तेरे इश्क़ में Hindi Love Story
Posted: 07 Nov 2014 22:01
तेरे इश्क़ में पार्ट--1 Hindi Love Story
जीप मस्जिद के ठीक सामने आकर रुकी. लोग नमाज़ पढ़कर बाहर निकल रहे थे.
"रुक थोड़ी देर यहीं" आदित्य ने पॅसेंजर सीट पर बैठे निखिल से कहा और खुद जीप से बाहर निकला.
"तू कहाँ जा रहा है?" निखिल ने पुछा
"नमाज़ पढ़ने" कहते हुए आदित्य ने अपने सर पर एक सफेद रंग की टोपी रखी और मस्जिद में दाखिल हो गया.
करीब 15 मिनिट बाद जब वो निकल कर जीप की तरफ वापिस आया तो निखिल हैरत से उसकी तरफ देख रहा था.
"व्हाट्स गोयिंग ऑन?"
"नतिंग" आदित्य ने सर से टोपी हटाई और जीप में आकर बैठ गया
"वेल डिड सम्वन मेन्षन दट यू आर ए हिंदू? आप पूजा करते हैं, नमाज़ नही पढ़ते" निकुल ने जवाब दिया
"क्या फरक पड़ता है यार" आदित्या ने जीप स्टार्ट की "उपेरवाले के आगे सर झुकाना था, मंदिर जाता तब भी यही करता, आज मस्जिद गया तो फिर वही किया. मस्जिद की जगह चर्च या गुरुद्वारे जाता तब भी वही करता"
"दिस ईज़ सो रॉंग मॅन. अगर तेरे डॅड को पता चल गया के तू मस्जिद में गया था तो खून कर देंगे तेरा"
"यआः" जीप आगे बढ़ी "उनके पास करने को और कुच्छ है भी नही. ज़िंदगी में कुच्छ और बने हों या नही, एक पक्के हिंदू ज़रूर बन गये वो" आदित्य ने हस्ते हुए कहा
"आंड यू आर नोट सपोज़ टू बी आ हिंदू?" निखिल को जैसे अब तक अपने देखे हुए पर यकीन नही हो रहा था
जवाब में आदित्य उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला
"इल्म वालो को इल्म दे मौला,
अकल वालो को अकल दे मौला,
धरम वालो को धरम दे मौला,
और थोड़ी सी शरम दे मौला"
कुच्छ देर बाद उनकी जीप बीटी कॉंप्लेक्स के पास आकर रुकी.
"और यहाँ हम क्या कर रहे हैं?" निखिल ने सवाल किया
"जस्ट वेट?" आदित्य ने कहा और उसकी नज़र जैसे किसी को ढूँढने लगी.
थोड़ी देर दूर एक लड़की खड़ी हुई अपने आस पास रखे फूलों पर पानी डाल रही थी. उसके चारो तरफ छ्होटी छ्होटी टोक्रियों में हर तरह के फूल रखे हुए जिनपर वो बीच में बैठी हुई थोड़े थोड़े वक़्त के बाद एक बॉटल से पानी स्प्रे कर रही थी.
देखने में वो आम सी लड़की लग रही थी. बिखरे हुए बाल, आम सा नैन नक्श, साधारण से कपड़े पर जो एक चीज़ सबसे जुड़ा थी वो थी उसके चेहरे पर बरसती मासूमियत. बनाने वाले ने जैसे दो जहाँ की मासूमियत को बस उस एक चेहरे में समेट दिया था. कोई उसपर एक नज़र भी डालता तो बड़ी आसानी से बता सकता था के उस बेचारी ने अपनी ज़िंदगी में हर परेशानी झेली थी, वक़्त की हर मार खाई थी, हर दर्द सहा था पर उस सबके बावजूद जो एक चीज़ उससे चेहरे से नही गयी वो थी उसकी मासूमियत.
आदित्य जीप से उतरा और पैदल उस लड़की तक आया.
"जी साहब" जब वो उसके सामने आ खड़ा हुआ तो लड़की ने चेहरा उठाकर उसकी तरफ देखा "कौन सा फूल लेंगे?"
नज़र से नज़र मिली तो आदित्य के दिल में आया के उसपर अपना सब कुच्छ निसार कर दे.
"कितने के हैं?" उसने सवाल किया
"कोई भी फूल लीजिए, सब 10 रूपीए के हैं?"
