कच्ची उम्र की लज़्ज़त new hindi sex story 2017
Posted: 23 Oct 2017 14:34
कच्ची उम्र की लज़्ज़त
मेरा नाम राज है, मैं 42 साल का तंदरुस्त, 5’11” रंग गेहुंआ, फिट बॉडी का आदमी हूँ। मेरी पत्नी डॉली 39 साल की, स्वस्थ, 5’5″ रंग गोरा और फिगर 36-26-38 है।
पंजाब के एक बड़े शहर में मेरा अपना एक छोटा सा सॉफ़्टवेयर एंड हार्डवेयर पार्ट्स सप्लाई का बिज़नेस है जिससे मुझे सब ख़र्चे और टैक्स इत्यादि निकाल के करीब दस से बारह लाख रुपये सलाना की कमाई हो जाती है। एक अपना ऑफिस है, गोदाम है, वर्कशॉप है, 9-10 लोगों का स्टाफ़ है, अपना घर है, कार है।
हमारे दो बच्चे हैं, एक बेटी 15 साल की और एक बेटा 12 साल का। हमारी 16 साल की शादीशुदा जिंदगी में हमारी सैक्स लाइफ बहुत ही बढ़िया है। बिस्तर में डॉली और मैं नए नए तज़ुर्बे करते ही रहते हैं, कभी-कभी कोई तज़ुर्बा बैक-फ़ायर भी कर जाता है पर ओवरआल सब मस्त है।
यह घटना आज से 3 साल पहले की है, जब मेरी माँ जो मेरे साथ ही रहती थी, की अचानक मृत्यु हो गई। पिता जी आठ साल पहले ही चल बसे थे लिहाज़ा डॉली, मेरी पत्नी अचानक से घर में बिल्कुल अकेली हो गई।
मैं तो सुबह का निकला शाम को घर आता था, पीछे दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और डॉली सारा दिन घर में अकेली रहती थी, अगर बाजार भी जाना हो तो घर ताला लगा के जाओ।
उन दिनों शहर में चोरियां बहुत होती थी और घर के मेनगेट पर लगा ताला तो जैसे चोरों को खुद आवाज़ मार कर बुलाता है।
एक दिन डॉली किसी काम से बाजार गई पर रास्ते में कुछ भूला याद आने पर आधे रास्ते से ही घर वापिस लौटी तो देखा कि चोरों ने मेनगेट का ताला तोड़ रखा था पर इससे पहले कि चोर अपनी किसी कारगुजारी को अंजाम देते, डॉली घर लौट आई और चोरों को फ़ौरन वहाँ से भागना पड़ा।
पर इस काण्ड के बाद डॉली बहुत डरी-डरी सी रहने लगी जिस का सीधा असर हमारे घर-परिवार पर और हमारी सेक्स-लाइफ़ पर पड़ने लगा।
अपनी सेक्स लाइफ बिगड़ते देख मुझे बहुत कोफ़्त होती… पर क्या करता?
अब मुझे इस समस्या का कोई समाधान सोचना था और बहुत जल्दी ही सोचना था पर कुछ सूझ नहीं रहा था और फिर एक दिन जैसे भगवान् ने खुद इस समस्या का समाधान भेज दिया।
मेरी बड़ी साली साहिबा जिनकी शादी मेरे शहर से 25-30 किलोमीटर दूर एक कस्बे में एक खाते पीते आढ़ती परिवार में हुई थी, की बेटी रिंकी ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और मेरे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।
लिहाज़ा रिंकी ने मेरे शहर में एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन किस्मत से रिंकी को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी सो मेरी साली साहिबा थोड़ी परेशान सी थी कि एक दिन मैं और डॉली उनके घर उनसे मिलने जा पहुंचे।
बातों बातों में इस बात का ज़िक्र भी आया तो मेरी पत्नी ने रिंकी को अपने घर रहने के लिए कह दिया। मैंने भी सोचा कि चलो ठीक ही है, कम से कम डॉली एक नार्मल औरत सा जीवन तो जियेगी।
मेरी शादी के समय रिंकी सात-आठ साल की पतली सी, मरगिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी। बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी और हम पर तो साहब ! हर वक़्त अपनी पत्नी का नशा सवार रहता था, मैंने भी रिंकी पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था।
लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि रिंकी हमारे घर रह कर ही M.Com करेगी। फैसला ये हुआ कि मम्मी वाला कमरा रिंकी को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके।
इस बात से डॉली इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में डॉली ने कहर बरपा दिया। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था।
एक हफ्ते बाद रिंकी हमारे घर आ गई।
उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार रिंकी को गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह ! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन!
फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था।
यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं रिंकी के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था।
खैर जी ! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे TV देखने लगे, रिंकी और डॉली दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।
मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ डॉली ही रही थी और रिंकी तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।
खैर, धीरे धीरे रिंकी हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को रिंकी पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी रिंकी की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी रिंकी मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!
मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी पत्नी का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।
शुरू शुरू में तो रिंकी हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे रिंकी का अपने घर जाना कम होने लगा। अब रिंकी दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।
फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद रिंकी तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। करीब पांच हफ्ते बाद एक रात, एक रस्मी से अभिसार से असंतुष्ट सा मैं डॉली के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था कि डॉली ने मुझ से कहा- राज… चलो, कल जाकर रिंकी को ले आयें। रिंकी के बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं।
मैंने हामी भर दी।
अगले दिन हम दोनों जाकर रिंकी को ले आये। खुश डॉली ने उस रात अभिसार में मेरे छक्के छुड़ा दिए, डॉली ने मेरा लिंग चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लिंग पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लिंग अपनी गुदा पर रख कर मुझे गुदा मैथुन के लिए आमंत्रित किया, रतिक्रिया के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया।
ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब रिंकी सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी डेढ़ महीना बाकी था।
मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब रिंकी कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को ही डॉली को थाम लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!
रिंकी के आने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था?
फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं डॉली से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती डॉली के नितम्बों को सहला देना, उसके उरोजों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाती डॉली से सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने डॉली के कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसकी साड़ी के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर दबा देना।
मेरे ऐसा करने पर डॉली दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी।
दिन बढ़िया गुज़र रहे थे लेकिन मैं रिंकी में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था। मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर रिंकी की ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी रिंकी की नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।
मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती।
बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता, अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता।
एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी।
उसी मौसम में एक दिन रिंकी के कमरे के A.C की गैस लीक हो गई। बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक रिंकी के कमरे का A.C रिपेयर हो कर नहीं आता, रिंकी का बेड हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।
ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली रासलीला पर टेम्परेरी बैन लग गया था!
