राजकुमार की प्रतिज्ञा
Posted: 20 Dec 2014 08:31
राजकुमार की प्रतिज्ञा
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। उसके सात लड़के थे। छह का विवाह हो गया था। सातवाँ अभी कुँआरा था। एक दिन वह महल में बैठा था कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी। उसने इधर-उधर देखा तो सामने से उसकी छोटी भाभी आती दिखाई दीं। उसने कहा, 'भाभी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।' महल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी सबसे छोटे राजकुमार की यह हिम्मत कैसे हुई, भाभी मन-ही-मन खीज उठीं। उन्होंने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, 'तुम्हारा इतना ऊँचा दिमाग है तो जाओ, रानी पद्मिनी को ले आओ।' राजकुमार ने यह सुना तो उसका पारा एकदम चढ़ गया। बोला, 'जबतक मैं रानी पद्मिनी को नहीं ले आऊँगा, इस घर का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।'
बात छोटी-सी थी, लेकिन उसने उग्र रूप धारण कर लिया। रानी पद्मिनी काले कोसों दूर रहती थी। वहाँ पहुँचना आसान न था। रास्ता बड़ा दूभर था। जंगल, पहाड़, नदी-नाले, समुद्र, जाने क्या रास्ते में पड़ते थे, किंतु राजकुमार तो संकल्प कर चुका था और वह पत्थर की लकीर के समान था।
उसने तत्काल वजीर के लड़के को बुलवाया और उसे सारी बात सुना कर दो घोड़े तैयार करवाने को कहा। वजीर के लड़के ने उसे बार-बार समझाया कि रानी पद्मिनी तक पहुँचना बहुत मुश्किल है, पर राजकुमार अपने हठ पर अड़ा रहा। उसने कहा, 'चाहे कुछ भी हो जाए, बिना रानी पद्मिनी के मैं इस महल में पैर नहीं रक्खूँगा।'
दो घोड़े तैयार किए गए, रास्ते के खाने-पीने के लिए सामान की व्यवस्था की गई और राजकुमार तथा वजीर का लड़का रानी पद्मिनी की खोज में निकल पड़े।
उन्होंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप में रहती है, जहाँ पहुँचने के लिए सागर पार करना होता है। फिर रानी का महल चारों ओर से राक्षसों से घिरा है। उनकी किलेबंदी को तोड़ कर महल में प्रवेश पाना असंभव है वजीर के लड़के ने एक बार फिर राजकुमार को समझाया कि वह अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे अपनी जान को जोखिम में न डाले, किंतु राजकुमार ने कहा, 'तीर एक बार तरकश से छूट जाता है तो वापस नहीं आता। मैं तो अपने वचन को पूरा करके ही रहूँगा।'
वजीर का लड़का चुप रह गया। दोनों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर रवाना हो गए। दोपहर को उन्होंने एक अमराई में डेरा डाला। खाना खाया, थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद आगे बढ़ गए। चलते-चलते दिन ढलने लगा, गोधूलि की बेला आई। इसी समय उन्हें सामने एक बहुत बड़ा बाग दिखाई दिया। राजकुमार ने कहा, 'आज की रात इस बाग में बिता कर कल तड़के आगे चल पड़ेंगे।'
बाग का फाटक खुला था और वहाँ कोई चौकीदार या रक्षक नहीं था। वजीर के लड़के ने उधर निगाह डाल कर कहा, 'मुझे तो यहाँ कोई खतरा दिखाई देता है। हम लोग यहाँ न रुक कर आगे और कहीं रुकेंगे।'
राजकुमार हँस पड़ा। बोला, 'बड़े डरपोक हो तुम! यहाँ क्या खतरा हो सकता है? देखते नहीं, कितना हरा-भरा सुंदर बाग है!'
वजीर के लड़के ने कहा, 'आप मानें न मानें, मुझे तो लग रहा है कि यहाँ कोई भेद छिपा है।'
राजकुमार ने उसकी एक न सुनी और अपने घोड़े को फाटक के अंदर बढ़ा दिया। बेचारा वजीर का लड़का भी उसके पीछे-पीछे बाग में घुस गया। ज्यों ही वे अंदर पहुँचे कि बाग का फाटक अपने आप बंद हो गया। राजकुमार और वजीर के लड़के को काटो तो खून नहीं। यह क्या हो गया? वजीर के लड़के ने राजकुमार से कहा, 'मैंने आपसे कहा था न कि यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं? पर आप नहीं माने। उसका नतीजा देख लिया!'
राजकुमार ने कहा, 'वह सब छोड़ो! अब यह सोचो कि हम क्या करें?'
वजीर का लड़का बोला, 'अब तो एक ही रास्ता है कि हम घोड़ों को यहीं पेड़ों से बाँध दें और किसी घने पेड़ के ऊपर चढ़ कर बैठ जाएँ। देखें, आगे क्या होता है।'
दोनों ने यही किया। घोड़े पेड़ से बाँध कर वे एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गए और चुपचाप बैठ गए।
अंधकार फैल गया। सन्नाटा छा गया। राजकुमार को नींद आने लगी। तभी उन्होंने देखा कि हवा में उड़ता कोई चला आ रहा है। दोनों काँप उठे। हवा का वेग रुकते ही वह आकृति नीचे उतरी। उसकी शक्ल देखते ही दोनों को लगा कि वे पेड़ से नीचे गिर पड़ेंगे। वह एक परी थी। उसने नीचे खड़े हो कर अपने इर्द-गिर्द देखा। तभी इधर-उधर से कई परियाँ आ गईं। उनके हाथों में पानी से भरे बर्तन थे। उन्होंने वहाँ छिड़काव किया। वह पानी नहीं, गुलाबजल था। उसकी खुशबू से सारा बाग महक उठा।
अब तो उन दोनों की नींद उड़ गई और वे आँखें गड़ा कर देखने लगे कि आगे वे क्या करती हैं।
हवा में उड़ती एक परी आ रही थी
उसी समय कुछ परियाँ और आ गईं। उनके हाथों में कीमती कालीन थे। देखते-देखते उन्होंने वे कालीन बिछा दिए। फिर जाने क्या किया कि वह सारा मैदान रोशनी से जगमगा उठा। अब तो इन दोनों के प्राण मुँह को आ गए। उस रोशनी में कोई भी उन्हें देख सकता था। जगमगाहट में उन्हें दिखाई दिया कि एक ओर से दूध जैसे फव्वारे चलने लगे हैं। पेड़ों की हरियाली अब बड़ी ही मोहक लगने लगी। जब वे दोनों असमंजस में डूबे उस दृश्यावली को देख रहे थे, आसमान से कुछ परियाँ एक रत्न-जड़ित सिंहासन ले कर उतरीं और उन्होंने उस सिंहासन को एक बहुत ही कीमती कालीन पर रख दिया। सारी परियाँ मिल कर एक पंक्ति में खड़ी हो गईं। राजकुमार ने अपनी आँखें मलीं। कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा था!
वजीर का लड़का बार-बार अपने को धिक्कार रहा था कि उसने राजकुमार की बात क्यों मानी। पर अब क्या हो सकता था! आसमान में गड़गड़ाहट हुई। दोनों ने ऊपर को देखा तो एक उड़न-खटोला उड़ा आ रहा था।
'यह क्या?,' राजकुमार फुसफुसाया। वजीर के लड़के ने अपने होठों पर उँगली रख कर चुपचाप बैठे रहने का संकेत किया। उड़न-खटोला धीर-धीरे नीचे उतरा और उसमें से सजी-धजी एक परी बाहर आई। वह उन परियों की मुखिया थी। सारी परियों ने मिल कर उसका अभिवादन किया और बड़े आदर भाव से उसे सिंहासन पर आसीन कर दिया।
थोड़ी देर खामोशी छाई रही। फिर मुखिया ने ताली बजाई। एक परी आगे बढ़ कर उसके सामने खड़ी हो गई। मुखिया ने बड़ी शालीनता से कहा, 'जाओ, उसको लाओ।'
'जो आज्ञा!' कह कर वह परी वहाँ से चल पड़ी और उसी ओर आने लगी, जहाँ पेड़ पर राजकुमार और वजीर का लड़का बैठे थे। दोनों की जान सूख गई। वे अपने भाग्य में क्या लिखा कर आए थे कि ऐसे संकट में फँस गए!
परी उसी पेड़ के नीचे आई और राजकुमार की ओर इशारा करके कहा, 'नीचे उतरो। हमारी राजकुमारी ने तुम्हें याद किया है।' राजकुमार हिचकिचाया। उसकी हिचकिचाहट देख कर परी ने कहा, 'जल्दी उतर आओ। हमारी राजकुमारी आपकी राह देख रही हैं।
कोई चारा नहीं था।
राजकुमार नीचे उतरा और परी के साथ हो लिया। दोनों राजकुमारी के पास पहुँचे। राजकुमारी ने सरक कर सिंहासन पर जगह कर दी और कहा, 'आओ, यहाँ बैठ जाओ।'
राजकुमार ने उसकी बात सुनी, पर उसकी बैठने की हिम्मत न हुई। राजकुमारी ने थोड़ी देर चुप रह कर कहा, 'तुम कौन हो?'
राजकुमार ने धीरे से कहा, 'मैं राजगढ़ के राजा का बेटा हूँ।'
'तो तुम राजकुमार हो!' राजकुमार ने मुस्करा कर कहा।'
राजकुमार चुपचाप खड़ा रहा।
राजकुमारी ने कहा, 'देखो, यहाँ से कोसों दूर हमारा राज है। मैं वहाँ की राजकुमारी हूँ। बहुत दिनों से इंतजार कर रही थी कि कोई राजकुमार यहाँ आए। आज तुम आ गए।'
इतना कह कर राजकुमारी राजकुमार की ओर एकटक देखने लगी।
राजकुमार को लगा कि वह बेहोश हो कर गिर पड़ेगा, पर उसने अपने को सँभाला।
राजकुमारी की मुस्कराहट और चौड़ी हो गई। बड़े मधुर शब्दों में बोली, 'तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा।'
राजकुमार पर मानो बिजली गिरी। उसने कहा, 'यह नहीं हो सकता।'
'क्यों?' राजकुमारी ने थोड़ा कठोर हो कर पूछा।
'इसलिए कि,' राजकुमार ने कहा, 'मैं रानी पद्मिनी की तलाश में निकला हूँ। मैंने प्रतिज्ञा की है कि जब तक वह नहीं मिल जाएगी, मैं अपने महल का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।'
'ओह! यह बात है?' राजकुमारी ने बड़े तरल स्वर में कहा, 'मैं नहीं चाहूँगी कि तुम अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ो। प्रतिज्ञा बड़ी पवित्र होती है। उसे तोड़ना नहीं चाहिए। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। मैं उसमें तुम्हारी मदद करूँगी। पर एक शर्त पर।'
राजकुमार ने कहा, 'वह शर्त क्या है?'
राजकुमार बोली, 'पद्मिनी को ले कर तुम यहाँ आओगे और मेरे साथ शादी करके अपने राज्य को जाओगे।'
राजकुमार ने कहा, 'इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है?'
राजकुमारी थोड़ी देर मौन रही, फिर बोली, 'तुम सिंहल द्वीप पहुँचोगे कैसे?'
राजकुमार ने कहा, 'क्यों, उसमें क्या दिक्कत है!'
राजकुमारी हँसने लगी। हँसते-हँसते बोली, 'तुम बड़े भोले हो। अरे, वहाँ पहुँचना हँसी-खेल नहीं है। रास्ते में एक जादू की नगरी पड़ती है। सिंहल द्वीप का रास्ता वहीं से हो कर जाता है। कोई भी तुम्हें अपने जादू में फँसा लेगा।'
'तब?' राजकुमार ने हैरान हो कर कहा।
राजकुमारी बोली, 'तुम उसकी चिंता न करो। यह लो, मैं तुम्हें एक अँगूठी देती हूँ। तुम जब तक इसे अपनी उँगली में पहने रहोगे, तुम पर किसी का जादू असर नहीं करेगा।'
इतना कह कर राजकुमारी ने एक अँगूठी उसकी ओर बढ़ा दी।
राजकुमार ने कहा, 'राजकुमारी, मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूँगा।'
राजकुमारी बोली, 'इसमें अहसान की क्या बात है! इंसान को इंसान की मदद करनी ही चाहिए।
राजकुमारी ने एक अँगूठी उसे दे दी और कहा, 'तुम्हारी यात्रा सफल हो, तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी हो!'
