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एक अनोखा बंधन

Posted: 21 Oct 2014 10:53
by KurtWild
एक अनोखा बंधन

ये कहानी कहीं से भी चुराई नहीं गई है| ये मेरी स्वयं की रचना है!


नमस्ते मित्रों,

मैंने इस फोरम पर बहुत सी कहानिया पढ़ीं हैं, कुछ कहानियों को पढ़ के साफ़ लग रहा था की ये बनावटी हैं हालां की लेखक ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की, की यह कहानी पाठकों को सच्ची लगे पर एक असल इंसान जिसने ये सब भोगा हो वह जर्रूर बता सकता है की ये सब बनावटी है| मैं अपनी इस सच्ची गाथा के बारे में अपने मुख से खुद कुछ नहीं कहूँगा परन्तु ये आशा रखता हूँ की आप अपने व्यंग ओरों के समक्ष रखेंगे|

आज मैं अपने इस धागे की जरिये आपको अपने जीवन की एक सच्ची घटना से रूबरू कराने जा रहा हूँ| एक ऐसी घटना जिसने मेरे जीवन में एक तूफ़ान खड़ा कर दिया| मैं अभी तक इस घटना को भुला नहीं पाया हूँ और अब भी उस शख्स को एक और बार पाने की कामना करता रहता हूँ| मैं अभी तक नहीं समझ पाया की जो कुछ भी हुआ उसमें कसूर किसका था? शायद आप मेरी इस सच्ची गाथा को सुन बता सकें की असली दोषी कौन था|

मैं आपको यह बताना चाहूंगा की मुझे अपनी इस कहानी का शीर्षक चुनने में वाकई कई दिनों का समय लगा है|

Re: एक अनोखा बंधन

Posted: 21 Oct 2014 10:56
by KurtWild
इससे पहले की मैं कहानी शुरू करूँ मैं पहले आपको इसके पत्रों से रूबरू करना चाहता हूँ| आपको बताने की जर्रूरत तो नहीं की मैंने इस कहानी के सभी पात्रों के नाम, जगह सब बदल दिए हैं| तो चलिए शुरू करते हैं, मेरे पिता के दो भाई हैं और एक बहन जिनके नाम इस प्रकार हैं :
१. बड़े भाई - राकेश
२. मझिल* - मुकेश (*बीच वाले भाई)
३. सुरेश (मेरे पिता)
४. बड़ी बहन - रेणुका
बड़े भाई जिन्हें मैं प्यार से बड़के दादा कहता हूँ उनके पाँच पुत्र हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं :

१. चन्दर
२. अशोक
३. अजय
४. अनिल
५. गटु

मझिल भाई जिन्हें मैं प्यार से मझिले दादा कहता हूँ उनके तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं :

१. रामु (बड़ा लड़का)
२. शिवु
३. पंकज
४. सोनिया (बड़ी बेटी)
५. सलोनी
६. सरोज

हमारा गावों उत्तर प्रदेश के एक छोटे से प्रांत में है| एक हरा भरा गावों जिसकी खासियत है उसके बाग़ बगीचे और हरी भरी फसलों से लैह-लहाते खेत परन्तु मौलिक सुविधाओं की यदि बात करें तो वह न के बराबर है| न सड़क, न बिजली और न ही सोचालय! सोचालय की बात आई है तो आप को सौच के स्थान के बारे में बता दूँ की हमारे गावों में मुंज नमक पोधे के बड़े-बड़े पोधे होते हैं जो झाड़ की तरह फैले होते हैं| सुबह-सुबह लोग अपने खेतों में इन्ही मुंज के पौधों की ओट में सौच के लिए जाते हैं|