पर क्या करते… मज़बूरी थी।
हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी पत्नी बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड रिंकी का फोल्डिंग बेड लगाया गया था। रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते।
डॉली मेरे बायें और रिंकी मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता।
दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि रिंकी बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था।
मैंने सिर उठा कर देखा तो डॉली को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से रिंकी का हाथ अपनी छाती से उठाया और उस हाथ उस की बगल पर रख दिया।
पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी।
क्या रिंकी ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या रिंकी मेरे साथ… सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लिंग में तनाव आ गया।
इसी उहपोह में जाने कब मेरी आँख लग गई।
दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर रिंकी के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लिंग में तनाव आ रहा था।
उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया।
अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, डॉली डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और रिंकी का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और रिंकी में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।
आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर रिंकी ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं।
पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल! पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि रिंकी का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा।
तीन चार मिनट बाद रिंकी ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी। उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह रिंकी की ओर ही था और मेरा और रिंकी का फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा।
अचानक मैंने अपने बायें हाथ को रिंकी पर रख दिया… मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था।
कोई हरकत नहीं.. ना मेरी ओर से… ना रिंकी की ओर से…
अचानक रिंकी ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, मींची आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने अपने हाथ पर जो मेरा हाथ थामे था, चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एकके बाद एक करके चूमने लगी।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लिंग जैसे फटने की कगार पर था। मैं रिंकी के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की।
करीब आधे घंटे बाद रिंकी ने ऐसा करना बंद किया।
मैंने सर उठा कर देखा तो लगा कि रिंकी सो गई थी शायद! मेरा हाथ अब भी उसके हाथ में जकड़ा हुआ था। ऐसे ही जाने कब मैं सचमुच नींद के आगोश में चला गया।
सुबह उठा तो पाया कि डॉली और रिंकी उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी डॉली अख़बार ले कर आ गई। दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया।
तभी रिंकी भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।
जैसे ही मेरी रिंकी की आँख से आँख मिली, रिंकी की नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई।
रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी।
जैसे ही रिंकी बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लिंग फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी डॉली का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लिंग पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।
डॉली चिंहुक उठी, लगी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! जैसे ही डॉली ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो रिंकी ने पूछा- क्या हुआ मौसी?
‘कुछ नहीं…’ कह कर डॉली ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लिंग जोर से पकड़ लिया।
मैं अपने मुक्त हुए हाथ से डॉली की जाँघ जांचने लगा।
सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और रिंकी के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे।
एक बात तो पक्की थी कि रिंकी की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था।
लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी।
साली की बेटी की कच्ची उम्र की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, मैंने सोच लिया था कि आज से मैं रिंकी वाली साइड सोऊंगा ही