राजकुमार ने उसका आभार मानते हुए सिर झुका दिया।
रात बीतनेवाली थी। राजकुमारी उठी और अपने उड़न-खटोले पर बैठ कर चली गई। परियों ने सारा सामान समेटा और वे भी अपनी-अपनी दिशा को प्रस्थान कर गईं।
राजकुमारी से विदा हो कर राजकुमार डगमगाते पैरों से, पर खुश-खुश वहाँ आया, जहाँ वजीर का लड़का बड़ी व्यग्रता से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
राजकुमार को सही-सलामत लौट आया देख कर वजीर के लड़के की जान-में-जान आई। वह पेड़ पर से उतरा। राजकुमार ने उसे आपबीती सुना कर कहा, 'देखो, कभी-कभी बुराई में से भलाई निकल आती है।'
फिर दोनों ने अपने-अपने घोड़े तैयार किए और उन पर सवार हो कर चल पड़े। जैसे ही फाटक पर आए कि वह खुल गया। दोनों बाहर हो गए। राजकुमार ने चलते-चलते कहा, 'यह तो पहला पड़ाव था, अभी तो जाने कितने पड़ाव और आएँगे।'
वजीर का लड़का गंभीर हो कर बोला, 'यहाँ से तो हम राजी-खुशी निकल आए, पर आगे हमें होशियार रहना चाहिए।'
वे लोग उस जादुई बाग से कुछ ही दूर गए होंगे कि आसमान में काले-काले बादल घिर आए। खूब जोर की वर्षा होने लगी। वे एक घर में रुक गए। दोनों रात-भर के जगे थे। राजकुमार लेट गया और गहरी नींद में सो गया। वजीर के लड़के को नींद नहीं आई। वह बैठा रहा। अचानक देखता क्या है कि बराबर के कमरे से एक काला नाग आया। यह उसी का घर था। अपने घर में उन अजनबी आदमियों को देख कर वह गुस्से से आग-बबूला हो गया। बड़े जोर की फुँफकार मार कर वह राजकुमार की ओर बढ़ा। राजकुमार तो बेखबर सो रहा था। वजीर के लड़के ने म्यान से तलवार निकाल कर साँप पर वार किया और उसके दो टुकड़े कर डाले, फिर तलवार से उसे एक कोने में पटक दिया।
बाहर अब भी पानी पड़ रहा था। वजीर का लड़का उठ कर घर के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। थोड़ी देर बाहर का नजारा देखता रहा। सोचने लगा कि बैठे-ठाले राजकुमार ने यह क्या मुसीबत मोल ले ली। अच्छा होगा कि अब भी उसका मन फिर जाए और हम वापस लौट जाएँ, पर वह राजकुमार को जानता था। वह बड़ा हठी था। जो सोच लेता था, उसे पूरा करके रहता था। और न जाने क्या-क्या विचार उसके दिमाग में चक्कर लगाते रहे।
पानी थम गया तो उसने राजकुमार को जगाया। राजकुमार उठ बैठा। बोला, 'बड़े जोर की नींद आ गई। अगर तुम जगाते नहीं तो मैं घंटों सोता रहता।'
तभी उसकी निगाह एक ओर पड़े नागराज पर गई। वह चौंक कर खड़ा हो गया और विस्मित आवाज में बोला, 'यह क्या?'
वजीर के लड़के ने सारा हाल सुनाते हुए कहा, 'वह तो अच्छा हुआ कि मुझे नींद नहीं आई। अगर सो गया होता तो यह नाग हम दोनों को डस लेता और हमारा सफर यहीं खत्म हो गया होता।'
राजकुमार वजीर के लड़के के मुँह से सारी दास्तान सुन कर बोला, 'मित्र, जिसे भगवान बचाता है, उसे कोई नहीं मार सकता! यह भी याद रक्खो, हम लोग एक बड़े काम के लिए निकले हैं। जब तक वह काम पूरा नहीं हो जाएगा, हमारा बाल बाँका नहीं होगा।'
वजीर के लड़के ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दोनों ने सामान सँभाला, घोड़ों पर जीन कसी और आगे बढ़ चले। चलते-चलते एक तालाब आया। सूरज सिर पर आ गया था। आसमान एकदम निर्मल हो गया था। वहाँ वे रुक गए। भोजन किया। थोड़ी देर विश्राम किया। फिर आगे चल दिए।
आगे एक बड़ा घना जंगल था। इतना घना कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था। उसमें जंगली जानवर निडर हो कर घूमते थे। डाकू छिपे रहते थे। वहाँ से निकलना हँसी-खेल नहीं था।
जब उन्हें यह जानकारी मिली तो वजीर के लड़के का दिल दहल उठा। उसने राजकुमार की ओर देखा, पर राजकुमार तो जान हथेली पर ले कर महल से निकला था। उसने कहा, 'अगर हम इन छोटी-छोटी बातों से घबरा जाएँगे तो कैसे काम चलेगा?'
दोनों उस जंगल में घुसे। जैसा बताया था, वैसा ही उन्होंने उसे पाया। अंधियारी रात-का-सा अंधकार फैला था। आगे-आगे राजकुमार, पीछे वजीर का लड़का। जानवरों की नाना प्रकार की आवाजें आ रही थीं, पक्षी कलरव कर रहे थे। वे लोग बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे।
अचानक उन्हें दो चमकती आँखें दिखाई दीं। राजकुमार ने अपने घोड़े को रोक लिया। खड़े हो कर देखा तो सामने एक बाघ खड़ा था। क्षणभर में उन दोनों का खात्मा हो जाने वाला था। पर मौत सामने आती है तो कायर भी शूर बन जाता है। वजीर के लड़के ने आव देखा न ताव, घोड़े पर से कूदा और तलवार से उस पर बड़े जोर का वार किया। राजकुमार ने भी भाले से उस पर हमला किया। बाघ वहीं ढेर हो गया।
अब तो दोनों और भी चौकन्ने हो गए। बहुत से जानवर उनके पास से गुजरे, पर वे उतने खूँखार नहीं थे। घोड़ों को देख कर रास्ते से हट गए। वे लोग पल-भर को भी नहीं रुके। उन्हें पता नहीं चल रहा था कि वे कितना जंगल पार कर चुके हैं। सूरज ने भी वहाँ हार मान ली थी। उन्हें डर था कि कहीं रात न हो जाए। रात में जंगली लोमड़ी भी शेर बन जाती है। जंगली सूअर, नील गाय, भैंसे, शेर, चीते इधर-उधर विचरण करने लगते हैं, पर वहाँ तो रात-दिन एक-सा था। उजाले का कहीं नाम नहीं था।
उन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी। उनके हौसले के सामने जंगल ने हार मान ली। जंगल समाप्त हुआ, खुला मैदान आ गया। दिन ढल गया था। मारे थकान के दोनों पस्त हो रहे थे। वजीर के लड़के ने कहा, 'अब हम यहीं कोई अच्छी जगह देख कर ठहर जाएँ। हम लोगों की ताकत जवाब दे रही है और हमारे घोड़े भी पसीने से तर-बतर हो रहे हैं।'
राजकुमार ने उसके प्रस्ताव को मान लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने पर पेड़ों के एक झुरमुट में उन्होंने डेरा डाला। पास में कुआँ था। उससे पानी ले कर स्नान किया। ताजा हो कर खाना खाया। वजीर के लड़के ने कहा, 'मैं बहुत थक गया हूँ। आज की रात मैं खूब सोऊँगा, आप पहरा देना।'
राजकुमार बोला, 'ठीक है!'
दोनों अपने-अपने बिस्तरों पर लेट गए। पर थके होने पर भी वजीर के लड़के की आँख नहीं लगी। वह चुपचाप बिस्तर पर पड़ा रहा। राजकुमार थोड़ी देर चौकीदारी करके जैसी ही बिस्तर पर लेटा कि नींद ने आ कर उसे घेर लिया। वह सो गया।
वजीर के लड़के ने यह देखा तो उसे बड़े गुस्सा आया, पर वह कर क्या सकता था। राजकुमार राजा का बेटा था और वह उसका चाकर था। राजकुमार की रक्षा करना उसका कर्तव्य था और इसी के लिए वह उसके साथ आया था।
जैसे-तैसे सवेरा हुआ। वजीर के लड़के ने राजकुमार को जगाया। आँखें मलता राजकुमार उठा और दिन के उजाले को लक्ष्य करके बोला, 'मैंने बहुत कोशिश की कि जागता रहूँ, पर मैं इतना थक गया था कि न चाहते हुए भी मेरी पलकें भारी हो गईं और नींद ने मुझे अपनी गोद में ले लिया।'
वजीर के लड़के को उस पर अब क्रोध नहीं, दया आई और उसने कहा, 'कोई बात नहीं है।'
फिर राजकुमार का दिल रखने के लिए मुस्करा कर कहा, 'ईश्वर को धन्यवाद दो कि रात को कोई दुर्घटना नहीं हुई। अनजानी जगह का आखिर क्या भरोसा कि कब क्या हो जाए!'
तैयार हो कर वे फिर आगे बढ़े।
चलते-चलते काफी समय हो गया। आगे उन्हें एक नगर दिखाई दिया। उसे देख कर वजीर के लड़के का माथा ठनका। राजकुमार तो भूल गया था, पर उसे याद था। परियों की राजकुमारी ने कहा था कि रास्ते में जादू की एक नगरी पड़ेगी, हो न हो, यह वही नगरी है। उसने राजकुमार से कहा, 'हम इस नगरी के किनारे के रास्ते से निकल चलें। बस्ती में न जाएँ।'
राजकुमार ने तुनक कर कहा, 'इतने दिनों से हम जंगलों और मैदानों में घूम रहे हैं। जैसे-तैसे तो एक नगर आया है और तुम कहते हो, इससे बच कर निकल चलें! नहीं, यह नहीं होगा।'
राजकुमार की इच्छा के आगे वजीर का लड़का झुक गया और दोनों ने नगरी में प्रवेश किया।
नगरी की बनावट और सजावट को देख कर राजकुमार मुग्ध रह गया। बोला, 'वाह, ऐसी नगरी को देखने के आनंद से तुम वंचित होना चाहते थे! ऐसे घर, ऐसे महल, ऐसे बाग-बगीचे, कहाँ देखने को मिलते हैं?'
अपने-अपने घोड़ों पर सवार दोनों नगर के भीतर बढ़ते गए। अकस्मात भाँति-भाँति के फूलों और लता-गुल्मों से सजे एक बगीचे को देख कर राजकुमार अपने घोड़े पर से उतर पड़ा और बगीचे की शोभा को निहारने लगा। तभी सामने के घर से एक बुढ़िया दौड़ी आई और राजकुमार से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। रोना रुका तो बोली, 'मेरे बेटे, तुम कहाँ चले गए थे?'
राजकुमार भौंचक्का-सा रह गया। यह माजरा क्या है? उसने बुढ़िया की बाँहों से अपने को छुड़ाने की कोशिश की, पर बुढ़िया ने उसे इतना जकड़ रखा था कि वह अपने को छुड़ा नहीं पाया। बुढ़िया फिर बिलखने लगी।
राजकुमार को उस पर दया आ गई। बोला, 'तुम चाहती क्या हो?'
सिसकते हुए बुढ़िया ने कहा, 'थोड़ी-सी देर को मेरे घर के भीतर चलो।'
इतना कह कर उसने राजकुमार का हाथ पकड़ लिया।
अपना पीछा छुड़ाने के लिए राजकुमार उसके घर जाने को तैयार हो गया। वजीर के बेटे ने मना किया, पर वह नहीं माना। उसने वजीर के लड़के से कहा, 'तुम यहीं रहो, मैं अभी आता हूँ।'
इतना कह कर वह बुढ़िया के साथ चल दिया। सामने के घर का दरवाजा खुला था। ज्यों ही वे अंदर घुसे कि दरवाजा बंद हो गया।
वजीर के लड़के ने दरवाजे पर जा कर उसे खटखटाया, पर कोई नहीं बोला। उसने मन-ही-मन कहा, 'यह एक नई मुसीबत सिर पर आ गई। पर अब हो क्या सकता था!' उसने बार-बार दरवाजा खटखटाया, राजकुमार को पुकारा, लेकिन कोई नहीं बोला। हार कर वह अपनी जगह पर बैठ गया और राजकुमार के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
घंटों बीत गए, न दरवाजा खुला, न राजकुमार आया।
घर के भीतर जो हुआ, वजीर का लड़का उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था।
बुढ़िया जादूगरनी थी। उसने देख लिया कि राजकुमार की उँगली में एक ऐसी अँगूठी है, जिस पर जादू का प्रभाव नहीं हो सकता। इसलिए उसने जैसे ही राजकुमार का हाथ पकड़ा, अँगूठी उतार ली। अब राजकुमार उसके बस में था। उसने घर के भीतर जा कर राजकुमार को मक्खी बना दिया। मक्खी सामने की दीवार पर जा कर बैठ गई। बुढ़िया ने जादू के जोर पर अपना यह रूप बना लिया था। असल में वह अपने असली रूप में आ गई और राजकुमार को भी मक्खी से उसके असली रूप मे ले आई। हँसते हुए बोली, 'बहुत दिनों में तुम जैसा आदमी मिला है।'
राजकुमार हैरान रह गया। कहाँ गई वह बुढ़िया, जो उसे वहाँ लाई थी? उसकी जगह यह सुंदरी कहाँ से आ गई? विस्मय से राजकुमारी कभी उस युवती को देखता, कभी घर पर इधर-उधर निगाह डालता, पर उसकी समझ में कुछ न आता।
राजकुमार की यह हालत देख कर युवती जोर से हँस पड़ी। बोली, 'घबराते क्यों हो? मैं तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं करूँगी। आओ, मेरे साथ चौपड़ खेलो।'
राजकुमार ने दुखी हो कर कहा, 'मैं यहाँ रुक नहीं सकता।'
'क्यों?' युवती ने पूछा।
राजकुमार ने उसे सारी बात बता दी। बोला, 'मुझे जल्दी-से-जल्दी सिंहल द्वीप पहुँच कर रानी पद्मिनी से मिलना है।'
'ठीक है।' युवती ने उसकी ओर मुस्करा कर देखा, 'पर तुम वहाँ पहुँचोगे कैसे?'
राजकुमार रानी पद्मिनी के चारों ओर की नाकेबंदी की बात सुन चुका था, फिर भी उसने अनजान बन कहा, 'क्यों?'
युवती बोली, 'पहले तो तुम सिंहल द्वीप पहुँच ही नहीं पाओगे। अगर किसी तरह पहुँच भी गए तो रानी पद्मिनी से मिल नहीं सकते।'
राजकुमार ने कहा, 'मुझे हर हालत में अपनी इच्छा पूरी करनी है। यदि मेरा प्रण पूरा नहीं हुआ तो मैं जान दे दूँगा।'
युवती करुणा से भर कर बोली, 'नहीं, उसकी नौबत नहीं आएगी। मैं तुम्हें एक काला और एक सफेद बाल देती हूँ। काले बाल को जलाओगे तो पिशाचों की फौज आ जाएगी। सफेद बाल को जलाओगे तो देवों की फौज आ जाएगी। वे तुम्हारी हर तरह से मदद करेंगे। जो कहोगे, वही करेंगे।'
राजकुमार के खोए प्राण आए। उसने उस युवती का आभार मानना चाहा, पर उसके मुँह से शब्द नहीं निकले। चुप रहा।
युवती बोली, 'मेरी एक शर्त तुम्हें माननी होगी।'
'वह क्या?' राजकुमार ने उत्सुकता से पूछा।
युवती ने गंभीर हो कर पूछा, 'तुम पद्मिनी को ले कर जब लौटोगे तो मुझे भी साथ ले जाओगे!'
