मायाजाल

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
The Romantic
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Re: मायाजाल

Unread post by The Romantic » 05 Dec 2014 18:56



मनदीप सिंह बेहद अहंकारी आदमी था । उसे अपने अमीर होने का बहुत अहम था । जिसके चलते वो दूसरों को हमेशा नीचा ही समझता था । वह पगडी बाँधता था । और उसके चेहरे पर बङी बङी दाङी मूँछे थी । मनदीप रोज ही शराब पीता था । और मुर्गा चिकन खाने का बहुत शौकीन था ।
वैसे जस्सी और उसके माँ बाप कभी कभी गुरुद्वारा जाते थे । लेकिन फ़िर भी मनदीप नास्तिक ही था । इसके विपरीत राजवीर काम चलाऊ धार्मिक थी । जस्सी न आस्तिक थी । और न ही नास्तिक । वो बस अपनी मदमस्त जवानी में मस्त थी ।
- सुनो जी । अचानक राजवीर अजीव से स्वर में बोली - ऐसा तो नहीं । कहीं ये भूत प्रेत का चक्कर हो ?
मनदीप ने उसकी तरफ़ ऐसे देखा । जैसे वह पागल हो गयी हो । दुनियाँ 21 वीं सदी में आ गयी । पर इन औरतों और जाहिल लोगों के दिमाग से सदियों पुराने भूत प्रेत के झूठे ख्याल नहीं गये ।
वह उठकर तकिये के सहारे बैठ गया । और उसने राजवीर को अपनी गोद में गिरा लिया । फ़िर उसकी तरफ़ देखता हुआ बोला - कैसे होते हैं भूत प्रेत ? तूने आज तक देखे हैं । तुझे पता है । सिख लोग भूत प्रेत को बिलकुल नहीं मानते । ये सब जाहिल गंवारों की बातें हैं । भूत प्रेत । आज तक किसी ने देखा है । भूत प्रेत को ।
फ़िर उसने मानों मूड सा खराब होने का अनुभव करते हुये राजवीर के स्तनों को सहला दिया । मानों उसका ध्यान इस फ़ालतू की बकबास से हटाने की कोशिश कर रहा हो । लेकिन राजवीर के दिलोदिमाग में कुछ अलग ही उधेङबुन चल रही थी । जिसे वह मनदीप को बता नहीं पा रही थी । फ़िर उसने सोचा । अभी मनदीप से बात करना बेकार है । शायद वह सीरियस नहीं है । इसलिये फ़िर कभी दूसरे मूड में बात करेगी । यही सोचते हुये उसने मनदीप का हाथ अपने स्तनों से हटाया । और कपङे ठीक करके बाहर निकल गयी ।
जस्सी दीन दुनियाँ से बेखबर सो रही थी । पर राजवीर की आँखों में नींद नहीं थी । वह रह रहकर करबटें बदल रही थी ।