नहीं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, मेरा पक्का इरादा डाँवाडोल हो रहा था।
शाम आई… मैं घर आया, आते ही रिंकी मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई, ग़िलास पकड़ते वक़्त मैंने रिंकी की आँखों में देखा,
रिंकी ने शर्मा कर नज़र नीची कर ली और खाली गिलास ले कर चली गई।
आज रात तो कुछ हो कर रहना था, ऐसी सोच आते ही पतलून के अंदर ही मेरा लिंग भयंकर रौद्र रूप में आ गया, रात की प्रतीक्षा में
समय काटना मुश्किल हो गया था।
शाम को बाथरूम में नहाते समय मैंने एक बार फिर ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ किया।
मेरा नाम राज है, मैं 42 साल का तंदरुस्त, 5’11” रंग गेहुंआ, फिट बॉडी का आदमी हूँ। मेरी पत्नी डॉली 39 साल की, स्वस्थ, 5’5″ रंग गोरा और फिगर 36-26-38 है।
पंजाब के एक बड़े शहर में मेरा अपना एक छोटा सा सॉफ़्टवेयर एंड हार्डवेयर पार्ट्स सप्लाई का बिज़नेस है जिससे मुझे सब ख़र्चे और टैक्स इत्यादि निकाल के करीब दस से बारह लाख रुपये सलाना की कमाई हो जाती है। एक अपना ऑफिस है, गोदाम है, वर्कशॉप है, 9-10 लोगों का स्टाफ़ है, अपना घर है, कार है।
हमारे दो बच्चे हैं, एक बेटी 15 साल की और एक बेटा 12 साल का। हमारी 16 साल की शादीशुदा जिंदगी में हमारी सैक्स लाइफ बहुत ही बढ़िया है। बिस्तर में डॉली और मैं नए नए तज़ुर्बे करते ही रहते हैं, कभी-कभी कोई तज़ुर्बा बैक-फ़ायर भी कर जाता है पर ओवरआल सब मस्त है।
यह घटना आज से 3 साल पहले की है, जब मेरी माँ जो मेरे साथ ही रहती थी, की अचानक मृत्यु हो गई। पिता जी आठ साल पहले ही चल बसे थे लिहाज़ा डॉली, मेरी पत्नी अचानक से घर में बिल्कुल अकेली हो गई।
मैं तो सुबह का निकला शाम को घर आता था, पीछे दोनों बच्चे स्कूल चले जाते थे और डॉली सारा दिन घर में अकेली रहती थी, अगर बाजार भी जाना हो तो घर ताला लगा के जाओ।
उन दिनों शहर में चोरियां बहुत होती थी और घर के मेनगेट पर लगा ताला तो जैसे चोरों को खुद आवाज़ मार कर बुलाता है।
एक दिन डॉली किसी काम से बाजार गई पर रास्ते में कुछ भूला याद आने पर आधे रास्ते से ही घर वापिस लौटी तो देखा कि चोरों ने मेनगेट का ताला तोड़ रखा था पर इससे पहले कि चोर अपनी किसी कारगुजारी को अंजाम देते, डॉली घर लौट आई और चोरों को फ़ौरन वहाँ से भागना पड़ा।
पर इस काण्ड के बाद डॉली बहुत डरी-डरी सी रहने लगी जिस का सीधा असर हमारे घर-परिवार पर और हमारी सेक्स-लाइफ़ पर पड़ने लगा।
अपनी सेक्स लाइफ बिगड़ते देख मुझे बहुत कोफ़्त होती… पर क्या करता?
अब मुझे इस समस्या का कोई समाधान सोचना था और बहुत जल्दी ही सोचना था पर कुछ सूझ नहीं रहा था और फिर एक दिन जैसे भगवान् ने खुद इस समस्या का समाधान भेज दिया।
मेरी बड़ी साली साहिबा जिनकी शादी मेरे शहर से 25-30 किलोमीटर दूर एक कस्बे में एक खाते पीते आढ़ती परिवार में हुई थी, की बेटी रिंकी ने B.Com पास कर ली थी लेकिन समस्या यह थी कि क़स्बे में कोई अच्छा कॉलेज नहीं था जहां मास्टर्स की जा सके और मेरे शहर में कई अच्छे कॉलेजों समेत यूनिवर्सिटी भी थी।
लिहाज़ा रिंकी ने मेरे शहर में एक नामी गिरामी कॉलेज में M.Com में ऐडमिशन ले लिया था लेकिन किस्मत से रिंकी को हॉस्टल में जगह नहीं मिल पाई थी सो मेरी साली साहिबा थोड़ी परेशान सी थी कि एक दिन मैं और डॉली उनके घर उनसे मिलने जा पहुंचे।
बातों बातों में इस बात का ज़िक्र भी आया तो मेरी पत्नी ने रिंकी को अपने घर रहने के लिए कह दिया। मैंने भी सोचा कि चलो ठीक ही है, कम से कम डॉली एक नार्मल औरत सा जीवन तो जियेगी।
मेरी शादी के समय रिंकी सात-आठ साल की पतली सी, मरगिल्ली सी लड़की थी जो हर वक़्त या तो रोती रहती थी या रोने को तैयार रहती थी। बहुत दफा तो वो घर आये मेहमानों के सामने ही नहीं आती थी और हम पर तो साहब ! हर वक़्त अपनी पत्नी का नशा सवार रहता था, मैंने भी रिंकी पर पहले कभी ध्यान नहीं दिया था।
लब्बोलुआब ये कि यह फाइनल हो गया कि रिंकी हमारे घर रह कर ही M.Com करेगी। फैसला ये हुआ कि मम्मी वाला कमरा रिंकी को दे दिया जाए ताकि वो अपनी पढ़ाई बे रोक-टोक कर सके।
इस बात से डॉली इतनी खुश हुई कि उस रात बिस्तर में डॉली ने कहर बरपा दिया। ऐसा बहुत दिनों बाद हुआ था लिहाज़ा मैं भी खुश था।
एक हफ्ते बाद रिंकी हमारे घर आ गई।
उस रात डाइनिंग टेबल पर मैंने पहली बार रिंकी को गौर से देखा। डेढ़ पसली की मरघिल्ली सी, रोंदू सी लड़की, माशा-अल्लाह ! जवान हो गई थी, करीब 5′-4″ कद, कमान सा कसा हुआ पतला लेकिन स्वस्थ शरीर, रंग गेहुँआ, लंबे बाल, सुतवाँ नाक, पतले गुलाबी लेकिन भरे-भरे होंठ, तीखे नैननक्श और काले कजरारे नयन!