अब मैं अपनी आप बीती शुरू करता हूँ| मेरे जीवन में आये बदलाव के बीज तो मेरे बचपन में ही बोये जा चुके थे| मेरे स्कूल की छुटियों में मेरे पिताजी मुझे गावों ले जाया करते थे और वहाँ एक छोटे बच्चे को जितना प्यार मिलना चाहिए मुझे उससे कुछ ज्यादा ही मिला था| इसका कारन था की मैं बचपन से ही अपने माँ-बाप से डरता था पर उन्हें प्यार भी बहुत करता था| मेरे पिताजी ने बचपन से मुझे शिष्टाचार के गुण कूट-कूट के भरे थे| कुत०कुत के भरने से मेरा तात्पर्य ऐ की डरा-धमका के, इसी डर के कारन मेरा व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक बन गया था|गावों में बच्चों में शिष्टाचार का नामो निशान नहीं होता, और जब लोग मेरा उनके प्रति आदर भाव देखते थे तो मेरे पिताजी की प्रशंसा करते थकते नहीं थे|
यही कारण था की परिवार में मुझ सब प्यार करते थे| परन्तु मेरी बड़ी भाभी (चन्दर भैया की पत्नी) जिन्हें मैं प्यार से कभी-कभी "भौजी" भी कहता था वो मुझे कुछ ज्यादा ही प्यार और दुलार करती थी| मैं उसे बचपन से ही बहुत पसंद करता था परन्तु तब मैं नहीं जानता था की ये आकर्षण ही मेरे लिए दुःख का सबब बनेगे|

मेरी माँ बतायाकरती थी की मैंने 6 साल तक दूध पीना नहीं छोड़ा था, और यही कारन है की जब मैं छोटा था तो मैं भागता हुआ रसोई के अंदर घुस जाता था, जहाँ की चप्पल पहने जाना मना है और खाना बना रही भाभी की गोद में बैठ जाता और वो मुझे बड़े प्यार से दूध पिलाती| दूध पिलाते हुए अपनी गोद में मुझे सुला देती| मैं नहीं जानता की ये उसका प्यार था या उसके अंदर की वासना? क्योंकि उस समय भाभी की उम्र तकरीबन 18 या 20 की रही होगी| (हमारे गावों में शादी जल्दी कर देते हैं|) मैं यह नहीं जानता तब उन्हें दूध आता भी था या नहीं, हालाँकि मेरे मन में उनके प्रति कोई भी दुर्विचार नहीं थे पर एक अजीब से चुम्बकीये शक्ति थी जो मुझे उनके तरफ खींचती थी| जब वो अपने पति अर्थात मेरे बड़े भाई चन्दर के पास होती तो मेरे शरीर में जैसे आग लग जाती| मुझे ऐसा लगता था की मेरे उन पर एक जन्मों-जन्मान्तर का हक़ है| ऐसा हक़ जिसे कोई मुझसे नहीं छीन सकता| दोपहर को जब वो खाना बना लेती और सब को खिलने के बाद खाती तो मैं बस उसे चुप-चाप देखता रहता| खाना खाने के बाद मैं भाभी से कहता की "भाभी मुझे नींद आ रही है आप सुला दो|" तो भाभी मुझे गोद में मुझे उठा कर चारपाई पर लिटाती और मेरी और प्यार भरी नजरों से देखती| मेरे मुख पर एक प्यारी सी मुस्कान आती और वो नीचे झुक कर मेरे गाल पर प्यार से काट लेती| उनके प्यार भरे होंट जब मेरे गाल से मिलते और जैसे ही वो अपने फूलों से नाजुक होंटों से मेरे गाल को अपनी मुंह में भरती तो मेरे सारे शरीर में एक झुरझुरी सी छूट जाती और मैं हंस पड़ता| इनका ये प्यार करने का तरीका मेरे लिए बड़ा ही कातिलाना था!

