम से, जैसे होश में आया और श्रुति को छोड़ दिया।
फिर उसने मेरा सूटकेस उठाया और हम दोनों, मेरे कमरे की तरफ चल पड़े।
नहा धो कर, मैंने शॉर्ट और बनियान पहन लिया और अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा हो गया।
हमारे गाँव में लाइट कम ही आती है, इसलिए लालटेन से ही ज़्यादातर काम होता है।
बरामदे की लालटेन की रोशनी आँगन में पड़ रही थी और चाँद की रोशनी भी।
तभी मैंने जमुना को, आँगन में आते हुए देखा।
उसके हाथ में, कुछ सामान था।
वो सामान को एक तरफ रख कर खड़ी हुई थी की आँगन में, मेरे चाचा ने प्रवेश किया।
चाचा – क्या रे, जमुना.. !! भैया भाभी, सब आए की नहीं.. !!
जमुना – कहाँ मालिक, अभी कहाँ.. !! उनको तो लौटने में, काफ़ी देर हो जाएगी.. !!
चाचा – और राघव.. !!
जमुना – वो तो शहर गये हैं.. !! कुछ कोर्ट का काम था.. !! बड़े मालिक ने भेजा है.. !! शायद, आज ना आ पाए.. !!
चाचा – हूँ.. !! तो फिर आज पूरे घर में कोई नहीं है.. !!
जमुना – जी मालिक.. !!
चाचा – अच्छा, ज़रा पानी पिला दे.. !!
मैं अपनी खिड़की पर ही खड़ा था, जो की दूसरी मंज़िल पर है।
उन दोनों को ही, मेरे आगमन का पता नहीं था।
चाचा खटिया पर बैठ कर, अपने मूँछो पर ताव दे रहे थे।
अचानक, वो उठे और उन्होंने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया।
उनकी ये हरकत, मुझे बड़ी अजीब लगी।
दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत थी।
मेरा माथा ठनका।
मैं कुछ सोच पता इसके पहले ही, जमुना एक प्लेट में गुड और जग में पानी ले कर आई।
चाचा ने पानी पिया और उठ खड़े हुए।
जमुना जैसे ही जग लेकर घूमी, चाचा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
कहानी को बीच में रोकते हुए, मैं जमुना के बारे मैं कुछ बता दूँ।
एकदम, “मस्त माल” है।
5 फीट 4 इंच की लंबाई, मेहनत कश शरीर, पतली कमर, भरा पूरा सीना – 36 साइज़। एकदम से उठाव लिया हुआ, मानो उसके स्तन आपको चुनौती दे रहे हो की आओ और ध्वंस कर दो, इन गगनचुंबी पर्वत की चोटियों को।
भारी भारी गाण्ड, मानो दो बड़े बड़े खरबूजे।
जब चलती है तो गाँव वालों में, हलचल मच जाती है।
सारे गाँव वाले राघव से जलते थे की साले ने क्या तक़दीर पाई है।
मस्त चोदता होगा, यह जमुना को और जमुना भी इसे निहाल कर देती होगी।
मैंने खुद कई बार लोगों को उसकी छातियों की तरफ या फिर, उसके गाण्ड की तरफ ललचाई नज़रों से घूरते हुए देखा है।
मैं तब, इसका मतलब नहीं जानता था।
खैर, चाचा के इस बर्ताव से जमुना हड़बड़ा गई।
चाचा ने उसे अपनी तरफ खींचा तो वो जैसे होश में आए।
जमुना – मालिक, ये आप क्या कर रही हैं.. !!
चाचा – क्यों क्या हुआ.. !! तू मेरी नौकरानी है.. !! तुझे मुझे हर तरह से, खुश रखना चाहिए.. !!
जमुना – नहीं मालिक.. !! मैं और किसी की बीवी हूँ.. !!
चाचा – साली, रांड़.. !! नखरे मारती है.. !! सालों से, कम से कम 100 बार तुझे चोद चुका हूँ.. !! कौन जाने, श्रुति मेरी बेटी है या राघव की.. !!
जमुना ने ठहाका लगाया और बोली – अरे मालिक, आपको तो गुस्सा आ गया.. !! आओ, मेरे मालिक मेरा दूध पिलो और अपना दिमाग़ ठंडा करो.. !! असल में, मैं तो खुद कब से इस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी की किसी दिन यह घर खाली मिले और श्रुति के बापू भी घर में ना रहें.. !! उस दिन आप के साथ, “पलंग कबड्डी” खेला जाए.. !! पर मालिक, मैं औरत हूँ.. !! थोड़ा नखरा दिखना तो बनता है.. !! आपने तो मुझे रांड़ बना दिया.. !! वैसे, सच में मालिक आप बड़ा मस्त चोदते हैं.. !! मैं तो आपके चोदने के बाद, 2–3 दिन श्रुति के बापू को छूने भी नहीं देती.. !! इतना “नशा” रहता है, आपसे चुद कर.. !!
इतना कहते कहते, जमुना ने चाचा की धोती में हाथ डाल दिया।
चाचा भी उसकी दोनों मस्त चूचियों पर पिल पड़े और ज़ोर ज़ोर से, उसे दबाने और मसलने लगे।
जमुना ने चाचा का हथोड़ा बाहर निकाला और उसे ज़ोर से चूमने लगी।
मैं खिड़की पर खड़ा सब देख रहा था और मन ही मन, सोच रहा था की कैसे इस जमुना को चोदा जाए।