फ़िगर अंदाजन 34-26-34 था।
यूं मैं कोई सैक्स-मैनियॉक नहीं पर ईमानदारी से कहूँ तो उस वक़्त मन ही मन मैं रिंकी के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा था।
खैर जी ! डिनर हुआ। सब लिविंग रूम में आ बैठे, बच्चे TV देखने लगे, रिंकी और डॉली दोनों बातें करने लगी और मैं इजी चेयर पर बैठा किताब पढ़ने लगा पर मेरे कान तो उन दोनों की बातों पर ही लगे हुए थे।
मैंने नोटिस किया कि बोल तो सिर्फ डॉली ही रही थी और रिंकी तो बस हाँ-हूँ कर रही थी।
खैर, धीरे धीरे रिंकी हमारे परिवार का अंग होती चली गई, दोनों बच्चों को रिंकी पढ़ा देती थी। रात का डिनर पकाना भी रिंकी की जिम्मेवारी हो गई थी लेकिन अब भी रिंकी मेरे सामने कम ही आती थी, आती भी थी तो मुझ से बहुत कम बोलती थी, बस हां जी… नहीं जी… ठीक है जी!
मैं तो इसी बात में खुश था कि मुझे मेरी पत्नी का ज्यादा समय मिल रहा था और मेरी सेक्स लाइफ नार्मल से भी अच्छी हो गई थी। धीरे धीरे समय गुजरने लगा।
शुरू शुरू में तो रिंकी हर शनिवार अपने घर चली जाया करती थी और सोमवार सवेरे सीधे कॉलेज आकर शाम को घर आती थी लेकिन धीरे धीरे रिंकी का अपने घर जाना कम होने लगा। अब रिंकी दो महीने में एक बार या बड़ी हद दो बार अपने घर जाती थी।
फर्स्ट ईयर के फाइनल एग्जाम ख़त्म होने के बाद रिंकी तीन महीने के लिए अपने घर चली गई। करीब पांच हफ्ते बाद एक रात, एक रस्मी से अभिसार से असंतुष्ट सा मैं डॉली के नग्न शरीर पर हाथ फेर रहा था कि डॉली ने मुझ से कहा- राज… चलो, कल जाकर रिंकी को ले आयें। रिंकी के बिना मेरा दिल नहीं लग रहा और दोनों बच्चे भी उदास हैं।
मैंने हामी भर दी।
अगले दिन हम दोनों जाकर रिंकी को ले आये। खुश डॉली ने उस रात अभिसार में मेरे छक्के छुड़ा दिए, डॉली ने मेरा लिंग चूस-चूस कर मुझे स्खलित किया और बाद में खुद मेरा लिंग पकड़ कर, उस पर तेल लगाया और अपने हाथ से मेरा लिंग अपनी गुदा पर रख कर मुझे गुदा मैथुन के लिए आमंत्रित किया, रतिक्रिया के किसी भी आसन को उसने ‘ना’ नहीं कहा बल्कि दो कदम आगे जाकर कुछ अपनी ओर से और नया कर दिया।
ख़ैर! जिंदगी वापिस पटरी आ गई थी लेकिन अब एक फर्क था, अब रिंकी सारा दिन घर पर ही रहती थी, उसके कॉलेज खुलने में अभी डेढ़ महीना बाकी था।
मैं दोपहर को खाना खाने घर आता था, पहले जब रिंकी कॉलेज गई होती थी तो मैं अक्सर दोपहर को ही डॉली को थाम लिया करता था, कभी रसोई में, कभी स्टोर में, कभी लॉबी में और कभी ड्राइंग रूम में भी… एक-आध बार तो बाथरूम में शावर के नीचे भी!