Re: एक अनोखा बंधन

Posted: 21 Oct 2014 10:57
by KurtWild
समय का चक्का घुमा और मैं कुछ बड़ा होगया| मैं अपने बालपन को छोड़ किशोर अवस्था में पहुँच चूका था| मेरे कुछ ऐसा दोस्त बन चुके थे जिन्होंने मुझे वयस्क होने का ज्ञान दिया, परन्तु मैं स्त्री के यौन अंगों के बारे में कुछ नहीं जानता था और न ही वे जानते थे| तभी एक दिन मेरे पिताजी ने एक प्रोग्राम बनाया, उन्होंने मेरे बड़े भाई चन्दर को परिवार सहित हमारे घर शहर आने का निमंत्रण दिया| प्रोग्राम था की वे सब रात को हमारे घर पर ही रुकेंगे और चूँकि चन्दर के घर में टी.वी. नहीं था तो हमने घर पर ही पिक्चर देखने का प्लान बनाया| दिन में पिता जी और चन्दर दोनों बहार गए हुए थे, घर में केवल मैं, माँ, भाभी और उनकी बेटी” नेहा” ही थे| उस समय तक भाभी माँ बन चूँकि थी पर उनका प्यार मेरे लिए अब भी अटूट था| उनकी एक बेटी थी और वो तकरीबन 2 या 3 साल की रही होगी, वो मुझे चाचा-चाचा कह के मेरे साथ खेलती थी| परन्तु मेरा दिमाग तो बस भाभी के साथ अकेले में समय बिताने का था, पर मेरी भतीजी नेहा थी की मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी|
मैं आग बबूला होता जा रहा था, शायद भाभी ने मेरे दिमाग को पढ़ लिया और जब माँ रसोई में कुछ बना रही थी तो उन्होंने मुझे बड़े प्यार से पुकारा और मैं भी उड़ता हुआ उनके पास पहुँच| उन्होंने मुझे अपने पास बिठाया और आगे बढ़ कर मेरे गाल पर उसी प्यार भरे तरीके से काट लिया| मेरे दिमाग में मेरे बचपन की सभी यादें ताजा हो गई| मन तो किया की भाभी बस ऐसे ही मुझे प्यार करती रहे| पहली बार मैंने पाया की उनकी इस हरकत से मेरे शांत पड़े लंड में अकड़न आ गई| मुझे ये एहसास बहुत अच्छा लगता था, इससे पहले भी जब भी मैं सोते समय अपने बचपन की बातें याद करता तो मेरा लंड अकड़ जाता था| परन्तु तब मुझे ये नहीं पता था की इसको शांत कैसे करते हैं| इस बार भाभी के चुंबन का निशान मेरे गाल पर काफी गहरा था और ये देख वो भी थोड़ा घबरा गई| मुझे दर्द तो नहीं हो रहा था और न ही मैं जानता था की उनके काटने से मेरे गाल पर निशान पड़ गया है| पहली बार मेरे मन में आय की मैं भी उनके गाल का एक चुंबन लूँ| मैंने भाभी से कहा :
"भाभी मैं भी आपकी पप्पी लूँ?"
और उन्होंने मुस्कुराते हुए अपने गाल को मेरी और घुमा दिया| मैंने भी धीरे-धीरे उनके गाल पर अपने होंट रख दिए| पहले मैंने उनके गाल को अपने मुंह में भरा और अपनी जीभ से उनके गाल को चाटा, जैसे मनो मैं कोई आइसक्रीम चाट रहा हूँ और फिर धीरे धीरे मैंने अपने दातों से उनके गाल को काट लिया| मुझे ये ध्यान था की कहीं मेरे काटने से उन गाल पर निशान न बन जाये| इस डर से की कहीं माँ न आ जाये मैं उनसे अलग हो गया| दिमाग में जितना भी गुस्सा था सब काफूर हो चूका था| तभी मेरे दोस्तों ने बहार से मुझ आवाज लगाई, मैं बहार भगा वो मुझे क्रिकेट खेलने के लिए बुला रहे थे परन्तु मैंने मना कर दिया| मेरे दोस्तों ने मुझसे पूछा की तेरा गाल लाल क्यों है, तब मुझे पता चला की भाभी की प्यार भरी पप्पी के निशान गाल पर छप गए हैं| मैंने बात घुमाते हुए कहा की मेरी भतीजी ने खेलते-खेलते काट लिया|