दोपहर के समय करम कौर राजवीर के घर पहुँची । राजवीर ने उसे खास फ़ोन करके बुलाया था । उसकी गोद में एक छोटादोपहर के समय करम कौर राजवीर के घर पहुँची । राजवीर ने उसे खास फ़ोन करके बुलाया था । उसकी गोद में एक छोटा सा दूध पीता बच्चा था । वह एक हसीन और जवानी से भरपूर लदी हुयी मादक बनाबट वाली औरत थी । भरपूर औरत ।करम कौर गरेवाल जबर जंग सिंह की विधवा थी । और राजवीर की खास सहेली थी । उसका फ़िगर 37-33-40 था । और उसका कद 5 फ़ीट 9 इंच था । वह गुदा मैथुन की बहुत शौकीन थी । और ऐसे कामोत्तेजक क्षणों में वह स्वर्गिक आनन्द महसूस करती थी । उसके विशाल और अति उत्तेजक नितम्बों की बनावट अच्छे अच्छों की नीयत खराब कर देती थी । और तब वे हर संभव उसे पाने का प्रयत्न करते थे ।
करम कौर की पहली शादी से जो बेटा था । वो अभी 15 साल का था । उसका नाम " गुर निहाल सिंह " था । करम कौर का पहला पति । जो मर चुका था । उसका नाम " जबर जंग सिंह " था । और अभी दूसरे पति का नाम " शमशेर सिंह " था । करम कौर के पहले शादी से 2 बच्चे थे । जिनमें 1 बेटा और दूसरा बेटी थी । उसकी बेटी का नाम " गुरलीन कौर " था । दूसरी शादी से जो बच्चा पैदा हुआ । उसका नाम " हरकीरत सिंह " था ।
- ओये राजवीर ! वह उसके सामने बैठती हुयी बोली - तू बङी फ़िक्रमन्द सी मालूम हुयी फ़ोन पर । क्या बात हुयी ।
राजवीर ने रिमोट उठाकर टीवी का वाल्यूम बेहद हल्का कर दिया । और करम कौर की तरफ़ देखा । उसके और करम कौर के बीच कुछ छुपा हुआ नहीं था । वे एक दूसरे की पूरी तरह से राजदार थी । और अक्सर फ़ुरसत के क्षणों में अपने सेक्स अनुभवों को बाँटती हुयी काल्पनिक सुख महसूस करती थीं । करम कौर का बच्चा शायद भूख से मचलने लगा था । उसको शान्त कराने के उद्देश्य से वह स्तनपान कराने लगी ।
- समझ नहीं आ रहा । फ़िर राजवीर उसकी तरफ़ देखती हुयी बोली - क्या कहूँ । और कैसे कहूँ । और कहाँ से कहूँ



करम कौर ने इसे हमेशा की तरह सेक्सी मजाक ही समझा । अतः बोली - कहीं से भी बोल । आगे से पीछे से । ऊपर से नीचे से । आखिर तो साँप जायेगा । बिल के अन्दर ही ।
- वो बात नहीं । राजवीर बोली - मैं वाकई सीरियस हूँ । और जस्सी को लेकर सीरियस हूँ । पिछले कुछ दिनों से मैं कुछ अजीव सा देख रही हूँ । अनुभव कर रही हूँ ।
करम कौर बात की नजाकत को समझते हुये तुरन्त सीरियस हो गयी । और प्रश्नात्मक निगाहों से राजवीर की तरफ़ देखने लगी ।
- मैं ! राजवीर बोली - पिछले कुछ दिनों से । या लगभग बीस दिनों से । जस्सी के पास ही सो रही हूँ । मैंने सोचा । अगर वो वजह पूछेगी भी । तो मैं कुछ भी बहाना बोल दूँगी । पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं पूछा । तुझे मालूम ही है । मैं अक्सर ग्यारह के बाद ही सोती हूँ । जबकि जस्सी दस बजे से कुछ पहले ही सो जाती है । मनदीप का नशा ग्यारह के लगभग ही कुछ हल्का होता है । और तब वह रोमान्टिक मूड में होता है । मुझे उन पलों का ही इंतजार रहता है । उस समय वह भूखे शेर के समान होता है । लिहाजा उसका ये रुटीन पता लगते ही मेरी बहुत सालों से ऐसी आदत सी बन गयी है ।
ऐसे ही एक दिन । लगभग बीस दिन पहले । जब मैं सोने से पहले टायलेट जा रही थी । मैंने जस्सी को कमरे में टहलते हुये देखा । ऐसा लग रहा था । जैसे वह बहुत धीरे धीरे किसी से मोबायल फ़ोन पर बात कर रही हो । मैंने सोचा । लङकी जवान हो चुकी है । शायद किसी ब्वाय फ़्रेंड से चुपके से बात कर रही हो । उस वक्त उसके कमरे की लाइट बन्द थी । और बाहर का बहुत ही मामूली प्रकाश कमरे में जा रहा था । फ़िर उसे गौर से देखते हुये मुझे इसे बात का ताज्जुब हुआ कि उसके हाथ में कोई मोबायल था ही नहीं । और करमा तू यकीन कर । वह उसके गोल स्तन पर एक दृष्टि डालकर बोली - वह निश्चय ही किसी से बात कर रही थी । और ये मेरा भृम नहीं था । और ये एकाध मिनट की भी बात नहीं थी । मैं उसको लगभग बीस मिनट से देख रही थी । और सुन भी रही थी । पर उसकी बातचीत में मुझे बहुत ही हल्का हल्का हाँ । हूँ । ठीक है । ओ माय डार्लिंग .. जैसे शब्द ही मुश्किल से सुनाई दे रहे थे ।