रिंकी के आने से दोपहर की इन तमाम खुराफातों में लगाम लग गई थी। कोफ़्त होती थी कभी कभी पर क्या किया जा सकता था?
फिर भी दांव लगा कर कभी-कभार मैं डॉली से छोटी-मोटी चुहलबाज़ी तो कर ही लेता था, जैसे पास से गुज़रती डॉली के नितम्बों को सहला देना, उसके उरोजों पर हल्के से हाथ फेर देना, निप्पल दबा देना, रसोई में सब्ज़ी बनाती डॉली से सट कर खड़े होकर कढ़ाई में सब्ज़ी देखने के बहाने डॉली के कान के पास एक छोटा सा चुम्बन ले लेना या उसकी साड़ी के पल्लू की आड़ में उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर दबा देना।
मेरे ऐसा करने पर डॉली दिखावटी गुस्सा दिखाती जरूर थी लेकिन तिरछी आँखों से मुझे देखते हुये उसके होंठों पर स्वीकृति की एक मौन सी मुस्कान भी होती थी।
दिन बढ़िया गुज़र रहे थे लेकिन मैं रिंकी में और उसके मेरे प्रति व्यवहार में कुछ कुछ फर्क महसूस कर रहा था। मैं अक्सर नोट करता कि डाइनिंग टेबल पर खाना खाते वक़्त या लिविंग रूम में टी.वी देखते वक़्त या कभी कभी कोई किताब पढ़ते-पढ़ते मैं जब जब सिर उठा कर रिंकी की ओर देखता तो उसे मेरी ओर ही देखते पाता और जैसे ही मेरी रिंकी की नज़र से नज़र मिलती तो वो या तो नज़र नीची कर लेती या कहीं और देखने लगती।
मुझे कुछ समय के लिए उलझन तो होती पर जल्दी ही मेरा ध्यान किसी और बात पर चला जाता और बात आई-गई हो जाती।
बरसात का मौसम आ गया था, बहुत निकम्मी किस्म की गर्मी पड़ रही थी, जिस दिन बरसात होती उस दिन तो मौसम ठीक रहता, अगले दिन जब धूप निकलती तो उमस के मारे जान निकलने लगती, जगह जगह खड़ा पानी बास मारने लगता और मक्खी-मच्छर पैदा करने की ज़िंदा फैक्टरी बन जाता।
एयर कंडीशनड कमरों में ही जिंदगी सिमटी पड़ी थी।
उसी मौसम में एक दिन रिंकी के कमरे के A.C की गैस लीक हो गई। बच्चों का बैडरूम छोटा था और उसमें तीसरे बेड की जगह नहीं थी, ड्राइंग रूम और लिविंग रूम तो रात को सोने के किये डिज़ाइन्ड ही नहीं थे तो एक ही चारा बचता था कि जब तक रिंकी के कमरे का A.C रिपेयर हो कर नहीं आता, रिंकी का बेड हमारे बैडरूम में हमारे बेड की बगल में ही लगाया जाए।
ऐसा ही हुआ और ऐसा होने से हम पति-पत्नी की रात वाली रासलीला पर टेम्परेरी बैन लग गया था!
