एक छोटी सी कहानी-- नौ-लक्खा
Posted: 07 Nov 2014 21:43
एक छोटी सी कहानी--
नौ-लक्खा
किसी ने कहा है के औरतों में अमीर ग़रीब, धरम या समझ का कोई भी और फरक नही होता. औरतों को एक दूसरे से जुदा करती है तो सिर्फ़ एक चीज़, सुंदरता, खूबसूरती. सिर्फ़ एक ही रॅंकिंग सिस्टम होता है, सुंदर, आम और बदसूरत.
एक लड़की भले एक झोपड़ी में पैदा हुई हो पर अगर वो बला की खूबसूरत है
और अपनी खूबसूरती का सही इस्तेमाल जानती है तो झोपड़ी से महल तक का सफ़र उसके लिए कोई मुश्किल बात नही.
पर ये बात शायद उसके लिए सही साबित नही हुई. वो बचपन से ही सबसे जुदा थी, बहुत खूबसूरत. इतनी खूबसूरत के प्यार से उसे हर कोई परी कह कर बुलाता था. और यही हाल जवानी में भी रहा. जब वो सड़क पर निकलती तो हर नज़र जैसे बस उसपर ही आकर ठहर जाती.
एक बड़ा सा बंगलो, बहुत सारे नौकर, महेंगी गाड़ियाँ, आलीशान कमरे, मखमली चादरें और पर्दे, बेश-कीमती कपड़े और ज़ेवर और ना जाने इस तरह के उसके कितने और सपने उस दिन टूट कर बिखर गये जब उसकी शादी एक सरकारी दफ़्तर में काम करने वाले बाबू से करा दी गयी. और बचपन से ही एक महेल में जाकर रहने की तैय्यार करने वाली लड़की एक सिंगल बेडरूम फ्लॅट में शिफ्ट हो गयी.
उसकी आदतें और टेस्ट्स बहुत ही सिंपल थे पर इसकी वजह उसकी सादगी नही उसकी ग़रीबी थी. सिंपल और सादी लाइफस्टाइल से ज़्यादा वो कभी एफ्फोर्ड कर ही नही पाई थी और यही ट्रेंड शादी के बाद भी कायम रहा. कभी कभी जब वो अपने पति की तरफ देखती तो ऐसा लगता जैसे उसने अपने स्टॅंडर्ड से नीचे शादी कर ली हो.
शादी के बाद उसकी मजबूरियाँ जैसे और बढ़ गयी थी और ज़िंदगी के हर सहूलत के लिए वो और भी ज़्यादा तरसने लगी थी.
वो अपने घर की ग़रीबी से परेशान थी, बेरंग दीवारों से परेशान थी, बद्रंग
पर्दों से परेशान थी. ये सारी चीज़ें जो शायद जिनसे उसके क्लास यानी सुंदर क्लास की बाकी लड़कियाँ अंजान थी उसको दिन रात सताया करती थी, जैसे उसकी बे-इज़्ज़ती करती थी.
उसके घर में जो 12-15 साल की लड़की काम करने आती थी, उसको देख देख कर उसका दिल जैसे और बैठ जाता था.
उसके ख्वाबों में अब भी अक्सर वो बड़े बड़े बंगलो, आलीशान कमरे, बड़ी बड़ी गाड़ियाँ और बेशक़ीमती कपड़े आते थे. अब भी कभी कभी वो सपनो में अपने महल-नुमा घर के आके बड़े से हरे लॉन में कुर्सियाँ डाले अपने सहेलियों से बातें करती थी.
जब वो उस पुरानी सी टेबल पर जो एक पुराने से कपड़े से ढाकी हुई थी अपने पति के साथ खाने बैठा करती और जब उसका पति सामने पतीले में रखे खाने को देख कर खुश होता और कहता "डाल चावल, वाह. खुश्बू तो बड़ी अच्छी आ रही है" तो उसका दिल करता के टेबल को उठा कर उलट दे. उसकी टेबल पर डाल चावल नही बल्कि अच्छे स्वादिष्ट खाने होने चाहिए थे. सामने स्टील के बर्तन नही बल्कि महेंगी चाँदी के प्लेट चम्मच होने चाहिए थे.