'तुम्हारी यह शर्त मुझे मंजूर है।' राजकुमार ने बड़े सहज भाव से कहा।
युवती बोली, 'मैं जानती हूँ कि तुम्हारे भीतर कितनी आग धधक रही है। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी।''
उसे बीच में ही रोक कर राजकुमार ने कहा, 'मेरा मित्र बाहर बहुत बेचैन हो रहा होगा। अब तुम मुझे जाने दो।'
'मुझे भी साथ ले चलो।' बड़ी शरारत-भरी आवाज में युवती बोली, 'मैं तुम्हें इस घर में अधिक दिन नहीं रक्खूँगी। बस, आज की रात, सिर्फ आज की रात, तुम मेरे साथ चौपड़ खेल लो।'
राजकुमार राजी हो गया। रात-भर उसके साथ चौपड़ खेलता रहा। उसने युवती को बार-बार हराया, पर हार कर युवती व्यथित नहीं हुई, उसे पता चला कि राजकुमार की बुद्धि कितनी प्रखर है।
सवेरा होने से पहले युवती ने उसे एक डिब्बी में दो बाल दिए और उसकी अँगूठी लौटा दी। बोली, 'जाओ। रास्ता कठिन जरूर है, पर तुम्हें सफलता मिलेगी।'
उसने बड़े प्यार से राजकुमार को विदा किया और उसके जाने के लिए दरवाजा खोल दिया।
उस एक रात में वजीर के लड़के की जो हालत हो गई थी, उसे वही जानता था। उसे लग रहा था कि अब राजकुमार अंदर ही फँसा रहेगा, बाहर नहीं आएगा। पर सहसा दरवाजा खुला और राजकुमार बाहर आता दीख पड़ा तो वह अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका। उसका जी भर गया। वह दौड़ कर राजकुमार से लिपट गया और बच्चों की तरह फूट-फूट कर रोने लगा। राजकुमार ने उसे ढाँढ़स बँधाया। बोला, 'मित्र, घबराने की जरूरत नहीं है। जो होता है, अच्छा ही होता है।'
इसके बाद उसने जादूगरनी की पूरी कहानी उसे कह सुनाई। बोला, 'मैं तो मानता हूँ कि आदमी का इरादा पक्का हो तो उसे कामयाबी मिल कर ही रहती है। उसके रास्ते में बाधाएँ आती हैं, पर वे दूर हो जाती हैं।'
वजीर के लड़के ने कहा, 'आप सही कहते हो, साधना के बिना सिद्धि नहीं मिलती।'
अब उन्होंने फिर आगे का रास्ता पकड़ा। उस नगरी से निकल कर अब वे खुले मैदान में थे। इधर-उधर खेतों में फसल उग रही थी। लोग अपने-अपने काम में लगे थे।
वे लोग चलते गए, चलते गए। रास्ते में खेत-खलिहानों के अलावा कहीं-कहीं हरे-भरे बाग-बगीचे मिलते, कहीं नदी-नाले, पर उन सबको पार करते वे निर्विघ्न बढ़ते ही गए। रात होने से पहले उन्हें एक आश्रम मिला। उस आश्रम के बाहर एक साधु बैठे थे। सिर पर बड़ी जटाएँ, लंबी दाढ़ी, घनी मूँछें, भरा-पूरा चेहरा। राजकुमार का मन हुआ कि रात को वहीं ठहर जाएँ। उसने अपने साथी से सलाह की तो वह भी राजी हो गया।
राजकुमार ने तब साधु के पास जा कर कहा, 'हम मुसाफिर हैं। बहुत दूर से आ रहे हैं। यदि आपकी अनुमति हो तो रात को यहाँ ठहर जाएँ। सवेरे चले जाएँगे।'
साधु बोले, 'यह तो आश्रम है। हर कोई यहाँ रुक सकता है। तुम आराम से ठहरो और जब तक मन करे, हमारे साथ रहो!'
राजकुमार को यह सुन कर बड़ी खुशी हुई। उन्होंने घोड़ों को वहीं बाँध दिया और आश्रम के एक कमरे में बिस्तर लगाया।
खा-पी कर जब बैठे तो साधु महाराज भी वहीं आ गए। बातें होने लगीं। साधु बाबा बहुत पहुँचे हुए व्यक्ति थे। जब वह बोलते थे, ऐसा प्रतीत होता था, मानो उनके मुख से फूल झड़ रहे हों। उन्होंने पूछा, 'तुम लोग कहाँ से आ रहे हो? कहाँ जा रहे हो? तुम्हारी यात्रा का उद्देश्य क्या है?'
राजकुमार ने सारी जानकारी विस्तार से दे दी और अंत में कहा, 'बाबाजी, आर्शीवाद दीजिए कि हमें अपने उद्देश्य में सफलता मिले।'
बाबा विह्वल हो आए। बोले, 'मेरा आशीर्वाद तो हमेशा सबके साथ रहता है। तुम्हारे साथ भी है। पर वत्स, तुम्हारा काम तो आकाश से तारे तोड़ लाने के समान है।'
इतना कह कर बाबा चुप हो गए। फिर बोले, 'पर मेरे यहाँ से तुम खाली हाथ नहीं जाओगे। मैं तुम्हें एक ऐसी भभूत दूँगा, जिसे खा कर तुम सबको देख सकोगे, पर तुम्हें कोई नहीं देख सकेगा।'
बाबा उठ कर गए। लौटे तो उनके हाथ में भभूत थी। उसे राजकुमार को सौंपते हुए बोले, 'इसे सँभाल कर रखना और किसी को मालूम मत होने देना।'
राजकुमार ने बाबा का आशीर्वाद मानते हुए भभूत ले ली। अब तो धीरे-धीरे पद्मिनी की नाकेबंदी को भेदने का रास्ता साफ होता जा रहा था।
बाबा कह रहे थे, 'जीवन में अपना उद्देश्य ऊँचा रखो और उसे प्राप्त करने के लिए पूरे साहस से काम लो। यह जीवन प्रभु ने हमें बड़े-बड़े काम करने के लिए ही दिया है। जिनके सामने कोई ऊँचा ध्येय नहीं होता, वे छोटी-छोटी चीजों में फँसे रह कर अपनी जीवन-यात्रा पूरी कर देते हैं।'
बाबा ने भभूत की डिब्बी उसे दी।
राजकुमार और वजीर का बेटा उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे। बाबा के मुँह से निकले एक-एक शब्द के पीछे उनका विश्वास था।
उन्होंने कहा, 'तुम लोग तीन-चार दिन यहाँ विश्राम करके आगे बढ़ो। कौन जाने, आगे की यात्रा अब तक की यात्रा से भी कठिन हो। थके होगे तो लड़ोगे कैसे? ताजे होगे तो पहाड़ की चोटी पर सहज ही पहुँच जाओगे।'
राजकुमार को जल्दी थी। उसने ठहरने में आनाकानी की, लेकिन वजीर के बेटे ने बाबा की बात मान ली। समझाने पर राजकुमार भी सहमत हो गया।
वे लोग आश्रम में चार दिन रहे। इस बीच में बाबा छाया की भाँति उनके साथ रहे। उनके पास अनुभवों का अनंत भंडार था। उनका लाभ वह उन दोनों को देते रहे। उन्होंने अंत में जोर दे कर कहा, 'अपने किए पर अभिमान मत करना, साथ ही अपने मार्ग पर दृढ़तापूर्वक डटे रहना।'
उन चार दिनों में बाबा से और आश्रम के जीवन से इतना मिला कि वे कृतकृत्य हो गए। अपने उद्देश्य की सफलता में अब उन्हें कोई संदेह नहीं रहा।
आश्रम से वे बड़े तड़के रवाना हो गए। अभी उनकी मंजिल काफी दूर थी। बिना रुके वे चलते गए। दिन चढ़ आया, सूरज सिर पर आ गया, तब वे एक जलाशय के किनारे रुके, स्नान किया, भोजन किया और थोड़ी देर विश्राम करके आगे बढ़ चले। मौसम अच्छा था। मंद-मंद पवन बह रहा था। रास्ता साफ था। पक्षी मस्ती से इधर-उधर उड़ान भर रहे थे। राजकुमार ने मार्ग दृश्यों को देख कर वजीर के लड़के से कहा, 'देखो, सब कुछ कितना गतिशील है। सूर्य थमता नहीं, पवन रुकता नहीं, पक्षियों का कलरव गान हमेशा चलता रहता है। आदमी को इससे सीख लेनी चाहिए।'
वजीर के लड़के ने देखा कि राजकुमार का मन-कुरंग छलाँगें भर रहा है। उसने कहा, 'धरती भी कहाँ रुकती है। हर घड़ी घूमती रहती है। वह रुक जाए तो दुनिया में हाहाकार मच जाए।'
'तुम ठीक कहते हो, मित्र!' राजकुमार ने प्रसन्न मुद्रा में कहा। फिर वह चुप हो कर चारों और फैले आनंद से पुलकित होने लगा। घोड़ों ने भी जैसे स्वामी के मनोभाव जान लिए। उनकी गति भी तीव्र होती गई।
दिन ढलने लगा, अँधेरा अपनी चादर फैलाने लगा, तब तक वे बराबर चलते रहे और फिर एक घने वृक्ष के नीचे रात बिताने के लिए रुक गए।
राजकुमार के मन में विचारों का ज्वार-भाटा उठ रहा था। वजीर का लड़का तो सो गया, पर उसे नींद नहीं आई। थोड़ी देर में देखता क्या है कि उस पेड़ पर एक तोता और एक मैना आ कर बैठ गए। उनमें बातें होने लगीं। राजकुमार पक्षियों की भाषा जानता था। वह ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा।
तोते ने कहा, 'मैना, कुछ कहो जिससे रात कटे।'
मैना बोली, 'आपबीती कहूँ या परबीती?'
तोते ने कहा, 'अरी आपबीती तो रोज ही सुनते रहते हैं। कुछ परबीती कहो।'
मैना बोली, 'इस नगर के राजा के एक लड़की है। बड़ी सुंदर है, बड़ी भली है, बड़ी भोली है।'
तोते ने उसकी बात काट कर शरारत से कहा, 'तुम जैसी?'
मैना शरमा गई। बोली, 'तुम्हें हर घड़ी मजाक सूझता है।'
तोते ने कहा, 'अच्छा, अपनी बात कहो।'
मैना बोली, 'राजकुमारी बहुत दिनों से बीमार है। दुनिया भर के वैद्य-डाक्टर उसका इलाज कर चुके हैं, पर वह ठीक नहीं होती। बेचारा राजा परेशान है। उसके वही अकेली औलाद है।'
तोते ने कहा, 'यह तो बड़ी हैरानी की बात है।'
'हैरानी की बात तो है ही।' मैना ने व्यथित स्वर में कहा, 'राजा ने यहाँ तक ऐलान कर दिया है कि जो कोई राजकुमारी को अच्छा कर देगा, वह उसी से बेटी का ब्याह कर देगा। राजकुमारी को पाने के लालच में दुनिया भर के चिकित्सक आ रहे हैं, पर कोई भी उसे ठीक नहीं कर पाया। राजा निराश हो गया है।'
इतना कह कर मैना की आवाज रुक गई।
तोता बोला, 'राजकुमारी की बीमारी दूर करने का कोई रास्ता है?'
'रास्ता है!' मैना ने कहा,
'अगर कोई सुनता हो तो इस पेड़ की जड़ ले जाए और उसे घिस कर पानी में मिला कर राजकुमारी को पिला दे। वह रोग से छुटकारा पा जाएगी।'
यह कह कर मैना मौन हो गई। तोता भी कुछ नहीं बोला।
पर राजकुमार उठा और उसने अपने भाले से एक ओर मिट्टी खोद कर पेड़ की थोड़ी-सी जड़ काट ली और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया।
सवेरा हुआ। दोनों मित्र उठे और तैयार हो कर आगे बढ़ गए।
आगे उन्हें वही नगर मिला, जिसकी चर्चा मैना ने की थी। शहर में बार-बार मुनादी हो रही थी कि राजकुमारी को जो भी अच्छा कर देगा, राजा उसके साथ राजकुमारी को ब्याह देगा और अपना आधा राज्य दे देगा।
राजकुमार ने अपना घोड़ा महल के फाटक की ओर बढ़ा दिया। वजीर के लड़के ने उसे रोकना चाहा, पर वह कहाँ मानने वाला था। फाटक पर जब चौकीदार ने उसे रोका तो उसने कहा, 'मैं राजकुमारी का इलाज करूँगा।'
राजकुमार को राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने कहा, 'बड़े-से-बड़े वैद्य इसका इलाज कर गए हैं, पर मेरी प्यारी बेटी को कोई भी अच्छा नहीं कर सका।'
राजकुमार कुछ बोला नहीं। थोड़ा पानी ले कर उसने जड़ को घिसा और बेहोश पड़ी राजकुमारी के होठों पर लगा दिया।
पानी का लगाना था कि राजकुमारी के बदन में कुछ हलचल हुई। राजकुमार ने फिर थोड़ा पानी उसके मुँह से लगाया तो उसने आँखें खोल दीं।
यह देख कर राजा का रोम-रोम पुलकित हो उठा। उसने राजकुमार को सीने से लगा लिया। कुछ ही देर में राजकुमारी उठ कर बैठ गई और चलने-फिरने लगी।
अपनी शर्त के अनुसार राजा ने कहा, 'अब तुम मेरी बेटी को और मेरे आधे राज्य को ग्रहण करो।'
राजकुमार ने राजकुमारी के अच्छा हो जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राजा को अपनी प्रतिज्ञा बता दी।
सुन कर राजा ने कहा, 'कोई बात नहीं है। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके लौटो तो बेटी को साथ ले जाना और मन हो तो यहीं राज करना।'
सारे नगर में शोर मच गया। प्रजा ने राजकुमार को घेर लिया। राजा ने बड़ी कठिनाई से लोगों को रोका और बड़े मान-सम्मान से राजकुमार को विदा देते हुए कहा, 'यहाँ से दस कोस पर पश्चिम में, एक बाबा गुफा में रहते हैं। तुम उनसे मिलते जाना। वह तुम्हारी मदद करेंगे।'
राजकुमार महल से बाहर आया तो वजीर का लड़का उसकी राह देख रहा था। उसे सारा समाचार मिल गया था। उसने राजकुमार को सीने से लगा कर कहा, 'यह क्या चमत्कार हुआ?'