पर क्या करते… मज़बूरी थी।
हमारे बैडरूम में बेड के साथ ही लेफ्ट साइड बाथरूम का दरवाज़ा था और मेरी पत्नी बैड के लेफ्ट साइड सोना पसंद करती थी और मैं राईट साइड सोता था, हमारे बेड के साथ ही राईट साइड रिंकी का फोल्डिंग बेड लगाया गया था। रात आती, खाना-वाना खा कर हम लोग सोने के लिए बैडरूम में आते।
डॉली मेरे बायें और रिंकी मेरे दायें… ये दोनों बातें करने लगती और मैं बीच में ही सो जाता।
दो-एक दिन बाद एक रात को अचानक मेरी आँख खुली तो पाया कि रिंकी बाईं करवट सो रही थी यानी उसका मुंह मेरी ओर था और उसका दायां हाथ मेरी छाती पर था।
मैंने सिर उठा कर देखा तो डॉली को घनघोर नींद के हवाले पाया। मैंने धीरे से रिंकी का हाथ अपनी छाती से उठाया और उस हाथ उस की बगल पर रख दिया।
पर नींद बहुत देर तक नहीं आई, दिल में बहुत उथल-पुथल सी चल रही थी।
क्या रिंकी ने जानबूझ कर ऐसा किया था? अगर हाँ तो क्यों? क्या रिंकी मेरे साथ… सोच कर झुरझुरी सी उठी और अचानक ही मेरे लिंग में तनाव आ गया।
इसी उहपोह में जाने कब मेरी आँख लग गई।
दिन चढ़ा, सब कुछ अपनी जगह पर, हर चीज़ नार्मल सी थी पर मेरे दिल में इक अनजान सी फ़ीलिंग थी, रह रह कर रिंकी के हाथ की छुअन मुझे अपनी छाती पर फील हो रही थी और रह रह कर मेरे लिंग में तनाव आ रहा था।
उस दिन मैंने अपनी शादी के बाद पहली बार बाथरूम में नहाते समय हस्त मैथुन किया।
अगली रात आई, फिर वही सोने का अरेन्जमेन्ट, डॉली डबलबेड के बाईं ओर, मैं दाईं ओर और रिंकी का फोल्डिंग बेड हमारे डबलबेड के दाईं ओर सटा हुआ और मुझ में और रिंकी में ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का फासला।
आज मैं अभी किताब ही पढ़ रहा था कि ये दोनों सोने की तैयारी करने लगी। जल्दी सोने का कारण पूछने पर रिंकी ने बताया कि आज दोनों बाज़ार गईं थी, थक गई हैं।
पन्द्रह बीस मिनट बाद मैंने लाईट बंद की और खुद उल्टा हो कर सोने की कोशिश करने लगा, उल्टा बोले तो पेट के बल! पन्द्रह-बीस मिनट ही बीते होंगे कि रिंकी का हाथ आज़ फिर से मेरे ऊपर आ पड़ा लेकिन आज़ चूंकि मैं उल्टा पड़ा था सो इस बार उसका हाथ मेरी पीठ पर पड़ा।
तीन चार मिनट बाद रिंकी ने अपना हाथ मेरी पीठ से उठा लिया और खुद सीधी होकर, मतलब पीठ के बल लेट कर सोने का उपक्रम करने लगी। उसका मेरी ओर वाला हाथ मतलब बायां हाथ उसके सिर के पास सिरहाने पर ही पड़ा था। मेरा मुंह रिंकी की ओर ही था और मेरा और रिंकी का फासला ज्यादा से ज्यादा डेढ़ फुट का रहा होगा।
अचानक मैंने अपने बायें हाथ को रिंकी पर रख दिया… मेरा दिल पसलियों में धाड़-धाड़ बज़ रहा था।
कोई हरकत नहीं.. ना मेरी ओर से… ना रिंकी की ओर से…
अचानक रिंकी ने सिर उठाया और मेरी ओर ध्यान से देखने लगी, मींची आँखों में मैं सोने की एक्टिंग करने लगा। एक डेढ़ मिनट मुझे ध्यान से देखने के बाद जब उसे यकीन हो गया कि मैं गहरी नींद में सो रहा था तो उसने अपने हाथ पर जो मेरा हाथ थामे था, चादर डाल थी और चादर के नीचे मेरे हाथ की उँगलियों को एकके बाद एक करके चूमने लगी।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था, तनाव के कारण मेरा लिंग जैसे फटने की कगार पर था। मैं रिंकी के हाथ का स्पंदन महसूस कर सकता था पर मैंने अपनी ओर से कोई हरकत नहीं की।