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Re: मायाजाल

Unread post by The Romantic » 05 Dec 2014 18:57

करम कौर के चेहरे पर गहन आश्चर्य के भाव आये । उसकी आँखे गोल गोल हो गयीं । तभी राजवीर का नौकर सतीश वहाँ आया । उसने एक चोर निगाह करम कौर के खुले स्तन पर डाली । और राजवीर से बोला - मैं बाजार जा रहा हूँ । कुछ आना तो नहीं है ?
राजवीर ने ना ना में सिर हिलाया ।
सतीश यूपी का रहने वाला पढा लिखा नौजवान था । और एक प्रायवेट नौकरी के चक्कर में पंजाब आया था । बाद
में न सिर्फ़ वह पंजाब में ही रम गया । बल्कि अपनी कंपनी टायप नौकरी छोङकर वह बराङ साहब के घर नौकर के रूप में काम करने लगा । ये नौकरी न सिर्फ़ उसके लिये आरामदायक सावित हुयी थी । बल्कि कई तरह से उसके लिये पाँचों उँगलियाँ घी में कहावत को भी पूरा कर रही थी ।
वास्तव में U.P वाला भईया के नाम से मशहूर सतीश करम कौर गरेवाल का बेहद आशिक था । और चोरी चोरी उसको देखता हुआ नयन सुख लेता था ।
सतीश ने करम कौर के लङके गुरु निहाल से नकली दोस्ती की हुई थी । और उसे बातों ही बातों में फ़ुसलाकर वह उससे उसकी मम्मी की दिन भर की गतिविधियाँ पूछता रहता था । उसकी नीयत से अनजान गुरु निहाल उसे

सब कुछ बताता रहता था । उसकी माँ रोज कितने बजे उठती है । कितने बजे नहाती है । कैसा खाना खाती है । क्या पीती है । किस समय अपने दूसरी शादी के बच्चे को स्तनपान कराती है । ये सब बातें पूछकर सतीश एकान्त में सोने से पहले करम कौर के साथ मानसिक संभोग की कल्पना करता हुआ हस्तमैथुन करता था ।
और वास्तविक रूप में उसको पाने का बेहद इच्छुक था । करम कौर भी इस बात को खूब समझती थी । और मौके बे मौके शायद वो कभी काम आये । इस हेतु अपने स्तनों की भरपूर झलक दिखाने से नहीं चूकती थी ।
उसको मरदों को ऐसे तङपाने में भी खास सुख मिलता था । दूसरे एक हिन्दू युवा पठ्ठा और और डिफ़रेंट टेस्ट की छुपी चाहत भी उसको सतीश के प्रति आकर्षित करती थी । और वह भी उसके साथ हमबिस्तर पर होने की अभिसारी कल्पना करती थी । पर अभी दोनों में से किसी की तरफ़ से कोई पहल नहीं हुयी थी ।
- अब करमा ! मुझे और भी । सतीश के जाने के बाद राजवीर फ़िर से बोली - और भी ताज्जुब इस बात का हुआ कि बात करते करते अचानक वह मेरी तरफ़ घूम गयी । हम दोनों की निगाहें मिली । मैं चौंक गयी । पर उसने मानों मुझे देखा ही नहीं । मुझसे कुछ बोली भी नहीं । और उसी तरह बात करती रही । तब मैं उसको टोकना चाहती थी । उससे कुछ पूछना चाहती थी । पर न जाने क्यों मेरी हिम्मत नहीं पङी । फ़िर चलते चलते वह अचानक वापिस बेड पर बैठ गयी । और अचानक इस तरह लुङकी । मानों नशे में गिरी हो । या नींद में लुङक गयी हो । ये पहले दिन की बात थी ।
करम कौर के चेहरे पर घबराहट के भाव फ़ैले हुये थे । वह हैरत से राजवीर को देखने लगी ।
- अब तू समझ सकती है । राजवीर फ़िर से बोली - ये देखने के बाद मेरे दिल का चैन और रातों की नींद उङ गयी । मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था । जस्सी को अचानक क्या हुआ था ? मेरी फ़ूल सी बच्ची किस तिलिस्मी चंगुल में थी ?
- वन मिनिट । करम कौर ने टोका - तिलिस्मी चंगुल । तिलिस्मी चंगुल से क्या मतलब है तेरा । तू ये कैसे कह सकती है । जसमीत किसी तिलिस्मी चंगुल में थी ?