राजकुमार ने उसे पिछली रात की घटना सुना कर कहा, 'इस दुनिया में, सचमुच कभी-कभी चमत्कार हो जाता है। न हम उस पेड़ के नीचे ठहरते, न यह करिश्मा होता। हमें तोता-मैना का उपकार मानना चाहिए।'
राजा ने उन्हें बाबा से मिलने को कहा था। राजकुमार ने उसी दिशा में प्रस्थान किया। दस कोस पर उन्हें वही गुफा मिल गई। उसमें बाबा बैठे थे। राजकुमार घोड़े से उतर कर उनके पास गया और उन्हें प्रणाम करके सामने खड़ा हो गया।
बाबा आँखें बंद किए बैठे थे। थोड़ी देर में उन्होंने आँखें खोलीं और जिज्ञासा भाव से कहा, 'कैसे आए हो?'
राजकुमार ने सारा हाल सुना कर कहा, 'राजा ने कहा था कि मैं आपके दर्शन करूँ।'
बाबा बड़ी आत्मीयता से बोले, 'वत्स, तुमने काम बड़ा कठिन और जोखिम भरा उठाया है।'
राजकुमार ने कहा, 'बाबा, काम कठिन जरूर है, लेकिन आदमी तो बना ही कठिन काम करने के लिए है।'
बाबा की आँखें चमक उठीं। बोले, 'तुमने ठीक कहा। जो कठिन काम से बचे वह आदमी कैसा!'
कुछ रुक कर उन्होंने कहा, 'अब तुम सिंहल द्वीप के पास आ गए हो, लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए तुम्हें महासागर पार करना होगा। कैसे करोगे?'
राजकुमार ने कोई झिझक नहीं दिखाई। बोला, 'बाबा, जो शक्ति मुझे यहाँ तक ले आई है, वही शक्ति इस कठिनाई का भी रास्ता निकालेगी।'
'शाबाश, वत्स' बाबा ने विभोर हो कर कहा, ''आदमी तो निमित्त है। काम शक्ति ही कराती है।'
इतना कह कर बाबा ने खड़ाऊँ की एक जोड़ी उसे देते हुए कहा, 'इन्हें पहन कर तुम सहज ही समुद्र पार कर जाओगे। जाओ, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा।'
राजकुमार ने अत्यंत कृतज्ञ भाव से बाबा के चरणों में सिर रखा और बाबा ने समुद्र पार करने के लिए खड़ाऊँ की जोड़ी दी। उसकी पीठ थपथपा कर उसे आशीर्वाद दे कर विदा किया।
घोड़ों पर सवार हो कर जब वे चले तो राजकुमार भाव-विह्वल हो रहा था। उसने वजीर के लड़के से कहा, 'राजा बड़ा उदार था। उसके साथ जो हुआ, उसका बदला उसने चुका दिया। इतनी बड़ी समस्या को सहज ही हल कर दिया।'
दोनों आगे बढ़े। उनकी अब विशाल सागर को देखने के लिए आतुरता थी।
पर सहसा एक चिंता ने राजकुमार को आ घेरा। वह तो खड़ाऊँ की मदद से सागर पार कर लेगा, पर उसके साथी का क्या होगा!
उसने वजीर के लड़के से कहा, 'मित्र, आगे की लड़ाई अब मुझे अकेले को ही लड़नी पड़ेगी। जब तक मैं लौट कर नहीं आऊँ, तुम यहीं रुके रहोगे।'
वजीर का लड़का हतप्रभ हो गया। यह कैसे होगा? अकेला राजकुमार कैसे उस किले को फतह कर सकेगा?
जब उसने राजकुमार से अपनी आशंका व्यक्त की तो राजकुमार ने उसे धीरज बँधाते हुए कहा, 'तुम चिंता मत करो। आगे के लिए मेरे पास सारे साधन हैं।'
फिर इधर-उधर की बातें करते हुए वे आगे बढ़ते गए। राजकुमार का मन परेशान था। वजीर का लड़का भीतर-ही-भीतर परेशान था। यदि राजकुमार को कुछ हो गया तो वह राजा को कैसे मुँह दिखाएगा? राजकुमार हिम्मत से आगे बढ़ रहा था। साथी का दिल बैठ रहा था। दिन भर चलने के बाद अंत में उन्हें दहाड़ता सागर सामने दिखाई पड़ा। बड़ी-बड़ी लहरें उठ-उठ कर एक भयानक दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं। तट पर पहुँच कर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और निर्निमेष नेत्रों से सागर की विशाल जल-राशि को देखने लगे।
अगले दिन प्रातः प्रस्थान करने का निश्चय किया। बड़े तड़के उठ कर राजकुमार ने अपने घोड़े को खूब प्यार किया, वजीर के लड़के के बहते आँसुओं को पोंछ कर उसे सीने से लगाया और सूर्य की प्रथम किरण के फूटते ही पैरों में खड़ाऊँ पहन कर सागर के तट पर जा खड़ा हुआ। उसके बाद ज्यों ही पैर पानी पर रखा, उसका सारा बदन काँप उठा; लेकिन तभी उसने अनुभव किया कि वह पानी पर ऐसे खड़ा है, जैसे धरती पर खड़ा हो। फिर तो वह एक-एक कदम रखते हुए आगे बढ़ने लगा। वजीर का लड़का आश्चर्य से देख रहा था कि पानी पर यह इस प्रकार कैसे चल रहा है? धीरे-धीरे राजकुमार आँखों से ओझल हो गया।
राजकुमार का वह पूरा दिन सागर पर चलते-चलते बीता। समुद्र की छोटी-बड़ी मछलियाँ दूसरे जीव-जंतु उसकी तरफ आते थे, किंतु उसके पास आने की हिम्मत नहीं कर पाते थे, कुछ दूर से ही भाग जाते थे।
राजकुमार बड़े आनंद से आगे बढ़ता गया। पर समुद्र का अंत उसे दिखाई नहीं देता था। पूरा दिन और पूरी रात उसने चलते-चलते बिताई। अगला दिन आया, तब उसे सागर का किनारा दीख पड़ा। वही था सिंहल द्वीप, जिसमें पद्मिनी को पाने के लिए वह घर से निकला था।
उस भूमि को देख कर उसे रोमांच हो आया, लेकिन दूर से ही उसने देखा कि काले-काले खूँखार राक्षस द्वीप की रक्षा के लिए खड़े हैं। राजकुमार ने भभूत की डिब्बी खोली और एक चुटकी भभूत मुँह में डाल ली। अब वह सबको देख सकता था। वह बेधड़क राक्षसों के बीच पहुँच गया। राक्षस बड़े ही डरावने थे। उनके रंग-रूप और चेहरों को देख कर रोंगटे खड़े हो जाते थे। उनके हाथों में हथियार देख कर प्राण सूख जाते थे। राजकुमार उस सबको देख कर सकपका रहा था, हालाँकि उसे पता था कि कोई भी उसे देख नहीं पा रहा है।
राजकुमार ने निश्चय किया कि वह पहले शहर का एक चक्कर लगा ले। शहर को समझ कर फिर आगे का कार्यक्रम तय करे। वह शहर में खूब घूमा। पद्मिनी के महल पर भी गया। किंतु उसे लगा कि जोर-जबरदस्ती से महल में घुसना असंभव है। उसके लिए कोई जुगत करनी होगी।
नगर इतना सुंदर और कलापूर्ण था कि अपने को भूल गया। ऐसा अनुपम नगर तो उसने पहले कभी नहीं देखा था। जगह-जगह पर हरी दूब के कालीन बिछे थे और रंग-बिरंगे पुष्पों से सारा शहर सुशोभित और महक रहा था। कदम-कदम पर गुलाब जल के फव्वारे चल रहे थे। सड़कें बड़ी साफ-सुथरी थीं। गंदगी का कहीं नाम भी नहीं था। बढ़िया पोशाकें पहन स्त्री-पुरुष, बच्चे इधर-उधर घूम रहे थे। उनका रूप बड़ा सलोना था। राजकुमार उस सबको देख कर मुग्ध हो गया। उसे लग रहा था, जैसे वह इंद्रपुरी में पहुँच गया है।
वह घूमता रहा, घूमता रहा। सहसा उसे ध्यान आया कि वह अदृश्य तो बन गया है, पर अपने असली रूप में कैसे आएगा। यह सोच कर उसका मन व्यग्र हो गया। अब वह क्या करे?
उसकी हैरानी बढ़ती जा रही थी कि अचानक उसे उन बाबा का ध्यान हो आया, जिन्होंने भभूत की वह डिबिया दी थी। तभी उसे दिखाई दिया कि बाबा उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे थे कि यह ले दूसरी डिबिया, जिसकी भभूत खाते ही तू अपने असली रूप में आ जाएगा।
राजकुमार ने खुश हो कर दूसरी डिबिया ले ली। बाबा अंतर्धान होते-होते कह गए कि दूसरी डिबिया का इस्तेमाल होशियारी से करना। यदि लोगों ने देख लिया तो राक्षस तुझे कच्चा ही खा जाएँगे।
अब राजकुमार ने, आगे क्या करना है, इस बारे में सोचा। सोचते-सोचते उसने काला और सफेद बाल निकाला। पहले उसने काला बाल जलाया। उस बाल का जलना था कि राक्षसों की फौज आ कर खड़ी हो गई। उसने आदेश दिया कि पहरे के राक्षसों का खात्मा कर दो। देखते-देखते सारे राक्षस धराशायी हो गए। उसने थोड़े-से राक्षसों को रोक कर शेष को विदा कर दिया। इसके पश्चात उसने सफेद बाल जला कर देवों को बुलाया। उनके आने पर उसने कहा, 'समुद्र के किनारे हीरे-जवाहरात तथा नाना प्रकार के आभूषणों से भरा एक जहाज खड़ा कर दो।' पलक झपकते ही एक बड़ा ही सुंदर जहाज खड़ा हो गया, उसमें हीरे-जवाहरात भरे थे और तरह-तरह के आभूषण थे। आभूषण एक से बढ़ कर एक थे।
यह सब होते ही नगर भर में खबर फैल गई कि परदेस से एक बहुत बड़ा सौदागर आया है। लोग अचंभे में रह गए कि ऐसा एकदम कैसे हो गया, लेकिन उनके सामने सौदागर मौजूद था और उसके पास बेशकीमती आभूषणों का भंडार था।
यह खबर उड़ती-उड़ती राजमहल में पहुँची। पद्मिनी ने यह सब सुना तो उसका मन मचल उठा। उसने कहा, 'उस व्यापारी को हमारे सामने लाओ।'
तुरंत पद्मिनी के दूत व्यापारी बने राजकुमार के पास पहुँचे और पद्मिनी का संदेश कह सुनाया। राजकुमार तो यह चाहता ही था। वह पद्मिनी से मिलने महल में पहुँचा तो वहाँ के दृश्य देखता ही रह गया। सबकुछ अनूठा था। महल का द्वार बहुत ही कला-कारीगरी पूर्ण था। अंदर लता-गुल्मों के बीच फव्वारे अपनी बहार दिखा रहे थे। महल चारों ओर से घिरा था, किंतु दूत के साथ होने के कारण उसे अंदर प्रवेश पाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। पद्मिनी एक सजे-धजे कक्ष में सिंहासन पर विराजमान थी।
राजकुमार के कक्ष में प्रविष्ट होते ही उसने उसका अभिवादन किया। राजकुमार ने भी हाथ जोड़ कर, सिर झुका कर अपना सम्मान व्यक्त किया।
पद्मिनी ने उसे बैठने का संकेत किया। वह आसन पर बैठ गया तो पद्मिनी ने पूछा, 'तुम कहाँ से आए हो?'
पद्मिनी के मुँह से शब्द नहीं, मानो फूल झड़े हों।
राजकुमार एकटक उसकी ओर देखते हुए बोला, 'मैं स्वर्ण-भूमि से आया हूँ।'
'वहाँ क्या करते थे?' पद्मिनी ने अगला प्रश्न किया।
'जी, मैं हीरे-जवाहरात का व्यापारी हूँ।' राजकुमार ने उत्तर दिया।
'यहाँ कैसे आए?' पद्मिनी ने थोड़ा गंभीर हो कर पूछा।
'सुना था, आप आभूषणों और हीरे-जवाहरात की पारखी और प्रेमी हैं।' राजकुमार का संक्षिप्त उत्तर था।
'तो तुम कुछ आभूषण लाए हो?'
'जी हाँ।'
'कहाँ हैं?'
'समुद्र के किनारे मेरा जहाज खड़ा है।' राजकुमार ने सहज भाव से कह दिया।
पद्मिनी ने मुस्करा कर कहा, 'तो तुम उन्हें मुझे दिखा सकते हो?'