कपड़ो और ज़ेवरों का तो जैसे उसके पास अकाल सा पड़ गया था और बस यही वो चीज़ें थी जिनसे उसे बे-इंतेहाँ मोहब्बत थी. जिनकी उसे दिल-ओ-जान से हसरत थी. उसे लगता था के वो इन्ही चीज़ों के लिए बनी है. हमेशा से उसकी यही ख्वाहिश थी के वो बन ठनकर जहाँ भी जाए, हर किसी के दिल में बस एक उसी की चाहत हो, उसकी की तमन्ना हो.
दिन रात वो अपने ग़रीबी और मजबूरी पर रोना जैसे उसकी ज़िंदगी बन चुका था. मायूसी और बेबसी में वो इस कदर खो गयी थी के अपनी बचपन की दोस्त पल्लवी से भी उसने मिलना जुलना बंद कर दिया था. वजह थी के पल्लवी एक अमीर घर से थी और वो उससे मिलकर उसे ये अपनी ग़रीबी का एहसास नही दिलाना चाहती थी.
फिर एक शाम उसके पति ने ऑफीस से आते ही उसके हाथ में एक बड़ा सा एन्वेलप थमा दिया.
"क्या है ये?" उसने बेदिली से पूछा
"खोलकर देखो" मुस्कुराते हुए उसके पति ने जवाब दिया.
उसने लिफ़ाफ़ा फाड़ कर खोला और अंदर से एक इन्विटेशन कार्ड निकला. सवालिया नज़र से उसने अपने पति की तरफ देखा.
"ऑफीस की तरफ से एक पार्टी रखी जा रही है. हमारी ऑफीस के सब बड़े लोग पार्टी में आएँगे. उसी का इन्विटेशन है"
बजाय खुश होने के, जिसकी उसके पति को बहुत उम्मीद थी, उसने वो इन्विटेशन कार्ड कमरे में रखी टेबल पर पटक दिया.
"तो मैं क्या करूँ इसका?"
"ऐसा क्यूँ कहती हो. मुझे लगा तुम्हें खुशी होगी. तुम कभी कहीं बाहर नही जाती और ये एक बहुत आलीशान पार्टी है. सब बड़े बड़े लोग शामिल होते हैं और ये इन्विटेशन भी सबको नही मिलता. मैने बड़ी मुश्किल से हासिल किया है"
नौ-लक्खा
किसी ने कहा है के औरतों में अमीर ग़रीब, धरम या समझ का कोई भी और फरक नही होता. औरतों को एक दूसरे से जुदा करती है तो सिर्फ़ एक चीज़, सुंदरता, खूबसूरती. सिर्फ़ एक ही रॅंकिंग सिस्टम होता है, सुंदर, आम और बदसूरत.
एक लड़की भले एक झोपड़ी में पैदा हुई हो पर अगर वो बला की खूबसूरत है
और अपनी खूबसूरती का सही इस्तेमाल जानती है तो झोपड़ी से महल तक का सफ़र उसके लिए कोई मुश्किल बात नही.
पर ये बात शायद उसके लिए सही साबित नही हुई. वो बचपन से ही सबसे जुदा थी, बहुत खूबसूरत. इतनी खूबसूरत के प्यार से उसे हर कोई परी कह कर बुलाता था. और यही हाल जवानी में भी रहा. जब वो सड़क पर निकलती तो हर नज़र जैसे बस उसपर ही आकर ठहर जाती.
एक बड़ा सा बंगलो, बहुत सारे नौकर, महेंगी गाड़ियाँ, आलीशान कमरे, मखमली चादरें और पर्दे, बेश-कीमती कपड़े और ज़ेवर और ना जाने इस तरह के उसके कितने और सपने उस दिन टूट कर बिखर गये जब उसकी शादी एक सरकारी दफ़्तर में काम करने वाले बाबू से करा दी गयी. और बचपन से ही एक महेल में जाकर रहने की तैय्यार करने वाली लड़की एक सिंगल बेडरूम फ्लॅट में शिफ्ट हो गयी.
उसकी आदतें और टेस्ट्स बहुत ही सिंपल थे पर इसकी वजह उसकी सादगी नही उसकी ग़रीबी थी. सिंपल और सादी लाइफस्टाइल से ज़्यादा वो कभी एफ्फोर्ड कर ही नही पाई थी और यही ट्रेंड शादी के बाद भी कायम रहा. कभी कभी जब वो अपने पति की तरफ देखती तो ऐसा लगता जैसे उसने अपने स्टॅंडर्ड से नीचे शादी कर ली हो.