थी के बजाय है कहा जाये । राजवीर बजते हुये मोबायल के नम्बर पर निगाह डालते हुये उसे साइलेंट करती हुयी बोली - है कहा जाये । तो ज्यादा उचित होगा । मैंने बोला ना । ये बीस दिन पहले की बात है । पहले मैंने यही सोचा था कि उससे सुबह नार्मली प्यार से सब पूछूँगी । ये सब क्या है ? वो लङका कौन है ? पर फ़िर मुझे ख्याल आया कि मैं उससे क्या पूछूँगी ? उसके पास मोबायल तो था ही नहीं । और जब मोबायल नहीं था । तब कैसे कहा जाये । वो किसी ब्वाय फ़्रेंड से बात कर रही थी । और ब्वाय फ़्रेंड से बात भी कर रही थी । तो ये कोई पूछने वाली बात ही नहीं थी । ऐसी ही तमाम बातें सोचते हुये मैंने कुछ दिन और इस रहस्य का पता लगाने की कोशिश की । और इसीलिये मैंने बराङ साहब को भी कुछ नहीं बोला ।
और लगातार बीच बीच में जागकर उसकी छुपी निगरानी की । तब कुछ और उसका रहस्यमय व्यवहार देखा । फ़िर मेरे को एक आयडिया आया । यदि मैं बहाने से उसके पास सोने लगूँ । तब शायद वह कुछ विरोध करे । पर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया । एक बार भी नहीं किया । बल्कि उसके व्यवहार से ऐसा कभी लगता ही नहीं था कि वह मेरे लेटने के प्रति कोई नोटिस भी लेती है । वह पहले जैसी ही रही ।
- राजवीर ! अचानक करम कौर ने फ़िर से टोका - अभी अभी तूने कहा कि तूने और भी उसका रहस्यमय व्यवहार नोट किया । वो क्या था ?
- हाँ ! वो ये कि वो अक्सर रात को कभी कभी उठ जाती थी । और कभी भी उठ जाती थी । फ़िर खिङकी के पास खङे होकर उसके पार ऐसे देखती थी । मानों किसी दूसरी दुनियाँ को देख रही हो । खिङकी के एकदम पार कोई दूसरा लोक कोई दूसरी धरती उसे नजर आ रही हो । उसके चेहरे के भाव भी ऐसे बदलते थे । जैसे लगातार कुछ दिलचस्प सा देख रही हो । इसके भी अलावा मैंने उसे खङे खङे दीवाल पर या यूँ ही खाली जगह में किसी काल्पनिक बेस पर कुछ लिखते सा भी देखा । अब इससे भी ज्यादा चौंकने वाली बात तुझे बताती हूँ । एक दिन जब ये सब देखना मेरी बरदाश्त के बाहर हो गया । तो मैंने अपना जागना शो करते हुये आहट की । पर उस पर कोई असर नहीं हुआ । मैं भौंचक्का रह गयी । तब डायरेक्ट मैंने उसको आवाज ही दी । करमा ताज्जुब उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ । अब तो मैं चीख पङना चाहती थी । पर फ़िर भी मैंने खुद को कंट्रोल करते हुये उसे जस्सी जस्सी मेरी बेटी कहते हुये झंझोङ ही दिया ।