'अवश्य। मैं तो यहाँ आया ही इस काम से हूँ।'
'ठीक है। अब तुम जाओ।' पद्मिनी ने धीमी आवाज में कहा, 'कल मेरा दूत तुम्हारे पास आएगा। उसके साथ कुछ बढ़िया आभूषण ले आना।'
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। उसके सात लड़के थे। छह का विवाह हो गया था। सातवाँ अभी कुँआरा था। एक दिन वह महल में बैठा था कि उसे बड़े जोर की प्यास लगी। उसने इधर-उधर देखा तो सामने से उसकी छोटी भाभी आती दिखाई दीं। उसने कहा, 'भाभी, मुझे एक गिलास पानी दे दो।' महल में इतने नौकर-चाकर होते हुए भी सबसे छोटे राजकुमार की यह हिम्मत कैसे हुई, भाभी मन-ही-मन खीज उठीं। उन्होंने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, 'तुम्हारा इतना ऊँचा दिमाग है तो जाओ, रानी पद्मिनी को ले आओ।' राजकुमार ने यह सुना तो उसका पारा एकदम चढ़ गया। बोला, 'जबतक मैं रानी पद्मिनी को नहीं ले आऊँगा, इस घर का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।'
बात छोटी-सी थी, लेकिन उसने उग्र रूप धारण कर लिया। रानी पद्मिनी काले कोसों दूर रहती थी। वहाँ पहुँचना आसान न था। रास्ता बड़ा दूभर था। जंगल, पहाड़, नदी-नाले, समुद्र, जाने क्या रास्ते में पड़ते थे, किंतु राजकुमार तो संकल्प कर चुका था और वह पत्थर की लकीर के समान था।
उसने तत्काल वजीर के लड़के को बुलवाया और उसे सारी बात सुना कर दो घोड़े तैयार करवाने को कहा। वजीर के लड़के ने उसे बार-बार समझाया कि रानी पद्मिनी तक पहुँचना बहुत मुश्किल है, पर राजकुमार अपने हठ पर अड़ा रहा। उसने कहा, 'चाहे कुछ भी हो जाए, बिना रानी पद्मिनी के मैं इस महल में पैर नहीं रक्खूँगा।'
दो घोड़े तैयार किए गए, रास्ते के खाने-पीने के लिए सामान की व्यवस्था की गई और राजकुमार तथा वजीर का लड़का रानी पद्मिनी की खोज में निकल पड़े।
उन्होंने पता लगाया तो मालूम हुआ कि रानी पद्मिनी सिंहल द्वीप में रहती है, जहाँ पहुँचने के लिए सागर पार करना होता है। फिर रानी का महल चारों ओर से राक्षसों से घिरा है। उनकी किलेबंदी को तोड़ कर महल में प्रवेश पाना असंभव है वजीर के लड़के ने एक बार फिर राजकुमार को समझाया कि वह अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे अपनी जान को जोखिम में न डाले, किंतु राजकुमार ने कहा, 'तीर एक बार तरकश से छूट जाता है तो वापस नहीं आता। मैं तो अपने वचन को पूरा करके ही रहूँगा।'
वजीर का लड़का चुप रह गया। दोनों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर रवाना हो गए। दोपहर को उन्होंने एक अमराई में डेरा डाला। खाना खाया, थोड़ी देर आराम किया, उसके बाद आगे बढ़ गए। चलते-चलते दिन ढलने लगा, गोधूलि की बेला आई। इसी समय उन्हें सामने एक बहुत बड़ा बाग दिखाई दिया। राजकुमार ने कहा, 'आज की रात इस बाग में बिता कर कल तड़के आगे चल पड़ेंगे।'
बाग का फाटक खुला था और वहाँ कोई चौकीदार या रक्षक नहीं था। वजीर के लड़के ने उधर निगाह डाल कर कहा, 'मुझे तो यहाँ कोई खतरा दिखाई देता है। हम लोग यहाँ न रुक कर आगे और कहीं रुकेंगे।'
राजकुमार हँस पड़ा। बोला, 'बड़े डरपोक हो तुम! यहाँ क्या खतरा हो सकता है? देखते नहीं, कितना हरा-भरा सुंदर बाग है!'
वजीर के लड़के ने कहा, 'आप मानें न मानें, मुझे तो लग रहा है कि यहाँ कोई भेद छिपा है।'
राजकुमार ने उसकी एक न सुनी और अपने घोड़े को फाटक के अंदर बढ़ा दिया। बेचारा वजीर का लड़का भी उसके पीछे-पीछे बाग में घुस गया। ज्यों ही वे अंदर पहुँचे कि बाग का फाटक अपने आप बंद हो गया। राजकुमार और वजीर के लड़के को काटो तो खून नहीं। यह क्या हो गया? वजीर के लड़के ने राजकुमार से कहा, 'मैंने आपसे कहा था न कि यहाँ ठहरना मुनासिब नहीं? पर आप नहीं माने। उसका नतीजा देख लिया!'
राजकुमार ने कहा, 'वह सब छोड़ो! अब यह सोचो कि हम क्या करें?'
वजीर का लड़का बोला, 'अब तो एक ही रास्ता है कि हम घोड़ों को यहीं पेड़ों से बाँध दें और किसी घने पेड़ के ऊपर चढ़ कर बैठ जाएँ। देखें, आगे क्या होता है।'
दोनों ने यही किया। घोड़े पेड़ से बाँध कर वे एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गए और चुपचाप बैठ गए।
अंधकार फैल गया। सन्नाटा छा गया। राजकुमार को नींद आने लगी। तभी उन्होंने देखा कि हवा में उड़ता कोई चला आ रहा है। दोनों काँप उठे। हवा का वेग रुकते ही वह आकृति नीचे उतरी। उसकी शक्ल देखते ही दोनों को लगा कि वे पेड़ से नीचे गिर पड़ेंगे। वह एक परी थी। उसने नीचे खड़े हो कर अपने इर्द-गिर्द देखा। तभी इधर-उधर से कई परियाँ आ गईं। उनके हाथों में पानी से भरे बर्तन थे। उन्होंने वहाँ छिड़काव किया। वह पानी नहीं, गुलाबजल था। उसकी खुशबू से सारा बाग महक उठा।
अब तो उन दोनों की नींद उड़ गई और वे आँखें गड़ा कर देखने लगे कि आगे वे क्या करती हैं।
हवा में उड़ती एक परी आ रही थी
उसी समय कुछ परियाँ और आ गईं। उनके हाथों में कीमती कालीन थे। देखते-देखते उन्होंने वे कालीन बिछा दिए। फिर जाने क्या किया कि वह सारा मैदान रोशनी से जगमगा उठा। अब तो इन दोनों के प्राण मुँह को आ गए। उस रोशनी में कोई भी उन्हें देख सकता था। जगमगाहट में उन्हें दिखाई दिया कि एक ओर से दूध जैसे फव्वारे चलने लगे हैं। पेड़ों की हरियाली अब बड़ी ही मोहक लगने लगी। जब वे दोनों असमंजस में डूबे उस दृश्यावली को देख रहे थे, आसमान से कुछ परियाँ एक रत्न-जड़ित सिंहासन ले कर उतरीं और उन्होंने उस सिंहासन को एक बहुत ही कीमती कालीन पर रख दिया। सारी परियाँ मिल कर एक पंक्ति में खड़ी हो गईं। राजकुमार ने अपनी आँखें मलीं। कहीं वह सपना तो नहीं देख रहा था!
वजीर का लड़का बार-बार अपने को धिक्कार रहा था कि उसने राजकुमार की बात क्यों मानी। पर अब क्या हो सकता था! आसमान में गड़गड़ाहट हुई। दोनों ने ऊपर को देखा तो एक उड़न-खटोला उड़ा आ रहा था।
'यह क्या?,' राजकुमार फुसफुसाया। वजीर के लड़के ने अपने होठों पर उँगली रख कर चुपचाप बैठे रहने का संकेत किया। उड़न-खटोला धीर-धीरे नीचे उतरा और उसमें से सजी-धजी एक परी बाहर आई। वह उन परियों की मुखिया थी। सारी परियों ने मिल कर उसका अभिवादन किया और बड़े आदर भाव से उसे सिंहासन पर आसीन कर दिया।
थोड़ी देर खामोशी छाई रही। फिर मुखिया ने ताली बजाई। एक परी आगे बढ़ कर उसके सामने खड़ी हो गई। मुखिया ने बड़ी शालीनता से कहा, 'जाओ, उसको लाओ।'
'जो आज्ञा!' कह कर वह परी वहाँ से चल पड़ी और उसी ओर आने लगी, जहाँ पेड़ पर राजकुमार और वजीर का लड़का बैठे थे। दोनों की जान सूख गई। वे अपने भाग्य में क्या लिखा कर आए थे कि ऐसे संकट में फँस गए!
परी उसी पेड़ के नीचे आई और राजकुमार की ओर इशारा करके कहा, 'नीचे उतरो। हमारी राजकुमारी ने तुम्हें याद किया है।' राजकुमार हिचकिचाया। उसकी हिचकिचाहट देख कर परी ने कहा, 'जल्दी उतर आओ। हमारी राजकुमारी आपकी राह देख रही हैं।
कोई चारा नहीं था।
राजकुमार नीचे उतरा और परी के साथ हो लिया। दोनों राजकुमारी के पास पहुँचे। राजकुमारी ने सरक कर सिंहासन पर जगह कर दी और कहा, 'आओ, यहाँ बैठ जाओ।'
राजकुमार ने उसकी बात सुनी, पर उसकी बैठने की हिम्मत न हुई। राजकुमारी ने थोड़ी देर चुप रह कर कहा, 'तुम कौन हो?'
राजकुमार ने धीरे से कहा, 'मैं राजगढ़ के राजा का बेटा हूँ।'
'तो तुम राजकुमार हो!' राजकुमार ने मुस्करा कर कहा।'
राजकुमार चुपचाप खड़ा रहा।
राजकुमारी ने कहा, 'देखो, यहाँ से कोसों दूर हमारा राज है। मैं वहाँ की राजकुमारी हूँ। बहुत दिनों से इंतजार कर रही थी कि कोई राजकुमार यहाँ आए। आज तुम आ गए।'
इतना कह कर राजकुमारी राजकुमार की ओर एकटक देखने लगी।
राजकुमार को लगा कि वह बेहोश हो कर गिर पड़ेगा, पर उसने अपने को सँभाला।
राजकुमारी की मुस्कराहट और चौड़ी हो गई। बड़े मधुर शब्दों में बोली, 'तुम्हें मुझसे विवाह करना होगा।'
राजकुमार पर मानो बिजली गिरी। उसने कहा, 'यह नहीं हो सकता।'
'क्यों?' राजकुमारी ने थोड़ा कठोर हो कर पूछा।
'इसलिए कि,' राजकुमार ने कहा, 'मैं रानी पद्मिनी की तलाश में निकला हूँ। मैंने प्रतिज्ञा की है कि जब तक वह नहीं मिल जाएगी, मैं अपने महल का अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।'
'ओह! यह बात है?' राजकुमारी ने बड़े तरल स्वर में कहा, 'मैं नहीं चाहूँगी कि तुम अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ो। प्रतिज्ञा बड़ी पवित्र होती है। उसे तोड़ना नहीं चाहिए। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करो। मैं उसमें तुम्हारी मदद करूँगी। पर एक शर्त पर।'
राजकुमार ने कहा, 'वह शर्त क्या है?'
राजकुमार बोली, 'पद्मिनी को ले कर तुम यहाँ आओगे और मेरे साथ शादी करके अपने राज्य को जाओगे।'
राजकुमार ने कहा, 'इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है?'
राजकुमारी थोड़ी देर मौन रही, फिर बोली, 'तुम सिंहल द्वीप पहुँचोगे कैसे?'
राजकुमार ने कहा, 'क्यों, उसमें क्या दिक्कत है!'
राजकुमारी हँसने लगी। हँसते-हँसते बोली, 'तुम बड़े भोले हो। अरे, वहाँ पहुँचना हँसी-खेल नहीं है। रास्ते में एक जादू की नगरी पड़ती है। सिंहल द्वीप का रास्ता वहीं से हो कर जाता है। कोई भी तुम्हें अपने जादू में फँसा लेगा।'
'तब?' राजकुमार ने हैरान हो कर कहा।
राजकुमारी बोली, 'तुम उसकी चिंता न करो। यह लो, मैं तुम्हें एक अँगूठी देती हूँ। तुम जब तक इसे अपनी उँगली में पहने रहोगे, तुम पर किसी का जादू असर नहीं करेगा।'
इतना कह कर राजकुमारी ने एक अँगूठी उसकी ओर बढ़ा दी।
राजकुमार ने कहा, 'राजकुमारी, मैं तुम्हारा अहसान कभी नहीं भूलूँगा।'
राजकुमारी बोली, 'इसमें अहसान की क्या बात है! इंसान को इंसान की मदद करनी ही चाहिए।
राजकुमारी ने एक अँगूठी उसे दे दी और कहा, 'तुम्हारी यात्रा सफल हो, तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी हो!'