"सब के सब?" आदित्य ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"नही सब नही" वो उसकी बात का मतलब समझ गयी "कोई भी एक लीजिए, 10 का पड़ेगा"
जीप मस्जिद के ठीक सामने आकर रुकी. लोग नमाज़ पढ़कर बाहर निकल रहे थे.
"रुक थोड़ी देर यहीं" आदित्य ने पॅसेंजर सीट पर बैठे निखिल से कहा और खुद जीप से बाहर निकला.
"तू कहाँ जा रहा है?" निखिल ने पुछा
"नमाज़ पढ़ने" कहते हुए आदित्य ने अपने सर पर एक सफेद रंग की टोपी रखी और मस्जिद में दाखिल हो गया.
करीब 15 मिनिट बाद जब वो निकल कर जीप की तरफ वापिस आया तो निखिल हैरत से उसकी तरफ देख रहा था.
"व्हाट्स गोयिंग ऑन?"
"नतिंग" आदित्य ने सर से टोपी हटाई और जीप में आकर बैठ गया
"वेल डिड सम्वन मेन्षन दट यू आर ए हिंदू? आप पूजा करते हैं, नमाज़ नही पढ़ते" निकुल ने जवाब दिया
"क्या फरक पड़ता है यार" आदित्या ने जीप स्टार्ट की "उपेरवाले के आगे सर झुकाना था, मंदिर जाता तब भी यही करता, आज मस्जिद गया तो फिर वही किया. मस्जिद की जगह चर्च या गुरुद्वारे जाता तब भी वही करता"
"दिस ईज़ सो रॉंग मॅन. अगर तेरे डॅड को पता चल गया के तू मस्जिद में गया था तो खून कर देंगे तेरा"
"यआः" जीप आगे बढ़ी "उनके पास करने को और कुच्छ है भी नही. ज़िंदगी में कुच्छ और बने हों या नही, एक पक्के हिंदू ज़रूर बन गये वो" आदित्य ने हस्ते हुए कहा
"आंड यू आर नोट सपोज़ टू बी आ हिंदू?" निखिल को जैसे अब तक अपने देखे हुए पर यकीन नही हो रहा था
जवाब में आदित्य उसकी तरफ देख कर मुस्कुराया और बोला
"इल्म वालो को इल्म दे मौला,
अकल वालो को अकल दे मौला,
धरम वालो को धरम दे मौला,
और थोड़ी सी शरम दे मौला"
कुच्छ देर बाद उनकी जीप बीटी कॉंप्लेक्स के पास आकर रुकी.
"और यहाँ हम क्या कर रहे हैं?" निखिल ने सवाल किया
"जस्ट वेट?" आदित्य ने कहा और उसकी नज़र जैसे किसी को ढूँढने लगी.
थोड़ी देर दूर एक लड़की खड़ी हुई अपने आस पास रखे फूलों पर पानी डाल रही थी. उसके चारो तरफ छ्होटी छ्होटी टोक्रियों में हर तरह के फूल रखे हुए जिनपर वो बीच में बैठी हुई थोड़े थोड़े वक़्त के बाद एक बॉटल से पानी स्प्रे कर रही थी.
देखने में वो आम सी लड़की लग रही थी. बिखरे हुए बाल, आम सा नैन नक्श, साधारण से कपड़े पर जो एक चीज़ सबसे जुड़ा थी वो थी उसके चेहरे पर बरसती मासूमियत. बनाने वाले ने जैसे दो जहाँ की मासूमियत को बस उस एक चेहरे में समेट दिया था. कोई उसपर एक नज़र भी डालता तो बड़ी आसानी से बता सकता था के उस बेचारी ने अपनी ज़िंदगी में हर परेशानी झेली थी, वक़्त की हर मार खाई थी, हर दर्द सहा था पर उस सबके बावजूद जो एक चीज़ उससे चेहरे से नही गयी वो थी उसकी मासूमियत.
आदित्य जीप से उतरा और पैदल उस लड़की तक आया.
"जी साहब" जब वो उसके सामने आ खड़ा हुआ तो लड़की ने चेहरा उठाकर उसकी तरफ देखा "कौन सा फूल लेंगे?"
नज़र से नज़र मिली तो आदित्य के दिल में आया के उसपर अपना सब कुच्छ निसार कर दे.
"कितने के हैं?" उसने सवाल किया
"कोई भी फूल लीजिए, सब 10 रूपीए के हैं?"
"सब के सब?" आदित्य ने मुस्कुराते हुए पुचछा
"नही सब नही" वो उसकी बात का मतलब समझ गयी "कोई भी एक लीजिए, 10 का पड़ेगा"