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Re: मायाजाल

Unread post by The Romantic » 05 Dec 2014 18:59

और करम । उस पर फ़िर भी कोई असर नहीं हुआ । बल्कि उसका रियेक्शन ऐसा था । जैसे किसी पुतले को हिलाया गया हो । और तब मेरे छक्के ही छूट गये । फ़िर करमा जैसे ही मैंने उसे छोङा । वह फ़िर से लुङक गयी ।
- ओ माय गाड ! करम कौर के माथे पर पसीना छलछला आया - ओ माय गाड । यकीन नहीं होता । लगता नहीं । ये सच है । तूने बराङ साहब को नहीं बोला । ये सब ।
राजवीर के चेहरे पर वितृष्णा के भाव आये । उसने सूखी भावहीन आँखों से करम कौर को देखा । तब वह जैसे सब कुछ समझ गयी के अंदाज में सिर हिलाने लगी ।
खैर ! राजवीर आगे बोली - रहस्य अभी भी खत्म नहीं हुआ । अब मुझे और भी अजीव सा इसलिये लग रहा था । क्योंकि दिन में उसका व्यवहार एकदम नार्मल था । लगता था । जैसे कोई बात ही न हो । वह चंचल तितली की तरह इधर उधर उङती रहती थी । अपनी पढाई वगैरह कायदे से करती थी । ये मेरे लिये और भी रहस्य था । क्योंकि उसके रात के व्यवहार का दिन पर कोई असर नजर नहीं आता था ।
देख करमा ! वह भावुक स्वर में बोली - तू मेरी सबसे खास सहेली है । तुझसे मेरी कोई बात छिपी नहीं । इतना क्लियरली ये सब मैंने सबसे पहले तुझे और अभी अभी ही बताया है । ये जवान लङकी का मामला है । बराङ साहब को मैं इस मामले में बेबकूफ़ ही समझती हूँ । एक तो वह नास्तिक है । ऐसी बातों का बिना सोचे समझे मजाक उङाता है । पहले बोल देता है । बाद में सोचता है । अरे ये उसने क्या बोल दिया । दूसरे वह दारू के नशे में किसी को क्या बोल दे । इसलिये मैं पहले सभी बात पर खुद विचार करना चाहती थी । फ़िर जब मुझे लगा कि ये मामला सोचना समझना मेरी समझ से बाहर है । तब मैंने तुझे बुलाया । बोल बहन । मैंने कुछ गलत किया क्या ?
करम कौर ने भारी सहानुभूति के साथ पूर्ण हमदर्दी से उसके समर्थन में सिर हिलाया । राजवीर आशा भरी नजरों से उसे देखने लगी । शायद वह रास्ता दिखाने वाली कोई बात बोले । पर उल्टे वह भी गहरे सोच में डूब गयी लगती थी । मानों उसकी समझ में ये चक्कर घनचक्कर क्या है । कुछ भी न आ रहा हो । यहाँ तक कि उसका बच्चा दूध पीते पीते कब का सो गया था । उसका स्तन ज्यों का त्यों खुला था । और राजवीर की बात सुनते सुनते वह किसी अदृश्य लोक में जा पहुँची हो ।
तभी किसी के आने की आहट हुयी । जस्सी कालेज से लौटी थी । जिस समय करम कौर अपना स्तन अन्दर कर रही थी । जस्सी वहाँ आयी । उसने मुस्कराकर करम कौर को देखा । और अपने कमरे में चली गयी ।