राजकुमार ने उसका आभार मानते हुए सिर झुका दिया।
रात बीतनेवाली थी। राजकुमारी उठी और अपने उड़न-खटोले पर बैठ कर चली गई। परियों ने सारा सामान समेटा और वे भी अपनी-अपनी दिशा को प्रस्थान कर गईं।
राजकुमारी से विदा हो कर राजकुमार डगमगाते पैरों से, पर खुश-खुश वहाँ आया, जहाँ वजीर का लड़का बड़ी व्यग्रता से उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
राजकुमार को सही-सलामत लौट आया देख कर वजीर के लड़के की जान-में-जान आई। वह पेड़ पर से उतरा। राजकुमार ने उसे आपबीती सुना कर कहा, 'देखो, कभी-कभी बुराई में से भलाई निकल आती है।'
फिर दोनों ने अपने-अपने घोड़े तैयार किए और उन पर सवार हो कर चल पड़े। जैसे ही फाटक पर आए कि वह खुल गया। दोनों बाहर हो गए। राजकुमार ने चलते-चलते कहा, 'यह तो पहला पड़ाव था, अभी तो जाने कितने पड़ाव और आएँगे।'
वजीर का लड़का गंभीर हो कर बोला, 'यहाँ से तो हम राजी-खुशी निकल आए, पर आगे हमें होशियार रहना चाहिए।'
वे लोग उस जादुई बाग से कुछ ही दूर गए होंगे कि आसमान में काले-काले बादल घिर आए। खूब जोर की वर्षा होने लगी। वे एक घर में रुक गए। दोनों रात-भर के जगे थे। राजकुमार लेट गया और गहरी नींद में सो गया। वजीर के लड़के को नींद नहीं आई। वह बैठा रहा। अचानक देखता क्या है कि बराबर के कमरे से एक काला नाग आया। यह उसी का घर था। अपने घर में उन अजनबी आदमियों को देख कर वह गुस्से से आग-बबूला हो गया। बड़े जोर की फुँफकार मार कर वह राजकुमार की ओर बढ़ा। राजकुमार तो बेखबर सो रहा था। वजीर के लड़के ने म्यान से तलवार निकाल कर साँप पर वार किया और उसके दो टुकड़े कर डाले, फिर तलवार से उसे एक कोने में पटक दिया।
बाहर अब भी पानी पड़ रहा था। वजीर का लड़का उठ कर घर के दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। थोड़ी देर बाहर का नजारा देखता रहा। सोचने लगा कि बैठे-ठाले राजकुमार ने यह क्या मुसीबत मोल ले ली। अच्छा होगा कि अब भी उसका मन फिर जाए और हम वापस लौट जाएँ, पर वह राजकुमार को जानता था। वह बड़ा हठी था। जो सोच लेता था, उसे पूरा करके रहता था। और न जाने क्या-क्या विचार उसके दिमाग में चक्कर लगाते रहे।
पानी थम गया तो उसने राजकुमार को जगाया। राजकुमार उठ बैठा। बोला, 'बड़े जोर की नींद आ गई। अगर तुम जगाते नहीं तो मैं घंटों सोता रहता।'
तभी उसकी निगाह एक ओर पड़े नागराज पर गई। वह चौंक कर खड़ा हो गया और विस्मित आवाज में बोला, 'यह क्या?'
वजीर के लड़के ने सारा हाल सुनाते हुए कहा, 'वह तो अच्छा हुआ कि मुझे नींद नहीं आई। अगर सो गया होता तो यह नाग हम दोनों को डस लेता और हमारा सफर यहीं खत्म हो गया होता।'
राजकुमार वजीर के लड़के के मुँह से सारी दास्तान सुन कर बोला, 'मित्र, जिसे भगवान बचाता है, उसे कोई नहीं मार सकता! यह भी याद रक्खो, हम लोग एक बड़े काम के लिए निकले हैं। जब तक वह काम पूरा नहीं हो जाएगा, हमारा बाल बाँका नहीं होगा।'
वजीर के लड़के ने इसका कोई जवाब नहीं दिया। दोनों ने सामान सँभाला, घोड़ों पर जीन कसी और आगे बढ़ चले। चलते-चलते एक तालाब आया। सूरज सिर पर आ गया था। आसमान एकदम निर्मल हो गया था। वहाँ वे रुक गए। भोजन किया। थोड़ी देर विश्राम किया। फिर आगे चल दिए।
आगे एक बड़ा घना जंगल था। इतना घना कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था। उसमें जंगली जानवर निडर हो कर घूमते थे। डाकू छिपे रहते थे। वहाँ से निकलना हँसी-खेल नहीं था।
जब उन्हें यह जानकारी मिली तो वजीर के लड़के का दिल दहल उठा। उसने राजकुमार की ओर देखा, पर राजकुमार तो जान हथेली पर ले कर महल से निकला था। उसने कहा, 'अगर हम इन छोटी-छोटी बातों से घबरा जाएँगे तो कैसे काम चलेगा?'
दोनों उस जंगल में घुसे। जैसा बताया था, वैसा ही उन्होंने उसे पाया। अंधियारी रात-का-सा अंधकार फैला था। आगे-आगे राजकुमार, पीछे वजीर का लड़का। जानवरों की नाना प्रकार की आवाजें आ रही थीं, पक्षी कलरव कर रहे थे। वे लोग बड़ी सावधानी से आगे बढ़ रहे थे।
अचानक उन्हें दो चमकती आँखें दिखाई दीं। राजकुमार ने अपने घोड़े को रोक लिया। खड़े हो कर देखा तो सामने एक बाघ खड़ा था। क्षणभर में उन दोनों का खात्मा हो जाने वाला था। पर मौत सामने आती है तो कायर भी शूर बन जाता है। वजीर के लड़के ने आव देखा न ताव, घोड़े पर से कूदा और तलवार से उस पर बड़े जोर का वार किया। राजकुमार ने भी भाले से उस पर हमला किया। बाघ वहीं ढेर हो गया।
अब तो दोनों और भी चौकन्ने हो गए। बहुत से जानवर उनके पास से गुजरे, पर वे उतने खूँखार नहीं थे। घोड़ों को देख कर रास्ते से हट गए। वे लोग पल-भर को भी नहीं रुके। उन्हें पता नहीं चल रहा था कि वे कितना जंगल पार कर चुके हैं। सूरज ने भी वहाँ हार मान ली थी। उन्हें डर था कि कहीं रात न हो जाए। रात में जंगली लोमड़ी भी शेर बन जाती है। जंगली सूअर, नील गाय, भैंसे, शेर, चीते इधर-उधर विचरण करने लगते हैं, पर वहाँ तो रात-दिन एक-सा था। उजाले का कहीं नाम नहीं था।
उन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी। उनके हौसले के सामने जंगल ने हार मान ली। जंगल समाप्त हुआ, खुला मैदान आ गया। दिन ढल गया था। मारे थकान के दोनों पस्त हो रहे थे। वजीर के लड़के ने कहा, 'अब हम यहीं कोई अच्छी जगह देख कर ठहर जाएँ। हम लोगों की ताकत जवाब दे रही है और हमारे घोड़े भी पसीने से तर-बतर हो रहे हैं।'
राजकुमार ने उसके प्रस्ताव को मान लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने पर पेड़ों के एक झुरमुट में उन्होंने डेरा डाला। पास में कुआँ था। उससे पानी ले कर स्नान किया। ताजा हो कर खाना खाया। वजीर के लड़के ने कहा, 'मैं बहुत थक गया हूँ। आज की रात मैं खूब सोऊँगा, आप पहरा देना।'
राजकुमार बोला, 'ठीक है!'
दोनों अपने-अपने बिस्तरों पर लेट गए। पर थके होने पर भी वजीर के लड़के की आँख नहीं लगी। वह चुपचाप बिस्तर पर पड़ा रहा। राजकुमार थोड़ी देर चौकीदारी करके जैसी ही बिस्तर पर लेटा कि नींद ने आ कर उसे घेर लिया। वह सो गया।
वजीर के लड़के ने यह देखा तो उसे बड़े गुस्सा आया, पर वह कर क्या सकता था। राजकुमार राजा का बेटा था और वह उसका चाकर था। राजकुमार की रक्षा करना उसका कर्तव्य था और इसी के लिए वह उसके साथ आया था।
जैसे-तैसे सवेरा हुआ। वजीर के लड़के ने राजकुमार को जगाया। आँखें मलता राजकुमार उठा और दिन के उजाले को लक्ष्य करके बोला, 'मैंने बहुत कोशिश की कि जागता रहूँ, पर मैं इतना थक गया था कि न चाहते हुए भी मेरी पलकें भारी हो गईं और नींद ने मुझे अपनी गोद में ले लिया।'
वजीर के लड़के को उस पर अब क्रोध नहीं, दया आई और उसने कहा, 'कोई बात नहीं है।'
फिर राजकुमार का दिल रखने के लिए मुस्करा कर कहा, 'ईश्वर को धन्यवाद दो कि रात को कोई दुर्घटना नहीं हुई। अनजानी जगह का आखिर क्या भरोसा कि कब क्या हो जाए!'
तैयार हो कर वे फिर आगे बढ़े।
चलते-चलते काफी समय हो गया। आगे उन्हें एक नगर दिखाई दिया। उसे देख कर वजीर के लड़के का माथा ठनका। राजकुमार तो भूल गया था, पर उसे याद था। परियों की राजकुमारी ने कहा था कि रास्ते में जादू की एक नगरी पड़ेगी, हो न हो, यह वही नगरी है। उसने राजकुमार से कहा, 'हम इस नगरी के किनारे के रास्ते से निकल चलें। बस्ती में न जाएँ।'
राजकुमार ने तुनक कर कहा, 'इतने दिनों से हम जंगलों और मैदानों में घूम रहे हैं। जैसे-तैसे तो एक नगर आया है और तुम कहते हो, इससे बच कर निकल चलें! नहीं, यह नहीं होगा।'
राजकुमार की इच्छा के आगे वजीर का लड़का झुक गया और दोनों ने नगरी में प्रवेश किया।
नगरी की बनावट और सजावट को देख कर राजकुमार मुग्ध रह गया। बोला, 'वाह, ऐसी नगरी को देखने के आनंद से तुम वंचित होना चाहते थे! ऐसे घर, ऐसे महल, ऐसे बाग-बगीचे, कहाँ देखने को मिलते हैं?'
अपने-अपने घोड़ों पर सवार दोनों नगर के भीतर बढ़ते गए। अकस्मात भाँति-भाँति के फूलों और लता-गुल्मों से सजे एक बगीचे को देख कर राजकुमार अपने घोड़े पर से उतर पड़ा और बगीचे की शोभा को निहारने लगा। तभी सामने के घर से एक बुढ़िया दौड़ी आई और राजकुमार से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। रोना रुका तो बोली, 'मेरे बेटे, तुम कहाँ चले गए थे?'
राजकुमार भौंचक्का-सा रह गया। यह माजरा क्या है? उसने बुढ़िया की बाँहों से अपने को छुड़ाने की कोशिश की, पर बुढ़िया ने उसे इतना जकड़ रखा था कि वह अपने को छुड़ा नहीं पाया। बुढ़िया फिर बिलखने लगी।
राजकुमार को उस पर दया आ गई। बोला, 'तुम चाहती क्या हो?'
सिसकते हुए बुढ़िया ने कहा, 'थोड़ी-सी देर को मेरे घर के भीतर चलो।'
इतना कह कर उसने राजकुमार का हाथ पकड़ लिया।
अपना पीछा छुड़ाने के लिए राजकुमार उसके घर जाने को तैयार हो गया। वजीर के बेटे ने मना किया, पर वह नहीं माना। उसने वजीर के लड़के से कहा, 'तुम यहीं रहो, मैं अभी आता हूँ।'
इतना कह कर वह बुढ़िया के साथ चल दिया। सामने के घर का दरवाजा खुला था। ज्यों ही वे अंदर घुसे कि दरवाजा बंद हो गया।
वजीर के लड़के ने दरवाजे पर जा कर उसे खटखटाया, पर कोई नहीं बोला। उसने मन-ही-मन कहा, 'यह एक नई मुसीबत सिर पर आ गई। पर अब हो क्या सकता था!' उसने बार-बार दरवाजा खटखटाया, राजकुमार को पुकारा, लेकिन कोई नहीं बोला। हार कर वह अपनी जगह पर बैठ गया और राजकुमार के आने की प्रतीक्षा करने लगा।
घंटों बीत गए, न दरवाजा खुला, न राजकुमार आया।
घर के भीतर जो हुआ, वजीर का लड़का उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था।
बुढ़िया जादूगरनी थी। उसने देख लिया कि राजकुमार की उँगली में एक ऐसी अँगूठी है, जिस पर जादू का प्रभाव नहीं हो सकता। इसलिए उसने जैसे ही राजकुमार का हाथ पकड़ा, अँगूठी उतार ली। अब राजकुमार उसके बस में था। उसने घर के भीतर जा कर राजकुमार को मक्खी बना दिया। मक्खी सामने की दीवार पर जा कर बैठ गई। बुढ़िया ने जादू के जोर पर अपना यह रूप बना लिया था। असल में वह अपने असली रूप में आ गई और राजकुमार को भी मक्खी से उसके असली रूप मे ले आई। हँसते हुए बोली, 'बहुत दिनों में तुम जैसा आदमी मिला है।'
राजकुमार हैरान रह गया। कहाँ गई वह बुढ़िया, जो उसे वहाँ लाई थी? उसकी जगह यह सुंदरी कहाँ से आ गई? विस्मय से राजकुमारी कभी उस युवती को देखता, कभी घर पर इधर-उधर निगाह डालता, पर उसकी समझ में कुछ न आता।
राजकुमार की यह हालत देख कर युवती जोर से हँस पड़ी। बोली, 'घबराते क्यों हो? मैं तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं करूँगी। आओ, मेरे साथ चौपड़ खेलो।'
राजकुमार ने दुखी हो कर कहा, 'मैं यहाँ रुक नहीं सकता।'
'क्यों?' युवती ने पूछा।
राजकुमार ने उसे सारी बात बता दी। बोला, 'मुझे जल्दी-से-जल्दी सिंहल द्वीप पहुँच कर रानी पद्मिनी से मिलना है।'
'ठीक है।' युवती ने उसकी ओर मुस्करा कर देखा, 'पर तुम वहाँ पहुँचोगे कैसे?'
राजकुमार रानी पद्मिनी के चारों ओर की नाकेबंदी की बात सुन चुका था, फिर भी उसने अनजान बन कहा, 'क्यों?'
युवती बोली, 'पहले तो तुम सिंहल द्वीप पहुँच ही नहीं पाओगे। अगर किसी तरह पहुँच भी गए तो रानी पद्मिनी से मिल नहीं सकते।'
राजकुमार ने कहा, 'मुझे हर हालत में अपनी इच्छा पूरी करनी है। यदि मेरा प्रण पूरा नहीं हुआ तो मैं जान दे दूँगा।'
युवती करुणा से भर कर बोली, 'नहीं, उसकी नौबत नहीं आएगी। मैं तुम्हें एक काला और एक सफेद बाल देती हूँ। काले बाल को जलाओगे तो पिशाचों की फौज आ जाएगी। सफेद बाल को जलाओगे तो देवों की फौज आ जाएगी। वे तुम्हारी हर तरह से मदद करेंगे। जो कहोगे, वही करेंगे।'
राजकुमार के खोए प्राण आए। उसने उस युवती का आभार मानना चाहा, पर उसके मुँह से शब्द नहीं निकले। चुप रहा।
युवती बोली, 'मेरी एक शर्त तुम्हें माननी होगी।'
'वह क्या?' राजकुमार ने उत्सुकता से पूछा।
युवती ने गंभीर हो कर पूछा, 'तुम पद्मिनी को ले कर जब लौटोगे तो मुझे भी साथ ले जाओगे!'