शादी के बाद उसकी मजबूरियाँ जैसे और बढ़ गयी थी और ज़िंदगी के हर सहूलत के लिए वो और भी ज़्यादा तरसने लगी थी.
वो अपने घर की ग़रीबी से परेशान थी, बेरंग दीवारों से परेशान थी, बद्रंग
पर्दों से परेशान थी. ये सारी चीज़ें जो शायद जिनसे उसके क्लास यानी सुंदर क्लास की बाकी लड़कियाँ अंजान थी उसको दिन रात सताया करती थी, जैसे उसकी बे-इज़्ज़ती करती थी.
उसके घर में जो 12-15 साल की लड़की काम करने आती थी, उसको देख देख कर उसका दिल जैसे और बैठ जाता था.
उसके ख्वाबों में अब भी अक्सर वो बड़े बड़े बंगलो, आलीशान कमरे, बड़ी बड़ी गाड़ियाँ और बेशक़ीमती कपड़े आते थे. अब भी कभी कभी वो सपनो में अपने महल-नुमा घर के आके बड़े से हरे लॉन में कुर्सियाँ डाले अपने सहेलियों से बातें करती थी.
जब वो उस पुरानी सी टेबल पर जो एक पुराने से कपड़े से ढाकी हुई थी अपने पति के साथ खाने बैठा करती और जब उसका पति सामने पतीले में रखे खाने को देख कर खुश होता और कहता "डाल चावल, वाह. खुश्बू तो बड़ी अच्छी आ रही है" तो उसका दिल करता के टेबल को उठा कर उलट दे. उसकी टेबल पर डाल चावल नही बल्कि अच्छे स्वादिष्ट खाने होने चाहिए थे. सामने स्टील के बर्तन नही बल्कि महेंगी चाँदी के प्लेट चम्मच होने चाहिए थे.
कपड़ो और ज़ेवरों का तो जैसे उसके पास अकाल सा पड़ गया था और बस यही वो चीज़ें थी जिनसे उसे बे-इंतेहाँ मोहब्बत थी. जिनकी उसे दिल-ओ-जान से हसरत थी. उसे लगता था के वो इन्ही चीज़ों के लिए बनी है. हमेशा से उसकी यही ख्वाहिश थी के वो बन ठनकर जहाँ भी जाए, हर किसी के दिल में बस एक उसी की चाहत हो, उसकी की तमन्ना हो.
दिन रात वो अपने ग़रीबी और मजबूरी पर रोना जैसे उसकी ज़िंदगी बन चुका था. मायूसी और बेबसी में वो इस कदर खो गयी थी के अपनी बचपन की दोस्त पल्लवी से भी उसने मिलना जुलना बंद कर दिया था. वजह थी के पल्लवी एक अमीर घर से थी और वो उससे मिलकर उसे ये अपनी ग़रीबी का एहसास नही दिलाना चाहती थी.
फिर एक शाम उसके पति ने ऑफीस से आते ही उसके हाथ में एक बड़ा सा एन्वेलप थमा दिया.
"क्या है ये?" उसने बेदिली से पूछा
"खोलकर देखो" मुस्कुराते हुए उसके पति ने जवाब दिया.
उसने लिफ़ाफ़ा फाड़ कर खोला और अंदर से एक इन्विटेशन कार्ड निकला. सवालिया नज़र से उसने अपने पति की तरफ देखा.
"ऑफीस की तरफ से एक पार्टी रखी जा रही है. हमारी ऑफीस के सब बड़े लोग पार्टी में आएँगे. उसी का इन्विटेशन है"
बजाय खुश होने के, जिसकी उसके पति को बहुत उम्मीद थी, उसने वो इन्विटेशन कार्ड कमरे में रखी टेबल पर पटक दिया.
"तो मैं क्या करूँ इसका?"
"ऐसा क्यूँ कहती हो. मुझे लगा तुम्हें खुशी होगी. तुम कभी कहीं बाहर नही जाती और ये एक बहुत आलीशान पार्टी है. सब बड़े बड़े लोग शामिल होते हैं और ये इन्विटेशन भी सबको नही मिलता. मैने बड़ी मुश्किल से हासिल किया है"