दोपहर हो चुकी थी पिताजी और चन्दर दोनों वापस आ चुके थे, हमने खाना खाया और पिताजी ने कहा की अगर रात में पिक्चर देखनी है तो अभी सो जाओ, नहीं तो आधी पिक्चर देख के ही सो जाओगे| अभी हम सोने के बारे में सोच ही रहे थे की बत्ती गुल हो गई| गर्मियों के दिन थे ऊपर से दोपहर! पिताजी, माँ और चन्दर तो बहार गली में सब के साथ अपनी-अपनी चारपाई डाल लेट गए और पड़ोसियों से बात करने लगे| बच गए मैं, भाभी और नेहा| नेहा का पेट भरा होने के कारन वो लेट गई और भाभी ने उसे पंखा हिलाते-हिलाते सुला दिया| मैंने भाभी से कहा की
"भाभी मुझे भी नींद आ रही है|"
भाभी मेरा इशारा समझ गई, वो चोकड़ी मारे बैठी थी तो मैं सीधा हो कर उनकी योनि के पास सर रखते हुए लेट गया| वो एक हाथ से पंखा कर रही थी और फिर धीरे-धीरे मेरे ऊपर झुकी और मेरे सीधे गाल पर एक प्यार भरा चुंबन किया और फिर धीरे से गाल काट लिया| मेरा लंड खड़ा हो चूका था परन्तु कमरे में अँधेरा होने के कारन वो उसे देख नहीं पाई| फिर उन्होंने अपने दूसरे हाथ से मेरे मुंह को दूसरी तरफ किया और मेरे बाएं गाल पर एक प्यार भरा चुम्बन जड़ दिया और फिर उसे भी काट लिए| मेरी शरीर में उठ रही झुरझुरी से मेरा हाल बेहाल था| मेरे दोनों कान लाल थे और मैं गरम हो चूका था|
मैंने थोड़ा हिमायत करते हुए उनकी गर्दन पर हाथ रखते हुए अपने ऊपर झुका लिया और उनके गाल की पप्पियाँ लेने लगा| मैंने उन्हें भी गरम कर दिया था, और इससे पहले की हम अपनी मर्यादा को पार करते की तभी मेरा एक दोस्त भागता हुआ कमरे में आ गया| सच बताऊँ मित्रों मुझे इतना गुस्सा आया जितना कभी नहीं आया था| मैं बड़ी जोर से उस पर गरजा "क्या है???"
मेरी गर्जन उसने आज से पहले कभी नहीं सुनी थी और इससे पहले की वो कुछ कहता मैंने कहा, 'भाग यहाँ से!' मेरी बात सुनते ही वो बहार की तरफ भाग गया| भाभी का तो जैसे मुंह ही लटक गया| मैंने उनका मुंह अपने हाथों में थम और इससे पहले की मैं हम दोनों अपने जीवन का पहला चुमबन करते उन्होंने मुझे रोक दिया| उन्हें डर था की मेरी गर्जन सुन कहीं मेरी माँ अर्थात उनकी काकी अंदर न आ जाएं| उन्होंने कहा, "आज रात मैं नेहा को जल्दी सुला दूंगी तब करना|"
पर मैं कहाँ मानने वाला था मैंने उन्हें जबरदस्ती अपने ऊपर झुका लिया और उनके गुलाब के पंखुड़ियों जैसे होठों पर अपने दहकते हुए होंट रख दिए| मैं उनके कोमल होंटों का रस पीना चाहता था, और ये सब भूल चूका था की पास में ही उनकी बटी लेटी है| भाभी को भी जैसे एक अध्भुत सुख मिल रहा हो और वो बिना किसी बात की परवाह किये मेरे होंटों को बारी-बारी से अपने मुंह में लिए चूस रही थी| भाभी मेरे ऊपर झुकी हुई थी और मेरा सर ठीक उनके योनि की सिधाई पर था| ऐसा लग रहा था की मनो ये जहाँ जैसे थम सा गया हो और हम किसी जन्नत में हैं| मेरी बद किस्मती की मुझे यौन क्रिया के बारे में कुछ भी नहीं पता था की चूत/ योनि किसे कहते है और उसे भोगते कैसे हैं| इसी कारन मैं उस दिन कुछ और नहीं कर पाया|