'तुम्हारी यह शर्त मुझे मंजूर है।' राजकुमार ने बड़े सहज भाव से कहा।
युवती बोली, 'मैं जानती हूँ कि तुम्हारे भीतर कितनी आग धधक रही है। मैं तुम्हें नहीं रोकूँगी।''
उसे बीच में ही रोक कर राजकुमार ने कहा, 'मेरा मित्र बाहर बहुत बेचैन हो रहा होगा। अब तुम मुझे जाने दो।'
'मुझे भी साथ ले चलो।' बड़ी शरारत-भरी आवाज में युवती बोली, 'मैं तुम्हें इस घर में अधिक दिन नहीं रक्खूँगी। बस, आज की रात, सिर्फ आज की रात, तुम मेरे साथ चौपड़ खेल लो।'
राजकुमार राजी हो गया। रात-भर उसके साथ चौपड़ खेलता रहा। उसने युवती को बार-बार हराया, पर हार कर युवती व्यथित नहीं हुई, उसे पता चला कि राजकुमार की बुद्धि कितनी प्रखर है।
सवेरा होने से पहले युवती ने उसे एक डिब्बी में दो बाल दिए और उसकी अँगूठी लौटा दी। बोली, 'जाओ। रास्ता कठिन जरूर है, पर तुम्हें सफलता मिलेगी।'
उसने बड़े प्यार से राजकुमार को विदा किया और उसके जाने के लिए दरवाजा खोल दिया।
उस एक रात में वजीर के लड़के की जो हालत हो गई थी, उसे वही जानता था। उसे लग रहा था कि अब राजकुमार अंदर ही फँसा रहेगा, बाहर नहीं आएगा। पर सहसा दरवाजा खुला और राजकुमार बाहर आता दीख पड़ा तो वह अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर सका। उसका जी भर गया। वह दौड़ कर राजकुमार से लिपट गया और बच्चों की तरह फूट-फूट कर रोने लगा। राजकुमार ने उसे ढाँढ़स बँधाया। बोला, 'मित्र, घबराने की जरूरत नहीं है। जो होता है, अच्छा ही होता है।'
इसके बाद उसने जादूगरनी की पूरी कहानी उसे कह सुनाई। बोला, 'मैं तो मानता हूँ कि आदमी का इरादा पक्का हो तो उसे कामयाबी मिल कर ही रहती है। उसके रास्ते में बाधाएँ आती हैं, पर वे दूर हो जाती हैं।'
वजीर के लड़के ने कहा, 'आप सही कहते हो, साधना के बिना सिद्धि नहीं मिलती।'
अब उन्होंने फिर आगे का रास्ता पकड़ा। उस नगरी से निकल कर अब वे खुले मैदान में थे। इधर-उधर खेतों में फसल उग रही थी। लोग अपने-अपने काम में लगे थे।
वे लोग चलते गए, चलते गए। रास्ते में खेत-खलिहानों के अलावा कहीं-कहीं हरे-भरे बाग-बगीचे मिलते, कहीं नदी-नाले, पर उन सबको पार करते वे निर्विघ्न बढ़ते ही गए। रात होने से पहले उन्हें एक आश्रम मिला। उस आश्रम के बाहर एक साधु बैठे थे। सिर पर बड़ी जटाएँ, लंबी दाढ़ी, घनी मूँछें, भरा-पूरा चेहरा। राजकुमार का मन हुआ कि रात को वहीं ठहर जाएँ। उसने अपने साथी से सलाह की तो वह भी राजी हो गया।
राजकुमार ने तब साधु के पास जा कर कहा, 'हम मुसाफिर हैं। बहुत दूर से आ रहे हैं। यदि आपकी अनुमति हो तो रात को यहाँ ठहर जाएँ। सवेरे चले जाएँगे।'
साधु बोले, 'यह तो आश्रम है। हर कोई यहाँ रुक सकता है। तुम आराम से ठहरो और जब तक मन करे, हमारे साथ रहो!'
राजकुमार को यह सुन कर बड़ी खुशी हुई। उन्होंने घोड़ों को वहीं बाँध दिया और आश्रम के एक कमरे में बिस्तर लगाया।
खा-पी कर जब बैठे तो साधु महाराज भी वहीं आ गए। बातें होने लगीं। साधु बाबा बहुत पहुँचे हुए व्यक्ति थे। जब वह बोलते थे, ऐसा प्रतीत होता था, मानो उनके मुख से फूल झड़ रहे हों। उन्होंने पूछा, 'तुम लोग कहाँ से आ रहे हो? कहाँ जा रहे हो? तुम्हारी यात्रा का उद्देश्य क्या है?'
राजकुमार ने सारी जानकारी विस्तार से दे दी और अंत में कहा, 'बाबाजी, आर्शीवाद दीजिए कि हमें अपने उद्देश्य में सफलता मिले।'
बाबा विह्वल हो आए। बोले, 'मेरा आशीर्वाद तो हमेशा सबके साथ रहता है। तुम्हारे साथ भी है। पर वत्स, तुम्हारा काम तो आकाश से तारे तोड़ लाने के समान है।'
इतना कह कर बाबा चुप हो गए। फिर बोले, 'पर मेरे यहाँ से तुम खाली हाथ नहीं जाओगे। मैं तुम्हें एक ऐसी भभूत दूँगा, जिसे खा कर तुम सबको देख सकोगे, पर तुम्हें कोई नहीं देख सकेगा।'
बाबा उठ कर गए। लौटे तो उनके हाथ में भभूत थी। उसे राजकुमार को सौंपते हुए बोले, 'इसे सँभाल कर रखना और किसी को मालूम मत होने देना।'
राजकुमार ने बाबा का आशीर्वाद मानते हुए भभूत ले ली। अब तो धीरे-धीरे पद्मिनी की नाकेबंदी को भेदने का रास्ता साफ होता जा रहा था।
बाबा कह रहे थे, 'जीवन में अपना उद्देश्य ऊँचा रखो और उसे प्राप्त करने के लिए पूरे साहस से काम लो। यह जीवन प्रभु ने हमें बड़े-बड़े काम करने के लिए ही दिया है। जिनके सामने कोई ऊँचा ध्येय नहीं होता, वे छोटी-छोटी चीजों में फँसे रह कर अपनी जीवन-यात्रा पूरी कर देते हैं।'
बाबा ने भभूत की डिब्बी उसे दी।
राजकुमार और वजीर का बेटा उनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे। बाबा के मुँह से निकले एक-एक शब्द के पीछे उनका विश्वास था।
उन्होंने कहा, 'तुम लोग तीन-चार दिन यहाँ विश्राम करके आगे बढ़ो। कौन जाने, आगे की यात्रा अब तक की यात्रा से भी कठिन हो। थके होगे तो लड़ोगे कैसे? ताजे होगे तो पहाड़ की चोटी पर सहज ही पहुँच जाओगे।'
राजकुमार को जल्दी थी। उसने ठहरने में आनाकानी की, लेकिन वजीर के बेटे ने बाबा की बात मान ली। समझाने पर राजकुमार भी सहमत हो गया।
वे लोग आश्रम में चार दिन रहे। इस बीच में बाबा छाया की भाँति उनके साथ रहे। उनके पास अनुभवों का अनंत भंडार था। उनका लाभ वह उन दोनों को देते रहे। उन्होंने अंत में जोर दे कर कहा, 'अपने किए पर अभिमान मत करना, साथ ही अपने मार्ग पर दृढ़तापूर्वक डटे रहना।'
उन चार दिनों में बाबा से और आश्रम के जीवन से इतना मिला कि वे कृतकृत्य हो गए। अपने उद्देश्य की सफलता में अब उन्हें कोई संदेह नहीं रहा।
आश्रम से वे बड़े तड़के रवाना हो गए। अभी उनकी मंजिल काफी दूर थी। बिना रुके वे चलते गए। दिन चढ़ आया, सूरज सिर पर आ गया, तब वे एक जलाशय के किनारे रुके, स्नान किया, भोजन किया और थोड़ी देर विश्राम करके आगे बढ़ चले। मौसम अच्छा था। मंद-मंद पवन बह रहा था। रास्ता साफ था। पक्षी मस्ती से इधर-उधर उड़ान भर रहे थे। राजकुमार ने मार्ग दृश्यों को देख कर वजीर के लड़के से कहा, 'देखो, सब कुछ कितना गतिशील है। सूर्य थमता नहीं, पवन रुकता नहीं, पक्षियों का कलरव गान हमेशा चलता रहता है। आदमी को इससे सीख लेनी चाहिए।'
वजीर के लड़के ने देखा कि राजकुमार का मन-कुरंग छलाँगें भर रहा है। उसने कहा, 'धरती भी कहाँ रुकती है। हर घड़ी घूमती रहती है। वह रुक जाए तो दुनिया में हाहाकार मच जाए।'
'तुम ठीक कहते हो, मित्र!' राजकुमार ने प्रसन्न मुद्रा में कहा। फिर वह चुप हो कर चारों और फैले आनंद से पुलकित होने लगा। घोड़ों ने भी जैसे स्वामी के मनोभाव जान लिए। उनकी गति भी तीव्र होती गई।
दिन ढलने लगा, अँधेरा अपनी चादर फैलाने लगा, तब तक वे बराबर चलते रहे और फिर एक घने वृक्ष के नीचे रात बिताने के लिए रुक गए।
राजकुमार के मन में विचारों का ज्वार-भाटा उठ रहा था। वजीर का लड़का तो सो गया, पर उसे नींद नहीं आई। थोड़ी देर में देखता क्या है कि उस पेड़ पर एक तोता और एक मैना आ कर बैठ गए। उनमें बातें होने लगीं। राजकुमार पक्षियों की भाषा जानता था। वह ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा।
तोते ने कहा, 'मैना, कुछ कहो जिससे रात कटे।'
मैना बोली, 'आपबीती कहूँ या परबीती?'
तोते ने कहा, 'अरी आपबीती तो रोज ही सुनते रहते हैं। कुछ परबीती कहो।'
मैना बोली, 'इस नगर के राजा के एक लड़की है। बड़ी सुंदर है, बड़ी भली है, बड़ी भोली है।'
तोते ने उसकी बात काट कर शरारत से कहा, 'तुम जैसी?'
मैना शरमा गई। बोली, 'तुम्हें हर घड़ी मजाक सूझता है।'
तोते ने कहा, 'अच्छा, अपनी बात कहो।'
मैना बोली, 'राजकुमारी बहुत दिनों से बीमार है। दुनिया भर के वैद्य-डाक्टर उसका इलाज कर चुके हैं, पर वह ठीक नहीं होती। बेचारा राजा परेशान है। उसके वही अकेली औलाद है।'
तोते ने कहा, 'यह तो बड़ी हैरानी की बात है।'
'हैरानी की बात तो है ही।' मैना ने व्यथित स्वर में कहा, 'राजा ने यहाँ तक ऐलान कर दिया है कि जो कोई राजकुमारी को अच्छा कर देगा, वह उसी से बेटी का ब्याह कर देगा। राजकुमारी को पाने के लालच में दुनिया भर के चिकित्सक आ रहे हैं, पर कोई भी उसे ठीक नहीं कर पाया। राजा निराश हो गया है।'
इतना कह कर मैना की आवाज रुक गई।
तोता बोला, 'राजकुमारी की बीमारी दूर करने का कोई रास्ता है?'
'रास्ता है!' मैना ने कहा,
'अगर कोई सुनता हो तो इस पेड़ की जड़ ले जाए और उसे घिस कर पानी में मिला कर राजकुमारी को पिला दे। वह रोग से छुटकारा पा जाएगी।'
यह कह कर मैना मौन हो गई। तोता भी कुछ नहीं बोला।
पर राजकुमार उठा और उसने अपने भाले से एक ओर मिट्टी खोद कर पेड़ की थोड़ी-सी जड़ काट ली और आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया।
सवेरा हुआ। दोनों मित्र उठे और तैयार हो कर आगे बढ़ गए।
आगे उन्हें वही नगर मिला, जिसकी चर्चा मैना ने की थी। शहर में बार-बार मुनादी हो रही थी कि राजकुमारी को जो भी अच्छा कर देगा, राजा उसके साथ राजकुमारी को ब्याह देगा और अपना आधा राज्य दे देगा।
राजकुमार ने अपना घोड़ा महल के फाटक की ओर बढ़ा दिया। वजीर के लड़के ने उसे रोकना चाहा, पर वह कहाँ मानने वाला था। फाटक पर जब चौकीदार ने उसे रोका तो उसने कहा, 'मैं राजकुमारी का इलाज करूँगा।'
राजकुमार को राजा के सामने पेश किया गया। राजा ने कहा, 'बड़े-से-बड़े वैद्य इसका इलाज कर गए हैं, पर मेरी प्यारी बेटी को कोई भी अच्छा नहीं कर सका।'
राजकुमार कुछ बोला नहीं। थोड़ा पानी ले कर उसने जड़ को घिसा और बेहोश पड़ी राजकुमारी के होठों पर लगा दिया।
पानी का लगाना था कि राजकुमारी के बदन में कुछ हलचल हुई। राजकुमार ने फिर थोड़ा पानी उसके मुँह से लगाया तो उसने आँखें खोल दीं।
यह देख कर राजा का रोम-रोम पुलकित हो उठा। उसने राजकुमार को सीने से लगा लिया। कुछ ही देर में राजकुमारी उठ कर बैठ गई और चलने-फिरने लगी।
अपनी शर्त के अनुसार राजा ने कहा, 'अब तुम मेरी बेटी को और मेरे आधे राज्य को ग्रहण करो।'
राजकुमार ने राजकुमारी के अच्छा हो जाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए राजा को अपनी प्रतिज्ञा बता दी।
सुन कर राजा ने कहा, 'कोई बात नहीं है। तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करके लौटो तो बेटी को साथ ले जाना और मन हो तो यहीं राज करना।'
सारे नगर में शोर मच गया। प्रजा ने राजकुमार को घेर लिया। राजा ने बड़ी कठिनाई से लोगों को रोका और बड़े मान-सम्मान से राजकुमार को विदा देते हुए कहा, 'यहाँ से दस कोस पर पश्चिम में, एक बाबा गुफा में रहते हैं। तुम उनसे मिलते जाना। वह तुम्हारी मदद करेंगे।'
राजकुमार महल से बाहर आया तो वजीर का लड़का उसकी राह देख रहा था। उसे सारा समाचार मिल गया था। उसने राजकुमार को सीने से लगा कर कहा, 'यह क्या चमत्कार हुआ?'