सम्पूर्ण सृष्टि का आधार ही है काम वासना । अगर ये काम वासना न होती । स्त्री पुरुष के दैहिक आकर्षण और लैंगिक मिलन की एक अजीव सी और सदा अतृप्त रहने वाली प्यास सभी के अन्दर प्रबल न होती । तो कभी समाज का निर्माण संभव ही नही था । और वास्तव में आदि सृष्टि के समय जब ज्ञान और आत्मभाव की प्रबलता थी । उस समय की आत्मायें काम से बिलकुल मोहित नहीं थी । और हद के पार उदासीन थीं । देवी तुल्य नारियों से भी पुरुष कामभावना के धरातल पर कतई आकर्षित नहीं होते थे । उनके उन्नत गोल स्तन और थिरकते नितम्बों की मादक लय पुरुषों में एक चिनगी पैदा नहीं कर पाती थी ।
जबकि नारी की बात कुछ अलग थी । उसका निर्माण ही प्रकृति रूपा हुआ था । वह पुरुष के अर्धांग से विचार रूप उत्पन्न हुयी थी । और बारबार उसको आत्मसात करती हुयी आलिंगित भाव से उसमें ही समाये रहना चाहती थी । बस उसकी सिर्फ़ यही मात्र एक ख्वाहिश थी । पर आदि संतति प्रबल थी । और इस प्रकृति भाव के अधीन नहीं थी । अतः वे तप को प्रमुखता देते थे । उस माहौल के प्रभाव से देवी नारी भी तब पुरुष के सामीप्य की एक अजीव सी चाहत लिये तप में ही तल्लीन हो जाती थी । पर इस तप का सर्वागीण उद्देश्य यही था । पूर्ण चेतन पुरुष को प्राप्त होना ।
कालपुरुष और दुर्लभ सौन्दर्यता की स्वामिनी अष्टांगी कन्या जीवों के इस काम विरोधी रवैये से बङे हैरान थे । सृष्टि का मूल काम उन्हें कतई आकर्षित नहीं कर रहा था । तब उन्होंने एक निर्णय लेते हुये विष के समान इस काम विषय वासना को अति आकर्षण की मीठी चाशनी में लपेट दिया । ये हथियार कारगर साबित हुआ । और जीव काम मोहित होने लगे । पुरुष को स्त्री हर रूप में आकर्षित करने लगी । उसके हर अंग में एक प्रबल सम्मोहन और जादुई प्रभाव उत्पन्न हो गया । उसकी काली घटाओं सी लहराती जुल्फ़ें । गुलावी लालिमा से दमकते कोमल गाल । रस से भरे हुये अधर । और विभिन्न आकारों से सुशोभित गोल गोल दो स्तन मानों पुरुष के लिये खजाने से भरपूर कलश हो गये । उसकी हरे पेङ की डाली सी लचकती । किसी मदमस्त नागिन की तरह बलखाती कमर पुरुषों के दिल को हिलाने लगी । उसकी कटावदार नाभि में एक उन्मादी सौन्दर्य झलकने लगा । उसकी गोरी गोरी चिकनी जंघायें तपस्वियों के दिल में तूफ़ान उठाने लगी । उसके नितम्बों की चाल से संयमी पुरुषों के दिल भी बेकाबू होने लगे ।
महामाया ने बङा विचित्र खेल खेला । उसने नारी की वाणी में सुरीली कोयल की कूक सी पैदा कर दी । और उसकी वाणी तक में काम को लपेट दिया । उसकी हर क्रिया को उसने काम पूर्ण कर दिया । और इस तरह ये पुरुष जीव भाव में नारी के वशीभूत होता गया । और आज तक हो रहा है ।