करीब आधे घंटे बाद रिंकी ने ऐसा करना बंद किया।
मैंने सर उठा कर देखा तो लगा कि रिंकी सो गई थी शायद! मेरा हाथ अब भी उसके हाथ में जकड़ा हुआ था। ऐसे ही जाने कब मैं सचमुच नींद के आगोश में चला गया।
सुबह उठा तो पाया कि डॉली और रिंकी उठ कर कब की जा चुकी थी, तभी डॉली अख़बार ले कर आ गई। दिल में अनाम सी ख़ुशी लिए मैंने जिंदगी का एक नया दिन शुरू किया।
तभी रिंकी भी बैडरूम में चाय की ट्रे लेकर आई, नहाई-धोई, सफ़ेद पजामी सूट में ताज़ा ताज़ा शैम्पू किये बालों से मनभावन सी खुशबू उड़ाती एकदम ताज़ा दम, सफ़ेद सूट में से सफ़ेद ब्रा साफ़ साफ़ उजाग़र हो रही थी।
जैसे ही मेरी रिंकी की आँख से आँख मिली, रिंकी की नज़र झुक गई और क्षण भर को ही ग़ुलाबी भरे भरे होंठों पर एक गुप्त सी मुस्कान आकर लुप्त हो गई।
रात वाली बात याद आते ही मेरे लिंग में जान सी आने लगी।
जैसे ही रिंकी बैठने लगी तो मेरी वाली साइड से सफ़ेद पजामी में से गहरे रंग की पैंटी साफ़ साफ़ झलकने लगी। एक क्षण में ही मेरा लिंग फुल जोश में फुंफ़कारने लगा और मैंने अपने साथ बैठी डॉली का हाथ चादर के अंदर ही पकड़ कर अपने लिंग पर रख कर ऊपर से अपने हाथ से दबा लिया।
डॉली चिंहुक उठी, लगी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने… लेकिन मैं जाने दूं तब ना! जैसे ही डॉली ने मुझे देख कर आँखें तरेरी तो रिंकी ने पूछा- क्या हुआ मौसी?
‘कुछ नहीं…’ कह कर डॉली ने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी और चादर के नीचे से मेरा लिंग जोर से पकड़ लिया।
मैं अपने मुक्त हुए हाथ से डॉली की जाँघ जांचने लगा।
सारा दिन जैसे हवाओं के हिण्डोले पर बीता, जो मेरे और रिंकी के बीच चल रहा था, उस बारे में सारा दिन मेरे अपने ही अंदर तर्क कुतर्क चलते रहे।
एक बात तो पक्की थी कि रिंकी की तो ख़ैर कच्ची उम्र थी पर मैं जो कर रहा था वो सामाजिक और नैतिक दृष्टि से गलत था और मैं खुद जानता था कि मैं गलत कर रहा था।
लेकिन वो जैसा कहते हैं कि गुनाह की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी।
साली की बेटी की कच्ची उम्र की लज़्ज़त मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, मैंने सोच लिया था कि आज से मैं रिंकी वाली साइड सोऊंगा ही
नहीं लेकिन जैसे-जैसे दिन बीत रहा था, मेरा पक्का इरादा डाँवाडोल हो रहा था।
शाम आई… मैं घर आया, आते ही रिंकी मेरे लिए पानी का गिलास ले कर आई, ग़िलास पकड़ते वक़्त मैंने रिंकी की आँखों में देखा,
रिंकी ने शर्मा कर नज़र नीची कर ली और खाली गिलास ले कर चली गई।
आज रात तो कुछ हो कर रहना था, ऐसी सोच आते ही पतलून के अंदर ही मेरा लिंग भयंकर रौद्र रूप में आ गया, रात की प्रतीक्षा में
समय काटना मुश्किल हो गया था।
शाम को बाथरूम में नहाते समय मैंने एक बार फिर ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ किया।