राजकुमार ने उसे पिछली रात की घटना सुना कर कहा, 'इस दुनिया में, सचमुच कभी-कभी चमत्कार हो जाता है। न हम उस पेड़ के नीचे ठहरते, न यह करिश्मा होता। हमें तोता-मैना का उपकार मानना चाहिए।'
राजा ने उन्हें बाबा से मिलने को कहा था। राजकुमार ने उसी दिशा में प्रस्थान किया। दस कोस पर उन्हें वही गुफा मिल गई। उसमें बाबा बैठे थे। राजकुमार घोड़े से उतर कर उनके पास गया और उन्हें प्रणाम करके सामने खड़ा हो गया।
बाबा आँखें बंद किए बैठे थे। थोड़ी देर में उन्होंने आँखें खोलीं और जिज्ञासा भाव से कहा, 'कैसे आए हो?'
राजकुमार ने सारा हाल सुना कर कहा, 'राजा ने कहा था कि मैं आपके दर्शन करूँ।'
बाबा बड़ी आत्मीयता से बोले, 'वत्स, तुमने काम बड़ा कठिन और जोखिम भरा उठाया है।'
राजकुमार ने कहा, 'बाबा, काम कठिन जरूर है, लेकिन आदमी तो बना ही कठिन काम करने के लिए है।'
बाबा की आँखें चमक उठीं। बोले, 'तुमने ठीक कहा। जो कठिन काम से बचे वह आदमी कैसा!'
कुछ रुक कर उन्होंने कहा, 'अब तुम सिंहल द्वीप के पास आ गए हो, लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए तुम्हें महासागर पार करना होगा। कैसे करोगे?'
राजकुमार ने कोई झिझक नहीं दिखाई। बोला, 'बाबा, जो शक्ति मुझे यहाँ तक ले आई है, वही शक्ति इस कठिनाई का भी रास्ता निकालेगी।'
'शाबाश, वत्स' बाबा ने विभोर हो कर कहा, ''आदमी तो निमित्त है। काम शक्ति ही कराती है।'
इतना कह कर बाबा ने खड़ाऊँ की एक जोड़ी उसे देते हुए कहा, 'इन्हें पहन कर तुम सहज ही समुद्र पार कर जाओगे। जाओ, मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा।'
राजकुमार ने अत्यंत कृतज्ञ भाव से बाबा के चरणों में सिर रखा और बाबा ने समुद्र पार करने के लिए खड़ाऊँ की जोड़ी दी। उसकी पीठ थपथपा कर उसे आशीर्वाद दे कर विदा किया।
घोड़ों पर सवार हो कर जब वे चले तो राजकुमार भाव-विह्वल हो रहा था। उसने वजीर के लड़के से कहा, 'राजा बड़ा उदार था। उसके साथ जो हुआ, उसका बदला उसने चुका दिया। इतनी बड़ी समस्या को सहज ही हल कर दिया।'
दोनों आगे बढ़े। उनकी अब विशाल सागर को देखने के लिए आतुरता थी।
पर सहसा एक चिंता ने राजकुमार को आ घेरा। वह तो खड़ाऊँ की मदद से सागर पार कर लेगा, पर उसके साथी का क्या होगा!
उसने वजीर के लड़के से कहा, 'मित्र, आगे की लड़ाई अब मुझे अकेले को ही लड़नी पड़ेगी। जब तक मैं लौट कर नहीं आऊँ, तुम यहीं रुके रहोगे।'
वजीर का लड़का हतप्रभ हो गया। यह कैसे होगा? अकेला राजकुमार कैसे उस किले को फतह कर सकेगा?
जब उसने राजकुमार से अपनी आशंका व्यक्त की तो राजकुमार ने उसे धीरज बँधाते हुए कहा, 'तुम चिंता मत करो। आगे के लिए मेरे पास सारे साधन हैं।'
फिर इधर-उधर की बातें करते हुए वे आगे बढ़ते गए। राजकुमार का मन परेशान था। वजीर का लड़का भीतर-ही-भीतर परेशान था। यदि राजकुमार को कुछ हो गया तो वह राजा को कैसे मुँह दिखाएगा? राजकुमार हिम्मत से आगे बढ़ रहा था। साथी का दिल बैठ रहा था। दिन भर चलने के बाद अंत में उन्हें दहाड़ता सागर सामने दिखाई पड़ा। बड़ी-बड़ी लहरें उठ-उठ कर एक भयानक दृश्य प्रस्तुत कर रही थीं। तट पर पहुँच कर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और निर्निमेष नेत्रों से सागर की विशाल जल-राशि को देखने लगे।
अगले दिन प्रातः प्रस्थान करने का निश्चय किया। बड़े तड़के उठ कर राजकुमार ने अपने घोड़े को खूब प्यार किया, वजीर के लड़के के बहते आँसुओं को पोंछ कर उसे सीने से लगाया और सूर्य की प्रथम किरण के फूटते ही पैरों में खड़ाऊँ पहन कर सागर के तट पर जा खड़ा हुआ। उसके बाद ज्यों ही पैर पानी पर रखा, उसका सारा बदन काँप उठा; लेकिन तभी उसने अनुभव किया कि वह पानी पर ऐसे खड़ा है, जैसे धरती पर खड़ा हो। फिर तो वह एक-एक कदम रखते हुए आगे बढ़ने लगा। वजीर का लड़का आश्चर्य से देख रहा था कि पानी पर यह इस प्रकार कैसे चल रहा है? धीरे-धीरे राजकुमार आँखों से ओझल हो गया।
राजकुमार का वह पूरा दिन सागर पर चलते-चलते बीता। समुद्र की छोटी-बड़ी मछलियाँ दूसरे जीव-जंतु उसकी तरफ आते थे, किंतु उसके पास आने की हिम्मत नहीं कर पाते थे, कुछ दूर से ही भाग जाते थे।
राजकुमार बड़े आनंद से आगे बढ़ता गया। पर समुद्र का अंत उसे दिखाई नहीं देता था। पूरा दिन और पूरी रात उसने चलते-चलते बिताई। अगला दिन आया, तब उसे सागर का किनारा दीख पड़ा। वही था सिंहल द्वीप, जिसमें पद्मिनी को पाने के लिए वह घर से निकला था।
उस भूमि को देख कर उसे रोमांच हो आया, लेकिन दूर से ही उसने देखा कि काले-काले खूँखार राक्षस द्वीप की रक्षा के लिए खड़े हैं। राजकुमार ने भभूत की डिब्बी खोली और एक चुटकी भभूत मुँह में डाल ली। अब वह सबको देख सकता था। वह बेधड़क राक्षसों के बीच पहुँच गया। राक्षस बड़े ही डरावने थे। उनके रंग-रूप और चेहरों को देख कर रोंगटे खड़े हो जाते थे। उनके हाथों में हथियार देख कर प्राण सूख जाते थे। राजकुमार उस सबको देख कर सकपका रहा था, हालाँकि उसे पता था कि कोई भी उसे देख नहीं पा रहा है।
राजकुमार ने निश्चय किया कि वह पहले शहर का एक चक्कर लगा ले। शहर को समझ कर फिर आगे का कार्यक्रम तय करे। वह शहर में खूब घूमा। पद्मिनी के महल पर भी गया। किंतु उसे लगा कि जोर-जबरदस्ती से महल में घुसना असंभव है। उसके लिए कोई जुगत करनी होगी।
नगर इतना सुंदर और कलापूर्ण था कि अपने को भूल गया। ऐसा अनुपम नगर तो उसने पहले कभी नहीं देखा था। जगह-जगह पर हरी दूब के कालीन बिछे थे और रंग-बिरंगे पुष्पों से सारा शहर सुशोभित और महक रहा था। कदम-कदम पर गुलाब जल के फव्वारे चल रहे थे। सड़कें बड़ी साफ-सुथरी थीं। गंदगी का कहीं नाम भी नहीं था। बढ़िया पोशाकें पहन स्त्री-पुरुष, बच्चे इधर-उधर घूम रहे थे। उनका रूप बड़ा सलोना था। राजकुमार उस सबको देख कर मुग्ध हो गया। उसे लग रहा था, जैसे वह इंद्रपुरी में पहुँच गया है।
वह घूमता रहा, घूमता रहा। सहसा उसे ध्यान आया कि वह अदृश्य तो बन गया है, पर अपने असली रूप में कैसे आएगा। यह सोच कर उसका मन व्यग्र हो गया। अब वह क्या करे?
उसकी हैरानी बढ़ती जा रही थी कि अचानक उसे उन बाबा का ध्यान हो आया, जिन्होंने भभूत की वह डिबिया दी थी। तभी उसे दिखाई दिया कि बाबा उसके सामने खड़े हैं। वह कह रहे थे कि यह ले दूसरी डिबिया, जिसकी भभूत खाते ही तू अपने असली रूप में आ जाएगा।
राजकुमार ने खुश हो कर दूसरी डिबिया ले ली। बाबा अंतर्धान होते-होते कह गए कि दूसरी डिबिया का इस्तेमाल होशियारी से करना। यदि लोगों ने देख लिया तो राक्षस तुझे कच्चा ही खा जाएँगे।
अब राजकुमार ने, आगे क्या करना है, इस बारे में सोचा। सोचते-सोचते उसने काला और सफेद बाल निकाला। पहले उसने काला बाल जलाया। उस बाल का जलना था कि राक्षसों की फौज आ कर खड़ी हो गई। उसने आदेश दिया कि पहरे के राक्षसों का खात्मा कर दो। देखते-देखते सारे राक्षस धराशायी हो गए। उसने थोड़े-से राक्षसों को रोक कर शेष को विदा कर दिया। इसके पश्चात उसने सफेद बाल जला कर देवों को बुलाया। उनके आने पर उसने कहा, 'समुद्र के किनारे हीरे-जवाहरात तथा नाना प्रकार के आभूषणों से भरा एक जहाज खड़ा कर दो।' पलक झपकते ही एक बड़ा ही सुंदर जहाज खड़ा हो गया, उसमें हीरे-जवाहरात भरे थे और तरह-तरह के आभूषण थे। आभूषण एक से बढ़ कर एक थे।
यह सब होते ही नगर भर में खबर फैल गई कि परदेस से एक बहुत बड़ा सौदागर आया है। लोग अचंभे में रह गए कि ऐसा एकदम कैसे हो गया, लेकिन उनके सामने सौदागर मौजूद था और उसके पास बेशकीमती आभूषणों का भंडार था।
यह खबर उड़ती-उड़ती राजमहल में पहुँची। पद्मिनी ने यह सब सुना तो उसका मन मचल उठा। उसने कहा, 'उस व्यापारी को हमारे सामने लाओ।'
तुरंत पद्मिनी के दूत व्यापारी बने राजकुमार के पास पहुँचे और पद्मिनी का संदेश कह सुनाया। राजकुमार तो यह चाहता ही था। वह पद्मिनी से मिलने महल में पहुँचा तो वहाँ के दृश्य देखता ही रह गया। सबकुछ अनूठा था। महल का द्वार बहुत ही कला-कारीगरी पूर्ण था। अंदर लता-गुल्मों के बीच फव्वारे अपनी बहार दिखा रहे थे। महल चारों ओर से घिरा था, किंतु दूत के साथ होने के कारण उसे अंदर प्रवेश पाने में कोई कठिनाई नहीं हुई। पद्मिनी एक सजे-धजे कक्ष में सिंहासन पर विराजमान थी।
राजकुमार के कक्ष में प्रविष्ट होते ही उसने उसका अभिवादन किया। राजकुमार ने भी हाथ जोड़ कर, सिर झुका कर अपना सम्मान व्यक्त किया।
पद्मिनी ने उसे बैठने का संकेत किया। वह आसन पर बैठ गया तो पद्मिनी ने पूछा, 'तुम कहाँ से आए हो?'
पद्मिनी के मुँह से शब्द नहीं, मानो फूल झड़े हों।
राजकुमार एकटक उसकी ओर देखते हुए बोला, 'मैं स्वर्ण-भूमि से आया हूँ।'
'वहाँ क्या करते थे?' पद्मिनी ने अगला प्रश्न किया।
'जी, मैं हीरे-जवाहरात का व्यापारी हूँ।' राजकुमार ने उत्तर दिया।
'यहाँ कैसे आए?' पद्मिनी ने थोड़ा गंभीर हो कर पूछा।
'सुना था, आप आभूषणों और हीरे-जवाहरात की पारखी और प्रेमी हैं।' राजकुमार का संक्षिप्त उत्तर था।
'तो तुम कुछ आभूषण लाए हो?'
'जी हाँ।'
'कहाँ हैं?'
'समुद्र के किनारे मेरा जहाज खड़ा है।' राजकुमार ने सहज भाव से कह दिया।
पद्मिनी ने मुस्करा कर कहा, 'तो तुम उन्हें मुझे दिखा सकते हो?'
'अवश्य। मैं तो यहाँ आया ही इस काम से हूँ।'
'ठीक है। अब तुम जाओ।' पद्मिनी ने धीमी आवाज में कहा, 'कल मेरा दूत तुम्हारे पास आएगा। उसके साथ कुछ बढ़िया आभूषण ले आना।'