और तब ये ठीक उल्टा हो गया । नारी जो वास्तव में पुरुष से उत्पन्न हुयी थी । पुरुष अपने को उसी नारी से उत्पन्न मानने लगा । और उसे ही प्रमुख आदि शक्ति मानता हुआ माया के पूर्ण अधीन हो गया । महामाया । अच्छे अच्छे देव पुरुषों । योग पुरुषों को अपने इशारों पर सदा नचाने वाली महामाया । तब करम कौर में भी उसका ही अंश था ।
रात के नौ बज चुके थे । करमकौर आज राजवीर के घर रुकी हुयी थी । मनदीप जस्सी और राजवीर किसी सिद्ध मठ पर जस्सी की कुशलता हेतु मन्नत माँगने बाहर गये हुये थे । राजवीर ने उन दोनों को स्पष्ट कुछ नहीं बताया था । बस इतना कहा कि बाबा के दरबार में जाने से ऐसी कोई अज्ञात बाधा कष्ट दूर हो जाता है । करमकौर भी ये उपाय ठीक ही लगा । तब मनदीप को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आयी । और वे तीनों करमकौर को अपने घर रोककर दर्शन हेतु चले गये थे ।
स्थिति कोई भी मानुष देही में कामकीङा सदा रेंगता ही रहता है । और अवसर मिलते ही इसके कीटाणु सक्रिय हो उठते हैं । करम कौर को भी आज ये कीङा बार बार काटता हुआ उसके अंगों में प्यास उत्पन्न कर रहा था । एक हिन्दू पुरुष की प्यास । जो सभी सरदार औरतों की विशेष चाहत थी । दिल का हमेशा का अरमान था । और वह पुरुष एक आसान विकल्प के रूप में उसके पास था । बेहद पास । वह अपने मामूली से प्रयास से इस रात को यादगार बना सकती थी । बनाना चाहती थी । और उसने हर हालत में बनाने की ठान ली थी ।
वह दोपहर ग्यारह बजे ही राजवीर के घर आ गयी थी । और उसी समय वे लोग गाङी से निकल गये थे । बस तभी से उसके अंगों में बैचेनी सी समायी हुयी थी । जवानी के पहाङ की तरह खङा सतीश उसे भावना मात्र से दृवित कर रहा था । पर पराये शहर और परायी जाति का बोध उस पर हावी था । नौकर होने की हीन भावना भी उसे मर्यादा में रहने को विवश कर रही थी । और इस तरह करम कौर का बेशकीमती वक्त फ़िजूल जा सकता था । जा रहा था । इसलिये उसने बखूबी समझ लिया था कि पहल उसे ही अपनी तरफ़ से करनी होगी ।
इसलिये उसने किसी न किसी बहाने से सतीश को अपने पास ही रखा । और किसी अभिसार इच्छुक प्रेमिका की भांति उसे अपने स्तनों की बार बार झलक दिखाते हुये अपने कटाक्षों और वाणी से भरपूर उत्तेजित करती रही । और यही सोचती रही कि अब वह उसे बाहों में भरने ही वाला है । पर सतीश जैसे किसी सीमा रेखा में कैद था । और उसे ललचायी नजरों से देखने के बाद भी कुछ कर नहीं पा रहा था ।
सुबह राजवीर का फ़ोन जाते ही उसने यह सब हसरत पूरी करने को तय कर लिया था । और इसीलिये वह अपने घर से बिना वाथ के ही चली आयी थी । बारह बजे वह बाथरूम में थी । और सभी कपङे उतार चुकी थी । उसने अभी वाथ लेना शुरू भी नहीं किया था कि तभी उसका बच्चा अचानक रोने लगा । जिसे संभालने ले लिये तुरन्त सतीश आ गया । पर वह चुप नहीं हो रहा था ।

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